तेलुगू फिल्मों के आमिर खान के नाम से मशहूर सिद्धार्थ खुद को शाहरूख खान मानते हैं। चार साल पूर्व सिद्धार्थ रंग दे बसंती फिल्म में एक यादगार भूमिका में दिखे थे। सिद्धार्थ का लक्ष्य अब हिंदी फिल्मों का सुपर स्टार बनना है। फिल्म स्ट्राइकर उस दिशा में पहला कदम है।
रंग दे बसंती के बाद के चार सालों में यहां क्या बदलाव देख रहे हैं?
अब अच्छी फिल्मों का माहौल है। इस वजह से मैं बहुत एक्साइटेड हूं। स्ट्राइकर के बाद मैं ढेर सारी हिंदी फिल्में करूंगा। मैं अल्ट्रा चूजी नहीं हूं ।
स्ट्राइकर चुनने की क्या वजह है?
रंग दे बसंती में मैं इसेंबल कास्ट था। मुझे पता था कि अगली फिल्म में मुझे अपनी एक्टिंग का पूरा रेंज दिखाना पड़ेगा। मैं चाहता था कि लोग दुकान में जाकर पूछें कि सिद्धार्थ है क्या? ये नहीं कि वो वाला बॉक्स है क्या, जिसमें सिद्धार्थ है। मैंने साउथ में बॉक्स ऑफिस पर डेढ़ सौ करोड़ का कलेक्शन किया है। जिस बंदे ने वो देख लिया है, वह यहां कौडि़यों से नहीं खेलेगा। स्ट्राइकर से मैं खुद को लांच कर रहा हूं।
किस जॉनर की फिल्म है स्ट्राइकर?
अमिताभ सर की जंजीर याद कीजिए। स्ट्राइकर उसी जॉनर की फिल्म है। यह सिंगल हीरो की लाइफ स्टोरी है। कहानी 1980 में सेट है। मेरे किरदार का नाम सूर्यकांत सारंग है। वह कैरम का खेली है। सूर्या का जन्म मुंबई के मालवणी नाम के स्लम में होता है। फिल्म में सूर्या के दस साल से तीस साल के उम्र की जर्नी है। सूर्या के लाइफ की च्वाइसेस और किस्मत की स्टोरी है यह। स्ट्राइकर सूर्यकांत सारंग के प्यार, परिवार, दोस्ती और दुश्मनी की बात करती है। यह मल्टी डाइमेंशनल इमोशनल फिल्म है।
आपने फिल्म में दो गाने गाए हैं। एक्टिंग और सिंगिंग के अलावा और क्या टैलेंट छुपा रखा है?
मैंने बांबे बांबे और हक से दो गाने गाए हैं और फिल्म का म्यूजिक अलबम भी प्रोड्यूस किया है। मैंने सात साल कर्नाटक संगीत सीखा है। मैं ड्रम्स भी बजाता हूं। मैंने एक फिल्म भी लिखी है। मैं डायरेक्टर बनना चाहता था। मैंने मणि रत्नम को कुछ साल असिस्ट किया है। एक्टर बाई चांस बन गया।
मुंबई में क्या योजनाएं हैं?
मेरी अगली फिल्म में चार महीने का भी गैप नहीं होगा। मैंने तेलुगू फिल्मों में जो स्टारडम हासिल किया है, वही हिंदी फिल्मों में पाना है। उसके लिए मुझे आम दर्शकों का प्यार चाहिए।
-रघुवेन्द्र सिंह
रंग दे बसंती के बाद के चार सालों में यहां क्या बदलाव देख रहे हैं?
अब अच्छी फिल्मों का माहौल है। इस वजह से मैं बहुत एक्साइटेड हूं। स्ट्राइकर के बाद मैं ढेर सारी हिंदी फिल्में करूंगा। मैं अल्ट्रा चूजी नहीं हूं ।
स्ट्राइकर चुनने की क्या वजह है?
रंग दे बसंती में मैं इसेंबल कास्ट था। मुझे पता था कि अगली फिल्म में मुझे अपनी एक्टिंग का पूरा रेंज दिखाना पड़ेगा। मैं चाहता था कि लोग दुकान में जाकर पूछें कि सिद्धार्थ है क्या? ये नहीं कि वो वाला बॉक्स है क्या, जिसमें सिद्धार्थ है। मैंने साउथ में बॉक्स ऑफिस पर डेढ़ सौ करोड़ का कलेक्शन किया है। जिस बंदे ने वो देख लिया है, वह यहां कौडि़यों से नहीं खेलेगा। स्ट्राइकर से मैं खुद को लांच कर रहा हूं।
किस जॉनर की फिल्म है स्ट्राइकर?
अमिताभ सर की जंजीर याद कीजिए। स्ट्राइकर उसी जॉनर की फिल्म है। यह सिंगल हीरो की लाइफ स्टोरी है। कहानी 1980 में सेट है। मेरे किरदार का नाम सूर्यकांत सारंग है। वह कैरम का खेली है। सूर्या का जन्म मुंबई के मालवणी नाम के स्लम में होता है। फिल्म में सूर्या के दस साल से तीस साल के उम्र की जर्नी है। सूर्या के लाइफ की च्वाइसेस और किस्मत की स्टोरी है यह। स्ट्राइकर सूर्यकांत सारंग के प्यार, परिवार, दोस्ती और दुश्मनी की बात करती है। यह मल्टी डाइमेंशनल इमोशनल फिल्म है।
आपने फिल्म में दो गाने गाए हैं। एक्टिंग और सिंगिंग के अलावा और क्या टैलेंट छुपा रखा है?
मैंने बांबे बांबे और हक से दो गाने गाए हैं और फिल्म का म्यूजिक अलबम भी प्रोड्यूस किया है। मैंने सात साल कर्नाटक संगीत सीखा है। मैं ड्रम्स भी बजाता हूं। मैंने एक फिल्म भी लिखी है। मैं डायरेक्टर बनना चाहता था। मैंने मणि रत्नम को कुछ साल असिस्ट किया है। एक्टर बाई चांस बन गया।
मुंबई में क्या योजनाएं हैं?
मेरी अगली फिल्म में चार महीने का भी गैप नहीं होगा। मैंने तेलुगू फिल्मों में जो स्टारडम हासिल किया है, वही हिंदी फिल्मों में पाना है। उसके लिए मुझे आम दर्शकों का प्यार चाहिए।
-रघुवेन्द्र सिंह
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