Tuesday, March 15, 2011

चली ब्रांड की हवा चली


कभी कलात्मक अभिव्यक्ति कहा जाने वाला सिनेमा अब वैश्वीकरण के प्रभाव में उत्पाद बन गया है। बाजार में विशिष्ट पहचान के लिए निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों को ब्रांड के रूप में स्थापित करने में लग गए हैं। फिल्मों की मार्केटिंग भी इस अंदाज में की जा रही है कि वे ब्रांड बन जाएं और उसे भविष्य में भुनाया जा सके।

हॉलीवुड की परंपरा
फिल्मों को ब्रांड के रूप में पेश करने की परंपरा का वाहक रहा है हॉलीवुड। जेम्स बांड, रॉकी, हैरी पॉटर, लॉर्ड ऑफ रिंग्स, जुरासिक पार्क, द ममी, श्रेक; यह सभी हॉलीवुड के लोकप्रिय 'ब्रांड' हैं। ब्रांड वैल्यू का ही असर है कि इन फिल्मों के नाममात्र से ही कथ्य, विधा और चरित्र का आभास हो जाता है। इनकी ब्रांड वैल्यू को भुनाने के लिए उसी नाम की दूसरी फिल्में बनायी जाती हैं जिनकी कहानी अलग होती है, पर मुख्य चरित्र और मूल ढांचा वही होता है। निर्देशक साजिद खान कहते हैं, ''जेम्स बांड की कोई भी फिल्म आती है तो दर्शक उसे देखने जरूर जाते हैं। जेम्स बांड चालीस साल से हॉलीवुड का ब्रांड है। उसी तरह हैरी पॉटर भी है। इनसे निर्माता भी संतुष्ट रहते हैं और दर्शक भी अपनी पसंदीदा ब्रांड की फिल्में देखकर खुश हो जाते हैं।''
हिट है मुन्नाभाई!
हॉलीवुड की तर्ज पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी फिल्मों को ब्रांड के रूप में प्रचारित किया जाने लगा है। दर्शकों की स्वीकार्यता के कारण पिछले दशक में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मुन्नाभाई, धूम, कृष जैसे ब्रांड स्थापित हो गए हैं। इसका पहला प्रयास नगीना की सफलता के बाद हुआ था। नगीना की सफलता को निगाहें में भुनाने का प्रयास किया गया था, पर वह सफल नहीं हो पाया। फिल्म विशेषज्ञ तरण आदर्श कहते हैं, ''मुन्नाभाई एमबीबीएस की सफलता और लोकप्रियता के बाद हिंदी फिल्मों में ब्रांड की प्रथा चल पड़ी। मुन्नाभाई के कैरेक्टर के प्रति दर्शकों के लगाव के मद्देनजर निर्माता विधु विनोद चोपड़ा और निर्देशक राजू हिरानी ने लगे रहो मुन्नाभाई का निर्माण किया। दर्शक सिनेमाघर में लगे रहो मुन्नाभाई देखने ही इसलिए गए क्योंकि उस फिल्म के साथ मुन्नाभाई नाम जुड़ा हुआ था। यशराज बैनर की धूम से यह सिलसिला आगे बढ़ा जो कोई मिल गया से कृष और गोलमाल से गोलमाल 3 तक जारी है।''
चौतरफा है फायदा
फिल्मों के ब्रांड बनने के बाद निर्माता-निर्देशक से लेकर अभिनेता-अभिनेत्री तक सभी के हाथ घी में होते हैं। फिल्म बाजार को भी चौतरफा फायदा होता है। ब्रांड की लोकप्रियता का यह आलम है कि मुन्नाभाई सिरीज की फिल्म हो या गोलमाल या धूम, शीर्ष के अभिनेता-अभिनेत्री इनका हिस्सा बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। करीना कपूर ने अपने स्टार स्टेटस का फायदा लेकर कुणाल खेमू को गोलमाल 3 में एंट्री दिलायी जिससे कुणाल के कॅरिअर की गाड़ी एक बार फिर से दौड़ने लगी। इसी तरह धूम 3 की हीरोइन बनने के लिए प्रियंका चोपड़ा, प्रीति जिंटा, कट्रीना कैफ और दीपिका पादुकोण जुगत लगा रही हैं। आमिर खान जो खुद ब्रांड माने जाते हैं, अब धूम ब्रांड का हिस्सा बनकर उत्साहित हैं। आमिर कहते हैं, ''जब भी मैं धूम की सिग्नेचर ट्यून सुनता हूं मेरे कदम थिरकने लगते हैं। धूम ब्रांड के लोकप्रिय किरदार जय और अली के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं।'' गोलमाल श्रंखला की फिल्मों से सफलता का स्वाद चख रहे तुषार कपूर कहते हैं, ''जब गोलमाल जैसा ब्रांड आपके पास होता है तो आप दूसरे किस्म की फिल्मों में रिस्क ले सकते हैं। यदि उनमें सफलता नहीं मिलती है तो आपको पता है कि आपके पास एक सुरक्षित विकल्प मौजूद है।''
कैश हो रहीं क्लासिक
बाजारवाद के प्रभाव में शुरू हुए ब्रांड के ट्रेंड में अब निर्माता-निर्देशक क्लासिक फिल्मों की सदाबहार लोकप्रियता को भुनाना शुरू कर चुके हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत सफल फिल्म डॉन का रीमेक बना रहे फरहान अख्तर को भी नहीं पता था कि यह ब्रांड बन जाएगी। इन दिनों वे शाहरूख खान अभिनीत डॉन की ब्रांड वैल्यू को डॉन 2 के निर्माण के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत क्लासिक फिल्म अग्निपथ की लोकप्रियता भुनाने की तैयारी में हैं करण जौहर। वे रितिक रोशन को लेकर अग्निपथ 2 का निर्माण कर रहे हैं। गौरतलब है कि इसी कड़ी में मिस्टर इंडिया 2 के निर्माण की योजना है।
उज्जावल है भविष्य
मुन्नाभाई, धूम और गोलमाल सिरीज की फिल्मों की सफलता से प्रेरित होकर अब बाजार में नए ब्रांड स्थापित करने की पहल शुरू हो गयी है। पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई सफल फिल्म हाउसफुल को ब्रांड का रूप देने में जुट चुके साजिद खान कहते हैं, ''हॉलीवुड में जो चीज होती है, वह अब यहां भी होने लगी है। अगर फिल्म ब्रांड बन जाती है, तो यह बहुत अच्छी बात है। मैं हाउसफुल को ब्रांड बना रहा हूं।'' हाउसफुल 2 की ही तरह पार्टनर 2, दबंग 2, दोस्ताना 2, रेस 2, नो एंट्री 2, यमला पगला दीवाना 2 को भी ब्रांड बनाने का प्रयास प्रारंभ हो चुका है। फिल्म बाजार पर पैनी नजर रखने वाले तरण आदर्श कहते हैं, ''अभी तो यह शुरूआत है। भविष्य में ब्रांड का ट्रेंड और बढ़ेगा!''
-रघुवेन्द्र/सौम्या

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