गुरुवार को यश चोपड़ा के चौथा में अमिताभ बच्चन ने इन शब्दों में अपने भाव प्रकट किए.
44 वर्षों का साथ, जो कि 1968 में शुरू हुआ, 2012 में अचानक और समय से पहले समाप्त हो गया.
इन 44 वर्षों में, कला के क्षेत्र में यश जी का जो योगदान रहा, देश-विदेश में, जग जाहिर है. परन्तु मैंने उन्हें हमेशा एक घनिष्ठ मित्र और एक अद्भुत इंसान के रुप में पाया.
नाम और शोहरत के साथ-साथ मित्रता और इंसानियत को लेकर, अपना जीवन व्यतीत करना, ये कोई सरल काम नहीं है. लेकिन यश जी में ऐसे ही गुण थे.
मैंने उनके साथ इस लंबे सफर में, बहुत कुछ सीखा और जाना, बहुत से सुखद और दुखद पल बिताए. काम के प्रति जो उनकी लगन, निष्ठा और उत्साह था, उससे उन्होंने मुझे भिगोया, इसके लिए मैं सदा उनका आभारी रहूंगा.
इतने वर्ष उनकी संगत में रहकर, जो उनमें एक महत्वपूर्ण बात देखी, वो ये कि मैंने उन्हें कभी भी किसी के साथ अपना क्रोध व्यक्त करते नहीं देखा. कभी भी किसी के साथ ऊंचे स्वर में बात करते नहीं देखा. ऊंचा स्वर उनका था, लेकिन अपने काम के प्रति उल्लास व्यक्त करने के लिए होता था, क्रोध नहीं. परिस्थिति चाहे कुछ भी रही हो, उनका स्वभाव हमेशा शांत रहा.
मिलनसार व्यक्ति थे वे.
जितना प्रेम वो अपनी फिल्मों को देते थे, उतना ही प्रेम वो उन्हें भी देते थे, जिनके साथ उनका संपर्क होता था.
प्रेम से उन्हें प्रेम था...
दुख की इन अंधेरी घडिय़ों में हम उनके निकट परिवार के सभी सदस्यों को अपना शोक प्रकट करते हैं और केवल इतना कहना चाहेंगे कि... ‘है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है’. ये पंक्तियां मेरे पूज्य पिताजी की लिखी एक कविता से हैं... ‘है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है’.
इसलिए... भविष्य में, आने वाले दिनों में, आशा और उम्मीद के लाखों, करोड़ों दीपों को प्रज्जवलित करने के लिए, प्रोत्साहन के रुप में, बाबूजी की ही लिखी पंक्तियों से अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा... कि... जो बीत गई सो बात गई.
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वो बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई.
इन 44 वर्षों में, कला के क्षेत्र में यश जी का जो योगदान रहा, देश-विदेश में, जग जाहिर है. परन्तु मैंने उन्हें हमेशा एक घनिष्ठ मित्र और एक अद्भुत इंसान के रुप में पाया.
नाम और शोहरत के साथ-साथ मित्रता और इंसानियत को लेकर, अपना जीवन व्यतीत करना, ये कोई सरल काम नहीं है. लेकिन यश जी में ऐसे ही गुण थे.
मैंने उनके साथ इस लंबे सफर में, बहुत कुछ सीखा और जाना, बहुत से सुखद और दुखद पल बिताए. काम के प्रति जो उनकी लगन, निष्ठा और उत्साह था, उससे उन्होंने मुझे भिगोया, इसके लिए मैं सदा उनका आभारी रहूंगा.
इतने वर्ष उनकी संगत में रहकर, जो उनमें एक महत्वपूर्ण बात देखी, वो ये कि मैंने उन्हें कभी भी किसी के साथ अपना क्रोध व्यक्त करते नहीं देखा. कभी भी किसी के साथ ऊंचे स्वर में बात करते नहीं देखा. ऊंचा स्वर उनका था, लेकिन अपने काम के प्रति उल्लास व्यक्त करने के लिए होता था, क्रोध नहीं. परिस्थिति चाहे कुछ भी रही हो, उनका स्वभाव हमेशा शांत रहा.
मिलनसार व्यक्ति थे वे.
जितना प्रेम वो अपनी फिल्मों को देते थे, उतना ही प्रेम वो उन्हें भी देते थे, जिनके साथ उनका संपर्क होता था.
प्रेम से उन्हें प्रेम था...
दुख की इन अंधेरी घडिय़ों में हम उनके निकट परिवार के सभी सदस्यों को अपना शोक प्रकट करते हैं और केवल इतना कहना चाहेंगे कि... ‘है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है’. ये पंक्तियां मेरे पूज्य पिताजी की लिखी एक कविता से हैं... ‘है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है’.
इसलिए... भविष्य में, आने वाले दिनों में, आशा और उम्मीद के लाखों, करोड़ों दीपों को प्रज्जवलित करने के लिए, प्रोत्साहन के रुप में, बाबूजी की ही लिखी पंक्तियों से अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा... कि... जो बीत गई सो बात गई.
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वो बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई.
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