Friday, February 25, 2011

तनु वेड्स मनु- मस्त है शादी

मुख्य कलाकार : आर माधवन, कंगना रनौत, जिमी शेरगिल, दीपक डोबरीयाल, राजेन्द्र गुप्ता, के के रैना, इजाज खान, स्वरा भास्कर।
निर्देशक : आनंद एल राय
तकनीकी टीम : विनोद बच्चन, शैलेश आर सिंह, सूया सिंह, कहानी- हिमांशु शर्मा, संगीत- कृष्णा

ब्याह हिंदी फिल्मों का एक सफल और लोकप्रिय विषय रहा है। यश चोपड़ा और सूरज बड़जात्या की फिल्मों में हम सच और कल्पना के मेल से सदैव विवाह का एक आदर्श रूप देखते आए हैं, लेकिन आनंद एल राय की फिल्म तनु वेड्स मनु में उत्तर भारत में लड़की दिखाने के रिवाज से बारात के आगमन तक को बिना किसी लाग-लपेट के असली रंग में पेश किया है। लंदन से दुल्हन की खोज में कानपुर आए डॉक्टर मनोज शर्मा उर्फ मनु परिचित किरदार लग सकते हैं, परंतु शराब और सिगरेट की शौकीन एवं हर हफ्ते एक नया ब्वॉयफ्रेंड बनाने में यकीन रखने वाली तनुजा त्रिवेदी उर्फ तनु फिल्मों में आई अब तक उत्तर प्रदेश की सीधी-सादी, घरेलू, आज्ञाकारी बेटियों सी नहीं है। देव डी में अनुराग कश्यप द्वारा गढ़े पारो के किरदार के बाद तनु वेड्स मनु की तनु भारत के छोटे शहरों की नई पीढ़ी की स्वछंद, निरंकुश, बिंदास, कंफ्यूज लड़की की छवि पेश करती हैं।
तनु के लिए प्यार सिर्फ एस्ट्रोजन, टेस्ट्रोजन जैसे हार्मोस हैं। उसे अरेंज मैरिज से नफरत है। तनु को सहज, सरल और सपाट जीवन पसंद नहीं। मनु जब तनु को पहली बार देखता है तो उसे प्यार हो जाता है। वह शादी के लिए हां कर देता है, लेकिन तनु उससे कहती है कि वह शादी से इंकार कर दे क्योंकि उसका ब्वॉयफ्रेंड है। मनु अपने लिए दूसरी लड़कियां देखना शुरू करता है। किस्मत मनु को पंजाब में उसके दोस्त की शादी में फिर तनु से मिलाती है। तनु की खुशी के लिए मनु उसके मां-पिता को उसके गुंडे ब्वॉयफ्रेंड अवस्थी से शादी के लिए राजी करता है, लेकिन जब सरलता से सब होने लगता है, तनु की अवस्थी से शादी होने लगती है तो वह घबराने लगती है। वह शादी के एक दिन पहले अवस्थी से ब्याह करने से इंकार कर देती है।
लेखक हिमांशु शर्मा ने तनु वेड्स मनु में कानपुर की कहानी में पंजाब का सुंदर छौंक लगाया है। विविध भारती पर अमीन सयानी की आवाज से शुरू हुई फिल्म फ्रेश और रोचक संवादों के साथ खूबसूरती से आगे बढ़ती है। कृष्णा के संगीत पर राजशेखर के बोल कहानी में रूचि बनाए रखने में मदद करते हैं। पृष्ठभूमि में आया गीत रंगरेज का मनु और तनु की भावनाओं के अभिव्यक्ति के लिए अच्छा इस्तेमाल किया गया है। मनु और तनु के व्यक्तित्व का विरोधाभास बांधे रखता है, लेकिन मध्यांतर के बाद पटकथा लचर हो गई है। तनु का मनु के प्रति अचानक प्रेम का अहसास और अवस्थी का अपनी गर्लफ्रेंड तनु की मनु से शादी के लिए रजामंदी खटकती है। छोटे शहर की तनु के किरदार में कंगना रनौत के अभिनय का अलग पहलू देखने को मिलता है। इस किरदार को स्वीकार करके कंगना ने साहस दिखाया है। मनु के किरदार में आर माधवन की उम्दा अदाकारी देखने को मिलती है। छोटी भूमिका में जिमी शेरगिल असर छोड़ जाते हैं। दीपक डोबरियाल, स्वरा भास्कर और एजाज खान सहयोगी भूमिकाओं में प्रभावित करते हैं।

-तीन स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह


Thursday, February 24, 2011

पापा है कमाल

बॉबी देओल के लिए नए वर्ष की शुरुआत धमाकेदार हुई है। यमला पगला दीवाना फिल्म के रूप में उन्होंने साल के आरंभ में अपने नाम एक सुपरहिट फिल्म कर ली है। बॉबी अपनी खुशी बांटते हैं, मैं पहले से कॉन्फिडेंट था कि फिल्म अच्छी बनी है। कितनी चलेगी, यह रिलीज के बाद पता चलता है। मुझे इस बात की खुशी हुई कि फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने यमला पगला दीवाना के बारे में ट्विटर पर बात की। लोग इसके बारे में ऐसे बात कर रहे थे जैसे उनकी फिल्म हो। फिल्म की सफलता से मुझे अहसास हुआ कि दुनिया में हमारे परिवार के लिए लोगों में कितना ज्यादा प्यार है।
यमला पगला दीवाना की सफलता की बड़ी वजह बॉबी पापा धमर्ेंद्र को मानते हैं। उन्हें गर्व है कि उनके पापा ने पचहत्तर साल की उम्र में एक सुपरहिट फिल्म दी है। बॉबी कहते हैं, पापा के इंडस्ट्री में पचास साल पूरे हो गए। पचहत्तर की उम्र में कोई ऐसी हिट फिल्म दे, तो कमाल की बात है। पापा को लोग बहुत प्यार करते हैं। लोग उन्हें बार-बार पर्दे पर देखना चाहते हैं। उनकी वजह से हमें प्यार मिलता है। सबका बहुत-बहुत शुक्त्रिया!
धर्मेद्र, सनी देओल और बॉबी तीन साल पहले पहली बार एक साथ अपने फिल्म में आए थे। यमला पगला दीवाना की तरह वह फिल्म भी सफल हुई थी। धर्मेद्र, सनी और बॉबी के बारे में कहा जा रहा है कि तीनों देओल एक-दूसरे के लिए लकी हैं। बॉबी इस बारे में हंसते हुए कहते हैं, हम ऐसा नहीं सोचते हैं। हम तीनों लकी हैं कि हम साथ हैं। उससे ज्यादा लक क्या हो सकता है? जिंदगी में फिल्म चले या न चले, हमारा साथ रहना जरूरी है। मैं लकी हूं कि मुझे पापा और भैया के साथ फिल्म में काम करने का अवसर मिलता है। हमें एक साथ देखना दर्शकों को भी अच्छा लगता है। हम भविष्य में भी साथ काम करेंगे।
पिता-पुत्र की लोकप्रिय और सफल तिकड़ी ने अपनी अगली फिल्म के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। देओल परिवार ने यमला पगला दीवाना के युवा लेखक जसविंदर सिंह बथ पर इसका सीक्वल लिखने की जिम्मेदारी सौंप दी है। बॉबी बताते हैं, हम इसका पार्ट 2 बनाने जा रहे हैं। अपने के बाद हमें तीन साल लगा दोबारा साथ आने में, लेकिन इस बार इतना समय नहीं लगेगा। बस जल्दी से एक अच्छी कहानी हमारे लेखक लिख दें। कहानी अच्छी बननी चाहिए। यदि यमला पगला दीवाना की स्क्रिप्ट अच्छी नहीं होती, तो हम तीनों के रहने से फिल्म नहीं चलती। पापा, भैया और मुझे साथ लेकर कई निर्माता फिल्म बनाना चाहते हैं, लेकिन जब तक कहानी अच्छी नहीं मिलेगी, हम साथ काम नहीं करेंगे। बॉबी की अगली फिल्म होगी अनीस बज्मी की थैंक्यू। यह कॉमेडी फिल्म है। बॉबी बताते हैं, फिल्म थैंक्यू के अलावा मैं अब्बास-मस्तान की प्लेयर फिल्म भी कर रहा हूं। अब्बास-मस्तान तो मेरे घर के लोग हैं। दोनों फिल्मों को लेकर मैं बहुत एक्साइटेड हूं। इस साल यही दो फिल्में आएंगी। मैं और स्क्रिप्ट पढ़ रहा हूं। जब तक मुझे अच्छी स्क्रिप्ट के साथ अच्छी टीम नहीं मिलेगी, मैं कोई फिल्म साइन नहीं करूंगा। क्रिकेट की तरह फिल्म में भी अच्छी टीम का होना बहुत जरूरी है, वरना जीत नहीं मिलेगी।
-रघुवेंद्र सिंह

सपना हो रहा है पूरा-रतन राजपूत

रतन राजपूत जब दिल्ली में थिएटर में थीं, तब अक्सर उन्हें नौकरानी या दूसरे किस्म के साधारण किरदार निभाने के लिए दिए जाते थे। नाटक का हीरो उन्हें तवज्जो नहीं देता था। इसका कारण रतन का साधारण लुक और दुबली-पतली काया थी, लेकिन वही रतन जब जी टीवी के सीरियल अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो की लाली के रूप में प्रसिद्ध हुई तो उनके चाहने वालों की संख्या असंख्य हो गई। बहुत जल्द एक राष्ट्रीय चैनल पर अब वही रतन देश भर से आए नवयुवकों में से अपने लिए वर का चुनाव करेंगी। रतन के लिए यह गर्व का पल है। वे कहती हैं, मेरे पिता कमिश्नर हैं। उनका सिर किसी के सामने नहीं झुकता, लेकिन एक बेटी के पिता के तौर पर मैंने उन्हें सिर झुकाते देखा है। मैं पांच बहनों में सबसे छोटी हूं। स्वयंवर रचाकर मैं पिताजी को बेटा होने का अहसास कराऊंगी। पहली बार बेटी का बाप होने के बावजूद उनका सिर मेरी शादी में नहीं झुकेगा।
रतन ने पटना से दिल्ली और दिल्ली से मुंबई का सफर तय करके अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो से अभिनय जगत में सम्मान अर्जित कर छोटे शहर की लड़कियों की प्रेरणा बन गई। उनके द्वारा इमेजिन चैनल पर रियलिटी शो स्वयंवर 3 : रतन का रिश्ता के जरिए अपने लिए पति ढूंढना एक ऐतिहासिक कदम है। दुनिया हैरत में है। रतन आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, इसमें हैरानी की क्या बात है! हर लड़की के जीवन में यह पड़ाव आता है। मैं बहुत खुश हूं। सीता जी मिथिलांचल से थीं। उनका स्वयंवर हुआ था। मैं भी मिथिलांचल से हूं और अब मेरा स्वयंवर होने जा रहा है। मैं बहुत उत्साहित हूं। मैं खुश हूं कि मुझे अपना वर चुनने का मौका मिल रहा है। आज के जमाने में कितनी लड़कियों को ऐसा मौका मिलता है? शादी मेरे बचपन का सपना था। मेरा वह सपना पूरा होने जा रहा है।
रतन के स्वयंवर की तैयारियां इन दिनों जोर-शोर से चल रही है। वे बैठकर सब देख रही हैं। इस बाबत रतन कहती हैं, अरे भाई लड़की की शादी होती है, तो वह खुद काम थोड़े ही करती है। मैं बैठकर सारी तैयारियां देख रही हूं। इमेजिन के लोग तैयारियां कर रहे हैं। रतन के मन में आजकल अनेक प्रकार की भावनाएं उमड़ रही हैं। कैसे-कैसे लड़के आएंगे? क्या उन्हें उनके सपनों का राजकुमार मिलेगा? रतन कहती हैं, मैं बहुत नर्वस हूं। मुझे डर भी है कि कहीं लोग लाली को ढूंढते हुए मेरे स्वयंवर में न आ पहुंचें। गौरतलब है कि रतन ने अपने परिवार और रिश्तेदारों की सहमति के बाद रियलिटी शो में स्वयंवर करने का फैसला किया है।
रतन को केयरिंग, सपोर्टिव, इंडिपेंडेंट और दूसरों का सम्मान करने वाला लड़का चाहिए। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता की लड़का गांव से है या शहर से। रतन कॉन्फिडेंट हैं कि स्वयंवर का असर उनके करियर पर नहीं पड़ेगा। उनका कहना है, मैं शादी करने के बाद एक्टिंग को भूल नहीं जाऊंगी। दर्शकों को इससे क्या फर्क पड़ेगा कि रतन शादीशुदा है या नहीं। मैं पॉजिटिव सोचती हूं। देखते हैं कि शादी के बाद क्या होता है? रतन मानती हैं, इंसान ऊपर वाले के हाथ की कठपुतली है। वह जैसे नचाएगा, वैसे नाचना पड़ेगा। वैसे, जो होगा, अच्छा होगा, मैं इसी बात में यकीन करती हूं। मैं अपने स्वयंवर को लेकर पॉजिटिव हूं। मुझे आशा है कि मेरा जीवनसाथी शो में मिल जाएगा।
-रघुवेंद्र सिंह

शाहिद की बर्थडे पार्टी में प्रियका को नहीं बुलावा

शाहिद कपूर की गर्लफ्रेंड हैं प्रियका चोपड़ा। जाहिर है कि शाहिद की जिंदगी में प्रियका की खास जगह है, इसके बावजूद शाहिद की बर्थडे पार्टी का निमत्रण प्रियका चोपड़ा को नहीं मिला है। मिली जानकारी के मुताबिक शाहिद के खास दोस्तों ने उनके लिए 24 फरवरी की रात सरप्राइज बर्थडे पार्टी देने की योजना बनाई है। यह पार्टी शाहिद के फिल्म इंडस्ट्री के दोस्त नहीं, बल्कि उनके गैर फिल्मी दोस्त दे रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने इस पार्टी में शाहिद कपूर की गर्लफ्रेंड प्रियका चोपड़ा को आमत्रित नहीं किया है। वे शाहिद के तीसवें जन्मदिन को अलग ढंग से सेलीब्रेट करना चाहते हैं। शाहिद के दोस्त नहीं चाहते हैं कि उनके बीच फिल्म इंडस्ट्री के लोग मौजूद हों।
गौरतलब है कि पच्चीस फरवरी, 1981 को पैदा हुए शाहिद कपूर का कल जन्मदिन है। पच्चीस फरवरी का दिन शाहिद अपने परिवार और मित्रों के सग व्यतीत करेंगे। शाहिद के लिए यह साल बेहद खास है। इस साल पिता पकज कपूर निर्देशित उनकी फिल्म 'मौसम' रिलीज होगी। जिसे लेकर शाहिद बेहद उत्साहित हैं। हमारी ओर से शाहिद कपूर को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं!



देसी कुड़ी कंगना

आनद एल राय निर्देशित 'तनु वेड्स मनु' फिल्म की सफलता को लेकर कंगना निश्चित हैं। कंगना आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, 'तनु वेड्स मनु' अच्छी फिल्म है और अच्छी फिल्म को चलने से कोई नहीं रोक सकता है।'
गौरतलब है कि 'तनु वेड्स मनु' में कंगना ने कानपुर की तनुजा त्रिवेदी की भूमिका निभाई है। तनुजा उर्फ तनु बेहद चचल, स्मार्ट और इंटेलीजेंट है। वह अपने अंदाज में जिंदगी जीती है। इस किरदार में कंगना पहली बार देसी अवतार में नजर आएंगी। कंगना कहती हैं, 'अब तक दर्शकों ने मुझे मॉडर्न ड्रेस में देखा था। इसमें मैंने शुद्ध भारतीय ड्रेस पहने हैं। मैंने सलवार-कमीज पहनी है। मेरा लुक फिल्म का एक विशेष आकर्षण है।'
'तनु वेड्स मनु' में कंगना रनौत के साथ आर माधवन हैं। 'वस अपॉन अ टाइम इन मुंबई', 'नॉकआउट' और 'नो प्रॉब्लम' जैसी फिल्मों के बाद 'तनु वेड्स मनु' जैसी फिल्म, जिसमें कोई स्टार अभिनेता नहीं है, में काम करने की वजह क्या रही? इस सवाल पर कंगना कहती हैं, 'मैं हीरो का हाथ पकड़कर नहीं चलती हूं। मैं हीरो देखकर या बड़ा निर्देशक देखकर फिल्म साइन नहीं करती हूं। यदि मुझे भरोसा है कि फिल्म चलेगी, स्क्रिप्ट अच्छी है, निर्देशक अच्छे हैं, तो मैं काम करती हूं। आनद की यह दूसरी फिल्म है, लेकिन मुझे उनकी स्क्रिप्ट अच्छी लगी, इसलिए मैंने उनके साथ काम किया। 'तनु वेड्स मनु' में जयमाल लेकर खड़ी कंगना निजी जीवन में कब तक शादी करेंगी? जवाब में कंगना कहती हैं, 'मुझे अब तक ऐसा कोई मिला ही नहीं है, जिसके साथ घर बसा सकूं। फिलहाल मैं अपने काम में बिजी हूं।'
इधर पिछले कुछ समय से कंगना ने अपने कॅरियर का रुख बदल दिया है। अब वह कॉमेडी फिल्मों को तरजीह दे रही हैं। कंगना बताती हैं, 'आजकल मैं डेविड धवन की फिल्म 'रासकल' की शूटिंग कर रही हूं। यह भी कॉमेडी फिल्म है। इसके अलावा मैं इन्द्र कुमार की कॉमेडी फिल्म 'डबल धमाल' कर रही हूं। 'तनु वेड्स मनु' भी रोमाटिक कॉमेडी है। मुझे कॉमेडी फिल्मों की शूटिंग में मजा आ रहा है। खास बात यह है कि कॉमेडी फिल्मों का दर्शक वर्ग बहुत बड़ा है। इन फिल्मों से मेरी लोकप्रियता बढ़ेगी। मेरी पहचान का दायरा बड़ा होगा।
आनद एल राय निर्देशित यह फिल्म दो विपरीत स्वभाव के लोगों की कहानी है। मनोज शर्मा उर्फ मनु सीधा-सादा लड़का है। लदन में रहने के बावजूद वह अरेंज मैरिज में विश्वास करता है। परिवार के कहने पर मनु लदन से कानपुर अपने लिए लड़की देखने आता है। तनुजा त्रिवेदी उर्फ तनु चचल, शरारती, लेकिन समझदार और बुद्धिमान लड़की है। वह दुनिया के नियम-कानून नहीं मानती। अरेंज मैरिज में उसका यकीन नहीं है। विपरीत स्वभाव के तनु और मनु की शादी क्या होगी और यदि होगी तो कैसे? यह देखना रोचक होगा। इसकी शूटिंग कानपुर और पजाब के कुछ शहरों में हुई है। निर्माता शैलेश सिह तनु वेड्स मनु के बारे में कहते हैं कि लबे समय के बाद भारत का असली रंग और मि˜ी की खुशबू इस फिल्म में मिलेगी। फिल्म के गीतकार हैं राजशेखर और सगीतकार हैं कृष्णा। कंगना और आर माधवन के साथ मुख्य भूमिकाओं में है जिमी शेरगिल, स्वरा भास्कर, दीपक डोबरियाल आदि।
-रघुवेन्द्र सिह

Friday, February 18, 2011

कच्चा लिंबू- किशोरावस्था की उलझनें

मुख्य कलाकार : ताहिर सुतरवाला, चिन्मय कांबली विनय पाठक, रुखसार, इरावती हर्षे, भैरवी गोस्वामी, अतुल कुलकर्णी, राजेश खट्टर

निर्देशक : सागर बल्लारी

तकनीकी टीम : निर्माता- सीमांतो रॉय, संगीत- अमरदीप निज्जर

किशोरावस्था में प्रवेश करते समय एक लड़के के जीवन में कई बदलाव होते हैं। खास तौर से स्वतंत्र सोच का निर्माण, लड़कियों की ओर आकर्षण, दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचने की ललक।
कच्चा लिंबू फिल्म का केंद्रीय पात्र तेरह वर्षीय शंभू व्यक्तित्व निर्माण के इसी रचनात्मक दौर से गुजर रहा है। वह स्कूल में ढेर सारे दोस्त बनाना चाहता है, अपनी नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहता है, लंच ब्रेक में दूसरे स्कूल में जाकर एक लड़की को छुपकर निहारता है, लेकिन शंभू का दोस्त कोई नहीं बनना चाहता। सब उससे दूर भागते हैं। उससे नफरत करते हैं। उसकी हीरो बनने की कोशिश हर बार फेल हो जाती है। शंभू घर में भी अकेला है। उसकी मम्मी ने दूसरी शादी की है। वह न तो मम्मी और न ही पापा से मन की बात कहता है। अंत में शंभू घर छोड़कर भाग जाता है। कोलीवाड़ा में उसकी मुलाकात विट्ठल से होती है। विट्ठल अनपढ़ है, लेकिन बिंदास है। वह किसी से दबता और डरता नहीं। विट्ठल और शंभू गहरे दोस्त बन जाते हैं। नन्हा विट्ठल अपने घर के झगड़ों से परेशान होकर शंभू के साथ घर छोड़कर भाग जाता है। शंभू और विट्ठल अभिभावकों के मित्रतापूर्ण व्यवहार और उचित मार्गदर्शन से वंचित हैं।
शंभू और विट्ठल के किरदार को ताहिर सुतरवाला और चिन्मय कांबली ने सुंदरता से निभाया है। मोटे शंभू के रूप में सागर बल्लारी ऐसे पात्र को केंद्र में लाए हैं, जो अमूमन फिल्मों में गौण रहा है। सागर का यह साहस सराहनीय है। किशोरावस्था की उलझनों और रोचक बदलावों को सहज और संवेदनशील तरीके से वे पेश करने में सफल हैं। वे इंगित करते हैं कि किशोर बच्चों को अभिभावकों के स्नेह के साथ मित्रवत व्यवहार की बहुत जरूरत होती है। शंभू का चरित्र स्थापित होने के बाद भी सागर का चरित्र निर्माण के लिए बार-बार साधारण घटनाओं का जोड़ फिल्म को लंबा एवं उबाऊ बना देता है। लंबे-लंबे संवाद मराठी भाषा में रखने से लेखक-निर्देशक को बचना चाहिए था।
-ढाई स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह


Monday, February 14, 2011

मेरा परफेक्ट वैलेंटाइन

आजकल की युवा पीढ़ी को 'परफेक्ट वैलेंटाइन' की तलाश होती है, जिनके साथ 'वैलेंटाइन डे' के दिन कुछ मधुर, खुशनुमा और प्यार-भरे पल बिताकर अपने प्रेम-संबंध को गहराई दे सकें। सिल्वर स्क्रीन के कुछ सितारों को तो उनका हमसफर मिल गया है, पर कुछ अभी भी अपने 'परफेक्ट वैलेंटाइन' की तलाश कर रहे हैं।

मेरी फैमिली का सम्मान करे: रणबीर कपूर

सबसे पहले जरूरी है कि मेरी वैलेंटाइन एक अच्छी ह्यूमन बीइंग हो। वह मेरी फैमिली का सम्मान करे। मैं सिर्फ उससे उम्मीद नहीं करूंगा। उसकी उम्मीदों पर भी खरा उतरने की कोशिश करूंगा। उम्र और रंग-रूप मेरे लिए बहुत अधिक मायने नहीं रखता है। मेरा मानना है कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती है। मैंने तय किया है कि जब मुझे प्यार होगा, तभी मैं शादी करूंगा।

मुझे खुश रखे: दीपिका पादुकोण

फिल्म स्टार की लाइफ बेहद कठिन होती है। त्याग और समझौते करने पड़ते हैं। मेरा 'परफेक्ट वैलेंटाइन' वही होगा जो मुझे और मेरे प्रोफेशन की जरूरतों और मजबूरियों को समझते हुए मुझे जीवन की छोटी-छोटी खुशियां दे पाए। मेरी लाइफ में सक्सेस और मनी ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। छोटी-छोटी चीजें मुझे खुश करती हैं। मैं चाहूंगी कि मेरा वैलेंटाइन मेरी भावनाओं को समझे। एक और बात मैं बेहद व्यवस्थित रहती हूं तो उसे भी मेरी तरह व्यवस्थित और अनुशासित होना चाहिए।

जो सरल और सहज हो: रजत बरमेचा

मैं चाहता हूं कि मेरी वैलेंटाइन स्वभाव से घरेलू हो जो मेरे परिवार में घुल-मिल जाए और उन्हें अपना बना ले। वह सरल हो और सहज हो। सबसे खास बात कि वह वर्किंग हो ताकि जब हम रिलेशनशिप में आगे बढ़ें तो उसे मेरी व्यस्तता से प्रॉब्लम न हो। वह भी अपने कॅरियर पर फोकस करे। वह भी व्यस्त रहे। मैं 21 का ही हूं, तो अभी मेरे पास अपनी 'परफेक्ट वैलेंटाइन' ढूंढ़ने के लिए काफी वक्त है।

मेरे लिए कविताएं लिखे: कट्रीना कैफ

आज के जवान लड़के-लड़कियां दोस्त होते हैं। समय बीतने और साथ रहने के बाद उन्हें एहसास होता है कि वे प्रेमी हैं। मैं चाहती हूं कि मेरा वैलेंटाइन सबसे पहले मेरा अच्छा दोस्त हो। मुझे पता है कि प्यार का दूसरा नाम दर्द है, पर मेरा नजरिया पॉजिटिव है। मुझे लगता है कि प्यार जीवन का सबसे खूबसूरत एहसास है, जो मुझे यह एहसास दिला सके। वही मेरी नजर में मेरा परफेक्ट वैलेंटाइन है। एक और बात किसी ने मेरे लिए आज तक कविता नहीं लिखी है। अगर वह मेरे लिए कविता लिखेगा, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।

मिल गया परफेक्ट वैलेंटाइन: सेलिना जेटली

जो संस्कारी हो, जिसमें ग्रेट सेंस ऑफ ह्यूंमर हो, मेरे मम्मी-पापा को रिस्पेक्ट दे तथा लंबा और हैंडसम हो, वही मेरे वैलेंटाइन हो सकता है। मुझे काले और गोरे से फर्क नहीं पड़ता। खुशी की बात है कि मुझे मेरा परफेक्ट वैलेंटाइन मिल गया है। मुझे ये सारी खूबियां मेरे मंगेतर पीटर हाग में मिल गयी हैं। इसलिए मैंने उनके साथ सितंबर में शादी करने का फैसला कर लिया है।

मेरे पापा की तरह हो: सोनम कपूर

चाहती हूं कि मेरा वैलेंटाइन मेरे पापा की तरह स्मार्ट, इंटेलीजेंट, केयरिंग और समझदार हो। फैमिली वैल्यूज में उसका यकीन हो। हां, एक बात और है उसकी मूंछें मेरे पापा की तरह ही होनी चाहिए। उसमें मुझे मेरे पापा की छवि दिखनी चाहिए। मुझे पता है कि ऐसे लड़के की तलाश करना मुश्किल है। फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है।

सौम्या अपराजिता/रघुवेन्द्र सिंह

Saturday, February 12, 2011

मैं सबसे प्यार करती हूँ-प्रियंका चोपड़ा

विशाल भारद्वाज की फिल्म 7 खून माफ में प्रियंका चोपड़ा जिंदगी से लबालब और इश्क से मायूस सुजैना का रोल कर रही हैं, जो प्यार के मामले में खानाबदोश है। सुजैना सात मर्दो से शादी करती है। हिंदी सिनेमा के इतिहास में इतना अनूठा किरदार पहली बार आ रहा है। इस किरदार को पर्दे पर जीने का मौका पाकर प्रियंका खुश हैं। वे कहती हैं, मैं बहुत लकी हूं कि मुझे 7 खून माफ फिल्म मिली। मुझे विशाल भारद्वाज के साथ दोबारा काम करने का मौका मिला। सुजैना अलग तरह की लड़की है। ऐसी लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। यह किसी के जीवन से प्रेरित नहीं है। सुजैना की अपनी दुनिया है। यह काल्पनिक किरदार है, इसलिए इसके साथ हम जो कर सकते थे, हमने किया।

विशाल भारद्वाज निर्देशित फिल्म 7 खून माफ रस्किन बांड की शॉर्ट स्टोरी पर आधारित है। इसमें प्रियंका पहली बार पचीस वर्ष की युवती से लेकर साठ वर्ष की वृद्धा के लुक में नजर आएंगी। यह फिल्म सुजैना के जीवन का सफर है। यह सुजैना के सच्चे प्यार की खोज की कहानी है। प्रियंका मानती हैं कि यह किरदार निभाना उनके लिए बहुत मुश्किल था। उनके अनुसार, सुजैना कहती है कि दुनिया के सारे गलत आदमी मेरी ही किस्मत में थे। टफ कैरेक्टर है यह। इसमें मेरे कई लुक हैं। मेरा लुक डिजाइन करने के लिए हॉलीवुड से मेकअप आर्टिस्ट बुलाए गए थे। उन्होंने मुझसे मेरे नानी, मां की तस्वीरें मांगी और उस हिसाब से मेरा लुक बनाया। फिजीकली इसमें मेरा लुक मॉम से प्रेरित है।

जॉन अब्राहम, नील नितिन मुकेश, नसीरुद्दीन शाह, इरफान खान, अन्नू कपूर, ऐलेक्जेंडर और विवान शाह ने 7 खून माफ में प्रियंका के सात पतियों की भूमिका निभाई है। प्रियंका ने जॉन अब्राहम से लेकर नील नितिन मुकेश, नसीरुद्दीन शाह और अपने से कम उम्र के नवोदित अभिनेता विवान के साथ अंतरंग दृश्य किए हैं। उनके अंतरंग दृश्यों की काफी चर्चा भी हो रही है। इस बाबत प्रियंका कहती हैं, शादी के बाद क्या स्त्री पति के साथ इंटीमेंट नहीं होती। सुजैना के अपने पतियों के साथ ऐसे दृश्य हैं। मैं आर्टिस्ट हूं और फिल्म करते समय मैं कैरेक्टर में रहती हूं। अपनी सहूलियत के हिसाब से मैं इस तरह के दृश्य करती हूं। मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है।

7 खून माफ में नसीरुद्दीन शाह, अन्नू कपूर और इरफान खान जैसे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम करने का अनुभव प्रियंका बांटती हैं, मैं बहुत नर्वस थी। नसीर सर के साथ मैंने शूटिंग के पहले वर्कशॉप की थी। वे अपने आप में एक्टिंग का इंस्टीट्यूशन हैं। इरफान खान के साथ मैंने इस फिल्म का पहला शेड्यूल किया था। तब मेरे कैरेक्टर की उम्र चालीस थी। इस फिल्म का पूरा अनुभव मेरे लिए रोमांचक और यादगार रहा।

विशाल भारद्वाज मानते हैं कि प्रियंका चोपड़ा अपने दौर की बेहतरीन अभिनेत्री हैं। वे हार्ड वर्किग और समर्पित हैं। प्रियंका के साथ उनका जो रैपो बना है, वैसा रैपो आज तक किसी कलाकार के साथ नहीं बना। अपने निर्देशक से अपने लिए ऐसी बातें सुनकर प्रियंका विनम्रता से सिर नीचे झुका लेती हैं। वे सिर्फ मुस्कुराती हैं और अपने आपको बहुत लकी कहती हैं। 7 खून माफ प्रियंका के करियर की बेहतरीन फिल्म मानी जा रही है। प्रियंका कहती हैं, मैंने बहुत मेहनत की है। मुझे फिल्म की शूटिंग के दौरान बहुत मजा आया। उम्मीद है कि दर्शकों को फिल्म पसंद आएगी। इसमें ब्लैक कॉमेडी है। बहुत चूमरस फिल्म है। प्रियंका की इस फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला है, लेकिन उनका मानना है कि इससे फिल्म के बिजनेस पर असर नहीं पड़ेगा। वे कहती हैं, मेरी फिल्म फैशन को भी ए सर्टिफिकेट मिला था, लेकिन वह चली। प्रियंका खुद को आशिक मिजाज मानती हैं। वे दार्शनिक अंदाज में कहती हैं, मैं सबसे प्यार करती हूं। मैं दुनिया के हर शख्स से प्यार करती हूं। पर यह सुनकर अजीब लगता है कि प्रियंका शाहिद कपूर को आज भी अपना सच्चा दोस्त ही मानती हैं। वे कहती हैं, सचमुच, शाहिद मेरे दोस्त ही हैं और कुछ नहीं..।

Friday, February 11, 2011

अवॉर्ड तो मैं ले लूंगा लेकिन: अक्षय कुमार


कॉमेडी फिल्मों से अक्षय कुमार ब्रेक ले रहे हैं। वे बदलाव चाहते हैं। जुहू में अपने नए दफ्तर में अक्षय ने अपनी नई योजनाओं, पटियाला हाउस और 2011  की व्यस्तताओं  के बारे में गंभीरता से बातचीत की।

पटियाला हाउस के प्रोमो  और गीत के लिए व्यक्तिगत तौर पर कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है?
बहुत अच्छा  रिस्पांस है। लोगों को जब गाना पसंद आता है तो म्यूजिक कंपनी खुश हो जाती है। गाने बहुत खास रोल प्ले करते हैं क्योंकि जब गाने चल जाते हैं तो मैंने देखा है कि फिल्म अच्छी  न भी हो तो गानों की वजह से फिल्म निकल जाती है। मैंने फिल्म देखी है। मैं कह सकता हूं कि तीन-चार साल बाद कॉमेडी से दूर होकर मैंने एक इमोशनल  और सीरियस  फिल्म की है। मेरे लिए एक जगह  से दूसरी जगह  आने जैसा है। मैंने जान-बूझकर ऐसा किया है क्योंकि मैंने बहुत कॉमेडी फिल्में कीं। मैं बदलाव चाहता था।
आप इमोशनल  फिल्म क्यों करना चाह रहे थे?
काफी पहले मैंने फादर-सन रिलेशन पर फिल्म की थी। एक रिश्ता, फिर वक्त की थी। जानवर भी की। उसके बाद वापस मैं पटियाला हाउस में उस विषय को ला रहा हूं।
आपको लगता  है कि री विजिट  करने का समय आ गया है?
वो तो करना ही चाहिए। हर इंसान को कुछ न कुछ नया करना चाहिए इसलिए मैंने यह किया। काफी लोग मुझसे कहते थे कि कॉमेडी से ब्रेक लेकर कुछ अलग करिए तो मुझे यही मिला। स्क्रिप्ट मुझे अच्छी  लगी।  इस स्क्रिप्ट में जो है, हर हिंदुस्तानी की जिंदगी  में ऐसा होता है। परिवार के अंदर समस्या होती है। बेसिकली  एक पिता है जिसका खुद का सपना है कि उसका बेटा क्या बने? वह उसे वही बनाना चाहता है, लेकिन उसके बेटे का ड्रीम  कुछ और है। ऐसे बहुत घरों में होता है, लेकिन डैडी मैं नहीं बनना चाहता हूं डॉक्टर। पैरेंट्स  भूल जाते हैं कि बच्चों  के अपने सपने होते हैं। मैंने देखा है कि आज की जेनरेशन के बीच में बहुत होता है कि हम कुछ बनना चाहते हैं और पिता कुछ बनाना चाहते हैं। यह ज्वाइंट फैमिली की कहानी है इसीलिए इसको पटियाला हाउस कहते हैं। पटियाला मतलब होता है बड़ा। पटियाला पैक कहते हैं तो बड़ा पैक कहते हैं इसीलिए पटियाला हाउस मतलब बड़ी फैमिली। 24  लोग रहते हैं साथ और उसमें हमारे जो बाबूजी  हैं उनका कहना मानना पड़ता है। परिवार में जो बच्चों  के ड्रीम  हैं, वह शैटर  होते जा रहे हैं। बाबूजी  चाहते हैं कि वो उनके मन का करें और ऐसा बहुत जगहों  पर होता है।
संयुक्त परिवार के माहौल को मिस करते हैं मुबंई  में?
ज्वाइंट फैमिली का मजा ही कुछ और है। मैं खुद जब दिल्ली में रहता था तो बीस से बाइस जन साथ रहते थे। मामा-मामी, मम्मी-डैडी सब लोग साथ रहते थे और हमारा घर भी दो बेडरूम का था। हम बाइस लोग साथ रहते थे। उसका मजा कुछ और होता था।
पिछली बार आपका परिवार कब एकजुट हुआ था?
हर महीने हम एकजुट होते हैं। मेरे सारे रिश्तेदार मुंबई में आस-पास रहते हैं। भले ही हम एक छत के नीचे नहीं रहते लेकिन अलग रहते हैं, पर हर हफ्ते या महीने में एक बार डिनर जरूर साथ में खाते हैं। वो हम हिंदुस्तानियों में हमेशा रहेगा। वो निकल ही नहीं सकता है। परिवार में हमें ये सिखाया जाता है। मैं बैंकॉक  में पांच साल था। मैं वहां यह बहुत मिस करता था। अकेला पड़ गया था। ज्वाइंट फैमिली के अंदर रहकर सिक्योरिटी हो जाती है। मेरी जिंदगी  में इनसिक्योरिटी  नहीं है।
आपके बेटे मिस करते हैं इन चीजों को?
नहीं, उनको सब मिलता है क्योंकि सारे रिलेटिव  साथ रहते हैं। हर रोज सबका आना-जाना लगा  रहता है।
पटियाला हाउस के किरदार में आपको कुछ नया एक्सप्लोर  करने का मौका मिला? कलाकार के तौर पर अपनी सीमाएं तोड़ने का मौका मिला?
मुझे मौका मिला। मुझे नहीं पता कि यह फिल्म कमर्शियली  कितना करेगी? हिट होगी या क्या होगा? पर ये डेफिनेटली  कहूंगा कि इस फिल्म के अंदर मेरे करियर  की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेस  है और ये तभी मुमकिन है जब आप उस किरदार के लिए फील करने लगते  हैं। बहुत सारे कैरेक्टर  मैं करता हूं लेकिन ये सोच कर करता हूं कि ये कैरेक्टर  है, लेकिन ये कैरेक्टर  जो मैंने खेला है उसके लिए मैं खुद को भी मार सकता था। कुछ कैरेक्टर  आप जिंदगी  में पा लेते हैं जिनमें आप खुद को पा लेते हैं तो गट्टू उन कैरेक्टर  में से है। मेरे लिए सब कुछ नया रहा।
हाल-फिलहाल की फिल्मों में हमने आपको स्क्रीन पर निरंकुश और स्वतंत्र देखा। इसमें क्या हम आपको नियंत्रण में देखेंगे?
इसमें मैंने अपने आपको एकदम पकड़ा हुआ है। एक एक्टर के लिए बहुत मुश्किल होता है कि जब कैमरा ऑन  हो तो वह खुद को पकड़ कर रखे। कई बार निखिल आडवाणी को मुझे पकड़ना पड़ा क्योंकि मुझे आदत है कैमरे के सामने आकर खुलने की। मेरे लिए यह मुश्किल रहा। निखिल को थैंक्स कि वे मुझे कंट्रोल कर सके और अनुशासित रख सके।
पटियाला हाउस फिल्म के तौर क्या कुछ नया एक्सप्लोर  करती है? इसमें कुछ नया प्रयोग  किया गया है?
मैं आपको फिल्म का एक और एंगल  बताता हूं। मैं, मेरे पिताजी.फिल्म  के अंदर दिखाया गया है कि मैं लंदन से हूं। पैदाइश लंदन की है, लेकिन हम हैं इंडियन। मुझे क्रिकेट से प्यार है। मैं बड़ा होकर क्रिकेट खेलना चाहता हूं। मुझे खेलने का मौका मिलता भी है इंग्लैंड से। मेरे पिता इस बात के खिलाफ हो जाते हैं। वे कहते हैं कि मैं नहीं चाहता कि तू इंडिया के खिलाफ खेले। मेरा ये कहना है कि पिताजी,  आप स्पोर्ट को स्पोर्ट की तरह लीजिए। मैं वॉर  पर नहीं जा रहा। मैं क्रिकेट खेलने जा रहा हूं। वह एंगल  मैंने सोचा कि यूनिक है क्योंकि क्या हो जाता है कि हम फैन भी..कई देशों में देखा है कि जब दूसरे देश के लोग आते हैं तो लोग बोतलें मार रहे हैं। क्यों? क्योंकि वे दूसरी टीम के लिए खेलने आए हैं। लोग क्यों नहीं महसूस करते कि यह एक खेल है। कोई जंग पर थोड़े ही है। मुझे यह आइडिया पसंद आया। जैसे कि मोंटी  पैनेसर  करके एक सरदार जी, जो इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेलते थे। क्लीयर  कर दूं कि उन पर बेस्ड नहीं है यह फिल्म क्योंकि उनके मां-बाप तो सपोर्ट करते थे कि वे खेलें इंग्लैंड के लिए।
फिल्म का विरोधाभास भी यही है?
हां, क्लैश  बिटवीन  टू जेनरेशन। इस फिल्म के अंदर तीन जेनरेशन है। एक सत्रह-अट्ठारह साल की, एक मेरी जेनरेशन और एक बाबूजी  की जेनरेशन। तीनों जेनरेशन के क्लैश  में मेरी जेनरेशन वाला फंस जाता है क्योंकि नीचे वाली जेनरेशन बोल रही है कि आप हमसे बड़े हैं। आपको बाबूजी  से बोलना चाहिए कि हमें आजादी दें। मेरे में इतनी ताकत नहीं है कि मैं बाबूजी  के खिलाफ जाऊं। तो मुझे न तो ये जेनरेशन लाइक करती है और न बड़ी वाली। फिर क्या होता है और कैसे मेरा किरदार इस स्थिति से बाहर आता है? यह फिल्म में है।
फिल्म में अनुष्का  के किरदार से क्या रिश्ता है आपका?
उनका किरदार है सिमरन  का। वो मेरी मदद करती हैं सही डिसीजन  लेने में। हमारे बीच रोमांस भी है लेकिन जबरदस्ती का रोमांस नहीं है। इस कैरेक्टर  के लिए आपको फील होगा।
निखिल आडवाणी के साथ कैसा अनुभव रहा?
बहुत बढि़या। हमारी पहली फिल्म चांदनी चौक नहीं चली लेकिन उसका यह मतलब नहीं है कि मैं उनके साथ दोबारा काम न करूं। वे हार्ड वर्किग  डायरेक्टर हैं। वे जिस हिसाब से फिल्म को मोड़ देते हैं.. उन्होंने कल हो ना हो बनाई थी। इमोशनल  फिल्म। इमोशन  उनका स्ट्रांग  प्वाइंट है।
आपकी फिल्मों पर नजर डालें तो बहुत सेफ होती हैं। दर्शकों की पसंद का सब कुछ होता है। आप कुछ प्रयोग  करने के बारे में नहीं सोचते?
मैंने प्रयोग  करने की कोशिश की। मैंने तस्वीर की और फिल्में भी कीं, लेकिन यहां की जो आडियंस  है उसे कमर्शियलिटी  देखने में दिलचस्पी है। उन्हें डेढ़-दो सौ रूपए  खर्च करके प्रयोग  नहीं देखना है। जैसे मेरी फिल्म तस्वीर को देखने चार बटा दो लोग नहीं आए थे थिएटर के अंदर। तो उनका एक माइंड सेट है कि हमने दो सौ रूपए खर्च किए तो हमें जाकर एंटरटेन  होना है। हमें गोलमाल देखनी है। हेरा फेरी देखनी है। सिंह इज  किंग  देखनी है। हमें मस्ती वाली फिल्में देखनी हैं। हमें एंज्वॉय  करना है। 3 इडियट  भी मजेदार थी।
बीता साल छोटी फिल्मों का रहा। आज भी उड़ान, तेरे बिन लादेन और फंस गए रे ओबामा  की चर्चा हो रही। आपका मन वैसी फिल्में करने का नहीं होता?
आपकी बात बराबर है लेकिन आप ध्यान से देखें तो वे तीन करोड़ की फिल्में हैं और बारह-तेरह करोड़ का बिजनेस किया है। ये बहुत अच्छा  प्वाइंट है लेकिन आपको ये भी सोचना चाहिए कि जब बड़ी फिल्म होती है तो उसकी कमर्शियलिटी  बड़ी होती है।
उस बजट में आप फिट नहीं होते?
नहीं, नहीं कर पाएंगे ना क्योंकि अगर  मैं करने का जाऊंगा तो डिस्ट्रीब्यूटर  का पैसा ही नहीं निकलेगा। आज कोई भी फिल्म आप बना लें, किसी के साथ भी चाहे सलमान के साथ, मेरे साथ, शाहरूख के साथ, आपको बड़ा बजट रखना पड़ेगा और कमर्शियलिटी  होनी चाहिए। हम बात कर जरूर लेते हैं कि हमने बड़ी अलग किस्म की फिल्म की है लेकिन.।
कुछ एक्टर उस तरह की फिल्में चर्चा और एक्टर के तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए करते हैं। आपके मन में ऐसी इच्छा  नहीं होती है?
वो मतलबी हो जाते हैं। अगर  मैं कर भी तो लूं फायदा मेरा होगा कि क्या एक्टिंग  है.अलग तरह की फिल्म की है। पर वहां वह डिस्ट्रीब्यूटर  बोलता है कि साला मार डाला। मैं बर्बाद हो गया.फंस गया। वो आवाज किसी को सुनाई नहीं देती। आज मेरी फिल्म जब कोई खरीदता है तो जैसे आपने कहा कि सेफ रहती हैं। डिस्ट्रीब्यूटर  को पता है कि इतने में खरीदी है तो इतना आ जाएगा। मुझे हर एंगल  से सोचना पड़ता है। कमर्शियल  एंगल से सोचना पड़ता है कि क्या यह सही बैठेगी या नहीं। अवॉर्ड  तो मैं ले लूंगा लेकिन बाकी चीजें गड़बड़ हो जाती हैं।
उस फिल्म का असर भविष्य पर पड़ेगा?
नहीं, मुझे भविष्य की प्रॉब्लम  नहीं है। मैं अपने डिस्ट्रीब्यूटर,  एक्जीबिटर,  ऑडियंस  को निराश नहीं करना चाहता। उड़ान, तेरे बिन लादेन, फंस गए रे ओबामा  मैंने देखी हैं। वे अच्छी  बनी हैं लेकिन उनके नीश  ऑडियंस  है। वे मल्टीप्लेक्स  में रहती हैं। उसके बाद रूक  जाती हैं। फोर्स नहीं आता है। मैं इन फिल्मों का बड़ा फैन हूं लेकिन दबंग  का बिजनेस एक सौ साठ करोड़ रूपए,  गोलमाल का बिजनेस एक सौ चालीस करोड़ का, तीस मार खान का 82  करोड़ का है। फीगर देखना पड़ता है। बहुत चीजें देखनी पड़ती हैं। इंटेलेक्चुअली  आप और मैं बैठकर बात कर लें कि बहुत अच्छी  है, लेकिन उसके बाद क्या? 3  इडियट  जैसी फिल्म बहुत कम आती है। जिसमें मैसेज, एंटरटेनमेंट,  फन और रोमांस होता है। बहुत कम ऐसी स्क्रिप्ट मिलती हैं।
आप प्रोड्यूसर हैं। आप वैसी टीम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। राजकुमार हिरानी  के साथ टीम क्यों नहीं बनाते?
मैं बचपन से कमर्शियल  फिल्म देखता रहा हूं। बहुत कम होता है 3  इडियट  जैसी फिल्म मिलना। रोज स्क्रिप्ट आती हैं लेकिन वैसी स्क्रिप्ट नहीं आती। राजू ने दो साल मेहनत करके स्क्रिप्ट पर काम किया। हर आदमी राजू हिरानी  तो नहीं बन सकता। हर आदमी जब फिल्म बनाने बैठता है तो.मैं भी जब बनाने बैठता हूं तो यही सोचकर बनाता हूं.पहले दिन शूटिंग  पर सोच लेता है कि ये शोले बनेगी। हर आदमी यही सोचता है। उसके हिसाब से वह शोले बनाता है। सुपरहिट  है। बाद की बात होती है कि क्या निकलता है।
फिल्म मेकिंग  की बात हो रही है तो आपका फिल्म का लंबा अनुभव है। आप उसका इस्तेमाल फिल्म निर्देशन में नहीं करना चाहते?
नहीं, मैं डायरेक्शन  नहीं करूंगा। जिसका काम उसी को साधे। हमें आदत है कैमरा के सामने रहने की तो आगे आने की क्या जरूरत है।
आपने कहा कि तीस मार खां ने 82  का बिजनेस किया, लेकिन एक अवॉर्ड  फंक्शन  में आप इसी फिल्म का शोक मनाते दिखे। क्यों?
देखिए, बहुत सारे अवॉर्ड  नाइट होते हैं। लोग दूसरे लोगों का मजाक उड़ाते हैं। दूसरे की फिल्मों का मजाक उड़ाते हैं। मेरे अंदर वह हिम्मत है कि मैं अपनी फिल्म का मजाक उड़ा सकूं क्योंकि यह मेरा मजाक है। जैसे आपके मां-बाप को चोट आए तो आपको बहुत बुरा लगेगा  या कोई मां-बाप को चोट पहुंचाए तो बुरा लगेगा।  आपके सामने कोई चाकू लेकर आ जाए तो आप यही कहेंगे कि मेरे मां-बाप को छोड़ दो मुझे मार दो या आप ऐसा कहेंगे कि मां-बाप को पहले मार दो। तो मेरी इंडस्ट्री है, मेरी फिल्म है। अगर  मैं खड़ा होकर यह बोलता हूं कि मेरी फिल्म चली है तो मेरे अंदर खड़े होकर यह बोलने का दम भी होना चाहिए कि मेरी फिल्म नहीं चली है। उसमें बुरा मानने वाली बात नहीं है।
इंडस्ट्री में तीस मार खां को लेकर जैसी बातें हो रही थीं उससे आपको दुख हुआ?
मुझे कोई दुख नहीं हुआ। आपको लगता  है कि मुझे किसी बात का दुख है।
2011  में क्या व्यस्तताएं  होंगी?
लोगों को एंटरटेन  करेंगे। पटियाला हाउस के बाद थैंक्य ू है। उसके बाद देसी ब्वॉयज।
टीवी पर देखेंगे? क्या आप खतरों के खिलाड़ी खिलाड़ी में लौटेंगे?
अभी तक कुछ तय नहीं है। देखते हैं कि क्या होता है।

-रघुवेन्द्र सिंह 

क्या आजमगढ़ शहर की साहित्यिक और सांस्कृतिक पहचान वापस लौटेगी?

महानुभाव-कहाँ से हैं आप?


-मैं आजमगढ़.से हूँ.

महानुभाव-ओह, आप अबू सलेम के शहर से हैं! आप बड़े खतरनाक शहर से हैं.

-शायद आपको पता नहीं कि राहुल सांकृत्यायन, कैफ़ी आज़मी, शबाना आज़मी भी आजमगढ़ से हैं.

महानुभाव-अच्छा! हाँ...
क्या आजमगढ़ शहर की साहित्यिक और सांस्कृतिक पहचान वापस लौटेगी?





Wednesday, February 9, 2011

मेरी पहचान आजमगढ़ से है-शबाना आज़मी

सशक्त अभिनेत्री एवं समाजसेवी शबाना आजमी आजमगढ़ में अपने पिता कैफी आजमी द्वारा स्थापित मिजवां वेलफेयर सोसायटी की सेवाओं को विस्तार देना चाहती हैं। वह मिजवां के साथ आजमगढ़ के दूसरे गांवों में चिकनकारी एवं सिलाई-कढ़ाई सेंटर खोलना चाहती हैं। जुहू में अपने निवास स्थान पर शबाना आजमी ने विशेष बातचीत में कहा कि हमें विदेश से चिकनकारी और क्रोशे के बहुत ऑर्डर मिल रहे हैं। हमें ज्यादा लोगों की जरूरत है। अब हम मिजवां में सीमित नहीं रह सकते। सरायमीर हो या फूलपुर या फिर आजमगढ़ के दूसरे गांव, हम दूसरे सेंटर से जुड़ेंगे। हम महिलाओं को प्रशिक्षण देंगे और रोजगार भी। मिजवां वेलफेयर सोसायटी के जरिए शबाना आजमी आजमगढ़ के मिजवां (पैतृक स्थान) में आठ वर्षो से अपने पिता के सपने को साकार करते हुए लड़कियों एवं महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम कर रही हैं। पिछले दिनों मुंबई में मिजवां वेलफेयर सोसायटी के मिजवां सोनेट्स इन फ्रेबिक फैशन शो में शबाना आजमी ने लोकप्रिय युवा अभिनेता रणबीर कपूर को मिजवां वेलफेयर सोसायटी का यूथ फेस घोषित किया। शबाना आजमी ने कहा कि रणबीर कपूर जब लड़कियों को लड़कों के बराबर मौका देने की बात कहेंगे तो दुनिया सुनेगी।
शबाना आज़मी मिजवां वेलफेयर सोसायटी के कार्यों और फिल्म स्टार के सहयोग कि बदौलत आजमगढ़ की छवि सुन्दर बनने के लिए लगातार काम कर रही हैं। शबाना आज़मी ने कहा, फिल्म इंडस्ट्री कि तमाम बड़ी हस्तियों ने आजमगढ़ का नाम लेकर उसे रोशन कर दिया है। आजमगढ़ के माथे पर लगा कलंक एक रात में मिटा दिया। शबाना अपने सामाजिक कार्यों के जरिये आजमगढ़ को नई पहचान दे रही हैं। शबाना ने कहा, आजमगढ़ की नई पहचान बन रही है। १८५७ की क्रांति में आजमगढ़ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लोग उसे भूल रहे हैं। साहित्यिक और सांस्कृतिक तौर पर चाहे वह राहुल सांकृत्यायन, कैफ़ी आज़मी, शिबली नुमानी, सरजू पांडे ने आजमगढ़ को जो शान दी थी, उसे वापस लाना है। आजमगढ़ कि नह पहचान बनने के लिए जो काम कर रहा है, मैं उसके साथ हूँ। शबाना आज़मी ने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा की हैरत कि बात है कि आजमगढ़ के एमपी एकजुट होकर काम नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरी पहचान आजमगढ़ से है क्योंकि मेरे नाम में आजमी है। मुझे आजमगढ़ पर नाज है। मेरे अब्बा वहां से थे। इस शहर से मेरा भावनात्मक लगाव है।
-रघुवेंद्र सिंह

किस किसको खुश करूं: रानी मुखर्जी

फिल्म नो वन किल्ड जेसिका में अपने रोल के लिए रानी मुखर्जी को आजकल ढेरों बधाई संदेश आ रहे हैं। जिन लोगों ने मान लिया था कि रानी का राज खत्म हो चुका है, अब वे अपनी उस नासमझी के लिए रानी की क्षमता को स्वीकार रहे हैं। रानी भी खुश हैं। इस खुशी में उन्होंने हमें भी शामिल किया।
नो वन किल्ड जेसिका के लिए मिल रही सबसे आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया क्या है?
बहुत सारे लोगों ने आकर कहा कि आप फिल्म में हीरो की तरह हो। वह कमेंट सुनकर मजा आया। उन्हें लगा कि मीरा उस लेवल का कैरेक्टर था कि उसे कोई आदमी भी कर सकता था। वह सरप्राइजिंग लगा। दो-तीन जर्नलिस्ट ने मेरे बारे में लिखना बंद कर दिया था। उन्होंने मुझे फोन करके माफी मांगी और कहा कि हमें थप्पड़ मार दो रानी। हम गलत थे। वे बातें दिल को छू गई। पर्दे पर आपका गालियां देना लोगों को अच्छा नहीं लगा। सुना जा रहा है कि आपके पैरेंट्स भी इस बात से आहत हैं?
जब आप एक किरदार निभा रहे होते हैं तो बहुत कंविक्शन के साथ काम करना पड़ता है। बहुत लोग कह सकते हैं कि मुझे गालियां नहीं देनी चाहिए थीं, पर कुछ लोगों की राय है कि वह सही था। दोनों टाइप के रिएक्शन मुझे मिले हैं। मैं किस किस को खुश करूं यार..? वैसे भी हर बार सबको खुश नहीं किया जा सकता है, लेकिन मुझे लगता है कि इस बार ज्यादा लोग खुश हुए हैं। उसकी वजह से बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को अच्छा कलेक्शन मिला है।
आपने अब तक जितनी फिल्में कीं, उनमें कितनी अपनी और कितनी दर्शकों की पसंद से कीं? दोनों में सफलता का प्रतिशत क्या रहा?
दोनों का प्रतिशत समान है। बहुत बार ऐसा होता है कि आप सोचते हो कि ऑडियंस को फिल्म पसंद आएगी और वह नहीं आती है। कभी-कभी आप अपनी पसंद से करते हो और वह आडियंस को भी पसंद आती है। जैसे दिल बोले हडि़प्पा, मुझे लगा था कि यह ऑडियंस को बहुत पसंद आएगी। उसमें रोमांस, कॉमेडी, ऐक्शन, डांस, इमोशन, ड्रामा, सॉन्ग, स्पो‌र्ट्स सब कुछ था। एंटरटेनिंग फिल्म थी। लगा कि हर उम्र के लोगों को अच्छी लगेगी, लेकिन यह ज्यादा लोगों को पसंद नहीं आई। जिस तरह से फिल्म चलनी चाहिए थी, नहीं चली। जैसे कि इस बार मैंने नो वन किल्ड जेसिका की। मैंने सोचा कि मुझे पसंद आएगी और दर्शकों को भी। यह ऐसा सब्जेक्ट था जिससे हम सभी रिलेट करते हैं।
फिल्मों में आप लंबे समय से हैं। उसका इस्तेमाल आप दूसरे तरीके से करने के बारे में क्यों नहीं सोचतीं?
आपका मतलब है फिल्म प्रोडक्शन..। यहां अपने अनुभव का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन मैं हर काम समझदारी और समर्पण से करती हूं। मैं किरदार में घुस जाती हूं। यदि मैं प्रोडक्शन में घुसती हूं तो शायद वह मेरे एक्टिंग प्रोफेशन पर भारी पड़ सकता है। अगर आप प्रोडक्शन में आते हैं तो आपके सोचने का नजरिया अलग हो जाता है। उस डायरेक्शन में जाना मुश्किल है। मैंने मेहनत से पैसे कमाए हैं। अगर कोई फिल्म नहीं चलेगी, तो मेरा पैसा डूब जाएगा तो मुझे बहुत दुख होगा।
नए निर्देशकों को अब आप अपने साथ काम करने का मौका दे रही हैं। पुराने प्रतिष्ठित निर्देशकों से दूरी बनाने की क्या वजह है?
हम हर समय स्क्रिप्ट और कैरेक्टर के हिसाब से फिल्म का आकलन करते हैं। जैसे कि एक्सेल एंटरटेनमेंट, जो रीमा कागटी के साथ फिल्म बना रहे हैं, उस पर आमिर, करीना और मुझे भरोसा है। हमने कहानी पर भरोसा करके फिल्म साइन की है। हमें भरोसा है कि रीमा बहुत अच्छा काम करेंगी। मैंने राजकुमार गुप्ता को भी उनकी स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले के हिसाब से आंका। यशराज फिल्म्स में मैंने अलग-अलग डायरेक्टर के साथ काम किया, क्योंकि यशराज को उन पर भरोसा था। कई बार ऐसा हुआ है कि बड़े डायरेक्टर मेरे पास स्क्रिप्ट लेकर आए पर मुझे कैरेक्टर पसंद नहीं आया।
दोस्ती या रिश्ते निभाने के लिए आप फिल्में साइन नहीं करती हैं?
मैंने पीछे दोस्ती के लिए बहुत सारी फिल्में कीं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि आज वह ट्रेंड है। आज दुनिया प्रैक्टिकल हो गई है। तीन साल पहले तक मैंने दोस्ती के लिए फिल्में कीं। सांवरिया मैंने संजय लीला भंसाली के कहने पर की। संजय ने कहा था, मैं आपको मिस कर रहा हूं। मैंने फिल्म में यह रोल डाला है। चार दिन के लिए काम कर लो। मैंने दोस्ती के लिए वह फिल्म कर ली। आज यह सब नहीं चलेगा। ऑडियंस मुझे माफ नहीं करेगी। मैं साल में एक फिल्म करती हूं। उसमें अगर आडियंस को संतुष्ट नहीं करूं, तो वे नाराज हो जाएंगे। बहुत सोच-समझकर फिल्म साइन करनी पड़ती है।
टीवी के लिए काम करेंगी?
धांसू ऑफर आया तो जरूर करूंगी। मैंने देखा है कि टीवी ऐसा माध्यम है कि आडियंस के साथ तुरंत कनेक्शन होता है। हर दिन आपको लोग देख रहे हैं अपने घर में। मेरे खयाल से टीवी करना चाहिए। स्पेशली मुझे, क्योंकि मैं साल में एक फिल्म करती हूं, तो बीच में मेरा कोई टीवी शो आ जाए, जिसके जरिए आडियंस मेरे साथ कनेक्ट रह सकें। यह अच्छा होगा।
-रघुवेंद्र सिंह

मैं पति बन गया: नील नितिन मुकेश



नील नितिन मुकेश की शादी करने की योजना पर पानी फिर गया है, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा है। आजकल वे जोरशोर से जीवनसाथी की तलाश कर रहे हैं। विशाल भारद्वाज की फिल्म सात खून माफ के बहाने नील से निजी जीवन की योजनाओं के बारे में की बातचीत..
लफंगे परिंदे की रिलीज के बाद आप कहां व्यस्त रहे?
सात खून माफ के सेट पर व्यस्त रहा। अब्बास-मस्तान की फिल्म प्लेयर्स में व्यस्त रहा। बीच में दस दिन का समय मिला, तो परिवार के साथ धार्मिक यात्रा पर निकल गया। मेरा परिवार हर साल धार्मिक यात्रा पर जाता है। फिल्मों की व्यस्तता के कारण मैं तीन साल से उनके साथ नहीं जा पा रहा था। खुश हूं कि इस बार मैं उनके साथ रहा।
आप सात खून माफ से कैसे जुड़े?
मैं कानपुर में अपनी बहन के घर था। विशाल के असिस्टेंट का फोन आया कि वे आपसे मिलना चाहते हैं। मैं उनसे जाकर मिला। उन्होंने मुझे स्क्रिप्ट सुनाई। फिर पूछा कि क्या तुम खुश हो? मैंने कहा कि जैसी फिल्म और जैसा किरदार आप मुझे दे रहे हैं, वैसा मौका आज के युवा कलाकारों को नहीं मिलेगा। मैं लकी हूं।
सात खून माफ को शुरू से प्रियंका चोपड़ा की फिल्म कहा जा रहा है। हां कहने से पहले आपके मन में कोई भावना नहीं आई?
बिल्कुल नहीं। यह फिल्म सुजैना और उसके सात पतियों की कहानी है। प्रियंका इसमें सुजैना का किरदार निभा रही हैं। सात पतियों में से एक पति बनना मेरे लिए बहुत अच्छा मौका था। बेशक यह फिल्म प्रियंका के किरदार पर आधारित है, लेकिन सात पति नहीं, तो कहानी भी नहीं। मुझे अच्छा लगा कि प्रियंका के साथ काम करने का मौका मिला।
फिल्म में किस तरह के पति का किरदार निभा रहे हैं आप?
मैं मेजर एडविन रॉड्रिक्स का किरदार निभा रहा हूं। एडविन हैंडसम है, सख्त और अनुशासित है। वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता है। यह किरदार मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग था। इतनी कम उम्र में मेरे लिए मेजर से आईडेंटिफाई करना मुश्किल था। मेरे लिए इस किरदार की कल्पना करना नामुमकिन था। दिल्ली में मेरे एक अंकल हैं। वे आर्मी में हैं। इस किरदार की तैयारी में मैंने उनसे मदद ली। एडविन का लुक चाचा से मिलता है।
निजी जीवन में भी आप पति बनने की तैयारी कर रहे थे। क्या हुआ?
मैंने सोचा था कि तीस साल की उम्र तक शादी कर लूंगा। मैंने सोलह साल की उम्र में अपने लिए जो योजनाएं बनाई थीं, सारी पूरी हुई। सिर्फ शादी की योजना फेल हो गई। शादी में अड़चन आ गई। उनतीस का हो गया हूं, चिंता हो रही है। अगर कोई जल्दी से मिल जाए, तो शादी कर लूंगा।
विशाल भारद्वाज के निर्देशन में काम करने का अनुभव कैसा रहा?
पता ही नहीं चला कि फिल्म कब बन गई? वे शांत मिजाज के हैं। उन्हें देखकर यकीन नहीं होता कि वे इतनी खतरनाक फिल्में बनाते हैं।
आप और किन प्रोजेक्ट्स में व्यस्त रहेंगे?
प्लेयर्स के लिए न्यूजीलैंड जा रहा हूं। इसकी शूटिंग लंबी चलेगी। अपना म्यूजिक एलबम लांच करने की योजना है। गाने तैयार हो चुके हैं। एलबम को कैसे लॉन्च करना है, काम चल रहा है।

-रघुवेंद्र सिंह

Tuesday, February 8, 2011

जाएद लेकर आ रहे हैं लव ब्रेकअप ज़िन्दगी

अभिनेता जाएद खान अब निर्माता बन चुके हैं। अपने खास मित्र दीया मिर्जा और साहिल के संग उन्होंने प्रोडक्शन हाउस शुरू किया है। फरवरी में उनकी पहली फिल्म फ्लोर पर जा रही है। पिछले दिनों जाएद ने अपनी योजनाओं के बारे में बातचीत की।
फिल्म प्रोडक्शन में आने की जरूरत कब और क्यों महसूस हुई?
मैं प्रोडक्शन हाउस शुरू करने के बारे में हमेशा सोचता था, क्योंकि मैं जिस फैमिली से हूं उनका काम-धंधा यही है। प्रोडक्शन, डायरेक्शन, राइटिंग, एक्टिंग, एडीटिंग। यह काम मेरे लिए नया नहीं है। मैं प्रोडक्शन हाउस शुरू कर रहा हूं तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सिर्फ अपने प्रोडक्शन हाउस के लिए काम करूंगा। मैं प्रियन सर के साथ काम कर रहा हूं। मैंने दो और फिल्में साइन की हैं। फिल्म प्रोडक्शन में आने का मकसद यह है कि हम लोग अपनी सोच फिल्म में डाल सकें, नई पीढ़ी को मौका दें, मोटीवेशन दें, उन्हें हौसला दें।
दीया मिर्जा और साहिल के साथ टीम बनाने का निर्णय क्यों?
दीया, साहिल और मैं अच्छे दोस्त हैं। हम में एक स्ट्रेंथ है। जैसे साहिल में ग्रेट मार्केटिंग स्किल है, वे बहुत अच्छे राइटर हैं। दीया हमेशा सोशल कॉज से जुड़ी रही हैं। उनमें गुडविल है। वे अच्छी रीडर हैं। यह सब एक अच्छा सिनेमा क्रिएट करने में मदद करता है। जहां तक मेरी बात है, तो फिल्म इंडस्ट्री में लंबे समय से होने के कारण फिल्म प्रोडक्शन जानता हूं। नए आइडिया को कैसे बिल्ड किया जाता है, वह जानता हूं। कैसे प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल लेवल पर ले जाते हैं, वह जानता हूं। मैंने लंदन फिल्म स्कूल में पढ़ाई की है। मैं प्रमोशन का तरीका जानता हूं। साथ ही हम एक अच्छी टीम हैं।
सिनेमा के क्षेत्र में भी बदलाव होगा?
जो भी सोशल रेलिवेंट टॉपिक होगा और जिस तरीके से पिक्चर में यूनिवर्सल अपील होनी चाहिए, वह हम नहीं छोड़ सकते। हमें दिमाग में यह बात रखकर चलनी होगी कि हम जो भी स्टोरी कह रहे हैं, उसमें एंटरटेनिंग फैक्टर और इकॉनॉमिक फैक्टर होना बहुत जरूरी है।
आपकी टीम यंग है तो क्या टारगेट भी यूथ ही होगा?
नहीं, ऐसा नहीं है कि टारगेट यूथ ही होगा। सच है कि यूथ बहुत बड़ा मार्केट है, पर पिक्चर तो सभी देखते हैं। ऐसा तो नहीं है कि किसी मजेदार सिचुएशन पर बुजुर्ग नहीं हंसेंगे। यहां हिंदी फिल्मों के ऑडियंस की बहुत बड़ी संख्या है, तो हमारी कोशिश यही होगी कि कैरेक्टर मजेदार हों, जिन्हें देखकर बुजुर्ग भी हंसें।
एक ओर दबंग जैसी मसाला फिल्म आती है और दूसरी ओर धोबी घाट जैसी अलग जॉनर की। आप क्या बनाएंगे?
यह बहुत पुरानी सोच है। देखें, तो ए वेडनेसडे सबके लिए नहीं बनी थी। आर्ट पिक्चर लग रही थी, लेकिन सबने पसंद किया। दबंग में रोमांस, कॉमेडी, ऐक्शन और सलमान खान थे। दबंग जैसी कई फिल्में नहीं भी चली हैं। आज हर कोई कुछ नया चाहता है। हमारी कंपनी का लक्ष्य है यूनीवर्सल अपील की फिल्में बनाना, जिसमें सब कुछ हो।
पहली स्क्रिप्ट फाइनल हो चुकी है?
एक स्क्रिप्ट फाइनल हो चुकी है। उसे हम इसी महीने अंत में शुरू कर रहे हैं। वह फ्लोर पर जाएगी, तब दूसरे पर काम शुरू होगा। उसे साहिल डायरेक्ट कर रहे हैं। बहुत ही प्यारी रोमांटिक कहानी है।
रघुवेंद्र सिंह

Sunday, February 6, 2011

शायद बज जाये शहनाई-सलमान खान

क्या सिनेमा का सबसे स्मार्ट कुंवारा इस साल करेगा शादी? खुद सलमान खान का जवाब है 'हाँ'
['दबंग' के लिए आपको कॅरियर में पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। क्या आगे भी इस पुरस्कार की उम्मीद कर रहे हैं?]
मुझे अवॉर्ड नहीं चाहिए। इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं तो चाहता हूं कि मुझे नॉमिनेट भी न करें और अगर नॉमिनेट करने से कोई माइलेज मिलती है, तो एक चेक मेरी संस्था बीइंग ह्यूंमन के नाम काट दें।
[तो फिल्म पुरस्कारों की आपकी नजर में कोई अहमियत नहीं है?]
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तो अवॉर्ड फंक्शन में परफॉर्म करने जाता हूं। बस्स!
[अभिनव कश्यप के साथ आगे क्या प्लानिंग है?]
दबंग को रिपीट करेंगे। दबंग-2 बनाएंगे।
[आपकी आने वाली फिल्मों 'रेडी' और 'बॉडीगॉर्ड' को दबंग के ट्रैक पर बताया जा रहा है?]
नहीं-नहीं। यह बिल्कुल अलग फिल्में हैं। रेडी फुल ऑन कॉमेडी है और बॉडीगार्ड रोमांटिक एक्शन फिल्म है।
[दर्शक आपको इस साल भी टीवी पर देखेंगे?]
जरूर। प्रोमो, एड, सनसनी में देखेंगे। ब्रेकिंग न्यूज में देखेंगे। बिग बॉस में दोबारा बुलाया जाए तो देखेंगे। दस का दम में न्यौता आया तो देखेंगे।
[इस साल के लिए आपने क्या सोचा है? क्या करना है और क्या नहीं करना है?]
जो पिछले साल किया है, उससे डबल ही करना है।
[हिंदी सिनेमा को आप किस दिशा में जाते देख रहे हैं?]
ऐसा कोई फार्मूला नहीं है। हमने दबंग बनाई तो इंडस्ट्री के जितने भी लोग थे, सबने कहा कि पागल हो, मर जाओगे, डूब जाओगे। डिस्ट्रीब्यूटर नहीं मिल रहा था, फाइनेंसर नहीं मिल रहा था, कुछ भी नहीं मिल रहा था, लेकिन हमने पिक्चर बनाई और सबको बहुत पसंद आई। दर्शकों को बेवकूफ न समझकर, उनके एंटरटेनमेंट का ध्यान रखकर कोई पिक्चर बनाता है तो वह पिक्चर चलती है।
[कह सकते हैं कि अब आपने ऑडियंस की नब्ज पकड़ ली है?]
मुझे मेरी नब्ज ढूंढने में प्रॉब्लम होती है मैं ऑडियंस की नब्ज क्या पकडूंगा!
[क्या इस साल खुशखबरी सुन सकते हैं कि आप शादी करने जा रहे हैं?]
हाँ, सुन सकते हैं। जरूर सुन सकते हैं कि मैं शादी करने जा रहा हूं।
[रघुवेन्द्र सिंह]

ऊट पटांग-कैमरे का कमाल-फिल्म समीक्षा

मुख्य कलाकार : माही गिल, सौरभ शुक्ला, विनय पाठक
निर्माता-अपर्णा जोशी
निर्देशक- श्रीकांत वेलागलेटी
नए निर्देशक श्रीकांत वेलागलेटी के आकर्षक शीर्षक ऊट पटांग, विनय पाठक, सौरभ शुक्ला और माही गिल जैसे उम्दा कलाकारों की मौजूदगी से उम्मीद थी कि ऊट पटांग नए हिंदी सिनेमा की एक कड़ी साबित होगी, लेकिन सिवाय कैमरे के कमाल के फिल्म में कुछ भी सराहनीय नहीं है।
ऊट पटांग एक रात की कहानी है। कोयल और राम प्यार में धोखा खा चुके हैं। राम का जासूस दोस्त नंदू कोयल और राम को आमने-सामने बैठा देता है। पूर्व गर्लफ्रेंड संजना से प्यार में धोखा खाया राम कोयल का दुख बांटते-बांटते उसका दीवाना हो जाता है। संजना पैसे की खातिर राम को छोड़कर गैंगस्टर लकी से प्यार करती है, लेकिन वह उसे भी धोखा देकर उसके पांच करोड़ रुपये ले भागती है। पांच करोड़ रुपयों के चक्कर में नंदू, संजना और लकी के बीच चूहे-बिल्ली का आंख-मिचौली का खेल होता है। राम और कोयल अंजाने में इसका हिस्सा बन जाते हैं।
इसे लेखक-निर्देशक की कमजोरी कही जाएगी कि वे आधी फिल्म अपने किरदारों को स्थापित करने में निकाल देते हैं। दूसरे हिस्से में गैंगस्टर लकी के आने से कहानी में थोड़ी गति आती है। ऊट पटांग की विशेषता श्रीकांत का रिवर्स स्टाइल में फिल्मांकन का अंदाज है। एक ही कमरे के अंदर सभी पात्र मौजूद होते हैं, लेकिन वे अलग-अलग समय पर इसका रहस्योद्घाटन करते हैं। विनय पाठक डबल रोल में हैं। उन्होंने सीधे-सादे राम के व्यक्तित्व की सहजता को अच्छी तरह व्यक्त किया है, लेकिन गैंगस्टर लकी के किरदार में वे नाटकीय लगते हैं। फ्रेंच बोलने का उनका नाटकीय प्रयास हंसाता नहीं। माही गिल फिल्म में अनायास गालियां देती हैं और सिगरेट का धुआं उड़ाती हैं। सौरभ शुक्ला अपने किरदार में जंचे हैं। छोटी सी भूमिका में संजय मिश्रा प्रभावित करते हैं।
-दो स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह