अमित राय की रोड टू संगम पहली निर्देशित फिल्म है। यह देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में सराही और पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी है। प्रस्तुत है अमित राय से बातचीत के खास अंश..
अपने बारे में बताएं?
मैं ठाणे (महाराष्ट्र) के उल्हास नगर का हूं। मैं झोपड़ी में पला-बढ़ा हूं। मुझे चप्पल से जूते तक पहुंचने में सत्रह साल लग गए। मेरे पापा ने एक अच्छा काम यह किया कि मुझे शिक्षा बहुत अच्छी दिलाई। मैं साइंस में ग्रेजुएट हूं। मैंने ड्रैमेटिक्स में एम.ए. किया है। मैं पढ़ने के साथ-साथ थिएटर से जुड़ा रहा। मेरी शुरुआत मराठी एक्सपेरिमेंटल थिएटर से हुई। मैं मराठी फिल्म टिंग्य में एसोसिएट डायरेक्टर था।
फिल्म निर्देशन में आपका कैसे आना हुआ? क्या आपने फिल्म निर्देशन की ट्रेनिंग ली है?
मेरे पापा ने किसी को पैसे उधार दिए थे। उस बंदे ने अच्छा काम यह किया कि पैसे लौटाने की बजाए उसने एक वीसीआर और टीवी दे दिया। यह 1985 की बात है। मैं रात भर जागकर वह वीसीआर और टीवी किराए पर लोगों के घरों में लगाता था। एक फिल्म के पच्चीस रुपये और चार फिल्म के सौ रुपये चार्ज करता था। मैंने फिल्में देख-देखकर फिल्म बनानी सीखी। मैंने फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग नहीं ली है।
रोड टू संगम के बारे में बताएं? प्रोमो से हिंदू-मुस्लिम विवाद पर आधारित फिल्म लग रही है?
हिंदू-मुस्लिम विवाद पर यह फिल्म नहीं है। हमारी सोच ऐसी हो गई है कि यदि मुस्लिम शब्द कहीं आता है, तो हम हिंदू खुद उसमें जोड़ देते हैं। यह इंडिया की पहली फिल्म है, जो पूरी तरह से मुस्लिम कम्यूनिटी की फिल्म है और मुस्लिम सॉल्यूशन देती है। यह अस्मतुल्लाह नाम के एक मैकेनिक के जीवन पर आधारित फिल्म है। यह लोगों को महात्मा गांधी के आदर्श, सिद्धांत और विचारों की याद दिलाएगी। मैं फिल्म के जरिए यही कहना चाहता हूं कि वर्षो पहले एक आदमी हमें बहुत कुछ दे गया था, उसे हमें संजोकर रखना चाहिए। रोड टू संगम की पूरी शूटिंग इलाहाबाद में हुई है।
फिल्म का सब्जेक्ट सीरियस है। इसे बनाने में निश्चित ही चुनौतियों से गुजरना पड़ा होगा?
मैं इसे सीरियस नहीं, चैलेंजिंग फिल्म कहूंगा। मुझे सिनेमा को कैटेगरी में रखना पसंद नहीं। इस फिल्म को लेकर मेरा आत्मविश्वास मजबूत था। मेरा मानना है कि यदि आपको कोई चीज अच्छी लगती है, तो आप दर्शकों को उसे देखने के लिए कंविंस कर सकते हैं। इसे बनाने में मुझे कई मुश्किलें आई, लेकिन मुश्किलों का सामना करने में मुझे मजा आया। मैंने यह फिल्म अपनी शर्तो पर बनाई है।
आपकी फिल्म रिलीज से पूर्व कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी है। इससे उत्साह तो बढ़ा होगा?
पहली फिल्म को इतना सम्मान मिलना मेरे लिए गर्व की बात है। मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया है। अब मैं इस फिल्म के बारे में लोगों को गर्व से बताता हूं। फिल्म को साउथ अफ्रीका, जर्मनी, लॉस एंजेलिस, मुंबई के फिल्म समारोहों में सम्मानित किया गया है। मैं इसका श्रेय अकेले नहीं लूंगा। जो भी सम्मान मिला है, उसका श्रेय फिल्म की पूरी टीम को जाता है।
क्या आपने अगली फिल्म पर काम शुरू कर दिया है?
हां, मैं आध्यात्म पर एक फिल्म लिख रहा हूं। फिलहाल मैं कहना चाहूंगा कि अच्छे दर्शकों का कर्त्तव्य है कि वे अच्छी फिल्म हॉल में जाकर देखें। रोड टू संगम को अब दर्शकों को प्यार चाहिए।
अपने बारे में बताएं?
मैं ठाणे (महाराष्ट्र) के उल्हास नगर का हूं। मैं झोपड़ी में पला-बढ़ा हूं। मुझे चप्पल से जूते तक पहुंचने में सत्रह साल लग गए। मेरे पापा ने एक अच्छा काम यह किया कि मुझे शिक्षा बहुत अच्छी दिलाई। मैं साइंस में ग्रेजुएट हूं। मैंने ड्रैमेटिक्स में एम.ए. किया है। मैं पढ़ने के साथ-साथ थिएटर से जुड़ा रहा। मेरी शुरुआत मराठी एक्सपेरिमेंटल थिएटर से हुई। मैं मराठी फिल्म टिंग्य में एसोसिएट डायरेक्टर था।
फिल्म निर्देशन में आपका कैसे आना हुआ? क्या आपने फिल्म निर्देशन की ट्रेनिंग ली है?
मेरे पापा ने किसी को पैसे उधार दिए थे। उस बंदे ने अच्छा काम यह किया कि पैसे लौटाने की बजाए उसने एक वीसीआर और टीवी दे दिया। यह 1985 की बात है। मैं रात भर जागकर वह वीसीआर और टीवी किराए पर लोगों के घरों में लगाता था। एक फिल्म के पच्चीस रुपये और चार फिल्म के सौ रुपये चार्ज करता था। मैंने फिल्में देख-देखकर फिल्म बनानी सीखी। मैंने फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग नहीं ली है।
रोड टू संगम के बारे में बताएं? प्रोमो से हिंदू-मुस्लिम विवाद पर आधारित फिल्म लग रही है?
हिंदू-मुस्लिम विवाद पर यह फिल्म नहीं है। हमारी सोच ऐसी हो गई है कि यदि मुस्लिम शब्द कहीं आता है, तो हम हिंदू खुद उसमें जोड़ देते हैं। यह इंडिया की पहली फिल्म है, जो पूरी तरह से मुस्लिम कम्यूनिटी की फिल्म है और मुस्लिम सॉल्यूशन देती है। यह अस्मतुल्लाह नाम के एक मैकेनिक के जीवन पर आधारित फिल्म है। यह लोगों को महात्मा गांधी के आदर्श, सिद्धांत और विचारों की याद दिलाएगी। मैं फिल्म के जरिए यही कहना चाहता हूं कि वर्षो पहले एक आदमी हमें बहुत कुछ दे गया था, उसे हमें संजोकर रखना चाहिए। रोड टू संगम की पूरी शूटिंग इलाहाबाद में हुई है।
फिल्म का सब्जेक्ट सीरियस है। इसे बनाने में निश्चित ही चुनौतियों से गुजरना पड़ा होगा?
मैं इसे सीरियस नहीं, चैलेंजिंग फिल्म कहूंगा। मुझे सिनेमा को कैटेगरी में रखना पसंद नहीं। इस फिल्म को लेकर मेरा आत्मविश्वास मजबूत था। मेरा मानना है कि यदि आपको कोई चीज अच्छी लगती है, तो आप दर्शकों को उसे देखने के लिए कंविंस कर सकते हैं। इसे बनाने में मुझे कई मुश्किलें आई, लेकिन मुश्किलों का सामना करने में मुझे मजा आया। मैंने यह फिल्म अपनी शर्तो पर बनाई है।
आपकी फिल्म रिलीज से पूर्व कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी है। इससे उत्साह तो बढ़ा होगा?
पहली फिल्म को इतना सम्मान मिलना मेरे लिए गर्व की बात है। मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया है। अब मैं इस फिल्म के बारे में लोगों को गर्व से बताता हूं। फिल्म को साउथ अफ्रीका, जर्मनी, लॉस एंजेलिस, मुंबई के फिल्म समारोहों में सम्मानित किया गया है। मैं इसका श्रेय अकेले नहीं लूंगा। जो भी सम्मान मिला है, उसका श्रेय फिल्म की पूरी टीम को जाता है।
क्या आपने अगली फिल्म पर काम शुरू कर दिया है?
हां, मैं आध्यात्म पर एक फिल्म लिख रहा हूं। फिलहाल मैं कहना चाहूंगा कि अच्छे दर्शकों का कर्त्तव्य है कि वे अच्छी फिल्म हॉल में जाकर देखें। रोड टू संगम को अब दर्शकों को प्यार चाहिए।
-raghuvendra singh
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