माई ब्रदर निखिल, बस एक पल और सॉरी भाई के बाद आई एम ओनिर की चौथी फिल्म है। इसे वे अपनी सबसे स्पेशल फिल्म मानते हैं। फिल्म को लेकर बातचीत ओनिर से।
शीर्षक से लगता है कि यह फिल्म अस्तित्व की कहानी है?
यह अस्तित्व के खोज की कहानी है। टैगोर की गीतांजलि की एक कविता फिल्म की प्रेरणा है। फिल्म के सभी किरदारों का एक ही सपना है कि वे बिना किसी भय के अपनी जिंदगी सम्मान से जी सकें। किरदारों की पर्सनल, पॉलिटिकल और जेंडर हिस्ट्री है। इसमें चार कहानियां ओमार, मेघा, आफिया और अभिमन्यु हैं। कहानी के सभी किरदार एक-दूसरे से जुड़े हैं।
दर्शकों की पसंद के कॉमर्शियल सिनेमा में आपकी रुचि नहीं है?
यह गलतफहमी है। आम आदमी की पसंद को ध्यान में रखकर कुछ लोग सौ करोड़ की फिल्म बनाते हैं और उन्हें अस्सी करोड़ का लॉस होता है। तीन करोड़ की फिल्म तेरह करोड़ का बिजनेस करती है। प्रॉब्लम टिकट प्राइस है। पहले एक दिन में लोग तीन शो देख सकते थे, लेकिन आज टिकट इतना मंहगा है कि लोग एक फिल्म देखने जाने से पहले सोचते हैं।
आई एम के प्रचार के लिए आप फेसबुक और ट्विटर पर जोर दे रहे हैं। क्यों और क्या भविष्य में ये माध्यम लोकप्रिय होंगे?
मेरे पास मीडिया नेट के लिए पैसे नहीं हैं। जब टीवी आया था, तो लोग कहने लगे थे कि टीवी ने थिएटर को बंद कर दिया, लेकिन थिएटर आज भी मौजूद हैं। कोई माध्यम पूरी तरह खत्म नहीं होता। फेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यम भविष्य में मजबूत होंगे। बहुत जल्द इंडिया में मोबाइल टीवी का चलन भी बढ़ेगा।
आई एम के निर्माण के संघर्षमय दौर को क्या आपने एंज्वॉय किया?
मैं एक लाख रुपए के लिए कॉफी पीने दिल्ली चला जाता था। एक इंसान के तौर पर इस फिल्म ने मुझे विनम्र बना दिया। मुझे लोगों से जुड़ने का मौका मिला। लोग कहते थे कि आप इतने बड़े डायरेक्टर होकर फिल्म के लिए पैसा मांग रहे हैं? मैं कहता था कि मेरी फिल्म से बड़ा मेरा इगो नहीं है। अगली फिल्म की कहानी मुझे इसी प्रोसेस में मिली है।
-रघुवेंद्र सिंह
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