Monday, May 30, 2011

पूर्वी में देसी टच है-दीपिका पादुकोण


हालिया रिलीज फिल्म दम मारो दम के टाइटिल गीत में मादक अदाओं से मदहोश करने वाली दीपिका पादुकोण का अब देसी रूप देखने को मिलेगा। आरक्षण फिल्म में उन्होंने अपना चोला बदला है। प्रकाश झा की ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म आरक्षण में दीपिका भारतीय परिधानों में दिल जीतने आ रही हैं। यह फिल्म दीपिका के करियर के लिए टर्निग प्वॉइंट साबित हो सकती है ऐसा माना जा रहा है। इस फिल्म को लेकर दीपिका खुद बहुत उत्साहित हैं। उनके शब्दों में, फिल्म आरक्षण का मुद्दा अपने आप में बहस का एक अलग विषय है। मैं पहली बार ऐसी फिल्म में काम कर रही हूं। मैं पहली बार पूर्वी आनंद जैसा किरदार निभा रही हूं। पूर्वी इंडीपेंडेंट है। वह फैमिली ओरिएंटेड है। वह अपने पिता से बहुत प्यार करती है और उनका बेहद सम्मान भी करती है। अचानक उसके जीवन में ऐसा मोड़ आता है, जब वह अपने दोस्तों दीपक और सुशांत और अपने पिता के बीच उलझ जाती है। उसे समझ में नहीं आता कि किसका पक्ष ले।

किरदारों के मामले में हमेशा जोखिम उठाने वाली दीपिका आरक्षण से पहले आशुतोष गोवारीकर की फिल्म खेलें हम जी जान से में एक क्रांतिकारी महिला की भूमिका निभा चुकी हैं। लेकिन आरक्षण की पूर्वी और खेलें हम जी जान से की कल्पना की तुलना करना उचित नहीं होगा। दीपिका के अनुसार, पूर्वी में देसी टच है। खासकर भाषा के मामले में। आरक्षण की शूटिंग के दौरान भाषा मेरे लिए मुश्किल साबित हुई। हम रोजाना जिस हिंदी का इस्तेमाल करते हैं, इसमें वैसी हिंदी नहीं है। पूर्वी शुद्ध हिंदी बोलती है। इसलिए हिंदी पर मुझे काफी काम करना पड़ा। 
दीपिका पादुकोण को आरक्षण में सैफ अली खान का साथ मिला है, जिनके साथ वे लव आज कल फिल्म में काम कर चुकी हैं। दोनों की जोड़ी को उसमें बेहद सराहा गया था। गौरतलब है कि आरक्षण की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म कुछ जिंदगियों की कहानी है। भोपाल में आरक्षण की शूटिंग के दौरान दीपिका फिल्मकार प्रकाश झा को प्रभावित करने में सफल हो गई। तभी तो प्रकाश झा उनकी तारीफ में कहते हैं, दीपिका बहुत समझदार हैं। वे चीजों को बहुत जल्दी समझ लेती हैं। प्रकाश झा के बारे में दीपिका कहती हैं, प्रकाश झा फिल्म देखने के बाद बहुत खुश हुए। उन्होंने मुझे फोन किया और मेरे काम की तारीफ की। उन्होंने कहा कि आपने मेरी उम्मीद से ज्यादा अच्छा काम किया है। प्रकाश जी के साथ काम करना मेरे लिए लर्निग एक्सपिरियंस रहा।
दीपिका को आजकल अपनी प्रतिद्वंद्वी कट्रीना कैफ से संबंधित सवालों का सामना भी अनचाहे ही करना पड़ रहा है। दरअसल, उनसे पहले प्रकाश झा की फिल्म में राजनीति में कट्रीना ने काम किया था। दिलचस्प बात है कि कट्रीना का नाम सुनते ही दीपिका मुंह बिचका लेती हैं। वे सवाल को अनसुना करने का बहाना करती हैं। खासकर कट्रीना की तरह आरक्षण से अपनी ग्लैमर गर्ल की इमेज से संबंधित प्रश्न पर। दीपिका अपनी बात रखती हैं, लोगों के दिमाग में गलत धारणा है कि ग्लैमरस लड़कियां एक्टिंग नहीं कर सकतीं। वे परफॉर्मेस ओरिएंटेड रोल के साथ न्याय नहीं कर सकतीं। यह सच नहीं है। गौरतलब है कि दीपिका इस सवाल के बहाने अपना नाम मशहूर हॉलीवुड अदाकार जूलिया रॉब‌र्ट्स के साथ जोड़ती हैं। वे कहती हैं, हॉलीवुड की ऐक्ट्रेस जूलिया रॉब‌र्ट्स को देखें। वे ग्लैमरस रोल करने के साथ परफॉर्मेस ओरिएंटेड रोल भी प्रभावी तरीके से निभाती हैं।
प्रकाश झा के निर्देशन से कट्रीना का अभिनय तो निखर गया। राजनीति फिल्म के बाद उनकी गिनती एक गंभीर अभिनेत्री के तौर पर होने लगी । क्या दीपिका अपनी प्रतिद्वंद्वी कट्रीना की तरह आरक्षण से अपनी छवि लोगों में एक सीरियस ऐक्ट्रेस की बना पाएंगी? इस बात का जवाब तो उनकी फिल्म के प्रदर्शन के बाद पता चलेगा। फिलहाल दीपिका आरक्षण का गुणगान करने में जुटी हैं।
-रघुवेंद्र सिंह 

Sunday, May 29, 2011

मजेदार सास है लीला-अपरा मेहता


कलर्स का नया धारावाहिक 'हमारी सास लीला' अपरा मेहता के लिए खास है। इसमें पहली बार मा-बेटी अपरा मेहता और खुशाली की जोड़ी साथ आ रही है। अपरा मेहता ऑन स्क्रीन लीला पारेख की केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं, जबकि उनकी इकलौती लाडली बेटी खुशाली ऑफ स्क्रीन सीरियल का लेखन कर रही हैं। अपरा के लिए यह बेहद खुशी और गर्व का मौका है। अपरा कहती हैं, 'खुशाली और मैं एक गुजराती प्ले 'मैरिज मा मस्ती मैरिज मा मस्ती' में काम कर चुके हैं, लेकिन सीरियल में हम पहली बार साथ काम कर रहे हैं। मैं बहुत खुश हूं। खुशाली सीरियल की लेखन टीम में है।'

हमारी सास लीला मुंबई के एक गुजराती परिवार की कहानी है। जिसकी मुखिया लीला पारेख हैं। बहू की तलाश कर रहीं लीला की एक ही चिता है। उन्हें एक अच्छी बहू की तलाश है। अपरा कहती हैं, 'लीला को सेम टू सेम अपने जैसी बहू चाहिए। उसने बड़ी मुश्किल से अपने परिवार को एकता के सूत्र में पिरोकर रखा है। वह डरती है कि गलत सोच और स्वभाव की बहू उसके घर में आ गई, तो उसका परिवार बिखर जाएगा।'
लीला का चरित्र चित्रण सुनकर लगता है कि यह आसान किरदार है, लेकिन थिएटर और टीवी की मझी अभिनेत्री अपरा मेहता के समक्ष इस किरदार ने चुनौती पेश कर दी। अपरा कहती हैं, 'देश की तरक्की के साथ महिलाओं की सोच बदल गई है। लीला समय के साथ चलने वाली महिला है, लेकिन वह ट्रेडीशनल वैल्यू को भूली नहीं है। लीला का किरदार महिलाओं के लिए प्रेरणा बनेगा। वह परिवार को इकट्ठा रखने के लिए काफी समझौते करती है। मुझे लगता है छोटे पर्दे की सबसे मजेदार सास है लीला। वह खुशमिजाज और पॉजिटिव सोच की महिला है। लीला से दर्शकों को प्यार हो जाएगा।'
समझौते की बात को निजी जीवन से जोड़ने पर अपरा कहती हैं, 'परिवार मेरी प्राथमिकता है। मैं शूटिंग के बाद सीधे घर जाती हूं। यदि घर में कोई इमरजेंसी आती है, तो काम छोड़कर घर लौट जाती हूं। लबे समय से टीवी की दुनिया में सक्रिय अपरा मानती हैं कि टीवी की कहानिया प्रयोग के दौर से गुजर रही हैं। आजकल टीवी पर काफी एक्सपेरिमेंट हो रहे हैं। 'हमारी सास लीला' उसमें से एक है। '
-रघुवेन्द्र सिह

Wednesday, May 25, 2011

मैं चांस लेता हूं-राहुल बोस


राहुल बोस की पिछली फिल्म 'आई एम..' थी। लीक से हटकर रोल स्वीकारने और उसमें अपनी छाप छोड़ जाने के लिए मशहूर राहुल की अगली फिल्म है 'कुछ लव जैसा'। इस फिल्म को लेकर अपने विचारों से हमें रूबरू करा रहे हैं खुद राहुल :

रोचक है 'कुछ लव जैसा' 
'मिस्टर एंड मिसेज अय्यर' और 'प्यार के साइड इफेक्ट' के बाद 'कुछ लव जैसा' मेरे कॅरियर की तीसरी सबसे खास फिल्म है। मैं बहुत उत्साहित हूं। यह मधु और राघव की रोचक कहानी है। मधु से मिलने के बाद राघव का जीवन के बारे में नजरिया बदल जाता है। यह फिल्म औरतों को बहुत पसद आएगी। इसमें मेरे साथ शेफाली शाह हैं। अगर उनके जैसा कलाकार आपके अपोजिट हो तो आप बहुत अच्छा परफॉर्म करते हैं।
राघव से मिली चुनौती
मैंने राघव जैसे शख्स को कभी नहीं प्ले किया। वह क्रिमिनल है। फर्जी पासपोर्ट बनाता है। उसे जिंदगी में बहुत दुख मिला है। उसमें एक ठहराव आ गया है। अपनी फीलिग किसी से वह शेयर नहीं करता। उसे लगता है कि समाज में सब कुछ बिकता है। राघव की बोली मेरे लिए नई थी। वह महाराष्ट्र के किसी छोटे से गाव से निकला है। राघव विलेज और मुंबई स्ट्रीट की मिक्स लैंग्वेज बोलता है। मेरे लिए यह रोल प्ले करना ईजी नहीं था। इसके लिए मैंने दो बार डबिग की।
नहीं लगता मुझे डर
नए निर्देशकों के साथ चास लेने में मुझे मजा आता है। मेरे कॅरियर में एक तरफ अपर्णा सेन, दीपा मेहता जैसे कई स्थापित निर्देशकों का साथ है, तो दूसरी ओर देव बेनेगल, कैजाद गुस्ताद जैसे नए निर्देशकों के साथ भी मैंने काम किया है। मुझे नए निर्देशकों के साथ काम करने में डर नहीं लगता। अगर अच्छा रोल, अच्छा सब्जेक्ट और अच्छे एक्टर हों, तो मैं चास लेता हूं। बरनाली ने फिल्म की स्क्रिप्ट खुद लिखी है। मुझे उन पर भरोसा था।
खुद बनाऊंगा फिल्म
मैं जून में अपनी स्क्रिप्ट पर काम शुरू कर रहा हूं। दिसबर तक प्री-प्रोडक्शन काम खत्म हो जाएगा। मेरा विश्वास है कि वह स्क्रिप्ट ऐसी है कि आज मैं उसे लेकर बाजार में निकलूं तो तुरंत बिक जाएगी। उसे मैं खुद डायरेक्ट करूंगा। 
-रघुवेन्द्र सिह

नई रिलीज-कुछ लव जैसा


कुछ लव जैसा फिल्म की कहानी एक जिंदादिल शादीशुदा महिला मधु सक्सेना की है। मधु पति और दोनों बच्चों  से बेहद प्यार करती है। पारिवारिक जिम्मेदारियों निभाने के साथ-साथ वह टीचर की नौकरी करती है। मधु हमेशा खुश रहती है और परिवार के सदस्यों को खुश रखती है, लेकिन मधु को बदले में पति और परिवार से अपेक्षित प्यार नहीं मिलता। 29  फरवरी को मधु का जन्मदिन है। यह तारीख चार साल में एक बार आती है। मधु के पति उसका जन्मदिन भूल जाते हैं। मधु शिकायत करने की बजाए अपने तरीके से जन्मदिन सेलीब्रेट  करने घर से निकल पड़ती है। मधु की मुलाकात राघव से होती है। राघव एकअपराधी है। मुंबई पुलिस उसे ढूंढ रही है। राघव अपनी गर्लफ्रेंड रिया के साथ सेटल होना चाहता है, लेकिन उसकी गर्लफ्रेंड ने अपने लिए कुछ और सोच लिया है। संयोग वश राघव का जन्मदिन भी 29  फरवरी को है। मधु समझती है कि राघव एक जासूस है। राघव भी अपनी सच्चाई  छुपाता है। एक दिन का साथ मधु और राघव की जिंदगी  को कौन सा मोड़ देता है? शेफाली  शाह और राहुल बोस अभिनीत इस फिल्म का निर्माण विपुल शाह ने किया है। कुछ लव जैसा लेखक-निर्देशक बरनाली  शर्मा की पहली फिल्म है।
विधा-ड्रामा
-रघुवेन्द्र सिंह

Tuesday, May 24, 2011

छोटी-छोटी कोशिशें इंसान को आगे ले जाती हैं-बिपाशा बसु


हिंदी फिल्मों में दस वर्ष का सफर तय करने के बाद अब बिपाशा बसु ने नई उड़ान भरी है। उन्होंने हॉलीवुड का रुख कर लिया है। बिपाशा ने अपनी पहली हॉलीवुड फिल्म सिंगुलैरिटी की शूटिंग पूरी कर ली है। वे गर्व के साथ अपनी खुशी बांटती हैं, रोलैंड जोफ हॉलीवुड के बड़े फिल्मकार हैं। उनके साथ काम करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मेरे प्रशंसकों को निश्चय ही मेरी इस उपलब्धि पर गर्व होगा।

बिपाशा इस बात से खुश हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की दूसरी अभिनेत्रियां जहां हॉलीवुड की फिल्में पाने के लिए संघर्ष करती हैं, वहीं सिंगुलैरिटी अपने आप उनके हिस्से में आ गई। वे बताती हैं, अंग्रेजी फिल्म करने का फैसला मैंने नहीं किया था। यह फिल्म मेरी किस्मत में थी। मैं एक काम के सिलसिले में विदेश गई थी। मैं जिस होटल में ठहरी थी, वहीं सिंगुलैरिटी के डायरेक्टर से मेरी मुलाकात हुई। मैंने उनके नए प्रोजेक्ट के लिए उन्हें ऑल द बेस्ट कहा। बाद में उन्होंने मुझे ही फिल्म में लीड रोल के लिए साइन कर लिया। रोलैंड ने द किलिंग फील्ड्स और द मिशन जैसी चर्चित फिल्में बनाई हैं। उनके साथ मेरा काम करना मेरे लिए सम्मान की बात है।
सिंगुलैरिटी पीरियड ड्रामा है। इसकी शूटिंग ऑस्ट्रेलिया और ओरछा (मप्र) में हुई है। दिलचस्प बात यह है कि इसमें बिपाशा को हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता जोश हार्टनेट का साथ मिला है। बिपाशा फिल्म के बारे में जानकारी देती हैं, यह मेरी पहली पीरियड फिल्म है। यह रोमांटिक फिल्म है। इसकी कहानी उन्नीसवीं सदी की है। इसमें मेरा लुक बहुत अलग है। कहानी की पृष्ठभूमि में मराठा युद्ध है। फिल्म में ऐक्शन सीन बहुत हैं। इस फिल्म की शूटिंग मेरे लिए फिजीकली और इमोशनली चैलेंजिंग थी। ऐक्शन सीन बहुत टफ थे। इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और इंडिया के कलाकार हैं। सबके साथ काम करना चैलेंजिंग था। मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी। गौरतलब है कि बिपाशा के साथ सिंगुलैरिटी में अभय देओल भी हैं। इनके साथ भी बिपाशा पहली बार स्क्रीन पर दिखेंगी। बिपाशा फिलहाल अपने किरदार और सह-कलाकारों के किरदार के बारे में खुलासा करने से बचती हैं।
सिंगुलैरिटी फिल्म की शूटिंग का अनुभव बिपाशा के लिए अलग रहा। अंग्रेजी और हिंदी फिल्मों के सेट के माहौल के फर्क को उन्होंने बारीकी से नोटिस किया है। वे बताती हैं, मैंने देखा कि अंग्रेजी फिल्मों के सेट पर काम की इज्जत की जाती है। वहां कोई किसी काम को छोटा नहीं समझता। डायरेक्टर भी जाकर सेट से कचरा उठा लेते थे। एक-दूसरे का सम्मान करते थे। ऐक्शन सीन की शूटिंग से पहले ऐक्टर को स्पेस देते हैं। ऐक्टर को पंद्रह मिनट का समय देते हैं, ताकि वे सीन पर कॉन्सन्ट्रेट कर सकें। हमारे यहां ऐक्शन सीन की शूटिंग से पहले बहुत हो-हल्ला होता है। ऐक्टर को समय नहीं दिया जाता है। बिपाशा उम्मीद के साथ कहती हैं, हमारी फिल्मों के सेट पर भी एक दिन वैसा ही माहौल होगा। छोटी-छोटी कोशिशें इंसान को आगे ले जाती हैं। मैं अपनी फिल्मों के सेट पर डायरेक्टर से लेकर स्पॉट ब्वॉय को हेलो बोलती हूं। मुझे ऐसा करने में कोई बुराई नहीं नजर आती। 
बिपाशा को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि सिंगुलैरिटी से हॉलीवुड में उनके लिए रास्ता साफ हो जाएगा या नहीं। हॉलीवुड में वे डिमांड में आ जाएंगी या नहीं। बिपाशा कहती हैं, फिल्म सिंगुलैरिटी से मेरे लिए हॉलीवुड में दरवाजे खुलेंगे तो अच्छा है और नहीं खुलेंगे तो भी अच्छा है। मेरे लिए इस फिल्म में काम करना ही बड़ी बात है। इसका अनुभव हमेशा मेरे साथ रहेगा। सिंगुलैरिटी की शूटिंग खत्म करने के बाद बिपाशा अब अब्बास-मस्तान की फिल्म प्लेयर्स की शूटिंग में बिजी हो गई हैं। वैसे वे आजकल अपने ट्वीट के जरिए खुद दुनिया को बता रही हैं कि वे सिंगुलैरिटी फिल्म की टीम को बहुत मिस कर रही हैं। खासकर जोश हार्टनेट को।
-रघुवेंद्र सिंह 

Monday, May 23, 2011

हाउसफुल होता है पाकिस्तान में हिन्दी फिल्मों का फैर्स्ट डे

पाकिस्तान में हिन्दी फिल्मों की लोकप्रियता भारत की तरह ही है. हिन्दी फिल्मों के सभी मेन स्ट्रीम अभिनेता-अभिनेत्री मसलन कट्रिना कैफ, सलमान खान, प्रियंका चोपडा, शाहिद कपूर आदि पाकिस्तान में लोकप्रिय हैं. यह दुख की बात है कि हिन्दी फिल्में पाकिस्तान के सिनेमाघरों में अल्प समय ही रहती हैं क्योंकि यहाँ सिनेमा घर बहुत कम हैं. कराची में केवल पांच सिंगल स्क्रीन और दो मल्टीप्लेक्स हैं. जो पर्याप्त नही हैं क्योंकि इन्हे अंग्रेजी फिल्में भी प्रदर्शित करनी होती हैं. सुखद बात यह है कि पाकिस्तान में हिन्दी फिल्मों का फैर्स्ट डे हाउसफुल होता है. लोग दूर-दराज के गांव से हिन्दी फिल्में देखने सिनेमा हाल में जाते हैं. हिन्दी फिल्में पाकिस्तान में करोड़ों रुपये का बिजनेस करती हैं.


-हसन अली (लेखक पाकिस्तान में हिन्दी फिल्मों से संबन्धित वेब पोर्टल चलाते हैं. http://www.apniisp.com

चित्रान्गदा सिंह की एक्सक्लुसिव तस्वीर

अक्स को मिली चित्रान्गदा सिंह की खास तस्वीर. आपको कैसी लगी? ज़रूर बताएँ. डेविड धवन के बेटे रोहित धवन की फिल्म Desi Boyz के लिए चित्रान्गदा आजकल साल्सा सीख रही हैं. 
-रघुवेंद्र सिंह 

सोच मिली और हो गई दोस्ती


अभिषेक पाठक और लव रंजन की मुलाकात एक कॉमन दोस्त की शादी में हुई। दोनों न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी से फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग लेकर लौटे थे। दोनों हिंदी सिनेमा को एक नई पहचान देना चाहते हैं। सोच मिली, तो दोनों के बीच दोस्ती हो गई। उस दोस्ती का फल है प्यार का पंचनामा। 
भरोसा था : अभिषेक पाठक जाने-माने निर्माता कुमार मंगत के बेटे हैं। उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बूंद बनाई है, जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। निर्देशन में अगला कदम बढ़ाने की बजाए अभिषेक फिल्म निर्माण में आ गए। उन्होंने नए निर्देशक लव रंजन को ब्रेक दिया। अभिषेक पाठक कहते हैं, लव से मेरी मुलाकात बूंद के निर्माण से पहले हुई थी। उनकी स्क्रिप्ट मुझे अच्छी लगी। मैंने कहा कि आप फिल्म डायरेक्ट कीजिए और मैं प्रोड्यूस करता हूं। मैं अपनी फिल्म बाद में डायरेक्ट करूंगा। मुझे लव की काबिलियत पर भरोसा था। लव रंजन अभिषेक के प्रति आभारी हैं। उनका कहना है कि प्यार का पंचनामा की मेकिंग के दौरान उनकी दोस्ती और मजबूत हो गई। दोनों एक दिशा में जाना चाहते हैं।

मिला मंजिल का पता : इंडस्ट्री में पले-बढ़े होने के कारण अभिषेक को पता था कि वे बड़े होकर फिल्मों में करियर बनाएंगे। अभिषेक पाठक कहते हैं, इंडस्ट्री का हर लड़का बड़ा होकर हीरो बनना चाहता है। भले ही कुछ लोग इस बात को स्वीकार न करें। मैंने स्कूल में शॉर्ट फिल्में बनाई। उनमें मैंने एक्टिंग भी की। बाद में मुझे महसूस हुआ कि कैमरे के पीछे रहने में ज्यादा मजा है। डायरेक्टर के इशारे पर ऐक्टर काम करता है। मैंने फिल्म मेकिंग में आने का फैसला कर लिया। उधर, गाजियाबाद में गैर फिल्मी पृष्ठभूमि के लव रंजन को लेखन का शौक फिल्मों में खींचकर ले आया। लव बताते हैं, नोएडा में तीन महीने का कोर्स करने के बाद महसूस हुआ कि फिल्म मेकिंग में ही मुझे करियर बनाना है। 2002 में मुंबई आ गया। अगले दिन सुनील दर्शन के यहां असिस्टेंट डायरेक्टर की नौकरी मिल गई। बरसात और दोस्ती में उनका सहायक था।
यूथ फिल्म है यह : अभिषेक पाठक और लव रंजन के अनुसार प्यार का पंचनामा यूथ फिल्म है। फिल्म के लेखक-निर्देशक लव रंजन कहते हैं, निजी अनुभवों के आधार पर मैंने फिल्म की कहानी लिखी है। मेरे कई दोस्त थे। अचानक एक उम्र ऐसी आई, जब सबको प्यार हो रहा था। सब फोन पर ज्यादा वक्त बिताते थे। सबकी भाषा सुधर गई थी। एक-दो तो डरे-डरे भी रहते थे। उनके कपड़े बदल गए थे। वे क्रिकेट मैच छोड़कर शॉपिंग मॉल में घूमते मिलते थे। मैंने सोचा कि अब तक जो हिंदी फिल्में बनी हैं उनमें दिखाया गया है कि लड़के लड़कियों को परेशान करते हैं और लड़कियां एडजस्ट करती हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अब लड़कियां लड़कों को बदल देती हैं। उन्हें डॉमिनेट करती हैं। लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप, एक्स ब्वॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड जैसी चीजें अब कपल की नई समस्याएं हैं। फिल्म में यही बात है।
-रघुवेंद्र सिंह 

Saturday, May 21, 2011

सलमान की मुस्कान

रेडी फिल्म के एक प्रमोशनल एवेंट में सलमान खान की निश्छल हंसी देखने को मिली.  उनकी यही मुस्कान आम  जनता से उन्हे सीधे कनेक्ट करती है. 

Friday, May 20, 2011

फिल्म समीक्षा- प्यार का पंचनामा


हिंदी फिल्मों का प्यार बदल गया है। लड़कियां प्यार के लिए अब लड़कों के सामने गिड़गिड़ाती नहीं हैं। वे तो लव का द एंड कर देती हैं या फिर लड़कों को प्यार का पंचनामा करने के लिए मजबूर कर देती हैं। यूथ फिल्मों में दिखाया जा रहा है कि आज का यूथ सिर्फ भौतिक और शारीरिक सुख के लिए प्यार करता है। क्या मॉडर्न यूथ की प्यार के मामले में वाकई यही सोच है? 
रजत, चौधरी और लिक्विड गहरे दोस्त हैं। तीनों दिल्ली में साथ रहते हैं। तीनों की मशीनी जिंदगी में नेहा, रिया और चारू के रूप में प्यार आता है तो खुशनुमा सी हलचल मच जाती है। तीनों बेहद खुश होते हैं। कुछ समय बाद उन्हें अहसास होता है कि वे नेहा, रिया और चारू से प्यार करते हैं, लेकिन वे उनसे प्यार नहीं करतीं। प्यार की आड़ में वे उनका इस्तेमाल करती हैं।
अमूमन जहां हिंदी फिल्मों की प्रेम कहानी की हैप्पी एंडिंग होती है, उसके बाद की कहानी लेखक-निर्देशक लव रंजन प्यार का पंचनामा में दिखाते हैं। उनका कांसेप्ट अच्छा है। नए कलाकारों कार्तिक तिवारी, रायो भखारिया, दिव्येंदु शर्मा, सोनाली सहगल, इशिता शर्मा का सहज अभिनय प्रशंसनीय है। नेहा के किरदार में नुसरत भरूचा नाटकीय हो गई हैं।
प्यार का पंचनामा फिल्म का लिक्विड और चारू का ट्रैक मधुर भंडारकर की दिल तो बच्चा है जी फिल्म की याद दिलाता है। पटकथा चुस्त न होने के कारण कुछ समय पश्चात फिल्म बोझिल हो गई है। एक वक्त के बाद रजत, चौधरी और लिक्विड का नेहा, रिया और चारू के पीछे जाना अस्वाभाविक लगता है। वे दृश्य थोपे हुए लगते हैं।
-दो स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह

एकता की रागिनी


जर्नलिज्म की पढ़ाई करने के बाद कैनाज मुंबई केअखबारों में छिटपुट लेखन कर रही थीं। ब्यूटी मैगजीन के फोटो शूट के दौरान उनकी मुलाकात एक असिस्टेंट डायरेक्टर से हुई। उन्होंने कैनाज को पाठशाला फिल्म के ऑडिशन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया। कैनाज मोतीवाला अनजान थीं कि ऑडिशन उनकी जिंदगी का रुख बदल देगा। एकता कपूर की फिल्म रागिनी एमएमएस में केंद्रीय भूमिका निभा रहीं कैनाज बड़े पर्दे के अपने रोमांचक सफर के बारे में बता रही हैं हमें।

आश्चर्य से भरा है सफर : मैं मुंबई में पली-बढ़ी हूं। मैंने जयहिंद कॉलेज से जर्नलिज्म में ग्रेजुएशन किया है। मैं हमेशा से जर्नलिस्ट बनना चाहती थी। ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने मुंबई मिरर और इंडियन एक्सप्रेस अखबारों में सोशल इश्यू पर काफी कुछ लिखा। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐक्ट्रेस बनूंगी। मैं एक ब्यूटी मैगजीन का मेकओवर फोटो शूट को-ऑर्डिनेट कर रही थी। उस शूट पर मुझसे पाठशाला फिल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर मिले। उन्होंने कहा कि फिल्म के लिए ऑडिशन चल रहा है। आप जरूर आइए। मैंने यह जानने के लिए उस ऑडिशन में हिस्सा लिया कि फिल्मों के लिए कैसे ऑडिशन दिया जाता है। मुझे नहीं पता था कि वह ऑडिशन मेरी जिंदगी बदल देगा।
चढ़ गया नशा : पाठशाला की शूटिंग के बाद मुझ पर एक्टिंग का नशा चढ़ गया। मैंने फैमिली से कहा कि एक्टिंग में करियर बनाना चाहती हूं। किसी को मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने हैरानी से कहा कि क्या तुम श्योर हो? मैंने कहा कि मेहनत करूंगी। मैंने फिल्मों और विज्ञापनों के लिए ऑडिशन देना शुरू किया। कुछ समय में मुझे वेकअप सिड फिल्म मिल गई। मुझे कई विज्ञापन भी मिले। मेरी हिम्मत बढ़ने लगी। जब एकता कपूर की फिल्म रागिनी एमएमएस के लिए मुझे चुना गया तो कुछ समय के लिए यकीन नहीं हुआ।
डरावनी है रागिनी एमएमएस : एकता कपूर की फिल्म रागिनी एमएमएस सच्ची घटना पर आधारित है। मैं इसमें रागिनी की भूमिका निभा रही हूं। रागिनी साउथ मुंबई की शर्मीली लड़की है। उसे नहीं पता है कि दुनिया में कितने गंदे लोग हैं। उसका आठ महीने पुराना एक ब्वॉयफ्रेंड है जिसके साथ वह वीकेंड पर बाहर जाती है। डेट पर उनके साथ क्या हादसा होता है, यही कहानी है। इसमें कुछ वैसे सीन भी हैं जिन्हें करने के लिए मैंने वर्कशॉप किया। मैं किस्मत वाली हूं जो यह फिल्म मिली।
खुश हूं हिस्सा बनकर : फिल्म अपने आप में एक नया प्रयोग है। इसकी शूटिंग अलग तरीके से हुई है। अट्ठाईस दिन में हमने शूटिंग पूरी की। हर कमरे में पांच-छह कैमरे लगा दिए गए थे और हम परफॉर्म करते थे। हमारे मेकअप का टचअप नहीं किया जाता था। अनोखे-अनोखे एंगल से फिल्म शूट की गई है। पाठशाला और वेकअप सिड की शूटिंग से इसका अनुभव मेरे लिए अलग रहा। मुझे उम्मीद है कि रागिनी एमएमएस की रिलीज के बाद मैं डिमांड में आ जाऊंगी। मैंने श्यामक डावर के डांस स्कूल में डांस का प्रशिक्षण लिया है। उसका इस्तेमाल फिल्म में करने को जल्द ही मिलेगा।
-रघुवेंद्र सिंह 

Thursday, May 19, 2011

यश चोपडा और ए आर रहमान की फ्रेश जोडी

दो महान हस्तियाँ यश चोपडा और ए आर रहमान पहली बार साथ काम करने जा रहे हैं. यश चोपडा के निर्देशन में बनने जा रही फिल्म में ए आर रहमान संगीत देंगे. हीरो होंगे शाहरुख खान. 
-रघुवेंद्र सिंह 

On Set Exclusive Pics Of LADIES V/S RICKY BAHL

बैन्ड बाजा बारात फिल्म की रणवीर सिंह और अनुष्का शर्मा की लोकप्रिय जोडी आजकल गोवा में नई फिल्म LADIES V/S RICKY BAHL की शूटिंग कर रही है. सेट से कुछ खास तस्वीरें. 

आदित्य चोपडा निर्मित लेडीज वर्सेज रिकी बहल एक कॉन आर्टिस्ट रिकी बहल की कहानी है, जो लड़कियों को चकमा देकर उनके पैसे लेकर भाग जाता है। यह फिल्म ९ दिसम्बर, २०११ को प्रदर्शित होगी. 
-रघुवेंद्र सिंह 

दबंग से बडी हिट होगी रेडी-सलमान खान


हिंदी फिल्मों का हीरो अपनी जन्मभूमि छोड़कर दक्षिण भारतीय फिल्मों में चला गया था, लेकिन अब सलमान खान उसे वापस लाने के प्रयास में जुटे हैं। सलमान ने हिंदी फिल्मों में हीरोइज्म को वापस लाने का बीड़ा उठाया है। वांटेड और दबंग के बाद अब वे अपनी नई फिल्म रेडी में एक पारंपरिक नायक के रूप में आ रहे हैं। सलमान तर्क देते हैं, हीरोइज्म हिंदी फिल्मों में शुरू हुआ था। हम बड़े पर्दे पर हीरो देखते हुए बड़े हुए। एंग्री यंग मैन का जन्म यहीं हुआ। वह हीरो धीरे-धीरे साउथ चला गया। साउथ के लोग हीरोइज्म में मास्टर बन गए। उनकी फिल्में बड़ी हिट होती हैं। वहां हीरो के बहुत फैन हैं। वे लोग एक बार नहीं, बल्कि कई बार थिएटर में जाकर अपने हीरो को देखते हैं। वह हीरोइज्म अब हिंदी फिल्मों में लौट रहा है।

सलमान तमिल की सुपरहिट फिल्म रेडी का रीमेक हिंदी में बनाने का कारण हीरोइज्म बताते हैं, साउथ की रेडी को हमारे दर्शकों ने देखा नहीं है। अगर एक अच्छी स्क्रिप्ट मिल रही है, तो उसका रीमेक क्यों न बनाया जाए? हॉलीवुड की फिल्मों का रीमेक बनाने से अच्छा है कि अपनी फिल्मों का रीमेक बनाया जाए। रेडी में एक हीरो है, जो सबको अच्छा लगेगा।
टी-सीरिज निर्मित रेडी में सलमान के साथ असिन हैं। रोमांस, ऐक्शन, कॉमेडी से भरपूर इसे सलमान पारिवारिक फिल्म बताते हैं। सलमान बताते हैं कि पिछली फिल्मों की तरह उन्होंने रेडी के निर्माण के हर पहलू पर नजर रखी है। इसके निर्देशक अनीस बज्मी से अपने मतभेद की खबर को वे पब्लिसिटी स्टंट बताते हैं। उन्होंने कहा, अनीस की पिछली कुछ फिल्में नहीं चली हैं इसलिए ऐसा हो रहा है। पीआर सब करवा रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि किसने फ्लॉप फिल्म नहीं बनाई है? उनके साथ मैं काम कर चुका हूं।
रेडी में सलमान को अपने पिता लेखक सलीम खान का सहयोग मिला है। वे फिल्म के स्क्रिप्ट कंसलटेंट हैं। उनके सहयोग के महत्व को सलमान इन शब्दों में बयां करते हैं, उनके आने से हमें यह लाभ मिला कि बेवकूफी वाले सारे सीन हट गए और समझदारी वाले सीन डाल दिए गए।
सलमान आजकल पब्लिक की पसंद को ध्यान में रखकर फिल्में साइन करते हैं। उनकी आने वाली फिल्में बॉडीगार्ड, किक, एक था टाइगर, दबंग 2 आदि होंगी। सलमान बताते हैं, मैं फिल्म साइन करने से पहले आजकल देखता हूं कि उसका पहला प्रोमो आएगा, तो क्या वह इंट्रेस्टिंग होगा? क्या थिएटर के बाहर लाइन लगेगी? इसके लिए स्क्रिप्ट का मजबूत होना जरूरी है। तीन जून को रिलीज हो रही रेडी से सलमान पर अपनी पिछली फिल्म दबंग के बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड को तोड़ने की चुनौती है। वे कहते हैं, इंशाअल्लाह, दबंग से बड़ी हिट होगी रेडी। यह धमाल मचाएगी। 
-रघुवेंद्र सिंह 

नयी रिलीज: कश्मकश/ प्यार का पचनामा/ 404


कश्मकश
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की रचना 'नौका डूबी' पर आधारित यह पीरियड फिल्म है। रमेश और हेमनलिनी एक-दूसरे से प्यार करते हैं। अचानक रमेश के पिता उसे कोलकाता से गाव बुलाकर सुशीला से उसकी शादी करा देते हैं। रमेश जब नवविवाहिता को लेकर कोलकाता पहुंचता है तो उसे पता चलता है कि वह सुशीला नहीं कमला है। किस्मत कमला को तो उसके डॉक्टर पति के करीब पहुंचा देती है, पर क्या रमेश को उसका सच्चा प्यार मिल पाता है? दो भाषाओं में बनी सुभाष घई निर्मित यह फिल्म बगाली में 'नौका डूबी' और हिंदी में 'कश्मकश' शीर्षक से रिलीज हो रही है। रितुपर्णो सेनगुप्ता निर्देशित 'कश्मकश' के गीतकार है गुलजार एव सगीत दिया है राजा नारायण देब, सजय दास ने। मुख्य कलाकार हैं प्रोसेनजीत चटर्जी, जिशु सेनगुप्ता, राइमा सेन, रिया सेन।

प्यार का पचनामा
यह यूथ कॉमेडी फिल्म है। रजत, चौधरी और लिक्विड तीन दोस्त प्यार की तलाश में हैं। उनकी तलाश खत्म होती है नेहा, रिया और चारू पर। उनकी जिंदगी का यह बदलाव सुखद है या दुखद, यह फिल्म देखने के बाद पता चलेगा। निर्माता अभिषेक पाठक और लेखक-निर्देशक लव रंजन सहित कलाकारों कार्तिक, दिव्येंदु और रायो की भी यह पहली फिल्म है। अन्य कलाकार हैं रायो बखीता, सोनाली सहगल, नुसरत भरूचा, इशिता शर्मा।

404
भ्रम और यथार्थ पर आधारित निर्माता नमिता नायर की यह फिल्म साइकोलॉजिकल थ्रिलर है। इंटरनेट पर वेब एड्रेस गलत होने पर एरर 404 लिखा आता है। उसका अर्थ होता है कि एड्रेस गलत है। '404' फिल्म में कॉलेज के हॉस्टल के एक कमरे का नबर 404 है। प्रवाल रमण निर्देशित '404' में नसीरूद्दीन शाह के बेटे ईमाद शाह का गीत-सगीत है और उन्होंने अभिनय भी किया है। उनके साथ राजवीर अरोरा और निशिकात कामथ, टिस्का चोपड़ा मुख्य भूमिकाओं में हैं।

-रघुवेंद्र सिंह 

आपत्ति किस बात पर है- सैफ अली खान


आरक्षण में प्रकाश झा के सग काम करने के बाद सैफ अली खान का हिंदी शब्द कोश समृद्ध हो गया है। 'आरक्षण' में प्रकाश झा ने छोटे नवाब के सामने रखीं और भी कई चुनौतिया।

दलित समाज का प्रतिनिधित्व
आरक्षण की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म 'आरक्षण' में सैफ दलित समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सैफ बताते हैं, 'इसमें मैंने एक दलित युवक दीपक कुमार की भूमिका निभाई है, जो आरक्षण की सुविधा की बदौलत ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है। वह समाज के हित के लिए कुछ करना चाहता है। यह किरदार बुद्ध की तरह है। कहने का अर्थ है कि बुद्ध की तरह शात और गभीर है। यह किरदार मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग था।'
खुश होगा दलित समाज
गौरतलब है कि 'आरक्षण' फिल्म अभी प्रदर्शित भी नहीं हुई और उत्तर भारत के एक दलित समाज ने सैफ अली खान द्वारा एक दलित युवक का किरदार निभाए जाने पर आपत्ति जाहिर कर दी है। सैफ अपना पक्ष रखते हैं, 'बिना पिक्चर देखे आपत्ति जताना ठीक नहीं है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि उन लोगों को आपत्ति किस बात पर है। अगर मेरे जन्म की वजह से यह आपत्ति है, तो बहुत बुरी बात है। मैं अगर कहूं कि किसी के जन्म की वजह भर से उसे एक नौकरी नहीं मिलनी चाहिए, तो यह वही बात हो गई जो फिल्म में है। यद्यपि मुझे उम्मीद है कि दलित समाज आरक्षण देखने के बाद बहुत खुश होगा।'
मेरा देसी अंदाज
सैफ ने अमूमन फिल्मों में शहरी युवक के किरदार निभाए हैं। 'आरक्षण' में विशुद्ध भारतीय परिवेश का किरदार निभाने का मौका पाकर वह बेहद खुश हैं। सैफ कहते हैं, 'भारत में प्रकाश झा जैसे बहुत कम फिल्ममेकर हैं जो भारत के बारे में सोचते हैं। भारत को जानते हैं। भारत की समस्याओं को केंद्र में रखकर फिल्में बनाते हैं। उनके साथ काम करने का मौका मिलना मेरे लिए बड़ी बात है। 'ओंकारा' और 'लव आज कल' के बाद अब इसमें दर्शक मुझे देसी अंदाज और विशुद्ध भारतीय परिवेश में देखेंगे।'
आरक्षण के बारे में बदली राय
'आरक्षण' फिल्म ने सैफ की सोच को प्रभावित किया है। सैफ कहते हैं, 'पहले मैं आरक्षण का विरोध करता था, पर फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने आरक्षण के मुद्दे को समझा। भारत में बहुत से पिछड़े लोग हैं जिन्हें आज आरक्षण की वजह से मौके मिल रहे हैं। वे आगे बढ़ पा रहे हैं। एक हद तक आरक्षण ठीक है। अब वह किस हद तक हो, यह बहस का मुद्दा है।'
-रघुवेन्द्र सिह

Wednesday, May 18, 2011

सबके अंदर है शैतान: राजीव खंडेलवाल


पहली फिल्म आमिर की हर तरह से मिली सफलता को राजीव खंडेलवाल ने अपने तरीके से संभाला। वे बाजार की गिरफ्त में नहीं आए। उन्होंने अपनी पसंद की कई फिल्में शैतान, साउंड ट्रैक, विल यू मैरी मी, पीटर गया काम से, रिटर्न गिफ्ट साइन कीं। दो वर्ष से वे लगातार इन फिल्मों की शूटिंग कर रहे हैं। शो सच का सामना के जरिए उन्होंने टीवी से नाता जोड़ा। फरवरी में उन्होंने मंजरी से शादी की। बातचीत राजीव खंडेलवाल से..

फिल्मी कलाकार शादी शोर-शराबे के साथ करते हैं, लेकिन आपने यह सब शांतिपूर्वक किया?
मैं लाउड इंसान नहीं हूं। मैं पर्सनल लाइफ को अलग रखता हूं। जीवन के कुछ पल ऐसे होते हैं जब हम ऐक्टर राजीव नहीं होते। उस वक्त मां थप्पड़ मार सकती हैं, पापा डांटते हैं, हम झाड़ू लगाते हैं.., उन पलों का अलग मजा होता है। मैं उस वक्त कैमरे के सामने सहज नहीं होता। मैं साधारण इंसान हूं। अब दुनिया में सामान्य लोग इतने कम हो गए हैं कि वे अलग लगते हैं। मेरा पेशा मुझे लाइम लाइट में लाता है।
आपकी फिल्मों पर गौर करें, तो वे नए किस्म की हैं। क्या ऐसी फिल्मों का चुनाव आप सोच कर करते हैं?
मेरा ऐसा प्लान नहीं है। मैं अपनी स्पीड से काम करता हूं। मैं सहज रहता हूं। मुझे जो स्क्रिप्ट एक्साइट करती है, उसी को स्वीकारता हूं। ऐसा सोच-समझ कर ही हो रहा है।
आपके करियर पर बाजार का कितना नियंत्रण है?
बिल्कुल भी नहीं। मैं बाजार के तरीके से नहीं चलता। किसी स्क्रिप्ट को लेकर नर्वस होता हूं, तो लगता है कि कुछ नया कर रहा हूं। हम क्रिएटिव फील्ड में हैं। जब तक क्रिएटिव काम नहीं करेंगे खुद को क्रिएटिव कहना गलत होगा। मुझे मौके मिलते हैं ऐसा काम करने के..। मैं खुश हूं।
शैतान किस जॉनर की फिल्म है। यह किस तरह के शैतान की बात करती है?
यह अनुराग कश्यप की फिल्म है। इसमें समाज का ऐसा पहलू है, जिसे देखने के बाद लगेगा कि हमारे आसपास ऐसा होता है। यह थ्रिलर है। स्लाइस ऑफ लाइफ है। रोजमर्रा के जीवन में हम अपने अंदर के शैतान से लड़ते रहते हैं। कभी कामयाब होते हैं और कभी हथियार डाल देते हैं। इसमें जितने भी कैरेक्टर हैं, सब अपने अंदर के शैतान से लड़ रहे हैं।
आपका क्या किरदार है? क्या एक कलाकार के तौर पर इसमें आपको अपनी सीमाएं तोड़ने का मौका मिला?
मैं पुलिस अफसर अरविंद माथुर का किरदार निभा रहा हूं। उसका गुस्सा उसके लिए शैतान है। वह अपनी फीलिंग एक्सप्रेस नहीं कर पाता जिसकी वजह से उसकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में प्रॉब्लम आती है। वह कैसे अपने शैतान से जीतता है? निर्देशक बिजॉय नंबियार ने इसमें मेरे अंदर का एक अलग रेंज निकाला है। मैं कभी डरता नहीं हूं। मुझे अच्छा लगता है, जब अपनी कमजोरी पता चलती है। मेरी सोच सकारात्मक है इसलिए मैं नई चुनौतियों के लिए तैयार रहता हूं।
आमिर की तरह क्या शैतान को लोग आपकी फिल्म कह सकते हैं?
आमिर राजकुमार गुप्ता की फिल्म थी और यह बिजॉय नंबियार की है। ऐक्टर एक माध्यम होता है कहानी कहने के लिए। आमिर फिल्म में मैं हर फ्रेम में था, लेकिन इसमें हर फ्रेम में नहीं हूं। इसमें चार-पांच ट्रैक है। पांच दोस्तों का ट्रैक साथ चलता है। इसमें मेरा लोगों का हल्का सा रोमांटिक पहलू देखने को मिलेगा।
-raghuvendra singh  

Sunday, May 15, 2011

परिवार के खून में है एक्टिंग-आशा भोसले


जी हाँ, खबर सोलह आने सच है कि 77 वर्षीया पा‌र्श्व गायिका आशा भोसले पहली बार बड़े पर्दे पर अभिनय करने जा रही हैं। वह फिल्म माई में आशा माई की केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं। डर और घबराहट के साथ-साथ वे अत्यंत उत्साहित भी हैं। वह कहती हैं, ''मुझे अपना नाम खराब होने का डर लगता है। पहली बार बड़े पर्दे पर आना, फिल्म के लिए शूटिंग करना मेरे लिए नया अनुभव, नया प्रयोग है।''

माई के लिए स्वीकृति देने से पूर्व आशा भोसले असमंजस की स्थिति में थीं। वह लगभग एक महीने हां और ना के बीच उलझी रहीं। बेटे के प्रोत्साहन, दीदी लता की हौसलाअफजाई के बाद वह अंतिम निर्णय ले सकीं। आशा बताती हैं, ''मेरे बेटे ने कहा कि तुमने आज तक गाना गाया, स्टेज शो किए, म्यूजिक वीडियो किए, अब एक बार बिग स्क्रीन पर भी आ जाओ। मैंने हां तो कह दिया, लेकिन महीना भर असमंजस में रही। मैंने लता दीदी से पूछा कि तुम्हे क्या लगता है मुझे फिल्म में काम करना चाहिए? दीदी ने कहा कि तू कर लेगी। घबरा मत। एक्टिंग हमारे परिवार के खून में है।''
आशा जी व लता जी के पिता दीनानाथ मंगेशकर थिएटर और शास्त्रीय संगीत की दुनिया से जुड़े रहे हैं। लता जी ने कम उम्र में फिल्मों में काम करना आरंभ कर दिया था। आशा के पास भी बचपन में फिल्म का ऑफर आया था। वह हंसते हुए बताती हैं, ''मैं दस साल की थी तब किसी ने मुझे फिल्म में काम करने का ऑफर दिया था। मैंने उनसे कहा कि मैं अपना चेहरा रोज आइने में देखती हूं। मेरा चेहरा फिल्म के लायक नहीं है। मैंने तब फिल्म के लिए मना कर दिया। हालांकि अब मैं रिस्क ले रही हूं, लेकिन मेरा खयाल है कि यह काम उतना रिस्की भी नहीं है।''
आशा जी आश्वस्त करती हैं कि उनकी फिल्म माई में इमोशन होगा, रियल एक्टिंग होगी। सहज और सरल आशा जी फिल्म में अपने अंदाज में ही होंगी। न तो वह एक्टिंग करने की कोशिश करेंगी और न ही साड़ी के अलावा कोई परिधान पहनेंगी। आशा कहती हैं, ''मैंने निर्देशक से कह दिया है कि मैं एक्टिंग नहीं करूंगी। मैं जैसी हूं, अगर आप वैसा चाहते हैं तो मैं फिल्म में काम करूंगी। मेरा साड़ी पहनने का स्टाइल, बातचीत का स्टाइल, बाल संवारने का स्टाइल बदला नहीं जाएगा। मैं फिल्म में नैचुरल रहूंगी। मैं खुद को बदल नहीं सकती।''
माई में आशा जी अल्जाइमर से ग्रस्त महिला का किरदार निभा रही हैं। फिल्म में काम कर रहे लोकप्रिय कलाकार राम कपूर के अनुसार वह अपने किरदार की तैयारी के सिलसिले में हैदराबाद के एक अस्पताल में गई थीं। वहां उन्होंने अल्जाइमर पीड़ित महिलाओं से मुलाकात की। राम कपूर के अलावा फिल्म में पद्मिनी कोल्हापुरे भी हैं। पद्मिनी आशा जी की सगी बुआ की पोती हैं। पद्मिनी को फिल्मों में आशा जी ही लाई थीं। वह नए कलाकार के मानिंद कहती हैं, ''पद्मिनी के साथ काम करना मुश्किल है। वह बड़ी एक्ट्रेस है, पर घर की होने की वजह से वह मेरे साथ वैसा कुछ नहीं करेगी जैसा दूसरे आर्टिस्ट करते। वह मुझे संभाल लेगी।''
-रघुवेन्द्र सिंह

Saturday, May 14, 2011

फिल्म समीक्षा-लव यू मिस्टर कलाकार


राजश्री प्रोडक्शन की पिछली फिल्मों की तरह लव यू मिस्टर कलाकार का अपना एक सुनहरा संसार है। इस संसार के वाशिंदे  सभ्य, सुसंस्कृत, ईमानदार, निश्छल और आदर्शवादी हैं। विश्वास नहीं होता कि वर्तमान में ऐसे लोग मौजूद भी हैं! 
बिजनेस मैन दीवान बेटी रिया के लिए ऐसा हमसफर चाहते हैं जो करोड़ो ं रूपए  कमाने वाला हो, जबकि रिया करोड़ो ं रूपए  कमाने वाला नहीं बल्कि करोड़ो ं का दिल जीतने वाला पति चाहती है। रिया को यह खूबी कार्टूनिस्ट साहिल में नजर आती है, जिससे कुछ मुलाकातों में उसे प्यार हो जाता है। साहिल को रिया पिता से मिलवाती है, लेकिन वे उसे नापसंद कर देते हैं। वे मानते हैं कि कलाकार बेकार होते हैं। बाद में बेटी और बहन की गुजारिश पर दीवान दोबारा साहिल से मिलते हैं और उसकी काबिलियत की परीक्षा लेने के उद्देश्य से तीन महीने के लिए अपनी कंपनी का सीएमडी  बना देते हैं। कंपनी के चार सौ करोड़ रूपए  महीने के टर्न ओवर को वे उसे बढ़ाने की चुनौती देते हैं। खुद को रितु  के योग्य साबित करने के लिए साहिल चुनौती स्वीकार कर लेता है।
 गौर से देखा जाए तो कार्टूनिस्ट साहिल और रितु की प्रेम कहानी की पृष्ठभूमि अमीरी-गरीबी है। करोड़पति पिता सख्त मिजाज है जो अंत में बेटी की पसंद को स्वीकार कर लेता है। लव यू मिस्टर कलाकार की कहानी सुस्त चाल से आगे बढ़ती है। साहिल-रितु की प्रेम कहानी में दमदार विरोधाभास न होने के कारण फिल्म बांध नहीं पाती। संवाद नीरस और बासी हैं। मसलन साहिल द्वारा बनाई अपनी पेंटिंग  देखने के बाद रितु  पूछती है कि क्या मैं इतनी खूबसूरत हूं? ट्रैकिंग के दृश्य में रितु  साहिल से कहती है-दो प्यार करने वाले दुनिया को भूलकर घंटों आपस में खोए रहते हैं। साहिल रितु  से कहता है-हमारी दुनिया अलग-अलग है।
लेखक-निर्देशक एस मनस्वी का पहला प्रयास निराशाजनक है। गुड ब्वॉय  साहिल के रूप में तुषार स्क्रीन पर अच्छे  लगते  हैं, पर उनके चेहरे पर भावों का अभाव खटकता है। अमृता को अति नाटकीय होने से बचना चाहिए था। कुछ जगह हैं के स्थान पर वे है कहती हैं तो अफसोस होता है। दीवान की भू्मिका  में राम कपूर और बुई के किरदार में मधु अच्छे  हैं।
रेटिंग-एक स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह

Thursday, May 12, 2011

नयी रिलीज: स्टेनली का डब्बा, लव यू मिस्टर कलाकार, शागिर्द, रागिनी एमएमएस


स्टेनली का डब्बा


यह फिल्म अमोल गुप्ते द्वारा लिखित-निर्देशित है। 'तारे जमीं पर' के वह क्रिएटिव डायरेक्टर थे। फिल्म की कहानी स्टेनली नामक एक सवेदनशील बच्चें के इर्द-गिर्द घूमती है। अमोल का मानना है कि हर बच्चे में कुछ स्पेशल क्वालिटी होती है। बस उसे पहचानने की जरूरत होती है। अपनी इस फिल्म में वह यही बात लेकर आ रहे हैं। पार्थो ने स्टेनली की भूमिका निभाई है। अमोल स्वय इसमें हिंदी टीचर की भूमिका में नजर आएंगे। अन्य कलाकार हैं दिव्या दत्ता, आदित्य लाखिया।

लव यू मिस्टर कलाकार

राजश्री प्रोडक्शस की नई प्रस्तुति है 'लव यू मिस्टर कलाकार'। रितु मुंबई के एक बिजनेस घराने की अमीर लड़की है। उसे कार्टूनिस्ट साहिल से प्यार हो जाता है। साहिल की दुनिया रितु से बिल्कुल अलग है। यही वजह है कि जब रितु साहिल को अपने पिता से मिलवाती है तो वह साहिल के समक्ष एक चुनौती रख देते हैं। साहिल अपने प्यार को हासिल करने के लिए कॉरपोरेट व‌र्ल्ड में प्रवेश करता है। लेखक-निर्देशक एस मनस्वी की इस फिल्म में तुषार-अमृता की जोड़ी पहली बार पर्दे पर आ रही है। गीतकार हैं मनोज मुंतशिर और सगीत दिया है सदेश शाडिल्य ने।
शागिर्द

निर्माता हुसैन शेख और निर्देशक तिग्माशू धूलिया की 'शागिर्द' कानून, अपराध और राजनीति की कहानी है। सत्ता पूरी तरह से नियत्रण में होने का अहसास इंसान को भ्रष्ट बना देता है, यह फिल्म का मूल है। लबे अरसे के बाद इसमें नाना पाटेकर एसीपी हनुमत सिह की भूमिका में अपने गरम मिजाज में नजर आएंगे। अन्य कलाकार हैं मोहित अहलावत, रिमी सेन, अनुराग कश्यप।
रागिनी एमएमएस

एकता कपूर की रागिनी एमएमएस सुपरनैचुरल थ्रिलर फिल्म है। यह एक प्रेमी युगल की कहानी है, जो शहर से दूर एक बगले में वीकेंड स्पेंड करने जाता है। गर्लफ्रेंड का एमएमएस बनाकर बेचने की मशा से लड़का कमरे के अंदर चोरी से कैमरा लगा देता है। यह कपल अंजान है कि उस कमरे में उनके अलावा कोई तीसरा शख्स भी मौजूद है। पवन कृपलानी निर्देशित इस फिल्म में राज कुमार यादव और कैनाज मोतीवाला मुख्य भूमिका में है।
-रघुवेंद्र सिंह 

गॉडमदर कट्रीना!


सलमान खान की सगत का कट्रीना कैफ पर गहरा असर पड़ा है। अब उन्होंने सलमान की तरह सोचना शुरू कर दिया है। आजकल कट्रीना केवल निजी हित के बारे में नहीं सोचतीं। उन्होंने दूसरों के भले के लिए भी पहल करनी शुरू कर दी है। काबिले जिक्र है कि आजकल यशराज घराने में कट्रीना की हर बात पर गौर किया जाता है। कट्रीना ने अपनी इस पॉवर का इस्तेमाल किया और असिस्टेंट डायरेक्टर अली अब्बास जफर को यशराज बैनर में एक फिल्म डायरेक्ट करने का मौका दिलवा दिया। अली कट्रीना कैफ की फिल्म 'न्यूयॉर्क' में कबीर खान के असिस्टेंट डायरेक्टर थे।

सूत्र बताते हैं कि अली अब्बास जफर ने 'न्यूयॉर्क' की शूटिंग के दौरान कट्रीना कैफ को अपनी फिल्म 'मेरे ब्रदर की दुल्हन' की स्क्रिप्ट सुनाई थी। उन्होंने कट्रीना कैफ को जेहन में रखकर कथा-पटकथा लिखी थी। कट्रीना को स्क्रिप्ट बेहद पसद आई। दरअसल, 'मेरे ब्रदर की दुल्हन' में कट्रीना कैफ के किरदार का रंग 'जब वी मेट' की गीत के जैसा ही है। चुलबुली, बिदास, बातूनी, खुशमिजाज। कट्रीना ने अली से वादा किया कि वह यशराज में उन्हें ब्रेक दिलवाएंगी। यह वादा उन्होंने पूरा भी किया।
अली अब्बास जफर को ब्रेक दिलवाने के बाद आजकल कट्रीना कैफ एक और शख्स के कॅरियर में भी दिलचस्पी ले रही हैं। वह हैं पाकिस्तान के प्रिंस ऑफ पॉप अली जफर। 'मेरे ब्रदर की दुल्हन' में कट्रीना कैफ इसमें इमरान खान और अली जफर के साथ काम कर रही हैं। 'तेरे बिन लादेन' फिल्म से हिंदुस्तान में सुर्खिया बटोरने वाले अली और कट्रीना की दोस्ती 'मेरे ब्रदर की दुल्हन' फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई। कट्रीना को अली इस कदर पसद आए कि अब उन्होंने निर्माता-निर्देशक मित्रों से अली के गायन और अभिनय की बेइंतहा तारीफ करनी शुरू कर दी है।
-रघुवेन्द्र सिह

Tuesday, May 10, 2011

जिन्दगी मिलेगी ना दोबारा का ट्रेलर थिएटर में नही होगा जारी

एक सर्वेक्षण के पश्चात फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी ने अपनी नई फिल्म जिन्दगी मिलेगी ना दोबारा की झलकियां थिएटर में जारी करने की बजाय उन्हे ऑंन लाईन पेश करने का फैसला लिया है. निर्माताओं का मानना है कि थिएटर में ज्यादातर दर्शक ट्रेलर नही देख पाते. वे पॉपकर्न और समोसा खरीदने में व्यस्त रहते हैं. 

जोया अख्तर के निर्देशन में बनी जिन्दगी मिलेगी ना दोबारा फिल्म तीन दोस्तों की कहानी है, जो एक सडक यात्रा पर निकले हैं. रितिक रोशन, फरहान अख्तर, अभय देओल, कट्रीना कैफ, कल्की कोचलिन इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं. 
-रघुवेंद्र सिंह 

Monday, May 9, 2011

अजीब आदमी था वो (कैफ़ी आज़मी-१० मई पुण्यतिथि विशेष)


मशहूर लेखक एवं गीतकार जावेद अख्तर ने अपनी खूबसूरत नज़्म अजीब आदमी था वो.. में कैफ़ी आज़मी की शख्सियत को बेहद इमानदारी से बयान किया है. यह नज़्म मुझे शौकत आज़मी की पुस्तक याद की रहगुज़र में मिली. जावेद अख्तर ने २ जुलाई, २००२ को यह नज़्म लिखी थी. आज कैफ़ी आज़मी की पुण्यतिथि पर आपके साथ साझा कर रहा हूँ. 


अजीब आदमी था वो
मोहब्बतों का गीत था बगावतों का राग था
कभी वो सिर्फ फूल था कभी वो सिर्फ आग था
अजीब आदमी था वो
वो मुफलिसों से कहता था
कि दिन बदल भी सकते हैं
वो जाबिरों से कहता था 
तुम्हारे सर पे सोने के जो ताज हैं
कभी पिघल भी सकते हैं
वो बंदिशों से कहता था 
मैं तुमको तोड सकता हूँ
सहूलतों से कहता था 
मैं तुमको छोड सकता हूँ 
हवाओं से वो कहता था
मैं तुमको मोड सकता हूँ 
वो ख्वाब से यह कहता था  
कि तुझको सच् करूंगा मैं 
वो आरजू से कहता था
मैं तेरा हमसफ़र हूँ 
तेरे साथ् ही चलूँगा मैं 
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले मंज़िलें 
कभी नही थकूंगा मैं
वो जिन्दगी से कहता था
कि तुझको मैं सजाऊंगा 
तु मुझसे चांद मांग ले
मैं चांद ले के आऊंगा
वो आदमी से कहता था
कि आदमी से प्यार कर 
उजड रही है ये ज़मीं 
कुछ इसका अब सिंगार कर 
अजीब आदमी था वो

वो जिन्दगी के सारे गम, तमाम् दुख, हर इक सितम से कहता था
मैं तुमसे जीत जाऊंगा 
कि तुमको तो मिटा ही देगा एक् रोज आदमी 
भुला ही देगा ये जहाँ 
मिरी अलग है दास्तान 

वो आंखें जिनमें ख्वाब हैं 
वो दिल है जिनमें आरजू 
वो बाज़ू जिनमें है सकत 
वो होंट जिन पे लफ्ज़ हैं 
रहूँगा इनके दरमियाँ
कि जब मैं बीत जाऊंगा 
अजीब आदमी था वो

प्रस्तुति-रघुवेंद्र सिंह