अर्जुन रामपाल इन दिनों बेहद व्यस्त हैं। वे रात भर रा.वन फिल्म की शूटिंग करते हैं और दिन में राजनीति की प्रमोशनल गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं। ओम शांति ओम फिल्म की रिलीज के पहले अर्जुन की जिंदगी में ऐसा दौर भी आया था, जब वे घर में खाली बैठे रहते थे और उनके फोन की घंटी नहीं बजती थी, लेकिन अब वक्त बदल गया है। बातचीत अर्जुन रामपाल से।
राजनीति में आपका जो कैरेक्टर है, आप वैसे कितने कैरेक्टर के टच में हैं?
जब राजनीति जैसी फिल्म आप कर रहे हैं, तो सबसे पहले आपको डायरेक्टर का विजन समझना होता है। प्रकाश झा ने महाभारत की कहानी को मॉडर्न स्टाइल में रखा है। मेरा किरदार महाभारत के भीम जैसा है। पृथ्वीराज प्रताप पढ़ा-लिखा है। वह खानदानी पॉलिटीशियन है। वह लाउडी भी है। वह सोच-समझकर रिएक्ट नहीं करता। वह एग्रेसिव है, लेकिन जब पिघलता है, तो प्यारी चीजें करता है। उस हिसाब से कैरेक्टर को निभाना आसान नहीं था। मैंने यंग पॉलिटीशियन को ऑब्जर्व किया। उनकी चाल-ढाल, अदाएं देखीं। मैंने देखा कि यंग पॉलिटीशियन पायजामा-कुर्ता के साथ रिबॉक का जूता पहनते हैं। वह मैंने अपने किरदार में डाला है। बाकी जैसा किरदार लिखा गया था, वैसा मैंने किया। मेरा किरदार मिट्टी से जुड़ा है। प्रकाश झा ग्रामीण भारत को करीब से जानते हैं। वे राजनीति को करीब से जानते हैं। उन्होंने अपनी नॉलेज हमारे साथ शेयर की। वे क्लियर थे कि उन्हें क्या चाहिए? राजनीति में काम करने का अनुभव मजेदार रहा।
रा.वन के बारे में कुछ बताएंगे?
इसकी शूटिंग अभी शुरू हुई है। उसमें मेरा स्पेशल लुक है। शाहरुख बहुत प्यारी फिल्म बना रहे हैं। इंडियन सुपरहीरो के हिसाब से यह बहुत प्यारी फिल्म हो सकती है।
हाउसफुल जैसी फिल्म करते समय एक ऐक्टर के तौर पर आप क्या इंटेलीजेंस भूल जाते हैं?
हाउसफुल को लोग एंज्वॉय कर रहे हैं। मुझे अच्छे मैसेज आ रहे हैं। ऐसी फिल्म से फैन फॉलोइंग बढ़ती है। हम क्यों बोरिंग इंटेलीजेंट फिल्म ही बनाएं? हर तरह की फिल्म बनती रहनी चाहिए।
आपकी छवि अजातशत्रु की है। फिल्म इंडस्ट्री में कोई आपकी बुराई नहीं करता। क्या यह संस्कार बचपन के हैं?
हां। जो आप सोचते हैं, वही आपकी जिंदगी बन जाती है। पहले आपको तय करना चाहिए कि आपको कैसी जिंदगी चाहिए? फिर वैसी सोच होगी। जब आप लो फेज में होते हैं, तो दूसरों पर इल्जाम लगाना आसान होता है। पर यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप और कमजोर हो जाते हैं। जब आप सफलता और असफलता का जिम्मा खुद लेते हैं, तो आप मजबूत बनते हैं। फिल्म नहीं चलती है, तो मैं उसका जिम्मा लेता हूं और फिल्म चलती है, तो उसका श्रेय सबके साथ शेयर करता हूं।
आप इस बात को मानते हैं कि ओम शांति ओम और रॉक ऑन की सफलता के बाद आपको दूसरा जीवन मिला है?
दूसरा जीवन मिलना मेरी समझ से अलग बात है। मेरा मानना है कि सफलता-असफलता जीवन का हिस्सा है। इससे सबको दो-चार होना पड़ता है। यह अनुभव भी है। मुझे अपने काम से लगाव है। मैं काम करता हूं, ताकि लोगों को खुश कर सकूं। लोगों को खुशी मिलती है, तो मुझे भी खुशी मिलती है।
इस बात में कितनी सच्चाई है कि रॉक ऑन से आपका पब्लिक कनेक्शन हुआ। वह किरदार क्लिक कर गया। क्या फिल्म साइन करते समय इस बात का अंदाजा था?
अगर हमें पहले से पता होता, तो वैसी फिल्में ही करते। जब मैं फिल्म साइन करता हूं, तो पहला सवाल खुद से करता हूं कि क्या यह फिल्म देखने मैं थिएटर में जाऊंगा? क्या किरदार मुझे अच्छा लग रह रहा है? जैसे राजनीति का किरदार है। मैं नयापन लाने की कोशिश करता हूं। मुझे हीरोइज्म वाली फिल्में बोरिंग लगती हैं। आज के दर्शक जानते हैं कि अर्जुन, रणबीर कपूर, शाहरुख खान सबकी अपनी पर्सनैल्टी है, लेकिन ये करते क्या हैं? दर्शक काम देखते हैं। वह जमाना गया। अब कलाकार टाइपकास्ट नहीं होते। अब ऐक्टर हर तरह का किरदार कर रहे हैं। मैं तो कहता हूं किफिल्म से बड़ा कोई नहीं होता।
आपने प्रोडक्शन कंपनी खोली थी। उसे एडवेंचर के तौर पर लेते हैं या वह डिसऐडवेंचर हो गया?
सफलता और असफलता मियां-बीवी की तरह हैं। मैं यह नहीं बताऊंगा कि कौन मियां है और कौन बीवी? असफलता का मतलब हमेशा दुख ही नहीं होता। मेकिंग में बहुत खुशियां मिलती हैं। मैं और फिल्में बनाऊंगा। दिल्ली के बाद जल्द ही मैं मुंबई में अपना रेस्टोरेंट खोलने जा रहा हूं। मेरी सोच है कि बिजनेस कर रहा हूं या फिल्म बना रहा हूं और यदि उससे पांच सौ लोगों का चूल्हा जल रहा है, तो मैं उसे करूंगा। डेवलपमेंट को कभी नहीं रोकना चाहिए।
राजनीति में आपका जो कैरेक्टर है, आप वैसे कितने कैरेक्टर के टच में हैं?
जब राजनीति जैसी फिल्म आप कर रहे हैं, तो सबसे पहले आपको डायरेक्टर का विजन समझना होता है। प्रकाश झा ने महाभारत की कहानी को मॉडर्न स्टाइल में रखा है। मेरा किरदार महाभारत के भीम जैसा है। पृथ्वीराज प्रताप पढ़ा-लिखा है। वह खानदानी पॉलिटीशियन है। वह लाउडी भी है। वह सोच-समझकर रिएक्ट नहीं करता। वह एग्रेसिव है, लेकिन जब पिघलता है, तो प्यारी चीजें करता है। उस हिसाब से कैरेक्टर को निभाना आसान नहीं था। मैंने यंग पॉलिटीशियन को ऑब्जर्व किया। उनकी चाल-ढाल, अदाएं देखीं। मैंने देखा कि यंग पॉलिटीशियन पायजामा-कुर्ता के साथ रिबॉक का जूता पहनते हैं। वह मैंने अपने किरदार में डाला है। बाकी जैसा किरदार लिखा गया था, वैसा मैंने किया। मेरा किरदार मिट्टी से जुड़ा है। प्रकाश झा ग्रामीण भारत को करीब से जानते हैं। वे राजनीति को करीब से जानते हैं। उन्होंने अपनी नॉलेज हमारे साथ शेयर की। वे क्लियर थे कि उन्हें क्या चाहिए? राजनीति में काम करने का अनुभव मजेदार रहा।
रा.वन के बारे में कुछ बताएंगे?
इसकी शूटिंग अभी शुरू हुई है। उसमें मेरा स्पेशल लुक है। शाहरुख बहुत प्यारी फिल्म बना रहे हैं। इंडियन सुपरहीरो के हिसाब से यह बहुत प्यारी फिल्म हो सकती है।
हाउसफुल जैसी फिल्म करते समय एक ऐक्टर के तौर पर आप क्या इंटेलीजेंस भूल जाते हैं?
हाउसफुल को लोग एंज्वॉय कर रहे हैं। मुझे अच्छे मैसेज आ रहे हैं। ऐसी फिल्म से फैन फॉलोइंग बढ़ती है। हम क्यों बोरिंग इंटेलीजेंट फिल्म ही बनाएं? हर तरह की फिल्म बनती रहनी चाहिए।
आपकी छवि अजातशत्रु की है। फिल्म इंडस्ट्री में कोई आपकी बुराई नहीं करता। क्या यह संस्कार बचपन के हैं?
हां। जो आप सोचते हैं, वही आपकी जिंदगी बन जाती है। पहले आपको तय करना चाहिए कि आपको कैसी जिंदगी चाहिए? फिर वैसी सोच होगी। जब आप लो फेज में होते हैं, तो दूसरों पर इल्जाम लगाना आसान होता है। पर यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप और कमजोर हो जाते हैं। जब आप सफलता और असफलता का जिम्मा खुद लेते हैं, तो आप मजबूत बनते हैं। फिल्म नहीं चलती है, तो मैं उसका जिम्मा लेता हूं और फिल्म चलती है, तो उसका श्रेय सबके साथ शेयर करता हूं।
आप इस बात को मानते हैं कि ओम शांति ओम और रॉक ऑन की सफलता के बाद आपको दूसरा जीवन मिला है?
दूसरा जीवन मिलना मेरी समझ से अलग बात है। मेरा मानना है कि सफलता-असफलता जीवन का हिस्सा है। इससे सबको दो-चार होना पड़ता है। यह अनुभव भी है। मुझे अपने काम से लगाव है। मैं काम करता हूं, ताकि लोगों को खुश कर सकूं। लोगों को खुशी मिलती है, तो मुझे भी खुशी मिलती है।
इस बात में कितनी सच्चाई है कि रॉक ऑन से आपका पब्लिक कनेक्शन हुआ। वह किरदार क्लिक कर गया। क्या फिल्म साइन करते समय इस बात का अंदाजा था?
अगर हमें पहले से पता होता, तो वैसी फिल्में ही करते। जब मैं फिल्म साइन करता हूं, तो पहला सवाल खुद से करता हूं कि क्या यह फिल्म देखने मैं थिएटर में जाऊंगा? क्या किरदार मुझे अच्छा लग रह रहा है? जैसे राजनीति का किरदार है। मैं नयापन लाने की कोशिश करता हूं। मुझे हीरोइज्म वाली फिल्में बोरिंग लगती हैं। आज के दर्शक जानते हैं कि अर्जुन, रणबीर कपूर, शाहरुख खान सबकी अपनी पर्सनैल्टी है, लेकिन ये करते क्या हैं? दर्शक काम देखते हैं। वह जमाना गया। अब कलाकार टाइपकास्ट नहीं होते। अब ऐक्टर हर तरह का किरदार कर रहे हैं। मैं तो कहता हूं किफिल्म से बड़ा कोई नहीं होता।
आपने प्रोडक्शन कंपनी खोली थी। उसे एडवेंचर के तौर पर लेते हैं या वह डिसऐडवेंचर हो गया?
सफलता और असफलता मियां-बीवी की तरह हैं। मैं यह नहीं बताऊंगा कि कौन मियां है और कौन बीवी? असफलता का मतलब हमेशा दुख ही नहीं होता। मेकिंग में बहुत खुशियां मिलती हैं। मैं और फिल्में बनाऊंगा। दिल्ली के बाद जल्द ही मैं मुंबई में अपना रेस्टोरेंट खोलने जा रहा हूं। मेरी सोच है कि बिजनेस कर रहा हूं या फिल्म बना रहा हूं और यदि उससे पांच सौ लोगों का चूल्हा जल रहा है, तो मैं उसे करूंगा। डेवलपमेंट को कभी नहीं रोकना चाहिए।
-रघुवेंद्र सिंह