Saturday, March 12, 2011

आया हूं पहचान छोड़कर: अंगद बेदी

क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी के बेटे हैं अंगद बेदी। वे रेमो डिसूजा निर्देशित फिल्म फालतू से अपने अभिनय करियर की शुरुआत कर रहे हैं।

ऐक्टर बनना था सपना: मैं दिल्ली में पला-बढ़ा हूं। सेंट कोलंबस स्कूल में मैंने पढ़ाई की। सेंट स्टीफेंस कॉलेज से मैंने ग्रेजुएशन किया है। मैंने आठ साल क्रिकेट खेला। तेरह साल का था, जब मैंने अंडर 16 में दिल्ली को रिप्रजेंट किया। मन था कि हिंदुस्तान के लिए खेलूं, लेकिन मेरी ख्वाहिश थी एक्टर बनने की। सुनील शेट्टी ने एक मुलाकात में कहा कि आपको फिल्मों में आना चाहिए। उनकी इस बात से मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया। उसके बाद मैंने एक्टिंग स्कूल ज्वॉइन किया।
दाढ़ी-बाल कटवाए: उन्नीस साल का था, तब मैं असमंजस में था कि क्या करूं? क्रिकेट खेलूं या एक्टिंग में करियर बनाऊं। मैं पगड़ी बांधता था। मेरी दाढ़ी थी। मुझे लगा कि पगड़ी बांधकर ऐक्टर तो नहीं बन सकता। मैंने बाल-दाढ़ी कटवाए। मं चाहता था कि लोग मुझे लीड रोल के लिए सोचें। मेरे अंदर उथल-पुथल मची थी। मैंने पैरेंट्स को बिना बताए बाल-दाढ़ी कटवा दिए।
बहुत संघर्ष किया: मेरा कोई गॉडफादर नहीं है। मैंने बहुत संघर्ष किया है, लेकिन मैं अपने संघर्ष के बारे में अभी बात नहीं करूंगा। जिस दिन मैं फेमस हो जाऊंगा, उस दिन लोग मेरा संघर्ष जानना चाहेंगे।
करती है सवाल: फालतू का फुल फॉर्म है फकीरचंद एंड लकीरचंद ट्रस्ट यूनिवर्सिटी। यह फिल्म आजकल के एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाती है। फिल्म का एक मैसेज है कि पढ़ाई-लिखाई सब कुछ नहीं है। जो जीनियस बने हैं, वे इंटेलीजेंट रहे हैं, एजुकेटेड नहीं।
टूटा नहीं रिश्ता: मैं क्रिकेट से जुड़ा हूं। युवराज सिंह, जहीर खान, हरभजन सिंह के साथ हमने क्रिकेट खेलना शुरू किया था। हम संपर्क में हैं। मैं सोहेल खान की क्रिकेट टीम में हूं। उनके लिए खेलता हूं। सायरस ब्रोचा पीछे पड़े हैं कि मैं बांबे जिमखाना के लिए खेलूं। मैं प्रोफेशनली अब नहीं खेलता हूं। अब मैं एक्टिंग में आ गया हूं। मेरा लक्ष्य शाहारुख खान की तरह लोगों को रुलाना और हंसाना है। वे मेरी प्रेरणा हैं। मेरे अंदर फिल्मों का जुनून है। मैं अपनी एक पहचान छोड़कर नई पहचान बनाने आया हूं। मुझे लोगों का प्यार और सपोर्ट चाहिए।
-रघुवेंद्र सिंह 

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