Friday, May 20, 2011

फिल्म समीक्षा- प्यार का पंचनामा


हिंदी फिल्मों का प्यार बदल गया है। लड़कियां प्यार के लिए अब लड़कों के सामने गिड़गिड़ाती नहीं हैं। वे तो लव का द एंड कर देती हैं या फिर लड़कों को प्यार का पंचनामा करने के लिए मजबूर कर देती हैं। यूथ फिल्मों में दिखाया जा रहा है कि आज का यूथ सिर्फ भौतिक और शारीरिक सुख के लिए प्यार करता है। क्या मॉडर्न यूथ की प्यार के मामले में वाकई यही सोच है? 
रजत, चौधरी और लिक्विड गहरे दोस्त हैं। तीनों दिल्ली में साथ रहते हैं। तीनों की मशीनी जिंदगी में नेहा, रिया और चारू के रूप में प्यार आता है तो खुशनुमा सी हलचल मच जाती है। तीनों बेहद खुश होते हैं। कुछ समय बाद उन्हें अहसास होता है कि वे नेहा, रिया और चारू से प्यार करते हैं, लेकिन वे उनसे प्यार नहीं करतीं। प्यार की आड़ में वे उनका इस्तेमाल करती हैं।
अमूमन जहां हिंदी फिल्मों की प्रेम कहानी की हैप्पी एंडिंग होती है, उसके बाद की कहानी लेखक-निर्देशक लव रंजन प्यार का पंचनामा में दिखाते हैं। उनका कांसेप्ट अच्छा है। नए कलाकारों कार्तिक तिवारी, रायो भखारिया, दिव्येंदु शर्मा, सोनाली सहगल, इशिता शर्मा का सहज अभिनय प्रशंसनीय है। नेहा के किरदार में नुसरत भरूचा नाटकीय हो गई हैं।
प्यार का पंचनामा फिल्म का लिक्विड और चारू का ट्रैक मधुर भंडारकर की दिल तो बच्चा है जी फिल्म की याद दिलाता है। पटकथा चुस्त न होने के कारण कुछ समय पश्चात फिल्म बोझिल हो गई है। एक वक्त के बाद रजत, चौधरी और लिक्विड का नेहा, रिया और चारू के पीछे जाना अस्वाभाविक लगता है। वे दृश्य थोपे हुए लगते हैं।
-दो स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह

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