आरक्षण में प्रकाश झा के सग काम करने के बाद सैफ अली खान का हिंदी शब्द कोश समृद्ध हो गया है। 'आरक्षण' में प्रकाश झा ने छोटे नवाब के सामने रखीं और भी कई चुनौतिया।
दलित समाज का प्रतिनिधित्व
आरक्षण की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म 'आरक्षण' में सैफ दलित समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सैफ बताते हैं, 'इसमें मैंने एक दलित युवक दीपक कुमार की भूमिका निभाई है, जो आरक्षण की सुविधा की बदौलत ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है। वह समाज के हित के लिए कुछ करना चाहता है। यह किरदार बुद्ध की तरह है। कहने का अर्थ है कि बुद्ध की तरह शात और गभीर है। यह किरदार मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग था।'
खुश होगा दलित समाज
गौरतलब है कि 'आरक्षण' फिल्म अभी प्रदर्शित भी नहीं हुई और उत्तर भारत के एक दलित समाज ने सैफ अली खान द्वारा एक दलित युवक का किरदार निभाए जाने पर आपत्ति जाहिर कर दी है। सैफ अपना पक्ष रखते हैं, 'बिना पिक्चर देखे आपत्ति जताना ठीक नहीं है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि उन लोगों को आपत्ति किस बात पर है। अगर मेरे जन्म की वजह से यह आपत्ति है, तो बहुत बुरी बात है। मैं अगर कहूं कि किसी के जन्म की वजह भर से उसे एक नौकरी नहीं मिलनी चाहिए, तो यह वही बात हो गई जो फिल्म में है। यद्यपि मुझे उम्मीद है कि दलित समाज आरक्षण देखने के बाद बहुत खुश होगा।'
मेरा देसी अंदाज
सैफ ने अमूमन फिल्मों में शहरी युवक के किरदार निभाए हैं। 'आरक्षण' में विशुद्ध भारतीय परिवेश का किरदार निभाने का मौका पाकर वह बेहद खुश हैं। सैफ कहते हैं, 'भारत में प्रकाश झा जैसे बहुत कम फिल्ममेकर हैं जो भारत के बारे में सोचते हैं। भारत को जानते हैं। भारत की समस्याओं को केंद्र में रखकर फिल्में बनाते हैं। उनके साथ काम करने का मौका मिलना मेरे लिए बड़ी बात है। 'ओंकारा' और 'लव आज कल' के बाद अब इसमें दर्शक मुझे देसी अंदाज और विशुद्ध भारतीय परिवेश में देखेंगे।'
आरक्षण के बारे में बदली राय
'आरक्षण' फिल्म ने सैफ की सोच को प्रभावित किया है। सैफ कहते हैं, 'पहले मैं आरक्षण का विरोध करता था, पर फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने आरक्षण के मुद्दे को समझा। भारत में बहुत से पिछड़े लोग हैं जिन्हें आज आरक्षण की वजह से मौके मिल रहे हैं। वे आगे बढ़ पा रहे हैं। एक हद तक आरक्षण ठीक है। अब वह किस हद तक हो, यह बहस का मुद्दा है।'
-रघुवेन्द्र सिह
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