इमरान हाशमी मुंबई में पले-बढ़े हैं। नन्हीं उम्र में वे बहुत शैतान थे। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वे बड़े होकर अभिनेता बनेंगे। उनकी पहली फिल्म 'फुटपाथ' वर्ष 2003 में प्रदर्शित हुई। अब उनकी पहचान लोकप्रिय एवं सफल अभिनेता की है। इमरान सप्तरंग के पाठकों को बता रहे हैं अपने बचपन की नटखट बातें-
[शैतान बच्चा था]
मेरा बचपन बेहद खुशनुमा माहौल में बीता है। मैं अपने मम्मी-पापा का इकलौता बेटा हूं। नन्हीं उम्र से ही मेरी हर सुख-सुविधा का ख्याल रखा जाता रहा। मैं बचपन में जिस चीज की मांग करता था वह तुरंत मेरे सामने लाकर रख दी जाती थी। सबके लाड़-प्यार की वजह से मैं बिगड़ गया था। मैं घर का सबसे शैतान बच्चा था।
[मुस्कान थी ढाल]
मैं घर का ही नहीं, बिल्डिंग का भी सबसे शरारती बच्चा था। एक बार मैंने बिल्डिंग के पिछवाड़े में आग लगा दी थी। फायर ब्रिगेड बुलानी पड़ी थी। पता है? उतनी बड़ी घटना के बावजूद मुझे मार नहीं पड़ी। मैं मासूम मुस्कुराहट से सबका दिल जीत लेता था। लाख शरारतों के बाद भी कभी मुझ पर किसी ने हाथ नहीं उठाया।
[शामिल था टॉप टेन में]
मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता था। सच कहूं तो मैंने दिल लगाकर कभी पढ़ाई नहीं की, लेकिन मेरे मार्क्स कभी शर्मिन्दगी वाले नहीं आए। मैं अपनी हर कक्षा में टॉप टेन में आता था। मैं अपने मम्मी-पापा के पैसे की इज्जत करता था। उसी बात का ध्यान रखकर मैं थोड़ी-बहुत पढ़ाई कर लेता था। खेल में मुझे क्रिकेट और फुटबाल पसंद था। दोस्तों के साथ मैं यही दोनों खेल खेलता था।
[अभी नहीं हुआ बड़ा]
मुझे नहीं लगता कि मैं अभी बड़ा हुआ हूं। हां, बचपन की ईमानदारी और सच्चाई अब मुझमें नहीं रही। अब दिल भी साफ नहीं रहा। सच कहूं तो बचपन के दिन सबसे अच्छे थे। अब टेंशन बहुत है। बचपन के बिंदास दिनों को मैं मिस करता हूं।
[सम्मान और अनुशासन सीखें]
बचपन में सब सोचते हैं कि जल्दी से स्कूल की पढ़ाई खत्म हो जाए, फिर कॉलेज जाएं। हम सभी जल्दी से बड़ा होना चाहते हैं। मैं बच्चों से कहना चाहूंगा कि वे जिन दिनों को जल्दी से बिता देना चाहते हैं, वहीं जिंदगी के सबसे बेहतरीन दिन हैं। उन्हें एंज्वॉय करें। बड़ों की इज्जत करना और अनुशासित जीवन जीना सीखें।
[रघुवेंद्र सिंह]
[शैतान बच्चा था]
मेरा बचपन बेहद खुशनुमा माहौल में बीता है। मैं अपने मम्मी-पापा का इकलौता बेटा हूं। नन्हीं उम्र से ही मेरी हर सुख-सुविधा का ख्याल रखा जाता रहा। मैं बचपन में जिस चीज की मांग करता था वह तुरंत मेरे सामने लाकर रख दी जाती थी। सबके लाड़-प्यार की वजह से मैं बिगड़ गया था। मैं घर का सबसे शैतान बच्चा था।
[मुस्कान थी ढाल]
मैं घर का ही नहीं, बिल्डिंग का भी सबसे शरारती बच्चा था। एक बार मैंने बिल्डिंग के पिछवाड़े में आग लगा दी थी। फायर ब्रिगेड बुलानी पड़ी थी। पता है? उतनी बड़ी घटना के बावजूद मुझे मार नहीं पड़ी। मैं मासूम मुस्कुराहट से सबका दिल जीत लेता था। लाख शरारतों के बाद भी कभी मुझ पर किसी ने हाथ नहीं उठाया।
[शामिल था टॉप टेन में]
मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता था। सच कहूं तो मैंने दिल लगाकर कभी पढ़ाई नहीं की, लेकिन मेरे मार्क्स कभी शर्मिन्दगी वाले नहीं आए। मैं अपनी हर कक्षा में टॉप टेन में आता था। मैं अपने मम्मी-पापा के पैसे की इज्जत करता था। उसी बात का ध्यान रखकर मैं थोड़ी-बहुत पढ़ाई कर लेता था। खेल में मुझे क्रिकेट और फुटबाल पसंद था। दोस्तों के साथ मैं यही दोनों खेल खेलता था।
[अभी नहीं हुआ बड़ा]
मुझे नहीं लगता कि मैं अभी बड़ा हुआ हूं। हां, बचपन की ईमानदारी और सच्चाई अब मुझमें नहीं रही। अब दिल भी साफ नहीं रहा। सच कहूं तो बचपन के दिन सबसे अच्छे थे। अब टेंशन बहुत है। बचपन के बिंदास दिनों को मैं मिस करता हूं।
[सम्मान और अनुशासन सीखें]
बचपन में सब सोचते हैं कि जल्दी से स्कूल की पढ़ाई खत्म हो जाए, फिर कॉलेज जाएं। हम सभी जल्दी से बड़ा होना चाहते हैं। मैं बच्चों से कहना चाहूंगा कि वे जिन दिनों को जल्दी से बिता देना चाहते हैं, वहीं जिंदगी के सबसे बेहतरीन दिन हैं। उन्हें एंज्वॉय करें। बड़ों की इज्जत करना और अनुशासित जीवन जीना सीखें।
[रघुवेंद्र सिंह]