Wednesday, April 25, 2012

मेरी मां- शबाना आजमी

-रघुवेन्द्र सिंह

वे जिस शख्स के सिर पर हाथ रख देती हैं, उसकी जि़ंदगी बदल जाती है. वे जिसके संग कुछ वक़्त गुजारती हैं, उसकी सोच और श$िख्सयत बदल जाती है. शबाना आज़मी के चुंबकीय व्यक्तित्व का करिश्मा ही कुछ ऐसा है. अर्थपूर्ण िफल्मों के साथ-साथ उन्होंने वास्तविक जीवन में अपने समाजसेवी कार्यों से हज़ारों जि़ंदगियों का रू$ख तब्दील किया है. उन्हें $करीब से जानने-समझने के लिए मैंने उनके जन्मदिन (१८ सितंबर) के अवसर पर अपने एडिटर जितेश पिल्लै के समक्ष उनका साक्षात्कार करने की बात रखी. उन्होंने सुझाव दिया कि अगर शबाना आज़मी की श$िख्सयत को समझना है तो उनकी मम्मी शौकत आज़मी से बात करो. उन्होंने शौकत आज़मी और शबाना आज़मी का संयुक्त साक्षात्कार और फोटोशूट करने की बात कही. मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा. मेरी $खुशकिस्मती देखिए कि शबाना आज़मी ने फौरन अपनी मम्मी के साथ बातचीत करने के लिए हां कह दिया.

बरसात की एक दोपहर मैं शबाना आज़मी के जुहू स्थित सागर सम्राट बिल्डिंग के सातवें महले पर करीने से सजे $खूबसूरत घर में प्रवेश करता हूं. एम एफ हुसैन सहित दुनिया के मशहूर चित्रकारों की पेंटिंग से सजे बैठकखाने से समुद्र का विहंगम दृश्य नजर आता है. हमेशा की तरह शबाना सलवार-कमीज में हैं, जबकि शौकत आज़मी गोल्डन बॉडर्र की $खूबसूरत साड़ी में सजी हैं. अब शौकत आज़मी और शबाना आज़मी जैसी श$िख्सयतें आपके समक्ष हों तो आपका नर्वस होना लाज़मी है. मैं कांपते अल्$फाजों में शौकत आज़मी से शबाना के बचपन के बारे में जानने की जिज्ञासा प्रकट करने के साथ ही, यह गुजारिश करता हूं कि अपनी आत्मकथा याद की रहगुज़र में वर्णित गंभीर, जि़म्मेदार और अभिनेत्री शबाना के बारे में बिल्कुल न बताएं.

शौकत आज़मी की आंखें अपनी बेटी के बारे में बातें करते वक्त चमक उठती हैं. वे उत्साही अंदाज़ में शबाना के बारे में बात करना शुरू करती हैं. ‘‘शबाना बहुत ब्राइट और बेहद हमदर्द बच्ची थी. ये सात साल की थी. उस दिन घर में खाना नहीं पका था. मैंने इससे कहा था कि कभी किसी के सामने हाथ मत फैलाना. अगर घर में कोई तकलीफ हो तो उसे खुद झेल लेना. लेकिन मां की परेशानी उससे देखी नहीं गई. हमारे घर के सामने अली सरदार जा$फरी और उनकी बहनें रहती थीं. ये सरदार जा$फरी की बहन के पास गई और उनसे बोला कि मम्मी एक रुपया मांग रही हैं. और मेरे पास चिल्लाते हुए आई कि मम्मी, देखो-ये आपका एक रुपया अलमारी के नीचे से मिला. उस एक रुपए से घर में सब्जी आई. शाम को रज्जो बाजी ने मुझसे पूछा कि शबाना ने तुम्हें रुपया दिया. मैंने पूछा कि कौन सा रुपया? उन्होंने कहा कि वो एक रुपया मांग कर ले आई थी. मुझे बहुत गुस्सा आया. उनके जाने के बाद मैंने उसे बहुत मारा और डांटा.’’ सोफे पर अपनी मम्मी के बगल में बैठी शबाना आज़मी हंसते हुए कहती हैं-‘‘हां, एक दम फरिश्ता थी. मम्मी इन्हें मेरी शरारतों के बारे में बताओ.’’

और शबाना खुद ही बताने लगती हैं. ‘‘मैं इंतेहाई शरारती थी. मैं अपने भाई बाबा को सबसे ज़्यादा परेशान करती थी. वो तीन साल का था. रात में उसने चीकू का बीज निगल लिया. मैंने सुबह को एक छोटा सा पौधा उसके मुंह में रख दिया और उसे उठाया कि ओ..तुम्हारे मुंह में चीकू का पेड़ निकल आया. वो बेचारा चीखते हुए भागा.’’ काबिले जि़क्र है कि शबाना बचपन में बेहद हस्सास और शरारती होने के साथ बेइंतहाई नाटकबाज़ थीं. उनके नाटकों ने कई मर्तबा शौकत आज़मी के हाथ-पांव ठंडे कर दिए थे. शौकत आज़मी के पास शबाना के नाटकों के अनेक दिलचस्प $िकस्से हैं, जिन्हें सुनते हुए दिन कब गुज़र जाएगा, आपको पता भी नहीं चलेगा.

नन्हीं उम्र में शबाना आज़मी का अपने जन्मदिन को लेकर उत्साह के बारे में जिज्ञासा प्रकट करने पर शौकत आज़मी ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘इसका (शबाना) वश चले तो ये अपना जन्मदिन मनाए ही नहीं. मैं ही दोस्तों को बुलाती थी, बिरयानी बनाती थी. ये मुश्किल से केक काटती थी.’’ मम्मी की इस बात पर शबाना प्रतिक्रियात्मक लहजे में कहती हैं, ‘‘नहीं-नहीं. हुआ ये था कि मुझसे पहले एक और बच्चा हुआ था. उसकी पहली सालगिरह में मम्मी ने बेहद तैयारी की थी. और सालगिरह से एक हफ्ता पहले उसकी डेथ हो गई. मम्मी को सुपरस्टिशन हो गया था कि सालगिरह नहीं मनानी चाहिए. इसलिए बचपन में हमारी सालगिरह मनाई ही नहीं जाती थी. बाद में इन्होंने जन्मदिन मनाना शुरू किया, जब इन्हें इत्मीनान हो गया कि मेरी बेटी जि़ंदा रहेगी.’’

तोह$फों के बारे में शबाना आज़मी की $ख्वाहिशों और जि़द के बारे में पूछने पर शौकत आजमी एक राज की बात बताती हैं. ‘‘तोह$फे तो छोडि़ए. इसे अनगिनत अवॉर्ड मिले, लेकिन ये एक भी अवॉर्ड घर में नहीं ले आई. पांच में से ये केवल चार नेशनल अवॉर्ड घर में लाई है, लेकिन मुझे पता नहीं है कि कहां रखा है उन्हें.’’ अवॉर्ड को घर में न ले आने के बाबत आश्चर्य प्रकट करने पर शबाना आज़मी कहती हैं, ‘‘बदतमीज़ी है मेरी. आई एम नॉट वेरी प्राउड अबाउट इट. (मम्मी की ओर घूमकर) आपने अपनी बात नहीं बताई कि आपने हमारे अवॉर्ड की क्या कद्र की? हुआ क्या था कि गर्म हवा रिलीज हुई थी और उसके बाद अंकुर रिलीज हुई थी. अब्बा को अट्ठारह अवॉर्ड मिले थे और मुझे भी त$करीबन उतने ही अवॉर्ड मिले थे. शुरू से ही हमारे घर में अवॉर्ड को सजाकर रखने का रिवाज़ नहीं था.’’ शौकत और शबाना के इस खुलासे के बाद मैंने बैठकखाने में नज़र दौड़ाई तो वाकई मुझे एक भी अवॉर्ड नहीं नज़र आया. अमूमन टॉप फिल्म स्टार्स का घर पुरस्कारों से सजा होता है.


कम लोग जानते हैं कि शबाना आज़मी को बचपन में मुन्नी और नोनो कहकर बुलाया जाता था. उनके और भी कई नाम थे, जिनके बारे में स्वयं शबाना बताती हैं, ‘‘फिल्म इंस्टीट्यूट में लोग मुझे शैवी, शबी, शैब्स कहते थे. मुन्नी अब मुझे सिर्फ शशि कपूर, रेखा और कोंकणा सेन कहते हैं. शबाना दीदी तो है ही मेरा जगत नाम.’’ गौरतलब है कि सरदार जा$फरी के सुझाव पर शौकत आज़मी ने उनका नाम शबाना रखा.

शबाना और उनके अब्बा कै$फी साब के रिश्ते के बारे में का$फी लिखा-कहा-सुना गया है, लेकिन मम्मी के साथ उनके रिश्ते पर गहराई से बात नहीं हुई है. मम्मी के साथ अपने रिश्ते की गहराई के बारे में शबाना कहती हैं, ‘‘मेरे ऊपर अपनी मां का उतना ही इंफ्लूएंस है जितना मेरे अब्बा का. ये बहुत ही गैर-मामूली मां हैं, क्योंकि ना ही ये अपनी तारीफ में मुझे ब$ख्शती हैं और ना ही अपनी क्रिटिसिज़्म में. मैं सात साल की थी. मैं बदतमीज़ होती जा रही थी. मां ने एक बार मुझसे झिडक़ कर पूछा कि तुम इतनी बदतमीज़ क्यों हो? मैंने कहा कि आप बाबा को मुझसे ज्यादा चाहती हैं. उन्होंने कहा कि देखो, मैं मां हूं, मगर मैं एक इंसान भी हूं और किसी भी इंसान से अगर कोई बदतमीज़ी से पेश आता है तो वह उससे भागता है और जो मुहब्बत और नरमी से बात करता है उसके $करीब जाता हैं. और बाबा मुझसे नरमी और तमीज़ से बात करते हैं. और तुम बदतमीज़ी से, तो ज़ाहिर है कि मैं तुमसे कतराऊंगी.’’

शौकत-शबाना का रिश्ता उनकी श$िख्सयत की तरह ही गैर-मामूली है. मां-बेटी के इस उदाहरणार्थ रिश्ते की मधुरता और गहराई का एहसास हमें $िफल्म$फयर के $फोटोशूट के दौरान हुआ. जहां शबाना कभी मम्मी के साथ छोटी बच्ची की तरह शरारत करती तो कभी सहेली की तरह छेडख़ानी करती और कभी कैमरे का सामना करते वक्त नर्वस हो रहीं मम्मी की $खूबसूरती की तारीफ करके उनकी हौसलाअफज़ाई करती नज़र आईं.

शबाना के शानदार व्यक्तित्व और प्रोग्रेसिव सोच में कै$फी आज़मी और शौकत आज़मी का गहरा प्रभाव है. शबाना मानती हैं कि उनका कांफिडेंस, किरदारों की तैयारी का अंदाज मां की सीख है. वे मम्मी को अफ्रीका जवान परेशान और पगली जैसे लोकप्रिय नाटकों के मुश्किल किरदारों की तैयारी शिद्दत के साथ करते हुए घर में देखकर बड़ी हुई हैं. शबाना बताती हैं, ‘‘अफ्रीका जवान परेशान में इन्होंने काम करना शुरू किया तो उन्होंने बहुत रिसर्च की. एक औरत इन्हें मिली तो इन्हें लगा कि मुझे ऐसा ही दिखना चाहिए, तो ये बहुत दिन तक घर में वैसे कपड़े पहनकर रहती थीं. मैं आज तक वैसे ही करती हूं. जब मैं मकड़ी कर रही थी तो एक फुट का ऊंचा जूता पहनकर घर में घूमती थी, क्योंकि मुझे जूतों में कं$फर्टबेल होना था. जादू (जावेद अख्तर) कहते थे कि कभी मुझे लगता है कि मेरी एक स्लम डेवलपर से शादी हुई है, कभी किसी चुड़ैल से तो कभी किसी रानी से हुई है. तो मैं उनसे कहती हूं कि अच्छा है तुम्हारी शादी इतनी अलग-अलग औरतों से हुई है (ठहाका मारकर हंसती हैं). एक्टिंग में कैरेक्टर को किस तरह से डेवलप करते हैं, यह ऑब्ज़र्व करना मैंने मां से सीखा है.’’

शबाना ने अच्छा साथी होने का गुण मम्मी से सीखा ज़रूर, लेकिन वे अपनी मम्मी जैसी वाइ$फ नहीं बन सकीं. वे स्वयं कहती हैं, ‘‘मैं मम्मी जैसी वाइ$फ नहीं बन पाई हूं.’’ शबाना बताती हैं कि मैंने अब्बा से पूछा था कि मम्मी की सबसे अच्छी बात आपको क्या लगती है, तो उन्होंने कहा था कि वो साथी बहुत अच्छी हैं. परफेक्ट वाइ$फ. अच्छी मैरिज में क्या होना चाहिए..ये सब मुझे विरसे में मिले हैं.’’ शो मस्ट गो ऑन.. का फलस$फा भी उन्होंने अपनी मम्मी से सीखा है. शबाना कहती हैं, ‘‘मैंने मम्मी से सीखा है कि कितनी भी मुश्किलें क्यों न हों, लेकिन अगर शो की घोषणा हो चुकी है तो शो मस्ट गो ऑन..’’ गौरतलब है कि हाल में शबाना आज़मी ने पैर में चोट के बावजूद ब्रोकेन इमेजज नाटक का मंचन किया. बाद में उन्हें पता चला कि पैर में छह फ्रैक्चर हो गए हैं.

सुना था कि मां की सबसे अच्छी सहेली बेटी और बेटी की सबसे अजीज दोस्त मां होती है, लेकिन शौकत-शबाना के रूप में इस सच से मेरा परिचय हुआ. शौकत आज़मी कहती हैं, ‘‘कै$फी के इंतकाल (२००२)के बाद मुझे बहुत तकली$फ हुई थी. ५३ साल का हमारा साथ था. मैं अकेली रहती थी, हमेशा रोती रहती थी. ये बच्ची मुझे अपने पास लेकर आ गई और उस वक्त से मैं इसके साथ हूं. मेरी बेटी अपनी दोनों हथेली पर रखती है मुझे. मेरी तबियत ज़रा भी $खराब हो जाए तो वो परेशान हो जाती है. मैं ज़्यादा तारी$फ नहीं करना चाहती, नहीं नज़र लग जाएगी.’’ शबाना आज़मी कहती हैं, मम्मी मेरा कां$िफडेंस हैं. मुझे अगर जि़ंदगी, रिश्तों, शादी के बारे में कोई प्राब्लम है तो मैं सिर्फ अपनी मां से डिस्कस करती हूं और उनकी विजडम में य$कीन करती हूं.’’

काबिले जि़क्र है कि शबाना आज़मी के अभिनय में आने के पीछे उनकी मम्मी की $खास भूमिका है. यदि उन्होंने कै$फी आज़मी को राज़ी नहीं किया होता तो शायद शबाना अभिनेत्री न बन पातीं. शौकत आज़मी ने बताया, ‘‘कै$फी फिल्मों में शबाना का काम करना पसंद नहीं करते थे. उसने कै $फी से कहा कि वह टीचर बनकर एक्टिंग सिखाऊंगी. वह इंस्टीट्यूट में जाना चाहती हूं. मैं एक्ट्रेस थी. मैंने कै$फी से कहा कि एक्टिंग बुरी चीज़ नहीं है. उसे करने दो. फिर कै$फी ने हामी भरी. दरअसल, कै$फी $िफल्मों में गाने लिखते थे. वे सेट पर डायरेक्टर से मिलने जाते थे. वो देखते थे कि $िफल्मों में कैसी-कैसी हरकतें होती थीं. वो नहीं चाहते थे कि उनकी बच्ची वो सब करे. लेकिन जब शबाना ने फिल्मों में काम करना शुरू किया तो वे $खुश हुए, क्योंकि शबाना ने कोई ऐसी हरकत नहीं की, जो बुरी समझी जाए.’’ शबाना की अंकुर और मॉर्निंग रागा उनकी मम्मी की पसंदीदा फिल्में हैं. शौकत अपनी बेटी को कमर्शियल फिल्मों की बजाए आर्ट फिल्मों में देखना ज्यादा पसंद करती हैं. ‘‘मुझे शबाना की आर्ट फिल्में पसंद हैं क्योंकि उसमें रियलिटी होती है. जिंदगी का पूरा अर्थ उस फिल्म से मिलता है. कमर्शियल तो झूठ है.’’

फिल्म, राजनीति और समाजसेवा के क्षेत्र में शबाना आजमी की उपलब्धियां अनगिनत हैं. इसके बावजूद क्या उन्हें जिंदगी में कोई कार्य न कर पाने या किसी चीज़ के छूट जाने का मलाल है? जवाब में शबाना कहती हैं, ‘‘मुझे दो चीजों का अ$फसोस है. एक कि मैंने पियानो नहीं सीखा और दूसरा कि मैं खाना बनाना नहीं सीख सकी.’’ वे आगे कहती हैं, ‘‘मैं सही व$क्त पर सही जगह रही. जब मैं फिल्मों में आई तो पैरलल सिनेमा की शुरूआत हुई जिसकी वजह से मुझे बेहतरीन रोल मिले. उसके बाद इंटरनैशनल सिनेमा में बहुत बड़े रोल मुझे मिले. अब मैं ऐसे माहौल में हूं जहां उम्र कोई बंदिश नहीं रखती. शुरू में मेरे घर में इतना पॉलिटिक्स डिस्कस होता था कि मैं कान में रूइयां डाल लेती थी. लेकिन अब्बा को यकीन था कि मिट्टी गीली है कि अंकुर तो फूटेगा ही. उन्हें यकीन था कि मैं इस ओर जाऊंगी. अब अब्बा का काम मैं आगे लेकर जा रही हूं.’’

मम्मी शौकत आज़मी, पति जावेद अ$ख्तर, बच्चों फरहान और ज़ोया अ$ख्तर तथा उनके परिवार के संग शबाना खुशहाल जि़ंदगी गुज़ार रही हैं. फिल्म निर्माण, निर्देशन, अभिनय, गायन क्षेत्र में फरहान अ$ख्तर और ज़ोया की सफलता से वे बेइंतहा खुश हैं. ‘‘दोनों बच्चों की कामयाबी से हम खुश हैं. दोनों की अच्छी बात मुझे यह लगती है कि वे कामयाबी से पागलों की तरह खुश नहीं होते और नाकामयाबी से निराश नहीं होते.’’ शबाना की बात पर शौकत आज़मी सहमति जताती हैं. कै$फी आज़मी द्वारा आज़मगढ़ में स्थापित एनजीओ मिजवां वेलफेयर सोसायटी के कार्यों को फरहान और ज़ोया द्वारा आगे बढ़ाने के बाबत पूछने पर शबाना कहती हैं, ‘‘दोनों का गांव से कोई ताल्लुक नहीं है. लेकिन दोनों मिजवां के लिए काम करते रहते हैं. दोनों बच्चे सोशली कांशियस हैं, मगर उनके कंसर्न दूसरे हैं. उनके कंसर्न बच्चों और इनवायरमेंट को लेकर हैं. मैं खुश हूं.’’

शबाना के अभिनय के स्तर को छू पाना किसी भी अभिनेत्री के लिए टेढ़ी खीर है. क्या शबाना मौजूदा दौर की अभिनेत्रियों में किसी को अपने आस-पास पाती हैं? ‘‘मुझे तब्बू, कोंकणा, विद्या बालन, शहाना गोस्वामी और करीना कपूर बहुत अच्छी लगती हैं. हमारे पास बहुत टैलेंटेड लडक़े-लड़कियां हैं.’’ सुनने में आया है कि प्रतीक बब्बर शबाना आजमी को अपनी मां स्वरूप मानते हैं. इस रिश्ते के बारे में शबाना कहती हैं, ‘‘ऐसा बिल्कुल नहीं है. शुरू में जब प्रतीक जरा सा लॉस था, तो स्मिता की बहन मान्या ने प्रतीक को मेरे पास भेजा कि जस्ट हेल्प हिम. जाने तू या जाने ना रिलीज नहीं हुई थी. अभी तो बहुत दिनों से वह मुझे मिला नहीं है. उसकी शक्ल बहुत अच्छी है, बहुत टैलेंट है उसमें. वह आगे बढ़ेगा. मैंने थोड़ा सा उसकी हेल्प की.’’

शबाना आजमी की जि़ंदगी निसंदेह प्रेरणादायक है. उम्मीद करते हैं कि वे अपनी जि़ंदगी को आत्मकथा के रूप में एक दिन वे जहां के समक्ष ज़रूर पेश करेंगी. शबाना कहती हैं, ‘‘बहुत लोग कहते हैं मुझसे, लेकिन मैं मशरू$फ बहुत ज़्यादा हूं.’’ शबाना आज़मी की मम्मी शौकत आज़मी मुकम्मल यकीन के साथ कहती हैं कि एक ज़माना आएगा जब शबाना आत्मकथा लिखेगी. जिससे लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.


No comments: