Monday, April 29, 2013

मेरी लड़ाई जारी रहेगी- अजय देवगन

सुपरस्टार अजय देवगन से रघुवेन्द्र सिंह ने की विशेष भेंट, और उनसे यशराज फिल्म्स के साथ उनके विवाद, हिम्मतवाला के रिमेक, खानत्रयी की बादशाहत और निजी जीवन से जुड़े तमाम पहलुओं पर बातचीत की
'देवगनÓ फिल्म इंडस्ट्री में इकलौते हैं, तो क्या हुआ? वह अकेले ही किसी खान को टक्कर देने का हिम्मत रखते हैं. अजय देवगन जब भी बॉक्स-ऑफिस पर उतरते हैं, तो सिंह की तरह गरजते हैं और फिर पैसों की घमासान बरसात होती है. बोल बच्चन, सन ऑफ सरदार और अब हिम्मतवाला से ऐसा ही परिदृश्य दोबारा सबके सामने है. अजय अपने करियर के वर्तमान दौर से बेहद खुश हैं, लेकिन उनमें आक्रोश भी भरा हुआ है.
अजय ने सन ऑफ सरदार की रिलीज के समय यशराज फिल्म्स के खिलाफ एक कानूनी जंग का ऐलान किया था. उसी वक्त यश चोपड़ा का देहांत हो गया और लोगों ने कहा कि अजय को कदम पीछे खींच लेना चाहिए. मगर अजय ने लड़ाई जारी रखी. ''मेरी लड़ाई यश जी के खिलाफ नहीं थी, मेरी लड़ाई सही और गलत के लिए थी, एक सिस्टम के खिलाफ है. मैं भी यश जी का उतना ही सम्मान करता हूं, जितना कोई और करता है. मैं केस लड़ रहा हूं और लड़ता रहूंगा, क्योंकि इसमें इंडस्ट्री का हित है. अजय अपनी बात रखते हैं.
हम अजय के जुहू स्थित ऑफिस में हैं. काजोल अभी उनसे मिलकर निकली हैं. वे बेहद अच्छे मूड में लग रहे हैं. कल ही वे भोपाल से सत्याग्रह फिल्म की शूटिंग करके लौटे हैं. हम बातचीत का सिलसिला आरंभ करते हैं... 

आप सत्याग्रह की शूटिंग से लौट रहे हैं. इस बार प्रकाश झा ने आपके सामने क्या चुनौती पेश की है?
मुझे लगता है कि यह मेरा बहुत मुश्किल रोल है. मैंने काफी टाइम से यह तय किया था कि केवल कमर्शियल फिल्में करूंगा, लेकिन बहुत कम ऐसी फिल्में होती हैं, जिनमें सेंसिबिलिटीज, अच्छी परफॉर्मेन्स और कमर्शियल सिनेमा का संतुलन होता है. सत्याग्रह ऐसी ही फिल्म है, इसलिए मैं एक्साइटेड हूं. इसकी शूटिंग में बहुत मजा आ रहा है.

तो इसके साथ ही, यह बात भी गलत साबित हो गई कि आपके और प्रकाश झा के बीच मनमुटाव है?
हमारे बीच कभी मतभेद नहीं थे. क्योंकि मैंने बीच में उनकी एक फिल्म नहीं की, तो लोगों ने ऐसा अनुमान लगा लिया. दरअसल, आरक्षण में मुझे वह रोल उतना अच्छा नहीं लगा, जो उन्होंने मुझे ऑफर किया था. मैंने उनसे कहा था कि आप यह फिल्म बना लीजिए. हम आगे फिर साथ काम करेंगे.

रोहित शेट्टी के साथ भी आपके मनमुटाव की खबर भी एक दिन अफवाह साबित होगी. है ना?
अब रोहित के साथ मेरी क्या प्रॉब्लम है? चेन्नई एक्सप्रेस तो वो हमेशा से बनाना चाह रहा था और उसने सबसे पहले इसके बारे में मुझे ही बताया था. पिछले चार महीने से वह सिंघम 2 पर काम कर रहा है. जिसकी शूटिंग हम लोग जल्द ही शुरू करेंगे.

हिम्मतवाला को लेकर ऑडियंस में काफी एक्साइटमेंट दिखी. आपको उम्मीद थी कि ऐसा रिस्पांस मिलेगा?
हां, एक्साइटमेंट तो स्वाभाविक है, क्योंकि यह एक कमर्शियल फिल्म है और हमने अस्सी के दशक के स्टाइल को इसमें रखा है, जिसे देखकर लोगों को मजा आएगा. वह दौर ऐसा था, जहां सिनेमा में एंटरटेनमेंट भरा होता था और आज की यूथ ने वह एंटरटेनमेंट देखा नहीं है. और हिम्मतवाला एक सुपर-डुपरहिट पिक्चर थी, तो उसे जिन्होंने भी देखा है, वे हमारी फिल्म को देखने जरूर जाएंगे कि आखिर इसमें है क्या. अगर गानों की बात करें, तो टाकी और सपनों में नयना के बारे में हमें पहले से पता था कि यह श्योर शॉट है.

अगर अस्सी के दशक में लौटें, तो आपकी क्या यादें हैं?
बचपन की यादें हैं. हिम्मतवाला के सेट पर मैं कई बार गया था, क्योंकि मेरे डैड (वीरू देवगन) ने उसका एक्शन डायरेक्ट किया था. मैं अक्सर डैड के साथ फिल्मों के सेट पर जाया करता था. जहां तक पहनावे की बात है, तो हम हिंदी फिल्मों का स्टाइल उतना नहीं अपनाते थे. हम अपना ही कुछ अलग स्टाइल बनाते थे.

सिनेमा के लिहाज से उस दौर की क्या बात बहुत खूबसूरत थी?
एंटरटेनमेंट से भरपूर फिल्में बनती थीं. मसाला फिल्में बनती थीं. दो-तीन साल पहले फिर वह सिनेमा लौट आया है. हालांकि वह दशक फैशन के लिहाज से ज्यादा माइंडब्लोइंग नहीं था. हां, सत्तर के दशक से बेहतर था. लेकिन उसका अपना एक चार्म था.

लेकिन आप हिम्मतवाला साइन करने से हिचकिचा क्यों रहे थे? और इसमें आपके लिए क्या चैलेंजेज थे?
मैं हिचकिचा नहीं रहा था. जब साजिद ने कहा कि हिम्मतवाला का रिमेक बनाते हैं, तो मुझे यह आइडिया बहुत ही एक्साइटिंग लगा. मैंने साजिद से कहा कि जब तक तू स्क्रिप्ट पूरी लिखकर नहीं लाएगा, मैं हां नहीं कर सकता.
हर फिल्म में अपने-अपने चैलेंज होते हैं. हिम्मतवाला में काफी कुछ चेंज किया गया है. ऐसा नहीं था कि आपको जीतू साहब (जीतेन्द्र) को फॉलो करना था. सबसे बड़ा चैलेंज मेरे लिए ये दो गाने थे- टाकी और नैनों में सपना, जो बिल्कुल मेरा स्टाइल नहीं है (हंसते हैं). 

क्या आप कभी साजिद खान की तरह दावे के साथ कह पाएंगे कि आपकी फलां फिल्म इतने करोड़ का बिजनेस करेगी या ब्लॉकबस्टर साबित होगी?
साजिद का क्या है कि वह एक दर्शक के नजरिए से पिक्चर बनाता है. इसलिए वो बहुत कॉन्फिडेंट रहता है और दूसरा, यह कहकर साजिद खुद को कॉन्फिडेंस देता है. लोगों को अगर लगता है कि उसमें एरोगेंस है, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. वह खुद को कॉन्फिडेंस देने के लिए ऐसा कहता है कि मैं बहुत अच्छा काम कर रहा हूं. और मैं कभी उसकी तरह नहीं कह पाऊंगा कि मेरी फलां फिल्म ब्लॉकबस्टर होगी. सबका अपना-अपना स्टाइल होता है.

हर निर्देशक के साथ जब आप काम करते हैं, तो कुछ न कुछ सीखते हैं. साजिद खान से आपने क्या सीखा? 
मैंने साजिद से सीखा कि दर्शकों को कितना देना है और कैसे हंसाना है, क्योंकि वह एक ऑडियंस की तरह बात करता है. यह उसका प्लस पॉइंट है कि वह दर्शकों की नजरों से पिक्चर बनाता है. वह डायरेक्टर की तरह बात ही नहीं करता है. जब सीन की शूटिंग चल रही होती है, तो वह आकर कहता है कि ऐसा करो, तो मैं पूछता हूं कि क्यों? वो कहता है कि दर्शकों का रिएक्शन बहुत बढिय़ां मिलेगा.

आप इसके लिए तैयार थे कि टाकी ओ टाकी गाना आने के बाद आपकी तुलना जीतेन्द्र से जरूर होगी?
जीतू जी के साथ मेरी तुलना नहीं हो सकती, क्योंकि वो बहुत अच्छे डांसर थे. मैं तो कोशिश कर रहा हूं (हंसते हैं).

काजल अग्रवाल के बाद अब आपने तमन्ना के साथ काम किया. दक्षिण की अभिनेत्रियां अपने साथ क्या लेकर आती हैं, जिसके लिए आज वे डिमांड में हैं?
ऐसा कुछ नहीं है कि डायरेक्टर उनकी तरफ देख रहे हैं. कई बार कैरेक्टर ऐसे होते हैं कि आपको लगता है कि इसमें नई लडक़ी सूट करेगी. साउथ में जिन लड़कियों ने काम किया है, वो हमारे लिए नई हैं. उनका एक प्लस यह रहता है कि उनके पास अनुभव होता है, वे काम जानती हैं, प्रोफेशनल हैं. तो उससे बहुत फर्क पड़ता है और तमन्ना साउथ में बड़ी स्टार हैं, तो उससे और भी फर्क पड़ता है. साजिद को हमेशा से इस फिल्म में नई लडक़ी चाहिए थी.

आप किस अभिनेत्री के साथ काम करना चाहते हैं? अभी तक आप और प्रियंका चोपड़ा एक साथ नहीं आए.
मैं कभी नहीं सोचता कि मुझे किस लडक़ी के साथ काम करना है. जहां तक प्रियंका की बात है, तो अभी तक मैंने ऐसे सोचा नहीं. यह फैसला मैं डायरेक्टर पर छोड़ता हूं. वह तय करते हैं कि उस कैरेक्टर में कौन-सी एक्ट्रेस सूट करती है.

आज हर कोई केवल बिजनेस की बात कर रहा है. जब आपने फूल और कांटे (1991) की थी, तब किन बातों पर ज्यादा चर्चा होती थी?
देखिए बोलने की बात है, लेकिन जोर तो हमेशा बिजनेस पर ही रहा है (हंसते हैं). आप भी मैगजीन निकालते हैं, तो आपका जोर भी इसी पर रहता है कि इस महीने कितने कॉपी ज्यादा बिकीं. है कि नहीं? तो बेसिक आइडिया है कि आप फिल्में बनाते क्यों हैं? ताकि वे लोगों को पसंद आएं और वो तब पसंद आएंगी, जब आप अच्छी फिल्म बनाएंगे. अच्छी फिल्म बनाएंगे, तो पैसा जरूर आएगा. घूम-फिरकर बात एक ही है. चाहे आप पैसे के लिए फिल्म बनाएं या तारीफ के लिए या फिर संतुष्टि के लिए फिल्म बनाएं, लेकिन बेसिकली आप दर्शकों के लिए फिल्म बनाते हैं. मुद्दा वहीं खत्म हो जाता है.

आपने नहीं लगता कि कमर्शियली सफल फिल्में बनाने के चक्कर में फिल्मकार अपनी फिल्म की गुणवत्ता से कहीं न कहीं समझौता करते हैं?
नहीं, अगर फिल्म की क्वालिटी अच्छी नहीं होगी, तो वह चलेगी नहीं. दर्शकों की ताली बजवाने के लिए फिल्म की क्वालिटी अच्छी होनी जरूरी है. तो ऐसा नहीं है कि ताली बजवाने के लिए आप समझौता करते हैं, ताली बजवाने के लिए आप मेहनत करते हैं. अपनी क्वालिटी और एंटरटेनमेंट को इंप्रूव करते हैं. मामला एकदम उल्टा है.

आपने हाल में स्टार टीवी के साथ चार सौ करोड़ रुपए की डील साइन की. इससे अजय देवगन ब्रांड में कितनी बढ़ोतरी होगी?
ये तो अब आप लोग तय कीजिए. मैंने एक अच्छी डील साइन की है, जिसमेें हमारा भी  फायदा है, चैनल का भी और निर्माताओं का भी फायदा है. ब्रांड में कितना जंप होता है या नहीं, यह डिसीजन तो आप लोगों का है.

सब हम ही तय करते हैं?
लिखते आप लोग हैं, इसलिए डिसाइड आप लोग करते हैं (हंसते हैं).

मीडिया हमेशा आपको और शाहरुख को आमने-सामने लाने की कोशिश करता है, लेकिन आपकी उनके बारे में क्या राय है? आपके आपसी संबंध कैसे हैं?
व्यक्तिगत तौर पर हमारे बीच न कोई प्रॉब्लम है, न तनाव है, न कोई इश्यू है और न कोई लेना-देना है. जब हम मिलते हैं, तो फॉर्मली मिलते हैं और हम बहुत अच्छी तरह मिलते हैं. हमारा बहुत ज्यादा इंटरैक्शन है नहीं, क्योंकि हम इतना ज्यादा मिलते नहीं हैं. कभी किसी फंक्शन में मिल लिया, तो मिल लिया. हम कलिगस हैं और इस इंटस्ट्री में हमें सबकी फिक्र रहती है.

आपको लगता है कि खानत्रयी (शाहरुख, आमिर और सलमान खान) को इंडस्ट्री ने सिर पर चढ़ाकर रखा है? वो ओवररेटेड हैं?
नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है. आमिर है, शाहरुख है, सलमान है, तो उस वजह से यह एक ब्रांड बन गया है. मुझे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं है कि उनको ऊपर रखा जाता है. सब अपना-अपना लिखने का तरीका होता है (हंसते हैं).

सन ऑफ सरदार की रिलीज के समय आपका और यशराज फिल्म्स के बीच जो केस हुआ था...
केस हुआ नहीं था, केस अभी चल रहा है.

आप दोनों में कोई भी पीछे हटने के लिए तैयार नही ंहै?
(लंबी सांस लेकर) पीछे हट नहीं सकते और जहां तक मेरा सवाल है, तो मैं पीछे हटना चाहूंगा भी नहीं, क्योंकि यह एक लड़ाई है. मुझे लगता है कि किसी ने कुछ गलत किया है, तो मैं उसके खिलाफ लड़ रहा हूं. अगर यह केस हमारे पक्ष में होता है, तो यह इंडस्ट्री के लिए भली चीज होगी. मैं केस लड़ रहा हूं और लड़ता रहूंगा. और जहां हमने केस दायर किया है- कॉम्पिटिशन कमीशन में, वहां अगर आप एक बार केस कर देते हैं, तो आप विदड्रॉ नहीं कर सकते.

आपको लगता है कि जिस वक्त आपकी लड़ाई शुरू हुई, वह समय गलत था, क्योंकि उसी समय यश चोपड़ा का देहांत हो गया और इंडस्ट्री की सहानुभूति यशराज के साथ थी?
देखिए, ऐसी कोई सहानुभूति किसी की तरफ नहीं थी और हमारा भी इंटेशन किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था. मैं तो वही बात कर रहा था, तो फेयर थी और फेयर होनी चाहिए. और जितना सम्मान लोग यश जी का करते हैं, उतना ही सम्मान मैं भी यश जी का करता हूं. उन्होंने इंडस्ट्री को बहुत कुछ दिया है. मेरी लड़ाई यश जी के खिलाफ नहीं थी, मेरी लड़ाई सही और गलत के लिए थी. मेरी लड़ाई एक सिस्टम के खिलाफ थी. आप उसे  बैड टाइमिंग कह लीजिए, लेकिन केस पहले फाइल हो चुका था. और जैसा कि मैंने आपसे कहा कि केस विदड्रॉ नहीं किया जा सकता था और अगर किया भी सकता, तो मैं विदड्रॉ नहीं करता, क्योंकि मेरी लड़ाई सिस्टम के खिलाफ है.

लेकिन उस समय प्रतिक्रिया स्वरूप यशराज फिल्म्स ने काजोल को जब तक है जान के प्रीमियर पर नहीं आमंत्रित किया, जबकि उनका यशराज के साथ इतना लंबा एसोसिएशन रहा है. उसे आप गलत रिएक्शन मानते हैं?
बिल्कुल नहीं, बल्कि वह बहुत अच्छा रिएक्शन था. क्योंकि मैं उन लोगों को पसंद करता हूं, जो स्ट्रेट होते हैं. अगर आप शक्ल से कुछ हैं और अंदर से कुछ हैं, तो मुझे वैसे लोग पसंद नहीं. मेरे लिए वो बेहतर लोग होते हैं, जो शक्ल और मन से एक ही होते हैं. यह क्लीयर तो रहता है कि आप लाइन के इस तरफ हैं या लाइन के उस तरफ.

अपनी बेटी निसा को आप अपना सच्चा आलोचक मानते हैं. उनको आपकी कौन-सी परफॉर्मेन्स बहुत पसंद आई है?
उसको मेरी सभी कॉमेडी पिक्चरें अच्छी लगती हैं. हिम्मतवाला का टाकी-टाकी उसे बहुत पसंद आया. उसने पहली बार मुझसे कहा कि आपने अच्छा डांस किया है. ये मेरी बेटी का रिएक्शन था (हंसते हैं).

अब आप साल में एक या दो फिल्में करते हैं. क्या इसका कारण यह है कि अब आप परिवार के साथ अधिकतम समय बिताना चाहते हैं?
साल में दो पिक्चर से ज्यादा करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि आजकल प्रमोशन में बहुत टाइम लग जाता है. पहले आप पिक्चर करके आगे बढ़ जाते थे, लेकिन अब आपको प्रमोशन करना पड़ता है, आपको साथ में बैठना भी है कि क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है. अब बॉल गेम बड़ा हो गया है. बाकी और भी बहुत काम है मेरे पास. 

बिजनेस के मामले में क्या नया कदम उठाने जा रहे हैं?
गुजरात में एक सोलर पावर प्रोजेक्ट शुरू किया है. राजस्थान में एक नया प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहे हैं. बाकी प्रोडक्शन में एक-दो फिल्में प्लान कर रहे हैं.

और डायरेक्शन?
उसके लिए तो मुझे एक-डेढ़ साल की छुट्टी लेनी पड़ेगी, जो फिलहाल बहुत मुश्किल है.

इस साल की दूसरी व्यस्तताएं क्या होंगी?
अभी प्रभुदेवा की फिल्म शुरू करूंगा और उसके बाद सिंघम 2.

काजोल और आपकी शादी को चौदह साल हो गए. एक चीज काजोल में जो आज तक नहीं बदली?
वो जितनी ईमानदार और फ्रैंक पहले थी, उतनी ही आज भी है. अगर उसको कोई चीज गलत लगती है, तो वह तुरंत मुंह पर बोल देती है. वह कभी परवाह नहीं करती है कि सामने वाले को अच्छा लगेगा या बुरा.

आप दोनों की सफल शादीशुदा लाइफ का आधार क्या है?
इसके लिए दोनों को मेहनत करनी पड़ती है. एक-दूसरे को समझ कर चलना पड़ता है. दोनों को एक-दूसरे के लिए समझौते भी करने पड़ते हैं. एक-दूसरे की पसंद-नापसंद का ध्यान रखना पड़ता है. आपको बीच का एक रास्ता ढूंढना पड़ता है. वो सिर्फ तब किया जा सकता है, जब दोनों सोच लें कि हमको करना है.

क्या आपको काजोल से अपनी पहली मुलाकात याद है?
(सोचकर) हां, थोड़ी-बहुत याद है. बहुत नॉर्मल और कैजुअल मुलाकात थी. हमारी सिर्फ  हैलो-हाय हुई थी. शायद हम किसी फिल्म के सेट पर पहली बार मिले थे.

निसा और युग के जन्म के बाद क्या आप दोनों एक-दूसरे के और ज्यादा करीब आए?
करीब तो आप हो ही जाते हैं, जब आपके बच्चे हो जाते हैं. आपसी समझ भी बढ़ जाती है और बॉन्डिंग ज्यादा बढ़ जाती है. और साथ में, तकलीफ भी बढ़ जाती है क्योंकि आप एक-दूसरे के साथ ज्यादा वक्त बिता नहीं पाते. लेकिन उसकी आपको तकलीफ नहीं होती, क्योंकि वह वक्त आप अपने बच्चों के साथ बिता रहे होते हैं. धीरे-धीरे आदमी की सोच की ग्रोथ होती है. 

आपके हिसाब से क्या चीजें काजोल को एक स्टॉन्ग वूमन बनाती हैं?
उनका विश्वास, वह अपने आप में विश्वास रखती हैं और उनका टैलेंट.

उन्होंने आपकी पर्सनैलिटी में क्या नया जोड़ा है?
मुझे जिम्मेदार बनाया है, क्योंकि आज से पंद्रह साल पहले मैं एक अलग किस्म का इंसान था- एकदम वॉयलेंट, कहीं भी कुछ भी कर देता था, किसी भी तरह का रिएक्शन देता था. मुझे लगता है कि वह अब बदल गया है.

नाराज काजोल को मनाना कितना आसान होता है आपके लिए?
बिल्कुल नहीं. हमारे बीच यह है कि दोनों में से अगर कोई नाराज होता है और हमें लगता है कि सामने वाले की नहीं, मेरी गलती है, तो हम आगे बढक़र एक-दूसरे से बोल देते हैं. हम समस्या को बढ़ाते नहीं हैं, उसे तुरंत खत्म कर देते हैं.

काजोल ने आज तक आपको सबसे बड़ा सरप्राइज क्या दिया है?
ऐसा कोई बड़ा सरप्राइज नहीं दिया है यार (हंसते हैं)!

क्या आप चाहेंगे कि काजोल ही अगले सात जनम तक आपको पत्नी के रूप में मिलें?
अगर ऐसा होता है, तो हां, मैं जरूर चाहूंगा कि काजोल सात जनम तक मेरी पत्नी बनें.

आप किचन में काजोल के लिए क्या कुक करना पसंद करते हैं?
मैं विशेष तौर पर काजोल के लिए नहीं, अपने सभी घर वालों के लिए खाना बनाता हूं. खास तौर पर अपनी बेटी के लिए. वह कभी-कभी डिमांड करती है कि पापा मुझे आपके हाथ का ये खाना है, तो मैं उसके लिए बनाता हूं.

क्या आप लोग छुट्टियां साथ प्लान करते हैं?
हमेशा. छुट्टियों में हम, हमारे बच्चे, हमारे मां-बाप, हमारी बहनें, बहनों के बच्चे, सब लोग साथ में जाते हैं.

कब तक आप दोनों साथ आ रहे हैं?
इसका जवाब मेरे पास नहीं है. जब तक कोई सही स्क्रिप्ट हमारे पास नहीं आती, तब तक हम कुछ नहीं कह सकते.

 साभार : FILMFARE

Friday, April 19, 2013

मोहब्बत के रंगों में रंगी सोनम-धनुष की रांझणा

सोनम कपूर और धनुष की फिल्म रांझणा की विशेष झलकियां प्रस्तुत कर रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह
एक दोपहर आनंद एल राय से मेरी फुरसत में भेंट हुई. उन्होंने जबसे अपनी नई फिल्म रांझणा की घोषणा की है, तबसे मेरे मन में कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं. संभव है कि वही सवाल आपको भी परेशान कर रहे हों. मसलन उन्होंने मुंबई की आबो-हवा में पली-बढ़ी सोनम कपूर को बनारस की एक लडक़ी की भूमिका निभाने के लिए क्यों चुना? गजब तो तब हो गया, जब उन्होंने दक्षिण भारतीय स्टार धनुष को गंगा किनारे के छोरे के किरदार के लिए फाइनल किया, जिन्होंने हाल में कोलावरी डी से दुनिया भर में चर्चा बटोरी. उन्हें तो सही हिंदी बोलनी भी नहीं आती है.
मगर एक सच्चा रचनाकार चुनौतियों को सहर्ष गले लगाने के लिए सदैव तन कर खड़ा रहता है और फिर उन पर जीत हासिल करके दुनिया के सामने कुछ ऐसी अद्भुत कृति पेश करता है कि लोग स्तब्ध रह जाते हैं. आनंद एल राय ऐसे ही साहसी फिल्मकार हैं. उनकी पिछली फिल्म तनु वेड्स मनु, जो मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है, में उन्होंने कंगना राणावत को कानपुर की लडक़ी की भूमिका में कास्ट करके सबको चौंकाया था. लेकिन जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो कंगना की गिनती एकाएक हिंदी सिनेमा की सधी अभिनेत्रियों में होने लगी.
आनंद एल राय ने अपनी नायिका का चरित्र चित्रण करना आरंभ किया. वह मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों की तुलना में एक छोटे शहर में रहती है- बनारस नाम है जिसका. उस जैसी सीधी-सादी कई लड़कियां उसके आस-पास हैं, मगर वह औरों से थोड़ी-सी अलग है. उसका वही अलगाव एक किशोर (धनुष) का ध्यान उसकी ओर खींचता है. लेकिन वह है तो छोटे शहर का ही लडक़ा न! उसकी हिम्मत नहीं होती कि वह किसी मॉडर्न युवक की तरह खुलेआम आई लव यू कह दे. प्यार दिल में पनपता रहता है, उसकी मासूम हरकतों में झलकता रहता है. स्कूल की मोहब्बत धीरे-धीरे जवान हो रही होती है, लेकिन तेज-तर्रार नायिका कॉलेज की पढ़ाई के लिए दिल्ली निकल जाती है- जेएनयू. यहां वह कुछ गंभीर मुद्दों से जुड़ती है, जिसके तार राजनीति से जुड़े हैं. जेएनयू में उसे नया दोस्त (अभय देओल) भी मिलता है. यह प्रेम त्रिकोणीय कहानी राजनीति के गलियारों से गुजरती है, मगर इसमें कहीं भी नाटकीयता का पुट नहीं है. आपकी और मेरी तरह नायक-नायिका का जीवन मद्धम गति से चलता रहता है.
सोनम कपूर और धनुष की छोटे शहर की झलकियां सुन और देखकर मुझे वह दिन याद आ गए, जब हम पीठ पर बस्ता लटकाए दोस्तों के साथ मटरगश्ती करते हुए स्कूल जाया करते थे. किसी खास लडक़ी के लिए हमारा दिल धडक़ा करता था और फिर वह उडऩ छू हो जाती थी. हम उस लडक़ी को हासिल करने के लिए उसके पीछे नहीं गए, लेकिन रांझणा का नायक हमारे जैसा नहीं है.
धनुष और सोनम कपूर कमर कस चुके हैं. दोनों इसे अपने करियर के लिए एक बड़े अवसर के रूप में देख रहे हैं. सोनम ने अपने स्टारडम का चोला उतार फेंका है और जाने-माने थिएटर कर्मी अरविंद गौड़ के साथ दिल्ली में नुक्कड़ नाटक का अभ्यास बारंबार कर रही हैं. धनुष हिंदी पर जीत हासिल करने में जुटे हैं. दोनों कलाकार अपने निर्देशक की कसौटी पर खरा उतरना चाहते हैं. आनंद एल राय की सोनम कपूर के बारे में कही एक बात याद आ रही है. ''सोनम बहुत आम लडक़ी हैं. वे अनिल कपूर जैसे स्टार के घर में पैदा हुई हैं, उनके घर की दीवारें स्टार की हैं, लेकिन उनका दिल भारत की एक लडक़ी का है.ÓÓ स्कूल से कॉलेज के दरम्यान की पांच साल की रांझणा की कहानी में सोनम कपूर और धनुष को आप एक किशोर से वयस्क होते हुए देखेंगे. इस दौरान आपको उनकी बोली, विचार, पहनावे आदि में आमूल-चूल परिवर्तन महसूस होगा. ''धनुष सबको चौंकाएंगे.ÓÓ आनंद ने आत्मविश्वास के साथ मुस्कुराते हुए कहा.

रांझणा शब्द से एक झंकार उत्पन्न होती है. इस झंकार को सुमधुर बनाने की ए आर रहमान और इरशाद कामिल की जोड़ी ने सहर्ष जिम्मेदारी ली है. धनुष और सोनम की यह मासूम संगीतमय प्रेम कहानी दिलों को छू जाएगी, ऐसा निर्देशक का दावा है. बहुत जल्द आनंद एल रॉय रांझणा की अपनी टोली के साथ बनारस और जेएनयू में शूटिंग के लिए डेरा डालने वाले हैं. 



हेल्दी हूं, मोटी नहीं -रानी चटर्जी

रानी चटर्जी इस धारणा की धज्जी उड़ाती हैं कि शोबिज में छरहरे बदन वाली लड़कियां राज करती हैं. थुलथुल काया, एक्स बॉयफ्रेंड पवन सिंह और सिनेमा में अपने कामयाबी के सफर के बारे में इस शीर्ष अभिनेत्री ने रघुवेन्द्र सिंह को बताया

जब मिली ऋतिक रोशन से
मैं ऋतिक रोशन की बहुत बड़ी फैन थी. मेरे घर के बगल में एक को-ऑर्डिनेटर रहते थे. मैं उनसे कहा करती थी कि अंकल, मुझे किसी शूटिंग पर लेकर चलना. उस वक्त में स्कूल में थी. दसवीं की पढ़ाई कर रही थी. रविवार का दिन था. वो अंकल मुझे लेकर बांद्रा के महबूब स्टूडियो में गए. वहां ऋतिक रोशन, अभिषेक बच्चन और करीना कपूर के साथ मैं प्रेम की दीवानी हूं फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. मैंने उनका ऑटोग्राफ लिया और वह मेरे लिए उस वक्त सबसे कीमती चीज थी. उसी दौरान मेरी मुलाकात केके गोस्वामी से हुई. वे विकराल और गबराल सीरियल में काम करते थे. उनकी हाइट छोटी थी. मैंने उनसे विनती करके किसी प्रकार उनका फोन नंबर लिया. मैं हफ्ते में एक बार उन्हें फोन करती थी और पूछती थी कि सीरियल में क्या नया होने वाला है. 

मोटापे की वजह से मिली पहली फिल्म
भोजपुरी की एक फिल्म बन रही थी ससुरा बड़ा पइसावाला. उसके निर्देशक केके गोस्वामी के दोस्त थे. उस फिल्म में काम करने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा था. उन्होंने अपनी समस्या केके जी को बताई, तो उन्होंने उनसे कहा कि मैं एक लडक़ी को जानता हूं, उसने कभी एक्टिंग नहीं की है, लेकिन तुम अगर उससे काम करवा सकते हो, तो ठीक है. जब भी मैं गोस्वामी जी से मिलने उनके सेट पर जाती थी, तो वे कहते थे कि मैं तुम्हें किसी सीरियल में काम जरूर दिलवाऊंगा. मुझे नहीं पता था कि उनकी वजह से मुझे फिल्म मिल जाएगी. डायरेक्टर का मेरी मम्मी के पास फोन आया. मैं स्कूल से लौटी, तो मम्मी फौरन मुझे लेकर डायरेक्टर से मिलने चली गईं. मेरी हाइट तब चार फुट, पांच इंच थी और मैं मोटी थी. मेरे मोटापे की वजह से मुझे पहली फिल्म मिली, क्योंकि मेरे हीरो उसमें मनोज तिवारी थे, जिनकी सेहत अच्छी-खासी थी.

सबीहा से बनी रानी 
मेरा असली नाम सबीहा शेख है. मैं मुंबई के एक मुस्लिम परिवार से आती हूं. सबीहा से रानी चटर्जी बनने की भी मजेदार कहानी है. गोरखपुर (यूपी) में गोरखनाथ का एक मंदिर है. उसमें ससुरा बड़ा पइसावाला का मुहूर्त था. मुझे याद है 3 नवंबर का दिन था. इसी दिन मेरा जन्मदिन भी पड़ता है. भोले शंकर की मूर्ति के पास एक शॉट लेना था. डायरेक्टर मेरे पास आए और कहा कि बेटा, तुम मुस्लिम हो. अगर तुमने अपना असली नाम बता दिया, तो पुजारी हमें शॉट नहीं लेने देगा. उन्होंने कहा कि जो तुम किरदार निभा रही हो, उसका नाम रानी है, तुम अपना असली नाम रानी बता देना. मैंने मीडिया के साथ इंटरव्यू में अपना नाम रानी बता दिया. चटर्जी कैसे बनी, वह भी बताती हूं. हमारे प्रोड्यूसर सुजीत इंटरव्यू दे रहे थे. बगल में मेरा मेकअप चल रहा था. उनसे पूछा गया कि रानी किस कास्ट की हैं, तो उन्होंने चटर्जी बता दिया. मैं उनका मुंह देखती रह गई. एक इंटरव्यू के दौरान तो एक पत्रकार ने मेरे पूरे खानदान का नाम पूछा था. मैं बुरी तरह फंसी गई थी. मैंने रीयल लाइफ में एक्टिंग करनी शुरू कर दी कि चक्कर आ रहा है. मैंने सिर पकडक़र कहा कि मैं बाद में इंटरव्यू दूंगी.

रातों की नींद उड़ गई
मेरी पहली फिल्म ससुरा बड़ा पइसावाला सुपरहिट हो गई और मैं स्टार बन गई. लेकिन मुझे इस बात का एहसास होने में बहुत वक्त लगा. पहली फिल्म से मैं लोगों की आंखों में आ गई और सबने मेरे बारे-बारे में तरह-तरह की बातें करनी शुरू कर दीं. जैसे- इसे डांस नहीं आता, हिल ही नहीं सकती, एक्टिंग नहीं आती. मुझे कई फिल्मों से निकाल दिया गया. मनोज तिवारी के साथ भी मेरा नाम जोड़ा जाता था कि हमारे बीच कुछ चल रहा है. मैं इन अफवाहों से परेशान थी. ससुरा बड़ा पइसावाला के बाद मैंने इंडस्ट्री छोड़ दी थी. मनोज तिवारी ने मुझे फोन करके वापस बुलाया. उन्होंने बताया कि इस फिल्म में दो हीरोइनें हैं एक निगेटिव और एक पॉजिटिव. जब मैं सेट पर पहुंची, तो पता चला कि मुझे विधवा का रोल दिया गया है. किसी नए लडक़े को मेरे अपोजिट कास्ट किया गया था. मैं सेट पर रोती थी. उसमें जो कलाकार थे, वह सब मुझे डॉमिनेट करते थे, जो मुझसे सहन नहीं होता था. मैंने ठान लिया कि अपने आप को प्रूव करके ही रहूंगी. मैंने तय किया कि किसी बड़े स्टार के साथ फिल्म साइन नहीं करूंगी. केवल उसी फिल्म में काम करुंगी, जिसमें मेरा रोल बड़ा होगा. उस दौरान अगर मेरी मम्मी (गुलजार शेख), जो आज भी हर वक्त मेरे साथ रहती हैं, का सपोर्ट नहीं मिला होता, तो मैं आज यहां नहीं होती. 

किसी ने सपोर्ट नहीं किया
आज मैं जो कुछ हूं, उसी फैसले की वजह से हूं. मुझे कभी किसी स्टार, डायरेक्टर या प्रोड्यूसर ने सपोर्ट नहीं किया. उस फैसले के बाद राजकुमार पांडे की छैला बाबू पहली फिल्म थी, जिसे मैंने साइन किया और उसके बाद मुझे पीछे पलटकर देखने की जरूरत नहीं पड़ी. मैंने अधिकतर महिला प्रधान फिल्में कीं, जिन्हें लोगों ने बहुत पसंद किया. मैंने पिछले नौ सालों में लगभग चालीस फिल्में कर ली हैं. अपनी फिल्मों दामिनी, दुर्गा, तोहार नइखे कौनो जोड़ दू बेजोड़ बाड़ू हो, मुन्नीबाई नौटंकीवाली, पियवा बड़ा सतावेला को मैं चाहूंगी कि सब लोग देखें. इनमें से किसी में आपको मेरा एक्शन, तो किसी में कॉमेडी, किसी में रोमांस, तो किसी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला का जबरदस्त किरदार देखने को मिलेगा. अगर आप मेरी आने वाली फिल्मों शेरनी, रानी चली ससुराल, नागिन, ज्योति बनल ज्वाला, गंगा जमुना सरस्वती भी देखें, तो वे भी महिला प्रधान फिल्में हैं.

स्लिम हुए, तो दर्शकों ने नकार दिया
मैं सुडौल बदन में विश्वास करती हूं. ना कि फीगर्स के नंबर्स में. ऐसा बदन होना चाहिए, जो आंखों को अच्छा लगे. मैं खुद दुबली-पतली लड़कियों को देखना नहीं पसंद करती हूं. बीच में मैंने अपना वजन 59 किया था, लेकिन उस वक्त दर्शकों ने मुझे पसंद नहीं किया. मेरे फेसबुक और ट्विटर पर बुरे कमेंट्स आए. लोगों ने यहां तक कहा कि रानी को खाना खाने को नहीं मिल रहा है. मैं कभी बिकनी नहीं पहनूंगी, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि दो-चार इंटरव्यूज के अलावा और कुछ मिलता है. मैं किसिंग सीन भी नहीं कर सकती, क्योंकि मुझे इसका अनुभव नहीं है. डरती हूं कि कहीं लोग यह न कहना शुरू कर दें कि रानी को स्मूङ्क्षचग करने नहीं आता. मेरी नैचुरैलिटी के लिए लोग मुझे पसंद करते हैं. मैं हमेशा एक दायरे में रहकर ईमानदारी से काम करूंगी.

पवन सिंह ने किया बदनाम
मेरा दिल सिर्फ एक बार आया था, लेकिन बहुत बेकार जगह पर आया था. मैं बहुत बेवकूफ थी. चुनाव गलत हो गया. उसने मेरी जिंदगी बर्बाद करके रख दी. मैं बहुत प्रैक्टिकल हूं. शायद इसीलिए उस इंसान के साथ ज्यादा जुड़ी नहीं थी. हां, हम दोनों अच्छे दोस्त थे. हम साथ में खाना भी खाते थे. हमारे घरेलू संबंध बन गए थे. लेकिन उस बंदे ने सबसे कहा कि हम शादी करने वाले थे, हम साथ में रहते थे. इतनी बेहूदा बातें मैंने अपने बारे में कभी नहीं सुनी थीं. एक दिन सुबह को मैं जगी, तो एक मैसेज आया कि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में किसी ने आपको मारने के लिए पन्द्रह लाख रुपए की सुपारी दी है. मरण प्रयोग करने के लिए. मैं डर गई, क्योंकि मैं इन सबमें यकीन करती हूं. मैंने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई. उस बंदे ने मुझे पांच दिन तक लगातार फोन करके परेशान किया कि तुम मुझे ज्यादा पैसे दो, तो मैं उसे मार दूंगा. उसने कहा कि आप अच्छे इंसान हो और मैं नहीं चाहता कि मेरे हाथों किसी अच्छे इंसान की मौत हो. मैं आपका फैन भी हूं. मैंने कहा कि मैं तुम्हें पैसे दे रही हूं, तुम मुझे छोड़ दो. पुलिस ने उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया. उसके बाद तो हंगामा हो गया. लोगों को केवल इतना पता था कि मेरा और पवन सिंह का झगड़ा है, लेकिन... आप यकीन करेंगे कि उसने माफीनामा लिखकर मुझे दिया. मैं शॉक थी कि कोई बंदा इतना नीचे कैसे गिर सकता है!
                                               देवरा बड़ा सतावेला में रवि किशन के साथ
भोजपुरी को अश्लील कहना बंद करें!
मुझे बहुत दुख होता है जब लोग भोजपुरी फिल्मों को डाउन मार्केट कहते हैं. एक्टर्स को इज्जत नहीं देते हैं. कुछ लोग तो यह तक कहते हैं कि सी ग्रेड फिल्म में काम करने से अच्छा है, तो भोजपुरी फिल्म में काम कर लो. कहा जाता है कि भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्रियां अंग प्रदर्शन करती हैं. लेकिन क्या फिल्मों के आगे भोजपुरी लगाना जरूरी है? हर भाषा की फिल्म की हीरोइन एक्सपोज करती हैं. मैं नाम नहीं लूंगी. कहा जाता था कि भोजपुरी में केवल आइटम नंबर्स होते हैं. लेकिन आज आप हिंदी फिल्में ले लीजिए, उनमें क्या होता है? दबंग हो या कोई और फिल्म, सबमें भोजपुरी का टच होता है. भोजपुरी को उसका हक और सम्मान दें. इस सिनेमा की बदौलत आज मेरे पास बंगला, गाड़ी आदि है.




विद्या को कोई खरीद नहीं सकता- राजकुमार गुप्ता

नो वन किल्ड जेसिका के बाद अब घनचक्कर फिल्म में विद्या बालन को निर्देशित कर रहे हैं राजकुमार गुप्ता. इस लेख में वे अपनी इस चहेती अभिनेत्री के व्यक्तित्व को एक अलग नजरिए से परिभाषित कर रहे हैं

विद्या बालन से मेरी पहली मुलाकात तीन साल पहले हुई. तब तक वे स्टार बन चुकी थीं. नो वन किल्ड जेसिका लिखते समय मेरे अंर्तमन से आवाज आई कि सबरीना के किरदार के लिए विद्या से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता. सच कहूं तो परिणीता और लगे रहो मुन्नाभाई में विद्या के अभिनय से मैं बहुत प्रभावित था. अंधेरी ईस्ट में एक होटल है हयात. विद्या ने वहीं मिलने के लिए बुलाया. मैं एक फिल्म आमिर निर्देशित कर चुका था, लेकिन विश्वास मानिए, मैं इस मीटिंग से पहले बहुत नर्वस था. मीडिया और किस्सों के जरिए मेरे मन में स्टार की एक अलग छवि बनी हुई थी कि स्टार्स बड़े रौब के साथ चार-पांच लोगों की अपनी फौज के साथ चलते हैं. लोगों को दो-चार घंटे इंतजार करवाते हैं. मगर मेरी यह धारणाएं इस अभिनेत्री से मिलने के बाद मिथक साबित हुईं. विद्या सादे लिबास में अपनी मैनेजर के साथ एकदम तय वक्त पर मेरे सामने हाजिर हो गईं. मैं अचंभित था कि ये कैसी स्टार है! 
विद्या की सादगी से मैं प्रभावित हुआ. वे दिवा टाइप नहीं हैं. वे गर्ल नेक्स्ट डोर हैं. वे मुझे अपनी लगीं. लगा कि मैं किसी अपने से मिल रहा हूं. मैं ठहरा तो निर्देशक ही ना! ऐसी कलाकार को देखकर मेरा लालच बढ़ गया. मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि विद्या मेरी फिल्म के लिए हां कह दें. मैं सोच ही रहा था कि मैंने अपनी पहली फिल्म आमिर तो बहुत बढिय़ां बनाई है. सबने उस फिल्म की बड़ी प्रशंसा की थी. विद्या ने उसे देखा होगा, शायद तभी वे आज मेरे सामने बैठी हैं, लेकिन तभी उन्होंने यह कहकर मुझे चकित कर दिया कि आपकी फिल्म आमिर मैंने नहीं देखी है. मैं कुछ पल के लिए मायूस हुआ. खैर, मैंने उन्हें नो वन किल्ड जेसिका की स्क्रिप्ट दी और घर लौटते ही उन्हें आमिर की डीवीडी भी भिजवा दी. ताकि मेरी निर्देशन योगयता पर उन्हें संदेह न हो.
                                                               राजकुमार गुप्ता
हमारी दूसरी भेंट विद्या के चेंबूर स्थित घर पर हुई. उन्होंने दस दिन के बाद मुझे फोन करके नैरेशन देने के लिए बुलाया था. मैं उनका घर देखकर एक बार फिर हैरान हुआ, क्योंकि इस घर में मुझे किसी स्टार के रहने का कोई लक्षण नजर नहीं आया. किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार के घर जैसा विद्या का घर था. मुझे लगा कि मैं अपने किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर में बैठा हूं. घर के एक हिस्से में उनका कमरा था और दूसरे हिस्से वाले कमरे को उन्होंने अपना नैरेशन रुम बनाया था. मैं अपने खयालों में खोया हुआ था कि विद्या कुर्ता-पायजामा पहने मेरे सामने हाजिर हो गईं. विद्या आपसे इतनी आत्मीयता से मिलती हैं कि आप उन्हें अपना मान लेते हैं. यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है.
विद्या को जहां तक मैं समझ पाया हूं, वह पैसे को महत्व नहीं देतीं. आप उन्हें यह नहीं कह सकते कि मैं आपको पांच करोड़ रुपए दे रहा हूं और आप यह फिल्म कर लीजिए. आप विद्या को खरीद नहीं सकते. किसी भी स्क्रिप्ट को हां कहने से पहले विद्या तीन चीजें देखती हैं. पहला, उन्हें स्क्रिप्ट अच्छी लगनी चाहिए, दूसरा- क्या वे किरदार में खुद को देख पाती हैं और तीसरा, निर्देशक उस किरदार को कैसे देख रहा है. इत्मीनान होने के बाद वे खुद को निर्देशक को सौंप देती हैं. फिर आप पर निर्भर करता है कि आप उन्हें मोल्ड कर पाते हैं या नहीं.
विद्या में असुरक्षा की भावना नहीं है. नैरेशन खत्म होने के बाद उनकी एक बात ने मुझे चौंका दिया था. उन्होंने कहा कि मीरा का जो कैरेक्टर है, उसके लिए हमें एक पॉवरफुल एक्टर चाहिए, क्योंकि वह महत्वपूर्ण किरदार है. उसी पल मुझे यकीन हो गया कि विद्या ने मेरी फिल्म को अपना लिया है और वे उसकी बेहतरी के लिए सोच रही हैं. वे सबरीना के किरदार के निर्माण के दौरान इनवॉल्व रहीं. मैंने देखा है कि अगर वे आपके प्रोजेक्ट से जुड़ गईं, तो फिर उसे अपना मान लेती हैं. यह गुण बहुत कम कलाकारों में है.
विद्या वक्त की पाबंद हंै. वे प्रोफेशनल हैं. वे शॉट के लिए भोजन करना छोड़ देती थीं. हम दिल्ली की एक गली में जेसिका की शूटिंग कर रहे थे. अचानक हमें वो एरिया मनमुताबिक खाली मिल गया. मैंने कहा कि विद्या को बुलाओ, तो असिस्टेंट ने बताया कि वो खाना खाने गई हैं. मैंने कहा कि ठीक है, बाद में शूट करते हैं और मैंने पलटकर देखा तो विद्या सामने से आ रही थीं. मैंने उनसे पूछा कि आप खाना खा रही थीं? उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं, पहले शूट करते हैं. वे वैन में जाने से पहले हमेशा पूछती थीं कि राज, क्या मैं वैनिटी वैन में जा सकती हूं. 
विद्या खाने की शौकीन हैं, लेकिन उनके साथ यह नहीं है कि उन्हें फाइव स्टार होटल में ही लंच या डिनर करना है. मुझे याद है कि हम लोग जेसिका का शूट शुरु होने से दो दिन पहले दिल्ली पहुंचे थे. विद्या मुझे लेकर खान मार्केट गईं. वहां वो मुझे एक बोहेमियन कैफे में लेकर गईं. उन्होंने बताया कि वहां वे अक्सर जाती हैं. मैं विद्या की इस टेस्टी खोज से चकित था.
विद्या ने अतीत में कुछ गलतियां कीं, मगर उनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा. आज उनकी कामयाबी उदाहरणार्थ और अनुकरणीय हैं. सफलता, शोहरत और पैसा मिलने के बावजूद उनमें घमंड नहीं आया है. मैं विद्या के साहस को सलाम करता हूं. मुझे विश्वास है कि वे भविष्य में कामयाबी का नया इतिहास लिखेंगी. मैं खुश हूं कि विद्या को प्यार मिल गया है. विद्या और सिद्धार्थ को मैं शुभकामनाएं देता हूं और दिल से उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं. घनचक्कर में दोबारा उनके साथ काम करना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.

प्रस्तुति- रघुवेन्द्र सिंह 

अफवाहें हंसने के लिए होती हैं- सोनाक्षी सिन्हा

सोनाक्षी सिन्हा की ब्लॉकबस्टर सफलता का सीक्रेट जानने की रघुवेन्द्र सिंह ने कोशिश की
'रामायणÓ कभी केवल शत्रुघ्न सिन्हा का पता हुआ करता था. इस बंगले का नाम लेते ही लोग आपको उनके घर तक पहुंचा देते थे. मगर वक्त के साथ दो चीजें परिवर्तित हो चुकी हैं. पहली- अब बंगले के स्थान पर एक सात मंजिला आलीशान इमारत खड़ी हो चुकी है और दूसरी- अब इसमें केवल एक नहीं, बल्कि दो स्टार रहते हैं. जुहू स्थित 'रामायणÓ वर्तमान की लोकप्रिय अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा का भी पता बन चुका है.
शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने बेटे लव, कुश और बेटी सोनाक्षी सिन्हा को एक-एक फ्लोर दे दिया है, जिसकी आंतरिक साज-सज्जा आजकल वे स्वेच्छा से करने में जुटे हैं. लिफ्ट के जरिए हम सातवें फ्लोर पर पहुंचते हैं, तो सोनाक्षी की करीबी दोस्त और मैनेजर भक्ति हमारा स्वागत करती हैं. कुछ ही पल के बाद सोनाक्षी हाजिर होती हैं और फिल्मफेयर हिंदी की तरक्की के बारे में चर्चा करती हैं. आपको याद दिला दें कि दबंग गर्ल और अब राउड़ी गर्ल सोनाक्षी सिन्हा फिल्मफेयर हिंदी की पहली कवर गर्ल थीं. अनौपचारिक बातचीत के बाद हमने सवाल पूछना आरंभ किया, तो सोनाक्षी ने सबका जवाब अपनी खिलखिलाती हंसी के साथ दे डाला...

आप जिन फिल्मों का चुनाव करती हैं, वो ब्लॉकबस्टर साबित होती हैं. इसका राज क्या है?
कुछ सीक्रेट नहीं है. आप तो इनकी सफलता का सारा क्रेडिट मुझे ही दे दे रहे हैं (हा-हा-हा). ऐसा नहीं है कि दबंग और राउड़ी राठौड़ सिर्फ मेरी वजह से हिट हुई हैं. मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती हूं कि मैं इनका हिस्सा बन सकी. एक दर्शक के तौर पर मैं जैसी फिल्में देखना पसंद करती हूं, वैसी ही फिल्मों का चुनाव मैं काम करने के लिए करती हूं. जब मैंने इन फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मुझे पसंद आईं और मैंने कर लीं. मैंने परवाह नहीं की कि बॉक्स-ऑफिस पर इनका क्या होगा. दबंग ब्लॉकबस्टर हो गई, तो राउड़ी राठौड़ पर हिट होने का प्रेशर आ गया. इसका सफल होना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है. मैं इनकी सफलता का क्रेडिट अकेले नहीं ले सकती. यह सबकी डायरेक्टर, को-स्टार, तकनीशियन की मेहनत का नतीजा है, जो ये फिल्में व्यापक स्तर पर दर्शकों को छू गईं.

क्या आप फिल्मकारों के लिए खुद को लकी मानती हैं?
मुझे नहीं पता कि मैं लकी हूं या नहीं. ऐसे टैग हमें मीडिया दे देती है. मेरी दो फिल्में चल गईं, तो मैं लकी हूं और ईश्वर न करें कि कल मेरी कोई फिल्म नहीं चली, तो लकी का टैग मुझसे छीन लिया जाएगा. इसलिए मैं इन चीजों की ओर ध्यान नहीं देती. मैं केवल अपना काम करती हूं.

यानी आप इस चीज के लिए मानसिक रुप से तैयार हैं कि कल यह टैग जा भी सकता है?
हां, क्यों नहीं? इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है. उतार-चढ़ाव सबके जीवन में आते हैं. अच्छे-अच्छों के साथ ऐसा हुआ है.

आप मानती हैं कि शोहरत अस्थायी होती है?
बिल्कुल. सब अपने-अपने टाइम की बात होती है. किसी का टाइम अच्छा चल रहा है, तो चल रहा है. कल अच्छा समय नहीं रहा, तो उसके बाद और अच्छा टाइम आएगा.

आपको देखकर बहुत अपनापन लगता है. इस छवि के उलट भी क्या आपका कोई पहलू है, जिसे हम नहीं जानते हैं?
नहीं, मैं जैसी हूं, वैसी सबको दिखती हूं. आप जैसा मुझे देख रहे हैं, मैं हमेशा वैसी ही रहती हूं. दिल में जो है, वो बोल देती हूं. सबके साथ अच्छे से रहती हूं. मैं कैट फाइट नहीं करती हूं. अपने बारे में कैट फाइट की बातें पढ़-पढक़र मैं थक गई हूं. किसी से भी आप इस बारे में पूछेंगे, तो वो हंसेंगे, क्योंकि मैं ऐसी हूं ही नहीं. मैं अपना काम खत्म करती हूं, घर आती हूं और सबके साथ खुशी-खुशी रहती हूं.

ये बातें सुनकर लगता है कि आपको अपने प्लस पॉइंट्स पता हैं.
मुझे अपने प्लस और निगेटिव दोनों पहलू पता हैं और जो मेरे प्लस पॉइंट्स हैं, उसी पर मैं ध्यान देती हूं. मेरी स्क्रीन प्रजेंस अच्छी है, डायलॉग डेलीवरी अच्छी है, वह शायद पापा पर गई है. हिंदी भाषा पर मेरी पकड़ अच्छी है, कॉन्फिडेंस है और वह भी पापा से ही मुझे मिला है. ये मेरे प्लस पॉइंट्स हैं. माइनस पॉइंट्स मेरे हिसाब से है कि मैं इंपल्सिव हूं. मैं जल्दबाजी कभी-कभी करती हूं. मैं कभी-कभार अपना आपा खो देती हूं. मगर मैं अपने निगेटिव पॉइंट्स की ओर ध्यान नहीं देती.

आपके माइनस पॉइंट्स हमें कभी देखने को नहीं मिलते हैं?
और शायद आपको कभी देखने को मिले भी नहीं, क्योंकि ऐसा बहुत कम होता है. अपनी कमजोरियों पर मेरा कंट्रोल रहता है.

आपको क्या बातें नाराज कर देती हैं या अगर कोई आपके साथ बात कर रहा है, तो उसे क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
बहुत कम चीजें हैं, जो आजकल मुझे नाराज करती हैं, क्योंकि इंडस्ट्री में रहकर आपको इसकी आदत हो जाती है. आप रोज सुबह उठते हैं और कुछ न कुछ अपने बारे में न्यूजपेपर में पढ़ते हैं. यहां ऐसे लोग हैं, जो आपको जानते भी नहीं हैं, वो आपके बारे में कुछ भी लिख सकते हैं. हमें इसकी आदत पड़ जाती है. हां, मेरे काम, प्रोफेशनलिज्म की तारीफ हो, तो मुझे खुशी होती है.

एक्टर्स हमेशा चापलूसों से घिरे रहते हैं. ऐसी स्थिति में उनके लिए जेनुइन और झूठी प्रशंसा के बीच फर्क करना बहुत मुश्किल होता है. आप कैसे करती हैं?
मैं समझ जाती हूं कि कौन मेरी झूठी तारीफ कर रहा है. पता नहीं कुछ लोग कैसे नहीं समझ पाते. मेरे अगल-बगल ऐसे लोग हैं, जिन्हें मैं सालों से जानती हूं. मेरे स्कूल और कॉलेज के दोस्त हैं, फैमिली है. मैं जानती हूं कि ये लोग मेरी झूठी तारीफ नहीं करेंगे. अगर मुझमें कोई खामी है, तो ये खुलकर अच्छे तरीके से बता देंगे.

ग्रामीण लड़कियों की भूमिकाएं निभाते हुए आप उनके प्रति लगाव महसूस करती हैं. क्या आपको लगता है कि ग्रामीण लड़कियों को किसी चीज की कमी है?
ऐसी कोई बात नहीं है. गांव की लड़कियां शहर की लड़कियों की बराबरी कर रही हैं. औरत में जो शक्ति होती है, वो किसी मर्द में नहीं होती. जब मैं कोई किरदार निभा रही होती हूं, तो मेरे दिमाग में ये बातें नहीं आतीं. यह मेरा काम है और मैं उसे कर रही हूं. सेट के माहौल में ये सब बहुत कम सोचने को मिलता है. अगर कुछ दूसरा सेटअप हो, कोई प्रोग्राम हो, जिसमें मुझे डिटेल में रिचर्स करने को मिले, अनुभव करने को मिले, तो शायद मैं सोच पाऊं.

क्या हम आपको किसी ऐसी भूमिका में देखेंगे, जो हीरोइन होते हुए भी फिल्म की हीरो हो?
बिल्कुल, क्यों नहीं? अभी तो मेरी तीसरी फिल्म रिलीज हुई है. आगे जाकर बहुत सारे ऐसे रोल आएंगे, जो हीरोइन के कंधे पर होंगे. मैं ऐसी फिल्म करना चाहूंगी. लुटेरा शायद एक ऐसी फिल्म है, जिसमें लडक़ी का रोल लडक़े के बराबर है. वह शुरुआत होगी.

कई फिल्मों में हीरोइन की भूमिका ना के बराबर होती है. मीडिया में उसकी आलोचना भी होती है. आप फिल्में साइन करते समय इन बातों पर गौर करती हैं?
मैं ऐसा नहीं सोचती हूं. मैं स्क्रिप्ट पढ़ती हूं, तो देखती हूं कि यह फिल्म मुझे दर्शक के तौर पर पसंद आएगी, इसलिए मैं फिल्म करती हूं. रोल छोटा हो या बड़ा, वह काम तो है. अगर मैं वह काम नहीं करुंगी, तो कोई और उसे कर लेगा. अगर उस कैरेक्टर की जरुरत नहीं होती, तो वह फिल्म में होता ही नहीं. मैं नहीं समझ पाती कि मीडिया क्यों ऐसे सोचता है कि अरे, उसके छह डायलॉग थे, सीन कम था. ऐसे नहीं होता. फिल्म का हिस्सा होना अपने आप में अच्छी बात है.


अभिनेत्री होने का एक पहलू यह है कि आपके अफेयर की चर्चा चलती रहती है. जैसे आजकल आपके और रणवीर सिंह के नाम की चर्चा है. इन पर आप कितना ध्यान देती हैं और आप कैसे हैंडल करती हैं इन्हें?
अफवाहें हंसने के लिए होती हैं. मैं हंसकर भूला देती हूं. इन पर जितनी कम प्रतिक्रिया दी जाए, उतना अच्छा होता है. अगर आप रिएक्ट करेंगे, तो कोई और कुछ बोलेगा और फिर वह टेनिस बॉल की तरह हो जाएगा. चुप रहना बेहतर होता है.

इन चीजों से क्या पर्सनल लाइफ प्रभावित होती है?
बिल्कुल नहीं. लोगों को लगता है कि अफवाहों से हमारी निजी लाइफ पर असर पड़ता है. ऐसी भी अफवाह आ जाती है कि मेरे पैरेंट्स अपसेट हैं. जबकि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. डैड पैंतीस साल से इंडस्ट्री में हैं. उन्हें पता है कि लोग क्या और कैसे लिखते हैं. वे बहुत सारे जर्नलिस्ट्स को जानते हैं. उनको ऐसी बातें पेपर या मैगजीन में पढक़र नहीं पता चलने वाली हैं. वे मुझे यानी अपनी बेटी को अच्छी तरह जानते हैं. 

इंडस्ट्री की लव स्टोरीज सच होती हैं, लेकिन फिर भी स्टार्स छुपाते रहते हैं. जैसे रितेश-जेनिलिया ने नौ साल तक ना-ना कहा और अचानक शादी कर ली. सेलीब्रिटीज प्यार की बात को छुपाते क्यों हैं?
मुझे नहीं पता. सबकी पर्सनल च्वॉइस होती है. अगर आप एक्टर हैं, तो आपका जीवन ऐसे ही पब्लिक के बीच रहता है, लोग आपको देखते हैं, बातें करते हैं. तो ऐसे में आप अपने जीवन की कुछ बातें छुपाकर रख सकते हैं, तो अच्छी बात है.

क्या यह सच है कि स्टार के जीवन का सच हम या दुनिया के लोग कभी नहीं जान पाते?यह स्टार पर निर्भर करता है. अगर कोई स्टार है, जो सब कुछ शेयर करता है, फिर नहीं. शायद हां, कभी नहीं जान पाते.

आपकी ऑन स्क्रीन केमिस्ट्री सलमान खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन के साथ जमती है. क्या पर्सनल लाइफ में भी आप ऐसे ही मेच्योर पुरुष को जगह देंगी?
देखते हैं. इतने मेच्योर... पता नहीं... हा-हा-हा. आपके इस सवाल ने मुझे लाजवाब कर दिया. बिल्कुल नहीं. मैं अपनी उम्र के किसी लडक़े को जगह दूंगी... हा-हा-हा. लेट्स सी... हा-हा-हा. मेरे ऑन स्क्रीन रोमांस का मेरे पर्सनल टेस्ट से कोई लेना-देना नहीं है... हा-हा-हा.

हो सकता है कि आपके डैड शत्रुघ्न सिन्हा की स्ट्रान्ग इमेज से आपके हमउम्र लडक़े आपके पास आने से डरते हों?
अभी उनको मौका ही कहां मिलता है. मैं बाहर नहीं जाती हूं, पार्टी नहीं करती हूं. मैं अपने दोस्तों के साथ रहती हूं. काम करती हूं. अभी तक ऐसा मौका किसी को मिला नहीं है. मगर ऐसा नहीं है कि मैं प्यार को अपने जीवन में आने से रोक रही हूं. हो जाए प्यार तो, ठीक है. प्यार जब होना होगा, अपने समय पर ही होगा.

मतलब अभी तक आपको प्यार हुआ ही नहीं है?
ऐसा नहीं है कि मुझे कभी प्यार नहीं हुआ. प्यार हुआ है, लेकिन अभी नहीं है.

शत्रुघ्न सिन्हा अभी अस्पताल में थे और आप लगातार शूटिंग कर रही थीं. आपके लिए यह बहुत मुश्किल वक्त रहा होगा?
जी थोड़ा-बहुत मुश्किल रहा. डैड हमेशा मेरी पहली प्राथमिकता रहते हैं. मैं हर दिन उनके साथ अस्पताल में रहती थी. या तो शूटिंग के पहले या शूटिंग पूरा करने के बाद. शूटिंग के बीच में भी समय मिल गया, तो उनके पास जाकर बैठती थी. अभी वो ठीक हैं.

बच्चन परिवार उनसे मिलने के लिए अस्पताल पहुंचा था. क्या अब दोनों परिवारों के बीच में सब अच्छा है?
जहां तक हमारी बात है, तो हां. हमारे संबंध हमेशा अच्छे रहे हैं. जया (बच्चन) आंटी हमेशा मुझसे अच्छी तरह पेश आई हैं. जब वे अस्पताल में आए थे, तो मैं वहां पर थी. वो लोग डैड से मिले. दोनों परिवारों के बीच सब अच्छा है.

अभिनय की तरह राजनीति भी आपके घर में रही है, तो उस ओर आपकी कभी दिलचस्पी नहीं हुई?
नहीं, सबका अपना-अपना इंट्रेस्ट होता है. मेरी रुचि राजनीति में नहीं है. मैं एक्टिंग में खुश हूं. मैं राजनैतिक मुद्दों के बारे में ज्यादा नहीं सोचती हूं. रोज की बातचीत में थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती रहती है. पापा बताते रहते हैं.


अपने डैड को आप पर्दे पर मिस करती हैं?
नहीं, क्योंकि बचपन में भी मैंने उनकी कम फिल्में ही देखी हैं. मैंने उन्हें रोज घर में पापा के रुप में देखा है. मैंने उन्हें कभी एक्टर की तौर पर नहीं देखा है. मैं घर में रोज उनसे बात करती हूं. ऐसी कमी महसूस नहीं होती. हां, उन्हें स्क्रीन पर देखते हैं, तो गर्व महसूस होता है, क्योंकि वो इतने अच्छे कलाकार हैं.

आपने कहा है कि आप इंटीमेट सीन नहीं करेंगी. मगर माना जाता है कि अगर अभिनेत्रियां ऐसे दायरे बनाती हैं, तो उनका करियर छोटा हो जाता है.
देखते हैं कि आगे जाकर क्या होता है. अभी मुझे इसकी परवाह नहीं है, क्योंकि मैं काफी फिल्में कर रही हूं, जिनमें इनकी जरुरत नहीं है. अगर इसकी वजह से मेरा करियर छोटा हो जाएगा, तो हो जाए. देखेंगे. (हा-हा-हा). हम क्या कर सकते हैं.

करीना कपूर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीइंग फैट इज नॉट सेक्सी. फैट इज आउट. उन्होंने कहा कि हर लडक़ी स्लिम फीगर चाहती है. आप क्या कहना चाहेंगी?
सबका अपना अलग-अलग टेस्ट होता है. इस तरह जनरलाइज नहीं करना चाहिए. काफी लोग हैं, जो ऐसे ही खुश हैं. 'फैट बिल्कुल सेक्सी नहीं है, हां, फिट जरुर सेक्सी हैÓ, उन्होंने ये कहा था. और वे बिल्कुल सही हैं. मैं मानती हूं कि सुंदरता देखने वाले की आंखों में होती है. अगर आप बोल रहे हैं कि आपको कोई सुंदर नहीं लगा, तो ठीक है. सबकी अपनी-अपनी राय होती है.

फराह खान आपको शाहरुख खान के साथ एक फिल्म में साइन करना चाहती हैं. क्या आपसे उन्होंने संपर्क किया है?
उन्होंने आपसे कहा है (हा-हा-हा). मैंने भी रिपोर्ट्स पढ़ी हैं. उन्होंने अभी तक मुझसे संपर्क नहीं किया है. जब तक फराह से आपकी या मेरी बात न हो, हमें कुछ नहीं कहना चाहिए. जोकर फिल्म में मैंने उनके साथ एक कोरियोग्राफर के तौर पर काम किया है और उनके निर्देशन में जरुर काम करना चाहूंगी. वह बहुत अच्छी निर्देशक हैं.

आपके भाई लव और कुश ने फिल्मों में करियर बनाने की कोशिश की, लेकिन आप उनसे आगे निकल गई हैं. वे इसे कैसे लेते हैं?
उन्हें अपनी बहन पर गर्व है. हमारे बीच ऐसी कोई बात नहीं है. डैड ने हमारी परवरिश एक समान की है. हमारे बीच कभी भेद-भाव नहीं किया उन्होंने. मुझे भी कहा गया था कि तुम जो भी करना चाहती हो, करो, हम तुम्हें सपोर्ट करेंगे.

आप अपने भाई की फिल्म में काम करने जा रही हैं. इसका स्पष्टीकरण तो दे सकती हैं, क्योंकि यह आपके घर की बात है?
हां, यह मेरे घर की बात है, लेकिन यह अभी बहुत दूर की बात है. अभी मैं काफी कमिटमेंट्स में बंधी हुई हूं. स्क्रिप्ट का सेशन अभी शुरु होगा. अगर ऐसा कोई मौका मिलेगा, तो मैं जरुर काम करना चाहूंगी.

अक्षय कुमार के साथ आप लगातार फिल्में कर रही हैं. कुछ लोगों का कहना है कि वे आपको अपनी फिल्मों के लिए रिकमेंड कर रहे हैं?
अगर आप एक एक्टर के साथ काम कर रहे हैं, तो लोग वह जोड़ी, केमिस्ट्री, काम करने का तरीका देखकर साइन करते हैं. हम कभी सेट पर देर से नहीं आते हैं. समय पर हमारा काम खत्म हो जाता है. निर्माता को कभी हमसे कोई दिक्कत नहीं होती है. ये सब बातें भी इंडस्ट्री में जाती हैं, इसलिए लोग आपको बार-बार साथ साइन करना चाहते हैं. मुझे नहीं पता कि अक्षय का मुझे रिकमेंड करने वाली बातें सच हैं या नहीं.

अभी आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं?
अभी अच्छा काम चल रहा है. इस साल मेरी वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई 2, लुटेरा, दो-तीन और प्रोजेक्ट्स हैं, जो अभी पाइप लाइन में हैं. अगले दो साल के लिए मैं सेट हूं. उसके आगे का अभी मैं नहीं सोच रही हूं. जितना काम है, उसे पहले खत्म करुंगी.

 साभार : FILMFARE

ब्लॉकबस्टर राइटर्स - साजिद-फरहाद

एक के बाद एक ब्लॉकबस्टर फिल्में लिख रही सगे भाइयों साजिद-फरहाद की जोड़ी से रघुवेन्द्र सिंह ने की विशेेष भेंट

हिंदी सिनेमा में लंबे समय के बाद लेखक की किसी जोड़ी ने तहलका मचाया है. उनकी लिखित फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ बिजनेस न करें, ऐसा असंभव है. गोलमाल रिटन्र्स, ऑल द बेस्ट, गोलमाल 3, रेडी, सिंघम, बोल बच्चन की कामयाबी की दास्तान बच्चा-बच्चा जानता है. जनाब! अब आलम यह है कि साजिद-फरहाद की जोड़ी को ब्लॉकबस्टर जोड़ी कहकर संबोधित किया जा रहा है. मगर इस मुकाम तक पहुंचने का सफर गैर फिल्मी पृष्ठभूमि के साजिद-फरहाद के लिए बिल्कुल आसान नहीं रहा है.  
साजिद-फरहाद की पैदाइश बांद्रा (मुंबई) में एक आगा खानी मुस्लिम परिवार में हुई. फरहाद से साजिद सात साल बड़े हैं. दोनों का फिल्म जगत से खून का कोई रिश्ता नहीं था. मगर हां, फिल्मों से एक गहरा रिश्ता बचपन में ही जरुर कायम हो गया था. पैसे इकट्ठा करके दोनों भाई बांद्रा के गेटी-गैलेक्सी थिएटर में अमिताभ बच्चन की फिल्में देखने जाया करते थे. लेकिन अचानक डैड की तबियत नासाज हुई और डॉक्टर की सलाह पर डैड की सेहत की बेहतरी के लिए उनका परिवार बैंगलोर शिफ्ट हो गया. बचपन में फरहाद का दिल गीत लेखन में लग चुका था और साजिद ने बैंगलोर में अपना रेस्टोरेंट खोल लिया. बकौल फरहाद, ''घर में किसी का जन्मदिन होता, तो मैं कुछ लिखकर सुना देता था. लोगों को मेरी लिखी चीजें पसंद आती थीं और सब मेरी हौसलाअफजाई करते थे.ÓÓ मुंबई से एमए की पढ़ाई करके बैंगलोर पहुंचे साजिद ने चुटकीले अंदाज में बताया, ''मेरा वजन 110 किग्रा ऐसे ही नहीं है. मैं लोगों को टेस्ट कर-करके खाने परोसता था (हा-हा-हा). सीरियसली कहूं तो आगा खानी मुसलमान एक बिजनेस कम्यूनिटी है. डैड ने बोला कि बिजनेस में लग जाओ, तो मैं लग गया.ÓÓ
1989 से 1999 तक साजिद-फरहाद बैंगलोर में रहे. दोनों भाइयों के पास छह सौ गीतों का बैंक तैयार था. उन्होंने मुंबई आकर फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया. रेस्टोरेंट की जिम्मेदारी उन्होंने अपने मैनेजर को सौंप दी. मगर जब उन्होंने फैमिली के बीच यह बात रखी, तो पूरा परिवार सूटकेस पैक करके मुंबई आने के लिए तैयार हो गया. ''फैमिली हमेशा हमारे साथ रही है.ÓÓ फरहाद ने अपनी किस्मत को शुक्रिया अदा करते हुए कहा. दोनों भाई सपरिवार बांद्रा के लकी होटल में आकर ठहरे. फिल्म इंडिया डायरेक्टरी खरीदी और निर्माता-निर्देशकों को फोन लगाना शुरु किया. उस समय उन्हें अहसास हुआ कि बहुत कठिन है डगर पनघट की. ''मगर परिवार की वजह से हमारा स्ट्रगल मजेदार रहा, हिम्मत मिलती रही. जब हम रिजेक्ट होने के बाद घर आते थे, तो परिवार के लोग बैठाकर बिरयानी और मटन खिलाते थे कि अगले दिन के लिए के तैयार हो जाओ.ÓÓ साजिद ने बताया.
दोनों भाई बेहद खुशकिस्मत थे, तभी तो इनकी मुलाकात सलमान खान से हो गई. फरहाद ने जीवन परिवर्तित करने वाले उस पल के बारे में बताया, ''ठोकर खाते-खाते एक दिन हम लोग कमालिस्तान स्टूडियो पहुंचे. हमने सलमान खान के ड्राइवर को पटाया और उनके पास पहुंच गए. उन्होंने देखते ही पूछा कि तुम दोनों भाई हो? साजिद ने कहा, 'हम भाई हैं और हमने अलग-अलग अपने मां-बाप से कंफर्म भी किया है.Ó यह सुनकर सलमान हंस पड़े.ÓÓ बात को साजिद ने आगे बढ़ाया, ''उन्होंने बोला कि पांच मिनट में फटाफट तीन-चार नगमे सुना दो. अगर मैं उठकर चला गया, तो समझ लेना कि मुझे पसंद नहीं आया. अपमानित महसूस मत करना.ÓÓ हर दिल जो प्यार करेगा फिल्म के सेट पर साजिद-फरहाद ने ड्रम बजाकर गीत सुनाना शुरु किया, तो मजलिस लग गई. दोनों डेढ़ घंटे तक लगातार गाते-बजाते रहे. उन्होंने 18 गाने सलमान को सुनाए. ''उन्होंने चार गाने ले लिए. मुन्ना मोबाइल... टपोरी गाना उन्होंने हम किसी से कम नहीं फिल्म में डलवाया, जिसे संजय दत्त और ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया.ÓÓ फरहाद ने बताया. 


अब साजिद-फरहाद इंडस्ट्री का हिस्सा थे. डेविड धवन ने इनसे चोर मचाए शोर में कुछ गाने लिखवाए. मगर जिस गाने से इन्हें पहचान मिली, वह मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म का टाइटल सॉन्ग एम बोले तो मुन्नाभाई... था. फरहाद ने बताया, ''2005 तक हमारा स्ट्रगल चलता रहा. अनु मलिक, जिनके साथ चोर मचाए शोर में हम काम कर चुके थे, ने एम बोले तो... का सिचुएशन दिया.ÓÓ यह गाना सुनने के बाद रामगोपाल वर्मा ने इन्हें बुलावा भेजा. दोनों भाई उनसे मिलने पहुंचे, तो वहां से इनकी एक अलग यात्रा शुरु हो गई. साजिद बताते हैं, ''उन्होंने कहा कि यार, तुम लोगों ने एक गाने में फिल्म की पूरी कहानी लिख दी. तुम लोग कहानी लिख सकते हो. कहानी और स्क्रीनप्ले पर फोकस करो. उन्होंने अपनी फिल्म शिवा का स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखने के लिए दे दिया.ÓÓ अब साजिद-फरहाद ने गीतों की बजाय फिल्म लेखन में आगे बढऩे का निर्णय किया. 
रोहित शेट्टी की फिल्म गोलमाल आ चुकी थी. दोनों भाइयों ने गोलमाल 2 का कॉन्सेप्ट लिखा और अष्टविनायक को सुनाने पहुंच गए. रोहित शेट्टी ने उन्हें गौर से सुना. उन्हें उनका वह कॉन्सेप्ट जमा नहीं, मगर शायद उन्होंने उनकी प्रतिभा पहचान ली थी. संडे फिल्म में रोहित और साजिद-फरहाद पहली बार एकजुट हुए. वह फिल्म नहीं चली, लेकिन उसके बाद आई इस टीम की फिल्मों गोलमाल रिटन्र्स, ऑल द बेस्ट, गोलमाल 3, सिंघम और बोल बच्चन ने बॉक्स-ऑफिस पर हंगामा मचा दिया.  ''अब रोहित हमारे इंजन हैं और हम उनकी बोगियां.ÓÓ रोहित शेट्टी की अगली फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस लिख रही इस जोड़ी ने ठहाका लगाते हुए कहा.
साजिद-फरहाद की सफलता का अनुपात काबिले-तारीफ है. शिवा और संडे को छोड़ दिया जाए, तो डबल धमाल सहित इनकी सभी फिल्मों ने निर्माताओं की झोली पैसों से भरी हैं. यह जोड़ी सक्सेजफुल फैमिली एंटरटेनर लिखने के लिए जानी जाती है. इसका राज साजिद बताते हैं, ''आप इतिहास देख लो, ब्लॉकबस्टर फिल्में हमेशा फैमिली एंटरटेनर रही हैं. हम फिल्म एक फैमिली के लिहाज से लिखते हैं. इमोशन तो यूनिवर्सल होते हैं. अगर हमें थोड़ा भी वल्गर कुछ दिखता है, तो हम उसे हटा देते हैं. वल्गर जोक से हंसाना बहुत आसान है, लेकिन उसकी लाइफ नहीं होती है.ÓÓ साजिद-फरहाद के किरदारों की एक खास लिंगो होती है. फरहाद जानकारी देते हैं, ''संवाद लेखन में कैरेक्टराइजेशन सबसे महत्वपूर्ण होता है. जैसे गोलमाल 3 में तय हुआ था कि श्रेयस हकलाते हैं, तुषार गूंगे हैं, करीना गालियां देंगी, अजय उंगली तोड़ेंगे. कैरेक्टराइजेशन तय होने के बाद डायलॉग लिखना आसान हो जाता है.ÓÓ
मनमोहन देसाई की फिल्मों को साजिद-फरहाद अपनी पाठशाला मानते हैं. अपने लेखन में वे उनका प्रभाव स्वीकार करते हैं. फरहाद के मुताबिक, ''मनमोहन देसाई एंटरटेनमेंट के बाप थे. हम उनसे इन्फ्लूएंस हैं. अपनी फिल्म में वे हिंदू-मुस्लिम का एंगल रखते थे, जो हिट था. हाउसफुल 2 और बोल बच्चन लिखते समय हमने इस बात का ध्यान रखा. वह चीज वर्क भी हुई. कृष्णा फिल्म में बहुत कैजुअली बोलता है कि रमजान में राम है और दीवाली में अली है.ÓÓ छोटे भाई की बात में साजिद जोड़ते हैं, ''अमर अकबर एंथोनी में एक सीन है, जिसमें एक ही बोतल से तीनों नायकों को खून दिया जाता है. आजकल के इंटेलेक्चुअल लोग बोलते हैं न कि वह गलत है. हां, टेक्नीकली वह गलत है, लेकिन उस सीन पर थिएटर में तालियां बजी थीं. राउड़ी राठौड़ कुछ समय बाद आपको याद न रहे, लेकिन उसने 135 करोड़ रुपए का बिजनेस किया है, आपको उसे सलाम करना पड़ेगा. अमर अकबर एंथोनी क्लासिक है, आप उसे स्वीकार करो. आपको यह समझना होगा कि हम डॉक्यूमेंट्री फिल्में नहीं बना रहे हैं. हमारी फिल्में काल्पनिक होती हैं और हम एंटरटेनमेंट के लिए फिल्म देखने जाते हैं.

कादर खान की लेखनी को साजिद-फरहाद बहुत पसंद करते हैं. साजिद बेझिझक बताते हैं कि वे उन्हीं का अनुसरण करते हैं. ''कादर खान कमर्शियल राइटिंग करते थे. वो मास्टर थे. वो बड़ी-बड़ी बात भी दो लाइन में समझा देते थे. मुकद्दर का सिकंदर में वो बोलते हैं कि मौत से किसकी रिश्तेदारी, आज मेरी तो कल तेरी बारी. हम लोगों ने उन्हीं से प्रेरित होकर बोल बच्चन में अभिषेक बच्चन के किरदार को जस्टिफाय किया कि वह झूठ क्यों बोलता है. असरानी को हमने एक लाइन दी कि दुनिया में मीडिल क्लास आदमी का सबसे भारी बोझ उसकी खाली जेब है. इसी लाइन के ऊपर सारी पिक्चर है.ÓÓ साजिद की बात पर रजामंदी जाहिर करते हुए फरहाद कादर खान को सलाम करते हैं.
साजिद-फरहाद आजकल हिम्मतवाला फिल्म का रिमेक लिख रहे हैं, जिसके संवाद उनके गुरु कादर खान ने लिखे थे. साजिद खान निर्देशित इस फिल्म में अजय देवगन हीरो होंगे. गौरतलब है कि इसके पहले यह जोड़ी बोल बच्चन, सिंघम और रेडी जैसी ब्लॉकबस्टर रिमेक फिल्में लिख चुकी है. हिम्मतवाला के अतिरिक्त साजिद-फरहाद आजकल अक्षय कुमार के बैनर के लिए एक मलयालम फिल्म का रिमेक, जिसका निर्देशन एंथोनी डिसूजा तथा संजय दत्त के लिए एक रिमेक फिल्म सामी लिख रहे हैं, जिसका निर्देशन साउथ के स्थापित निर्देशक के एस रविकुमार कर रहे हैं. इस सिलसिले में साजिद का कहना है कि रिमेक फिल्में ही आजकल 100 करोड़ का बिजनेस कर रही हैं. मगर इस तरह की फिल्म लिखना चुनौती होती है. ''लोग कहते हैं कि रिमेक है, कुछ भी लिख दो, लेकिन रिमेक किसी हिट फिल्म की ही बनती है और आपके सामने उससे आगे निकलने की चुनौती रहती है. रिमेक लिखना टफ है.ÓÓ फरहाद ने बताया कि वे ओरिजिनल फिल्मों से महत्वपूर्ण सीन लेते हैं और फिर उसे हिंदी फिल्मों के दर्शकों के हिसाब से तैयार कथा-पटकथा में पिरोकर एक नई फिल्म लिख डालते हैं.
साजिद-फरहाद एक से भले दो वाली बात में यकीन करते हैं. वे स्वयं को एक-दूसरे का सच्चा आलोचक मानते हैं. ''अगर फरहाद कोई चीज लिखता है, तो मैं उसे ईमानदारी से बता देता हूं कि वह वर्क कर रही है या नहीं और मैं कोई चीज लिखता हूं, तो वह ईमानदारी से मुझे बता देता है.ÓÓ साजिद ने बताया. अगर आप दोनों भाइयों से मिलें, तो फरहाद बेहद धीर-गंभीर और साजिद मजाकिया स्वभाव के हैं. ऐसे में अनुमान लगाना आसान है कि हंसाने वाले संवाद कौन लिखता है. मगर हमारे अनुमान को साजिद गलत साबित कर देते हैं, ''मैं ज्यादा जोवियल हूं, लेकिन फरहाद जब लिखता और नैरेशन देता है, तो उसका ह्यूमर कमाल का होता है.ÓÓ लेखकों की स्थिति हमेशा से इंडस्ट्री में बेचारी मानी जाती है. इस बाबत फरहाद कहते हैं, ''हमारा वक्त अच्छा चल रहा है इसलिए हमें पैसा, क्रेडिट और सम्मान मिल रहा है. आज हमें शिकायत नहीं है, लेकिन पांच साल पहले तक हमें शिकायत थी. आम तौर पर लेखकों को उनका हक नहीं दिया जाता है.ÓÓ

आम तौर पर रोमांटिक कॉमेडी या एक्शन फिल्में लिखने वाले साजिद-फरहाद गंभीर फिल्मों के पक्ष में नहीं हैं. फरहाद कहते हैं, ''हमारे खून में नहीं है कि हम गैंगस ऑफ वासेपुर जैसी फिल्म लिखें. हमको वैसा सिनेमा समझ में नहीं आता. गोविंदा की हमने एक भी फिल्म मिस नहीं की है.ÓÓ हामी भरते हुए साजिद कहते हैं, ''किसी को रुलाना आसान है, मगर हंसाना बहुत मुश्किल है.ÓÓ लक्ष्य के बारे में पूछने पर इस जोड़ी ने एक सुर में कहा, ''हाउसफुल 2 में हमने मिथुन चक्रवर्ती को एक डायलॉग दिया था कि इतना आगे बढ़ो कि पैर जमीन पर रहे, लेकिन छूने का आसमान है. वही हमारी फिलॉसफी है.ÓÓ साजिद-फरहाद अपने गीतों की पोटली लेकर लगभग बारह साल पहले मुंबई लौटे थे. लगे रहो मुन्नाभाई का हो ही गया... और हाल में बोल बच्चन फिल्म का टाइटल सॉन्ग भी इन्होंने लिखा, जो बेहद पसंद किया गया, मगर उनकी उस पोटली का अब क्या होगा? जवाब में साजिद ने अपने चुटकीले अंदाज में कहा, ''वह हमारा पहला प्यार था और ये एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है. फिलहाल हम इसे एंजॉय कर रहे हैं.

                                                                     चेन्नई एक्सप्रेस
चेन्नई एक्सप्रेस रोहित शेट्टी की बेस्ट फिल्म होगी. यह हमारी सबसे बड़ी फिल्म है. इसकी स्क्रिप्ट पर काम करने के लिए हमने साउथ से कई जानकारों को बुलाया है. इसमें शाहरुख खान साउथ की सात-आठ जगहों पर ट्रैवल करेंगे और कई भाषाएं बोलेंगे. यह हमारी फेवरेट फिल्म है. इसकी कहानी ओरिजिनल है. इसकी शूटिंग सितंबर के अंत में शुरू होगी. 

धुन की दीवानी.... स्नेहा खानवलकर

स्नेहा खानवलकर फिल्म संगीत में एक क्रांति बनकर आई हैं. रघुवेन्द्र सिंह इस होनहार संगीतकार से मिल रहे हैं

स्नेहा खानवलकर हरदम चौंकाती हैं. चाहे उनका अतरंगी संगीत हो या फिर निजी जीवन में वे खुद क्यों न हों. पहली बार मैंने उन्हें गैंगस ऑफ वासेपुर 1 फिल्म के एक इवेंट में देखा था. अनुराग कश्यप अपनी फिल्म की टीम के साथ मंच पर इंटरव्यूज देने में व्यस्त थे और यह लडक़ी मीडिया से भरे खचाखच हॉल में स्टेज पर बेपरवाह अंदाज में लेट गई. अब आज का परिदृश्य जान लीजिए. इनके सिर पर शॉवर कैप है और जींस-कमीज के ऊपर इन्होंने काले रंग की चादर जैसा कुछ ओढ़ रखा है. स्नेहा का यह रुप देखकर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाया. स्नेहा ने भी खिलखिलाते हुए कहा, ''मैं बैटमैन लग रही हूं ना!ÓÓ अपनी हंसी पर नियंत्रण करके उन्होंने बताया कि वे ब्यूटी पार्लर में हेयर स्पा करवा रही थीं, मुलाकात का समय हो गया था, इसलिए वे बीच में उठकर आ गईं. 

बेपरवाह स्वभाव की स्नेहा इंदौर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती हैं. आज वे सपनों सी लगने वाली फिल्मों की दुनिया का हिस्सा हैं. मगर यदि आप उन्हें गौर से देखें, तो उनमें आपको उपरोक्त दोनों घरानों के लक्षण बमुश्किल मिलेंगे. आखिर स्नेहा किस दुनिया की हैं? जवाब में वह छत की ओर देखकर कुछ ढूंढने के अंदाज में कहती हैं, ''मैं इंदौर और मुंबई, दोनों शहरों में आउट साइडर महसूस करती हूं. अपने अजीबो-गरीब स्वभाव की वजह से मैं इंदौर में आउट कास्ट महसूस करती थी. जब मुंबई की दुनिया देखी, तो पता चला कि मैं यहां भी आउट साइडर हूं. शायद इसीलिए मैं शहर-शहर घूम कर खुद को ढूंढ रही हूं.ÓÓ
छोटे शहरों में अगर किसी लडक़ी के अधिकतर दोस्त लडक़े हैं, तो उसे बिगड़ा मान लिया जाता है. स्नेहा इसी मापदंड पर बचपन में ही बिगड़ैल घोषित कर दी गई थीं. ''जब मैं ग्रो कर रही थी, तो मैं लडक़ों की तरह दिखती थी. सिकड़ी सी थी, दांत में ब्रेसेज लगे थे, बुरी दिखती थी. शायद इसीलिए लडक़ों से मेरी ज्यादा पटती थी. मान लिया गया था कि मैं हाथ से निकल चुकी हूं.ÓÓ स्नेहा के पिता इंजीनियर हैं. उनकी रिश्तेदारी में भी अधिकतर लोग इंजीनियर और डॉक्टर हैं. स्नेहा ने बताया,''अगर आपके घर में दो बच्चे हैं, तो तय हो जाता था कि एक डॉक्टर और एक इंजीनियर बनेगा. मुझे यह आयडिया अच्छा नहीं लगता था. मेरा छोटा भाई संकेत इंजीनियर बन चुका है. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करुं. गनीमत थी कि मेरी मम्मी के मायके यानी मेरे ननिहाल का संबंध गवालियर घराने से था. मैं गा लेती थी, तो मुझे गाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था.ÓÓ स्नेहा के गायन की शुरुआत स्कूल में देशभक्ति के गानों से हुई. ''स्कूल में फिल्मी गीत गाने अलाउ नहीं थे. हम देश भक्ति के गाने गाते थे. एक बार स्कूल में गायन प्रतियोगिता हुई थी. पांच-छह लोगों ने ऐ मेरे वतन के लोगों... गाना गाया था, लेकिन मैं जीती थी, क्योंकि मैं ही ऊंचे सुर में यह गीत गा सकी थी.ÓÓ स्नेहा ने गायन सुन-सुनकर सीखा है. मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि स्नेहा को सिंगर नहीं बनना था. दरअसल, आप उन पर किसी चीज को करने का दबाव डालें, तो वो नहीं करेंगी.
स्नेहा की दसवीं की पढ़ाई के बाद उनके मम्मी-डैडी मुंबई शिफ्ट हो गए, ताकि दोनों बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सके. दोनों खुल और खिल सकें. स्नेहा ने यहां मीठीबाई कॉलेज में एडमिशन लिया. ''कॉलेज के लडक़े-लड़कियां क्रेजी थे. पढ़ाई, फैमिली, लुक, ह्यूमर को लेकर उनके कॉन्सेप्ट्स अलग थे. लडक़े सिगरेट पीते थे, बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड का ट्रेंड था. किसी को परवाह नहीं थी कि आप कितना माक्र्स ला रहे हो. ऐसा लग रहा था कि मैं न्यूयॉर्क में आ गई हूं.ÓÓ इंदौर में अपने आप को तेज-तर्रार और होशियार समझने वाली स्नेहा मुंबई की इस भीड़ में अकेली और सबके हास्य का विषय बन गई. ''मैं अटपटी जींस पहनती थी. मुझे अंग्रेजी के कई शब्द नहीं आते थे. सब मेरा मजाक उड़ाते थे. मेरा तो जैसे शॉर्ट सर्किट हो गया था.ÓÓ स्नेहा ने अपने अकेलेपन से उबरने का एक उपाय ढूंढ निकाला. उन्होंने इंटर कॉलेज कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेना शुरु कर दिया. वे डीडी मेट्रो के प्रोग्राम सुपरस्टार में भी गई थीं.
संगीत में करियर बनाने का फैसला करने से पहले स्नेहा ने कई जगह अपने हाथ आजमाए. बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एनीमेशन का कोर्स किया. केन घोष के ऑफिस में उन्होंने इंटर्नशिप की, लेकिन कुछ ही समय बाद उनका मन वहां से उब गया. फिर उन्होंने इश्क विश्क फिल्म में सेट डिजायनर उमंग कुमार को ज्वाइन किया. मगर उनका मन वहां भी नहीं लगा. स्नेहा ने मुंबई में संगीतकार उत्तम सिंह के पिता और फिर भवदीप जयपुरवाले सहित कई लोगों से संगीत का प्रशिक्षण लेने का प्रयास किया, मगर सबका सानिध्य उन्हें कुछ ही समय बाद उबाऊ लगने लगता था और वे आगे बढ़ जाती थीं. शायद यही कारण है कि गुरु का जिक्र आने पर वह चुप्पी साध लेती हैं.
एक वक्त के बाद स्नेहा ने संगीत का प्रशिक्षण लेना बंद कर दिया और इंडस्ट्री में सबको फोन लगाना आरंभ कर दिया. ''मैंने सबसे पहले तिगमांशु धूलिया को फोन लगाया. उनकी हासिल रिलीज हुई थी. मैंने उनका एक इंटरव्यू पढ़ा और उनके विचार मुझे अच्छे लगे. तिगमांशु के जरिए मैं पियूष मिश्रा से मिली. पियूष भाई ने मुझे अनुराग कश्यप से मिलवाया.ÓÓ अनुराग से अपनी पहली मुलाकात स्नेहा याद करती हैं, ''स्पेक्ट्रल हारमनी स्टूडियो में ब्लैक फ्राइडे की रिकॉर्डिंग हो रही थी. वहां अनुराग मुझे मिले. उन्होंने मेरा गाना सुना, उन्हें बहुत पसंद आया. उन्होंने कहा कि मेरी फिल्में तो रिलीज होती नहीं हैं. तुम जाओ और रामगोपाल वर्मा से मिलो.ÓÓ
रामगोपाल वर्मा की फिल्म गो से पहले स्नेहा कल फिल्म में एक गीत दे चुकी थीं. गो में काम करने के बाद स्नेहा को महसूस हुआ कि वे पूरी फिल्म का काम फिलहाल नहीं संभाल सकतीं. उन्होंने ब्रेक लिया और फिर प्रयास करना शुरु किया. ''मैंने इंदौर से दिबाकर बनर्जी को फोन किया. उन्होंने मेरा इंटरव्यू लिया और काम की सीडी मंगवाई.ÓÓ और फिर दिबाकर के बुलावे पर स्नेहा मुंबई लौटीं. दिबाकर ने उन्हें एक एड में म्यूजिक देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और उनसे कहा, ''मैं फिल्म में म्यूजिक देना चाहती हूं.ÓÓ दिबाकर ने स्नेहा को दो लाइनें दीं और उनकी धुन बनाने के लिए कहा. स्नेहा उस परीक्षा में उत्तीर्ण हुईं और उन्हें दिबाकर बनर्जी की फिल्म ओए लकी लकी ओए मिल गई, जिससे उन्हें पहचान मिली. ''इस फिल्म पर काम करते हुए मैंने टेक्नीकली म्यूजिक सीखा.ÓÓ स्नेहा ने ईमानदारी से बताया.
स्नेहा का संगीत बनाने का अपना अनूठा स्टाइल है. वे मुंबई के एसी स्टूडियो में बैठकर धुनें बनाने की बजाय शहर-शहर और गलियों-गलियों में घूमकर नए प्रकार की धुनें ईजाद करना पसंद करती हैं. यही वजह है कि उनकी हर फिल्म में कुछ नई धुनें सुनने को मिलती हैं. इसकी शुरुआत ओए लकी लकी ओए फिल्म से हुई थी. स्नेहा बताती हैं, ''मुंबई में रिचर्स के दौरान मुझे लगा कि काम चलाऊ काम हो रहा है. मैं कुछ नया करना चाह रही थी. दूसरा कारण यह था कि मैं अनुराग, पियूष भाई, स्वानंद किरकिरे से हमेशा दिलचस्प बातें सुना करती थी. मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी अपने अनुभव इकट्ठे करुं. वरना ऐसे ही सुने-सुनाए अनुभव ही मेरे पास रह जाएंगे. ओए लकी... के समय मैंने दिबाकर से कहा कि मैं उस जेल में चली जाऊं, जिसमें बंटी है. वे चौंक गए. फिर मैंने पंजाब जाने के लिए कहा. मैं लकी रही कि मुझे दिबाकर जैसे निर्देशक मिले, जिन्होंने मुझे आजादी दी. मुझे सुरक्षा की परवाह नहीं होती थी. मेरे कुछ लौंडे दोस्त थे. हम सब घूमते थे.ÓÓ  

ट्रैवल के दौरान जब स्नेहा ने गांवों में किसी बुजुर्ग या ट्रेन में गाने वाली किसी लडक़ी की आवाज सुनी, तो उनके मन में यह सवाल कौंधा कि इनका इस्तेमाल फिल्मों में क्यों नहीं हो सकता? क्यों रियाज करने वाली और एक दम सटीक आवाज ही पाश्र्व गायन में इस्तेमाल होती है? ''इंडस्ट्री के लोग कहते थे कि परफेक्ट सिंगर्स चाहिए. मैं गांव में गई, तो एक बूढ़े आदमी को गाते सुना. मैंने सोचा कि ये तो अच्छा गा रहा है. सच कहूं तो अपने गुरुओं की सिखाई बात का उल्टा करने में मुझे बहुत फायदा हुआ है.ÓÓ हमेशा कुछ नया करने के लिए प्रयासरत स्नेहा की लोकप्रिय गायकों के साथ काम करने की चाह नहीं है. हालांकि जब वे मुंबई आई थीं, तो उन्होंने पसंदीदा गायकों के साथ काम करने की परंपरा का अनुसरण किया था. स्नेहा ने बताया, ''एक गाना गवाने के लिए लता मंगेशकर के घर गई. वो मुझसे मिली नहीं, लेकिन उन्होंने ऑटोग्राफ देकर मुझे लौटा दिया. मैं घर वापस लौटी और पापा को बताया. उन्होंने कहा कि वो लता मंगेशकर है यार, वो तो हुरर भी कर देंगी, तो चलेगा. फिर मैंने कुछ अपना करने की ठानी.ÓÓ
ओए लकी लकी ओए के बाद स्नेहा ने लव सेक्स और धोखा (एलएसडी) और गैंगस ऑफ वासेपुर 1 और 2 में संगीत दिया. उनके संगीत के कच्चेपन ने सबका ध्यान खींचा और आज उनकी प्रतिभा को इंडस्ट्री सलाम करती है. जद्दन बाई, सरस्वती देवी और उषा खन्ना के बाद स्नेहा ने हिंदी सिनेमा की चौथी महिला संगीतकार के रुप में खुद को स्थापित किया है. अपने प्रयोगों के जरिए वे संगीत को एक्सप्लोर कर रही हैं. स्नेहा जब इंडस्ट्री में आई थीं, तब उन्हें दुनिया भर के संगीत के बारे में जानकारी नहीं थी, मगर शुक्र है उनके जीवन में आने वाले बॉयफ्रेंड्स का, जिन्होंने उन्हें अनजाने में ही बारी-बारी से संगीत की नई दुनिया से उनका परिचय कराया. स्नेहा मजे से बताती हैं, ''मेरे चार बॉयफ्रेंड्स हुए और हर एक से मुझे संगीत का एक अलग जॉनर सीखने को मिला. पहला बॉयफ्रेंड ब्लूज सुनता था, तो पहली बार मुझे स्टिंग और नोरा जोन्स थोक में सुनने को मिला. दूसरा बॉयफ्रेंड हिप-हॉप म्यूजिक में था. तीसरा बॉयफ्रेंड पिंक फ्लाइड्स, ट्रिपी और रॉक सुनता था. चौथा बॉयफ्रेंड वल्र्ड म्यूजिक में था. मैंने यह सब म्यूजिक सुन-सुनकर सीखा है.ÓÓ
स्नेहा को बातें करने में मजा आता है. अगर आपने एमटीवी का साउंड ट्रिपिंग प्रोग्राम देखा है, तो स्नेहा कुछ उसी अंदाज में संगीत की खोज में निकलती हैं. देश-विदेश से उन्हें म्यूजिक के इंस्ट्रूमेंट इकट्ठा करने का शौक है. उन्होंने यारी रोड में अपने बंगले में एक रुम में स्टूडियो बनाया है, जिसमें आपको तमाम किस्म के वाद्य यंत्र मिलेंगे. पिपहरी जैसे खिलौने से लेकर तानपुरा तक उनके कलेक्शन में है. स्नेहा की राय में एक टूटा हुआ तारा भी अच्छा संगीत देता है. स्नेहा अपने उस वाद्य यंत्र का विशेष रुप से उल्लेख करती हैं, जिसकी वजह से कई संगीतकार उनसे ईष्र्या करते हैं. ''मेरे पास सिक्सटीज का इलेक्टोन है, जिसे हर कोई मुझसे खरीदना चाहता है.ÓÓ फिलहाल, स्नेहा ने कोई प्रोजेक्ट हाथ में नहीं लिया है. गैंगस ऑफ वासेपुर 2 का काम उन्होंने अभी खत्म किया है और अब वे एक बार फिर अपना बैग पैक करके संगीत की खोज में दुनिया के किसी हिस्से में निकलने की तैयारी कर रही हैं.

साभार: FILMFARE

भोजपुरी फिल्मों ने नया जीवन दिया- मोनालिसा

 एक लडक़ी जब कुछ हासिल करने के लिए निकलती है, तो उसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. रघुवेन्द्र सिंह से एक मुलाकात में यह बता रही हैं भोजपुरी सिनेमा की लोकप्रिय अभिनेत्री मोनालिसा
 
मोनालिसा इस बात से बेखबर थीं कि जब वह बिग बॉस रियलिटी शो के मंच से दिनेश लाल यादव 'निरहुआÓ को विदाई देकर लौटेंगी, तो उन्हें एक नया नाम मिल जाएगा. वो जबसे इस शो के मंच से लौटी हैं, तबसे लोग उन्हें मोनालिसवा पुकारने लगे हैं. यह नाम भोजपुरी फिल्मों की इस लोकप्रिय अभिनेत्री को सलमान खान से मिला है. ''सलमान मेरे फेवरेट हीरो हैं. जबसे मुझे बिग बॉस शो से फोन आया था, तबसे मैं सोई नहीं थी. मैं सलमान से पहली बार मिलने वाली थी और जब स्टेज पर मैं उनसे मिली, तो मेरी बोलती ही बंद हो गई थी.ÓÓ मोनालिसा उत्साह के संग आगे बताती हैं, ''पहले मुझे बिग बॉस के घर के अंदर जाने के लिए बुलाया गया था, लेकिन बाद में आयोजकों ने बताया कि उन्होंने दिनेश जी को कास्ट कर लिया है. दिनेश जी बड़े स्टार हैं न!ÓÓ 
मोनालिसा को इस शो में न जाने का भले ही दुख है, लेकिन उन्हें इस बात का गर्व है कि नेशनल टीवी के एक चर्चित रियलिटी शो के मंच पर भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करने के लिए उन्हें चुना गया. ''यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है.ÓÓ गर्व के साथ वह कहती हैं. यह खूबसूरत और चुलबुली लडक़ी हिंदुस्तान के उस शहर से आती है, जो अपनी मिठास के लिए जाना जाता है. मोनालिसा का असली नाम अंतरा बिस्वास है. वह कोलकाता में पली-बढ़ी हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि किस्मत उन्हें पश्चिम से पूरब खींचकर ले गई. अंतरा एक मध्यमवर्गीय परिवार की होनहार लडक़ी हैं. उन्होंने संस्कृत में ऑनर्स किया है. लेकिन उनका बचपन का सपना था बड़े पर्दे पर खुद को देखना, तो उसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी और परिवार की इच्छाओं के विरुद्व जाने का साहसिक निर्णय लिया. वह खुशी के साथ बताती हैं, ''मैं कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी करती थी. मेरा परिवार आर्थिक रुप से समृद्ध नहीं था, लेकिन मैं अपनी शॉपिंग के लिए नौकरी करती थी. मैं ताज होटल में होस्टेस थी. मैंने दूसरी नौकरी ओबराय ग्रैंड में की. सोलह हजार रुपए मेरी सैलरी थी. तब मैं 18 साल की थी. वहां बंगाल फिल्म इंडस्ट्री और फैशन वल्र्ड के बहुत लोग आते थे. वो कहते थे कि आप बहुत खूबसूरत हैं. आपको फिल्मों में ट्राय करना चाहिए,ÓÓ
सबके उत्साहवद्र्धन के बाद अंतरा ने कमर कस ली. उन्होंने पोर्टफोलियो बनवाया और कोलकाता में फिल्मों में अपने लिए जगह तलाशने लगीं. ''मैंने पहली बार स्वप्न सहा की फिल्म स्नेहर प्रोतिदान (2003) के लिए कैमरा फेस किया. उसमें मेरा सिर्फ एक डायलॉग था. आज मैं वह फिल्म देखती हूं, तो मुझे खुद को देखकर हंसी आती है.ÓÓ वह खिलखिलाते हुए कहती हैं. कुछ बंगाली सीरियल और फिल्मों में छोटे-मोटे काम करने के बाद अंतरा ने 2004 में मुंबई का रुख किया. उसका कारण वह बताती हैं, ''बंगाली फिल्मों में उतना पैसा नहीं है और हर किसी का सपना हिंदी फिल्मों में पहचान बनाना होता है.ÓÓ बचपन से ही डांस की विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षित अंतरा ने मुंबई आने के बाद गणेश आचार्य की डांस एकेडमी जॉइन की. इस खूबसूरत शहर के शुरुआती दिनों के बारे में अंतरा बताती हैं, ''मैंने मुंबई आने के बाद टी-सीरीज के कुछ रीमिक्स म्यूजिक वीडियोज जैसे जिया बेकरार है, जरा-जरा बहकता है, रेशम का रुमाल में काम किया. उसके बाद मुझे मेरी पहली हिंदी फिल्म मिली तौबा-तौबा.ÓÓ
तौबा-तौबा फिल्म के लिए अंतरा ने अपना नाम बदलकर मोनालिसा रख लिया. इस फिल्म में काम करने के बाद मोनालिसा के पास बी ग्रेड की फिल्मों की लाइन लग गई और वे उन्हें स्वीकार भी करती गईं. जलवा-द फन इन लव, बॉबी, लंदन कॉलिंग जैसी सात-आठ फिल्मों में उन्होंने काम किया. उनके इस फैसले से उनका परिवार नाखुश था, लेकिन मोनालिसा ने इसकी परवाह नहीं की. ''अगर मैं यह सोचकर बैठती कि मुझे अच्छा काम मिलेगा, तभी करुंगी, तो मेरा घर कैसे चलता? मैंने बहुत सी लड़कियों को देखा है, जो कोलकाता से मुंबई आईं और अच्छे काम की तलाश में घर में बैठी रहीं और फिर एक दिन कोलकाता लौट गईं. मैं नहीं चाहती थी कि वैसा ही मेरे साथ भी हो.ÓÓ इन फिल्मों में काम करके मोनालिसा भी दिल से खुश नहीं थीं. इसका अनुमान उनकी इस बात से लगाया जा सकता है. '' हो सकता है कि वह मेरा गलत कदम था. घर के लोग फोन करके पूछते थे कि तुम इस स्टार के साथ काम क्यों नहीं कर रही हो या उसके साथ काम नहीं कर रही हो, तो मैं जवाब नहीं दे पाती थी. पैरेंट्स कहते थे कि अच्छा काम करो. लेकिन मेरे लिए काम ज्यादा मायने रखता था. मुझे जो भी पहचान मिली थी, मैं उससे खुश थी.ÓÓ मोनालिसा ने अजय देवगन, प्रियंका चोपड़ा और सुनील शेट्टी अभिनीत फिल्म ब्लैकमेल (2005) में एक आइटम सॉन्ग इमली इमली यह सोचकर किया था कि उनके करियर को फायदा होगा, मगर वह फिल्म ही नहीं चली. 

वर्ष 2007 मोनालिसा के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आया. उन्हें भोजपुरी की पहली फिल्म कहां जइबा राजा नजरिया लड़ाइके मिली. इसके निर्माता सुनील बुबना थे और हीरो थे दिनेश लाल यादव निरहुआ. ''सही मायने में मेरे एक्टिंग करियर की शुरुआत भोजपुरी फिल्मों से हुई. भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री ने मेरे टैलेंट का अच्छी तरह इस्तेमाल किया. मुझे पहचान दी, लोकप्रियता दी और सम्मान दिलाया. अच्छी बात यह हुई कि मेरी पहली भोजपुरी फिल्म बड़े बैनर की थी और मेरे हीरो दिनेश जी थे. इसकी रिलीज के बाद मुझे कभी मुडक़र देखने की जरुरत नहीं हुई. मैंने आज तक मनोज तिवारी, रवि किशन, दिनेश लाल यादव, पवन सिंह, खेसालीलाल के साथ काम किया है, जो कि इस इंडस्ट्री के सुपरस्टार्स हैं.ÓÓ  मोनालिसा खुशी से बताती हैं. भोजपुरी फिल्मों में मोनालिसा की डिमांड का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज पांच वर्ष में उन्होंने पचास से अधिक फिल्मों में काम कर लिया है. ''मैं कभी-कभी सोचती हूं कि अगर मुझे हिंदी फिल्मों में ऐसा ब्रेक मिला होता, तो मेरा करियर कुछ और होता.ÓÓ हंसते हुए मोनालिसा कहती हैं.
मोनालिसा का मानना है कि उनका लुक, गेटअप, फिगर, अभिनय और डांस उनके प्लस पॉइंट्स हैं. वह कहती हैं, ''आप मुझे वेस्र्टन आउटफिट पहना दीजिए या इंडियन, मैं दोनों में बहुत अच्छी दिखती हूं.ÓÓ मोनालिसा इस बात से सहमत नहीं हैं कि भोजपुरी में केवल हेल्दी हीरोइनें ही चलती हैं. वह कहती हैं, ''भोजपुरी फिल्म के दर्शक हिंदी फिल्में भी देखते हैं. अगर उन्हें सिर्फ मोटापा पसंद होता, तो करीना कपूर और प्रियंका चोपड़ा नहीं चलतीं. भोजपुरी दर्शकों को मोटापे से फर्क नहीं पड़ता. वह एक्टिंग देखती है.ÓÓ  मोनालिसा का कहना है कि उनकी फिल्में कहां जइबा राजा नजरिया लड़ाइके, हो गईनी दीवाना तोहरा प्यार में, सैंया के साथ मड़इया में, दूलहा अलबेला, तू जान हउ हमार, हम हईं खलनायक सबको जरूर देखनी चाहिए. 
स्वयं कास्टिंग काउच का सामना कर चुकीं मोनालिसा मानती हैं कि इस तरह के प्रस्ताव को स्वीकार करना या नहीं करना एक लडक़ी पर निर्भर करता है. वह बेझिझक बताती हैं, ''मुझे किसी ने इस तरह का प्रस्ताव दिया था, लेकिन एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि इंडस्ट्री में टैलेंट से काम मिलता है. कास्टिंग काउच हर इंडस्ट्री में है. यह लडक़ी पर निर्भर करता है कि वह इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करती है. यह सोचना कि कास्टिंग काउच की वजह से काम मिलेगा, पूरी तरह गलत है.ÓÓ बिंदास और खुशमिजाज स्वभाव की मोनालिसा अपने करियर की तेज रफ्तार और व्यस्तता से खुश और संतुष्ट हैं. अपनी नई फिल्मों नागिन, इज्जत, इश्क का मंजन घिसे है पिया, रंग दे प्यार के रंग में, गंगा पुत्र, जान लेबू का हो और दबंग मोर बलमा के प्रदर्शन का वह उत्सुकता से इंतजार कर रही हैं.
                       बिग बॉस रियलिटी शो के मंच सलमान खान और दिनेश लाल यादव निरहुआ के साथ 

मेरे फेवरेट को-स्टार्स
पवन सिंह
मैंने पवन के साथ तेरह फिल्में की हैं. उनमें बहुत बचपना है. वो हमेशा सेट पर मस्ती और सबकी खिंचाई करते रहते हैं. लेकिन जैसे ही शॉट रेडी होता है, वो बदल जाते हैं. वो अपना काम मन लगाकर करते हैं.

दिनेश लाल यादव निरहुआ
दिनेश जी के साथ मैंने सात फिल्में की हैं. वो बहुत सेंसिबल और जिम्मेदार इंसान हैं. वो केवल अपने काम से मतलब रखते हैं. वो समय के पाबंद हैं. हमेशा परफेक्ट फिल्म बनाने का प्रयास करते हैं. उन्हें दर्शकों की पसंद के बारे में जानकारी है.

रवि किशन
रवि जी के साथ मैंने चार फिल्में की हैं. वो बहुत हैंडसम हैं. सेट पर मुझे उनसे बहुत डर लगता है. मैं उनकी इज्जत करती हूं. वह शूटिंग के दौरान बच्चे की तरह सिखाते और समझाते हैं. मैं उन्हें अपना सबसे सेक्सी हीरो मानती हूं.

मनोज तिवारी
मनोज जी के साथ मैंने पांच-छह फिल्में की हैं. उनकी आवाज बहुत अच्छी है. वह बहुत समझदार हैं. उन्हें चीजों की बहुत जानकारी है. मैं उनके साथ बिहार में स्टेज शो करने गई थी, पब्लिक में उनका क्रेज देखकर मैं हैरान थी.

जो आप जानना चाहते हैं
जन्मतिथि- 21 नवंबर
घूमने का पसंदीदा स्थान- लास वेगास
शॉपिंग की पसंदीदा जगह- लॉस एंजिल्स
पसंदीदा फिल्म- जब वी मेट
फेवरेट हीरो- सलमान खान
फेवरेट हीरोइन- करीना कपूर

शाहरुख से अच्छे संबंध हैं- अर्जुन रामपाल

अर्जुन रामपाल ने अपने आस-पास की दुनिया बदल ली है. इस एक्टर टर्न बिजनेसमैन से इसका कारण जानने का प्रयास कर रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह

अर्जुन रामपाल ने अब उस सिनेमा की राह पकड़ ली है, जहां वास्तविकता है, अर्थ है और मनोरंजन भी. उनकी पसंद अब प्रकाश झा और सुधीर मिश्रा जैसे फिल्मकार हैं. प्रकाश झा के साथ तो उनकी तीसरी फिल्म सत्याग्रह शूटिंग फ्लोर पर है.
हाल के दिनों में अर्जुन ने अपने आप को एक नए रूप में पेश किया है, जिसे स्क्रीन पर साफ देखा जा सकता है. उनका अभिनय भी परिपक्व हो गया है. अब वह एक सफल बिजनेसमैन भी हैं. उनका नाइट क्लब लैप दिल्ली का एक हॉट स्पॉट बन चुका है. उनकी इच्छा इसका विस्तार करने की है. तो अब आप उनसे एक हॉट मॉडल और सफल एक्टर बनने के साथ ही, सक्सेजफुल बिजनेसमैन बनने का मंत्र भी जान सकते हैं.
सुबह सात बजे वह दिल्ली से एक बिजनेस संबंधी मीटिंग करके लौटे हैं, लेकिन आराम करने की बजाए वह मुंबई के महबूब स्टूडियो में अपनी फिल्म की प्रमोशनल एक्टिविटी में लग गए हैं. प्रस्तुत है अर्जुन रामपाल से बातचीत के मुख्य अंश

राजनीति के बाद चक्रव्यूह और इसके बाद सत्याग्रह, प्रकाश झा के साथ आपका एसोसिएशन बरकरार है. आप उन्हें नहीं छोड़ रहे हैं या वह आपको हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं?
(हंसते हैं) जब आप एक फिल्म बनाते हैं और आपका अनुभव अच्छा रहता है, तब एक केमिस्ट्री बन जाती है और फिर मजा आता है. आप कोई भी एक्टर को देख लो, उनका एक फेवरेट डायरेक्टर होता है, जिनके साथ वो काम करते रहते हैं, हॉलीवुड में भी और हमारे यहां भी. मेरे खयाल से प्रकाश और मैं उस मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां वो सोचते हैं कि ये किरदार अर्जुन को देना चाहिए और उन्होंने जो भी किरदार मुझे दिए हैं, चाहे वह राजनीति में हो या चक्रव्यूह में या अब सत्याग्रह हो, सारे किरदार एक-दूसरे से अलग हैं. वो मुझे डिफरेंट लाइट्स में देखते हैं. मुझे मजा आता है उनके साथ काम करके, क्योंकि उनकी रिचर्स कमाल की होती है, वो अपनी कला को बेहतरीन तरीके से समझते हैं. जब मैं इंडस्ट्री में आया था, तबसे वो मेरे साथ काम करना चाहते थे. राजनीति बनने के पांच साल पहले उन्होंने मुझे पृथ्वी का रोल ऑफर किया था. मगर तब उन्होंने वह फिल्म नहीं बनाई और पांच साल बाद मुझको ऐसे फोन किया, जैसे पांच दिन पहले ही मुझसे आकर मिले थे कि अच्छा वो फिल्म याद है, जो तुझे सुनाई थी, वो अब हम लोग बना रहे हैं. अभी मैंने सुधीर मिश्रा की फिल्म इनकार की है, वह उन्होंने ही मेरे पास भेजी थी और कहा था कि तुम सुधीर के साथ काम करो, तुम्हें मजा आएगा.

हाल के सालों में ऐसा लग रहा है कि अभिनय और सिनेमा के बारे में आपकी सोच बदल गई है. क्या यह प्रकाश झा के सानिध्य का असर है?
हर फिल्म से ऐसा होता है. ऐसी फिल्म बनाने का क्या मतलब है, जिससे आप कुछ सीखते नहीं. प्रकाश बहुत ही ईमानदार फिल्ममेकर हैं. वे सेंसेशनल फिल्में नहीं बनाते. वह टॉपिकल फिल्म बनाते हैं, जिसके बारे में आपको अच्छी जानकारी मिलती है. जैसे कि चक्रव्यूह के दौरान... मैं जानता हूं कि नक्सल मूवमेंट देश के अंदर चल रहा है. लेकिन क्योंकि हम बड़े शहर में रहते हैं, जहां आपने यह सब नहीं देखा है, तो आपकी जानकारी कितनी होती है? जितना आप अखबार या टीवी में देखते हैं. चक्रव्यूह की मेकिंग के दौरान जानने को मिला कि ये क्यों होता है? समस्या क्या है? अगर आपको जानकारी मिलती है कि समस्या यह है तो खुद-ब-खुद आपको उसका हल मिल जाएगा. वो रिचर्स प्रकाश लेकर आते हैं.

चक्रव्यूह से राजनीति के बीच में आपने हीरोइन और रासकल्स जैसी फिल्में कीं. आपके फिल्मों के चुनाव से समझ में नहीं आ रहा है कि आप किस दिशा में जाना चाहते हैं?
रासकल्स को आप मेरी फिल्म नहीं कह सकते. उसमें मेरा स्पेशल अपियरेंस था. डेविड (धवन) मेरे पास आए थे और वह संजू (संजय दत्त) के प्रोडक्शन की फिल्म थी, तो उन्होंने कहा कि हम चाहेंगे कि आप ये रोल करो. मैंने दोस्ती के लिए वह फिल्म नहीं की, मुझे किरदार अच्छा लगा. मैंने सोचा कि डेविड हंै, कॉमेडी अच्छी बनाते हैं, तो उस हिसाब से मैंने फिल्म की. मेरा छह-सात दिन का काम था. आप यह नहीं कह सकते कि मैं उस दिशा में जाना चाहता हूं इसलिए वो फिल्म की है. रा.वन फिल्म मैं करना चाहता था. उसमें पॉवरफुल रोल था. फिल्म करते वक्त मैं ये सोचता हूं कि दर्शक क्या देखने जाएंगे? दर्शक पूरी फिल्म घर लेकर नहीं जाती, वह कोई एक चीज लेकर जाती है. मैं ऐसी फिल्में ढूंढ़ता हूं, जिसमें कुछ अलग करने को मिले. क्योंकि मैं सेम चीज कर-करके बोर हो जाता हूं. मैं दर्शकों को सरप्राइज करना चाहता हूं. रा.वन के जरिए बच्चों की मेरी फैन फॉलोइंग बढ़ गई है. रा.वन से मुझे फायदा हुआ. जब मैंने रॉक ऑन की थी, तो जो बोलते थे. जब ओम शांति ओम की थी, तब मुकेश मेहरा बोलते थे. अगर आपको किरदार के नाम से लोग आपको पहचानते हैं, तो आपको लगता है कि आपने ठीक काम किया है. अभी मैं ऐसी फिल्में कर रहा हूं, जो रीयल हैं, एंटरटेनिंग हैं और कमर्शियल भी हैं. ये कॉम्बिनेशन मुझे अच्छा लगता है. 
 
इस वक्त आप कैरेक्टर की बात कर रहे हैं, लेकिन पहले आप सिर्फ हीरो की फिल्में करते थे. आपकी ये सोच कब बदली?
सोच नहीं बदली. जमाना बदल गया है, ऑडियंस बदल गई है. आप फिल्में देखें जो आज चल रही हैं, वैसी फिल्में तो नहीं हैं कि उसमें एक ही हीरो था, उसका एक ही हेयर स्टाइल होता था, एक ही तरह से चलता था, वही बैकग्राउंड म्यूजिक होता था. और आप फर्क नहीं कर सकते कि ये कौन-सी फिल्म है. मुझे तो बहुत अफसोस होगा अगर मैं किसी फिल्म के सेट पर जाऊं और पुछूं कि यार, ये कौन सी फिल्म है? मेरे किरदार का नाम क्या है? इतनी समानता नहीं होनी चाहिए कि मैं कंफ्यूज हो जाऊं. क्योंकि आपने अपनी एक इमेज बना ली है और आप उस इमेज से बाहर नहीं निकल सकते, तो फिर आपकी कला क्या है? कुछ नहीं. ऐसी फिल्में आज की तारीख में चलती नहीं हैं. आप राउड़ी राठौड़ या दबंग ले लो, तो उसमें उन्होंने कैरेक्टर्स प्ले किए हैं, उनके कैरेक्टर्स स्ट्रॉन्ग हैं. बहुत कम एक्टर ऐसे हैं, जो अपने स्टार पॉवर से सब कुछ कर लेते हैं और सब माफ है. वो सब भी मेरे खयाल से ठीक हैं, क्योंकि उनमें ये खूबी है. मेरी खूबी ये है कि मैं अपने दर्शकों को सरप्राइज करता रहूं और उस रास्ते पर चलूं, जिसमें मुझे मजा आता है, ग्रोथ नजर आती है. वो मेरा गोल है. फिल्म में मैसेज है तो ठीक है, वरना फिल्म एंटरटेनिंग होनी चाहिए. भाषणबाजी नहीं होनी चाहिए.

आप अपने बच्चों महिका और माएरा को चक्रव्यूह के शूटिंग स्थल पंचमढ़ी में लेकर गए थे, ताकि वे असली हिंदुस्तान देख सकें.
वो आखिरी दो-तीन दिन की शूटिंग के दौरान सेट पर आए थे. मैं चाहता था कि वो आएं, क्योकि पंचमढ़ी बहुत खूबसूरत जगह है. मेरे बच्चे भारत के अंदर इतना अधिक नहीं गए हैं. मैं एक छोटे से गांव से आया हूं. हम लोग जंगल में खेलते थे. पूरा बचपन हमने ऐसे निकाला है. आजकल के बच्चों को आप मुंबई से बाहर किसी जगह पर ले जाओ, लोनावाला या खंडाला, तो कोई कीड़ा भी निकल आए, तो वो डर जाते हैं. मैं चाहता था कि ये खौफ उनके दिल से निकले. वे आए और जब बंदर उनके पास आए, तो उन्होंने उनको केला खिलाया. ऐसी बहुत सी चीजें की. उन्हें भी पता चला कि ये हमारा देश है. बहुत जरूरी है कि  वो ये सब देखें.

आपकी ऐसी योजना है कि परिवार के साथ देश के अंदर घूमने निकला जाए?
इंडिया में देखने और दिखाने लायक इतनी चीजें हैं, तो मैं उन्हें लेकर जाऊंगा. जरूरी है कि पहले हम अपने देश को जानें और फिर बाहर के देशों को देखें. किसी के लिए भी ट्रैवलिंग इज द बेस्ट एजुकेशन. आपका माइंड खुल जाता है, असलियत सामने आ जाती है.

जब आप फिल्मों में आए थे, तब आपका जो सर्कल था और अब जो सर्कल है, उसमें कितना बदलाव आया है?
फ्रेंड्स को आप बदलते नहीं हैं, जैसे कि आप कपड़े बदलते हैं. हमारी इंडस्ट्री में ऐसा नहीं है, जैसाकि लोग सोचते हैं. मेरे अच्छे दोस्त हैं. जिनके साथ भी मैंने काम किया है, जिनके साथ अच्छा रिलेशनशिप रहा है. मैं क्यों किसी का नाम लूं? किसको जानना है कि मेरे दोस्त कौन हैं? मेरा उठना-बैठना किसके साथ है? वो मेरा निजी मामला है.

एक वक्त था, जब आप फिल्म इंडस्ट्री के गलियारों में पले-बढ़े लोगों के साथ फिल्में करते थे, लेकिन अब आप फिल्म इंडस्ट्री के बाहर से आए लोगों के साथ फिल्में कर रहे हैं. क्या यह सोची-समझी रणनीति है या संयोग वश ऐसा हो रहा है?
मैं भी तो बाहर से ही आया हूं यार (हंसते हैं). मैं कौन सा इंडस्ट्री का हूं. शायद इंडस्ट्री के बाहर से जो लोग आए हैं, हम एक-दूसरे को बेहतर समझते हैं, क्योंकि हमारी कहानियां मिलती-जुलती हैं. जो आदमी सेकेंड या थर्ड जेनरेशन से आया है, वो उसकी किस्मत है. मैंने कभी ऐसे सोचा नहीं है. मैं सबके साथ काम करता रहा हूं और सबके साथ काम करना चाहता हूं. आपकी बात भी सही है. कोई बाहर का या कोई अंदर का नहीं होता. एक बार आप इंडस्ट्री में आ जाते हो, तो एक परिवार का हिस्सा बन जाते हो. यह एक छोटी-सी इंडस्ट्री है और हम सबको एकट्ठा रहना है. हम सबके रास्ते कहीं न कहीं जुड़े हैं, हम चाहें या न भी चाहें, तो बेहतर है कि आराम से सबके साथ काम करो. जो भी मेरा को-स्टार होता है, फिल्म बनाते वक्त मैं उसका सबसे अच्छा दोस्त बन जाता हूं और फिर हमारे रास्ते अलग हो जाते हैं. लेकिन वो अनुभव हमारे साथ रहता है. प्रकाश मेरे साथ तीन फिल्में कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि हमारा रोज का उठना-बैठना होता है. मेरी दूसरी जिंदगी भी है. मैं दूसरे बहुत से काम करता हूं. मेरे दूसरे को-स्टार्स हैं, उनके साथ बैठता हूं. लेकिन जब हम मिलते है, तो हमने जो वक्त साथ गुजारा था, वहीं से बात शुरू होती है. 

अगर इंडस्ट्री एक परिवार है, तो अभी हीरोइन में दिखाया गया है कि प्रोटैगोनिस्ट को कैसे सब लोग मिलकर बाहर कर देते हैं. इन चीजों में कितनी सच्चाई होती है?
ऐसी चीजें कभी-कभी हो जाती हैं. लेकिन ये आप पर भी निर्भर करता है. हीरोइन में दिखाया गया है कि वो लडक़ी बहुत डिफिकल्ट है. ये ऐसी इंडस्ट्री है, जहां आप बिजनेस करने आए हैं, ये आपको समझना चाहिए. अगर आप प्रोफेशनल हो, समय पर आते, काम करते हो, चले जाते हो, तो अच्छा है. क्योंकि आपको तो पेमेंट मिल रही है न आपके काम की, उस हिसाब से आप काम करो. अगर आप पेमेंट भी लेते हो, निजी मामला सेट पर लाते हो, तो इंडस्ट्री छोटी है, बात फैलती है और जब बात फैलती है, तो आपकी प्रतिष्ठा खराब होती है. कलाकार के पास क्या है? उसकी प्रतिष्ठा या उनका काम. आपके कह सकते हो कि आप वल्र्ड के बेस्ट एक्टर हो, लेकिन जब आपकी फिल्म आती है, तो सबको पता चलता है कि आप क्या हो? आप असलियत से दूर मत हटो. यही मेरा एक्सपरियंस मुझे समझाता है. यू स्टे रीयल इन दिस अनरियल वल्र्ड.

हाल में आपने एक करीबी मित्र और मार्गदर्शक अशोक मेहता (प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर) को खो दिया. उन्हें आप किस तरह से याद करना चाहेंगे?
अशोक जीनियस थे. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला है. इंडस्ट्री को उन्होंने चेंज किया अपनी सिनेमैटोग्राफी से. जिस तरीके से फिल्में शूट हुआ करती थीं, उन्होंने उसे बदला. अलग तरीके की शूटिंग की. डिफरेंट टाइप की फिल्में कीं, आप बैंडिट क्वीन, 36 चौरंगी लेन, राम लखन, खलनायक देख लो. मोक्ष में इतनी खूबसूरत सिनेमैटोग्राफी है. बहुत बड़ा लॉस है, सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि उनके परिवार के लिए, इंडस्ट्री के लिए भी. मेरे खयाल से वो जल्दी चले गए.

एक्टिंग का पेशा अनिश्चितता से भरा है. क्या आपको लगता है कि एक्टर्स के पास प्लान बी होना चाहिए?
कौन असुरक्षित नहीं होता है? इनसिक्योरिटी आपको फोकस में भी रख सकती है या पूरी तरह से निगेटिव भी बना सकती है. इनसिक्योरिटी एक डर है. डर क्या है? आपमें कमी है कोई, आत्मविश्वास नहीं है. आप उस डर को खत्म करो. जैसे बचपन में आप अंधेरे में नहीं चल सकते हो, लेकिन बड़े होने पर आप अंधेरे में चलते हो, आप नहीं सोचते हो कि कोई भूत या चुड़ैल आ रही है. मेरा मानना है कि जो आप सोचते हैं, आपकी जिंदगी वही होती है. आप किसी का बुरा मत सोचो, पॉजिटिव सोचो, किसी के डाउनफॉल पर खुश न हो. जो मैं देखता हूं कि काफी होता है. तो आपकी जिंदगी खुद-ब-खुद आपकी इनसिक्योरिटी दूर होती जाती है और आपमें कॉन्फिेंडस आएगा और जब आपमें कॉन्फिडेंस आएगा, तो लोगों को आपमें कॉन्फिडेंस आएगा. लोग आपको देखेंगे कि ठीक है, इसे फॉलो करते हैं. प्लान ए क्या है, बी क्या है? कौन सा चलने वाला है, किसी को नहीं मालूम है. कोई भी काम करने से पहले मैं अपने आपसे तीन सवाल पूछता हूं. एक- क्या ये काम करने के बाद मुझे खुशी होगी? क्या गर्व होगा? दूसरा- फिल्म हो या बिजनेस हो, क्या मैं इसमें पैसे कमाऊंगा? जो मेरे लोग हैं, वो पैसे कमाएंगे? तीन- उसे करने से मेरी ग्रोथ क्या होगी?

एक सुपरमॉडल से एक अभिनेता और बिजनेसमैन की जर्नी तय करने का अनुभव कैसा रहा?
ऊपर मैंने जो तीन सवाल बताए, उन्हें अपने आप से पूछें. अगर जवाब सही मिलता है, तो आगे बढ़ें. अगर फिल्म आती है तो मैं सोचता हूं कि क्या मैं छह महीने इस यूनिट के साथ निकाल सकूंगा? हॉबीज हैं मेरी. क्लब खोला है मैंने क्योंकि मैं म्यूजिक का शौकीन हूं. इलेक्ट्रानिक म्यूजिक मुझे पसंद है. मैं सोच रहा था कि एक ऐसा क्लब खोला जाए जहां लड़कियों को सेफ की फिलिंग मिले. उस इंटेशन से क्लब खोला, चल गई. अगर हॉबी को आप प्रोफेशन बना सकते  हैं, तो अच्छा है.

शाहरुख के साथ आपके किस तरह के रिश्ते हैं? लोगों को ऐसा लगता है कि शाहरुख और आपके बीच मतभेद हो गए हैं.
अच्छे रिश्ते हैं. रिश्ते में आप इतना इनवॉल्व क्यों होना चाहते हैं? मैं आपसे जो भी कहूंगा, उससे मेरी प्रॉब्लम सॉल्व होने वाली है? नहीं. तो फिर मैं क्यों किसी को बोलूं? अगर किसी के साथ प्रॉब्लम्स हो भी, मैं शाहरुख की बात नहीं कर रहा हूं, तो आपको खुद जाकर उस प्रॉब्लम को सॉल्व करना चाहिए. मीडिया में उस बात को लाने का मतलब नहीं बनता. क्यों मीडिया में उसे डिस्कस करना?

आप एक फैमिली मैन दिखते हैं. क्या इसका श्रेय आपकी पत्नी मेहर को दिया जा सकता है?
हां, बिल्कुल. हमारी इंडस्ट्री में खास तौर से जो बीवी होती है, घर में जो लोग होते हैं, वह बहुत जरूरी होते हैं, वह आपके ग्राउंडिंग फैक्टर होते हैं.

सुपरमॉडल के बाद क्या वह सुपरवाइफ साबित हुई हैं?
आप सुपरवूमन भी कह सकते हैं!

आप इंडस्ट्री के एक सबसे गुडलुकिंग और हॉट स्टार हैं, लेकिन आपके बारे में कभी कोई र्यूमर नहीं सुनने को मिला. क्या आप समर्पित पति हैं इसलिए?
जब सब कुछ ठीक है घर पर, तो बाहर जाकर प्यार डूढने की जरूरत क्या है? मुझे समझ में नहीं आता है. मैं जहां हूं, खुश हूं. अफवाह तो अफवाह होती है. कभी कोई बढ़ा-चढ़ाकर लिख देेता है, कभी उसमें सच्चाई होती है. मैं गॉसिप में इंडल्ज नहीं करता और उसे इनकरेज नहीं करता हूं.

क्या कभी आपने यह महसूस किया है कि लड़कियां आपके ऊपर खुद को न्यौछावर करती हैं?

वो होता है, लेकिन आप जानते हैं कि यह एक दौर है. ठीक है, मैं भी फिल्में देखता था. जब मैंने पहली बार अमित जी को देखा, तो एक फैन की तरह बिहेव किया. मैं खुद एक फैन रह चुका हूं, तो मैं जानता हूं कि फैन कैसे होते हैं? मेरे लिए जरूरी हैं वो. मैं अपने फैंस की इज्जत करता हूं. मैं रास्ते पर चलूं और कोई मुझे देखे ही नहीं, तो मैं बहुत नाराज हो जाऊंगा.

साभार: FILMFARE