मुंबई का दिल कहलाने वाले परेल इलाके में स्थित है राजकमल कला मंदिर। वी. शांताराम ने 9 नवंबर, 1942 को राजकमल की नींव रखी। वी. शांताराम के बेटे किरण शांताराम बताते हैं, ''पापा ने होमी वाडिया से राजकमल के लिए पांच एकड़ जमीन खरीदी थी। उस समय यहां चारों ओर सिर्फ जंगल था। पापा ने पत्तार का शेड डालकर एक छोटा सा फ्लोर बनाया था। उसी में उन्होंने राजकमल कला मंदिर प्रा.लि. की पहली फिल्म शकुंतला की शूटिंग की। पापा ने राजकमल की शुरुआत अपनी फिल्मों के निर्माण के लिए किया था। सेहरा, गीत गाया पत्थरों ने, झनक झनक पायल बाजे, डॉ. कोटनिस की अमर कहानी फिल्मों की शूटिंग उन्होंने इसी में की। वे आउटडोर यहीं प्रांगण में सेट लगाकर करते थे।''
हर सुविधा से सुसज्जित
राजकमल कला मंदिर में फिल्म निर्माण से जुड़ी हर सुविधा उपलब्ध थी। राजकमल के बारे में कहा जाता था कि यहां निर्माता स्क्रिप्ट लेकर आते थे और फिल्म की रील लेकर निकलते थे। वी. शांताराम ने राजकमल में एडीटिंग, रिकॉर्डिग, डबिंग, मिक्सिंग स्टूडियो बनवाया था। स्टूडियो में ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का प्रोसेसिंग लैब भी था। किरण शांताराम बताते हैं, ''पापा ने 1954 में राजकमल की प्रशासनिक इमारत का निर्माण करवाया। उसी समय उन्होंने इमारत के सामने एक बड़ा सा स्टूडियो बनवाया। स्टूडियो में 270 लोग काम करते थे। शो कार्ड डिजाइनिंग, पोस्टर पेंटिंग, प्रिंटिंग, डेवलपिंग आदि की सुविधाएं राजकमल में उपलब्ध थीं। इन्हीं सुविधाओं की वजह से राजकमल इंडस्ट्री का सर्वाधिक लोकप्रिय स्टूडियो बन गया।''
बाहरी निर्माताओं के लिए खुले दरवाजे
राजकमल की लोकप्रियता निर्माताओं-निर्देशकों के बीच इतनी बढ़ गई कि वे अन्ना साब से यहां शूटिंग करने की इजाजत मांगने लगे। गौरतलब है कि वी. शांताराम को इंडस्ट्री के लोग अन्ना साब कहकर संबोधित करते थे। अन्ना साब ने 1960 में राजकमल के दरवाजे बाहरी निर्माताओं के लिए खोल दिए। इसके पीछे उनकी मंशा थी कि स्टूडियो की सुविधाओं का लाभ पूरी इंडस्ट्री को मिले। किरण शांताराम बताते हैं, ''बी. आर. चोपड़ा, यश चोपड़ा, सत्यजीत रे, मनमोहन देसाई, ऋत्विक घटक, सुभाष घई, ऋषिकेष मुखर्जी, शक्ति सामंथ, श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, मृणाल सेन जैसे फिल्मकारों का राजकमल पसंदीदा स्टूडियो था।''
प्रांगण में खड़ी हुई इमारतें
राजकमल स्टूडियो के प्रांगण में प्रशासनिक इमारत के अगल-बगल दस बहुमंजिला इमारतें खड़ी नजर आती है। 50 साल से स्टूडियो की जिम्मेदारी संभाल रहे किरण शांताराम कहते हैं, ''1985 में फिल्म इंडस्ट्री में एक स्ट्राइक हुई थी। उस स्ट्राइक की वजह से फिल्मों की शूटिंग कम हो गई। उसी समय फिल्मों की शूटिंग रीयल लोकेशन पर करने का ट्रेंड शुरू हुआ। अचानक स्टूडियो का बिजनेस कम हो गया। पापा ने सोचा कि दो ही शूटिंग फ्लोर हैं, एक रिकॉर्डिग स्टूडियो है। बाकी जगह खाली पड़ी है। उन्होंने रिहायशी इमारतें बनवा दीं। पापा ने जो बनवाया है, मैं सिर्फ उसे संभाल रहा हूं।'' गौरतलब है कि 1987 में राजकमल कला मंदिर में फिल्मों का निर्माण बंद हो गया था। किरण शांताराम बताते हैं, ''मैंने पापा से पूछा था कि आप फिल्में बनाना बंद क्यों कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि अब अलग किस्म की फिल्में बनने लगी हैं। पापा उस समय की फिल्मों से निराश हो गए थे। पापा मनोरंजन के साथ फिल्म के जरिए समाज को एक विचार देने के पक्षधर थे।''
राजकमल तब और अब
राजकमल की प्रशासनिक इमारत के अंदर हॉल में एक दीवार पर वी. शांताराम के पुरस्कारों को मढ़वाकर रखा गया है। इमारत के पहले फ्लोर पर एक लाइब्रेरी है। किरण शांताराम बताते हैं, ''1975 में पापा ने लाइब्रेरी बनवाई थी। लाइब्रेरी में सिनेमा की दस हजार पुस्तकें हैं। वी. शांताराम मोशन पिक्चर्स साइंटिफिक रिसर्च एंड कल्चरल सेंटर को वह लाइब्रेरी पापा ने सौंप दी थी। पापा का सपना था कि उसका लाभ सिनेमा के स्टूडेंट्स को मिले।'' गौरतलब है कि इसी इमारत में दूसरे फ्लोर पर वी. शांताराम रहते थे। 1990 में उनकी मृत्यु के बाद उनके कमरे को लॉक कर दिया गया। वी. शांताराम द्वारा निर्मित एक शूटिंग फ्लोर अब नहीं है। राजकमल में सिर्फ एक शूटिंग फ्लोर है। यहां सीरियल और एड फिल्मों की शूटिंग अब ज्यादा होती है। किरण शांताराम कहते हैं, ''मैंने स्टूडियो को एयर कंडीशन बना दिया है। सीरियल और एड फिल्मों से बिजनेस ज्यादा आता है। यश चोपड़ा एकमात्र ऐसे निर्माता-निर्देशक हैं, जो आज भी अपनी प्रत्येक फिल्म का एक शेड्यूल यहां शूट करते हैं। अब फिल्मों की शूटिंग उपनगर के स्टूडियो, खासकर फिल्मसिटी में ज्यादा होती है। ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि फिल्मसिटी की शुरुआत मेरे पापा ने ही की थी। मैंने पापा से कहा भी था कि फिल्मसिटी राजकमल को बिजनेस के हिसाब से नुकसान दे सकता है। पापा का सपना था कि मुंबई में एक ऐसी जगह हो जहां सिर्फ दिन-रात फिल्मों की शूटिंग हो। पापा का वह सपना पूरा हो गया, लेकिन राजकमल के बारे में मेरी कही बात सच निकली।''
अब पोते संभालेंगे राजकमल
किरण शांताराम के बड़े बेटे राहुल ने अब राजकमल की जिम्मेदारी संभालनी शुरू कर दी है। किरण शांताराम बताते हैं, ''राहुल स्टूडियो का काम देखते हैं और मेरे छोटे बेटे चैतन्य प्लाजा थिएटर संभालते हैं। मैं अपनी जिम्मेदारी सफलता से निभा रहा हूं। मैं चाहूंगा कि अब वी. शांताराम की तीसरी पीढ़ी भी राजकमल को संभाल कर रखे!''
-रघुवेन्द्र सिंह
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