वो दिल का दर्द दिल में दबाए चले गए
हम मौत पर उनकी महफ़िल सजाए बैठे हैं!
वो बेरुखी के ज़ख्म छुपाए चले गए
हम इश्क़ में उनकी मजलिस लगाए बैठे हैं!
वो सुकून की चाह में बिन बताए चले गए
हम फिक्र में उनकी शोरगुल मचाए बैठे हैं!
वो जहान के प्रपंच से पीछा छुड़ाए चले गए
हम मौत पर उनकी अपनी बिसात बिछाए बैठे हैं!
-रघुवेन्द्र सिंह
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