Monday, June 8, 2020

आभार व्यक्त करते हैं! 
-रघुवेन्द्र सिंह 


मलिन उनकी बस्ती है 
गरीबी वहां बसती है 
तो क्या ज़िन्दगी उनकी सस्ती है?
चल उतार चोला अमानुष का 
फिर से मानुष बनते हैं 
उन गलियों में चलते हैं 
धन्यवाद कहते हैं
आभार व्यक्त करते हैं! 

जिन हाथों ने हमको संभाला 
हर दिन, हर घर, हर मौसम संवारा
उनको अनदेखा तू क्यों करता है? 
चल उतार चोला क्रूरता का 
क्षमा मांग करते हैं 
उन गलियों में चलते हैं 
धन्यवाद कहते हैं
आभार व्यक्त करते हैं! 

यह विपदा यूँ ही नहीं आई है 
जाति-धर्म की ये ना लड़ाई है 
तू इतना अनभिज्ञ क्यों बनता है? 
चल उतार चोला कायरता का  
उनकी मदद करते हैं  
उन गलियों में चलते हैं 
धन्यवाद कहते हैं
आभार व्यक्त करते हैं! 

No comments: