Wednesday, December 30, 2009

दीदार के लिए लगने लगी भीड़

बॉलीवुड की बेहतरीन जोडि़यों में से एक ऋषि-नीतू कपूर का पाली हिल स्थित कृष्णाराज बंगला एक बार फिर प्रशंसकों से गुलजार होने लगा है। लेकिन इस बार प्रशंसकों की भीड़ ऋषि-नीतू के लिए नहीं, बल्कि इनके बेटे रणबीर कपूर की एक झलक पाने के लिए लग रही है, जो नई पीढ़ी के सुपर स्टार हैं। रणबीर ने महज दो साल के भीतर अपने क्षमता और आकर्षक पर्सनैल्टी से जवां दिलों को सहजता से चुरा लिया है। कृष्णाराज बंगले के बाहर और अंदर हर दिन लगने वाली यंग लड़कियों की भीड़ से तो यही लगता है कि देव आनंद, राजेश खन्ना, सलमान खान और रितिक रोशन के बाद अब लड़कियों में युवा रणबीर का सबसे अधिक क्रेज है। रणबीर वाकई जवां दिलों की धड़कन बन चुके हैं। तभी तो उनके बंगले पर आने वाले क्राउड में अधिकतर कॉलेज गोइंग गर्ल नजर आती हैं। रणबीर के एक करीबी के अनुसार, कुछ लड़कियां तो फ्लॉवर, बुके, चॉकलेट और तरह-तरह के गिफ्ट लेकर आती हैं। इनमें कुछ तो रेग्युलर विजिटर हैं। रणबीर अधिकतर शूटिंग के सिलसिले में घर से बाहर रहते हैं। जब लड़कियों को पता चलता है कि वे घर में नहीं हैं, तो वे प्यार से गिफ्ट और फ्लॉवर उन्हें भेंट करने के लिए देकर चली जाती हैं। बंगले के सामने लड़कियों की भीड़ लगना अब आम बात हो चुकी है। अपने बेटे के प्रति प्रशंसकों का ऐसा प्यार देखकर ऋषि-नीतू खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। अपने बेटे की लोकप्रियता को एंज्वॉय कर रहे ऋषि कपूर कहते हैं, कोई भी फादर बेटे की सफलता और लोकप्रियता देखकर खुश होगा। रणबीर ने थोड़े समय में बहुत कुछ पा लिया है। हमें उन पर गर्व है। उनकी लोकप्रियता देखकर मेरा सीना चौड़ा हो जाता है।
रणबीर की लोकप्रियता में इस साल आई उनकी फिल्में वेक अप सिड और रॉकेट सिंह-सेल्समैन ऑफ द ईयर ने जबर्दस्त इजाफा किया है। उनकी विनम्रता और स्नेही स्वभाव भी इसके प्रमुख कारण हैं। वे किसी को निराश नहीं करते। सबसे प्यार से मिलते हैं। उनमें स्टार वाले नखरे जरा भी नहीं हैं। यही वजह है कि कोई भी उनसे मिलने और बात करने से हिचकिचाता नहीं। अब तो रणबीर को पब्लिक प्लेस में जाने से पहले कई बार सोचना पड़ता है, क्योंकि वे जहां भी जाते हैं, प्रशंसकों का हुजूम उनके पीछे उमड़ पड़ता है। कोई करीब से देखने तो कोई टच करने के मकसद से उनके पीछे भागता है।
बेशक रणबीर की इसी लोकप्रियता ने फिल्म निर्माताओं के बीच उनकी डिमांड बढ़ा दी है। इस समय वे फिल्म इंडस्ट्री के सबसे हॉट कलाकार हैं। उनके साथ काम करने के लिए निर्देशक उनके डैड के पास सिफारिश लेकर पहुंचने लगे हैं। फिल्म इंडस्ट्री के जानकार और अनुभवी निर्माता-निर्देशक और फिल्म कलाकार अब खुलकर कहने लगे हैं कि रणबीर ही वह स्टार कलाकार हैं, जो लंबे समय तक जवां दिलों की धड़कन बनकर धड़कते रहेंगे। ऐसे में यकीनन कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में पाली हिल का कृष्णाराज बंगला रणबीर के देश-विदेश के प्रशंसकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र बनेगा।

-raghuvendra Singh

लम्हे जो याद रहेगे हमेशा

[मेरी पहली कार]
नेहा मारदा (बालिका वधू की गहना)
2009 को मैं कभी नहीं भूल सकती। इस साल मैंने अपने पैसे से कार खरीदी और ड्राइविंग करना शुरू किया। दरअसल, 2006 में जब मैं ड्राइविंग सीख रही थी, तो मुझसे एक्सीडेंट हो गया था। मैं इतनी डर गई कि मैंने ड्राइविंग ही छोड़ दी, लेकिन 2009 में मैंने हिम्मत बांधी और फिर ड्राइविंग शुरू की। साल का दूसरा सबसे यादगार लम्हा मेरा जन्मदिन (23 सितंबर) है। उस दिन मेरे सभी भाई, भाभी और भतीजे देहरादून और बंगलौर से मुंबई आए। उन्होंने मुझे पहले से इसकी जानकारी नहीं दी थी। शाम को उन्होंने मेरे लिए बड़ी सरप्राइज बर्थडे पार्टी दी। मेरे लिए वह पल अनमोल था। खुशी से मेरी आंखों में आंसू आ गए थे।
[मेरा ड्रीम हुआ पूरा]
रश्मि देसाई (उतरन की तपस्या)
इस साल मेरी जिंदगी में दो यादगार लम्हे आए। मैं लंबे समय से मुंबई में अपना ड्रीम हाउस खरीदना चाहती थी, लेकिन कभी बजट तो कभी लोकेशन की वजह से बात नहीं बन पाती थी। इस साल मेरा ड्रीम हाउस खरीदने का सपना पूरा हो गया। उतरन के पहले मैंने कई सीरियल में काम किया था, लेकिन क्वालिटी वर्क किसी में नहीं मिला था। मैं ऐसा काम करना चाहती थी जिसकी लोग चर्चा करें। उतरन से मेरी वह इच्छा पूरी हो गई।
[इंडिपेंडेट बनी]
नताशा शर्मा (ना आना इस देस लाडो की सिया)
2009 ने मेरी जिंदगी को नया रूख दिया, मैं इंडीपेंडेंट बनी। मैं जून में दिल्ली छोड़कर मुंबई आयी। तीन बहनों में मैं सबसे छोटी हूं। मुझे बहुत प्रोटेक्ट करके रखा गया था। फैमिली में किसी को लग नहीं रहा था कि मैं अकेले मुंबई में रह पाऊंगी, लेकिन मैंने ऐसा कर दिखाया। मैं मुंबई में अपने बलबूते पर रहती हूं और अपना खर्च खुद चलाती हूं। इस साल का दूसरा स्पेशल मोमेंट वह है जब मुझे ना आना इस देस लाडो सीरियल में सिया के लिए चुना गया। इस किरदार ने मुझे पॉपुलर बना दिया। 2009 मेरे लिए हमेशा स्पेशल रहेगा।
-रघुवेंद्र

युवा निर्देशन की नई बयार/2009

इस साल 19 नए निर्देशकों ने फिल्म निर्देशन में कदम रखा। इनमें कुछ बड़े निर्देशकों के पुराने शागिर्द तो कुछ विज्ञापन फिल्मों के अनुभवी रहे। महिला निर्देशकों के हिसाब से यह साल उत्साहजनक रहा। इनमें कुछ को छोड़कर सभी निर्देशक तीस से कम उम्र के हैं।
नई पीढ़ी का जोश
वेक अप सिड के निर्देशक अयान मुखर्जी और कुर्बान फिल्म के निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा को इस साल की बड़ी खोज कहा जा सकता है। पच्चीस साल के अयान ने रणबीर कपूर और कोंकणा सेन शर्मा की बेमेल जोड़ी को लेकर खूबसूरत मनोरंजक फिल्म बनायी और कुर्बान से रेंसिल ने हिंदी फिल्म मेकिंग को एक नई ऊंचाई दी। डांस के लिए प्रसिद्ध प्रभुदेवा ने वांटेड से दर्शकों को बेहतरीन मनोरंजक फिल्म दी। उनकी अगली फिल्म की घोषणा का सबको इंतजार है।
नाम बड़े और दर्शन छोटे
फिल्म बड़े बजट से नहीं बल्कि अच्छी कहानी और उम्दा निर्देशन से बनती है। ब्लू, कमबख्त इश्क एवं मैं और मिसेज खन्ना फिल्मों के निर्देशक एंथोनी डिसूजा, साबिर खान और प्रेम सोनी यह बात भूल गए। एंथोनी डिसूजा को ब्लू के रूप में ड्रीम ब्रेक मिला। साठ करोड़ रूपए तथा अक्षय कुमार, संजय दत्ता और लारा दत्ता जैसे कलाकार मिले, लेकिन बेदम कहानी और कमजोर निर्देशन से उन्होंने निराश किया। यही हाल साबिर खान का रहा। साजिद नाडियाडवाला ने साबिर खान को बिग बजट और अक्षय कुमार एवं करीना कपूर जैसे स्टार कलाकार दिए, लेकिन उन्होंने साल की सबसे बुरी फिल्म कमबख्त इश्क बना डाली। प्रेम सोनी ने सलमान खान और करीना कपूर को लेकर मैं और मिसेज खन्ना के रूप में साल की सबसे बोरिंग फिल्म बनायी।
महिला निर्देशकों का दम
इस साल चार महिला निर्देशकों नंदिता दास, जोया अख्तर, मधुरिता आनंद और रोमिला मुखर्जी ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, लेकिन इनमें नंदिता और जोया को छोड़कर किसी में भी लंबी पारी खेलने का दम नहीं दिखा। नंदिता ने फिराक और जोया अख्तर ने फिल्म लक बाई चांस से दमदार निर्देशक के रूप में पहचान बनायी। फिराक तो देश-विदेश में कई पुरस्कार भी जीत चुकी है। मधुरिता आनंद की मेरे ख्वाबों में जो आए और रोमिला मुखर्जी की डिटेक्टिव नानी को न दर्शक मिले और न सराहना।
कम बजट में किया कमाल
छोटे बजट में बढि़या फिल्में बनाकर कुछ निर्देशकों ने वाहवाही लूटी। 13 बी के निर्देशक विक्रम कुमार, संकट सिटी के पंकज आडवाणी, चल चलें फिल्म के निर्देशक उज्जवल सिंह और चिंटूजी के रंजीत कुमार ऐसे ही प्रतिभाशाली निर्देशक हैं। इनके पास सिर्फ बढि़या कहानी थी। इन्होंने उसी पर मेहनत की और किसी तरह निर्माता और कलाकार इकट्ठे किए और अच्छी फिल्म बनाकर आलोचकों और दर्शकों का दिल जीत लिया।
पूरी तरह किया निराश
यह साल ऐसे निर्देशकों के आगमन का साक्षी भी बना जो आए और चलते बने। इनमें ढूंढते रह जाओगे फिल्म के उमेश शुक्ला, आ देखें जरा के जहांगीर सुर्ती, जोर लगा के हैय्या के निर्देशक गिरीश गिरीजा जोशी और फास्ट फारवर्ड के निर्देशक जैगम अली का नाम शामिल है।
-रघुवेन्द्र सिंह

आती है मम्मी की याद: प्रतीक बब्बर

बब्बर बचपन में भले ही मां स्मिता पाटिल की गरिमा और लोकप्रियता से परिचित न रहे हों, लेकिन अब वे भारतीय सिनेमा में अपनी मां के कद को अच्छी तरह समझ चुके हैं। प्रतीक जानते थे कि एक्टिंग को करियर बनाने के बाद उन पर अपनी मां की प्रतिष्ठा को बरकरार रखने की जिम्मेदारी आएगी। हुआ भी वही, पिछले साल उनकी पहली फिल्म जाने तू या जाने ना आई, तो लोग उनमें स्मिता पाटिल को ढूंढ रहे थे। प्रतीक को सफलता तब मिल गई, जब अमिताभ बच्चन ने फिल्म देखने के बाद कहा, प्रतीक ने मुझे स्मिता पाटिल की याद दिला दी। यहां इक्कीस वर्षीय प्रतीक बता रहे हैं अपनी मां, पिता राज बब्बर और खुद से जुड़ी अपनी बातें..
गलत थी सोच: बचपन में मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मम्मी की क्या पोजीशन है? मैं यही सोचता था कि अन्य अभिनेत्रियों की तरह वे भी एक अभिनेत्री रही होंगी, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मुझे उनकी पोजीशन का अहसास हुआ। मेरी बचपन की सोच गलत थी। मम्मी स्पेशल अभिनेत्री थीं। मैं जानता हूं कि मेरे साथ उनका नाम जुड़ा है, इसीलिए मुझसे लोगों की उम्मीदें जुड़ी हैं, लेकिन मैंने एक बात तय कर ली है कि मम्मी के नाम का सहारा लेकर आगे नहीं बढूंगा। मैं अपनी काबिलियत के बल पर आगे बढूंगा और मम्मी का नाम रोशन करूंगा।
शबाना जी हैं मम्मी: मेरे जन्म के समय मम्मी की डेथ हो गई थी। मुझे मम्मी की कमी खलती है। उनके बारे में जब लोगों से सुनता हूं या फिर उनकी फिल्में देखता हूं, तो ज्यादा याद आती हैं। उनकी फिल्म वारिस मैं बार-बार देखता हूं। आज मम्मी मेरे साथ नहीं हैं, लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि उनके जैसा कोई शख्स मेरी लाइफ में है। मैं शबाना आजमी को मम्मी की तरह मानता हूं। वे भी मुझे बेटे जैसा प्यार देती हैं। उनके साथ मेरा स्पेशल रिश्ता है। वे साथ होती हैं, तो मैं कॉन्फिडेंट फील करता हूं।
डरता हूं डैड से: मैं डैड से बहुत डरता हूं। वे सख्त फादर हैं। मैं गलती करता हूं, तो डांटते हैं। हालांकि डैड और मेरे बीच खुला रिश्ता है। हम दोनों एक-दूसरे पर यकीन करते हैं। पापा हमेशा कहते हैं कि जो काम करो, अच्छी तरह करो। उसमें कोई गुंजाइश मत छोड़ो। मम्मी-पापा को साथ स्क्रीन पर देखना मुझे अच्छा लगता है। उनकी फिल्म शपथ मुझे पसंद है।
अकेलापन भाता है: मैं अलग नेचर का हूं। मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है। मेरे ज्यादा दोस्त नहीं हैं। मुझे पढ़ने का शौक है। मुझे शांत जगह पर रहना पसंद है। मैं बचपन से ऐसा ही हूं। मेरे इस स्वभाव से कुछ लोगों को दिक्कत होती है, लेकिन इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं ऐसा ही हूं और मुझे ऐसे ही स्वीकार करें। मैंने बचपन में ही तय कर लिया था कि बड़ा होकर ऐक्टर बनूंगा। एक्टिंग मेरा पैशन है। मैं मम्मी की तरह अलग-अलग भूमिकाएं करना चाहता हूं। मैं परफॉर्मेस ओरिएंटेड फिल्में करना चाहता हूं।
पहली नौकरी: मैंने पढ़ाई खत्म करने के बाद ऐड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ के साथ हो लिया। वे मम्मी के दोस्त हैं। उन्होंने मुझे असिस्टेंट की नौकरी दी। वे बहुत काम करवाते थे, डांटते भी थे। मैंने उनके साथ चार-पांच विज्ञापन फिल्मों में काम किया, लेकिन उन्होंने मुझे पैसे नहीं दिए। मैं जब उनसे पैसे की बात करता, तो वे कहते कि अभी काम करते हुए एक महीना नहीं हुआ और पैसे की बात कर रहे हो। तुम पैसे देने लायक नहीं हो।
-रघुवेन्द्र सिंह

मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं पापा: आदित्य नारायण/रिश्ते

पा‌र्श्वगायक उदित नारायण के बेटे हैं आदित्य नारायण। पापा की देखरेख में आदित्य ने बचपन में ही गायन के क्षेत्र में कदम रख दिया था। चर्चित गीत छोटा बच्चा जान के हमको.. भला किसे याद नहीं होगा! बाद के दिनों में वे अभिनय में भी सक्रिय हुए। इन दिनों आदित्य विक्रम भट्ट की फिल्म शापित को लेकर चर्चा में हैं। अभिनय के साथ ही वे बतौर ऐंकर भी खूब चर्चा में रहे हैं। वे पापा को अपना दोस्त मानते हैं, उनसे हर तरह की बातें शेयर करते हैं। वे अपनी गर्लफ्रेंड के बारे में भी उनसे बातें करते हैं। पापा के साथ उनके रिश्ते कैसे हैं, आदित्य बता रहे हैं हमें..
मैं बचपन में पापा से इसलिए बहुत डरता था, क्योंकि वे मुझे बहुत मारते थे। यही वजह है कि मैं उनसे अपने मन की बातें कम ही कह पाता था, लेकिन अब मैं हर बात उन्हीं से कहता हूं। इस वक्त वे मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं। मेरे चेहरे पर जरा भी उदासी दिखती है, तो वे परेशान हो जाते हैं। दोस्त की तरह वजह पूछते हैं। मैं काम के बारे में तो उनसे राय लेता ही हूं, साथ ही गर्लफ्रेंड के साथ लड़ाई होती है, वह भी उनसे कहता हूं। हम साथ बैठकर समस्या का हल निकालते हैं। मुझे लगता है कि पापा भगवान द्वारा बनाए गए एकमात्र इनसान हैं। उन जैसा सीधा, सरल, मृदुभाषी, डाउन टु अर्थ दुनिया में कोई नहीं है। कामयाबी की बुलंदियां छूने के बावजूद वे विनम्र हैं। उनमें घमंड बिल्कुल नहीं है। मैं उन्हें देखता हूं, तो बस देखता ही रह जाता हूं। उनका फायदा उठाकर लोग चले जाते हैं, तब भी वे मुस्कुराते रहते हैं। मैं उनसे यही बातें सीखने की कोशिश कर रहा हूं, ताकि जिंदगी के सफर में मैं खुशी का स्पर्श आजीवन महसूस कर सकूं।
मैंने पापा के साथ उदित ऐंड आदित्य व‌र्ल्ड टुअॅर किया था। मैंने उनके सान्निध्य में कई बार गायन किया है। लोग कभी-कभी मेरी गायकी की तुलना उनसे करते हैं, तो खुशी होती है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं पापा जैसा मुकाम हासिल कर पाऊंगा! पापा के साथ प्रतिस्पर्धा के बारे में मैं सपने में भी नहीं सोच सकता। हां, मैंने उनके लिए दो गाने जरूर कम्पोज किए हैं। अपनी फिल्म में उनसे गवाऊंगा। वे मेरी प्रोग्रेस से खुश हैं। मैंने अपना फ्लैट खरीद लिया है और उसी में रहता हूं। यही वजह है कि अब पापा से मिलना कम होता है। हम अपने-अपने काम में व्यस्त रहते हैं।
-रघुवेन्द्र सिंह

Thursday, December 17, 2009

याद है पुलिस की वर्दी: रितेश देशमुख /17 दिसंबर जन्मदिन पर विशेष...

-रघुवेन्द्र सिंह
17 दिसंबर जन्मदिन पर विशेष...
रितेश देशमुख अपने हंसमुख स्वभाव से सभी को लुभाते हैं। वे पब्लिक प्लेस में बड़े धीर-गंभीर दिखते हैं। दूसरों की बातें गंभीरता से सुनते हैं और अपनी बात सहजता से रखते हैं, लेकिन अनौपचारिक होते ही उनका बातचीत का अंदाज अचानक बदल जाता है। वे दोस्त बन जाते हैं और हंसने लगते हैं। 17 दिसंबर को जिंदगी के नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार रितेश का ऐसा ही अंदाज तरंग से अपने बर्थडे के बारे में बात करते समय नजर आया।
कोई तैयारी नहीं: मेरा हर बर्थडे मेरे लिए स्पेशल होता है। मैं अपने बर्थडे को लेकर उत्साहित रहता हूं। पूरे साल बर्थडे का इंतजार करता हूं, लेकिन अब बचपन की तरह शानदार तरीके से उसे मनाने के लिए समय नहीं मिलता। अब व्यस्तता बढ़ गई है। इस बर्थडे के लिए मैंने कोई स्पेशल तैयारी नहीं की है। मैंने पार्टी देने की प्लानिंग भी नहीं की है। मैं बर्थडे के दिन अपनी फिल्म जाने कहां से आई है की डबिंग कर रहा हूं। मैं कोशिश करूंगा कि डबिंग के बाद फैमिली और दोस्तों के साथ रहूं और छोटा सा गेट-टुगेदर करूं।
वह बर्थडे : मैं पांच साल का था। उस वक्त मुझे पुलिस बनने की धुन थी। बर्थडे गिफ्ट में किसी ने मुझे पुलिस की यूनिफॉर्म दे दी, तो मैं बहुत खुश हुआ। उस दिन सुबह से शाम तक मैं पुलिस की यूनिफॉर्म पहनकर घूमा। पुलिस वाले की तरह सब पर रौब भी दिखाया था। बचपन के बर्थडे की बात अलग होती थी। सारे दोस्त घर पर आते थे। हम लोग तरह-तरह के गेम खेलते थे। हम सब मिलकर खूब धमाल मचाते थे।
आशीर्वाद ही काफी : अब मैं किसी से गिफ्ट नहीं मांगता। गिफ्ट लेने और मांगने की उम्र चली गई। अब गिफ्ट देने की उम्र हो गई है। मैं अपने पेरेंट्स, भाई और दोस्तों से कोई डिमांड नहीं करता। सबसे यही कहता हूं कि आप लोगों का आशीर्वाद मिल जाए, वही काफी है। सबके आशीर्वाद से मेरे पास अब सब कुछ है। मैं अपनी जिंदगी से खुश हूं। मैं यही चाहूंगा कि जिंदगी का नया साल मेरे लिए अच्छा हो। मैं स्वस्थ रहूं, मुझे दर्शकों का प्यार मिले और मेरी फिल्में अच्छा बिजनेस करें।
रितेश के बारे में..
मेरी पहली फिल्म अलादीन के हीरो रितेश ही थे। उस समय मैं मुंबई में नई थी। मुंबई में किसी को नहीं जानती थी। फिल्म इंडस्ट्री मेरे लिए बिल्कुल अंजानी थी, लेकिन रितेश से मिलने के बाद मेरे लिए सब कुछ बदल गया। उन्होंने न सिर्फ मेरा खयाल रखा, बल्कि इंडस्ट्री के बारे में बताया और लोगों से मिलवाया भी। रितेश बहुत केयरिंग हैं। उनका सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत अच्छा है। मैं उन्हें अपना बेस्ट फ्रेंड मानती हूं। मेरी दूसरी फिल्म जाने कहां से आई है भी उन्हीं के साथ है।
-जैक्लीन फर्नाडीस
रितेश के साथ मैंने फिल्म दे ताली में काम किया। उस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने देखा कि उनमें ग्रेट सेंस ऑफ ह्यूमर है। वे छोटी-छोटी बातों में हंसी ढूंढ लेते हैं। मैंने हमेशा उन्हें हंसते हुए देखा है और यह भी गौर किया है कि वे अपने आसपास के लोगों को भी खुश रखने की कोशिश करते हैं। उनकी यह खासियत मुझे बहुत अच्छी लगी। मैं उन्हें अपना अच्छा दोस्त मानती हूं। मैं चाहूंगी कि रितेश कभी नहीं बदलें। हमेशा ऐसे ही हंसते मुस्कुराते रहें।
-आयशा टाकिया

Tuesday, December 15, 2009

नहीं रखता पैसों का हिसाब: साइरस ब्रोचा

साइरस ब्रोचा एमटीवी के लोकप्रिय वीजे हैं। वे लोगों को हंसाने की कला में निपुण हैं। कुछ समय पहले उनकी फिल्म 99 प्रदर्शित हुई। उसमें उनका अभिनय सबको पसंद आया। अब उनकी मुंबई चकाचक और फ्रूट ऐंड नट प्रदर्शन के लिए तैयार हैं। आजकल साइरस फिल्मों पर अपना ध्यान अधिक लगाए हुए हैं। पिछले दिनों उन्होंने हमें मनी यानी पैसे के प्रति अपने नजरिए से अवगत कराया..।
आपके जीवन में पैसों की क्या अहमियत है?
मैं पैसों की अहमियत नहीं जानता। ऐसा इसलिए, क्योंकि मेरा सारा पैसा पापा के पास रहता है।
आपकी पहली कमाई क्या थी?
ग्यारह सौ रुपये, जो मुझे एक विज्ञापन फिल्म में काम करने के लिए मिले थे।
अपने प्रशंसकों को बचत के लिए क्या सुझाव देंगे?
पैसे को खुद से दूर रखें। तभी बचत संभव है।
आपने जीवन में क्या महत्वपूर्ण बचत की है?
सब डूब गया। अब ज्यादा कुछ नहीं है।
सबसे महंगी चीज, जो आपने खरीदी हो?
मुंबई में घर और गाड़ी। इन्हें खरीदने में पैसा कितना खर्च हुआ, वह नहीं बता सकता।
क्या लगता है कि आप आर्थिक रूप से सिक्योर हैं?
मौजूदा स्थिति में कोई भी आर्थिक रूप से सिक्योर नहीं है। अनिल अंबानी भी नहीं।
आपके आय-व्यय का ब्यौरा कौन रखता है?
पापा। मैं पैसों का हिसाब नहीं रखता। दरअसल, मेरा हिसाब कमजोर है।
क्या आप शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं?
हां, मैंने लगाया था, लेकिन सब डूब गया।
खरीदारी कैश से करते हैं या क्रेडिट कार्ड से?
यात्रा के दौरान के्र डिट कार्ड साथ रखता हूं। मुंबई में कैश से खरीदारी करता हूं।
प्यार, पैसा और परिवार को किस क्रम में रखना पसंद करेंगे?
पहले परिवार, फिर पैसा उसके बाद प्यार। मैंने प्यार को अंत में इसलिए रखा, क्योंकि अभी तक उसका अनुभव नहीं हुआ है।

Monday, December 14, 2009

हैप्पी फिल्म है पा: अभिषेक बच्चन | मुलाकात

अमिताभ और अभिषेक बच्चन कई फिल्मों में साथ और पिता-पुत्र के रूप में आए, लेकिन ये दोनों फिल्म पा में पहली बार पुत्र-पिता के रूप में नजर आएंगे। हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब बिग स्क्रीन पर एक पिता अपने बेटे और बेटा अपने पिता के किरदार में नजर आएगा। इस अद्भुत अनुभव और पिता अमिताभ बच्चन से आपसी रिश्ते के बारे में अभिषेक से बातचीत की..।
रियल पिता-पुत्र की जोड़ी को फिल्म में पुत्र-पिता के रूप में पेश करने का आइडिया किसका था?
पा के निर्देशक बाल्की का। वे एक दिन हमारे घर आए थे और उस वक्त पापा और मैं कुछ डिस्कस कर रहे थे। उन्होंने देखा कि जो बेटा है, वह सीरियस बातें कर रहा है और पिता शांति से उसे सुन रहे हैं। उस वक्त उन्हें पिता बेटा लगा। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस विषय पर एक फिल्म बनाई जाए, जिसमें अमिताभ बच्चन को अभिषेक के बेटे के रूप में पेश किया जाए। फिर वे सोचने लगे कि इसे संभव कैसे किया जाए। काफी रिसर्च के बाद उन्हें प्रोजेरिया बीमारी के बारे में पता चला। इस तरह उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी।
अमिताभ बच्चन के साथ अपने रिश्तों के बारे में बताएंगे। पिता-पुत्र के अलावा आप दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता है?
निजी जीवन में हमारा रिश्ता दो दोस्तों का है। हमारे दादा जी ने पापा को सिखाया था कि बेटा अपने पिता का उस दिन दोस्त बन जाता है, जिस दिन वह अपने पिता के जूते पहन लेता है। मैं बारह या तेरह साल का था, जब मैंने पापा के जूते पहनने शुरू कर दिए। तब उन्होंने मुझे यह कहानी सुनाई। तबसे हम दोनों बेस्ट फ्रेंड हैं।
घर में क्या आपके सुझाव माने जाते हैं या आपको अभी तक बच्चे की तरह ही ट्रीट किया जाता है?
नहीं, बचपन से लेकर आज तक मां और पा ने हमेशा श्वेता और मेरी बात मानी है। हमेशा हमसे पूछा जाता है कि यह समस्या है और आप दोनों का इस पर क्या सोचना है? अब परिवार में ऐश्वर्या भी हैं, तो हम सब मिल-बैठकर डिसाइड करते हैं कि क्या होना चाहिए और कैसे होना चाहिए?
पा में एक बेटे ने अपने पिता के पिता का रोल किया या एक पिता ने अपने बेटे के बेटे का रोल किया। आप किस रूप में इसे याद करेंगे?
एक पिता ने अपने बेटे के बेटे का रोल निभाया, उस हिसाब से। फिल्म देखेंगे, तब लोगों को पता चलेगा कि इसमें किसका कन्ट्रीब्यूशन ज्यादा है। जब लोग पापा के काम को देखेंगे, तो चौंक जाएंगे। यह पापा के करियर का सबसे मुश्किल रोल है।
फिल्म का नाम पा ही क्यों रखा गया? पापा, बाबूजी या कुछ और क्यों नहीं?
क्योंकि मैं निजी जीवन में पा को पा ही बुलाता हूं, तो बाल्की को लगा कि इसका नाम पा ही रखा जाए।
आपके लिए अपने पिता के पिता का रोल करना चैलेंजिंग रहा होगा। इसके लिए आपने किस ढंग की तैयारी की?
रियल लाइफ में पा जिस तरह मुझसे पेश आते हैं, मैंने वही किया है। फिल्म में मैंने पा के तौर-तरीकों को अपनाया है। उसके अलावा मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि जो कुछ करना था, पा ऐसे ही कर रहे थे। एक ऐक्टर के लिए बहुत मुश्किल होता है, जब उसके पास ऑथोबैक रोल हो। यदि उसमें वह दिखाने की कोशिश करता है कि मैं भी फिल्म में हूं, तो फिल्म खराब हो जाती है। ऐक्टर के लिए साइलेंट सपोर्टर रहना ज्यादा चैलेंजिंग होता है। मैं फिल्म में फ्लो के साथ चला हूं।
पा पुत्र-पिता या पिता-पुत्र किस प्रॉस्पेक्टिव से कही गई कहानी है?
दो प्रॉस्पेक्टिव हैं। एक, पिता-पुत्र और दूसरा, पुत्र-पिता। मैं इसमें अमोल आरते की भूमिका निभा रहा हूं, जो लखनऊ से मेंबर ऑफ पार्लियामेंट है। विद्या बालन मेरी पत्नी बनी हैं और परेश रावल मेरे पिता की भूमिका में हैं। ऑरो की भूमिका पापा निभा रहे हैं। यह अमोल आरते और उसके बेटे ऑरो के रिश्ते की कहानी है। यह स्वीट, सिंपल फिल्म है। इसमें प्रोजेरिया का प्रचार नहीं किया गया है। जब लोग थिएटर से फिल्म देखकर निकलेंगे, तो उनके चेहरे पर स्माइल होगी, इस बात की गारंटी है। मैं इसे हैप्पी फिल्म मानता हूं।

लोग अच्छाइयां देखते हैं: सूरज बड़जात्या | मुलाकात

धारावाहिक में राजश्री प्रोडक्शन की सक्रियता बढ़ती जा रही है। वो रहने वाली महलों की, प्यार के दो नाम एक राधा एक श्याम और मैं तेरी परछाई हूं की सफलता के बाद अब राजश्री जी टीवी पर यहां मैं घर-घर खेली धारावाहिक लेकर आया है। जल्द ही एनडीटीवी इमेजिन पर उनके नए धारावाहिक दो हंसों का जोड़ा का प्रसारण भी आरंभ होगा। सूरज बड़जात्या ने हम से खास मुलाकात में जी टीवी पर प्रसारित हो रहे यहां मैं घर घर खेली और राजश्री की भावी योजनाओं के बारे में बात की..
यहां मैं घर-घर खेली के निर्माण की योजना कब बनी और आपने इसके प्रसारण के लिए जी टीवी को क्यों चुना?
जी टीवी से हमारा पुराना नाता है। हमारी पांचों फिल्मों के अधिकार जी टीवी के पास ही हैं। फरवरी में चैनल से हमारी बात पक्की हुई और नवंबर में इसका प्रसारण शुरू हुआ है। यहां मैं घर घर खेली राजश्री का अब तक का सबसे बड़ा शो है। यह उज्जैन के स्वर्ण भवन की कहानी है। यह पिता-पुत्री की कहानी है। लड़की जिस घर में पैदा होती है, जहां पली-बढ़ी होती है, उस घर की दीवार, तुलसी, आंगन में गिरती धूप से उसका अलग तरह का रिश्ता होता है। मैं खास तौर पर उल्लेख करना चाहूंगा कि यह घटना प्रधान नहीं, किरदार प्रधान धारावाहिक है। इसमें हर किरदार की अच्छाइयां और बुराइयां हैं। इसकी हीरोइन के पिता आलोक नाथ हैं। यह उनका बेस्ट रोल है। उन्होंने अपनी बेटी का नाम स्वर्ण आभा रखा है। इसकी स्टोरी, स्क्रीनप्ले, डायलॉग सब इरशाद कामिल लिख रहे हैं। उनकी लेखनी में रूह है। इसमें हमने संगीत पर भी खास ध्यान दिया है।
धारावाहिक में आपकी क्या भूमिका है?
इस धारावाहिक से मेरा खास लगाव है। इसकी बेसिक राइटिंग मैं देखता हूं। मेरे हिसाब से यही नींव होती है। मैं नींव पर नजर रखता हूं। मैं कास्टिंग देखता हूं। मैं एपीसोड देखता हूं। यह मेरी जिम्मेदारी होती है। राजश्री प्रोडक्शन की टीवी हेड मेरी बहन कविता हैं। वे सभी कार्यक्रम रोजाना देखती हैं।
आजकल टीवी पर रिअलिटी और ग्रामीण प्रधान कार्यक्रमों की अधिकता है। आप उनसे प्रभावित नहीं हुए?
रिअलिटी की तरफ टीवी जा रहा है, यह सही है। यह उन्नति है। हमने कभी किसी ट्रेंड को फॉलो नहीं किया। राजश्री के अंदर है कि हम जो कुछ बनाए, उसमें फैमिली की बांडिंग जरूर होनी चाहिए। हम अपने कार्यक्रमों में अच्छाइयां दिखाते हैं। सामाजिक जीवन में खराबियां बहुत होती हैं, लेकिन अच्छाइयां भी होती हैं। लोग कहते हैं कि बुराइयों से टीआरपी मिलती है। ऐसी बात नहीं है। मेरी समझ से लोग अच्छाइयां देखना चाहते हैं।
टीवी से अपने गहराते रिश्ते के बारे में क्या कहेंगे?
मल्टीप्लेक्स के टिकट की कीमत और वक्त की पाबंदी के कारण बहुत से दर्शक थिएटर में नहीं जाते। कह सकते हैं कि फिल्मों का एक अलग स्तर बन गया है। छोटे शहर के लोग कितना थिएटर जा पाते हैं? वह हार्डकोर राजश्री की आडियंस है। हमने सोचा कि इतनी कहानियां हैं कहने को, तो क्यों न टीवी पर आया जाए। हमारा पहला सीरियल वो रहने वाली महलों की हिट हुआ, तो हमारी हिम्मत बढ़ी। हम जानते हैं कि टीवी की आडियंस क्या चाहती है?
आप टीवी देखने के लिए कितना वक्त निकाल पाते हैं?
मैं काम की वजह से ज्यादा नहीं देख पाता, लेकिन मैं खुद को अपडेट रखता हूं कि किस सीरियल में क्या चल रहा है? मैं स्पोर्ट चैनल देखता हूं। मैं रीअल हीरोज को देखना पसंद करता हूं।
टीवी के लिए राजश्री की भावी योजनाएं क्या हैं?
नवंबर के अंत में एनडीटीवी इमेजिन पर हमारा नया धारावाहिक दो हंसों का जोड़ा शुरू होगा। अगले साल तीन धारावाहिक बनाने की हमारी योजना है।

ब्रिलिएंट एक्टर हैं आमिर: माधवन

दमदार अभिनय के लिए प्रसिद्ध आर माधवन का कहना है कि आमिर खान के साथ 3 इडियट्स और अमिताभ बच्चन के साथ तीन पत्ती फिल्म में काम करने के बाद उन्हें रियलाइज हुआ कि उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। एक मुलाकात में आर माधवन ने बताया, जब तक आप सोलो हीरो फिल्म में काम करते हैं, तब तक आपको लगता है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन जब आपका सामना अमिताभ बच्चन और आमिर खान जैसे पॉवरफुल कलाकारों से होता है तब पता चलता है कि आप कितने पानी में हैं। अमिताभ बच्चन और आमिर खान के साथ काम करने के बाद मुझे रियलाइज हुआ कि मुझे बहुत कुछ सीखना बाकी है। सच कहूं तो मुझे उनकी आधी एक्टिंग ही आती है। मैं इन कलाकारों के साथ काम करके सम्मानित महसूस कर रहा हूं।
माधवन ने पहली बार रंग दे बसंती फिल्म में मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान के साथ काम किया था। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 3 इडियट्स में वे दोबारा आमिर खान के साथ स्क्रीन शेयर करते नजर आएंगे। आमिर खान के बारे में माधवन कहते हैं, आमिर खान के साथ काम करने का अनुभव हमेशा अलग और स्पेशल रहा है। वे ब्रिलिएंट एक्टर हैं। थ्री इडियट्स की शूटिंग के दौरान मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। वे अच्छे दोस्त भी हैं। फिल्म की शूटिंग को हम सभी ने एंज्वॉय किया।
3 इडियट्स के निर्देशक राजकुमार हिरानी हैं। फिल्म के बारे में माधवन कहते हैं, यह राजकुमार हिरानी के स्टाइल की फिल्म है। इसमें बहुत सारे ऐसे मोमेंट हैं, जिन्हें दर्शक भूल नहीं पाएंगे। यह इंजीनियरिंग कॉलेज के तीन दोस्तों की कहानी है। आमिर खान, शरमन जोशी और मैं तीन दोस्तों की भूमिका निभा रहे हैं। मेरे कैरेक्टर का नाम फरहान कुरैशी है। इसे मैं अपने करियर की स्पेशल फिल्म कहना चाहूंगा। इसकी शूटिंग के मोमेंट मेरे लिए स्पेशल रहे।
इस साल माधवन की दो फिल्में 13बी और सिकंदर रिलीज हुईं। दोनों फिल्मों में माधवन के अभिनय की तारीफ हुई। अब वे बेसब्री से 3 इडियट्स की रिलीज का इंतजार कर रहे हैं। माधवन कहते हैं, साउथ की फिल्में हों या हिंदी फिल्में मुझे हमेशा दर्शकों का प्यार मिला है। सबका प्यार ही है जो मुझे इतनी फिल्में मिल रही हैं। निर्माता मुझ पर पैसा लगा रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि 3 इडियट्स में मेरा काम लोगों को अच्छा लगेगा। यह साल मेरे लिए अच्छा साबित होगा। मैं 3 इडियट्स का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं।
माधवन की व्यस्तता इधर हिंदी फिल्मों में बढ़ी है। यह बात माधवन भी मानते हैं। वे कहते हैं, हाल में आई मेरी हिंदी फिल्मों ने अच्छा बिजनेस किया। जिसकी वजह से निर्माताओं का मुझ पर विश्वास बढ़ गया। 3 इडियट्स के बाद मेरी फिल्म तीन पत्ती आएगी। उसके अलावा मैं सहारा, शेमारू और टी-सीरीज की फिल्में भी कर रहा हूं। अगले साल लीना यादव की तीन पत्ती और आनंद राय की फिल्म तनु वेड्स मनु में दर्शक मुझे देखेंगे।
माधवन आजकल कंगना राणावत के साथ तनु वेड्स मनु की शूटिंग कर रहे हैं। इस फिल्म में वे दोनों पहली बार साथ दिखाई देंगे।

अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है अविका गौर

छोटे पर्दे की नन्ही सुपर स्टार अविका गोर की इस ख्वाहिश से सब वाकिफ हैं कि वे बड़ी होकर मिस यूनिवर्स बनना चाहती हैं। उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए अभी से मेहनत करना शुरू कर दिया है। अविका को लग रहा है कि उनकी हाइट इसमें बाधक हो सकती है। इसलिए वे अपनी हाइट बढ़ाने का भी प्रयास कर रही हैं। आत्मविश्वास से लबरेज अविका कहती हैं, धारावाहिक बालिका वधू की लोकप्रियता और तमाम फिल्मों के ऑफर अभी तक मुझे मिस यूनिवर्स बनने के मेरे लक्ष्य से भटका नहीं पाए हैं। मिस यूनिवर्स बनना मेरा सपना है। मैं जानती हूं कि वहां तक पहुंचने के लिए बहुत नॉलेज चाहिए, इसलिए मैं मेहनत से पढ़ाई कर रही हूं। मैं यह भी जानती हूं कि मेरी हाइट कम है। उस स्पर्धा में जाने वाली लड़कियां लंबी होती हैं। मैं अपनी हाइट बढ़ाने की कोशिश कर रही हूं। आजकल मैं साइक्लिंग करती हूं।
बालिका वधू में आनंदी के रोल से मिली लोकप्रियता से अविका बहुत खुश हैं। वे कहती हैं, मैं जहां भी जाती हूं, लोग मुझे आनंदी, चुहिया, बिंदड़ी कहकर बुलाते हैं। यह सुनकर मुझे अच्छा लगता है। मैं सच कह रही हूं। इस लोकप्रियता का मुझे जरा भी घमंड नहीं है। अभी मुझे बहुत दूर जाना है। मैं आज भी सीधी-सादी और थोड़ी-सी शरारती अविका हूं। मुझे नहीं पता था कि मैं इतनी कम उम्र में इतनी पॉपुलर बन जाऊंगी।
धारावाहिक बालिका वधू में आने वाले ट्विस्ट के बारे में पूछने पर अविका कहती हैं, उसके लिए सीरियल देखना पड़ेगा। मैं इतना बता सकती हूं कि जल्द ही सीरियल में सुखद मोड़ आने वाला है। आनंदी जल्द ही फिर से हंसती-चहचहाती दिखाई देगी।
पिछले दिनों अविका फिल्म मॉर्निग वॉक में थीं। क्या भविष्य में वे फिर किसी फिल्म में नजर आएंगी? वे बताती हैं, वह फिल्म मैंने बालिका वधू स्वीकारने से पहले साइन की थी। मैं खुश हूं कि लोगों को मेरा काम अच्छा लगा। मैंने एक फिल्म पाठशाला में भी काम किया है। उसमें शाहिद कपूर और आयशा टाकिया हैं। वह भी जल्द आएगी। मैं और फिल्मों में काम करना चाहती हूं लेकिन बालिका वधू से फुरसत नहीं मिलती। वैसे भी, इस सीरियल से मुझे वह सब मिल रहा है, जो फिल्मों से मिलता है। मैं खुश हूं। अविका आगे कहती हैं, मैं कलर्स के रिअलिटी शो खतरों के खिलाड़ी में जाना चाहती हूं। मैं उस शो की फैन हूं। खास बात यह है कि मुझे किसी चीज से डर नहीं लगता। मैं उस शो के निर्माताओं से कहना चाहती हूं कि वे बच्चों के लिए भी ऐसा शो बनाएं।

Thursday, December 10, 2009

सेहत अच्छी तो सब अच्छा-रितिक रोशन/फिटनेस मंत्र

रितिक रोशन नियमित रूप से व्यायाम करते हैं। वह संतुलित आहार ग्रहण करते हैं। यही कारण है कि वह स्वस्थ व चुस्त-दुरुस्त हैं। उनका सुडौल शरीर लोगों खासकर युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। आइए जानते है रितिक की फिटनेस के राज-
[स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन]
''मैं समर्पित भाव से अपनी सेहत का ख्याल रखता हूं। मेरे लिए स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। मैं फिट रहने के लिए पैसा खर्च करने में जरा भी हिचकिचाता नहीं हूं। मेरा मानना है कि शरीर ही सिर्फ आपका है। उस पर पूरी तरह से आपका अधिकार है। उसे आप जिस तरह चाहें उस तरह रख सकते हैं। मैं जब ऐसे लोगों से मिलता हूं जो फिट नहीं होते तो सोचता हूं कि कोई अपने शरीर के साथ इतना गैरजिम्मेदाराना बर्ताव कैसे कर सकता है? ''
[काम में तभी मन लगेगा..]
''यदि आपकी सेहत अच्छी रहती है, तो न केवल आप शारीरिक रूप से सशक्त महसूस करते हैं बल्कि मानसिक रूप से भी सशक्त महसूस करते है। अच्छी सेहत के कारण काम में आपका मन लगेगा और हर चीज आपको सुखदायक लगेगी। आपके चेहरे पर अलग तरीके का तेज दिखायी देगा।''
[राज की बात]
''मेरी फिटनेस का एकमात्र राज कड़ी मेहनत है। मैं प्रतिदिन शूटिंग के दौरान समय निकालकर व्यायाम करता हूं। मैं बहुत नियंत्रित जीवन जीता हूं। मुझे भी मीठे खाद्य पदार्थ बहुत पसंद हैं, लेकिन मैं खुद पर कंट्रोल रखता हूं। मैं फल, जूस व हरी सब्जियां अधिक खाता हूं। मैं योगासनों को सर्वोत्ताम व्यायाम मानता हूं।''
-रघुवेन्द्र सिंह

इंतजार में जिया

फिल्म नि:शब्द से बालीवुड में दस्तक देने वाली जिया खान किसी ब्वायफ्रेंड की तलाश में नहीं है। दरअसल उन्हें अपनी नई फिल्म यंत्र के लिए कोई हीरो नहीं मिल रहा है। अमिताभ बच्चन और आमिर खान जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम कर चुकी जिया हीरो न मिलने की वजह से काफी परेशान हैं। केन घोष की फिल्म चांस पे डांस से आउट होने के बाद जिया ने मिलिंद उके की यह फिल्म साइन की थी। इसमें पहली बार जिया दोहरी भूमिका में नजर आएंगी। जानकारों के मुताबिकइस फिल्म में पहले जिया के अपोजिट हरमन बावेजा काम करने वाले थे लेकिन कुणाल कोहली की फिल्म साइन करने के बाद उन्होंने इसमें काम करने से इंकार कर दिया। अब फिल्म के निर्माता-निर्देशक नए हीरो की तलाश में हैं। इसकी शूटिंग नए साल से होनी थी। लेकिन हीरो न मिलने के कारण शूटिंग भी लटक सकती है। बेचारी जिया, गजनी के बाद उन्हें कोई पूछ नहीं रहा। एक फिल्म मिली भी तो हीरो नहीं मिल रहा। ऐसे में वे इंतजार न करें तो क्या करें।

-raghuvendra Singh

Wednesday, December 9, 2009

कट्रीना ने ठुकराई कृष-2 | खबर

मुंबई। सेक्सी कट्रीना कैफ की ख्वाहिश सुपर स्टार रितिक रोशन के साथ काम करने की थी, लेकिन अब जब फिल्म कृष 2 में उनके हाथ यह हसीन मौका आया तो दिल पर पत्थर रखते हुए उन्हें ना कहना पड़ा। सूत्रों के मुताबिक, दो सप्ताह पहले निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन अपनी सफल फिल्म कृष के सीक्वल कृष 2 का आफर लेकर कट्रीना के पास पहुंचे। उनकी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उन्होंने सोचा नहीं था कि इतना जल्दी उनकी रितिक के साथ काम करने की ख्वाहिश पूरी हो जाएगी। उन्होंने तुरंत कृष 2 के लिए अपनी स्वीकृति दे दी, लेकिन शूटिंग की तारीख को लेकर कट्रीना असमंजस में पड़ गईं और चाहते हुए भी फिल्म में काम करने में असमर्थता जाहिर की। कट्रीना की यह प्रतिक्रिया देखकर राकेश ने उनसे इन्कार का कारण पूछा तो कट्रीना ने कहा जो तारीख वे मांग रहे हैं, वह उन्होंने करण जौहर की दोस्ताना 2 फिल्म के लिए दे रखी हैं। कट्रीना की मजबूरी को समझते हुए राकेश ने कट्रीना से कहा कि वे कृष 2 में उन्हें ही रितिक के साथ कास्ट करना चाहते हैं इसलिए वे तारीखों के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश करेंगे। -raghuvendra Singh

Monday, December 7, 2009

पक्का इडियट का इकबालिया बयान

साताक्रूज में स्थित विधु विनोद चोपड़ा के दफ्तर की पहली मंजिल का विशाल कमरा...दरवाजे के करीब तीन कुर्सियों के साथ लगी है छोटी-सी टेबल और उसके ठीक सामने रखा है आधुनिक शैली का सोफा। लाल टीशर्ट,जींस और स्लीपर पहने आमिर कमरे में प्रवेश करते हैं। उनके हाथों में मोटी-सी किताब है। आमिर दैनिक जागरण की इस पहल का स्वागत करते हैं।
[दिल से चुनता हूं फिल्में]
फिल्म साइन करते समय यह नहीं सोचता हूं कि मुझे यूथ से कनेक्ट करना है या कोई मैसेज देना है। फिल्म की कहानी सुनते समय मैं सिर्फ एक आडियंस होता हूं। देखता हूं कि कहानी सुनते समय मुझे कितना मजा आया? मजा अलग-अलग रीजन से आ सकता है। या तो बहुत एंटरटेनिंग कहानी हो या इमोशनल कहानी हो या फिल्म कोई ऐसी चीज कह रही हो, जो सोचने पर मजबूर कर रही हो। मतलब यह है कि कहानी सुनते समय मेरा पूरा ध्यान उसी में घुसा रहे। केवल उसी के लिए हा करता हूं जिसकी कहानी मेरे दिल को छू लेती है।
['सरफरोश' के बाद का सफर]
पिछले दस सालों के अपने करिअर का रिव्यू करने पर मैं पाता हूं कि मेरी सारी फिल्में एक्सपेरिमेंटल किस्म की हैं। मेनस्ट्रीम से अलग हैं। अगर सोच-समझ कर फैसला लेता तो मैं ये फिल्में कर ही नहीं पाता। मैं अपने दिल को फालो कर रहा हूं। मैं थिंकिंग एक्टर नहीं हूं।
[मेरी प्रिय फिल्म 'तारे जमीं पर']
अपनी सबसे प्रिय फिल्म बताना बहुत मुश्किल काम है। एक फिल्म है, जिसका लोगों पर भयंकर असर हुआ है, इसलिए वह मुझे बहुत अजीज है। वह है 'तारे जमीं पर'। वह इसलिए अजीज नहीं है कि मैंने डायरेक्ट की। 'तारे जमीं पर'से मुझे ऐसी फिल्म का हिस्सा बनने का मौका मिला, जिससे लोगों का चाइल्ड एजुकेशन का नजरिया बदल गया। आफिसर से मिनिस्टर तक इस प्राब्लम को समझ पाए। इस फिल्म के पहले 'लर्निंग डिसएबिलिटी' या 'डिसलेक्सिया' की बात करने पर लोग ऐसे बच्चों के बारे में यही समझते थे कि वे बेवकूफ बना रहे हैं। बच्चा होमवर्क नहीं करता है तो बहाने बना रहा है। उस फिल्म ने सभी के सोचने-समझने का तरीका बदल दिया। देश में कितने बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त रहे होंगे। अपने स्कूल लाइफ की बात करूं तो मेरे अनेक दोस्त किसी तरह गिर-पड़कर पास होते थे। उन्हें स्कूल में टीचर और घर में पैरेंट्स की डाट पड़ती थी। उन्हें लगता था कि वे बेवकूफ हैं और उनसे कुछ नहीं होता। इस तरह वे फुस्स हो गए। 'तारे जमीं पर' के बाद ऐसे बच्चों को फुस्स नहीं होना पड़ता।
[स्कूल डेज]
मैं पढने में एवरेज था। होमवर्क में मेरा इंटरेस्ट नहीं रहता था। खेल-कूद में ज्यादा इंटरेस्ट था। लकली मेरे पैरेंट्स ऐसे नहीं थे कि मुझ पर प्रेशर डालते। वैसे मैं कभी फेल नहीं हुआ। हमेशा सिक्सटी पसर्ेंट मार्क्स तो मिलते ही थे। मैं खेल-कूद में अच्छा था, इसलिए मेरा सेल्फ स्टीम बचा रहा। अगर आप बच्चे को हमेशा कोसते रहें या उसकी कमियों के बारे में बताते रहें तो उसे लगने लगता है कि वाकई मुझे कुछ नहीं आता। 'तारे जमीन पर'में एक सीन था, जिसमें निकुंभ जाकर बताता है कि कैसे प्राचीन समय में आदिवासी किसी पेड़ के पास आकर लगातार कोसते थे तो वह सूख जाता था। अपने आप मर जाता था। उसे काटने की जरूरत नहीं पड़ती थी। ज्यादातर बच्चों के साथ यही होता है। वे बच्चे ब्लूम ही नहीं कर पाते। स्कूल डेज बहुत खास होते हैं। बच्चों की खास केयर होनी चाहिए।
['थ्री इडियट' का आइडिया]
इसके बारे में मैं दो लोगों के कमेंट बताऊंगा। चेतन भगत की किताब 'फाइव प्वाइंट समवन' मैंने अभी तक नहीं पढ़ी है। बंगलुरू में शूटिंग के समय चेतन भगत मिलने आए थे। मैंने उनसे कहा कि चेतन, मैंने आप की किताब पढ़ी नहीं है। मैं पढना भी नहीं चाहूंगा, क्योंकि मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी है और उससे डिस्ट्रैक्ट नहीं होना चाहता। चेतन ने कहा कि पढना भी मत, क्योंकि राजू ने इतना बदल दिया है कि अब जो फिल्म बन रही है, वह मेरी किताब ही नहीं है। राजू से जब मैंने बात की तो उन्होंने कहा फिल्म की प्रेरणा बुक से ही मिली है, लेकिन यह फिल्म चेतन की बुक पर आधारित नहीं है।
[कैरेक्टर का माइंड]
मेरे लिए अहम चीज स्क्रिप्ट होती है। उसके बाद मैं जो किरदार प्ले कर रहा होता हूं, उसे समझना बहुत जरूरी होता है। उसके माइंड को पकडऩा होता है। लुक और स्टाइल तो कैरेक्टर के फिजिकल आस्पेक्ट्स हैं। मेरा अपियरेंस एक लेयर भर है। उसके अंदर कई लेयर होते हैं, जिनसे वह किरदार उभरता है। 'गजनी' का संजय सिंहानिया, 'लगान' का भुवन, 'दिल चाहता है' का आकाश, 'तारे जमीन पर' का निकुंभ, 'मंगल पाडे' और अभी '3 इडियट' का रैंचो..इन सभी के माइंड्स को समझने के बाद ही मैं इन कैरेक्टर्स को प्ले कर पाया। मुझे कैरेक्टर का हेड समझ में आ जाए तो सुर मिल जाता है। फिर वाइब्रेशन मिलने लगता है। उसके बाद बाहरी चीजों पर ध्यान देता हूं। सिर्फ हेयर कट और कपड़ों से किरदार नहीं बनता।
['थ्री इडियट' का रैंचो]
मैंने राजू से कहा था कि मुझे कहानी बहुत पसंद आई है और मैं आप के साथ काम भी करना चाहता हूं, लेकिन जो किरदार आप मुझे दे रहे हैं, वह 20 साल का है। मैं अभी 43 का हूं और फिल्म रिलीज होने तक 44 का हो जाऊंगा। आप ऐसे एक्टर को चुनें जो 20 साल का लगे। राजू ने पलट कर कहा था, 'मेरे किरदार का नाम है रैंचो। जितना अजीब नाम है उसका, उतनी ही अजीब उसकी पर्सनैलिटी है। जैसे, आप नार्मल इंसान नहीं हो और टोटली अजीबोगरीब डिसीजन लेते हो। वैसा ही वह है।' रैंचो की फिलासफी है कि काबिलियत के पीछे भागो, उसके बाद कामयाबी आप के पीछे भागेगी। लाइफ में मेरी भी यही फिलासफी रही है। राजू का यही कहना था कि आप रैंचो प्ले करोगे तो रियल लगेगा। कोई और करेगा तो झूठ लगेगा। यही वजह है कि मैंने रैंचो को चैलेंज के तौर पर लिया। 20 साल का बन कर दिखाया।
[करीना से केमिस्ट्री]
केमिस्ट्री के बारे में बताने के पहले बॉयोलोजी बताता हूं। करीना के साथ '3 इडियट' करने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि उनके जैसी खूबसूरत अभिनेत्री के साथ समय बिताने का मौका मिला। दिन बड़ा अच्छा कटता था। खूबसूरत सा चेहरा देखने को मिलता है तो बड़ा अच्छा लगता है। आखें सेंकने का मौका मिलता है। उनके साथ काम करना अच्छा रहा। वे ग्रेट एक्टर हैं। वह बहुत अच्छी इंसान भी हैं। वह डाउन टू अर्थ हैं। वेरी कैजुअल और ग्रेट फ्रेंड हैं। हमारे बीच कोई इश्यू नहीं रहा। कह सकता हूं कि करीना के साथ केमिस्ट्री बहुत अच्छी रही।
[किरण ले आईं तब्दीली]
हा, इधर कुछ सालों से मैं बदल रहा हूं। पिछले चार-पाच सालों में मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी तब्दीली के रूप में किरण आई हैं और उनकी वजह से मुझ में तब्दीली आ गई है। किरण की ब्राइट पर्सनैलिटी है। पॉजीटिव हैं वह..कैसे एक्सप्लेन करूं? पहाड़ी नदी होती है ना वाइब्रेंट और प्लेफुल, वैसी हैं किरण। उन्हें जानने और उनके साथ रहने के बाद मेरी पर्सनैलिटी में फर्क आया है। मैं थोड़ा रिलैक्स हुआ हूं। पहले मैं थोड़ा शात और खामोश रहता था। किरण से रिलेशनशिप बढऩे के बाद खुल गया हूं। मुझ में बदलाव आ गया है। अब मैं अपने ब्लाग के जरिए यूथ से कनेक्ट हो पाता हूं। अपनी फीलिंग्स शेयर कर पाता हूं। मैं उनकी जबान में ही बातें करता हूं। मुझे लगता है कि अगर मैं पाच साल पहले ब्लाग लिखता तो बहुत सीरियस होता और बोरिंग होता।
[फुर्सत में पढ़ाई]
फुर्सत मिलती है तो बच्चे, बीवी और फैमिली के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है। मुझे किताबें पढने का बेहद शौक है। रात में पढने के बाद ही सोता हूं। वर्किंग डे में फुर्सत नहीं मिलती तो गाड़ी में पढ़ता हूं। मुंबई में कहीं आने-जाने में आधे घटे का समय मिल ही जाता है। मैं बहुत तेजी से पढ़ता हूं। 500-600 पेज की किताब दो दिनों में खत्म कर देता हूं।
[रूबिक क्यूब और थ्री डाइमेंशनल सोच]
लोग यह तो जानते हैं कि रूबिक क्यूब में मेरा इंटरेस्ट है, लेकिन शायद यह नहीं जानते कि मेरा फास्टेस्ट टाइम 28 सेकेंड्स है। कालेज के फ‌र्स्ट ईयर के समय से यह कर रहा हूं। रूबिक क्यूब मेरा एक्सटेंशन है। '3 इडियट' का रैंचो भी इसे खेलता रहता है। रूबिक क्यूब वास्तव में मैथ है। यदि आप की सोच थ्री डायमेंशनल है तो आप इसे सुलझा सकते हैं। एक समय मैं इसकी व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में हंगरी जाना चाहता था, पर नहीं जा पाया।
-सौम्या अपराजिता/रघुवेन्द्र सिंह

आंखें बंद कर मेरी नकल मत करे-आमिर खान

फिल्म गजनी के लिए आमिर खान ने महज तेरह महीने में 'एट पैक एब्स' बनाकर तमाम लोगों को हैरत में डाल दिया था। प्रतिदिन जिम में घंटों वर्कआउट करने वाले देश भर के नवयुवकों के लिए वह अचानक आदर्श बन गए। अब आमिर ने नई फिल्म थ्री इडियट्स के लिए अपनी बॉडी को एक नया लुक दिया है। आइए जानते है आमिर खान की फिटनेस के राज
'एट पैक एब्स' की चुनौती
आमिर खान के अनुसार, ''मैं हमेशा फिल्म की पटकथा का अनुसरण करता हूं। मेरे किरदार की जो मांग होती है, मैं वही करता हूं। गजनी का संजय सिंघानिया शारीरिक रूप से ताकतवर था। मेरा शारीरिक रूप से शक्तिशाली होना उस किरदार की मांग थी। शुरू में मुझे पता नहीं था कि मैं यह किरदार निभा सकूंगा या नहीं। ऐसा इसलिए, क्योंकि मैंने अपनी जिंदगी में कभी 'बॉडी बिल्डिंग' नहीं की थी। मुझे पता है कि 'प्रॉपर बॉडी' बनाने में कम से कम दो साल का वक्त लगता है। उस दौरान मेरे पास छह महीने का समय था। मैंने जिस तीव्रता के साथ शरीर को शक्तिशाली बनाने की प्रक्रिया शुरू की, उस तरह का प्रयास एक सामान्य व्यक्ति को कभी नहीं करना चाहिए। यह बात सेहत के लिए अच्छी नहीं है। सौभाग्यवश मुझे बॉडी बनाने के लिए 13 महीने का समय मिल गया।''
इन बातों पर दें ध्यान
''मैं थ्री इडियट्स में 20 साल के युवक की भूमिका निभा रहा हूं। इस किरदार के लिए मुझे 'लीन बॉडी' की दरकार थी। इसके लिए मुझे मांसपेशियों को ढीला करना था। इस कार्य के लिए मैंने कोई प्रशिक्षक नहीं रखा। प्रतिदिन सुबह मैं दो घंटे बैडमिंटन खेलता था। संतुलित-पौष्टिक भोजन ग्रहण करता था। गजनी के लिए तो मैं रोज साढ़े तीन घंटे वर्कआउट करता था। एक निश्चित आहार ग्रहण करता था। हफ्ते में छह दिन वर्कआउट करता था और एक दिन छुंट्टी लेता था। उस दौर में सत्यजीत चौरसिया मेरे प्रशिक्षक थे। मुझे पता नहीं है कि मैं इस उम्र में अपनी बॉडी के साथ जो कर रहा हूं वह सही है या गलत। बहरहाल, मैं किसी अन्य व्यक्ति को अपने फिटनेस कार्यक्रम का अनुसरण करने की सलाह नहीं दूंगा। मुझे नहीं लगता कि डॉक्टर भी किसी को ऐसा करने की सलाह देंगे।''
डाइटिंग का मतलब समझें
''डाइटिंग का मतलब है सही और स्वास्थ्यकर आहार ग्रहण करना। जो लोग डाइटिंग के नाम पर खाना बंद कर देते हैं, वह गलत तरीका है। डाइटिंग का आशय है कि आप स्वास्थ्यकर खाना खाएं। इसका यह मतलब नहीं है कि आप कम खाना खाएं। जब आप भूख से कम खाते हैं, तो इसका दुष्प्रभाव आपकी सेहत पर पड़ता है। कम खाना कभी नहीं खाना चाहिए।''
कारगर टिप्स
''अगर आपका वजन अधिक है और आपके शरीर में वसा की मात्रा ज्यादा है, तो आपको अधिक कैलोरी वाले फूड्स से परहेज करना चाहिए। तभी धीरे-धीरे आपका वजन नियंत्रित होगा। वहीं अगर आप शरीर को मजबूत बनाना चाहते है, तो आपको खान-पान में प्रोटीन की मात्रा बढ़ानी चाहिए। जब आप प्रोटीनयुक्त आहार की मात्रा को बढ़ाते है, तो मेरी राय में आपको हर महीने अपने डॉक्टर के परामर्श से अपना चेकअॅप करवाना चाहिए। यह जानने के लिए कि आपके लिवर, गुर्दे और शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंग ठीक तरह से काम कर रहे हैं या नहीं।''
-रघुवेन्द्र सिंह