सनी देओल जब पर्दे पर गुस्से से आग बबूले नजर आते हैं, तो दर्शक सीटियां और तालियां बजाते हैं और निर्माता खुशी से फूले नहीं समाते हैं. बॉक्स-ऑफिस के इस चहेते देओल से रघुवेन्द्र सिंह ने की मुलाकात
सनी देओल सालों से सफलता-असफलता की आंख मिचौली का खेल खेलते आ रहे हैं, इसलिए उनकी फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर हो या हिट, उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहती है. उनका जादू दर्शकों पर बरकरार है. इसका ताजा उदाहरण है सिंह साब द ग्रेट. मगर निजी जीवन में वह सीधे-सादे और शर्मीले हैं. उनके अंदर एक बच्चा भी मौजूद है, जो शैतानियां करता रहता है. उन्होंने फिल्मफेयर को जुहू स्थित अपने ऑफिस सनी सुपर साउंड में आमंत्रित किया. जब हम पहुंचे, तो वह बैठकर समोसे और केक खा रहे थे. हमें ताज्जुब नहीं हुआ, क्योंकि देओल्स तो खाने-पीने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अभी-अभी अपने ऑफिस की एक स्टाफ का बर्थडे सेलिब्रेट किया. आज हमें पता चला कि उन्हें चेहरे पर केक लगाने का शौक है. इस तरह के मौके पर वह एक केक खास तौर से सबके चेहरे पर लगाने के लिए मंगाते हैं. बहरहाल, हम उनसे बतियाना शुरू करते हैं...
हाल में सिंह साब द ग्रेट फिल्म में आप एक बार फिर धुंआधार एक्शन करते दिखे. आप इस जॉनर को एंजॉय करते हैं?
बात काम की होती है. वह एक्शन हो, कॉमेडी हो, रोमांस हो, हम अपना काम कर रहे हैं. एक कहानी है, उसमें कैरेक्टर है, हमें उसे निभाना होता है. मैं उस कैरेक्टर को अपने अंदर खोजता हूं कि अगर मैं ऐसा होता, तो क्या करता. हर इंसान का दिमाग एक इनसाइक्लोपिडिया है. जब तक मैं किसी चीज को दिल में न बैठा लूं, मैं करता नहीं हूं. मेरे अंदर वह चीज जाएगी, तो ही मैं परफॉर्म कर पाऊंगा. मैं सुपरफिशियल परफॉर्मेन्स नहीं दे सकता. मैं जिस ढंग की एक्टिंग को मानता हूं, उसे मैंने आगे किया. आज जब मैं कहीं जाता हूं, तो कितने युवा आकर मुझसे अच्छी तरह मिलते हैं और कहते हैं कि सनी जी, मैंने आपकी वो पिक्चर देखी थी, उसमें चीजें इतनी अच्छी थीं कि मैंने उन्हें अपने जीवन में अपनाना शुरू कर दिया. तो मुझे अच्छा लगता है कि मेरी एक फिल्म से आदमी सही ट्रैक पर तो है.
अगर भ्रष्टाचार की बात करें, तो क्या आप जैसे एक स्टार का सामना भी इससे हुआ है?
हर आदमी को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है. किसी को छोटी करप्शन, तो किसी को बड़ी और किसी को बहुत बड़ी करप्शन का. हर जगह करप्शन है, तभी पैसे हर जगह जाते हैं. कुछ काम करवाना होता है, तो पैसे देने पड़ते हैं. मुझे तो किसी को पैसे देने में भी शर्म आती है. मुझे समझ में नहीं आता, जब लोग कहते हैं कि उसको पैसे दे दो, अगर काम करवाना है तो. मैं कहता हूं कि कैसे दूं, उन्हें कहीं बुरा न लग जाए. कितनी बार मैं चिढ़ता हूं कि मुझे नहीं देना है. तो मुझे वकील समझाते हैं कि आप नहीं देंगे, तो ये नहीं होगा. यह एक जबरदस्ती का फॉरमैट हो गया है.
लेकिन हम लोग चुपचाप इसे बर्दाश्त क्यों कर लेते हैं?
सिंह साब द ग्रेट का मकसद था कि बदला नहीं बदलाव. पहले अपने आप में एक बदलाव लाओ. जब आप नल बंद कर दोगे, तो पानी नहीं बहेगा. मैंने कहा कि चलो एक फिल्म करते हैं, जिसमें ऐसा कैरेक्टर प्ले करें, जिससे किसी को प्रोत्साहन मिले. हमने पॉलिटिशियंस के हाथ में अपनी जिंदगी दे दी है कि जो मर्जी हो, करो, हमें परवाह नहीं है.
मार-धाड़ करना जोखिम भरा काम है. ऐसे सीन करते समय आप किस तरह की सावधानी रखते हैं?
जब हम एक्शन करते हैं, तो उस वक्त सेफ्टी की जो सुविधा मौजूद होती है, उसे लेकर चलते हैं. लेकिन चोट ऐसी चीज है, जो हो जाती है. तभी हम उसे एक्सीडेंट कहते हैं. आज के जमाने में सेफ्टी बहुत है. पहले अस्सी या नब्बे के दशक में इतनी सेफ्टी नहीं थी. 2000 के बाद सेफ्टी आनी शुरू हुई है. पहले हमारे पास एयर बैगस नहीं थे, हम जानवरों के साथ पंगा लेते थे, चोटें खाते थे. जब बिल्डिंग से छलांगें मारते थे, तो नीचे गद्दे रखे होते थे, उसी पर छलांगें मार देते थे. अब हमारे पास केबल हैं, एयर बैगस हैं, तो हम उस पर सॉफ्टली लैंड करते हैं.
परिजनों ने कभी कहा कि आप इस तरह का जोखिम भरा काम न करें?
बिल्कुल. वो कभी नहीं चाहते थे कि मैं स्टंट करूं. लेकिन अब काम है, तो करना ही पड़ता है. मैं शुरू से स्पोर्ट्स में रहा हूं, तो ये मुझे खेल की तरह लगता है. बेताब में घुड़सवारी का एक सीन था. उस सीन की शूटिंग के वक्त घोड़ा तंग कर रहा था, तो हमारे जितने भी एक्शन मास्टर और एक्शन डुप्लीकेट थे, उनसे हो नहीं रहा था. हमारे अरेंजर्स में एक-दो विदेशी भी थे, उनसे भी नहीं हो रहा था. मैंने कहा कि मैं करके देखूं? मैं बैठ गया घोड़े पर, तो गिरा ही नहीं. वहां से मेरी एक्शन की जर्नी शुरू हुई. फिर मैं चलता ही गया. मैं कहीं रूका नहीं. मैंने सीखा कुछ नहीं था. स्पोर्ट्समैन में एक स्फूर्ति होती है. हमें चोट लगती है, तो हम रूकते नहीं हैं. मुझे कई बार चोटें लगीं और फिर बाद में, बैक की प्राब्लम आने लगी. बैक से मैं तबसे लड़ रहा हूं. मेरे चार ऑपरेशन हो चुके हैं बैक के. लेकिन अब आदत-सी हो गई है. मैं किसी चीज को कमजोरी नहीं बनाता. भगवान ने मेरे अंदर एक शक्ति दी है कि किसी चीज के सामने मैं हार नहीं मानता.
देओल परिवार खाने-पीने के लिए जाना जाता है. फिर आप अपने आपको फिट कैसे रखते हैं?
हम पहले खाते हैं, फिर ज्यादा एक्सरसाइज कर लेते हैं या खेल लेते हैं, तो बर्नआउट हो जाता है. मैंने एक-दो बार कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन वो डिसिप्लीन हो नहीं पाता. मैं एक्सरसाइज ज्यादा कर लेता हूं. आजकल के ज्यादातर लोग स्ट्रिक्ट डायट फॉलो करते हैं. वो अच्छी चीज है, पर मैं उस ढंग से नहीं करता.
फिल्मों में हम आपको अक्सर गुस्सा होते देखते हैं, लेकिन क्या रियल लाइफ में आप गुस्सा होते हैं?
(हंसते हैं) गुस्सा आता है. यह तो एक इमोशन है. जब चोट लगती है या जब किसी चीज पर चिढ़ जाता है आदमी, जब थका हो, तो गुस्सा आता ही है. हां, बगैर वजह के मुझे गुस्सा नहीं आता.
प्रीमियर या पार्टी को लेकर क्या आपको एक्साइटेड होती है?
मैं तो इन चीजों से भागता हूं (हंसते हैं). अगर आप खुद स्क्रीनिंग रखते हैं, तो जाना पड़ता है. मुझे पार्टीज का शौक होता, तो मैं जरूर जाता. थोड़ा दारू पीता और बहक जाता. मैं ये सब चीजें नहीं करता, इसलिए नहीं जाता. जिस तरह से मैं अपना जीवन जी रहा हूं, उसमें मुझे बहुत खुशी है. ऐसी जगहों पर फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से मिलना-जुलना होता है. लेकिन हम कभी नहीं चाहते हैं कि किसी का भला हो, क्योंकि हम डरते हैं दूसरों के भले से कि कहीं उसके भले के साथ हमारा नुकसान न हो जाए. अफसोस कि हमारी इंडस्ट्री ऐसी है.
क्या आपको इस बात का दुख है कि आप जिस इंडस्ट्री का हिस्सा हैं, वहां लोग ऐसी सोच रखते हैं?
हमारे पूरे देश की सोच ऐसी है. हर फील्ड में यही हाल है और इंडस्ट्री अलग नहीं है. आजकल पेज 3 पार्टी में हर कोई जाता है, हर आदमी सोचता है कि उसकी फोटो आ जाए. और इसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार हैं. ऑडियंस जानती है कि मैं कुछ बुराई करूंगा, तो मैं भी टीवी पर आ जाऊंगा. रियलिटी शो पर चला जाऊंगा. पूरे देश का जीवन जीने का यह तरीका बन गया है.
आप एक साफ दिल और नेक इंसान हैं, लोग आपसे जुड़ाव महसूस करते हैं, लेकिन आप सबसे दूर क्यों रहते हैं?
हर कोई इंसान है और इंसान गलतियां भी करता है. लेकिन हमारी कोशिश होती है कि हम किसी को चोट न पहुंचाएं. अगर हमसे कोई गलती होती है, तो हम मान लेते हैं कि हमसे गलती हुई है. हम अपने आप पर ही हंसते हैं. हमें किसी चीज पर शर्म नहीं है. हम वही करते हैं, जो करना हमें अच्छा लगता है. तभी मैं किसी को फॉलो नहीं करता, क्योंकि हर इंसान ऐसा ही है.
सालों से इंडस्ट्री में होने के बावजूद आप पर इसका रंग क्यों नहीं चढ़ा?
हम ऐसे ही हैं और एक इंसान को ऐसा ही होना चाहिए. हम हर आदमी को अपने जैसा समझते हैं. हम हर आदमी पर भरोसा कर लेते हैं, क्योंकि भरोसे से ही काम होता है. यह सोच हमें परिवार से मिली है. मेरी जॉइंट फैमिली है. पापा ज्यादा काम करते थे, तो मैं ज्यादातर समय अपनी बीजी, मम्मी या आंटी के साथ होता था. बचपन में उन्होंने जो बातें कही होंगी, वह दिमाग में रह जाती हैं. उसका मतलब हमें बाद में समझ में आता है और जब कुछ घटना घटती है, तब वो बात याद आती है.
आपके बच्चों में भी ऐसे ही संस्कार और सोच है, ऐसा हमने सुना है.
जैसे हम लोग पले हैं, वो भी उसी ढंग से पले हैं. हमारे जो विचार होंगे, वही हमारे बच्चों के भी विचार होंगे. जैसे- हमने उनको शिक्षा दी है कि इज्जत से बात करो, तो वह वो दिमाग में रखते हैं. अब घर में फादर, ग्रैंड फादर सब लोग उसी बात को फॉलो करें, तो माहौल ही वैसा हो जाता है. आप सीखा नहीं रहे होते हैं, आदमी उसमें पलते-बढ़ते सीख जाता है.
आप इस वक्त ज्यादा एक्सपेरिमेंट करने के मोड में दिख रहे हैं. आपने मोहल्ला अस्सी की, फिर आई लव न्यू ईयर की. आप अपनी सीमाएं तोडऩे के लिए ओपन हैं?
मैं हमेशा से ओपन था. बेताब के बाद मैंने अर्जुन की. उस वक्त ऐसी फिल्म कोई नहीं करता था. मैंने यतीम की, डकैत की, वो भी लोग नहीं करते थे. मैंने हमेशा नए लोगों के साथ काम किया,क्योंकि उनमें एक जोश होता है, एनर्जी होती है, जो मुझमें भी है. चाहे मैं सौ फिल्में कर लूं, लेकिन मेरे अंदर वही एनर्जी रहेगी. कोई चीज परफेक्ट नहीं होती. आप परफेक्ट कैसे बोल सकते हो? क्रिएटिविटी क्या होती है? जब हम कोई चीज शुरु करते हैं, तो हमें पता नहीं होता कि वह कहां तक जाएगी. उसमें मजा आता है, मुझे अच्छा लगता है कि मैं मॉनीटर नहीं देखूं. मैं डायरेक्टर को देखता हू, अगर उसने कह दिया ओके, तो मैं उसकी आंखें देखता हूं, तो सोचता हूं कि चलो, एक और कोशिश करता हूं. उस ढंग से मजा आता है.
मोहल्ला अस्सी का कैसा अनुभव रहा? इसकी रिलीज में देर क्यों हो रही है?
यह बहुत ही अच्छी फिल्म है. जल्द रिलीज होगी. यहां हर फिल्म की किस्मत पिछली फिल्म तय करती है. यह बहुत गंदी रियलिटी है, क्योंकि आज के जमाने में लोग एक्टिंग के भरोसे नहीं चल रहे हैं, एक प्रोडक्ट के भरोसे पर चल रहे हैं. कितनी पिक्चरों ने साबित भी कर दिया है कि वो खराब होती हैं, लेकिन उनकी हाइप ऐसी क्रिएट कर देते हैं कि लोग जाकर टिकट खरीद लेते हैं और आधी पिक्चर छोडक़र आ जाते हैं. वो पिक्चरें ऐसा बिजनेस करती हैं कि हर आदमी वैसा बिजनेस चाहता है. कोई यह नहीं चाहता कि अच्छा सिनेमा बनाकर वह बिजनेस हासिल करूं. वो चाहता है कि ये तरीके अपनाकर के मैं भी पैसे ला सकता हूं. उस वजह से हमारे जितने भी बड़े एक्टर हैं, जिनकी पहचान ऐसी है कि वह किसी भी बजट की फिल्म कर सकते हैं, उनमें ऐसी हिम्मत नहीं है, पैशन नहीं है. काश, ये पैशन होता, तो बहुत अच्छा हो सकता है. आप अच्छा करोगे, तो सक्सेज मिलेगी, फिर पैसा खुद-ब-खुद आएगा, पर अगर आप पैसे को टारगेट कर रहे हो और कंप्रोमाइज कर रहे हो, तो बात वही हो जाती है कि एक्टर नीचे रह गया और आपकी बाकी क्रिएटिविटी ऊपर चली गई.
आपको नहीं लगता है कि इंडस्ट्री ने आपको एक ही खांचे में ढाल दिया और फिर उसी में बार-बार दोहराती रही?
हमें एक ऐसा एक्टर बता दो, जो बिना किसी इमेज के चल रहा हो. हर स्टार इमेज के साथ चल रहे हैं और वो उस इमेज को लेकर इतने इनसिक्योर हैं कि डरते हैं कि कोई नया आकर ले न ले. वो कोई भी रोल करते हैं, पर लौटकर उसी इमेज में आ जाते हैं. मैंने अपनी कितनी पिक्चरें देखी नहीं हैं, वरना मैं आपके साथ उनके बारे में डिबेट कर सकता था. हां, जैसे मोहल्ला अस्सी और आई लव न्यू ईयर जैसी फिल्म पहले मुझे नहीं मिलती थीं. अगर मिली होतीं, तो मैं जरूर करता. अगर मैं दामिनी जैसी एक वूमन ओरिएंटेड फिल्म कर सकता था, तो मैं ये सब भी कर सकता था. पापा ने ऐसी-ऐसी फिल्में की हैं, जो किसी एक्टर ने नहीं किए हैं. वो सब कैरेक्टर्स में हिट रहे हैं. कोई ऐसा एक्टर नहीं है, जिसने इतनी वेरायटी के कैरेक्टर किए और उसकी फिल्में हिट रही हों. दूसरे एक्टर भी तो उस वक्त मौजूद थे, वो नहीं कर पाए. कितनी बार मैं सोचता हूं कि काश, मैं उस जमाने में रहा हंोता. क्योंकि निर्देशक और कहानियां इतनी खूबसूरत थी. अफसोस कि आज के नए एक्टर शिक्षा बहुत देते हैं. मगर लोगों में खोखलापन बहुत है. उनमें इतना टैलेंट नहीं है, जितना वो बात करते हैं. जिसके पास टैलेंट होता है, वह बात नहीं करता. क्योंकि उसका टैलेंट बात करता है.
हां, धरम जी की सत्यकाम के बारे में बहुत कहा जाता है.
मैं भी सत्यकाम का जिक्र कर रहा हूं, लेकिन पापा की फूल और पत्थर देखी है किसी ने? आप वह फिल्म देखिए. उसी फिल्म से एक्शन का दौर शुरू हुआ हिंदी फिल्मों में. उससे पहले एक्शन नहीं था. वह क्लासिक फिल्म है. सौ सप्ताह चली थी वह. उसी से एक स्टाइल बना. उसमें पापा ने शर्ट उतारी थी. लेकिन वह ये सब दिखा नहीं रहे थे. वह कैरेक्टर थे.
क्या आपको अपने करियर की बेस्ट फिल्में मिल चुकी हैं, जिनके बारे में लोग पचास साल भी बात करेंगे?
मैं लकी रहा हूं अपने कई समकालीन कलाकारों की तुलना में कि मैंने ढेर सारी ऐसी फिल्में की हैं, जिनका जिक्र लोग करते रहते हैं. आज यूट्यूब पर पर मैं उन फिल्मों को देखता हूं, तो सोचता हूं कि हां, मैं इसमें अच्छा तो था. ऐसे क्यों नहीं सोचता था. अर्जुन, बेताब, यतीम, डकैत, घायल, जीत, जिद्दी, बॉर्डर, गदर और भी कई सारी फिल्में थीं. ये आज भी सैटेलाइट पर खरीदते हैं लोग. आज भी मेरे डायलॉग लोग बोलते हैं, जबकि उन्हें करते वक्त हमने सोचा भी नहीं था कि इतने पॉपुलर हो जाएंगे.
आपका सबसे पॉपुलर डायलॉग है ढाई किलो का हाथ... इससे जुड़ा कोई किस्सा शेयर करना चाहेंगे?
मुझे लगता है कि क्यों लोग उसे पकडक़र बैठे हैं. हमें कभी नहीं पता होता कि कौन से डायलॉग लोग उठा लेंगे. मुझे अगर कोई सीन दे और कहे कि देखना, इसे लोग पसंद करेंगे, तो मैं कहता हूं कि मुझे वह सीन ही नहीं करना है. घायल ले लीजिए. हम और राज लड़ते रहते थे कि ये सीन अच्छा नहीं हुआ. पिक्चर खत्म हो गई. सेंसर हो गई. काट-पीट हो गई. मीडिया ने वो फिल्म देखी. उसके बाद हमारी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. उस समय इरॉज में फिल्म दिखाया करते थे. मैं निर्माता के तौर पर जा रहा था. मैं सोच रहा था कि मीडिया वाले पता नहीं क्या बोलेंगे. मैंने राज से कहा कि तुम बात करना. मुझसे नहीं होगा. लेकिन जैसे ही हम अंदर गए, मीडिया खड़ा होकर तालियां मारने लगा. हमें समझ में नहीं आया कि हमने ऐसा क्या ॠॠॠॠकर दिया है. उस चीज का मजा है. जब लोग शाबाशी दें, तब उसका मजा है.
क्या आपको लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री आपकी अभिनय प्रतिभा का संपूर्ण इस्तेमाल नहीं कर सकी?
बहुत वक्त है अभी. करेंगे. मुझे ऐसी कोई शिकायत नहीं है. जो समाज है, उसी में हमें जीना है, तो चिढक़र जीने से क्या फायदा है. गुस्से से जीने से क्या मतलब है. कितने सारे लोग हैं, बेचारे जिनको उतना भी नहीं मिलता, जितना मुझे मिला है. तो उसको देखकर आगे चलो.
आई लव न्यू ईयर में आप अपनी इमेज के विपरीत दिख रहे हैं. उसके बारे में कुछ बताएं.
बहुत ही प्यारी फिल्म है. एक साल हो गया, हम उसे बनाकर बैठे हैं. राधिका-विनय सप्रू ने मुझे कहानी सुनाई, वह मुझे तुरंत अच्छी लगी. उस वक्त टी-सीरीज ने उसे सपोर्ट किया और हमने बना ली. कैरेक्टर इतना अच्छा है. आज के जमाने में लोगों ने नाम दे दिया है- रॉम-कॉम. बस उस ढंग की फिल्म है. मैंने इस फिल्म में काम करते वक्त बहुत एंजॉय किया. पिक्चर प्यार की कहानी है. प्यार की कोई वजह नहीं होती, उम्र नहीं होती, प्यार बस हो जाता है. इसमें एक आदमी है, जो लेट फोर्टीज में है, वह कमिटमेंट से डरता है, क्योंकि वह फादर के साथ रहता है. उसे लगता है कि अगर लडक़ी के साथ हो गया, तो मैं क्या करूंगा. यह एक दिन-एक रात की कहानी है.
कंगना रनौट के बारे में आपकी क्या राय है? कैसा अनुभव रहा आपका?
वह बहुत अच्छी एक्ट्रेस हैं. हमारी केमिस्ट्री बहुत अच्छी है फिल्म में. गाने में आपने देखी होगी.
आपके हिसाब से क्या वजह रही कि यमला पगला दीवाना 2 को दर्शकों ने पहले पार्ट जैसा प्यार नहीं दिया?
मैं कभी बैठकर वजहें सोचता नहीं हूं. अगर वजह के बारे में सोचेंगे, तो दुख होगा. हम लोग आगे बढऩे में विश्वास करते हैं. हमने मेहतन की थी, प्रमोशन भी अच्छा किया था, लेकिन हमारी प्रमोशन काम नहीं आई. ट्रेलर में गलती थी शायद. लोगों को पसंद नहीं आए.
दिल्लगी (1999) के बाद आपने दोबारा निर्देशन क्यों नहीं किया?
मैं घायल रिटन्र्स डायरेक्ट करने जा रहा हूं. मैं डायरेक्टर ऐसे ही बना था. कहीं मुसीबत में फंस गया था, तो डायरेक्टर बन गया. मेरी ट्रेनिंग नहीं हुई थी. काफी लोगों ने कहा कि दिल्लगी अच्छी फिल्म थी. ज्यादा चली नहीं, लेकिन उसने अपना बिजनेस किया था. आज भी मैं कहीं जाता हूं तो यंगस्टर्स मुझसे कहते हैं कि दिल्लगी प्यारी थी, अपने समय से आगे की फिल्म थी. आप अगली पिक्चर क्यों नहीं बना रहे हैं.
आपके पापा धर्मेन्द्र आज भी सक्रिय हैं. आप उनसे कहते नहीं हैं कि पापा, अब आप आराम कीजिए?
जो काम करना पसंद करता है, जिसे काम की लगन है, वो काम नहीं करे, तो उसे आराम नहीं मिलता. पापा के लिए काम ही आराम है.
नए फिल्मकारों- जैसे अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी, दिबाकर बनर्जी आदि. इन लोगों के साथ काम करने का संयोग नहीं बन रहा है?
क्या होता है कि जब डायरेक्टर स्ट्रगल कर रहा होता है, तब वह कुछ करना चाहता है, लेकिन जब वह किसी मुकाम पर पहुंच जाता है, तो उसकी सोच बदल जाती है. फिर उनको केवल एक तरह का सिनेमा कमर्शियल लगता है, एक तरह के एक्टर्स कमर्शियल लगते हैं. पहले भी मैं किसी डायरेक्टर के पास काम मांगने नहीं गया. मेरी जितनी भी फिल्में हुई हैं, वहां से डायरेक्टर बने हैं.
मेरा बेटा...
पापा और हम सबका मानना है कि बच्चा वही करे, जो वह करना चाहता है. और वह जो भी करे, उसमें उसे सफलता मिले. पर सफलता तभी मिलेगी, अगर उसमें हुनर होगा और वह मेहनत करेगा. करण अभिनय करना चाहते हैं. उन्हें हमें लॉन्च करना है. पर अब तक हमने लॉक नहीं किया है कि उनकी पहली फिल्म कौन-सी होगी और उसे कौन निर्देशित करेगा. करण की खासियत के बारे में क्या कहूं! मुझे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि मैं एक्टर बनूंगा. मुझे नहीं पता था कि मेरी खासियत क्या है. मेरे अंदर जज्बा था, जो हर आदमी के अंदर होना चाहिए. वही आगे लेकर जाता है. मेरी और करण की फिल्म अगर आमने-सामने होगी, तो क्या हुआ! जब पापा की फिल्में चल रही थीं, तब मैं आया था. मेरी फिल्म बेताब लगी थी और पापा की फिल्म नौकर बीवी का लगी थी. दोनों फिल्में चली थीं. हमें काम करते रहना चाहिए. सोचना नहीं चाहिए.
साभार: फिल्मफेयर
No comments:
Post a Comment