इस साल 19 नए निर्देशकों ने फिल्म निर्देशन में कदम रखा। इनमें कुछ बड़े निर्देशकों के पुराने शागिर्द तो कुछ विज्ञापन फिल्मों के अनुभवी रहे। महिला निर्देशकों के हिसाब से यह साल उत्साहजनक रहा। इनमें कुछ को छोड़कर सभी निर्देशक तीस से कम उम्र के हैं।
नई पीढ़ी का जोश
वेक अप सिड के निर्देशक अयान मुखर्जी और कुर्बान फिल्म के निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा को इस साल की बड़ी खोज कहा जा सकता है। पच्चीस साल के अयान ने रणबीर कपूर और कोंकणा सेन शर्मा की बेमेल जोड़ी को लेकर खूबसूरत मनोरंजक फिल्म बनायी और कुर्बान से रेंसिल ने हिंदी फिल्म मेकिंग को एक नई ऊंचाई दी। डांस के लिए प्रसिद्ध प्रभुदेवा ने वांटेड से दर्शकों को बेहतरीन मनोरंजक फिल्म दी। उनकी अगली फिल्म की घोषणा का सबको इंतजार है।
नाम बड़े और दर्शन छोटे
फिल्म बड़े बजट से नहीं बल्कि अच्छी कहानी और उम्दा निर्देशन से बनती है। ब्लू, कमबख्त इश्क एवं मैं और मिसेज खन्ना फिल्मों के निर्देशक एंथोनी डिसूजा, साबिर खान और प्रेम सोनी यह बात भूल गए। एंथोनी डिसूजा को ब्लू के रूप में ड्रीम ब्रेक मिला। साठ करोड़ रूपए तथा अक्षय कुमार, संजय दत्ता और लारा दत्ता जैसे कलाकार मिले, लेकिन बेदम कहानी और कमजोर निर्देशन से उन्होंने निराश किया। यही हाल साबिर खान का रहा। साजिद नाडियाडवाला ने साबिर खान को बिग बजट और अक्षय कुमार एवं करीना कपूर जैसे स्टार कलाकार दिए, लेकिन उन्होंने साल की सबसे बुरी फिल्म कमबख्त इश्क बना डाली। प्रेम सोनी ने सलमान खान और करीना कपूर को लेकर मैं और मिसेज खन्ना के रूप में साल की सबसे बोरिंग फिल्म बनायी।
महिला निर्देशकों का दम
इस साल चार महिला निर्देशकों नंदिता दास, जोया अख्तर, मधुरिता आनंद और रोमिला मुखर्जी ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, लेकिन इनमें नंदिता और जोया को छोड़कर किसी में भी लंबी पारी खेलने का दम नहीं दिखा। नंदिता ने फिराक और जोया अख्तर ने फिल्म लक बाई चांस से दमदार निर्देशक के रूप में पहचान बनायी। फिराक तो देश-विदेश में कई पुरस्कार भी जीत चुकी है। मधुरिता आनंद की मेरे ख्वाबों में जो आए और रोमिला मुखर्जी की डिटेक्टिव नानी को न दर्शक मिले और न सराहना।
कम बजट में किया कमाल
छोटे बजट में बढि़या फिल्में बनाकर कुछ निर्देशकों ने वाहवाही लूटी। 13 बी के निर्देशक विक्रम कुमार, संकट सिटी के पंकज आडवाणी, चल चलें फिल्म के निर्देशक उज्जवल सिंह और चिंटूजी के रंजीत कुमार ऐसे ही प्रतिभाशाली निर्देशक हैं। इनके पास सिर्फ बढि़या कहानी थी। इन्होंने उसी पर मेहनत की और किसी तरह निर्माता और कलाकार इकट्ठे किए और अच्छी फिल्म बनाकर आलोचकों और दर्शकों का दिल जीत लिया।
पूरी तरह किया निराश
यह साल ऐसे निर्देशकों के आगमन का साक्षी भी बना जो आए और चलते बने। इनमें ढूंढते रह जाओगे फिल्म के उमेश शुक्ला, आ देखें जरा के जहांगीर सुर्ती, जोर लगा के हैय्या के निर्देशक गिरीश गिरीजा जोशी और फास्ट फारवर्ड के निर्देशक जैगम अली का नाम शामिल है।
-रघुवेन्द्र सिंह
नई पीढ़ी का जोश
वेक अप सिड के निर्देशक अयान मुखर्जी और कुर्बान फिल्म के निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा को इस साल की बड़ी खोज कहा जा सकता है। पच्चीस साल के अयान ने रणबीर कपूर और कोंकणा सेन शर्मा की बेमेल जोड़ी को लेकर खूबसूरत मनोरंजक फिल्म बनायी और कुर्बान से रेंसिल ने हिंदी फिल्म मेकिंग को एक नई ऊंचाई दी। डांस के लिए प्रसिद्ध प्रभुदेवा ने वांटेड से दर्शकों को बेहतरीन मनोरंजक फिल्म दी। उनकी अगली फिल्म की घोषणा का सबको इंतजार है।
नाम बड़े और दर्शन छोटे
फिल्म बड़े बजट से नहीं बल्कि अच्छी कहानी और उम्दा निर्देशन से बनती है। ब्लू, कमबख्त इश्क एवं मैं और मिसेज खन्ना फिल्मों के निर्देशक एंथोनी डिसूजा, साबिर खान और प्रेम सोनी यह बात भूल गए। एंथोनी डिसूजा को ब्लू के रूप में ड्रीम ब्रेक मिला। साठ करोड़ रूपए तथा अक्षय कुमार, संजय दत्ता और लारा दत्ता जैसे कलाकार मिले, लेकिन बेदम कहानी और कमजोर निर्देशन से उन्होंने निराश किया। यही हाल साबिर खान का रहा। साजिद नाडियाडवाला ने साबिर खान को बिग बजट और अक्षय कुमार एवं करीना कपूर जैसे स्टार कलाकार दिए, लेकिन उन्होंने साल की सबसे बुरी फिल्म कमबख्त इश्क बना डाली। प्रेम सोनी ने सलमान खान और करीना कपूर को लेकर मैं और मिसेज खन्ना के रूप में साल की सबसे बोरिंग फिल्म बनायी।
महिला निर्देशकों का दम
इस साल चार महिला निर्देशकों नंदिता दास, जोया अख्तर, मधुरिता आनंद और रोमिला मुखर्जी ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, लेकिन इनमें नंदिता और जोया को छोड़कर किसी में भी लंबी पारी खेलने का दम नहीं दिखा। नंदिता ने फिराक और जोया अख्तर ने फिल्म लक बाई चांस से दमदार निर्देशक के रूप में पहचान बनायी। फिराक तो देश-विदेश में कई पुरस्कार भी जीत चुकी है। मधुरिता आनंद की मेरे ख्वाबों में जो आए और रोमिला मुखर्जी की डिटेक्टिव नानी को न दर्शक मिले और न सराहना।
कम बजट में किया कमाल
छोटे बजट में बढि़या फिल्में बनाकर कुछ निर्देशकों ने वाहवाही लूटी। 13 बी के निर्देशक विक्रम कुमार, संकट सिटी के पंकज आडवाणी, चल चलें फिल्म के निर्देशक उज्जवल सिंह और चिंटूजी के रंजीत कुमार ऐसे ही प्रतिभाशाली निर्देशक हैं। इनके पास सिर्फ बढि़या कहानी थी। इन्होंने उसी पर मेहनत की और किसी तरह निर्माता और कलाकार इकट्ठे किए और अच्छी फिल्म बनाकर आलोचकों और दर्शकों का दिल जीत लिया।
पूरी तरह किया निराश
यह साल ऐसे निर्देशकों के आगमन का साक्षी भी बना जो आए और चलते बने। इनमें ढूंढते रह जाओगे फिल्म के उमेश शुक्ला, आ देखें जरा के जहांगीर सुर्ती, जोर लगा के हैय्या के निर्देशक गिरीश गिरीजा जोशी और फास्ट फारवर्ड के निर्देशक जैगम अली का नाम शामिल है।
-रघुवेन्द्र सिंह
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