बड़े भाई ने हिंदी फिल्मों के पारंपरिक ढांचे को ढाह दिया और एक नई सिनेमाई परंपरा की शुरुआत की, और छोटे भाई ने हिंदी सिनेमा की प्रचलित परंपरा की परिधि में रहकर कीर्ति अर्जित की. हिंदी सिनेमा की पाठशाला में दोनों साथ बैठा करते थे, फिर एक क्रांतिकारी और दूसरा अनुयायी कैसे बन गया? चर्चित फिल्मकार बंधुओं अनुराग कश्यप और अभिनव कश्यप के साथ पहली बार उनके रोमांचक अतीत की यात्रा कर रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह.
अनुराग कश्यप ने अपना वादा निभाया. उन्होंने अपने छोटे भाई अभिनव कश्यप से स्वयं बात की और फिल्मफेयर के लिए इस संयुक्त बातचीत का प्रबंध अपने घर पर किया. कश्यप बंधुओं का एक साथ बातचीत के लिए तैयार होना हमारे लिए प्रसन्नता और उत्साह का विषय था. हमारी इस भावना से जब अनुराग और अभिनव वाकिफ हुए तो दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े. अनुराग ने अपनी हंसी पर नियंत्रण किया और बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘लोगों को पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि हम आपस में बात नहीं करते. लोगों के बीच हमारी ऐसी छवि कैसे बन गई है? (अभिनव की ओर देखकर)’’ दोनों भाई फिर एक साथ ठहाका मारकर हंस पड़े. फिर अनुराग ने अपने सवाल का जवाब खुद दिया, ‘‘हम दोनों अलग-अलग किस्म की फिल्में बनाते हैं, शायद इसलिए लोगों का ऐसा लगता है.’’
बाजार में स्थापित अपनी छवि के अनुकूल अनुराग और अभिनव ने सानंद फिल्मफेयर के लिए फोटोशूट किया. कभी अनुराग ने अभिनव की जेब से पर्स निकालते हुए, तो कभी दोनों ने आपस में फाइट करते हुए हमारे जोशीले फोटोग्राफर प्रथमेश बांदेकर के लिए खुशी-खुशी पोज किया.इस मजेदार फोटोशूट के पश्चात हमने बातचीत के लिए अनुराग कश्यप के उस विशेष कमरे का रुख किया, जिसकी दीवारें तमाम देशों की फिल्मों की डीवीडी से सजी थीं. कमरे के बीचोबीच रखे सोफे पर बैठते हुए अनुराग ने कहा, ‘‘मैं और कल्की इसी कमरे में बैठकर फिल्में देखते हैं.’’ दोनों भाईयों के संपूर्ण अतीत के बारे में जानने के लिए मेरा मन बेचैन हो रहा था. उनके समक्ष जब यह बात जाहिर हुई तो दोनों ने एक-दूसरे के बचपन का कत्था-चिट्ठा खोलना शुरू कर दिया.
अनुराग से उम्र में अभिनव दो साल छोटे हैं. अपने बड़े भाई के बचपन के यादों की पोटली को अभिनव ने यूं खोला ‘‘अखबार में फिल्म के इस्तेहार आते थे. ये उसे काटते थे और पोस्टर बनाते थे. फिर मनगढंत कहानियां बनाकर हमें सुनाते थे.’’ अनुराग हंसते हुए कहते हैं, ‘‘और इन्हें लगता था कि वो कहानियां सच हैं.’’ बात जारी रखते हुए अनुराग अपने छोटे भाई के बचपन के दिनों को याद करते हैं, ‘‘इनको पैसे का प्रेम बचपन से है. हम नाना-नानी के घर जाते थे. हमें लौटते वक्त सब लोग पैसे देते थे. अभिनव अनेक बहाने बनाकर उनसे डबल पैसा ले लेते थे. फिर मुगलसराय से दो-दो रुपए में चेन वाली रिंग खरीदकर ले आते थे और स्कूल में दस-दस रुपए में उसे बेचते थे.’’ अनुराग अपनी बात खत्म करते कि उससे पहले ही अभिनव ने कहा, ‘‘मुझे गरीब लाइफ शुरु से पसंद नहीं. पॉकेट मनी के लिए सब करना पड़ता था. लेकिन ये हमसे पैसा छीन लेते थे और उन पैसों से कॉमिक्स खरीदकर ले आते थे.’’
नन्हीं उम्र से अनुराग गंभीर स्वभाव के हैं. उनकी तुलना में अभिनव बचपन में अधिक शरारती थे. एक मजेदार वाकया अनुराग बताते हैं, ‘‘अभिनव मुझे बहुत चिढ़ाते थे. मुझे गुस्सा जल्दी आता था. मैं आज भी गुस्सैल हूं. उसका कारण यही हैं. एक दिन मैंने चाकू लेकर इन्हें दौड़ा लिया कि आज या तो तू रहेगा या मैं. इन्हें पूरे घर में मैंने दौड़ाया कि आज तो मैं खून कर दूंगा. (अनुराग ठहाका लगाते हैं). उस वक्त ये तीन साल के थे और मैं पांच साल का था.’’ ïअभिनव जज्बाती लहजे में कहते हैं कि ये मुझसे प्यार भी बहुत करते थे. उसका सबूत इनकी साढ़े नौ उंगलियां हैं. बचपन में ये मुझे झूला झुला रहे थे. इनकी एक उंगली कट गई.
अनुराग और अभिनव की जिंदगी पैरलल चली है. पिताजी की नौकरी ट्रांसफरेबल होने के कारण दोनों का बचपन उत्तर प्रदेश के कई शहरों में गुजरा. अनुराग का जन्म गोरखपुर में हुआ, जबकि अभिनव ने ओबरा की आबोहवा में अपनी आंख खोली. दोनों फैजाबाद के कांवेंट स्कूल में साथ पढऩे जाते थे. उसके बाद अनुराग को देहरादून के ग्रीन स्कूल में भेज दिया गया और अभिनव का एडमिशन टांडा के ललिता शास्त्री मांटेसरी स्कूल में करा दिया गया. दोनों भाई थोड़े समय की जुदाई के बाद फिर एकजुट हुए गवालियर के सिंधिया स्कूल में. यहां दोनों हॉस्टल में रहते थे. अनुराग बताते हैं, ‘‘अभिनव के गणित में सौ में सौ नंबर आते थे. ये कॉमर्स पढ़ते थे. सबको विश्वास था कि बड़ा होकर ये पैसे कमाएगा, और मैं नहीं. मैं हिंदी और भूगोल में अच्छा नंबर लाता था.’’ अनुराग ने कॉलेज की पढ़ाई के लिए दिल्ली के हंसराज कॉलेज में प्रवेश लिया तो कुछ साल बाद अभिनव भी उनके पीछे-पीछे वहां पहुंच गए. अभिनव कहते हैं, ‘‘मैंने जानबूझकर हंसराज में एडमिशन लिया, क्योंकि इनके रहने से मैं वहां सुरक्षित महसूस करता था.’’
अनुराग के फिल्म पोस्टरों और मनगढंत कहानियों ने अभिनव को भी धीरे-धीरे फिल्मों से जोड़ दिया. घर में टीवी नहीं था इसलिए दोनों भाई अपने पड़ोसी के घर में जाकर टीवी पर चित्रहार देखते थे. दोनों मम्मी और पापा के शुक्रगुजार हैं कि वे उन्हें घर में किराए पर वीसीआर लाने की इजाजत दे देते थे. अभिनव बताते हैं, ‘‘महीने में एक बार मम्मी-पापा की परमिशन से हम टीवी और वीसीआर किराए पर लाते थे. हम चार फिल्में लाते थे और रात भर जागकर उन्हें देखते थे.’’ थिएटर में दोनों भाईयों ने बहुत कम फिल्में देखी हैं. अनुराग बताते हैं, ‘‘हमें थिएटर में पिक्चर दिखाने तभी ले जाया जाता था, जब अमिताभ बच्चन या धर्मेन्द्र की फिल्में लगती थीं. जैसे आज की ऑडियंस सिर्फ सलमान खान को देखती है, वैसे ही हम उस वक्त केवल अमिताभ और धर्मेंद्र को देखते थे.’’
अनुराग-अभिनव के बीच उम्र का अंतर कम था इसीलिए उनके बीच भाई से अधिक दोस्त का रिश्ता कायम रहा. दोनों एक-दूसरे के राजदां रहे. कॉलेज के दिनों में एक-दूसरे के अफेयर्स की चर्चा पर अनुराग ने ठहाका लगाया, और कहा कि हमारी ज्यादा लव स्टोरी नहीं थी क्योंकि हम दोनों थके हुए थे. अभिनव बाद में इस मामले में एक्सपर्ट हो गए. अभिनव ने दबे लफ्जों में कहा, ‘‘कहां से एक्सपर्ट होंगे. तेइस साल की उम्र में मेरी शादी हो गई और इनकी पच्चीस की उम्र में. लड़कियों के मामले में हम दोनों गए गुजरे थे.’’ अनुराग और अभिनव की शादी का दिलचस्प किस्सा है. अभिनव अपनी गर्लफ्रेंड चतुरा राव से शादी करके जल्द से जल्द सेटल होना चाहते थे, लेकिन उनके मम्मी-पापा ने कहा कि जब तक बड़े बेटे की शादी नहीं होगी, तुम्हारी शादी नहीं हो सकती. अभिनव ने अनुराग पर दबाव बनाया और अनुराग को हड़बड़ी में अपनी गर्लफ्रेंड आरती बजाज से शादी करनी पड़ी. दोनों भाईयों का रिसेप्शन एक साथ आयोजित हुआ था.
अनुराग-अभिनव को सिनेमा से प्रेम बचपन से था, लेकिन इसे अपनी जिंदगी बनाने का फैसला दोनों ने बहुत बाद में लिया. अनुराग बताते हैं, ‘‘दिल्ली में एक फिल्म फेस्टिवल अटेंड करने के बाद मैंने फिल्ममेंकिंग में जाने का फैसला किया. उसके पहले मैं एक्टर बनना चाहता था. मैं थिएटर करता था.’’ 1992 में अनुराग अपनी मंजिल की खोज में मुंबई आ गए. दो वर्ष पश्चात अभिनव भी अपने भाई के पास आ गए. अभिनव मुंबई एमबीए की पढ़ाई करने के लिए आए थे, लेकिन हमेशा की तरह बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलने से वे खुद को रोक नहीं पाए. अभिनव बताते हैं, ‘‘मैंने भी थिएटर ज्वाइन कर लिया. एक प्ले था मिडनाइट समर. उसका हिंदी अडॉप्टेशन था. उसमें मुझे पहले ही दिन कुत्ता बना दिया. मेरा काम था कुत्ते की तरह हांफना. मैं तीसरे दिन थक गया और फिर वहां गया ही नहीं.’’ अनुराग कहते हैं कि नहीं-नहीं, इनका एक्सीडेंट हो गया था. ये दो लोगों के साथ बाइक पर जा रहे थे. इतने थके थे कि बाइक पर सोने लगे और एक्सीडेंट हो गया. अभिनव गर्व के साथ कहते हैं कि मेरे गुरु हमेशा भैया रहे हैं.
अभिनव कभी अपने भाई पर बोझ नहीं बने, बल्कि उन्होंने हमेशा उनके लिए मुश्किलें आसान कीं. अभिनव के मुंबई आने से पूर्व अनुराग का संघर्ष बहुत मुश्किल था. अनुराग के मुताबिक, ‘‘1993-94 तक बहुत कडक़ी थी. अभिनव के आने के बाद कडक़ी चली गई. ये सीरियल वगैरह से पैसे कमाते थे और मैं अपना स्ट्रगल करता रहा.’’ अभिनव हंसते हुए कहते हैं, ‘‘मेरा काम था घर चलाना. मैं दस साल तक टीवी से जुड़ा रहा. उस दौरान मेरी एजुकेशन हो रही थी. सत्या के बाद अनुराग विदेश में फिल्म फेस्टिवल में जाने लगे. दुनिया बहुत घूमी इन्होंने. उस दौरान इनका इंटरऐक्शन जिन लोगों के साथ हुआ, उस हिसाब से इनका ओरिएंटेशन हुआ. मेरी जिंदगी इंडिया में रही. मेरा पहला वल्र्ड ट्रिप दबंग फिल्म के दौरान हुआ. एक गीत की शूटिंग के लिए हम दुबई गए थे.’’ अनुराग जोड़ते हैं कि मुंबई में मेरी मुलाकात श्रीराम राघवन से हो गई. मेरी एक अलग जर्नी शुरू हो गई.
अभिनव दस वर्ष तक अनवरत टेलीविजन के लिए काम करते रहे. अनुराग और अभिनव ने शुरूआती दिनों में टीवी के लिए एक साथ लेखन भी किया है. अभिनव बताते हैं, ‘‘हमने तीन साल साथ डायलॉग लिखा. त्रिकाल और कभी कभी सीरियल हमने साथ लिखा था.’’ अनुराग ने बताया कि डर सीरियल इनकी रचना थी. मैंने सिर्फ अपना नाम जोड़ दिया था. इस खुलासे के बाद अभिनव ने बताया कि वो प्रोड्यूसर डर अनुराग के साथ बनाना चाहते थे और ये बिजी थे. उन्होंने हड़बड़ी में मुझे साइन कर लिया. मैंने लिखा था, लेकिन जब डायरेक्ट करने की बात आई तो उन्होंने कहा कि अगर तुम अपने भाई का नाम इसमें जोड़ दो तो मैं तुम्हे ब्रेक दे दूंगा. मैंने इनको पटाया और राइटिंग में इनका नाम जोड़ दिया.
अभिनव ने 2002 में फिल्म बनाने का पहला प्रयास किया. कुछ दिक्कतें सामने आईं तो वे मणिरत्नम से निर्देशन का गुर सीखने मद्रास चले गए. अभिनव बताते हैं,‘‘मैंने सीरियस सिनेमा बनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं जहां भी जाता था, लोग मेरी तुलना अनुराग से करते थे. फिर कहते थे कि एक भाई तो है ही, हमें फिल्म बनानी होगी तो उन्हें लेंगे, आपको क्यों लेंगे?’’ अभिनव की यह बात ध्यान से सुनने के बाद अनुराग ने कहा, ‘‘वक्त कितनी तेजी से बदलता है. अब मैं पब्लिक के बीच जाता हूं तो लोग कहते हैं कि इनके भाई ने दबंग बनाई है. मैं खुश हूं कि अब हमारी अलग-अलग पहचान है. लोग इन्हें अभिनव कश्यप और मुझे अनुराग कश्यप के नाम से जानते हैं.’’ अभिनव ने सफाई देने के अंदाज में कहा कि लोग मुझे अनुराग का भाई कहते थे तो मुझे शर्म नहीं आती थी, लेकिन मैं इनकी परछाई बनकर नहीं रहना चाहता था. मैं संजय कपूर था, ये अनिल कपूर थे. मेरा अपना कोई वजूद नहीं था. मैं अपनी पहचान बनाना चाहता था. और मैंने पहली फिल्म जानबूझकर इनसे अलग नहीं बनाई. सलमान खान के हां कहने के बाद उसे उनके तरीके से ढाला गया.
अनुराग-अभिनव एक-दूसरे की फिल्मों के सबसे बड़े आलोचक और प्रशंसक हैं. अनुराग को अभिनव की पहली फिल्म दबंग बहुत पसंद आई. अनुराग कहते हैं, ‘‘राजकुमार हिरानी और इम्तियाज अली के अलावा हाल के दिनों में मुझे सिर्फ अभिनव का काम पसंद आया. इन्होंने फैमिली और लव स्टोरी को बहुत अच्छी तरह एडिट किया था. मुझे गैंग ऑफ वासेपुर फिल्म में वही काम करने में परेशानी हो रही है. मुझे दबंग का क्लाइमेक्स अविश्वसनीय लगा. विलेन की डेथ मुझे समझ में नहीं आई.’’ अनुराग की फिल्मों के बारे में अभिनव कहते हैं, ‘‘उम्मीद करता हूं कि एक दिन मैं भी इनके जैसा सिनेमा बना पाऊंगा. स्टोरी टेलिंग में इनसे अच्छा फिल्ममेकर इंडिया में इस वक्त नहीं है. मैं इनसे फिल्मों में वॉयलेंस कम करने के लिए कहता रहता हूं. इनकी फिल्मों की एक मजबूरी है कि उनमें स्टार फिट नहीं होते.’’ गौरतलब है कि अनुराग और अभिनव के सिनेमा में पैरेंट्स को अभिनव का सिनेमा ज्यादा पसंद है. अभिनव कहते हैं कि हमारे पैरेंट्स छोटी शहर की टिपीकल ऑडियंस हैं. वो सिनेमा के स्टूडेंट नहीं हैं.
अनुराग ने एक दिलचस्प बात यह बताई कि उनकी फिल्मों की स्क्रीनिंग के बाद अभिनव से दो दिन तक उनकी बात नहीं होती. उसका कारण अभिनव ने बताया, ‘‘मैं निडरता से इनकी फिल्म की खामियां बता देता हूं. मुझे परवाह नहीं रहती कि ये बुरा मान जाएंगे. इन्हें बुरा लगता है, लेकिन बाद में जब इन्हें समझ में आता है कि मेरा पक्ष सही है तो ये नॉर्मल हो जाते हैं.’’ अनुराग बताते हैं कि उनकी फिल्मों देव डी, गुलाल, दैड गर्ल इन यलो बूट्स में अभिनव का बहुत योगदान है. अभिनव के अनुसार, ‘‘मैं चाहता हूं कि ये किसी का नुकसान न करें. अगर फिल्म रुपया कमाएगी, तभी ये फिल्म बनाते रहेंगे.’’
अनुराग जिद्दी स्वभाव के हैं. वे अपनी फिल्म की खातिर किसी प्रकार से झुकने के लिए तैयार नहीं होते थे, लेकिन अब उनकी वह सोच परिवर्तित हो गई है. इस बात का श्रेय अपने छोटे भाई को देते हुए अनुराग कहते हैं, ‘‘मैं पहले किसी की नहीं सुनता था. अब सुनने लगा हूं. अभिनव, कल्की और सुनील बोरा की वजह से मुझमें यह बदलाव आया है. अब मैं जब कोई स्क्रिप्ट लिखता हूं तो दूसरे की राय लेता हूं. मैं आज इतना काम कर पा रहा हूं क्योंकि अभिनव का मुझे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से सपोर्ट है.’’ अभिनव अपने भैया की सोच और उनके सिनेमा का सम्मान किस कदर करते हैं, इसका अनुमान उनके इस कथन से लगाया जा सकता है, ‘‘अनुराग नए-नए दरवाजे खोलते हैं. भविष्य में हमारा सिनेमा किस दिशा में जाएगा, इसका निर्धारण वही करेंगे.’’
कश्यप बंधु अगर किसी फिल्म के लिए एकजुट होंगे तो निसंदेह वह फिल्म चर्चा का विषय बनेगी और उसकी प्रतीक्षा सिनेप्रेमी बेसब्री से करेंगे. मगर प्रश्न यह है कि क्या कश्यप बंधु किसी फिल्म के लिए एकजुट होंगे. इसका जवाब अभिनव देते हैं, ‘‘हो सकता है कि भविष्य में ये कोई स्क्रिप्ट लिखें और मैं उसे डायरेक्ट करूं.’’ अनुराग कहते हैं कि संभव है कि हम दोनों मिलकर एक बड़ी फिल्म प्रोड्यूस करें. एक दिन हम साथ जरुर आएंगे. पहले हम स्थायी हो जाएं, हमारा दर्शक वर्ग तैयार हो जाए. हम दो सडक़ों की तरह हैं, जो एक दिन जरुर मिलेंगी.
अनुराग की योजना अगले साल अपने बैनर में दस फिल्में प्रोड्यूस करने की है. जबकि अभिनव दबंग के बाद अपनी अगली बड़ी फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं. कश्यप बंधुओं को करीब से जानने वालों का कहना है कि आने वाले समय में फिल्म इंडस्ट्री में उनकी ताकत बढ़ेगी. उनका अपना एक पावरफुल कैंप होगा. अनुराग कहते हैं, ‘‘जो लोग ऐसा सोचते हैं, उनके मुंह में घी-शक्कर. लेकिन हम यहां राज करने नहीं आए हैं. बंगला बनाने नहीं आए हैं. हम पिक्चर बनाने आए हैं. किसी प्रकार का समझौता किए बगैर हम अपनी पसंद की फिल्में बनाते रहेंगे.’’ भाई की बात का समर्थन करते हुए अभिनव कहते हैं कि हम किसी तरह की रेस में नहीं हैं. भावी योजनाओं के बारे में पूछने पर अनुराग-अभिनव ने दिलचस्प जवाब दिया. अनुराग ने कहा, ‘‘मैं सिनेमा में कॉमर्स ढूंढने की कोशिश करूंगा.’’ ‘‘और मैं कॉमर्स में सिनेमा ढूंढने की कोशिश करूंगा.’’ जोर का ठहाका लगाते हुए अभिनव ने कहा.
अनुराग कश्यप की पसंदीदा फिल्में
प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, उड़ान.
अभिनव कश्यप की पसंदीदा फिल्में
ब्लैक फ्राइडे, बैंडिट क्वीन और शोले.
अनुराग कश्यप के पसंदीदा निर्देशक
गुरुदत्त, राजकपूर, राजकुमार हिरानी.
अभिनव कश्यप के पसंदीदा निर्देशक\
बिमल रॉय, राजकुमार हिरानी, इम्तियाज अली.
अनुभूति की दस्तक
अनुराग और अभिनव की छोटी बहन अनुभूति अपनी पहली फिल्म निर्देशित करने की तैयारी कर रही हैं. वे गैंग ऑफ वासेपुर में अनुराग की असिस्टेंट थीं. अनुभूति मुंबई में अपने पति के साथ रहती हैं. अनुराग ने उन्हें अपने बैनर में फिल्म बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. अनुराग ने जानकारी दी कि अनुभूति अपना फिल्म बनाने जा रही हैं. वे जिस दिन हमसे मदद मांगेंगी, दोनों भाई उनके लिए खड़े होंगे.
-फिल्मफेयर, नवम्बर-2011
No comments:
Post a Comment