Tuesday, December 30, 2008

विवादों से दूर रहती हूं: तनुश्री दत्ता/मुलाकात

-रघुवेंद्र सिंह
अब तनुश्री दत्ता अपनी ग्लैमरस छवि के विपरीत गंभीर स्वभाव के रोल में ज्यादा रुचि ले रही हैं। वे जानी-मानी अभिनेत्री स्मिता पाटिल के नक्शेकदम पर चलने का जोखिम उठाना चाहती हैं। तनुश्री कहती हैं, लोग मुझे ग्लैमरस ऐक्ट्रेस की संज्ञा देते हैं। मुझे उस पहचान से कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन अब मैं कुछ नया काम भी करना चाहती हूं। दरअसल, अब मैं स्मिता पाटिल जैसा काम करके लोगों में अपनी नई पहचान बनाना चाहती हूं। मुझे पता है कि उनके जैसा काम करना मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी, लेकिन मैं उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हूं।
पूर्व मिस इंडिया तनुश्री दत्ता के बारे में कहा जाता है कि वे सिर्फ अपनी खूबसूरती की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में टिकी हैं। उन्हें अभिनय नहीं आता। यही वजह है कि अब तक उन्हें कोई दमदार भूमिका वाली फिल्म नहीं मिली है। फिल्मकार उन्हें आइटम सॉन्ग या फिर हल्की-फुल्की भूमिकाओं के लिए ही याद करते हैं। तनुश्री दत्ता इन आरोपों को खारिज करती हैं, मेरी पहली फिल्म आशिक बनाया आपने सुपरहिट हुई थी। उसके बाद मुझे मेरे काम की वजह से ही फिल्मकारों ने साइन किया। मैंने अपनी हरेक फिल्म में मेहनत से काम किया। बदकिस्मती से वे फिल्में नहीं चलीं, तो उनकी असफलता का दोष मुझ पर क्यों थोपा जा रहा है?
तनुश्री अपना पक्ष रखते हुए आगे कहती हैं, मेरी नई फिल्म रामा-द सेवियर है। इसमें मैंने दमदार ऐक्शन सीन किए हैं। मैंने फिल्म में अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाने के लिए ताइक्वांडो और कराटे का प्रशिक्षण भी लिया है। मेरे शरीर के कई हिस्सों पर चोटें भी आई। यदि यह फिल्म नहीं चलती है, तो क्या उसके लिए मैं दोषी हो सकती हूं? मुझे ऐक्टिंग आती है, यह साबित करने की जरूरत नहीं है और यदि मैं खूबसूरत हूं, तो लोगों को शिकायत क्यों है? तनुश्री को उनके करीबी तनु कहकर बुलाते हैं। वे बहुत खुशमिजाज, एनर्जेटिक और मिलनसार स्वभाव की हैं, बावजूद इसके वे अक्सर किसी न किसी विवाद में फंस ही जाती हैं। कुछ समय पहले वे नाना पाटेकर के साथ हुई नोकझोंक की वजह से सुर्खियों में आई, लेकिन अब वे उन पलों को याद नहीं करना चाहती हैं। तनु कहती हैं, नाना के साथ लड़ाई करके मुझे लाभ अधिक हुआ है। मुझे पहले की अपेक्षा अधिक फिल्मों के प्रस्ताव मिले। हालांकि वे पल बहुत बुरे थे। मेरा अनुभव कहता है कि विवाद से लाभ और हानि दोनों संभव हैं। इसलिए यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उसका कैसे इस्तेमाल करती हैं? वैसे, अब मैं विवादों से दूर रहने की कोशिश कर रही हूं।
तनुश्री दत्ता नई फिल्म रामा-द सेवियर में एक ऐसी लड़की की भूमिका निभा रही हैं, जो सब कुछ कर सकती है। वे बताती हैं, यह ऐक्शन-एडवेंचरस फिल्म है। मैं इसमें फैंटेसी कैरेक्टर निभा रही हूं। मैं फिल्म में हवा में उड़ती हुई दिखूंगी। मैंने इसमें खूब ऐक्शन और स्टंट सीन किए हैं। काफी समय से मैं ऐसा रोल करना चाहती थी। इस फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित हूं। इसके प्रदर्शन का उत्सुकता से इंतजार भी कर रही हूं। मेरे लिए फिल्म का अनुभव अविस्मरणीय है। इसमें मेरे अपोजिट साहिल खान हैं। उम्मीद है, फिल्म को लोग खूब पसंद करेंगे।
तनुश्री अपनी पिछली फिल्मों की असफलता के बाद अब सजग हो गई हैं। उल्लेखनीय है कि उनकी आखिरी प्रदर्शित फिल्म सास बहू और सेंसेक्स थी, जो फ्लॉप हुई। लगातार असफलता मिलने के कारण अब वे फिल्मों का चयन बहुत सोच-समझकर कर रही हैं। तनुश्री कहती हैं, मुझे फिल्मों की स्क्रिप्ट अच्छी लगती है, तभी हां कहती हूं। यह अलग बात है कि कुछ फिल्में हमें अच्छी लगती हैं, लेकिन वे दर्शकों को नहीं पसंद आती हैं। मैं अपनी प्रत्येक फिल्म से ग्रो कर रही हूं और ऐसा मुझे प्रतीत भी हो रहा है। वैसे, मैं अभी नई हूं। मेरे पास लंबा सफर तय करने के लिए काफी समय है।

Saturday, December 27, 2008

मेरा रवैया, मेरा नजरिया.. 27 दिसंबर पर विशेष

सलमान के जन्मदिन, 27 दिसंबर पर विशेष..
लमान खान स्वयं को अति संवेदनशील और साफ दिल इनसान मानते हैं। दरअसल, वे हमेशा अपने दिल की सुनते हैं और दिल से ही जिंदगी जीते हैं। अपनी जिंदगी के फैसले वे दिमाग से नहीं, दिल से लेते हैं। अपने जन्मदिन 27 दिसंबर के मौके पर सलमान पाठकों को जीवन के प्रति अपने रवैये और अपने नजरिए से अवगत करा रहे हैं इस मुलाकात में।
नहीं चाहता, कोई करीब से जाने
मैं इनसान हूं। सबकी तरह मेरे लिए भी मेरा परिवार, रिश्तेदार, दोस्त और काम प्राथमिक हैं। मैं अच्छा बेटा, चहेता ऐक्टर और एक नेक इनसान हूं, ऐसा लोग कहते हैं। मेरे दोनों कुत्ते माइसन और माइजान मेरी जिंदगी में विशेष मायने रखते हैं। फुर्सत के वक्त मैं पेंटिंग करता हूं और यही मेरी छोटी-सी दुनिया है। हालांकि मेरे बारे में ज्यादातर लोगों की धारणा निगेटिव है। मुझे इस बात की कोई शिकायत नहीं है। मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे करीब से जाने।
प्यार और प्रशंसा पाने के लिए नसीब चाहिए
मैंने अब यह सोचना छोड़ दिया है कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं? लोगों की शिकायतों को अब मैं गंभीरता से नहीं लेता। मेरा मानना है कि प्यार और प्रशंसा के लिए भी नसीब चाहिए होता है। यह सच है कि मैं देर से फिल्मों के सेट पर जाता हूं, लेकिन मैं अपनी यह आदत बदल नहीं सकता। लोग मेरे बारे में उल्टा-सीधा लिखते रहते हैं। मैं उस तरफ भी ध्यान नहीं देता। ऐसा करने से उनकी टीआरपी, अखबार और मैगजीन की बिक्री बढ़ती है।
रोमैन्टिक नहीं हूं
मैं स्क्रीन पर बहुत सहज तरीके से रोमांस करता हुआ दिखता हूं। मैं निजी जीवन में भी ऐसा ही हूं। मेरी मित्र कैटरीना कैफ कहती हैं कि मैं अनरोमैन्टिक हूं। इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। मैं फिल्म देखने जाता हूं, तो लोग फिल्म छोड़कर मुझे देखने लगते हैं। डिनर के लिए जाता हूं, लोग अपना खाना छोड़कर मेरी थाली में झांकने लगते हैं कि मैं क्या खा रहा हूं! यही वजह है कि मैं वैन या फिर घर में फिल्में देखता हूं और घर पर ही डिनर करता हूं। वैसे, मैं रोमैन्टिक भी हूं।
शादी अभी नहीं कर सकता
मेरी शादी की फिक्र मुझसे अधिक दुनिया को है। मैं यह जानता हूं, लेकिन अभी शादी नहीं कर सकता। शादी बहुत जिम्मेदारी का काम है और मैं अभी यह जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं हूं। इस मामले में कैटरीना का नाम कई बार मेरे साथ जोड़ा गया है। स्पष्ट कर दूं कि कैटरीना बस मेरी अच्छी मित्र है। मैं जिस दिन शादी करूंगा, सारी दुनिया को बता दूंगा।
किसी से कोई शिकायत नहीं : मैं खुदा की दी हुई खूबसूरत जिंदगी से बहुत खुश हूं। मुझे खुदा से कोई गिला-शिकवा नहीं है और न ही किसी इनसान से है। मैं दिल से जिंदगी जीता हूं। यही वजह है कि मैं रात को चैन की नींद सोता हूं। मुझे जिंदगी के किसी फैसले पर पछतावा नहीं है। मैं ऐसा ही हूं और हमेशा ऐसा ही रहूंगा।
-रघुवेंद्र सिंह

सलमान गोवा में मनाएंगे जन्मदिन | खबर

मुंबई। सलमान खान अपना 43वां जन्मदिन लोकप्रिय पर्यटन स्थल गोवा में सेलीब्रेट करेंगे। शुक्रवार की शाम वे अपने खास दोस्तों के साथ मुंबई से गोवा के लिए रवाना हो रहे हैं। ज्ञात हो, 27 दिसंबर यानी कल सलमान खान का जन्मदिन है। सलमान खान के एक करीबी दोस्त के मुताबिक, आज शाम सलमान भाई अपने खास दोस्तों के साथ गोवा रवाना हो रहे हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के तकरीबन डेढ़ सौ लोग वहां उनके जन्मदिन के अवसर पर एकत्रित हो रहे हैं। वहां शानदार पार्टी का आयोजन किया जा रहा है। हालांकि कैटरीना उनके जन्मदिन के खास अवसर पर उनके साथ नहीं होंगी। वे इस वक्त लंदन में अपने परिवार के साथ हैं। वे न्यू ईयर सेलीब्रेट करने के बाद मुंबई लौटेंगी। कैटरीना की हमशक्ल जरीन खान सलमान की जन्मदिन पार्टी में शिरकत कर रही हैं, जो फिल्म वीर में उनके अपोजिट काम कर रही हैं।
सलमान खान के प्रवक्ता आलोक माथुर ने खबर की पुष्टि की। उन्होंने कहा, सच है कि शुक्रवार की शाम सलमान अपना जन्मदिन सेलीब्रेट करने के लिए गोवा जा रहे हैं। वे नया साल भी वहीं सेलीब्रेट करेंगे। उनके दोस्त उनकी जन्मदिन पार्टी में शिरकत कर रहे हैं। हालांकि परिवार का कोई सदस्य गोवा नहीं जा रहा है।
-रघुवेंद्र सिंह

कल किसने देखा में अभिषेक करेंगे गेस्ट अपियरेंस | खबर

मुंबई। अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान के बाद अब अभिषेक बच्चन भी वाशु भगनानी की फिल्म कल किसने देखा में एक मेहमान भूमिका में नजर आएंगे। वे इस फिल्म में स्वयं की भूमिका में होंगे। ज्ञात हो, विवेक शर्मा के निर्देशन में बन रही इस फिल्म से निर्माता वाशु भगनानी के बेटे जैकी भगनानी एक्टिंग में डेब्यू कर रहे हैं। विवेक शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया, मैं बहुत खुश हूं कि अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान के बाद अब अभिषेक बच्चन ने भी मेरी फिल्म में मेहमान भूमिका के लिए हामी भर दी है। जनवरी माह में हम अभिषेक बच्चन के साथ न्यूजीलैंड में शूटिंग करने जा रहे हैं। वे जैकी भगनानी पर फिल्माए जा रहे गाने में स्टार अभिषेक बच्चन की भूमिका में दिखेंगे। उनके अतिरिक्त कुछ अन्य लोकप्रिय कलाकार भी हमारी फिल्म में नजर आएंगे। उनके नाम का खुलासा हम अभी नहीं कर सकते। वे दर्शकों के लिए सरप्राइज होंगे।
-रघुवेंद्र सिंह

Monday, December 22, 2008

फिर गुलजार हुए ताज व ट्राइडेंट

अजय ब्रह्मात्मज/रघुवेंद्र सिंह
मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी पर हमले के 25 दिन बाद अरब सागर के किनारे स्थित दो पांच सितारा होटल ताज और ट्राइडेंट रविवार को फिर गुलजार हो उठे। ट्राइडेंट ने सभी के लिए अपने द्वार खोले तो ताज ने निमंत्रित और चुनिंदा मेहमानों का स्वागत किया। हालांकि दोनों ही होटलों के माहौल में उदासी पसरी थी। लेकिन, जोश और उत्साह का अंदरूनी संचार भी महसूस किया जा सकता था। ताज का गुंबद सचमुच देश का गुमान साबित हुआ और ट्राइडेंट के टावर ने जतला दिया कि हम आतंकी हमलों से सहमे नहीं हैं। क्रिसमस से ठीक चार दिन पहले दोनों होटलों ने देश-विदेश के मेहमानों के लिए अपने द्वार खोल दिए। ताज के पास जमा भीड़ और ट्राइडेंट में चल रही आवाजाही से लग ही नहीं रहा था कि पिछले महीने इन जगहों पर साठ घंटे तक गोलियां बरसती रही थीं। रविवार के दिन यूं भी गेटवे आफ इंडिया पर सप्ताह के बाकी दिनों से ज्यादा भीड़ रहती है। ताज के फिर से खुलने की सूचना ने लोगों की उत्सुकता बढ़ा दी थी।
ताज में एक स्मृति सभा का भी आयोजन किया गया। इस सभा में ताज होटल में आतंकी हमले का शिकार हुए 31 लोगों को याद किया गया। इस मौके पर जयदेव बघेल निर्मित जीवनवृक्ष स्मृतिचिह्न समर्पित किया गया। सभी 31 व्यक्तियों के नाम इसकी नींव में लिखे जाएंगे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने यहां कहा, मेरे लिए यह एक तरफ दुख का विषय है कि यहां आतंकी हमले में इतनी जानें गईं। वहीं, आज इस बात का गर्व और खुशी भी है कि ताज और ट्राइडेंट के प्रबंधन ने इतनी जल्दी होटल खोल कर मुंबइया जोश दिखाया। ताज के मालिक और टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने होटल के प्रवेश द्वार के बाहर मीडिया को संबोधित किया। उन्होंने कहा, होटल खुलने से आतंकियों को यह संदेश जाता है कि हम फिर उठ खड़े हुए हैं। हम घायल हो सकते हैं लेकिन गिर नहीं सकते। हमारे लिए यह यादगार दिन है। यह मुंबई शहर की एकजुटता और हमेशा सक्रिय रहने के जज्बे को दिखाता है। उन्होंने बताया कि ताज हेरिटेज को भी जल्द खोल दिया जाएगा। इस मौके पर अभिनेता राहुल बोस और लेखिका शोभा डे ने भी मीडिया को संबोधित किया। ताज के सूत्रों ने बताया कि होटल के सारे रेस्तरां एक दिन पहले ही बुक हो गए थे और ताज टावर के 286 में से 150 कमरे रिजर्व हो चुके हैं।

दोपहर में ओबेराय ग्रुप के ट्राइडेंट होटल में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। ट्राइडेंट की लाबी में आयोजित इस सभा में मुख्यमंत्री चव्हाण और उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल ने भी हिस्सा लिया। ट्राइडेंट के स्टाफ ने सभी मेहमानों का गुलाबी गुलाब से स्वागत किया। गुलाब के साथ एक कार्ड भी था, जिस पर सत्य साई बाबा के उद्धरण थे। इन पर लिखा था, जीवन एक चुनौती है, उसका मुकाबला करो। जीवन एक सपना है, उसे हासिल करो। जीवन एक खेल है, उसे खेलो। और, जीवन एक प्रेम है, उसका आनंद उठाओ। मरीन ड्राइव के एक छोर पर स्थित ट्राइडेंट की लाबी फिर चमक उठी है। हालांकि अंदर अभी भी होटल की साज-सज्जा का काम चल रहा है। ट्राइडेंट से सटे द ओबेराय को मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार होने में अभी कुछ और वक्त लगेगा। ट्राइडेंट के रिसेप्शन पर कार्यरत निर्मल ने कहा, आज आने वाले मेहमानों की संख्या बहुत कम है लेकिन हमारे लिए उत्साहजनक है। जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है। लोगों का जज्बा हमें प्रेरित कर रहा है।

Friday, December 19, 2008

काश! वो दिन फिर आ जाएं/आफताब शिवदासानी/बचपन

अभिनेता आफताब शिवदासानी का बचपन 'लाइट, कैमरा एंड एक्शन' सुनते हुए गुजरा है। मात्र चौदह माह की नन्ही उम्र से वे एक्टिंग में सक्रिय हो गए थे। उनकी नादान हरकतों की वजह से सेट पर अक्सर मुसीबत खड़ी हो जाया करती थी, लेकिन वे अपनी मासूम मुस्कुराहट से सबका दिल जीत लेते थे। बचपन की खंट्टी-मीठी यादों को पाठकों से बांट रहे हैं आफताब-
[सबका दुलारा था]
मैं छुटपन में सबका दुलारा था। सब लोग मुझे गोद में उठाकर प्यार करना चाहते थे। मैं शरारती भी बहुत था, लेकिन मुझे कभी मार नहीं पड़ी। दरअसल, मैं इतना मासूम लगता था कि हर कोई मुझ पर फिदा हो जाता था। मेरी मासूम मुस्कुराहट सबके गुस्से को ठंडा कर देती थी। मैं आज जितना स्मार्ट दिखता हूं, उससे कहीं अधिक मैं बचपन में आकर्षक था। यही वजह है कि मुझे नन्हीं उम्र में कैमरे के सामने आने का सुनहरा मौका मिला।
[तेज था पढ़ने में]
मैं पढ़ने में शुरू से तेज था। मैंने हर कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। इतिहास मेरा पसंदीदा विषय था। मेरी गिनती सेंट जेवियर्स हाईस्कूल के होनहार छात्रों में की जाती थी। मम्मी-पापा और टीचर मुझसे हमेशा खुश रहते थे। मैं अपने स्कूल का सबसे शरारती छात्र भी था। एक वाकया मैं आज तक नहीं भूला हूं। स्कूल में एक बूढ़े टीचर थे। मैं उनकी क्लास हमेशा बंक करता था, लेकिन उन्होंने कभी पैरेंट्स से मेरी शिकायत नहीं की। दरअसल, मैं उनकी कक्षा का सबसे तेज छात्र भी था।
[पसंदीदा खेल था क्रिकेट]
मैं पढ़ने के साथ-साथ खेलने में भी तेज था। मम्मी-पापा ने मुझे खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। क्रिकेट मेरा पसंदीदा खेल था। जैसे ही फुरसत मिलती, मैं दोस्तों को एकत्रित करके क्रिकेट खेलने लगता था। मैं बैडमिंटन, स्नूकर और स्क्वैश भी खूब खेलता था। मुझे स्कूल में ऑलराउंडर कहकर बुलाया जाता था। क्रिकेट के प्रति मेरी दीवानगी आज भी कम नहीं हुई है।
[रुझान न था एक्टिंग में]
मैं बचपन में एक्टिंग के प्रति जरा भी गंभीर नहीं था। सच कहूं तो एक्टिंग में मेरा दिल ही नहीं लगता था। मैंने एक्टिंग को कॅरियर के तौर पर अपनाने के बारे में भी सोचा नहीं था, लेकिन बचपन से कैमरा फेस करते-करते मुझे कैमरा से लगाव हो गया। बाद में मैंने महसूस किया कि एक्टिंग ही एकमात्र ऐसा काम है, जिसे मैं आसानी से कर सकता हूं। फिर मैंने तय किया कि मुझे एक्टिंग में ही अपना भविष्य संवारना है।
[मिस करता हूं बचपन]
मैं अपने बचपन को बहुत मिस करता हूं। उससे अधिक बचपन की मासूमियत और शरारतों को मिस करता हूं। आज मेरे लिए सब कुछ बदल चुका है। मैं सेलीब्रिटी हूं। मेरी जिंदगी खुली किताब है। मेरी कोई प्राइवेसी नहीं है। बचपन में इन बातों की फ्रिक नहीं होती थी। जो दिल कहता था, सब कर लेते थे। आज मेरे पास सब कुछ है, सिवाय बीते बचपन के!
[रघुवेंद्र सिंह]

Thursday, December 18, 2008

फटे कपड़े पहन, लाठी थामेंगे अभिषेक | खबर

मुंबई। प्रसिद्ध फिल्मकार मणिरत्नम की नई फिल्म रावण में अभिषेक बच्चन दाढ़ी-मूंछ बढ़ाए, फटा-पुराना काला चद्दर ओढ़े, हाथ में लाठी लिए जंगल में जानवरों के बीच दिखेंगे। अभिषेक को इस तरह की भूमिका में दुनिया पहली बार देखेगी।
यूनिट के एक सदस्य के मुताबिक, मणिरत्नम की फिल्म रावण का पौराणिक महाकाव्य रामायण से कोई नाता नहीं है। यह अलग किस्म की फिल्म है। अभिषेक बच्चन एवं रवि किशन फिल्म में बहुत दिलचस्प भूमिका में हैं। मणिरत्नम की मांग पर अभिषेक ने अपनी भूमिका के लिए काफी वजन घटाया है। उनके किरदार का नाम मितरिन है। उन्होंने अपनी दाढ़ी एवं मूंछ भी बढ़ायी है। उनका लुक अनोखा है। शूटिंग के दौरान उन्हें अधिक मेकअप नहीं लगाया जाता, क्योंकि उन्हें सांवला दिखाया गया है। अभिषेक की फिल्म में खास बॉडी लैंग्वेज है। उनके चलने-फिरने, उठने-बैठने एवं बातचीत करने का तरीका बहुत अनूठा है।
उल्लेखनीय है, गुरू की सफलता के बाद मणि रत्नम अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन को रावण में एक बार फिर साथ पेश कर रहे हैं। उनके अलावा फिल्म में गोविंदा, रवि किशन एवं साउथ के कलाकार विक्रम मुख्य भूमिका में हैं। अभिनेता रवि किशन कहते हैं, मैं और अभिषेक फिल्म में छोटी जाति के युवक की चुनौतीपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। हमें अपनी भूमिकाओं के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। अभी हम केरल के जंगल में शूटिंग कर रहे हैं। मणि सर कुछ दृश्यों की शूटिंग ऊटी और भोपाल में भी करेंगे। मार्च माह तक फिल्म की शूटिंग पूरी हो जाएगी। बता दें, रावण की शूटिंग हिंदी के अलावा तमिल में भी साथ-साथ की जा रही है।
-रघुवेंद्र सिंह

नहीं बनेगी रॉक ऑन टू | खबर

मुंबई। वर्ष 2008 की अत्यंत लोकप्रिय फिल्म रॉक ऑन का सिक्वल बनने की संभावना से निर्माता रितेश सिधवानी ने इंकार किया है।
यहां बुधवार की शाम रॉक ऑन की डीवीडी लांच के मौके पर रितेश ने रॉक ऑन टू के निर्माण की खबर को अफवाह करार देते हुए कहा, पता नहीं किसने रॉक ऑन टू के निर्माण की अफवाह फैला दी है। रॉक ऑन का सीक्वल बनाने की हमारी कोई योजना नहीं है। हमें खुशी है कि दर्शकों ने रॉक ऑन को पसंद किया और इसे साल 2008 की अत्यंत सफल फिल्म बनाया। अब हमारी योजना दर्शकों को रॉक ऑन से अलग फिल्म देने की है। हमारी अगली फिल्म जोया अख्तर निर्देशित लक बाई चांस है। उम्मीद है, दर्शक उस फिल्म को भी रॉक ऑन जैसा ही प्यार देंगे। उल्लेखनीय है, अभिषेक कपूर निर्देशित रॉक ऑन से फरहान अख्तर ने अभिनय एवं गायकी में सफलतापूर्वक कदम रखा। चार दोस्तों की कहानी पर बनी इस फिल्म में फरहान के साथ प्राची देसाई, अर्जुन रामपाल, पूरब कोहली एवं ल्यूक केनी प्रमुख भूमिका में थे।
-रघुवेंद्र सिंह

Wednesday, December 17, 2008

सांप और जोंक से परेशान ऐश्वर्या राय | खबर

मुंबई। अमिताभ बच्चन की नाजुक बहू ऐश्वर्या राय बच्चन आजकल केरल के जंगलों में पति अभिषेक के साथ जीवन के अतिभयावह अनुभवों से गुजर रही हैं। मणिरत्नम की नई फिल्म रावण की शूटिंग करते समय उन्हें वहां सांपों और जोंकों का सामना करना पड़ रहा है।
एक यूनिट सदस्य के अनुसार, मणिरत्नम प्रत्येक दिन भोर में साढ़े तीन बजे सबको उठा देते हैं। होटल से तकरीबन दो घंटे का सफर तय करने के बाद सभी कलाकार अंधेरा छंटने तक जंगल के अंदर पहुंच जाते हैं। फिर सबको शूटिंग स्थल पर पहुंचने के लिए तकरीबन डेढ़ कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। वहां जंगली जानवरों के अलावा सांप और जोंक का डर बना रहता है। ऐश्वर्या सबसे अधिक डरी रहती हैं। अभी हाल में उन्हें एक दिन ढ़ेर सारी जोंकों ने पकड़ लिया था। वे जोर-जोर से चिल्लाने लगीं। उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। अभिषेक एवं मणिरत्नम ने उन्हें हिम्मत बंधाई। ऐश्वर्या कहती हैं कि ये उनके जीवन के सबसे भयावह क्षण हैं। वे रावण की शूटिंग का अनुभव कभी नहीं भूलेंगी।
रावण में अभिषेक बच्चन के छोटे भाई की भूमिका निभा रहे अभिनेता रवि किशन कहते हैं कि वहां जंगल में शूटिंग के दौरान सांप और जोंक का लोगों को परेशान करना आम बात हो गई है। ये सच है कि ऐश्वर्या को जोंक ने पकड़ लिया था। उनके पैर खून से लाल हो गए थे, लेकिन वे बहादुर महिला हैं। मणि सर ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। रावण की शूटिंग का अनुभव फिल्म से जुड़े हर शख्स के लिए अविस्मरणीय है।
-रघुवेंद्र सिंह

Tuesday, December 16, 2008

केतन मेहता ने लांच की रंग रसिया आर्ट प्रतियोगिता | खबर

मुंबई। फिल्मकार केतन मेहता ने सोमवार की शाम यहां अपनी नई फिल्म रंग रसिया की थीम पर केंद्रित रंग रसिया-फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन आर्ट प्रतियोगिता की घोषणा की।
इस प्रतियोगिता मेंदेश भर के स्थापित एवं नए कलाकार हिस्सा ले सकते हैं। केतन मेहता ने बताया, मेरी फिल्म रंग रसिया 19वीं शताब्दी के प्रतिष्ठित भारतीय पेंटर राजा रवि वर्मा के जीवन पर आधारित है। उनकी सोच, कला और दूरगामी दृष्टिकोण को 21वीं शताब्दी के नए कलाकारों तक पहुंचाने के उद्देश्य से फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन आर्ट प्रतियोगिता लांच की गई है। फिल्म की वेबसाइट रंगरसिया डाट काम में एन्ट्री करके देश का कोई भी व्यक्ति हिस्सा ले सकता है। इस प्रतियोगिता के विजेता को आगामी 15 मार्च को एक भव्य कार्यक्रम में 25 लाख रूपए की राशि प्रदान की जाएगी।
उल्लेखनीय है, केतन मेहता, भवानी भवाई, मिर्च मसाला, माया मेमसाब, सरदार और मंगल पांडे जैसी चर्चित फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। उनकी नई फिल्म रंग रसिया में रणदीप हुडा और नंदना सेन प्रमुख भूमिका में हैं। यह फिल्म अब तक लंदन फिल्म समारोह एवं न्यूयार्क फिल्म समारोह जैसे अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में खूब सराहना बटोर चुकी है। केतन मेहता के मुताबिक आगामी जनवरी माह में यह फिल्म भारत में प्रदर्शित होगी।
-रघुवेंद्र सिंह

Monday, December 15, 2008

स्कूल लौटने का मन करता है: फरहान अख्तर/बचपन

फरहान अख्तर सुप्रसिद्ध लेखक जावेद अख्तर और अभिनेत्री हनी ईरानी के बेटे हैं। फरहान का बचपन मुंबई में गुजरा है। वे फिल्म इंडस्ट्री के गलियारों में हंसते-खेलते बड़े हुए। आज उनकी पहचान दूरदर्शी निर्माता, सुलझे निर्देशक और दमदार अभिनेता की है। वे अपने बचपन की सुनहरी यादों को पाठकों के साथ शेयर कर रहे हैं-
[मासूमियत का मिलता था फायदा]
मैं मुंबई के बांद्रा इलाके में पला-बढ़ा हूं। मेरा पूरा बचपन वहीं गुजरा है। मैं छुटपन में जमकर शरारतें करता था, लेकिन जैसे ही पकड़ा जाता, शांत बच्चा बन जाता था। इतना मासूम चेहरा बना लेता था कि सामने वाला डांटने से पहले सोच में पड़ जाता था। दूसरे शब्दों में कहूं तो मासूम चेहरे की वजह से मैं अधिकतर डांट खाने से बच जाया करता था। मेरी बिल्डिंग के बाहर एक ग्राउंड था। सोसायटी के सभी बच्चे वहीं खेलने आते थे। उस मैदान में मैं खूब क्रिकेट खेलता था।
[अधिक करीब रहा मां के]
मैं बचपन में मन की हर बात अपनी मां से शेयर करता था। मैं पढ़ने में औसत स्टूडेंट था। इंग्लिश लिटरेचर, ज्योग्राफी और हिस्ट्री मेरे पसंदीदा सब्जेक्ट थे। मैं स्कूल जाने से बहुत हिचकता था। हमेशा स्कूल से दूर रहने का बहाना ढूंढा करता था। इसके लिए मां मुझे बहुत डांटती थी। वे हमेशा मुझे स्कूल जाने के लिए प्रेरित करती थीं।
[अमिताभ बच्चन से प्रभावित था]
मुझे बचपन में अभिनेताओं और अभिनेत्रियों से मिलने का बहुत शौक था। पिताजी फिल्म इंडस्ट्री में थे, इसलिए मुझे बड़ी आसानी से कलाकारों से मिलने का मौका मिल जाता था। मैं बचपन में अमिताभ बच्चन से सर्वाधिक प्रभावित था। उनसे मिलने के लिए मैं सदैव लालायित रहता था। ऋषि कपूर भी उस वक्त मेरे पसंदीदा अभिनेता थे। मैं जब कभी किसी लोकप्रिय कलाकार से मिलता तो उससे मिलने की दास्तान अपने दोस्तों को विस्तार से बताता था। वे सभी खुश भी होते थे और मन ही मन मुझसे जलते भी थे।
[बहुत मिस करता हूं बचपन के दिन]
मैं अपने बचपन के बिंदास दिनों को बेहद मिस करता हूं। उन दिनों किसी बात की फिक्र नहीं होती थी, केवल मस्ती करने की फिक्र रहती थी। उस वक्त मुझे स्कूल जाना सबसे दूभर काम लगता था। उन दिनों मैं यही सोचा करता था कि हमें स्कूल क्यों भेजा जाता है, लेकिन आज अहमियत समझ में आती है। अब वापस स्कूल लौटने का मन करता है। मुझे लगता है कि बचपन हर इंसान की जिंदगी का बेस्ट पार्ट होता है।
[जिज्ञासा को रखें हमेशा बरकरार]
मैं बच्चों से कहना चाहूंगा कि वे अपने बचपन को खूब एंज्वॉय करें। दिल लगाकर पढ़ाई करें और खेलकूद में भी खुद को सक्रिय रखें। बचपन की एक खासियत होती है, जिज्ञासा। बचपन में हर वक्त नई चीजें जानने की इच्छा रहती है, लेकिन इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता है, वह तमाम डिग्रियां एकत्रित कर लेता है और खुद को बुद्धिमान समझने की भूल कर बैठता है। जिज्ञासा को हमेशा जिंदा रखना चाहिए, तभी इंसान जिंदगी में नई चीजें सीख सकता है और तरक्की कर सकता है।
-रघुवेंद्र सिंह

नई सोच के निर्देशकों का चला जादू | आलेख

कहते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नए लोगों को जल्दी अवसर नहीं मिलते, लेकिन इस साल इंडस्ट्री में आने वाले नए निर्देशकों के आंकड़े देखें, तो यह बात सच प्रतीत नहीं होती। हां, साल 2008 में इंडस्ट्री ने कुल पच्चीस नए निर्देशकों का उत्साहपूर्वक स्वागत किया। इनमें से कितने लोगों ने अपनी मौजूदगी से इंडस्ट्री को समृद्ध बनाया और वे आज सक्रिय हैं और कितने अपनी पहली फिल्म के बाद अदृश्य हो गए। आइए डालते हैं एक नजर..।
नई सोच के फिल्मकार
सिनेमा के क्षेत्र में नई सोच के लोगों का बांहें फैलाकर स्वागत होता है। राजकुमार गुप्ता, अब्बास टायरवाला और तरुण मनसुखानी ऐसे ही निर्देशक साबित हुए। राजकुमार ने आमिर, अब्बास ने जाने तू या जाने ना और तरुण ने दोस्ताना से हिंदी सिनेमा को नई दिशा और नया विषय दिया। राजकुमार और अब्बास की फिल्में कम बजट के बावजूद अपने दमदार विषय के कारण दर्शकों को लुभाने में कामयाब हुई। दूसरे शब्दों में कहें, तो इन युवा निर्देशकों ने मजबूत कहानी और अजीज चरित्रों के दम पर अपना लोहा मनवाया। तरुण की दोस्ताना दोस्तों के त्याग और समर्पण की कहानी थी, लेकिन उन्होंने उसे आधुनिक रंग में पेश किया। दोस्ताना समलैंगिक विषय वाली फिल्म थी। यह विषय भारतीय दर्शकों के लिए बिल्कुल नया था। इन फिल्मकारों ने साबित किया कि कहानी ही असली हीरो होता है, बाकी सब बाद में आते हैं।
अभिनेता बने निर्देशक
इस साल दो अभिनेता अजय देवगन और जुगल हंसराज फिल्म निर्देशन में आए। उम्मीद की जा रही थी कि ये भी आमिर खान की तरह निर्देशन में धमाकेदार तरीके से प्रवेश करेंगे। चर्चा के मामले में अजय और जुगल को जरूर कामयाबी मिली, लेकिन वे अच्छी फिल्म देने में असफल रहे। अजय ने पत्नी काजोल और स्वयं को केंद्र में रखकर यू मी और हम बनाई और जुगल ने एनिमेशन फिल्म रोडसाइड रोमियो से निर्देशन में कदम रखा। अजय अपनी फिल्म में खुद के मोहपाश में बंधे दिखे। उनमें कहानी के मुताबिक चलने के सूझ की कमी दिखी, वहीं जुगल की फिल्म स्क्रिप्ट के मामले में कमजोर साबित हुई। हां, उनकी फिल्म हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बेहतरीन एनिमेशन फिल्म जरूर बनी। इन अभिनेताओं ने स्क्रिप्ट पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। यही वजह है कि ये अच्छी फिल्म देने से चूक गए।
इनमें भी है दम
औसत बजट और सामान्य स्क्रिप्ट के बल पर भी इस साल कुछ निर्देशकों ने दर्शकों को अच्छी फिल्में दीं। इनमें भूतनाथ के निर्देशक विवेक शर्मा, जन्नत के निर्देशक कुणाल शिवदासानी, समर 2007 के निर्देशक सोहेल ततारी और एक विवाह ऐसा भी के निर्देशक कौशिक घटक का नाम शामिल है। विवेक की फिल्म भूतनाथ और कौशिक की एक विवाह ऐसा भी भारतीय संस्कारों और परंपराओं पर आधारित रही, वहीं सोहेल की फिल्म समर 2007 ने गण के बोझ से दबे किसानों के दर्द को बयां किया। कुणाल की जन्नत ने क्रिकेट में होने वाली सट्टेबाजी को रुचिकर तरीके से पेश किया। हाल में प्रदर्शित हुई फिल्म दसविदानिया के निर्देशक शशांत शाह के काम की भी सराहना हुई। इन निर्देशकों से आने वाले दिनों में अच्छे सिनेमा की उम्मीद है।
जिन्होंने दर्शकों को समझा नादान
आज के दर्शक अच्छे सिनेमा को तुरंत भांप लेते हैं। ऐसे में जिन निर्देशकों ने दर्शकों को मूर्ख समझने की भूल की, उन्हें दर्शक भी भूल गए। यह साल कुछ ऐसे निर्देशकों के आगमन का भी साक्षी बना, जिनकी पहली फिल्म दर्शक कभी देखना पसंद नहीं करेंगे। इनमें रामा रामा क्या है ड्रामा के चंद्रकांत सिंह, तुलसी के अजय कुमार, 26 जुलाई ऐट बरिस्ता के मोहन शर्मा आदि के नाम शामिल हैं। इन फिल्मों और इनके निर्देशकों के बारे में कम ही लोगों को याद होगा। अच्छा होता कि इन लोगों ने स्क्रिप्ट पर मेहनत, सही कलाकारों का चयन और सही निर्देशन किया होता। ये निर्देशक इन दिनों क्या कर रहे हैं, इस बारे में किसी को खबर नहीं है।
अभी बाकी है परीक्षा
पिछले दिनों दो नए निर्देशक अपनी पहली फिल्म लेकर दर्शकों के बीच उपस्थित हुए। इनमें सौरभ श्रीवास्तव की फिल्म ओ माई गॉड और अनिल सीनियर की दिल कबड्डी है, जबकि महिला निर्देशक मधुरिता आनंद की मेरे ख्वाबों में जो आए 19 दिसंबर को आएगी। साल के अंतिम सप्ताह में ए.आर. मुर्गदोस निर्देशित और आमिर खान अभिनीत फिल्म गजनी हिंदी फिल्मों के दर्शकों से रूबरू होगी। इस फिल्म का इंतजार लोग बेसब्री से कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि साल के अंतिम माह में प्रदर्शित होने वाली ये फिल्में इनके निर्देशकों के लिए खुशी की सौगात लेकर आएंगी।
्रफिल्मों के नाम-निर्देशक
1. तुलसी- अजय कुमार
2. रामा रामा क्या है ड्रामा- चंद्रकांत सिंह
3. कभी सोचा भी न था- कलोल सेन
4. 26 जुलाई ऐट बरिस्ता- मोहन शर्मा
5. यू मी और हम- अजय देवगन
6. क्रेजी 4- जयदीप सेन
7. भूतनाथ- विवेक शर्मा
8. जन्नत- कुणाल देशमुख
9. समर 2007- सोहेल ततारी
10. आमिर- राजकुमार गुप्ता
11. जाने तू या जाने ना- अब्बास टायरवाला
12. ए वेडनेसडे- नीरज पांडे
13. सी कंपनी- सचिन यार्दी
14. हाइजैक- कुणाल शिवदासानी
15. रूबरू- अरुण बाली
16. हल्ला- जयदीप वर्मा
17. हरी पुत्तर लकी- राजेश बजाज
18. रोडसाइड रोमियो- जुगल हंसराज
19. एक विवाह ऐसा भी- कौशिक घटक
20. दोस्ताना- तरुण मनसुखानी
21. दसविदानिया- शशांत शाह
22. ओह माई गॉड- सौरभ श्रीवास्तव
23. दिल कबड्डी- अनिल सीनियर
24. मेरे ख्वाबों में जो आए- मधुरिता आनंद
25. गजनी- ए. आर. मुर्गदोस
-रघुवेंद्र सिंह

मुन्नाभाई सीरीज पर जल्द प्रकाशित होगी पुस्तक

-रघुवेंद्र सिंह
मुंबई। राजकुमार हिरानी की लोकप्रिय फिल्में मुन्ना भाई एमबीबीएस और लगे रहो मुन्ना भाई अब जल्द ही पुस्तक के रूप में बाजारों में उपलब्ध होंगी। राजकुमार हिरानी ने बताया कि मुन्ना भाई सीरीज के बारे में लोगों की उत्सुकता को देखते हुए मैंने इन फिल्मों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का फैसला किया है।
लोग जानना चाहते हैं कि मुन्ना भाई का विचार मेरे मन में कैसे उपजा और फिर कैसे यह सीरीज आगे बढ़ रही है। मैं प्रकाशकों से बात कर रहा हूं। आगामी एक-दो माह में ये फिल्में पुस्तक के रूप में बाजार में होंगी। राजकुमार हिरानी ने आगे बताया कि इन फिल्मों की स्क्रिप्ट किताब में हू-ब-हू प्रकाशित की जाएगी। जो नए फिल्म लेखकों के लिए फायदेमंद साबित होगी।
उल्लेखनीय है, राजकुमार हिरानी आजकल आमिर खान को लेकर फिल्म थ्री इडियट्स बना रहे हैं। इसके बाद वे मुन्ना भाई सीरीज की अगली फिल्म मुन्ना भाई चले अमेरिका शुरू करेंगे। उसमें भी संजय दत्त मुन्ना भाई की मुख्य भूमिका में दिखेंगे।

Saturday, November 29, 2008

मुंबई हमला: इस तरह पूरा हुआ आपरेशन

Nov 28, 11:35 pm
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी/रघुवेंद्र सिंह]। शुक्रवार दोपहर करीब 2.30 बजे एनएसजी के मुखिया जे.के.दत्ता जब मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित होटल ट्राइडेंट-ओबेराय के मुख्य द्वार से अपने साथियों के साथ बाहर आ रहे थे तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। यह मुस्कुराहट इस बात का सुबूत थी कि करीब 40 घंटे से ओबेराय में आतंकियों के साथ चल रहा एनएसजी का संघर्ष देश की विजय में बदल चुका है।
बुधवार को देश पर सबसे बडे़ आतंकी हमले के बाद आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष की शुरुआत वास्तव में कुलाबा क्षेत्र में स्थित नरीमन हाउस से हुई थी। वहां रात करीब पौने दस बजे गोलियां चलने की आवाज सुन कर लोगों को लगा था कि इस बिल्डिंग में रहनेवाले यहूदी समुदाय में आपसी संघर्ष हो गया है। लेकिन जल्दी ही सीएसटी रेलवे स्टेशन, गेटवे आफ इंडिया के सामने स्थित होटल ताज, नरीमन प्वाइंट स्थित होटल ट्राइडेंट [पहले का नाम ओबेराय], कुलाबा के एक पब लियोपोल्ड सहित दक्षिण मुंबई की सड़कों पर भी जब गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं तो लोगों और प्रशासन को समझ में आ गया कि यह आतंकी हमला है। लेकिन यह अहसास उस समय भी नहीं हुआ था कि यह देश का अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला साबित होगा।
हमला शुरू होने के कुछ ही घंटों के अंदर मुंबई पुलिस ने दो आईपीएस अधिकारियों सहित करीब एक दर्जन पुलिसकर्मी खो दिए तो मामला गंभीर नजर आने लगा। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री राज्य से बाहर थे। गृह मंत्रालय के प्रभारी उप मुख्यमंत्री आर.आर. पाटिल थे तो मुंबई में ही, लेकिन उनकी कार्रवाई बयानों से आगे बढ़ती नजर नहीं आ रही थी। मुख्यसचिव जानी जोसेफ, एक कैबिनेट मंत्री अनीस अहमद एवं कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने रात करीब 12 बजे मंत्रालय के कंट्रोल रूम में बैठकर मुख्यमंत्री को सारी स्थिति की जानकारी दी और केंद्र से सुरक्षाबल मंगवाने का आग्रह किया। पता चला है कि इसी टीम ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को भी स्थिति की जानकारी दी और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डो को मुंबई बुलाने का मामला आगे बढ़ा।
समय न गंवाते हुए सबसे पहले भारतीय नौसेना के मरीन कमांडोज को बुलाने का निर्णय किया गया। बुधवार-वीरवार की मध्यरात्रि के बाद करीब 2.45 बजे मरीन कमांडोज ने मोर्चा संभाल लिया।
सुबह करीब चार बजे मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख केरल यात्रा अधूरी छोड़ मुंबई एयरपोर्ट से सीधे मंत्रालय स्थित कंट्रोल रूम पहुंचे। वहां इंतजार कर रहे अपने अधिकारियों के साथ जल्दी ही वह राजभवन के लिए रवाना हो गए। तब तक दिल्ली से एनएसजी कमांडों के 200 जवान मुंबई में उतर चुके थे। उनका नेतृत्व कर रहे अधिकारी भी सीधे राजभवन पहुंचे। बचाव कार्य में लगे अन्य सुरक्षाबलों एवं सेना के अधिकारियों को वहीं बुला लिया गया। हालात इतने नाजुक एवं युद्ध जैसे थे कि एनएसजी के साथ-साथ सेना के तीनों अंगों के इस्तेमाल की नौबत दिखाई दे रही थी । और निर्णय भी ऐसा ही किया गया। गुरुवार की सुबह सात बजते-बजते एनएसजी के जांबाजों को होटल ताज, ओबेराय एवं नरीमन हाउस में घुसने के आदेश दे दिए गए।
उक्त तीनों स्थानों पर एनएसजी ने मुख्य द्वार सहित अन्य सभी द्वारों को पहले कब्जे में लिया , फिर सावधानी के साथ अंदर घुसना शुरू किया। नीचे से ऊपर की ओर जाना आसान नहीं था, लेकिन कमांडो कहीं लेटकर तो कहीं छुपकर आगे बढ़ रहे थे। होटल के जो कमरे खुले पाए गए, उनमें घुसना आसान लेकिन आशंका भरा था। यही कारण है कि एक-एक कमरे की तलाशी लेकर उन पर अपना कब्जा जमाना कमांडोज के लिए समय की दृष्टि से काफी खर्चीला साबित हो रहा था। लेकिन एकमात्र सुरक्षित तरीका भी यही था। इसके साथ-साथ कमांडो टीम जिन कमरों का निरीक्षण कर लेती थी, उनमें लगे परदे हटा दिए जाते थे। ताकि बाहर खड़े अपने साथियों को संकेत दिया जा सके कि आपरेशन कहां तक पहुंचा। साथ ही, बाद में आवश्यकता पड़ने पर बाहर से भी इन कमरों के अंदर देखा जा सके। इन दोनों होटलों के ऊपरी कमरों के अंदर का दृश्य देखने के लिए तो नौसेना के हेलीकाप्टरों की भी मदद ली गई।
होटल ओबेराय में इस आंतकी घटना के गवाह रहे दिल्ली के अमित गुप्ता बताते हैं कि बुधवार रात पौने दस बजे जैसे ही उन्होंने चेक इन किया, आतंकियों ने हमला बोल दिया। उस समय वह सत्रहवीं मंजिल स्थित अपने कमरे में थे। गुरुवार सुबह करीब नौ बजे किसी ने उनका दरवाजा खटखटाया। एनएसजी ने उनके कमरे को ही अपनी कार्रवाई का केंद्र बनाकर आगे की कार्रंवाई का संचालन किया।
अमित सत्रहवीं मंजिल पर थे और अठारहवीं मंजिल पर आतंकवादी। आतंकियों ने वहां तीन महिलाओं एवं छह पुरुषों को बंधक बना रखा था, जिन्हें बाद में मार डाला। एनएसजी को सत्रहवीं से अठारहवीं मंजिल तक पहुंचने में काफी वक्त लग गया। इसके बाद की कार्रवाई बहुत मुश्किल थी। जो कमरे बंद थे और नहीं खुल रहे थे, उन्हें विस्फोट के जरिए खोला जाता था। फूंक-फूंक कर चलते हुए कमांडो टीम ने गुरुवार की रात करीब दो बजे एक आतंकी को मार गिराने में सफलता हासिल की, जबकि दूसरा आतंकी शुक्रवार सुबह पांच बजे मारा गया।
तलाशी अभियान धीरे-धीरे होटल ट्राइडेंट की 34वीं मंजिल तक ले जाया गया। लेकिन काम अभी भी खत्म नहीं हुआ था। ट्राइडेंट के बगल में ही इसी समूह का दूसरा होटल - द ओबेराय- भी है, जो ऊंचाई में उससे काफी छोटा है। कमांडो टीम ने शुक्रवार सुबह से इस होटल में अपना अभियान नीचे के बजाय ऊपर से शुरू किया और उसी प्रकार एक-एक कमरे की तलाशी लेकर उनके परदे उतारते हुए नीचे तक आए।
नरीमन हाउस
कुलाबा की घनी बस्ती में स्थित छह मंजिला इमारत - नरीमन हाउस - के बारे में कहा जाता है कि इस पर आतंकियों की बहुत पहले से नजर थी। कुछ सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि आतंकी इसी इमारत में पिछले कुछ महीनों से रह रहे थे और इसे अपने इस अभियान के मुख्य केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। स्टेट रिजर्व पुलिस ने तो इस इमारत को बुधवार की रात से ही घेर लिया था। गुरुवार की सुबह से यहां पहुंचे एनएसजी के 30 जवानों ने स्वयं को 10-10 की तीन टीमों में बांटकर बिल्डिंग में छिपे आतंकियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन कोई विशेष सफलता मिलते न देख शुक्रवार को छत के रास्ते इमारत में घुसने की रणनीति अपनाई गई। इसके लिए सी-किंग हेलीकाप्टरों की मदद ली गई। हेलीकाप्टरों के जरिए नरीमन हाउस के साथ उसके बगल की भी एक इमारत पर जवान उतारे गए, ताकि नरीमन हाउस की एक-एक मंजिल पर निगाह रखी जा सके एवं इमारत में घुस रहे अपने जवानों को कवर दिया जा सके।
छत पर उतरते ही जवानों ने नीचे उतरना शुरू कर दिया था। ऊपर से तीन मंजिलें नीचे आने तक उन्हें किसी विशेष दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन उसके बाद उनके कदम ठिठक गए, क्योंकि इसके बाद आतंकियों ने यहूदी परिवार के पांच सदस्यों को बंधक बना कर उसी कमरे में रखा था, जिसमें वे स्वयं थे। आतंकियों द्वारा रह रह कर जवानों पर गोलियां भी चलाई जा रही थीं और अंदर आने पर बंधकों को मारने की धमकी भी दी जा रही थी। जवानों को यह डर भी सता रहा था कि उनकी आक्रामक कार्रवाई में कहीं निर्दोष बंधकों की ही जान न चली जाए। लेकिन शाम पांच बजे तक भी इस स्थिति में कोई परिवर्तन होते न देख जब एनएसजी ने आतंकियों पर अपना दबाव बढ़ाया तो बचने का कोई रास्ता न देख आतंकियों ने एक-एक कर पांचों बंधकों को मार डाला। इस स्थिति का अनुमान लगते ही कमांडो फोर्स ने दूसरी बिल्डिंग में खड़े अपने साथियों से राकेट लांचर के जरिए नरीमन हाउस के उस भाग पर हमला करने को कहा, जहां उन्हें आतंकियों के होने की उम्मीद थी। ये हमला शुरू होने के बाद आतंकियों पर बाहर निकलने का दबाव बढ़ने लगा। इसके बावजूद उनके बाहर न आने पर एनएसजी द्वारा किए गए दोतरफा हमलों में सभी आतंकी मारे गए।

आतंकियों के शिकार बने आशीष चौधरी के बहन-बहनोई

-रघुवेंद्र सिंह
मुंबई। दक्षिण मुंबई के पांच सितारा होटल ट्राइडेंट में बुधवार की रात अभिनेता आशीष चौधरी की बहन मोनिका एवं उनके पति डिनर के लिए गए थे, लेकिन शुक्रवार को उनकी मृत्यु की खबर होटल से बाहर आई। तकरीबन 2.30 बजे होटल के आतंकियों से मुक्त होने की खबर के बाद आशीष अपने माता-पिता और मित्रों के साथ होटल पहुंचे। कुछ ही देर बाद सभी होटल से रोते-बिलखते निकलते दिखे। स्पष्ट हो गया था कि आशीष के साथ दुखद घटना घटी है।
आशीष के प्रवक्ता पराग देसाई ने खबर की पुष्टि की। उनके मुताबिक, वे दोनों बुधवार की रात होटल में डिनर के लिए गए थे। वे अपने आठ वर्षीय बेटे एवं पांच वर्षीय बेटी को घर छोड़ कर गए थे। शनिवार को उनका शव मिलेगा और उसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। गौर हो कि अभिनेता आशीष चौधरी फिल्म धमाल और हाल में ही फिल्म ईएमआई में नजर आए थे।

अकेले ही रहता था मस्त: रितेश

[रघुवेन्द्र सिंह]
मैं बचपन में बड़ा शर्मीला था। शरारती तो बिल्कुल नहीं था। मैं घर के एक कोने में चुपचाप अकेले बैठा रहता था। किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखता था। जब कभी बाहर जाता था तो बहुत रिजर्व रहता था। किसी से ज्यादा बात नहीं करता था। यह एक वजह है कि बचपन में मेरे बहुत ज्यादा दोस्त नहीं थे। मैं अकेले में ही मस्त रहता था। इस बात के लिए सब मुझसे शिकायत करते थे लेकिन मैं क्या करता?
पढ़ाई की बात बताऊं तो मैं जब दसवीं क्लास में था, तब पढ़ाई को लेकर बहुत ज्यादा सीरियस था। शुरू से ही सब घर में कहने लगे थे कि दसवीं और बारहवीं की परीक्षा आसान नहीं होती है। मैं डर के मारे बहुत पढ़ाई करता था। पापा इस मामले में उतने ज्यादा सख्त नहीं थे। उन्होंने आज तक मुझे कभी डांटा तक नहीं है। हां, मम्मी पढ़ाई के मामले में बहुत स्ट्रिक्ट थीं। हमेशा पढ़ने के लिए कहा करती थीं।
सच कहूं तो आज मैं बचपन को बिल्कुल मिस नहीं करता हूं क्योंकि मैंने अपने बचपन को खूब अच्छी तरह से जिया है। इतनी अच्छी तरह कि मुझे कभी सपने देखने तक की फुरसत नहीं मिली। मैंने बचपन में कोई सपना नहीं देखा था कि मैं बड़ा होकर आर्किटेक्ट बनूंगा या फिर एक्टर बनूंगा। इस फील्ड में एक वजह यह भी हो सकती है कि एक्टर होने के नाते फिल्मों में बचपन जीने का मौका मिल जाता है। कुछ समय पहले आई फिल्म 'दे ताली' में मैंने दस साल के बच्चे की तरह बचपना किया था। बचपन बड़ा अनमोल होता है। यह सबकी जिंदगी का एक सुखद दौर होता है।

Friday, November 28, 2008

कहीं विलाप तो कहीं अमर रहें के नारे

जागरण संवाददाता, मुंबई : फ्लैग मार्च करते फौजियों के बूटों की धमक मुंबई वासियों को हिम्मत बंधा रही थी। लेकिन अपने प्रियजनों को खोने वालों की रह-रह चीत्कार एक बार फिर माहौल में मातम पाट दे रही थी। इस बीच शहीद जांबाजों के शवयात्रा के दौरान अमर रहें के नारे दिलासा दे रहे थे कि हमारा देश इस प्रकार के हमलों को नाकाम करने का माद्दा रखता है । गुरुवार का पूरा दिन लगभग इस इंतजार में बीत गया कि कब दिल्ली से आए एनएसजी के जवान ताज होटल, ओबेराय होटल एवं नरीमन हाउस में फंसे लोगों को छुड़ाकर आतंकियों को मार गिराएंगे। लेकिन इस इंतजार में शाम के आठ बज गए, जब पहली अच्छी खबर ताज होटल से आई कि पांच आतंकियों को मारकर आपरेशन ताज पूरा किया जा चुका है। लेकिन आपरेशन ताज की सफलता आसान नहीं थी। आतंकियों के कब्जे से छूटने से पहले ताज में ठहरे कई मेहमानों के साथ-साथ इस हेरिटेज होटल के महाप्रबंधक के पत्‍‌नी और बच्चों को भी जान से हाथ धोना पड़ा। यही नहीं ताज होटल के वे गुंबद भी आतंकियों द्वारा नेस्तनाबूद कर दिए गए हैं, जिनके सामने खड़े होकर देश-विदेश से आनेवाले पर्यटक तस्वीरें खिंचवाते थे। मुंबई की खुबसूरत यादें अपने साथ ले जाते थे। मेहमानों के मारे जाने की लगभग यही स्थिति नरीमन प्वाइंट स्थित पांच सितारा होटल ओबेराय में भी रही। जिसे अब उसके नए नाम ट्राइडेंट से जाना जाता है। इस होटल में एनएसजी ने अपना आपरेशन ऊपर की मंजिल से शुरू किया है। उसका अभियान देर रात तक जारी रहा। एनएसजी का तीसरा लक्ष्य कुलाबा स्थित नरीमन हाउस इमारत रही, जहां दो यहूदी परिवारों को आतंकियों ने बंधक बना रखा था। इस पूरी तरह से आवासीय क्षेत्र के लोग दिन भर इस इमारत के बाहर खड़े पुलिस और प्रेस वालों को चाय और पानी पिलाते रहे। वह भी बिल्कुल मुफ्त। वाह रे मुंबई । दक्षिण मुंबई के इस आतंक पीडि़त माहौल ने दिनभर हंसते-मुस्कुराते रहने वाले इस महानगर को सहमा और खामोश रखा।

Monday, November 24, 2008

बहुत कुछ पाने की चाह है: अमोल पालेकर /24 नवंबर, जन्मदिन पर विशेष..

-रघुवेंद्र सिंह
अमोल पालेकर अब अपना अधिकतर समय मुंबई की शोरगुल और आपाधापी भरी जिंदगी से दूर पुणे में बिताते हैं। वे नई फिल्मों की योजनाएं भी वहीं बनाते हैं। आगामी 24 नवंबर को वे चौंसठ साल के हो जाएंगे। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी सक्रियता बरकरार है। आजकल वे निर्देशक की कुर्सी पर बैठकर अपनी फिल्मों से फिल्मी दुनिया को समृद्ध बना रहे हैं।
थिएटर से किया आगाज : ऐक्टर बनने से पहले अमोल पालेकर थिएटर जगत में निर्देशक के रूप में स्थाई पहचान बना चुके थे। नामचीन निर्देशक सत्यदेव दुबे के साथ उन्होंने मराठी थिएटर में कई नए प्रयोग किए। बाद में 1972 में उन्होंने अपना थिएटर ग्रुप अनिकेत शुरू किया। अमोल पालेकर के शब्दों में, आज की पीढ़ी पूछती है कि मैंने ऐक्टिंग छोड़कर निर्देशन करना क्यों शुरू दिया? वे इस बात से अनजान हैं कि मैं ऐक्टिंग में आने से पहले थिएटर में निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बना चुका था। बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी और बासु भट्टाचार्य मेरा नाटक देखने आया करते थे। जब मैंने ऐक्टिंग में कदम रखा, तब थिएटर में मेरा चरमोत्कर्ष था।
मध्यवर्गीय समाज के नायक: 1971 में सत्यदेव दुबे की मराठी फिल्म शांतता कोर्ट चालू आहे से अमोल ऐक्टिंग में आए। यह मराठी सिनेमा की उल्लेखनीय फिल्म कही जाती है। हिंदी फिल्मों में उन्होंने सन 1974 में बासु चटर्जी की फिल्म रजनीगंधा से कदम रखा। फिल्म सफल हुई और फिर उनके अनवरत सफर का आगाज हो गया। उन्होंने ऐक्टर के रूप में चितचोर, घरौंदा, मेरी बीवी की शादी, बातों-बातों में, गोलमाल, नरम-गरम, श्रीमान-श्रीमती जैसी कई यादगार फिल्में दीं। वे ज्यादातर फिल्मों में मध्यवर्गीय समाज के नायक का प्रतिनिधित्व करते दिखे। उनकी हास्य फिल्मों को दर्शक आज भी याद करते हैं। वे कहते हैं, मुझे खुशी है कि अपने करियर में फिल्म इंडस्ट्री के श्रेष्ठ निर्देशक और श्रेष्ठ तकनीशियनों के साथ काम कर सका। उनके सान्निध्य में फिल्म निर्माण के तमाम पहलुओं से परिचित हुआ। ढेर सारा प्यार और आदर के लिए मैं सबका शुक्रगुजार हूं।
निर्देशन में बनाई अलग पहचान: सन 1981 में मराठी फिल्म आक्रित से अमोल ने फिल्म निर्देशन में कदम रखा। अब तक वे कुल दस हिंदी-मराठी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। उनकी पिछली हिंदी फिल्म पहेली को ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। वे खुशी व्यक्त करते हुए कहते हैं, मैंने निर्देशक के रूप में मनमाफिक फिल्में बनाई। आज पीछे पलटकर देखता हूं, तो खुशी होती है। बहुत जल्द फिल्म दुमकटा रिलीज होगी। मेरी यह फिल्म बासु दा और ऋषिकेष मुखर्जी को समर्पित होगी।
सिनेमा का विभाजन पसंद नहीं: शुरू से भाषा के आधार पर सिनेमा के विभाजन के खिलाफ रहे हैं अमोल। उन्हीं के शब्दों में, सिनेमा को भाषा के आधार पर बांटना अच्छी बात नहीं है। उसके अतिरिक्त क्षेत्रीय फिल्मों को नजरंदाज करना भी अच्छा नहीं है। हमेशा सिर्फ हिंदी फिल्मों की बात करना गलत है। गौर करें, तो पाएंगे कि हिंदी से अच्छी फिल्में और फिल्मकार रिजनल सिनेमा में हैं। रिजनल फिल्मों को हम भाषाई सीमा में बांधकर मार रहे हैं। सिनेमा भाषा, देश, संस्कृति आदि की सीमा से परे है।
सुखदाई रहा सफर: बहुत खुशनुमा रहा है अमोल पालेकर का अब तक का सफर। उन्हें हमेशा सबका प्यार मिला है। बस, उनकी ऐक्टिंग को प्रशंसक जरूर मिस करते हैं। वे आखिरी बार बड़े पर्दे पर राकेश मेहरा की फिल्म अक्स में दिखे थे। उन्हीं के शब्दों में, मुझे एक तरह का काम करना पसंद नहीं है। यदि मुझे चुनौतीपूर्ण भूमिका मिले, तो मैं आज भी ऐक्टिंग में वापसी कर सकता हूं। मैं अपने सफर से संतुष्ट हूं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ पाने की चाह है।

तारे जमीन पर की अंग्रेजी में डबिंग हुई पूरी | खबर

पणजी। आमिर खान की चर्चित फिल्म तारे जमीन पर की अंग्रेजी भाषा में डबिंग पूरी हो चुकी है। इस बात की जानकारी अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा ने दी, वे पणजी में चल रहे 39वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के दूसरे दिन इंडियन पैनोरमा के ओपनिंग सेरेमनी में शिरकत करने आई थी। आमिर खान की फिल्म तारे जमीन पर का 24 नवंबर को यहां प्रदर्शन किया जाएगा। इंडियन पैनोरमा की ओपनिंग सेरेमनी में टिस्का ने कहा कि आईएफएफआई में तारे जमीन पर का चयनित होना हमारी टीम के लिए सम्मान की बात है, हम सभी बहुत खुश है। तारे जमीन पर पैरेलर और मेंन एस्त्रीम सिनेमा का प्रतिनिधित्व करती है।
टिस्का ने आगे कहा कि तारे जमीन पर की अंग्रेजी में डबिंग पूरी हो चुकी है। मैं मुंबई से फिल्म की डबिंग खत्म करके आ रही हूं। इसे ऑस्कर की जूरी को दिखाने के उद्देश्य से अंग्रेजी में डब किया गया है। आमिर पूरे आत्मविश्वास केसाथ फिल्म के प्रमोशन में लगे हुए है। आप सभी दुआ कीजिए की हमारी फिल्म ऑस्कर पुरस्कार जीत जाए।

एक तरह की फिल्म बनाने में मजा नहीं आता: ओनिर

[रघुवेंद्र सिंह]
युवा निर्देशक ओनिर ने अपनी दो फिल्मों माई ब्रदर निखिल और बस एक पल के जरिए बहुत कम समय में सिनेमा जगत में पहचान बना ली है। एड्स पर बनी उनकी फिल्म माई ब्रदर निखिल अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में दिखायी जा चुकी है। अब ओनिर तीसरी फिल्म सॉरी भाई लेकर आ रहे हैं। यह रोमांटिक कॉमेडी है। ओनिर कहते है, मैंने पहली बार रोमांटिक कॉमेडी बनायी है। निर्देशक के तौर पर यह मेरा विकास है। मैं अलग-अलग जॉनर की फिल्में बनाना चाहता हूं। मुझे एक ही तरह की फिल्में बनाने में मजा नहीं आता। इस फिल्म को बनाने के बाद मुझे निर्देशक के तौर पर अपनी स्ट्रेन्थ पता चल रही है।
ओनिर निर्देशित सॉरी भाई में शबाना आजमी, बोमन ईरानी, संजय सूरी, शरमन जोशी और हजारों ख्वाहिशें ऐसी की चित्रांगदा सिंह अहम भूमिका में हैं। कहानी के बारे में ओनिर कहते हैं, यह दो भाइयों की कहानी है। बड़ा भाई हर्षव‌र्द्धन मॉरीशस में रहता है। वह बैंक में नौकरी करता है। अपनी शादी के लिए वह मुंबई से अपने मम्मी-पापा और छोटे भाई सिद्धार्थ को मॉरीशस बुलाता है। वहां सिद्धार्थ अपनी होने वाली भाभी आलिया से मिलता है। धीरे-धीरे उनकी नजदीकियां बढ़ती हैं और वे एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं। अंत में क्या होता है? यह देखना मजेदार होगा। यह साफ-सुथरी फन फिल्म है। मेरी पिछली फिल्मों की तरह इसमें एक समानता है। यह फिल्म भी रिश्तों की कहानी है।
शबाना और बोमन को साथ कास्ट करने के बाबत ओनिर कहते हैं, मैंने हनीमून ट्रवेल्स प्रालि देखी है। मुझे उस फिल्म में शबाना और बोमन की कैमिस्ट्री बहुत अच्छी लगी थी। मैं जब अपनी फिल्म की कास्टिंग कर रहा था तो मां के रोल के लिए मेरे दिमाग में शबाना जी का नाम आया। फिर पिता की भूमिका के लिए शबाना जी ने बोमन का नाम सुझाया। दरअसल, हमें मॉडर्न पैरेंट्स के रूप में ऐसा पेयर चाहिए था जो शरारती हो और साथ ही रिस्पेक्टिव भी।
उल्लेखनीय है, ओनिर ने कॅरियर की शुरुआत बतौर फिल्म एडिटर की थी। संजय सूरी से फिल्म दमन के सेट पर उनकी मित्रता हुई। फिर उन्हीं के प्रोत्साहन पर वे फिल्म निर्देशन में आ गए। आज संजय के साथ मिलकर वे फिल्मों का निर्माण करते हैं।
अपनी भावी योजनाओं के बारे में ओनिर बताते हैं, इस वक्त मैं फिल्म हैमलेट पर काम कर रहा हूं। उसके अतिरिक्त स्टूडियो 18 के साथ चश्मेबद्दूर, एडवेंचर फिल्म काश और एक इंडो-जर्मन फिल्म बनाने की तैयारी कर रहा हूं। चश्मेबद्दूर 1981 में आयी फिल्म से प्रेरित होगी। हमने उसके अधिकार खरीद लिए हैं। मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि मेरी फिल्म रीमेक नहीं होगी। सिर्फ कांसेप्ट पुराना है। बाकी सब कुछ नया होगा।

खुले विचारों का इंसान हूं: गौरव खन्ना

[रघुवेंद]
युवा अभिनेता गौरव खन्ना स्टार प्लस के धारावाहिक कुमकुम से लोकप्रिय हुए। इसमें वे कुमकुम के बेटे शरमन की भूमिका में थे। उसके बाद वे जी टीवी के धारावाहिक मेरी डोली तेरे अंगना और अद्र्धागिनी में अहम भूमिकाएं जीवंत करते दिखे।
आजकल वे स्टार प्लस के धारावाहिक संतान में नजर आ रहे हैं साथ ही नए कलर्स चैनल के दो अलग धर्मो की युवा प्रेम-कहानी जीवन साथी में लीड रोल निभा रहे हैं। इसके निर्माता परेश रावल हैं। गौरव कहते हैं, मुझे खुशी है कि मैं परेश रावल जैसे सीनियर कलाकार की देखरेख में काम कर रहा हूं। शो में मुझे विक्रम गोखले के साथ काम करने का अवसर मिल रहा है। मैं खुश हूं कि ऐसे कलाकारों की छाया में मुझे अपने अभिनय को निखारने का मौका मिल रहा है।
गौरव उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से हैं। वे 2003 में ड्रीम सिटी मुंबई एमबीए करने आए। गौरव स्वयं बताते हैं, मैंने 2005 में अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की और फिर कुछ माह तक एक कंपनी में बतौर मार्केटिंग मैनेजर नौकरी की। मेरा एक्टिंग में आना महज एक संयोग है। मैं जिम में हर रोज की तरह वर्कआउट कर रहा था। अचानक मेरे पास एक शख्स आए। उन्होंने समझा कि मैं मॉडल हूं। उन्होंने मुझे एक एड में काम करने का ऑफर दिया। मैंने वह एड की और फिर एक के बाद एक एड और रैंप शो मिलते गए। उसके बाद मैं एक-एक कदम आगे बढ़ता गया और आज इस मुकाम पर हूं।
धारावाहिक जीवन साथी में गौरव रोमांटिक युवक नील का किरदार निभा रहे हैं। धारावाहिक नील और विराज की प्रेम कहानी के माध्यम से समाज में धर्म को लेकर विषम सोच रखने वाले लोगों पर प्रकाश डाल रहा है। गौरव बताते हैं, धारावाहिक की सबसे अच्छी बात यह है कि यह मनोरंजन के साथ दर्शकों को एक संदेश देता है। हमारे समाज में आज भी कुछ लोग शिक्षित होने के बावजूद धर्म के नाम पर लोगों को अलग करने की कोशिश करते हैं। नील और विराज की प्रेम कहानी ऐसे ही विषय पर बनी है।
नील की तरह यदि गौरव को किसी अन्य जाति या धर्म की लड़की से मोहब्बत हो जाए तो परिवार के विरोध जताने पर वे क्या कदम उठाएंगे? इस पर गौरव कहते हैं, मुझे दूसरी जाति या धर्म से कोई आपत्ति नहीं है। मैं एक शिक्षित परिवार से हूं और वहां इस तरह की बातों के लिए कोई स्थान नहीं है। मैं बहुत खुले विचारों का इंसान हूं।

Saturday, November 22, 2008

मुझे कुछ मुश्किल नहीं लगता: निखिल द्विवेदी | मुलाकात

-रघुवेंद्र सिंह
माई नेम इज एंथोनी गोंजाल्विस फिल्म से इस साल सिने जगत को निखिल द्विवेदी के रूप में आत्मविश्वास से भरा नया चेहरा मिला। अब निखिल की दूसरी फिल्म खलबली प्रदर्शित हो रही है। अजय चंडोक निर्देशित यह कॉमेडी फिल्म है। तेजी से आगे बढ़ रहे गैर फिल्मी पृष्ठभूमि के युवा निखिल ने साबित कर दिया किमेहनत के बल पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है। प्रस्तुत है, निखिल द्विवेदी से बातचीत।
खलबली तक का सफर कैसा रहा?
बहुत अच्छा। मेरी पहली फिल्म माई नेम इज एंथोनी बॉक्स-ऑफिस पर नहीं चली, लेकिन उसमें मेरे काम की तारीफ हुई। जिसकी वजह से मेरे लिए दरवाजे खुल गए। पहले मेरी एक्टिंग पर कोई यकीन नहीं करता था, लेकिन अब लोग करने लगे हैं। उस फिल्म की असफलता से मैंने सीखा कि सिर्फ अच्छा एक्टर होने से कुछ नहीं होता। आपको टिकट बेचना भी आना चाहिए।
खलबली की कहानी एवं अपने किरदार के बारे में बताएं?
यह नौजवान युवक आदित्य की कहानी है। मर्जी के खिलाफ उसकी शादी करायी जाती है, इसलिए वह देश छोड़कर भाग जाता है। वह बैंकॉक के एक होटल में जाकर छुपता है। उस होटल में जितने लोग भी रूके हैं, सबकी जिंदगी एक-दूसरे से जुड़ी होती है। उस होटल में अचानक ऐसी घटना घटती है कि खलबली मच जाती है। मैं इसमें आदित्य का किरदार निभा रहा हूं। मेरे ओपोजिट सदा हैं। मेरे अतिरिक्त इसमें उनतीस जाने-माने हास्य कलाकार हैं। यह धमाल फिल्म है। यह लोगों को इतनी हंसाएगी कि वे फिल्म केअंत तक सीट के नीचे होंगे।
माई नेम इज एंथोनी के एंथोनी और खलबली के आदित्य में क्या फर्क है?
एंथोनी लीड कैरेक्टर जरूर था, लेकिन वह हीरो नहीं था। आदित्य पूरी तरह से हिंदी फिल्म का हीरो है। मैं बचपन से आदित्य जैसा ही किरदार निभाना चाहता था। मेरा बचपन का सपना अब पूरा हो गया।
तीस कलाकारों की भीड़ में आपको कितना स्पेस मिला है?
इस फिल्म में सिर्फ मुझे ही नहीं, बल्कि बाकी के सभी कलाकारों को भी सम्मानित स्पेस मिला है। इसका श्रेय निर्देशक अजय चंडोक को जाता है। उन्होंने किसी पात्र को कहीं दबने नहीं दिया है। मैं सच कह रहा हूं। मैंने जब फिल्म साइन की थी तब मुझे इससे ज्यादा उम्मीद नहीं थी, लेकिन हाल में जब मैंने फिल्म की डबिंग की तब मैं अजय चंडोक का लोहा मान गया। उन्होंने यादगार कॉमेडी फिल्म बनायी है।
कॉमेडी करना मुश्किल लगा या आसान?
मैंने बचपन से सिर्फ एक्टर बनने का सपना देखा है। फिर मुझे एक्टिंग मुश्किल कैसे लग सकती है? मेरे लिए चार साल का वह सफर जरूर मुश्किल था जो मैंने यहां तक आने के लिए तय किया। अब मुझे कुछ भी मुश्किल नहीं लगता। मैंने कॉमेडी को एंज्वॉय किया। मैंने किसी की नकल करने की कोशिश नहीं की बल्कि अपने अंदाज में कॉमेडी की।
अजय चंडोक के निर्देशन में काम करने का अनुभव बताएं।
वे कमाल के निर्देशक हैं। उनके साथ काम करकेमजा आया। वे एक दिन कॉमर्शियल सिनेमा के बड़े निर्देशक बनेंगे। ये बात मैं एक्टर की हैसियत से नहीं बल्कि दर्शक के तौर पर कह रहा हूं।
पिछली बार आपके मित्र शाहरूख ने आपकी फिल्म प्रमोट की थी और अमृता राव के साथ प्रेम-प्रसंग की काफी चर्चा हुई थी। इस बार दोनों नदारद हैं। क्या कहेंगे?
मैंने पहले भी कहा था कि शाहरूख मेरे मित्र नहीं हैं। मैं उन्हें आदर्श मानता हूं। वे उम्र में मुझसे बड़े हैं। मैं उन्हें अपना दोस्त कैसे कह सकता हूं? दोस्ती अपने बराबर वालों से की जाती है। उन्होंने मेरी फिल्म इसलिए प्रमोट की थी क्योंकि वे उसके निर्माता था। मेरे उनसे अच्छे संबंध हैं। जहां तक अमृता से मेरे प्रेम-प्रसंग की बात है तो उसमें कभी सच्चाई नहीं थी। हम दोनों की सोच, पसंद, रहन-सहन सब कुछ अलग है। हम दोनों एक नहीं हो सकते।
खलबली के बाद किन फिल्मों में नजर आएंगे?
मैं शिवम नायर की कॉमिक-थ्रिलर, साउथ के निर्देशक गिरिधरन के साथ एक लव स्टोरी और एक अन्य कॉमेडी फिल्म कर रहा हूं। बहुत जल्द इन फिल्मों की औपचारिक तौर पर घोषणा की जाएगी। मैं रामगोपाल वर्मा के साथ जल्द ही एकफिल्म साइन करने वाला हूं।

पैसों के पीछे बिल्कुल नहीं भागता: सलमान खान/मुलाकात

-रघुवेंद्र सिंह
मुंबई के बांद्रा पश्चिम स्थित बैंडस्टैंड इलाके में सलमान खान का घर है। समुद्र किनारे स्थित उनके गैलेक्सी अपार्टमेंट के बाहर हर वक्त सैकड़ों प्रशंसकों का जमावड़ा रहता है। ऐसे ही सुखद लम्हों के गवाह बनते हुए हम सलमान से मिलने पहुंचे। उनकी आकस्मिक व्यस्तता और भावनात्मक उथल-पुथल के कारण दो मुलाकातें स्थगित हो चुकी थीं। सलमान की मुलाकात के प्रति आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। उन्हें मनमौजी समझा जाता है। बहरहाल, आशंकित मन से गैलेक्सी में प्रवेश करते समय यह खुशी भी थी कि उन्होंने तरंग को याद रखा और विशेष मुलाकात के लिए घर पर बुलाया। घर के अहाते में पीछे छोटा-सा हरा-भरा लॉन है। वहां एक टेबल और दो कुर्सियां रखी थीं। हम जैसे ही पहुंचे, सलमान बिल्डिंग से नीली जींस और भूरी टी-शर्ट में अपने खास अंदाज में आते दिखे। बातचीत शुरू होने के पहले वे हिदायत देते हैं, यहां केवल एक खान है और वह है सलमान खान। आप सिर्फ उसी खान के बारे में बातें करेंगे। प्रस्तुत हैं उनसे युवराज को लेकर हुई बातचीत के प्रमुख अंश..
रिअॅल-लाइफ के युवराज यानी आप अब पर्दे पर युवराज की भूमिका निभा रहे हैं। दोनों में क्या समानता और असमानता है?
फिल्म का युवराज पैसों के पीछे भागता है, क्योंकि उसे अपनी गर्लफ्रेंड से शादी करनी है। दरअसल, उस लड़की का पिता चाहता है कि उसका होने वाला दामाद पैसे और शोहरत वाला शख्स हो, लेकिन मैं थोड़ा अलग किस्म का हूं। मैं पैसों के पीछे बिल्कुल नहीं भागता। हालांकि इतना पैसा जरूर चाहता हूं कि अपना जीवन सुख से जी सकूं और दूसरों के लिए कुछ करता रहूं। हमें बचपन से समझाया गया है कि भाई-भाई होते हैं और परिवार सर्वोपरि होता है। उनसे अधिक करीबी और जरूरी कोई नहीं होता। फिल्म के युवराज को ये सारी बातें देर से समझ में आती हैं।
सुभाष घई और आप इतने सालों से इंडस्ट्री में हैं। आप दोनों को साथ आने में इतनी देर क्यों हुई?
यह सुभाष जी का दुर्भाग्य है। अगर उन्होंने अपनी पिछली तीन फिल्मों में मुझे लिया होता, तो वे चल गई होतीं (हंसते हुए)। मैं सुभाष जी का प्रंशसक हूं। कालीचरण, विश्वनाथ से लेकर कर्ज, राम लखन, विधाता और ताल जैसी उन्होंने कितनी हिट फिल्में दी हैं! उनकी पिछली तीन फिल्में नहीं चलीं, तो फिल्म इंडस्ट्री और मीडिया कहने लगा कि वे अपना काम भूल गए हैं। ऐसा नहीं होता है। युवराज में लोग उनका काम देखें और फिर बातें करें।
शोमैन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? आगे आप दोनों फिर कोई फिल्म करेंगे?
मुझे उनका काम करने का ढंग बहुत अच्छा लगा। उन्होंने मुझे और फिल्मों के ऑफर दिए हैं। शूटिंग के वक्त कुछ कहानियां भी सुनाई। अगर मैं उन्हें अनप्रोफेशनल नहीं लगा और उन्हें मेरे साथ काम करने में दिक्कत नहीं हुई, तो मैं उनके साथ जरूर काम करूंगा, लेकिन स्क्रिप्ट पसंद आनी चाहिए।
कैटरीना के साथ आपकी जोड़ी काफी चर्चा में है। फिल्म में दोनों के बीच कैसी केमिस्ट्री देखने को मिलेगी?
हम दोनों फिल्म में हमेशा लड़ते-झगड़ते दिखाई देंगे। हमने बहुत कॉमेडी की है। हमारी केमिस्ट्री बहुत मजेदार है। कैटरीना फिल्म में बहुत खूबसूरत लगी हैं। घई साहब ने भी उनसे बहुत अच्छा काम लिया है। कैटरीना फिल्म इंडस्ट्री में जगह बना चुकी हैं। उन्होंने ऊपर आने के लिए हर लिहाज से मेहनत की है।
आपके मुताबिक इस वक्त फिल्म इंडस्ट्री में नंबर वन अभिनेता कौन है?
जिसकी पिछली तीन-चार फिल्में लगातार हिट रही हैं, वही टॉप पर है। सच यही है कि यह फ्राइडे गेम है, जो हर सप्ताह बदलता जाता है। वैसे, मैं नंबर वन और नंबर टेन में यकीन नहीं करता। मान लीजिए, पच्चीस लोग नंबर वन हो जाएं और सब एक लाइन में खड़े रहेंगे, तब कितना अच्छा लगेगा! दर्शकों को भी मजा आएगा।
आप गेम शो दस का दम पार्ट-2 के भी होस्ट होंगे?
जी हां। मैं वह गेम शो सही में दोबारा होस्ट कर रहा हूं।
आपकी आने वाली अन्य फिल्में कौन-कौन-सी हैं?
वैसे तो कई हैं, लेकिन मेरी आने वाली फिल्मों में वॉन्टेड, मैं और मिसेज खन्ना, लंदन ड्रीम्स और वीर उल्लेखनीय हैं। अभी कुछ और फिल्में साइन करने वाला हूं। जब साइन कर लूंगा, उनके बारे तब बताऊंगा।

Wednesday, November 19, 2008

एक्टिंग में करियर बनाएंगे राहुल महाजन

-रघुवेंद्र सिंह
मुंबई। दिवंगत भाजपा नेता प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन राजनीति में जाने की बजाए एक्टिंग में अपना करियर संवारने की योजना बना रहे हैं। रियलिटी शो बिग बास-2 से बाहर आने के बाद बुधवार को लोनावला में राहुल ने यह बात कही।
राजनीति में जाने के बाबत पूछने पर राहुल ने कहा कि इस बारे में बाद में सोचूंगा। उन्होंने कहा कि कोई स्क्रिप्ट पसंद आई और अच्छा मौका मिला तो एक्टिंग करना जरूर पसंद करूंगा। राहुल ने कहा, 'मैं बहुत जल्द अपने होम प्रोडक्शन के नए प्रोजेक्ट की घोषणा करूंगा।'
रियलिटी शो छोड़ कर जाने के अपने फैसले को जायज ठहराते हुए राहुल ने कहा कि बिग बास के जरिए ही लोगों ने मुझे जाना। राहुल ने कहा, 'मैं ईमानदार हूं। शो में लोगों ने मेरे शरारती पहलू को भी देखा। आप मुझे प्यार करें या नफरत करें लेकिन आप मेरी उपेक्षा नहीं कर सकते।'
राहुल रियलिटी शो में तीन अन्य साथियों राजा चौधरी, जुल्फी सैयद और आशुतोष कौशिक के साथ कैमरों को चकमा देकर बिग बास के घर से बाहर चले गए थे। यह शो के नियमों के खिलाफ था। इस गलती के लिए माफी नहीं मांगने पर राहुल को शो से निकाल दिया गया।
उन्होंने कहा कि हम गुस्से के कारण नहीं बल्कि भूख की वजह से घर से बाहर निकले थे। राहुल ने कहा कि वह शो में पैसे के लिए नहीं आए थे। उन्होंने कहा कि अगर मैं एक करोड़ रुपये का इनाम जीत भी जाता तो उसे चैरिटी में दान कर देता। शो में मोनिका बेदी के साथ करीबी के बारे में पूछने पर राहुल ने कहा, 'वह केवल अच्छी दोस्त है। मैं उसका सम्मान करता हूं।'

जिंदगी मुश्किलों से लड़ने का नाम है: मोनिका बेदी

[रघुवेंद्र सिंह]
अबू सलेम के साथ नाम जुड़ने की वजह से अभिनेत्री मोनिका बेदी का फिल्मी कॅरियर तो समाप्त हुआ ही, उनके सभी मित्र और रिश्तेदार भी बेगाने बन गए। इन प्रतिकूल परिस्थितियों ने मोनिका को कुछ वक्त के लिए कमजोर जरूर बनाया, मगर वह हिम्मत नहीं हारीं। अपनी नकारात्मक छवि बदलने के उद्देश्य से मोनिका ने रियलिटी शो बिग बॉस सीजन टू का हिस्सा बनना स्वीकार किया। मोनिका बिग बॉस के घर से दोबारा बाहर आ चुकी हैं। मोनिका से उनके व्यक्तिगत जीवन, राहुल महाजन से प्रेम प्रसंग और भावी योजनाओं के संदर्भ में बातचीत-
बिग बॉस के घर में आप जिस उद्देश्य से गई थीं, क्या उसमें कामयाब रहीं?
मैं रियल मोनिका से दुनिया को परिचित कराना चाहती थी। मेरा मकसद पूरा हो गया। पहले लोग मुझसे डरते थे। मुझे किराए पर मकान नहीं देते थे। मेरा जिक्र होते ही नाक-मुंह सिकोड़ने लगते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब लोग मुझे प्यार करते हैं। मैंने यह सोचा भी नहीं था कि एक रियलिटी शो मेरी जिंदगी इस कदर बदल देगा।
आप एकमात्र प्रतियोगी हैं, जिसे वाइल्ड कार्ड के जरिए दोबारा बिग बॉस के घर में जाने का मौका मिला। जीत के करीब पहुंचकर शो से बाहर आने का दुख है?
मैं सोच रही थी कि शो के फाइनल में जाऊंगी और विजेता बनूंगी। खैर, जिसके नसीब में जितना लिखा होता है, उसे उतना ही मिलता है। मैं बाहर आकर खुश हूं, क्योंकि अब मैं अपनी फिल्मों की शूटिंग शुरू कर सकूंगी। निर्माता-निर्देशक भी मेरे बाहर आने से खुश हैं।
आपने कितनी फिल्में साइन की हैं? सुना है आप फिर किसी रियलिटी शो में नजर आएंगी?
मैंने दो फिल्में और दो रियलिटी शो साइन किए हैं, लेकिन अभी मैं उनके बारे में बात नहीं कर सकती। बहुत जल्द औपचारिक तौर पर निर्माता उनके बारे में जानकारी देंगे। मेरे पास फिल्मों के प्रस्ताव लगातार आ रहे हैं।
आपके मुताबिक बिग बॉस सीजन टू का विजेता कौन बनेगा?
मैं चाहूंगी कि राहुल विजेता बनें। इसकी वजह यह नहीं है कि राहुल मेरे मित्र हैं, बल्कि वह डिजर्व करते हैं। उन्होंने तीन महीने जिस धैर्य के साथ गुजारे हैं, वैसा कोई नहीं कर सका। वह बड़े दिलवाले इंसान हैं। उन्हें ही विजेता बनना चाहिए।
राहुल के साथ प्रेम प्रसंग के बारे में क्या कहेंगी। वह शो का हिस्सा था या वाकई आप दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगे हैं?
जब मैं दोबारा शो में गई, तब चैनल के अधिकारियों ने मुझसे घर के सभी सदस्यों से अधिक से अधिक बातचीत करने के लिए कहा था। उनकी टीआरपी का सवाल था। यही वजह है कि मैं राहुल एवं अन्य लोगों से काफी बात करने लगी। उसी दौरान राहुल ने मुझे प्रपोज कर दिया। मैं उन्हें कुछ कह न सकी, क्योंकि मैं उनकी इज्जत करती हूं। मैं उनके बाहर आने का इंतजार कर रही हूं। मैं जब तक उन्हें अच्छी तरह जान और समझ नहीं लूंगी, तब तक कोई निर्णय नहीं लूंगी। यह मेरी पूरी जिंदगी का सवाल है। संभव है कि राहुल शो से बाहर आने के बाद बदल जाएं। फिलहाल, मैं अभी दो-तीन साल तक शादी नहीं करूंगी।
बीते कल से शिकायत, तो होगी। उन मुश्किल के दिनों में खुद को आपने कैसे संभाला?
मुझे अपने अतीत से कोई शिकायत नहीं है। सबको अपनी जिंदगी में किसी न किसी इम्तहान से गुजरना ही पड़ता है। मेरे नसीब में वह इम्तहान देना लिखा था। मुझे खुशी इस बात की है कि मैं उन मुश्किल लम्हों से उबरने में सफल हुई। उस दौरान ईश्वर और मेरा परिवार मेरी सबसे बड़ी शक्ति थी। यदि परिवार ने मेरा साथ नहीं दिया होता, तो आज मैं मुस्कुरा नहीं पाती।
आपकी जिंदगी दूसरों के लिए सबक बन चुकी है। ऐसे हालात में फंसी औरतों से क्या कहेंगी?
मैं जेल में ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं से मिली, जो अपनी जिंदगी से हार चुकी थीं। मैं उन्हें हमेशा समझाती थी कि जिंदगी मुश्किलों से लड़ने का नाम है। अपने लिए निष्ठुर समाज से लड़ो। हमारा समाज औरतों के संदर्भ में निष्पक्ष सोच नहीं रखता। मेरे संघर्ष से यदि एक लड़की भी सबक ले सकी, तो मैं समझूंगी कि मेरा संघर्ष सफल हो गया।

Tuesday, November 18, 2008

मेरे पास ऑफर बहुत हैं: शिल्पा शेट्टी

-रघुवेंद्र सिंह
अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने जब शूल के आइटम सॉन्ग मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने.. पर देसी अंदाज में ठुमके लगाए थे, तब उनके प्रशंसकों की तादाद में एकाएक इजाफा हुआ था। उसके बाद उनके करियर को नई दिशा मिली थी। अब शिल्पा ने लंबे गैप के बाद एक बार फिर करण जौहर की फिल्म दोस्ताना के लिए स्टाइलिश अंदाज में ठुमके लगाए हैं। उनका आइटम सॉन्ग शट अप.. आजकल चर्चा में है। इस चर्चा से उत्साहित शिल्पा कहती हैं, मुझे पता था कि मेरा यह आइटम सॉन्ग जरूर चर्चित होगा। इसे बहुत अच्छे तरीके से शूट किया गया है। मुझे सॉन्ग के लिए बहुत अच्छा रेस्पॉन्स मिल रहा है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने पहली बार करण की किसी फिल्म में काम किया है और वह लोगों को पसंद आ रहा है।
शिल्पा आजकल कलर्स चैनल पर आ रहे रिअॅलिटी शो बिग बॉस-2 को होस्ट करने की वजह से भी चर्चा में हैं। दरअसल, उनका शो को होस्ट करने की स्टाइल और मशहूर डिजाइनर मनीष मल्होत्रा द्वारा डिजाइन किए हुए उनके आउटफिट्स लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि शिल्पा की मौजूदगी से शो को अधिक संख्या में दर्शक मिल रहे हैं। वे हंसते हुए कहती हैं, यह मेरे लिए खुशी की बात है। मैंने शो को साइन करते समय ही तय कर लिया था कि मुझे इसे नए मुकाम पर ले जाना है। यही वजह है कि मैं इसे अपने अंदाज में होस्ट कर रही हूं। हालांकि शुरुआत में मैं बहुत नर्वस फील कर रही थी।
शिल्पा बिग बॉस-2 के बारे में बात करते समय जेड गुडी का जिक्र करना नहीं भूलतीं। उल्लेखनीय है कि जेड बिग बॉस के घर में प्रवेश करने के कुछ ही दिन बाद शारीरिक अस्वस्थता के कारण बाहर हो गई थीं। वे उनके बारे में कहती हैं, जेड अच्छे मकसद के साथ भारत आई थीं। मुझे उनके आने की खबर सुनकर बहुत खुशी हुई, लेकिन बाद में उनके साथ जो हुआ, मुझे बहुत दुख हुआ। खैर, अब सब कुछ अच्छा हो गया है। मुझे उम्मीद है कि जेड अच्छी यादों के साथ अपने देश गई होंगी। शिल्पा आजकल फिल्में बिल्कुल साइन नहीं कर रही हैं। जून 2007 में आई सनी देओल की घरेलू फिल्म अपने के बाद अब तक उनकी कोई नई फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई है। आखिर वजह क्या है? जवाब में शिल्पा कहती हैं, मुझे कोई अच्छी स्क्रिप्ट नहीं मिल रही है। क्या करूं! मैं दुनिया को दिखाने केलिए ऐसी-वैसी फिल्में साइन नहीं कर सकती। मुझे अच्छी स्क्रिप्ट मिलेगी, तभी मैं उसके लिए हां कहूंगी। फिलहाल मेरे पास काम की कमी नहीं है। मैं इस वक्त सनी देओल की फिल्म द मैन में काम कर रही हूं।
उल्लेखनीय है कि द मैन का निर्देशन सनी कर रहे हैं। शिल्पा फिल्म में ऐक्ट्रेस की भूमिका निभा रही हैं। फिल्म के बारे में वे कहती हैं, फिल्म द मैन मेरे लिए खास है। मैं इसमें वायलिन वादक की भूमिका में हूं, जो हीरोइन भी है। यह रोमांटिक थ्रिलर है। इसे सनी स्वयं निर्देशित कर रहे हैं। निर्देशक के रूप में उनके साथ काम करने का अनुभव मेरे लिए बिल्कुल अलग रहा है। सेट पर वे बहुत कूल रहते हैं। इससे अधिक मैं इस फिल्म के बारे में इस वक्त कुछ नहीं कह सकती। हां, इतना जरूर कह सकती हूं कि फिल्म लोगों केदिलों को छूएगी। पिछले कई महीनों से चर्चा है कि शिल्पा शेट्टी अपने होम-प्रोडक्शन यानी एस टू ग्लोबल प्रोडक्शन के बैनर तले कुछ फिल्मों केनिर्माण की घोषणा करेंगी। इस बारे में शिल्पा कहती हैं, अभी तक कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है। इस वक्त दो फिल्मों के निर्माण की योजना चल रही है, जिसमें से एक में मैं मुख्य भूमिका निभा रही हूं। उसे मनीष झा निर्देशित करेंगे। दूसरी फिल्म मैं अपनी बहन शमिता के लिए बनाऊंगी। सब कुछ तय हो जाने पर मैं अपने होम प्रोडक्शन की फिल्मों के बारे में विस्तार से जानकारी दूंगी।

करीना..नाम ही काफी है

[रघुवेंद्र सिंह]
गोलमाल रिट‌र्न्स की धमाकेदार सफलता के बाद करीना कपूर की लोकप्रियता का ग्राफ और बढ़ गया है। फिल्मनिर्माण में सक्रिय बड़े प्रोडक्शन हाउस के बीच उनकी मांग में उत्साहजनक बढ़त दिख रही है। अब तो उनकी लोकप्रियता का आलम यह हो चुका है कि बड़े प्रोडक्शन हाउस सिर्फ उनके नाम पर फिल्म प्रोड्यूस करने के लिए हामी भर दे रहे हैं। उनके लिए करीना के आगे फिल्म की कहानी कम महत्व रखती है। तुषार कपूर और आएशा टाकिया अभिनीत फिल्म क्या लव स्टोरी है फेम निर्देशक लवली सिंह के वाकये से यही बात सामने आती है। मिली जानकारी के मुताबिक, हाल में लवली सिंह एक नामचीन प्रोडक्शन हाउस के पास अपनी फिल्म लेकर गए और उन्होंने कहा कि कि वह करीना कपूर को लेकर वह फिल्म बनाना चाहते हैं। करीना ने उनके साथ काम करने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी है। उक्त प्रोडक्शन हाउस ने उसके बाद बिना कोई सवाल किए लवली सिंह की उस फिल्म को प्रोडयूस करने की हामी भर दी।
उल्लेखनीय है, लवली सिंह और करीना कपूर गहरे मित्र हैं। करीना ने लवली की साल 2007 में आयी पहली फिल्म क्या लव स्टोरी है में इट्स रॉकिंग.आइटम सांग किया था। वह सांग बेहद लोकप्रिय हुआ था। जल्द ही लवली सिंह करीना कपूर को लेकर अपनी नई फिल्म के निर्माण की घोषणा करेंगे।

Monday, November 17, 2008

पहली नजर में प्यार हो जाएगा: आमना शरीफ

[रघुवेंद्र सिंह]
आमना शरीफ अब बिग स्क्रीन का रुख कर रही हैं। उनकी पहली फिल्म आलू चाट प्रदर्शन के लिए तैयार है। यह रोमांटिक कॉमेडी है। रॉबी ग्रेवाल निर्देशित इस फिल्म में वे आफताब शिवदासानी की नायिका बनी हैं। आमना शूटिंग में अपनी व्यस्तता की वजह से वे पिछले एक साल से गायब थीं। प्रस्तुत है, आमना बातचीत के प्रमुख अंश-
आपने छोटे पर्दे को अलविदा कहने का निर्णय क्यों लिया?
मैंने पहले ही तय किया था कि मैं टीवी के लिए केवल एक शो करूंगी। मैंने तीन साल तक कहीं तो होगा सीरियल में काम किया। मैं एक्टर हूं। हमेशा कुछ नया करना मेरा लक्ष्य है। अब मैं चाहती हूं कि लोग कहीं तो होगा की कशिश को भूल जाएं और सिर्फ आमना को याद रखें।
अपने को-स्टार राजीव खंडेलवाल की तरह आप भी अब सीरियल में काम नहीं करेंगी?
मुझे टीवी के दर्शकों से पहचान मिली है इसलिए मैं भविष्य के बारे में अभी कुछ नहीं कह सकती। फिलहाल, मैं अपना ध्यान फिल्मों पर केंद्रित कर रही हूं। मुझे फिल्मों में ज्यादा संभावनाएं दिख रही हैं। मेरे पास अच्छी फिल्मों के ऑफर्स भी आ रहे हैं।
आलू चाट को पहली फिल्म चुनने की वजह?
यह बहुत स्वीट और सिंपल फिल्म है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यही है। इस वक्त ऐसी फिल्मों की कमी है। फिर इस फिल्म की कहानी और अपना किरदार मुझे अच्छा लगा। यही वजह है कि मैंने इसे अपनी लांचिंग फिल्म के तौर पर चुना।
शीर्षक आलू चाट सुनने में अजीब लग रहा है। क्या यह कहानी के अनुकूल है?
मुझे भी पहली बार सुनने में अजीब लगा था। मैंने तुरंत रॉबी से कहा कि ये कैसा शीर्षक है? उन्होंने मुझसे कहा कि आप कहानी सुनें। उसके बाद अपना विचार बताएं। बाद में जब मैंने कहानी सुनी तो मुझे यह शीर्षक उचित लगा। आलू चाट सिचुएशनल कॉमेडी है। इसकी कहानी के केंद्र में दिल्ली की पंजाबी फैमिली है। उसी फैमिली के सदस्य हैं निखिल। यह किरदार आफताब निभा रहे हैं। मैं इसमें आमना की भूमिका में हूं। वह मुस्लिम है। आमना और निखिल की मुलाकात यूएस में पढ़ाई के दौरान होती है। बाद में वे दिल्ली आते हैं। यहां से फिल्म का असली मजा शुरू होता है। आलू चाट की तरह यह फिल्म भी खूब स्पाइसी है।
कहीं तो होगा की कशिश से आलू चाट की आमना कितनी अलग है? आमना से आप कितना इत्तेफाक रखती हैं?
कशिश की छवि से बाहर निकलने के लिए मैंने आमना को चुना है। इसके पहले मेरे पास कई फिल्मों के ऑफर्स आए थे, लेकिन मुझे उनमें कशिश से अलग ज्यादा कुछ नहीं दिखा। यही वजह है कि मैंने उन्हें स्वीकार नहीं किया। आमना बहुत स्वीट लड़की है। इस किरदार को निभाने में मुझे परेशानी नहीं हुई। आमना से इंडिया की सारी लड़कियां रिलेट कर पाएंगी। पहली नजर में सबको आमना से प्यार हो जाएगा।
आफताब शिवदासानी के साथ आपके चर्चित प्रेम प्रसंग में कितनी सच्चाई है?
हमारी इंडस्ट्री में अब ये रूल बन चुका है। आप जिस कलाकार के साथ काम करते हैं, उसके साथ आपका नाम जुड़ना तय है। यदि मेरी जिंदगी में कोई स्पेशल होगा तो मैं उसके बारे में बताऊंगी। मैं उसे दुनिया से छुपाऊंगी नहीं।

दीपिका में हिमेश की दिलचस्पी


-रघुवेंद्र सिंह


सतीश कौशिक निर्देशित फिल्म कर्ज में हिमेश रेशमिया और उर्मिला मातोंडकर के बीच की केमिस्ट्री की हर कोई तारीफ कर रहा है और इसीलिए हिमेश इस बात से बेहद खुश भी हैं। इस प्रशंसा से उनका उत्साह भी बढ़ा है। दरअसल, अब उन्होंने इंडस्ट्री की बड़ी अभिनेत्रियों के साथ काम करने का निर्णय लिया है। दिलचस्प बात यह है कि उनकी लिस्ट में सबसे ऊपर ओम शांति ओम गर्ल यानी दीपिका पादुकोण का नाम है।
हिमेश के मुताबिक, पहले पता नहीं क्यों बड़ी अभिनेत्रियों के साथ काम करने के जिक्र से ही मुझे डर लगता था, लेकिन हाल में प्रदर्शित हुई फिल्म कर्ज में उर्मिला के साथ मेरी केमिस्ट्री दर्शकों को बहुत अच्छी लगी। इसीलिए मैंने यह निर्णय लिया है कि अब बड़ी और हॉट अभिनेत्रियों के साथ भी काम करूंगा। मेरी दिली ख्वाहिश दीपिका के साथ काम करने की है, जो सुपर स्टार हैं। हालांकि मैं इस बात से डरा हुआ भी हूं।
उल्लेखनीय यह है कि दीपिका ने ऐक्टिंग की दुनिया में हिमेश के सुपरहिट म्यूजिक एलबम आपका सुरूर से दस्तक दी थी। वे इस एलबम के गीत नाम है तेरा.. के म्यूजिक वीडियो में थिरकती हुई दिखी थीं। दीपिका के साथ स्क्रीन शेयर करने के ख्वाहिशमंद हिमेश अपने मन में बैठे डर के बारे में कहते हैं, मैं इस बात से डर रहा हूं कि दीपिका अब मेरे साथ काम करने के लिए तैयार होंगी या नहीं, क्योंकि अब वे शाहरुख और अक्षय कुमार जैसे टॉप हीरोज के साथ काम कर रही हैं और मैं उनकी तुलना में कहीं नहीं ठहरता। हालांकि मैं दीपिका के संपर्क में हूं। मुझे उम्मीद है कि यदि कोई अच्छी स्क्रिप्ट होगी और अच्छा किरदार होगा, तो वे इनकार नहीं करेंगी। बहरहाल, हिमेश की तीन फिल्में कजरारे, मुड़ मुड़ के ना देख और ए न्यू लव स्टोरी बन रही हैं। इन फिल्मों में वे नई अभिनेत्रियों के साथ रोमांस करते नजर आएंगे। हां, उनकी फिल्म हे गुज्जू और तिड़वा की कास्टिंग अभी नहीं हुई है। संभव है कि हिमेश उन फिल्मों के निर्माताओं से दीपिका के नाम की सिफारिश करें! अब देखने वाली बात यह होगी कि दीपिका हिमेश की ख्वाहिश की कितनी इज्जत करती हैं!

अब खुद फिल्म बनाऊंगा: आफताब | मुलाकात

-रघुवेंद्र सिंह
पिछले चार महीनों से आफताब शिवदासानी अपनी फिल्मों की शूटिंग के सिलसिले में देश-विदेश का भ्रमण कर रहे थे। यही वजह है कि वे मीडिया की नजरों से ओझल रहे। आफताब कहते हैं, मैं पिछले कुछ महीनों से चैन की नींद इसलिए नहीं सो पाया, क्योंकि मैं एसिड फैक्ट्री और कमबख्त इश्क की शूटिंग में व्यस्त था। मैंने कमबख्त इश्क में ऐक्शन सीन किए हैं। लोग सोचने लगे थे कि मैं अचानक कहां गायब हो गया? जब लोग इन फिल्मों को देखेंगे, तब उन्हें मेरे गायब होने की वजह समझ में आएगी। अचानक ऐक्शन फिल्मों की ओर रुख करने की वजह बताते हैं आफताब, मैं कॉमेडी फिल्में इसलिए करता हूं, क्योंकि पर्सनली मुझे यह बहुत पसंद है। सच तो यह है कि ऐक्टर के रूप में हमेशा मैं सीरियस और ऐक्शन फिल्में करना चाहता हूं। दरअसल, ऐसी फिल्में ही कलाकार को स्ट्रेंथ देती हैं और इससे दर्शकों के बीच उनकी अलग छवि बनती है। अब मैं सीरियस फिल्में अधिक संख्या में करना चाहता हूं। मेरी आलू चाट भी कॉमेडी फिल्म है। उसकी खासियत है कि यह मेरी सोलो हीरो वाली फिल्म है।
सोलो हीरो के रूप में आफताब की आखिरी फिल्म थी रेड। इस बारे में वे कहते हैं, आज मल्टीस्टारर फिल्में बाजार के हिसाब से सेफ मानी जाती हैं। यही वजह है कि निर्माता मल्टीस्टारर फिल्मों के निर्माण पर अधिक जोर दे रहे हैं, लेकिन मेरा मानना यही है कि यदि फिल्म का कॉन्टेंट अच्छा है, तो दर्शक उसे देखने थिएटर में जरूर जाएंगे। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म मल्टीस्टारर है या सोलो हीरो वाली! मुझे रॉबी ग्रेवाल निर्देशित आलू चाट का कॉन्टेंट मजबूत लगा। मैंने तुरंत इसके लिए हां कह दिया।
आलू चाट में आफताब और टीवी ऐक्ट्रेस आमना शरीफ मुख्य भूमिका में हैं। सीरियल कहीं तो होगा फेम आमना की यह पहली फिल्म है। फिल्म के बारे में आफताब कहते हैं, यह रोमांटिक कॉमेडी है और इसकी कहानी दिल्ली की है। मैं इसमें पंजाबी युवक निखिल की भूमिका निभा रहा हूं। आमना मुसलिम लड़की आमना की भूमिका में हैं। दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन उनका परिवार उनके खिलाफ है। इस फिल्म की खासियत इसकी साधारण कहानी और उसका सुंदर तरीके से चित्रण है। नाम सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह कहानी के मुताबिक बिल्कुल सही है। आफताब आगे कहते हैं, आज मसालेदार फिल्में बहुत आ रही हैं और अच्छी फिल्मों की कमी खल रही है। आलू चाट उस कमी को पूरा करेगी। मैंने इस फिल्म केलिए हां इसीलिए कहा, ताकि एक खूबसूरत फिल्म का हिस्सा बनूं।
चर्चा है कि आफताब और आमना एक-दूसरे से प्यार करते हैं। इस बारे में वे कहते हैं, मैं इस फिल्म की शूटिंग से पहले आमना से परिचित नहीं था। वे एक प्रोफेशनल ऐक्ट्रेस हैं और वे तैयारी के साथ फिल्मों में आई हैं। मुझे उम्मीद है कि हमारा काम दर्शकों को पसंद आएगा। आफताब की आने वाली फिल्मों में आलू चाट, इन्द्र कुमार की डैडी कूल, एसिड फैक्ट्री और कमबख्त इश्क हैं। वे अपने करियर के मौजूदा दौर से खुश जरूर हैं, लेकिन इसके बावजूद अपने करियर को नई दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हीं की जुबानी, मैं ऐक्टर के रूप में अपनी व्यस्तता से खुश हूं, लेकिन अब कुछ नया करना चाहता हूं। मैंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया है। आने वाले कुछ ही दिनों में अपने होम प्रोडक्शन की फिल्मों की घोषणा करूंगा।

Saturday, November 15, 2008

दोहरी सफलता से उत्साहित हैं प्रियंका | खबर

-रघुवेंद्र सिंह
मुंबई। फैशन के बाद प्रियंका चोपड़ा की नई फिल्म दोस्ताना भी बॉक्स-ऑफिस पर अच्छा बिजनेस करने में कामयाब हो रही है। ये प्रियंका की लगातार दूसरी हिट फिल्म है। दोहरी सफलता से उत्साहित प्रियंका कहती हैं, दोस्ताना की सफलता के बाद मेरी खुशी सचमुच दोगुनी हो गई है। अभी मेरे मोबाइल पर फैशन की सफलता के बधाई संदेश आने बंद भी नहीं हुए थे कि दोस्ताना के बधाई संदेश आने शुरू हो गए। मेरे साथ ऐसा पहली बार हो रहा है।
प्रियंका आगे कहती हैं, फिल्म समीक्षक और दर्शक फैशन के बाद दोस्ताना में भी मेरे काम की सराहना कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि इस साल मुझे कोई न कोई पुरस्कार जरूर मिलेगा।

अब डांट नहीं पड़ती: शरमन जोशी/मेरा बचपन

[रघुवेंद्र सिंह]
रंगमंच की पृष्ठभूमि के युवा अभिनेता शरमन जोशी ने 'स्टाइल', 'रंग दे बसंती', 'गोलमाल', 'मेट्रो' और 'हैलो' जैसी चर्चित फिल्मों में विभिन्न किस्म के किरदार निभाकर दर्शकों के बीच अलग छवि बनायी है। आजकल वे राजकुमार हिरानी की फिल्म 'थ्री इडियट्स' की शूटिंग कर रहे हैं। मिलनसार स्वभाव के शरमन जोशी सप्तरंग के पाठकों को बता रहे हैं अपने चुलबुले बचपन के बारे में-
[शरारत से रहा गहरा नाता]
मैं नन्हीं उम्र में बहुत शरारती था, लेकिन सच कहूं तो मैंने कभी कोई शरारत जान-बूझ कर नहीं की। दरअसल, मुझे बचपन में खेलने का बहुत शौक था। जैसे ही पढ़ाई से फुरसत मिलती, मैं दोस्तों के साथ बिल्डिंग कंपाउंड में क्रिकेट, फुटबॉल या फिर हॉकी खेलने में जुट जाता था। खेल के दौरान बॉल का पड़ोसियों के घरों में जाना स्वाभाविक था। फिर क्या? बॉल लोगों के घरों में जाती और वे मम्मी के पास शिकायत लेकर आ जाते। उसके बाद मम्मी के सामने मेरी क्लास लग जाती थी। यह उन दिनों रोजमर्रा की बात हुआ करती थी।
[कभी मार नहीं पड़ी]
मम्मी-पापा के पास प्रतिदिन मेरी शिकायत आती थी। उसके बावजूद उन्होंने मुझ पर और मेरी बड़ी बहन मानसी पर कभी हाथ नहीं उठाया। हां, हमें डांट जरूर जमकर पड़ती थी। दरअसल, मम्मी-पापा ने निर्णय किया था कि वे कभी हम लोगों को मारेंगे नहीं। सच कहूं तो मम्मी-पापा मुझसे इतना प्यार करते हैं कि वे मेरी आंखों में आंसू नहीं देख सकते। यही वजह है कि मैंने उन लोगों से जब जो मांगा, उन्होंने कभी इंकार नहीं किया। उन लोगों ने हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाया है।
[हमेशा पाई वाहवाही]
मैंने अपने स्कूल में हमेशा वाहवाही पाई। यह वाहवाही परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए नहीं होती थी, बल्कि खेलों में अच्छी परफॉर्मेस के लिए होती थी। मैं अपने स्कूल को क्रिकेट, फुटबॉल एवं हॉकी में रिप्रजेंट करता था। ज्यादातर हमारी टीम ही जीतती थी। मैं पढ़ने में औसत दर्जे का छात्र था। मेरे पसंदीदा विषय गणित, विज्ञान, भूगोल थे।
[हर सपना हुआ पूरा]
मेरा शुरू से एक्टर बनने का सपना था। इसकी अहम वजह यह थी कि मेरी परवरिश एक्टिंग के माहौल में हुई। मेरे पापा अरविंद जोशी गुजराती थिएटर के चर्चित कलाकार हैं। बड़ी बहन मानसी छोटे पर्दे का जाना-पहचाना चेहरा हैं। बहरहाल, अब मेरा एक्टर बनने का सपना पूरा हो चुका है। रही बात बचपन की तो मैं बचपन को मिस नहीं करता क्योंकि मैं आज भी बच्चा हूं। मैं शरारतें आज भी करता हूं, लेकिन अब मुझे कोई डांटता नहीं है। बस, यही फर्क महसूस करता हूं!

Tuesday, November 11, 2008

असफलता ने बहुत कुछ सिखाया: अजय चंडोक | मुलाकात


-रघुवेंद्र सिंह
संजय दत्त और सैफ अली खान अभिनीत कॉमेडी फिल्म नहले पे दहला के बाद अब निर्देशक अजय चंडोक खलबली लेकर आ रहे हैं। यह भी एक कॉमेडी फिल्म है। इसमें निखिल द्विवेदी और साउथ की ऐक्ट्रेस सदा केंद्रीय भूमिका में हैं। प्रस्तुत हैं फिल्म को लेकर अजय चंडोक से बातचीत..
खलबली कैसी कॉमेडी फिल्म है?
इसमें दर्शकों को सीरियस किस्म की कॉमेडी देखने को मिलेगी। सीरियस कॉमेडी सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन सच यही है। यह तेलुगू की सुपरहिट फिल्म इवादि गोला वादिवे की रिमेक है। इसमें बत्तीस कलाकार हैं। कहानी बैंकॉक के एक होटल से शुरू होती है। होटल में गैंग्स्टर बने जॉनी लीवर बम रख देते हैं। उसी में सभी रुके हैं। बम की जानकारी होने के बाद कैसी खलबली मचती है, यह देखना दर्शकों के लिए रोमांचक होगा। एक बात मैं स्पष्ट कहना चाहूंगा कि यदि लोग मेरी फिल्म का जमकर लुत्फ उठाना चाहते हैं, तो अपना दिमाग घर पर छोड़कर जाएंगे।
फिल्म में बत्तीस कलाकार हैं। चयन और उनके साथ काम करने में दिक्कत नहीं हुई?
बिल्कुल नहीं, बल्कि हम सभी ने बहुत मजे से फिल्म की शूटिंग खत्म की। चंकी पांडे, जॉनी लीवर, राजपाल यादव, शक्ति कपूर, मनोज जोशी जैसे कलाकार जब एक जगह होंगे, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां का माहौल कैसा होगा! शूटिंग का अनुभव हम सभी के लिए सुखद और यादगार रहा।
आपकी पहली फिल्म नहले पे दहला बॉक्स ऑफिस पर अच्छा व्यवसाय नहीं कर सकी? क्या वजह मानते हैं?
मैं आगे बढ़ने में यकीन करता हूं। जो बीत गया, उस पर चर्चा करने से कोई लाभ नहीं होगा। उस फिल्म की असफलता से मैंने बहुत कुछ सीखा। उसकी असफलता से मुझे दुख जरूर हुआ, क्योंकि वह मेरी पहली फिल्म थी। मैंने उसमें बहुत मेहनत की थी। उसकी असफलता की वजह से मुझ पर अब प्रेशर बढ़ गया है। उम्मीद करता हूं कि खलबली दर्शकों को जरूर पसंद आएगी।
आपने पहली फिल्म संजय दत्त और सैफ अली खान को लेकर बनाई थी। इस फिल्म में कोई बड़ा कलाकार नहीं है?
दरअसल, खलबली की कहानी की डिमांड फ्रेश चेहरे थे। इसलिए मैंने निखिल और सदा को मुख्य भूमिका के लिए चुना। दोनों मेहनती और अनुभवी हैं। दोनों ने अच्छा काम किया है। इनकेसाथ काम करके मुझे मजा आया।
खलबली के बाद आप कौन-सी फिल्म लेकर आएंगे?
इस वक्त मैं संजय दत्त और अमीषा पटेल को लेकर फिल्म चतुर सिंह टू स्टार बना रहा हूं। यह कॉमेडी फिल्म है, जो जनवरी-फरवरी तक आएगी। वैसे, एक अन्य फिल्म भी है, लेकिन अभी उसके बारे में चर्चा नहीं करूंगा।
आप सिर्फ कॉमेडी फिल्में ही बना रहे हैं! क्या इसे डेविड धवन का प्रभाव माना जाए?
मैंने डेविड धवन के साथ अट्ठारह साल काम किया है। उनकी सोच और कार्यशैली का मुझ पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। वैसे, मैं रोमांटिक ऐक्शन फिल्में भी बनाना चाहता हूं।

अनुराग के काम से संतुष्ट नहीं आदित्य

-रघुवेंद्र सिंह
मुंबई। आदित्य चोपड़ा ने अपनी एक फिल्म की पंजाब में चल रही शूटिंग रोककर पूरी यूनिट को मुंबई वापस बुला लिया है। रानी मुखर्जी-शाहिद कपूर की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म के निर्देशन की कमान अनुराग सिंह के हाथ में है। जानकारी के मुताबिक, आदित्य चोपड़ा ने हाल में फिल्म के कुछ सीन देखे। ये दृश्य उन्हें नागवार गुजरे। आखिर सवाल यशराज बैनर की साख का जो ठहरा। फिर क्या था फिल्म की शूटिंग रोकने का फरमान जारी कर दिया। इस फिल्म की शूटिंग रब ने बना दी जोड़ी के रिलीज होने तक बंद रहेगी।
खबर तो इस बात की भी है कि आदित्य, अनुराग के काम से बिल्कुल संतुष्ट नहीं है। उनका तो यहां तक कहना है कि स्क्रिप्ट पर दोबारा काम किया जाए। स्क्रिप्ट में सुधार के बाद भी यदि बात नहीं बनती है, तो यह भी संभव है कि फिल्म का निर्माण ही स्थगित कर दिया जाए। यशराज प्रोडक्शन के प्रवक्ता के मुताबिक यह फिल्म बंद नहीं हो रही है। उनका पंजाब का शेड्यूल खत्म हो गया है, इसलिए यूनिट मुंबई आ गई है। फिलहाल फिल्म की शूटिंग नहीं हो रही है और अगला शेड्यूल अभी तक तय नहीं हुआ है।

Friday, November 7, 2008

डोर हमेशा दिल के करीब रहेगी: आयशा टाकिया/पसंदीदा फिल्म

-रघुवेंद्र सिंह
अब तक के अपने चार साल के ऐक्टिंग करियर में मैंने हिंदी-तमिल की कुल सत्रह फिल्मों में काम किया है। इन में से अपनी पसंदीदा फिल्म चुनना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल काम है, क्योंकि मैं किसी फिल्म के लिए हां तभी कहती हूं, जब मुझे कहानी और किरदार पसंद आता है। फिर भी मैं नि:संकोच कहूंगी कि नागेश कुक्नूर निर्देशित फिल्म डोर मेरी पसंदीदा फिल्म है। इसकी वजह यह नहीं कि वे मेरे राखी भाई हैं, बल्कि वाकई डोर एक बेहतरीन फिल्म है।
डोर हमेशा मेरे दिल के करीब इसलिए भी रहेगी, क्योंकि वह फिल्म मेरे करियर का टर्निग प्वॉइंट है। उसकी रिलीज के पहले मैं हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेत्रियों की भीड़ का एक हिस्सा भर थी, लेकिन उस फिल्म की रिलीज के बाद अचानक मेरे प्रति लोगों का नजरिया बदल गया। दरअसल, मेरी ग्लैमर डॉल की इमेज इस फिल्म की रिलीज के बाद बदल गई और एक अभिनेत्री के रूप में मुझे पहचान भी मिली। उस फिल्म में काम करने के बाद मुझे अपने ऐक्टर होने पर गर्व हुआ था। दरअसल, डोर की कहानी और मेरा मीरा का किरदार दोनों समाज की एक कड़वी सच्चाई बयां करते हैं। फिल्म में मीरा के किरदार के माध्यम से यह दिखाया गया है कि आज भी हमारे समाज में परंपराओं के नाम पर स्त्रियों का शोषण हो रहा है।
मेरे लिए मीरा का किरदार निभाना चुनौती थी और मैंने उस चुनौती को स्वीकार भी किया। शुरू में मुझे उस किरदार को निभाने में दिक्कत जरूर हुई, लेकिन धीरे-धीरे मैं उस किरदार में ढल गई। इस मामले में नागेश ने मेरी बहुत मदद की थी। मुझे इस बात की जानकारी बाद में मिली कि नागेश मीरा के किरदार के लिए मुझे साइन करने से पहले डरे हुए थे। उन्हें इस बात का डर था कि मैं मीरा के किरदार के साथ न्याय कर पाऊंगी या नहीं, लेकिन बाद में सब लोगों ने मेरे काम की सराहना की। मुझे उस फिल्म में गुल पनाग, श्रेयस तलपड़े और गिरीश कर्नाड जैसे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम करने का अवसर मिला। वैसे, यह भी एक सच है कि मैंने भी उस फिल्म से बहुत कुछ सीखा।
आज मैं जिस मुकाम पर हूं, उसमें डोर का बहुत बड़ा योगदान है। उस फिल्म में मेरा काम देखने के बाद ही आज फिल्मकार मुझे वॉन्टेड और तस्वीर जैसी फिल्मों के लिए साइन कर रहे हैं। उस तरह का किरदार करने का अवसर बहुत कम अभिनेत्रियों को मिलता है। मैं इसलिए खुश हूं कि चार साल के अपने छोटे से करियर में ऐसा किरदार निभाने का मौका मिला। वैसे, इसका श्रेय निर्देशक नागेश कुक्नूर को ही जाता है।

तोहफे में मिली एक विवाह ऐसा भी: ईशा कोप्पिकर

-रघुवेंद्र सिंह
राजश्री प्रोडक्शन की नई फिल्म एक विवाह ऐसा भी में अभिनेत्री ईशा कोप्पिकर नायिका चांदनी की भूमिका निभा रही हैं। चांदनी अपने पापा की लाडली और जिम्मेदार बेटी है, जो स्वभाव से बहुत चुलबुली है। जब उसकी जिंदगी में प्रेम आता है, तब वह समर्पित प्रेमिका बनकर सामने आती है। संक्षेप में कहें, तो खूबसूरत चांदनी शुद्ध भारतीय संस्कारों की संवाहक है। एक मुलाकात में ईशा से एक विवाह ऐसा भी के बारे में बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश..
एक विवाह ऐसा भी की चांदनी से आप कितना इत्तिफाक रखती हैं?
मैं चांदनी की परछाई हूं। चूंकि मैं ग्लैमरस भूमिकाएं निभाती रही हूं, इसीलिए लोग सोचते हैं कि मैं रिअॅल-लाइफ में भी वैसी ही हूं। सच तो यह है कि मुझे करीब से बहुत कम लोग जानते हैं। मैं अपनी फैमिली की लाडली हूं। सरल, स्नेही, मिलनसार, खुशमिजाज, साफदिल, जिम्मेदार और सच में जीने वाली लड़की हूं। वैसे, सच तो यह है कि ऐसे ही लोग पसंद भी हैं मुझे।
फिर तो चांदनी की भूमिका निभाने का अनुभव बहुत सुखद रहा होगा?
बिल्कुल। यह मेरा अब तक का सबसे अच्छा किरदार है। मैं सूरज बड़जात्या और अपने निर्देशक कौशिक घटक की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे चांदनी के किरदार को निभाने का सुनहरा अवसर दिया। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद मेरी पहचान बदल जाएगी। मुझे पूरा यकीन है कि फिल्म मेरे करियर को नया मोड़ देगी।
आपकी लोगों में पहचान एक ग्लैमरस ऐक्ट्रेस के रूप में है। ऐसे में जब चांदनी की भूमिका का प्रस्ताव आया, तो आप चौंकी नहीं?
बिल्कुल नहीं, बल्कि मुझे खुशी हुई कि फिल्म इंडस्ट्री में सूरज जी जैसे कुछ फिल्ममेकर भी हैं, जिन्हें आर्टिस्ट की इमेज से कोई फर्क नहीं पड़ता! दरअसल, सूरज जी जानते हैं कि कलाकार के रूप में मुझमें कितनी संभावना है? वैसे, मैं पहली बार इस तरह की भूमिका नहीं निभा रही हूं। सच तो यह है कि मैंने साउथ की फिल्मों में इसी तरह की भूमिकाएं पहले भी की हैं। वहां मेरी छवि गर्ल नेक्स्ट डोर की है। खास बात यह है कि सूरज जी ने पिछले साल मुझे यह फिल्म मेरे जन्मदिन के तोहफे में दी है।
शीर्षक से प्रतीत हो रहा है कि यह राजश्री की पिछली लोकप्रिय फिल्म विवाह का सिक्वल है?
नहीं, एक विवाह ऐसा भी का विवाह से कोई कनेक्शन नहीं है। इसकी कहानी चांदनी और प्रेम के अटूट प्यार, त्याग, समर्पण और संघर्ष की है। प्रेम की भूमिका में सोनू सूद हैं। चांदनी और प्रेम का विवाह तय होता है, लेकिन चांदनी पर अचानक ऐसी मुसीबत आती है कि प्रेम के परिवार वाले उससे रिश्ता नहीं करने का निर्णय लेते हैं। हालांकि प्रेम और चांदनी एक-दूसरे से अटूट प्यार करते हैं। अंत में चांदनी और प्रेम का मिलन कैसे होता है, यह देखना दर्शकों को सुखद अनुभव देगा!
अब तक आपने स्टार कलाकारों के साथ काम किया है। सोनू सूद जैसे कम चर्चित कलाकार केसाथ काम करने से आप हिचकी नहीं?
मुझे जब सूरज जी ने यह बताया कि प्रेम की भूमिका सोनू सूद निभाएंगे, तो मैं हैरान जरूर हुई थी, लेकिन उन्होंने मुझे समझाया कि आप ऐक्टर पर नहीं, फिल्म पर ध्यान दीजिए और मुझ पर विश्वास रखिए। मैंने वही किया और आज फाइनल फिल्म देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। सोनू ने प्रेम के चरित्र को बहुत ही खूबसूरती से निभाया है। लोगों को उनके साथ मेरी केमिस्ट्री बहुत अच्छी लगेगी।
राजश्री और निर्देशक कौशिक घटक के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मैं अब तक यही सोचा करती थी कि राजश्री की फिल्में इतनी साफ-सुथरी कैसे होती हैं! उनकी फिल्मों में भावनाओं को इतनी अच्छी तरह से कैसे पेश किया जाता है! अब मुझे अपने सभी सवालों का जवाब मिल गया है। दरअसल, राजश्री परिवार के लोग बहुत संस्कारी और प्यारे हैं। वे लोग कलाकार को इतना प्यार और आदर देते हैं कि क्या बताएं! वे लोग इज्जत देकर मार डालते हैं। चूंकि कौशिक घटक भी अब उसी परिवार के सदस्य हो गए हैं, इसलिए उनमें इन गुणों का होना स्वाभाविक ही है। कौशिक जी बहुत सिंपल और प्यारे इनसान हैं। वे दिखने में दुबले-पतले जरूर हैं, लेकिन काम तूफान की तरह करते हैं। सच तो यह है कि मैं राजश्री के साथ दोबारा काम करने की इच्छा रखती हूं।
चांदनी के परिचय के बाद आपके लिए भूमिकाएं चुनना मुश्किल नहीं हो जाएगा?
मैं अभी से फिल्में साइन करने के मामले में चूजी हो गई हूं। अब मैं सिर्फ चैलेंजिंग भूमिकाओं के लिए ही हां कहती हूं। मेरी कई फिल्में हेलो डार्लिग, हर पल, शबरी और राइट या रॉन्ग प्रदर्शन के लिए तैयार हैं। इनमें मेरी अलग-अलग रंग वाली भूमिकाएं दर्शकों के लिए सरप्राइज होंगी।