Friday, July 17, 2020

"जिस दिन आप काम करना बंद कर देंगे, उस दिन आपके सारे रिश्ते टूट जायेंगे"
शहर पराया था, लोग पराये थे मगर जो अपना था, वह था सपना। अपने आप पर भरोसा था। हौसले बुलंद थे। आज अभिनय में करियर बनाने वाले हर शख़्स की जुबां पर इनका नाम रहता है। हिंदी सिनेमा की किताब में कास्टिंग का एक नया अध्याय जोड़ने के बाद, अब यह फिल्म निर्देशन में उतर चुके हैं. पहली फिल्म है- दिल बेचारा। इस बार #रघुवार्ता में बातचीत फिल्म इंडस्ट्री की लोकप्रिय शख्सियत मुकेश छाबड़ा से।


बतौर निर्देशक आपकी पहली फिल्म दिल बेचारा रिलीज़ के लिए तैयार है. किस तरह की भावनाएं मन में उमड़-घुमड़ रही हैं?
ज़िन्दगी में हर पहला कदम मुश्किल होता है, इसलिए घबराहट तो होती है. दिल बेचारा बतौर निर्देशक मेरी पहली फिल्म है, इसलिए नर्वस हूँ कि कैसी प्रतिक्रियाएं मिलेंगी. लेकिन दिल से फिल्म बनायी है तो कॉन्फिडेंट भी हूँ.

मुंबई में पहला कदम रखने के बाद हम सब खुद से कुछ वादे करते हैं. आपको इस शहर में अपना पहला दिन और वो वादे याद हैं?
मुझे शहर में नाम कमाना था. मुझे फिल्मों से जुड़ना था. लेकिन उस वक़्त कुछ पता नहीं था कि क्या और कैसे करना है. कोई कुछ बताने वाला नहीं था मुझे. दिल में जज़्बा था, रास्ते अपने आप बनते चले गए.

आप वर्ष 2006 में मुंबई पहुंचे थे. उस समय कास्टिंग डायरेक्टर बनने का सपना तो कोई नहीं देखा करता था. आप किन सपनों के साथ आये थे?
मैं दिल्ली में NSD TIE में नौकरी करता था. मुंबई से निर्देशक अपनी फिल्मों की कास्टिंग के लिए दिल्ली आते थे तो हमारी मदद लेते थे. उस तरह मैं फिल्मों से जुड़ा। थियेटर से जुड़े होने के कारण मैं बहुत से एक्टर्स को जानता था. मैं हमेशा से फिल्मों में नाम बनाना चाहता था.

आपने एक्टर बनने की ट्रेनिंग ली थी, फिर आप कास्टिंग डाइरेक्टर क्यों बने और अब निर्देशन में आए आप?
एनएसडी TIE में जब मैंने नौकरी के लिए अप्लाई किया तो उसकी योग्यता ग्रेजुएशन थी. और रंगमंच की ट्रेनिंग इसलिए मैंने दिल्ली में श्रीराम सेंटर से एक्टिंग का कोर्स भी किया. एक्टर बनने का मेरा सपना नहीं था. 

अगर आप इस इंडस्ट्री से नहीं हैं तो आपको शुरू में किस तरह की चुनौतियों से पार पड़ना होता है?
अगर आप थियेटर कल्चर से आ रहे हैं तो आपको फिल्म कल्चर में खुद को ढालना पड़ता है. आपको नए लोगों को जानना पड़ता है. इस शहर में आपका काम ही आपको पहचान दिलाता है. आपके काम के साथ-साथ आपकी पहचान लोगों से बढ़ती चली जाती है. अपने आरंभिक दिनों में जब मैं म्हाडा में रहता था तो मेरी सुबह की शुरुआत इससे होती थी कि आज किससे और कैसे मिला जा सकता है.

कैसी तैयारियों की सलाह देंगे नयी प्रतिभाओं को?
जो भी इस शहर में उन्हें खुद पर भरोसा रखने की ज़रूरत है. पॉज़िटिव बने रहने की ज़रूरत है. संयम न खोएं. इस इंडस्ट्री में काम सबके लिए है. टैलेंटेड लोगों को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है. 

कहते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री रिश्तों पर चलती है. आपके रिश्ते सबके साथ अच्छे हों तो आप लम्बी पारी खेल सकते हैं. चौदह साल पहले आप इस इंडस्ट्री में किसी को नहीं जानते थे. आप इतनी लम्बी पारी कैसे खेल रहे हैं?
इस इंडस्ट्री में रिश्ते आपके काम से बनते हैं. जिस दिन आप काम करना बंद कर देंगे, उस दिन आपके सारे रिश्ते टूट जायेंगे. अपने काम से ईमानदारी रखिये, सब आपकी इज़्ज़त करेंगे.

क्या असीम सफलताओं और स्पॉटलाइट के बावजूद इस इंडस्ट्री में संभव है कि एक इंसान अकेला महसूस करे? आप ऐसे पलों में खुद को कैसे सँभालते हैं?
काम के दौरान आप भीड़ में रहते हैं लेकिन अंत में आप अकेले ही होते हैं. मुंबई में अकेला महसूस करना एक आम बात है. मैं खुशनसीब हूँ कि अपने माँ-बाप के साथ रहता हूँ. घर में इंटर होने के बाद उनकी डांट खाता हूँ और मैं इंडस्ट्री को भूल जाता हूँ. 


क्या निर्देशक बनना हमेशा से आपका सपना था? या कास्टिंग में शीर्ष पर पहुँचने के पश्चात आपने इस दिशा में आगे बढ़ने का मन बनाया?
मैंने निर्देशक बनने का सपना नहीं देखा था. यह एक प्रोसेज रहा. फिल्मों के लिए कास्टिंग करते-करते मुझे यह इंट्रेस्ट डेवेलप हुआ. फिर मैंने इसकी तैयारी की.

दिल बेचारा फिल्म ने आपको चुना या आपने इसे अपनी पहली फिल्म के लिए चुना? इसकी योजना कैसे बनी? 
दिल बेचारा ने मुझे चुना. इस फिल्म को पहले भी कई लोग बनाने वाले थे लेकिन सफल नहीं हुए. फॉक्स स्टार स्टुडिओज़ की ऋचा पाठक ने मुझे यह स्क्रिप्ट भेजी. इसे पढ़ने के बाद मैंने इससे एक लगाव महसूस किया। फिर मैंने इसे बनाने के लिए हाँ कहा.

सुशांत सिंह राजपूत इस फिल्म से कैसे जुड़े?
सुशांत ने 2017 में मुझसे वादा किया था कि आप जब भी अपनी पहली फिल्म बनाओगे तो मैं ही उसमें काम करूँगा. शायद काय पो छे का प्यार था मेरे लिए. जब मैंने उसे दी फाल्ट इन आवर स्टार्स के बारे में बताया तो वह तुरंत करने के लिए तैयार हो गया. बिना स्क्रिप्ट पढ़े.

इस पर हॉलीवुड में एक बेहद सफल फिल्म दी फाल्ट इन आवर स्टार्स बन चुकी है. उस फिल्म का कितना दबाव महसूस करते हैं?
मैंने दी फाल्ट इन आवर स्टार्स पहले नहीं देखी थी. यह फिल्म जिस किताब पर बेस्ड है, वह किताब भी मैंने बाद में पढ़ी. मैं हॉलीवुड की फिल्में बहुत कम देखता हूँ. मैं कोई दबाव महसूस नहीं रहा. मैंने बाद में वह फिल्म फ़ास्ट-फारवर्ड करके देखी. 

आपकी योजना अंसल एलगोर्ट और सुशांत को एक मंच पर लाने की थी. इसे लेकर आप दोनों बहुत एक्साइटेड थे. इस ख्वाहिश के पूरा न होने का दुःख हमेशा रहेगा आपको... 
यार वह मेरा सपना था लेकिन कहते हैं न कि हर सपना पूरा नहीं होता. मैं दिल बेचारा के ट्रेलर लांच पर अंसल और सुशांत को एक मंच पर लाना चाहता था. यह मेरा सुशांत से वादा था. मैं बहुत खुश हुआ था जब डेढ़ साल पहले सुशांत और अंसल ने फिल्म के बारे में ट्वीट भी किया था.

सुशांत सिंह राजपूत से आपको पहली मुलाकात याद है? कब और कैसे मिलना हुआ था?
शोभा संत ने मुझे सुशांत के बारे में पहली बार बताया और फिर बाद में उससे मिलवाया था. मैं टीवी ज़्यादा नहीं देखता. और काय पो छे के ऑडिशन के सिलसिले में हमारी पहली भेंट हुई थी. मैं वर्सोवा में उससे एक कैफे में मिला था. फिर हम दोस्त और फिर भाई बन गए. 


सुशांत सिंह राजपूत की किन खूबियों से आपको यह विश्वास मिला कि वह फिल्मों में लम्बा सफर तय करेंगे? 
एक हीरो बनने के लिए जो चार्म, डेडिकेशन, परफॉर्मेंस, ईमानदारी, सिंसियरिटी... वो सबकुछ उसमें था... उसका चार्म ही था जो इतने कम समय में इतना अच्छा काम वह कर गया. अभी होता तो वो और करता. 

सुशांत सिंह राजपूत से अपनी आखिरी बातचीत और मुलाकात के बारे में अगर बताना चाहें तो...  
मेरा बर्थडे था 27 मई को. उस दिन लम्बी बातचीत हुई थी हमारी. वो बहुत खुश था. उसके बाद दिल बेचारा को लेकर अक्सर हमारी बातचीत होती रहती थी. 

क्या सुशांत दिल बेचारा फिल्म देख चुके थे? या दिल में अफ़सोस है कि वह अपनी आखिरी फिल्म नहीं देख पाए? 
डबिंग के दौरान उसने पूरी फिल्म देखी थी. दुःख इस बात का है कि वह फ़ाइनल फिल्म नहीं देख पाया. मेरी पहली फिल्म है लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि खुश होऊं या दुखी. अपनी फिलिंग समझ में नहीं आ रही है.
Pensive face
Pensive face

सुशांत का फेवरेट सांग कौन सा फिल्म का? 
तारे गिन और दिल बेचारा टाइटल ट्रैक। सिंगल शॉट के लिए बहुत एक्साइटेड था. उसने बहुत मेहनत की थी. फ़ाइनल सांग  देख कर बहुत ख़ुश हुआ था. 

आज अपने दोस्त-भाई सुशांत सिंह राजपूत को कोई एक गीत डेडिकेट करना हो तो वो कौन-सा गीत करेंगे? 
मेरी जीत, तेरी जीत, तेरी हार, मेरी हार, सुन ले मेरे यार... ये दोस्ती... 

अपनी किन फिल्मों की कास्टिंग पर आपको बहुत गर्व है? 
बहुत हैं लेकिन फिलहाल जो मुझे याद आ रही हैं, वो हैं- काय पो छे, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, सुपर 30, चिल्लर पार्टी, बजरंगी भाईजान, दंगल, शाहिद। अभी मैं 83, ब्रह्मास्त्र और लाल सिंह चड्ढा को लेकर बहुत एक्साइटेड हूँ. 

Sunday, July 5, 2020

"ग्लैमर छलावा है, सब काम और उसके नतीजे को पहचानते हैं, पूजते हैं"

हिंदी फिल्में सपने देखना सिखाती हैं तो उन सपनों का मोल भी मांगती हैं. बिहार के छोटे से गांव बेलवा में नौ साल के एक अबोध बच्चे ने फिल्मों की अविश्वसनीय दुनिया में खुद को देखने का साहस दिखाया। दिल्ली में थिएटर की ट्रेनिंग ली और ढेर सारे नाटक किए. वहीँ शेखर कपूर की 'बैंडिट क्वीन' मिली. फिर मुबई आने के बाद फिल्मों की दौड़ शुरू हुई. 'सत्या' से ऊंची छलांग मिली. आज वह अभिनय का पर्याय हैं. त्याग, तपस्या और सफलता का प्रत्यक्ष नाम हैं- मनोज बाजपेयी#रघुवार्ता में इस बार बातें इस प्रतिष्ठित अभिनेता से! 


आपकी प्रत्येक फिल्म देखकर प्रतीत होता है कि यह आपका सर्वश्रेष्ठ काम है. लेकिन फिर अगली फिल्म में आप चौंका देते हैं. जैसे कि अब #भोंसले को ले लीजिये. खुद को ही हमेशा पछाड़ देने की कला में कैसे पारंगत हुआ जा सकता है?

मैं ख़ुद को पछाड़ने के बजाय नए किरदारों की चुनौतियों और उनके चरित्र चित्रण पर काम करता हूँ. पछाड़ना-हराना कुश्ती में होता है. अभिनय बहुत ही बारीकियों की समझ की अपेक्षा रखता है और उसी को न्याय देने में खोया रहता हूँ. पर इस प्रशंसा के लिए धन्यवाद !!

कोरोना काल में हमने कई हृदय विदारक तस्वीरें देखीं, लोग हमदर्द बनकर सहायता के लिए सड़कों से लेकर झुग्गी-झोपड़ियों में उतरे, ऐसी सुखद तस्वीरें भी दिखीं. क्या हम उचित तरीके से इस कठिन समय का सामना करने की दिशा में अग्रसर हैं? 
ये बहुत ही कठिन समय रहा है देश, समाज और ख़ासकर ग़रीब मज़दूरों के लिए। कई लोगों ने आगे आकर मदद की है, दिशा दी है. कुछ लोग बिना बताए मदद के काम में लगे हुए हैं. मेरा सर उनकी प्रशंसा झुक जाता है जब भी सुनता हूँ या देखता हूँ उनके काम को। अभी यह कई दिनों तक चलेगा। बस ठीक हो जाए.

एक कलाकार का जीवन अनिश्चितताओं से भरा रहता है. ऐसे में, आर्थिक रूप से खुद को सुरक्षित करना बहुत ज़रूरी हो जाता है. आप इस मामले में कितने सतर्क और सुरक्षित हैं?
कलाकार को ग्लैमर के मोह जाल से हटकर बचत और निवेश पर भी ध्यान देना होगा ताकि वो हमेशा सुरक्षित महसूस कर सके और मन मुताबिक़ काम कर सके और दबाव में ना आए। मैं अब थोड़ा सतर्क रहता हूँ!

इस बात में कितना सत्य है कि करियर के आरंभिक दिनों में आपने धन को कम महत्त्व दिया लेकिन अब आप धन के मामले में अडिग रहते हैं. जिसके कारण बहुत से निर्माता-निर्देशक आपसे नाराज़ हो जाते हैं.
जी आरम्भिक काल में अपने आपको स्थापित करना, अपने सपने के मुताबिक़ काम करके लोगों और निर्देशकों के दिल में जगह बनाने के लिए पैसा नहीं देखा क्योंकि जो फ़िल्में मैंने की उन फ़िल्मों में पैसा नहीं होता था. जिनमें पैसा था, वो फ़िल्में और चरित्र मुझे करना नहीं था। अब 26 साल के बाद अच्छा पैसा, अपनी मेहनत के अनुसार पैसा माँगना मेरा अधिकार है. ये सवाल दूसरों से क्यों नहीं पूछे जाते? एक ही फ़िल्म के दूसरे स्टार्स का मेहनताना बढ़ जाता है पर मुझसे सवाल? ये न्याय नहीं है। पैसा मैं फ़िल्म के बजट के हिसाब से ही लेता हूँ या माँगता हूँ।


आप हिंदी सिनेमा में 'हिंदी' की वकालत करने वाले चंद कलाकारों में से एक हैं. आप हिंदी में स्क्रिप्ट की मांग करते हैं. मंच पर हिंदी में बातें करते हैं. एक हिंदी भाषी होने के क्या साइडइफेक्ट्स हैं इस व्यवसाय में?
हिंदी माध्यम में पढ़ा हूँ, उसमें अपने आपको व्यक्त करना मुझे अच्छा लगता है, गर्व है उस पर और हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करता हूँ तो वो मेरी शक्ति बन जाती है। मेरे ख़याल से सबको हिंदी थोड़ी बहुत सीखनी ही चाहिए। इससे काम करने में उन्हें आसानी होगी लेकिन मैं उनको दोष नहीं देता क्योंकि उनका पालन पोषण ही अंग्रेज़ी माहौल में किया गया है तो उनको मुश्किल होती है. पर कोशिश करनी चाहिए। वैसे मैं भाषा की जंग नहीं चाहता। भाषा का कोई साइड इफ़ेक्ट्स नहीं होता अगर उस पर आपको गर्व हो तो। आशुतोष ( राणा), नवाज़ (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) पंकज (त्रिपाठी) इसके अच्छे उदाहरण बनकर सामने आए हैं।

आपकी तरह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार जैसे हिंदी भाषी प्रदेशों से लड़के-लड़कियां फिल्मों में चमकने का सपना लेकर आते हैं. किस तरह की मानसिक तैयारियों के साथ उन्हें मुंबई का रुख करना चाहिए?
बस अपने ऊपर, अपनी तकनीक, भाषा और उन सब विधाओं को सीखें पहले। रंगमंच अवश्य कीजिए 3 साल तक। उसके बाद ही मुंबई का रख कीजिए। कठिन शिखर है, कठिन राह है. पारंगत हो कर आइए.

आपके जीवन की एक सबसे महत्वपूर्ण फिल्म है- सत्या। इसकी रिलीज़ के बाइस वर्ष पूरे हो गए. वर्तमान के मनोज बाजपेयी को अगर सत्या की सफलता के पश्चात के मनोज को कोई नसीहत देनी हो तो क्या देंगे?
मैं अपने आपको नसीहत तब देता हूँ जब मैं बिना सोचे-समझे गलती करता हूँ. सत्या के बाद मुझे कई स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ी। वो कोई नहीं जानता, सब क़यास लगाते हैं। मैंने कई स्तर पर अपने ऊपर लगातार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हमले झेले। Blind items उस समय भी होते थे. सारी राजनीति और बुरे इरादों को झेलते, सहते उन पर विजय पाते हुए यहाँ तक आया हूँ. लड़ाकू था इसलिए आ पाया, कोई दूसरा टूट जाता। नसीहत नहीं बल्कि अपने तेवर पर और साथ देने वालों पर दर्शकों के विश्वास पर गर्व है। धन्यवाद सबको।


अहम् एक इंसान का सबसे बड़ा शत्रु कहलाता है. आप भी कभी न कभी इसके शिकार हुए होंगे. क्या ऐसा कोई पल याद आता है? आपने इस शक्तिशाली भावना पर नियंत्रण कैसे पाया?
इस लड़ाई में कब आत्मसम्मान अहम् में परिवर्तित हो जाता है, पता नहीं चलता। बहुत पतली रेखा होती है आत्मसम्मान और अहम् के बीच. पर समय रहते सम्भालता भी जाता था. देखिए और कोई तो था नहीं, सब कुछ अकेले ही करना था. वो समय मेरे जैसे अभिनेता के लिए कठिन था, जो शक्ति के सामने उनकी शर्तों पर काम करने के लिए तैयार नहीं था.

सफलता पाने की अमूमन सब तैयारी करते हैं लेकिन उसे सँभालने में अक्सर लोग चूक जाते हैं. आपके हिसाब से ग्लैमर की दुनिया की कामयाबी को कैसे संभालना चाहिए? 
देखिए आप सम्भालने की कोशिश कभी विवेक, कभी चतुराई, कभी धैर्य और भाग्य सबका इस्तेमाल करते हैं. बहुत छोटी और शायद इसीलिए कठिन इंडस्ट्री है. इसमें अपनी पिछली फ़िल्म की सफलता और असफलता पर समय ना गँवाकर अगले को पाने और उस पर काम करना जल्दी शुरू करना चाहिए। ग्लैमर छलावा है, सब काम और उसके नतीजे को पहचानते हैं, पूजते हैं। अनुशासन और काम बस बाक़ी सब भ्रम है।

अपने लम्बे सफर में आपने कई उतार-चढ़ाव देखे. ख़ुशी के पलों में अक्सर आप लोगों से घिरे होते हैं, मगर निराशा के क्षण बेहद मुश्किल होते हैं. उन क्षणों में आपने खुद को कैसे संभाला?
पहली बात ये कि जो आपकी प्रतिभा है वो कभी भी आपको निराश नहीं करेगी। अगर आप ख़ुशी और निराशा के समय सिर्फ़ उस पर काम करें, अवार्डस मिलना, फ़िल्मों का चलना ये एक दिन में भुला दिया जाता है, पर आपके काम, आपकी प्रतिभा को भुला पाना लोगों के लिए कठिन होगा। बस हर पल उस पर ध्यान देना होगा।

हिन्दी फ़िल्मों के विस्तार की दिशा क्या होगी और इसमें हिंदी प्रदेशों की प्रतिभाओं की क्या भूमिका हो सकती है? 
हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री चिल्ला-चिल्ला के कह रही है कि मुझे और प्रोफेशनल और पारदर्शी बनाओ (हँसते हैं). हर प्रतिभा और फ़िल्म के लिए समान अवसर हो। मूवी हॉल्स की संख्या जनसंख्या के हिसाब से कम हैं, थियेटर में छोटी फ़िल्म को भी समान अवसर मिले, सिनेमा समाज सबको सुरक्षा और इंडस्ट्री सबको सुरक्षा और प्रतिष्ठा दे, तभी इसका एक स्वस्थ विस्तार सम्भव है। हिंदी प्रदेश से आने वाले प्रतिभाओं का योगदान अविस्मरणीय है. उन्होंने हमेशा अपनी कहानी, कविता, संगीत, तकनीक, अभिनय से सिनेमा बदला है. बिना उनके योगदान के हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का इतिहास नहीं है।


सत्या और ज़ुबैदा के संदर्भ में अपनी परवरिश और परिवेश से बाहर के किरदार निभाने में मुख्य कारक क्या होता है?
सत्या या ज़ुबैदा दोनों बिलकुल एक-दूसरे से अलग, उनको निभाने में बहुत मेहनत और दिमाग़ का इस्तेमाल करना पड़ा। रामूजी (रामगोपाल वर्मा) हों श्याम बाबू (श्याम बेनेगल) दोनों को लगातार सुनना, दोनों के माहौल परवरिश पीछे के इतिहास पर काम करना, एक पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। अच्छा लगता है जब इस तरह के सवाल आते हैं जो सवाल कम प्रशंसा के शब्द ज़्यादा होते हैं, धन्यवाद!

फिल्म इंडस्ट्री को लेकर कौन-कौन से मिथक या भ्रम आपके दिल-दिमाग में थे, जो इंडस्ट्री की गहराई में जाने के पश्चात टूटे? 
मुझे लगा था ये एक बड़ा परिवार है, पर पता चला यहाँ भी छोटे-छोटे कुछ बड़े दल हैं. रिश्तेदारों की तरह जो आपस में एक-दूसरे को अच्छा करते हुए नहीं देखना चाहते। मुझे हंसी आती है, क्योंकि ये सब हम अपने समाज में देखते आए हैं. जो बलवान और धनी होगा, खूँटा उसका होगा। और ग्लैमर नाम की कोई चीज़ नहीं है, मेहनत, प्रतिभा और भाग्य यही काम आता है.

कुछ लोग ओटीटी प्लैटफॉर्म पर सेंसरशिप की वकालत कर रहे हैं. आप इस मत के पक्ष में हैं या विपक्ष में? 
जो लोग सेंसरशिप की डिमांड कर रहें हैं OTT पर नहीं चाहते कि समाज अपने चुनाव स्वयं करे कि उसे क्या देखना है, क्या नहीं, वो हर चीज़ पर अपना कंट्रोल चाहतें है. पर इस प्लैटफॉर्म पर सेन्सर कर पाना मुश्किल है।

नयी पीढ़ी के कलाकारों में आपका प्रिय कौन है?
बहुत सारे अच्छा काम कर रहे हैं- गुलशन देवैया, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना, कार्तिक आर्यन, जयदीप अहलावत, सयानी गुप्ता, तापसी पन्नू, भूमि पेडनेकर, विकी कौशल, स्वरा भास्कर, संयमी खेर बहुत हैं. कुछ नाम तो मैं भूल रहा हूँ, क्षमा करें! मुझे पवैल गुलाटी और गीतिका थप्पड़ में मुझे बहुत अच्छे लगे!

Friday, July 3, 2020

मंगल कुंडली वालों के लिए अमंगलकारी होगा यह चंद्र ग्रहण!
बता रहे हैं प्रख्यात ज्योतिषि और वास्तुविद पंडित सचिन्द्रनाथ 

इस वर्ष का चौथा और एक माह (30 दिन) के भीतर तीसरा ग्रहण 5 जुलाई को सुनिश्चित है. 11 जनवरी को आंशिक चंद्र ग्रहण, 5 जून को चंद्र ग्रहण, 21 जून को सूर्य ग्रहण और अब पुनश्च 5 जुलाई को चन्द्र ग्रहण. यह इस साल का तीसरा चंद्र ग्रहण होगा. खगोल शास्त्र के अनुसार यह ग्रहण भारत मे दिखाई नहीं देगा, लेकिन ज्योतिषिय गणना में इसके प्रभाव से देश और देशवासी अछूते नहीं रहेंगे. मुख्य बात यह है कि पांच जुलाई को गुरु पूर्णिमा भी है. चन्द्र ग्रहण का समय सुबह 8:37 मिनट पर शुरू होगा और सुबह 11:22 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. 9:59 मिनट पर यह अपने सबसे अधिक प्रभाव में होगा.  

प्रख्यात ज्योतिषि और वास्तुविद पंडित सचिन्द्रनाथ बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन का चन्द्र ग्रहण प्रतिकूल प्रभावकारी है. मंगल प्रधान लोगों जैसे- राजनेता, फ़ौजी, पुलिसकर्मी आदि के लिए यह ग्रहण तनावजन्य होगा. मंगल प्रधान लोगों से जुड़ी अप्रिय सूचनाएं विचलित करने वाली हो सकती हैं. संत योग के लोगों के साथ भी प्रतिकूल स्थितियां आ सकती हैं. सत्ता से संबंधित किसी प्रमुख व्यक्ति के साथ अनहोनी या अपमानजनक परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है. यह ग्रहण मानसिक तनाव और चिंता को बढ़ाने वाला है. यह ग्रहण भारत की कुंडली के विश्लेषण से देश को और सावधान रहने का संकेत भी दे रहा है. देश को ज्ञात-अज्ञात सात शत्रुओं की कुटिलताओं से दो-चार होना पड़ सकता है. किसी विख्यात व्यक्तित्व के साथ अनहोनी, आपदा जैसी स्थिति भी बनी रह सकती है.