जन्मदिन विशेष
हिंदी सिनेमा के महानतम अभिनेता दिलीप कुमार को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के रुप में एक प्रिय प्रशंसक प्राप्त हैं. दिलीप कुमार को अमिताभ बच्चन अपना आदर्श मानते हैं. 11 दिसंबर को दिलीप कुमार जीवन के 89 बसंत पूरे कर रहे हैं. इस विशेष अवसर पर अमिताभ बच्चन के साथ दिलीप कुमार के बारे में रघुवेन्द्र सिंह ने बातचीत की. अमिताभ बच्चन के शब्दों में उस बातचीत को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है.
मेरे आदर्श हैं दिलीप साहब
दिलीप साहब को मैंने कला के क्षेत्र में हमेशा अपना आदर्श माना है, क्योंकि मैं ऐसा मानता हूं कि उनकी जो अदाकारी रही है, उनकी जो फिल्में रही हैं, जिनमें उन्होंने काम किया है, वो सब सराहनीय हैं. मैंने हमेशा उनके काम को पसंद किया है. बचपन में जब मैं उनकी फिल्में देखा करता था, तबसे उनका एक प्रशंसक रहा हूं. मुझे उनकी सभी फिल्में पसंद हैं, लेकिन गंगा जमुना बहुत ज्यादा पसंद आई थी. जब भी मैं दिलीप साहब को देखता हूं तो मैं ऐसा मानता हूं कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में अगर कला को लेकर, अदाकारी को लेकर, जब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो यदि किसी युग या दशक का वर्णन होगा तो लोग कहेंगे कि ये ‘‘दिलीप साहब के पहले की बात है, या उनके बाद की.’’ वो अदाकारी के एक मापदंड बन गए हैं.
ताजा है पहली मुलाकात की याद
तब मैं फिल्म इंडस्ट्री में नहीं था. एक व्यक्तिगत छुट्टी मनाने के लिए परिवार के साथ मैं मुंबई आया था. यहां हमारे जो मित्र थे, वो एक शाम को हमें एक रेस्टोरेंट में ले गए और वहां पर दिलीप साहब आए. वहां मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई. मैं उनका ऑटोग्राफ चाहता था. मैं पास की स्टेशनरी शॉप में कॉपी खरीदने के लिए भागा. जब वापस आया, तो देखा कि वे व्यस्त थे. उस समय उन्होंने मुझे ऑटोग्राफ दिया नहीं. मैं थोड़ा निराश हुआ. फिल्मों में आने के बाद उनसे मेरी पहली मुलाकात किसी के घर पर दावत में हुई थी और फिर अचानक एक दिन मुझे उनके साथ शक्ति फिल्म में काम करने का अवसर मिला.
मुश्किल था उनका विरोध करना
शक्ति सलीम-जावेद साहब की कहानी थी. रमेश सिप्पी उस फिल्म के निर्देशक थे. सलीम-जावेद ने कहा कि यह एक अच्छी कहानी है, इसे बनाना चाहिए. दिलीप साहब होंगे, आप होंगे और रमेश सिप्पी साहब. जाहिर है कि जब आप दिलीप साहब जैसे बड़े कलाकार के साथ काम करेंगे तो काफी डर रहता है. हालांकि अभिनय में मुझे कई वर्ष बीत चुके थे. फिर भी जिस शक्स को आपने इतना सराहा है, अपना आदर्श माना है, अगर वो अचानक आपके सामने आकर खड़े हो जाएं तो डर लगता है. और शक्ति में जिस तरह की हमारी भूमिका थी कि मैं थोड़ा सा विरोधी हूं उनके सामने, वो भी एक कठिन चीज थी मेरे लिए क्योंकि आप जिसको इतना चाहते हैं, उनका विरोध कैसे कर सकते हैं? मुश्किल था मेरे लिए, लेकिन काम करते हुए बहुत अच्छा लगा. मैंने उनका काम करने का तरीका देखा. वे हर एक बात को, हर एक चीज को, बार-बार समझना, उसकी बारीकियों में जाना और जब तक वह एक दम सही न हो जाएं, तब तक प्रयास करते रहना, वह सब मैंने देखा.
डेथ सीन करने की चुनौती
शक्ति का क्लाइमेक्स सीन हमने यहीं एयरपोर्ट पर किया था. डेथ सीन किसी कलाकार के लिए आम तौर पर बड़ा मुश्किल समय होता है कि कैसे किया जाए. और इतने सारे डेथ सीन हमने कर लिए थे. शोले में, दीवार में, मुकद्दर का सिकंदर में, तो हमेशा मन के अंदर एक विडंबना बनी रहती है कि डेथ सीन को कैसे करें कि नयापन आए. तो दिलीप साहब के साथ विचार-विमर्श किया वहीं पर और फिर उसी तरह किया जैसा कि आपने फिल्म में देखा है. मैं दाद देना चाहूंगा दिलीप साहब की क्योंकि उन्होंने उस सीन में एक शब्द नहीं कहा, क्योंकि वे जानते थे कि एक कलाकार के लिए वह समय बड़ा आवश्यक होता है कि वह कांसंट्रेट करे.
कलाकार की इज्जत करना उनसे सीखें
मैंने जितनी बार भी दिलीप साहब से कहा कि मैं रिहर्स करना चाहता हूं और मैंने कहा कि मैं किसी डुप्लीकेट के साथ कर लेता हूं तो उन्होंने कहा कि नहीं. उन्होंने मेरा पूरा सहयोग दिया. और उन्होंने कभी एक आवाज भी नहीं निकाली, जब मैं काम कर रहा था या मुझे याद है जो उन्होंने बीच में इधर-उधर की कुछ बात की हो. मुझे याद है जब मैं वह सीन रिहर्स कर रहा था, तो पीछे प्रोडक्शन के लोग काम कर रहे थे, ऊंची आवाज में वो कुछ बात कर रहे थे, तो दिलीप साहब ने उन्हें डांट दिया कि चुप रहिए आप. आप कलाकार की इज्जत नहीं करते हैं. देख नहीं रहे हैं आप. तो मुझे बड़ा अच्छा लगा यह देखकर कि अन्य कलाकारों के लिए भी उनके मन में इतनी इज्जत थी.
जब तीन बजे रात को पहुंच गए दिलीप साहब के घर
कई बार हम उनके घर रात-बिरात पहुंच जाते थे. और हमेशा वह बड़े ही दयालु और कहा जाए कि बहुत ही स्वागतमंद रहे. मुझे याद है. एक शाम सलीम साहब, जावेद साहब और हम अपने घर में बैठे हुए थे. ऐसे ही बातचीत चल रही थी. और बातचीत करते-करते तकरीबन रात के एक-दो बज गए. तो मैंने उन लोगों सेे कहा कि चलिए मैं आप लोगों को घर छोड़ देता हूं. रास्ते में जाते-जाते उन्होंने कहा कि यार, दिलीप साहब से मिलने का बड़ा मन कर रहा है. मैंने कहा अरे भई, रात के दो-तीन बज रहे हैं. कहां जाएंगे? तो उन्होंने कहा कि चलिए चलते हैं. देखते हैं कि क्या होता है. हम तीनों रात के तकरीबन तीन बजे उनके घर में चले गए. वो सो रहे थे. वो उठकर के आए. और एक-डेढ़ घंटे हमारे साथ बैठे रहे और बातें करते रहे. इतना उनका अनुभव है, इतनी कहानियां हैं जीवन की कि किस तरह से किसने क्या किया, कौन सा रोल कैसे हुआ, फिल्म के अलावा भी उनके पास इतनी जानकारी है कि उनको बैठकर सुनने में ही बड़ा आनंद मिलता है. हम लोग काफी देर तक बतियाते रहे. ये सेवेंटीज-एटीज की बात है.
टीवी व विज्ञापन में मेरा काम करना उन्हें पसंद नहीं
नई जेनरेशन के बारे में उन्होंने कभी मुझसे कोई जिज्ञासा प्रकट नहीं की. यदा-कदा मैं उनके इंटरव्यूज पढ़ता रहता हूं जिसके द्वारा पता चलता है कि वो क्या सोचते हैं. मेरे खयाल में उनके मन में यह बात है कि एक कलाकार को अदाकारी के साथ ही अपना संबंध रखना चाहिए. जब मैंने टेलीविजन में काम किया या जब मैंने इंडोर्समेंट किए तो शायद उनको पसंद नहीं आया. पसंद मतलब.. वो कहते थे कि तुम ये सब क्यों करते हो? अदाकारी ही किया करो. लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं. अभी हाल ही में उनसे प्राण साहब के जन्मदिन पर मुलाकात हुई थी और हाल ही में कौन बनेगा करोड़पति में दिलीप साहब के ऊपर एक प्रश्न आया तो मैंने उनके बारे में कुछ बातें की. उसके बारे में उन्हें सायरा जी के जरिए पता चला तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुम उस एपीसोड की डीवीडी भेजो, मैं देखना चाहता हूं कि तुमने मेरे बारे में क्या कहा.
सबकी प्रेरणा हैं दिलीप साहब
मैं दिलीप साहब के अभिनय को मिस करता हूं. मैं ऐसा मानता हूं कि उन्होंने एक नए युग की शुरुआत की. अगर हमारा भारतीय सिनेमा का इतिहास युगों में बांटा जाएगा तो निश्चित ही दिलीप साब का जो युग था, उसका ऐसे ही वर्णन होगा कि ये दिलीप साहब से पहले की बात है और ये दिलीप साहब के बाद की बात है. कला के क्षेत्र में हम सब लोग प्रेरित होते हैं और ये विश्व भर की बात है. जितने भी लोग कला से संबंध रखते हैं, चाहे वो कवि हों, पेंटिंग करते हों, चाहे मॉडलिंग करते हों, कुछ भी करते हों, कहीं न कहीं से उनको प्रेरणा मिलती है. तो उनको देख करके ही, इतना ही हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है कि हम दिलीप साहब को देखकर ही इंस्पायर होते हैं. मेरे लिए तो यही सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि मुझे दिलीप साहब के साथ काम करने का अवसर मिला. और वो क्षण मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा. उनके साथ हमारा लगाव निरंतर रहा है, बल्कि अभी दो दिन पहले ही उनसे एसएमएस पर मेरी बातचीत हुई. हर साल वो मुझे जन्मदिन पर बधाई देते हैं और मैं उन्हें जन्मदिन पर बधाई देता हूं. कई दिनों से वह अस्वस्थ हैं. मैं उनसे कह रहा था कि आप मेरी फिल्म पा देखिए तो उन्होंने कहा कि मैं जरुर देखूंगा. सायरा जी से मेरी बातचीत होती रहती है और मैं अभी उनसे मिलने भी जाऊंगा.
दिलीप साहब का व्यक्तित्व
मेरे खयाल से लोगों के मन में ये एक अजीब सी धारणा है कि क्योंकि कलाकार है और वह स्टार है तो उसका जो व्यक्तित्व है या उसका स्वभाव है, वह अलग तरीके का होगा. हमारे मन के अंदर ऐसी कोई धारणा नहीं है. हम लोग आम आदमी की तरह हैं. आम आदमी की तरह काम करते हैं और हमारे साथ जो काम करेगा, उसके साथ मिल-जुलकर ही काम करेंगे. ऐसा मान लेना कि मैं एक स्टार हूं तो मैं जब चलूं तो लोग बैठ जाएं और जब मैं खड़ा होऊं तो सब लोग झुक जाएं, ऐसा कुछ वातावरण होता नहीं है. हम सब आम इंसान हैं. दिलीप साब का व्यक्तित्व ऐसा ही है. काम के प्रति लगन होनी चाहिए और अपने परफॉर्मेंस को हम जितना नैचुरली कर सकें, वह कोशिश करनी चाहिए. दिलीप साहब बहुत ही नैचुरल एक्टर हैं. देखकर लगता नहीं कि वे अदाकारी कर रहे हैं. ऐसा ही काम करने की हम भी उनसे प्रेरणा लेते हैं.
दुख है कि गंगा जमुना के लिए उन्हें पुरस्कार नहीं मिला
उन्हें गंगा जमुना के लिए पुरस्कार नहीं दिया गया, इस बात का मुझे हमेशा दुख रहेगा. कई बार लोग मुझसे कहते हैं कि साहब आपको दीवार के लिए पुरस्कार नहीं मिला, मुकद्दर का सिकंदर के लिए नहीं मिला, लावारिस के लिए नहीं मिला, शराबी के लिए नहीं मिला, तो मैं उनसे कहता हूं कि छोड़ो, ये तो मैगजीन का निर्णय होता है, जो पुरस्कार देती है. अगर दिलीप साहब को उन्होंने गंगा जमुना के लिए पुरस्कार नहीं दिया तो फिर मैं किस खेत की मूली हूं. यह बात मैंने कुछ साल पहले फिल्मफेयर के एक समारोह में कही थी कि इस बात का हमेशा मुझे दुख रहेगा कि उन्होंने गंगा जमुना के लिए दिलीप साहब को पुरस्कार नहीं दिया. उस समारोह में दिलीप साहब मुख्य अतिथि थे.
फ्रेम करवाई है उनकी चिट्ठी
मैं दिलीप साहब को हमेशा अपनी सारी फिल्में देखने के लिए बुलाता हूं. मैंने उनको ब्लैक देखने के लिए बुलाया था. वो प्रीमियर पर आए थे. वह बड़ा अद्भुत क्षण था मेरे लिए. जब फिल्म खत्म हुई तो वह पहले निकल आए थे और मेरा इंतजार कर रहे थे. यहीं आईमैक्स में. जब मैं आया तो उन्होंने आकर मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए. और कुछ शब्द नहीं निकले.. न मेरे मुंह से और न उनके मुंह से. बहुत ही भावुक समय था वह. मुझे बहुत ही अच्छा लगा. फिर उसके बाद उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी. उस चिट्ठी को मैंने फ्रेम करवाकर अपने ऑफिस में रखा हुआ है. दिलीप साहब के जन्मदिन के अवसर पर मैं यही कहूंगा कि उन्हें स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो. यही सबसे बड़ी चीज है. खुशियां तो स्वास्थ्य के साथ आ ही जाती हैं. काम तो अब वो कर नहीं रहे हैं. मैं यही चाहता हूं कि वो चिरायु हों.. बस. मैं उनके जन्मदिन पर पत्र लिखूंगा और व्यक्तिगत तौर पर बधाई दूंगा.
-फिल्मफेयर, दिसम्बर-2011
हिंदी सिनेमा के महानतम अभिनेता दिलीप कुमार को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के रुप में एक प्रिय प्रशंसक प्राप्त हैं. दिलीप कुमार को अमिताभ बच्चन अपना आदर्श मानते हैं. 11 दिसंबर को दिलीप कुमार जीवन के 89 बसंत पूरे कर रहे हैं. इस विशेष अवसर पर अमिताभ बच्चन के साथ दिलीप कुमार के बारे में रघुवेन्द्र सिंह ने बातचीत की. अमिताभ बच्चन के शब्दों में उस बातचीत को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है.
मेरे आदर्श हैं दिलीप साहब
दिलीप साहब को मैंने कला के क्षेत्र में हमेशा अपना आदर्श माना है, क्योंकि मैं ऐसा मानता हूं कि उनकी जो अदाकारी रही है, उनकी जो फिल्में रही हैं, जिनमें उन्होंने काम किया है, वो सब सराहनीय हैं. मैंने हमेशा उनके काम को पसंद किया है. बचपन में जब मैं उनकी फिल्में देखा करता था, तबसे उनका एक प्रशंसक रहा हूं. मुझे उनकी सभी फिल्में पसंद हैं, लेकिन गंगा जमुना बहुत ज्यादा पसंद आई थी. जब भी मैं दिलीप साहब को देखता हूं तो मैं ऐसा मानता हूं कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में अगर कला को लेकर, अदाकारी को लेकर, जब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो यदि किसी युग या दशक का वर्णन होगा तो लोग कहेंगे कि ये ‘‘दिलीप साहब के पहले की बात है, या उनके बाद की.’’ वो अदाकारी के एक मापदंड बन गए हैं.
ताजा है पहली मुलाकात की याद
तब मैं फिल्म इंडस्ट्री में नहीं था. एक व्यक्तिगत छुट्टी मनाने के लिए परिवार के साथ मैं मुंबई आया था. यहां हमारे जो मित्र थे, वो एक शाम को हमें एक रेस्टोरेंट में ले गए और वहां पर दिलीप साहब आए. वहां मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई. मैं उनका ऑटोग्राफ चाहता था. मैं पास की स्टेशनरी शॉप में कॉपी खरीदने के लिए भागा. जब वापस आया, तो देखा कि वे व्यस्त थे. उस समय उन्होंने मुझे ऑटोग्राफ दिया नहीं. मैं थोड़ा निराश हुआ. फिल्मों में आने के बाद उनसे मेरी पहली मुलाकात किसी के घर पर दावत में हुई थी और फिर अचानक एक दिन मुझे उनके साथ शक्ति फिल्म में काम करने का अवसर मिला.
मुश्किल था उनका विरोध करना
शक्ति सलीम-जावेद साहब की कहानी थी. रमेश सिप्पी उस फिल्म के निर्देशक थे. सलीम-जावेद ने कहा कि यह एक अच्छी कहानी है, इसे बनाना चाहिए. दिलीप साहब होंगे, आप होंगे और रमेश सिप्पी साहब. जाहिर है कि जब आप दिलीप साहब जैसे बड़े कलाकार के साथ काम करेंगे तो काफी डर रहता है. हालांकि अभिनय में मुझे कई वर्ष बीत चुके थे. फिर भी जिस शक्स को आपने इतना सराहा है, अपना आदर्श माना है, अगर वो अचानक आपके सामने आकर खड़े हो जाएं तो डर लगता है. और शक्ति में जिस तरह की हमारी भूमिका थी कि मैं थोड़ा सा विरोधी हूं उनके सामने, वो भी एक कठिन चीज थी मेरे लिए क्योंकि आप जिसको इतना चाहते हैं, उनका विरोध कैसे कर सकते हैं? मुश्किल था मेरे लिए, लेकिन काम करते हुए बहुत अच्छा लगा. मैंने उनका काम करने का तरीका देखा. वे हर एक बात को, हर एक चीज को, बार-बार समझना, उसकी बारीकियों में जाना और जब तक वह एक दम सही न हो जाएं, तब तक प्रयास करते रहना, वह सब मैंने देखा.
डेथ सीन करने की चुनौती
शक्ति का क्लाइमेक्स सीन हमने यहीं एयरपोर्ट पर किया था. डेथ सीन किसी कलाकार के लिए आम तौर पर बड़ा मुश्किल समय होता है कि कैसे किया जाए. और इतने सारे डेथ सीन हमने कर लिए थे. शोले में, दीवार में, मुकद्दर का सिकंदर में, तो हमेशा मन के अंदर एक विडंबना बनी रहती है कि डेथ सीन को कैसे करें कि नयापन आए. तो दिलीप साहब के साथ विचार-विमर्श किया वहीं पर और फिर उसी तरह किया जैसा कि आपने फिल्म में देखा है. मैं दाद देना चाहूंगा दिलीप साहब की क्योंकि उन्होंने उस सीन में एक शब्द नहीं कहा, क्योंकि वे जानते थे कि एक कलाकार के लिए वह समय बड़ा आवश्यक होता है कि वह कांसंट्रेट करे.
कलाकार की इज्जत करना उनसे सीखें
मैंने जितनी बार भी दिलीप साहब से कहा कि मैं रिहर्स करना चाहता हूं और मैंने कहा कि मैं किसी डुप्लीकेट के साथ कर लेता हूं तो उन्होंने कहा कि नहीं. उन्होंने मेरा पूरा सहयोग दिया. और उन्होंने कभी एक आवाज भी नहीं निकाली, जब मैं काम कर रहा था या मुझे याद है जो उन्होंने बीच में इधर-उधर की कुछ बात की हो. मुझे याद है जब मैं वह सीन रिहर्स कर रहा था, तो पीछे प्रोडक्शन के लोग काम कर रहे थे, ऊंची आवाज में वो कुछ बात कर रहे थे, तो दिलीप साहब ने उन्हें डांट दिया कि चुप रहिए आप. आप कलाकार की इज्जत नहीं करते हैं. देख नहीं रहे हैं आप. तो मुझे बड़ा अच्छा लगा यह देखकर कि अन्य कलाकारों के लिए भी उनके मन में इतनी इज्जत थी.
जब तीन बजे रात को पहुंच गए दिलीप साहब के घर
कई बार हम उनके घर रात-बिरात पहुंच जाते थे. और हमेशा वह बड़े ही दयालु और कहा जाए कि बहुत ही स्वागतमंद रहे. मुझे याद है. एक शाम सलीम साहब, जावेद साहब और हम अपने घर में बैठे हुए थे. ऐसे ही बातचीत चल रही थी. और बातचीत करते-करते तकरीबन रात के एक-दो बज गए. तो मैंने उन लोगों सेे कहा कि चलिए मैं आप लोगों को घर छोड़ देता हूं. रास्ते में जाते-जाते उन्होंने कहा कि यार, दिलीप साहब से मिलने का बड़ा मन कर रहा है. मैंने कहा अरे भई, रात के दो-तीन बज रहे हैं. कहां जाएंगे? तो उन्होंने कहा कि चलिए चलते हैं. देखते हैं कि क्या होता है. हम तीनों रात के तकरीबन तीन बजे उनके घर में चले गए. वो सो रहे थे. वो उठकर के आए. और एक-डेढ़ घंटे हमारे साथ बैठे रहे और बातें करते रहे. इतना उनका अनुभव है, इतनी कहानियां हैं जीवन की कि किस तरह से किसने क्या किया, कौन सा रोल कैसे हुआ, फिल्म के अलावा भी उनके पास इतनी जानकारी है कि उनको बैठकर सुनने में ही बड़ा आनंद मिलता है. हम लोग काफी देर तक बतियाते रहे. ये सेवेंटीज-एटीज की बात है.
टीवी व विज्ञापन में मेरा काम करना उन्हें पसंद नहीं
नई जेनरेशन के बारे में उन्होंने कभी मुझसे कोई जिज्ञासा प्रकट नहीं की. यदा-कदा मैं उनके इंटरव्यूज पढ़ता रहता हूं जिसके द्वारा पता चलता है कि वो क्या सोचते हैं. मेरे खयाल में उनके मन में यह बात है कि एक कलाकार को अदाकारी के साथ ही अपना संबंध रखना चाहिए. जब मैंने टेलीविजन में काम किया या जब मैंने इंडोर्समेंट किए तो शायद उनको पसंद नहीं आया. पसंद मतलब.. वो कहते थे कि तुम ये सब क्यों करते हो? अदाकारी ही किया करो. लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं. अभी हाल ही में उनसे प्राण साहब के जन्मदिन पर मुलाकात हुई थी और हाल ही में कौन बनेगा करोड़पति में दिलीप साहब के ऊपर एक प्रश्न आया तो मैंने उनके बारे में कुछ बातें की. उसके बारे में उन्हें सायरा जी के जरिए पता चला तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुम उस एपीसोड की डीवीडी भेजो, मैं देखना चाहता हूं कि तुमने मेरे बारे में क्या कहा.
सबकी प्रेरणा हैं दिलीप साहब
मैं दिलीप साहब के अभिनय को मिस करता हूं. मैं ऐसा मानता हूं कि उन्होंने एक नए युग की शुरुआत की. अगर हमारा भारतीय सिनेमा का इतिहास युगों में बांटा जाएगा तो निश्चित ही दिलीप साब का जो युग था, उसका ऐसे ही वर्णन होगा कि ये दिलीप साहब से पहले की बात है और ये दिलीप साहब के बाद की बात है. कला के क्षेत्र में हम सब लोग प्रेरित होते हैं और ये विश्व भर की बात है. जितने भी लोग कला से संबंध रखते हैं, चाहे वो कवि हों, पेंटिंग करते हों, चाहे मॉडलिंग करते हों, कुछ भी करते हों, कहीं न कहीं से उनको प्रेरणा मिलती है. तो उनको देख करके ही, इतना ही हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है कि हम दिलीप साहब को देखकर ही इंस्पायर होते हैं. मेरे लिए तो यही सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि मुझे दिलीप साहब के साथ काम करने का अवसर मिला. और वो क्षण मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा. उनके साथ हमारा लगाव निरंतर रहा है, बल्कि अभी दो दिन पहले ही उनसे एसएमएस पर मेरी बातचीत हुई. हर साल वो मुझे जन्मदिन पर बधाई देते हैं और मैं उन्हें जन्मदिन पर बधाई देता हूं. कई दिनों से वह अस्वस्थ हैं. मैं उनसे कह रहा था कि आप मेरी फिल्म पा देखिए तो उन्होंने कहा कि मैं जरुर देखूंगा. सायरा जी से मेरी बातचीत होती रहती है और मैं अभी उनसे मिलने भी जाऊंगा.
दिलीप साहब का व्यक्तित्व
मेरे खयाल से लोगों के मन में ये एक अजीब सी धारणा है कि क्योंकि कलाकार है और वह स्टार है तो उसका जो व्यक्तित्व है या उसका स्वभाव है, वह अलग तरीके का होगा. हमारे मन के अंदर ऐसी कोई धारणा नहीं है. हम लोग आम आदमी की तरह हैं. आम आदमी की तरह काम करते हैं और हमारे साथ जो काम करेगा, उसके साथ मिल-जुलकर ही काम करेंगे. ऐसा मान लेना कि मैं एक स्टार हूं तो मैं जब चलूं तो लोग बैठ जाएं और जब मैं खड़ा होऊं तो सब लोग झुक जाएं, ऐसा कुछ वातावरण होता नहीं है. हम सब आम इंसान हैं. दिलीप साब का व्यक्तित्व ऐसा ही है. काम के प्रति लगन होनी चाहिए और अपने परफॉर्मेंस को हम जितना नैचुरली कर सकें, वह कोशिश करनी चाहिए. दिलीप साहब बहुत ही नैचुरल एक्टर हैं. देखकर लगता नहीं कि वे अदाकारी कर रहे हैं. ऐसा ही काम करने की हम भी उनसे प्रेरणा लेते हैं.
दुख है कि गंगा जमुना के लिए उन्हें पुरस्कार नहीं मिला
उन्हें गंगा जमुना के लिए पुरस्कार नहीं दिया गया, इस बात का मुझे हमेशा दुख रहेगा. कई बार लोग मुझसे कहते हैं कि साहब आपको दीवार के लिए पुरस्कार नहीं मिला, मुकद्दर का सिकंदर के लिए नहीं मिला, लावारिस के लिए नहीं मिला, शराबी के लिए नहीं मिला, तो मैं उनसे कहता हूं कि छोड़ो, ये तो मैगजीन का निर्णय होता है, जो पुरस्कार देती है. अगर दिलीप साहब को उन्होंने गंगा जमुना के लिए पुरस्कार नहीं दिया तो फिर मैं किस खेत की मूली हूं. यह बात मैंने कुछ साल पहले फिल्मफेयर के एक समारोह में कही थी कि इस बात का हमेशा मुझे दुख रहेगा कि उन्होंने गंगा जमुना के लिए दिलीप साहब को पुरस्कार नहीं दिया. उस समारोह में दिलीप साहब मुख्य अतिथि थे.
फ्रेम करवाई है उनकी चिट्ठी
मैं दिलीप साहब को हमेशा अपनी सारी फिल्में देखने के लिए बुलाता हूं. मैंने उनको ब्लैक देखने के लिए बुलाया था. वो प्रीमियर पर आए थे. वह बड़ा अद्भुत क्षण था मेरे लिए. जब फिल्म खत्म हुई तो वह पहले निकल आए थे और मेरा इंतजार कर रहे थे. यहीं आईमैक्स में. जब मैं आया तो उन्होंने आकर मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए. और कुछ शब्द नहीं निकले.. न मेरे मुंह से और न उनके मुंह से. बहुत ही भावुक समय था वह. मुझे बहुत ही अच्छा लगा. फिर उसके बाद उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी. उस चिट्ठी को मैंने फ्रेम करवाकर अपने ऑफिस में रखा हुआ है. दिलीप साहब के जन्मदिन के अवसर पर मैं यही कहूंगा कि उन्हें स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो. यही सबसे बड़ी चीज है. खुशियां तो स्वास्थ्य के साथ आ ही जाती हैं. काम तो अब वो कर नहीं रहे हैं. मैं यही चाहता हूं कि वो चिरायु हों.. बस. मैं उनके जन्मदिन पर पत्र लिखूंगा और व्यक्तिगत तौर पर बधाई दूंगा.
-फिल्मफेयर, दिसम्बर-2011
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