Thursday, November 19, 2009
कट्रीना कैफ-अक्षय कुमार की दे दना दन और आमिर खान-करीना कपूर की ३ इडियट फिल्म से दो तस्वीरें. कौन आपको ज्यादा पसंद आया?
Tuesday, November 17, 2009
खुद को बेहतर तरीके से जाना-शमिता शेंट्टी
शमिता कहती हैं कि यदि मुझे पहले पता होता कि नवंबर में ही शादी होगी तो मैं शो में क्यों जाती? पहले शिल्पा की शादी दो जनवरी को होनी तय थी इसलिए मैंने बिग बॉस रियलिटी शो में हिस्सा लिया। शमिता आगे कहती हैं, शो से मुझे बहुत कुछ मिला है। तनाज, बख्तियार और अदिति जैसे अच्छे दोस्त मिले। मैंने खुद को बेहतर तरीके से जाना। पहले मैं सोचती थी कि मैं बहुत शॉर्ट टेम्पर्ड हूं, लेकिन नहीं, मुझमें पेशेंस और सहन करने की शक्ति है।
शमिता बिग बॉस शो में चालीस दिन रहीं और एक बार भी नॉमिनेट नहीं हुईं। दूसरे प्रतियोगियों की तरह उन्हें शो में चीखते चिल्लाते और लड़ाई करते हुए नहीं देखा गया। शमिता बताती हैं, एक साल पहले मैं वननेस यूनिवर्सिटी गई थी और वहां मैंने कई सारे कोर्स किए। उन सभी कोर्स का फायदा मुझे बिग बॉस के घर में हुआ। यदि एक साल पहले मैं शो में गई होती, तो शायद अन्य लोगों की तरह मैं भी चीखती चिल्लाती और लड़ाई-झगड़े करती।
बिग बॉस रिएलिटी शो से बाहर आते ही शमिता अपनी दीदी शिल्पा शेंट्टी की शादी की तैयारी में लग गई हैं। शमिता उत्साह से बताती हैं, शिल्पा ने सारी तैयारी खुद ही कर ली है। मेरे लिए ज्यादा काम बचा ही नहीं है। शिल्पा ने मेरे लिए शादी की ड्रेस खरीद ली है। संगीत की रिहर्सल शुरू होने वाली है।
-रघुवेन्द्र सिंह
अच्छे-बुरे की परख हो गई-अदिति सजवान
अदिति सजवान खुश हैं कि अब मीरा सीरियल में उन्हें अपनी उम्र का किरदार निभाने का मौका मिला है। अदिति कहती हैं, इस वक्त सीरियल में मीरा के किशोरावस्था की कहानी दिखायी जा रही है, लेकिन चूंकि वे विधवा हैं इसलिए अधिक धीर गंभीर नजर आ रही हैं। अदिति बताती हैं कि मीरा के किरदार के लिए उन्हें किसी प्रकार की तैयारी नहीं करनी पड़ी। वे कहती हैं, मैं सेट पर जैसे ही मीरा का ड्रेस पहनती हूं, अपने आप उस चरित्र के करीब पहुंच जाती हूं। उसके बाद मैं मीरा के दुख को महसूस करती हूं और शॉट दे देती हूं। अदिति यह बात जोड़ती हैं कि यशोदा की तरह मीरा के किरदार ने अप्रत्यक्ष रूप से उनकी सोच एवं व्यक्तित्व को प्रभावित किया है। वे कहती हैं, इन दोनों किरदारों ने मुझे उन्नीस साल की उम्र में मेच्योर बना दिया है। मुझे अच्छे-बुरे लोगों की परख हो गई है।
साढ़े तीन साल पहले अदिति देहरादून से मुंबई पढ़ाई करने आयी थीं। वे मुंबई में बैचलर ऑफ मॉस मीडिया की पढ़ाई कर रही थीं कि उन्हें जी टीवी के सीरियल मेरी डोली तेरे अंगना में ब्रेक मिल गया। उसके बाद वे एक्टिंग में आ गईं। अदिति बताती हैं, बचपन से एक्टिंग में कॅरियर बनाने का मेरा इरादा था और शायद मेरी किस्मत में भी इसी फील्ड में आना लिखा था। तभी तो बिना स्ट्रगल किए मुझे मेरी डोली तेरे अंगना और फिर जय श्री कृष्ण में काम मिल गया। खुशी की बात यह है कि मुझे दर्शकों की स्वीकृति भी मिल गई। अदिति बताती हैं कि उन्होंने एक्टिंग की फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली है। वे बचपन से कला से जुड़ी हैं। अदिति की जुबानी, जब लोग एक्टिंग की ट्रेनिंग की बात करते हैं तो मुझे अजीब लगता है। एक्टिंग ट्रेनिंग से नहीं आती। यह आपके अंदर होती है।
अदिति सजवान का लक्ष्य एक्टिंग में बुलंदी पर पहुंचना है। वे बताती हैं, मम्मी पापा से मुझे सीख मिली है कि हमेशा लीक से हटकर काम करना चाहिए। अपनी अलग पहचान बनानी चाहिए। मेरे पास रेग्युलर सास-बहू सीरियल के ऑफर आते हैं, लेकिन मैं उनमें काम करने से मना कर देती हूं। मैं सीरियल में काम करूं या फिल्मों में हमेशा नए और चैलेंजिंग किरदार मेरी प्राथमिकता होंगे। मैं ऑडियंस से गुजारिश करूंगी कि जैसे उन्होंने अब तक मुझे प्यार दिया है, वैसे ही भविष्य में भी अपना प्यार दें। उनका प्यार ही मुझे बुलंदी पर ले जाएगा।
-रघुवेन्द्र सिंह
Monday, November 16, 2009
संघर्ष नहीं करना पड़ा: मोहित चौहान
आपके गीतों की लोकप्रियता का राज क्या है?
मेरे संगीतकारों और मेरी कड़ी मेहनत का यह फल है। मैं कह सकता हूं कि सही गीत चुने गए और भाग्यशाली हूं कि उन गीतों का सही तरीके से प्रोमोशन हुआ।
क्या आपने सोचा था कि पार्श्व गायन की दुनिया में स्टार बन जाएंगे?
पार्श्व गायन मेरा लक्ष्य नहीं था। मैं अपने बैंड के साथ खुश था। वहां मुझे आजादी थी। मैं अपने हिसाब से काम करता था। खुद गीत लिखता था और गाता था। 2004 में बैंड के बिखरने के बाद मैं पार्श्व गायन में आया। मेरी किस्मत अच्छी थी। काम मिलता गया और इस तरह मुझे संघर्ष नहीं करना पड़ा।
लंबे अंतराल के बाद आपका नया म्यूजिक एलबम आ रहा है?
हां, मेरा आखिरी म्यूजिक एलबम बूंदें 2000 में आया था। तब मैं सिल्क रूट के साथ था। बैंड के बिखरने के बाद मैं फिल्मों के लिए गीत गाने में व्यस्त हो गया। उस तरफ मेरा रुझान बढ़ गया, लेकिन साथ में मैं नए गीत बनाता रहा। उन्हीं गीतों को मैं फितूर में पेश कर रहा हूं।
फितूर में कितने और किस तरह के गीत हैं?
एलबम में दस गाने हैं। इन्हें मैंने ही लिखा है और इनकी धुनें भी खुद ही बनाई हैं। इस अलबम को यूनीवर्सल म्यूजिक कंपनी रिलीज कर रही है। इसमें कुछ गीत रोमांटिक हैं। गीत जीने दे.. मैंने टाइगर को डेडीकेट किया है। इस गीत के जरिए मैंने लोगों से गुजारिश की है कि टाइगर को बचाएं। एलबम में नब्बे प्रतिशत असली वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया है।
अमूमन गायक तब म्यूजिक एलबम लेकर आते हैं, जब फिल्म के गीतों से उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती। फितूर बनाने का उद्देश्य क्या है?
यह सच है। फिल्मों में हम दूसरे के लिखे गीतों और दूसरे की धुनों पर गाते हैं। जैसे, जब प्रीतम मुझे गाने के लिए बुलाते हैं, तो पहले वे मुझे सिचुएशन समझाते हैं। एलबम में हमारा अपना रस होता है। हम अपने अनुसार काम करते हैं। फितूर में मेरी फीलिंग है।
आपका फितूर क्या है?
फितूर का अर्थ होता है जुनून, पागलपन। मेरा फितूर गीत बनाना है। मैं चाहता हूं कि जीवन भर गीत बनाता रहूं, गाता रहूं और घूमता रहूं।
आपने एक फिल्म में संगीत दिया था। अब बंद कर दिया?
हां, मैंने मैं, मेरी पत्नी और वो फिल्म में संगीत दिया था। इधर गायकी में लग गया, लेकिन कुछ फिल्मकारों से संगीत को लेकर बातचीत चल रही है। जल्द ही मैं फिल्मों में संगीत दूंगा।
आगे किन फिल्मों में आपकी आवाज सुनने को मिलेगी?
तुम मिले, दो पैसे की धूप चार आने की बारिश और डांस पे चांस फिल्मों के लिए मैंने गीत गाए हैं।
Saturday, November 14, 2009
सच हुआ सपना: श्रीनिधि शेट्टी | मुलाकात
आपका ज्योति सीरियल से कैसे जुड़ना हुआ?
मैंने सात फेरे सीरियल के लिए ऑडीशन दिया था। वह ऑडीशन सलोनी की बेटी के किरदार के लिए था, लेकिन मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ। कुछ दिन बाद उसी प्रोडक्शन हाउस से मुझे ज्योति सीरियल के लिए फोन आया। मैंने सुषमा और सुधा दोनों चरित्र के लिए ऑडीशन दिया। बाद में मुझे बताया गया कि सुषमा के लिए चुनी गई हूं।
सुषमा का किरदार आपसे बड़ी उम्र का है। इसे निभाने में दिक्कत नहीं होती?
मैंने एक्टिंग की ट्रेनिंग नहीं ली है। मुझे पता ही नहीं था कि एक्टिंग कैसे करते हैं। सुषमा के किरदार को निभाने में शुरू में मुझे बहुत दिक्कत होती थी, लेकिन अब नहीं होती। इसका श्रेय मैं सीरियल के पुराने निर्देशक सिद्धार्थ सेन गुप्ता को दूंगी। उन्होंने ही मुझे एक्टिंग करना सिखाया। सुषमा के किरदार में अब मैं इस कदर डूब गई हूं कि रिअल लाइफ में भी उसी तरह से सोचती हूं।
सुषमा और आपकी सोच में कितनी समानता है?
बिल्कुल भी नहीं। मैं सुषमा की तरह घमंडी और हमेशा लड़ने वाली लड़की नहीं हूं। मैं खुशमिजाज और बहुत चंचल हूं। मैं सेट पर रहूं या घर में, हमेशा हंसती और हंसाती रहती हूं। जो लोग मुझे जानते हैं, उन्हें हैरानी होती है कि मैं सुषमा का किरदार कैसे निभा रही हूं?
क्या उम्मीद थी कि सुषमा के किरदार से आपको चर्चा मिलेगी?
सच कहूं तो नहीं, लेकिन इतना पता था कि यह निगेटिव किरदार है, इसलिए लोग नोटिस जरूर करेंगे। मैं निगेटिव किरदार से ही डेब्यू करना चाहती थी। मेरा सपना सच हुआ।
अपने बारे में बताएंगी?
मैं नवी मुंबई की रहने वाली हूं। मुझे बचपन से डांस का शौक था। मैं डांस में कुशल भी हूं, लेकिन एक्टिंग में करिअर बनाने के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था। धारावाहिक क्योंकि सास भी कभी बहू थी की तुलसी को देखकर इस फील्ड में मेरी रुचि बढ़ी। बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद मैंने अपना पोर्टफोलियो बनवाया और डिस्ट्रीब्यूट कर दिया। मैं छह महीने तक ऑडीशन देती रही, लेकिन कहीं से पॉजिटिव रिजल्ट नहीं आया। हर जगह लोग यह कहकर मुझे रिजेक्ट कर देते थे कि मेरी लंबाई कम है। मैं हतोत्साहित होती थी, लेकिन मम्मी मेरा हौसला बढ़ाती थीं।
आपका लक्ष्य क्या है?
मैं सबका दिल जीतना चाहती हूं। सुषमा के किरदार निभाने से लोगों में मेरी इमेज घमंडी और लड़ाकू लड़की की बन गई है। मैं उसे तोड़ना चाहती हूं। ज्योति सीरियल के लिए मैंने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। अगले साल ग्रेजुएशन पूरा करना मेरा लक्ष्य होगा।
Friday, November 13, 2009
सोहा के साथ मेरी जोड़ी फिट है: इमरान हाशमी | मुलाकात
निर्देशक कुणाल देशमुख ने जब तुम मिले का ऑफर दिया, तब आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
जब उन्होंने मुझे फिल्म की कहानी सुनाई, तभी यह पसंद आ गई। मैंने जन्नत में उनके साथ काम किया है। यदि मैं इस फिल्म में काम करने से इंकार कर देता, तो यह मेरी भूल होती। मैं खुश हूं कि उन्होंने मुझे तुम मिले का हिस्सा बनाया।
तुम मिले को किस जॉनर की फिल्म कहेंगे? इसकी कहानी क्या है?
यह प्राकृतिक आपदा पर बनी फिल्म है। यह 26 जुलाई 2005 को मुंबई में आई बाढ़ और उससे हुई तबाही पर आधारित है। इसमें लव स्टोरी भी है। मैंने फिल्म में एक पेंटर का किरदार निभाया है। मेरे अपोजिट इसमें सोहा अली खान हैं। कुणाल ने बाढ़ के दृश्यों को फिल्म में बहुत अछी तरह पेश किया है। मुझे यकीन है कि फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी।
फिल्म में आपने अपनी छवि के साथ क्या नए प्रयोग किए हैं?
हर फिल्म के किरदार के अनुरूप कलाकार को ढलना पड़ता है। वर्ना वह किरदार प्रभावी नहीं बनेगा। फिल्म में दर्शकों को मेरा नया लुक देखने को मिलेगा। मैंने राज-2 में भी पेंटर का किरदार निभाया था, लेकिन यह उससे अलग है।
26 जुलाई 2005 की यादों को दोबारा जीने का अनुभव बांटेंगे?
मैं जब भी उस बाढ़ के बारे में सोचता हूं, तो रूह कांप जाती है। बाढ़ ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया। सच कहूं, तो मैं जब भी उस बाढ़ को याद करता हूं, मन में अजीब सा डर लगता है। हालांकि तुम मिले की शूटिंग के दौरान मुझे बहुत मजा आया। कुणाल ने बाढ़ के लिए सेट तैयार किया था। हमने 41 दिन पानी में लगातार शूटिंग की, जो सभी कलाकारों के लिए काफी चैलेंजिंग था। शूटिंग के दौरान अक्सर कोई न कोई बीमार हो जाता था।
आपने अब तक कॉमर्शिअल फिल्में की हैं। तुम मिले जैसी रिअलिस्टिक फिल्म करने की वजह?
मैं खुद को किसी एक खांचे में नहीं रखना चाहता। हर तरह की फिल्म का हिस्सा बनना चाहता हूं। तुम मिले मेरे करिअर की खास फिल्म है। भविष्य में भी मैं अपनी छवि के विपरीत काम करना चाहता हूं।
सोहा के साथ आपकी जोड़ी को बेमेल कहा जा रहा है। आप क्या मानते हैं?
सोहा के साथ मेरी जोड़ी फिट है। फिल्म देखने केबाद सभी यही कहेंगे। फिल्म में हमारी केमिस्ट्री बहुत अछी है। सोहा मेहनती और उम्दा कलाकार हैं। उन्होंने बहुत खूबसूरती से अपने किरदार को निभाया है। हमारी केमिस्ट्री दर्शकों को चौंकाएगी।
जन्नत और राज-2 की सफलता का सिलसिला तुम मिले बढ़ाएगी?
सच कहूं, तो फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले मेरे मन में यह डर था। मुझे पता था कि लोग यही सवाल पूछेंगे। यही वजह है कि मैंने इस फिल्म के लिए बहुत मेहनत की है। मुझे विश्वास है कि दर्शकों को मेरा काम जरूर पसंद आएगा। मेरी मेहनत बेकार नहीं जाएगी।
आगे किन फिल्मों में आप दिखेंगे?
तुम मिले के बाद एकता कपूर की फिल्म वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई आने वाली है। उसमें मैंने युवा दाउद इब्राहिम का रोल किया है। एक फिल्म रफ्तार भी आएगी, लेकिन अभी इसकी शूटिंग चल रही है।
-raghuvendra Singh
Tuesday, November 10, 2009
डिंपल कपाडि़या की बहन सिंपल का निधन
-raghuvendra singh
राज करूंगा सबके दिल पर: आदित्य राय
आकर्षण नहीं था: मैं मुंबई में पला-बढ़ा जरूर हूं, लेकिन मुझे ग्लैमर वर्ल्ड का जरा भी आकर्षण नहीं था। चैनल वी का वीजे बनना एकसंयोग था। मेरे बड़े भाई के एक दोस्त ने मुझे ऑडीशन के लिए बुलाया। वे चैनल वी के लिए वीजे ढूंढ रहे थे। मैं उस समय उन्नीस साल का था। किस फील्ड में करिअर बनाना है, मैंने सोचा नहीं था। मैंने ऑडीशन में जाने से मना कर दिया, लेकिन मम्मी के बार-बार कहने पर मैं बेमन से ऑडीशन देने गया और चुन लिया गया। बाद में वीजे के काम को मैं एंज्वॉय करने लगा। मैं साढ़े चार साल तक चैनल वी का वीजे रहा।
एक्टिंग में आना संयोग: मेरा फोटो अखबार में देखकर एक कास्टिंग लेडी ने फोन किया। उन्होंने बताया कि विपुल शाह की फिल्म लंदन ड्रीम्स के लिए उन्हें एक नए चेहरे की तलाश है। मैं सोच ही रहा था कि आगे क्या करना है? तभी मुझे यह कॉल आई। मैं उस लेडी से मिलने गया, तो उन्होंने मुझे सीधे विपुल सर से मिलवाया। मैं उनसे दो मिनट के लिए मिला। उन्होंने बताया कि फिल्म में गिटारिस्ट का किरदार है। संयोग से मैं गिटार बजाता हूं। मैं फिल्म के लिए चुन लिया गया। मैंने कभी नहीं सोचा था किएक दिन ऐक्टर बनूंगा। मैंने एक्टिंग की ट्रेनिंग भी नहीं ली है। हां, मेरे दोनों बड़े भाई कुणाल राय कपूर और सिद्धार्थ राय कपूर अभिनय से जुड़े हैं, इसलिए घर में हमेशा एक्टिंग की बातें होती हैं।
शूटिंग का अनुभव: विपुल शाह जानते थे कि यह मेरी पहली फिल्म है, इसलिए सलमान खान और अजय देवगन के साथ एक फ्रेम में एक्टिंग करते समय मैं नर्वस जरूर होऊंगा। उन्होंने धैर्य के साथ मुझसे काम लिया। फिल्म की शूटिंग के आरंभिक दिनों में मुझे काफी दिक्कत हुई। दरअसल, मेरी हिंदी अच्छी नहीं है। चैनल वी में मैं अधिकतर अंग्रेजी में बात करता था। विपुल सर ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया।
किस्मत का धनी: मैंने पहली फिल्म विपुल शाह जैसे बड़े फिल्मकार के साथ की है। इसमें सलमान खान और अजय देवगन जैसे सीनियर कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर किया। इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या हो सकती है? मैं खुद को किस्मत वाला कह सकता हूं, क्योंकि पहली फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही मैंने संजय लीला भंसाली की फिल्म गुजारिश साइन की है। उसमें मैं रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय के साथ हूं। मैं विपुल सर की अगली फिल्म ऐक्शन रिप्ले भी कर रहा हूं।
-raghuvendra singh
Sunday, November 8, 2009
कॅरियर का मुश्किल किरदार है रैंचो
मिस्टर परफेक्सनिस्ट अपनी हर फिल्म के प्रदर्शन के पहले बेहद नर्वस हो जाते हैं। नर्वस होने की बात पर वे कहते हैं, मैं अपनी हर फिल्म के प्रदर्शन से पहले नर्वस हो जाता हूं और जब मेरी फिल्म का फर्स्ट लुक शो हो, तो यह नर्वसनेस कुछ अधिक ही होती है। 3 इडियट्स के प्रदर्शन में अभी काफी समय है। पता नहीं, यह समय कैसे कटेगा। फिल्म के संदर्भ में एक बात खास है वह यह कि आमिर खान यह खुलासा करने से बचते हैं कि 3 इडियट्स चेतन भगत के नॉवेल फाइव प्वाइंट समवन पर आधारित है। वे कहते हैं, यह जानने के लिए 3 इडियट्स देखनी पड़ेगी। मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी। मुझे स्क्रिप्ट इतनी अच्छी लगी कि मैंने हां कह दिया। इसमें राजकुमार हिरानी की पिछली फिल्मों की तरह ह्यूंमर और एंटरटेनमेंट है। मैंने चेतन भगत का नॉवेल पढ़ा ही नहीं है। राजकुमार हिरानी, आमिर खान और विधु विनोद चोपड़ा की तिकड़ी पहली बार 3 इडियट्स के लिए एक संग हुई है। आमिर कहते हैं कि मुन्नाभाई एमबीबीएस देखने के बाद से वे इनके साथ काम करना चाहते थे। वे खुश हैं कि राजकुमार हिरानी और विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें 3 इडियट्स के रूप में चुनौतीपूर्ण फिल्म दी।
-रघुवेन्द्र सिंह
ख्वाहिशें पूरी हो जाएंगी-नंदिश संधू
नंदिश संधू राजस्थान के धौलपुर से हैं। वे दस साल पहले मुंबई पढ़ाई करने आए थे। अपने बारे में नंदिश बताते हैं, मेरी ख्वाहिश बचपन से एक्टिंग में आने की थी, लेकिन धौलपुर में रहते हुए इस ख्वाहिश को पूरा करना मेरे लिए मुश्किल था। मैं दस साल पहले मुंबई पढ़ने के लिए आया। पढ़ाई खत्म होते ही मैंने मॉडलिंग में किस्मत आजमानी शुरू कर दी। दो साल तक मैं मॉडलिंग करता रहा और साथ ही, मैंने सीरियल के लिए ऑडिशन देने शुरू कर दिया। मुझे जल्द ही एकता कपूर के सीरियल कयामत में लिए चुन लिया गया।
नंदिश ने एक्टिंग की फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली है। वे कहते हैं, मैं अपने सह कलाकारों को देखकर एक्टिंग सीखता हूं। उतरन में अयूब खान एवं अन्य कई सीनियर कलाकार हैं। मैं सेट पर उन्हें शॉट देते समय ध्यान से देखता हूं। यदि आपका ऑबर्जवेशन अच्छा है तो अपने आस-पास के लोगों को देखकर आप एक्टिंग सीख सकते हैं। मेरे हिसाब से एक्टिंग की फॉर्मल ट्रेनिंग जरूरी नहीं है।
उतरन में तपस्या और इच्छा का किरदार निभा रही रश्मी देसाई और टीना के साथ काम करने के अनुभव के बारे में नंदिश कहते हैं, दोनों के एक्टिंग की तारीफ सारी दुनिया कर रही है। मैं क्या कहूं? उतरन के सभी कलाकार अपने किरदार अच्छे से निभा रहे हैं। तभी तो उतरन कलर्स का नंबर वन सीरियल बन गया है। वीर की एन्ट्री के बाद उतरन की टीआरपी और बढ़ गई है।
लक्ष्य के बारे में पूछने पर नंदिश संधू कहते हैं, मैंने कोई लक्ष्य नहीं बनाया है। मैं सीरियल में एक्टिंग कर रहा हूं, कल यदि किसी फिल्म में काम करने का ऑफर आया तो मैं मना नहीं करूंगा। मुझे सिर्फ अच्छे किरदार से मतलब है। माध्यम कोई भी हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता। मेरी ख्वाहिश हॉलीवुड फिल्म में काम करने की है। मैं मेहनत कर रहा हूं। उम्मीद है कि एक दिन मेरी सभी ख्वाहिशें पूरी हो जाएंगी।
Saturday, November 7, 2009
चुनौती होती है हर फिल्म: हिमेश रेशमिया
उनसे अगला सवाल होता है कि रेडियो की कहानी क्या है? वे बताते हैं, यह छोटे शहर के मध्य वर्गीय लड़के विवान की कहानी है। वह मुंबई में आरजे की नौकरी करता है। विवान लोगों की प्यार की समस्याएं हल करता है, जबकि निजी जिंदगी में प्यार की समस्या के कारण पत्नी से उसका तलाक हो चुका है। जब उसकी जिंदगी में दूसरी लड़की शान्या आती है, तो उसकी खुशियां वापस लौटने लगती हैं। इसी बीच उसकी पत्नी दोस्त बनकर उसके पास वापस आती है और फिर लव ट्रेंगल शुरू हो जाता है। यह एक रोमांटिक कॉमेडी है। इस फिल्म से महानगर और छोटे शहर के दर्शक जुड़ाव महसूस करेंगे।
रेडियो के प्रदर्शित होने से पहले हिमेश से इसे हिट घोषित कर दिया है। क्या यह पब्लिक को आकर्षित करने का नया तरीका है? वे इस बारे में कहते हैं, मेरे बोलने से फिल्म हिट या फ्लॉप नहीं हो सकती। मैं इतना कह रहा हूं कि इसकी लागत छह करोड़ रुपये है और वह पैसा फिल्म के म्यूजिक, वीडियो राइट और डिस्ट्रीब्यूशन से वापस आ गया है। अब थिएटर से जो पैसा आएगा, वह मुनाफा होगा। रेडियो प्राइस वाइज हिट है।
हिमेश कहते हैं कि रेडियो से खुद को ऐक्टर के रूप में साबित करेंगे। क्या मानते हैं कि पब्लिक ने अभी तक आपको ऐक्टर के रूप में स्वीकार नहीं किया है? उनका कहना है, पब्लिक मुझे म्यूजिक डायरेक्टर, सिंगर और ऐक्टर के रूप में स्वीकार कर चुकी है। ऐक्टर के लिए उसकी हर फिल्म चुनौती होती है। इस फिल्म में मैंने नेचुरल एक्टिंग की है, जो बहुत मुश्किल होता है। मुझे उम्मीद है, रेडियो के प्रदर्शन के बाद मेरी गिनती मंझे हुए कलाकारों में होने लगेगी।
क्या सच है कि रेडियो की मेकिंग में आपका हस्तक्षेप रहा? हिमेश इस सवाल पर कहते हैं, फिल्म के निर्देशक ईशान त्रिवेदी हैं। मैं शूटिंग के दौरान फिल्म से जुड़ी हर चीज के बारे में ईशान से डिस्कस करता था। मैं फिल्म का हीरो हूं और जब तक सारी चीजों को समझूंगा नहीं, अपने काम को अछी तरह कैसे करूंगा? मैंने फिल्म के निर्देशन में हस्तक्षेप नहीं किया और न ही भविष्य में कभी ऐसा करूंगा।
फिल्म के गीत मन का रेडियो.. से हिमेश ने पांच सौ गीतों का सफर पूरा किया है। अभी तक के अपने सुरीले सफर को कैसे बयां करेंगे? वे बताते हैं, मैंने इस फील्ड में जो भी किया है, सभी को लोगों ने पसंद किया है। रेडियो के सभी गाने लोग खूब सुन रहे हैं। मैं अपने संगीत की वजह से ही आज इस मुकाम पर हूं। मैं लोगों का शुक्रिया कहना चाहूंगा और गुजारिश करूंगा कि लोग आगे भी मुझे प्यार देते रहें। हिमेश अपनी नई फिल्मों के बारे में बताते हैं, फिल्म कजरारे, ए न्यू लव स्टोरी, इश्क अनप्लग्ड और मुड़ मुड़ के ना देख.. की शूटिंग पूरी हो चुकी है। अगले साल फरवरी में कजरारे आएगी और उसके बाद इश्क अनप्लग्ड। मेरी तीन नई फिल्म भी शुरू होने जा रही है।
-raghuvendra Singh
Friday, November 6, 2009
मेरे गाने हमेशा हिट हुए: समीर
जेल में कुल तीन गाने हैं और तीनों अलग फ्लेवर वाले। समीर बताते हैं, मधुर की पिछली फिल्मों में भी तीन-तीन गाने ही थे। मैं उनसे कहता हूं कि गानों के लिए स्पेस निकालिए, लेकिन वे कहते हैं कि रिअलिस्टिक फिल्मों में गानों के लिए अधिक स्पेस नहीं होता। जेल के गीत के बारे में समीर कहते हैं, पहला गाना प्रार्थना है, जिसे लता जी ने गाया है। दूसरा आइटम गीत है। उसके बोल हैं, बरेली के बाजार में. और तीसरा रोमांटिक पॉप गाना है। खुशी की बात है कि तीनों गाने लोगों को पसंद आ रहे हैं।
लता जी की आवाज में गाया जेल का प्रार्थना गीत दाता सुन ले.. हर मजहब के लोगों को भा रहा है। समीर कहते हैं, लता जी के साथ काम करना मेरे लिए उपलब्धि है। उन्होंने अब फिल्मों के लिए गीत गाना बंद कर दिया है। दरअसल, उन्हें अश्लील और पॉप गीत गाना पसंद नहीं है। अब वे भजन और आरती ही गाती हैं। हमने जेल में उनसे प्रार्थना गीत गवाया है, जो थीम सॉन्ग है। इस प्रार्थना गीत के लिए हमें ऐसी आवाज चाहिए थी, जो प्रेरणादायक लगे। मैंने लता जी के साथ पेज थ्री में भी काम किया था। नसीब वाला हूं कि मुझे उनके साथ फिर काम करने को मिला। समीर टंडन ने अब तक नौ फिल्मों में संगीत दिए हैं। उन्होंने फिल्म स्टंप्ड से अपने करिअर की शुरुआत की थी। एमबीए करने के बाद वे एक कंपनी में सीईओ के पद पर काम कर रहे थे, लेकिन संगीत से प्यार था, जो उन्हें खींचकर फिल्म इंडस्ट्री में ले आया। समीर बताते हैं, संगीत मुझे ईश्वर से उपहार में मिला है। मुझे हर तरह का संगीत पसंद है और मैं हर तरह का संगीत सुनता हूं। खुश हूं कि लोग मेरे संगीत को पसंद कर रहे हैं। समीर टंडन को दुख है कि उन्होंने जिन फिल्मों में संगीत दिए, वे नहीं चलीं। कहते हैं, मेरे गाने हमेशा हिट हुए हैं, लेकिन फिल्में नहीं चलीं। इसी वजह से मेरा नाम उतना चर्चित नहीं हो पाया। वे आगे कहते हैं, फिल्म जेल के अलावा मैंने क्लिक, चीयर्स, लूट, मुंबई चकाचक और हवाई दादा फिल्मों में संगीत दिया है। उम्मीद करता हूं, इन फिल्मों के गीतों को भी लोग पसंद करेंगे।
Thursday, November 5, 2009
कॉमेडी और रोमांटिक भूमिकाओं में दिखूंगा- नील नितिन मुकेश
क्या सच है कि आपने पांच थ्रिलर फिल्में करने का प्रण किया था?
हां, मैं खुद को एक्टर के तौर पर साबित करना चाहता था और मेरे हिसाब से थ्रिलर फिल्में बहुत मुश्किल होती हैं। मैंने तय किया कि मैं अपने कॅरियर की शुरूआती पांच फिल्में इसी जॉनर की करूंगा और खुद को साबित करूंगा। जॉनी गद्दार, आ देखें जरा, तेरा क्या होगा जॉनी और न्यूयॉर्क के बाद जेल उस कड़ी की आखिरी फिल्म है। जेल के बाद मैं कॉमेडी और रोमांटिक फिल्मों में दिखाई दूंगा।
जेल में आपको किस अंदाज में देख सकेंगे?
मैं इस फिल्म में पराग दीक्षित की भूमिका निभा रहा हूं। पराग मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का है। उसकी खुशहाल जिंदगी में अचानक एक घटना घटती है और वह जेल के पीछे चला जाता है। मधुर भंडारकर ने इस फिल्म में जेल के पीछे की ऐसी हकीकतें बयां की हैं, जिन्हें देखकर दर्शक हिल जाएंगे। फिल्म में मेरे ओपोजिट मुग्धा गोड्से हैं। यह रियलिस्टिक फिल्म है इसलिए इसमें हमारा लुक भी रीयल रखा गया है। मैंने पराग दीक्षित के किरदार के लिए अपना वजन भी कम किया। जेल को मैं अपने कॅरियर की सबसे मुश्किल फिल्म कहूंगा।
मधुर भंडारकर के निर्देशन में काम करने का अनुभव बताएं?
मधुर भंडारकर सहज एवं सरल स्वभाव के हैं। वे सेट पर हमेशा कूल रहते थे। हमें हर दृश्य बारीकी से समझाते थे। उनका फिल्म मेकिंग का अपना अलग अंदाज है। मैंने उनकी पिछली फिल्में देखी हैं। कबीर खान के बाद मधुर भंडारकर मेरे छोटे से कॅरियर के दूसरे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक हैं। मधुर भंडारकर के साथ काम करके मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं।
जेल की कामयाबी तय मानी जा रही है। आप क्या कहेंगे?
जेल मेरी फिल्म है इसलिए मैं तो चाहूंगा कि यह बॉक्स ऑफिस पर सफल हो। यदि लोग अभी से ऐसा मान रहे हैं, तो इससे बढ़कर खुशी की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है। मैं चाहूंगा कि लोग थिएटर में जाकर जेल को देखें।
इसके बाद आपको किन फिल्मों में देखेंगे?
मैं यशराज फिल्म्स की प्रदीप सरकार के निर्देशन में एक फिल्म करने जा रहा हूं। उसमें मेरे साथ दीपिका पादुकोण हैं। न्यूयॉर्क के बाद वह यशराज के साथ मेरी दूसरी फिल्म है। उसके अलावा मैं केन घोष एवं अब्बास मस्तान की फिल्में भी कर रहा हूं।
एक्टिंग के अलावा कुछ नया करने की योजना है?
मुझे अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिल रहा है इसलिए अपना सारा ध्यान फिल्मों पर लगा रहा हूं। हां, बीच में समय मिलता है तो मैं अपना सिंगिंग शौक पूरा कर लेता हूं।
-रघुवेन्द्र
बिग बॉस 3 के नए सदस्य होंगे प्रवेश राणा
-रघुवेन्द्र सिंह
Wednesday, November 4, 2009
सोचने पर विवश करती है मेरी फिल्में-मधुर भंडारकर
जेल फिल्म बनाने का विचार कैसे सूझा?
जेल फिल्म का विचार काफी सालों से मेरे दिमाग में था। मैं इसे फैशन से पहले बनाना चाहता था, लेकिन कुछ कारणों से मैं इसे तब नहीं बना सका। पांच छह महीने की रिसर्च और नए लेखकों के सहयोग से अब मैं जेल को बनाने में सफल हुआ हूं।
जेल किस तरह की फिल्म है?
यह मधुर की फिल्म है। इसकी अवधि दो घंटे आठ मिनट है। अब तक फिल्मों में लोगों ने लार्जर दैन लाइफ जेल देखा था, लेकिन मेरी फिल्म में पहली बार लोग रीयल जेल देखेंगे। यह मीडिल क्लास लड़के पराग दीक्षित की कहानी है। उसकी कहानी के जरिए मैंने जेल के पीछे की सच्चाई दिखायी है। ठाणे और पूना की जेल इसकी पृष्ठभूमि है। नितिन चन्द्रकांत देसाई ने जेल का बहुत अच्छा सेट डिजाइन किया है।
आपकी फिल्म में कितना प्रतिशत सच होता है और कितनी प्रतिशत कल्पना?
सत्तर प्रतिशत सच और तीस प्रतिशत कल्पना के मिश्रण से मेरी फिल्में बनती हैं। जेल में भी सच और कल्पना का इसी मात्रा में मिश्रण है।
जेल के लिए नील नितिन मुकेश और मुग्धा गोडसे को आपने क्यों चुना?
मैं हमेशा फिल्म के सब्जेक्ट के हिसाब से कलाकारों का चयन करता हूं। लोग हमेशा पूछते हैं कि आप स्टार कलाकारों के साथ काम क्यों नहीं करते? मेरी कहानी में स्टार फिट ही नहीं होते। पराग दीक्षित के किरदार के लिए मुझे ऐसे चेहरे की जरूरत थी जो किसी इमेज में न बंधा हो। नील नितिन मुकेश मुझे स्यूटेबल लगे। वे बहुत टैलेंटेड हैं। मुग्धा ने फैशन में प्रियंका चोपड़ा और कंगना राणाउत की उपस्थिति में अपनी अलग पहचान बनाई। जेल से ये दोनों कलाकार बहुत आगे जाएंगे।
अपने सिनेमा को किस विधा में रखेंगे?
मैंने बीच की धारा का सिनेमा अपनाया है। मेरी फिल्मों को क्रिटकली और कामर्शियली सफलता मिलती है। तीन बार मुझे राष्टीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मैं अपने सिनेमा को समाज का आइना कहूंगा। मेरा सिनेमा समाज में जागरण पैदा करता है। साल्यूशन नहीं देता, लेकिन ऐसी चीजें सामने रखता है जो लोगों को सोचने पर विवश करती हैं।
क्या आप रियलिस्टिक फिल्ममेकर की पहचान से खुश हैं?
मैं खुश हूं, क्योंकि मैं कहीं जाता हूं तो लोग अपनी समस्याएं लेकर मेरे पास आते हैं। लोगों को विश्वास हो गया है कि मैं यदि किसी समस्या पर फिल्म बनाऊंगा तो लोग उसे देखेंगे, लेकिन अब मुझे खुद को रिइन्वेंट करने की जरूरत है। मैं एक प्रकार के सिनेमा से बंधकर नहीं रहना चाहता। अब मैं फिल्म मेकिंग का अपना स्टाइल बदलूंगा। मैं कॉमेडी और रोमांटिक फिल्में बनाना चाहता हूं।
जेल के बाद कौन सी फिल्म बनाएंगे?
अभी मैंने कुछ तय नहीं किया है। अवॉर्ड और क्रिकेट पर फिल्म बनाने की खबर अफवाह है।
-रघुवेन्द्र सिंह
Tuesday, November 3, 2009
पा फिल्म में ऐसे दिखेंगे अमिताभ बच्चन
समाज को कुछ वापस देना चाहता हूं: शाहरूख खान | खबर
गौरतलब है कि शाहरूख खान के बंगले मन्नत केबाहर जन्मदिन की रात से प्रशंसकों की भारी भीड़ इकट्ठा थी। शाहरुख की एक ऑस्ट्रेलियन फैन ने तो उनके जन्मदिन के मौके पर चांद पर जमीन खरीदकर उन्हें तोहफे में भेंट की। शाहरूख ने बताया कि उनका नाम सैंडी है। उन्होंने बताया किस्कॉटलैंड में भी उनकी ऐसी ही फैन हैं, जो उनकेजन्मदिन पर उनके नाम जमीन खरीदती है। शाहरूख खान ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, ईश्वर ने मुझे बहुत कुछ दिया। मुझे शानदार जिंदगी दी और अच्छे लोगों के साथ काम करने का मौका दिया। मुझे लोगों का खूब प्यार मिला। मैं लोगों के चेहरे पर स्माइल लाने में सफल रहा। वही मेरी उपलब्धि है। मैं बहुत खुश हूं। इस जन्मदिन पर मैं अपने परिवार एवं शुभचिंतकों की अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।
शाहरूख खान को अभिनय में आए बीस साल हो चुके हैं। इन बीस सालों में उन्होंने सफलता और शोहरत की बुलंदी छुई है। शाहरूख को जो कुछ मिला है, उसके बदले वे अब समाज को कुछ देना चाहते हैं। शाहरूख खान का कहना है, मैं बीस साल पहले जब मुंबई आया था तब मेरे मन में स्ट्रांग फीलिंग थी कि मैं बिग स्टार बनूंगा। अब बीस साल बाद मेरे अंदर यह स्ट्रांग फीलिंग है किमैं बच्चों, युवाओं, शिक्षा और इन्वायरमेंट के लिए कुछ करना चाहता हूं। मैं एंटरटेनमेंट में बहुत कुछ करना चाहता हूं। लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया है। उसके बदले मैं समाज को कुछ वापस देना चाहता हूं। मैं बच्चों के लिए सुपरहीरो वाली एक फिल्म करना चाहता हूं। शाहरूख खान को अपने जन्मदिन पर तोहफों का विशेष तौर से इंतजार रहता है। शाहरूख ने बताया, मेरी बेटी रविवार को गिफ्ट देगी। उसने हिंट दिया है कि वह मेरे लिए एंजिल्स ऑन दि मून करके कुछ बना रही है। बेटा शरारती है। वह कोई पुस्तक देगा। करण जौहर ने मुझे सत्तर इंच का लैपटॉप बैग और एक जोड़ी जूते गिफ्ट में दिए हैं। शाहरूख खान ने बताया कि उनकी पत्नी उन्हें जन्मदिन पर कोई तोहफा नहीं देती। शाहरूख के अनुसार, गौरी कहती हैं कि जिसके पास सब कुछ है, उसे क्या देना?
शाहरूख खान ने बताया कि वे जल्द ही फौजी सीरियल के रीमेक में अभिनय करते दिखाई देंगे। शाहरूख के अनुसार, मैं फौजी के पहले एपीसोड में दिखाई दूंगा। मैं सीरियल को एन्ट्रोड्यूज करूंगा। शाहरूख खान ने जानकारी दी कि उनकी पुस्तक अगले दो महीने में पूरी हो जाएगी। उनकी पुस्तक का नाम ट्वेंटी ईयर्स ऑफ ए डिकेड है। उन्होंने बताया कि उनकी नई फिल्म माई नेम इज खान फरवरी में प्रदर्शित होगी।
-रघुवेन्द्र सिंह
Monday, November 2, 2009
दिलवाले.. की उम्र हुई 14 साल | आलेख
जादू है या नशा: भारतीय मूल्यों की बातें धीमे और सूक्ष्म स्वर में कहने वाली इस फिल्म को देखते वक्त आज भी सीटियां बजती हैं, तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है। लगभग तीन पीढि़यों का मनोरंजन करने वाली दिलवाले.. का मधुर संगीत आज भी झूमने को मजबूर कर देता है। शाहरुख और काजोल के भावपूर्ण अभिनय और भारतीय संस्कृति की झलक पाने के लिए आज भी दर्शक टीवी चैनलों पर इसके प्रसारण का इंतजार करते हैं। छोटे पर्दे पर इस फिल्म को देख रहे नई पीढ़ी के दर्शकों को मलाल रहता है कि वे बड़े पर्दे पर इस ऐतिहासिक फिल्म को देखने से वंचित रह गए। हालांकि मुंबई वासियों के लिए तो पिछले चौदह वर्षो से बड़े पर्दे पर इस क्लासिक फिल्म को देखने का अवसर उपलब्ध है। सुखद आश्चर्य है कि चौदह वर्ष बाद भी मराठा मंदिर में दिलवाले.. देखने आए दर्शकों की संख्या में कमी नहीं आई है। यह फिल्म का जादू है या नशा.., कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि भारतीय सिनेमा के सुनहरे सफर में मील का पत्थर बन चुकी है दिलवाले..। उल्लेखनीय है कि इस फिल्म से पूर्व मिनर्वा थिएटर में शोले पांच साल और अशोक कुमार अभिनीत किस्मत मुंबई और कोलकाता के सिनेमाघरों में तीन साल तक लगातार चली थी।
मराठा मंदिर, इतिहास और वर्तमान: 1958 में स्थापित मराठा मंदिर मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन से चंद कदम दूर स्थित है। यह अपनी खूबसूरत स्थापत्य कला और गौरवशाली इतिहास के कारण मुंबई की हेरिटेज इमारतों की सूची में शुमार हो चुका है। इसके मुख्य संचालक प्रवीण विठ्ठल राणे बताते हैं, पहली बार मुगल-ए-आजम हमारे सिनेमाघर में दो साल चली थी। हर दिन उसके चार शो होते थे। उस वक्त की तकनीक और दर्शकों का नजरिया अलग था। बदलते वक्त के साथ हमारे सिनेमाघर में भी नई तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा। सिनेमास्कोप और साउंड सिस्टम में डिजिटिल और डॉल्वी तकनीक का प्रयोग हो रहा है। अब तो मराठा मंदिर का नाम जल्द ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो जाएगा। दिलवाले.. पिछले चौदह वर्षो से हमारे सिनेमाघर में चल रही है। सबसे ज्यादा समय तक किसी सिनेमाघर में दिखाई जाने वाली फिल्म बन गई है यह। मराठा मंदिर सिंगल स्क्रीन थिएटर है। स्क्रिन की ऊंचाई चौबीस फीट और चौड़ाई पचास फीट है। बैठने की व्यवस्था भी आरामदायक है। यहां कम पैसे में फिल्म देखी जा सकती है। यदि सुबह 11:30 बजे दिलवाले.. देखना है, तो बालकनी में बैठकर फिल्म का आनंद लेने के लिए बाईस रुपये और ड्रेस सर्किल में बैठने के लिए बीस रुपये खर्च करने होंगे। नई फिल्मों के टिकट दर अलग हैं।
चौदह साल का सुहाना सफर: समीक्षकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया के अभाव में दिलवाले.. शुरुआत में अधिक व्यवसाय नहीं कर पाई। ऐसा देश के हर सिनेमाघरों के साथ-साथ मराठा मंदिर में भी हुआ था। मराठा मंदिर के मुख्य संचालक प्रवीण विठ्ठल राणे बताते हैं, पहले सप्ताह में दिलवाले.. नहीं चली थी। कम दर्शक आते थे। दूसरा सप्ताह शुरू होते ही दर्शकों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी। कम-से-कम आठ-दस हफ्ते तक हाउस फुल रही। दो महीने तक इसका कलेक्शन हमारे सिनेमाघर में 92 से 95 प्रतिशत तक रहा। एक महीने बाद सुबह के शो में इस फिल्म को चलाने का निर्णय लिया। पांच से छह साल तक कलेक्शन 80 प्रतिशत के नीचे गया ही नहीं। उसके बाद साठ प्रतिशत कलेक्शन हो गया। आज भी इसका कलेक्शन पचास से साठ प्रतिशत होता है। मराठा मंदिर में दिलवाले.. के चौदह साल के सफर के गवाह हैं जगजीवन मारू। हेड प्रोजेक्शन ऑपरेटर मारू ने अपनी आंखों के सामने दिलवाले.. को हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्म बनते देखा है। वे कहते हैं, मराठा मंदिर में चालीस साल से हूं।
दिलवाले.. का पहला शो मैंने ही रन किया था और आज चौदह साल बाद भी इसकी जिम्मेदारी मेरी ही है। उस समय इतने सारे टीवी चैनल नहीं थे। फैमिली के साथ लोग इसे देखने आते थे। आज तो सभी अकेले आते हैं। मुझे तो फिल्म पूरी तरह याद हो गई। लगभग साढ़े चार हजार शो मैंने रन किए हैं।
बाइस रुपये, विदेशी नजारे: मराठा मंदिर में दिलवाले.. के सुहाने सफर के पीछे कई रोचक बातें छिपी हैं। दरअसल, इसके करीब ही मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन और महाराष्ट्र राज्य परिवहन का डिपो स्थित है। ऐसे में जिन मुसाफिरों की ट्रेन या बस दो-से-तीन घंटे देर होती है, वे मराठा मंदिर जाकर बाईस रुपये में दिलवाले.. देखना घर वापस जाने या किसी महंगे रेस्टोरेंट में समय बिताने से बेहतर समझते हैं। पिछले चौदह साल से मराठा मंदिर में कार्यरत वैष्णव बताते हैं, यहां ज्यादातर आसपास रहने वाली पब्लिक ही आती है। कई लोगों के चेहरे तो जाने-पहचाने हो गए हैं। हमारे यहां दिलवाले.. के शो का टिकट रेट काफी कम है। ऐसे में, बाईस रुपये में दर्शकों को तीन घंटे एसी में बैठने का मौका, विदेश के नजारे और साथ में ढेर सारा मनोरंजन मिल जाए, तो वे खींचे तो आएंगे ही।
दिल अभी भरा नहीं : फिल्म दिलवाले.. को जितनी बार देखो, दिल नहीं भरता। इसी एक बार के चक्कर में पचीस वर्षीय पायल खान फिल्म को अनगिनत बार देख चुकी हैं। पति के साथ मराठा मंदिर से फिल्म देखकर बाहर निकलीं पायल बताती हैं, पहले मैं अकेले इसे देखने आती है। आठ साल पहले जब मैंने इसे पहली बार देखा था, तब मैं राज को ढूंढती थी। अब अपने राज के साथ इस फिल्म को देखने आती हूं। सांताक्रूज निवासी अट्ठारह वर्षीय भोला बताते हैं, मैंने टीवी पर इस फिल्म को कई बार देखा है, लेकिन थिएटर में देखने का मजा अलग है। मैं अब तक पांच बार इसे देख चुका हूं। मैं राज की तरह बनना चाहता हूं।
-raghuvendra/Somya
भारत के आखिरी सुपरस्टार हैं शाहरूख
निजी जीवन में शाहरूख खान मेरी और आपकी तरह साधारण इंसान हैं। वे खुद को कभी गंभीरता से नहीं लेते और न ही मीडिया द्वारा मिलने वाली अटेंशन को गंभीरता से लेते हैं। वे घर में कैजुअली रहते हैं। उनके घर का माहौल रीयल होता है। वे न तो खुद और न ही अपने किसी करीबी द्वारा घर में स्टार की तरह बर्ताव करना पसंद करते हैं। घर में यदि कोई उन्हें मजाक में भी स्टार की तरह ट्रीट करता है तो वे नाराज हो जाते हैं।
शाहरूख बाहर के काम को घर के भीतर नहीं लाते। यह नियम उन्होंने स्वयं बनाया है। वे जब घर में होते हैं तो सारा समय आर्यन, सुहाना और गौरी को देते हैं। वे आर्यन के साथ गेम खेलते हैं। यदि सुहाना ने कोई कविता लिखी है तो उसे पढ़ते हैं। आर्यन और सुहाना का होमवर्क करवाते हैं। शाहरूख को इससे ज्यादा खुशी दुनिया की किसी चीज से नहीं मिलती। वे कंप्लीट फैमिली मैन हैं।
भारतीय मूल्यों, आदर्शो और संस्कारों में शाहरूख खान दिल से यकीन करते हैं। वे भाई, पति, पिता, अभिनेता की अपनी सभी जिम्मेदारियों को गंभीरता से निभाते हैं। यही वजह है कि वे हमेशा खुश एवं संतुष्ट नजर आते हैं। वे कभी रिश्तों का मखौल नहीं उड़ाते। ऐसा वे समाज को ध्यान में रखकर नहीं करते कि लोग क्या कहेंगे? यह उनके मिजाज में है। शाहरूख की उम्र बहुत कम थी, जब उनके माता-पिता चल बसे। वे परिवार की वैल्यू जानते हैं इसीलिए अपने परिवार को संगठित रखते हैं।
शाहरूख में ईष्र्या या बदले की भावना नहीं है। उनके शब्दकोश में यह शब्द ही नहीं है। शाहरूख ऐसी शख्सियत है जो दूसरों में ईष्र्या पैदा कर देता है। शाहरूख में हमेशा जीतने का जज्बा रहता है। यू नेवर विन द सिल्वर, यू लूज द गोल्ड.वे इस कहावत में यकीन करते हैं। शाहरूख हमेशा जीतने के लिए खेलते हैं। वे जीतने के लिए जी-जान लगा देते हैं। उन पर हार का असर नहीं पड़ता। शाहरूख सही मायने में पठान हैं।
शाहरूख का एक ही लक्ष्य है, जीवन के अंतिम समय तक काम करते रहना। वे मानते हैं कि इंसान की पहचान उसके काम से होती है। अपने काम से ही इंसान निरंतर आगे बढ़ता रहता है। आज भी मैं शाहरूख की फिल्म के सेट पर जाता हूं तो उनमें वही जोश देखता हूं जो दिल आशना है और बाजीगर फिल्म के सेट पर रहा होगा। वे काम से बोर नहीं होते। कैमरा ऑन होते ही वह अपना दो हजार प्रतिशत देते हैं। कंधा दुख रहा है या ऑपरेशन हुआ है, इस चीज से उन्हें फर्क नहीं पड़ता। शाहरूख के लिए काम सर्वोपरि है। वे कहते रहते हैं कि ऊपर वाला काम में उनकी रूचि यूं ही बनाए रखे।
शाहरूख खान भले ही उम्र की दहलीज पर दहलीज पार करते जा रहे हैं, लेकिन उनके अंदर आज भी दस साल का एक बच्चा है। आप उन्हें कोई गिफ्ट दें तो उसके रैपर को वे दस साल के बच्चे की तरह फाड़ते हैं। अगर आप लुत्फ उठाना चाहते हैं तो शाहरूख को सात-आठ रैपर लगाकर गिफ्ट दे दें। उसका रैपर फाड़ते वक्त उनका उत्साह देखने लायक होता है। अपने जन्मदिन पर मिलने वाले गिफ्ट को लेकर वे बहुत उत्सुक रहते हैं। उन्हें गिफ्ट खोलते हुए देखने का अलग ही मजा है।
शाहरूख खान भारत के आखिरी सुपरस्टार हैं। आजकल के सुपर स्टार फास्टफूड की तरह हैं। हर फ्राइडे को एक नया सुपरस्टार पैदा हो जाता है। मुझे नहीं लगता कि आने वाले समय में कोई शाहरूख खान की ऊंचाइयों और उपलब्धियों को टच कर पाएगा।
-रघुवेन्द्र सिंह