साताक्रूज में स्थित विधु विनोद चोपड़ा के दफ्तर की पहली मंजिल का विशाल कमरा...दरवाजे के करीब तीन कुर्सियों के साथ लगी है छोटी-सी टेबल और उसके ठीक सामने रखा है आधुनिक शैली का सोफा। लाल टीशर्ट,जींस और स्लीपर पहने आमिर कमरे में प्रवेश करते हैं। उनके हाथों में मोटी-सी किताब है। आमिर दैनिक जागरण की इस पहल का स्वागत करते हैं।
[दिल से चुनता हूं फिल्में]
फिल्म साइन करते समय यह नहीं सोचता हूं कि मुझे यूथ से कनेक्ट करना है या कोई मैसेज देना है। फिल्म की कहानी सुनते समय मैं सिर्फ एक आडियंस होता हूं। देखता हूं कि कहानी सुनते समय मुझे कितना मजा आया? मजा अलग-अलग रीजन से आ सकता है। या तो बहुत एंटरटेनिंग कहानी हो या इमोशनल कहानी हो या फिल्म कोई ऐसी चीज कह रही हो, जो सोचने पर मजबूर कर रही हो। मतलब यह है कि कहानी सुनते समय मेरा पूरा ध्यान उसी में घुसा रहे। केवल उसी के लिए हा करता हूं जिसकी कहानी मेरे दिल को छू लेती है।
['सरफरोश' के बाद का सफर]
पिछले दस सालों के अपने करिअर का रिव्यू करने पर मैं पाता हूं कि मेरी सारी फिल्में एक्सपेरिमेंटल किस्म की हैं। मेनस्ट्रीम से अलग हैं। अगर सोच-समझ कर फैसला लेता तो मैं ये फिल्में कर ही नहीं पाता। मैं अपने दिल को फालो कर रहा हूं। मैं थिंकिंग एक्टर नहीं हूं।
[मेरी प्रिय फिल्म 'तारे जमीं पर']
अपनी सबसे प्रिय फिल्म बताना बहुत मुश्किल काम है। एक फिल्म है, जिसका लोगों पर भयंकर असर हुआ है, इसलिए वह मुझे बहुत अजीज है। वह है 'तारे जमीं पर'। वह इसलिए अजीज नहीं है कि मैंने डायरेक्ट की। 'तारे जमीं पर'से मुझे ऐसी फिल्म का हिस्सा बनने का मौका मिला, जिससे लोगों का चाइल्ड एजुकेशन का नजरिया बदल गया। आफिसर से मिनिस्टर तक इस प्राब्लम को समझ पाए। इस फिल्म के पहले 'लर्निंग डिसएबिलिटी' या 'डिसलेक्सिया' की बात करने पर लोग ऐसे बच्चों के बारे में यही समझते थे कि वे बेवकूफ बना रहे हैं। बच्चा होमवर्क नहीं करता है तो बहाने बना रहा है। उस फिल्म ने सभी के सोचने-समझने का तरीका बदल दिया। देश में कितने बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त रहे होंगे। अपने स्कूल लाइफ की बात करूं तो मेरे अनेक दोस्त किसी तरह गिर-पड़कर पास होते थे। उन्हें स्कूल में टीचर और घर में पैरेंट्स की डाट पड़ती थी। उन्हें लगता था कि वे बेवकूफ हैं और उनसे कुछ नहीं होता। इस तरह वे फुस्स हो गए। 'तारे जमीं पर' के बाद ऐसे बच्चों को फुस्स नहीं होना पड़ता।
[स्कूल डेज]
मैं पढने में एवरेज था। होमवर्क में मेरा इंटरेस्ट नहीं रहता था। खेल-कूद में ज्यादा इंटरेस्ट था। लकली मेरे पैरेंट्स ऐसे नहीं थे कि मुझ पर प्रेशर डालते। वैसे मैं कभी फेल नहीं हुआ। हमेशा सिक्सटी पसर्ेंट मार्क्स तो मिलते ही थे। मैं खेल-कूद में अच्छा था, इसलिए मेरा सेल्फ स्टीम बचा रहा। अगर आप बच्चे को हमेशा कोसते रहें या उसकी कमियों के बारे में बताते रहें तो उसे लगने लगता है कि वाकई मुझे कुछ नहीं आता। 'तारे जमीन पर'में एक सीन था, जिसमें निकुंभ जाकर बताता है कि कैसे प्राचीन समय में आदिवासी किसी पेड़ के पास आकर लगातार कोसते थे तो वह सूख जाता था। अपने आप मर जाता था। उसे काटने की जरूरत नहीं पड़ती थी। ज्यादातर बच्चों के साथ यही होता है। वे बच्चे ब्लूम ही नहीं कर पाते। स्कूल डेज बहुत खास होते हैं। बच्चों की खास केयर होनी चाहिए।
['थ्री इडियट' का आइडिया]
इसके बारे में मैं दो लोगों के कमेंट बताऊंगा। चेतन भगत की किताब 'फाइव प्वाइंट समवन' मैंने अभी तक नहीं पढ़ी है। बंगलुरू में शूटिंग के समय चेतन भगत मिलने आए थे। मैंने उनसे कहा कि चेतन, मैंने आप की किताब पढ़ी नहीं है। मैं पढना भी नहीं चाहूंगा, क्योंकि मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी है और उससे डिस्ट्रैक्ट नहीं होना चाहता। चेतन ने कहा कि पढना भी मत, क्योंकि राजू ने इतना बदल दिया है कि अब जो फिल्म बन रही है, वह मेरी किताब ही नहीं है। राजू से जब मैंने बात की तो उन्होंने कहा फिल्म की प्रेरणा बुक से ही मिली है, लेकिन यह फिल्म चेतन की बुक पर आधारित नहीं है।
[कैरेक्टर का माइंड]
मेरे लिए अहम चीज स्क्रिप्ट होती है। उसके बाद मैं जो किरदार प्ले कर रहा होता हूं, उसे समझना बहुत जरूरी होता है। उसके माइंड को पकडऩा होता है। लुक और स्टाइल तो कैरेक्टर के फिजिकल आस्पेक्ट्स हैं। मेरा अपियरेंस एक लेयर भर है। उसके अंदर कई लेयर होते हैं, जिनसे वह किरदार उभरता है। 'गजनी' का संजय सिंहानिया, 'लगान' का भुवन, 'दिल चाहता है' का आकाश, 'तारे जमीन पर' का निकुंभ, 'मंगल पाडे' और अभी '3 इडियट' का रैंचो..इन सभी के माइंड्स को समझने के बाद ही मैं इन कैरेक्टर्स को प्ले कर पाया। मुझे कैरेक्टर का हेड समझ में आ जाए तो सुर मिल जाता है। फिर वाइब्रेशन मिलने लगता है। उसके बाद बाहरी चीजों पर ध्यान देता हूं। सिर्फ हेयर कट और कपड़ों से किरदार नहीं बनता।
['थ्री इडियट' का रैंचो]
मैंने राजू से कहा था कि मुझे कहानी बहुत पसंद आई है और मैं आप के साथ काम भी करना चाहता हूं, लेकिन जो किरदार आप मुझे दे रहे हैं, वह 20 साल का है। मैं अभी 43 का हूं और फिल्म रिलीज होने तक 44 का हो जाऊंगा। आप ऐसे एक्टर को चुनें जो 20 साल का लगे। राजू ने पलट कर कहा था, 'मेरे किरदार का नाम है रैंचो। जितना अजीब नाम है उसका, उतनी ही अजीब उसकी पर्सनैलिटी है। जैसे, आप नार्मल इंसान नहीं हो और टोटली अजीबोगरीब डिसीजन लेते हो। वैसा ही वह है।' रैंचो की फिलासफी है कि काबिलियत के पीछे भागो, उसके बाद कामयाबी आप के पीछे भागेगी। लाइफ में मेरी भी यही फिलासफी रही है। राजू का यही कहना था कि आप रैंचो प्ले करोगे तो रियल लगेगा। कोई और करेगा तो झूठ लगेगा। यही वजह है कि मैंने रैंचो को चैलेंज के तौर पर लिया। 20 साल का बन कर दिखाया।
[करीना से केमिस्ट्री]
केमिस्ट्री के बारे में बताने के पहले बॉयोलोजी बताता हूं। करीना के साथ '3 इडियट' करने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि उनके जैसी खूबसूरत अभिनेत्री के साथ समय बिताने का मौका मिला। दिन बड़ा अच्छा कटता था। खूबसूरत सा चेहरा देखने को मिलता है तो बड़ा अच्छा लगता है। आखें सेंकने का मौका मिलता है। उनके साथ काम करना अच्छा रहा। वे ग्रेट एक्टर हैं। वह बहुत अच्छी इंसान भी हैं। वह डाउन टू अर्थ हैं। वेरी कैजुअल और ग्रेट फ्रेंड हैं। हमारे बीच कोई इश्यू नहीं रहा। कह सकता हूं कि करीना के साथ केमिस्ट्री बहुत अच्छी रही।
[किरण ले आईं तब्दीली]
हा, इधर कुछ सालों से मैं बदल रहा हूं। पिछले चार-पाच सालों में मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी तब्दीली के रूप में किरण आई हैं और उनकी वजह से मुझ में तब्दीली आ गई है। किरण की ब्राइट पर्सनैलिटी है। पॉजीटिव हैं वह..कैसे एक्सप्लेन करूं? पहाड़ी नदी होती है ना वाइब्रेंट और प्लेफुल, वैसी हैं किरण। उन्हें जानने और उनके साथ रहने के बाद मेरी पर्सनैलिटी में फर्क आया है। मैं थोड़ा रिलैक्स हुआ हूं। पहले मैं थोड़ा शात और खामोश रहता था। किरण से रिलेशनशिप बढऩे के बाद खुल गया हूं। मुझ में बदलाव आ गया है। अब मैं अपने ब्लाग के जरिए यूथ से कनेक्ट हो पाता हूं। अपनी फीलिंग्स शेयर कर पाता हूं। मैं उनकी जबान में ही बातें करता हूं। मुझे लगता है कि अगर मैं पाच साल पहले ब्लाग लिखता तो बहुत सीरियस होता और बोरिंग होता।
[फुर्सत में पढ़ाई]
फुर्सत मिलती है तो बच्चे, बीवी और फैमिली के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है। मुझे किताबें पढने का बेहद शौक है। रात में पढने के बाद ही सोता हूं। वर्किंग डे में फुर्सत नहीं मिलती तो गाड़ी में पढ़ता हूं। मुंबई में कहीं आने-जाने में आधे घटे का समय मिल ही जाता है। मैं बहुत तेजी से पढ़ता हूं। 500-600 पेज की किताब दो दिनों में खत्म कर देता हूं।
[रूबिक क्यूब और थ्री डाइमेंशनल सोच]
लोग यह तो जानते हैं कि रूबिक क्यूब में मेरा इंटरेस्ट है, लेकिन शायद यह नहीं जानते कि मेरा फास्टेस्ट टाइम 28 सेकेंड्स है। कालेज के फर्स्ट ईयर के समय से यह कर रहा हूं। रूबिक क्यूब मेरा एक्सटेंशन है। '3 इडियट' का रैंचो भी इसे खेलता रहता है। रूबिक क्यूब वास्तव में मैथ है। यदि आप की सोच थ्री डायमेंशनल है तो आप इसे सुलझा सकते हैं। एक समय मैं इसकी वर्ल्ड चैंपियनशिप में हंगरी जाना चाहता था, पर नहीं जा पाया।
-सौम्या अपराजिता/रघुवेन्द्र सिंह
[दिल से चुनता हूं फिल्में]
फिल्म साइन करते समय यह नहीं सोचता हूं कि मुझे यूथ से कनेक्ट करना है या कोई मैसेज देना है। फिल्म की कहानी सुनते समय मैं सिर्फ एक आडियंस होता हूं। देखता हूं कि कहानी सुनते समय मुझे कितना मजा आया? मजा अलग-अलग रीजन से आ सकता है। या तो बहुत एंटरटेनिंग कहानी हो या इमोशनल कहानी हो या फिल्म कोई ऐसी चीज कह रही हो, जो सोचने पर मजबूर कर रही हो। मतलब यह है कि कहानी सुनते समय मेरा पूरा ध्यान उसी में घुसा रहे। केवल उसी के लिए हा करता हूं जिसकी कहानी मेरे दिल को छू लेती है।
['सरफरोश' के बाद का सफर]
पिछले दस सालों के अपने करिअर का रिव्यू करने पर मैं पाता हूं कि मेरी सारी फिल्में एक्सपेरिमेंटल किस्म की हैं। मेनस्ट्रीम से अलग हैं। अगर सोच-समझ कर फैसला लेता तो मैं ये फिल्में कर ही नहीं पाता। मैं अपने दिल को फालो कर रहा हूं। मैं थिंकिंग एक्टर नहीं हूं।
[मेरी प्रिय फिल्म 'तारे जमीं पर']
अपनी सबसे प्रिय फिल्म बताना बहुत मुश्किल काम है। एक फिल्म है, जिसका लोगों पर भयंकर असर हुआ है, इसलिए वह मुझे बहुत अजीज है। वह है 'तारे जमीं पर'। वह इसलिए अजीज नहीं है कि मैंने डायरेक्ट की। 'तारे जमीं पर'से मुझे ऐसी फिल्म का हिस्सा बनने का मौका मिला, जिससे लोगों का चाइल्ड एजुकेशन का नजरिया बदल गया। आफिसर से मिनिस्टर तक इस प्राब्लम को समझ पाए। इस फिल्म के पहले 'लर्निंग डिसएबिलिटी' या 'डिसलेक्सिया' की बात करने पर लोग ऐसे बच्चों के बारे में यही समझते थे कि वे बेवकूफ बना रहे हैं। बच्चा होमवर्क नहीं करता है तो बहाने बना रहा है। उस फिल्म ने सभी के सोचने-समझने का तरीका बदल दिया। देश में कितने बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त रहे होंगे। अपने स्कूल लाइफ की बात करूं तो मेरे अनेक दोस्त किसी तरह गिर-पड़कर पास होते थे। उन्हें स्कूल में टीचर और घर में पैरेंट्स की डाट पड़ती थी। उन्हें लगता था कि वे बेवकूफ हैं और उनसे कुछ नहीं होता। इस तरह वे फुस्स हो गए। 'तारे जमीं पर' के बाद ऐसे बच्चों को फुस्स नहीं होना पड़ता।
[स्कूल डेज]
मैं पढने में एवरेज था। होमवर्क में मेरा इंटरेस्ट नहीं रहता था। खेल-कूद में ज्यादा इंटरेस्ट था। लकली मेरे पैरेंट्स ऐसे नहीं थे कि मुझ पर प्रेशर डालते। वैसे मैं कभी फेल नहीं हुआ। हमेशा सिक्सटी पसर्ेंट मार्क्स तो मिलते ही थे। मैं खेल-कूद में अच्छा था, इसलिए मेरा सेल्फ स्टीम बचा रहा। अगर आप बच्चे को हमेशा कोसते रहें या उसकी कमियों के बारे में बताते रहें तो उसे लगने लगता है कि वाकई मुझे कुछ नहीं आता। 'तारे जमीन पर'में एक सीन था, जिसमें निकुंभ जाकर बताता है कि कैसे प्राचीन समय में आदिवासी किसी पेड़ के पास आकर लगातार कोसते थे तो वह सूख जाता था। अपने आप मर जाता था। उसे काटने की जरूरत नहीं पड़ती थी। ज्यादातर बच्चों के साथ यही होता है। वे बच्चे ब्लूम ही नहीं कर पाते। स्कूल डेज बहुत खास होते हैं। बच्चों की खास केयर होनी चाहिए।
['थ्री इडियट' का आइडिया]
इसके बारे में मैं दो लोगों के कमेंट बताऊंगा। चेतन भगत की किताब 'फाइव प्वाइंट समवन' मैंने अभी तक नहीं पढ़ी है। बंगलुरू में शूटिंग के समय चेतन भगत मिलने आए थे। मैंने उनसे कहा कि चेतन, मैंने आप की किताब पढ़ी नहीं है। मैं पढना भी नहीं चाहूंगा, क्योंकि मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी है और उससे डिस्ट्रैक्ट नहीं होना चाहता। चेतन ने कहा कि पढना भी मत, क्योंकि राजू ने इतना बदल दिया है कि अब जो फिल्म बन रही है, वह मेरी किताब ही नहीं है। राजू से जब मैंने बात की तो उन्होंने कहा फिल्म की प्रेरणा बुक से ही मिली है, लेकिन यह फिल्म चेतन की बुक पर आधारित नहीं है।
[कैरेक्टर का माइंड]
मेरे लिए अहम चीज स्क्रिप्ट होती है। उसके बाद मैं जो किरदार प्ले कर रहा होता हूं, उसे समझना बहुत जरूरी होता है। उसके माइंड को पकडऩा होता है। लुक और स्टाइल तो कैरेक्टर के फिजिकल आस्पेक्ट्स हैं। मेरा अपियरेंस एक लेयर भर है। उसके अंदर कई लेयर होते हैं, जिनसे वह किरदार उभरता है। 'गजनी' का संजय सिंहानिया, 'लगान' का भुवन, 'दिल चाहता है' का आकाश, 'तारे जमीन पर' का निकुंभ, 'मंगल पाडे' और अभी '3 इडियट' का रैंचो..इन सभी के माइंड्स को समझने के बाद ही मैं इन कैरेक्टर्स को प्ले कर पाया। मुझे कैरेक्टर का हेड समझ में आ जाए तो सुर मिल जाता है। फिर वाइब्रेशन मिलने लगता है। उसके बाद बाहरी चीजों पर ध्यान देता हूं। सिर्फ हेयर कट और कपड़ों से किरदार नहीं बनता।
['थ्री इडियट' का रैंचो]
मैंने राजू से कहा था कि मुझे कहानी बहुत पसंद आई है और मैं आप के साथ काम भी करना चाहता हूं, लेकिन जो किरदार आप मुझे दे रहे हैं, वह 20 साल का है। मैं अभी 43 का हूं और फिल्म रिलीज होने तक 44 का हो जाऊंगा। आप ऐसे एक्टर को चुनें जो 20 साल का लगे। राजू ने पलट कर कहा था, 'मेरे किरदार का नाम है रैंचो। जितना अजीब नाम है उसका, उतनी ही अजीब उसकी पर्सनैलिटी है। जैसे, आप नार्मल इंसान नहीं हो और टोटली अजीबोगरीब डिसीजन लेते हो। वैसा ही वह है।' रैंचो की फिलासफी है कि काबिलियत के पीछे भागो, उसके बाद कामयाबी आप के पीछे भागेगी। लाइफ में मेरी भी यही फिलासफी रही है। राजू का यही कहना था कि आप रैंचो प्ले करोगे तो रियल लगेगा। कोई और करेगा तो झूठ लगेगा। यही वजह है कि मैंने रैंचो को चैलेंज के तौर पर लिया। 20 साल का बन कर दिखाया।
[करीना से केमिस्ट्री]
केमिस्ट्री के बारे में बताने के पहले बॉयोलोजी बताता हूं। करीना के साथ '3 इडियट' करने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि उनके जैसी खूबसूरत अभिनेत्री के साथ समय बिताने का मौका मिला। दिन बड़ा अच्छा कटता था। खूबसूरत सा चेहरा देखने को मिलता है तो बड़ा अच्छा लगता है। आखें सेंकने का मौका मिलता है। उनके साथ काम करना अच्छा रहा। वे ग्रेट एक्टर हैं। वह बहुत अच्छी इंसान भी हैं। वह डाउन टू अर्थ हैं। वेरी कैजुअल और ग्रेट फ्रेंड हैं। हमारे बीच कोई इश्यू नहीं रहा। कह सकता हूं कि करीना के साथ केमिस्ट्री बहुत अच्छी रही।
[किरण ले आईं तब्दीली]
हा, इधर कुछ सालों से मैं बदल रहा हूं। पिछले चार-पाच सालों में मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी तब्दीली के रूप में किरण आई हैं और उनकी वजह से मुझ में तब्दीली आ गई है। किरण की ब्राइट पर्सनैलिटी है। पॉजीटिव हैं वह..कैसे एक्सप्लेन करूं? पहाड़ी नदी होती है ना वाइब्रेंट और प्लेफुल, वैसी हैं किरण। उन्हें जानने और उनके साथ रहने के बाद मेरी पर्सनैलिटी में फर्क आया है। मैं थोड़ा रिलैक्स हुआ हूं। पहले मैं थोड़ा शात और खामोश रहता था। किरण से रिलेशनशिप बढऩे के बाद खुल गया हूं। मुझ में बदलाव आ गया है। अब मैं अपने ब्लाग के जरिए यूथ से कनेक्ट हो पाता हूं। अपनी फीलिंग्स शेयर कर पाता हूं। मैं उनकी जबान में ही बातें करता हूं। मुझे लगता है कि अगर मैं पाच साल पहले ब्लाग लिखता तो बहुत सीरियस होता और बोरिंग होता।
[फुर्सत में पढ़ाई]
फुर्सत मिलती है तो बच्चे, बीवी और फैमिली के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है। मुझे किताबें पढने का बेहद शौक है। रात में पढने के बाद ही सोता हूं। वर्किंग डे में फुर्सत नहीं मिलती तो गाड़ी में पढ़ता हूं। मुंबई में कहीं आने-जाने में आधे घटे का समय मिल ही जाता है। मैं बहुत तेजी से पढ़ता हूं। 500-600 पेज की किताब दो दिनों में खत्म कर देता हूं।
[रूबिक क्यूब और थ्री डाइमेंशनल सोच]
लोग यह तो जानते हैं कि रूबिक क्यूब में मेरा इंटरेस्ट है, लेकिन शायद यह नहीं जानते कि मेरा फास्टेस्ट टाइम 28 सेकेंड्स है। कालेज के फर्स्ट ईयर के समय से यह कर रहा हूं। रूबिक क्यूब मेरा एक्सटेंशन है। '3 इडियट' का रैंचो भी इसे खेलता रहता है। रूबिक क्यूब वास्तव में मैथ है। यदि आप की सोच थ्री डायमेंशनल है तो आप इसे सुलझा सकते हैं। एक समय मैं इसकी वर्ल्ड चैंपियनशिप में हंगरी जाना चाहता था, पर नहीं जा पाया।
-सौम्या अपराजिता/रघुवेन्द्र सिंह
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