चौखट ही अब चरम है
-रघुवेन्द्र सिंह
चौखट ही अब चरम है
तत्पश्चात सब भरम है.
जग जो आज ठहर गया
यह तेरा-मेरा करम है.
आ बैठ करें हिसाब ज़रा
खोलें अपनी किताब ज़रा
पन्ना क्यों सारा काला है
अब कुछ ना मिटने वाला है
तांडव जो मौत कर रही
ये न मिटने वाला भरम है.
चौखट ही अब चरम है
तत्पश्चात सब भरम है.
कहता था तू बलवान है
तुझको सबका ज्ञान है
एक वायरस की दस्तक ने
तेरा तोड़ दिया अभिमान है
यह मानव की कृति या कि प्रकृति
कोई ना जाने क्या मरम है
चौखट ही अब चरम है
तत्पश्चात सब भरम है.
चौखट ही अब चरम है
तत्पश्चात सब भरम है.
जग जो आज ठहर गया
यह तेरा-मेरा करम है.
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