कभी खामोश और
खुद में
गुम रहने
वाले आयुष्मान
खुराना एक
जबरदस्त एंटरटेनर
कैसे बन
गए? यह
रहस्य जानने
के लिए
इस नौजवान
से मिले
रघुवेन्द्र सिंह
दुबली-पतली काया,
आंखों पर
चश्मे और
दांतों पर
लगे ब्रेसेज
ने बचपन
में आयुष्मान
खुराना को
अंर्तमुखी बना दिया था. दिल
की बातें
किसी से
बांटने का
उनमें साहस
नहीं था.
हमउम्र बच्चों
की धमाल-चौकड़ी के
बीच वे
चुपचाप पड़े
रहते थे.
मगर उनके
पापा जानते
थे कि
उनका बेटा
काबिल और
होनहार है.
पापा के
प्रोत्साहन की बदौलत सहमे आयुष्मान
स्टेज पर
पहुंच गए.
और जब
उन्होंने डांस,
गायन और
अभिनय की
अपनी प्रतिभा
का खुलकर
प्रदर्शन किया,
तो लोग
वाह-वाह
करने लगे.
फलस्वरुप उस
मासूम बच्चे
का आत्मविश्वास
लौट आया.
मगर ज्योतिष
पिता को
भी नहीं
जानकारी थी
कि बड़ा
होकर उनका
बेटा एक
हैंडसम और
अटै्रक्टिव नौजवान बन जाएगा और
हिंदी फिल्मों
का हीरो
बनकर उन्हें
गर्व से
सीना चौड़ा
करने का
अवसर देगा.
विक्की डोनर
से हिंदी
फिल्मों में
एक सुनहरा
आगाज करने
वाले आयुष्मान
खुराना के
जीवन की
कहानी बड़ी
दिलचस्पी भरी
है.
रात के गयारह
बजे हैं.
हम अंधेरी
वेस्ट के
एक स्टूडियो
में हैं.
टीवी शो
के इस
सेट पर
आयुष्मान खुराना
अपने गिटार
के साथ
पानी दा
रंग गीत
गुनगुना रहे
हैं. अचानक
हमें किसी
महिला के
गाने की
आवाज सुनाई
देती है.
हम चौंक
जाते हैं,
यह देखकर
कि यह
सुरीली आवाज
भी आयुष्मान
की ही
है. ‘‘यह
प्रतिभा मुझमें
बचपन से
है.’’ आयुष्मान
ने अपनी
वैनिटी वैन
में कुर्सी
पर आराम
की मुद्रा
में बैठते
हुए हल्की
मुस्कान के
साथ कहा.
‘‘मैंने जानबूझ-कर अपने
इस हुनर
को एक्सप्लोर
नहीं किया
था. मैंने
किसी रियलिटी
शो के
मंच पर
कभी अपनी
इस प्रतिभा
का प्रदर्शन
नहीं किया.
हर हुनर
को दिखाने
का एक
सही समय
होता है
और मुझे
लगता है
कि मेरे
लिए अब
वह समय
आ गया
है.’’ विक्की
डोनर में
आयुष्मान ने
पानी दा
रंग गीत
गाया था,
जिसे संगीत
प्रेमियों ने खूब पसंद किया.
विक्की डोनर की
सफलता के
बाद आयुष्मान
का जीवन
वाकई काफी
बदल गया
है. ‘‘पहले
अवॉर्ड शोज
और टीवी
शोज में
मैं लोगों
से सवाल
पूछता था,
अब मुझसे
सवाल पूछे
जा रहे
हैं. यकीन
मानिए जवाब
देना बहुत
मुश्किल काम
है.’’ आयुष्मान
ने तय
किया है
कि अब
टीवी में
वे अपनी
सक्रियता कम
कर देंगे
और फिल्मों
को प्राथमिकता
देंगे. बहरहाल,
फिल्मों से
आयुष्मान का
रिश्ता चार
साल की
उम्र में
बन गया
था. कयामत
से कयामत
तक फिल्म
देखने के
बाद ही
उन्होंने तय
कर लिया
कि उन्हें
अमिर खान
बनना है
(पंजाब में
आमिर खान
को अमिर
खान बोलते
हैं). ‘‘लेकिन
मेरी दादी..
वो हैं
तो चंडीगढ़
से ही
ना! छोटे
शहर में
बोल नहीं
सकते कि
एक्टर बनना
चाहते हैं.
लोगों को
मजाक लगता
है. दादी
ने कहा
कि डॉक्टर
या इंजीनियर
बनो.’’
आयुष्मान ने बचपन
से देखा
है कि
उनकी दादी,
पापा, चाचा
फिल्मों के
दीवाने थे.
किसी नई
फिल्म के
रिलीज होते
ही पापा
और चाचा
को लेकर
उनकी दादी
थिएटर में
पहुंच जाती
थीं. उन्हीं
सब का
परिणाम है
कि आयुष्मान
का मन
थिएटर में
लगा. वे
स्कूल-कॉलेज
में पब्लिक
स्पीकिंग और
थिएटर में
काफी सक्रिय
थे. आयुष्मान
ने बताया,
‘‘अंधा युग
नाटक में
मैंने अश्वत्थामा
का किरदार
किया था.
पूरे देश
में मुझे
उसके लिए
बेस्ट एक्टर
के दस
पुरस्कार मिले
हैं. एक
नाटक मैंने
निर्देशित भी किया है. शुरु
में घर
वालों को
लगता था
कि मैं
समय बर्बाद
कर रहा
हूं, लेकिन
जब मुझे
अवॉर्ड मिलने
लगे और
मेरे प्रोफेसर्स
कहने लगे
कि अच्छा
एक्टर है,
तब परिवार
वालों को
लगा कि
इसे एक
मौका देना
चाहिए.’’ आयुष्मान
को एक्टिंग
में किस्मत
आजमाने के
लिए परिजनों
से छह
माह का
समय मिला.
उन्होंने सोचा
कि जर्नलिज्म
की पढ़ाई
करेंगे, बॉडी
बनाएंगे और
फिर मुंबई
आएंगे, लेकिन...
‘‘मेरे पापा
का नाम
पी खुराना
है. वे
ज्योतिषी हैं.
उन्होंने कहा
कि बेटे,
अगर कल
तुम मुंबई
नहीं गए,
तो अगले
दो साल
तक तुम्हें
काम नहीं
मिलेगा. अगर
मेरी बात
मानी, तो
एक हफ्ते
के अंदर
काम मिल
जाएगा. उन्होंने
अगले दिन
धक्के मारकर
घर से
निकाल दिया.’’
आयुष्मान 2006 में मुंबई
आ गए.
पापा की
बात सच
हुई. उन्हें
एक हफ्ते
के भीतर
टीवी सीरियल
में काम
मिल गया,
मगर उन्हें
तो फिल्मों
का हीरो
बनना था.
‘‘मैंने उन
मौकों की
परवाह नहीं
की. मैंने
रेडियो का
विकल्प चुन
लिया.’’ रेडियो?
यह मौका
कैसे हाथ
लग गया?
जवाब में
आयुष्मान ने
हंसते हुए
कहा, ‘‘रेडियो
में मेरे
एक दोस्त
हैं. उन्होंने
मुझे रेडियो
में ऑडिशन
देने का
सुझाव दिया.
मैंने उनकी
बात मानी.
मुझे चुन
लिया गया.
ट्रेनिंग के
बाद रेडियो
वालों ने
मुझे दिल्ली
भेज दिया,
क्योंकि दिल्ली
वालों से
मैं कनेक्ट
कर सकता
था. मैं
पहला आरजे
था, जिसकी
होर्डिंग दिल्ली
में लगाई
गई थी.’’
आयुष्मान कुछ
ही समय
में रेडियो
की दुनिया
के लोकप्रिय
आरजे बन
गए, मगर
कुछ ही
समय में
उनका मन
उब गया
और वे
मुंबई लौट
आए. ‘‘मैं
2004 में एमटीवी
रोडीज का
विनर रह
चुका था.
दिल्ली से
जब मुंबई
लौटा तो
एमटीवी एक
नया शो
लॉन्च कर
रहा था-
वॉसअप, जो
एंटरटेनमेंट न्यूज बेस्ड था. एमटीवी
रेडियो जॉकी
के ऑडिशन
ले रहा
था. मैं
आरजे भी
था और
रोडीज भी
रह चुका
था. मेरे
इस कॉम्निेशन
की वजह
से मुझे
वह शो
मिल गया.’’
टीवी में आयुष्मान
की लोकप्रियता
इस कदर
बढ़ी कि
फिल्मों के
ऑफर्स खुद-ब-खुद
उनके पास
आने लगे.
लेकिन उन्होंने
सब्र के
साथ काम
लिया. ‘‘फिल्में
सोच-समझकर
साइन करनी
पड़ती हैं.
एक टीवी
शो फ्लॉप
होता है,
तो दूसरा
मिल जाता
है, लेकिन
एक फिल्म
फ्लॉप होती
है, तो
दूसरी नहीं
मिलती. लोग
आपको याद
रखते हैं.
टीवी नेट
प्रैक्टिस होती है और फिल्में
फाइनल मैच.
मुझे कभी
स्क्रिप्ट पसंद नहीं आती, तो
कभी निर्देशक,
मगर विक्की
डोनर के
लिए शुजीत
सरकार ने
जिस आत्मविश्वास
के साथ
कहा कि
मुझे आयुष्मान
ही चाहिए,
मैं राजी
हो गया.’’
विक्की डोनर फिल्म
स्पर्म डोनेशन
जैसे संवेदनशील
विषय पर
आधारित फिल्म
थी. इसके
बारे में
भारतीय समाज
में लोग
खुलकर चर्चा
भी नहीं
करते. यह
विषय आयुष्मान
जैसे नवोदित
कलाकार के
लिए जोखिम
भरा फैसला
हो सकता
था. ‘‘यह
मेरे लिए
एक परफेक्ट
विषय था,
क्योंकि अगर
आप स्टार
पुत्र नहीं
हैं या
आपका कोई
गॉडफादर नहीं
है, तो
आपको ऐसे
ही विषय
का चुनाव
करना चाहिए,
जो अपने
आप में
हीरो हो.’’
आयुष्मान एमटीवी रोडीज
में एक
टास्क के
दौरान खुद
स्पर्म डोनेट
कर चुके
थे इसलिए
उनके या
उनके परिजनों
के लिए
यह हैरानी
का विषय
नहीं था.
मगर दिल्ली
में विक्की
डोनर की
शूटिंग के
दौरान आयुष्मान
को एक
नर्वस कर
देने वाली
परिस्थिति का सामना करना पड़ा.
‘‘मीडिलक्लास परिवार की एक महिला
मेरे पास
आईं. उन्होंने
पूछा कि
स्पर्म डोनेशन
क्या होता
है? मैं
उन्हें कैसे
समझाता. मैंने
उनके बेटे
से कहा
कि तुम्हारी
मम्मी स्पर्म
डोनेशन के
बारे में
पूछ रही
हैं, तुम्हीं
बता दो
उन्हें. उसने
कहा कि
मैं कैसे
समझाऊं. मैंने
कहा कि
आन्टी, आप
फिल्म देख
लेना. मैं
आपको नहीं
समझा सकता.’’
और ठहाका
मारकर आयुष्मान
हंस पड़ते
हैं.
आयुष्मान को पहला
मौका जॉन
अब्राहम ने
दिया है,
जो कभी
खुद इंडस्ट्री
के लिए
आयुष्मान की
तरह आउटसाइडर
थे. ‘‘जॉन
मेरे बड़े
भाई की
तरह हैं.
वो मुझसे
रिलेट करते
हैं, क्योंकि
नौ साल
पहले वो
मेरी तरह
ही एक
न्यूकमर थे.
उन्हें महेश
भट्ट ने
ब्रेक दिया
था. वो
मेरे जैसों
की हालत
समझते हैं.
वे अच्छे
प्रोड्यूसर हैं. वे फिल्म की
रचनात्मक प्रक्रिया
में कभी
दखल नहीं
करते.’’ जॉन
अब्राहम निर्मित
और शुजीत
सरकार निर्देशित
अगली फिल्म
हमारा बजाज
में भी
आयुष्मान काम
कर रहे
हैं. ‘‘हमारा
बजाज छोटे
शहर के
एक युवक
संजय बजाज
की कहानी
है, जो
एक्टर बनना
चाहता है.’’
आयुष्मान का जादू
लड़कियों पर
चल चुका
है. उसका
एक सबूत
हमने खुद
देखा. इस
बातचीत के
ठीक पहले
कुछ लड़कियां
उनके संग
अपनी फोटो
खींचने के
लिए दीवानी
हो रही
थीं. लेकिन
ठहरिए, आयुष्मान
शादीशुदा हैं.
‘‘दो साल
पहले ताहिरा
से मेरी
शादी हुई.
और अच्छा
हुआ कि
मुझे ताहिरा
पहले ही
मिल गईं.
वरना, अब
जो लडक़ी
मिलती, वो
शायद सेलीब्रिटी
आयुष्मान से
प्यार करती.’’
और पत्नी
के बारे
में आयुष्मान
बताते हैं,
‘‘ताहिरा और
मैंने जर्नलिज्म
की पढ़ाई
साथ की
है. वे
बहुत इंटेलीजेंट
हैं. वे
अब लेक्चरर
हैं. आजकल
वे एक
किताब लिख
रही हैं.’’
शायद ताहिरा
का ही
असर है
कि आजकल
आयुष्मान पर
भी लिखने
का सुरूर
चढ़ा हुआ
है. उन्होंने
अपने ब्लॉग
पर कुछ
कविताएं लिखी
हैं. घर
के लिए
रवाना होने
से पहले
उन्होंने वादा
कि वे
हमारे लिए
खास तौर
पर एक
कविता लिखकर
जरूर भेजेंगे.
पहली-पहल जब...
पहली फिल्म
कयामत से कयामत
तक. यह
फिल्म मैंने
वीसीआर पर
देखी थी.
1984 की पैदाइश
है मेरी
और यह
फिल्म 1988 में रिलीज हुई थी.
इसका गाना
पापा कहते
हैैं मैं
बार- बार
सुनता था
और सोचता
था कि
मुझे आमिर
खान बनना
है.
पहला क्रश
सांवली मिश्रा. वह
एक आर्मी
ऑफिसर की
बेटी थी.
मैं चौथी
कक्षा में
था. लेकिन
मैंने इस
बारे में
कभी उस
लडक़ी को
नहीं बताया.
पहला प्यार
ताहिरा, जो अब
मेरी पत्नी
हैं. मैं
सोलह साल
का था,
तबसे उनसे
प्यार करता
हूं. वो
पहली लडक़ी
हैं, जिनके
लिए मेरा
दिल धडक़ा.
मैंने फौरन
उनसे शादी
कर ली.
पहली डेट
मैं ग्यारहवीं कक्षा
में था.
एक लडक़ी
के साथ
मैं फिल्म
देखने गया
था और
उस लडक़ी
के भाई
को पता
चल गया.
उसने मेरी
पिटाई कर
दी. हालांकि
मैंने किया
कुछ नहीं
था, बस
पिक्चर ही
देखी थी.
पहली कमाई
गल्र्स कॉलेज में
हम प्ले
करने गए
थे. एंकर
सही से
कार्यक्रम को संभाल नहीं पा
रही थी.
लडक़े उसका
मजाक उड़ाने
लगे. कॉलेज
की प्रिंसिपल
हमारे ग्रुप
के पास
आईं और
पूछा कि
आप में
से कोई
यह कार्यक्रम
संभाल सकता
है? वहां
मैैंने पहली
बार एंकरिंग
की. उसके
लिए मुझे
2100 रुपए मिले थे.
पहली फाइट
मेरा छोटा भाई
है अपार
शक्ति. वह
लड़ाकू था.
एक लडक़े
से उसका
झगड़ा हो
गया. वह
मेरे भाई
को मारने
लगा. मैं
अपने आप
पर काबू
नहीं रख
पाया. हमने
मिलकर उस
लडक़े को
खूब मारा.
पहली कार
बीएमडब्ल्यू फाइव सीरीज.
पहले सारी
कारें पापा
ने मुझे
खरीद कर
दी थीं.
मैं मुंबई
स्ट्रगल करने
कोरोला कार
में आया
था.
पहला वल्र्ड ट्रिप
मैंने बुल्लेशाह पर
एक डॉक्यूमेंट्री
फिल्म की
थी. उसे
अपने दोस्तों
को दिखाने
के लिए
मैं पाकिस्तान
गया था.
कविता
चेहरे ये मुखौटे
हैं
मुखौटे ही तो
चेहरे हैं
अंदर का राम
जला दिया
कैसे उल्टे पड़े
दशहरे हैं
अपनी ही आवाज
सुन न
पाएं
पूर्ण रुप से
बहरे हैं
मन की नदी
उफान पा
न सकी
पर
हम दिखते कितने
गहरे हैं
ये मुखौटे कोई
उतार न
ले
लगा दिए लाखों
पहरे हैं
चेहरे ये मुखौटे
हैं
मुखौटे ही तो
चेहरे हैं