हम अब अपने गांव चले...
-रघुवेन्द्र सिंह
शहर मुबारक तुझको तेरा
हम अब अपने गांव चले
सर पर रख, जीवन की गठरी
पैदल ही सरकार चले.
नन्हा मेरा, नग्न पाँव
दो रोटी की धूप छाँव
लम्बा रास्ता, ठौर न ठाँव
शिथिर हो गए मन के भाव
सर पर रख, मौत की गठरी
पैदल ही सरकार चले.
देश हमारा, कैसे माने?
जब भूख हमारी तू ना जाने
सरकार हमारी, कैसे जाने?
जब पीर हमारी तू ना जाने
सर पर रख, अभिमान की गठरी
पैदल ही सरकार चले.
जीवित रहे, फिर मिलेंगे
चुनाव में तो याद करोगे!
वोट माँगना, फिर हिसाब करेंगे
पक्ष-विपक्ष की बात करेंगे!
सर पर रख, यादों की गठरी
पैदल ही सरकार चले.
शहर मुबारक तुझको तेरा
हम अब अपने गांव चले
सर पर रख, जीवन की गठरी
पैदल ही सरकार चले.
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