Tuesday, June 8, 2010

सफलता-असफलता जीवन का हिस्सा: अर्जुन रामपाल

अर्जुन रामपाल इन दिनों बेहद व्यस्त हैं। वे रात भर रा.वन फिल्म की शूटिंग करते हैं और दिन में राजनीति की प्रमोशनल गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं। ओम शांति ओम फिल्म की रिलीज के पहले अर्जुन की जिंदगी में ऐसा दौर भी आया था, जब वे घर में खाली बैठे रहते थे और उनके फोन की घंटी नहीं बजती थी, लेकिन अब वक्त बदल गया है। बातचीत अर्जुन रामपाल से।
राजनीति में आपका जो कैरेक्टर है, आप वैसे कितने कैरेक्टर के टच में हैं?
जब राजनीति जैसी फिल्म आप कर रहे हैं, तो सबसे पहले आपको डायरेक्टर का विजन समझना होता है। प्रकाश झा ने महाभारत की कहानी को मॉडर्न स्टाइल में रखा है। मेरा किरदार महाभारत के भीम जैसा है। पृथ्वीराज प्रताप पढ़ा-लिखा है। वह खानदानी पॉलिटीशियन है। वह लाउडी भी है। वह सोच-समझकर रिएक्ट नहीं करता। वह एग्रेसिव है, लेकिन जब पिघलता है, तो प्यारी चीजें करता है। उस हिसाब से कैरेक्टर को निभाना आसान नहीं था। मैंने यंग पॉलिटीशियन को ऑब्जर्व किया। उनकी चाल-ढाल, अदाएं देखीं। मैंने देखा कि यंग पॉलिटीशियन पायजामा-कुर्ता के साथ रिबॉक का जूता पहनते हैं। वह मैंने अपने किरदार में डाला है। बाकी जैसा किरदार लिखा गया था, वैसा मैंने किया। मेरा किरदार मिट्टी से जुड़ा है। प्रकाश झा ग्रामीण भारत को करीब से जानते हैं। वे राजनीति को करीब से जानते हैं। उन्होंने अपनी नॉलेज हमारे साथ शेयर की। वे क्लियर थे कि उन्हें क्या चाहिए? राजनीति में काम करने का अनुभव मजेदार रहा।
रा.वन के बारे में कुछ बताएंगे?
इसकी शूटिंग अभी शुरू हुई है। उसमें मेरा स्पेशल लुक है। शाहरुख बहुत प्यारी फिल्म बना रहे हैं। इंडियन सुपरहीरो के हिसाब से यह बहुत प्यारी फिल्म हो सकती है।
हाउसफुल जैसी फिल्म करते समय एक ऐक्टर के तौर पर आप क्या इंटेलीजेंस भूल जाते हैं?
हाउसफुल को लोग एंज्वॉय कर रहे हैं। मुझे अच्छे मैसेज आ रहे हैं। ऐसी फिल्म से फैन फॉलोइंग बढ़ती है। हम क्यों बोरिंग इंटेलीजेंट फिल्म ही बनाएं? हर तरह की फिल्म बनती रहनी चाहिए।
आपकी छवि अजातशत्रु की है। फिल्म इंडस्ट्री में कोई आपकी बुराई नहीं करता। क्या यह संस्कार बचपन के हैं?
हां। जो आप सोचते हैं, वही आपकी जिंदगी बन जाती है। पहले आपको तय करना चाहिए कि आपको कैसी जिंदगी चाहिए? फिर वैसी सोच होगी। जब आप लो फेज में होते हैं, तो दूसरों पर इल्जाम लगाना आसान होता है। पर यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप और कमजोर हो जाते हैं। जब आप सफलता और असफलता का जिम्मा खुद लेते हैं, तो आप मजबूत बनते हैं। फिल्म नहीं चलती है, तो मैं उसका जिम्मा लेता हूं और फिल्म चलती है, तो उसका श्रेय सबके साथ शेयर करता हूं।
आप इस बात को मानते हैं कि ओम शांति ओम और रॉक ऑन की सफलता के बाद आपको दूसरा जीवन मिला है?
दूसरा जीवन मिलना मेरी समझ से अलग बात है। मेरा मानना है कि सफलता-असफलता जीवन का हिस्सा है। इससे सबको दो-चार होना पड़ता है। यह अनुभव भी है। मुझे अपने काम से लगाव है। मैं काम करता हूं, ताकि लोगों को खुश कर सकूं। लोगों को खुशी मिलती है, तो मुझे भी खुशी मिलती है।
इस बात में कितनी सच्चाई है कि रॉक ऑन से आपका पब्लिक कनेक्शन हुआ। वह किरदार क्लिक कर गया। क्या फिल्म साइन करते समय इस बात का अंदाजा था?
अगर हमें पहले से पता होता, तो वैसी फिल्में ही करते। जब मैं फिल्म साइन करता हूं, तो पहला सवाल खुद से करता हूं कि क्या यह फिल्म देखने मैं थिएटर में जाऊंगा? क्या किरदार मुझे अच्छा लग रह रहा है? जैसे राजनीति का किरदार है। मैं नयापन लाने की कोशिश करता हूं। मुझे हीरोइज्म वाली फिल्में बोरिंग लगती हैं। आज के दर्शक जानते हैं कि अर्जुन, रणबीर कपूर, शाहरुख खान सबकी अपनी पर्सनैल्टी है, लेकिन ये करते क्या हैं? दर्शक काम देखते हैं। वह जमाना गया। अब कलाकार टाइपकास्ट नहीं होते। अब ऐक्टर हर तरह का किरदार कर रहे हैं। मैं तो कहता हूं किफिल्म से बड़ा कोई नहीं होता।
आपने प्रोडक्शन कंपनी खोली थी। उसे एडवेंचर के तौर पर लेते हैं या वह डिसऐडवेंचर हो गया?
सफलता और असफलता मियां-बीवी की तरह हैं। मैं यह नहीं बताऊंगा कि कौन मियां है और कौन बीवी? असफलता का मतलब हमेशा दुख ही नहीं होता। मेकिंग में बहुत खुशियां मिलती हैं। मैं और फिल्में बनाऊंगा। दिल्ली के बाद जल्द ही मैं मुंबई में अपना रेस्टोरेंट खोलने जा रहा हूं। मेरी सोच है कि बिजनेस कर रहा हूं या फिल्म बना रहा हूं और यदि उससे पांच सौ लोगों का चूल्हा जल रहा है, तो मैं उसे करूंगा। डेवलपमेंट को कभी नहीं रोकना चाहिए।
-रघुवेंद्र सिंह

दे रही हूं बहुत कुछ: दीपल शॉ | मुलाकात

दीपल शॉ को लोग ग्लैमरस और सेक्सी गर्ल कहते हैं, लेकिन वे इनसे अलग भी हैं। ए वेडनेसडे, कर्मा और होली, राइट या रांग आदि फिल्में करने वाली अभिनेत्री दीपल अब महिला प्रधान फिल्म विकल्प में एक महत्वाकांक्षी लड़की के किरदार में दिखेंगी। बातचीत दीपल से..।
आप कहां थीं? मीडिया से आपने दूरी क्यों बना रखी है?
मीडिया ने मुझे बहुत परेशान किया। मीडिया ने एक ढांचा बना दिया है कि दीपल वीडियो एलबम टाइप गर्ल है, जबकि मैं अपनी हर फिल्म में एकचुनौतीपूर्ण भूमिका निभा रही हूं। मैंने तय किया है कि मैं मीडिया से दूर रहूंगी और अपना काम करूंगी। फिर काम अपने आप बोलेगा। मैं मीडिया से नाराज नहीं हूं। दरअसल, मीडिया मुझे समझ नहीं पा रहा है। मैं उस दिन का इंतजार करूंगी, जब मीडिया मुझे समझेगा।
आपको मीडिया द्वारा बनाया गया ढांचा पसंद नहीं है?
ढांचा पसंद होने की बात नहीं है। मुझे पता है किबतौर कलाकार मैं दर्शकों को बहुत कुछ दे रही हूं और दर्शक उसे स्वीकार भी कर रहे हैं। लेकिन मीडिया इस बात को स्वीकार न करके मुझे बार-बार पुराने ढांचे में डाल रहा है। मुझे ग्लैमर गर्ल कहलाना पसंद है। मेरी उम्र है ग्लैमर गर्ल कहलाने की, लेकिन यह कहना कि दीपल सिर्फ एक ग्लैमर गर्ल है, गलत है।
विकल्प कैसी फिल्म है?
थ्रिलर है। इसका सार यह है कि जो आप चुनते हैं, वही बनते हैं। यह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर रिषिका की कहानी है। वह कोल्हापुर में पली-बढ़ी है। अनाथ है। बहुत छुई-मुई सी लड़की है। वह दिखने में ग्लैमरस नहीं है। दब-दब कर जीती है, लेकिन उसके मन में चाह है कि टेक्नोलॉजी केसहारे वह अपने देश का नाम रोशन करे। रिषिका अपनी पहचान बना पाती है या नहीं? अपने देश का नाम रोशन कर पाती है या नहीं? सफल होती है या नहीं? यही फिल्म में दिखाया गया है।
विकल्प से जुड़ने की वजह क्या रही?
फिल्म के निर्देशक सचिन ने कहानी सुनाने के बाद मेरा ऑडिशन नहीं लिया। उन्होंने कहा कि मुझे मेरी रिषिका मिल गई। मेरे जुड़ने की खास वजह यह है कि जिंदगी में पहली बार अच्छी परफॉर्मेस वाला रोल किसी ने मुझे दिया। मैं खुश हो गई। मैं अगर यह फिल्म नहीं करती, तो बेवकूफ कहलाती। इसकी पूरी कहानी मेरे इर्द-गिर्द घूमती है, इसीलिए कोई बड़ा ऐक्टर इसमें काम करने के लिए तैयार नहीं हुआ। इसमें सभी कलाकार एनएसडी के हैं। इसमें मुझे पहली बार एक मराठी गर्ल का किरदार निभाने का मौका मिला है। आपके लिए फिल्म को चलाना बहुत भारी होगा।
आप प्रेशर महसूस कर रही हैं?
दीपल एक फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चल रही है, तो जाहिर है कि डिस्ट्रीब्यूटर के लिए यह कॉमर्शियल सेटअप नहीं होगा, लेकिन दीपल कोशिश कर रही है। विकल्प की कहानी बहुत प्रेरक है। हमने एक अच्छी फिल्म बनाई है।
अपने करियर की अब तक की ग्रोथ को कैसे देखती हैं?
मेरे हिसाब से बहुत अच्छी है। मैं सकारात्मक सोचती हूं। मुझे मेरी सोच और लक्ष्य पता है। मेरा लक्ष्य अनोखा है। हिंदी फिल्मों में हीरोइने हमेशा सेकंडरी होती हैं। मैं उस ब्रांड को बदलना चाहती हूं। मैं समझदारी से आगे बढ़ रही हूं। अपने बारे में सिर्फ मैं जानती हूं और जब मैं विकल्प जैसी फिल्में करूंगी, तो बड़े निर्माता-निर्देशक भी मेरे बारे में जानेंगे। मैं दुनिया के हर सिनेमा पर अपनी छाप छोड़ना चाहती हूं।
टीवी को करियर के लिए विकल्प के तौर पर देखती हैं?
मैं टीवी में तभी जाऊंगी, जब मेरी वजह से टीवी में कोई वैल्यू ऐडिशन होगा। यदि टीवी मुझमें वैल्यू ऐड करेगा, तो मैं नहीं जाऊंगी। मेरे पास शो बिग बॉस का ऑफर आया था, लेकिन मैंने मनाकर दिया। मेरा जो लक्ष्य नहीं है, उसके बारे में मैं क्यों बात करूं?
-रघुवेंद्र सिंह

Thursday, April 15, 2010

मुझे आ रहा है मजा: हर्द कौर

पॉपुलर रैप सिंगर हर्द कौर कलर्स के शो आईपीएल रॉकस्टार में पहली बार एंकरिंग करती नजर आ रही हैं। बिंदास और बातूनी हर्द के लिए शो का अनुभव रोमांचक है। वे बताती हैं, लोग अंदाजा नहीं लगा सकते कि उस वक्त मैं कितनी खुश थी, जब कलर्स ने इस शो की एंकरिंग करने के लिए मुझसे कहा था। मैं क्रिकेट की फैन हूं और संगीत मेरे खून में है। मैं शो को एंज्वॉय कर रही हूं। मुझे बहुत मजा आ रहा है।
हर्द आगे बताती हैं, मैं पहली बार एंकरिंग कर रही हूं। मेरे मन में थोड़ा सा डर था। जब मैं पहले दिन एंकरिंग के लिए उतरी, तो समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे करूं। फिर मैंने खुद से कहा कि हर्द तू जैसी है, वैसी ही यहां भी रह। अपने ही अंदाज में शो को संभाल। लोगों के बीच परफॉर्म करने का अनुभव तुझे है ही। लोग तो तेरी पर्सनैल्टी के फैन पहले से ही हैं। यकीन कीजिए, लोगों को मेरा एंकरिंग का यह अंदाज अच्छा लग रहा है। हर्द कौर को भले ही हजारों लोगों के बीच परफॉर्म करने का अनुभव है, फिर भी उन्हें आईपीएल रॉकस्टार के लिए खासी तैयारी करनी पड़ी। वे बताती हैं, मेरी हिंदी उतनी अच्छी नहीं है। मुझे हिंदी के अपने डिक्शन पर मेहनत करनी पड़ी। मैं बहुत संभल-संभलकर हिंदी के वर्ड बोलती हूं। डरती हूं कि 3 इडियट्स के चतुर सिंह की तरह कहीं बलात्कार न हो जाए। गौरतलब है कि हर्द इंग्लैंड में पली-बढ़ी हैं। यही कारण है कि उनकी हिंदी पर मजबूत पकड़ नहीं है, लेकिन वे शुद्ध हिंदी बोलने का अभ्यास कर रही हैं।
हर्द को इस शो का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा लगा। वे कहती हैं, इंडिया में ऐसा पहली बार हो रहा है। डांस, म्यूजिक, एक्टिंग पर कई रियलिटी शो बन चुके हैं, लेकिन क्रिकेट और संगीत पर पहली बार शो बना है। मुझे ऐसा लग रहा है कि क्रिकेट और संगीत की शादी हो गई है। मैं कहूंगी कि अगले साल फिर यह शो आना चाहिए। मुझे यकीन है कि लोग आईपीएल खत्म होने के बाद शो को मिस करेंगे।
झलक दिखला जा रियलिटी शो में डांस का जलवा दिखाने वाली हर्द बहुत जल्द बड़े पर्दे पर नजर आएंगी। इस बार वे सिर्फ फिल्म के किसी गाने में नहीं, बल्कि अभिनय करती नजर आएंगी। हर्द ने निखिल आडवाणी की फिल्म पटियाला हाउस साइन की है। उन्होंने अपने हिस्से की शूटिंग खत्म कर ली है। हर्द फिल्म में अक्षय कुमार की कजिन बनी हैं। वे बताती हैं, फिल्म में लोगों को मेरा बिंदास अंदाज देखने को मिलेगा। फिलहाल, मैं अपने रोल के बारे में खुलकर नहीं बता सकती, लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि पटियाला हाउस में मेरा काम लोगों को चौंकाएगा।
-रघुवेंद्र सिंह

Monday, April 12, 2010

मैं हूं ही ऐसा: जिमी शेरगिल | मुलाकात

फिल्म माचिस से माई नेम इज खान के बीच आई हर फिल्म में जिमी शेरगिल की प्रशंसा हुई, लेकिन वे कभी इस बात का ढोल पीटते नहीं दिखे। शांत स्वभाव के जिमी की अपनी दुनिया और उनका छोटा सा परिवार है। वे फिल्मों की शूटिंग खत्म करने के बाद अपनी दुनिया में लौट जाते हैं। वे फिल्मी इवेंट और पार्टी में नहीं जाते। अनायास मीडिया के बीच भी वे नहीं रहते। बातचीत जिमी से..।
माई नेम इज खान की सफलता का खुद पर या अपने करियर पर क्या असर देखते हैं?
किसी ने सोचा नहीं था कि माई नेम इज खान में मेरा वेलप्लेस्ड रोल होगा। सरप्राइजिंग रेस्पांस मिला, लेकिन फिल्म की रिलीज के बाद मैंने कभी खुद को बदलने की कोशिश नहीं की। बहुत से लोग कहते हैं कि तुम्हें बाहर जाना चाहिए, पार्टी में दिखना चाहिए। लेकिन मेरा मानना है कि हर व्यक्ति अपने तरीके से बना होता है। यदि आप उसे मोड़ने की कोशिश करते हैं, तो आप प्रकृति के विरुद्ध जा रहे हैं। ऐंड ऑफ द डे, यदि आपकी किस्मत में लिखा होगा, तो आपको जरूर मिलेगा। मैं काम खत्म करके घर जाना चाहता हूं, फिल्म देखना, किताब, स्क्रिप्ट पढ़ना चाहता हूं। मैं हूं ही ऐसा।
क्या वजह है कि आप मीडिया के बीच ज्यादा नहीं होते?
मैं कंफर्टेबल नहीं फील करता हूं। लोग अलग-अलग मुद्दों पर अपनी राय देते हैं। मोहब्बतें के समय मैंने यह सब बहुत किया, लेकिन देखा कि उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
क्या फिल्मों के चरित्रों से समझा जा सकता है कि आप धीर-गंभीर हो गए हैं?
मैं सीरियस नजर आता हूं। मुझे किसी के सामने खुलने में थोड़ा वक्त लगता है। यदि मैं खुल गया, तो फिर दोस्त की तरह बिहेव करता हूं। शायद मैंने जो फिल्में की हैं, उनसे वैसी इमेज बन गई है। ए वेडनेसडे की रिलीज के समय एक बार रेडियो स्टेशन से फोन आया कि एक स्कूल के बच्चे का कहना है कि जिमी को जब हमने मुन्नाभाई एमबीबीएस में देखा, तो उस पर तरस आ रहा था, लेकिन जब ए वेडनेसडे में देखा, तो उससे डर लगा। इस पर उन्होंने मेरा रिएक्शन पूछा। मैंने कहा कि उन्हें डर आरिफ से लग रहा होगा और तरस जहीर पर आ रहा होगा। उसने जिमी पर न तरस खाया होगा, न उससे डरा होगा।
क्या आपको लगता है कि आपकी प्रतिभा का इंडस्ट्री सही तरीके से इस्तेमाल कर पाई है?
मैं इतना नहीं सोचता। मैं सोचता हूं कि आपको किसी ने बुलाया, आपको एक रोल दिया। आपने ईमानदारी से काम किया, लोगों ने उसकी तारीफ कर दी। बस। मैं बचपन से एक्टर नहीं था। मैं अपने डायरेक्टर आदित्य चोपड़ा, तिग्मांशु धूलिया, राजकुमार हिरानी, नीरज पांडे का शुक्रगुजार हूं। मैं अपनी परफॉर्मेस का क्रेडिट अपने डायरेक्टर को देता हूं। मेरे हिसाब से सबके लिए सही टाइम होता है।
इधर आप इंटेंस भूमिकाओं को तवज्जो दे रहे हैं। लोग आपको फिर रोमांटिक अंदाज में देखेंगे?
मेरे अभिनय की शुरुआत माचिस फिल्म से और इंटेस कैरेक्टर से हुई। मोहब्बतें से चॉकलेटी ब्वॉय की इमेज बन गई। मुन्नाभाई एमबीबीएस में फिर इंटेस कैरेक्टर मिला। फिर लगे रहो मुन्नाभाई, यहां, ए वेडनेसडे और हाल में माई नेम इज खान आईं। मैंने कोशिश की कि एक तरह के किरदार में न बंध जाऊं। मैं सब करना चाहता हूं। अब मैं कॉमेडी भी करना चाहता हूं।
आप कॉमेडी फिल्म करना चाहते हैं?
हां, यदि आप मुझसे पूछेंगे, तो मैं कहूंगा कि लाइट हार्टेड फिल्म करना चाहता हूं। इंटेंस फिल्म चूस लेती है कलाकार को। मुझे लगता है कि मैं लाइट हार्टेड फिल्मों के लिए बना हूं, लेकिन मुझे कोई मौका नहीं देता। मेरे पास वैसी फिल्में आती ही नहीं। मेरे पास एक कॉमेडी फिल्म टॉम डिक ऐंड हैरी आई और मैंने उसे आंख मूंदकर स्वीकार कर लिया, लेकिन मैं जो फिल्में कर रहा हूं, उनसे खुश हूं।

-रघुवेंद्र सिंह

Friday, April 9, 2010

चाहिए ग्लैमर और रोमांस: रुसलान मुमताज

जाने कहां से आई है रुसलान मुमताज की तीसरी फिल्म है। निखिल आडवाणी निर्मित और मिलाप झावेरी निर्देशित इस फिल्म में उन्होंने यंग सुपर स्टार देश की भूमिका निभाई है। पहली दोनों फिल्मों एमपी 3 और तेरे संग में कॉलेज ब्वॉय की भूमिका निभा चुके रुसलान सुपर स्टार की भूमिका को लेकर बेहद उत्साहित हैं। वे कहते हैं, फिल्म जाने कहां से आई है मेरे करियर का टर्निग प्वाइंट साबित हो सकती है। इसमें निखिल आडवाणी ने मुझे एक सुपर स्टार की तरह प्रस्तुत किया है। पहली दोनों फिल्मों से लोगों ने मुझे नोटिस किया था, लेकिन इसमें मुझे देखने के बाद इंडस्ट्री के लोग कहेंगे कि एक और हीरो मिल गया। इस फिल्म के बाद मुझे हिंदी फिल्मों के हीरो वाले रोल मिलेंगे। ऐसी मुझे उम्मीद है।
फिल्म और अपनी भूमिका के बारे में रुसलान बताते हैं, फिल्म जाने कहां से आई है में एक युवक राजेश की कहानी है। राजेश को प्यार नहीं मिलता। वीनस से एक लड़की तारा अपने प्यार की खोज में धरती पर आती है। दोनों के बीच रुकावट बनता है मेरा किरदार। मेरे किरदार का नाम है देश। देश अपनी पहली फिल्म से सुपर स्टार बन गया है। यह किरदार रितिक रोशन से प्रेरित है। रुसलान मेंशन करते हैं, राजेश का किरदार रितेश देशमुख और जैक्लीन फर्नाडिस तारा का किरदार निभा रही हैं।
एमपीथ्री और तेरे संग फिल्मों में लीड रोल कर चुके रुसलान जाने कहां से आई है में पहली बार रितेश देशमुख के साथ सेकेंड लीड में हैं। वे कहते हैं, रितेश सक्सेसफुल एक्टर हैं। मैं उनका फैन हूं। एक वजह यही है कि मैंने यह फिल्म की। दूसरी वजह यह है कि देश का किरदार मुझे अच्छा लगा। फिर यह निखिल आडवाणी की फिल्म है। मैं ना कह ही नहीं सकता था। मैं अपने डिसीजन से खुश हूं। यह फिल्म मेरे लिए री-लॉन्च जैसी है।
जाने कहां से आई है फिल्म करने का अनुभव रुसलान बांटते हैं, बहुत मजेदार अनुभव रहा। रितेश डाउन टु अर्थ हैं। वे कभी स्टार की तरह बिहेव नहीं करते। जैक्लीन फर्नाडिस नेचर की भी बहुत खूबसूरत हैं। फिल्म के निर्देशक मिलाप झावेरी यंग हैं। हम सब सेट पर बहुत मस्ती करते थे। इस फिल्म ने मुझे रितेश, जैक्लीन, मिलाप, सोनल और विशाल जैसे अच्छे दोस्त दिए।
रुसलान की अगली फिल्म निखिल पंचमिया की मस्तंग मामा होगी। वे बताते हैं, यह कॉमेडी फिल्म है। उसमें मैं फिर सोलो हीरो के तौर पर नजर आऊंगा। रुसलान आगे कहते हैं, फिल्म जाने कहां से आई है में मुझे जैसे प्रस्तुत किया गया है, मैं वैसे ही रोल वाली फिल्में करना चाहता हूं। मैं कॉमर्शियल फिल्म करना चाहता हूं, जिसमें खूब ग्लैमर हो, डांस और रोमांस हो।
-रघुवेंद्र सिंह

अभिनय की पाठशाला

ट्यूशन केवल आपका बच्चा ही नहीं पढ़ता, सिल्वर स्क्रीन पर चमकने वाले सितारे भी गुजरते हैं ऐसी ही प्रक्रिया से। बॉलीवुड में एक्िटग स्कूल्स के ट्रेडीशन और करेंट ट्रेंड पर निगाह डाली रघुवेन्द्र सिंह ने -
चार दशक पहले तक फिल्म बिरादरी के लोगों का मानना था कि अभिनय जन्मजात कला है। इसे प्रशिक्षण के द्वारा इंसान को नहीं सिखाया जा सकता, लेकिन आज स्थिति पलट गई है। अब किसी कलाकार को ब्रेक देने से पहले निर्माता-निर्देशकों का पहला सवाल होता है कि क्या उन्होंने अभिनय सीखा है? उसका प्रशिक्षण लिया है? यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री से आए रणबीर कपूर और सोनम कपूर को भी अभिनय की बारीकियां सीखनी पड़ीं। उन्होंने भी एक्टिंग की क्लास अटेंड कीं।
[हंसी का पात्र बनते थे प्रशिक्षु]
तमाम विरोधों के बावजूद रोशन तनेजा 1963 में पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में एक्टिंग डिपार्टमेंट शुरू करने में सफल रहे। इससे पहले नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में थिएटर की एक्टिंग सिखाई जाती थी। रोशन तनेजा के पहले बैच के विद्यार्थियों में सुभाष घई और असरानी भी थे। ये लोग जब अभिनय का प्रशिक्षण लेकर फिल्म इंडस्ट्री में काम तलाशने निकले तो लोग उनका मजाक उड़ाते थे। असरानी बताते हैं, ''लोग हमें देखकर हंसते थे कि डिप्लोमा लेकर आए हैं एक्टिंग करने।'' रोशन तनेजा बताते हैं, ''तब मैं असरानी से कहता था कि पांच साल इंतजार करो। मेरा कहा सच निकला। पांच साल बाद लोगों का नजरिया एकाएक बदल गया। मेरे स्टूडेंट्स को फिल्मों में काम मिलने लगा।''
[गुरुओं की बढ़ने लगी डिमांड]
जया बच्चन, शबाना आजमी, ओम पुरी, नसीरूद्दीन शाह, अनिल धवन, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे कई कलाकारों की फिल्मों में सफलता के बाद रोशन तनेजा से प्रशिक्षण लेने वालों की संख्या बढ़ने लगी। एफटीआईआई से प्रशिक्षित कलाकारों पर फिल्म के निर्माता-निर्देशकों की नजर रहने लगी। रोशन तनेजा बताते हैं, ''1973 में एफटीआईआई मैंने छोड़ दिया। वहां राजनीति होने लगी थी। सरकार ने एक्टिंग डिपार्टमेंट भी बंद कर दिया। मैंने 1976 में मुंबई में रोशन तनेजा एक्टर्स स्टूडियो खोला। अनिल कपूर और गुलशन ग्रोवर मेरे पहले बैच के स्टूडेंट थे। माधुरी दीक्षित, संजय दत्त, जूही चावला, अजय देवगन, मनीषा कोइराला, सुनील शेंट्टी, रानी मुखर्जी, सनी देओल, आमिर खान, तब्बू, करिश्मा कपूर, गोविंदा, सैफ अली खान, अभिषेक बच्चन, सोनम कपूर और रणबीर कपूर मेरे स्टूडेंट रहे हैं।'' 1972 में एफटीआईआई में रोशन तनेजा के स्टूडेंट रहे किशोर नमित कपूर ने पच्चीस साल पहले मुंबई में किशोर नमित कपूर एक्टिंग इंस्टीट्यूट खोला। फिल्म इंडस्ट्री के लोगों में उनका इंस्टीट्यूट बेहद लोकप्रिय है। प्रियंका चोपड़ा, रितिक रोशन, अक्षय खन्ना, अरबाज खान, अर्जुन रामपाल, जॉन अब्राहम, करीना कपूर, नील नितिन मुकेश, विवेक ओबराय उनके स्टूडेंट रहे हैं।
[मंहगे हो गए अभिनय के अध्यापक]
रोशन तनेजा और किशोर नमित कपूर के साथ बैरी जॉन, अनुपम खेर और सुभाष घई अभिनय के लोकप्रिय अध्यापक माने जाते हैं। बैरी जॉन का द बैरी जॉन एक्टिंग स्टूडियो, सुभाष घई का ह्विस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल और अनुपम खेर का एक्टर प्रिपेयर्स मुंबई आए संघर्षशील कलाकारों का फेवरिट एक्टिंग स्कूल है। किशोर नमित कपूर कहते हैं, ''निर्माता-निर्देशकों को इन दिनों प्रोफेशनल कलाकार चाहिए। अब किसी के पास रीटेक लेने का टाइम नहीं है। यही वजह है कि एक्टिंग गुरुओं और एक्टिंग संस्थानों की डिमांड बढ़ रही है।'' प्रोफेशनल कलाकारों की बढ़ी डिमांड से एक्टिंग स्कूल मुनाफे का बिजनेस बन गया है। अनुपम खेर ने अपने स्कूल की शाखाएं देश के कई शहरों सहित विदेश में भी खोल दी हैं। सुभाष घई भी पीछे नहीं हैं। दिलचस्प बात है कि इन लोकप्रिय अध्यापकों के शिष्य बनने का सौभाग्य सिर्फ अमीर विद्यार्थियों को मिलता है। इन सभी अध्यापकों के संस्थान में चार महीने के एक्टिंग कोर्स की फीस एक से डेढ़ लाख रूपए है। इस बाबत बैरी जॉन तर्क देते हैं, ''अंधेरी में मैंने अपना एक्टिंग स्टूडियो खोला है। यह मुंबई का बेहद मंहगा एरिया है। रेंट, इक्वीपमेंट सब चीजें महंगी हैं। मैं बिजनेसमैन नहीं हूं। आर्टिस्ट हूं। फिर भी सब जोड़कर फीस वाजिब है।'' सुभाष घई कहते हैं, ''फीस मंहगी तो है, लेकिन हम जो नई शाखाएं खोलने जा रहे हैं, वहां फीस कम होगी। स्टूडेंट अफोर्ड कर सकेंगे।''
[तैयार हो रहे हैं नई पीढ़ी के सितारे]
इस वक्त किशोर नमित कपूर के एक्टिंग स्कूल में सुनील शेंट्टी के भांजे कबीर, राजेश रोशन के बेटे ईशान रोशन, डेविड धवन के बेटे वरूण धवन, बोनी कपूर के बेटे अर्जुन कपूर ट्रेनिंग ले रहे हैं। रोशन तनेजा के स्कूल में दिलीप ताहिल के बेटे और सलमान खान के परिवार की नाजिया एक्टिंग सीख रही हैं। जो छात्र मोटी फीस नहीं वहन कर सकते, उनके लिए किशोर नमित कपूर एक ट्रस्ट तथा बैरी जॉन एक आश्रम खोलने की योजना बना रहे हैं। वहां छात्रों को निशुल्क एक्टिंग की ट्रेनिंग दी जाएगी!
[टैलेंट बिना नहीं होती एक्टिंग]
रोशन तनेजा को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का पहला 'एक्टिंग गुरू' कहा जाता है। वे 1950 में स्कॉलरशिप पर अमेरिका एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने गए। चार साल बाद वे मुंबई लौटे और उन्होंने एक्टिंग की ट्रेनिंग देने की वकालत की।
रोशन तनेजा से बातचीत के विशेष अंश-
[ऐसा माना जाता है कि अभिनय जन्मजात गुण है। फिर आपके जेहन में अभिनय सिखाने की बात कैसे आई?]
यदि डांस और सिंगिंग सिखाई जा सकती है तो एक्टिंग क्यों नहीं। एक्टिंग भी तो कला है। लता मंगेशकर और रवि शंकर जैसे महान लोगों ने संगीत की ट्रेनिंग ली है। मैं स्वयं एक्टिंग की ट्रेनिंग लेकर लौटा था। मैं भी मानता हूं कि एक्टिंग के लिए टैलेंट जरूरी है। वरना आप एक्टिंग नहीं कर सकते।
[जब आपने एक्टिंग की ट्रेनिंग देने की पहल की तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी?]
लोग कहते थे कि देखो भाई, सबको एक्टिंग सिखाने चले हैं। अमेरिका से ट्रेनिंग लेकर आए हैं। मेरी जर्नी फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, पुणे से शुरू हुई। 1963 में हमने वहां दो साल का एक्टिंग कोर्स शुरू किया। पांच साल के भीतर मेरे पहले स्टूडेंट नवीन निश्चल को सावन भादो फिल्म में हीरो के तौर पर ब्रेक मिला। बाद में जया बच्चन, शबाना आजमी, ओम पुरी, डैनी, नसीरूद्दीन शाह, शत्रुघ्न सिन्हा के चमकने के बाद तो लोगों को एक्टिंग की ट्रेनिंग जरूरी लगने लगी। अब कहते हैं कि पहले जाओ एक्टिंग की ट्रेनिंग लेकर आओ।
[दिलीप कुमार, अशोक कुमार और अमिताभ बच्चन ने एक्टिंग की ट्रेनिंग नहीं ली। वे एक्टिंग के लीजेंड कहलाते हैं। क्या कहेंगे?]
अशोक कुमार, दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म देखिए। कितना बुरा काम उन्होंने किया है। अशोक कुमार की बेटी प्रीति गांगुली मेरे यहां ट्रेनिंग के लिए आई थीं। एक बार दिलीप साब से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि हमको दस साल लग गए एक्टिंग सीखते-सीखते। हम पढ़े-लिखे थे। अपनी गलतियों से सीखते गए। अशोक कुमार ने कहा था कि उन्होंने ऑन जॉब एक्टिंग सीखी। अमिताभ बच्चन आज भी मुझसे कहते हैं कि यदि मैंने एक्टिंग की ट्रेनिंग ली होती तो आज कहीं और होता।
[शाहरुख की सफलता का क्रेडिट नहीं ले सकता : बैरी जॉन ]
मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं। मैंने आज तक हजारों लोगों को ट्रेनिंग दी है, लेकिन सब शाहरुख खान जैसी सफलता क्यों नहीं हासिल कर पाए? शाहरुख ने जो कुछ अचीव किया है, यदि वह मेरे कारण है तो फिर मेरे और स्टूडेंट वह सब क्यों नहीं अचीव कर पाए? शाहरुख ने जो अचीव किया है उसका क्रेडिट उन्हें जाता है, क्योंकि मैंने उन्हें मुंबई जाने के लिए नहीं कहा था। मैंने शाहरुख खान को सिर्फ फाउंडेशन दी। उस वक्त मेरा एक्टिंग स्कूल नहीं था। मैं टैग (थिएटर एक्शन ग्रुप) से जुड़ा था। मैं वहां स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग देता था। मैं और शाहरुख साथ ट्रेनिंग करते थे। हम वर्कशॉप करते थे। कैरेक्टर क्रिएट करते थे। उन्हें परफॉर्म करते थे। शाहरुख अच्छे ऑबजर्वर हैं। उनकी जर्नी फेयरी टेल की तरह है। उन्होंने अपनी जर्नी खुद तय की है। कॅरियर को समझदारी से हैंडल किया है। शाहरुख की सफलता का क्रेडिट मैं नहीं ले सकता।
[बेस्ट स्टूडेंट है रितिक : किशोर नमित कपूर (रितिक रोशन के ट्रेनर)]
राकेश रोशन एक्टिंग की ट्रेनिंग में बिलीव नहीं करते थे। रितिक अपनी मर्जी से मेरे पास आया था। उस वक्त वह हड्डियों का ढांचा था। जब उसने बात करनी शुरू की तभी मैंने पकड़ लिया कि वह हकलाता है। उसको बैकएक था। डॉक्टर ने उसे मना किया था एक्टिंग और डांस करने से। रितिक मेरा बेस्ट स्टूडेंट है। वैसा स्टूडेंट आज तक मुझे नहीं मिला। रितिक अनअज्यूंिमंग था। रितिक जैसा डेडीकेशन मैंने आज तक किसी स्टूडेंट में नहीं देखा। उसने कभी एक भी क्लास मिस नहीं की। उसने अपनी कमियों को सुधारा। रितिक ने सिंगिंग सीखी। सिंगिंग के जरिए उसने अपनी सांस पर कंट्रोल करना सीखा। रितिक ने बाद में मुझे बताया कि वह क्लास में डरता था और रोज ईश्वर से प्रार्थना करता था कि हकला न दे। थ्योरी कंप्लीट हुई तो हमने रितिक के साथ एक सीन शूट किया। रितिक वह कैसेट घर ले गया। उसकी मां पिंकी ने कैसेट देखा और वह रो पड़ीं। उन्होंने वह कैसेट राकेश रोशन को दिखाया। उस रात दो बजे राकेश जी का फोन आया कि बेटा तो पैदा हुआ था, लेकिन आज स्टार पैदा हो गया।

मुकेश मिल-भूतों का बसेरा है!

हॉरर और थ्रिलर फिल्मों की शूटिंग का प्रसिद्ध स्थल है मुकेश मिल। यहाँ खौफनाक फिल्में ही नहीं बनतीं, इससे जुड़े किस्से भी पैदा कर देते हैं रीढ़ में सिहरन-
बीते साल की हिट फिल्म राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज का वह भयावह इंटरवल सीन सभी को याद होगा, जब कंगना रानाउत के भीतर पहली बार भूत प्रवेश करता है और वे अजीब सी आवाज में चीखते-चीखते दीवार पर टंग जाती हैं। उस दृश्य में इमरान हाशमी और अध्ययन सुमन भी थे। यह दृश्य फिल्माया गया था मुंबई में हॉरर फिल्मों की परफेक्ट लोकेशन मुकेश मिल में।
158 साल पुरानी मुकेश मिल के बारे में कहा जाता है कि यहां आत्माओं का वास है। कुछ फिल्मकार एवं कलाकार भूतों के डर से मिल में कभी शूटिंग करने नहीं गए, वहीं मधुर भंडारकर जैसे फिल्मकार मुकेश मिल को अपने लिए लकी मानते हैं और अपनी हर फिल्म के कुछ दृश्यों की शूटिंग यहां जरूर करते हैं। कुछ दिनों पहले विपुल शाह ने अपनी नई फिल्म एक्शन रिप्ले का होली गीत ऐश्वर्य राय बच्चन और नेहा धूपिया पर यहीं फिल्माया।
[आग में झुलसा अतीत]
मुकेश मिल का निर्माण 1852 में हुआ था। दस एकड़ की जमीन पर बनी इस मिल में कपड़े बनते थे। 1970 में मुकेश मिल शॉट सर्किट की वजह से पहली बार आग में झुलसी थी, लेकिन दो साल बाद मिल फिर से सुचारू रूप से चलने लगी। लगभग एक दशक बाद जब दोबारा यह मिल आग की चपेट में आयी तो संवर और संभल न सकी। इस बार आग की लपटें इतनी तेज और भयावह थीं कि मुकेश मिल का लगभग हर कोना कालिख में सन गया। कपड़े बनाने की मशीनें जल गईं, मिल की ऊंची दीवारें ध्वस्त हो गईं और साढ़े तीन हजार लोग अचानक बेरोजगार हो गए। मुकेश मिल खंडहर में तब्दील हो गयी। 1984 से मुकेश मिल को फिल्मों की शूटिंग के लिए किराए पर दिया जाने लगा। मिल खंडहर बन चुकी थी, इसलिए हॉरर और थ्रिलर फिल्मों की शूटिंग यहां तेजी से होने लगी और कुछ ही समय में मुकेश मिल इस किस्म की फिल्मों के लिए परफेक्ट लोकेशन बन गई।
[दफ्तर बन गए मेकअप रूम]
मुकेश मिल दक्षिण मुंबई के कोलाबा में एन ए सावंत मार्ग पर स्थित है। चर्चगेट रेलवे स्टेशन से टैक्सी द्वारा पन्द्रह मिनट में यहां पहुंचा जा सकता है। यह मुंबई के शोरगुल से दूर समुद्र के किनारे स्थित है। मिल की चहारदीवारी में इंटर करते ही अजीब सा सन्नाटा महसूस होता है। मिल के प्रांगण में हर तरफ खंडहर नजर आता है। खंडहरों में कई पेड़ उग आए हैं। मिल के पिछले हिस्से से विशाल समुद्र का आकर्षक नजारा देखा जा सकता है। फिलहाल, मिल के सिर्फ छोटे दफ्तर सलामत हैं। इनमें कुछ दफ्तरों को अब प्रॉपर्टी, मेकअप और डांसर रूम बना दिया गया है। गत छब्बीस वर्षो में मुकेश मिल में अनगिनत फिल्मों, म्यूजिक वीडियो, सीरियल और विज्ञापनों की शूटिंग हो चुकी है। हाल के वर्षो में भूतनाथ, राज-द मिस्ट्री, कुर्बान, जश्न, राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज, एसिड फैक्ट्री, एक खिलाड़ी एक हसीना, दस कहानियां, आवारापन, हे बेबी, ट्रैफिक सिग्नल फिल्मों की शूटिंग यहां हुई।
[भूतों का मसला]
मुकेश मिल में रात में शूटिंग करने वालों के पास कोई न कोई किस्सा बताने के लिए है। युवा निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा बताते हैं, ''मिल में चिमनी के पास पीपल का एक पेड़ है। कहा जाता है कि वहां भूत-प्रेत रहते हैं। एक खिलाड़ी एक हसीना फिल्म की शूटिंग के समय फरदीन खान ने कहा कि यूनिट का कोई भी शख्स यदि अकेले चिमनी के पास चला जाएगा तो वे उसे दस हजार रूपए नकद देंगे, लेकिन कोई वहां जाने की हिम्मत न कर सका। टीवी एक्ट्रेस कामया पंजाबी बताती हैं, ''ठीक एक साल पहले की बात है। मैं जी टीवी के सीरियल बनूं मैं तेरी दुल्हन के अपने कमबैक सीन की शूटिंग कर रही थी। रात के आठ बजे थे। किसी ने आकर बताया कि मिल में दूसरी तरफ एक लड़की है। वह अजीब आवाज में बोल रही है कि यहां से चले जाओ। मेरी जगह है। मेरे डायरेक्टर और यूनिट के लोग उसे देखने गए। मैं भी जाने वाली थी, लेकिन मैं एक भयानक सीन अपने मन में नहीं बैठाना चाहती थी। वहां मेरी कई चीजें भी गायब हो गईं।'' उनके विपरीत तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता मधुर भंडारकर मुकेश मिल को लकी जगह मानते हैं। पेज थ्री, कॉरपोरेट, ट्रैफिक सिग्नल फिल्म के कुछ दृश्यों की शूटिंग उन्होंने मिल में की है। महेश भट्ट भी इसको बढि़या जगह मानते हैं।
[अब न होगी शूटिंग]
खंट्टी-मीठी यादों की सौगात देने वाली मुकेश मिल जल्द ही भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक नाम बनकर रह जाएगी। प्रॉपर्टी के मालिक विकास अग्रवाल मुकेश मिल के स्थान पर रेसिडेंसियल कम कमर्शियल कांप्लेक्स बनाने जा रहे हैं। मुकेश मिल को तोड़कर एक फाइव स्टार होटल बनाने की भी उनकी योजना है। यह सुनकर प्रख्यात फिल्मकार मुकेश भंट्ट बेहद आहत हैं। वे कहते हैं, ''मुकेश मिल के टूटने की बात सुनकर मेरा दिल बैठ गया। मैंने वहां अनगिनत फिल्में शूट की हैं। ऐसा लग रहा है कि मेरा वर्षो पुराना कोई दोस्त छूट रहा है। मैं ही नहीं पूरी फिल्म बिरादरी मुकेश मिल की कमी महसूस करेगी। मुकेश मिल्स फिल्म इंडस्ट्री का सबसे कीमती गहना है।''
[बकवास है यह बात]
प्रख्यात फिल्मकार महेश भंट्ट इस संदर्भ में अपना अनुभव कुछ यूं बांटते हैं, ''नब्बे में लोग मुकेश मिल को मनहूस जगह मानते थे। कहते थे कि वहां शूट हुई फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं। मैंने पहली बार मुकेश मिल में अपनी फिल्म सड़क का मुहूर्त किया था। लोगों ने कहा कि आप वह सीन कहीं और री शूट कर लीजिए। मैंने कहा कि आप जाहिलों जैसी बातें क्यों कर रहे हैं? मैंने री शूट नहीं किया और बाद में सड़क सुपरहिट हुई। फिल्म इंडस्ट्री के लोग अजीब हैं। यहां फिल्म नहीं चलती तो अपने कथानक को लोग दोष नहीं देते, मुकेश मिल को दोष देते हैं!''
-रघुवेन्द्र सिंह

Monday, March 29, 2010

मां और मुल्क बांटे नहीं जाते: राज कंवर

हमको दीवाना कर गए के बाद अब फिल्म निर्देशक राज कंवर सदियां लेकर आ रहे हैं। यह एक पीरियड फिल्म है। इससे राज कंवर शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को लॉन्च कर रहे हैं। वे ऋषि कपूर, हेमा मालिनी और रेखा के साथ मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। सदियां के बारे में जानिए राज कंवर से..
ऐसे बनी कहानी: बचपन में दादी मुझे पार्टीशन के टाइम की कहानी सुनाती थीं। वह कहानी मेरे दिमाग में थी। बचपन में मैंने पार्टीशन के बारे में लोगों से भी कई कहानियां सुनी थीं। मैं उन कहानियों पर बुक लिख रहा था सदियां। मैंने जब कहानी लोगों को सुनाई, तो सबने कहा कि आप इस पर फिल्म क्यों नहीं बनाते? मुझे लोगों का सुझाव अच्छा लगा। सदियां सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है।
कहानी त्याग-बलिदान की: सदियां त्याग और बलिदान का अनूठा संगम है। यह दो पीढि़यों की कहानी है। पिक्चर पार्टीशन के वक्त से शुरू होती है। उस वक्त की बातें कहती है और एक लव स्टोरी पैदा होती है। लव स्टोरी के साथ एक इश्यू उठता है और फिर कैसे वह इश्यू सॉल्व होता है? यही फिल्म में है। कहानी हिंदुस्तान और पाकिस्तान को लेकर है। मां और मुल्क बांटे नहीं जाते, यही इसकी थीम है।
चुनौतियां भी थीं: मां और दादी ने पार्टीशन के समय की जो बातें बताई थीं, वे मेरे मन में जीती जागती तस्वीर की तरह थीं। उसे विजुअलाइज करना मेरे लिए मुश्किल नहीं था। मेरे लिए प्रॉपर्टी इकट्ठा करना मुश्किल था। हमने उस टाइम का सेट एनडी स्टूडियो में बनाया। हमने पहली बार पुराने अमृतसर में शूट किया। अटारी बॉर्डर पर शूट किया है। बॉर्डर के करीब गांव में शूट किया। हमने रोमांटिक सीन कश्मीर और श्रीनगर में शूट किया, जो मुश्किल काम था।
साथ रेखा और हेमा जी का: फिल्म सदियां में हेमा मालिनी और रेखा जी भी हैं। मैं बचपन से इनका फैन था, लेकिन जब मैंने फिल्मी पारी शुरू की, तब तक वे रिटायर हो गई। मेरा ड्रीम था ड्रीम गर्ल और दिवा रेखा के साथ काम करना। मैंने कास्टिंग शुरू की, तो सोचा कि क्यों न हेमा और रेखा जी को साथ लाएं। फिल्म में रेखा जी सरदारनी बनी हैं। हेमा जी पाकिस्तान की महिला का रोल कर रही हैं।
नया चेहरा लव: इस फिल्म के लिए मुझे एक ऐसे लड़के की तलाश थी, जो पार्टीशन के समय का हिंदुस्तानी लड़का दिखे। काफी खोज के बाद मुझे लव मिले। लव शत्रुघ्न सिन्हा और पूनम सिन्हा के बेटे हैं। मैं उन्हें लॉन्च कर रहा हूं। लव ने फिल्म में बहुत अच्छा काम किया है। एक्टिंग उनके खून में है। लव का भविष्य बहुत अच्छा है। जब-जब उन्हें अच्छे डायरेक्टर मिलेंगे, वे अपनी छाप छोड़ेंगे।
मधुर संगीत: मेरी पिछली फिल्मों की तरह इस फिल्म का संगीत भी सुरीला है। हिप-हॉप के जमाने में सुरीला संगीत लोगों को जरूर पसंद आएगा। सदियां का संगीत अदनान सामी ने तैयार किया है। उम्मीद है, फिल्म के म्यूजिक पर लोग नाचेंगे।
-raghuvendra singh

Thursday, March 25, 2010

विलेज ब्वाय बने समीर दत्तानी

श्याम जी के सहायक दयाल निहलानी ने जब मुझसे श्याम जी से मिलने को कहा, उसी वक्त मैंने फैसला कर लिया था कि जैसा भी रोल होगा, मुझे हां कहना है। मुझ लीड कैरेक्टर है आरिफ का रोल दिया गया। बातचीत समीर दत्तानी से
आरिफ के किरदार के लिए आपको क्या तैयारी करनी पड़ी?
आरिफ वेल एजुकेटेड विलेज ब्वॉय है। वह प्रोग्रेसिव मुस्लिम है। वह दिन में हाईकोर्ट में और रात में गैरेज में काम करता है। इस कैरेक्टर के लिए मैंने उर्दू बोलने का हैदराबादी लहजा सीखा।
वेल डन अब्बा कैसी फिल्म है?
इसमें फन, कॉमेडी, रोमांस के साथ स्ट्रांग मैसेज है। इसमें मिनिषा लांबा और मेरे बीच रोमांटिक एंगल है। इसमें हमारी रोजमर्रा जिंदगी से जुड़े छोटे-छोटे मैसेज हैं, जिनकी ओर श्याम जी ने ध्यान खींचा है और बताया है कि उन समस्याओं का हल हमें खुद निकालना होगा।
श्याम बेनेगल के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
यह फिल्म मेरे लिए लर्निग एक्सपिरियंस रही। श्याम जी मेरे ग्रैंड फादर की उम्र के हैं, लेकिन जब मैंने शूट स्टार्ट किया तो हमारे बीच का गैप मिट गया। वह फिल्म, लाइफ, स्पोर्ट, लव, रिलेशन, सेक्स सब पर बात करते थे।
अपने फिल्मी कॅरियर में बीच में आप डगमगा गए थे?
एक आउटसाइडर होने के नाते वक्त तो लगता है। अब मेरी स्थिति कुछ ठीक हुई है। करण जौहर की आई हेट लव स्टोरीज में मैं काम कर रहा हूं। मेरे पास परसेप्ट पिक्चर कंपनी की एक फिल्म 8 भी है।
-रघुवेन्द्र सिंह

Tuesday, March 23, 2010

कभी अनफिट नहीं रहा-रितेश देशमुख

सिक्स पैक एब्स धारक फिल्म अभिनेताओं में अब रितेश देशमुख का नाम भी शामिल हो चुका है। आइए जानते हैं रितेश की फिटनेस के राज
बचपन से ही फिट
मैं बचपन से फिट हूं। न तो कभी मेरा पेट निकला और न ही कभी मैं ओवरवेट हुआ। यही कारण है कि मुझे जिम में कभी भी घंटों तक मेहनत नहीं करनी पड़ी। मैं जिम नियमित तौर पर जाता रहा हूं ताकि मैं फिट रहूं और स्क्रीन पर अच्छा दिखूं। मैंने कभी सिक्स पैक एब्स बनाने के बारे में सोचा नहीं था। वह तो फराह और साजिद खान के कहने पर मैंने फिल्म हाउसफुल के लिए सिक्स पैक एब्स बनाया।
कठिन परिश्रम करना पड़ा
मैं हफ्ते में पांच दिन जिम जाता हूं। अपने ट्रेनर विनोद के साथ मैं जिम में एक घंटे तक वर्कआउट करता हूं। मैं अपनी डाइट का पूरा खयाल रखता हूं। वह इसलिए कि आप कितना भी वर्कआउट कर लें यदि आपकी डाइट सही नहीं होगी तो बॉडी पर फर्क नहीं पड़ेगा। सिक्स पैक एब्स बनाने के लिए मैंने कार्डियो, एब्स, चेस्ट ट्राइसेप्स, शोल्डर बाइसेप्स पर अल्टरनेटिव वर्कआउट किया। तब जाकर सिक्स पैक एब्स बना।
पसंदीदा चीजों से परहेज
यदि आप बॉडी बनाना चाहते हैं, तो आपको खाने की अपनी पसंदीदा चीजों से परहेज करना पड़ेगा। मैंने अपनी सभी पसंदीदा चीजों को खाना बंद कर दिया है। जैसे पिज्जा, बर्गर, चीज, चॉकलेट, बिरयानी, राइस, पराठा, घी। जब मैं सिक्स पैक बनाने के लिए मेहनत कर रहा था तब व्हाइट एग, व्हाइट ऑमलेट, चिकन, प्रोटीन युक्त आहार, सलाद और ब्राउन ब्रेड खाता था। शुगर बिल्कुल नहीं लेता था। कभी-कभी चावल खा लेता था। डाइट में आपको वही चीजें खानी पड़ती हैं जो आपको पसंद नहीं।
इन पर करें अमल
आप किसी भी शेप में हों, आप बेहतर बन सकते है। नियमित जिम जाइए। नियमित रूप से वर्कआउट कीजिए और खान-पान में अधिकता न बरतें। मेरी राय में छह दिन वर्कआउट कीजिए और एक दिन जो मन करता है, उसे जरूर खाइए।
रघुवेन्द्र सिंह

Monday, March 22, 2010

स्पो‌र्ट्स लवर

संगीत के पुजारी सुखविंदर सिंह एथलीट बनना चाहते थे, लेकिन उनका भाग्य संगीत की दुनिया में उन्हें खींच लाया। कलर्स के नए म्यूजिकल रियलिटी शो आईपीएल रॉकस्टार में जज बने सुखविंदर ने यह बात बताई।
उन्होंने बताया कि इस शो के लिए हां कहने की यही वजह है कि मैं स्पो‌र्ट्स लवर हूं। मैं एथलीट हूं। मैं सौ मीटर की दौड़ का विनर रह चुका हूं। ओलंपिक में जाना चाहता था, लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि मैं म्यूजिक में आ गया। इस शो के निर्माताओं ने जब मुझे अप्रोच किया, तो उनके दिमाग में यह बात थी। उन्होंने मुझे हॉकी के मैदान से लेकर क्रिकेट के मैदान में देखा था। हॉकी और क्रिकेट के मैच देखने मैं आज भी जाता हूं। सेलिब्रिटी के रूप में नहीं, एक खेल प्रेमी के रूप में।
आईपीएल रॉकस्टार पहला रियलिटी शो है, जिसकी शूटिंग क्रिकेट के मैदान में हो रही है। सुखविंदर कहते हैं, यही नहीं, शो की खासियत यह भी है कि इसमें एसएमएस के जरिए विनर का चुनाव नहीं होगा। प्रतियोगी मैदान में लाइव परफॉर्म करते हैं। यदि मैदान में बैठे दर्शकों को उनकी परफॉर्मेस पसंद आती है, तो वे ताली बजाते हैं। इस शो में किराए पर जूनियर कलाकारों को नहीं बुलाया जाता है। शो का अनुभव दर्शकों के लिए ही नहीं, प्रतियोगियों और हमारे लिए भी नया और दिलचस्प है।
सुखविंदर इससे पहले रियलिटी शो वॉयस ऑफ इंडिया के जज रह चुके हैं, लेकिन उनका कहना है कि आईपीएल रॉकस्टार को जज करना उनके लिए ज्यादा मुश्किल और चैलेंजिंग है। उसकी वजह वे बताते हैं, शो के अधिकतर एपीसोड लाइव ब्रॉडकास्ट होंगे। हमें बहुत सोच-समझकर अपना फैसला सुनाना होगा, क्योंकि हम जो कमेंट देंगे, उसे ऑडियंस लाइव देखेगी। हम अपने फैसले को एडिट या चेंज नहीं कर सकेंगे। मैदान में बैठी ऑडियंस से हमें अपना फैसला लेने में मदद मिलेगी। जिस प्रतियोगी की परफॉर्मेस पर ऑडियंस ज्यादा ताली बजाएगी, जाहिर है, वह परफॉर्मेस अच्छी होगी।
खेल प्रेमी सुखविंदर क्रिकेट में आए ग्लैमर को सकारात्मक नजरिए से देखते हैं। वे कहते हैं, ग्लैमर क्रिकेट से जुड़ा जरूर है, लेकिन जब खिलाड़ी मैदान पर खेल रहा होता है, तब वहां ग्लैमर नहीं होता। रियलिटी होती है। सजावट मैदान के बाहर हुई है। यह समझने की बात है। ग्लैमर क्रिकेट से जुड़ा है। वह क्रिकेट के मैदान में नहीं आया है और कभी आ भी नहीं पाएगा। हम खिलाडि़यों को कभी ग्लैमरस तरीके से खेलने के लिए प्रेरित नहीं कर सकते। ग्लैमर के शामिल होने से क्रिकेट को और दर्शक मिल गए हैं। यह अच्छी बात है।
सुखविंदर आईपीएल में किसी टीम को सपोर्ट नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं, जब भारत दूसरे देश से मैच खेल रहा होता है, तो सपोर्ट करने की बात आती। आईपीएल में तो अपने ही देश के खिलाड़ी आपस में खेल रहे हैं। मैं सबके खेल को एंज्वॉय कर रहा हूं। पर्सनली मैं सचिन तेंदुलकर का फैन हूं, लेकिन उसकी दूसरी वजह है। अपनी अन्य व्यस्तताओं के बारे में सुखविंदर बताते हैं, शो आईपीएल रॉकस्टार के साथ मैं अपनी फिल्म में बिजी हूं। मेरी फिल्म कुछ करिए जल्द रिलीज होगी।
-raghuvendra Singh

Saturday, March 20, 2010

रोमांच से भरपूर लाहौर | फिल्म समीक्षा

मुख्य कलाकार : आनंद, श्रद्धा दास, फारुक शेख, श्रद्धा निगम, सौरभ शुक्ला, निर्मल पांडे, सुशांत सिंह
निर्देशक : संजय पूरण सिंह चौहान
तकनीकी टीम : निर्माता - विवेक खाटकर, जे एस राणा, लेखक- संजय पूरण सिंह चौहान, गीत- जुनैद वासी, संगीत- एम एम क्रीम
लाहौर किक बॉक्सिंग खेल पर आधारित फिल्म है। किक बॉक्सिंग भारत में उतना लोकप्रिय खेल नहीं है इसीलिए नए निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान ने इसमें क्रिकेट को भी शामिल किया है। बड़ा भाई धीरू किक बॉक्सिंग का चैंपियन खिलाड़ी है और छोटा भाई वीरू क्रिकेट का चैंपियन। पाकिस्तान के किक बॉक्सर नूर मोहम्मद के साथ एक टूर्नामेंट में मुकाबले के दौरान धीरू की मौत हो जाती है। नूर मोहम्मद धोखे से उसे रिंग में मार देता है। छोटा भाई वीरू अपने भाई की मौत का बदला लेने के मकसद से इंडियन किक बॉक्सिंग टीम में शामिल होता है, जो लाहौर एक सद्भावना टूर्नामेंट खेलने जाती है।
संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म लाहौर दो भाइयों के प्रेम, खेल में राजनेताओं के हस्तक्षेप को सहजता से दिखाती है। खास तौर से यह फिल्म भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को खेल के जरिए सुधारने की बात कहती है। लाहौर में स्पोर्ट फिल्म की खूबियां हैं। किक बॉक्सिंग के दृश्य रोमांच से भरपूर हैं। फिल्म का एक्शन उल्लेखनीय है।
लाहौर के लीड एक्टर अनाहद इमोशनल दृश्यों में कमजोर हैं। उनमें एक्शन हीरो की सभी खूबियां हैं। फारूख शेख ने मनमौजी और स्वतंत्र स्वभाव के कोच की भूमिका को बखूबी निभाया है। पाकिस्तानी टीम के कोच की भूमिका में सब्यसाची चक्रवर्ती और किक बॉक्सर मुकेश ऋषि जंचे हैं।
**1/2 ढाई स्टार।
-रघुवेन्द्र सिंह

मेरी नई जर्नी है यह: सतीश कौशिक | मुलाकात

सतीश कौशिक ने ऊंची उड़ान भरी है। फिल्म निर्देशन में नहीं, बल्कि एक्टिंग में। इंग्लिश फिल्म ब्रिक लेन और रोड, मूवी में सशक्त अभिनय के कारण सतीश की विदेश में भी बेहतरीन गंभीर ऐक्टर की पहचान बन गई है। वे अपनी नई पहचान को पुख्ता करने में जुटे हैं। भारतीय फिल्म प्रेमियों के बीच भी सतीश उसी पहचान के साथ आना चाहते हैं। तीन सवाल सतीश कौशिक से..।
अब महसूस करते होंगे कि आपको कॉमिक ऐक्टर की पहचान से छुटकारा मिल गया?
मैंने कैलेंडर और पप्पू पेजर से मिली पहचान को एंज्वॉय किया था, लेकिन मुझे यह बात खराब लगी थी कि लोगों ने कॉमिक ऐक्टर मान लिया था। लोगों को लगता था कि मैं सिर्फ कॉमिक रोल ही कर सकता हूं। इसलिए मैं प्रूव करना चाहता था कि कॉमिक से अलग रोल भी कर सकता हूं। मैंने प्रूव कर दिया है, लेकिन अभी उसे और पुख्ता करना है। अब मैं सीरियस और स्ट्रॉन्ग रोल ही कर रहा हूं। मैंने महेश मांजरेकर की फिल्म सिटी ऑफ गॉड में स्ट्रांग रोल किया है। मैं प्रवाल रमन की एक फिल्म रूम नंबर 404 कर रहा हूं। अब मेरी नई जर्नी शुरू हो चुकी है, मैं इसे एंज्वॉय कर रहा हूं।
नए ऐक्टर सतीश कौशिक का जन्म कैसे हुआ?
फिरोज अब्बास खान के नाटक सेल्समैन रामलाल ने नए सतीश को जन्म दिया। उस नाटक से मुझे इंटरनेशनल फिल्म ब्रिक लेन मिली। उस फिल्म के लिए मुझे इंटरनेशनल मीडिया के बीच जबरदस्त रिव्यू मिले। वैसा रिव्यू किसी इंडियन ऐक्टर को विदेश में नहीं मिला, लेकिन खुद को प्रमोट न करने के कारण इंडिया में किसी को पता नहीं चला। मेरी दूसरी इंटरनेशनल फिल्म रोड, मूवी को भी विदेश में खूब सराहा गया। टोरंटो, दोहा और बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में फिल्म देखने के बाद लोगों ने थिएटर में खड़े होकर मेरा अभिवादन किया। अभी तक मैंने कॉमर्शियल फिल्मों में काम किया था, लेकिन ब्रिक लेन और रोड, मूवी में लोगों को नया सतीश देखने को मिल रहा है।
आपको नहीं लगता है कि एक्टिंग की व्यस्तता आपको निर्देशन से दूर ले जा रही है?
ऐसी बात नहीं है। मेरी नई फिल्म मिलेंगे मिलेंगे जल्द रिलीज हो रही है। उसमें शाहिद कपूर और करीना कपूर हैं, लेकिन अब मैं गैप लेकर दिल से फिल्म बनाना चाहता हूं। मुझे दुनिया भर के लोगों से तारीफ मिल रही है। मैं नई दुनिया को देख रहा हूं। मैं टोरंटो दो बार होकर आया, दोहा और बर्लिन भी गया। वहां जाकर सिनेमा के बारे में मेरी नई सोच बनी। मैं अगली फिल्म ऐसा बनाना चाहता हूं, जिसे देखकर लोगों को लगे कि वे नए सतीश कौशिक की फिल्म देख रहे हैं। स्क्रिप्ट रेडी है। सितंबर में उसे शुरू करूंगा।
-raghuvendra singh

Thursday, March 18, 2010

मैंने बॉडी भी दिखाई है: आदित्य नारायण

सुभाष घई ने फिल्म परदेस में आदित्य नारायण से दर्शकों का परिचय कराया था। अब वे बड़े हो गए हैं। उन्हें बड़ा होते हुए लोगों ने छोटे पर्दे पर देखा। विक्रम भट्ट की फिल्म शापित से युवा आदित्य अभिनय की नई पारी शुरू करने जा रहे हैं। शापित में आदित्य अभिनेत्री श्वेता अग्रवाल से रोमांस तो करते दिखेंगे ही, वे भूत-प्रेत से भी लड़ते नजर आएंगे। बातचीत आदित्य से..
अमूमन ऐक्टर रोमांटिक फिल्म से डेब्यू करते हैं, लेकिन आपने हॉरर फिल्म से ऐसा करने का फैसला क्यों किया?
मैं ऐसी फिल्म करना चाहता था, जिसकी स्टोरी और स्क्रीनप्ले मुझे एक्साइट करे। शापित की स्टोरी और स्क्रीनप्ले विक्रम जी ने खुद लिखी है। यह आजकल के नॉर्मल कपल की कहानी है, जो सीसीडी और बरिस्ता जाते हैं। विक्रम जी ने इक्कीसवीं सदी के कपल को फैंटसी व‌र्ल्ड में डाल दिया है। यह मुझे मजेदार लगा। यह एंटरटेनिंग हॉरर फिल्म है।
फिल्म की कहानी और अपनी भूमिका के बारे में बताएंगे?
यह अमन और काया की कहानी है। अमन 21 साल का है। वह सीधा-सादा है। काया उसकी पहला प्यार है। अमन कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद काया का हाथ मांगता है। तब उसे पता चलता है कि काया का परिवार शापित है, इसलिए वे उसके साथ शादी नहीं कर सकते। अमन और काया उस आत्मा को ढूंढने निकलते हैं, जो शाप की वजह है। उनके साथ शुभ भी होता है। काया का रोल श्वेता अग्रवाल और शुभ का रोल राहुल देव कर रहे हैं। मैं अमन का रोल कर रहा हूं।
इस फिल्म में आपको परफॉर्म करने का कितना मौका मिला है?
मैंने इसमें सब कुछ किया है। विक्रम जी ने मुझे बताया था। उनसे एक बहुत बड़े ऐक्टर ने कहा था कि मैं आपकी फिल्में देखता हूं, तो पाता हूं कि उसमें कहानी हीरो होता है। आपका हीरो कभी हीरो नहीं होता। जब विक्रम इसकी कहानी लिख रहे थे, तो उन्होंने डिसाइड किया कि इसमें उनका हीरो ही हीरो होगा। मैं लकी हूं कि शापित मुझे मिली। ढाई घंटे की फिल्म में छब्बीस मिनट मैं स्क्रीन पर अकेला हूं। डांस और कॉमेडी को छोड़कर मैंने फिल्म में सब कुछ किया है। मैंने फिल्म में चार गाने गाये हैं। टाइटिल ट्रैक मैंने खुद लिखा, कंपोज किया और गाया भी है। मैंने फिल्म में बॉडी भी दिखाई है। मेरी शो रील है शापित। विक्रम जी भी यही कहते हैं।
एक्टिंग में कुछ लोग शौकिया, तो कुछ पैशन की वजह से आते हैं। आप एक्टिंग में क्यों आए?
मैं ऐक्टर, सिंगर, म्यूजीशियन और ऐंकर हूं, लेकिन मैंने कभी खुद को कैटेगराइज नहीं किया। मुझे संतुष्टि तब मिलती है, जब मेरे सामने कुछ लोग हों और मैं उन्हें एंटरटेन करूं। एक्टिंग इस देश में लोगों को एंटरटेन करने का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है।
विक्रम भट्ट के निर्देशन में काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मुझे लगा नहीं था कि विक्रम के साथ मजा आएगा। वे सीरियस दिखते हैं, लेकिन जब मैंने उनके साथ काम शुरू किया, तो पाया कि वे फनी हैं। वे बहुत अच्छे ऐक्टर भी हैं। शूटिंग के दौरान जब मैं फंस जाता था, तो वे सीन करके दिखाते थे। मैं विक्रम जी से बहुत सवाल पूछता था। मैं उनके साथ बैठकर अमित जी और आमिर खान के बारे में पूछता था। उन्होंने बताया कि आमिर गुलाम के क्लाइमेक्स सीन के लिए तेरह दिन तक नहीं नहाये थे। मैं भी शापित के क्लाइमेक्स सीन के लिए सत्रह दिन नहीं नहाया।
पहली फिल्म का प्रेशर महसूस कर रहे हैं?
अब महसूस कर रहा हूं। मैं बहुत अटैच हो गया हूं फिल्म से। मैंने पहली फिल्म को दिल पर ले लिया है। शापित अच्छी बनी है और अच्छी फिल्म को ऑडियंस जरूर मिलती है। मैं कॉन्फिडेंट हूं।
क्या आप भविष्य में टीवी के लिए भी काम करेंगे?
हां, मैं ऐंकरिंग करूंगा। मैं बड़े और बेहतर शो के साथ आऊंगा।
आपकी पसंदीदा हॉरर फिल्में कौन सी हैं?
राज, भूत, डरना मना है, 1920 और राज-2।
-raghuvendra Singh

Friday, February 19, 2010

जैक्सन की धुनों पर थिरकेंगे हरमन

मुंबई। माइकल जैक्सन के दीवाने हरमन बावेजा कल पहली बार अपने फेवरेट डांसर की धुनों पर सार्वजनिक मंच पर थिरकेंगे। महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली एनजीओ वेव फाउंडेशन के पुरस्कार समारोह में
हरमन बावेजा माइकल जैक्सन के पॉपुलर गीतों पर परफॉर्म करेंगे। अपने डांस के लिए लोकप्रिय युवा अभिनेता हरमन बावेजा ने बताया, कल शाम को मैं सात आठ मिनट के एक्ट के द्वारा माइकल जैक्सन को ट्रिब्यूट दे रहा हूं। यह मेरे लिए इमोशनल मोमेंट है। मैं बचपन से माइकल जैक्सन का फैन हूं। मैंने उन्हीं से प्रेरित होकर डांस सीखा। वे मेरे आदर्श हैं। मैं इस मौके को लेकर बहुत उत्साहित हूं। हरमन ने बताया कि वे पिछले एक हफ्ते से माइकल जैक्सन के गीतों पर रिहर्सल कर रहे हैं।
गौरतलब है कि वेव फाउंडेशन से हरमन बावेजा सहित कई फिल्म हस्तियां जुड़ी हैं। हरमन ने बताया कि वेव महिलाओं के हित के लिए काम करती है। यही वजह है कि मैं इससे जुड़ा हूं। देश-विदेश में जब मैं सुनता हूं कि महिलाओं के साथ नाइंसाफी हो रही है। उनके साथ जुल्म हो रहा है तो मुझे गुस्सा आता है। वेव के साथ मिलकर मैं महिलाओं के कल्याण के लिए काम कर रहा हूं। इस संस्था से कट्रीना कैफ और सैफ अली खान भी जुड़े हैं। हरमन बावेजा ने बताया कि सैफ अली खान और कट्रीना कैफ भी कल परफॉर्म करेंगे।
-रघुवेन्द्र सिंह

Saturday, February 13, 2010

कब्रिस्तान की लड़ाई लड़ रहे दिलीप कुमार-सायरा बानो

मुंबई [रघुवेन्द्र सिंह]। बालीवुड के ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार और उनकी पत्‍‌नी सायरा बानो पांच साल से महाराष्ट्र सरकार से एक लड़ाई लड़ रहे हैं। लड़ाई कब्रिस्तान के लिए जमीन की है। सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
यहां बांद्रा वेस्ट से सांताक्रुज वेस्ट के बीच जुहू गार्डन के पास मात्र एक कब्रिस्तान है। इस इलाके के सात लाख से भी ज्यादा लोग साठ वर्ष से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। नतीजा है कि यहां एक के ऊपर एक कई लाशें दफन हो चुकी हैं। मधुबाला, नौशाद, साहिर लुधियानवी, नसीम बानो, जां निसार अख्तर, तलत महमूद, परवीन बाबी और मजरूह सुल्तानपुरी जैसे दिग्गजों तक की कब्र महफूज नहीं रही है। यहां दफन बालीवुड के दिग्गजों में बस मुहम्मद रफी हैं, जिनकी कब्र अब तक सुरक्षित है।
कब्र की देखरेख करने वाले मुस्लिम मजलिस ट्रस्ट के प्रमुख असगर अली सुलेमान का कहना है कि पंद्रह वर्ष पहले यहां महीने में पांच मैय्यत आती थी, लेकिन अब यह तादाद पच्चीस तक पहुंच गई है। ऐसे में सरकार कब्रिस्तान के लिए नई जगह नहीं देती है तो मजबूरी में हमें मुहम्मद रफी की कब्र भी खोदनी होगी और वहां किसी और की लाश दफनानी होगी।
असगर बताते हैं, 1968 में महाराष्ट्र सरकार ने जुहू कोलीवाड़ा में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लिए श्मशान एवं कब्रिस्तान के लिए जगह सुरक्षित की थी। हिंदू और ईसाई समुदाय को तो उनकी जमीन मिल गई, लेकिन हमें आज तक कब्रिस्तान के लिए जमीन नहीं मिली। वह बताते हैं कि सितंबर 2005 में दिलीप कुमार और सायरा बानो ने महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिख कर कब्रिस्तान की जमीन देने की मांग की, लेकिन सरकार ने उनकी भी नहीं सुनी।

सुरक्षित है मुहम्मद रफी की कब्रगाह

मुंबई। मुहम्मद रफी की कब्र खोदने एवं उनकी हड्डियों को फेंकने की खबर आने के बाद देश-विदेश में मौजूद उनके प्रशंसकों की भावनाओं को ठेस पहुंची। द रफी फाउंडेशन के फाउंडर बीनू नायर बताते हैं कि अंग्रेजी अखबार में खबर आने के बाद मेरे पास देश-विदेश से इस संबंध में कई फोन आए। लोग बेहद गुस्सा थे। वे पूछ रहे थे कि मुंबई जैसे बड़े शहर में क्या मुहम्मद रफी जैसे कलाकार के लिए दो गज जमीन नहीं है? सच्चाई जानने के लिए मैं उनकी कब्रगाह पर गया था। मुहम्मद रफी की कब्र सुरक्षित है। हमने मुस्लिम मजलिस ट्रस्ट से आश्वासन लिया है कि वे रफी साब की कब्र को नहीं खोदेंगे। इस संबंध में मुस्लिम मजलिस ट्रस्ट के प्रेसीडेंट का कहना है कि मुहम्मद रफी की कब्र पन्द्रह फुट जमीन के अंदर जा चुकी है और उनको दफन हुए तीस साल हो चुके हैं। उनकी हड्डियां आजतक कैसे रह सकती हैं? लोग अफवाह फैला रहे हैं।
-रघुवेन्द्र सिंह

एक्टर बाई चांस बन गया: सिद्धार्थ | मुलाकात

तेलुगू फिल्मों के आमिर खान के नाम से मशहूर सिद्धार्थ खुद को शाहरूख खान मानते हैं। चार साल पूर्व सिद्धार्थ रंग दे बसंती फिल्म में एक यादगार भूमिका में दिखे थे। सिद्धार्थ का लक्ष्य अब हिंदी फिल्मों का सुपर स्टार बनना है। फिल्म स्ट्राइकर उस दिशा में पहला कदम है।
रंग दे बसंती के बाद के चार सालों में यहां क्या बदलाव देख रहे हैं?
अब अच्छी फिल्मों का माहौल है। इस वजह से मैं बहुत एक्साइटेड हूं। स्ट्राइकर के बाद मैं ढेर सारी हिंदी फिल्में करूंगा। मैं अल्ट्रा चूजी नहीं हूं ।
स्ट्राइकर चुनने की क्या वजह है?
रंग दे बसंती में मैं इसेंबल कास्ट था। मुझे पता था कि अगली फिल्म में मुझे अपनी एक्टिंग का पूरा रेंज दिखाना पड़ेगा। मैं चाहता था कि लोग दुकान में जाकर पूछें कि सिद्धार्थ है क्या? ये नहीं कि वो वाला बॉक्स है क्या, जिसमें सिद्धार्थ है। मैंने साउथ में बॉक्स ऑफिस पर डेढ़ सौ करोड़ का कलेक्शन किया है। जिस बंदे ने वो देख लिया है, वह यहां कौडि़यों से नहीं खेलेगा। स्ट्राइकर से मैं खुद को लांच कर रहा हूं।
किस जॉनर की फिल्म है स्ट्राइकर?
अमिताभ सर की जंजीर याद कीजिए। स्ट्राइकर उसी जॉनर की फिल्म है। यह सिंगल हीरो की लाइफ स्टोरी है। कहानी 1980 में सेट है। मेरे किरदार का नाम सूर्यकांत सारंग है। वह कैरम का खेली है। सूर्या का जन्म मुंबई के मालवणी नाम के स्लम में होता है। फिल्म में सूर्या के दस साल से तीस साल के उम्र की जर्नी है। सूर्या के लाइफ की च्वाइसेस और किस्मत की स्टोरी है यह। स्ट्राइकर सूर्यकांत सारंग के प्यार, परिवार, दोस्ती और दुश्मनी की बात करती है। यह मल्टी डाइमेंशनल इमोशनल फिल्म है।
आपने फिल्म में दो गाने गाए हैं। एक्टिंग और सिंगिंग के अलावा और क्या टैलेंट छुपा रखा है?
मैंने बांबे बांबे और हक से दो गाने गाए हैं और फिल्म का म्यूजिक अलबम भी प्रोड्यूस किया है। मैंने सात साल कर्नाटक संगीत सीखा है। मैं ड्रम्स भी बजाता हूं। मैंने एक फिल्म भी लिखी है। मैं डायरेक्टर बनना चाहता था। मैंने मणि रत्नम को कुछ साल असिस्ट किया है। एक्टर बाई चांस बन गया।
मुंबई में क्या योजनाएं हैं?
मेरी अगली फिल्म में चार महीने का भी गैप नहीं होगा। मैंने तेलुगू फिल्मों में जो स्टारडम हासिल किया है, वही हिंदी फिल्मों में पाना है। उसके लिए मुझे आम दर्शकों का प्यार चाहिए।
-रघुवेन्द्र सिंह

Tuesday, February 2, 2010

बिपाशा: शादी के लिए तैयार!

एक्ट्रेस बिपाशा बसु आजकल फिल्मों को लेकर चर्चा में नहीं हैं। हों भी कैसे? न तो उनकी कोई फिल्म रिलीज होने जा रही है और न ही आजकल वे किसी फिल्म की शूटिंग कर रही हैं। उन्होंने अचानक फिल्में साइन करनी बंद कर दी हैं, जबकि उनकी समकालीन कट्रीना कैफ, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण बड़े निर्माताओं की फिल्में साइन कर रही हैं। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि बिपाशा ने यह कदम क्यों उठाया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वे शादी करके सेटल होने की प्लानिंग कर चुकी हैं? लेकिन बिपाशा इस बारे में कुछ और ही कहती हैं, मेरे पास फिल्मों के ऑफर आ रहे हैं, लेकिन उनमें कुछ पसंद नहीं आ रहा है। मैं अपने स्टैंडर्ड का काम ही करूंगी। मैं कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहती। मैंने बड़ी मुश्किल से अच्छी फिल्में करके अपनी पहचान और पोजीशन बनाई है। हड़बड़ी में गलत फिल्में करके इमेज नहीं खराब कर सकती। मैं फिल्में नहीं कर रही हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं घर में बैठी हूं। मेरे पास और भी कई काम हैं करने के लिए।
बिपाशा जो भी कहें, बॉलीवुड में उनकी शादी के चर्चे खूब हैं। दरअसल, वे अभी अपना सारा समय ब्वॉयफ्रेंड जॉन अब्राहम के साथ बिता रही हैं। जॉन भी अभी फ्री हैं। वे बिपाशा के ही घर में रहते हैं। फिल्में देख और शॉपिंग करके दोनों अपना टाइम पास कर रहे हैं। इसीलिए चर्चा है कि यह हॉट कपल शादी करने की योजना बना रहा है। उन्होंने जॉन से अपने मन की यह बात भी कह दी है। इस बारे में जब बिपाशा से बात होती है, तो उन्होंने शादी की खबर को सही नहीं कहा, पिछले कुछ सालों से ऐसी बातें हो रही हैं। अब मैं ऐसी बातों को तवज्जो नहीं देती।
बिपाशा ने पिछले साल दो फिल्मों पंख और लम्हा की शूटिंग की थी। दोनों इस साल रिलीज होंगी, लेकिन अभी रिलीज डेट तय नहीं है। बिपाशा इन फिल्मों को लेकर उत्साहित हैं। वे दोनों में अलग अंदाज में दिखेंगी। पंख में वे जहां अपने से कम उम्र के मैरेडोना रिबैलो के साथ रोमांस करेंगी, वहीं आतंकवाद पर बनी लम्हा में कश्मीरी लड़की के रोल में दिखेंगी। बिपाशा कहती हैं, इन फिल्मों को मैं करियर की स्पेशल फिल्म मानती हूं। दोनों फिल्में बहुत अच्छी बनी हैं। दोनों का सब्जेक्ट भी अच्छा है। मुझे इनकी रिलीज का इंतजार है। उम्मीद है कि यह साल मेरे लिए अच्छा होगा।
बिपाशा अमूमन फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त रहती हैं, इसीलिए उन्हें अपने और अपनों के बारे में सोचने के लिए समय नहीं मिलता। बिपाशा खुश हैं कि इन दिनों उन्हें अपने लिए कुछ समय मिल रहा है। अब वे ऐसी फिल्मों का इंतजार कर रही हैं, जो उन्हें दर्शकों के बीच नई पहचान दिला सकें। बिपाशा क्वालिटी वर्क करना चाहती हैं। वे कहती हैं, अब मैं करियर के उस मुकाम पर हूं, जहां कुछ प्रयोग कर सकती हूं। पंख और लम्हा देखने के बाद लोग मेरी इस बात का मतलब समझ जाएंगे। मुझे पूरा यकीन है कि यह साल मेरे लिए लकी साबित होगा। मैं जैसी फिल्में करना चाहती हूं, वैसी फिल्में मुझे मिलेंगी। बिपाशा आगे कहती हैं, नए निर्देशक आजकल अच्छी स्क्रिप्ट ला रहे हैं। वे कुछ नया और अलग करना चाहते हैं। अब मैं नए निर्देशकों की फिल्म का हिस्सा बनना चाहती हूं। नए निर्देशकों की राह तकने का बहाना करके बिपाशा अपनी शादी की बात को छिपाना चाहती हैं, यह तो वही जानें। फिलहाल, उनके प्रशंसक नहीं चाहेंगे कि वे इतनी जल्दी शादी के बंधन में बंधें।

फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग नहीं ली: अमित राय | मुलाकात

अमित राय की रोड टू संगम पहली निर्देशित फिल्म है। यह देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में सराही और पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी है। प्रस्तुत है अमित राय से बातचीत के खास अंश..
अपने बारे में बताएं?
मैं ठाणे (महाराष्ट्र) के उल्हास नगर का हूं। मैं झोपड़ी में पला-बढ़ा हूं। मुझे चप्पल से जूते तक पहुंचने में सत्रह साल लग गए। मेरे पापा ने एक अच्छा काम यह किया कि मुझे शिक्षा बहुत अच्छी दिलाई। मैं साइंस में ग्रेजुएट हूं। मैंने ड्रैमेटिक्स में एम.ए. किया है। मैं पढ़ने के साथ-साथ थिएटर से जुड़ा रहा। मेरी शुरुआत मराठी एक्सपेरिमेंटल थिएटर से हुई। मैं मराठी फिल्म टिंग्य में एसोसिएट डायरेक्टर था।
फिल्म निर्देशन में आपका कैसे आना हुआ? क्या आपने फिल्म निर्देशन की ट्रेनिंग ली है?
मेरे पापा ने किसी को पैसे उधार दिए थे। उस बंदे ने अच्छा काम यह किया कि पैसे लौटाने की बजाए उसने एक वीसीआर और टीवी दे दिया। यह 1985 की बात है। मैं रात भर जागकर वह वीसीआर और टीवी किराए पर लोगों के घरों में लगाता था। एक फिल्म के पच्चीस रुपये और चार फिल्म के सौ रुपये चार्ज करता था। मैंने फिल्में देख-देखकर फिल्म बनानी सीखी। मैंने फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग नहीं ली है।
रोड टू संगम के बारे में बताएं? प्रोमो से हिंदू-मुस्लिम विवाद पर आधारित फिल्म लग रही है?
हिंदू-मुस्लिम विवाद पर यह फिल्म नहीं है। हमारी सोच ऐसी हो गई है कि यदि मुस्लिम शब्द कहीं आता है, तो हम हिंदू खुद उसमें जोड़ देते हैं। यह इंडिया की पहली फिल्म है, जो पूरी तरह से मुस्लिम कम्यूनिटी की फिल्म है और मुस्लिम सॉल्यूशन देती है। यह अस्मतुल्लाह नाम के एक मैकेनिक के जीवन पर आधारित फिल्म है। यह लोगों को महात्मा गांधी के आदर्श, सिद्धांत और विचारों की याद दिलाएगी। मैं फिल्म के जरिए यही कहना चाहता हूं कि वर्षो पहले एक आदमी हमें बहुत कुछ दे गया था, उसे हमें संजोकर रखना चाहिए। रोड टू संगम की पूरी शूटिंग इलाहाबाद में हुई है।
फिल्म का सब्जेक्ट सीरियस है। इसे बनाने में निश्चित ही चुनौतियों से गुजरना पड़ा होगा?
मैं इसे सीरियस नहीं, चैलेंजिंग फिल्म कहूंगा। मुझे सिनेमा को कैटेगरी में रखना पसंद नहीं। इस फिल्म को लेकर मेरा आत्मविश्वास मजबूत था। मेरा मानना है कि यदि आपको कोई चीज अच्छी लगती है, तो आप दर्शकों को उसे देखने के लिए कंविंस कर सकते हैं। इसे बनाने में मुझे कई मुश्किलें आई, लेकिन मुश्किलों का सामना करने में मुझे मजा आया। मैंने यह फिल्म अपनी शर्तो पर बनाई है।
आपकी फिल्म रिलीज से पूर्व कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी है। इससे उत्साह तो बढ़ा होगा?
पहली फिल्म को इतना सम्मान मिलना मेरे लिए गर्व की बात है। मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया है। अब मैं इस फिल्म के बारे में लोगों को गर्व से बताता हूं। फिल्म को साउथ अफ्रीका, जर्मनी, लॉस एंजेलिस, मुंबई के फिल्म समारोहों में सम्मानित किया गया है। मैं इसका श्रेय अकेले नहीं लूंगा। जो भी सम्मान मिला है, उसका श्रेय फिल्म की पूरी टीम को जाता है।
क्या आपने अगली फिल्म पर काम शुरू कर दिया है?
हां, मैं आध्यात्म पर एक फिल्म लिख रहा हूं। फिलहाल मैं कहना चाहूंगा कि अच्छे दर्शकों का क‌र्त्तव्य है कि वे अच्छी फिल्म हॉल में जाकर देखें। रोड टू संगम को अब दर्शकों को प्यार चाहिए।
-raghuvendra singh

सलमान की फैन हूं मैं: जरीन खान | मुलाकात

सलमान खान की नई खोज हैं जरीन खान। वे हालिया रिलीज फिल्म वीर की नायिका हैं। मुंबई के बांद्रा में पली-बढ़ी जरीन डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन उनकी मम्मी के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उन्हें इसकी पढ़ाई करा सकें। जरीन की जुबानी, मैं अट्ठारह साल की थी जब पापा हमें छोड़कर चले गए। मेरी और छोटी बहन की जिम्मेदारी मम्मी पर आ गई। वे किसी तरह घर का खर्च चला रही थीं, लेकिन बाद में जब उनकी सेहत खराब रहने लगी, तो मैंने काम करने का फैसला किया। मॉडलिंग में मुझे लगा कि जल्दी पैसा कमा सकती हूं। मैं पढ़ाई छोड़कर मॉडलिंग करने लगी। मुझे जल्द ही मॉडलिंग के असाइनमेंट मिलने लगे। उनसे मुझे जो पैसा मिलता, उससे घर का खर्च चलता था। तरंग ने इस मुलाकात में जरीन से उनके निजी जीवन, सलमान खान, कट्रीना कैफ और भावी योजनाओं के बारे में बात की..।
सलमान खान से पहली बार आप कब, कहां और कैसे मिलीं?
फिल्म युवराज के सेट पर मैं पहली बार उनसे मिली। मेरे पास एक दिन सुभाष घई के ऑफिस से फोन आया कि आपको युवराज के सेट पर बुलाया गया है। मैं सलमान की फैन हूं। उन्हें नजदीक से देखने के लालच में मैं सेट पर पहुंच गई। मैंने देखा कि सलमान जिम के कपड़ों में बैठे फोन पर बात कर रहे थे। उनके पास उनके एक फ्रेंड खड़े थे। मैंने उनसे इशारे में पूछा कि क्या मैं सलमान से बात कर सकती हूं। उन्होंने मना कर दिया, लेकिन सलमान के सामने से निकलते समय मैंने उन्हें सलाम किया। उन्होंने जवाब भी दिया। बाद में उनके फ्रेंड मेरे पास आए और कहा कि सलमान भाई ने आपको बुलाया है। मैं खुशी-खुशी उनसे मिलने गई और एक फैन की तरह बात की। बाद में पता चला कि उस मुलाकात में ही उन्होंने मुझे वीर फिल्म के लिए फाइनल कर लिया है।
क्या सलमान ने उसी वक्त आपको बता दिया कि वे आपको वीर में कास्ट करने जा रहे हैं?
नहीं। उनके डिजाइनर ने मुझे बताया कि सलमान भाई आपको वीर के लिए सोच रहे हैं। बाद में उन्होंने मुझे ऑडिशन के लिए भेजा। मैंने ऑडिशन दिया, फिर मेरा फोटोशूट हुआ। कुछ दिन बाद सलमान और अनिल शर्मा ने मुझे बताया कि आप फिल्म में राजकुमारी यशोधरा की भूमिका के लिए फाइनल की गई हैं। मुझे ऐसा लगा कि मैं कोई सपना देख रही हूं। सच कहूं, तो अभी तक मुझे सब सपने जैसा ही लग रहा है।
वीर की शूटिंग शुरू होने से पहले क्या आपने किसी प्रकार की तैयारी की थी?
हां, अनिल शर्मा के साथ मैंने दो महीने तक अपने सीन के रिहर्सल किए। मैंने एक्टिंग की फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली है। सलमान और कट्रीना ने भी मेरी काफी मदद की। जिन लोगों ने फिल्म वीर नहीं देखी होगी, उनके लिए मैं बता दूं कि इसमें मैं राजकुमारी यशोधरा के किरदार में हूं। यशोधरा सुलझी हुई लड़की है। उसे घमंड नहीं है कि वह राजकुमारी है। वह पिंडारी योद्धा वीर से प्यार करती है। यशोधरा के किरदार के लिए मैंने दस किलोग्राम वजन बढ़ाया। अनिल शर्मा ने जब मुझे पुराने जमाने की राजकुमारी की फोटो दिखाई और कहा कि आपको हट्टा-कट्टा दिखना है। उसके लिए आपको वजन बढ़ाना पड़ेगा। अनिल शर्मा और सलमान के लिए मैंने खुशी से अपना वजन बढ़ा लिया।
कट्रीना से आपके फेस की सिमलैरिटी का भविष्य में लाभ होगा या नुकसान?
मुझे पता नहीं। लोगों को लगता है कि मेरा चेहरा कट्रीना से मिलता है, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता। खैर,कट्रीना से तुलना होना मेरे लिए बड़ा कॉम्पि्लमेंट है। वे बेहद खूबसूरत महिला हैं।
क्या आप अपनी नई पहचान का श्रेय सलमान खान को देंगी?
मेरी जो भी पहचान है, उसका क्रेडिट सलमान खान को जाता है। उन्होंने मेरी लाइफ बदल दी है। वे नहीं मिलते तो आज मैं वीर की यशोधरा नहीं होती।
भावी योजनाएं क्या हैं?
वीर रिलीज हो चुकी है। अब मैं नई फिल्में साइन करूंगी। सलमान के साथ एक रोमांटिक फिल्म करना चाहूंगी। यही इच्छा भी है।
-raghuvendra singh

Wednesday, January 20, 2010

मैं खुद में मगन रहता हूं-सलमान खान

सलमान खान की अनिल शर्मा निर्देशित वीर को पीरियड फिल्म माना जा रहा है। निर्देशक अनिल शर्मा और लेखक-अभिनेता सलमान खान से हुई बातचीत का निष्कर्ष निकालें तो इसे कास्ट्यूम ड्रामा कहना ज्यादा उचित होगा। यह फिल्म इतिहास या ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है और न ही वीर कोई ऐतिहासिक चरित्र है।
पीरियड फिल्म तथ्यपरक और काल्पनिक दोनों हो सकती हैं, लेकिन उनमें कालविशेष और परिवेश पर खास ध्यान दिया जाता है। पिंजर के निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी मानते हैं, ''हर फिल्म एक लिहाज से पीरियड फिल्म होती है, क्योंकि उसमें किसी न किसी काल के परिवेश को दर्शाया जाता है। अपने यहां पीरियड के नाम पर कास्ट्यूम ड्रामा की फिल्में बनती रही हैं।''
मुगलेआजम, ताजमहल, सिकंदर, पाकीजा आदि कई फिल्में इसी श्रेणी में आती हैं। अगर वास्तविक पीरियड फिल्मों की बात करें तो शतरंज के खिलाड़ी, गर्म हवा, जुनून, पिंजर और जोधा अकबर जैसी फिल्मों का उल्लेख किया जा सकता है। लगान और गदर भी पीरियड फिल्में मानी जाती हैं, लेकिन उनमें कल्पना की छूट ली गयी है।
अनिल शर्मा की वीर भव्यता और विशालता का आभास दे रही है। उन्होंने सीजी और वीएफएक्स इफेक्टस से यह भव्यता हासिल की है। उन्होंने पिंडारी समुदाय पर शोध किया और करवाया है। सलमान खान ने उन्नीसवीं सदी के परिवेश के मुताबिक वेशभूषा भी धारण की है, पर आप ने गौर किया होगा कि सलमान खान का कवच ग्लैडिएटर के हीरो के कवच से प्रेरित लग रहा है। इस फिल्म पर विदेशी फिल्मों की मेकिंग का प्रभाव है। वीर इसलिए उल्लेखनीय है कि सलमान खान जैसे पॉपुलर स्टार ने पीरियड करने की हिम्मत दिखायी और उसे पूरे जोर-शोर से प्रचारित भी कर रहे हैं।
क्या है वीर के पीछे और कितनी करनी पड़ी मशक्कत, प्रस्तुत है सलमान खान से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
'वीर' में क्या जादू बिखेरने जा रहे हैं आप?
मुझे देखना है कि दर्शक क्या जादू देखते हैं। एक्टर के तौर पर अपनी हर फिल्म में मैं बेस्ट शॉट देने की कोशिश करता हूं। कई बार यह उल्टा पड़ जाता है, दर्शक फिल्म ही रिजेक्ट कर देते हैं।
वीर जैसी पीरियड फिल्म का खयाल कैसे आया? आपने क्या सावधानियां बरतीं?
यहां की पीरियड फिल्में देखते समय मैं अक्सर थिएटर में सो गया हूं। ऐसा लगता है कि पिक्चर जिस जमाने के बारे में है, उसी जमाने में रिलीज होनी चाहिए थी। डायरेक्टर फिल्म को सीरियस कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उन दिनों कोई हंसता नहीं था। सोसायटी में ह्यूमर नहीं था। लंबे सीन और डायलाग होते थे। 'मल्लिका-ए-हिंद पधार रही हैं' और फिर उनके पधारने में सीन निकल जाता था। इस फिल्म से वह सब निकाल दिया है। म्यूजिक भी ऐसा रखा है कि आज सुन सकते हैं। पीरियड फिल्मों की लंबाई दुखदायक होती रही है। तीन, साढ़े तीन और चार घंटे लंबाई रहती थी। उन दिनों 18-20 रील की फिल्मों को भी लोग कम समझते थे। अब वह जमाना चला गया है। इंटरेस्ट रहने तक की लेंग्थ लेकर चलें तो फिल्म अच्छी लगेगी। आप सेट और सीन के लालच में न आएं। यह फिल्म हाईपाइंट से हाईपाइंट तक चलती है। इस फिल्म के डायलाग भी ऐसे रखे गए हैं कि सबकी समझ में आए। यह इमोशनल फिल्म है। एक्शन है। ड्रामा है।
इस फिल्म के निर्माण में आप ने अनिल शर्मा से कितनी मदद ली है?
उन्होंने इस फिल्म को अकल्पनीय बना दिया है। वीर के सीन करते हुए मुझे हमेशा लगता रहा कि मैं उन्नीसवीं सदी में ही पैदा हुआ था। कास्ट्यूम और माहौल से यह एहसास हुआ। वह जरूरी भी था। हमें दर्शकों को उन्नीसवीं सदी में ले जाना था। फिल्म देखते हुए पीरियड का पता चलना चाहिए ना?
पिंडारियों को लुटेरी कौम माना जाता रहा है। आप उस कौम के हीरो को 'वीर' के रूप में पर्दे पर पेश कर रहे हैं। इस तरफ ध्यान कैसे गया?
पिंडारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ खुद को एकजुट किया था। वे मूल रूप से किसान थे। जब उन्हें लूट लिया गया तो वे भी लूटमार पर आ गए, लेकिन उनका मकसद था आजादी । आजादी की चिंगारी उन्होंने लगायी थी। मैंने एक फिल्म देखी थी बचपन में, उस से प्रेरित होकर मैंने पिंडारियों पर इसे आधारित किया। भारत का इतिहास अंग्रेजों ने लिखा, इसलिए अपनी खिलाफत करने वाली कौम को उन्होंने ठग और लुटेरा बता दिया। इस फिल्म में हम लोगों ने बताया है कि पिंडारी क्या थे?
आप ने पिता जी की मदद ली कि नहीं? आप दोनों ने कभी साथ में काम किया है क्या?
उन्होंने मेरी एक फिल्म लिखी थी पत्थर के फूल। उसके बाद उन्होंने लिखना ही बंद कर दिया। वे मेरे पिता हैं तो उनकी मदद लेना लाजिमी है। किसी भी फिल्म में कहीं फंस जाते हैं तो उनकी मदद लेते हैं। और वे तुरंत सलाह देते हैं।
इस फिल्म के लिए अलग से क्या मेहनत करनी पड़ी?
पहले मैंने बॉडी पर काम शुरू किया। फिर पता चला कि उस समय लोग सिक्स पैक नहीं बनाते थे। वे हट्टे-कट्टे रहते थे। उनकी टांगों और जांघों में भी दम रहता था। इसके बाद देसी एक्सरसाइज आरंभ किया। माडर्न तरीके में लोग धड़ से नीचे का खयाल नहीं रखते। ऐसा लगता है कि माचिस की तीलियों पर बाडी रख दी गयी हो। मुझे मजबूत व्यक्ति दिखना था।
अभी फिल्मों के प्रमोशन पर स्टार पूरा ध्यान देने लगे हैं। अब तो आप भी मीडिया से खूब बातें करते हैं?
करना पड़ता है। आप के लिए तो एक इंटरव्यू है, लेकिन मुझे अभी पचास इंटरव्यू देने हैं। फिर भी पता चलेगा कि कोई छूट गया। पहले का समय अच्छा था कि ट्रेलर चलता था। फिल्मों के पोस्टर लगते थे और दर्शक थिएटर आ जाते थे। अभी तो दर्शकों को बार-बार बताना पड़ता है कि भाई मेरी फिल्म आ रही है। पहले थोड़ा रिलैक्स रहता था। कभी मूड नहीं किया तो काम पर नहीं गए। अभी ऐसा सोच ही नहीं सकते। प्रमोशन, ध्यान, मेहनत सभी चीज का लेवल बढ़ गया है!
आपकी आंखों में हमेशा एक जिज्ञासा दिखती है। ऐसा लगता है कि आप हर आदमी को परख रहे होते हैं। क्या सचमुच ऐसा है?
वास्तव में मैं खुद में मगन रहता हूं। ऐसा लग सकता है कि मैं आप को घूर या परख रहा हूं, लेकिन माफ करें ़ ़ ़वह मेरे देखने का अंदाज है। मैं क्या लोगों को परखूंगा? आप लोग मुझे तौलते-परखते हैं और फिर लिखते हैं।
कौन थे पिंडारी?
पिंडारी एक योद्धा कौम थी। दो सौ साल पहले मुगल शासन के अंत के समय यह अस्तित्व में आयी। पिंडारी साहस, पराक्रम, तलवार बाजी और घुड़सवारी के खास अंदाज के लिए प्रसिद्ध थे। पिंडारी कौम में देश के अलग-अलग राज्यों के लोग थे। उन्होंने मुगल शासन का अंत करने में मराठा शासकों की बहुत मदद की। पिंडारियों ने ब्रिटिश शासकों के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। उन्होंने गुलामी स्वीकार करने की बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा। वे अपनी जन्मभूमि के लिए अंतिम समय तक लड़ते रहे। पिंडारियों से आजिज आकर 1817 में ब्रिटिश शासक लॉर्ड हैस्टिंग्स ने उनके खिलाफ पिंडारी वॉर छेड़ दिया। दो साल की लड़ाई के बाद अंत में ब्रिटिश शासक पिंडारियों पर नियंत्रण पाने में सफल हुए। जीवित पिंडारी लीडर एवं उनके परिवार को ब्रिटिश शासकों द्वारा गोरखपुर में जमीन और पेंशन देकर बसा दिया गया!
-अजय ब्रह्मंात्मज/ रघुवेन्द्र

Thursday, January 14, 2010

शादी..! किसी से नहीं: जेनिलिया डिसूजा | मुलाकात

जेनिलिया डिसूजा की फिल्म चांस पे डांस प्रदर्शन के लिए तैयार है, लेकिन कोई उनकी इस फिल्म को लेकर बात नहीं कर रहा है। उनकी चर्चा है तो बस उनकी शादी को लेकर। चर्चा है कि रितेश देशमुख के साथ जेनिलिया इस साल सात फेरे लेने जा रही हैं। रितेश और जेनिलिया ने आज तक अपने इस रिश्ते को दुनिया के सामने कभी स्वीकार नहीं किया है। ऐसे में दोनों की शादी की बात चौंकाती है। पिछले दिनों जेनिलिया से हुई मुलाकात के दौरान फिल्म चांस पे डांस, रितेश से सीक्रेट रिश्ते, शादी की योजना और इस साल की व्यस्तता के बारे में बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके अंश..
चांस पे डांस शीर्षक का क्या मतलब है?
यह एक स्ट्रगलर ऐक्टर समीर की कहानी है। वह रोज ऑडीशन देता है, लेकिन रिजेक्ट हो जाता है। अंत में उसे एक दिन बड़ा चांस मिलता है और वह अपना सौ प्रतिशत देकर उसे कैश करता है। इसका मतलब है कि यदि आपको चांस मिलता है, तो आप उसे जाने मत दीजिए, सौ प्रतिशत दीजिए और अपने सपने पूरे कर लीजिए।
आपने निजी जीवन में कितनी बार चांस पे डांस किया है?
मैंने बहुत ज्यादा चांस पे डांस किया है। मैं कभी एक्टिंग को करियर नहीं बनाना चाहती थी, लेकिन जैसे-जैसे मुझे मॉडलिंग और फिर एक्टिंग में चांस मिला, मैंने डांस किया। तभी आज इस मुकाम पर हूं।
क्या इस फिल्म के संदर्भ में कहा जा सकता है कि कट्रीना कैफ और जिया खान के बाद आपको चांस मिला, तो आपने फौरन लपक लिया?
लोग ऐसा कह सकते हैं कि मैंने चांस पे डांस किया है, लेकिन जब मुझे यह फिल्म ऑफर हुई थी, तब नई स्क्रिप्ट थी। उस समय यदि मैं यह फिल्म नहीं करती, तो कोई और कर लेता।
फिल्म में आपको क्या अलग और चैलेंजिंग लगा, जिसकी वजह से इससे जुड़ीं?
चैलेंजिंग नहीं, मुझे इसका सब्जेक्ट इंट्रेस्टिंग लगा। इसका सब्जेक्ट सबकी लाइफ से कनेक्ट करता है। सबकी लाइफ में एक स्टेज पर स्ट्रगल पीरियड आता है। फिल्म इसी लेवल पर ऑडियंस से कनेक्ट करती है। यह मेरे लिए मोस्ट एक्साइटिंग था।
क्या फिल्म ने आपकोअपने स्ट्रगल के दिनों की याद दिलाई?
मैं फिल्म में कोरियोग्राफर सोनिया का किरदार निभा रही हूं। वह भी स्ट्रगलर है, लेकिन मैं अपने किरदार से अधिक समीर के किरदार से रिलेट करती हूं। मैं भी ऑडीशन देने जाती थी और रिजेक्ट होती थी। जो भी कलाकार फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं है, उसे इस तरह के पीरियड से गुजरना पड़ता है।
शाहिद कपूर को ऐक्टर और को-आर्टिस्ट के रूप में आपने कैसा पाया?
शाहिद अच्छे ऐक्टर हैं। वे बहुत अच्छे को-आर्टिस्ट भी हैं। हम दोनों पहले दिन से अच्छे दोस्त बन गए थे, इसलिए चांस पे डांस की पूरी शूटिंग को हमने एंज्वॉय किया। उनके साथ काम करने का फैंटास्टिक एक्सपिरीयंस रहा।
आप शाहिद कपूर की पहली हीरोइन हैं, जिनके साथ लिंकअप की खबरें नहीं आई?

अरे हां, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। ताज्जुब की बात है। मुझे शाहिद से पूछना पड़ेगा। ऐसा लगता है कि शायद शाहिद को मुझमें इंट्रेस्ट नहीं था।
आप रितेश देशमुख से प्यार करती हैं?
नहीं, मैं सिंगल हूं। मैं रितेश से प्यार नहीं करती। हम कपल नहीं हैं।
फिर आप दोनों की शादी की खबर इन दिनों सुर्खियों में है?
मैं जब रितेश से प्यार ही नहीं करती, तो उनसे शादी कैसे संभव है। मैं अभी किसी से शादी नहीं कर रही हूं। मैं ज्यादा से ज्यादा फिल्में करना चाहती हूं। प्लीज, मैं लोगों से यही कहूंगी कि मेरी शादी की अफवाह फैलाकर मुझे इंडस्ट्री से बाहर न करें।
फिल्म चांस पे डांस के अलावा इस साल आपको लोग और किन फिल्मों में देखेंगे?
मेरी दो फिल्में हुक या क्रुक और इट्स माई लाइफ भी रिलीज के लिए तैयार हैं। हुक या क्रुक में मैंने वकील का किरदार निभाया है और इट्स माई लाइफ में मेरा अलग तरह का किरदार है, जो मेरे लिए चैलेंजिंग था। इस रोल के बारे में मैं ज्यादा नहीं बता सकती।
जेनिलिया का जन्म 5 अगस्त 1987 को इंग्लैंड में हुआ।
मंगलोर की एक कैथोलिक फेमिली में जन्मीं जेनिलिया की मां का नाम जेनिफर और पिता का नाम नील है।
जेनिलिया मुंबई में पली-बढ़ी हैं। उनकी पढ़ाई भी यहीं हुई है।
जेनिलिया की पहली फिल्म 2003 में आई तुझे मेरी कसम, जो तेलुगू की नूव्वे कावली की रिमेक थी।
जेनिलिया की काफी समय बाद 2008 में आई फिल्म मेरे बाप पहले आप, लेकिन उन्हें चर्चा मिली इसी साल आई आमिर खान निर्मित फिल्म जाने तू या जाने ना से।
जेनिलिया की आने वाली दो फिल्में हैं डेविड धवन निर्देशित हुक या क्रुक और अनीस बज्मी निर्देशित इट्स माई लाइफ।


-raghuvendra singh

रिस्क लेना आदत है: प्रियंका चोपड़ा

प्रियंका चोपड़ा ने नए साल का स्वागत न तो हरमन बावेजा के साथ रहकर किया और न ही शाहिद कपूर के साथ। पुराने प्रेमियों को छोड़कर उन्होंने न्यूयॉर्क में रणबीर कपूर के साथ नए साल का जश्न धूमधाम से मनाया। प्रियंका ने यह कदम उठाकर बताने की कोशिश तो नहीं की है कि पुराने साल के साथ पुराने प्रेमी भी अब उनके लिए बीता कल बन चुके हैं। हरमन और शाहिद के नाम पर प्रियंका कहती हैं, निजी लाइफ के बारे में बात करना मुझे पसंद नहीं है। मीडिया अपने मन से मेरा नाम कभी इस ऐक्टर से तो कभी उस ऐक्टर से जोड़ देती है। मुझे इन बातों से फर्क नहीं पड़ता। मुझे इस संबंध में कुछ कहना भी नहीं है। मैंने अपने लिए कुछ सीमाएं बना रखी हैं। निजी लाइफ के बारे में बात न करना उनमें से एक है।
बात को आगे बढ़ाते हुए प्रियंका कहती हैं, मैं न्यूयॉर्क में अपनी नई फिल्म अंजाना अंजानी की शूटिंग के लिए आई हूं। रणबीर फिल्म में मेरे अपोजिट हैं। हम दोनों साथ यहां आए। प्रियंका आश्चर्य प्रकट करते हुए कहती हैं, मेरी फिल्म प्यार इंपासिबल रिलीज हो चुकी है और हैरानी की बात यह है कि अभी तक मेरा नाम फिल्म के हीरो उदय चोपड़ा के साथ नहीं जोड़ा गया। ऐसा पहली बार हो रहा है। थैंक गॉड! चलो, किसी को तो लोगों ने छोड़ा।
सलमान खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, रितिक रोशन, शाहिद कपूर जैसे स्टार कलाकारों के साथ काम करने वाली स्टार ऐक्ट्रेस प्रियंका का उदय चोपड़ा के साथ वाली फिल्म प्यार इंपासिबल में काम करना लोगों को हजम नहीं हो रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उदय न तो पापुलर ऐक्टर हैं और न ही उनकी दर्शकों के बीच खास डिमांड। कहा जा रहा है कि उदय के साथ काम करके प्रियंका ने बहुत बड़ा रिस्क लिया। यह नए साल में प्रदर्शित होने वाली प्रियंका की पहली फिल्म है। वे इस बारे में कहती हैं, रिस्क लेना मेरी आदत है। रिस्क के बिना लाइफ में मजा नहीं आता। मैंने जब फैशन की थी, तब भी कुछ लोगों ने कहा था कि वूमेन ओरिएंटेड फिल्म देखने कौन जाएगा? आज रिजल्ट सबके सामने है। मैंने अपने करियर में हमेशा रिस्क लिया है। मैंने हमेशा वही फिल्में कीं, जिन्होंने मुझे चैलेंज किया। तभी आज इस मुकाम पर हूं।
प्रियंका आगे कहती हैं, फिल्म प्यार इंपासिब में अभय का किरदार कोई और उतनी खूबसूरती से नहीं कर सकता था, जितनी खूबसूरती से उदय ने किया है। यह उनकी ही फिल्म है। अभय के किरदार के लिए उदय और अलीशा के लिए मैं फिट हूं। हमारी केमिस्ट्री दर्शकों को अच्छी लगेगी। फिल्म के बारे में प्रियंका आगे कहती हैं, यह मेरे करियर की चैलेंजिंग फिल्म है। वैसे, यह बात मैं हर फिल्म के प्रदर्शन के समय कहती हूं, लेकिन क्या करूं? मेरी हर फिल्म होती ही ऐसी है। प्यार इंपासिबल एक साधारण लड़के और बेहद खूबसूरत लड़की की कहानी है। अभय में कांफिडेंस नहीं है, जबकि अलीशा कंप्लीट एंटरटेनर है। अभय को लगता है कि वह परफेक्ट गर्ल है, लेकिन यह उसका नजरिया है। अलीशा पीआर ऐंड मार्केटिंग में है। वह वैसी नहीं है जैसी अभय की आंखों से दिखती है। अभय और अलीशा का इंपासिबल प्यार पासिबल होता है या नहीं, यही फिल्म का सीक्रेट है।
बरेली की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा खुद को इंटेलीजेंट, इंडीपेंडेंट, एंबीशियस, फन लविंग और वैल्यूज और थिंकिंग में इंडियन मानती हैं। वे बताती हैं कि उनकी थिकिंग और वैल्यूज आज भी वही हैं। पिछले दो सालों से वे प्रोफेशनली एक्सपेरिमेंटिंग हो गई हैं। प्रियंका कहती हैं, जब मैंने एक्टिंग करनी शुरू की थी, तब बहुत कम उम्र की थी। तब उतनी समझ नहीं थी, लेकिन पांच-छह साल काम करने के बाद मैंने समझ लिया कि किस तरह की फिल्में मुझे करनी चाहिए। मेरी कोशिश होती है कि हर फिल्म में नए लुक, मजेदार किरदार और डिफरेंट स्टाइल में दिखूं, ताकि दर्शकों को फिल्म देखकर लगे कि वे नई प्रियंका को देख रहे हैं।
गुजरे साल फैशन फिल्म के रोल के लिए कई पुरस्कार बटोरने वाली प्रियंका यह सोचकर दुखी हैं कि पुरस्कार लेने के लिए वे उपस्थित नहीं होंगी। वे कहती हैं, 2009 में मुझे फैशन के रोल के लिए बेस्ट ऐक्ट्रेस का अवार्ड मिला। इस साल कमीने में मेरे काम की लोगों ने तारीफ की। स्वीटी के किरदार में लोगों ने मुझे पसंद किया। अफसोस की बात है कि इस फिल्म के लिए मुझे पुरस्कार मिलते हैं, तो मैं ले नहीं सकूंगी। दरअसल, मैं न्यूयॉर्क में ढाई महीने के लंबे शेड्यूल के लिए आई हूं। सिद्धार्थ आनंद मुझे आने नहीं देंगे।
नए साल में अपनी व्यस्तताओं के बारे में प्रियंका बताती हैं, फिल्म अंजाना अंजानी का ढाई महीने का लंबा शेड्यूल खत्म करने के बाद मैं अप्रैल में विशाल भारद्वाज की अनाम फिल्म के लिए डेढ़ महीने आउटडोर पर जाऊंगी। इस साल मैं अधिकतर आउटडोर शूटिंग में व्यस्त हूं।
-raghuvendra singh

बिग बॉस जैसा कोई शो नहीं: अदिति गोवित्रीकर

डॉक्टर, मॉडल और ऐक्ट्रेस अदिति गोवित्रीकर केलिए रियलिटी शो बिग बॉस 3 का दूसरा अनुभव था। इसके पहले उन्होंने फीयर फैक्टर -खतरों के खिलाड़ी में हिस्सा लिया था। पहले रियलिटी शो में अदिति ने शारीरिक चुनौतियों को स्वीकार किया और दूसरे में मानसिक चुनौतियों को। वे ग्यारह सप्ताह परिवार से दूर, अलग-अलग पृष्ठभूमि और भिन्न सोच के लोगों के साथ तालमेल बिठाती रहीं। कलर्स के इस चर्चित शो से बाहर निकलने के बाद अदिति पाठकों के सामने अपनी बात रख रही हैं। उनकी बातें, उन्हीं की जुबानी..
क्या पाया, क्या खोया?
मैंने बिग बॉस के घर में अपने बच्चों को सबसे अधिक मिस किया। इतने लंबे समय तक कभी बच्चों से दूर नहीं रही। मैं दूर जाती भी थी, तो बच्चों से लगातार संपर्क में रहती थी। मैंने ग्यारह सप्ताह उनका साथ इस शो में जाकर खोया और दूसरी तरफ इस शो में मैंने तीन अच्छे दोस्त तनाज करीम, बख्तियार ईरानी और शमिता शेट्टी पाए। मुझे अलग-अलग पर्सनैल्टी और बैकग्राउंड के लोगों से बात करने और साथ रहने का अनुभव मिला। अब मैं अपने बारे में जान गई हूं कि मैं क्या कर सकती हूं।
रियलिटी शो में मसाला जरूरी
बिग बॉस के घर से निकलने के बाद मुझे रियलाइज हुआ कि इस तरह के शो में जो लोग मसाला दे सकते हैं, हंगामा कर सकते हैं, वही असली खिलाड़ी हैं। वे शो के फाइनल तक जाते हैं। शमिता और तनाज जैसे सीधे और अच्छे लोग ऐसे शो में नहीं रह सकते। मैं बिग बॉस के घर में यही सोचकर रही कि यह मेरा काम है। मैंने खुद चौबीस घंटे कैमरे के सामने रहने का फैसला किया था। शो ने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया है, जो जिंदगी में हमेशा काम आएगा।
शो की रियलिटी
बिग बॉस जैसा कोई रियलिटी शो नहीं है। यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रही हूं। इससे पहले मैंने खतरों के खिलाड़ी में हिस्सा लिया था, लेकिन उसका अनुभव अलग था। एक चारदीवारी में दुनिया से संपर्क खत्म करके चौरासी दिन तक वही चेहरे देखना सजा की तरह है। इस शो में दो दोस्त दुश्मन बन सकते हैं, लेकिन यदि आप तेज दिमाग के हैं और खुद पर कंट्रोल रखना जानते हैं, तो इसमें रह सकते हैं। मैंने शो को चुनौती मानकर स्वीकार किया था और खुश हूं कि मैं शो के फाइनल के करीब तक पहुंची।
फिल्मों पर फोकस
मैंने बिग बॉस में जाने से पहले दो फिल्में साइन की थीं। एक मराठी और एक हिंदी। सबसे पहले उनकी शूटिंग खत्म करूंगी। उसके बाद मैं नए काम के लिए हां कहूंगी। मैं कुछ दिन अपने बच्चे के साथ रहूंगी। पिछले दिनों मेरी फिल्म दे दना दन रिलीज हुई। उसे देखूंगी। पहले की तरह फिल्मों पर मैं फोकस करूंगी। यदि कोई मजेदार टीवी शो का ऑफर आया, तो उसके बारे में भी विचार करूंगी।
-raghuvendra singh

Tuesday, January 5, 2010

मेरी ज़िन्दगी में कोई नहीं है- कंगना राणावत

कंगना राणावत के लिए 2009 मिला-जुला साल रहा। राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज से एक ओर उनकी फिल्मोग्राफी में एक और सफल फिल्म का नाम जुड़ा, जिसके लिए वे बेहद खुश हुईतो दूसरी तरफ ब्वॉयफ्रेंड अध्ययन सुमन से ब्रेकअप के बाद वे फिर से अकेली हो गई। बीते साल ने कंगना को बहुत कुछ सिखाया है। इसने उन्हें और भी प्रोफेशनल बना दिया। पॉजिटिव सोच वाली और मेहनती कंगना इन बातों को भुलाकर उत्साह और नई उम्मीदों के साथ 2010 का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। प्रस्तुत है, पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ और नए साल से जुड़ी उम्मीदों के संदर्भ में कंगना से कुछ सवाल..
एक साल पहले और आज की कंगना में काफी बदलाव नजर आ रहा है। अब आप मैच्योरिटी के साथ चीजें हैंडल करने लगी हैं। इस बदलाव की वजह क्या है?
जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में आई थी, तब केवल 18 साल की थी। वक्त के साथ ग्रोथ और मैच्योरिटी नॉर्मल बात है। वक्त के साथ इंसान में बदलाव आता ही है। एक्सपीरियंस बहुत कुछ सिखा देता है। यह हर इंसान के साथ होता है।
पहले की अपेक्षा अब आप मीडिया के बीच कम नजर आती हैं, क्यों?
मैंने कभी जान-बूझकर मीडिया के बीच रहने की कोशिश नहीं की। मेरा फोकस हमेशा अपने काम पर रहा है। फिल्म की रिलीज के आसपास मीडिया से ज्यादा इंटरेक्शन होता है। आजकल मैं फिल्मों की शूटिंग में ज्यादा व्यस्त हूं और आउटडोर शेड्यूल ज्यादा है, तो मुंबई में कम ही रहती हूं। इसीलिए मीडिया में मेरी अपियरेंस कम हो गई है.. और कोई बात नहीं है।
इधर फिल्मों में आपकी व्यस्तता अधिक बढ़ गई है। खासकर अध्ययन सुमन से अलगाव के बाद, तो क्या माना जाए कि व्यस्त रहकर आप निजी जीवन के खालीपन को भरने की कोशिश कर रही हैं?
ऐसा कुछ नहीं है। ये फिल्में मैंने कई महीने पहले साइन की थीं। मेरा फोकस इस समय काम पर है और मेरा ध्यान उसी पर लगा है।
आजकल आपकी जिंदगी में कौन है?
कोई नहीं। मैं एकदम खाली हूं।
नए साल में प्रदर्शित होने वाली अपनी फिल्मों के बारे में बताएंगी। उसमें आप क्या नया करने जा रही हैं?
मेरी फिल्म वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई, तनु वेड्स मनु, नॉक आउट, नो प्रॉब्लम आदि की शूटिंग अभी चल रही है। ये फिल्में 2010 में आएंगी। वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई मेरे करियर की पहली पीरियड फिल्म है। तनु वेड्स मनु और नो प्राब्लम कॉमेडी फिल्में हैं। इस जॉनर की फिल्म मैं पहली बार कर रही हूं। मैं बहुत एक्साइटेड हूं। उम्मीद कर रही हूं कि इन फिल्मों में मुझे नए अंदाज में दर्शक स्वीकार करेंगे।
आपकी फिल्म काइट्स को इंटरनेशनल मार्केट में काफी प्रमोट किया जा रहा है। क्या आपको इस फिल्म से इंटरनेशनल लेवल पर आपकी मांग बढ़ने की संभावना दिखती है?
एक आर्टिस्ट के नजरिए से मैं कह सकती हूं कि काइट्स बहुत अच्छी फिल्म है। यह मेरे करियर की महत्वपूर्ण फिल्म भी है। उसके प्रोमोशन और पोजीशनिंग के बारे में प्रोड्यूसर ज्यादा बात कर सकते हैं। मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकती। हां, इतना तय है कि यदि यह सफल होगी, तो मुझे इसका हर तरह से और हर जगह फायदा मिलेगा।
नए साल से क्या उम्मीदें हैं?
मेरी फिल्मों को दर्शक पसंद करें। मुझे अच्छी फिल्मों में काम करने का मौका मिले। मुझे चैलेंजिंग किरदार मिलें। एक कलाकार होने के नाते मैं यही उम्मीदें कर सकती हूं।
-raghuvendra Singh

Monday, January 4, 2010

असफल विन्दू की पहली सफलता

पैंतालीस वर्षीय विंदू दारा सिंह की पहचान अब तक पॉपुलर सीनियर एक्टर एवं रेसलर दारा सिंह के बेटे की थी। पन्द्रह वर्ष से एक्टिंग में सक्रिय विंदू फिल्म इंडस्ट्री में सलमान खान और अक्षय कुमार के बेस्ट फ्रेंड के रूप में पहचाने जाते थे, लेकिन 'बिग बॉस' तृतीय रिएलिटी शो का विजेता घोषित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली है।
[लीड से साइड रोल का सफर]
विंदू ने 1994 में अपने पिता दारा सिंह निर्मित फिल्म करन से एक्टिंग में डेब्यू किया। यह फिल्म चली नहीं तो दो वर्ष उपरांत दारा सिंह ने विंदू को लेकर पंजाबी फिल्म रब दियां राखां बनायी। दोनों फिल्मों की असफलता के बाद में विंदू ने टीवी का रूख किया। आंखें, चंद्रमुखी, श्श्श फिर कोई है, ब्लैक जैसे धारावाहिकों में उन्होंने निगेटिव एवं पॉजिटिव रोल किए, लेकिन यहां भी बात नहीं बनी।
[सफलता की उम्मीद]
विंदू को पहली बार सफलता तब मिली जब उन्होंने अपने पिता की तरह जय श्री हनुमान धारावाहिक में हनुमान का रोल निभाया। बाद में मैंने प्यार क्यूं किया, पार्टनर, मुझसे शादी करोगी और इस साल प्रदर्शित कमबख्त इश्क एवं मारुति मेरा दोस्त फिल्म में वह साइड रोल में दिखे। 'बिग बॉस' में जीत से कॅरियर में तेजी आने की आस लिए विंदू ने कहा, मैं रीचार्ज हो गया हूं। यह विजय निश्चित ही मेरे कॅरियर को नयी दिशा देगी।
'बिग बॉस' प्रथम के विजेता राहुल रॉय और 'बिग बॉस' द्वितीय के विजेता आशुतोष कौशिक आज कहीं नजर नहीं आते। 'बिग ब्रदर' में जीत से शिल्पा शेंट्टी के फिल्मी कॅरियर को खास लाभ नहीं हुआ था। ऐसे में विंदू का उम्मीदें रखना कितना सही है? विंदू कहते हैं कि मेरे दोस्त मानते हैं कि अब मैं बड़ा टीवी स्टार बन गया हूं, लेकिन मेरे पास कोई फिल्म और सीरियल नहीं है। मैं अच्छे काम का इंतजार कर रहा हूं। फिलहाल मैं अपनी पत्नी डीना और बेटी एमीलिया के साथ मुंबई के नए घर में समय बिताऊंगा।
उम्मीद करते हैं कि विंदू दारा सिंह के कॅरियर पर इस जीत का असर नजर आएगा।
-रघुवेन्द्र सिंह

महबूब स्टूडियो- यहीं परवान चढ़ा दिलीप-मधुबाला का प्यार

सलमान खान ने इंटरव्यू के लिए एक बार फिर महबूब स्टूडियो को चुना। मुंबई में बांद्रा (वेस्ट) के हिल रोड पर स्थित महबूब स्टूडियो उनके घर से कुछ कदम की दूरी पर है। वे अपनी वैनिटी वैन के बगल में कुर्सी पर आराम से बैठे वीर फिल्म की टीम से गुफ्तगू कर रहे हैं। सलमान खान की वैनिटी वैन के ठीक सामने ऐश्वर्या राय बच्चन और रितिक रोशन की वैनिटी वैन खड़ी है। वे सामने के स्टेज तीन में गुजारिश फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं। शाम के टी-ब्रेक की घोषणा होती है और स्टेज तीन के सामने के एरिया में हलचल मच जाती है। छोटा सा प्रांगण टेक्नीशियनों एवं जूनियर आर्टिस्ट से भर जाता है।
महबूब स्टूडियो में यह रोज का नजारा है। निर्माण के 55 साल बाद भी इस स्टूडियो की लोकप्रियता और डिमांड फिल्मकारों के बीच किसी नए स्टूडियो के समान बनी हुई है। वैसे, महबूब स्टूडियो की इमारतें अब पुरानी दिखने लगी हैं। दीवारों के रंग धूमिल हो चुके हैं। सिर्फ महबूब स्टूडियो के ऑफिस के बगल वाली बिल्डिंग थोड़ी चमकती है। इसी बिल्डिंग में महबूब खान के स्वर्गीय बड़े बेटे अयूब खान की फैमिली एवं मंझले बेटे इकबाल खान रहते हैं। प्रांगण के मध्य में स्थित ऑफिस की भीतरी दीवारों पर महबूब खान की मदर इंडिया, आन, अंदाज, अमर आदि फिल्मों की टंगी तस्वीरें महबूब स्टूडियो के शानदार इतिहास को बयां करती हैं।
ऑफिस की दोमंजिला इमारत में प्रॉपर्टी रूम, मेकअप रूम, कारपेंटर रूम हैं। जानकार बताते हैं कि इसी इमारत के मेकअप रूम में दिलीप कुमार और मधुबाला का प्रेम परवान चढ़ा था। महबूब खान की उन दोनों पर कड़ी नजर रहती थी इसलिए वे मुश्किल से यहां छुपकर बैठ पाते थे। इसी इमारत के दूसरे तल पर एसी लगे एक कमरे में महबूब खान की फिल्मों के निगेटिव, रील, पोस्टर आदि सुरक्षित रखे हैं।
ऑफिस के ठीक पीछे स्टेज नंबर एक है। यह बेहद विशाल है। बायीं ओर स्टेज नंबर तीन है। स्टेज तीन के पीछे स्टेज चार है। स्टूडियो के इस सबसे छोटे स्टेज में ज्यादातर एड फिल्मों की शूटिंग होती है। उसके सामने स्टेज नंबर पांच एवं छह है तथा बगल में स्टेज नंबर दो है। दो नंबर स्टेज से सटी बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर महबूब रिकॉर्डिग स्टूडियो है। एक विशाल कक्ष एवं आमने-सामने छोटे-छोटे दो कमरे हैं। पुराने जमाने में विशाल कक्ष में लाइव ऑर्केस्ट्रा बजता था और एक छोटे कमरे में साउंड रिकॉर्डिग तथा दूसरे में सिंगर गाते थे। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल अपनी हर फिल्म का गाना यहीं रिकॉर्ड करते थे।
भारतीय सिनेमा के इतिहास को अपने आगोश में समेटे हुए महबूब स्टूडियो की ओल्ड चार्म के कारण लोकप्रियता आज भी बरकरार है। महबूब स्टूडियो के प्रांगण में छोटा सा हरा-भरा गार्डन है। गार्डन के दूसरी तरफ कैंटीन है। महबूब खान ने कैंटीन इसलिए बनवायी थी ताकि जूनियर कलाकारों और उनके वर्कर को चाय नाश्ते के लिए स्टूडियो से बाहर न जाना पड़े। कैंटीन के भीतर दीवार पर महबूब खान की बड़ी तस्वीर टंगी है। हंट्टे-कंट्टे चौड़ी छाती वाले महबूब खान लगता है कि अपनी विरासत पर गौरवान्वित हो रहे हैं!
[क्यों है लोकप्रिय]
1. स्टूडियो बांद्रा के हिल रोड पर है। बांद्रा एवं अंधेरी में अधिकतर फिल्म स्टार रहते हैं। उन्हें स्टूडियो पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगता।
2. स्टूडियो के बाहर बड़ी मार्केट है। शूटिंग के दौरान यदि प्रोडक्शन से जुड़ी किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो कहीं दूर नहीं जाना पड़ता।
3. स्टूडियो में फिल्म स्टार, निर्माता, निर्देशक एवं यूनिट के लोगों की गाड़ी खड़ी होने की क्षमता वाला बड़ा पार्किग स्पेस है।
4. स्टूडियो में शूटिंग के सभी उपकरण उपलब्ध हैं। अन्य स्टूडियो की तुलना में महबूब स्टूडियो में शूटिंग वाजिब दाम पर होती है।
[महबूब स्टूडियो का इतिहास]
1. महबूब खान ने 1942 में चार एकड़ जमीन खरीदी। 1950 में स्टूडियो का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1954 में स्टूडियो बनकर तैयार हुआ। स्टूडियो की जमीन एवं निर्माण की लागत बीस लाख रूपए से अधिक आयी थी।
2. स्टूडियो में पहले छह स्टेज थे। तीन विशाल एवं तीन छोटे, लेकिन 1992 में महबूब रिकॉर्डिग स्टूडियो को स्टेज में तब्दील करने के बाद कुल सात स्टेज हो गए।
3. महबूब खान ने स्टूडियो का निर्माण होम प्रोडक्शन की फिल्मों की शूटिंग के लिए किया था, लेकिन बाद में गुरूदत्त, चेतन आनंद आदि की मांग पर वे इसे किराए पर देने लगे।
4. 1964 में महबूब खान के इंतकाल के बाद उनके बेटे अयूब खान, इकबाल खान एवं शौकत खान स्टूडियो को संभाल रहे हैं।
5. महबूब स्टूडियो में अब तक साढ़े तीन सौ से अधिक देसी-विदेशी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
-रघुवेन्द्र सिंह