स्नेहा खानवलकर फिल्म संगीत में एक क्रांति बनकर आई हैं. रघुवेन्द्र सिंह इस होनहार संगीतकार से मिल रहे हैं
स्नेहा खानवलकर हरदम चौंकाती हैं. चाहे उनका अतरंगी संगीत हो या फिर निजी जीवन में वे खुद क्यों न हों. पहली बार मैंने उन्हें गैंगस ऑफ वासेपुर 1 फिल्म के एक इवेंट में देखा था. अनुराग कश्यप अपनी फिल्म की टीम के साथ मंच पर इंटरव्यूज देने में व्यस्त थे और यह लडक़ी मीडिया से भरे खचाखच हॉल में स्टेज पर बेपरवाह अंदाज में लेट गई. अब आज का परिदृश्य जान लीजिए. इनके सिर पर शॉवर कैप है और जींस-कमीज के ऊपर इन्होंने काले रंग की चादर जैसा कुछ ओढ़ रखा है. स्नेहा का यह रुप देखकर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाया. स्नेहा ने भी खिलखिलाते हुए कहा, ''मैं बैटमैन लग रही हूं ना!ÓÓ अपनी हंसी पर नियंत्रण करके उन्होंने बताया कि वे ब्यूटी पार्लर में हेयर स्पा करवा रही थीं, मुलाकात का समय हो गया था, इसलिए वे बीच में उठकर आ गईं.
बेपरवाह स्वभाव की स्नेहा इंदौर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती हैं. आज वे सपनों सी लगने वाली फिल्मों की दुनिया का हिस्सा हैं. मगर यदि आप उन्हें गौर से देखें, तो उनमें आपको उपरोक्त दोनों घरानों के लक्षण बमुश्किल मिलेंगे. आखिर स्नेहा किस दुनिया की हैं? जवाब में वह छत की ओर देखकर कुछ ढूंढने के अंदाज में कहती हैं, ''मैं इंदौर और मुंबई, दोनों शहरों में आउट साइडर महसूस करती हूं. अपने अजीबो-गरीब स्वभाव की वजह से मैं इंदौर में आउट कास्ट महसूस करती थी. जब मुंबई की दुनिया देखी, तो पता चला कि मैं यहां भी आउट साइडर हूं. शायद इसीलिए मैं शहर-शहर घूम कर खुद को ढूंढ रही हूं.ÓÓ
छोटे शहरों में अगर किसी लडक़ी के अधिकतर दोस्त लडक़े हैं, तो उसे बिगड़ा मान लिया जाता है. स्नेहा इसी मापदंड पर बचपन में ही बिगड़ैल घोषित कर दी गई थीं. ''जब मैं ग्रो कर रही थी, तो मैं लडक़ों की तरह दिखती थी. सिकड़ी सी थी, दांत में ब्रेसेज लगे थे, बुरी दिखती थी. शायद इसीलिए लडक़ों से मेरी ज्यादा पटती थी. मान लिया गया था कि मैं हाथ से निकल चुकी हूं.ÓÓ स्नेहा के पिता इंजीनियर हैं. उनकी रिश्तेदारी में भी अधिकतर लोग इंजीनियर और डॉक्टर हैं. स्नेहा ने बताया,''अगर आपके घर में दो बच्चे हैं, तो तय हो जाता था कि एक डॉक्टर और एक इंजीनियर बनेगा. मुझे यह आयडिया अच्छा नहीं लगता था. मेरा छोटा भाई संकेत इंजीनियर बन चुका है. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करुं. गनीमत थी कि मेरी मम्मी के मायके यानी मेरे ननिहाल का संबंध गवालियर घराने से था. मैं गा लेती थी, तो मुझे गाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था.ÓÓ स्नेहा के गायन की शुरुआत स्कूल में देशभक्ति के गानों से हुई. ''स्कूल में फिल्मी गीत गाने अलाउ नहीं थे. हम देश भक्ति के गाने गाते थे. एक बार स्कूल में गायन प्रतियोगिता हुई थी. पांच-छह लोगों ने ऐ मेरे वतन के लोगों... गाना गाया था, लेकिन मैं जीती थी, क्योंकि मैं ही ऊंचे सुर में यह गीत गा सकी थी.ÓÓ स्नेहा ने गायन सुन-सुनकर सीखा है. मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि स्नेहा को सिंगर नहीं बनना था. दरअसल, आप उन पर किसी चीज को करने का दबाव डालें, तो वो नहीं करेंगी.
स्नेहा की दसवीं की पढ़ाई के बाद उनके मम्मी-डैडी मुंबई शिफ्ट हो गए, ताकि दोनों बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सके. दोनों खुल और खिल सकें. स्नेहा ने यहां मीठीबाई कॉलेज में एडमिशन लिया. ''कॉलेज के लडक़े-लड़कियां क्रेजी थे. पढ़ाई, फैमिली, लुक, ह्यूमर को लेकर उनके कॉन्सेप्ट्स अलग थे. लडक़े सिगरेट पीते थे, बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड का ट्रेंड था. किसी को परवाह नहीं थी कि आप कितना माक्र्स ला रहे हो. ऐसा लग रहा था कि मैं न्यूयॉर्क में आ गई हूं.ÓÓ इंदौर में अपने आप को तेज-तर्रार और होशियार समझने वाली स्नेहा मुंबई की इस भीड़ में अकेली और सबके हास्य का विषय बन गई. ''मैं अटपटी जींस पहनती थी. मुझे अंग्रेजी के कई शब्द नहीं आते थे. सब मेरा मजाक उड़ाते थे. मेरा तो जैसे शॉर्ट सर्किट हो गया था.ÓÓ स्नेहा ने अपने अकेलेपन से उबरने का एक उपाय ढूंढ निकाला. उन्होंने इंटर कॉलेज कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेना शुरु कर दिया. वे डीडी मेट्रो के प्रोग्राम सुपरस्टार में भी गई थीं.
संगीत में करियर बनाने का फैसला करने से पहले स्नेहा ने कई जगह अपने हाथ आजमाए. बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एनीमेशन का कोर्स किया. केन घोष के ऑफिस में उन्होंने इंटर्नशिप की, लेकिन कुछ ही समय बाद उनका मन वहां से उब गया. फिर उन्होंने इश्क विश्क फिल्म में सेट डिजायनर उमंग कुमार को ज्वाइन किया. मगर उनका मन वहां भी नहीं लगा. स्नेहा ने मुंबई में संगीतकार उत्तम सिंह के पिता और फिर भवदीप जयपुरवाले सहित कई लोगों से संगीत का प्रशिक्षण लेने का प्रयास किया, मगर सबका सानिध्य उन्हें कुछ ही समय बाद उबाऊ लगने लगता था और वे आगे बढ़ जाती थीं. शायद यही कारण है कि गुरु का जिक्र आने पर वह चुप्पी साध लेती हैं.
एक वक्त के बाद स्नेहा ने संगीत का प्रशिक्षण लेना बंद कर दिया और इंडस्ट्री में सबको फोन लगाना आरंभ कर दिया. ''मैंने सबसे पहले तिगमांशु धूलिया को फोन लगाया. उनकी हासिल रिलीज हुई थी. मैंने उनका एक इंटरव्यू पढ़ा और उनके विचार मुझे अच्छे लगे. तिगमांशु के जरिए मैं पियूष मिश्रा से मिली. पियूष भाई ने मुझे अनुराग कश्यप से मिलवाया.ÓÓ अनुराग से अपनी पहली मुलाकात स्नेहा याद करती हैं, ''स्पेक्ट्रल हारमनी स्टूडियो में ब्लैक फ्राइडे की रिकॉर्डिंग हो रही थी. वहां अनुराग मुझे मिले. उन्होंने मेरा गाना सुना, उन्हें बहुत पसंद आया. उन्होंने कहा कि मेरी फिल्में तो रिलीज होती नहीं हैं. तुम जाओ और रामगोपाल वर्मा से मिलो.ÓÓ
रामगोपाल वर्मा की फिल्म गो से पहले स्नेहा कल फिल्म में एक गीत दे चुकी थीं. गो में काम करने के बाद स्नेहा को महसूस हुआ कि वे पूरी फिल्म का काम फिलहाल नहीं संभाल सकतीं. उन्होंने ब्रेक लिया और फिर प्रयास करना शुरु किया. ''मैंने इंदौर से दिबाकर बनर्जी को फोन किया. उन्होंने मेरा इंटरव्यू लिया और काम की सीडी मंगवाई.ÓÓ और फिर दिबाकर के बुलावे पर स्नेहा मुंबई लौटीं. दिबाकर ने उन्हें एक एड में म्यूजिक देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और उनसे कहा, ''मैं फिल्म में म्यूजिक देना चाहती हूं.ÓÓ दिबाकर ने स्नेहा को दो लाइनें दीं और उनकी धुन बनाने के लिए कहा. स्नेहा उस परीक्षा में उत्तीर्ण हुईं और उन्हें दिबाकर बनर्जी की फिल्म ओए लकी लकी ओए मिल गई, जिससे उन्हें पहचान मिली. ''इस फिल्म पर काम करते हुए मैंने टेक्नीकली म्यूजिक सीखा.ÓÓ स्नेहा ने ईमानदारी से बताया.
स्नेहा का संगीत बनाने का अपना अनूठा स्टाइल है. वे मुंबई के एसी स्टूडियो में बैठकर धुनें बनाने की बजाय शहर-शहर और गलियों-गलियों में घूमकर नए प्रकार की धुनें ईजाद करना पसंद करती हैं. यही वजह है कि उनकी हर फिल्म में कुछ नई धुनें सुनने को मिलती हैं. इसकी शुरुआत ओए लकी लकी ओए फिल्म से हुई थी. स्नेहा बताती हैं, ''मुंबई में रिचर्स के दौरान मुझे लगा कि काम चलाऊ काम हो रहा है. मैं कुछ नया करना चाह रही थी. दूसरा कारण यह था कि मैं अनुराग, पियूष भाई, स्वानंद किरकिरे से हमेशा दिलचस्प बातें सुना करती थी. मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी अपने अनुभव इकट्ठे करुं. वरना ऐसे ही सुने-सुनाए अनुभव ही मेरे पास रह जाएंगे. ओए लकी... के समय मैंने दिबाकर से कहा कि मैं उस जेल में चली जाऊं, जिसमें बंटी है. वे चौंक गए. फिर मैंने पंजाब जाने के लिए कहा. मैं लकी रही कि मुझे दिबाकर जैसे निर्देशक मिले, जिन्होंने मुझे आजादी दी. मुझे सुरक्षा की परवाह नहीं होती थी. मेरे कुछ लौंडे दोस्त थे. हम सब घूमते थे.ÓÓ
ट्रैवल के दौरान जब स्नेहा ने गांवों में किसी बुजुर्ग या ट्रेन में गाने वाली किसी लडक़ी की आवाज सुनी, तो उनके मन में यह सवाल कौंधा कि इनका इस्तेमाल फिल्मों में क्यों नहीं हो सकता? क्यों रियाज करने वाली और एक दम सटीक आवाज ही पाश्र्व गायन में इस्तेमाल होती है? ''इंडस्ट्री के लोग कहते थे कि परफेक्ट सिंगर्स चाहिए. मैं गांव में गई, तो एक बूढ़े आदमी को गाते सुना. मैंने सोचा कि ये तो अच्छा गा रहा है. सच कहूं तो अपने गुरुओं की सिखाई बात का उल्टा करने में मुझे बहुत फायदा हुआ है.ÓÓ हमेशा कुछ नया करने के लिए प्रयासरत स्नेहा की लोकप्रिय गायकों के साथ काम करने की चाह नहीं है. हालांकि जब वे मुंबई आई थीं, तो उन्होंने पसंदीदा गायकों के साथ काम करने की परंपरा का अनुसरण किया था. स्नेहा ने बताया, ''एक गाना गवाने के लिए लता मंगेशकर के घर गई. वो मुझसे मिली नहीं, लेकिन उन्होंने ऑटोग्राफ देकर मुझे लौटा दिया. मैं घर वापस लौटी और पापा को बताया. उन्होंने कहा कि वो लता मंगेशकर है यार, वो तो हुरर भी कर देंगी, तो चलेगा. फिर मैंने कुछ अपना करने की ठानी.ÓÓ
ओए लकी लकी ओए के बाद स्नेहा ने लव सेक्स और धोखा (एलएसडी) और गैंगस ऑफ वासेपुर 1 और 2 में संगीत दिया. उनके संगीत के कच्चेपन ने सबका ध्यान खींचा और आज उनकी प्रतिभा को इंडस्ट्री सलाम करती है. जद्दन बाई, सरस्वती देवी और उषा खन्ना के बाद स्नेहा ने हिंदी सिनेमा की चौथी महिला संगीतकार के रुप में खुद को स्थापित किया है. अपने प्रयोगों के जरिए वे संगीत को एक्सप्लोर कर रही हैं. स्नेहा जब इंडस्ट्री में आई थीं, तब उन्हें दुनिया भर के संगीत के बारे में जानकारी नहीं थी, मगर शुक्र है उनके जीवन में आने वाले बॉयफ्रेंड्स का, जिन्होंने उन्हें अनजाने में ही बारी-बारी से संगीत की नई दुनिया से उनका परिचय कराया. स्नेहा मजे से बताती हैं, ''मेरे चार बॉयफ्रेंड्स हुए और हर एक से मुझे संगीत का एक अलग जॉनर सीखने को मिला. पहला बॉयफ्रेंड ब्लूज सुनता था, तो पहली बार मुझे स्टिंग और नोरा जोन्स थोक में सुनने को मिला. दूसरा बॉयफ्रेंड हिप-हॉप म्यूजिक में था. तीसरा बॉयफ्रेंड पिंक फ्लाइड्स, ट्रिपी और रॉक सुनता था. चौथा बॉयफ्रेंड वल्र्ड म्यूजिक में था. मैंने यह सब म्यूजिक सुन-सुनकर सीखा है.ÓÓ
स्नेहा को बातें करने में मजा आता है. अगर आपने एमटीवी का साउंड ट्रिपिंग प्रोग्राम देखा है, तो स्नेहा कुछ उसी अंदाज में संगीत की खोज में निकलती हैं. देश-विदेश से उन्हें म्यूजिक के इंस्ट्रूमेंट इकट्ठा करने का शौक है. उन्होंने यारी रोड में अपने बंगले में एक रुम में स्टूडियो बनाया है, जिसमें आपको तमाम किस्म के वाद्य यंत्र मिलेंगे. पिपहरी जैसे खिलौने से लेकर तानपुरा तक उनके कलेक्शन में है. स्नेहा की राय में एक टूटा हुआ तारा भी अच्छा संगीत देता है. स्नेहा अपने उस वाद्य यंत्र का विशेष रुप से उल्लेख करती हैं, जिसकी वजह से कई संगीतकार उनसे ईष्र्या करते हैं. ''मेरे पास सिक्सटीज का इलेक्टोन है, जिसे हर कोई मुझसे खरीदना चाहता है.ÓÓ फिलहाल, स्नेहा ने कोई प्रोजेक्ट हाथ में नहीं लिया है. गैंगस ऑफ वासेपुर 2 का काम उन्होंने अभी खत्म किया है और अब वे एक बार फिर अपना बैग पैक करके संगीत की खोज में दुनिया के किसी हिस्से में निकलने की तैयारी कर रही हैं.
साभार: FILMFARE
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