कॉमेडी फिल्मों से अक्षय कुमार ब्रेक ले रहे हैं। वे बदलाव चाहते हैं। जुहू में अपने नए दफ्तर में अक्षय ने अपनी नई योजनाओं, पटियाला हाउस और 2011 की व्यस्तताओं के बारे में गंभीरता से बातचीत की।
पटियाला हाउस के प्रोमो और गीत के लिए व्यक्तिगत तौर पर कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है?
बहुत अच्छा रिस्पांस है। लोगों को जब गाना पसंद आता है तो म्यूजिक कंपनी खुश हो जाती है। गाने बहुत खास रोल प्ले करते हैं क्योंकि जब गाने चल जाते हैं तो मैंने देखा है कि फिल्म अच्छी न भी हो तो गानों की वजह से फिल्म निकल जाती है। मैंने फिल्म देखी है। मैं कह सकता हूं कि तीन-चार साल बाद कॉमेडी से दूर होकर मैंने एक इमोशनल और सीरियस फिल्म की है। मेरे लिए एक जगह से दूसरी जगह आने जैसा है। मैंने जान-बूझकर ऐसा किया है क्योंकि मैंने बहुत कॉमेडी फिल्में कीं। मैं बदलाव चाहता था।
आप इमोशनल फिल्म क्यों करना चाह रहे थे?
काफी पहले मैंने फादर-सन रिलेशन पर फिल्म की थी। एक रिश्ता, फिर वक्त की थी। जानवर भी की। उसके बाद वापस मैं पटियाला हाउस में उस विषय को ला रहा हूं।
आपको लगता है कि री विजिट करने का समय आ गया है?
वो तो करना ही चाहिए। हर इंसान को कुछ न कुछ नया करना चाहिए इसलिए मैंने यह किया। काफी लोग मुझसे कहते थे कि कॉमेडी से ब्रेक लेकर कुछ अलग करिए तो मुझे यही मिला। स्क्रिप्ट मुझे अच्छी लगी। इस स्क्रिप्ट में जो है, हर हिंदुस्तानी की जिंदगी में ऐसा होता है। परिवार के अंदर समस्या होती है। बेसिकली एक पिता है जिसका खुद का सपना है कि उसका बेटा क्या बने? वह उसे वही बनाना चाहता है, लेकिन उसके बेटे का ड्रीम कुछ और है। ऐसे बहुत घरों में होता है, लेकिन डैडी मैं नहीं बनना चाहता हूं डॉक्टर। पैरेंट्स भूल जाते हैं कि बच्चों के अपने सपने होते हैं। मैंने देखा है कि आज की जेनरेशन के बीच में बहुत होता है कि हम कुछ बनना चाहते हैं और पिता कुछ बनाना चाहते हैं। यह ज्वाइंट फैमिली की कहानी है इसीलिए इसको पटियाला हाउस कहते हैं। पटियाला मतलब होता है बड़ा। पटियाला पैक कहते हैं तो बड़ा पैक कहते हैं इसीलिए पटियाला हाउस मतलब बड़ी फैमिली। 24 लोग रहते हैं साथ और उसमें हमारे जो बाबूजी हैं उनका कहना मानना पड़ता है। परिवार में जो बच्चों के ड्रीम हैं, वह शैटर होते जा रहे हैं। बाबूजी चाहते हैं कि वो उनके मन का करें और ऐसा बहुत जगहों पर होता है।
संयुक्त परिवार के माहौल को मिस करते हैं मुबंई में?
ज्वाइंट फैमिली का मजा ही कुछ और है। मैं खुद जब दिल्ली में रहता था तो बीस से बाइस जन साथ रहते थे। मामा-मामी, मम्मी-डैडी सब लोग साथ रहते थे और हमारा घर भी दो बेडरूम का था। हम बाइस लोग साथ रहते थे। उसका मजा कुछ और होता था।
पिछली बार आपका परिवार कब एकजुट हुआ था?
हर महीने हम एकजुट होते हैं। मेरे सारे रिश्तेदार मुंबई में आस-पास रहते हैं। भले ही हम एक छत के नीचे नहीं रहते लेकिन अलग रहते हैं, पर हर हफ्ते या महीने में एक बार डिनर जरूर साथ में खाते हैं। वो हम हिंदुस्तानियों में हमेशा रहेगा। वो निकल ही नहीं सकता है। परिवार में हमें ये सिखाया जाता है। मैं बैंकॉक में पांच साल था। मैं वहां यह बहुत मिस करता था। अकेला पड़ गया था। ज्वाइंट फैमिली के अंदर रहकर सिक्योरिटी हो जाती है। मेरी जिंदगी में इनसिक्योरिटी नहीं है।
आपके बेटे मिस करते हैं इन चीजों को?
नहीं, उनको सब मिलता है क्योंकि सारे रिलेटिव साथ रहते हैं। हर रोज सबका आना-जाना लगा रहता है।
पटियाला हाउस के किरदार में आपको कुछ नया एक्सप्लोर करने का मौका मिला? कलाकार के तौर पर अपनी सीमाएं तोड़ने का मौका मिला?
मुझे मौका मिला। मुझे नहीं पता कि यह फिल्म कमर्शियली कितना करेगी? हिट होगी या क्या होगा? पर ये डेफिनेटली कहूंगा कि इस फिल्म के अंदर मेरे करियर की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेस है और ये तभी मुमकिन है जब आप उस किरदार के लिए फील करने लगते हैं। बहुत सारे कैरेक्टर मैं करता हूं लेकिन ये सोच कर करता हूं कि ये कैरेक्टर है, लेकिन ये कैरेक्टर जो मैंने खेला है उसके लिए मैं खुद को भी मार सकता था। कुछ कैरेक्टर आप जिंदगी में पा लेते हैं जिनमें आप खुद को पा लेते हैं तो गट्टू उन कैरेक्टर में से है। मेरे लिए सब कुछ नया रहा।
हाल-फिलहाल की फिल्मों में हमने आपको स्क्रीन पर निरंकुश और स्वतंत्र देखा। इसमें क्या हम आपको नियंत्रण में देखेंगे?
इसमें मैंने अपने आपको एकदम पकड़ा हुआ है। एक एक्टर के लिए बहुत मुश्किल होता है कि जब कैमरा ऑन हो तो वह खुद को पकड़ कर रखे। कई बार निखिल आडवाणी को मुझे पकड़ना पड़ा क्योंकि मुझे आदत है कैमरे के सामने आकर खुलने की। मेरे लिए यह मुश्किल रहा। निखिल को थैंक्स कि वे मुझे कंट्रोल कर सके और अनुशासित रख सके।
पटियाला हाउस फिल्म के तौर क्या कुछ नया एक्सप्लोर करती है? इसमें कुछ नया प्रयोग किया गया है?
मैं आपको फिल्म का एक और एंगल बताता हूं। मैं, मेरे पिताजी.फिल्म के अंदर दिखाया गया है कि मैं लंदन से हूं। पैदाइश लंदन की है, लेकिन हम हैं इंडियन। मुझे क्रिकेट से प्यार है। मैं बड़ा होकर क्रिकेट खेलना चाहता हूं। मुझे खेलने का मौका मिलता भी है इंग्लैंड से। मेरे पिता इस बात के खिलाफ हो जाते हैं। वे कहते हैं कि मैं नहीं चाहता कि तू इंडिया के खिलाफ खेले। मेरा ये कहना है कि पिताजी, आप स्पोर्ट को स्पोर्ट की तरह लीजिए। मैं वॉर पर नहीं जा रहा। मैं क्रिकेट खेलने जा रहा हूं। वह एंगल मैंने सोचा कि यूनिक है क्योंकि क्या हो जाता है कि हम फैन भी..कई देशों में देखा है कि जब दूसरे देश के लोग आते हैं तो लोग बोतलें मार रहे हैं। क्यों? क्योंकि वे दूसरी टीम के लिए खेलने आए हैं। लोग क्यों नहीं महसूस करते कि यह एक खेल है। कोई जंग पर थोड़े ही है। मुझे यह आइडिया पसंद आया। जैसे कि मोंटी पैनेसर करके एक सरदार जी, जो इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेलते थे। क्लीयर कर दूं कि उन पर बेस्ड नहीं है यह फिल्म क्योंकि उनके मां-बाप तो सपोर्ट करते थे कि वे खेलें इंग्लैंड के लिए।
फिल्म का विरोधाभास भी यही है?
हां, क्लैश बिटवीन टू जेनरेशन। इस फिल्म के अंदर तीन जेनरेशन है। एक सत्रह-अट्ठारह साल की, एक मेरी जेनरेशन और एक बाबूजी की जेनरेशन। तीनों जेनरेशन के क्लैश में मेरी जेनरेशन वाला फंस जाता है क्योंकि नीचे वाली जेनरेशन बोल रही है कि आप हमसे बड़े हैं। आपको बाबूजी से बोलना चाहिए कि हमें आजादी दें। मेरे में इतनी ताकत नहीं है कि मैं बाबूजी के खिलाफ जाऊं। तो मुझे न तो ये जेनरेशन लाइक करती है और न बड़ी वाली। फिर क्या होता है और कैसे मेरा किरदार इस स्थिति से बाहर आता है? यह फिल्म में है।
फिल्म में अनुष्का के किरदार से क्या रिश्ता है आपका?
उनका किरदार है सिमरन का। वो मेरी मदद करती हैं सही डिसीजन लेने में। हमारे बीच रोमांस भी है लेकिन जबरदस्ती का रोमांस नहीं है। इस कैरेक्टर के लिए आपको फील होगा।
निखिल आडवाणी के साथ कैसा अनुभव रहा?
बहुत बढि़या। हमारी पहली फिल्म चांदनी चौक नहीं चली लेकिन उसका यह मतलब नहीं है कि मैं उनके साथ दोबारा काम न करूं। वे हार्ड वर्किग डायरेक्टर हैं। वे जिस हिसाब से फिल्म को मोड़ देते हैं.. उन्होंने कल हो ना हो बनाई थी। इमोशनल फिल्म। इमोशन उनका स्ट्रांग प्वाइंट है।
आपकी फिल्मों पर नजर डालें तो बहुत सेफ होती हैं। दर्शकों की पसंद का सब कुछ होता है। आप कुछ प्रयोग करने के बारे में नहीं सोचते?
मैंने प्रयोग करने की कोशिश की। मैंने तस्वीर की और फिल्में भी कीं, लेकिन यहां की जो आडियंस है उसे कमर्शियलिटी देखने में दिलचस्पी है। उन्हें डेढ़-दो सौ रूपए खर्च करके प्रयोग नहीं देखना है। जैसे मेरी फिल्म तस्वीर को देखने चार बटा दो लोग नहीं आए थे थिएटर के अंदर। तो उनका एक माइंड सेट है कि हमने दो सौ रूपए खर्च किए तो हमें जाकर एंटरटेन होना है। हमें गोलमाल देखनी है। हेरा फेरी देखनी है। सिंह इज किंग देखनी है। हमें मस्ती वाली फिल्में देखनी हैं। हमें एंज्वॉय करना है। 3 इडियट भी मजेदार थी।
बीता साल छोटी फिल्मों का रहा। आज भी उड़ान, तेरे बिन लादेन और फंस गए रे ओबामा की चर्चा हो रही। आपका मन वैसी फिल्में करने का नहीं होता?
आपकी बात बराबर है लेकिन आप ध्यान से देखें तो वे तीन करोड़ की फिल्में हैं और बारह-तेरह करोड़ का बिजनेस किया है। ये बहुत अच्छा प्वाइंट है लेकिन आपको ये भी सोचना चाहिए कि जब बड़ी फिल्म होती है तो उसकी कमर्शियलिटी बड़ी होती है।
उस बजट में आप फिट नहीं होते?
नहीं, नहीं कर पाएंगे ना क्योंकि अगर मैं करने का जाऊंगा तो डिस्ट्रीब्यूटर का पैसा ही नहीं निकलेगा। आज कोई भी फिल्म आप बना लें, किसी के साथ भी चाहे सलमान के साथ, मेरे साथ, शाहरूख के साथ, आपको बड़ा बजट रखना पड़ेगा और कमर्शियलिटी होनी चाहिए। हम बात कर जरूर लेते हैं कि हमने बड़ी अलग किस्म की फिल्म की है लेकिन.।
कुछ एक्टर उस तरह की फिल्में चर्चा और एक्टर के तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए करते हैं। आपके मन में ऐसी इच्छा नहीं होती है?
वो मतलबी हो जाते हैं। अगर मैं कर भी तो लूं फायदा मेरा होगा कि क्या एक्टिंग है.अलग तरह की फिल्म की है। पर वहां वह डिस्ट्रीब्यूटर बोलता है कि साला मार डाला। मैं बर्बाद हो गया.फंस गया। वो आवाज किसी को सुनाई नहीं देती। आज मेरी फिल्म जब कोई खरीदता है तो जैसे आपने कहा कि सेफ रहती हैं। डिस्ट्रीब्यूटर को पता है कि इतने में खरीदी है तो इतना आ जाएगा। मुझे हर एंगल से सोचना पड़ता है। कमर्शियल एंगल से सोचना पड़ता है कि क्या यह सही बैठेगी या नहीं। अवॉर्ड तो मैं ले लूंगा लेकिन बाकी चीजें गड़बड़ हो जाती हैं।
उस फिल्म का असर भविष्य पर पड़ेगा?
नहीं, मुझे भविष्य की प्रॉब्लम नहीं है। मैं अपने डिस्ट्रीब्यूटर, एक्जीबिटर, ऑडियंस को निराश नहीं करना चाहता। उड़ान, तेरे बिन लादेन, फंस गए रे ओबामा मैंने देखी हैं। वे अच्छी बनी हैं लेकिन उनके नीश ऑडियंस है। वे मल्टीप्लेक्स में रहती हैं। उसके बाद रूक जाती हैं। फोर्स नहीं आता है। मैं इन फिल्मों का बड़ा फैन हूं लेकिन दबंग का बिजनेस एक सौ साठ करोड़ रूपए, गोलमाल का बिजनेस एक सौ चालीस करोड़ का, तीस मार खान का 82 करोड़ का है। फीगर देखना पड़ता है। बहुत चीजें देखनी पड़ती हैं। इंटेलेक्चुअली आप और मैं बैठकर बात कर लें कि बहुत अच्छी है, लेकिन उसके बाद क्या? 3 इडियट जैसी फिल्म बहुत कम आती है। जिसमें मैसेज, एंटरटेनमेंट, फन और रोमांस होता है। बहुत कम ऐसी स्क्रिप्ट मिलती हैं।
आप प्रोड्यूसर हैं। आप वैसी टीम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। राजकुमार हिरानी के साथ टीम क्यों नहीं बनाते?
मैं बचपन से कमर्शियल फिल्म देखता रहा हूं। बहुत कम होता है 3 इडियट जैसी फिल्म मिलना। रोज स्क्रिप्ट आती हैं लेकिन वैसी स्क्रिप्ट नहीं आती। राजू ने दो साल मेहनत करके स्क्रिप्ट पर काम किया। हर आदमी राजू हिरानी तो नहीं बन सकता। हर आदमी जब फिल्म बनाने बैठता है तो.मैं भी जब बनाने बैठता हूं तो यही सोचकर बनाता हूं.पहले दिन शूटिंग पर सोच लेता है कि ये शोले बनेगी। हर आदमी यही सोचता है। उसके हिसाब से वह शोले बनाता है। सुपरहिट है। बाद की बात होती है कि क्या निकलता है।
फिल्म मेकिंग की बात हो रही है तो आपका फिल्म का लंबा अनुभव है। आप उसका इस्तेमाल फिल्म निर्देशन में नहीं करना चाहते?
नहीं, मैं डायरेक्शन नहीं करूंगा। जिसका काम उसी को साधे। हमें आदत है कैमरा के सामने रहने की तो आगे आने की क्या जरूरत है।
आपने कहा कि तीस मार खां ने 82 का बिजनेस किया, लेकिन एक अवॉर्ड फंक्शन में आप इसी फिल्म का शोक मनाते दिखे। क्यों?
देखिए, बहुत सारे अवॉर्ड नाइट होते हैं। लोग दूसरे लोगों का मजाक उड़ाते हैं। दूसरे की फिल्मों का मजाक उड़ाते हैं। मेरे अंदर वह हिम्मत है कि मैं अपनी फिल्म का मजाक उड़ा सकूं क्योंकि यह मेरा मजाक है। जैसे आपके मां-बाप को चोट आए तो आपको बहुत बुरा लगेगा या कोई मां-बाप को चोट पहुंचाए तो बुरा लगेगा। आपके सामने कोई चाकू लेकर आ जाए तो आप यही कहेंगे कि मेरे मां-बाप को छोड़ दो मुझे मार दो या आप ऐसा कहेंगे कि मां-बाप को पहले मार दो। तो मेरी इंडस्ट्री है, मेरी फिल्म है। अगर मैं खड़ा होकर यह बोलता हूं कि मेरी फिल्म चली है तो मेरे अंदर खड़े होकर यह बोलने का दम भी होना चाहिए कि मेरी फिल्म नहीं चली है। उसमें बुरा मानने वाली बात नहीं है।
इंडस्ट्री में तीस मार खां को लेकर जैसी बातें हो रही थीं उससे आपको दुख हुआ?
मुझे कोई दुख नहीं हुआ। आपको लगता है कि मुझे किसी बात का दुख है।
2011 में क्या व्यस्तताएं होंगी?
लोगों को एंटरटेन करेंगे। पटियाला हाउस के बाद थैंक्य ू है। उसके बाद देसी ब्वॉयज।
टीवी पर देखेंगे? क्या आप खतरों के खिलाड़ी खिलाड़ी में लौटेंगे?
अभी तक कुछ तय नहीं है। देखते हैं कि क्या होता है।
-रघुवेन्द्र सिंह