Saturday, March 26, 2011

भारत पर फिदा एक्स मैन सुपरस्टार ह्यू जैकमैन


फिक्की फोरम में एक मंच पर आए शाहरुख खान और ह्यू जैकमैन

मुम्बई, २६ फरवरी. फिक्की फोरम 2011 के अंतिम दिन शुक्रवार को हॉलीवुड सुपर स्टार ह्यू जैकमैन और हिंदी सिनेमा के किंग शाहरुख खान एक मंच पर आए। दोनों स्टार्स ने न सिर्फ हॉल में एकत्रित लोगों का भरपूर मनोरंजन किया बल्कि बॉलीवुड और हॉलीवुड सिनेमा पर गंभीर चर्चा की। एक्स मैन सीरीज और वुलवरीन फेम ह्यू जैकमैन का परिचय शाहरुख खान ने बॉलीवुड स्टाइल में दिया। जैकमैन की फिल्मों के दृश्य और हिंदी फिल्मों के गीत मिलाकर एक ऑडियो विजुअल तैयार किया गया था। पहली बार हिंदुस्तान आए जैकमैन ने कहा कि मैं मुंबई में 24 घंटे रहा हूं, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे एक माह से हूं। यहां का कल्चर और डाइवर्सिटी कमाल की है। मैं भारत वापस आना पसंद करूंगा। जैकमैन ने खुद को शाहरुख का फैन बताते हुए कहा कि वे बॉलीवुड फिल्मों में काम करने के इच्छुक हैं। शाहरुख खान ने जैकमैन का स्वागत करते हुए बॉलीवुड फिल्मों में काम करने की बात रखी। शाहरुख खान ने यह भी कहा कि जैकमैन की फिल्में एक्स मैन और वुलवरीन उनकी नई फिल्म रा.वन की प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि रा.वन बनाने से पहले उन्होंने जैकमैन की सभी फिल्में देखीं। जैकमैन ने बताया कि उनके देश ऑस्ट्रेलिया में हिंदी फिल्में बहुत लोकप्रिय हैं। गौरतलब है कि शाहरुख और जैकमैन के साथ मंच पर फिल्मकार करण जौहर उपस्थित थे, जो चर्चा को आगे बढ़ा रहे थे। शाहरुख और जैकमैन दोनों ने संभावना जताई कि भविष्य में बॉलीवुड के कलाकारों को लेकर हॉलीवुड में फिल्म बनाएंगे। विदा लेने से पूर्व शाहरुख खान ने जैकमैन से माधुरी दीक्षित के धक धक करने लगा गीत पर ठुमके भी लगवाए। जल्द भारत लौटने की इच्छा जताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अब जैक भाई भी बुलाया जा सकता है।
-रघुवेंद्र सिंह 

नए जुनून के साथ अध्ययन का आगाज


कंगना के बॉयफ्रेंड और शेखर सुमन के बेटे की पहचान अध्ययन सुमन को चुभती थी। इस वजह से उन्होंने मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से भी सपर्क खत्म कर दिया था, लेकिन अब अध्ययन नई सोच, ऊर्जा और तीन नई फिल्मों के साथ लौट आए हैं। अध्ययन कहते हैं, 'जब लोग मुझसे कहते थे कि आप नाम यूज करके आगे बढ़ रहे हैं, तो मुझे बहुत तकलीफ होती थी। मेरा ब्रेकअप हुआ। मेरी फिल्म 'जश्न' नहीं चली। लोग कहने लगे थे कि अध्ययन को फिल्मों में दिलचस्पी नहीं है। मेरे रिलेशनशिप की बात ज्यादा होने लगी। ऐसे में मुझे लगा कि सबसे कट ऑफ करना अच्छा है।'

'राज-द मिस्ट्री' के रूप में एक हिट फिल्म और 'जश्न' में सराहनीय अभिनय करने के बावजूद अध्ययन को बड़े बैनर की फिल्मों का ऑफर नहीं आया। अध्ययन कहते हैं, 'मैंने तेइस साल की उम्र में जान लिया कि यहा समालोचकों की तारीफ का कोई फायदा नहीं है। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म चलती है, तभी लोग आपके पास आते हैं।'
अध्ययन ने हाल में तीन फिल्में 'दि आउटसाइडर', 'अवेक' और 'देख भाई देख' साइन की हैं। रानी मुखर्जी के भाई राजा मुखर्जी निर्देशित उनकी फिल्म 'लाइफ इसे गले लगा ले' की शूटिंग पूरी हो चुकी है। अध्ययन कहते हैं, 'दि आउडसाइडर' की शूटिंग अगले महीने शुरू होगी। 'अवेक' में मैं डैड के निर्देशन में काम करने जा रहा हूं। इन फिल्मों में मेरी भूमिकाएं मेच्योर और पॉवरफुल हैं।' वह इस बात से इंकार करते हैं कि शेखर सुमन उनके कॅरियर को पुश करने के लिए 'अवेक' फिल्म बना रहे हैं। अध्ययन कहते हैं, 'रितिक रोशन और इमरान खान से ज्यादा मुझे शाहरुख खान का सफर इंट्रेस्टिंग लगता है। डैड को हमेशा से डायरेक्टर बनना था। उन्हें लगता है कि उनकी फिल्म में मैं रोल डिजर्व करता हूं, इसलिए उन्होंने मुझे साइन किया है। मैं अपनी काबिलियत से आगे बढ़ना चाहता हूं। डैड की बदौलत पहचान नहीं बनाना चाहता।'
-रघुवेंद्र सिंह  

आइटम क्वीन की रेस में विद्या


मलाइका अरोरा खान, कट्रीना कैफ, करीना कपूर और मल्लिका सहरावत के बाद आइटम क्वीन की रेस में अब विद्या बालन भी शामिल हो गई हैं। विद्या बालन और आइटम नंबर.. सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन विद्या को किसी भी मामले में दूसरी अभिनेत्रियों से कम नहीं आका जाना चाहिए। सतोष सिवान की मलयालम फिल्म 'उरुमी' में विद्या का आइटम नंबर अभी से चर्चा का विषय बन गया है। विद्या कहती हैं, 'सतोष सिवान ने मुझसे आइटम नंबर करने के लिए कहा। मैं उन्हें ना नहीं कह सकती थी। आइटम नंबर करने में मैं सहज महसूस नहीं कर रही थी, इसीलिए मैंने रिहर्सल की।'

गौरतलब है कि विद्या बालन का आइटम नबर शीला, मुन्नी और रजिया की तरह देसी नहीं होगा। विद्या मादक अंदाज में बेली डास करती नजर आएंगी। विद्या के अनुसार, 'आइटम नबर में मेरे बेली डास मूव हैं। मैं अपने डांस नंबर के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए एक्साइटेड हूं। मैं 'उरुमी' के रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार कर रही हूं।'
विद्या कहती हैं, 'मैंने 'उरुमी' में कुछ दृश्यों में अभिनय भी किया है।' मिलन लूथरिया की फिल्म 'द डर्टी' पिक्चर की शूटिंग की तैयारी में व्यस्त विद्या बालन पिछले साल की अपनी चर्चित फिल्म 'इश्किया' के सीक्वल की घोषणा से भी काफी उत्साहित हैं।
-रघुवेंद्र सिंह 

जोर का झटका वाली ऋचा


फरीदाबाद (हरियाणा) से 1994 में मुंबई का रुख करने वाली ऋचा शर्मा को अलग आवाज के कारण लंबा संघर्ष जरूर करना पड़ा, पर बाद में उनकी यही आवाज विशेषता बन गई। आज वे लोकप्रिय पा‌र्श्व गायिका हैं। लोग उनकी कद्र कर रहे हैं। ऋचा हंसते हुए कहती हैं, वैसे तो फिल्म इंडस्ट्री के लोग कहते हैं कि उन्हें कुछ हटके चाहिए, पर जब मेरी यूनीक आवाज आई, तो किसी ने मौका नहीं दिया। ऋचा को पहला ब्रेक 1996 में निर्माता-निर्देशक सावन कुमार ने सलमा पे दिल आ गया फिल्म में दिया। उसकी वजह थी कि एक कंसर्ट में उन्होंने ऋचा से वादा किया था कि वे उन्हें ब्रेक देंगे। उस फिल्म से ऋचा को इंडस्ट्री में अपना परिचय देने में आसानी हो गई, पर उनकी किस्मत बदली फिल्म ताल से, जिसमें उन्होंने एआर रहमान के निर्देशन में नी मैं समझ गई.. गीत गाया।

इंडस्ट्री में पंद्रह वर्ष की जर्नी तय कर चुकीं ऋचा कहती हैं, आज टैलेंट हंट शो में बच्चों को अपना गाना जुबैदा की ठुमरी, ताल का गीत, कांटे का माही वे.., गोल का बिल्लो रानी.., बागबान का टाइटिल सॉन्ग, माई नेम इज खान का सजदा.., ऐक्शन रिप्ले का जोर का झटका.. गाते देखकर गर्व महसूस होता है। ये मेरी उपलब्धियां हैं। इसे मेहनत से हासिल किया है। आज इन गीतों के बगैर मेरे शो पूरे नहीं होते। ऋचा साफ शब्दों में कहती हैं कि उन्होंने अपने सफर में किसी को साइड करने की राजनीति नहीं की और न ही किसी के साथ चापलूसी की, मैं न तो राजनीति करती हूं और न मुझसे जी हुजूरी होती है। मैं किसी के साथ कॉफी पीने भी नहीं जाती। मुझसे यह सब होता नहीं है। हां, अगर मुझे किसी का गाना अच्छा लगता है, तो मैं फोन करके उसे बधाई जरूर देती हूं, लेकिन आज तक मैंने काम मांगने के लिए किसी को फोन नहीं किया। ऋचा शर्मा के पहले गुरु उनके पिता पंडित दयाशंकर उपाध्याय रहे। वे बताती हैं, उन्होंने गायन तो सिखाया ही, जीवन जीने का हुनर भी सिखाया। वे कहते थे कि इंसान की सोच अमीर होनी चाहिए। जीवन राजा की तरह जीना चाहिए। गौर करने वाली बात यह है कि ऋचा के लिए तब मुश्किल हो गया था, जब लोग लोग समझते थे कि वे केवल नाक से ही गा सकती हैं। वे कहती हैं, मैं परेशान हो गई थी। हेरा फेरी के गीत तुनक तुनक तुन.. से वह ब्रेक हुआ, लेकिन लोग पहचान नहीं पाते थे कि मैंने ही गाया है। खैर, मैं जाने के लिए नहीं आई थी। मैं और आगे जाने के लिए आई थी। बिल्लो रानी.. से वह पूरी तरह ब्रेक हो गया। लोगों को यकीन हुआ कि मैं दूसरे किस्म के गाने भी गा सकती हूं, लेकिन ऐक्शन रिप्ले का जोर का झटका.. के बाद फिर वैसे ही गीत मिलने लगे हैं। थैंक्यू में एक गाना मैंने फिर नेजल वॉयस में गाया है।
करियर में सभी स्थापित संगीतकारों के लिए गीत गा चुकीं ऋचा जतिन-ललित की जोड़ी को बहुत मिस करती हैं। उनका मानना है, निजी समस्याओं को खत्म करके दोनों को फिर साथ काम करना चाहिए। ऋचा इंडस्ट्री के इस ट्रेंड से नाखुश हैं कि अब फिल्म के म्यूजिक रिलीज के वक्त गायक-गायिकाओं को याद नहीं किया जाता। वे कहती हैं, पहले बहुत बुरा लगता था, लेकिन अब आदत हो गई है। हमें लोग बताते भी नहीं कि एलबम रिलीज हो रहा है। हमें टीवी के जरिए पता चलता है। फिल्म इंडस्ट्री बाहर से परिवार जैसी दिखती है, लेकिन अंदर इसमें सिंगर, ऐक्टर और टीवी ऐक्टर के तीन परिवार बन चुके हैं।
ऋचा मानती हैं कि टीवी रियलिटी शो के आने से गायकों का चेहरा पब्लिक पहचानने लगी है। वे कहती हैं, रियलिटी शो की लोग लाख बुराई करें, पर गायकों को इससे लाभ हुआ है। लोग हमारा चेहरा पहचानने लगे हैं। सौ फिल्मों का आंकड़ा पार कर चुकीं ऋचा अब सेटल होना चाहती हैं। वे कहती हैं, मुझे ऐसे जीवनसाथी का इंतजार है, जो मेरे काम का सम्मान करे। मेरे लिए संगीत सब कुछ है। जिस दिन ऐसा इंसान मुझे मिल गया, सबको शादी का न्योता भेज दूंगी।
-रघुवेंद्र सिंह  

जो दिल कहे ऑलवेज वही करें: रोशन अब्बास


टीवी, रेडियो, थिएटर की दुनिया में शोहरत और सम्मान हासिल करने के बाद रोशन अब्बास अब फिल्म मेकिंग में आ गए हैं। ऑलवेज कभी कभी उनकी पहली फिल्म है। रोशन ने 1999 में एक नाटक लिखा था ग्रैफिटी। यह फिल्म उसी लोकप्रिय नाटक पर आधारित है। रोशन कहते हैं, मुझे युवाओं से जुड़े विषय आकर्षित करते हैं। 1999 में मैंने एक अंग्रेजी नाटक ग्रैफिटी लिखा था। नेहा धूपिया, सायरस ब्रोचा, समीर कोचर, गौरव कपूर ने उसमें अभिनय किया था। मैं अपने उस नाटक पर फिल्म बनाना चाहता था।

ऑलवेज कभी कभी को रोशन टीन कमिंग एज फिल्म मानते हैं। वे कहते हैं, यह जॉनर वेस्ट में पॉपुलर है। यह फिल्म किशोरों के बारे में बात करती है। उनकी मानसिक अवस्था की बात है इसमें। विडंबना है कि किशोर अपने विचारों में स्पष्ट नहीं हैं। हमारी फिल्म में एक लाइन है, कभी कभी जो दिल कहे, ऑलवेज वही करें।
फिल्म में गिजेल मोंटेरियो, जोया मोरानी और सत्यजीत दुबे ने मुख्य भूमिका निभाई है। फिल्म का निर्माण शाहरुख खान ने किया है, लेकिन रोशन ने उनके संबंधों का लाभ नहीं उठाया। उन्होंने पॉपुलर कलाकारों को साइन नहीं किया। रोशन कहते हैं, मुझे इसके लिए फ्रेश चेहरे चाहिए थे। मेरे किरदार की मांग वही थे, इसलिए मैंने गिजेल, जोया, सत्यजीत का चयन किया। जोया एक बातूनी लड़की का किरदार निभा रही हैं और गिजेल फिल्म में बहुत कम बोलती दिखेंगी। गिजेल का नाम मुझे शाहरुख ने ही सुझाया। उन्होंने कहा कि लव आज कल में वे थीं, देख लीजिए। मुझे इन फ्रेश टैलेंट्स के साथ काम करके मजा आया। वे मुझे अब्बा कहते थे। मेरे नाम से स हटा दिया था। वे मेरे पास आकर सुझाव मांगते थे।
रोशन खुश हैं कि उनकी फिल्म को शाहरुख खान जैसा निर्माता मिला। वे बताते हैं, 2008 में मैं शाहरुख के साथ लाइव शो करता था। हम दुबई में थे। शाहरुख ने स्टेज के पीछे ऐसे ही सामान्य सा एक सवाल पूछा कि आजकल क्या कर रहे हैं? मैंने कहा कि एक स्क्रिप्ट लिखी है। उसमें फ्रेश चेहरे होंगे, लेकिन उसे एक बड़े प्रोडक्शन हाउस का सपोर्ट चाहिए। शाहरुख ने कहा कि हम ऐसा प्रोजेक्ट करना चाहते हैं। आप मुंबई हमारे ऑफिस में आकर मिलिए। फिर बात बन गई। मैंने फिल्म की शूटिंग दिल्ली, लखनऊ, मुंबई और गोवा में की है। मैं चाहता तो विदेश में फिल्म की शूटिंग कर सकता था, लेकिन मैं बताना चाहता था कि हिंदुस्तान में खूबसूरत लोकेशन हैं।
ऑलवेज कभी कभी शाहरुख खान के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म जरूर है, लेकिन उसमें उनकी झलक देखने को जरा भी नहीं मिलेगी। रोशन ने ग्रैफिटी नाटक में प्रिंसिपल की भूमिका निभाई थी, पर उन्होंने भी इस फिल्म में अभिनय करना उचित नहीं समझा। इस बारे में वे कहते हैं, मेरे असिस्टेंट रोज सेट पर एक कलाकार कम बुलाते थे और मुझसे कहते थे कि सर, आप फलां रोल कर दीजिए। लेकिन मैंने नहीं किया। प्रिंसिपल का रोल इसमें आकाश खुराना ने किया है। जहां तक शाहरुख खान की बात है, तो मेरी फिल्म बहुत छोटी है। शाहरुख के आने से दर्शकों की उम्मीदें बढ़ जातीं और मैं नहीं चाहता था कि ऐसा हो। वैसे भी यह मेरी आखिरी फिल्म नहीं है। लखनऊ में पले-बढ़े रोशन अब्बास का लक्ष्य अपना फिल्म प्रोडक्शन हाउस खोलना है। आगामी योजनाओं के बारे में वे कहते हैं, दो प्रोडक्शन हाउस से अगली फिल्म के लिए मेरी बात चल रही है। जल्दी ही सब तय हो जाएगा।

-रघुवेंद्र सिंह   

Sunday, March 20, 2011

खूब मस्ती करती थी होली पर-रानी मुखर्जी

पूरे दिन रंग की फुहार और गुलाल क आनन्द लेने के बाद आज रात बारह बजे तारीख बदलते ही करीबी दोस्तों और परिजनों की मौजूदगी में प्रिय भतीजी माएशा के साथ अपने जन्मदिन क केक काटेंगी रानी  मुखर्जी .  
होली और जन्मदिन का जिक्र करते ही रानी मुखर्जी को बचपन के दिन याद आ जाते हैं। जुहू स्थित अपने नए आलीशान बगले कृष्णाराम में बैठी रानी उत्साह के साथ बताती हैं, 'मैं तब जानकी कुटीर में रहती थी। वहा एक क्लब था। क्लब में पकौड़े, चाट और तरह-तरह की मिठाइया हमारा आकर्षण होती थीं। हम खूब खाते थे और रंगों से खेलते थे। उसी वक्त मेरे एक्जाम भी चल रहे होते थे, जिसके कारण मैं दूसरों की तरह होली ज्यादा नहीं खेल पाती थी।'
रानी को अमिताभ बच्चन के घर की होली याद है। वह बताती हैं, 'बच्चन परिवार के घर मैंने एक-दो बार होली मनाई है। वैसे मैं ज्यादा होली नहीं खेलती हूं, क्योंकि अब मुझे रंग लगाना बड़ा अजीब लगता है। मैं होली के दिन मम्मी-डैडी के चरणों में रंग डालती हूं। उनका आशीर्वाद लेती हूं।'
होली के अगले दिन अपने 33वें जन्मदिन को लेकर उत्साहित रानी कहती हैं, 'जन्मदिन पर हम सब बच्चे बन जाते हैं। केक काटना अच्छा लगता है। आप स्पेशल फील करते हैं। हालाकि आपकी उम्र एक साल और बढ़ जाती है, पर मैं इससे दुखी नहीं होती। मैं तो खुश होती हूं, क्योंकि हर साल नई चुनौतिया लेकर आता है। मैं इस साल ऐसी फिल्में साइन करना चाहती हूं जिसमें मेरा रोल जबर्दस्त हो।' गौरतलब है कि रानी इस साल रीमा कागती की फिल्म में आमिर खान के साथ नजर आएंगी।
रानी मुखर्जी यह बात शेयर करने से हिचकिचाती नहीं हैं कि उनके मम्मी-डैडी उनकी शादी को लेकर फिक्रमद हैं। रानी कहती हैं,'मम्मी-डैडी को मेरी शादी की फिक्र है। वे चाहते हैं कि जब भी मेरी शादी हो अच्छे से हो। वे कभी-कभी पूछते हैं कि तुम शादी कब कर रही हो? मैं जवाब में कहती हूं कि जल्द करूंगी।'
रानी कहती हैं कि मैं भतीजी माएशा के साथ जन्मदिन का केक काटने के बाद एक सप्ताह के लिए देश के बाहर घूमने निकल जाऊंगी।
जागरण परिवार की ओर से रानी को जन्मदिन की शुभकामनाएं।
-रघुवेन्द्र सिह

Saturday, March 19, 2011

आज भी गाढ़ा है वह रंग-अमिताभ बच्चन

होली के त्योहार से अमिताभ बच्चन का संबंध निजी जीवन में ही नहीं, बड़े पर्दे पर भी मधुर एवं अविस्मरणीय रहा है। होली पर विशेष बातचीत
होली का नाम आते ही आपके जेहन में कैसी छवियां उभर आती हैं?
होली का संबंध पहले तो मौसम बदलने से है। शीतकाल समाप्त और गर्मी का मौसम आरंभ। फिर रंग, होली का जश्न, मित्रों के साथ मिलकर रंगों का मिलन, स्वादिष्ट पकवान, संगीत और नृत्य और शाम को मिलना।
बाबूजी के जमाने की होली की यादें बांटें?
बाबूजी होली बहुत ही खुले दिल से मनाते थे। बहुत सारे उनके मित्र, विद्यार्थी घर आकर के साथ में होली खेला करते थे। होली का वह रंग आज भी मेरी स्मृतियों में जीवंत है। उत्तर प्रदेश की लोक धुनों पर आधारित गीत सुनाया करते थे, जिनमें से कई तो मैंने अपनी फिल्मों में गाए हैं।
आपकी अब तक की यादगार होली कौन सी रही है?
प्रत्येक होली का त्योहार मेरे लिए यादगार रहा है।
क्या दर्शकों की तरह हिंदी फिल्मों से गायब हो रहे होली के त्योहार की फिक्र आपको भी है?
ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। जब-जब फिल्म की कहानी में होली के त्योहार को दर्शाने की आवश्यकता पड़ती है तो उसे दर्शाया जाता है। होली ही क्यों, हर अन्य त्योहार के लिए भी यही भावना है। चाहे वो दीवाली हो, ईद हो, गणेश उत्सव हो या क्रिसमस एवं न्यू ईयर।
आपके पसंदीदा होली गीत कौन से हैं?
रंग बरसे और होली खेलें रघुवीरा अवध में होली खेलें..।
क्या इस बार आप होली मना रहे हैं?
इस बार शायद होली हमारे यहां नहीं मनाई जाएगी। परिवार के निकट संबंधी के निधन के कारण।
-रघुवेंद्र सिंह

मिलती थी गालियां: जैकी भगनानी


फिल्म फालतू के रूप में जैकी भगनानी को खुद को अच्छा ऐक्टर साबित करने का दूसरा मौका मिला है। रेमो डिसूजा के निर्देशन में उन्होंने अपना बेस्ट देने की कोशिश की है। पिछले दिनों जैकी भगनानी से मुलाकात हुई, तो इस फिल्म को लेकर बातें हुई। प्रस्तुत हैं अंश..

फिल्म का शीर्षक फालतू है। आपको ऐसा नहीं लगा कि लोग फालतू कहकर मजाक उड़ाएंगे?
मैंने पहली फिल्म से बहुत कुछ सीखा है। मैं स्पष्ट था कि अगर दिल कहता है कि टाइटिल फालतू होना चाहिए तो मैं रखूंगा। दिल से बनाऊंगा, तो फिल्म लोगों के दिल से कनेक्ट होगी। मेरी पहली फिल्म में सब कुछ परफेक्ट था। अच्छे कपड़े, अच्छी लोकेशन, शानदार बाइक, लेकिन क्या हुआ? किसी को वह पसंद नहीं आई। इस फिल्म में मैं अच्छे कपड़े में नहीं हूं, बिना मेकअप के हूं।
पहली फिल्म की असफलता के बाद आपने आत्मविश्लेषण किया?
अगर आप खुद को टटोलेंगे नहीं, तो ग्रो कैसे करेंगे। मैं पॉजिटिव हूं। मैंने पहली फिल्म में बहुत मेहनत की थी। साठ किलो वजन कम किया था। जब लोगों को फिल्म अच्छी नहीं लगी, तो मैंने सोचा कि क्यों नहीं पसंद आई? मेरी नीयत तो अच्छी थी। मैंने दोस्तों से पूछा कि क्यों नहीं अच्छी लगी मेरी फिल्म? उन्होंने कहा कि कहानी नहीं थी? और भी बातें थीं, मैंने उन बातों पर गौर किया।
जब दूसरी फिल्म बनाने की बात डैड से कही तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
कल किसने देखा की रिलीज से तीन महीने पहले मैंने और रेमो ने डिसाइड कर लिया था कि फालतू बनाएंगे। जब वह रिलीज हुई और नहीं चली, तो बहुत दुख हुआ। दूसरे ऐक्टर की फिल्म नहीं चलती है, तो फिर भी उनके काम की तारीफ होती है, लेकिन मुझे ऐक्टर के तौर पर भी के्रडिट नहीं मिला। लोगों को मेरा डांस पसंद आया। यह प्रतिक्रिया थी कि हां, एक्टिंग कर सकता है। जब तक फालतू का प्रोमो स्टार्ट नहीं हुआ था, तब तक मुझे ट्विटर पर गालियां मिलती थीं। लोग कहते थे कि तू अपने बाप के बगैर कुछ नहीं है। दुख होता है कि इतनी मेहनत के बाद भी लोगों को लगता है कि मैं मेहनत नहीं करता हूं। मैं सोच रहा था क्या और कैसे करें? मैंने रेमो से कहा कि बजट एक तिहाई कर लेते हैं। वे फौरन तैयार हो गए। डैड के साथ मेरा अच्छा रैपो है। उन्हें पता था कि पहली फिल्म में क्या प्रॉब्लम हुई थी। फालतू को रेमो और मैंने चैलेंज के तौर पर लिया। उन्हें डायरेक्टर के तौर पर ब्रेक मिला और मुझे दूसरा मौका।
फालतू है क्या?
मैं इसमें रितेश विरानी का किरदार निभा रहा हूं। उसके तीन दोस्त हैं। यह उन चारों की कहानी है। उनकी पढ़ाई में रुचि नहीं है। लोग फालतू कहते हैं। बाद में वही फालतू जब सफल होता है, तो लोग कहते हैं कि मेरा बेटा है, मेरा रिश्तेदार है। हमारी फिल्म यही है।
क्या आपका किरदार हीरो जैसा है?
अच्छी बात यह है कि फिल्म में कोई हीरो नहीं है। मेरे लिए जरूरी था कि मैं दिखावा बिल्कुल भी न करूं। बस एक्टिंग करूं। इसमें रोमांस भी है लेकिन रोमांटिक फिल्म नहीं है। 
-रघुवेंद्र सिंह 

Thursday, March 17, 2011

एकता ने मेरे लिए कुछ नहीं किया


तुषार कपूर को नहीं पसद कि उनकी मेहनत का श्रेय कोई और ले जाए, फिर चाहे वह बहन एकता कपूर ही क्यों न हो। अभिनय में दस साल पूरा कर रहे तुषार कपूर ने एक विशेष मुलाकात में साफ शब्दों में कहा, 'एकता ने कभी मेरे लिए कुछ नहीं किया। मेरी पहली फिल्म 'मुझे कुछ कहना है' बालाजी के बैनर की नहीं थी। मैंने बाइस फिल्में की हैं, जिसमें तीन या चार बालाजी की हैं। शोर इन द सिटी' और 'द डर्टी पिक्चर' मेरी आने वाली फिल्में हैं।' अभिनय में अब तक का सफर मैंने अपनी मेहनत से तय किया है। अब मैं अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू करने जा रहा हूं। मैं एकता के साथ फिल्म नहीं बनाऊंगा। मैं पार्टनर ढूंढ रहा हूं।'
तुषार आगे कहते हैं 'लोगों में यह इंप्रेशन है कि एकता मुझे सपोर्ट कर रही हैं। दूसरे एक्टर अपने फादर के साथ फिल्म करते हैं। कुछ लोग अपने चाचा और मामा की कंपनी की फिल्में करके नाम कमाते हैं। उनके बारे में कोई कुछ नहीं कहता। मैंने बाहर की फिल्मों में काम करके अपना नाम बनाया। 'क्या कूल हैं हम' फिल्म में काम करने से कई अभिनेताओं ने इंकार कर दिया था। मुझसे कहा गया कि तू घर का है, कर ले। फिर मैंने उस फिल्म के लिए हा कहा। उस वक्त बालाजी को मैं सपोर्ट कर रहा था। सगीत सिवन ने मुझसे गुजारिश की। डिनो, आफताब, सोहेल खान ने 'क्या कूल हैं हम' में काम करने से मना कर दिया था। ये बात किसी को पता है नहीं।'
तुषार ने कॅरियर से जुड़े फैसले लेने अब खुद शुरू कर दिए हैं। तुषार ने बताया, आरंभ में मेरे कॅरियर के डिसीजन डैड ने लिए थे, जोकि गलत साबित हुए। अब मैं अपने फैसले खुद लेता हूं।'
तुषार अपनी गुड ब्वॉय की छवि से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'पर्सनल लाइफ में आपको जाने बगैर लोग आपकी इमेज बना देते हैं। मुझे भी गुस्सा आता है, मैं भी आपा खोता हूं। मैं निजी जीवन में जैसा हूं, पता नहीं वैसी इमेज क्यों नहीं बन पा रही है। शायद कॅरियर की शुरुआत में पीआर एक्सरसाइज न होने के कारण ऐसा हुआ। मैं मीडिया के सामने खुलकर नहीं आया, उस वजह से यह हुआ। मुझे यकीन है कि आने वाली फिल्म 'शोर इन द सिटी' और 'द डर्टी पिक्चर' से मेरी इमेज बदलेगी।'
-रघुवेन्द्र सिह

Tuesday, March 15, 2011

बस यादों में ही बचा है मैजेस्टिक सिनेमा


मुंबई, १५ मार्च.  हिंदी सिनेमा की पहली बोलती फिल्म आलम आरा का प्रिंट ही नहीं गायब हुआ है बल्कि इस फिल्म के प्रदर्शन का साक्षी रहे मैजेस्टिक सिनेमा का भी नामो-निशां  मिट चुका है। दक्षिण मुंबई में गिरगांव  में स्थित मैजेस्टिक  सिनेमा के स्थान पर अब बहुमंजिला मैजेस्टिक  शॉपिंग  सेंटर खड़ा हो चुका है।

चौदह मार्च, 1931  को मैजेस्टिक  सिनेमा में प्रदर्शित हुई आलम आरा फिल्म के अस्सी वर्ष पूरे होने पर अखबार, न्यूज चैनल एवं पत्र-पत्रिकाओं में जश्न मनाया जा रहा है, लेकिन मैजेस्टिक  सिनेमा की जमीं पर खड़ी व्यावसायिक इमारत में लोग आलम-आरा के प्रदर्शन के अस्सी साल के जश्न से अंजान हैं। डायमंड व्यापारी रोज की तरह लेन-देन और ग्राहकों के इंतजार में बैठे हैं। दिलचस्प बात यह है कि गिरगांव  की नई पीढ़ी इस बात से भी अंजान है कि उनके इलाके में मैजेस्टिक  सिनेमा हुआ करता था। मैजेस्टिक  शॉपिंग  सेंटर में ग्राउंड फ्लोर पर चौबीस वर्षो से ट्रवेल  एजेंसी चला रहे प्रकाश दलवी  बताते हैं, बचपन में हम परिवार के साथ मैजेस्टिक  सिनेमा में फिल्में देखने आते थे। मराठी फिल्में ज्यादा चलती थीं, लेकिन टॉवर  कल्चर ने मैजेस्टिक  सिनेमा को कुचल दिया। अब तो हमारी यादों में ही मैजेस्टिक  सिनेमा है।
गौरतलब है कि मैजेस्टिक  शॉपिंग  सेंटर के मालिक गोवाली बिल्डर्स हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि गोवाली बिल्डर्स ने जब मैजेस्टिक  सिनेमा के स्थान पर शॉपिंग  सेंटर बनाना शुरू किया तो शिवसेना के नेता प्रमोद नवलकर  ने उनका विरोध किया। शिवसेना की मांग पर गोवाली बिल्डर्स ने मैजेस्टिक  थिएटर के लिए स्थान छोड़ा था, लेकिन बाद में पार्किग  स्पेस  की कमी के कारण थिएटर बनाने का विचार छोड़ना पड़ा। मैजेस्टिक  शॉपिंग सेंटर के सामने स्थित मैजेस्टिक  सिनेमा बस स्टॉप  के जरिए ही पता चलता है कि यहां मैजेस्टिक  सिनेमा हॉल  हुआ करता था। अब बस स्टॉप  में ही मैजेस्टिक  सिनेमा का इतिहास शेष है।
चौदह मार्च 1931  में हंड्रेड  परसेंट टॉकी  का दावा करती फिल्म आलम आरा का प्रदर्शन मैजेस्टिक सिनेमा में हुआ था। अर्देशिर  ईरानी निर्देशित आलम-आरा का जादू देखने भारी भीड़ इस थिएटर के बाहर उमड़ी थी। प्रतिदिन आलम आरा के तीन शो साढ़े शाम पांच बजे, आठ बजे और दस बजे चलाया जाता था। शनिवार, रविवार और बैंक की छुट्टियों के दिन तीन बजे का स्पेशल शो चलाया जाता था। स्कूल और कॉलेज  के लड़के-लड़कियों के लिए रविवार को सुबह दस बजे एक स्पेशल शो रखा गया था। अखबार में आलम-आरा का विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद कुछ सप्ताह के टिकट बिक गए थे और हिंदी सिनेमा की इस पहली बोलती फिल्म ने सफलता का कीर्तिमान रच दिया, पर अफसोस की बात यह है कि आज न तो आलम आरा के प्रिंट उपलब्ध हैं और न ही फिल्म के प्रदर्शन का साक्षी बना मैजेस्टिक  सिनेमा हॉल। 
-रघुवेन्द्र सिंह 

शोले संग छोले ने बनाया हीरो


रणवीर सिंह को फिल्म इन्डस्ट्री  और आवाम ने स्वीकार कर लिया है. उन्हें साल के सभी फिल्म समरोहों में बेस्ट मेल डेब्यु और स्टार आफ टुमारो के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आत्म विश्वास से लबरेज, खुशमिजाज और बातुनी युवा अभिनेता रणवीर सिंह से बातचीत-

जिस स्टार रणवीर को आज दुनिया देख रही है, उन्हें तैयार होने में कितना समय लगा?
पहले तो मैं कहना चाहुंगा कि मैं स्टार तो हूँ नही. मैं एक्टर हूँ. मेरा लक्ष्य लोगों का मनोरंजन करना है. रणवीर हमेशा से ऐसा ही था. लोग उसकी तरफ देखते नही थे. 
बैंड बाजा बारात की कामयाबी के बाद व्यक्तित्व और सोच में क्या बदलाव आया है?
अब इतना काम हो गया है कि फुरसत नहीं मिलती। सोता कम हूं, सोचता ज्यादा हूं। फैमिली और दोस्तों के लिए वक्त कम निकाल पाता हूं।
हिंदी सिनेमा से पहला परिचय कब हुआ? पहली फिल्म कौन सी याद है?
शोले. यह फिल्म मैंने बचपन में कई बार देखी। मैं दादी के घर जाता था। उनके पास वीसीआर और सिर्फ शोले का कैसेट था। दादी छोले-ब्रेड बनाती और मैं खाते हुए शोले देखता था। मैं तब केजी में था और हर दो दिन में इसे जाकर देखता था। कह सकते हैं कि शोले मेरी पहली फिल्म क्लास थी।
कब लगा कि एक्टिंग के सिवाय और कुछ नहीं कर सकते?
मैं इंडियाना यूनिवर्सिटी में एडवरटाइजिंग की पढ़ाई करने गया था। वहां सारी क्लास फुल थी। मैं एक्टिंग की क्लास में घुस गया। प्रोफेसर ने क्लास में आते ही कहा कि सब लोग बारी-बारी से परफॉर्म करके दिखाओ। मैं खड़ा हुआ और दीवार फिल्म का डायलॉग बोलने लगा, 'उफ्फ तुम्हारे उसूल, तुम्हारे आदर्श.।' मैंने हिंदी में डायलॉग बोला तो किसी को समझ में नहीं आया, लेकिन सबको लगा कि मैंने जोश के साथ परफॉर्म किया। उस क्लास में मैंने खुद से कहा कि रणवीर अब एक्टिंग में घुस जाओ, जो होगा देखा जाएगा।
कितना लंबा संघर्ष रहा?
साढ़े तीन साल। मैं ब्लूमिंगटन से डिग्री लेकर लौटा तो पता नहीं था कि ब्रेक कैसे मिलेगा। थिएटर में एक्टिंग सीखने की कोशिश की, पर वहां देखा कि तीन साल गधा मजदूरी करने के बाद सामने आने का मौका मिलता है। मैं एक्टिंग क्लास में गया, लेकिन वहां जो एक्टिंग सिखाई जा रही थी वह 1980 में आउटडेटेड हो गई थी। मैं शाद अली का असिस्टेंट डायरेक्टर बन गया। सोच लिया था कि छोटे रोल नहीं करूंगा। छब्बीस की उम्र तक रूकूंगा। चौबीस की उम्र में मुझे यशराज से लीड रोल करने के लिए फोन आ गया।
यशराज बैनर की नई फिल्म 'लेडीज वर्सेज रिकी बहल' में किस अंदाज में दिखेंगे?
रिकी बहल एक कॉन आर्टिस्ट है। वह लड़कियों को चकमा देकर उनके पैसे लेकर भाग जाता है। खुश हूं कि बैंड बाजा बारात की टीम इसमें भी है। अनुष्का हैं, मनीष शर्मा हैं। इस बार हम बैंड बाजा बारात से अलग ट्राय कर रहे हैं।
उम्मीद थी कि बिंट्टू इस कदर लोगों को पसंद आएगा?
मैं उम्मीद नहीं कर रहा था। बिंट्टू जमीन से जुड़ा था। वह कूल नहीं था। मैं चौंक गया जब लड़कियां मुझे अट्रैक्टिव पाने लगीं। मैं एक अवॉर्ड फंक्शन के लिए सिंगापुर गया। वहां लड़कियों ने मुझ पर अटैक कर दिया। मेरे कपड़े फाड़ दिए। चुटकियां काट रही थीं। बस, किसी तरह मेरी इज्जत बच गई!
-रघुवेंद्र सिंह   

क्या प्रीति तोड़ेंगी रिकार्ड


कलर्स के शो 'गिनीज व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स-अब इंडिया तोड़ेगा' में बतौर एंकर दर्शकों से रूबरू होने जा रही प्रीति जिंटा के स्टारडम की अब परीक्षा की घड़ी है। क्या वह दूसरे स्टार कलाकारों को टीआरपी के खेल में पछाड़ पाएंगी?
प्रीति जिंटा ने तय कर रखा था कि वह टीवी पर किसी डास या सिगिग रिएलिटी शो से डेब्यू नहीं करेंगी। प्रीति के अनुसार, 'मेरे पास टीवी शो के ऑफर आ रहे थे, लेकिन मैं पैसे के लिए शो नहीं करना चाहती थी। मैं डास शो में जज बनने के लिए तैयार नहीं हुई, क्योंकि मैं दुनिया की बेस्ट डासर नहीं हूं। 'गिनीज व‌र्ल्ड रिकॉर्ड्स' शो का कासेप्ट मुझे हटकर लगा। इसकी खासियत है कि इसमें मुझे इंडिया को करीब से देखने का मौका मिल रहा था। दुनिया में एक ही व‌र्ल्ड रिकॉर्ड होता है। जब उसे कोई तोड़ता है, तो उसमें नयापन होता है। गिनीज व‌र्ल्ड रिकॉर्ड्स में इंडिया चौथे स्थान पर है। इस शो में हम कोशिश करेंगे कि इंडिया एक-दो पायदान ऊपर आए।'
प्रीति जिंटा पिछले दो साल आईपीएल में व्यस्त रहीं। इस दौरान न तो उन्होंने अपने लुक पर ध्यान दिया और न ही खान-पान पर। प्रीति बताती हैं, 'मैं भूल गई थी कि कैमरे के सामने आने के लिए कितनी तैयारी करनी पड़ती है। मैं जींस-टीशर्ट पहनकर बिना मेकअप के घूमती थी। पिछले साल के अंत में मैंने तय किया कि एंटरटेनमेंट व‌र्ल्ड में वापसी करनी है। मैं जिम गई तो इंस्ट्रक्टर ने बोला कि साढ़े सात किग्रा वजन बढ़ गया है। मैं तबसे वर्कआउट कर रही हूं। अब मैं फिट हूं।'
आईपीएल ने प्रीति जिंटा को और मेच्योर बना दिया। प्रीति कहती हैं, 'आप एक्टर होते हैं, तो सिर्फ अपनी चिता होती है। प्रोड्यूसर के बारे में आप नहीं सोचते। क्रिकेट आईपीएल से जुड़ने पर मेरे सामने बजट, प्लेयर और अगर वेन्यू के पास झगड़ा हो रहा है तो कैसे वह खेल को इफेक्ट करेगा, इतनी सारी चीजें फिक्र करने के लिए थी। अब मुझे अच्छा लग रहा है। लोग मेरा ख्याल रख रहे हैं।'
प्रीति आश्वासन देती हैं कि शो में दर्शक उनके निजी व्यक्तित्व से परिचित होंगे। प्रीति कहती हैं, 'मैं बनावटी अंदाज में शो की एंकरिंग नहीं कर सकती। आप रियल होंगे तभी नई और मजेदार चीज निकलकर आएगी। इस शो में मुझे हिंदी में बोलना है। यह थोड़ा मुश्किल है। सिपल सेंटेंस हिंदी में बोल सकते हैं, लेकिन आत्मसम्मान जैसे शब्द मुश्किल होते हैं। वैसे इंग्लिश का ट्रासलेशन हिंदी में मैं ही करती हूं।'
शो ने प्रीति जिंटा की देश के बारे में सोच बदल दी है। प्रीति कहती हैं, 'पिछले तीन-चार महीनों में जो घोटाले हुए, उसकी वजह से मैं डाउन फील कर रही थी। इस शो में आने पर मैं ऐसे लोगों से मिली, जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। वे मेरे लिए हीरो हैं। ऐसी चीजें प्रेरणा देती हैं। इन चीजों को मैं अपनी परफॉर्मेस में एड करूंगी।' अपने कलाकार मित्रों से तुलना या कापिटिशन की बात को नजरअंदाज कर प्रीति सबकी तारीफ करते हुए कहती हैं, 'मुझे शाहरुख, सलमान, मिस्टर बच्चन और माधुरी टीवी पर अच्छे लगे।' यह कहते हुए प्रीति बात समाप्त करती हैं कि इस साल वह बड़े पर्दे पर दिखेंगी।
-रघुवेन्द्र सिह

अंधेरा ने बदली मेरी सोच-अनीता हसनदानी


लंबे समय के बाद अनीता हसनदानी विक्रम भट्ट के हॉरर शो 'अनहोनियों का अंधेरा' के जरिए एक बार फिर दर्शकों के बीच हैं। अनीता कहती हैं, 'मैं काफी समय से अलग तरीके के प्रोजेक्ट का इंतजार कर रही थी। सास-बहू टाइप सीरियल मैं नहीं करना चाहती थी, इसीलिए सीरियल से ब्रेक लिया था।'
इस ब्रेक के दौरान अनीता ने साउथ की कुछ फिल्में कीं। उन्होंने डास और कुकिंग सीखी। अनीता बताती हैं, 'मैंने फैमिली और फ्रेंड्स के साथ समय बिताया। जब मैं डेली सोप करती थी, तो इनके लिए मेरे पास समय नहीं होता था। 'अंधेरा' में अपनी भूमिका के बारे में अनीता बताती हैं, मैं अनाहिता का किरदार निभा रही हूं। वह आत्माओं को देख सकती है। उनसे बात कर सकती है। साथ ही वह फैमिली ओरिएंटेड भी है। यह मेरे लिए चैलेंजिंग किरदार है। पहले मैं सुपरनैचुरल पॉवर में यकीन नहीं करती थीं, लेकिन इस शो में काम करने के बाद मेरी सोच बदल गई है।'
'फिलहाल मैंने तय किया है कि एक समय पर एक ही सीरियल करूंगी, पर कोई कमाल की फिल्म का ऑफर आया, तो फिर से फिल्म में काम करना चाहूंगी।
-रघुवेंद्र सिंह 

एकता का हॉरर एमएमएस

बीते बरस एकता कपूर ने लव सेक्स और धोखा फिल्म के रूप में बड़े पर्दे पर साहसिक प्रयोग किया। परिणाम सुखद मिलने के बाद अब उन्होंने अपने नव स्थापित बैनर अल्ट एंटरटेनमेंट के तहत रागिनी एमएमएस फिल्म बनाई है।

एकता के अनुसार, ''एमएमएस सुनकर लोगों को लगता है कि रागिनी एमएमएस सेक्स फिल्म होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। यह एक कपल की कहानी है, जो बंगले में वीकेंड स्पेंड करने जाता है। लड़का सोचता है लड़की का एमएमएस बनाकर बेच दूंगा। वह कमरे में कैमरा लगा देता है, लेकिन उसे पता नहीं होता कि उस घर में एक और चीज है।''
रागिनी एमएमएस का निर्देशन नए निर्देशक पवन कृपलानी ने किया है। लव सेक्स और धोखा फिल्म से चर्चा में आए राजकुमार यादव ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है और उनके अपोजिट कैनाज मोतीवाला हैं। इस फिल्म को एकता पारिवारिक नहीं, बल्कि सुपरनैचुरल थ्रिलर फिल्म बताती हैं। वह कहती हैं, ''अल्ट एंटरटेनमेंट में हम अलग किस्म की फिल्में बनाते हैं। पारिवारिक फिल्मों और टीवी सीरियल का निर्माण बालाजी के बैनर में होता है। ऐसी हॉरर फिल्म आप बच्चों को नहीं दिखा सकते। आज तक जो हॉरर फिल्में दर्शकों ने देखी हैं, उसमें टिपिकल भूत होते हैं। इसमें ऐसा नहीं होगा। डर क्या होता है? यह इस फिल्म में पता चलेगा।''
-रघुवेन्द्र सिंह

चली ब्रांड की हवा चली


कभी कलात्मक अभिव्यक्ति कहा जाने वाला सिनेमा अब वैश्वीकरण के प्रभाव में उत्पाद बन गया है। बाजार में विशिष्ट पहचान के लिए निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों को ब्रांड के रूप में स्थापित करने में लग गए हैं। फिल्मों की मार्केटिंग भी इस अंदाज में की जा रही है कि वे ब्रांड बन जाएं और उसे भविष्य में भुनाया जा सके।

हॉलीवुड की परंपरा
फिल्मों को ब्रांड के रूप में पेश करने की परंपरा का वाहक रहा है हॉलीवुड। जेम्स बांड, रॉकी, हैरी पॉटर, लॉर्ड ऑफ रिंग्स, जुरासिक पार्क, द ममी, श्रेक; यह सभी हॉलीवुड के लोकप्रिय 'ब्रांड' हैं। ब्रांड वैल्यू का ही असर है कि इन फिल्मों के नाममात्र से ही कथ्य, विधा और चरित्र का आभास हो जाता है। इनकी ब्रांड वैल्यू को भुनाने के लिए उसी नाम की दूसरी फिल्में बनायी जाती हैं जिनकी कहानी अलग होती है, पर मुख्य चरित्र और मूल ढांचा वही होता है। निर्देशक साजिद खान कहते हैं, ''जेम्स बांड की कोई भी फिल्म आती है तो दर्शक उसे देखने जरूर जाते हैं। जेम्स बांड चालीस साल से हॉलीवुड का ब्रांड है। उसी तरह हैरी पॉटर भी है। इनसे निर्माता भी संतुष्ट रहते हैं और दर्शक भी अपनी पसंदीदा ब्रांड की फिल्में देखकर खुश हो जाते हैं।''
हिट है मुन्नाभाई!
हॉलीवुड की तर्ज पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी फिल्मों को ब्रांड के रूप में प्रचारित किया जाने लगा है। दर्शकों की स्वीकार्यता के कारण पिछले दशक में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मुन्नाभाई, धूम, कृष जैसे ब्रांड स्थापित हो गए हैं। इसका पहला प्रयास नगीना की सफलता के बाद हुआ था। नगीना की सफलता को निगाहें में भुनाने का प्रयास किया गया था, पर वह सफल नहीं हो पाया। फिल्म विशेषज्ञ तरण आदर्श कहते हैं, ''मुन्नाभाई एमबीबीएस की सफलता और लोकप्रियता के बाद हिंदी फिल्मों में ब्रांड की प्रथा चल पड़ी। मुन्नाभाई के कैरेक्टर के प्रति दर्शकों के लगाव के मद्देनजर निर्माता विधु विनोद चोपड़ा और निर्देशक राजू हिरानी ने लगे रहो मुन्नाभाई का निर्माण किया। दर्शक सिनेमाघर में लगे रहो मुन्नाभाई देखने ही इसलिए गए क्योंकि उस फिल्म के साथ मुन्नाभाई नाम जुड़ा हुआ था। यशराज बैनर की धूम से यह सिलसिला आगे बढ़ा जो कोई मिल गया से कृष और गोलमाल से गोलमाल 3 तक जारी है।''
चौतरफा है फायदा
फिल्मों के ब्रांड बनने के बाद निर्माता-निर्देशक से लेकर अभिनेता-अभिनेत्री तक सभी के हाथ घी में होते हैं। फिल्म बाजार को भी चौतरफा फायदा होता है। ब्रांड की लोकप्रियता का यह आलम है कि मुन्नाभाई सिरीज की फिल्म हो या गोलमाल या धूम, शीर्ष के अभिनेता-अभिनेत्री इनका हिस्सा बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। करीना कपूर ने अपने स्टार स्टेटस का फायदा लेकर कुणाल खेमू को गोलमाल 3 में एंट्री दिलायी जिससे कुणाल के कॅरिअर की गाड़ी एक बार फिर से दौड़ने लगी। इसी तरह धूम 3 की हीरोइन बनने के लिए प्रियंका चोपड़ा, प्रीति जिंटा, कट्रीना कैफ और दीपिका पादुकोण जुगत लगा रही हैं। आमिर खान जो खुद ब्रांड माने जाते हैं, अब धूम ब्रांड का हिस्सा बनकर उत्साहित हैं। आमिर कहते हैं, ''जब भी मैं धूम की सिग्नेचर ट्यून सुनता हूं मेरे कदम थिरकने लगते हैं। धूम ब्रांड के लोकप्रिय किरदार जय और अली के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं।'' गोलमाल श्रंखला की फिल्मों से सफलता का स्वाद चख रहे तुषार कपूर कहते हैं, ''जब गोलमाल जैसा ब्रांड आपके पास होता है तो आप दूसरे किस्म की फिल्मों में रिस्क ले सकते हैं। यदि उनमें सफलता नहीं मिलती है तो आपको पता है कि आपके पास एक सुरक्षित विकल्प मौजूद है।''
कैश हो रहीं क्लासिक
बाजारवाद के प्रभाव में शुरू हुए ब्रांड के ट्रेंड में अब निर्माता-निर्देशक क्लासिक फिल्मों की सदाबहार लोकप्रियता को भुनाना शुरू कर चुके हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत सफल फिल्म डॉन का रीमेक बना रहे फरहान अख्तर को भी नहीं पता था कि यह ब्रांड बन जाएगी। इन दिनों वे शाहरूख खान अभिनीत डॉन की ब्रांड वैल्यू को डॉन 2 के निर्माण के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत क्लासिक फिल्म अग्निपथ की लोकप्रियता भुनाने की तैयारी में हैं करण जौहर। वे रितिक रोशन को लेकर अग्निपथ 2 का निर्माण कर रहे हैं। गौरतलब है कि इसी कड़ी में मिस्टर इंडिया 2 के निर्माण की योजना है।
उज्जावल है भविष्य
मुन्नाभाई, धूम और गोलमाल सिरीज की फिल्मों की सफलता से प्रेरित होकर अब बाजार में नए ब्रांड स्थापित करने की पहल शुरू हो गयी है। पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई सफल फिल्म हाउसफुल को ब्रांड का रूप देने में जुट चुके साजिद खान कहते हैं, ''हॉलीवुड में जो चीज होती है, वह अब यहां भी होने लगी है। अगर फिल्म ब्रांड बन जाती है, तो यह बहुत अच्छी बात है। मैं हाउसफुल को ब्रांड बना रहा हूं।'' हाउसफुल 2 की ही तरह पार्टनर 2, दबंग 2, दोस्ताना 2, रेस 2, नो एंट्री 2, यमला पगला दीवाना 2 को भी ब्रांड बनाने का प्रयास प्रारंभ हो चुका है। फिल्म बाजार पर पैनी नजर रखने वाले तरण आदर्श कहते हैं, ''अभी तो यह शुरूआत है। भविष्य में ब्रांड का ट्रेंड और बढ़ेगा!''
-रघुवेन्द्र/सौम्या

Saturday, March 12, 2011

फनी नहीं हूं मैं: साजिद खान

इस साल भी फिल्म पुरस्कार समारोहों के लोकप्रिय होस्ट रहे साजिद खान। समारोह का सीजन खत्म होते ही अब वे अपनी फिल्म हाउसफुल 2 के निर्माण में व्यस्त हो चुके हैं। साजिद से हाउसफुल 2 और पुरस्कार समारोह को होस्ट करने के अनुभवों को लेकर बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं अंश..


पुरस्कार समारोह को होस्ट करने का अनुभव कैसा रहा?
इस साल सात पुरस्कार समारोह हुए और ताज्जुब की बात है कि उसमें से पांच मैंने होस्ट किए। खुशी की बात है कि चैनल द्वारा मुझे बुलाया गया। मैं सन 2000 से लगातार पुरस्कार समारोह होस्ट कर रहा हूं। मेरा चूमर लोगों को पसंद आता है। पुरस्कार समारोह की वजह से ही मैं हाउसफुल 2 की स्क्रिप्ट के लिए नहीं बैठ पाया।
लोगों की हंसाने की कला आपने कहां से सीखी?
मुझे तो ऐसा ही लगता है कि मैं अंधों में काना राजा जैसा हूं। मुझे नहीं लगता है कि मैं फनी हूं। चूमर ऐसी चीज है, जिसमें गारंटी नहीं है कि सौ प्रतिशत लोग उसे सुनकर हंसें हीं। हां, ज्यादा लोग हंसेंगे तो आपका काम हो गया। मैं हमेशा बेहतर करने पर ध्यान देता हूं। साफ-सुथरी बातें करता हूं।
आप इंडस्ट्री के अंदर हैं और अधिकतर पुरस्कार समारोह से जुड़े रहते हैं। आपके अनुसार क्या पुरस्कार योग्य लोगों को दिए जाते हैं?
झे कहना नहीं चाहिए, लेकिन एक बात बताइए कि आप और मैं पुरस्कार समारोह क्यों देखते हैं टीवी पर? एक आम आदमी इसलिए नहीं देखता टीवी पर पुरस्कार समारोह कि कौन क्या जीता है? वह नाच देखने के लिए देखता है। उसे यह इंतजार रहता है कि कौन आकर नाचने वाला है। पंद्रह साल पहले फिल्म पुरस्कारों की जो विश्वसनीयता थी, वो आज नहीं है। आज यह टीवी शो हो गए हैं। आज चैनल बताता है कि उसे कौन से ऐक्टर और ऐक्ट्रेस चाहिए। अब ट्रेंड हो गया है। अब वही लोग आते हैं समारोह में जिन्हें पता होता है कि वे अवॉर्ड जीतने वाले हैं या फिर वे लोग आते हैं जिन्हें स्टेज पर परफॉर्म करने के लिए पैसे दिए गए हैं।
दूसरे लोग रिलीज के पहले अपनी फिल्म के बारे में बात करने से बचते हैं, जबकि आप हाउसफुल 2 के बारे में अभी से बात कर रहे हैं?
फिल्म के बारे में लोग जितना ज्यादा जानेंगे, उनमें फिल्म को लेकर उतनी एक्साइटमेंट बढ़ेगी। आज मनोरंजन के तमाम विकल्प उपलब्ध हैं। ऐसे में आपको अपनी फिल्म के लिए दर्शक जुटाने हैं, तो पहले से ही एक्साइटमेंट बनानी पड़ेगी। हाउसफुल 2 में रितेश देशमुख, जॉन अब्राहम, राहुल खन्ना, असिन, जैक्लीन फर्नाडीस और चंकी पांडे आ गए हैं।
नए नाम से फिल्म बनाने की बजाय हाउसफुल 2 नाम से सीक्वल क्यों बना रहे हैं?
सीक्वल तब बनते हैं, जब गारंटी होती है कि फिल्म लोगों को पसंद आएगी। हाउसफुल 2 ऐसा सीक्वल नहीं है कि जहां यह खत्म हुई थी, वहां से यह शुरू होगी। इसमें नई कहानी है और नए किरदार हैं। हम हाउसफुल को ब्रांड बना रहे हैं।
-रघुवेंद्र सिंह 

बहुत हो गया इंतजार-दीया मिर्जा

फिल्म इंडस्ट्री में दस साल का सफर पूरा कर रहीं दीया मिर्जा का सोचना है कि इंडस्ट्री उनकी प्रतिभा का समुचित इस्तेमाल नहीं कर पाई। इसीलिए उन्होंने अपने मित्र जाएद खान और साहिल के साथ मिलकर अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया। दीया अपनी बात कहती हैं, मुझे इस बात का दुख है कि मेरी अभिनय प्रतिभा का सही इस्तेमाल इंडस्ट्री ने नहीं किया। मैंने सोचा कि बहुत हो गया इंतजार। अब मैं खुद अपनी प्रतिभा का सही प्रदर्शन करूंगी। यह बात जाएद पर भी लागू होती है। जाएद की प्रतिभा के साथ भी इंडस्ट्री ने न्याय नहीं किया। हमने फैसला किया कि मिलकर अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू करते हैं।
बड़े पर्दे से अपनी लंबी अनुपस्थिति का कारण दीया अपना प्रोडक्शन हाउस बताती हैं। वे कहती हैं, मैंने जिस दिन फैसला किया कि प्रोडक्शन हाउस शुरू करना है, उसी दिन से फिल्में साइन करनी बंद कर दीं। जाएद और साहिल के साथ मिलकर दिन-रात प्रोडक्शन हाउस को सेट करने के लिए काम करती रही। प्रोडक्शन हाउस शुरू करना बच्चों का काम नहीं है। तीन साल पहले दीया, जाएद और साहिल ने साथ काम करने का फैसला किया था। दीया बताती हैं, जाएद और साहिल एक ऐक्शन कॉमेडी पर काम कर रहे थे, लेकिन तभी मेरे दिमाग में लव ब्रेकअप जिंदगी की कहानी आई। मैंने दोनों से कहा कि हमारे बैनर की पहली फिल्म लव स्टोरी होनी चाहिए। प्रोडक्शन कंपनी शुरू करने का फैसला हमने दिल से किया है, इसलिए पहली फिल्म का संबंध दिल से होना चाहिए।
लव ब्रेकअप जिंदगी के निर्माण के साथ ही जाएद और दीया इसमें मुख्य भूमिका भी निभा रहे हैं, जबकि कंपनी के तीसरे पार्टनर साहिल इसका निर्देशन कर रहे हैं। दीया कहती हैं, कैरेक्टर हमें अच्छे लगे। हमें लगा कि हम कैरेक्टर के साथ न्याय कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि हम अपने प्रोडक्शन हाउस की हर फिल्म में काम करेंगे। ऐसी कोई कंडीशन नहीं है। अगर कैरेक्टर हमें सूट करेगा और निर्देशक चाहेगा तो हम अभिनय भी करेंगे। हमने यह कंपनी नई प्रतिभाओं को मौका देने के लिए शुरू की है। लव ब्रेकअप जिंदगी में जाएद और मेरे अलावा उमंग जैन, सत्यदीप, वैभव तलवार, औरित्र घोष जैसे नए चेहरे भी हैं। फिल्म की शूटिंग मुंबई, अलीबाग और चंडीगढ़ में होगी।
दीया की पहली फिल्म रहना है तेरे दिल में 2001 में आई थी। वे इस साल फिल्म इंडस्ट्री में दस साल का सफर पूरा कर रही हैं। दीया कहती हैं, इंडस्ट्री में दस साल पूरा होने की खुशी में मैंने प्रोडक्शन हाउस खोला है। मैंने सोचा कि दस साल में जो काम नहीं किया, उसे अब करते हें। मैंने सही समय पर सही फैसला किया है। शबाना आजमी ने भी मुझसे कहा कि तुमने सही समय पर फिल्म निर्माण में आने का फैसला किया है। तुम्हारी टाइमिंग परफेक्ट है। दीया लव ब्रेकअप जिंदगी की कहानी और अपने किरदार के बारे में विस्तृत जानकारी देने से बचती हैं। वे कहती हैं, फिलहाल मैं इतना ही कहूंगी कि इसमें दर्शक मेरे नए अंदाज से परिचित होंगे। मैं फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित हूं। इसे इसी साल रिलीज करने की योजना है। फिल्म की शूटिंग अलीबाग में शुरू हो चुकी है। दीया आगे कहती हैं, मेरे बैनर की अगली फिल्म ऐक्शन कॉमेडी होगी।
-रघुवेंद्र सिंह 

मैं फालतू नही: पूजा गुप्ता

वर्ष 2007 में मिस इंडिया यूनिवर्स का खिताब जीतने वाली पूजा गुप्ता, वाशु भगनानी की फिल्म फालतू से अभिनय करियर की शुरुआत कर रही हैं। दो साल संघर्ष करने के बाद उन्हें यह फिल्म मिली है। पूजा बताती हैं, मिस इंडिया बनने का लाभ यह हुआ कि लोग मुझे जान गए। मिस इंडिया बनने के बाद ऐसा नहीं होता कि आपके पास फिल्म निर्माता-निर्देशकों की लाइन लग जाती है। पहली फिल्म के लिए मुझे दो साल तक संघर्ष करना पड़ा। मुझे जब पता चलता था कि फलां जगह फिल्म का ऑडिशन चल रहा है, तो मैं ऑडिशन देने जाती थी। किसी ने यह समस्या बताकर मुझे सेलेक्ट नहीं किया कि मेरा उच्चारण सही नहीं है। कोई कहता था कि मैं गोरी हूं। कुछ लोगों ने कहा कि मैं छोटी हूं। अब मेरी किस्मत चमकी है। मेहनत अब सफल हुई है।
फालतू फिल्म का निर्देशन मशहूर कोरियोग्राफर रेमो डिसूजा ने किया है। पूजा का इस फिल्म से जुड़ने का किस्सा दिलचस्प है। वे अपने एक फ्रेंड के घर पार्टी में गई थीं। उस पार्टी में वाशु भगनानी के बेटे जैकी भी मौजूद थे, जो फिल्म के एक हीरो हैं। उन्हें पूजा बहुत अच्छी लगीं। पूजा बताती हैं, उस पार्टी में जैकी मौजूद थे, लेकिन उनसे मेरी बातचीत नहीं हुई थी। उन्होंने रेमो से जाकर कहा कि पूजा से मिलिए। उन्होंने मेरे फ्रेंड से नंबर लेकर मुझे फोन किया। मैं जब फालतू के लिए ऑडिशन देने गई, तब जैकी से पहली बार मेरी बात हुई। पांच बार ऑडिशन हुआ, फिर रेमो ने मुझे सेलेक्ट किया।
पूजा ने फिल्म में पूजा नाम की लड़की का ही किरदार निभाया है। वह टॉम ब्वॉय टाइप की है। पूजा बताती हैं, वाशु भगनानी के लिए पूजा नाम लकी है। उनकी कंपनी का नाम पूजा एंटरटेनमेंट है। मैंने फिल्म में अपने किरदार का नाम पूजा रखने के लिए उनसे बात की तो वे मान गए। तीन लड़कों के साथ पूजा बड़ी हुई है। उसके पापा चाहते हैं कि वह शादी करके अपना घर बसा ले, लेकिन वह शादी नहीं करना चाहती। वह लाइफ को अपने अंदाज में जीना चाहती है। पूजा के अनुसार फिल्म फालतू भारत के एजुकेशन सिस्टम पर कटाक्ष करती है। वे कहती हैं, कॉलेज में साठ प्रतिशत और अस्सी-नब्बे प्रतिशत अंक पाने वाले लोगों को ही एडमिशन मिलता है। तीस प्रतिशत अंक लाने वालों को नहीं। फिल्म के अंदर पूजा और उसके दोस्तों रितेश, नंज, विष्णु को लोग फालतू कहते हैं, लेकिन उनका कहना है कि वे फालतू नहीं हैं।
पहली फिल्म की शूटिंग का अनुभव पूजा के लिए अच्छा रहा। वे बताती हैं, मैं फिल्म में अकेली लड़की हूं। सेट पर मेरा बहुत ख्याल रखा जाता था। वाशु अपनी बेटी की तरह मेरा ख्याल रखते थे। रेमो भी बहुत अच्छे निर्देशक हैं। मैं लकी हूं कि मुझे ऐसी टीम के साथ काम करने का मौका मिला। पूजा आगे कहती हैं, इस फिल्म में मुझे अपना टैलेंट दिखाने का पूरा अवसर मिला है। मैं खुश हूं कि फालतू मेरी डेब्यू फिल्म है।
दिल्ली में पली-बढ़ी पूजा गुप्ता का बचपन का सपना था ऐक्ट्रेस बनना। वे कहती हैं, यदि मैं मिस इंडिया नहीं बनती, तो भी ऐक्ट्रेस बनती। मैंने होश संभालते ही तय कर लिया था कि मुझे नौ से पांच बजे की नौकरी नहीं करनी। मेरी मां डॉक्टर हैं, भाई इंजीनियर हैं और पापा सीए थे। मैं पहली ऐसी लड़की हूं अपने परिवार में, जिसने गे्रजुएशन नहीं किया। लक्ष्य के बारे में पूछने पर पूजा कहती हैं, मैं आज में जीती हूं। यदि आज अच्छा होगा, तो भविष्य भी अच्छा होगा। मैं मल्टीटास्किंग नहीं हूं। फिलहाल मेरा ध्यान अपनी पहली फिल्म की रिलीज पर है।
-रघुवेंद्र सिंह 

आया हूं पहचान छोड़कर: अंगद बेदी

क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी के बेटे हैं अंगद बेदी। वे रेमो डिसूजा निर्देशित फिल्म फालतू से अपने अभिनय करियर की शुरुआत कर रहे हैं।

ऐक्टर बनना था सपना: मैं दिल्ली में पला-बढ़ा हूं। सेंट कोलंबस स्कूल में मैंने पढ़ाई की। सेंट स्टीफेंस कॉलेज से मैंने ग्रेजुएशन किया है। मैंने आठ साल क्रिकेट खेला। तेरह साल का था, जब मैंने अंडर 16 में दिल्ली को रिप्रजेंट किया। मन था कि हिंदुस्तान के लिए खेलूं, लेकिन मेरी ख्वाहिश थी एक्टर बनने की। सुनील शेट्टी ने एक मुलाकात में कहा कि आपको फिल्मों में आना चाहिए। उनकी इस बात से मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया। उसके बाद मैंने एक्टिंग स्कूल ज्वॉइन किया।
दाढ़ी-बाल कटवाए: उन्नीस साल का था, तब मैं असमंजस में था कि क्या करूं? क्रिकेट खेलूं या एक्टिंग में करियर बनाऊं। मैं पगड़ी बांधता था। मेरी दाढ़ी थी। मुझे लगा कि पगड़ी बांधकर ऐक्टर तो नहीं बन सकता। मैंने बाल-दाढ़ी कटवाए। मं चाहता था कि लोग मुझे लीड रोल के लिए सोचें। मेरे अंदर उथल-पुथल मची थी। मैंने पैरेंट्स को बिना बताए बाल-दाढ़ी कटवा दिए।
बहुत संघर्ष किया: मेरा कोई गॉडफादर नहीं है। मैंने बहुत संघर्ष किया है, लेकिन मैं अपने संघर्ष के बारे में अभी बात नहीं करूंगा। जिस दिन मैं फेमस हो जाऊंगा, उस दिन लोग मेरा संघर्ष जानना चाहेंगे।
करती है सवाल: फालतू का फुल फॉर्म है फकीरचंद एंड लकीरचंद ट्रस्ट यूनिवर्सिटी। यह फिल्म आजकल के एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाती है। फिल्म का एक मैसेज है कि पढ़ाई-लिखाई सब कुछ नहीं है। जो जीनियस बने हैं, वे इंटेलीजेंट रहे हैं, एजुकेटेड नहीं।
टूटा नहीं रिश्ता: मैं क्रिकेट से जुड़ा हूं। युवराज सिंह, जहीर खान, हरभजन सिंह के साथ हमने क्रिकेट खेलना शुरू किया था। हम संपर्क में हैं। मैं सोहेल खान की क्रिकेट टीम में हूं। उनके लिए खेलता हूं। सायरस ब्रोचा पीछे पड़े हैं कि मैं बांबे जिमखाना के लिए खेलूं। मैं प्रोफेशनली अब नहीं खेलता हूं। अब मैं एक्टिंग में आ गया हूं। मेरा लक्ष्य शाहारुख खान की तरह लोगों को रुलाना और हंसाना है। वे मेरी प्रेरणा हैं। मेरे अंदर फिल्मों का जुनून है। मैं अपनी एक पहचान छोड़कर नई पहचान बनाने आया हूं। मुझे लोगों का प्यार और सपोर्ट चाहिए।
-रघुवेंद्र सिंह 

मेरे गीतों को याद रखेंगे लोग-अली ज़फ़र

-रघुवेंद्र सिंह

अली जफर की रुहानी और दिलकश आवाज आजकल हिंदुस्तान और पाकिस्तान की फिजाओं में गूंज रही है। अली का नया म्यूजिक एलबम झूम दोनों देश के संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद आ रहा है। खास तौर से अपने एलबम के प्रचार के लिए मुंबई पहुंचे अली जफर ने मुलाकात में बताया, पाकिस्तान में मैंने अपने लेबल अलीफ रिकॉ‌र्ड्स के जरिए झूम को रिलीज किया है। पहले दिन हमने इसकी दस हजार कॉपी रिलीज की। मुझे बेहद खुशी है कि हिंदुस्तान में यशराज ने मेरे एलबम को रिलीज किया है। यह मेरे लिए सम्मान की बात है। प्रिंस ऑफ पॉप कहे जाने वाले अली जफर का झूम तीसरा एलबम है। 2003 में उनका पहला म्यूजिक एलबम हुक्का पानी और 2006 में मस्ती रिलीज हुआ था। दोनों बेहद लोकप्रिय हुए।
अली अभिनय भी करते हैं। पिछले साल आई फिल्म तेरे बिन लादेन में उन्होंने कमाल का अभिनय किया। उन्हें यकीन है कि इस लोकप्रियता का फायदा एलबम झूम को मिलेगा। एलबम के बारे में अली बताते हैं, इस पर मैंने दो-तीन साल पहले काम शुरू किया था। इसकी खासियत यह है कि इसमें मैंने सूफियाना कलाम का इस्तेमाल किया है। यह सुकून देने वाला एलबम है। म्यूजिक मैंने खुद अरेंज और कंपोज किया है। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोग बड़े स्प्रिचुअल हैं। झूम में मैंने ऐसा म्यूजिक बनाया है, जो टाइमलेस है। मैं जब ना रहूं, तब भी इसके गीत लोगों को याद रहें।
झूम में बारह गाने हैं, जिन्हें अली ने लिखे हैं। टाइटिल सांग के बारे में वे कहते हैं, गीत झूम.. जिंदगी के बारे में बात करता है। कहते हैं कि जब आप मर रहे होते हैं, तो अंतिम पल में पूरी जिंदगी आपके सामने घूमती है। मैंने किसी को टारगेट करके यह गीत नहीं बनाया है। जो मेरे दिल ने कहा, वही मैंने लिखा और गाया है। मिर्जा गालिब की दो गजलें भी हैं इस एलबम में। एक है जी ढूंढता है.. और दूसरा है कोई उम्मीद..। इस तरह का कुछ सीरियस काम करने की कोशिश मैंने की है। इसमें रोमांटिक गाने भी हैं। यह एलबम मेरी पर्सनैल्टी का एक अलग हिस्सा है। उम्मीद है कि लोग इसके वीडियो को पसंद करेंगे।
अली जफर ने हाल में यशराज बैनर की फिल्म मेरे ब्रदर की दुल्हन की शूटिंग की है। इसमें उनके साथ इमरान खान और कट्रीना कैफ भी हैं। अली बताते हैं, इस फिल्म में मैंने तीन गीत गाए हैं। संगीत सोहेल सेन ने दिया है। वे एक और बात कहते हैं, एलबम झूम बनाने की एक वजह यह भी थी कि मेरे फैन यह न समझें कि मैं सिंगिंग छोड़कर एक्टिंग में चला गया हूं। म्यूजिक एलबम रिलीज करने की दूसरी वजह यह थी कि लोग कह रहे हैं कि पॉप म्यूजिक अब नहीं चल रहा है, तो मेरा कहना है कि आपके फेवर में हालात ना भी हों, लेकिन आप काम करते जाएं। अच्छी चीज खुद-ब-खुद रास्ता बना लेती है। अली अपनी तीसरी हिंदी फिल्म को लेकर खुश हैं। वे कहते हैं, मेरी इस फिल्म का नाम अभी तय नहीं है, लेकिन यह चश्मेबद्दूर की रिमेक होगी। उसका निर्देशन करेंगे डेविड धवन।