नो वन किल्ड जेसिका के बाद अब घनचक्कर फिल्म में विद्या बालन को निर्देशित कर रहे हैं राजकुमार गुप्ता. इस लेख में वे अपनी इस चहेती अभिनेत्री के व्यक्तित्व को एक अलग नजरिए से परिभाषित कर रहे हैं
विद्या बालन से मेरी पहली मुलाकात तीन साल पहले हुई. तब तक वे स्टार बन चुकी थीं. नो वन किल्ड जेसिका लिखते समय मेरे अंर्तमन से आवाज आई कि सबरीना के किरदार के लिए विद्या से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता. सच कहूं तो परिणीता और लगे रहो मुन्नाभाई में विद्या के अभिनय से मैं बहुत प्रभावित था. अंधेरी ईस्ट में एक होटल है हयात. विद्या ने वहीं मिलने के लिए बुलाया. मैं एक फिल्म आमिर निर्देशित कर चुका था, लेकिन विश्वास मानिए, मैं इस मीटिंग से पहले बहुत नर्वस था. मीडिया और किस्सों के जरिए मेरे मन में स्टार की एक अलग छवि बनी हुई थी कि स्टार्स बड़े रौब के साथ चार-पांच लोगों की अपनी फौज के साथ चलते हैं. लोगों को दो-चार घंटे इंतजार करवाते हैं. मगर मेरी यह धारणाएं इस अभिनेत्री से मिलने के बाद मिथक साबित हुईं. विद्या सादे लिबास में अपनी मैनेजर के साथ एकदम तय वक्त पर मेरे सामने हाजिर हो गईं. मैं अचंभित था कि ये कैसी स्टार है!
विद्या की सादगी से मैं प्रभावित हुआ. वे दिवा टाइप नहीं हैं. वे गर्ल नेक्स्ट डोर हैं. वे मुझे अपनी लगीं. लगा कि मैं किसी अपने से मिल रहा हूं. मैं ठहरा तो निर्देशक ही ना! ऐसी कलाकार को देखकर मेरा लालच बढ़ गया. मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि विद्या मेरी फिल्म के लिए हां कह दें. मैं सोच ही रहा था कि मैंने अपनी पहली फिल्म आमिर तो बहुत बढिय़ां बनाई है. सबने उस फिल्म की बड़ी प्रशंसा की थी. विद्या ने उसे देखा होगा, शायद तभी वे आज मेरे सामने बैठी हैं, लेकिन तभी उन्होंने यह कहकर मुझे चकित कर दिया कि आपकी फिल्म आमिर मैंने नहीं देखी है. मैं कुछ पल के लिए मायूस हुआ. खैर, मैंने उन्हें नो वन किल्ड जेसिका की स्क्रिप्ट दी और घर लौटते ही उन्हें आमिर की डीवीडी भी भिजवा दी. ताकि मेरी निर्देशन योगयता पर उन्हें संदेह न हो.
विद्या की सादगी से मैं प्रभावित हुआ. वे दिवा टाइप नहीं हैं. वे गर्ल नेक्स्ट डोर हैं. वे मुझे अपनी लगीं. लगा कि मैं किसी अपने से मिल रहा हूं. मैं ठहरा तो निर्देशक ही ना! ऐसी कलाकार को देखकर मेरा लालच बढ़ गया. मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि विद्या मेरी फिल्म के लिए हां कह दें. मैं सोच ही रहा था कि मैंने अपनी पहली फिल्म आमिर तो बहुत बढिय़ां बनाई है. सबने उस फिल्म की बड़ी प्रशंसा की थी. विद्या ने उसे देखा होगा, शायद तभी वे आज मेरे सामने बैठी हैं, लेकिन तभी उन्होंने यह कहकर मुझे चकित कर दिया कि आपकी फिल्म आमिर मैंने नहीं देखी है. मैं कुछ पल के लिए मायूस हुआ. खैर, मैंने उन्हें नो वन किल्ड जेसिका की स्क्रिप्ट दी और घर लौटते ही उन्हें आमिर की डीवीडी भी भिजवा दी. ताकि मेरी निर्देशन योगयता पर उन्हें संदेह न हो.
राजकुमार गुप्ता
हमारी दूसरी भेंट विद्या के चेंबूर स्थित घर पर हुई. उन्होंने दस दिन के बाद मुझे फोन करके नैरेशन देने के लिए बुलाया था. मैं उनका घर देखकर एक बार फिर हैरान हुआ, क्योंकि इस घर में मुझे किसी स्टार के रहने का कोई लक्षण नजर नहीं आया. किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार के घर जैसा विद्या का घर था. मुझे लगा कि मैं अपने किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर में बैठा हूं. घर के एक हिस्से में उनका कमरा था और दूसरे हिस्से वाले कमरे को उन्होंने अपना नैरेशन रुम बनाया था. मैं अपने खयालों में खोया हुआ था कि विद्या कुर्ता-पायजामा पहने मेरे सामने हाजिर हो गईं. विद्या आपसे इतनी आत्मीयता से मिलती हैं कि आप उन्हें अपना मान लेते हैं. यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है.
विद्या को जहां तक मैं समझ पाया हूं, वह पैसे को महत्व नहीं देतीं. आप उन्हें यह नहीं कह सकते कि मैं आपको पांच करोड़ रुपए दे रहा हूं और आप यह फिल्म कर लीजिए. आप विद्या को खरीद नहीं सकते. किसी भी स्क्रिप्ट को हां कहने से पहले विद्या तीन चीजें देखती हैं. पहला, उन्हें स्क्रिप्ट अच्छी लगनी चाहिए, दूसरा- क्या वे किरदार में खुद को देख पाती हैं और तीसरा, निर्देशक उस किरदार को कैसे देख रहा है. इत्मीनान होने के बाद वे खुद को निर्देशक को सौंप देती हैं. फिर आप पर निर्भर करता है कि आप उन्हें मोल्ड कर पाते हैं या नहीं.
विद्या में असुरक्षा की भावना नहीं है. नैरेशन खत्म होने के बाद उनकी एक बात ने मुझे चौंका दिया था. उन्होंने कहा कि मीरा का जो कैरेक्टर है, उसके लिए हमें एक पॉवरफुल एक्टर चाहिए, क्योंकि वह महत्वपूर्ण किरदार है. उसी पल मुझे यकीन हो गया कि विद्या ने मेरी फिल्म को अपना लिया है और वे उसकी बेहतरी के लिए सोच रही हैं. वे सबरीना के किरदार के निर्माण के दौरान इनवॉल्व रहीं. मैंने देखा है कि अगर वे आपके प्रोजेक्ट से जुड़ गईं, तो फिर उसे अपना मान लेती हैं. यह गुण बहुत कम कलाकारों में है.
विद्या वक्त की पाबंद हंै. वे प्रोफेशनल हैं. वे शॉट के लिए भोजन करना छोड़ देती थीं. हम दिल्ली की एक गली में जेसिका की शूटिंग कर रहे थे. अचानक हमें वो एरिया मनमुताबिक खाली मिल गया. मैंने कहा कि विद्या को बुलाओ, तो असिस्टेंट ने बताया कि वो खाना खाने गई हैं. मैंने कहा कि ठीक है, बाद में शूट करते हैं और मैंने पलटकर देखा तो विद्या सामने से आ रही थीं. मैंने उनसे पूछा कि आप खाना खा रही थीं? उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं, पहले शूट करते हैं. वे वैन में जाने से पहले हमेशा पूछती थीं कि राज, क्या मैं वैनिटी वैन में जा सकती हूं.
विद्या खाने की शौकीन हैं, लेकिन उनके साथ यह नहीं है कि उन्हें फाइव स्टार होटल में ही लंच या डिनर करना है. मुझे याद है कि हम लोग जेसिका का शूट शुरु होने से दो दिन पहले दिल्ली पहुंचे थे. विद्या मुझे लेकर खान मार्केट गईं. वहां वो मुझे एक बोहेमियन कैफे में लेकर गईं. उन्होंने बताया कि वहां वे अक्सर जाती हैं. मैं विद्या की इस टेस्टी खोज से चकित था.
विद्या ने अतीत में कुछ गलतियां कीं, मगर उनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा. आज उनकी कामयाबी उदाहरणार्थ और अनुकरणीय हैं. सफलता, शोहरत और पैसा मिलने के बावजूद उनमें घमंड नहीं आया है. मैं विद्या के साहस को सलाम करता हूं. मुझे विश्वास है कि वे भविष्य में कामयाबी का नया इतिहास लिखेंगी. मैं खुश हूं कि विद्या को प्यार मिल गया है. विद्या और सिद्धार्थ को मैं शुभकामनाएं देता हूं और दिल से उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं. घनचक्कर में दोबारा उनके साथ काम करना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.
प्रस्तुति- रघुवेन्द्र सिंह
हमारी दूसरी भेंट विद्या के चेंबूर स्थित घर पर हुई. उन्होंने दस दिन के बाद मुझे फोन करके नैरेशन देने के लिए बुलाया था. मैं उनका घर देखकर एक बार फिर हैरान हुआ, क्योंकि इस घर में मुझे किसी स्टार के रहने का कोई लक्षण नजर नहीं आया. किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार के घर जैसा विद्या का घर था. मुझे लगा कि मैं अपने किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर में बैठा हूं. घर के एक हिस्से में उनका कमरा था और दूसरे हिस्से वाले कमरे को उन्होंने अपना नैरेशन रुम बनाया था. मैं अपने खयालों में खोया हुआ था कि विद्या कुर्ता-पायजामा पहने मेरे सामने हाजिर हो गईं. विद्या आपसे इतनी आत्मीयता से मिलती हैं कि आप उन्हें अपना मान लेते हैं. यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है.
विद्या को जहां तक मैं समझ पाया हूं, वह पैसे को महत्व नहीं देतीं. आप उन्हें यह नहीं कह सकते कि मैं आपको पांच करोड़ रुपए दे रहा हूं और आप यह फिल्म कर लीजिए. आप विद्या को खरीद नहीं सकते. किसी भी स्क्रिप्ट को हां कहने से पहले विद्या तीन चीजें देखती हैं. पहला, उन्हें स्क्रिप्ट अच्छी लगनी चाहिए, दूसरा- क्या वे किरदार में खुद को देख पाती हैं और तीसरा, निर्देशक उस किरदार को कैसे देख रहा है. इत्मीनान होने के बाद वे खुद को निर्देशक को सौंप देती हैं. फिर आप पर निर्भर करता है कि आप उन्हें मोल्ड कर पाते हैं या नहीं.
विद्या में असुरक्षा की भावना नहीं है. नैरेशन खत्म होने के बाद उनकी एक बात ने मुझे चौंका दिया था. उन्होंने कहा कि मीरा का जो कैरेक्टर है, उसके लिए हमें एक पॉवरफुल एक्टर चाहिए, क्योंकि वह महत्वपूर्ण किरदार है. उसी पल मुझे यकीन हो गया कि विद्या ने मेरी फिल्म को अपना लिया है और वे उसकी बेहतरी के लिए सोच रही हैं. वे सबरीना के किरदार के निर्माण के दौरान इनवॉल्व रहीं. मैंने देखा है कि अगर वे आपके प्रोजेक्ट से जुड़ गईं, तो फिर उसे अपना मान लेती हैं. यह गुण बहुत कम कलाकारों में है.
विद्या वक्त की पाबंद हंै. वे प्रोफेशनल हैं. वे शॉट के लिए भोजन करना छोड़ देती थीं. हम दिल्ली की एक गली में जेसिका की शूटिंग कर रहे थे. अचानक हमें वो एरिया मनमुताबिक खाली मिल गया. मैंने कहा कि विद्या को बुलाओ, तो असिस्टेंट ने बताया कि वो खाना खाने गई हैं. मैंने कहा कि ठीक है, बाद में शूट करते हैं और मैंने पलटकर देखा तो विद्या सामने से आ रही थीं. मैंने उनसे पूछा कि आप खाना खा रही थीं? उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं, पहले शूट करते हैं. वे वैन में जाने से पहले हमेशा पूछती थीं कि राज, क्या मैं वैनिटी वैन में जा सकती हूं.
विद्या खाने की शौकीन हैं, लेकिन उनके साथ यह नहीं है कि उन्हें फाइव स्टार होटल में ही लंच या डिनर करना है. मुझे याद है कि हम लोग जेसिका का शूट शुरु होने से दो दिन पहले दिल्ली पहुंचे थे. विद्या मुझे लेकर खान मार्केट गईं. वहां वो मुझे एक बोहेमियन कैफे में लेकर गईं. उन्होंने बताया कि वहां वे अक्सर जाती हैं. मैं विद्या की इस टेस्टी खोज से चकित था.
विद्या ने अतीत में कुछ गलतियां कीं, मगर उनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा. आज उनकी कामयाबी उदाहरणार्थ और अनुकरणीय हैं. सफलता, शोहरत और पैसा मिलने के बावजूद उनमें घमंड नहीं आया है. मैं विद्या के साहस को सलाम करता हूं. मुझे विश्वास है कि वे भविष्य में कामयाबी का नया इतिहास लिखेंगी. मैं खुश हूं कि विद्या को प्यार मिल गया है. विद्या और सिद्धार्थ को मैं शुभकामनाएं देता हूं और दिल से उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं. घनचक्कर में दोबारा उनके साथ काम करना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.
प्रस्तुति- रघुवेन्द्र सिंह
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