Friday, July 26, 2013

अमिताभ बच्चन का शॉल कलेक्शन

शॉल अमिताभ बच्चन का एक प्रिय आवरण है. निजी जीवन में वह आम तौर पर शॉल का इस्तेमाल करते हैं. कहीं यात्रा करनी हो या कोई मीटिंग हो या फिर मीडिया के साथ भेंटवार्ता हो, वह अक्सर शॉल ओढ़े नजर आते हैं. और पायजामा-कुर्ता के ऊपर जब वह शॉल ओढ़ते हैं, तो उनकी आभा और बढ़ जाती है. यह उनके ऊपर फबती है. आपको बता दें कि वह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की एकमात्र शख्सियत हैं, जो इस परिधान का इस्तेमाल करते हैं. पायजामा-कुर्ता और शॉल उनका अपना एक फैशन स्टेटमेंट है. यह उन्हें हमसे, आपसे और हिंदुस्तान से सीधे जोड़ता है. विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इस पहनावे के पीछे अमिताभ बच्चन की पे्ररणा उनके बाबूजी हरिवंशराय बच्चन होंगे. आइए, एक नजर डालते हैं अमिताभ बच्चन के शॉल कलेक्शन पर...












प्रकाश झा की फिल्म सत्याग्रह में अमिताभ बच्चन के लुक का अटूट हिस्सा है शॉल. एक नजर...










रघुवेन्द्र सिंह

Tuesday, July 23, 2013

गुलजार का श्लोक

जिस बच्चे का नामकरण प्रख्यात गीतकार-फिल्मकार गुलजार ने किया हो, अगर किशोरवय में उस पर फिल्म बनाने का जुनून सवार हो जाए, तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए. श्लोक शर्मा की जर्नी एक फिल्म की रोचक कहानी-सी लगती है. आगे क्या हुआ? यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है. श्लोक का नामकरण गुलजार ने किया, इसका अर्थ आप यह ना निकालें कि वह फिल्म इंडस्ट्री के किसी घराने से आते हैं. उनका तो फिल्मों से भी बड़े दूर का रिश्ता था. बचपन में सिनेमाहॉल में फिल्म देखने का अवसर उन्हें यदा-कदा ही मिला था. अपने होश में उन्होंने पहली पिक्चर जो थिएटर में देखी थी, वह अजय देवगन और तब्बू की विजयपथ थी.
श्लोक के पापा नेवी में कार्यरत थे. वह योगा के प्रशिक्षक भी थे. गुलजार और विशाल भारद्वाज को वह योगा का अभ्यास करवाते थे. श्लोक का फिल्म इंडस्ट्री से बस यही रिश्ता था. गुलजार साहब ने सोच रखा था कि अगर उनको बेटा हुआ, तो वह उसका नाम श्लोक रखेंगे. मगर किस्मत तो किसी और की बुलंद थी. गुलजार के उस आशीर्वाद के बाद जैसे श्लोक का फिल्मों में आना तय हो गया. ग्यारहवीं की पढ़ाई के दौरान श्लोक ने फिल्मों से जुडऩे का फैसला किया. उन्होंने पापा को किसी तरह राजी कर लिया. उन्होंने विशाल भारद्वाज से बात की, लेकिन इस फिल्मकार ने श्लोक की कच्ची उम्र के इस सपने को महज एक आकर्षण समझा. उन्होंने श्लोक को गंभीरता से नहीं लिया. मगर श्लोक दृढ़ प्रतिज्ञ थे. वह उनके ऑफिस में डंटे रहे. फिर एक घटना घटी.
विक्रमादित्य मोटवाने की मां दीपा मोटवाने विशाल भारद्वाज की फिल्म ब्लू अंब्रेला का प्रोडक्शन कार्य संभाल रही थीं. उन्हें आउटडोर के लिए यूनिट वालों की ट्रेन की टिकट बुक करवाने में काफी परेशानी हो रही थी. श्लोक उत्साह के साथ उनकी मदद के लिए आगे आए. उन्होंने कहा कि टिकट बुक करवाना कौन-सा मुश्किल काम है! उन्हें लगा कि तीन-चार टिकट बुक करवानी होगी. फिर अगले दो महीने तक श्लोक की सुबह-शाम रेलवे स्टेशन पर गुजरने लगी. कभी कोई टिकट कैंसिल करवाना होता, तो कभी किसी का टिकट बुक करवाना पड़ता. एक समय तो ऐसा आया कि रेलवे के एजेंट्स उन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगे. अपना बिजनेस टूटने का खतरा मंडराते देख वह श्लोक को परेशान करने लगे. इस किशोर पर टिकट बुक करने वाले अधिकारियों की नजर पड़ी और वह उसे परेशान होता देख पिघल गए. अपने टिकट बुक करने के हुनर की बदौलत श्लोक विशाल की प्रोडक्शन टीम का हिस्सा बनने में कामयाब हो गए.
विशाल भारद्वाज के सानिध्य में श्लोक की सिनेमाई परवरिश होने लगी. ओमकारा तक वह उनके साथ रहे, लेकिन उन्हें खिलने और खुलने का माहौल दिया अनुराग कश्यप ने. प्रतिभाओं के पारखी अनुराग की नजर श्लोक पर पड़ी और उन्होंने नो स्मोकिंग में श्लोक को अपनी संगत में ले लिया. अब श्लोक सिनेमा की दुनिया में पूरी तरह डूब चुके थे. अनुराग के पास उन्होंने जाना कि सिनेमा का दायरा कितना वृहद है. उनका सोना, जागना, खाना-पीना सब फिल्मों की चर्चा करते बीतने लगा. उन्होंने अनुराग के साथ नो स्मोकिंग से लेकर बॉम्बे टॉकीज तक उनके सहायक के रूप में काम किया.
श्लोक पर अनुराग कश्यप की सोच और व्यक्तित्व का प्रभाव है. वह उनकी तरह लीक से हटकर और साहसी कहानी चुनने के गुणी हैं. वह अपनी अधपकी फिल्म किसी को दिखाने से झिझकते नहीं हैं. वह बेधडक़ और सहर्ष अपनी फिल्म की आलोचना सुनते हैं. वह दूसरों के काम की इज्जत करते हैं और उसकी सराहना करते अघाते नहीं. श्लोक ने अपने जीवन और आस-पास के माहौल से सीखा है. उनकी कहानियों में आपको आपको अपने आस-पास का जन-जीवन जस का तस नजर आएगा. 
श्लोक शर्मा को अनुराग कश्यप अपना दाहिना हाथ मानते हैं. इस नौजवान में अनुराग का विश्वास यूं ही नहीं है. अगर आप श्लोक की लघु फिल्में सुजाता, हिडेन क्रिकेट, द जॉय ऑफ गिविंग, ट्यूबलाइट का चांद देखें, तो आपको भी उनमें भविष्य के एक दमदार और प्रभावशाली फिल्मकार की झलक दिखेगी. आजकल श्लोक अपनी पहली फीचर फिल्म हरामखोर के संपादन में जुटे हुए हैं. इसका इंतजार करें. यह न केवल अपने बोल्ड विषय, नवाजुद्दीन सिद्दिकी और श्वेता त्रिपाठी के अद्वितीय अभिनय, बल्कि श्लोक की अपनी अनूठी फिल्ममेकिंग के लिए चर्चा बटोरेगी. आइए, गुलजार के श्लोक का स्वागत करते हैं.

Tuesday, July 16, 2013

मुझे प्रिसेंज ऑफ कत्थक कहा जाता था- नीलिमा अज़ीम

नीलिमा अज़ीम की जिंदगी एक नजर में आपको कमर्शियल हिंदी फिल्म की कहानी जैसी लग सकती है. मुकम्मल प्यार और सच्चे हमसफर की आस में उन्होंने तीन मर्तबा तीन पुरुषों से शादी की, लेकिन हर बार उन्हें मायूसी मिली. वे हिंदी सिनेमा के चर्चित स्टार शाहिद कपूर की मां हैं, लेकिन बेटे का प्यार उन्हें अपने पूर्व पति की दूसरी पत्नी से बांटना पड़ रहा है. रिश्तों के मामले में नीलिमा की मुफलिसी पर आपको तरस आ सकता है, आप उन्हें दया दृष्टि से देख सकते हैं, लेकिन नीलिमा को अपनी जिंदगी पर नाज है. बकौल नीलिमा अज़ीम, ''मैं गर्व के साथ कहती हूं कि मैं आज जो कुछ हूं, अपने बलबूते हूं. मैंने बेदाग जिंदगी गुजारी है. मैं बीस साल पहले अपनी कमाई के चार हजार रुपए लेकर मुंबई आई थी. मैंने संघर्ष किया, अपने लिए मुंबई में जगह बनाई, फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई.  छोटा सा विराम लेकर नीलिमा आगे कहती हैं, ''बहुत से लोग मुझे नहीं समझ पाते हैं. उन्हें लगता है कि कैसी औरत है ये, तीन शादियां कीं, तीनों टूट गईं, बेटे से अलग रही है, लेकिन मैं जानती हूं कि मैंने बहुत साफ और मॉरलिस्टिक जिंदगी जी है. मेरी जिंदगी कलरफुल रही है. फिल्म इंडस्ट्री और म्यूजिक इंडस्ट्री में कोई उंगली उठा कर नहीं कह सकता कि हे, वी हैड फन और सीन विद नीलिमा अजीम.
नीलिमा अजीम का ताल्लुक बिहार के एक आला खानदान से है. उनके ग्रेट ग्रैंड फादर ख्वाजा अहमद अब्बास उर्दू के जाने-माने लेखक और फिल्मकार थे. नीलिमा के पिता अनवर अजीम बहुत बड़े फोटोग्राफर थे. शॉर्ट स्टोरी राइटिंग में उनका नाम था. नीलिमा बताती हैं, ''मेरे पिता बेहतरीन फनकार थे. मेरा बैकग्राउंड रिच था. बाइसकिल थीफ जैसी फिल्म मैंने बचपन में देख ली थी. कला की ओर मेरा रूझान स्वाभाविक था. मैंने चौदह साल की उम्र में कत्थक की दुनिया में बहुत नाम कमा लिया था. नीलिमा आगे कहती हैं, ''चौदह साल की उम्र में मैं स्टैंप पर आ चुकी थी. गर्वमेंट ने हेरिटेज स्टैंप निकाले थे, जिसमें हर क्लासिकल डांस दिवा की तस्वीर थी. मैंने कत्थक को रिप्रजेंट किया था. बीस साल की उम्र में मुझे इंदिरा गांधी अवॉर्ड मिला था. इसी साल अमजद अली साब को भी यह अवॉर्ड मिला था. मैं अपने जेनरेशन में ही नहीं नाची हूं. गंगूबाई हंगल गाती थीं और मैं नाचती थी, अली अकबर खां साब बजाते थे और मैं नाचती थी, मैंने यामिनी कृष्णामूर्ति के साथ स्टेज पर नाचा है. मुझे उस वक्त अखबारों में प्रिसेंज ऑफ कत्थक जैसे शीर्षक दिए जाते थे.
नीलिमा पंडित बिरजू महाराज की शिष्या रही हैं. नीलिमा ने बेहद कम समय में कत्थक की दुनिया में लोकप्रियता अर्जित कर ली थी. उनके नृत्य से अब्राहिम अल्काजी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके लिए खास तौर से तुगलक नाटक तैयार किया. नीलिमा अतीत के पन्नों को पलटती हैं, ''कत्थक केंद्र में पंडित बिरजू महाराज थे और एनएसडी में अब्राहिम अल्काजी साब. उन दिनों दिल्ली का आर्ट वल्र्ड शीर्ष पर था. मेरा नृत्य देखने के बाद काजी साब ने तुगलक के बारे में सोचा. उस जमाने में कत्थक केंद्र और एनएसडी के स्टूडेंट का साथ बैठना होता था. उन्हीं दिनों ही मेरी मुलाकात पंकज कपूर से हुई. सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में नीलिमा दिल्ली के थिएटर वल्र्ड में बहुत सक्रिय रहीं. उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर और राज बब्बर के साथ कई चर्चित नाटकों में बतौर लीड एक्ट्रेस काम किया. नीलिमा उन दिनों को याद करती हैं, ''मेरी और राज की जोड़ी हिट थी. हमारा एक नाटक नादिर शाह बहुत चर्चित हुआ था. नसीर के साथ मैंने माटी मटाल नाटक में अभिनय किया था. उसके लिए मुझे बेहतरीन एक्ट्रेस का ज्ञानपीठ अवॉर्ड मिला था. मैं नसीर को सिखाती भी थी. पंकज साब के साथ मैंने ब्रह्मा और सलीम-अनारकली नाटकों में काम किया. पंकज सलीम बनते थे और मैं अनारकली. नाटकों के रिहर्सल और मंचन के दौरान पंकज कपूर और नीलिमा अजीम एक-दूसरे के करीब आए. नीलिमा कहती हैं, ''एक प्ले के दौरान हमारी मुलाकात हुई और फिर हम धीरे-धीरे करीब आ गए.
नृत्य और थिएटर जगत में नीलिमा की बढ़ती लोकप्रियता ने उन्हें हिंदी फिल्मकारों की नजर में ला खड़ा किया. पंद्रह वर्ष की छोटी उम्र में नीलिमा के पास शीर्ष फिल्म निर्देशकों की फिल्मों के प्रस्ताव आने लगे. नीलिमा गर्व के साथ बताती हैं, ''मेरे पास सबसे पहली फिल्म आई थी जहर-ए-इश्क. गर्म हवा फिल्म के बाद एम सथ्यू मेरे साथ यह फिल्म बनाना चाहते थे. उसके बाद सत्यजीत रे की फिल्म का ऑफर मेरे पास आया. माणिक दा मुझे अपनी फिल्म में लीड रोल देना चाहते थे. सावन कुमार टक दो फिल्मों का ऑफर लेकर मेरे पास आए थे- सौतन की बेटी और प्यार की जीत. फिर श्याम बेनेगल की मंडी का ऑफर मेरे पास आया. यश चोपड़ा मुझे मशाल में कास्ट करना चाहते थे. उस रोल को बाद में रति अगिनहोत्री ने निभाया. उत्सव और उमराव जान फिल्में पहले मेरे साथ सोची गई थीं. लोग कहेंगे कि मैं पागल हूं, जो मैंने इन फिल्मों का ऑफर ठुकरा दिया, लेकिन महाराज जी (पंडित बिरजू महाराज)के साथ मेरी डांस की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई थी. मैं डांस की ट्रेनिंग अधूरा नहीं छोडऩा चाहती थी.
नीलिमा जिन दिनों अपने नृत्य करियर पर फोकस कर रही थीं, उन्हीं दिनों पंकज कपूर ने उनकी जिंदगी में अपने प्यार की खूशबू इस कदर बिखेरी कि वे उनके बिना अपने वजूद की कल्पना नहीं कर पा रही थीं. दोनों ने शीघ्र ही प्यार को सामाजिक स्वीकृति देने का फैसला कर लिया. पंकज और नीलिमा ने दिल्ली में शादी कर ली. शाहिद कपूर की पैदाइश ने उनके प्यार को और मजबूती दी, लेकिन अफसोस कि यह प्यार ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रह पाया. पंकज कपूर से शादी के टूटने का कारण नीलिमा बताती हैं, ''वह शादी परिस्थितियों और दूरियों की वजह से खत्म हुई. मैं दिल्ली में थी और पंकज साब मुंबई में थे. हम साथ रहे ही नहीं. हमारा घर बसा ही नहीं. शादी के फौरन बाद पंकज मुंबई आ गए थे. ये भी नहीं था कि चार-पांच साल का हमारा साथ रहा. शादी का मतलब है कि आप साथ रहें. गृहस्थी पति-पत्नी के साथ रहने से बनती है. पंकज और मेरी फैमिली बनी ही नहीं. 
१९९१ में नीलिमा अपने बेटे शाहिद को लेकर दिल्ली से मुंबई आ गईं. तब तक उनका पहला सीरियल फिर वही तलाश बहुत पॉपुलर हो चुका था. फिल्म इंडस्ट्री ने उनका स्वागत दोनों बांहें फैलाकर किया. बकौल नीलिमा, ''जब मैं मुंबई आई तो अस्सी प्रतिशत फिल्म इंडस्ट्री मेरी दीवानी थी. लोग मुझे अपनी फिल्मों में कास्ट करना चाहते थे, लेकिन मैंने सीरियल में काम करने का फैसला किया, क्योंकि मुझे अपने बच्चे को पालना था. टीवी में रेगयुलर पैसा आता है. मैंने टीवी की अपनी कमाई से शाहिद को पढ़ाया-लिखाया. गौैरतलब है कि नीलिमा ने तलाश, जुनून, कश्मीर, सांस जैसे कई धारावाहिकों में काम किया. उन्होंने सलीम लंगड़े पे मत रो और सडक़ फिल्मों में भी काम किया.
मुंबई आने के पश्चात नीलिमा अजीम अपनी घरेलू जिंदगी को संभालने-संवारने में जुटी थीं, लेकिन उन्हें एक साथी की कमी खल रही थी. तभी टीवी अभिनेता राजेश खट्टर उनकी जिंदगी में आए. नीलिमा को एक बार फिर प्यार हुआ और उन्होंने राजेश से शादी कर ली. छोटे बेटे ईशान नीलिमा-राजेश के प्यार की पहचान हैं. लेकिन दुख की बात यह है कि नीलिमा की यह शादी भी अधिक समय तक नहीं टिकी. नीलिमा कहती हैं, ''मैंने हमेशा रिश्तों को प्राथमिकता दी. मैंने रिश्तों में बहुत इंवेस्ट किया, लेकिन मुझे कभी इस मामले में सपोर्ट नहीं मिला. ईमानदारी से बता रही हूं कि कभी किसी ने बच्चों की परवरिश और पढ़ाई के लिए पैसे नहीं भेजे. मैंने दोनों बच्चों की परवरिश अकेले अपने बलबूते पर की है.
                                                             छोटे बेटे ईशान के साथ
राजेश खट्टर से अलगाव के बाद नीलिमा टूट सी गईं. वे अकेली हो गईं. अफसोस की बात यह है कि इसी दौरान शाहिद कपूर भी उनसे अलग हो गए. मगर नीलिमा उस शख्सियत का नाम है, जिसकी जिंदगी में गम को ठहरने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलता. नीलिमा ने उस्ताद रजा अली खान के साथ जिंदगी की नई शुरूआत करने का फैसला किया. मगर नीलिमा की खुशियों को एक बार फिर किसी की नजर लग गई.  उनका यह रिश्ता भी जल्द ही खत्म हो गया. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि नीलिमा का एक भी रिश्ता स्थायी रुप से क्यों टिका नहीं? नीलिमा इसका जवाब देने की कोशिश करती हैं, ''कई कारण हो सकते हैं. अलग-अलग सपने हो सकते हैं, प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं या संभव है कि परिस्थितियां आपको जुदा कर दें. मैंने पहली शादी बहुत छोटी उम्र में की थी. वह उम्र फॉर्मेटिव ईयर की होती है. आप वक्त के साथ बदलते हैं. हो सकता है कि बड़े होने के बाद आप एक अलग इंसान बन जाएं. नहीं साथ रह पाए तो क्या हुआ?
नीलिमा की इस बात के लिए इज्जत करनी होगी कि उन्होंने अपने हर प्यार को खुले तौर पर स्वीकार किया. उन्हें सामाजिक मान्यता दी. नीलिमा कहती हैं, ''वो मेरी मोरैलिटी है. मैं बिना शादी के रिश्ते रख सकती थी, लेकिन मेरी परवरिश ने मुझे मंजूरी नहीं दी. मैंने जिससे भी प्यार किया, उससे शादी की. पुराने संबंधों को याद करते हुए नीलिमा दिल के किसी कोने में छुपे गम को बयां करने से खुद को नहीं रोक सकीं. ''बहुत तकलीफ होती है जब रिश्ता टूटता है. मेरे लिए बहुत पेनफुल रहा है क्योंकि तीन बार मेरी शादी टूटी है, लेकिन मैं एक वॉरियर हूं. मैंने हर बार नई शुरुआत की है. बहरहाल, वो मेरी जिंदगी के रंग हैं, और कलाकार को तो रंगीन होना ही चाहिए.
नीलिमा को इस बात की संतुष्टि है कि उनके जीवन में एक रिश्ता अब तक स्थायी है. उनके और बेटे शाहिद के बीच कुछ वर्ष पहले मतभेद हो गए थे, दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई थी, लेकिन अब शाहिद अपनी मां के पास लौट आए हैं. शाहिद ने अंधेरी वेस्ट में यारी रोड पर अपनी मां को टूबीएचके फ्लैट और एक गाड़ी भेंट की है. बेटे का जिक्र आने पर नीलिमा अचानक बेहद खुश हो जाती हैं. वे बड़े उत्साही अंदाज में कहती हैं, ''आप जिस घर में बैठे हैं, यह शाहिद का दिया हुआ तो है. हमारे बीच तकरार नहीं हुई थी, तनाव हो गया था. हमारे खयालात अलग-अलग हो गए थे. शाहिद अचानक इंटीपेंडेंट हो गए. वो एक इंडीविजुअल बन गए. वह बुरा दौर अब खत्म हो चुका है. हम बीबीएम के जरिए चौबीस घंटे संपर्क में रहते हैं. शाहिद के साथ सार्वजनिक स्थलों पर न नजर आने के बाबत नीलिमा कहती हैं कि मुझे हर जगह पर कूद-कूदकर जाना पसंद नहीं हैं. जहां शाहिद बुलाते हैं, मैं वहां जरुर जाती हूं.
नीलिमा के छोटे बेटे ईशान अपने बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए अभिनेता बनना चाहते हैं. नीलिमा बताती हैं, ''ईशान अपने भाई से बहुत मोहब्बत करता है. शाहिद को वह आइडियलाइज करता है. शाहिद की तरह वह मिमिक्री अच्छी करता है. वह पैदाइशी कलाकार है. वह साढ़े पंद्रह साल का है, लेकिन इंडीविजुअल है. अपने तरीके से जिंदगी जीता है. वह गयारहवीं में पढ़ रहा है. उसने साइकॉलोजी, इंगिलश और बिजनेस सब्जेक्ट लिया है. कहता है कि मम्मी अगर मुझे एक्टर बनना है तो साइकॉलोजी से मुझे बहुत मदद मिलेगी. बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मास मीडिया की पढ़ाई करना चाहता है. उसके बाद एक्टिंग की ट्रेनिंग शुरू करना चाहता है. 
                                                                   शाहिद के साथ
नीलिमा लंबे अंतराल के बाद न सिर्फ फिल्मों में बल्कि स्टेज पर भी वापस लौट आई हैं. उन्होंने हाल में कुछ लोग नाम की एक फिल्म की शूटिंग पूरी की है. दोबारा अपनी सक्रियता के बारे में नीलिमा कहती हैं, ''मुझे अपना योगदान देना है. मिलिंद उके, जिन्होंने पाठशाला बनाई थी, उनकी फिल्म में मैंने सेंट्रल रोल किया. बहुत अच्छी तरह मेरी वापसी हुई है. मैं कोरियोग्राफी में अपना योगदान देना चाहती हूं. नीलिमा ने पिछले वर्ष निर्देशन में आने की घोषणा की थी. उन्होंने नवाब नौटंकी फिल्म की घोषणा की थी. उस बारे में वे कहती हैं, ''मेेरे छोटे शाहबजादे ईशान के बोर्ड एक्जाम आ गए थे, जिसके कारण फिल्म रुक गई थी. मैंने पिछले महीने उस पर दोबारा काम शुरू किया. सिनेमा समय के साथ बदलता रहता है. इसलिए हमें स्क्रिप्ट पर फिर से काम करना पड़ रहा है. नवाब नौटंकी आज के यंगस्टर की कहानी है. उनके मसलों की कहानी है. इसमें पुराने और नए जमाने की खूबसूरती है.
नीलिमा ने पहला ड्राफ्ट गोविंदा को ध्यान में रखकर लिखा था, लेकिन उनका बाजार भाव कमजोर होने के कारण उन्होंने उन्हें फिल्म में कास्ट करने का विचार छोड़ दिया. नीलिमा ने अब चुन्नू नवाब के किरदार को मॉडर्न यंगस्टर का लुक दे दिया है. नवाब नौटंकी की स्क्रिप्ट पर अब वे नए सिरे से काम कर रही हैं. शाहिद के साथ संबंध सुधरने के बाद ऐसा तो नहीं है कि वे उनके लिए स्क्रिप्ट लिख रही हैं. नीलिमा कहती हैं, ''मैं सबसे पहले अपनी स्क्रिप्ट शाहिद को भेजूंगी. अगर उसे पसंद आती है और वह मेरी फिल्म में काम करने के लिए तैयार हो जाता है तो इसमें मेरी ग्रोथ है. वह मेरा फेवरेट एक्टर है. वैसे भी, मैं बेटे से स्क्रिप्ट के बारे में फीडबैक तो जरुर लूंगी.
नीलिमा इस संभावना से इंकार नहीं करती हैं कि नवाब नौटंकी में अगर शाहिद काम करते हैं तो वे उनके साथ अभिनय कर सकती हैं. नीलिमा कहती हैं, ''फिल्म में हीरो की मां कायसरा का किरदार है. लोग कह रहे हैं कि मैं इस रोल को अच्छी तरह निभा सकती हूं. काबिले जिक्र है कि नीलिमा ने इश्क विश्क फिल्म में बेटे शाहिद के साथ पहली बार काम किया था. नीलिमा कहती हैं कि वो बहुत छोटा रोल था. पता नहीं क्यों शाहिद का नाम आते ही लोग पंकज जी के बारे में ज्यादा सोचते हैं. नीलिमा ने बताया कि अगले साल फरवरी तक नवाब नौटंकी की शूटिंग आरंभ होगी. अपने बेटे की लोकप्रियता और उनके स्टारडम का लाभ उठाने के विषय में पूछने पर नीलिमा कहती हैं, ''ऐसी वैल्यूज नहीं हैं मुझमें. वरना मैं पांच साल से अपनी फिल्म को लेकर स्ट्रगल नहीं कर रही होती.






Tuesday, July 9, 2013

ShahRukh Khan's statement about new born AbRam




Amidst all the noise that has been going around, the sweetest is the one made by our new-born baby, AbRam.

He was born prematurely by several months but has finally come home.

Gauri and our whole family have been dealing with his health issues for a long time now.

As a family our silence on this subject has been because of the personal nature of emotional strife that we have been going through due to his health.

We wish to make a special mention and thank Dr. Jatin Shah for his expertise and contribution. We also wish to thank all the other doctors, nurses and medical staff who have made his life possible.  As trying were the times, we never lost hope that life always brings with it.

Just to put the record straight there was no sex determination for our child. The baby was born much before the speculations of ‘sex determination’ and other  ‘issues’ pertaining to the same were being raised in the media by some organisations.

Suffice to say his coming home puts to rest completely false and at times insensitive claims of sex determination and alleged illegalities.

We also apologise to all those other doctors and hospitals who had to face unwanted scrutiny and questioning by some parties.

Our son is a surrogate baby and the entire process is bound by strict confidentiality. We would appeal to all, to allow us to cherish this private moment as a family.

It seems unfortunate that I have to explain/clarify so many aspects for our new-born baby. Wish it were just a simple message of happiness on behalf of the family.

They say a baby is God’s opinion that the world should go on. Post this statement, I hope we all move on too.

Thank you.

Shah Rukh Khan

"Like Shakira’s hip’s, the audience too don’t lie." Ravi Rai in reply to Shobha De


DE FOR STARRY NIGHTS

Was just going through the Mumbai Mirror in the morning and my gaze jammed at a photograph of Ms. Shobha De. My sight froze and there was a smile on my lips and I said ‘Good morning’ to myself. Some faces make your day. It was a column ‘How to be a chick’. Below her pea size photograph was written in bold and big letters ‘DOES ‘RAANJHANAA’ GLORIFY STALKING?’ Well I read that later, though it is my brother’s film. But let me be honest here that Ms. De’s snap invites my or any male’s curiosity much more than my brother’s work, because her labour in literature eases us to lay her face to the fables that she has engraved. And in all conscience, whenever you read her stuff, her face flashes endorsing her material. And that’s the case with all the great writers, whether it is Gulzar saab, Rabindranath Tagore, Nida Fazli, Sahir Ludhyanvi, Javed Akhtar, or Shobha De too. The readers always visualize their faces to their respective works. It’s like the old Jenson and Nicholson advertisement that said ‘Whenever you see colour, think of us’.

I moved on. I was curious to read what the queen of soft porns had to write about a humble ‘Raanjhana’. I knew this article was unlike the other articles which gave the film 4 and a half stars or 4 plus. And honestly, I too was too tired of getting great appraisals for the film, reading prodigious reviews, people greeting me, congratulating me.. It was getting more monotonous than living with a same partner. But ‘Raanjhana’ was disturbing someone apart from Kamaal R Khan, whom we disregarded and discounted for all his intelligence and dumbness. And it was the lady I admired the most, not for her work but for her looking attractive and gorgeous and being as old as India.

Our Maam wrote that everyone is going ga ga over the film ‘Raanjhana’. Yes, it is true. But how can we stop that?  It certainly is not a paid campaign. We cannot deploy police force or take out morchas if people are enjoying the film and going GaGa over it. But isn’t acceptance of a film a truly democratic format? Or that way acceptance of a leader or a star too. We worship Sachin Tendulkar for his merits. You may love or hate Bala Saheb, but the mourners care five figs for your opinions and starved thoughts and throng the streets to form a glimpse of a never before seen a sea of heads. Much bigger than Ripley’s believe it or not. I did not personally like ‘Dabang’, Ready’, ‘Body Guard’, ‘Ek tha tiger’ or so on. But these films went on to fetch 200 crores plus. I hated ‘The life of Pi’ the most. And my friends, contacts and work supports stopped trusting in me for that. Neither did the Oscars care for my belief. And the film swept the numbers and the Oscars. I think, Miss De, if you are trying to rehearse any anarchy for this particular democracy, then the best way is to have a five minute conversation with the average voters. Like Shakira’s hip’s, the audience too don’t lie. The first week closing of ‘Raanjhana’ is a humongous 35 crore plus including the overseas.

Let me start by asking you Maam, where do you find Kundan a demented stalker who’s harrowing an innocent victim? Which part of the film did you find that?? I would be overwhelmed to know that. And I know that this particular film doesn’t deal with teenage sleaze, scandal, lust, obscenity at all. And the reviews it got and is getting are mindless for you as you have mentioned…Agreed, but where do you find the film or its protagonist seriously psychotic? Which portion of the film? If you please let me I shall surely chop them off and apply some balm to you.

And ma’am, what lives or families has Kundan, the protagnist destroyed? Except for Abhay Deol’s death, which was a part of the screenplay and storytelling if you understand? Apart from that which ant or a bee was injured or died in the film?? Neither a boat sank, nor a cycle was robbed.. Except for he himself, who was demolished, destroyed and damaged in the end reminding me of Sydney Carton from Dickens’s ‘Tale of two cities’. And what message are you talking about??? What message is the film sending out? What message have you heard ma’am??? Have people come out liking the film and acclaimed and applauded it or are they spitting out the message that you have half-baked atrociously only to your taste. It is for you to figure that out. You have yourself said that some rave reviews and people making it to be a great love story. What is true??? Please analyse that.

And ma’am, where is Kundan crude and relentless to Zoya? Can you name a scene? Any scene like Shahrukh Khan’s of ‘Anjaane’ or ‘Darr’.. Where he kicks the heroine, slaps her, beats her, and blood, blood, blood and bloody blood… Or a Raj Babbar of ‘Insaaf ka taraazu’ where he slaps Zeenat Aman a number of times.. ties her to the bed and rapes her and then as a pervert tells Padmini Kohapure to strip, unclothe and bare herself and walk naked in front of him at the point of a gun because both the sisters say ‘No’ to him and the elder one is in love with Deepaak Parashar. Did you find Kundan doing anything anywhere closer to these guys? Or like Amitabh Bacchan where when Zeenat Aman says no to him and he holds her painfully tight by her arm and tells her what ‘Laawaaris’ means. I recall the theatre clapped echoingly in reverbs multiplying for over 5 minutes. Was the character of Mr. Bachhan representing the emotions, aspirations of a larger comprising mass of a cine goer? Or that of a Zeenat Aman representing a handful shameless corrupts with white collars discussing destitute hungry children and eating Caviar with Cognac in a 5 star hotel? May be Dhanush represents hopes, desires and the doomed love of a bigger encompassing bulk that has made him a heart throb in the Hindi filmdom called ‘Bollywood’ too. 

Just remind me a scene where Kundan has touched Zoya or forced physics on her.

And then further you say “it’s a wonder she doesn’t throw him off the cliff.” Wait for another 40 minutes honourable maam.., she does get him killed. Your dishonest, crooked and shady cravings and yearnings will come true If you have sit through the film. Who is the victim here maam? The stalker or the stalked? Well I shall come to that later. Where does Kundan embarrass Zoya as you write? Where do you feel Zoya showed embarrassment in any of her expressions? Can you please name a scene? Or with some wrong expressions Sonam has excelled as an actress by default which you have acknowledged and her merit is being credited to Mr. Anand Rai by some inaccuracy.

In which scene is Kundan firm not to take a ‘no’ from Zoya?? On the contrary when she tells him about Akram, he’s the one who goes to her father to coax him to get Zoya married to the love of her life, Akram. He’s the one who hard sells Akram to her father. He spends night in front of the house. In fact he stalks Zoya’s father, more than Zoya, to Masjid, streets, college.. Zoya’s the one who lies to her parents about Akram being a Hindu. Should Zoya have done that? Was it or is It right lying to the parents about marriage? Did that occur to you even once?  Or just Kundan bashing is all that matters.

You further write that ‘Never mind she doesn’t care a fig about Kundan and treats him like a serf and uses him ruthlessly’. Now maam… can you make out what these lines mean..? ‘She doesn’t care a fig about him?’… means that his ‘stalking’, the term you have given to his walk… has no and absolutely zilch impact on Zoya. She’s least frightened of him and leans on him as a friend. Kundan is the least scary man because he’s a nice man who possesses no feudal power on Zoya and ends up a loser. And then your next line is ‘She treats him like a serf’… Who treats who like a serf maam? The stalker or the victim…? And then again you write ‘and she uses him ruthlessly’.. Maam who’s using whom ruthlessly..? The stalker is using the victim or the victim is using the stalker ruthllessly..? Who’s more powerful and impactful amongst the two? Can you figure these from your lines? And then you feel the audience is going teary and touched. Why is the audience going teary and touched? Have they been paid by Eros or Anand Rai to disturb you?.. In a 600 words article you have just repeated in 550 words that “if Kundan would have stopped harassing Zoya so many lives would have been spared..”.. Form some new questions maam. I do not want to ask you again and again that what lives and what families are you talking about?

You thought ‘Raanjhanaa’ was some south Indian name for a girl. Hahahaha.... Then you must be wondering if ‘Heer’ was elder sister of ‘Kheer’… Anyways, let me not laugh at you on your exposure on Hindi literature.. I allow you to express as you have given a lot to the literary work on a specific genre what Shakespeare or Dickens couldn’t and I have enjoyed reading that. So what if you do not know ‘Heer raanjha’, Sassi Punnu’ or Laila Majnu’ but I am sure you know a lot about basic instincts…

And again you are right by mistake that it is a one sided love story… Who said it was a threesome story maam. ’Raanjhana’ is Anand Rai’s world. Please do not find your characters in this film. Zoya loved Akram, and Akram loved Zoya…. Only Kundan loved Zoya and she never loved Kundan.. It is so simple and yet… Why don’t you accept a one sided love story of a man who loved a woman and could not get her…

Maam De, I am sure you must have seen Raj Kapoor’s Bobby. How would you rate the stalking of Raj to Bobby. Is Kundan anywhere closer to what Rishi Kapoor did to Dimple Kapadia in ‘Bobby’? Rishi Kapoor saw her for the first time in his house and there on… he sang a song.. Then goes to her place, then disturbs her in her college and then glares the mirror into her eyes in the library, he doesn’t let her study, he makes her bunk the college.. And then he flungs his own marriage and reaches Goa where Bobby was kept as a captive by her father, and then he elopes with her. She being an underage, even after he knowing that and etc., etc.,.. He does everything what shouldn’t be done morally. Wasn’t that more than what Kundan did to Zoya?? Or let me ask you, did Kundan do more than what Rishi Kapoor did? You do not seem to have any problem with that. Is it because the name of the director was Raj Kapoor?

Recently released ‘Fukrey’, is running to full houses and audiences have raved about the film like ‘Raanjhana’. ‘Fukrey’ just glorifies gambling. The protagonist are school students who have failed umpteen number of times and have not passed.. They are still trying to get leaked question papers at 50,000 cause they don’t want to study.. They want to go to college only to have girlfriends.. He talks to his girlfriend about French kiss and how to do it.. They keep gambling, they sell drugs, And the resolve of the film again comes by gambling.. The fiancé of a character who hates gambling, finally gambles to get money…None of them goes to jail.. And unfortunately here was no Savita bhabhi who could throw the scruples, messages on morals on these 4 boys. I know that wouldn’t bother you much, as your books are in that province and territory. But honestly there is nothing that one should take home from this film. What does this film glorify??? Have you ever thought on this??? Just few days ago I saw you on channels talking against betting in the IPLs, but heard no voice of yours on ‘Fukrey’.. Why???

What is stalking miss De? If we get into finding the right words alternating to stalking, then they mean pestering, irritating, annoyance, following, trailing, nuisance, and aggravation. And they can cause fear, terror, dread, fright, and panic in the person being stalked. Did you by any chance see any of the latter elements in Zoya? Was she too frightened of Kundan? Or did at any point of given time she go through shudders when he called her or met her..? I saw her meeting him with smiles and happiness and on her own will. Zoya is an independent girl who is very clear in venting it out to him anything she felt. She did tell Kundan that they were young when anything between them happened. Now she has moved on.. Doesn’t it happen Miss De that people move on in life with bags, baggages and children on to the next one?? So did Zoya.. Zoya sought help from Kundan all the time.. whether it was her marriage to the other man, or Akram and Kundan was always there to help her out. You again in your crooked thinking feel ‘She used him’. The audience took Kundan as Zoya’s friend from Zoya’s POV…

Miss De, there have been umpteen number of films in the Hollywood about stalking and all have been successful ones. Films like Cape fear, Scream, Singlle white female, Sleeping with the enemy, The hand that rocks the cradle, One hour photo, Taxi driver and Fatal attraction.. But none like you, Miss De have risen a question on what these films encourage.  Only if you knew what your books encourage. Miss De, Missionaries are going to reform the world and they know what it should be and what it shouldn’t be… Leave it to them.. Film makers have jobs to entertain.. Some good and some bad. For me there are writer’s like Enid Blyton and Shobha De. One’s work I would love to gift it to my daughters and the other’s I would want to hide it from them. But both get a shelf in the book shop and both get pictured. What I like and what you hate, both of us care a damn. Because both got buyers.

We loved Amitabh Bacchan in ‘Deewar’ though he glorified Haji Mastaan, we loved him in ‘Shakti’…though he hated his father, and became a smuggler.. Amitabh Bacchan went on to kill someone in ‘Parwaana’ because the lady never loved him.. And that was the onset of a superstar. The audience had lapped him up.   Darr, Anjaam, Baazigar made Shahrukh Khan a super star,… People loved him more as negative.. Dharmendra, Vinod Khanna and Shatrughan Sinha did what should not be done. I hark back to when Shatrughan Sinha beat the hero, the audience clapped.. They did not take the onus of society on their shoulders. They just loved the characters and knew that it was cinema.. Or else a Robert De Nero playing Al Capone and Al Pacino playing Scarface wouldn’t have been super stars with super hits.  Edward G Robinson wouldn’t have been there for what he had delivered. And according to you maam, then the super stars would have been Arun Govils and Deepikas as they played Ram and Sita.. So maam, regarding the creative art, never assume that you are the master. The audience will determine if you are worthy, masterful or not. Cinema doesn’t reform society but it reflects society.. Its entertainment, entertainment and entertainment.

I am sure if there is a story of some young teenager boy from Malabar Hill who falls in love with a girl from some convent school, and later one fine day he tells the girl “I have to bed you”. And she says no. And he trails her by sending her chocolates, flying down orchids from Thailand, transporting brownies, follows her till cafe coffee day, telling the owner not to take money from her, buys Archie cards, sends her a card every day, and his driver in the Mercedes drops the girl from school to house, and on valentine’s day he goes on his his knees and begs to bed her and she finally says ok.. And the readers of that semi pornographic book say.. How cute…? what a touching love tory.. There are love stories set in Malabar Hill and love stories set in the interiors of Benaras. The viewers are different and the believers are different.

If I have enjoyed anyone’s work in a specific genre after Mastram in Hindi, it has been you maam. The amount of literary work and your contribution is an epitome that people love what people love… We never had objections or hostilities when the soft porns go on to become school books. But a ‘Raanjhaana’ disturbs us…. Why??? Maam, can you answer anyone of these questions..

Name a shot where he stalks her…
Name a shot where he has destroyed any family…
Where was Kundan wrong when the girl smiled and said that we shall meet behind the temple??
Where was Kundan wrong when they were nearly in close proximity almost to kiss..
where was Kundan wrong when the girl was crying and going and he said I shall wait for you..
Where was Kundan wrong when he waited for her and she comes back after 7 years and doesn’t recognize him?
Where was Kundan wrong when the girl tells him about Akram…? He was waiting for her so many years
Where was Kundan wrong when he says that he would get her married to Akram.. ?
Where was Kundan wrong when he thought it is his duty to be honest to his teacher in telling that the Akram is Hindu… ?
Where did he go wrong when he said that he shall take Zoya to Akram… ?
During the political episodes, did he once tell her that he loves her or want her?
After Akram’s death, didn’t he always looked at her with purity?
Infact when she tells him that she loves him.. he withdraws and tells her don’t love me… Don’t you feel he was the victim rather than whom he made the victim..?
Why did he die??
Because of whom did he die???

Don’t think too much about cinema. It’s just a matter of what’s in frame and what’s out of it… For both, the maker and the viewer… If you sit down thinking that ‘Dirty Dozen’ and ‘Sholay’ encouraged that police is impotent and lets use criminals against criminals.. then no point.  You will always be confused on that “do you go to the movies when you love life or when life doesn’t love you or doesn’t satisfy you you go to the movies…” Cinema is never a therapy.. its entertainment… It substitutes our desires…

End of the session, let me make you happy by saying that given the choice between trivial materials brilliantly told versus profound material badly told, an audience will always choose the trivial told brilliantly. And Anand has done the latter… May be its too trivial for you, but he has told brilliantly…

‘Kaagaz ke phool’ and ‘Mera naam joker’ were complete success but the audience was a comprehensive failure. And ‘Raanjhana’ may be a whole myth according to you but the audience is a widespread far reaching triumph.

Dhanush is talented. He’s not vaghera vaghera.. (Spell it right.. it’s ‘vagaira’… there’s an ‘I’ in it until your editor or your ghost writer has messed it up for you)… The audience comes out with Dhanush in their hearts and he stays on in them. Heroes take journeys forward, and heroes resolve. And Dhanush has done it. Sad for a lot but true for many, Dhanush is the new heart throb. You may pray for his next down fall and we shall make the next disturbing for you with him..

Relax, end of the day it is Fuckrey