(परदेसी के एक दृश्य में अद्र्धव और वेदिका )
अगर आप एक बेहतरीन फिल्म देखते हैं और आप सिनेमा के शुभेच्छु हैं, तो आप यही चाहते हैं कि उसे अधिकाधिक लोग देखें. मुझे पूरा विश्वास है कि परदेसी देखने के बाद अनुराग कश्यप के दिलो-दिमाग में यही विचार कौंधा होगा. फिर क्या? उन्होंने भाषा की परवाह नहीं की, यहां तक कि उन्होंने बाजार की भी चिंता नहीं की और तमिल में बनी बाला की फिल्म परदेसी को हिंदी फिल्म के दर्शकों के बीच पहुंचाने का बीड़ा उठा लिया.
बाला हिंदी फिल्म के दर्शकों के लिए एक नया नाम हो सकते हैं, लेकिन तमिल सिनेमा में उनका कद बहुत ऊंचा है. उन्होंने अपनी पहली फिल्म सेतु (1999) के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त किया था. फिर पिथामगन (2003) के लिए दूसरी बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 2009 में उन्हें फिल्म नान कडव्यू के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया. परदेसी एक कतार में उनकी बेहतरीन सातवीं प्रस्तुति है.
(बाला )
अनुराग कश्यप ने बाला की इस फिल्म को इंग्लिश सब-टाइटल के साथ अपने निजी बैनर फैंटम के तले रिलीज किया है. मैं व्यक्तिगत तौर पर उनका शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने परदेसी को हमारे बीच लाने का निर्णय लिया, हमारा परिचय बाला जैसे बेहतरीन निर्देशक से करवाया.
एक अच्छी फिल्म की विशेषता होती है कि भाषा चाहे कोई भी हो, वह अपने दर्शक से संबंध स्थापित कर लेती है. परदेसी इस मापदंड पर खरी उतरती है. तमिल में बोलते इसके पात्र आपके दिल से कुछ ही पलों में रिश्ता जोड़ लेते हैं. रासा (अद्र्धव) की नटखट शरारतें आपको आनंदित करती हैैं, तो अन्गम्मा (वेदिका) की रासा से छेडख़ानियां आपको रिझाती हैं. सामाजिक विरोधाभास के बीच दोनों के बीच पनपते प्यार के आप पक्षधर बन जाते हैं. रोजगार के लिए जब रासा अपने प्यार से विदा लेता है, तो आपका दिल भर आता है. परतंत्र भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिस्थितियों को परदेसी बिना किसी प्रयास के उद्घाटित करती चलती है. यह बाला के लेखन-निर्देशन का कमाल है.
एक अच्छी फिल्म की विशेषता होती है कि भाषा चाहे कोई भी हो, वह अपने दर्शक से संबंध स्थापित कर लेती है. परदेसी इस मापदंड पर खरी उतरती है. तमिल में बोलते इसके पात्र आपके दिल से कुछ ही पलों में रिश्ता जोड़ लेते हैं. रासा (अद्र्धव) की नटखट शरारतें आपको आनंदित करती हैैं, तो अन्गम्मा (वेदिका) की रासा से छेडख़ानियां आपको रिझाती हैं. सामाजिक विरोधाभास के बीच दोनों के बीच पनपते प्यार के आप पक्षधर बन जाते हैं. रोजगार के लिए जब रासा अपने प्यार से विदा लेता है, तो आपका दिल भर आता है. परतंत्र भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिस्थितियों को परदेसी बिना किसी प्रयास के उद्घाटित करती चलती है. यह बाला के लेखन-निर्देशन का कमाल है.
इंटरवल के लिए बाला ने एक ह्दय विदारक दृश्य का चुनाव किया है. जमीन पर तड़पता एक असहाय मजदूर खुद से जबरन दूर ले जायी जा रही अपनी पत्नी की ओर हाथ उठाता है और आपका दिल धक से कर जाता है. इंटरवल के बाद कहानी क्या करवट लेगी, इसका हिंट निर्देशक ने इस एक दर्दनाक दृश्य में दे दिया है. रासा की जिंदगी चाय के बागान में हमेशा के लिए कैद हो जाती है. वह अपनी अन्गम्मा के पास लौटने के लिए तड़पता है, गिड़गिड़ाता है, बगावत करता है, लेकिन बेबस महसूस करता है. मैं क्लाइमेक्स का उद्घाटन नहीं करना चाहता, लेकिन इतना जरूर दावे के साथ कहना चाहता हूं कि इसका अंंत आपको अंदर तक झकझोर कर रख देगा. आप रासा-अन्गम्मा और उनके बच्चे के लिए तड़प कर रह जाते हैं.
(परदेसी के एक दृश्य में अद्र्धव )
बाला अपने कलाकारों से उनके जीवन का बेहतरीन काम निकलवाने के लिए प्रसिद्ध हैं. मुझे नहीं पता कि अद्र्धव, वेदिका और धंसिका ने पहले किस तरह का काम किया है, लेकिन परदेसी में उनका काम देखने के बाद मैं उनका प्रशंसक बन गया, हमेशा के लिए. उन दो सौ जूनियर कलाकारों के अभिनय की भी तारीफ करनी होगी, जिन्होंने पृष्ठभूमि में रहकर इस फिल्म को मजबूत बनाया है. अपने पहले ही फ्रेम में बाला ने एक खास स्टाइल में बनी झोपडिय़ों और उनके रहन-सहन को स्थापित कर आपको उनकी दुनिया में पहुंचा दिया है. इस फिल्म के सेट, साज-सज्जा और परिधान उभरकर सामने आते हैं. जी वी प्रकाश का संगीत आपको उल्लास, दुख, विछोह आदि भावनाओं में सराबोर करता रहता है.
(अनुराग कश्यप)
मैंने परदेसी को खूब एंजॉय किया. हालांकि मुझे तमिल भाषा नहीं आती. काश! अनुराग इसे हिंदी में डब करते, तो यह अधिक दर्शकों के बीच पहुंच जाती. बहरहाल, अनुराग कश्यप ने तो इसे हमारे बीच लाकर अपना फर्ज निभा दिया है. अब हमारा कत्र्तव्य है कि हम इसे थिएटर में जाकर देखें और उनका तथा हिंदुस्तान के किसी कोने में बैठे ऐसे साहसिक सिनेमा बनाने वाले फिल्मकार की हौसलाअफजाई करें. वैसे, बता दें कि यह फिल्म इस वर्ष के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में से बेस्ट कॉस्ट्यूम का पुरस्कार झटकने में सफल हो गई है. बधाई बाला और अनुराग कश्यप!
मैंने परदेसी को खूब एंजॉय किया. हालांकि मुझे तमिल भाषा नहीं आती. काश! अनुराग इसे हिंदी में डब करते, तो यह अधिक दर्शकों के बीच पहुंच जाती. बहरहाल, अनुराग कश्यप ने तो इसे हमारे बीच लाकर अपना फर्ज निभा दिया है. अब हमारा कत्र्तव्य है कि हम इसे थिएटर में जाकर देखें और उनका तथा हिंदुस्तान के किसी कोने में बैठे ऐसे साहसिक सिनेमा बनाने वाले फिल्मकार की हौसलाअफजाई करें. वैसे, बता दें कि यह फिल्म इस वर्ष के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में से बेस्ट कॉस्ट्यूम का पुरस्कार झटकने में सफल हो गई है. बधाई बाला और अनुराग कश्यप!
-रघुवेन्द्र सिंह
4 comments:
Very good review. I have never expected Bala movie reaching Hindi audience. Appreciate Anurag's effort distributing Paradesi.
Btw, Bala is a legend. You should watch his previous movie, Naan Kadavul ( I am the God ), He used to portray the ignored characters in the society and their perspectives. His first film Sedhu in 1999 had entirely changed Tamil cinema industry. His entry has killed the heroism centered movies. His success has encouraged many new comers with experimental cinemas.
Very good review. I have never expected Bala movie reaching Hindi audience. Appreciate Anurag's effort distributing Paradesi.
Btw, Bala is a legend. You should watch his previous movie, Naan Kadavul ( I am the God ), He used to portray the ignored characters in the society and their perspectives. His first film Sedhu in 1999 had entirely changed Tamil cinema industry. His entry has killed the heroism centered movies. His success has encouraged many new comers with experimental cinemas.
film dekhe na dekhe apne uska pura chitran kar diya.
best blog
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