कंगना रनौट अपने होम टाउन की यादें, बचपन की फैंटेसी और फिल्म स्टार के जीवन के खोखलेपन के बारे में रघुवेन्द्र सिंह को बता रही हैं
कंगना रनौट दुनिया की परवाह नहीं करती हैं. वह अपने विचारों को बेलाग-लपेट ईमानदारी से रखती हैं, इसीलिए उनकी बातें सुनने में मजा आता है. वह एक कृत्रिम दुनिया का हिस्सा जरूर है, लेकिन वह उसमें केवल एक्शन और कट के बीच जीती हैं. वह हर चीज को हकीकत के तराजू पर तौल कर देखती हैं और हमेशा अपने व्यक्तित्व के विकास के बारे में सोचती रहती हैं. अंग्रेजी भाषा उनकी कमजोरी थी, लेकिन आज वह शुद्ध अंग्रेजी में बात करके लोगों को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देती हैं. हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे मंडी से निकलकर उन्होंने शानदार अभिनेत्री के साथ-साथ, फैशन आइकॉन का दर्जा भी हासिल कर लिया था. उनकी यह बातें प्रेरित करने वाली हैं. और जबसे आमिर खान ने कॉफी विद करण शो में उन्हें सबसे सेक्सी एक्ट्रेस कहा है, तबसे यह टैग भी उनके साथ जुड़ गया है. कंगना हंसते हुए कहती हैं, ''आमिर ने गलत क्या कहा है! मैं हूं सबसे सेक्सी."
पढि़ए कंगना से यह दिलचस्प बातचीत, जिसमें उन्होंने खुलासा किया है कि उन्हें हमउम्र कलाकारों के साथ वीडियो गेम्स खेलना अच्छा नहीं लगता, बल्कि आमिर खान और सलमान खान के साथ मेच्योर बातें करना भाता है...
अभिनय के बाद आपने लेखन किया और अब फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी जा रही हैं. क्या यह सब सुनियोजित ढंग से हो रहा है?
नहीं, इतनी क्लैरिटी किसी को भी नहीं हो सकती कि इतने साल के बाद मैं ये-ये करना चाहती हूं. वक्त के साथ-साथ मैं भी चीजें सीख रही हूं. मेरे अंदर यह चीज बचपन से है कि मैं किसी जगह पर आकर कंफर्टेबल नहीं हो जाती हूं कि चलो, अब सब ठीक है, सब अच्छे से हो ही रहा है. मैं हमेशा सोचती रहती हूं कि क्या नया सीखूं. मैं अपने कंफर्ट जोन से हमेशा बाहर जाना चाहती हूं. अभी मैं न्यूयॉर्क में अकेले रहूंगी, अपना खाना बनाऊंगी, कपड़े धोऊंगी, कॉलेज जाऊंगी. मुझे इन चीजों से डर नहीं लगता है. मुझमें यह एक स्प्रिट है, जो मुझे हमेशा कुछ नया अनुभव कराती है. कई बार यह अनुभव खराब होता है और कई बार अच्छा होता है. जबकि मैं कई लोगों को जानती हूं, जो अपने कंफर्ट जोन से निकल ही नहीं पाते हैं.
आपको फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
मेरे पास ऐसा कोई ठोस प्लान नहीं है कि डिग्री लेने के बाद मैं कुछ करूंगी. मेरी लाइफ यहां पर थोड़ी-सी मोनोटनस हो गई थी- फिल्में, प्रमोशन, फिर फिल्में, प्रमोशन. इसके अलावा लाइफ में कुछ है ही नहीं. कई सालों से आप यही काम कर रहे हैं. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एक जगह पर कहीं ठहर-सी गई हूं. मेरी जिंदगी आगे नहीं बढ़ रही है. इसलिए मैंने सोचा कि एक नए देश में जाएंगे, एक अलग कल्चर को जानेंगे... यह कोर्स तो एक बहाना है. मेरे लिए यह एक अलग अनुभव होगा.
कहा जाता है कि एक्टर अपनी एक जिंदगी में कई जिंदगियां जीता है और आप कह रही हैं कि आपकी लाइफ मोनोटनस हो गई थी?
एक एक्टर अपनी जिंदगी में कई जिंदगियां जी लेता है, लेकिन असल में तो आप एक ही जिंदगी जी रहे हैं. आप लोगों को एंटरटेन कर रहे हैं. सलीम अंकल (खान) ने एक बार मुझसे कहा था कि आर्ट इज नरर्चड इन लोनलिनेस एंड एक्जीबिटेड इन क्राउड. वह बात सच है. आप दर्शकों को हमेशा देते रहते हैं, लेकिन आपको कुछ मिलता नहीं है. आप किसी को नहीं देख सकते, लेकिन सब आपको देख सकते हैं. आप किसी से बात नहीं कर सकते, मगर सब आपको सुन सकते हैं. आप कुछ ऑब्जर्व नहीं कर सकते, कुछ नया नहीं सीख सकते. आप एक ऑब्जेक्ट बनकर रह जाते हैं, सब्जेक्ट नहीं बन पाते हैं. इस चीज को तोडऩे के लिए मेरा यह एक प्रयास है. पता नहीं कि मेरा वहां पर क्या एक्सपिरिएंस होगा. अगर मैं घूम-फिर कर लौट आऊंगी, तो वह मेरे लिए एक वैकेशन हो जाएगी. लेकिन उस शहर में एक नागरिक के तौर पर रहना, लोगों के साथ घूमना-फिरना एक नया अनुभव होगा और एक आम नागरिक होने के नाते वह मेरा एक अधिकार है, जो मैं कभी नहीं खोना चाहती.
कंगना कौन हैं? अगर हम आपको कृष 3 या फैशन के स्टाइलिश और फैशनेबल लड़कियों के रोल या तनु वेड्स मनु और क्वीन के देसी किरदारों से रिलेट करके समझने की कोशिश करें.
मैं ऐसा तो नहीं कह सकती कि किसी भी लडक़ी में मैं सौ प्रतिशत हूं या किसी में सौ प्रतिशत मिसिंग हूं. वह सब कहीं न कहीं मेरी औरतों को लेकर जो समझ है, जो मैं हूं, वही दर्शा सकती हूं. रानी कहीं न कही मेरा ही हिस्सा है. तनु की बेबाकी भी मेरा पार्ट है. काया की सुपरनैचुरल क्वालिटीज भी मेरा ही एक पार्ट है. ये सब मेरी ही पर्सनैलिटी के पहलू हैं. लेकिन मैं एक अलग इंसान हूं. मैं इन किरदारों से मेल नहीं खाती हूं.
एक ओर आप तनु वेड्स मनु और क्वीन जैसी खुद पर केंद्रित फिल्में करती हैं, तो दूसरी ओर शूटआउट एट वडाला, डबल धमाल, रासकल्स जैसी फिल्म को क्यों चुनती हैं, जिनमें आपके लिए कुछ खास नहीं होता है?
जब आप खुद को तलाश कर रहे होते हैं, अपनी प्राथमिकताएं ढूंढ़ रहे होते हैं, तो उस दौरान आप कई एक्सपेरिमेंट करते हैं, आप कई जगहों पर जाते हैं, सोचते हैं कि शायद यह मेरी मंजिल हो. मुझे नहीं लगता कि उसमें कोई बुराई है. ये फिल्में मैंने उस वक्त पर कीं, जिस समय मेरे पास काम नहीं था. मुझे जो बेस्ट मौका मिला, उसे बेस्ट तरीके से करने की कोशिश की. इसी वजह से मुझे अपने ऊपर गर्व भी है कि चाहे वक्त जैसा भी रहा हो, मैंने अपना बेस्ट दिया है. यही मेरा कत्र्तव्य है.
क्या यह लार्जर देन लाइफ फिल्मों का हिस्सा बनने के चक्कर में हो जाता है?
ऐसा नहीं है. वह एक ऐसा दौर था, जब मेरे पास काम नहीं था. फैशन करने के बाद मुझे उसी तरह के रोल मिल रहे थे. डर्टी पिक्चर मेरे पास आई थी. लेकिन मैं उनको करना नहीं चाहती थी. जो काम मैं करना चाहती थी, वो मुझे मिलता नहीं था. जैसे तनु वेड्स मनु हो गई, क्वीन हो गई. ऐसी रॉम-कॉम फिल्मों के लिए मैं फिल्ममेकर्स की चॉइस नहीं थी. तो उस समय मैं कंफ्यूज थी और मैं इस ओर चली गई थी. अब वक्त भी बदल गया है. लोग लड़कियों को लेकर मेनस्ट्रीम फिल्में बना रहे हैं. उस समय लोग डरते थे. प्रॉब्लम तो मुझे थी शुरू में.
क्या रज्जो और मिलें ना मिलें हम जैसी पिक्चरें करने के पीछे एकमात्र ध्येय धन होता है?
अगर मैंने ये फिल्में पैसे के लिए की भीं, तो यह काफी इनसेंसिटिव तरीका हो गया, हम कलाकारों का एक तरह से यह निरादर ही हो गया, जो उन फिल्मों से जुड़े हुए हैं. मेरी समझ थी कि कलाकार बनने का हक केवल उन चुनिंदा लोगों को नहीं है, जिनको अब सक्सेज मिल गई है. कोई भी कलाकार कब सकता है. एक वक्त ऐसा था, जब मेरे पास बिल्कुल काम नहीं था. इसका मतलब ये नहीं है कि आगे आकर मैं इवॉल्व नहीं हुई. तो इस तरह का हार्श कमेंट करके किसी की भावना को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए. मैं ऐसी इंसान हूं भी नहीं. लेकिन ये मेरा पर्सनल डिसीजन है और मैं अपने डिसीजन से काफी खुश हूं. मैं ये नहीं कह रही हूं कि मैंने ये फिल्में पैसे के लिए ही की हैं और इसके सिवा और कोई रीजन था ही नहीं. ये पूरी तरह से सच नहीं होगा.
लेकिन जब ये फिल्में रिलीज होती हैं और लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, तब लगता है कि फैसला गलत हो गया?
मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि मैं अपने आप से पूछती हूं कि क्या मैंने अपना काम अच्छे से किया? मुझे लगता है कि मेरा काम अच्छा था, उससे बेहतर मैं नहीं कर सकती थी या अगर मैंने पैसे लेकर काम नहीं किया हो, तो मैं खुद को अच्छी नजरों से नहीं देखूंगी, लेकिन जब तक मेरा काम अच्छा है, मैंने सौ प्रतिशत दिया है, तो बाकी बातें मायने नहीं रखती हैं. मेरा आत्म विश्वास और आत्म सम्मान लोगों के अप्रूवल पर निर्भर नहीं करता है. लोग अप्रूव नहीं करते हैं, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता है. मुझे पता होता है कि मेरा काम अच्छा है, तो मुझे उस चीज को लेकर कभी पश्चाताप नहीं होगा.
आपमें यह 'भाड़ में जाए दुनिया' वाला एट्टियूड कब से है?
मेरा यह एट्टियूड बचपन से है. मेरे पैरेंट्स हैरान हो जाते थे कि ये कैसे अपनी मनमर्जी करती है. छोटी उम्र में, बड़े डिसीजन ले लेना, ओवर कॉन्फिेंडेंट इंसान बनकर रहना... मुझमें बचपन से है.
जब आप एक दर्शक के तौर पर फिल्में देखती थीं, तो फिल्म स्टार्स के बारे में आपकी क्या सोच थी?
बचपन में हमें फिल्में देखने की अनुमति नहीं मिलती थी और जब कभी हम फिल्मों की एक झलक देख लेते थे, तो हमारे लिए वह एक अलग दुनिया होती थी. मैं एक मीडिलक्लास फैमिली से हूं. मुझे याद है कि मैं पांच-छह साल की थी. तब श्रीदेवी का दूरदर्शन पर सीमा ट्यूब का एक एड आता था, तो मैं मम्मी से कहती थी कि मम्मी जब ये अगली बार आएगी, तो हम टीवी तोड़ देंगे और श्रीदेवी को बाहर निकाल लेंगे (ठहाका मारकर हंसती हैं). मेरी मम्मी यह बात आज भी सबको बताती हैं. हमारे परिवार में यह एक जोक बन गया था कि ऐसा बोलती है. फिर जब बड़े हुए, तो ऑबवियसली हम टीवी तो नहीं तोडऩा चाहते थे, लेकिन ऐसा लगता था कि चमकीले लोग हैं, सब अच्छे दिखते हैं, अच्छे कपड़े पहनते हैं. ये लोग कौन हैं, कहां से आते हैं और क्या करते हैं, इसकी तो किसी को पड़ी नहीं रहती थी, क्योंकि एक आम इंसान अपनी जिंदगी में बहुत बिजी रहता है. हम लोगों पर पढ़ाई का बहुत प्रेशर रहता था, क्योंकि मेरी मम्मी टीचर हैं, डैड कन्सट्रक्शन बिजनेस से आते हैं, मेरे दादा जी आईएएस अफसर थे, परदादा पंद्रह साल तक हिमांचल प्रदेश के मिनिस्टर रह चुके हैं. जब देखो तो पढ़ाई नहीं कर रही है. हमें टाइम ही नहीं मिलता था कि फिल्मों के बारे में सोचें. तब इंटरनेट और मोबाइल फोन नहीं थे, ना फेसबुक और ट्विटर था. मैं तो हूं नहीं ट्विटर पर, लेकिन देखती हूं कि लोग सलमान खान से ट्विटर पर बात करते हैं. मेरे छोटे-छोटे कजिन्स स्टार्स को फॉलो करते हैं. उनको सारा दिन यही लगा रहता है कि उसको कमेंट कर दिया. हमारे लिए फिल्मी दुनिया एक अलग दुनिया होती थी. अब फिल्मी दुनिया पूरे देश के लिए आम हो गई. हर कोई ट्विटर और फेसबुक पर है.
इसे आप अच्छी बात मानती हैं कि अब स्टार्स को लेकर कोई मिस्ट्री नहीं रह गई है?
अच्छा है, इसके अपने-अपने नुकसान भी हैं. लेकिन मुझे अंजान लोगों से बातें करना अच्छा नहीं लगता है. मैं मूवी स्टार नहीं थी, तब भी मुझे अंजान लोगों से बात करना अच्छा नहीं लगता था. मुझे नहीं लगता है कि जिन लोगों को मैंने देखा नहीं है, आवाज नहीं सुनी है, उनसे बातें कर सकती हूं. इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे लिए दोस्त बनाना मुश्किल है. जो लोग मिलते हैं, मुझसे बात करते हैं, उनसे मेरी दोस्ती हो जाती है. अब जिससे मिल नहीं सकते, उससे कैसी दोस्ती! यही वजह है कि मैं ट्विटर और फेसबुक पर नहीं जा रही हूं.
उस वक्त कौन-सा स्टार आपकी फैंटेसी का हिस्सा हुआ करता था?
हर किसी का अपना एक फेवरेट स्टार होता है, लेकिन मैं किसी की फैन नहीं रही हूं. मेरे एक भैया (शम्मी ठाकुर) हैं, बड़े मामा के बेटे हैं, अब वह होटल मैनेजमेंट में हैं. वो फिल्मों के बहुत बड़े दीवाने थे. वो गर्मियों की छुट्टी में घर आए थे. उस टाइम मोहरा आई थी. अक्षय कुमार का हल्ला था. उनसे हमें इस बारे में सुनने को मिलता था, क्योंकि उनको फिल्मी दुनिया के बारे में ज्यादा पता होता था. वो स्टार्स की फोटो काटकर दीवार पर लगाते थे. घर में उनको सबसे ज्यादा डांट पड़ती थी कि खुद गलत काम करता है और दूसरे बच्चों को भी गंदा करता है और सारा दिन गाना गाता रहता है- तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त (हंसती हैं). उनके अलावा किसी को फिल्मों में इतना इंट्रेस्ट नहीं था.
अब आप खुद एक बड़ी स्टार हैं, तो परिवार के लोग क्या कहते हैं?
वो लोग आज भी बदले नहीं हैं. वो लोग फिल्म को एक आर्ट फॉर्म के रूप में एंजॉय नहीं कर सकते. वो यह नहीं सोचते कि कैसे फिल्में बनती हैं, एक्टिंग क्या कला है, क्या टैलेंट है? उनके लिए है कि हां, फिल्म देख ली.
अगर क्वीन जैसी परिस्थिति आपके निजी जीवन में आ जाए, तो क्या आप अकेले हनीमून पर जाएंगी?
हां, क्यों नहीं जाऊंगी. जरूर जाना चाहिए? अगर जिंदगी में दुख का कोई पल आ जाता है, तो कम से कम रोते-बिलखते गुजारना चाहिए. और दुनिया में जाना चाहिए. बहुत कुछ है एक्सप्लोर करने के लिए. हमने क्वीन में यही बताने की कोशिश की है.
रानी की तरह क्या आपने असल जीवन में कभी बॉयफ्रैंड से रिजेक्शन पाया है? अगर हां, तो आपने उसके साथ कैसे डील किया?
हां, बिल्कुल मुझको रिजेक्शन मिला है. लेकिन उसके बाद मैं यह नहीं सोचती कि क्या मैं अच्छी नहीं हूं? पता नहीं लोग क्यों ऐसा सोचने लगते हैं. अगर आपका इक्वेशन एक इंसान के साथ वर्क नहीं किया तो इसका मतलब यह थोड़े ही ना है कि आपमें कोई कमी है या आप किसी के लायक नहीं है. मेरी वो कभी चिंता नहीं रही, लेकिन ज्यादातर लोगों की यह क्राइसिस हो जाती है. बल्कि मैं बहुत अच्छे से रिजेक्शन या जिसे डंपिंग बोलते हैं, से डील करती हूं. एक इंसान होने के नाते मैं दूसरे की चॉइस की रिस्पेक्ट करती हूं. मुझे लगता है कि एक इंसान का पूरा हक है कि वह चाहे तो किसी के साथ रिलेशनशिप में रहना चाहता है या नहीं. आप उनको रिस्पेक्ट देते हैं, तो रिटर्न में आपको भी रिस्पेक्ट मिलती है. इन सब चीजों में गरिमा बनाए रखना मायने रखता है. मैंने आज तक न तो किसी को रिक्वेस्ट किया है, न ही किसी के सामने गिडगिड़ाई हूं. ज्यादातर लोग शॉक में चले जाते हैं और भीख मांगने लग जाते हैं कि मुझे मत छोड़ो. इन चीजों की समझ होने के नाते मैं इन सबसे हमेशा दूर रहती हूं. मैं सामने वाले के डिसीजन का रिस्पेक्ट करके अपने आपको इमोशनली और अफेक्शनली स्ट्रॉन्ग करके फिर उसका विश्लेषण करती हूं कि क्या उस पर वर्क करना चाहिए या दर्द खत्म कर देना चाहिए. आएम वेरी गुड विद ब्रेकअप्स (हंसती हैं). मैंने भी बहुत लोगों को रिजेक्ट किया है. ये सब तो चलता ही रहता है. फिलहाल, मैं सिंगल हूं.
क्वीन के लिए किसी प्रकार की तैयारी की जरूरत पड़ी?
हां, मुझे बहुत तैयारी की जरूरत पड़ी थी, क्योंकि क्वीन मुझसे बहुत अलग है. उसमें कॉन्फिडेंस नहीं है, आत्म सम्मान नहीं है, वह खुद के लिए खड़ी नहीं हो सकती, वह किसी की आंखों में देखकर बात नहीं कर सकती. वह डर-डर के सवाल पूछती है कि कहीं उससे गलती न हो जाए. उसकी बॉडी लैंगवेज पकडऩे के लिए मुझे मेहनत करनी पड़ी.
क्वीन में अन्विता दत्त के साथ डायलॉग राइटर के तौर पर आपका नाम है. बतौर लेखक इस फिल्म से जुडऩे का संयोग कैसे बना?
यह कॉन्शियस डिसीजन नहीं था. शुरू में मैं अपने डायलॉग बनाती रहती थी, तो विकास बहल ने कहा कि आप रानी के किरदार में खुद को जैसे एक्सप्रेस करना चाहती हैं, कीजिए. उन्होंने मुझे पूरी फ्रीडम दी. बाद में, उन्होंने कहा कि आपने अपने अधिकतर डायलॉग खुद ही लिखे हैं, तो मुझे आपको डायलॉग राइटर का क्रेडिट देना चाहिए. किसी कलाकार के काम का सम्मान करना और उसे क्रेडिट देना, अपने आप में बहुत बड़ी बात है. मुझे उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी.
छोटे शहर की लडक़ी होने का आज आपको क्या फायदा महसूस होता है?
मैं जिंदगी को नजदीक से देख चुकी है और जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को जीना जानती हूं. जब आप पहाड़ों से आते हैं, एक सादगी भरे बैकग्राउंड से आते हैं, तो आपको पता होता है कि एक्चुअली जीने के लिए कुछ नहीं चाहिए. वहां हम सर्दियों में धूप में चटाइयां बिछाकर पड़े रहते थे. हमें ऐसा लगता था कि मानो जन्नत में हों. जिंदगी की जो ये छोटी-छोटी खुशियां हैं, उनको हमने करीब से देखा है. वह हमारे लिए रियलिटी चेक की तरह है. लेकिन छोटे शहर से होना जरूरी नहीं है. इसका क्रेडिट मैं अपनी फैमिली को देना चाहूंगी कि उन्होंने जिस तरीके से हमारी परवरिश की है, जिस तरह से बचपन से हमारी फीलिंगस को लेकर सेंसिटिव रहे हैं, तो एक आर्टिस्ट के तौर पर मैं भी बहुत सेंसिटिव हूं, जिसकी वजह से मैं कैरेक्टर्स को समझ पाती हूं. रानी को मैं अपनी मां में, अपनी बहन में देखती हूं.
अब कभी अपने होम टाउन मंडी (हिमाचल प्रदेश) लौटती हैं, तो क्या आउट ऑफ प्लेस फील करती हैं?
हां, क्योंकि जब हफ्तों तक कुछ करने को नहीं होता है, तब बोरियत ज्यादा हो जाती है. फिर किस तरह से अपनी क्रिएटिव एनर्जी को यूज किया जाए, किस तरह से और ज्यादा अपने आपको सक्षम बनाया जाए, उसकी फिक्र रहती है. अब कर्मा में बहुत ज्यादा चले गए हैं, तो जब घर में बैठ जाते हैं, तो बेकार सा महसूस होता है.
विकास बहल आपके दूसरे निर्देशकों से कैसे अलग हैं?
जो कंटेपररी फिल्ममेकर्स हैं, उनका वह एक बहुत अच्छा उदाहरण हैं. वह ओपन रहते हैं. वह बहुत सहयोग करते हैं, वह आपके सुझावों को सुनते हैं, वह डीओपी को भी सुनते हैं, वह डिस्कस करते हैं और फिर उनको लगता है कि सही है, तो वह करते हैं. उनमें ईगो नहीं है. फिल्म की बेहतरी के लिए वह हमेशा तैयार रहते हैं.
वह फिल्म, पल या अभिनेता-अभिनेत्री कौन थी, जिसने आपको एक्टर बनने के लिए प्रेरित किया?
मुझे गुरूदत्त ने काफी इन्सपायर किया है. आमिर खान हैं. ये लोग बेहतरीन काम करते हैं. इन्होंने देश का बहुत नाम किया है.
आप यंग स्टार्स का जो ग्रुप है- वरुण, अर्जुन, रणवीर, रणबीर आदि, उनके साथ पार्टी करती नहीं नजर आतीं. आपकी उनके साथ दोस्ती नहीं है या आप उनसे दोस्ती नहीं करना चाहतीं?
आप मानेंगे नहीं कि मैं अपनी उम्र के लोगों से तो बात ही नहीं कर सकती. मैं इतना ज्यादा शायद मेच्योर हो गई हूं. मेरी मम्मी मुझे कई बार डांट देती हैं कि कैसे बात करती है, जैसे पचास साल की कोई औरत बात कर रही हो. तुम छब्बीस साल की हो, तो बच्ची बन कर रहो. ऐसे बात करती है, जैसे जिंदगी देख ली है, सब खत्म हो गया है, अब रिटायरमेंट तक पहुंच गई है. मुझे लगता है कि मम्मी सही बोल रही हैं. मैं अपनी उम्र से बहुत ज्यादा मेच्योर हो गई हूं, तो प्ले स्टेशन तो खेल ही नहीं सकती. ये मेरे लिए बहुत ही इमबैरेसिंग बात है. वरुण मेरी उम्र का है, 26 साल का. मैं वरुण से मिलती हूं, लेकिन क्या करें अभी? क्या बात करें, कुछ समझ में नहीं आता है.
तो कौन लोग हैं, जिनके साथ आप बातें कर पाती हैं?
आमिर खान, सलमान खान... ये लोग मुझे लगता है कि मेरे मेंटल लेवल के हैं. जबकि सलमान मुझसे बाइस साल बड़े हैं. तो क्या करें, कई लोग ऐसे हो जाते हैं. मेच्योरिटी बहुत ज्यादा हो जाती है. इसका कुछ नहीं कर सकते.
आमिर खान ने कॉफी विद करण में कहा कि कंगना रनौट सबसे सेक्सी हैं?
हां, तो उसमें क्या गलत कहा उन्होंने? वह हमेशा से मुझे प्रोत्साहित करते रहे हैं. चाहे वह वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई के लिए हो या तनु वेड्स मनु के लिए, उन्होंने और किरण राव ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया है. यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है.
रैपिड फायर
मान लीजिए आप किसी लडक़े को डेट कर रही हैं और आपको पता चलता है कि वह बाइसेक्सुअल है, तो क्या आप उसे डंप कर देंगी?
अगर वह मुझे चीट कर रहा है, चाहे वह लडक़ी के साथ करे या लडक़े के साथ करे, बात तो एक ही है. मैं उसे डंप कर दूंगी.
अगर किसी इंडियन क्रिकेटर को डेट करना हो, तो आप किसे डेट करना चाहेंगी?
मुझे किसी क्रिकेटर को डेट ही नहीं करना है.
आपको तो शादी ही नहीं करनी है ना?
हां, मुझे शादी नहीं करनी है, लेकिन मुझे डेट करना है.
क्या कंगना रनौट अपनी फिल्मों की हीरो हो सकती हैं?
मुझे लडक़ा नहीं बनना. मैं हीरोइन ही अच्छी हूं. लेकिन मैं अच्छी, मीनिंगफुल फिल्म करना चाहूंगी.
अगर आप फिल्म बनाती हैं, तो किसे साइन करना चाहेंगी?
अगर आमिर खान लायक स्क्रिप्ट हुई, तो उन्हें जरूर साइन करना चाहूंगी.
अभिनय के बाद आपने लेखन किया और अब फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी जा रही हैं. क्या यह सब सुनियोजित ढंग से हो रहा है?
नहीं, इतनी क्लैरिटी किसी को भी नहीं हो सकती कि इतने साल के बाद मैं ये-ये करना चाहती हूं. वक्त के साथ-साथ मैं भी चीजें सीख रही हूं. मेरे अंदर यह चीज बचपन से है कि मैं किसी जगह पर आकर कंफर्टेबल नहीं हो जाती हूं कि चलो, अब सब ठीक है, सब अच्छे से हो ही रहा है. मैं हमेशा सोचती रहती हूं कि क्या नया सीखूं. मैं अपने कंफर्ट जोन से हमेशा बाहर जाना चाहती हूं. अभी मैं न्यूयॉर्क में अकेले रहूंगी, अपना खाना बनाऊंगी, कपड़े धोऊंगी, कॉलेज जाऊंगी. मुझे इन चीजों से डर नहीं लगता है. मुझमें यह एक स्प्रिट है, जो मुझे हमेशा कुछ नया अनुभव कराती है. कई बार यह अनुभव खराब होता है और कई बार अच्छा होता है. जबकि मैं कई लोगों को जानती हूं, जो अपने कंफर्ट जोन से निकल ही नहीं पाते हैं.
आपको फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
मेरे पास ऐसा कोई ठोस प्लान नहीं है कि डिग्री लेने के बाद मैं कुछ करूंगी. मेरी लाइफ यहां पर थोड़ी-सी मोनोटनस हो गई थी- फिल्में, प्रमोशन, फिर फिल्में, प्रमोशन. इसके अलावा लाइफ में कुछ है ही नहीं. कई सालों से आप यही काम कर रहे हैं. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एक जगह पर कहीं ठहर-सी गई हूं. मेरी जिंदगी आगे नहीं बढ़ रही है. इसलिए मैंने सोचा कि एक नए देश में जाएंगे, एक अलग कल्चर को जानेंगे... यह कोर्स तो एक बहाना है. मेरे लिए यह एक अलग अनुभव होगा.
कहा जाता है कि एक्टर अपनी एक जिंदगी में कई जिंदगियां जीता है और आप कह रही हैं कि आपकी लाइफ मोनोटनस हो गई थी?
एक एक्टर अपनी जिंदगी में कई जिंदगियां जी लेता है, लेकिन असल में तो आप एक ही जिंदगी जी रहे हैं. आप लोगों को एंटरटेन कर रहे हैं. सलीम अंकल (खान) ने एक बार मुझसे कहा था कि आर्ट इज नरर्चड इन लोनलिनेस एंड एक्जीबिटेड इन क्राउड. वह बात सच है. आप दर्शकों को हमेशा देते रहते हैं, लेकिन आपको कुछ मिलता नहीं है. आप किसी को नहीं देख सकते, लेकिन सब आपको देख सकते हैं. आप किसी से बात नहीं कर सकते, मगर सब आपको सुन सकते हैं. आप कुछ ऑब्जर्व नहीं कर सकते, कुछ नया नहीं सीख सकते. आप एक ऑब्जेक्ट बनकर रह जाते हैं, सब्जेक्ट नहीं बन पाते हैं. इस चीज को तोडऩे के लिए मेरा यह एक प्रयास है. पता नहीं कि मेरा वहां पर क्या एक्सपिरिएंस होगा. अगर मैं घूम-फिर कर लौट आऊंगी, तो वह मेरे लिए एक वैकेशन हो जाएगी. लेकिन उस शहर में एक नागरिक के तौर पर रहना, लोगों के साथ घूमना-फिरना एक नया अनुभव होगा और एक आम नागरिक होने के नाते वह मेरा एक अधिकार है, जो मैं कभी नहीं खोना चाहती.
कंगना कौन हैं? अगर हम आपको कृष 3 या फैशन के स्टाइलिश और फैशनेबल लड़कियों के रोल या तनु वेड्स मनु और क्वीन के देसी किरदारों से रिलेट करके समझने की कोशिश करें.
मैं ऐसा तो नहीं कह सकती कि किसी भी लडक़ी में मैं सौ प्रतिशत हूं या किसी में सौ प्रतिशत मिसिंग हूं. वह सब कहीं न कहीं मेरी औरतों को लेकर जो समझ है, जो मैं हूं, वही दर्शा सकती हूं. रानी कहीं न कही मेरा ही हिस्सा है. तनु की बेबाकी भी मेरा पार्ट है. काया की सुपरनैचुरल क्वालिटीज भी मेरा ही एक पार्ट है. ये सब मेरी ही पर्सनैलिटी के पहलू हैं. लेकिन मैं एक अलग इंसान हूं. मैं इन किरदारों से मेल नहीं खाती हूं.
एक ओर आप तनु वेड्स मनु और क्वीन जैसी खुद पर केंद्रित फिल्में करती हैं, तो दूसरी ओर शूटआउट एट वडाला, डबल धमाल, रासकल्स जैसी फिल्म को क्यों चुनती हैं, जिनमें आपके लिए कुछ खास नहीं होता है?
जब आप खुद को तलाश कर रहे होते हैं, अपनी प्राथमिकताएं ढूंढ़ रहे होते हैं, तो उस दौरान आप कई एक्सपेरिमेंट करते हैं, आप कई जगहों पर जाते हैं, सोचते हैं कि शायद यह मेरी मंजिल हो. मुझे नहीं लगता कि उसमें कोई बुराई है. ये फिल्में मैंने उस वक्त पर कीं, जिस समय मेरे पास काम नहीं था. मुझे जो बेस्ट मौका मिला, उसे बेस्ट तरीके से करने की कोशिश की. इसी वजह से मुझे अपने ऊपर गर्व भी है कि चाहे वक्त जैसा भी रहा हो, मैंने अपना बेस्ट दिया है. यही मेरा कत्र्तव्य है.
क्या यह लार्जर देन लाइफ फिल्मों का हिस्सा बनने के चक्कर में हो जाता है?
ऐसा नहीं है. वह एक ऐसा दौर था, जब मेरे पास काम नहीं था. फैशन करने के बाद मुझे उसी तरह के रोल मिल रहे थे. डर्टी पिक्चर मेरे पास आई थी. लेकिन मैं उनको करना नहीं चाहती थी. जो काम मैं करना चाहती थी, वो मुझे मिलता नहीं था. जैसे तनु वेड्स मनु हो गई, क्वीन हो गई. ऐसी रॉम-कॉम फिल्मों के लिए मैं फिल्ममेकर्स की चॉइस नहीं थी. तो उस समय मैं कंफ्यूज थी और मैं इस ओर चली गई थी. अब वक्त भी बदल गया है. लोग लड़कियों को लेकर मेनस्ट्रीम फिल्में बना रहे हैं. उस समय लोग डरते थे. प्रॉब्लम तो मुझे थी शुरू में.
क्या रज्जो और मिलें ना मिलें हम जैसी पिक्चरें करने के पीछे एकमात्र ध्येय धन होता है?
अगर मैंने ये फिल्में पैसे के लिए की भीं, तो यह काफी इनसेंसिटिव तरीका हो गया, हम कलाकारों का एक तरह से यह निरादर ही हो गया, जो उन फिल्मों से जुड़े हुए हैं. मेरी समझ थी कि कलाकार बनने का हक केवल उन चुनिंदा लोगों को नहीं है, जिनको अब सक्सेज मिल गई है. कोई भी कलाकार कब सकता है. एक वक्त ऐसा था, जब मेरे पास बिल्कुल काम नहीं था. इसका मतलब ये नहीं है कि आगे आकर मैं इवॉल्व नहीं हुई. तो इस तरह का हार्श कमेंट करके किसी की भावना को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए. मैं ऐसी इंसान हूं भी नहीं. लेकिन ये मेरा पर्सनल डिसीजन है और मैं अपने डिसीजन से काफी खुश हूं. मैं ये नहीं कह रही हूं कि मैंने ये फिल्में पैसे के लिए ही की हैं और इसके सिवा और कोई रीजन था ही नहीं. ये पूरी तरह से सच नहीं होगा.
लेकिन जब ये फिल्में रिलीज होती हैं और लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, तब लगता है कि फैसला गलत हो गया?
मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि मैं अपने आप से पूछती हूं कि क्या मैंने अपना काम अच्छे से किया? मुझे लगता है कि मेरा काम अच्छा था, उससे बेहतर मैं नहीं कर सकती थी या अगर मैंने पैसे लेकर काम नहीं किया हो, तो मैं खुद को अच्छी नजरों से नहीं देखूंगी, लेकिन जब तक मेरा काम अच्छा है, मैंने सौ प्रतिशत दिया है, तो बाकी बातें मायने नहीं रखती हैं. मेरा आत्म विश्वास और आत्म सम्मान लोगों के अप्रूवल पर निर्भर नहीं करता है. लोग अप्रूव नहीं करते हैं, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता है. मुझे पता होता है कि मेरा काम अच्छा है, तो मुझे उस चीज को लेकर कभी पश्चाताप नहीं होगा.
आपमें यह 'भाड़ में जाए दुनिया' वाला एट्टियूड कब से है?
मेरा यह एट्टियूड बचपन से है. मेरे पैरेंट्स हैरान हो जाते थे कि ये कैसे अपनी मनमर्जी करती है. छोटी उम्र में, बड़े डिसीजन ले लेना, ओवर कॉन्फिेंडेंट इंसान बनकर रहना... मुझमें बचपन से है.
जब आप एक दर्शक के तौर पर फिल्में देखती थीं, तो फिल्म स्टार्स के बारे में आपकी क्या सोच थी?
बचपन में हमें फिल्में देखने की अनुमति नहीं मिलती थी और जब कभी हम फिल्मों की एक झलक देख लेते थे, तो हमारे लिए वह एक अलग दुनिया होती थी. मैं एक मीडिलक्लास फैमिली से हूं. मुझे याद है कि मैं पांच-छह साल की थी. तब श्रीदेवी का दूरदर्शन पर सीमा ट्यूब का एक एड आता था, तो मैं मम्मी से कहती थी कि मम्मी जब ये अगली बार आएगी, तो हम टीवी तोड़ देंगे और श्रीदेवी को बाहर निकाल लेंगे (ठहाका मारकर हंसती हैं). मेरी मम्मी यह बात आज भी सबको बताती हैं. हमारे परिवार में यह एक जोक बन गया था कि ऐसा बोलती है. फिर जब बड़े हुए, तो ऑबवियसली हम टीवी तो नहीं तोडऩा चाहते थे, लेकिन ऐसा लगता था कि चमकीले लोग हैं, सब अच्छे दिखते हैं, अच्छे कपड़े पहनते हैं. ये लोग कौन हैं, कहां से आते हैं और क्या करते हैं, इसकी तो किसी को पड़ी नहीं रहती थी, क्योंकि एक आम इंसान अपनी जिंदगी में बहुत बिजी रहता है. हम लोगों पर पढ़ाई का बहुत प्रेशर रहता था, क्योंकि मेरी मम्मी टीचर हैं, डैड कन्सट्रक्शन बिजनेस से आते हैं, मेरे दादा जी आईएएस अफसर थे, परदादा पंद्रह साल तक हिमांचल प्रदेश के मिनिस्टर रह चुके हैं. जब देखो तो पढ़ाई नहीं कर रही है. हमें टाइम ही नहीं मिलता था कि फिल्मों के बारे में सोचें. तब इंटरनेट और मोबाइल फोन नहीं थे, ना फेसबुक और ट्विटर था. मैं तो हूं नहीं ट्विटर पर, लेकिन देखती हूं कि लोग सलमान खान से ट्विटर पर बात करते हैं. मेरे छोटे-छोटे कजिन्स स्टार्स को फॉलो करते हैं. उनको सारा दिन यही लगा रहता है कि उसको कमेंट कर दिया. हमारे लिए फिल्मी दुनिया एक अलग दुनिया होती थी. अब फिल्मी दुनिया पूरे देश के लिए आम हो गई. हर कोई ट्विटर और फेसबुक पर है.
इसे आप अच्छी बात मानती हैं कि अब स्टार्स को लेकर कोई मिस्ट्री नहीं रह गई है?
अच्छा है, इसके अपने-अपने नुकसान भी हैं. लेकिन मुझे अंजान लोगों से बातें करना अच्छा नहीं लगता है. मैं मूवी स्टार नहीं थी, तब भी मुझे अंजान लोगों से बात करना अच्छा नहीं लगता था. मुझे नहीं लगता है कि जिन लोगों को मैंने देखा नहीं है, आवाज नहीं सुनी है, उनसे बातें कर सकती हूं. इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे लिए दोस्त बनाना मुश्किल है. जो लोग मिलते हैं, मुझसे बात करते हैं, उनसे मेरी दोस्ती हो जाती है. अब जिससे मिल नहीं सकते, उससे कैसी दोस्ती! यही वजह है कि मैं ट्विटर और फेसबुक पर नहीं जा रही हूं.
उस वक्त कौन-सा स्टार आपकी फैंटेसी का हिस्सा हुआ करता था?
हर किसी का अपना एक फेवरेट स्टार होता है, लेकिन मैं किसी की फैन नहीं रही हूं. मेरे एक भैया (शम्मी ठाकुर) हैं, बड़े मामा के बेटे हैं, अब वह होटल मैनेजमेंट में हैं. वो फिल्मों के बहुत बड़े दीवाने थे. वो गर्मियों की छुट्टी में घर आए थे. उस टाइम मोहरा आई थी. अक्षय कुमार का हल्ला था. उनसे हमें इस बारे में सुनने को मिलता था, क्योंकि उनको फिल्मी दुनिया के बारे में ज्यादा पता होता था. वो स्टार्स की फोटो काटकर दीवार पर लगाते थे. घर में उनको सबसे ज्यादा डांट पड़ती थी कि खुद गलत काम करता है और दूसरे बच्चों को भी गंदा करता है और सारा दिन गाना गाता रहता है- तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त (हंसती हैं). उनके अलावा किसी को फिल्मों में इतना इंट्रेस्ट नहीं था.
अब आप खुद एक बड़ी स्टार हैं, तो परिवार के लोग क्या कहते हैं?
वो लोग आज भी बदले नहीं हैं. वो लोग फिल्म को एक आर्ट फॉर्म के रूप में एंजॉय नहीं कर सकते. वो यह नहीं सोचते कि कैसे फिल्में बनती हैं, एक्टिंग क्या कला है, क्या टैलेंट है? उनके लिए है कि हां, फिल्म देख ली.
अगर क्वीन जैसी परिस्थिति आपके निजी जीवन में आ जाए, तो क्या आप अकेले हनीमून पर जाएंगी?
हां, क्यों नहीं जाऊंगी. जरूर जाना चाहिए? अगर जिंदगी में दुख का कोई पल आ जाता है, तो कम से कम रोते-बिलखते गुजारना चाहिए. और दुनिया में जाना चाहिए. बहुत कुछ है एक्सप्लोर करने के लिए. हमने क्वीन में यही बताने की कोशिश की है.
रानी की तरह क्या आपने असल जीवन में कभी बॉयफ्रैंड से रिजेक्शन पाया है? अगर हां, तो आपने उसके साथ कैसे डील किया?
हां, बिल्कुल मुझको रिजेक्शन मिला है. लेकिन उसके बाद मैं यह नहीं सोचती कि क्या मैं अच्छी नहीं हूं? पता नहीं लोग क्यों ऐसा सोचने लगते हैं. अगर आपका इक्वेशन एक इंसान के साथ वर्क नहीं किया तो इसका मतलब यह थोड़े ही ना है कि आपमें कोई कमी है या आप किसी के लायक नहीं है. मेरी वो कभी चिंता नहीं रही, लेकिन ज्यादातर लोगों की यह क्राइसिस हो जाती है. बल्कि मैं बहुत अच्छे से रिजेक्शन या जिसे डंपिंग बोलते हैं, से डील करती हूं. एक इंसान होने के नाते मैं दूसरे की चॉइस की रिस्पेक्ट करती हूं. मुझे लगता है कि एक इंसान का पूरा हक है कि वह चाहे तो किसी के साथ रिलेशनशिप में रहना चाहता है या नहीं. आप उनको रिस्पेक्ट देते हैं, तो रिटर्न में आपको भी रिस्पेक्ट मिलती है. इन सब चीजों में गरिमा बनाए रखना मायने रखता है. मैंने आज तक न तो किसी को रिक्वेस्ट किया है, न ही किसी के सामने गिडगिड़ाई हूं. ज्यादातर लोग शॉक में चले जाते हैं और भीख मांगने लग जाते हैं कि मुझे मत छोड़ो. इन चीजों की समझ होने के नाते मैं इन सबसे हमेशा दूर रहती हूं. मैं सामने वाले के डिसीजन का रिस्पेक्ट करके अपने आपको इमोशनली और अफेक्शनली स्ट्रॉन्ग करके फिर उसका विश्लेषण करती हूं कि क्या उस पर वर्क करना चाहिए या दर्द खत्म कर देना चाहिए. आएम वेरी गुड विद ब्रेकअप्स (हंसती हैं). मैंने भी बहुत लोगों को रिजेक्ट किया है. ये सब तो चलता ही रहता है. फिलहाल, मैं सिंगल हूं.
क्वीन के लिए किसी प्रकार की तैयारी की जरूरत पड़ी?
हां, मुझे बहुत तैयारी की जरूरत पड़ी थी, क्योंकि क्वीन मुझसे बहुत अलग है. उसमें कॉन्फिडेंस नहीं है, आत्म सम्मान नहीं है, वह खुद के लिए खड़ी नहीं हो सकती, वह किसी की आंखों में देखकर बात नहीं कर सकती. वह डर-डर के सवाल पूछती है कि कहीं उससे गलती न हो जाए. उसकी बॉडी लैंगवेज पकडऩे के लिए मुझे मेहनत करनी पड़ी.
क्वीन में अन्विता दत्त के साथ डायलॉग राइटर के तौर पर आपका नाम है. बतौर लेखक इस फिल्म से जुडऩे का संयोग कैसे बना?
यह कॉन्शियस डिसीजन नहीं था. शुरू में मैं अपने डायलॉग बनाती रहती थी, तो विकास बहल ने कहा कि आप रानी के किरदार में खुद को जैसे एक्सप्रेस करना चाहती हैं, कीजिए. उन्होंने मुझे पूरी फ्रीडम दी. बाद में, उन्होंने कहा कि आपने अपने अधिकतर डायलॉग खुद ही लिखे हैं, तो मुझे आपको डायलॉग राइटर का क्रेडिट देना चाहिए. किसी कलाकार के काम का सम्मान करना और उसे क्रेडिट देना, अपने आप में बहुत बड़ी बात है. मुझे उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी.
छोटे शहर की लडक़ी होने का आज आपको क्या फायदा महसूस होता है?
मैं जिंदगी को नजदीक से देख चुकी है और जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को जीना जानती हूं. जब आप पहाड़ों से आते हैं, एक सादगी भरे बैकग्राउंड से आते हैं, तो आपको पता होता है कि एक्चुअली जीने के लिए कुछ नहीं चाहिए. वहां हम सर्दियों में धूप में चटाइयां बिछाकर पड़े रहते थे. हमें ऐसा लगता था कि मानो जन्नत में हों. जिंदगी की जो ये छोटी-छोटी खुशियां हैं, उनको हमने करीब से देखा है. वह हमारे लिए रियलिटी चेक की तरह है. लेकिन छोटे शहर से होना जरूरी नहीं है. इसका क्रेडिट मैं अपनी फैमिली को देना चाहूंगी कि उन्होंने जिस तरीके से हमारी परवरिश की है, जिस तरह से बचपन से हमारी फीलिंगस को लेकर सेंसिटिव रहे हैं, तो एक आर्टिस्ट के तौर पर मैं भी बहुत सेंसिटिव हूं, जिसकी वजह से मैं कैरेक्टर्स को समझ पाती हूं. रानी को मैं अपनी मां में, अपनी बहन में देखती हूं.
अब कभी अपने होम टाउन मंडी (हिमाचल प्रदेश) लौटती हैं, तो क्या आउट ऑफ प्लेस फील करती हैं?
हां, क्योंकि जब हफ्तों तक कुछ करने को नहीं होता है, तब बोरियत ज्यादा हो जाती है. फिर किस तरह से अपनी क्रिएटिव एनर्जी को यूज किया जाए, किस तरह से और ज्यादा अपने आपको सक्षम बनाया जाए, उसकी फिक्र रहती है. अब कर्मा में बहुत ज्यादा चले गए हैं, तो जब घर में बैठ जाते हैं, तो बेकार सा महसूस होता है.
विकास बहल आपके दूसरे निर्देशकों से कैसे अलग हैं?
जो कंटेपररी फिल्ममेकर्स हैं, उनका वह एक बहुत अच्छा उदाहरण हैं. वह ओपन रहते हैं. वह बहुत सहयोग करते हैं, वह आपके सुझावों को सुनते हैं, वह डीओपी को भी सुनते हैं, वह डिस्कस करते हैं और फिर उनको लगता है कि सही है, तो वह करते हैं. उनमें ईगो नहीं है. फिल्म की बेहतरी के लिए वह हमेशा तैयार रहते हैं.
वह फिल्म, पल या अभिनेता-अभिनेत्री कौन थी, जिसने आपको एक्टर बनने के लिए प्रेरित किया?
मुझे गुरूदत्त ने काफी इन्सपायर किया है. आमिर खान हैं. ये लोग बेहतरीन काम करते हैं. इन्होंने देश का बहुत नाम किया है.
आप यंग स्टार्स का जो ग्रुप है- वरुण, अर्जुन, रणवीर, रणबीर आदि, उनके साथ पार्टी करती नहीं नजर आतीं. आपकी उनके साथ दोस्ती नहीं है या आप उनसे दोस्ती नहीं करना चाहतीं?
आप मानेंगे नहीं कि मैं अपनी उम्र के लोगों से तो बात ही नहीं कर सकती. मैं इतना ज्यादा शायद मेच्योर हो गई हूं. मेरी मम्मी मुझे कई बार डांट देती हैं कि कैसे बात करती है, जैसे पचास साल की कोई औरत बात कर रही हो. तुम छब्बीस साल की हो, तो बच्ची बन कर रहो. ऐसे बात करती है, जैसे जिंदगी देख ली है, सब खत्म हो गया है, अब रिटायरमेंट तक पहुंच गई है. मुझे लगता है कि मम्मी सही बोल रही हैं. मैं अपनी उम्र से बहुत ज्यादा मेच्योर हो गई हूं, तो प्ले स्टेशन तो खेल ही नहीं सकती. ये मेरे लिए बहुत ही इमबैरेसिंग बात है. वरुण मेरी उम्र का है, 26 साल का. मैं वरुण से मिलती हूं, लेकिन क्या करें अभी? क्या बात करें, कुछ समझ में नहीं आता है.
तो कौन लोग हैं, जिनके साथ आप बातें कर पाती हैं?
आमिर खान, सलमान खान... ये लोग मुझे लगता है कि मेरे मेंटल लेवल के हैं. जबकि सलमान मुझसे बाइस साल बड़े हैं. तो क्या करें, कई लोग ऐसे हो जाते हैं. मेच्योरिटी बहुत ज्यादा हो जाती है. इसका कुछ नहीं कर सकते.
आमिर खान ने कॉफी विद करण में कहा कि कंगना रनौट सबसे सेक्सी हैं?
हां, तो उसमें क्या गलत कहा उन्होंने? वह हमेशा से मुझे प्रोत्साहित करते रहे हैं. चाहे वह वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई के लिए हो या तनु वेड्स मनु के लिए, उन्होंने और किरण राव ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया है. यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है.
रैपिड फायर
मान लीजिए आप किसी लडक़े को डेट कर रही हैं और आपको पता चलता है कि वह बाइसेक्सुअल है, तो क्या आप उसे डंप कर देंगी?
अगर वह मुझे चीट कर रहा है, चाहे वह लडक़ी के साथ करे या लडक़े के साथ करे, बात तो एक ही है. मैं उसे डंप कर दूंगी.
अगर किसी इंडियन क्रिकेटर को डेट करना हो, तो आप किसे डेट करना चाहेंगी?
मुझे किसी क्रिकेटर को डेट ही नहीं करना है.
आपको तो शादी ही नहीं करनी है ना?
हां, मुझे शादी नहीं करनी है, लेकिन मुझे डेट करना है.
क्या कंगना रनौट अपनी फिल्मों की हीरो हो सकती हैं?
मुझे लडक़ा नहीं बनना. मैं हीरोइन ही अच्छी हूं. लेकिन मैं अच्छी, मीनिंगफुल फिल्म करना चाहूंगी.
अगर आप फिल्म बनाती हैं, तो किसे साइन करना चाहेंगी?
अगर आमिर खान लायक स्क्रिप्ट हुई, तो उन्हें जरूर साइन करना चाहूंगी.
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