बारूद का निवाला!
-रघुवेन्द्र सिंह
क्यों किया तूने मुझे
मातृ सुख से वंचित?
क्यों किया तूने भला
घृणित कर्म संचित?
धधक रही थी अंदर मेरे
भूख की ज्वाला
मत्तता में दिया तूने मुझे
बारूद का निवाला
तुझे कभी ना क्षमा करेगी
पृथ्वी और प्रकृति
क्यों किया तूने मुझे
मातृ सुख से वंचित?
निर्विवाद कहलाता है तू
सर्वोत्तम ईश की रचना
लज्जित हुआ है आज वो
देख निर्ममता की ये घटना
विश्वास तुझ पर ना करेगी
कोई भी अब कृति
क्यों किया तूने मुझे
मातृ सुख से वंचित?
मुझे तुझ पर रोष नहीं है
जग छोड़ने का अफ़सोस नहीं है
तेरी करनी तुझे है भरनी
कैसे पार करेगा वैतरणी
पश्चाताप से भी नहीं मिलेगी
तुझे पापों से अब मुक्ति
क्यों किया तूने मुझे
मातृ सुख से वंचित?
चित्र साभार: सुदर्शन पटनायक
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