मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी/रघुवेंद्र सिंह]। शुक्रवार दोपहर करीब 2.30 बजे एनएसजी के मुखिया जे.के.दत्ता जब मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित होटल ट्राइडेंट-ओबेराय के मुख्य द्वार से अपने साथियों के साथ बाहर आ रहे थे तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। यह मुस्कुराहट इस बात का सुबूत थी कि करीब 40 घंटे से ओबेराय में आतंकियों के साथ चल रहा एनएसजी का संघर्ष देश की विजय में बदल चुका है।
बुधवार को देश पर सबसे बडे़ आतंकी हमले के बाद आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष की शुरुआत वास्तव में कुलाबा क्षेत्र में स्थित नरीमन हाउस से हुई थी। वहां रात करीब पौने दस बजे गोलियां चलने की आवाज सुन कर लोगों को लगा था कि इस बिल्डिंग में रहनेवाले यहूदी समुदाय में आपसी संघर्ष हो गया है। लेकिन जल्दी ही सीएसटी रेलवे स्टेशन, गेटवे आफ इंडिया के सामने स्थित होटल ताज, नरीमन प्वाइंट स्थित होटल ट्राइडेंट [पहले का नाम ओबेराय], कुलाबा के एक पब लियोपोल्ड सहित दक्षिण मुंबई की सड़कों पर भी जब गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं तो लोगों और प्रशासन को समझ में आ गया कि यह आतंकी हमला है। लेकिन यह अहसास उस समय भी नहीं हुआ था कि यह देश का अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला साबित होगा।
हमला शुरू होने के कुछ ही घंटों के अंदर मुंबई पुलिस ने दो आईपीएस अधिकारियों सहित करीब एक दर्जन पुलिसकर्मी खो दिए तो मामला गंभीर नजर आने लगा। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री राज्य से बाहर थे। गृह मंत्रालय के प्रभारी उप मुख्यमंत्री आर.आर. पाटिल थे तो मुंबई में ही, लेकिन उनकी कार्रवाई बयानों से आगे बढ़ती नजर नहीं आ रही थी। मुख्यसचिव जानी जोसेफ, एक कैबिनेट मंत्री अनीस अहमद एवं कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने रात करीब 12 बजे मंत्रालय के कंट्रोल रूम में बैठकर मुख्यमंत्री को सारी स्थिति की जानकारी दी और केंद्र से सुरक्षाबल मंगवाने का आग्रह किया। पता चला है कि इसी टीम ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को भी स्थिति की जानकारी दी और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डो को मुंबई बुलाने का मामला आगे बढ़ा।
समय न गंवाते हुए सबसे पहले भारतीय नौसेना के मरीन कमांडोज को बुलाने का निर्णय किया गया। बुधवार-वीरवार की मध्यरात्रि के बाद करीब 2.45 बजे मरीन कमांडोज ने मोर्चा संभाल लिया।
सुबह करीब चार बजे मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख केरल यात्रा अधूरी छोड़ मुंबई एयरपोर्ट से सीधे मंत्रालय स्थित कंट्रोल रूम पहुंचे। वहां इंतजार कर रहे अपने अधिकारियों के साथ जल्दी ही वह राजभवन के लिए रवाना हो गए। तब तक दिल्ली से एनएसजी कमांडों के 200 जवान मुंबई में उतर चुके थे। उनका नेतृत्व कर रहे अधिकारी भी सीधे राजभवन पहुंचे। बचाव कार्य में लगे अन्य सुरक्षाबलों एवं सेना के अधिकारियों को वहीं बुला लिया गया। हालात इतने नाजुक एवं युद्ध जैसे थे कि एनएसजी के साथ-साथ सेना के तीनों अंगों के इस्तेमाल की नौबत दिखाई दे रही थी । और निर्णय भी ऐसा ही किया गया। गुरुवार की सुबह सात बजते-बजते एनएसजी के जांबाजों को होटल ताज, ओबेराय एवं नरीमन हाउस में घुसने के आदेश दे दिए गए।
उक्त तीनों स्थानों पर एनएसजी ने मुख्य द्वार सहित अन्य सभी द्वारों को पहले कब्जे में लिया , फिर सावधानी के साथ अंदर घुसना शुरू किया। नीचे से ऊपर की ओर जाना आसान नहीं था, लेकिन कमांडो कहीं लेटकर तो कहीं छुपकर आगे बढ़ रहे थे। होटल के जो कमरे खुले पाए गए, उनमें घुसना आसान लेकिन आशंका भरा था। यही कारण है कि एक-एक कमरे की तलाशी लेकर उन पर अपना कब्जा जमाना कमांडोज के लिए समय की दृष्टि से काफी खर्चीला साबित हो रहा था। लेकिन एकमात्र सुरक्षित तरीका भी यही था। इसके साथ-साथ कमांडो टीम जिन कमरों का निरीक्षण कर लेती थी, उनमें लगे परदे हटा दिए जाते थे। ताकि बाहर खड़े अपने साथियों को संकेत दिया जा सके कि आपरेशन कहां तक पहुंचा। साथ ही, बाद में आवश्यकता पड़ने पर बाहर से भी इन कमरों के अंदर देखा जा सके। इन दोनों होटलों के ऊपरी कमरों के अंदर का दृश्य देखने के लिए तो नौसेना के हेलीकाप्टरों की भी मदद ली गई।
होटल ओबेराय में इस आंतकी घटना के गवाह रहे दिल्ली के अमित गुप्ता बताते हैं कि बुधवार रात पौने दस बजे जैसे ही उन्होंने चेक इन किया, आतंकियों ने हमला बोल दिया। उस समय वह सत्रहवीं मंजिल स्थित अपने कमरे में थे। गुरुवार सुबह करीब नौ बजे किसी ने उनका दरवाजा खटखटाया। एनएसजी ने उनके कमरे को ही अपनी कार्रवाई का केंद्र बनाकर आगे की कार्रंवाई का संचालन किया।
अमित सत्रहवीं मंजिल पर थे और अठारहवीं मंजिल पर आतंकवादी। आतंकियों ने वहां तीन महिलाओं एवं छह पुरुषों को बंधक बना रखा था, जिन्हें बाद में मार डाला। एनएसजी को सत्रहवीं से अठारहवीं मंजिल तक पहुंचने में काफी वक्त लग गया। इसके बाद की कार्रवाई बहुत मुश्किल थी। जो कमरे बंद थे और नहीं खुल रहे थे, उन्हें विस्फोट के जरिए खोला जाता था। फूंक-फूंक कर चलते हुए कमांडो टीम ने गुरुवार की रात करीब दो बजे एक आतंकी को मार गिराने में सफलता हासिल की, जबकि दूसरा आतंकी शुक्रवार सुबह पांच बजे मारा गया।
तलाशी अभियान धीरे-धीरे होटल ट्राइडेंट की 34वीं मंजिल तक ले जाया गया। लेकिन काम अभी भी खत्म नहीं हुआ था। ट्राइडेंट के बगल में ही इसी समूह का दूसरा होटल - द ओबेराय- भी है, जो ऊंचाई में उससे काफी छोटा है। कमांडो टीम ने शुक्रवार सुबह से इस होटल में अपना अभियान नीचे के बजाय ऊपर से शुरू किया और उसी प्रकार एक-एक कमरे की तलाशी लेकर उनके परदे उतारते हुए नीचे तक आए।
नरीमन हाउस
कुलाबा की घनी बस्ती में स्थित छह मंजिला इमारत - नरीमन हाउस - के बारे में कहा जाता है कि इस पर आतंकियों की बहुत पहले से नजर थी। कुछ सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि आतंकी इसी इमारत में पिछले कुछ महीनों से रह रहे थे और इसे अपने इस अभियान के मुख्य केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। स्टेट रिजर्व पुलिस ने तो इस इमारत को बुधवार की रात से ही घेर लिया था। गुरुवार की सुबह से यहां पहुंचे एनएसजी के 30 जवानों ने स्वयं को 10-10 की तीन टीमों में बांटकर बिल्डिंग में छिपे आतंकियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन कोई विशेष सफलता मिलते न देख शुक्रवार को छत के रास्ते इमारत में घुसने की रणनीति अपनाई गई। इसके लिए सी-किंग हेलीकाप्टरों की मदद ली गई। हेलीकाप्टरों के जरिए नरीमन हाउस के साथ उसके बगल की भी एक इमारत पर जवान उतारे गए, ताकि नरीमन हाउस की एक-एक मंजिल पर निगाह रखी जा सके एवं इमारत में घुस रहे अपने जवानों को कवर दिया जा सके।
छत पर उतरते ही जवानों ने नीचे उतरना शुरू कर दिया था। ऊपर से तीन मंजिलें नीचे आने तक उन्हें किसी विशेष दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन उसके बाद उनके कदम ठिठक गए, क्योंकि इसके बाद आतंकियों ने यहूदी परिवार के पांच सदस्यों को बंधक बना कर उसी कमरे में रखा था, जिसमें वे स्वयं थे। आतंकियों द्वारा रह रह कर जवानों पर गोलियां भी चलाई जा रही थीं और अंदर आने पर बंधकों को मारने की धमकी भी दी जा रही थी। जवानों को यह डर भी सता रहा था कि उनकी आक्रामक कार्रवाई में कहीं निर्दोष बंधकों की ही जान न चली जाए। लेकिन शाम पांच बजे तक भी इस स्थिति में कोई परिवर्तन होते न देख जब एनएसजी ने आतंकियों पर अपना दबाव बढ़ाया तो बचने का कोई रास्ता न देख आतंकियों ने एक-एक कर पांचों बंधकों को मार डाला। इस स्थिति का अनुमान लगते ही कमांडो फोर्स ने दूसरी बिल्डिंग में खड़े अपने साथियों से राकेट लांचर के जरिए नरीमन हाउस के उस भाग पर हमला करने को कहा, जहां उन्हें आतंकियों के होने की उम्मीद थी। ये हमला शुरू होने के बाद आतंकियों पर बाहर निकलने का दबाव बढ़ने लगा। इसके बावजूद उनके बाहर न आने पर एनएसजी द्वारा किए गए दोतरफा हमलों में सभी आतंकी मारे गए।