मदर्स दे स्पेशल !
अम्मा, तुम ऐसी क्यों हो?
-रघुवेन्द्र सिंह
अम्मा, तुम ऐसी क्यों हो?
तुम, खुद जैसी क्यों हो?
अपनी परवाह न करती हो,
हम सबकी परवाह में मरती हो.
तुम खुद खाओ खाना या ना,
पर सबकी फ़िक्र में रहती हो.
हम देर रात घर भी आएं,
तुम जागी ही मिलती हो.
अम्मा, तुम ऐसी क्यों हो?
तुम, खुद जैसी क्यों हो?
सुबह, दोपहर, शाम, रात,
सब एक किये रहती हो.
हम भले हार-थक जाएँ,
पर तुम न कभी थकती हो.
अम्मा, तुम ऐसी क्यों हो?
तुम, खुद जैसी क्यों हो?
हम खीझ भले ही जाएँ,
पर तुम हंसती रहती हो.
हम दूर चले भी जाएँ,
पर तुम पास सदा रहती हो.
अम्मा, तुम ऐसी क्यों हो?
तुम, खुद जैसी क्यों हो?
अब अपना रखो ख्याल ज़रा,
यही हमारी विनती है.
तुम हो तो जहाँ में सब कुछ है,
तुम से ही हमारी गिनती है.
अम्मा, तुम ऐसी क्यों हो?
तुम, खुद जैसी क्यों हो?
तुम और किसी को न मिलना,
हर रोज़ इबादत करते हैं.
हर जनम मिलो, तुम ही हमको,
बस यही हिमाकत करते हैं.
अम्मा, तुम ऐसी क्यों हो?
तुम, खुद जैसी क्यों हो?
No comments:
Post a Comment