आओ ईद का जश्न मनाएं!
-रघुवेन्द्र सिंह
आओ ईद का जश्न मनाएं
चेहरों से रंज का रंग मिटाकर
इक-दूजे को सेवँई खिलाएं
आओ ईद का जश्न मनाएं।
इस बार जश्न थोड़ा जुदा है
तेरा खुदा अब मेरा खुदा है
अमीरी-गरीबी का फर्क मिटाकर
इक-दूजे को गले लगाएं
आओ ईद का जश्न मनाएं।
इस बार किसी की नज़र लगी है
सबकी जां मुश्किल में पड़ी है
दहलीज में घर के अंदर रहकर
सब्र का सबको पाठ पढ़ाएं
आओ ईद का जश्न मनाएं।
अब मजहब क्या? जात क्या?
नफरत की औकात क्या?
गुनाह उनके सब बिसरा कर
इंसानियत की बात सिखाएं
आओ ईद का जश्न मनाएं।
1 comment:
Such a profound message given with such simplicity
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