अमिताभ और अभिषेक बच्चन कई फिल्मों में साथ और पिता-पुत्र के रूप में आए, लेकिन ये दोनों फिल्म पा में पहली बार पुत्र-पिता के रूप में नजर आएंगे। हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब बिग स्क्रीन पर एक पिता अपने बेटे और बेटा अपने पिता के किरदार में नजर आएगा। इस अद्भुत अनुभव और पिता अमिताभ बच्चन से आपसी रिश्ते के बारे में अभिषेक से बातचीत की..।
रियल पिता-पुत्र की जोड़ी को फिल्म में पुत्र-पिता के रूप में पेश करने का आइडिया किसका था?
पा के निर्देशक बाल्की का। वे एक दिन हमारे घर आए थे और उस वक्त पापा और मैं कुछ डिस्कस कर रहे थे। उन्होंने देखा कि जो बेटा है, वह सीरियस बातें कर रहा है और पिता शांति से उसे सुन रहे हैं। उस वक्त उन्हें पिता बेटा लगा। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस विषय पर एक फिल्म बनाई जाए, जिसमें अमिताभ बच्चन को अभिषेक के बेटे के रूप में पेश किया जाए। फिर वे सोचने लगे कि इसे संभव कैसे किया जाए। काफी रिसर्च के बाद उन्हें प्रोजेरिया बीमारी के बारे में पता चला। इस तरह उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी।
अमिताभ बच्चन के साथ अपने रिश्तों के बारे में बताएंगे। पिता-पुत्र के अलावा आप दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता है?
निजी जीवन में हमारा रिश्ता दो दोस्तों का है। हमारे दादा जी ने पापा को सिखाया था कि बेटा अपने पिता का उस दिन दोस्त बन जाता है, जिस दिन वह अपने पिता के जूते पहन लेता है। मैं बारह या तेरह साल का था, जब मैंने पापा के जूते पहनने शुरू कर दिए। तब उन्होंने मुझे यह कहानी सुनाई। तबसे हम दोनों बेस्ट फ्रेंड हैं।
घर में क्या आपके सुझाव माने जाते हैं या आपको अभी तक बच्चे की तरह ही ट्रीट किया जाता है?
नहीं, बचपन से लेकर आज तक मां और पा ने हमेशा श्वेता और मेरी बात मानी है। हमेशा हमसे पूछा जाता है कि यह समस्या है और आप दोनों का इस पर क्या सोचना है? अब परिवार में ऐश्वर्या भी हैं, तो हम सब मिल-बैठकर डिसाइड करते हैं कि क्या होना चाहिए और कैसे होना चाहिए?
पा में एक बेटे ने अपने पिता के पिता का रोल किया या एक पिता ने अपने बेटे के बेटे का रोल किया। आप किस रूप में इसे याद करेंगे?
एक पिता ने अपने बेटे के बेटे का रोल निभाया, उस हिसाब से। फिल्म देखेंगे, तब लोगों को पता चलेगा कि इसमें किसका कन्ट्रीब्यूशन ज्यादा है। जब लोग पापा के काम को देखेंगे, तो चौंक जाएंगे। यह पापा के करियर का सबसे मुश्किल रोल है।
फिल्म का नाम पा ही क्यों रखा गया? पापा, बाबूजी या कुछ और क्यों नहीं?
क्योंकि मैं निजी जीवन में पा को पा ही बुलाता हूं, तो बाल्की को लगा कि इसका नाम पा ही रखा जाए।
आपके लिए अपने पिता के पिता का रोल करना चैलेंजिंग रहा होगा। इसके लिए आपने किस ढंग की तैयारी की?
रियल लाइफ में पा जिस तरह मुझसे पेश आते हैं, मैंने वही किया है। फिल्म में मैंने पा के तौर-तरीकों को अपनाया है। उसके अलावा मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि जो कुछ करना था, पा ऐसे ही कर रहे थे। एक ऐक्टर के लिए बहुत मुश्किल होता है, जब उसके पास ऑथोबैक रोल हो। यदि उसमें वह दिखाने की कोशिश करता है कि मैं भी फिल्म में हूं, तो फिल्म खराब हो जाती है। ऐक्टर के लिए साइलेंट सपोर्टर रहना ज्यादा चैलेंजिंग होता है। मैं फिल्म में फ्लो के साथ चला हूं।
पा पुत्र-पिता या पिता-पुत्र किस प्रॉस्पेक्टिव से कही गई कहानी है?
दो प्रॉस्पेक्टिव हैं। एक, पिता-पुत्र और दूसरा, पुत्र-पिता। मैं इसमें अमोल आरते की भूमिका निभा रहा हूं, जो लखनऊ से मेंबर ऑफ पार्लियामेंट है। विद्या बालन मेरी पत्नी बनी हैं और परेश रावल मेरे पिता की भूमिका में हैं। ऑरो की भूमिका पापा निभा रहे हैं। यह अमोल आरते और उसके बेटे ऑरो के रिश्ते की कहानी है। यह स्वीट, सिंपल फिल्म है। इसमें प्रोजेरिया का प्रचार नहीं किया गया है। जब लोग थिएटर से फिल्म देखकर निकलेंगे, तो उनके चेहरे पर स्माइल होगी, इस बात की गारंटी है। मैं इसे हैप्पी फिल्म मानता हूं।
रियल पिता-पुत्र की जोड़ी को फिल्म में पुत्र-पिता के रूप में पेश करने का आइडिया किसका था?
पा के निर्देशक बाल्की का। वे एक दिन हमारे घर आए थे और उस वक्त पापा और मैं कुछ डिस्कस कर रहे थे। उन्होंने देखा कि जो बेटा है, वह सीरियस बातें कर रहा है और पिता शांति से उसे सुन रहे हैं। उस वक्त उन्हें पिता बेटा लगा। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस विषय पर एक फिल्म बनाई जाए, जिसमें अमिताभ बच्चन को अभिषेक के बेटे के रूप में पेश किया जाए। फिर वे सोचने लगे कि इसे संभव कैसे किया जाए। काफी रिसर्च के बाद उन्हें प्रोजेरिया बीमारी के बारे में पता चला। इस तरह उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी।
अमिताभ बच्चन के साथ अपने रिश्तों के बारे में बताएंगे। पिता-पुत्र के अलावा आप दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता है?
निजी जीवन में हमारा रिश्ता दो दोस्तों का है। हमारे दादा जी ने पापा को सिखाया था कि बेटा अपने पिता का उस दिन दोस्त बन जाता है, जिस दिन वह अपने पिता के जूते पहन लेता है। मैं बारह या तेरह साल का था, जब मैंने पापा के जूते पहनने शुरू कर दिए। तब उन्होंने मुझे यह कहानी सुनाई। तबसे हम दोनों बेस्ट फ्रेंड हैं।
घर में क्या आपके सुझाव माने जाते हैं या आपको अभी तक बच्चे की तरह ही ट्रीट किया जाता है?
नहीं, बचपन से लेकर आज तक मां और पा ने हमेशा श्वेता और मेरी बात मानी है। हमेशा हमसे पूछा जाता है कि यह समस्या है और आप दोनों का इस पर क्या सोचना है? अब परिवार में ऐश्वर्या भी हैं, तो हम सब मिल-बैठकर डिसाइड करते हैं कि क्या होना चाहिए और कैसे होना चाहिए?
पा में एक बेटे ने अपने पिता के पिता का रोल किया या एक पिता ने अपने बेटे के बेटे का रोल किया। आप किस रूप में इसे याद करेंगे?
एक पिता ने अपने बेटे के बेटे का रोल निभाया, उस हिसाब से। फिल्म देखेंगे, तब लोगों को पता चलेगा कि इसमें किसका कन्ट्रीब्यूशन ज्यादा है। जब लोग पापा के काम को देखेंगे, तो चौंक जाएंगे। यह पापा के करियर का सबसे मुश्किल रोल है।
फिल्म का नाम पा ही क्यों रखा गया? पापा, बाबूजी या कुछ और क्यों नहीं?
क्योंकि मैं निजी जीवन में पा को पा ही बुलाता हूं, तो बाल्की को लगा कि इसका नाम पा ही रखा जाए।
आपके लिए अपने पिता के पिता का रोल करना चैलेंजिंग रहा होगा। इसके लिए आपने किस ढंग की तैयारी की?
रियल लाइफ में पा जिस तरह मुझसे पेश आते हैं, मैंने वही किया है। फिल्म में मैंने पा के तौर-तरीकों को अपनाया है। उसके अलावा मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि जो कुछ करना था, पा ऐसे ही कर रहे थे। एक ऐक्टर के लिए बहुत मुश्किल होता है, जब उसके पास ऑथोबैक रोल हो। यदि उसमें वह दिखाने की कोशिश करता है कि मैं भी फिल्म में हूं, तो फिल्म खराब हो जाती है। ऐक्टर के लिए साइलेंट सपोर्टर रहना ज्यादा चैलेंजिंग होता है। मैं फिल्म में फ्लो के साथ चला हूं।
पा पुत्र-पिता या पिता-पुत्र किस प्रॉस्पेक्टिव से कही गई कहानी है?
दो प्रॉस्पेक्टिव हैं। एक, पिता-पुत्र और दूसरा, पुत्र-पिता। मैं इसमें अमोल आरते की भूमिका निभा रहा हूं, जो लखनऊ से मेंबर ऑफ पार्लियामेंट है। विद्या बालन मेरी पत्नी बनी हैं और परेश रावल मेरे पिता की भूमिका में हैं। ऑरो की भूमिका पापा निभा रहे हैं। यह अमोल आरते और उसके बेटे ऑरो के रिश्ते की कहानी है। यह स्वीट, सिंपल फिल्म है। इसमें प्रोजेरिया का प्रचार नहीं किया गया है। जब लोग थिएटर से फिल्म देखकर निकलेंगे, तो उनके चेहरे पर स्माइल होगी, इस बात की गारंटी है। मैं इसे हैप्पी फिल्म मानता हूं।
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