सलमान खान की अनिल शर्मा निर्देशित वीर को पीरियड फिल्म माना जा रहा है। निर्देशक अनिल शर्मा और लेखक-अभिनेता सलमान खान से हुई बातचीत का निष्कर्ष निकालें तो इसे कास्ट्यूम ड्रामा कहना ज्यादा उचित होगा। यह फिल्म इतिहास या ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है और न ही वीर कोई ऐतिहासिक चरित्र है।
पीरियड फिल्म तथ्यपरक और काल्पनिक दोनों हो सकती हैं, लेकिन उनमें कालविशेष और परिवेश पर खास ध्यान दिया जाता है। पिंजर के निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी मानते हैं, ''हर फिल्म एक लिहाज से पीरियड फिल्म होती है, क्योंकि उसमें किसी न किसी काल के परिवेश को दर्शाया जाता है। अपने यहां पीरियड के नाम पर कास्ट्यूम ड्रामा की फिल्में बनती रही हैं।''
मुगलेआजम, ताजमहल, सिकंदर, पाकीजा आदि कई फिल्में इसी श्रेणी में आती हैं। अगर वास्तविक पीरियड फिल्मों की बात करें तो शतरंज के खिलाड़ी, गर्म हवा, जुनून, पिंजर और जोधा अकबर जैसी फिल्मों का उल्लेख किया जा सकता है। लगान और गदर भी पीरियड फिल्में मानी जाती हैं, लेकिन उनमें कल्पना की छूट ली गयी है।
अनिल शर्मा की वीर भव्यता और विशालता का आभास दे रही है। उन्होंने सीजी और वीएफएक्स इफेक्टस से यह भव्यता हासिल की है। उन्होंने पिंडारी समुदाय पर शोध किया और करवाया है। सलमान खान ने उन्नीसवीं सदी के परिवेश के मुताबिक वेशभूषा भी धारण की है, पर आप ने गौर किया होगा कि सलमान खान का कवच ग्लैडिएटर के हीरो के कवच से प्रेरित लग रहा है। इस फिल्म पर विदेशी फिल्मों की मेकिंग का प्रभाव है। वीर इसलिए उल्लेखनीय है कि सलमान खान जैसे पॉपुलर स्टार ने पीरियड करने की हिम्मत दिखायी और उसे पूरे जोर-शोर से प्रचारित भी कर रहे हैं।
क्या है वीर के पीछे और कितनी करनी पड़ी मशक्कत, प्रस्तुत है सलमान खान से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
'वीर' में क्या जादू बिखेरने जा रहे हैं आप?
मुझे देखना है कि दर्शक क्या जादू देखते हैं। एक्टर के तौर पर अपनी हर फिल्म में मैं बेस्ट शॉट देने की कोशिश करता हूं। कई बार यह उल्टा पड़ जाता है, दर्शक फिल्म ही रिजेक्ट कर देते हैं।
वीर जैसी पीरियड फिल्म का खयाल कैसे आया? आपने क्या सावधानियां बरतीं?
यहां की पीरियड फिल्में देखते समय मैं अक्सर थिएटर में सो गया हूं। ऐसा लगता है कि पिक्चर जिस जमाने के बारे में है, उसी जमाने में रिलीज होनी चाहिए थी। डायरेक्टर फिल्म को सीरियस कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उन दिनों कोई हंसता नहीं था। सोसायटी में ह्यूमर नहीं था। लंबे सीन और डायलाग होते थे। 'मल्लिका-ए-हिंद पधार रही हैं' और फिर उनके पधारने में सीन निकल जाता था। इस फिल्म से वह सब निकाल दिया है। म्यूजिक भी ऐसा रखा है कि आज सुन सकते हैं। पीरियड फिल्मों की लंबाई दुखदायक होती रही है। तीन, साढ़े तीन और चार घंटे लंबाई रहती थी। उन दिनों 18-20 रील की फिल्मों को भी लोग कम समझते थे। अब वह जमाना चला गया है। इंटरेस्ट रहने तक की लेंग्थ लेकर चलें तो फिल्म अच्छी लगेगी। आप सेट और सीन के लालच में न आएं। यह फिल्म हाईपाइंट से हाईपाइंट तक चलती है। इस फिल्म के डायलाग भी ऐसे रखे गए हैं कि सबकी समझ में आए। यह इमोशनल फिल्म है। एक्शन है। ड्रामा है।
इस फिल्म के निर्माण में आप ने अनिल शर्मा से कितनी मदद ली है?
उन्होंने इस फिल्म को अकल्पनीय बना दिया है। वीर के सीन करते हुए मुझे हमेशा लगता रहा कि मैं उन्नीसवीं सदी में ही पैदा हुआ था। कास्ट्यूम और माहौल से यह एहसास हुआ। वह जरूरी भी था। हमें दर्शकों को उन्नीसवीं सदी में ले जाना था। फिल्म देखते हुए पीरियड का पता चलना चाहिए ना?
पिंडारियों को लुटेरी कौम माना जाता रहा है। आप उस कौम के हीरो को 'वीर' के रूप में पर्दे पर पेश कर रहे हैं। इस तरफ ध्यान कैसे गया?
पिंडारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ खुद को एकजुट किया था। वे मूल रूप से किसान थे। जब उन्हें लूट लिया गया तो वे भी लूटमार पर आ गए, लेकिन उनका मकसद था आजादी । आजादी की चिंगारी उन्होंने लगायी थी। मैंने एक फिल्म देखी थी बचपन में, उस से प्रेरित होकर मैंने पिंडारियों पर इसे आधारित किया। भारत का इतिहास अंग्रेजों ने लिखा, इसलिए अपनी खिलाफत करने वाली कौम को उन्होंने ठग और लुटेरा बता दिया। इस फिल्म में हम लोगों ने बताया है कि पिंडारी क्या थे?
आप ने पिता जी की मदद ली कि नहीं? आप दोनों ने कभी साथ में काम किया है क्या?
उन्होंने मेरी एक फिल्म लिखी थी पत्थर के फूल। उसके बाद उन्होंने लिखना ही बंद कर दिया। वे मेरे पिता हैं तो उनकी मदद लेना लाजिमी है। किसी भी फिल्म में कहीं फंस जाते हैं तो उनकी मदद लेते हैं। और वे तुरंत सलाह देते हैं।
इस फिल्म के लिए अलग से क्या मेहनत करनी पड़ी?
पहले मैंने बॉडी पर काम शुरू किया। फिर पता चला कि उस समय लोग सिक्स पैक नहीं बनाते थे। वे हट्टे-कट्टे रहते थे। उनकी टांगों और जांघों में भी दम रहता था। इसके बाद देसी एक्सरसाइज आरंभ किया। माडर्न तरीके में लोग धड़ से नीचे का खयाल नहीं रखते। ऐसा लगता है कि माचिस की तीलियों पर बाडी रख दी गयी हो। मुझे मजबूत व्यक्ति दिखना था।
अभी फिल्मों के प्रमोशन पर स्टार पूरा ध्यान देने लगे हैं। अब तो आप भी मीडिया से खूब बातें करते हैं?
करना पड़ता है। आप के लिए तो एक इंटरव्यू है, लेकिन मुझे अभी पचास इंटरव्यू देने हैं। फिर भी पता चलेगा कि कोई छूट गया। पहले का समय अच्छा था कि ट्रेलर चलता था। फिल्मों के पोस्टर लगते थे और दर्शक थिएटर आ जाते थे। अभी तो दर्शकों को बार-बार बताना पड़ता है कि भाई मेरी फिल्म आ रही है। पहले थोड़ा रिलैक्स रहता था। कभी मूड नहीं किया तो काम पर नहीं गए। अभी ऐसा सोच ही नहीं सकते। प्रमोशन, ध्यान, मेहनत सभी चीज का लेवल बढ़ गया है!
आपकी आंखों में हमेशा एक जिज्ञासा दिखती है। ऐसा लगता है कि आप हर आदमी को परख रहे होते हैं। क्या सचमुच ऐसा है?
वास्तव में मैं खुद में मगन रहता हूं। ऐसा लग सकता है कि मैं आप को घूर या परख रहा हूं, लेकिन माफ करें ़ ़ ़वह मेरे देखने का अंदाज है। मैं क्या लोगों को परखूंगा? आप लोग मुझे तौलते-परखते हैं और फिर लिखते हैं।
कौन थे पिंडारी?
पिंडारी एक योद्धा कौम थी। दो सौ साल पहले मुगल शासन के अंत के समय यह अस्तित्व में आयी। पिंडारी साहस, पराक्रम, तलवार बाजी और घुड़सवारी के खास अंदाज के लिए प्रसिद्ध थे। पिंडारी कौम में देश के अलग-अलग राज्यों के लोग थे। उन्होंने मुगल शासन का अंत करने में मराठा शासकों की बहुत मदद की। पिंडारियों ने ब्रिटिश शासकों के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। उन्होंने गुलामी स्वीकार करने की बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा। वे अपनी जन्मभूमि के लिए अंतिम समय तक लड़ते रहे। पिंडारियों से आजिज आकर 1817 में ब्रिटिश शासक लॉर्ड हैस्टिंग्स ने उनके खिलाफ पिंडारी वॉर छेड़ दिया। दो साल की लड़ाई के बाद अंत में ब्रिटिश शासक पिंडारियों पर नियंत्रण पाने में सफल हुए। जीवित पिंडारी लीडर एवं उनके परिवार को ब्रिटिश शासकों द्वारा गोरखपुर में जमीन और पेंशन देकर बसा दिया गया!
-अजय ब्रह्मंात्मज/ रघुवेन्द्र
पीरियड फिल्म तथ्यपरक और काल्पनिक दोनों हो सकती हैं, लेकिन उनमें कालविशेष और परिवेश पर खास ध्यान दिया जाता है। पिंजर के निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी मानते हैं, ''हर फिल्म एक लिहाज से पीरियड फिल्म होती है, क्योंकि उसमें किसी न किसी काल के परिवेश को दर्शाया जाता है। अपने यहां पीरियड के नाम पर कास्ट्यूम ड्रामा की फिल्में बनती रही हैं।''
मुगलेआजम, ताजमहल, सिकंदर, पाकीजा आदि कई फिल्में इसी श्रेणी में आती हैं। अगर वास्तविक पीरियड फिल्मों की बात करें तो शतरंज के खिलाड़ी, गर्म हवा, जुनून, पिंजर और जोधा अकबर जैसी फिल्मों का उल्लेख किया जा सकता है। लगान और गदर भी पीरियड फिल्में मानी जाती हैं, लेकिन उनमें कल्पना की छूट ली गयी है।
अनिल शर्मा की वीर भव्यता और विशालता का आभास दे रही है। उन्होंने सीजी और वीएफएक्स इफेक्टस से यह भव्यता हासिल की है। उन्होंने पिंडारी समुदाय पर शोध किया और करवाया है। सलमान खान ने उन्नीसवीं सदी के परिवेश के मुताबिक वेशभूषा भी धारण की है, पर आप ने गौर किया होगा कि सलमान खान का कवच ग्लैडिएटर के हीरो के कवच से प्रेरित लग रहा है। इस फिल्म पर विदेशी फिल्मों की मेकिंग का प्रभाव है। वीर इसलिए उल्लेखनीय है कि सलमान खान जैसे पॉपुलर स्टार ने पीरियड करने की हिम्मत दिखायी और उसे पूरे जोर-शोर से प्रचारित भी कर रहे हैं।
क्या है वीर के पीछे और कितनी करनी पड़ी मशक्कत, प्रस्तुत है सलमान खान से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
'वीर' में क्या जादू बिखेरने जा रहे हैं आप?
मुझे देखना है कि दर्शक क्या जादू देखते हैं। एक्टर के तौर पर अपनी हर फिल्म में मैं बेस्ट शॉट देने की कोशिश करता हूं। कई बार यह उल्टा पड़ जाता है, दर्शक फिल्म ही रिजेक्ट कर देते हैं।
वीर जैसी पीरियड फिल्म का खयाल कैसे आया? आपने क्या सावधानियां बरतीं?
यहां की पीरियड फिल्में देखते समय मैं अक्सर थिएटर में सो गया हूं। ऐसा लगता है कि पिक्चर जिस जमाने के बारे में है, उसी जमाने में रिलीज होनी चाहिए थी। डायरेक्टर फिल्म को सीरियस कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उन दिनों कोई हंसता नहीं था। सोसायटी में ह्यूमर नहीं था। लंबे सीन और डायलाग होते थे। 'मल्लिका-ए-हिंद पधार रही हैं' और फिर उनके पधारने में सीन निकल जाता था। इस फिल्म से वह सब निकाल दिया है। म्यूजिक भी ऐसा रखा है कि आज सुन सकते हैं। पीरियड फिल्मों की लंबाई दुखदायक होती रही है। तीन, साढ़े तीन और चार घंटे लंबाई रहती थी। उन दिनों 18-20 रील की फिल्मों को भी लोग कम समझते थे। अब वह जमाना चला गया है। इंटरेस्ट रहने तक की लेंग्थ लेकर चलें तो फिल्म अच्छी लगेगी। आप सेट और सीन के लालच में न आएं। यह फिल्म हाईपाइंट से हाईपाइंट तक चलती है। इस फिल्म के डायलाग भी ऐसे रखे गए हैं कि सबकी समझ में आए। यह इमोशनल फिल्म है। एक्शन है। ड्रामा है।
इस फिल्म के निर्माण में आप ने अनिल शर्मा से कितनी मदद ली है?
उन्होंने इस फिल्म को अकल्पनीय बना दिया है। वीर के सीन करते हुए मुझे हमेशा लगता रहा कि मैं उन्नीसवीं सदी में ही पैदा हुआ था। कास्ट्यूम और माहौल से यह एहसास हुआ। वह जरूरी भी था। हमें दर्शकों को उन्नीसवीं सदी में ले जाना था। फिल्म देखते हुए पीरियड का पता चलना चाहिए ना?
पिंडारियों को लुटेरी कौम माना जाता रहा है। आप उस कौम के हीरो को 'वीर' के रूप में पर्दे पर पेश कर रहे हैं। इस तरफ ध्यान कैसे गया?
पिंडारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ खुद को एकजुट किया था। वे मूल रूप से किसान थे। जब उन्हें लूट लिया गया तो वे भी लूटमार पर आ गए, लेकिन उनका मकसद था आजादी । आजादी की चिंगारी उन्होंने लगायी थी। मैंने एक फिल्म देखी थी बचपन में, उस से प्रेरित होकर मैंने पिंडारियों पर इसे आधारित किया। भारत का इतिहास अंग्रेजों ने लिखा, इसलिए अपनी खिलाफत करने वाली कौम को उन्होंने ठग और लुटेरा बता दिया। इस फिल्म में हम लोगों ने बताया है कि पिंडारी क्या थे?
आप ने पिता जी की मदद ली कि नहीं? आप दोनों ने कभी साथ में काम किया है क्या?
उन्होंने मेरी एक फिल्म लिखी थी पत्थर के फूल। उसके बाद उन्होंने लिखना ही बंद कर दिया। वे मेरे पिता हैं तो उनकी मदद लेना लाजिमी है। किसी भी फिल्म में कहीं फंस जाते हैं तो उनकी मदद लेते हैं। और वे तुरंत सलाह देते हैं।
इस फिल्म के लिए अलग से क्या मेहनत करनी पड़ी?
पहले मैंने बॉडी पर काम शुरू किया। फिर पता चला कि उस समय लोग सिक्स पैक नहीं बनाते थे। वे हट्टे-कट्टे रहते थे। उनकी टांगों और जांघों में भी दम रहता था। इसके बाद देसी एक्सरसाइज आरंभ किया। माडर्न तरीके में लोग धड़ से नीचे का खयाल नहीं रखते। ऐसा लगता है कि माचिस की तीलियों पर बाडी रख दी गयी हो। मुझे मजबूत व्यक्ति दिखना था।
अभी फिल्मों के प्रमोशन पर स्टार पूरा ध्यान देने लगे हैं। अब तो आप भी मीडिया से खूब बातें करते हैं?
करना पड़ता है। आप के लिए तो एक इंटरव्यू है, लेकिन मुझे अभी पचास इंटरव्यू देने हैं। फिर भी पता चलेगा कि कोई छूट गया। पहले का समय अच्छा था कि ट्रेलर चलता था। फिल्मों के पोस्टर लगते थे और दर्शक थिएटर आ जाते थे। अभी तो दर्शकों को बार-बार बताना पड़ता है कि भाई मेरी फिल्म आ रही है। पहले थोड़ा रिलैक्स रहता था। कभी मूड नहीं किया तो काम पर नहीं गए। अभी ऐसा सोच ही नहीं सकते। प्रमोशन, ध्यान, मेहनत सभी चीज का लेवल बढ़ गया है!
आपकी आंखों में हमेशा एक जिज्ञासा दिखती है। ऐसा लगता है कि आप हर आदमी को परख रहे होते हैं। क्या सचमुच ऐसा है?
वास्तव में मैं खुद में मगन रहता हूं। ऐसा लग सकता है कि मैं आप को घूर या परख रहा हूं, लेकिन माफ करें ़ ़ ़वह मेरे देखने का अंदाज है। मैं क्या लोगों को परखूंगा? आप लोग मुझे तौलते-परखते हैं और फिर लिखते हैं।
कौन थे पिंडारी?
पिंडारी एक योद्धा कौम थी। दो सौ साल पहले मुगल शासन के अंत के समय यह अस्तित्व में आयी। पिंडारी साहस, पराक्रम, तलवार बाजी और घुड़सवारी के खास अंदाज के लिए प्रसिद्ध थे। पिंडारी कौम में देश के अलग-अलग राज्यों के लोग थे। उन्होंने मुगल शासन का अंत करने में मराठा शासकों की बहुत मदद की। पिंडारियों ने ब्रिटिश शासकों के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। उन्होंने गुलामी स्वीकार करने की बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा। वे अपनी जन्मभूमि के लिए अंतिम समय तक लड़ते रहे। पिंडारियों से आजिज आकर 1817 में ब्रिटिश शासक लॉर्ड हैस्टिंग्स ने उनके खिलाफ पिंडारी वॉर छेड़ दिया। दो साल की लड़ाई के बाद अंत में ब्रिटिश शासक पिंडारियों पर नियंत्रण पाने में सफल हुए। जीवित पिंडारी लीडर एवं उनके परिवार को ब्रिटिश शासकों द्वारा गोरखपुर में जमीन और पेंशन देकर बसा दिया गया!
-अजय ब्रह्मंात्मज/ रघुवेन्द्र
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