Monday, September 10, 2012

शाहरूख खान, कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा की 'जब तक है जान'



और गुलज़ार की कविता...

Teri aankhon ki namkeen mastiyaan,
Teri hansi ki beparwah gustaakhiyaan
Teri zulfon ki lehraati angdaaiyaan,
Nahin bhoolunga main
Jab tak hai jaan, Jab tak hai jaan

Tera haath se haath chodna,
Tera saayon ka rukh modna
Tera palat ke phir na dekhna,
Nahin maaf karunga main
Jab tak hai jaan, Jab tak hai jaan

हम हईं किसान के बेटा- दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’

एक किसान का बेटा आज भोजपुरी सिनेमा का स्टार गायक एवं अभिनेता है. मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहलाए जाने वाले दिनेश लाल यादवनिरहुआके जीवन के रोमांचक सफर पर आपको लेकर चल रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह
 
गाजीपुर का एक छोटा सा गांव है टंडवा. इसी गांव में एक किसान दंपत्ति रहता है. कुमार यादव की पत्नी खेती-बारी में स्वेच्छा से उनका हाथ बंटाती हैं. मगर जब खेती की आमदनी से सात जनों वाले इस परिवार का खर्च निकलना मुश्किल हो गया, तब कुमार यादव ने कोलकाता जाने का निर्णय किया. गांव में पत्नी और तीन बेटियां रह जाती हैं. एक फैक्ट्री में कुमार यादव साढ़े तीन हजार रुपए के मासिक वेतन पर मजदूरी करते हैं. वे बेलघरिया के आगरपाड़ा की झोपड़पट्टी में अपने दोनों बेटों दिनेश और प्रवेश के साथ रहते हैं. अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलवाते हैं, अच्छे कपड़े, ब्रान्डेड जूते पहनने के उनके शौक को पूरा करते हैं. हर पिता की तरह उनकी भी एक चाहत थी कि उनका बेटा बड़ा होकर ऐसा कोई काम करे कि उनकी छाती गर्व से चौड़ी हो जाए. 
उनका भतीजा विजय लाल यादव भोजपुरी का स्टार बिरहा गायक था. जब भी कोई उनका परिचय विजय का चाचा कहकर देता, तो उनके मन में वह गौरवमयी दृश्य उभरने लगता, जब उनका परिचय दिनेश लाल यादव के पिता के रूप में दिया जाता. बेटे दिनेश में गायकी का हुनर था. उन्होंने उसे प्रोत्साहित करना शुरू किया. वे स्वयं भी गायक थे. उन्होंने बेटे को खुद ट्रेनिंग देनी शुरू की. अपने साथ स्टेज शो में ले जाते. जब भतीजा विजय कोलकाता में कार्यक्रम के लिए आता, तो उसके साथ भी भेज देते. पढ़ाई के साथ-साथ दिनेश का गायकी में अनौपचारिक प्रशिक्षण जारी रहा.
1997 में कुमार यादव रिटायर हुए और अपने गांव लौट आए. तीनों बेटियों की शादी की जिम्मेदारी से वे मुक्त हो चुके थे. जमा पूंजी सब खत्म हो चुकी थी. दिनेश मलिकपुरा से बीकॉम की पढ़ाई कर रहे थे. अनाज बेचकर घर का खर्च और दिनेश एवं प्रवेश की पढ़ाई चल रही थी. दिनेश ने स्टेज शो करना शुरू कर दिया, लेकिन मेहनताने के नाम पर पैसा कुछ नहीं मिलता था. वे कोई दूसरा काम करने का मन बनाने लगे. मगर छोटे भाई प्रवेश ने भैया की हौसलाअफजाई की, ‘भैया, घर मैं चलाऊंगा, लेकिन आप गायकी मत छोडि़ए.’ दिनेश और प्रवेश सगे भाई होने के साथ-साथ गहरे दोस्त हैं. दोनों को क्रिकेट और फिल्मों का शौक है. इसी बीच, दिनेश पर परिजनों का शादी के लिए दबाव पडऩे लगा. उन्होंने आदर्श बेटे की तरह परिजनों की इच्छा का सम्मान करते हुए सत्रह साल की उम्र में विवाह कर लिया. ‘‘मेरी शादी इसलिए नहीं हुई कि मुझे जीवनसाथी की जरूरत थी, बल्कि मेरे घर में खाना बनाने वाले की जरूरत थी.’’ 
पत्नी मंशा दिनेश लाल यादव के लिए सौभागयशाली साबित हुईं. भैया विजय लाल यादव के सहयोग से 2003 में निकला म्यूजिक अलबम निरहुआ सटल रहे सुपरहिट हो गया और वे स्टार गायक बन गए. 2001 में उनके दो म्यूजिक अलबम बुढ़वा में दम बा और मलाई खाए बुढ़वा रिलीज हुए थे, जिसकी बदौलत उन्हें पहचान मिल गई थी. पिता कुमार यादव अपने बेटे की कीर्ति देखने के बाद चल बसे. इस बात का दिनेश को संतोष है. 2003 दिनेश के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण साल रहा. वे पिता बने. पहली बार उन्हें वल्र्ड टूर पर जाने का मौका मिला और वह भी चार्टड प्लेन में. उस दिन को दिनेश बड़ी भावुकता से याद करते हैं, ‘‘कोलकाता में पिताजी, प्रवेश और मैं दमदम हवाई अड्डे पर जहाज देखने गए थे. बीस रुपए का टिकट लेकर गरीब लोग एक कोने में खड़े होकर जहाज देख सकते थे, लेकिन वहां जाकर हमें पता चला कि दो महीने पहले ही वह सुविधा खत्म कर दी गई है. मैं क्रोध के साथ उस दिन घर लौटा था. मैंने सोच लिया था कि अब जीवन में कभी जहाज देखने को नहीं मिलेगी.’’
निरहुआ सटल रहे अलबम की सफलता के बाद दिनेश के जीवन में दो बड़ी घटनाएं घटीं. उनके नाम में निरहुआ हमेशा के लिए जुड़ गया और उन्हें पहली भोजपुरी फिल्म हमका अइसा वइसा ना समझो मिली. दरअसल, दिनेश ने अपने अलबम के गीतों पर स्वंय डांस किया था और वह उनके लिए शो रील का काम कर गई. 2005 में दिनेश लाल यादव निरहुआ मुंबई आए. निर्देशक की विनती पर उन्होंने चलत मुसाफिर... में दो गाने गाए और फिर संयोग ऐसा बना कि अभिनय भी किया. ‘‘मुंबई के चांदिवली में मंदिर में मैंने अपने जीवन का पहला शॉट दिया.’’ दिनेश की पहली फिल्म चलत मुसाफिर.. कहलाती है, क्योंकि यह पहले प्रदर्शित हुई. इस फिल्म में दिनेश ने छैला बिहारी के दोस्त का किरदार निभाया. फिल्म चल गई. उनका एक्शन लोगों को खूब पसंद आया और उसके बाद उनके पास सहयोगी भूमिकाओं के ऑफर आने लगे. मगर उनके मन में हीरो बनने की चाह जगह बना चुकी थी. ‘‘मैंने एक साल उस स्क्रिप्ट का इंतजार किया, जो मुझे हीरो बना दे. मेरे पास दस लाख रुपए तक के ऑफर आते थे, लेकिन मैं सबको टरकाता था. मुझे ऑटो रिक्शा में चलना मंजूर था और फिर मेरे पास निरहुआ रिक्शावाला की स्क्रिप्ट आई, जिसने मुझे स्टार बना दिया.’’ एक रिक्शे वाले और विधायक की बेटी की इस प्रेम कहानी ने निरहुआ को दर्शकों का चहेता स्टार बना दिया.
हाल में दिनेश ने अपने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ गंगा देवी फिल्म में अभिनय किया, जिसे वे अपने जीवन की उपलब्धि मानते हैं. इसके पहले वे एक इंटरव्यू के सिलसिले में भी उनसे मिल चुके हैं. ‘‘मैं राजपीपला में शूटिंग कर रहा था. मेरे पास फोन आया कि महुआ चैनल के लिए आपको अमिताभ बच्चन का इंटरव्यू करना है. मैं अपने निर्देशक के पैरों पर गिर पड़ा कि मुझे एक दिन की छुट्टी दे दो. मैंने एक घंटे अमित जी का इंटरव्यू किया, लेकिन मुझे आज तक पता नहीं कि मैंने पूछा क्या था और उन्होंने जवाब क्या दिया था. मैं उनके सामने मंत्रमुगध था. लगा कि मेरे सामने भगवान आकर बैठ गए हैं.’’ किशोरावस्था में अनाड़ी फिल्म देखने के बाद दिनेश ने अपने घर की दीवारों को करिश्मा कपूर की तस्वीरों से पाट दिया था. अक्षय कुमार से उन्हें मार्शल आर्ट सीखने की प्रेरणा मिली. दिनेश के दोनों बेटे आदित्य (सात वर्ष) और अमित (चार वर्ष) भी सिनेमा प्रेमी हैं. वे पंचगनी के न्यू एरा स्कूल से जब भी लौटते हैं, अपने पापा के साथ थिएटर में जाकर फिल्में देखते हैं
                                                                    गंगा देवी 
दिनेश ने अब तक चालीस से अधिक भोजपुरी फिल्मों में काम किया है. उनकी सबसे लोकप्रिय जोड़ी पाखी हेगड़े के साथ बनी है. पाखी के साथ उनकी निकटता को लेकर तरह-तरह की बातें भी कही जाती हैं. फिल्म निर्माण कंपनी में उनकी पार्टनर भी हैं. इस विषय में दिनेश ने हसंते हुए कहा, ‘‘अगर मैंने 40 फिल्में की हैं, तो 30 में पाखी मेरी हीरोइन रही हैं इसलिए ऐसी बातें होनी लाजमी हैं. पाखी और मेरे परिवार के बीच घरेलू संबंध हैं. मेरी पत्नी और पाखी एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं. हम सब एक-दूसरे को समझते हैं इसीलिए ऐसी बातों को विरोध नहीं करते.’’
                                           पाखी हेगड़े के साथ                                                                                             दिनेश वर्तमान में भोजपुरी सिनेमा के सबसे मंहगे और वान्टेड स्टार हैं. उनकी सफलता का कारण यह माना जाता है कि आम आदमी उनमें अपनी छवि देखता है और विश्वास करता है कि उनकी तरह वह भी अपनी समस्याओं से निपट सकता है. दिनेश इस प्यार और सम्मान के लिए दर्शकों के आभारी हैं और उन्होंने प्रण किया है कि वे भोजपुरी सिनेमा के उत्थान के लिए अपने आप को समर्पित कर देंगे. ‘‘मैं ऐसा सिनेमा बनना चाहता हूं, जिससे भोजपुरी सिनेमा पर लगा यह धब्बा मिट जाए कि इसमें गुणवत्तापूर्ण फिल्में नहीं बनतीं. इसी मकसद से मैंने निरहुआ एंटरटेनमेंट की नींव रखी है. मैंने उसमें भ्रूण हत्या पर आधारित औलाद, संगठित परिवार के विघटन पर परिवार का निर्माण किया. मैं सिनेमा को एक जिम्मेदार माध्यम मानता हूं. मैं इस सोच से सहमत नहीं हूं कि सिनेमा हमें कुछ सिखाता नहीं है. रामायण सीरियल ने मेरी सोच और व्यक्तित्व को प्रभावित किया था. संतान, बागबां और तारे जमीं पर फिल्मों ने मुझे प्रभावित किया.’’ फिल्मों के साथ, दिनेश ओशो, गौतम बुद्ध, गुरूनानक और शेट मॉडर्न के दर्शन का अपने व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव मानते हैं.
दिनेश की राय में क्षेत्रीय भाषाओं में भोजपुरी सिनेमा में सबसे ऊपर जाने की क्षमता है, क्योंकि हिंदी के बाद इसका दर्शक वर्ग सबसे बड़ा है. अपने स्तर पर दिनेश इस सिनेमा के उत्थान के लिए प्रयासरत हैं. ‘‘भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए टैक्स के रुप में प्रति वर्ष सरकार के खाते में जाता है, लेकिन वे तो इसे इंडस्ट्री मानने के लिए तैयार हैं और ही किसी प्रकार की सब्सिडी देने के लिए राजी हो रही हंै. महाराष्ट्र सरकार की तरह यूपी-बिहार सरकार को भी भोजपुरी फिल्मों को अपने प्रदेश के मल्टीप्लेक्स में दिखाना अनिवार्य कर देना चाहिए. हम चाहते हैं कि प्रदेश की सरकारें हमारे साथ यह सौतेला व्यवहार करना बंद करें.’’
वह दिन अब दूर नहीं है, जब टंडवा के किसान का यह बेटा राजनीति में उतरेगा और किसान-मजदूर वर्ग की समस्याओं, फिल्म इंडस्ट्री की दिक्कतों के लिए सरकार से लड़ेगा.

Photographs: Akshay Kulkarni