Wednesday, May 28, 2014

मैंने कभी ट्रेंड फॉलो नहीं किया: सनी देओल

घायल रिटर्न्स को खुद डायरेक्ट करने का फैसला आपने क्यों किया? पहले इसे अश्विनी चौधरी  निर्देशित करने वाले थे.
हां, एक-दो डायरेक्टर से बात चल रही थी, लेकिन इवेंचुअली, मुझे ये पिक्चर बनानी थी, बीकॉज दिस इज सम कैरेक्टर व्हिच आई ऑलवेज वॉन्टेड टू डू. देन आई डिसाइडेड टू डू मायसेल्फ. और काफी टाइम से मैं डायरेक्शन भी करना चाहता था. मुझे ये कैरेक्टर बहुत पसंद है, तो मैंने सोचा कि क्यों न इसी से शुरू करूं. फिलहाल, मैंने अपने सभी प्रोजेक्ट्स आगे कर दिया हैं. यही मेरी प्राथमिकता है.

दिल्लगी और घायल रिटर्न्स के बीच काफी लंबा वक्त गुजर गया. इस दौरान आपने डायरेक्शन को मिस किया?
ऐसे तो कुछ मिस-विस की बात नहीं होती है. लेकिन सबसे ज्यादा मजा एक्टिंग में ही आता है. डायरेक्शन में एक अलग संतुष्टि होती है, क्योंकि आप जो कहना चाहते हैं, वह कह सकते हैं. फिल्म में जो कुछ भी आप बताओगे, वह सब आपके दिमाग से ही निकला हुआ है. आपने हां की होगी. वह क्रिएटिव सैटिस्फैक्शन अलग ही होता है. डेफिनेटली, पूरा वक्त चला जाता है. मेरा बहुत टाइम जा रहा है घायल रिटर्न्स में, लेकिन अगर टाइम नहीं लगेगा, तो अच्छी चीज बनेगी नहीं.

घायल रिटर्न्स में आप एक्ट भी कर रहे हैं. एक साथ दो जिम्मेदारियों का निबाह करना मुश्किल नहीं होगा?
मैं पहले दिल्लगी में एक्ट और डायरेक्ट कर चुका हूं. मेरे लिए यह कोई नई चीज नहीं है. एव्रीथिंच्च् यू डू इन द लाइफ इज ए चैलेंज. और चैलेंज तो वह लोगों के लिए हो जाता है, लेकिन आप तो उसे कर रहे होते हैं, क्योंकि आप करना चाहते हो. इसमें पहला या दूसरा आना है, उसकी रेस तो नहीं है. जब आप एक्ट और डायरेक्ट करते हैं, तो अलग बात होती है, लेकिन जैसे कि मैंने बताया कि मैं पहले भी यह काम कर चुका हूं. तो उसकी ओर इतना गौर नहीं करता हूं कि ये कैसे करूंगा और वो कैसे करूंगा.

बतौर एक्टर आप जो प्रोजेक्ट्स चुन रहे हैं, वह सब आपकी इमेज और दर्शकों की पसंद के हिसाब से हैं, लेकिन क्या वजह है कि वह बॉक्स-ऑफिस पर नहीं चल रहे हैं?
जी अगर मुझे पता होता कि किस चीज पर कैसा रिस्पॉन्स मिलेगा, तो मैं हर चीज सही ही करता ना (मुस्कुराते हैं). उसके बारे में कुछ कह नहीं सकते. कोई चीज चलती है और वह इतनी बकवास होती है कि फिर हम उसके बारे में भी कुछ कह नहीं सकते. तो चलना-ना चलना इज नॉट इन आवर हैंड. जबसे इंडस्ट्री है, तबसे हम लोग यही बातें कर रहे हैं. लेकिन इसका कोई पक्का जवाब नहीं मिला है. सब कुछ स्पेक्युलेशन पर चल रहा है. आज किसी को बोल दो कि यह ठीक है, पता चलता है कि कल वही ठीक नहीं होता. उस वक्त कोई ऐसी चीज ठीक होगी, जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं था. उस वक्त फिर सब कहते हैं कि हां, मुझे पता था. आई थिंक इट्स ऑल मैटर ऑफ पर्सनल चॉइस. हर चीज का अपना एक वक्त होता है और हर चीज का अपना लाइक और डिस्लाइक्स होते हैं. चलना-न चलना बॉक्स ऑफिस पर, इतने साल तक तो मेरे लिए कभी मायने नहीं रखा. बेशक यह बहुत महत्वपूर्ण है, तभी आपको प्रोजेक्ट्स कर पाते हैं. इतना तो मुझे यकीन है कि जहां पर भी हम जाते हैं, लोग हमें बहुत प्यार करते हैं. दैट इज बिकॉज ऑफ वर्क और तो हमने कुछ किया नहीं है.

आप ट्रेंड को फॉलो करने में बिलीव करते हैं?
ट्रेंड क्या है? आज कोई चलेगा, तो वह ट्रेंड बन जाएगा. सब वही करने लगते हैं. कल कुछ और चलता है, तो वह ट्रेंड बन जाता है. वो चीजें मैंने कभी फॉलो नहीं की. हां, एक-दो प्रोजेक्ट्स होंगे, जिन्हें मैंने किया है, क्योंकि लोगों ने कहा कि इस जॉनर की पिक्चर चलेगी, तो मैंने कर ली. मैंने जब भी सफलता पाई है, इट हैज ऑलवेज बीन सब्जेक्ट, विद फिल्म्स, जो उस जमाने के नहीं थे और उस वक्त वैसी फिल्में नहीं चलती थीं, उनका ट्रेंड नहीं था. सो इट इज नॉट सेटिंग ट्रेंड ऑर डूइंग एनिथिंग,  बेसिकली डूइंग व्हाट यू एंजॉय डूइंग. आपको अपने काम में मजा आ रहा है, तो फिर वही आपकी सेटिस्फैक्शन है.

टीवी पर कॉमेडी शोज आप देखते हैं? क्या लोग आपके सामने भी आपकी मिमिक्री करते हैं?
जब कभी-कभार मैं इन शोज पर जाता हूं, तो देख लेता हूं. वैसे नहीं देखता हूं. हां, मेरे सामने भी लोग मेरी मिमिक्री करते हैं और बताते हैं कि वो कितना अच्छा कर लेते हैं. तो जब मैं उनको बोलते हुए सुनता हूं, तो सोचता हूं कि क्या वाकई में मैं ऐसा हूं या नहीं हूं (हंसते हैं). मैं खुद से सवाल करने लग जाता हूं. ऑबवियसली मैं उसे एंजॉय करता हूं. पहली बार जब देखा, तब अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि कोई नहीं चाहता कि उसकी कोई मिमिक्री करे. लेकिन बाद में इट बिकम्स योर पार्ट ऑफ लाइफ. आपको दिखता भी है कि वह इसे करते हुए एंजॉय करता है, इसलिए कर रहा है. अगर वह इसे करना एंजॉय नहीं करता, तो क्यों करता? मैंने कभी पिन पॉइंट किया नहीं कि कौन मेरी मिमक्री अच्छी करता है.

आपको यह आपत्तिजनक लगता है?
देखिए, हर आदमी जो भी अपने प्रोफेशन में है, जो भी वह करता है, उसकी वजह होती है. और इसमें भी टैलेंट होता है. ऐसे नहीं होता यह. मेरे अंदर मिमक्री का टैलेंट नहीं है, लेकिन मैं अपनी कहानी के अंदर ओरिजिनैलिटी लाने में लगा रहता हूं.

सरदारों पर सबसे ज्यादा जोक बनाए जाते हैं. उसको आप कैसे देखते हैं?
वी आर एक्टर्स बैसिकली, इसलिए इन चीजों पर मैं गौर नहीं करता. लेकिन इतना कहूंगा कि कोई भी धर्म हो, कौम हो, कहीं की भी हो, उस पर कोई चीज पर्सनल नहीं कहनी चाहिए. क्योंकि हर्ट करती है. उसके अलावा, हम अपना मजाक उड़ाते रहते हैं, तो उस चीज की कोई फिक्र नहीं है. उसकी परवाह नहीं है. क्योंकि उससे ना कोई आदमी बनता है और ना ही बिगड़ता है.

नए डायरेक्टर्स में किसका काम आपको अच्छा लगता है?
अच्छे डायरेक्टर्स हैं. मुझे नाम याद नहीं रहते. मैंने उड़ान देखी थी विक्रमादित्य मोटवानी की. वह मुझे अच्छी लगी थी. कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी थी... सुजॉय घोष. इस ढंग के डायरेक्टर्स अच्छे लगते हैं, जिन्होंने कहानी को समझा हो और आएम श्योर उसको काफी वक्त दिया होगा, तभी ऐसी कहानियां बनती हैं.

इस तरह का काम देखकर आपके अंदर के निर्देशक को चुनौती महसूस होती है?
देखिए, जो फॉर्मूला फिल्म्स बना सकता है, वह वही बना सकता है. उसके लिए भी एक काबिलियत चाहिए होती है. उसका अपना बिलीफ होता है, जिसे आप सब लाइक करते हैं. इट इज एंटरटेनमेंट. कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिसमें कैरेक्टर में डेप्थ होती है. जिसे आप देखना एंजॉय करते हैं. आप अपनी या दुनिया में जो देख रहे होते हैं, उसकी एक झलक मिलती है. ये नहीं है कि वो बेहतर हैं और ये बेहतर नहीं हैं. हर चीज में आदमी अपनी कैपसिटी के हिसाब से चलता है. बस यही है कि जब एक आदमी जो कर पाता है, वह उसे करता है, तो लगता है कि वह बहुत आसान है. दूसरा आदमी भी उस ढंग की फिल्में बनाने लग जाता है. वह गलत चीज है. अगर कोई चीज चलती है, तो सब वही बनाने लगते हैं. वह गलत है. आपको वह करना चाहिए, जो आपको अच्छा लगता है और जो आपका बिलीफ है. नॉट बिकॉज वह आपको लगता है कि सक्सेज होगा. 

नए कलाकारों में किसका काम आपको अच्छा लग रहा है?
सब अभी यंग हैं, अभी काम कर रहे हैं, उनको अभी मैच्योर होना है, दे हैव लॉट टू लर्न एंड ये आ जाते हैं, तो एक टेस्ट शुरू हो जाता है कि आप हर साल किस ढंग से आप अपने आपको आगे लेकर जाओगे, क्या क्या करोगे, तो कुछ कह नहीं सकता. मैंने किसी का काम ज्यादा देखा नहीं है. मैं फिल्में ज्यादा देखता नहीं हूं. लेकिन डेफिनेटिली आई हैव सीन चिंटूज सन रणबीर्स फिल्म्स. एक फिल्म देखी थी, वह अच्छी लगी थी. बाकी एक्टर्स की झलक देख लेता हूं कभी टीवी पर या कभी यू ट्यूब पर. अच्छे हैं सब. उन्हें देखकर लगता है कि जब मैं यंग था, तो मुझमें भी ऐसा ही कॉन्फिडेंस था. बट डेफिनेटिली दे ऑल आर मेच्योरिंग अप. गिव देम सम कपल ऑफ ईयर्स...

नए अभिनेताओं में से किस पर आपका डायलॉग ढाई किलो का हाथ फिट होगा?
देखिए, जब मुझे ये डायलॉग दिया गया था, तो मुझे भी नहीं पता था कि ये मुझ पर फिट होगा या नहीं. उस वक्त भी सब एक्टरों की पहचान थी, जब मैं था तब. एक एक्टर को वही करना चाहिए, जो उनकी पर्सनैलिटी कहती है. जरूरी नहीं है कि जिस ढंग से मैं डायलॉग बोलता हूं, वही एक तरीका है. दैट्स नॉट द राइट वे. ऑबवियसली, वह मुझे सूट करता है, तो पब्लिक को वह बात सही लगती है. मजा क्या है कि अगर आप भी वही डायलॉग बोलो, जो दूसरा कोई बोलता है. क्यों एंजॉय करेगी पब्किल? अनलेस एंड अनटिल आएम ए मिमक्री आर्टिस्ट (हाहाहा).

धरम जी और आपके बीच किस तरह का संबंध रहा है? आजकल पापा और बेटे के बीच दोस्त का रिश्ता होता है
देखिए, अगर आप गिने-चुने परिवारों की बात कर रहे हैं, जहां इस ढंग के रिश्ते होते हैं. पूरा देश तो ऐसा नहीं है. जहां भी हम जाते हैं, देखते हैं कि लोग हमारी तरह ही हैं. कुछ अलग चीज नहीं है उनमें. जहां उन्हें लगता है कि ये बाप की इज्जत नहीं कर रहा है, तो उन्हें अजीब सा लगता है. उन्हें लगता है कि यह हमारे जैसे ही हैं.

अपने बेटे करण के साथ आपने दोस्त का रिश्ता बनाया है?
देखिए, कोई रिश्ता रखता नहीं है. ये रिश्ते अपने आप डेवलप होते हैं. कुदरती बन जाते हैं. कोई जबरदस्ती नहीं करता है कि बेटे के संग ऐसा रिश्ता रखें. हमारी एक फैमिली है, जो सालों से एक ढंग से जी रही है. और हम सब अपने रहन-सहन से खुश हैं. दैट्स व्हाट इट इज. इसमें कोई साइंटफिक चीज नहीं है.

सुना है कि आपके घर के दरवाजे पंजाब से आने वाले हर इंसान के लिए खुले रहते हैं?
ऐसा नहीं है. बेसिकली, वी आर वेरी ओपन हार्टेड पीपुल. अगर किसी को जरूरत होती है और हम कुछ मदद कर सकते हैं, तो हम आगे बढक़र करते हैं. और खाने-पीने से तो किसी को क्या इंकार करना. किसी को भी इंकार नहीं करना चाहिए. आप पंजाब में किसी के घर चले जाओ, वह आपको खिलाएंगे-पिलाएंगे. यह नॉर्मल है. इसको हम लोग क्यों नॉर्मल नहीं समझते, मुझे समझ में नहीं आता. सबको पता है कि हम किस ढंग के हैं. 

आज सभी स्टार्स ट्विटर पर हैं, लेकिन आप क्यों नहीं हैं?
मैं वहां क्या बोलूंगा कि अभी मैंने खाना खाया है, अब मैं उठा हूं और अब वहां जा रहा हूं (हंसते हैं). मैं अपना काम छोडक़र क्या यह सब करने में लगा रहूं. सफाई देता रहूं कि मैं गलत नहीं हूं, अगर कोई कुछ छाप दे तो. अगर आपको लगता है कि मैं गलत हूं, तो ठीक है. आप अच्छे हो, 120 करोड़ लोगों का आपके पास है डाटा? व्हाई वी आर वेस्टिंग आवर टाइम इन ऑल दिस. आपको जानें लोग तो आपके काम से जानें, आपके व्यवहार से जानें, जरूरी नहीं है कि आपको उसे एक झंडा बनाके पूरे देश में आप उसे लेकर चलें. वी होंट बिलीव इन ऑल दीज थिंगस. वी आर एक्टर्स, वी बीकम्स स्टार्स बीकॉज पिक्चर चल जाती है. पर बेसिकली, वी आर एक्टर्स.

आपके बेटे करण की कैसी तैयारी चल रही है?
जब आप तय करते हो कि आपको इस फील्ड में जाना है, तो आप उस हिसाब से तैयारी करते हो. मैंने अपने हिसाब से तैयारी की थी. करण को क्या करना है, क्या बनना है, वह अपनी तैयारी कर रहा है. ये नहीं है कि वह बॉडी बिल्डिंग कर रहा है, वह डासिंग सीख रहा है. हां, एज एन एक्टर, यू हैव टू बी फ्लेक्सिब इन एव्री थिंग. आप जितनी अधिक चीजें जान लोगे, अच्छा है. पता नहीं कब उसका इस्तेमाल आप कर सकोगे. नॉलेज एक एक्टर की एैसेट्स होती है.

कब तक घोषणा करेंगे कि करण किस फिल्म से डेब्यू करेंगे?
मैंने तय किया है कि मैं तब तक किसी चीज के बारे में बात नहीं करूंगा, जब तक वह चीज शुरू नहीं हो जाएगी. क्योंकि फिर बातें ही बातें रह जाती हैं और फिर लोग पूछना शुरू कर देते हैं कि आपने ये कहा था, उसका क्या हुआ. एनर्जी उसके ऊपर वेस्ट होती है. हां यार, मुझसे गलती हो गई, सॉरी यार. उस वक्त मुझे लगा था कि मैं वो करूंगा, तो कह दिया. यह मैंने समय के साथ सीखा है कि चुप रहो. उतना ही बोलो, जितना आप कर रहे हो.

एक्टिंग फ्रंट पर क्या है?
दो-तीन प्रोजेक्ट्स हैं. लेकिन उनके बारे में अभी बात नहीं करना चाहता, क्योंकि फिर लोग कहेंगे कि वह पुश हो गई, वह रिलीज नहीं हो रही. लोगों को तो मसाला चाहिए. उसके बिना किसी को मजा नहीं आता. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं तो काम कर रहा हूं. लेकिन जिस आदमी ने इतने पैसे लगाए हैं, उसका सत्यानाश क्यों कर रहे हैं. तो उस हिसाब से सोचना चाहिए. मुझ पर हार्म करना है, तो सीधा कीजिए. क्यों किसी को डैमेज करना, आई डोंट थिंक इट्स राइट. क्योंकि मेरा तो पैसा नहीं लगा ना. जिसका भी लगा, उसका क्यों नुकसान करना, आपको क्या हक है. आपके बारे में कोई ऐसा कुछ कहे कि आपके बिजनेस को ठेंस लगे, तो आई थिंक दैट्स बीइंग क्रिमिनली रॉन्ग. अगर हमें फर्क पडऩा होता, तो अभी तक हम यहां नहीं होते. अगर मैं कोई पिक्चर प्रोड्यूस करूं, उसमें कोई प्रॉब्लम हो, तो हर चीज में प्रॉब्लम होती है. किसी की लाइफ एकदम स्मूद नहीं है. लेकिन उसी को निपट कर आप आगे बढ़ते हैं, वही लाइफ है. क्यों शोर मचाकर उसे आप निगेटिव-पॉजिटिव-निगेटिव करोगे, तो फाइनेंशियली नुकसान पहुंचेगा प्रोजेक्ट को. उन्हें लगेगा कि सनी की पिक्चर के बारे में ऐसा बोल रहे हैं, तो मैं उसे नहीं लेता हूं, दिक्कत होगी. पैसे की कोई वैल्यू नहीं है, इसका मतलब. इन चीजों को खयाल रखना चाहिए.
- रघुवेंद्र सिंह 



Monday, April 28, 2014

मेरी ख्वाहिश पूरी हो गई- कार्तिक आर्यन

कार्तिक आर्यन से रघुवेन्द्र सिंह यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि शोमैन सुभाष घई का हीरो बनने के बाद एक कलाकार के जीवन में क्या परिवर्तन आता है
प्यार का पंचनामा और आकाशवाणी के बाद कार्तिक आर्यन ने एक लंबी छलांग मारी. वह सीधे शोमैन सुभाष घई की नजर के तारे बन गए. आकाशवाणी का ट्रेलर देखने के बाद सुभाष घई ने तय कर लिया कि उनकी फिल्म कांची का बिंदा कोई और नहीं, केवल कार्तिक ही बनेंगे. कार्तिक जैसे एक नवोदित अभिनेता के लिए यह हर्ष का विषय है. सुभाष घई एक महान फिल्मकार हैं. उनके नायकों की एक शानदार परंपरा रही है. दिलीप कुमार, राजकुमार, अनिल कपूर, शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, सलमान खान... मुझे खुशी इस बात की है कि इस गौरवशाली लिस्ट में अब मेरा नाम भी शामिल हो गया है. मैं उनकी फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं. हर कलाकार का सपना होता है कि वह यश चोपड़ा और सुभाष घई के साथ करे. मेरी सुभाष जी के साथ काम करने की ख्वाहिश पूरी हो गई. करियर के आरंभ में ही कांची जैसी एक महिला प्रधान फिल्म चुनना अपने आपमें साहस की बात है. इस फैसले के बारे में कार्तिक कहते हैं, जब सुभाष जी ने मुझसे कहा कि फिल्म का नाम कांची है, तो मेरे मन में सवाल उठा कि इसका टाइटल कांचा क्यों नहीं है (हंसते हैं). उन्होंने मुझे समझाया कि कांची के किरदार को आपका किरदार मजबूत बनाता है. अगर मैं आपके किरदार को स्ट्रॉन्ग नहीं बनाऊंगा, तो फिल्म कमजोर बन जाएगी. वह बात मेरे दिमाग में बैठ गई. मेरा मानना है कि किसी फिल्म में छोटा और स्ट्रॉन्ग रोल करना हमेशा किसी फिल्म में लंबा और बेअसरदार रोल करने से बेहतर होता है.
कार्तिक के लिए कांची एक रोमांचक अनुभव रहा. इस फिल्म ने उन्हें इंडस्ट्री के उन साहसिक फिल्मकारों के साथ काम करने के लिए तैयार कर दिया, जो बिना स्क्रिप्ट के सेट पर काम करने में विश्वास करते हैं. बकौल कार्तिक, सुभाष जी की फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं होती. वह स्पॉनटेनिटी पर यकीन करते हैं. कई बार वह सेट पर मेरे सामने डायलॉग लिखते थे और मुझसे कहते थे कि चलो, इसे बोल दो. इस प्रक्रिया में मुझे शुरू में दिक्कत हुई, लेकिन मैंने एक कलाकार होने के नाते इसे चुनौती की तरह लिया. सुना है कि बहुत सारे फिल्ममेकर बिना स्क्रिप्ट के काम करते हैं. सुभाष जी ने मुझे उस माहौल में काम करने के लिए अभी से तैयार कर दिया है.
इस उपलब्धि और हर्षोल्लास के बीच कार्तिक को अपने भविष्य की फिक्र है. दरअसल, हर फिल्म से एक कलाकार का करियर दांव पर लगा होता है और जब एक कलाकार गैर फिल्मी पृष्ठभूमि से आता है, तो उसे हर कदम फूंक-फूंककर रखना पड़ता है. कांची कार्तिक के करियर को क्या मोड़ देगी, इसके बारे में फिलहाल वह सोचना भी नहीं चाहते. कांची का नसीब जो भी हो... एक्टर के तौर पर मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा हूं. मैं खुश हूं. मैं इक्कीस साल का था, जब मैंने प्यार का पंचनामा शूट कर दी थी. मैं अभी बहुत यंग हूं. इस हिसाब से मेरे पास बहुत टाइम है. हम सबको यह लगता है कि किसी बड़े फिल्मकार की फिल्म का हीरो बनने के बाद एक अभिनेता का जीवन बदल जाता है, मगर हकीकत कुछ और होती है. कार्तिक इन दिनों एक ओर कांची का प्रचार कर रहे हैं, तो दूसरी ओर अगली फिल्म चुनने की कश्मकश में हैं. हर रोज वक्त निकालकर वह लोगों से मिलते हैं और तलाशते हैं कि अगला कदम क्या उठाया जाए. ताज्जुब की बात है कि चॉकलेटी चेहरा होने के बावजूद उन्हें अब तक यशराज फिल्म्स और धर्मा प्रोडक्शंस से फोन नहीं आया. हालांकि उनकी पहली ही फिल्म प्यार का पंचनामा बेहद चर्चित हुई थी. मुझे इसकी वजह पता नहीं. मैं यशराज और धर्मा के हीरो के तौर पर पहचाना जाना चाहता हूं, लेकिन शायद अब तक इन लोगों की मुझ पर नजर नहीं पड़ी है. मैं उस पल का इंतजार कर रहा हूं, जब इन प्रोडक्शन हाउस से मुझे बुलावा आएगा.
कार्तिक ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं. उनकी मम्मी (माला तिवारी) और पापा (मुनीश तिवारी) पेशे से डॉक्टर हैं. उनकी इच्छा थी कि कार्तिक भी डॉक्टर बनें, लेकिन कार्तिक के अपने कुछ सपने थे. इन सपनों को पूरा करने के लिए कार्तिक पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. मुंबई की महंगी और मुश्किल भरी जिंदगी का सामना वह अकेले डटकर कर रहे हैं. यहां जीवन जीना बहुत मुश्किल है. मैं अपना खर्च खुद चला रहा हूं. हम सब जानते हैं कि एक न्यूकमर को इंडस्ट्री में कितना मेहनताना मिलता है. जैसे-जैसे आप बड़े एक्टर बनते हैं, आपकी कमाई बढ़ती है, लेकिन आपका खर्च भी दोगुना होता जाता है. एक एक्टर का अच्छा दिखना बहुत जरूरी होता है. उसे अच्छी जगह रहना पड़ता है. यह सब मेंटेन करना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है.
इंडस्ट्री इन दिनों पूरी तरह प्रोफेशनल हो चली है. मैनेजर और पब्लिसिस्ट एक एक्टर के प्रोफेशन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं. यह एक एक्टर के करियर को बनाने और संवारने में आजकल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन इनका चुनाव करना अपने आपमें एक बड़ी चुनौती है. खासकर जब आपका मार्गदर्शन करने के लिए कोई न हो. कार्तिक इन चुनौतियों से अकेले जूझ रहे हैं. कभी-कभी उन्हें लगता है कि काश, इस इंडस्ट्री में उनकी जान-पहचान का कोई अनुभवी व्यक्ति होता, तो शायद उनकी राह आसान बन जाती. आप फिल्म इंडस्ट्री के बाहर से आते हैं, तो इस समस्या से आपको जूझना पड़ता है. मुझे कभी-कभी समझ में नहीं आता है कि मैं जो फैसला ले रहा हूं, वह सही साबित होगा या नहीं. मुझे गाइड करने के लिए इस इंडस्ट्री में कोई नहीं है.
कार्तिक भाग्यशाली रहे कि फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखते ही निर्माता कुमार मंगत की कंपनी ने उनके साथ तीन फिल्म का अनुबंध साइन कर लिया. इस साल के अंत तक वह कुमार मंगत की तीसरी फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे. इसकी औपचारिक घोषणा जल्द होगी. कार्तिक ने फैसला किया है कि अब वह विज्ञापन फिल्में भी करेंगे. हाल में, उन्होंने एक कमर्शियल की शूटिंग भी की है. कार्तिक कहते हैं, मैंने सोच लिया है कि नई-नई संभावनाएं तलाश करूंगा. खुद को किसी दायरे में सीमित नहीं रखूंगा. मगर एक्टिंग हमेशा मेरी प्राथमिकता रहेगी. मेरी कोशिश रहती है कि मैं एक्टिंग हमेशा करता रहूं. जब मैं फिल्म नहीं करता हूं, तो एक ट्यूटर ढूंढ़ लेता हूं, जो मुझे कुछ नया सिखाए. मैं जिम छोड़ सकता हूं, डांस करना छोड़ सकता हूं, लेकिन एक्टिंग कभी नहीं. इस वक्त आपके सामने भी मैं एक्टिंग ही कर रहा हूं (हंसते हैं). 


इनके साथ काम करने का इच्छुक हूं...
अनुराग कश्यप
इम्तियाज अली
विकास बहल

Friday, March 21, 2014

अंकिता के साथ जिंदगी बीतना चाहता हूं- सुशांत सिंह राजपूत

सुशांत सिंह राजपूत के जीवन में टर्निंग पॉइंट रहा. काय पो चे और शुद्ध देसी रोमांस की कामयाबी ने उन्हें एक हॉट फिल्म स्टार बना दिया. रघुवेन्द्र सिंह ने की उनसे एक खास भेंट
सुशांत सिंह राजपूत के आस-पास की दुनिया तेजी से बदली है. इस साल के आरंभ तक उनकी पहचान एक टीवी एक्टर की थी, लेकिन अब वह हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय फिल्म निर्माण कंपनी यशराज के हीरो बन चुके हैं. शुद्ध देसी रोमांस के बाद वह अपनी अगली दोनों फिल्में ब्योमकेष बख्शी और पानी इसी बैनर के साथ कर रहे हैं. उन पर आरोप है कि आदित्य चोपड़ा का साथ पाने के बाद उन्होंने अपने पहले निर्देशक अभिषेक कपूर (काय पो चे) से दोस्ती खत्म कर ली. डेट की समस्या बताकर वह उनकी फिल्म फितूर से अलग हो गए. 
हमारी मुलाकात सुशांत सिंह राजपूत के साथ यशराज के दफ्तर में हुई. काय पो चे और शुद्ध देसी रोमांस की कामयाबी को वह जज्ब कर चुके हैं. वैसे तो इस हॉट स्टार के दिलो-दिमाग को केवल उनकी गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे ही बखूबी समझती हैं. औरों के सामने वह बड़ी मुश्किल से अपना हाल-ए-दिल बयां करते हैं. लेकिन हम इस मुश्किल काम को करने की कोशिश कर रहे हैं. आप खुद जज कीजिए की इस बातचीत में आप सुशांत को कितना बेहतर जान पाए...

माना जाता है कि यशराज का हीरो बनने के बाद बाजार और दर्शकों का नजरिया आपके प्रति बदल जाता है. क्या वाकई ऐसा होता है?
जब मैं हीरो नहीं भी बनना चाहता था, जब मैं फिल्में देखा करता था, तब मैं यह सोचता था कि यार, यशराज का हीरो बन जाएं, तो क्या बात होगी. ये तो आप समझ ही सकते हैं कि आज मैं कितना अच्छा फील कर रहा हूं. दूसरा, जब मैंने एक्टर बनने के बारे में सोचा, तो मैंने यह तय नहीं किया कि एक दिन मैं टीवी करूंगा, फिर फिल्म करूंगा और एक दिन मैं इनके साथ काम करूंगा, एक दिन उनके साथ काम करूंगा. मेरे दिल में केवल यह बात थी कि एक्टिंग करने में मुझे मजा आता है. तो इसे मुझे बहुत अच्छे से करना और सीखना है. जब मैं थिएटर में कोई प्ले करता था, तो इतना ही एक्साइटेड होता था, मैं इतनी मेहनत और अच्छे से काम करता था. और जब लोग आकर मेरा प्ले देखते थे और तालियां बजाते थे, तो मुझे बहुत अच्छा लगता था. उतना ही अच्छा लगता है, जब आज मेरी दो फिल्में हिट हो चुकी हैं. तो ये तुलना मैं कर ही नहीं सकता कि इसका हीरो, उसका हीरो, टीवी एक्टर बनने के बाद मुझे कैसा लग रहा है. मुझे छह साल से ऐसा ही लग रहा है.

इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता है, क्योंकि कुछ अचीव करने के बाद इंसान अलग महसूस करता है.
बहुत से लोगों को यकीन नहीं होता, लेकिन ये आपको लगता है न कि एक दिन मैं ये अचीव करूंगा और जब मैं उसे अचीव कर लूंगा, तो मुझे अच्छा लगेगा. लेकिन अगर आपने ऐसा कोई लक्ष्य बनाया ही नहीं है कि मैं एक दिन ये करूंगा, फिर वो करूंगा. मुझे भी नहीं पता कि मुझे जो फिल्में आज मिल रही हैं, वो क्यों मिल रही हैं. जो फिल्में मैं कर चुका हूं और जो आगे कर रहा हूं. वो सारी ऐसी स्क्रिप्ट्स हैं, जिनका हिस्सा मैं बनना चाहता हूं, इसलिए मैं इतना एक्साइटेड हूं. मैं इसीलिए इतना एक्साइटेड हूं कि मैं अगली फिल्म में दिबाकर बनर्जी के साथ काम कर रहा हूं. वो इतने इंटेलीजेंट हैं, इतने अलग तरीके का सिनेमा बनाते हैं, तो उनके साथ मुझे काम करने का मौका मिला. मैं इसलिए एक्साइटेड नहीं हूं कि मैं एक और फिल्म कर रहा हूं और अब टीवी एवं थिएटर नहीं कर रहा हूं. एक्साइटमेंट के अलग-अलग कारण हैं और सेंस ऑफ अचीवमेंट के अलग कारण हैं. आज मैं पांच फिल्में साइन कर लूं और तब मुझे लगेगा कि मैं अच्छा एक्टर हूं. मुझे अपने बारे में नहीं पता. अगर आज मैं एक ही फिल्म कर रहा हूं या थिएटर में मैं एक ऐसा प्ले करूं, जिसे लगता है कि मैं नहीं कर सकता, तो मुझे अच्छा लगेगा.

दिबाकर बनर्जी की फिल्म ब्योमकेश बख्शी के लिए आपको किस तरह की तैयारी की जरूरत पड़ रही है?
मैं हर फिल्म की रिलीज के बाद दो से ढ़ाई महीने का गैप लेता हूं. ताकि अपने अगले किरदार के बारे में हर चीज पढ़ सकूं, समझ सकूं, उसका बैकग्राउंड पता करूं, ताकि जब मैं शूट करने जाऊं, तो मुझे यह कंफ्यूजन न हो कि यार, मैं यह कैरेक्टर नहीं हूं. ब्योमकेश बख्शी हमारे पहले फिक्शनल डिटेक्टिव हैं, जिनकी बत्तीस-तैंतीस स्टोरीज ऑलरेडी हैं, तो ब्योमकेश का नाम लेते ही आपके दिमाग में उसकी एक इमेज बन जाती है. सबने उसे अपने-अपने तरीके से प्रजेंट किया है, तो जब आप उस किरदार के बारे में सोचते हैं, जब स्क्रिप्ट पढ़ते हैं, तो आप महसूस करते हैं कि डायरेक्टर कुछ अलग ही बताने की कोशिश कर रहा है, तो आपने जितना भी होमवर्क किया, वह आप पहले दिन भूल गए. फिर आप तय करते हैं कि चलिए देखते हैं कि क्या होता है.

शुद्ध देसी रोमांस जब आपने साइन की, तो यह खुशी सबसे पहले किसके संग शेयर की थी?
मैंने अंकिता से शेयर किया था. वो बहुत खुश थीं. अंकिता ने सेलिब्रेट किया था. यशराज की फिल्म मिलना और तब मिलना, जब आपकी पहली फिल्म रिलीज न हुई हो और दूसरा, आपने ऑडिशन के जरिए पाई हो. आप पहले ही एक बैगेज के साथ आते हैं कि आप एक टीवी एक्टर हैं. आपको खुद नहीं पता होता है कि टीवी में एक्टिंग करके आपने क्या गलत कर दिया जिंदगी में. और आपसे बोला जाता है कि पिछले बीस साल में तो ऐसा कोई नहीं कर पाया है, तो तुम क्या करोगे? आप समझते हैं कि वो भी सही बोल रहे हैं.

शुद्ध देसी रोमांस में आपने किसिंग सीन किया है. अंकिता को इस पर आपत्ति नहीं थी?
हम सब प्रोफेशनल एक्टर हैं और यह आपके काम का हिस्सा है. जब आप एक्टिंग कर रहे होते हैं, तो एक्टिंग कर रहे होते हैं. आप झूठ नहीं बोल रहे होते हैं. आप उस समय उस किरदार को फील कर रहे होते हैं. वह कर रहे होते हैं, जो वह करता है. इस फिल्म में दिखाना था कि दो किरदारों के बीच इस लेवल की इंटीमेसी है. हम क्या करते हैं कि हमें पर्दे पर यह सब नहीं देखना है. अगर आप आंकड़े उठाकर देखेंगे, तो पिछले बीस साल में सबसे ज्यादा जनसंख्या हमारे देश की बढ़ी है. सबसे ज्यादा बच्चे हमारे हुए हैं. लेकिन हम बात नहीं करेंगे भाई और ना ही टीवी पर दिखाएंगे. अगर आप एक रियलिस्टिक फिल्म में काम करते हैं, तो यह दिखाना पड़ेगा.

अंकिता आपको लेकर पजेसिव रहती हैं. क्या आप भी उन्हें लेकर पजेसिव हैं?
देखिए हम लोग चाहे कुछ भी बोल लें, लेकिन साइकॉलोजिकली हम सब इनसिक्योर्ड हैं. हम लोगों को एक चीज चाहिए होती है- सिक्योरिटी. वह हमें कभी लगता है कि जॉब से आ सकती है, तो हम हर वह काम करते हैं, जो वह जॉब बचाने में मदद करे. कुछ लोगों को लगता है कि किसी रिश्ते से आ सकती है, तो हम उसको पकडक़र रखते हैं. लेकिन साइकॉलोजिकल सिक्योरिटी मिलती नहीं है. यह ह्यïूमन नेचर है. कभी मेरे काम के बीच में अंकिता का पजेसिव नेचर नहीं आता. दूसरी बात कि अगर वह मेरे लिए पजेसिव न हों, तो मेरे लिए चिंता की बात होगी कि अरे यार, ये कैसी लडक़ी है कि मेरे लिए पजेसिव नहीं है. पजेसिव तो होना ही चाहिए. अगर मुझे मेरा काम पसंद है, तो मैं इसे लेकर पजेसिव हूं. अगर यह हाथ से चला गया, तो मेरा क्या होगा. अंकिता के साथ मैं इसलिए हूं या इसलिए जिंदगी बीतना चाहता हूं, क्योंकि वो मुझे अच्छी तरह से जानती और समझती हैं. वह मुझे साइकॉलोजिकली सिक्योर लगती हैं. इसलिए मैं पजेसिव हूं.

आपके हिसाब से परिनीती चोपड़ा और वाणी कपूर में से कौन बेटर एक्टर है?
दोनों में तुलना नहीं होनी चाहिए. दो इंसान, जिनका बैकग्राउंड फिल्म का नहीं है, वह यशराज की फिल्म कर रही हैं, मनीष शर्मा डायरेक्ट कर रहे हैं, तो उनमें कोई तो बात होगी. परिनीती बहुत कॉन्फिडेंट और स्पॉनटेनियस हैं. जब आप उनके साथ एक्ट कर रहे होते हैं, तो आपको इतना पता होता है कि अगर आप बीच में इंप्रॉवाइज भी करेंगे, तो वह उसी पर रिएक्ट करेंगी. वह उस लेवल तक तैयार रहती हैं. परिनीती के साथ एक्शन-रिएक्शन पर खेलते हैं. वाणी की बात करें, तो उनकी बिल्कुल ही फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं है. थिएटर नहीं किया, टीवी नहीं किया है. जब मैं पहली बार टीवी में काम करने गया था, तो मुझसे लाइन नहीं बोली जा रही थी. कैमरा सामने रखा था, मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मुझे लगा कि वाणी के साथ भी ऐसी प्रॉब्लम होगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. उन्हें सारी लाइनें याद थीं. वह घबराई नहीं. ये चीजें मुझमें नहीं हैं. मैंने बहुत मेहनत की, तब जाकर आज इस तरह की स्पॉनटेनिटी लाने की कोशिश कर पाता हूं.

आदित्य चोपड़ा के साथ पहली मीटिंग याद है?
बिल्कुल याद है. उसे कौन भूल सकता है. जब मैं उनसे मिलने गया, तो शुरू में कुछ समय तक मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. मैं उन्हें सिर्फ देख रहा था. ऐसे पल में, आप खुद को यह समझा रहे होते हैं कि यह सब सच में हो रहा है. फिर धीरे-धीरे आवाज सुनाई पडऩे लगती है. उन्होंने शुद्ध देसी रोमांस के बारे में कहा. उन्होंने मेरा काम देखा है पहले और उनको लगता है कि मैं एक अच्छा एक्टर हूं. लेकिन उन्होंने कहा कि अंतिम फैसला राइटर जयदीप वर्मा और डायरेक्टर मनीष शर्मा लेंगे. आपको ऑडिशन देना पड़ेगा. मेरे लिए इतना ही बहुत था.

आपको आदित्य चोपड़ा कैसे इंसान लगे? उनके व्यक्तित्व को आप कैसे परिभाषित करेंगे?
वह बहुत अच्छे फिल्ममेकर हैं. उन्हें पता है कि वह क्या कर रहे हैं. उनके दिमाग में क्लैरिटी है कि उन्हें क्या काम चाहिए. वह समझते हैं कि कौन कितना काबिल है और क्या कर सकता है. और अगर कोई अपने आपको काबिल समझता है और उसकी पोटेंशियल ज्यादा है, तो उसको रियलाइज करवाना कि तुम्हारी पोटेंशियल इसलिए ज्यादा है और ये करो, तो और भी ज्यादा हो जाएगा. इतना सपोर्टिव हैं. आप दूर की देख सकते हैं. आप वो चीजें सोच सकते हैं, जिसकी आम तौर पर लोग कल्पना भी नहीं कर पाते उस समय में.

क्या यह कह सकते हैं कि टीवी में आपकी मार्गदर्शक एकता कपूर थीं और अब फिल्म में आदित्य चोपड़ा हैं?
देखिए, हर बात घूम-फिर कर यहां आ जाती है कि आप कैमरे के सामने क्या करते हैं. अगर मैंने कैमरे के सामने अच्छी एक्टिंग करना बंद कर दी, तो फिर कोई भी आपको काम नहीं देगा. चाहे वह आपका मेंटर हो या कोई भी हो. मैं बहुत लकी हूं कि मैं इनके साथ काम कर रहा हूं. लेकिन वहीं, कल इस चीज को मैं हल्के से लेने लगूंगा कि चलो, ये लोग मुझे बैक कर रहे हैं, तो मैं बैठकर रिलैक्स करने लगूं, तो ऐसे काम नहीं चल सकता.

क्या आज आदित्य चोपड़ा के साथ आपके ऐसे संबंध हैं कि आप फोन उठाकर उनसे राय ले सकते हैं?
जी हां, बिल्कुल. उन्होंने खुद कहा है कि यशराज की फिल्म हो या बाहर की फिल्म, सारा डिसीजन तुम्हारा होगा. अगर तुम मुझसे पूछना चाहते हो कि सर, क्या करना चाहिए, तो वह तुम मुझसे कभी भी पूछ सकते हो. लेकिन मैं तुम्हें कभी नहीं कहूंगा कि ऐसा करो या ऐसा मत करो. मैं उनसे राय लेता हूं.

फराह खान की फिल्म हैप्पी न्यू ईयर में अंकिता काम करने वाली थीं, लेकिन अब वो उसका हिस्सा नहीं हैं. क्या वजह रही?
बातें चल रही थीं. बहुत सी चीजें थीं, जो वर्कआउट नहीं हो सकीं. काय पो चे से लेकर अब तक मेरे साथ पच्चीस फिल्मों की बातें चलीं, लेकिन चीजें वर्कआउट हुई नहीं. तो बातें होती रहती हैं.

मैं शोशेबाजी पसंद नहीं करता- शिव पंडित

शिव पंडित ने ठान लिया है कि अब वह केवल लार्जर देन लाइफ फिल्में ही करेंगे. इसकी वजह वह रघुवेन्द्र सिंह को बता रहे हैं
थिएटर, विज्ञापन और टीवी के टेढ़े-मेढ़े गलियारों से होकर शिव पंडित फिल्मों तक पहुंचे हैं. पहला मौका उन्हें शैतान (2011) में मिला. इस फिल्म में प्रभावशाली अभिनय की बदौलत उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में बेस्ड डेब्यू पुरस्कार के लिए नामांकन मिला. इतनी चर्चा के बावजूद शिव ने हड़बड़ी नहीं दिखाई और उन्हें उनके धैर्य का फल भी मिला. अक्षय कुमार ने अपने प्रोडक्शन हाउस में उनके साथ तीन फिल्मों का अनुबंध साइन किया. इसमें से पहली फिल्म बॉस पिछले दिनों प्रदर्शित हुई. अक्षय कुमार के छोटे भाई के किरदार में वह सबका ध्यान खींचने में सफल रहे. अब शिव का खुश होना स्वाभाविक है, ''बॉस में काम करने का मेरा मकसद था कि मेरा काम केवल पच्चीस लोगों तक नहीं, बल्कि पंद्रह हजार लोगों तक पहुंचे. लोगों ने मुझसे पूछा था कि शैतान के बाद आपने 180 डिग्री का टर्न कैसे ले लिया? आपको शैतान जैसी एक-दो और फिल्में करनी चाहिए थीं. लेकिन मुझे लगता है कि कमर्शियल फिल्में एक कलाकार को देश के कोने-कोने के दर्शकों तक पहुंचाने का माद्दा रखती हैं." शिव ने तय कर लिया है कि भविष्य में वह इसी किस्म की फिल्में करेंगे.
नागपुर में पले-बढ़े शिव का अभिनय में आना मानो तय था. बचपन में उनकी मम्मी (टीना) ने उन्हें एक समर वर्कशॉप में डाला. वहां फ्रॉगी प्रिंस नाटक में वह कभी मेंढक़, तो कभी पेड़ बने. कई मंचन के बाद उन्हें आखिरकार प्रिंस की केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए दी गई. उनका मन इस काम में लगने लगा. फिर अपनी ट्रांसफरेबल सरकारी नौकरी की वजह से उनके डैड (गिरीश शर्मा) ने उनका एडमिशन दून स्कूल (देहरादून) में करवा दिया. वहां वह हर रविवार फिल्म देखने निकल लेते थे. हीरो नंबर वन, करण-अर्जुन और मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी जैसी फिल्में देखने में उनका खूब मन लगता था. ग्रेजुएशन के लिए वह हिंदू कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) पहुंचे, तो वहां भी थिएटर की गतिविधियों में सक्रिय रहे. और जब रेडियो मिर्ची से नौकरी का ऑफर मिला, तो वह 2003 में मुंबई आ पहुंचे. उसके बाद जिंदगी उन्हें एक के बाद एक सरप्राइज देती रही. ''एक दिन मुझे एड के लिए फोन आया. पहले मैं झिझका, लेकिन फिर दोस्त के कहने पर ऑडिशन के लिए गया. टाइड सर्फ के लिए पहली बार कैमरा फेस किया. मुझे मजा आया. लगा कि यही काम करना चाहिए. मैं ऑडिशन देने जाने लगा. मैंने दो शॉर्ट फिल्में द प्राइवेट लाइफ ऑफ अल्बर्ट पिंटो और द अदर वूमन कीं. फिर एक दिन एफआईआर शो के ऑडिशन के लिए फोन आया. मैं टीवी सीरियल नहीं करना चाहता था. लेकिन जब शो का कॉन्सेप्ट सुना, तो राजी हो गया. इसी प्रकार एक दिन शैतान के ऑडिशन का फोन आया था." शिव अपने शुरुआती सफर को याद करते हैं.
शिव आज उस गलैमर वल्र्ड का हिस्सा हैं, जहां माना जाता है कि अधिकतर लोग नकली होते हैं. शिव खुद इस बात से इत्तेफाक रखते हैं, ''इस इंडस्ट्री में बहुत सारे रिश्ते नकली हैं." मगर शिव ने इस दुनिया का रंग अपने ऊपर चढऩे नहीं दिया है. इस मुलाकात के लिए वह शॉर्ट्स, टी-शर्ट और चप्पल पहनकर आए हैं. वह कहते हैं, ''मैं जेनुइन हूं. मैं शोशेबाजी करना पसंद नहीं करता. एक्टिंग हमारा काम है. यह बात दिमाग में हमेशा रखनी चाहिए." शिव खुश हैं कि इस अतरंगी दुनिया में उन्होंने कुछ असली रिश्ते कमाए हैं. उसके बारे में वह बताते हैं, ''अक्षय सर से मेरा दोस्ती का रिश्ता असली है. आज मैं मन की हर बात उनसे कह देता हूं. उनसे सलाह लेता हूं. वह खुद रीयल हैं और नकली लोगों को पसंद नहीं करते. मैं उनसे खुद को रिलेट कर पाता हूं." तीन भाई-बहन में शिव सबसे बड़े हैं. उनकी बहन गायत्री भी फिल्मों से जुड़ी हैं. वह बॉस में असिस्टेंट निर्देशक थीं. मगर शिव कहते हैं, ''गायत्री मुझे देखकर फिल्मों में आई है. वह देसी बॉयज में भी असिस्टेंट डायरेक्टर थी. लेकिन बॉस के सेट पर शुरु में किसी को पता नहीं था कि वह मेरी बहन हैं. मैं जरा भी सेट पर देर से पहुंचता था, तो मेरी सबसे ज्यादा शिकायत वही करती थी." शिव और गायत्री मुंबई में अलग-अलग रहते हैं. उसकी वजह वह बताते हैं, ''उसे लगता है कि मैं उसे पका दूंगा. वह इंडिपेंडेंट है." शिव चलते-चलते इस संभावना से इंकार नहीं करते कि भविष्य में भाई-बहन की जोड़ी किसी फिल्म में साथ आ सकती है.

नवाजुद्दीन की औकात क्या है? ऋषि कपूर

कमर्शियल सिनेमा का कोई मजाक उड़ाए, यह ऋषि कपूर को बर्दाश्त नहीं. रघुवेन्द्र सिंह से एक बातचीत में वह अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख सके
हिंदी फिल्मों में उम्र के साथ चरित्र बदल जाते हैं. जवानी में हीरो की भूमिका निभाने वाले स्टार भी एक समय के बाद छिटक कर साइड में चले जाते हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन के बाद अब ऋषि कपूर ने इस परिपाटी को तोड़ा है. उन्होंने सहयोगी भूमिकाओं को अपने लिए अयोगय साबित किया है और एक बार फिर से बड़े पर्दे पर केंद्र में आ गए हैं. 2010 में हबीब फैजल की फिल्म दो दूनी चार में पत्नी नीतू कपूर के साथ मिलकर ऋषि ने बॉक्स-ऑफिस पर ऐसा धमाल मचाया कि निर्माता-निर्देशक फिर से उनके दरवाजे पर खड़े होने लगे. ऋषि कपूर खुशी के साथ कहते हैं, ''दो दूनी चार के बाद मेरे लिए चीजें बदल गईं. अब मैं कैरेक्टर एक्टर नहीं रहा. मैं ऐसे रोल अब लेता ही नहीं हूं. मेरे रोल मेन लीड के बराबर होते हैं." 
इस वक्त हम ऋषि कपूर के साथ सुभाष घई की फिल्म कांची के सेट पर हैं. तैंतीस साल के बाद कर्ज की यह सुपरहिट जोड़ी इसमें साथ लौट रही है. ऋषि एक भव्य गाने की शूटिंग करने जा आए हैं. फिलहाल, उनके मन में कई भावनाएं उमड़ रही हैं. उनके मन में अपने बेटे की कामयाबी की खुशी है, तो कमर्शियल सिनेमा का माखौल उड़ाने वाले लोगों के प्रति बहुत गुस्सा है. हम बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते हैं...

आजकल आप एक ओर डी-डे जैसी गंभीर फिल्म कर रहे हैं, तो  दूसरी ओर शुद्ध देसी रोमांस और कांची जैसी हल्की-फुल्की मनोरंजक मिजाज की फिल्में. अब आप ज्यादा एक्सपेरिमेंट मोड में दिख रहे हैं?
एक एक्टर का यही तो काम है ना! मुझे एक्टर का खिताब चाहिए. पहले ऐसे चांस नहीं मिलते थे. अभी चांस मिला है, तो मैंने अपने आपसे प्रॉमिज किया है कि मुझे सभी तरह के किरदार करने हैं. लुक हर फिल्म में अलग होना चाहिए. निगेटिव हो, पॉजिटिव हो, कॉमिक हो, ट्रैजिक हो, कुछ भी हो. मुझमें सब कुछ करने की योग्यता होनी चाहिए. मैं अब कैरेक्टर एक्टर नहीं रहा हूं. मैं फिल्म का सेकेंड हीरो होता हूं और मेरा रोल मेन लीड के बराबर होता है. आप देख लो कि हर पिक्चर में मैं कितने वेरायटी के कैरेक्टर अब कर रहा हूं.

सुभाष घई और आपकी जोड़ी ने कर्ज में इतना धमाल मचाया था. इसके बावजूद दोबारा साथ आने में तैंतीस साल क्यों लग गए?
वो तो सुभाष जानें. तैंतीस साल बाद हम साथ काम कर रहे हैं. मैं सत्ताइस साल का था, जब उन्होंने मेरे साथ ओम शांति ओम गाना शूट किया था. आज मैं 61 साल का हूं और इस तरह का गाना मेरे साथ कर रहे हैं (हंसते हैं). आपको यह दोनों फोटोग्राफ्स एक साथ पाठकों को दिखानी चाहिए.

आपको सेट पर डांस करते हुए देखकर हमें बहुत अच्छा लग रहा है.
मुझे तो बहुत अजीब लग रहा है. मैं 61 साल का हूं. आज भी मैं डांस कर रहा हूं. मैंने सोचा कि साउथ में सभी हीरो एनटीआर, एमजीआर सब सोलह साल की लड़कियों श्रीदेवी से प्यार करते थे. मुझे श्रीदेवी आकर बोलती थी कि सर, मैं एनटीआर, कृष्णा के साथ डांस करती थी, जो मेरी उम्र से डबल के होते थे. आज मैं इस गाने में हेजेल के साथ डांस कर रहा हूं, जो मेरी आधी उम्र की है. मैं इसे सम्मान की तरह देखता हूं. ईश्वर की कृपा रही है हम पर कि उसने ऐसा वक्त भी हमको दिखाया है. लेकिन मैं अपने काम को एंजॉय करता हूं. ये मत सोचना कि मैं काम मजबूरी में कर रहा हूं.

सुभाष घई के साथ इतने साल बाद काम कर रहे है. उनमें क्या बदलाव आए हैं?
उनका पैशन सेम है. बाल थोड़े सफेद हो गए हैं. मेरे बाल भी सफेद हो गए हैं. प्यार और सम्मान हमारा एक-दूसरे के लिए सेम है. पैशन, प्यार और लगन आज भी वही है. वक्त बदल गया है. लेकिन हमारा पैशन सिनेमा के लिए एक ही है. देखिए, अभी मैं यहां से एक दूसरी फिल्म की शूटिंग में जा रहा हूं. दस बजेंगे रात के. लेकिन मजा आ रहा है. ईश्वर कितने लोगों को ऐसा मौका देता है. मैं अपने फैंस को खुश कर पा रहा हूं, यह मेरे लिए बड़ी बात है.

कांची में अपने रोल के बारे में बताएं?
यह सुभाष घई टाइप एक निगेटिव कैरेक्टर है. उनका होता है ना ओवर द टॉप, कॉमेडी-रोमांटिक. इसमें उन्होंने मुझे थोड़ा अलग किस्म का रोल दिया है. यह विजय माल्या से प्रेरित किरदार है. मेरा पूरा गेटअप उन्हीं से लिया गया है. स्टाइलाइज भी वैसे ही किया है. लेकिन यह उनके जीवन की कहानी नहीं है.

क्या आपको अपने किरदारों के लिए तैयारी की जरूरत पड़ती है?
नहीं, हिंदी फिल्मों में ऐसा नहीं होता है. जो लोग रिसर्च की बात करते है, उनको मेरी तरफ से एक झापड़ खींचकर देना. अंडे से बाहर निकले दो दिन होते नहीं है कि अपने आपको एक्टर बोलते हैं और रिसर्च-विचर्स की बात करते हैं. आजकल के नए एक्टर अपने आपको तीस मार खां समझते हैं. उनसे पूछना कि क्या रिचर्स करते हो तुम लोग? और अगर तुमने किया है, तो क्या उखाड़ा है? कमर्शियल सिनेमा में तो आओ. पर्दे पर पहले धंधा करके तो दिखाओ. बातें करते हैं. इन पर मुझे बहुत गुस्सा आता है. बेसिकली हम सब कमर्शियल एक्टर्स हैं. हम सब एंटरटेनर्स हैं. वी प्रोवाइड एंटरटेनमेंट. वी ब्लडी डोंट प्रोवाइड एनी काइंड ऑफ नॉनसेंस. चालीस साल से मैं वही कर रहा हूं, ईश्वर की कृपा से और वही करना चाहता हूं.

आज भी आप दर्शकों को सरप्राइज कर रहे हैं. यह बड़ी बात है.
वह एक एक्टर का ट्रिक होना चाहिए- सरप्राइज द ऑडियंस. वरना आप बासी हो जाओगे. मैंने 25 साल अपनी जिंदगी में वही काम किया. केवल रोमांटिक हीरो के रोल. आगे देखो, मैं क्या क्या करता हूं. तब मिलते नहीं थे ऐसे कैरेक्टर्स. बनती नहीं थीं ऐसी पिक्चरें. हमको कोई देता नहीं था. आज ऐसा मौका मिल रहा है.

रणबीर भी आपकी तरह सबको सरप्राइज करते रहते हैं. क्या आप दोनों ने मिलकर प्लानिंग की है?
बिल्कुल नहीं. दुनिया जानती है कि मैं उसके क्रिएटिव पहलू में इंटरफीयर नहीं करता. यह एक संयोग भर है.

रणबीर की उड़ान से खुश हैं?
देखो, उसकी मेहनत है बेचारे की. एक बार में एक पिक्चर करता है बस. वो भी देखो रिस्क कितना बड़ा लेता है. अगर वह पिक्चर नहीं चले, तो उसके हाथ से काम जा सकता है. लोग कहेंगे कि अरे यार छोड़ो. इतना गट्स होना चाहिए आपमें. आप एक बर्फी! कर रहे हो और आपने तीन पिक्चरों को ना बोला. वो भी एक राजकुमार हिरानी की पिक्चर, एक रोहित शेïट्टी की और एक अभिनव की. किस एक्टर में इतना दम है यार... मैं इस इंडस्ट्री के बिगेस्ट स्टार की बात भी कर रहा हूं. किसी एक्टर में इतना दम नहीं है कि वह एक्सपेरिमेंटल फिल्म करे. मैं अपनी बात भी कर रहा हूं. कोई सोचे तो सही कि चलो एक हटकर पिक्चर करते हैं, मेरे फैंस को अच्छा लगेगा. वो भी नहीं करते, क्योंकि उनके लिए पैसा महत्वपूर्ण है.

क्या आप रणबीर की चॉइसेस से खुश हैं?
नहीं. उस वक्त तो खुश नहीं था, जब उसने यह सब करना शुरू किया था. सब कहते थे कि क्या हो गया है तेरे बेटे को? मैं भी सोचता था कि क्या हो गया है. आज उसने सबको चुप करवा दिया है. पहले जब सरदार (रॉकेट सिंह सेल्समैन ऑफ द ईयर) बनकर घूमता था, फिर बाल बढ़ाकर रॉकस्टार कर रहा था, फिर गूंगे-बहरे का रोल कर रहा था, तो लोगों को कसीदे कसने में और कमेंट पास करने में तो कुछ जाता नहीं है ना. मुझे भी बुरा महसूस होता था कि यार, मेरा बेटा क्या कर रहा है. आज रणबीर ने सबको बोल दिया है कि शट अप. जस्ट कीप क्वाइट. मैं वही करूंगा, जो मैं करना चाहता हूं.

उस दौरान क्या आप रणबीर को बोलते थे कि ऐसा मत करो?
नहीं, मैंने कभी नहीं बोला. मैंने उसे उसका स्पेस दिया. आज उसने कमर्शियल जोन में आकर ये जवानी है दीवानी करके अपने आपको प्रूव कर दिया है. बर्फी! जैसी पिक्चर ने सौ करोड़ का बिजनेस किया. यह एक बड़ी अचीवमेंट है. ईश्वर की उस पर कृपा रही है. बस, अपना काम मेहनत से करते रहो, हमने अपने बुजुर्गों से यही सीखा है. मैं अपने बच्चे से यही बोलता हूं कि जैसे काम कर रहे हो, वैसे ही करो, लगन से करो.

क्या आरके बैनर फिर से सक्रिय हो रहा है?
आरके के बारे में मेरे से बात मत करो. आरके मेरे हिसाब से बंद हो चुका है. कोई पिक्चर उसमें बनने वाली नहीं है. सब झूठ बोलते हैं कि उसमें पिक्चर बनने वाली है.

क्या आप दोबारा डायरेक्शन में लौटेंगे?
मेरे पास बिल्कुल समय नहीं है. मैं डायरेक्टर गलती से बन गया था. मैं बेसिकली एक एक्टर हूं. फिल्ममेकिंग मेरा पैशन नहीं है.

नए कलाकारों में आपको किसका काम अच्छा लगता है?
मुझे इरफान खान बहुत अच्छे लगते हैं. बहुत अच्छे इंसान भी हैं. वह फाइन एक्टर हैं. अर्जुन रामपाल ने भी बहुत इंप्रूव किया है. मेरे हिसाब से सुशांत सिंह राजपूत, आयुष्मान खुराना और अर्जुन कपूर अच्छा काम करते हैं. मैं उन्हीं के बारे में बोल सकता हूं, जिनके साथ काम किया है.

किस निर्देशक का काम आपको पसंद है?
अनुराग कश्यप की फिल्म देखी है गैग्स ऑफ वासेपुर. अच्छी लगी थी. थोड़ी स्लो और लंबी थी. उनकी और कोई पिक्चर नहीं देखी. सुना है कि वह अच्छी पिक्चरें बनाते हैं.

 नवाजुद्दीन पर भड़के ऋषि कपूर 
"मैंने कहीं पढ़ा कि नवाजुद्दीन (सिद्दिकी) नाम के कोई एक्टर हैं, उन्होंने कुछ उल्टा-सीधा कहा है कि रोमांटिक हीरोज रनिंग अराउंड द ट्रीज. उनके बाप-दादा भी नहीं कर सकते हैं ऐसा काम. वो खुद तो क्या करेंगे. इट्स वेरी डिफिकल्ट टू ब्लडी सिंग सॉन्ग्स एंड रोमांस द ब्लडी डैम हीरोइन. डोंट थिंक्स इट्स ईजी. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की? तुम्हारी औकात क्या है कि तुम किसी में इंसपिरेशन डालो. तुम हो कौन यार? तुम कमेंट क्या पास करते हो कि व्हाट इज ग्रेट अबाउट डूइंग दैट? आपको पता है कि यह करने में क्या हुनर चाहिए होता है? कभी शाहरुख खान से पूछना, सलमान से पूछना, कभी अक्षय कुमार से पूछना, कभी जितेन्द्र से पूछना, राजेश खन्ना तो रहे नहीं. बच्चन साब से पूछना... गाना गाना या रोमांस करना आसान काम नहीं है हिंदी फिल्मों में. मेरे दोस्त, मेरे अजीज, मेरे जूनियर नवाजुद्दीन शाह (सिद्दिकी) को यह पता नहीं. और उनको ऐसी गलत बात बिल्कुल नहीं बोलनी चाहिए. इट्स टेक्स लॉट ऑफ आर्ट, इट टेक्स लॉट ऑफ टैलेंट टू डू दिस. मैं आपके टैलेंट को धुत्कार नहीं रहा हूं. मैंने सुना है कि आप बहुत अच्छे एक्टर हैं. एकाद पिक्चरें आपकी देखी भी हैं, जिसमें आप बहुत एवरेज थे. लेकिन दूसरे जो करते हैं, उसमें बहुत मेहनत लगती है. आपने जिंदगी में वह कभी किया नहीं है और आपको कभी मौका भी नहीं मिलेगा. आप कर भी नहीं सकते. आपकी इमेज नहीं है. आपमें वह टैलेंट नहीं है."

साभार: फ़िल्मफ़ेयर

Friday, March 14, 2014

ऑन द सेट्स- टोटल सियापा

अली जफर, यामी गौतम और किरण खेर ने टोटल सियापा फिल्म के सेट पर जमकर सियापा मचाया. रघुवेन्द्र सिंह उनके सियापे के बारे में बता रहे हैं
निर्माता- नीरज पांडे
निर्देशक- ईश्वर निवास
कलाकार- अली जफर, यामी गौतम, किरण खेर, अनुपम खेर
संगीत-गीत- अली जफर
कोरियोग्राफर- गणेश आचार्य
लोकेशन- फिल्मसिटी, मुंबई


कहानी
यह फिल्म पाकिस्तानी रॉकस्टार अमन (अली जफर) की कहानी है, जिसे एक पंजाबी लडक़ी आशा (यामी गौतम) से प्यार हो जाता है. दोनों शादी करने का फैसला करते हैं. आशा अपने पैरेंट्स से मिलवाने के लिए अमन को घर ले आती है. परिजनों को अमन बहुत पसंद आता है, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चलता है कि वह पाकिस्तानी है, तो घर में हंगामा मच जाता है. टोटल सियापा एक स्पैनिश फिल्म ओनली ह्यूमन (2004) का आधिकारिक रिमेक है.

क्या सीन है
अली जफर, यामी गौतम और किरण खेर के साथ ईश्वर निवास अपनी फिल्म टोटल सियापा का प्रमोशनल म्यूजिक विडियो टोटल सियापा है तेरा प्यार... शूट कर रहे हैं. इसे लिखा है अली जफर ने. उन्होंने ही इसका संगीत तैयार किया है और आवाज भी दी है.
डांस बेबी डांस
पिछली रात दो बजे तक अली जफर ने अपनी फिल्म तेरे बिन लादेन 2 की शूटिंग की और आज सुबह-सुबह वह टोटल सियापा फिल्म के सेट पर हाजिर हैं. पूरी ऊर्जा के साथ वह अपनी को-स्टार यामी गौतम के साथ रंग-बिरंगे जगमगाते सेट पर डांस स्टेप्स की रिहर्सल कर रहे हैं. गणेश आचार्य दोनों को दिशा-निर्देश दे रहे हैं और ईश्वर निवास मॉनीटर के सामने फ्रेम पर नजर रखे हुए हैं. दरअसल, एक गाने की शूटिंग के दौरान निर्देशक की भूमिका गौण हो जाती है. कोरियोग्राफर के हाथ में निर्देशन का जिम्मा आ जाता है. गणेश माइक संभालते हैं और एक्शन बोलते हैं. दो सौ किलो आंसू, ढाई सौ किलो गम... टोटल सियापा है तेरा प्यार... गीत बजता है और अली-यामी थिरकना शुरू करते हैं. दोनों की केमिस्ट्री लाजवाब है. गणेश को मनमाफिक शॉट तुरंत मिल जाता है. वह खुशी के साथ कहते हैं, ''अली के साथ मैंने चश्मे बद्दूर में काम किया था. उन्हें पता है कि मैं क्या चाहता हूं. वह थोड़े शर्मीले हंै, लेकिन अच्छा डांस कर लेते हैं. यामी के साथ मैं पहली बार काम कर रहा हूं. वह अच्छी डांसर हैं. दोनों के संग मैंने चार-पांच दिन रिहर्सल किया था. एक्चुअली, अली ने बहुत अच्छा गाना कंपोज किया है. जब गाना अच्छा हो, तो डांस करने में मजा आता है." 
केमिस्ट्री कमाल की
यामी अपना सोलो शॉट देने के लिए कैमरे के सामने रूकती हैं और अली मॉनीटर के पास आ जाते हैं. वह आवाज बदलकर यामी-यामी चिल्लाते हैं और उनकी हौसलाअफजाई करते हैं. यामी समझ जाती हैं कि यह शैतानी कौन कर रहा है! वह हंस पड़ती हैं. हम अली से मुखातिब होते हैं. वह कहते हैं, ''पिछले छह महीने कैसे गुजरे हैं, ये न पूछें." दरअसल, गत छह महीनों में अली ने टोटल सियापा और तेरे बिन लादेन 2 के गाने लिखे व कंपोज किए. यामी के बारे में अली बताते हैं, ''बड़ा मजा आया यामी के साथ काम करके. रोजाना आपको दस घंटे किसी को बर्दाश्त करना आसान नहीं होता. इट्स लाइक ए मैरिज विदाउट फिजिकल रिलेशनशिप." यह बात यामी सुन लेती हैं और वह हंसने लगती हैं. ड्राय फ्रूट्स से भरा अपना डिब्बा उठाते हुए यामी पूछती हैं कि मेरे वॉलनट्स कहां गए? मस्ती के अंदाज में अली पूछते हैं, ''कौन से नट्स? खुदा की कसम मैंने नहीं खाए यार..." और वह अपनी हंसी रोक नहीं पाते. कुछ पल बाद हंसी पर नियंत्रण करते हुए अली ने कहा, ''यामी अच्छी इंसान हैं. इनके लिए दिल से इज्जत निकलती है और कोई इमोशन नहीं निकलता है." यह सुनकर यामी खुश हो जाती हैं, ''यह जेनुइन तारीफ है. आएम टच्ड." तभी अली अगली लाइन बोलते हैं, ''लेकिन यामी का ïवाइल्ड साइड किसी ने नहीं देखी है. शायद इन्होंने खुद भी नहीं देखी होगी." यामी पलटकर जवाब देती हैं, ''जिसके लिए होगी, उन्होंने देख ली होगी या देख लेंगे." यामी-अली की इस केमिस्ट्री ने हमें हंसा-हंसाकर लोट-पोट कर दिया. सोचिए, फिल्म में दोनों ने मिलकर क्या धमाल मचाया होगा!
किरण का ऑब्जेक्शन
अली और यामी को कुछ समय पश्चात किरण खेर जॉइन करती हैं. वह फिल्म में यामी की मां का किरदार प्ले कर रही हैं. अपने साथ वह एक अलग प्रकार की एनर्जी लाती हैं. अली-यामी उनकी कंपनी को एंजॉय करते हैं. गणेश आचार्य शॉट लेना शुरू करते हैं. इस शॉट में अली, किरण और यामी के दादाजी, भाई व बहन का किरदार निभाने वाले कलाकार भी मौजूद हैं. कलाकारों के बीच सही को-ऑर्डिनेशन न हो पाने के कारण गणेश को सही शॉट नहीं मिल पा रहा है. एक बार तो किरण खेर के कान में बंदूक की नोंक से ठोकर लग जाती है और वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पातीं. आठवें टेक में गणेश खुश नजर आते हैं. सभी कलाकार मॉनीटर के पास बैठकर चैन की सांस लेते हैं. अली का असिस्टेंट फ्रूट्स का डिब्बा लाकर उन्हें देता है. यह देखकर किरण खेर कहती हैं कि आजकल के लडक़े अपने डायट को लेकर कितने कॉन्शस रहते हैं. पराठे-वराठे कोई खाता ही नहीं है. वह सिक्स पैक एब्स ट्रेंड की खिलाफत करते हुए कहती हैं, ''लड़कियां ऐसे लडक़ों को थोड़े ही पसंद करती हैं, जो दिन-रात अपनी बॉडी देखते रहते हैं. पूरे दिन शूटिंग करने के बाद रात को नौ बजे जिम भागते हैं." यामी उनकी बात से सहमति जताती हैं. उनकी बात इत्मिनान से सुनने के बाद अली कहते हैं, ''मैंने पिछली रात तेरे बिन लादेन 2 के लिए इसी विषय पर एक गाना शूट किया. बहुत मजेदार कॉन्सेप्ट है. आप सबको पसंद आएगा." गणेश कलाकारों से स्टेज पर आने का आग्रह करते हैं. वह अगला शॉट लेने के लिए अब तैयार हैं. वह हमें बताते हैं कि रात के दस बजे तक शूटिंग चलेगी. हम डांस, मस्ती, धमाल और सियापे से भरे इस माहौल से विदा लेते हैं.



''मैं राजमा-चावल स्वादिष्ट बनाता हूं"- सुशांत सिंह राजपूत

एक्टिंग में निपुण सुशांत सिंह राजपूत किचन की कला भी जानते हैं. रघुवेन्द्र सिंह ने इस हॉट स्टार के फूड लव और कुकिंग के शौक के बारे में जाना
कॉफी है कमजोरी
सुशांत सिंह राजपूत को सुबह बिस्तर से निकलते ही सबसे पहले गरमा-गरम कॉफी की तलब होती है. कॉफी उनकी कमजोरी है. ''बिल्कुल. सुबह-सुबह मुझे सबसे पहले ब्लैक कॉफी चाहिए होती है. यह मेरी फेवरेट है. मैं कॉफी बहुत पीता हूं. जब मैं सेट पर होता हूं, तो सात-आठ कप कॉफी पी जाता हूं." बताते हैं सुशांत.

फूडी हूं मैं
सुशांत एक ऐसे पेश में हैं, जहां उनका खान-पान उस किरदार पर निर्भर करता है, जो उस समय वह निभा रहे होते हैं. वरना उन्हें अलग-अलग डिशेज आजमाने में बहुत मजा आता है. वह कहते हैं, ''मैं फूडी हूं, लेकिन अगर मैं एक ऐसा किरदार प्ले करने जा रहा हूं, जिसके लिए मुझे वजन कम करना हो, तो मैं खाने पर कंट्रोल करुंगा. अगर ऐसी स्थिति नहीं है, तब मेरे सामने जलेबी-समोसा भी रखा हो, तो मैं उस पर टूट पड़ता हूं."

समोसे... नहीं
सुशांत जब तक पवित्र रिश्ता में काम करते रहे, तब तक उन्हें कभी वजन घटाने या बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी. मगर जैसे ही उन्होंने अपनी पहली फिल्मकाय पो चे साइन की, उन्हें अपना डायट चार्ट बदलना पड़ा. सुशांत बताते हैं, ''जब मैं टीवी में काम कर रहा था, तब मैं 89 किलो था. मगर ईशान के किरदार के लिए मुझे चौदह किलो वजन घटाना पड़ा. मैंने छह-सात हफ्ते में अपना वजन 74 किलो किया." आजकल भी सुशांत स्ट्रिक्ट डायट पर हैं. उसकी वजह का खुलासा वह करते हैं, ''अभी मैं 78 किलो का हूं. दिबाकर बनर्जी की फिल्म ब्योमकेश बख्शी के लिए मुझे पांच-छह किलो वजन कम करना है. इसलिए इस वक्त अगर आप मुझे समोसे देंगे, तो मैं चाहकर भी नहीं खा पाऊंगा. लेकिन अगर मुझे अपने डायट की ऐसी-तैसी करनी हो, तो मैं मटन बिरयानी और जलेबी रबड़ी फौरन ऑर्डर करूंगा."

दिल्ली का खाना... वाह!
सुशांत ने जीवन के कई साल दिल्ली में गुजारे हैं, इसलिए उन्हें दिल्ली के खाने के बारे में गहराई से जानकारी है. फूड के मामले में वह दिल्ली को मुंबई से बेहतर आंकते हैं. बकौल सुशांत, ''मुझे दिल्ली का खाना बहुत अच्छा लगता है. मेरे खयाल से स्पाइस जो होता है, वह तरीके से बनता है. यूं कह सकते हैं कि दिल्ली का खाना दिल से बनता है. मूलचंद के परांठे और कमला नगर के मोमोज पॉइंट के मोमोज दूसरी किसी जगह नहीं मिल सकते. जब मैं दिल्ली में था, तब इन जगहों पर दोस्तों के साथ बहुत जाता था." मुंबई में सुशांत जब अंकिता के साथ आउटिंग पर निकलते हैं, तो वह जिन जगहों पर जाते हैं, उनके बारे में बताते हैं, ''अगर चाइनीज खाने का मन होता है, तो हम मेनलैंड चाइना जाते हैं. वरना इंडिगो. अगर बहुत पैसे आ गए और कुछ समझ में नहीं आता, तो जेडब्ल्यू मैरिएट जैसे फाइव स्टार होटल में चले जाते है." डिपेंड करता है कि किस रीजन से खाना चाहते है."

कुकिंग एक्सपर्ट!
अगर आप यह सोच रहे हैं कि यह हॉट स्टार किचन में नहीं जाता, तो आप गलत हैं. अपने नैचुरल, दमदार और प्रभावशाली अभिनय से लोगों के दिलों में बसे सुशांत को कुकिंग की कला भी आती है. यह अलहदा बात है कि अपनी अति व्यस्त दिनचर्या की वजह से वह कभी-कभार ही किचन में जा पाते हैं. लेकिन जब वह किचन में जाते हैं, ''तब मैं अक्सर इंडियन फूड बनाता हूं. मैं अपनी फेवरेट डिश राजमा-चावल बहुत स्वादिष्ट बनाता हूं. जब घर में कोई न हो और मुझे खुद को खुश करना हो, तो मैं राजमा-चावल बना लेता हूं." अपनी लेडी लव अंकिता का दिल जीतने के लिए भी सुशांत कभी-कभी कुकिंग करते हैं. ''अंकिता फूडी नहीं हैं, इसलिए उन्हें सब कुछ चलता है. उन्हें प्यार से जो भी परोसते हैं, वो खा लेती हैं." और सुशांत के लिए अंकिता क्या खास तौर से पकाती हैं? जवाब में यह स्टार मुस्कुराते हुए बताते हैं, ''अंकिता मेरे लिए कभी-कभी गाजर का हलवा बनाती हैं. मुझे गाजर का हलवा बहुत पसंद है." स्वीट्स सुशांत की कमजोरी हैं. ''आप मुझे चॉकलेट ऑफर करें या पेस्ट्री या फिर कोई भी मीठा, मैं तुरंत फिसल जाता हूं." वह हंसते हुए यह सीक्रेट बता देते हैं.

पार्टी सीक्रेट्स
बहुत कम लोगों ने एक स्टार को पार्टी में खाना खाते हुए देखा होगा. तो क्या स्टार पार्टियों में घर से खाना खाकर जाते हैं? इसका जवाब सुशांत ने ठहाके के साथ दिया, ''देखिए, डिपेंड करता है कि किसकी पार्टी है, कहां है और कितनी देर वहां मुझे रुकना है." उन्होंने अपना सीक्रेट बताया, ''अगर मैं अपने दोस्त की पार्टी में जा रहा हूं और मुझको पता है कि वहां खाना अच्छा है, तब मैं घर से बिना खाए निकलता हूं. लेकिन अगर मैं श्योर नहीं हूं कि मैं कितनी देर पार्टी में रुकूंगा, तो घर से खाकर पार्टी में जाता हूं."

स्टार होने का फायदा
एक स्टार जब किसी रेस्टोरेंट में प्रवेश करता है, तो उसे हमेशा स्पेशल ट्रीटमेंट मिलती है. सुशांत के पास ऐसे काफी अनुभव हैं, ''जब मैं संडे को किसी रेस्टोरेंट में खाने जाता हूं, तो पहले ही फोन करके बोल देता हूं कि मैं आ रहा हूं. तो वो लोग मेरे लिए एक टेबल रख देते हैं. कभी-कभी तो मुझसे पैसे भी नहीं लेते हैं." रेस्टोरेंट में आजकल कस्टमर को मिनरल और रेज्युलर वॉटर का विकल्प दिया जाता है. इनमें से सुशांत किसे चुनते हैं? वह हैरानी के साथ कहते हैं, ''मैं मिनरल वॉटर ही बोलता हूं, लेकिन मैंने आज तक सोचा नहीं कि मैं मिनरल क्यों बोलता हूं. उनका रेज्युलर वॉटर भी तो स्वच्छ होता है."

फेवरेट डिश
राजमा-चावल
गाजर का हलवा


मुंबई की फेवरेट रेस्टोरेंट/होटल
मेनलैंड चाइना
इंडिगो
जेडब्ल्यू मैरिएट

दिल्ली के फेवरेट फूड जॉइंट्स
मूलचंद के परांठे
मोमोज पॉइंट (कमला नगर)
साभार: फिल्मफेयर

''सिद्धार्थ बहुत हॉट है" परिनीती चोपड़ा

परिनीती चोपड़ा का विजय रथ तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है. आपकी और अपनी इस चहेती अभिनेत्री के व्यस्त शेड्यूल से रघुवेन्द्र सिंह ने थोड़ा-सा वक्त चुराया
एक अभिनेत्री के नाम से उसकी हर फिल्म पहचानी जाए, हमारी हीरो प्रधान फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा कम होता है. खास तौर पर किसी अभिनेत्री के करियर के आरंभिक दिनों में ऐसा नामुमकिन-सा है. लेकिन परिनीती चोपड़ा अपवाद हैं. उन्हें फिल्मों में आए केवल दो साल हुए हैं, मगर उनका कद इतना बढ़ चुका है कि दक्षिण के सुपरस्टार्स हों या हिंदी फिल्मों के, सब उनके साथ अपनी जोड़ी बनाने का प्रयास कर रहे हैं. मगर फिलहाल वह हीरो प्रधान फिल्मों में सजावट की एक वस्तु नहीं बनना चाहतीं. वह अपने अभिनय का दमखम दिखाना चाहती हैं और किसी हीरो का सहारा लिए बगैर अपनी प्रतिभा की बदौलत सबके दिलों पर राज करना चाहती हैं. यह साल परिनीती के लिए सबसे व्यस्त होगा. उनकी तीन फिल्में हंसी तो फंसी, किल दिल और दावत-ए-इश्क प्रदर्शित होने के लिए तैयार हैं. अभी-अभी वह लखनऊ से हबीब फैजल की फिल्म दावत-ए-इश्क की शूटिंग करके लौटी हैं. यशराज स्टूडियो में हमारी उनसे मुलाकात हुई, तो लखनऊ के लजीज खाने से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ...

लखनऊ में आपने क्या-क्या जमकर खाया?
मैं इशकजादे की शूटिंग के दौरान लखनऊ में रहकर आई थी, तो मुझे खाने के अड्डे पता थे. अनुपम (खेर) सर लखनऊ में काफी साल रहे हैं, तो उनको भी अड्डे पता थे. मैं और अनुपम सर रोज आदित्य (रॉय कपूर) के लिए नई-नई जगह से खाना ऑर्डर करते थे. टुंडे के कबाब हम लोग रोज खाते थे. हमने नल्ली-कुल्चा बहुत खाया.

हमने सुना कि हैदराबाद में दावत-ए-इश्क की शूटिंग के दौरान आपके पास साउथ के कई सुपरस्टार्स के साथ फिल्में ऑफर हुईं.
हां, तीन-चार तमिल और तेलुगू फिल्मों के ऑफर्स आए थे, लेकिन मैं वो कर नहीं पाऊंगी, क्योंकि डेट्स की प्रॉब्लम है. मुझे उन फिल्मों के नाम नहीं लेने चाहिए, क्योंकि कोई और एक्ट्रेस उनमें काम करेंगी. मुझे यह नहीं बोलना चाहिए कि वह पिक्चर पहले मेरे पास आई थी.

डेट्स की समस्या है या फिलहाल आप साउथ की फिल्मों में काम नहीं करना चाहतीं?
नहीं यार, मैं साउथ की फिल्मों में जरूर काम करना चाहूंगी. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन-सी भाषा में फिल्म है. लेकिन इस बार वर्कआउट नहीं हो पाया, क्योंकि जिस समय वह शूट करना चाहते हैं, उस वक्त मैं कोई दूसरी फिल्म शूट कर रही हूं.

अगर अभी कोई आपको साइन करना चाहता है, तो उसे कब तक इंतजार करना होगा?
(हंसती हैं) थोड़ा-सा इंतजार करना पड़ेगा. 2014 तो फुल है. लेकिन अगर कोई स्क्रिप्ट मुझे बहुत पसंद आती है, तो हम डेट्स एडजस्ट कर लेंगे.

इंडस्ट्री में ऐसा माना जाता है कि जब तक आप शाहरुख, सलमान और आमिर खान के साथ काम नहीं करते, तब तक टॉप में नहीं आ सकते. आप इसमें विश्वास करती हैं?
एक एक्टर के तौर पर मैं इस बात में बिलीव नहीं करती हूं. मुझे कई ऐसी फिल्मों के ऑफर्स आए थे, जिसमें खान थे. लेकिन मैंने वो पिक्चरें नहीं कीं क्योंकि उनमें मेरा कुछ काम नहीं था. वो हीरो की फिल्म थी, इसलिए मैंने नहीं कीं. मुझे अभी वो पिक्चरें करनी हैं, जिसमें मेरा बहुत काम हो, अच्छा रोल हो, ताकि मैं दिखा पाऊं कि मैं कितनी एक्टिंग कर सकती हूं.

आप किस खान के साथ काम करना चाहती हैं?
ओह, मुझे सभी खान बहुत अच्छे लगते हैं. मैं सैफ अली खान की बहुत बड़ी फैन रही हूं. उनके साथ मैं काम करना चाहती हूं. मैंने उनके साथ एक शो होस्ट किया था, तब मैंने उनसे कहा था कि मैं आपकी फैन हूं और उम्मीद करती हूं कि आपके साथ एक दिन काम करूं. सलमान की मैं बहुत बड़ी फैन हूं. शाहरुख के तो सभी फैन हैं. खानों के साथ तो हर कोई काम करना चाहेगा.

अमूमन यह देखने को मिलता है कि जब एक एक्ट्रेस फिल्म की हीरो बनने लगती है, तब टॉप हीरो और वो एक प्लेटफॉर्म पर नहीं आते हैं.
मेरे हिसाब से काजोल, रानी मुखर्जी, विद्या बालन और दीपिका पदुकोण बहुत स्ट्रॉन्ग एक्ट्रेस हैं. विद्या ने मिस्टर बच्चन के साथ काम किया है. अपनी अगली पिक्चर में वो फरहान अख्तर के साथ काम कर रही हैं. मैं ऐसा नहीं मानती हूं.

कहा जाता है कि आप जो फिल्में करती हैं, वह आपकी हो जाती हैं और आपके नाम से जानी जाती हैं.

ऐसा नहीं है. लेडीज वर्सेस रिक्की बहल में पांच एक्टर्स थे. इशकजादे एक लव स्टोरी थी. शायद उसमें मेरी परफॉर्मेन्स की बात हुई, लेकिन वो मेरी पिक्चर नहीं थी. वह मेरी और अर्जुन की पिक्चर थी. शुद्ध देसी रोमांस में सुशांत था, ऋषि जी थे, वाणी भी थी और हम चारों के बारे में बात हुई. मुझे नहीं लगता है कि वह सिर्फ मेरी पिक्चर थी. वह सबकी पिक्चर थी. हंसी तो फंसी एक लव स्टोरी है. यह मेरी और सिड (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की पिक्चर होगी. मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि मेरी पिक्चर केवल मेरी होती है. हां, ये जरूर है कि जब मैं पिक्चर चूज करती हूं, तो यह देखती हूं कि उसमें मेरा कितना काम है. और मैं यह नहीं कह रही हूं कि मैं यह देखती हूं कि मैं कितने पेज तक हूं. मैं यह देखती हूं कि मेरे कैरेक्टर का स्टोरी में क्या महत्व है. तो बिग स्टार्स के साथ जो फिल्में मुझे ऑफर हुईं, उनमें मेरे लिए खास काम नहीं था. वरना मैं उनके साथ काम करना पसंद करूंगी.

लेकिन अगर आप उस जोन की फिल्म में जाती हैं, तो रोल के मामले में समझौता करना पड़ता है.
करेक्ट, लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूं. मुझे गलैमरस फिल्म करनी है, मुझे एक्शन फिल्म करनी है, जो आम तौर पर हीरो की फिल्म होती है. जैसे- अभी मैं किल दिल कर रही हूं. वह लडक़ों की पिक्चर है, लेकिन उसमें मेरा भी बहुत अच्छा रोल है. कॉकटेल में दीपिका का रोल बहुत बड़ा था, वो लडक़े की पिक्चर नहीं थी, वो सबकी पिक्चर थी. मैं उस तरह का रोल करना चाहती हूं.

आपके हिसाब से इस वक्त कौन-सी एक्ट्रेस सबसे अच्छा काम कर रही हैं?
दीपिका इज डूइंग परफेक्ट काइंट ऑफ फिल्म्स. मतलब कि वो चेन्नई एक्सप्रेस करती हैं, तो साथ में कॉकटेल, राम-लीला और ये जवानी है दीवानी भी करती हैं. वो परफेक्ट बैलेंस करती हैं. एक बॉलीवुड एक्ट्रेस के तौर पर आपको जिस तरह की फिल्में करनी चाहिए, आपके पोर्टफोलियो में जो फिल्में होनी चाहिए, वो दीपिका के पास हैं.

अगर पिछले साल का सक्सेज रेशियो उठाकर देखें, तो आपके हिसाब से कौन-सी एक्ट्रेस टॉप पर हैं?  अगर पिछले साल का उठाकर देखें, तो दीपिका ही हैं. मगर यहां हर फ्राइडे कोई एक नया बंदा टाप पर आता है.

आपको दूसरी एक्ट्रेस की तारीफ करते वक्त झिझक नहीं होती है?
क्यों? दूसरी एक्ट्रेस इस तरह खुलकर तारीफ नहीं करती होंगी. मैं तो खुल्ला बोलती हूं. मुझे कोई इनसिक्योरिटी नहीं है.

आपको फिल्मों में आए दो साल हो गए (9 दिसंबर, 2011 को लेडीज वर्सेस रिक्की बहल प्रदर्शित हुई थी). इन दो सालों में एक एक्टर और इंसान के तौर पर आपमें कितना विकास हुआ है?
एक एक्टर के तौर पर मैं अब सेट पर ज्यादा इन्फॉम्र्ड होती हूं. मुझे फिल्ममेकिंग प्रोसेस ज्यादा समझ में आता है. अब मुझे कैमरा, लाइटिंग, एंगल, मार्किंग, ये सब ज्यादा समझ में आता है, तो मैं हेल्प कर सकती हूं अपने आपको ज्यादा एफिशिएंट बनाने में. कल अगर मुझे किसी टेक में पांच रिटेक लगते थे, तो आज मैं तीन टेक में उसे करने की कोशिश करती हूं. बाकी, मेरे अंदर की परिनीती में कोई बदलाव नहीं आया है.

हंसी तो फंसी में काम करने के लिए आपको किसने राजी किया- करण जौहर, अनुराग कश्यप या विनिल मैथ्यू की स्क्रिप्ट ऐसी थी कि आप मान गईं?
किसी ने नहीं. मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी और मेरा रोल बहुत मजेदार था. इसमें मैं एक साइंटिस्ट का किरदार निभा रही हूं, जो थोड़ी-सी पागल है. ऐसा किरदार मैंने पहले कभी नहीं किया. मैं करण से मिली, तो उन्होंने कहा कि मैं भी यह फिल्म प्रोड्यूस कर रहा हूं. तो मैंने कहा कि बहुत अच्छा और मैंने कर ली.

सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ अभिनय करने का अनुभव कैसा रहा?
बहुत अच्छा. पहले मुझे लगा था कि वह चुप रहेगा, इसलिए पता नहीं कि मेरी उसके साथ बनेगी या नहीं. लेकिन दो-तीन में वह मेरे साथ बहुत खुल गया. वो बहुत फ्रैंडली है, बहुत कूल एक्टर है. वह मुझसे काफी अलग है, थोड़ा चुपचाप रहता है, रिजव्र्ड रहता है. वह बहुत अमेजिंग को-एक्टर है. उससे सीखने को मिलता था कि कैसे फोकस रहते हैं.

सिद्धार्थ की फैन फॉलोइंग लड़कियों में कमाल की है. आपका दिल उन पर नहीं फिसला?  
हां, लड़कियों में उसकी फॉलोइंग बहुत ज्यादा है. मैं उससे कहती थी कि तुम बहुत हॉट हो, लेकिन मेरा दिल तुम पर नहीं फिसला. मुझे सिद्धार्थ बहुत हॉट लगता है, आदित्य और अर्जुन भी बहुत हॉट हैं. आई थिंक दे ऑल आर गुड लुकिंग बॉयज.

कैसे लडक़े  पर आपका दिल फिसलेगा?
यार, वो लडक़ा मिलेगा, तो दिल खुद ही फिसल जाएगा. मुझे नहीं पता चलेगा.

विनिल मैथ्यू की यह पहली पिक्चर है. उनके बारे में क्या कहेंगी?
विनिल अमेजिंग डायरेक्टर हंै. उन्होंने तीन सौ से ज्यादा एड फिल्म्स बनाई हैं. उनको बखूबी पता है कि एक्टर से परफॉर्मेन्स निकालने के लिए क्या कहना चाहिए. वो बहुत ब्यूटीफुल मोमेंट्स निकालते हैं. उनकी यूएसपी यही है.

मनीष शर्मा शाहरुख खान के साथ फिल्म बनाने जा रहे हैं. उनके साथ आपकी ऐसी दोस्ती तो है कि आप उनसे हक से कह सकती हैं कि यार, उसमें मेरा कुछ रोल होना चाहिए?
(हंसती हैं) अगर वो शाहरुख के साथ पिक्चर बना रहे हैं, तो मैं उनसे जाकर यह बोल सकती हूं कि यार, मनीष एक ऑडिशन तो ले ले मेरा. मनीष मेरा सबसे अच्छा दोस्त है. अगर उसे मैं उसकी फिल्म में चाहिए होऊंगी, तो वो खुद फोन करके बोल देगा कि हे, सुनो, मैं चाहता हूं कि तुम मेरी फिल्म में काम करो. मुझे उससे बोलना नहीं पड़ेगा.

अनुष्का शर्मा और प्रियंका चोपड़ा फिल्म प्रोडक्शन में आ रही हैं. आपकी भी ऐसी कोई प्लानिंग है?
फिल्म प्रोड्यूस करने के लिए मुझे बहुत सारा पैसा कमाना पड़ेगा. मेरी बहन को इंडस्ट्री में आए 12 साल हो गए हैं. अनुष्का को पांच साल हो गए हैं. उन्होंने अब इतने पैसे कमा लिए हैं कि वो फिल्म में इंवेस्ट कर सकते हैं. मुझे यहां आए अभी दो ही साल हुए हैं. देखेंगे, दो-तीन साल बाद.

आलिया भट्ट, श्रद्धा कपूर और इलियाना डिक्रूज में से आप किसे अपना प्रतिस्पर्धी मानती हैं?
सबको. हम सब एक ही तरह की पिक्चर के लिए कंसीडर किए जाते हैं. कंपीट करते हैं. यहां हर कोई कॉम्पिटिटर है.

आपकी बात से हम सहमत नहीं हैं? आपके रोल में श्रद्धा को कैसे इमैजिन किया जा सकता है?
यह एक अलग बात है कि कुछ रोल में आप किसी एक ही एक्ट्रेस को कंसीडर कर सकते हैं. लेकिन फिर भी हम सब एक ही उम्र की हैं और एक समय पर काम कर रही हैं, तो अगर मैं एक पिक्चर नहीं करूं, तो वह डेफिनेटिली इन तीनों में से किसी एक के पास जाएगी. या वो कोई पिक्चर छोड़ती हैं, तो वो मेरे पास आएगी. मुझे तो लगता है कि लड़कियां लडक़ों से भी कंपीट कर रही हैं. मतलब हम सब एक ही टाइम में काम कर रहे हैं, तो सब एक-दूसरे के लिए कंपीटिशन है.

स्क्रिप्ट लेवल पर अगर आपको कोई कंफ्यूजन होती है, तो आप किसे फोन करती हैं?
मनीष या आदि (आदित्य चोपड़ा) को. ज्यादातर मनीष को, क्योंकि वह मुझे अच्छी तरह से समझता है कि मैं क्या कर सकती हूं, क्योंकि मैं उसकी डिस्कवरी हूं. वह जानता है कि मेरा करियर कहां जा रहा है, किस तरह की फिल्में मेरे लिए अच्छी होंगी.

टीवी के लिए ऑफर आ रहे हैं?
अब तक कोई ऑफर नहीं आया है. अगर किसी अच्छे टीवी शो को होस्ट करने का ऑफर आया, तो जरूर करेंगे.

शुद्ध देसी रोमांस और इशकजादे में आपने किसिंग सीन किए थे. उस पर आपके परिजनों ने आपत्ति जताई?
मम्मी-पापा को हमेशा अजीब लगेगा कि मेरी बेटी किस कर रही है. लेकिन इशकजादे की कहानी ही ऐसी थी कि कोई मुझे रेप करके चला जाता है, तो उसमें दिखाना जरूरी थी. शुद्ध देसी रोमांस हार्मोनल लव के बारे में थी, तो कोई अट्रैक्ट होता है, तो फिर क्या होता है. उसमें भी किसिंग दिखाना जरूरी थी. अगर मुझे कोई डायरेक्टर बोले कि अरे यार, मेरी पिक्चर का बिजनेस बढ़ जाएगा, चलो एक किस डालते हैं, तो मैं नहीं करूंगी.


दोस्तों के बारे में परिनीती की राय

रणवीर सिंह
मुझे लगता है कि मैं बहुत एर्नजेटिक हूं, लेकिन उसके साथ होती हूं, तो वो एक स्टेप आगे होता है. वह एनर्जी का पिटारा है. मुझे बोलना पड़ता है कि तुम जरा शांत हो जाओ.

अर्जुन कपूर
मैं सबसे ज्यादा बात अर्जुन से करती हूं. वो मेरा सबसे करीबी दोस्त है. मैंने उसके साथ उसकी पहली पिक्चर की थी. एक तरीके से वह मेरी भी पहली पिक्चर थी.

सिद्धार्थ मल्होत्रा
वह कूल ड्यूड है. वो शांत मिजाज का है. उसे आप कभी गुस्से में नहीं देखेंगे. उसका हमेशा एक ही मूड रहता है. वह हमेशा शांत रहता है.

आदित्य रॉय कपूर
वह बहुत खुशमिजाज है. मैं उसे कभी आदि और कभी रॉय कपूर भी बुलाती हूं. उसे कुछ भी दुखी नहीं करता. वह हमेशा खुशी के साथ काम करता है.

Thursday, March 13, 2014

द पावरफुल देओल

सनी देओल जब पर्दे पर गुस्से से आग बबूले नजर आते हैं, तो दर्शक सीटियां और तालियां बजाते हैं और निर्माता खुशी से फूले नहीं समाते हैं. बॉक्स-ऑफिस के इस चहेते देओल से रघुवेन्द्र सिंह ने की मुलाकात 
सनी देओल सालों से सफलता-असफलता की आंख मिचौली का खेल खेलते आ रहे हैं, इसलिए उनकी फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर हो या हिट, उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहती है. उनका जादू दर्शकों पर बरकरार है. इसका ताजा उदाहरण है सिंह साब द ग्रेट. मगर निजी जीवन में वह सीधे-सादे और शर्मीले हैं. उनके अंदर एक बच्चा भी मौजूद है, जो शैतानियां करता रहता है. उन्होंने फिल्मफेयर को जुहू स्थित अपने ऑफिस सनी सुपर साउंड में आमंत्रित किया. जब हम पहुंचे, तो वह बैठकर समोसे और केक खा रहे थे. हमें ताज्जुब नहीं हुआ, क्योंकि देओल्स तो खाने-पीने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अभी-अभी अपने ऑफिस की एक स्टाफ का बर्थडे सेलिब्रेट किया. आज हमें पता चला कि उन्हें चेहरे पर केक लगाने का शौक है. इस तरह के मौके पर वह एक केक खास तौर से सबके चेहरे पर लगाने के लिए मंगाते हैं. बहरहाल, हम उनसे बतियाना शुरू करते हैं... 

हाल में सिंह साब द ग्रेट फिल्म में आप एक बार फिर धुंआधार एक्शन  करते दिखे. आप इस जॉनर को एंजॉय करते हैं?
बात काम की होती है. वह एक्शन हो, कॉमेडी हो, रोमांस हो, हम अपना काम कर रहे हैं. एक कहानी है, उसमें कैरेक्टर है, हमें उसे निभाना होता है. मैं उस कैरेक्टर को अपने अंदर खोजता हूं कि अगर मैं ऐसा होता, तो क्या करता. हर इंसान का दिमाग एक इनसाइक्लोपिडिया है. जब तक मैं किसी चीज को दिल में न बैठा लूं, मैं करता नहीं हूं. मेरे अंदर वह चीज जाएगी, तो ही मैं परफॉर्म कर पाऊंगा. मैं सुपरफिशियल परफॉर्मेन्स नहीं दे सकता. मैं जिस ढंग की एक्टिंग को मानता हूं, उसे मैंने आगे किया. आज जब मैं कहीं जाता हूं, तो कितने युवा आकर मुझसे अच्छी तरह मिलते हैं और कहते हैं कि सनी जी, मैंने आपकी वो पिक्चर देखी थी, उसमें चीजें इतनी अच्छी थीं कि मैंने उन्हें अपने जीवन में अपनाना शुरू कर दिया. तो मुझे अच्छा लगता है कि मेरी एक फिल्म से आदमी सही ट्रैक पर तो है.

अगर भ्रष्टाचार की बात करें, तो क्या आप जैसे एक स्टार का सामना भी इससे हुआ है?
हर आदमी को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है. किसी को छोटी करप्शन, तो किसी को बड़ी और किसी को बहुत बड़ी करप्शन का. हर जगह करप्शन है, तभी पैसे हर जगह जाते हैं. कुछ काम करवाना होता है, तो पैसे देने पड़ते हैं. मुझे तो किसी को पैसे देने में भी शर्म आती है. मुझे समझ में नहीं आता, जब लोग कहते हैं कि उसको पैसे दे दो, अगर काम करवाना है तो. मैं कहता हूं कि कैसे दूं, उन्हें कहीं बुरा न लग जाए. कितनी बार मैं चिढ़ता हूं कि मुझे नहीं देना है. तो मुझे वकील समझाते हैं कि आप नहीं देंगे, तो ये नहीं होगा. यह एक जबरदस्ती का फॉरमैट हो गया है.

लेकिन हम लोग चुपचाप इसे बर्दाश्त क्यों कर लेते हैं?
सिंह साब द ग्रेट का मकसद था कि बदला नहीं बदलाव. पहले अपने आप में एक बदलाव लाओ. जब आप नल बंद कर दोगे, तो पानी नहीं बहेगा. मैंने कहा कि चलो एक फिल्म करते हैं, जिसमें ऐसा कैरेक्टर प्ले करें, जिससे किसी को प्रोत्साहन मिले. हमने पॉलिटिशियंस के हाथ में अपनी जिंदगी दे दी है कि जो मर्जी हो, करो, हमें परवाह नहीं है.

मार-धाड़ करना जोखिम भरा काम है. ऐसे सीन करते समय आप किस तरह की सावधानी रखते हैं?
जब हम एक्शन करते हैं, तो उस वक्त सेफ्टी की जो सुविधा मौजूद होती है, उसे लेकर चलते हैं. लेकिन चोट ऐसी चीज है, जो हो जाती है. तभी हम उसे एक्सीडेंट कहते हैं. आज के जमाने में सेफ्टी बहुत है. पहले अस्सी या नब्बे के दशक में इतनी सेफ्टी नहीं थी. 2000 के बाद सेफ्टी आनी शुरू हुई है. पहले हमारे पास एयर बैगस नहीं थे, हम जानवरों के साथ पंगा लेते थे, चोटें खाते थे. जब बिल्डिंग से छलांगें मारते थे, तो नीचे गद्दे रखे होते थे, उसी पर छलांगें मार देते थे. अब हमारे पास केबल हैं, एयर बैगस हैं, तो हम उस पर सॉफ्टली लैंड करते हैं.

परिजनों ने कभी कहा कि आप इस तरह का जोखिम भरा काम न करें?
बिल्कुल. वो कभी नहीं चाहते थे कि मैं स्टंट करूं. लेकिन अब काम है, तो करना ही पड़ता है. मैं शुरू से स्पोर्ट्स में रहा हूं, तो ये मुझे खेल की तरह लगता है. बेताब में घुड़सवारी का एक सीन था. उस सीन की शूटिंग के वक्त घोड़ा तंग कर रहा था, तो हमारे जितने भी एक्शन मास्टर और एक्शन डुप्लीकेट थे, उनसे हो नहीं रहा था. हमारे अरेंजर्स में एक-दो विदेशी भी थे, उनसे भी नहीं हो रहा था. मैंने कहा कि मैं करके देखूं? मैं बैठ गया घोड़े पर, तो गिरा ही नहीं. वहां से मेरी एक्शन की जर्नी शुरू हुई. फिर मैं चलता ही गया. मैं कहीं रूका नहीं. मैंने सीखा कुछ नहीं था. स्पोर्ट्समैन में एक स्फूर्ति होती है. हमें चोट लगती है, तो हम रूकते नहीं हैं. मुझे कई बार चोटें लगीं और फिर बाद में, बैक की प्राब्लम आने लगी. बैक से मैं तबसे लड़ रहा हूं. मेरे चार ऑपरेशन हो चुके हैं बैक के. लेकिन अब आदत-सी हो गई है. मैं किसी चीज को कमजोरी नहीं बनाता. भगवान ने मेरे अंदर एक शक्ति दी है कि किसी चीज के सामने मैं हार नहीं मानता.

देओल परिवार खाने-पीने के लिए जाना जाता है. फिर आप अपने आपको फिट कैसे रखते हैं?
हम पहले खाते हैं, फिर ज्यादा एक्सरसाइज कर लेते हैं या खेल लेते हैं, तो बर्नआउट हो जाता है. मैंने एक-दो बार कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन वो डिसिप्लीन हो नहीं पाता. मैं एक्सरसाइज ज्यादा कर लेता हूं. आजकल के ज्यादातर लोग स्ट्रिक्ट डायट फॉलो करते हैं. वो अच्छी चीज है, पर मैं उस ढंग से नहीं करता. 

फिल्मों में हम आपको अक्सर गुस्सा होते देखते हैं, लेकिन क्या रियल लाइफ में आप गुस्सा होते हैं?
(हंसते हैं) गुस्सा आता है. यह तो एक इमोशन है. जब चोट लगती है या जब किसी चीज पर चिढ़ जाता है आदमी, जब थका हो, तो गुस्सा आता ही है. हां, बगैर वजह के मुझे गुस्सा नहीं आता.

प्रीमियर या पार्टी को लेकर क्या आपको एक्साइटेड होती है?
मैं तो इन चीजों से भागता हूं (हंसते हैं). अगर आप खुद स्क्रीनिंग रखते हैं, तो जाना पड़ता है. मुझे पार्टीज का शौक होता, तो मैं जरूर जाता. थोड़ा दारू पीता और बहक जाता. मैं ये सब चीजें नहीं करता, इसलिए नहीं जाता. जिस तरह से मैं अपना जीवन जी रहा हूं, उसमें मुझे बहुत खुशी है. ऐसी जगहों पर फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से मिलना-जुलना होता है. लेकिन हम कभी नहीं चाहते हैं कि किसी का भला हो, क्योंकि हम डरते हैं दूसरों के भले से कि कहीं उसके भले के साथ हमारा नुकसान न हो जाए. अफसोस कि हमारी इंडस्ट्री ऐसी है. 

क्या आपको इस बात का दुख है कि आप जिस इंडस्ट्री का हिस्सा हैं, वहां लोग ऐसी सोच रखते हैं?
हमारे पूरे देश की सोच ऐसी है. हर फील्ड में यही हाल है और इंडस्ट्री अलग नहीं है. आजकल पेज 3 पार्टी में हर कोई जाता है, हर आदमी सोचता है कि उसकी फोटो आ जाए. और इसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार हैं. ऑडियंस जानती है कि मैं कुछ बुराई करूंगा, तो मैं भी टीवी पर आ जाऊंगा. रियलिटी शो पर चला जाऊंगा. पूरे देश का जीवन जीने का यह तरीका बन गया है.

आप एक साफ दिल और नेक इंसान हैं, लोग आपसे जुड़ाव महसूस करते हैं, लेकिन आप सबसे दूर क्यों रहते हैं?
हर कोई इंसान है और इंसान गलतियां भी करता है. लेकिन हमारी कोशिश होती है कि हम किसी को चोट न पहुंचाएं. अगर हमसे कोई गलती होती है, तो हम मान लेते हैं कि हमसे गलती हुई है. हम अपने आप पर ही हंसते हैं. हमें किसी चीज पर शर्म नहीं है. हम वही करते हैं, जो करना हमें अच्छा लगता है. तभी मैं किसी को फॉलो नहीं करता, क्योंकि हर इंसान ऐसा ही है. 

सालों से इंडस्ट्री में होने के बावजूद आप पर इसका रंग क्यों नहीं चढ़ा?
हम ऐसे ही हैं और एक इंसान को ऐसा ही होना चाहिए. हम हर आदमी को अपने जैसा समझते हैं. हम हर आदमी पर भरोसा कर लेते हैं, क्योंकि भरोसे से ही काम होता है. यह सोच हमें परिवार से मिली है. मेरी जॉइंट फैमिली है. पापा ज्यादा काम करते थे, तो मैं ज्यादातर समय अपनी बीजी, मम्मी या आंटी के साथ होता था. बचपन में उन्होंने जो बातें कही होंगी, वह दिमाग में रह जाती हैं. उसका मतलब हमें बाद में समझ में आता है और जब कुछ घटना घटती है, तब वो बात याद आती है.

आपके बच्चों में भी ऐसे ही संस्कार और सोच है, ऐसा हमने सुना है.
जैसे हम लोग पले हैं, वो भी उसी ढंग से पले हैं. हमारे जो विचार होंगे, वही हमारे बच्चों के भी विचार होंगे. जैसे- हमने उनको शिक्षा दी है कि इज्जत से बात करो, तो वह वो दिमाग में रखते हैं. अब घर में फादर, ग्रैंड फादर सब लोग उसी बात को फॉलो करें, तो माहौल ही वैसा हो जाता है. आप सीखा नहीं रहे होते हैं, आदमी उसमें पलते-बढ़ते सीख जाता है.

आप इस वक्त ज्यादा एक्सपेरिमेंट करने के मोड में दिख रहे हैं. आपने मोहल्ला अस्सी की, फिर आई लव न्यू ईयर की. आप अपनी सीमाएं तोडऩे के लिए ओपन हैं?
मैं हमेशा से ओपन था. बेताब के बाद मैंने अर्जुन की. उस वक्त ऐसी फिल्म कोई नहीं करता था. मैंने यतीम की, डकैत की, वो भी लोग नहीं करते थे. मैंने हमेशा नए लोगों के साथ काम किया,क्योंकि उनमें एक जोश होता है, एनर्जी होती है, जो मुझमें भी है. चाहे मैं सौ फिल्में कर लूं, लेकिन मेरे अंदर वही एनर्जी रहेगी. कोई चीज परफेक्ट नहीं होती. आप परफेक्ट कैसे बोल सकते हो? क्रिएटिविटी क्या होती है? जब हम कोई चीज शुरु करते हैं, तो हमें पता नहीं होता कि वह कहां तक जाएगी. उसमें मजा आता है, मुझे अच्छा लगता है कि मैं मॉनीटर नहीं देखूं. मैं डायरेक्टर को देखता हू, अगर उसने कह दिया ओके, तो मैं उसकी आंखें देखता हूं, तो सोचता हूं कि चलो, एक और कोशिश करता हूं. उस ढंग से मजा आता है.

मोहल्ला अस्सी का कैसा अनुभव रहा? इसकी रिलीज में देर क्यों हो रही है?
यह बहुत ही अच्छी फिल्म है. जल्द रिलीज होगी. यहां हर फिल्म की किस्मत पिछली फिल्म तय करती है. यह बहुत गंदी रियलिटी है, क्योंकि आज के जमाने में लोग एक्टिंग के भरोसे नहीं चल रहे हैं, एक प्रोडक्ट के भरोसे पर चल रहे हैं. कितनी पिक्चरों ने साबित भी कर दिया है कि वो खराब होती हैं, लेकिन उनकी हाइप ऐसी क्रिएट कर देते हैं कि लोग जाकर टिकट खरीद लेते हैं और आधी पिक्चर छोडक़र आ जाते हैं. वो पिक्चरें ऐसा बिजनेस करती हैं कि हर आदमी वैसा बिजनेस चाहता है. कोई यह नहीं चाहता कि अच्छा सिनेमा बनाकर वह बिजनेस हासिल करूं. वो चाहता है कि ये तरीके अपनाकर के मैं भी पैसे ला सकता हूं. उस वजह से हमारे जितने भी बड़े एक्टर हैं, जिनकी पहचान ऐसी है कि वह किसी भी बजट की फिल्म कर सकते हैं, उनमें ऐसी हिम्मत नहीं है, पैशन नहीं है. काश, ये पैशन होता, तो बहुत अच्छा हो सकता है. आप अच्छा करोगे, तो सक्सेज मिलेगी, फिर पैसा खुद-ब-खुद आएगा, पर अगर आप पैसे को टारगेट कर रहे हो और कंप्रोमाइज कर रहे हो, तो बात वही हो जाती है कि एक्टर नीचे रह गया और आपकी बाकी क्रिएटिविटी ऊपर चली गई.

आपको नहीं लगता है कि इंडस्ट्री ने आपको एक ही खांचे में ढाल दिया और फिर उसी में बार-बार दोहराती रही?
हमें एक ऐसा एक्टर बता दो, जो बिना किसी इमेज के चल रहा हो. हर स्टार इमेज के साथ चल रहे हैं और वो उस इमेज को लेकर इतने इनसिक्योर हैं कि डरते हैं कि कोई नया आकर ले न ले. वो कोई भी रोल करते हैं, पर लौटकर उसी इमेज में आ जाते हैं. मैंने अपनी कितनी पिक्चरें देखी नहीं हैं, वरना मैं आपके साथ उनके बारे में डिबेट कर सकता था. हां, जैसे मोहल्ला अस्सी और आई लव न्यू ईयर जैसी फिल्म पहले मुझे नहीं मिलती थीं. अगर मिली होतीं, तो मैं जरूर करता. अगर मैं दामिनी जैसी एक वूमन ओरिएंटेड फिल्म कर सकता था, तो मैं ये सब भी कर सकता था. पापा ने ऐसी-ऐसी फिल्में की हैं, जो किसी एक्टर ने नहीं किए हैं. वो सब कैरेक्टर्स में हिट रहे हैं. कोई ऐसा एक्टर नहीं है, जिसने इतनी वेरायटी के कैरेक्टर किए और उसकी फिल्में हिट रही हों. दूसरे एक्टर भी तो उस वक्त मौजूद थे, वो नहीं कर पाए. कितनी बार मैं सोचता हूं कि काश, मैं उस जमाने में रहा हंोता. क्योंकि निर्देशक और कहानियां इतनी खूबसूरत थी. अफसोस कि आज के नए एक्टर शिक्षा बहुत देते हैं. मगर लोगों में खोखलापन बहुत है. उनमें इतना टैलेंट नहीं है, जितना वो बात करते हैं. जिसके पास टैलेंट होता है, वह बात नहीं करता. क्योंकि उसका टैलेंट बात करता है.

हां, धरम जी की सत्यकाम के बारे में बहुत कहा जाता है.
मैं भी सत्यकाम का जिक्र कर रहा हूं, लेकिन पापा की फूल और पत्थर देखी है किसी ने? आप वह फिल्म देखिए. उसी फिल्म से एक्शन का दौर शुरू हुआ हिंदी फिल्मों में. उससे पहले एक्शन नहीं था. वह क्लासिक फिल्म है. सौ सप्ताह चली थी वह. उसी से एक स्टाइल बना. उसमें पापा ने शर्ट उतारी थी. लेकिन वह ये सब दिखा नहीं रहे थे. वह कैरेक्टर थे.

क्या आपको अपने करियर की बेस्ट फिल्में मिल चुकी हैं, जिनके बारे में लोग पचास साल भी बात करेंगे?
मैं लकी रहा हूं अपने कई समकालीन कलाकारों की तुलना में कि मैंने ढेर सारी ऐसी फिल्में की हैं, जिनका जिक्र लोग करते रहते हैं. आज यूट्यूब पर पर मैं उन फिल्मों को देखता हूं, तो सोचता हूं कि हां, मैं इसमें अच्छा तो था. ऐसे क्यों नहीं सोचता था. अर्जुन, बेताब, यतीम, डकैत, घायल, जीत, जिद्दी, बॉर्डर, गदर और भी कई सारी फिल्में थीं. ये आज भी सैटेलाइट पर खरीदते हैं लोग. आज भी मेरे डायलॉग लोग बोलते हैं, जबकि उन्हें करते वक्त हमने सोचा भी नहीं था कि इतने पॉपुलर हो जाएंगे.

आपका सबसे पॉपुलर डायलॉग है ढाई किलो का हाथ... इससे जुड़ा कोई किस्सा शेयर करना चाहेंगे?
मुझे लगता है कि क्यों लोग उसे पकडक़र बैठे हैं. हमें कभी नहीं पता होता कि कौन से डायलॉग लोग उठा लेंगे. मुझे अगर कोई सीन दे और कहे कि देखना, इसे लोग पसंद करेंगे, तो मैं कहता हूं कि मुझे वह सीन ही नहीं करना है. घायल ले लीजिए. हम और राज लड़ते रहते थे कि ये सीन अच्छा नहीं हुआ. पिक्चर खत्म हो गई. सेंसर हो गई. काट-पीट हो गई. मीडिया ने वो फिल्म देखी. उसके बाद हमारी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. उस समय इरॉज में फिल्म दिखाया करते थे. मैं निर्माता के तौर पर जा रहा था. मैं सोच रहा था कि मीडिया वाले पता नहीं क्या बोलेंगे. मैंने राज से कहा कि तुम बात करना. मुझसे नहीं होगा. लेकिन जैसे ही हम अंदर गए, मीडिया खड़ा होकर तालियां मारने लगा. हमें समझ में नहीं आया कि हमने ऐसा क्या ॠॠॠॠकर दिया है. उस चीज का मजा है. जब लोग शाबाशी दें, तब उसका मजा है.

क्या आपको लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री आपकी अभिनय प्रतिभा का संपूर्ण इस्तेमाल नहीं कर सकी?
बहुत वक्त है अभी. करेंगे. मुझे ऐसी कोई शिकायत नहीं है. जो समाज है, उसी में हमें जीना है, तो चिढक़र जीने से क्या फायदा है. गुस्से से जीने से क्या मतलब है. कितने सारे लोग हैं, बेचारे जिनको उतना भी नहीं मिलता, जितना मुझे मिला है. तो उसको देखकर आगे चलो.

आई लव न्यू ईयर में आप अपनी इमेज के विपरीत दिख रहे हैं. उसके बारे में कुछ बताएं.
बहुत ही प्यारी फिल्म है. एक साल हो गया, हम उसे बनाकर बैठे हैं. राधिका-विनय सप्रू ने मुझे कहानी सुनाई, वह मुझे तुरंत अच्छी लगी. उस वक्त टी-सीरीज ने उसे सपोर्ट किया और हमने बना ली. कैरेक्टर इतना अच्छा है. आज के जमाने में लोगों ने नाम दे दिया है- रॉम-कॉम. बस उस ढंग की फिल्म है. मैंने इस फिल्म में काम करते वक्त बहुत एंजॉय किया. पिक्चर प्यार की कहानी है. प्यार की कोई वजह नहीं होती, उम्र नहीं होती, प्यार बस हो जाता है. इसमें एक आदमी है, जो लेट फोर्टीज में है, वह कमिटमेंट से डरता है, क्योंकि वह फादर के साथ रहता है. उसे लगता है कि अगर लडक़ी के साथ हो गया, तो मैं क्या करूंगा. यह एक दिन-एक रात की कहानी है.

कंगना रनौट के बारे में आपकी क्या राय है? कैसा अनुभव रहा आपका?
वह बहुत अच्छी एक्ट्रेस हैं. हमारी केमिस्ट्री बहुत अच्छी है फिल्म में. गाने में आपने देखी होगी.

आपके हिसाब से क्या वजह रही कि यमला पगला दीवाना 2 को दर्शकों ने पहले पार्ट जैसा प्यार नहीं दिया?
मैं कभी बैठकर वजहें सोचता नहीं हूं. अगर वजह के बारे में सोचेंगे, तो दुख होगा. हम लोग आगे बढऩे में विश्वास करते हैं. हमने मेहतन की थी, प्रमोशन भी अच्छा किया था, लेकिन हमारी प्रमोशन काम नहीं आई. ट्रेलर में गलती थी शायद. लोगों को पसंद नहीं आए.

दिल्लगी (1999) के बाद आपने दोबारा निर्देशन क्यों नहीं किया?
मैं घायल रिटन्र्स डायरेक्ट करने जा रहा हूं. मैं डायरेक्टर ऐसे ही बना था. कहीं मुसीबत में फंस गया था, तो डायरेक्टर बन गया. मेरी ट्रेनिंग नहीं हुई थी. काफी लोगों ने कहा कि दिल्लगी अच्छी फिल्म थी. ज्यादा चली नहीं, लेकिन उसने अपना बिजनेस किया था. आज भी मैं कहीं जाता हूं तो यंगस्टर्स मुझसे कहते हैं कि दिल्लगी प्यारी थी, अपने समय से आगे की फिल्म थी. आप अगली पिक्चर क्यों नहीं बना रहे हैं.

आपके पापा धर्मेन्द्र आज भी सक्रिय हैं. आप उनसे कहते नहीं हैं कि पापा, अब आप आराम कीजिए?
जो काम करना पसंद करता है, जिसे काम की लगन है, वो काम नहीं करे, तो उसे आराम नहीं मिलता. पापा के लिए काम ही आराम है.

नए फिल्मकारों- जैसे अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी, दिबाकर बनर्जी आदि. इन लोगों के साथ काम करने का संयोग नहीं बन रहा है?
क्या होता है कि जब डायरेक्टर स्ट्रगल कर रहा होता है, तब वह कुछ करना चाहता है, लेकिन जब वह किसी मुकाम पर पहुंच जाता है, तो उसकी सोच बदल जाती है. फिर उनको केवल एक तरह का सिनेमा कमर्शियल लगता है, एक तरह के एक्टर्स कमर्शियल लगते हैं. पहले भी मैं किसी डायरेक्टर के पास काम मांगने नहीं गया. मेरी जितनी भी फिल्में हुई हैं, वहां से डायरेक्टर बने हैं.


मेरा बेटा...
पापा और हम सबका मानना है कि बच्चा वही करे, जो वह करना चाहता है. और वह जो भी करे, उसमें उसे सफलता मिले. पर सफलता तभी मिलेगी, अगर उसमें हुनर होगा और वह मेहनत करेगा. करण अभिनय करना चाहते हैं. उन्हें हमें लॉन्च करना है. पर अब तक हमने लॉक नहीं किया है कि उनकी पहली फिल्म कौन-सी होगी और उसे कौन निर्देशित करेगा. करण की खासियत के बारे में क्या कहूं! मुझे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि मैं एक्टर बनूंगा. मुझे नहीं पता था कि मेरी खासियत क्या है. मेरे अंदर जज्बा था, जो हर आदमी के अंदर होना चाहिए. वही आगे लेकर जाता है. मेरी और करण की फिल्म अगर आमने-सामने होगी, तो क्या हुआ! जब पापा की फिल्में चल रही थीं, तब मैं आया था. मेरी फिल्म बेताब लगी थी और पापा की फिल्म नौकर बीवी का लगी थी. दोनों फिल्में चली थीं. हमें काम करते रहना चाहिए. सोचना नहीं चाहिए. 
साभार: फिल्मफेयर






Tuesday, March 11, 2014

ऑन द सेट्स- बॉबी जासूस

दास्तान-ए-इश्क
विद्या बालन और अली फजल के बीच हैदराबाद में बॉबी जासूस के सेट पर इश्क के बेइंतेहा खूबसूरत लम्हे कायम हुए और उनके गवाह बनकर लौटे हैं रघुवेन्द्र सिंह  
निर्माता- दिया मिर्जा और साहिल सांघा (बॉर्न फ्री एंटरटेनमेंट)
निर्देशक- समीर शेख
कलाकार- विद्या बालन, अली फजल, सुप्रिया पाठक, तन्वी आजमी, अर्जन बाजवा
संगीत- शांतनु मोइत्रा
गीत- स्वानंद किरकिरे
कोरियोग्राफर- बंृदा
लोकेशन- कुतुब शाही टॉम्ब, हैदराबाद


कहानी
बॉबी (विद्या बालन) हैदराबाद की तीस साल की एक लडक़ी है. वह अपने अब्बा की तीन बेटियों में सबसे बड़ी है. अब्बा को उसके निकाह की फिक्र है, लेकिन बॉबी किचन में बंधकर नहीं रहना चाहती. वह जासूस बनना चाहती है. उसका मकसद है कि एक दिन वह हैदराबाद की नंबर वन जासूस बने. उसे अपनी जिंदगी बदलकर रख देने वाले केस का बेसब्री से इंतजार है.
कुतुब शाही टॉम्ब्स का वीराना मंजर गुलजार हो उठा, जब लोगों को इस बात की भनक लगी कि यहां विद्या बालन अपनी फिल्म बॉबी जासूस की शूटिंग कर रही हैं. उनके दीदार के लिए हुजूम उमड़ पड़ा, मगर जनता को इस बात का इल्म नहीं था कि विद्या एक टॉम्ब की चहारदीवारी के भीतर अपने माशूक से इश्क फरमा रही हैं. निर्माता साहिल सांघा हमें अंदर लेकर गए, तो हम सैकड़ों दीयों से रौशन दिलकश नजारा देखकर बेबाक रह गए. ट्रेडिशनल पाकिस्तानी लिबास- काले अनारकली और एजार पैंट्स में विद्या अपने हुस्न से कहर बरपा रही थीं, तो अली फजल नवाबी लिबास कुर्ता-पायजामा और सदरी में लाजवाब लग रहे थे. शांतनु मोइत्रा की धुन, स्वानंद किरकिरे के अल्फाज और पापोन के सुरों से सजे उल्फत के गीत तू मेरा अफसाना, तू मेरा पैमाना... ने माहौल को किसी ख्वाब सा बना रखा था. कोरियोग्राफर बंृदा के एक्शन बोलने के बाद विद्या और अली के बीच इश्क में छेडख़ानी का सिलसिला चल पड़ा. हम फटी आंखों से दोनों को एक-दूसरे की बांहों में कभी सिमटते, तो कभी छेडख़ानियां करते देख रहे थे. अचानक अली के कदमों से विद्या का दुपट्टा दब गया और वह डगडमा गईं. अली ने फौरन उन्हें संभाला. फिर दोबारा शॉट लेने की तैयारी शुरू हो गई.
दिया से हम रू-ब-रू हुए, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, देखो, दिया यहां दीए जला रही है. और फिर वह खिलखिलाकर हंस पड़ीं. बॉबी जासूस की पहली तस्वीर हमें याद है, जिसमें विद्या भिखारन के रूप में थीं. यहां उन्हें बेइंतेहा खूबसूरत अंदाज में देखकर हम उलझन में पड़ गए. दिया ने इसे सुलझाते हुए बताया, विद्या के इस फिल्म में कई लुक हैं, क्योंकि वह एक जासूस बनी हैं. मगर फिलवक्त हम जो गीत शूट कर रहे हैं, वह एक ड्रीम सीक्वेंस है. लाजमी है कि यह सब किसी के दिमाग में चल रहा है और वह जानने के लिए आपको इंतजार करना होगा. हम बात तो दिया से कर रहे थे, मगर हमारी नजरें मुड़-मुडक़र विद्या-अली की ओर जा रही थीं, जो अभ्यास कर रहे थे. शॉट लेने के लिए सिनेमैटोग्राफर विशाल सिंह तैयार थे. दिया ने तमिल में सबको फ्रेम से बाहर निकलने की गुजारिश की. स्टाइलिस्ट थिया दौडक़र विद्या का लिबास सही करती हैं. मेकअप आर्टिस्ट टचअप देने में मशगूल होता है और विद्या खुद में गुम उंगलियों पर स्टेप्स याद कर रही होती हैं. अली-विद्या कैमरे के सामने आते हैं, लेकिन शॉट के अंतिम पलों में दोनों का आपसी तालमेल बिगड़ जाता है. बंृदा उनकी तारीफ करके हौसलाअफजाई करती हैं.
विद्या को भूख महसूस होती है. वह खाने के लिए कुछ देने की गुजारिश करती हैं. अली फौरन चॉकलेट मंगवाते हैं, मगर फिलहाल विद्या अपने खाने-पीने पर काबू रखे हुए हैं. वह चॉकलेट खाने से इंकार कर देती हैं. निर्देशक समर शेख उनके सामने विकल्प रखते हैं- चाय, कॉफी? विद्या पानी से ही काम चला लेती हैं. आठवें टेक में यह शॉट मुकम्मल होता है और तालियों की गडग़ड़ाहट से टॉम्ब गूंज उठता है. विद्या और अली बेहद खुश होते हैं. दिया गंभीरता से कहती हैं, एक शॉट लेने में कितनी मेहनत और वक्त लगता है, लेकिन जब हम फिल्म देखते हैं, तो बेरहमी के साथ उसे बुरा कहकर खारिज कर देते हैं. साहिल आकर विद्या से कहते हैं कि वह दो मिनट के लिए बाहर आ जाएं, क्योंकि उनके फैंस उन्हें देखना चाहते हैं. हम अली से विद्या के साथ उनके लाजवाब तालमेल का रहस्य बारे में पूछते हैं. हमने शूटिंग पर आने से पहले मुंबई में दस दिन की वर्कशॉप की थी. उससे बहुत मदद मिली. अली ने बताया. अपने किरदार के बारे में उन्होंने बताया, मैं इसमें तसव्वुर का किरदार निभा रहा हूं. बॉबी और तसव्वुर का ट्रैक बहुत मजेदार है. इसी बीच दिया आईं और उन्होंने बताया कि विद्या के साथ शॉट देने के बाद अली ने अपनी मम्मी को फोन करके कहा था कि मम्मी, अब मैं स्टार बन गया. और उन्होंने कहा कि हमने कई लडक़ों का ऑडिशन लिया था, लेकिन हमें एक नया चेहरा चाहिए था. अली में स्टार वाली बात है. यह अली की लॉन्च फिल्म की तरह है.
शाम के साढ़े सात बज चुके हैं. अब साहिल और दिया के चेहरे पर परेशानी नजर आती है. अभी दो शॉट बाकी हैं और उन्हें नौ बजे तक इस जगह से निकलना है. अब लोकेशन बदल चुकी है. रौशनी में नहाए एक टॉम्ब के सामने लाल लहंगे में विद्या और सफेद शेरवानी में अली एक-दूसरे की खूबसूरती में इजाफा करते दिख रहे हैं. इस शॉट में अली को विद्या को हवा में उठाकर स्पिन करना है. सब हैरत में हैं कि दोनों यह शॉट कैसे करेंगे. मगर सात रिटेक के बाद विद्या-अली यह शॉट करने में कामयाब होते हैं. विद्या खुशी के मारे तालियां बजाने लगती हैं और अपने सह-कलाकार को गले से लगा लेती हैं. अगला दृश्य और मुश्किल है, क्योंकि वक्त कम है और इसमें अली को विद्या के ऊपर झुककर उनके चेहरे और गले पर उंगलियां फेरनी है और विद्या को प्यार से उनकी छेडख़ानी को रोकना है. इस शॉट में दिया खुद ब्लोइंग फैन लेकर तैनात रहती हैं. महज एक टेक में यह शॉट मुकम्मल हो जाता है. विद्या से हम ऐसे सीन के दौरान एक कलाकार की दिक्कत और झिझक के बारे में पूछते हैं, पहले होती थी थोड़ी-बहुत परिणीता के वक्त. एक एक्टर की सबसे बड़ी ताकत होती है- बेबाकी, बेशर्मी और बेझिझक. बेशर्मी जरूरी होती है, क्योंकि सौ लोगों के सामने आपको रोना, हंसना, गिरना, उठना पड़ता है. पिछले पांच-छह सालों में मुझसे जिस तरह का काम हुआ है, वो इसीलिए हुआ है, क्योंकि मुझमें एक बेशर्मी आ गई है. किरदार के लिए जो सही है, मैं वह करूंगी.
दक्षिण भारतीय फिल्मों की जानी-मानी कोरियोग्राफर बंृदा का यह विद्या के साथ पहला अनुभव है. पहली दफा में ही वह उनकी मुरीद बन गई हैं. बकौल बंृदा, मेरे हिसाब से विद्या को परफेक्शन, सिंप्लिसिटी और डाउन टू अर्थ होने के लिए पुरस्कार मिलने चाहिए.  शॉट रेडी होने के बाद जब तक हम नहीं बोलते हैं, कॉल द आर्टिस्ट, तब तक कोई आता नहीं है, लेकिन विद्या वक्त से पहले ही सामने होती हैं. यह गाना शूट करना बहुत मुश्किल था, क्योंकि यह डांस नंबर नहीं है. यह एक ट्रेडिशनल मुस्लिम गाना है और हमारे पास केवल दो दिन थे, जिसमें इसे खत्म करना था. मगर विद्या और अली के समर्पण की वजह से यह मुमकिन हो सका. विद्या आकर बंृदा को गले लगाती हैं और बॉबी जासूस की टीम को शुक्रिया अदा करती हैं. फिर विद्या और अली होटल के लिए रवाना हो जाते हैं और दिया-साहिल अगले दिन के शूट के बारे में निर्देशक समर शेख से चर्चा करने के लिए ठहरते हैं. हम भी इन खूबसूरत यादों को समेटकर लौट पड़ते हैं.

बॉबी जासूस से संबंधित रोचक तथ्य
- बॉबी जासूस की कहानी पहले मुंबई में सेट थी. हैदराबाद में एक प्रवास के दौरान दिया को इसकी कहानी अपने होम टाउन में शिफ्ट करने का विचार सूझा. लेखक समर और संयुक्ता को यह खयाल बहुत अच्छा लगा.
- बॉबी जासूस के लिए विद्या बालन ने हैदराबादी जुबान पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत की. पहली बार वह इसमें हैदराबादी लहजे में संवाद बोलती दिखेंगी.
- दिया, साहिल और बृंदा ने तू मेरा अफसाना... गीत पर दो महीने पहले काम शुरू कर दिया था. दिया ने गीत के लुक में फोटोशूट करवाया. पीपीटी तैयार की और फिर उसे डिजाइनर अंकिता डोंगरे को भेजा, ताकि वह कॉस्ट्यूम बना सकें.
साभार: फिल्मफेयर

Monday, March 10, 2014

हां, मैं सबसे सेक्सी हूं! कंगना रनौट

कंगना रनौट अपने होम टाउन की यादें, बचपन की फैंटेसी और फिल्म स्टार के जीवन के खोखलेपन के बारे में रघुवेन्द्र सिंह को बता रही हैं
कंगना रनौट दुनिया की परवाह नहीं करती हैं. वह अपने विचारों को बेलाग-लपेट ईमानदारी से रखती हैं, इसीलिए उनकी बातें सुनने में मजा आता है. वह एक कृत्रिम दुनिया का हिस्सा जरूर है, लेकिन वह उसमें केवल एक्शन और कट के बीच जीती हैं. वह हर चीज को हकीकत के तराजू पर तौल कर देखती हैं और हमेशा अपने व्यक्तित्व के विकास के बारे में सोचती रहती हैं. अंग्रेजी भाषा उनकी कमजोरी थी, लेकिन आज वह शुद्ध अंग्रेजी में बात करके लोगों को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देती हैं. हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे मंडी से निकलकर उन्होंने शानदार अभिनेत्री के साथ-साथ, फैशन आइकॉन का दर्जा भी हासिल कर लिया था. उनकी यह बातें प्रेरित करने वाली हैं. और जबसे आमिर खान ने कॉफी विद करण शो में उन्हें सबसे सेक्सी एक्ट्रेस कहा है, तबसे यह टैग भी उनके साथ जुड़ गया है. कंगना हंसते हुए कहती हैं, ''आमिर ने गलत क्या कहा है! मैं हूं सबसे सेक्सी."
पढि़ए कंगना से यह दिलचस्प बातचीत, जिसमें उन्होंने खुलासा किया है कि उन्हें हमउम्र कलाकारों के साथ वीडियो गेम्स खेलना अच्छा नहीं लगता, बल्कि आमिर खान और सलमान खान के साथ मेच्योर बातें करना भाता है...  

अभिनय के बाद आपने लेखन किया और अब फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी जा रही हैं. क्या यह सब सुनियोजित ढंग से हो रहा है?
नहीं, इतनी क्लैरिटी किसी को भी नहीं हो सकती कि इतने साल के बाद मैं ये-ये करना चाहती हूं. वक्त के साथ-साथ मैं भी चीजें सीख रही हूं. मेरे अंदर यह चीज बचपन से है कि मैं किसी जगह पर आकर कंफर्टेबल नहीं हो जाती हूं कि चलो, अब सब ठीक है, सब अच्छे से हो ही रहा है. मैं हमेशा सोचती रहती हूं कि क्या नया सीखूं. मैं अपने कंफर्ट जोन से हमेशा बाहर जाना चाहती हूं. अभी मैं न्यूयॉर्क में अकेले रहूंगी, अपना खाना बनाऊंगी, कपड़े धोऊंगी, कॉलेज जाऊंगी. मुझे इन चीजों से डर नहीं लगता है. मुझमें यह एक स्प्रिट है, जो मुझे हमेशा कुछ नया अनुभव कराती है. कई बार यह अनुभव खराब होता है और कई बार अच्छा होता है. जबकि मैं कई लोगों को जानती हूं, जो अपने कंफर्ट जोन से निकल ही नहीं पाते हैं. 

आपको फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
मेरे पास ऐसा कोई ठोस प्लान नहीं है कि डिग्री लेने के बाद मैं कुछ करूंगी. मेरी लाइफ यहां पर थोड़ी-सी मोनोटनस हो गई थी- फिल्में, प्रमोशन, फिर फिल्में, प्रमोशन. इसके अलावा लाइफ में कुछ है ही नहीं. कई सालों से आप यही काम कर रहे हैं. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एक जगह पर कहीं ठहर-सी गई हूं. मेरी जिंदगी आगे नहीं बढ़ रही है. इसलिए मैंने सोचा कि एक नए देश में जाएंगे, एक अलग कल्चर को जानेंगे... यह कोर्स तो एक बहाना है. मेरे लिए यह एक अलग अनुभव होगा.

कहा जाता है कि एक्टर अपनी एक जिंदगी में कई जिंदगियां जीता है और आप कह रही हैं कि आपकी लाइफ मोनोटनस हो गई थी?
एक एक्टर अपनी जिंदगी में कई जिंदगियां जी लेता है, लेकिन असल में तो आप एक ही जिंदगी जी रहे हैं. आप लोगों को एंटरटेन कर रहे हैं. सलीम अंकल (खान) ने एक बार मुझसे कहा था कि आर्ट इज नरर्चड इन लोनलिनेस एंड एक्जीबिटेड इन क्राउड. वह बात सच है. आप दर्शकों को हमेशा देते रहते हैं, लेकिन आपको कुछ मिलता नहीं है. आप किसी को नहीं देख सकते, लेकिन सब आपको देख सकते हैं. आप किसी से बात नहीं कर सकते, मगर सब आपको सुन सकते हैं. आप कुछ ऑब्जर्व नहीं कर सकते, कुछ नया नहीं सीख सकते. आप एक ऑब्जेक्ट बनकर रह जाते हैं, सब्जेक्ट नहीं बन पाते हैं. इस चीज को तोडऩे के लिए मेरा यह एक प्रयास है. पता नहीं कि मेरा वहां पर क्या एक्सपिरिएंस होगा. अगर मैं घूम-फिर कर लौट आऊंगी, तो वह मेरे लिए एक वैकेशन हो जाएगी. लेकिन उस शहर में एक नागरिक के तौर पर रहना, लोगों के साथ घूमना-फिरना एक नया अनुभव होगा और एक आम नागरिक होने के नाते वह मेरा एक अधिकार है, जो मैं कभी नहीं खोना चाहती.

कंगना कौन हैं? अगर हम आपको कृष 3 या फैशन के स्टाइलिश और फैशनेबल लड़कियों के रोल या तनु वेड्स मनु और क्वीन के देसी किरदारों से रिलेट करके समझने की कोशिश करें.
मैं ऐसा तो नहीं कह सकती कि किसी भी लडक़ी में मैं सौ प्रतिशत हूं या किसी में सौ प्रतिशत मिसिंग हूं. वह सब कहीं न कहीं मेरी औरतों को लेकर जो समझ है, जो मैं हूं, वही दर्शा सकती हूं. रानी कहीं न कही मेरा ही हिस्सा है. तनु की बेबाकी भी मेरा पार्ट है. काया की सुपरनैचुरल क्वालिटीज भी मेरा ही एक पार्ट है. ये सब मेरी ही पर्सनैलिटी के पहलू हैं. लेकिन मैं एक अलग इंसान हूं. मैं इन किरदारों से मेल नहीं खाती हूं.

एक ओर आप तनु वेड्स मनु और क्वीन जैसी खुद पर केंद्रित फिल्में करती हैं, तो दूसरी ओर शूटआउट एट वडाला, डबल धमाल, रासकल्स जैसी फिल्म को क्यों चुनती हैं, जिनमें आपके लिए कुछ खास नहीं होता है?
जब आप खुद को तलाश कर रहे होते हैं, अपनी प्राथमिकताएं ढूंढ़ रहे होते हैं, तो उस दौरान आप कई एक्सपेरिमेंट करते हैं, आप कई जगहों पर जाते हैं, सोचते हैं कि शायद यह मेरी मंजिल हो. मुझे नहीं लगता कि उसमें कोई बुराई है. ये फिल्में मैंने उस वक्त पर कीं, जिस समय मेरे पास काम नहीं था. मुझे जो बेस्ट मौका मिला, उसे बेस्ट तरीके से करने की कोशिश की. इसी वजह से मुझे अपने ऊपर गर्व भी है कि चाहे वक्त जैसा भी रहा हो, मैंने अपना बेस्ट दिया है. यही मेरा कत्र्तव्य है. 

क्या यह लार्जर देन लाइफ फिल्मों का हिस्सा बनने के चक्कर में हो जाता है?
ऐसा नहीं है. वह एक ऐसा दौर था, जब मेरे पास काम नहीं था. फैशन करने के बाद मुझे उसी तरह के रोल मिल रहे थे. डर्टी पिक्चर मेरे पास आई थी. लेकिन मैं उनको करना नहीं चाहती थी. जो काम मैं करना चाहती थी, वो मुझे मिलता नहीं था. जैसे तनु वेड्स मनु हो गई, क्वीन हो गई. ऐसी रॉम-कॉम फिल्मों के लिए मैं फिल्ममेकर्स की चॉइस नहीं थी. तो उस समय मैं कंफ्यूज थी और मैं इस ओर चली गई थी. अब वक्त भी बदल गया है. लोग लड़कियों को लेकर मेनस्ट्रीम फिल्में बना रहे हैं. उस समय लोग डरते थे. प्रॉब्लम तो मुझे थी शुरू में.

क्या रज्जो और मिलें ना मिलें हम जैसी पिक्चरें करने के पीछे एकमात्र ध्येय धन होता है?
अगर मैंने ये फिल्में पैसे के लिए की भीं, तो यह काफी इनसेंसिटिव तरीका हो गया, हम कलाकारों का एक तरह से यह निरादर ही हो गया, जो उन फिल्मों से जुड़े हुए हैं. मेरी समझ थी कि कलाकार बनने का हक केवल उन चुनिंदा लोगों को नहीं है, जिनको अब सक्सेज मिल गई है. कोई भी कलाकार कब सकता है. एक वक्त ऐसा था, जब मेरे पास बिल्कुल काम नहीं था. इसका मतलब ये नहीं है कि आगे आकर मैं इवॉल्व नहीं हुई. तो इस तरह का हार्श कमेंट करके किसी की भावना को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए. मैं ऐसी इंसान हूं भी नहीं. लेकिन ये मेरा पर्सनल डिसीजन है और मैं अपने डिसीजन से काफी खुश हूं. मैं ये नहीं कह रही हूं कि मैंने ये फिल्में पैसे के लिए ही की हैं और इसके सिवा और कोई रीजन था ही नहीं. ये पूरी तरह से सच नहीं होगा.

लेकिन जब ये फिल्में रिलीज होती हैं और लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, तब लगता है कि फैसला गलत हो गया?
मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि मैं अपने आप से पूछती हूं कि क्या मैंने अपना काम अच्छे से किया? मुझे लगता है कि मेरा काम अच्छा था, उससे बेहतर मैं नहीं कर सकती थी या अगर मैंने पैसे लेकर काम नहीं किया हो, तो मैं खुद को अच्छी नजरों से नहीं देखूंगी, लेकिन जब तक मेरा काम अच्छा है, मैंने सौ प्रतिशत दिया है, तो बाकी बातें मायने नहीं रखती हैं. मेरा आत्म विश्वास और आत्म सम्मान लोगों के अप्रूवल पर निर्भर नहीं करता है. लोग अप्रूव नहीं करते हैं, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता है. मुझे पता होता है कि मेरा काम अच्छा है, तो मुझे उस चीज को लेकर कभी पश्चाताप नहीं होगा.

आपमें यह 'भाड़ में जाए दुनिया' वाला एट्टियूड कब से है?
मेरा यह एट्टियूड बचपन से है. मेरे पैरेंट्स हैरान हो जाते थे कि ये कैसे अपनी मनमर्जी करती है. छोटी उम्र में, बड़े डिसीजन ले लेना, ओवर कॉन्फिेंडेंट इंसान बनकर रहना... मुझमें बचपन से है. 

जब आप एक दर्शक के तौर पर फिल्में देखती थीं, तो फिल्म स्टार्स के बारे में आपकी क्या सोच थी?
बचपन में हमें फिल्में देखने की अनुमति नहीं मिलती थी और जब कभी हम फिल्मों की एक झलक देख लेते थे, तो हमारे लिए वह एक अलग दुनिया होती थी. मैं एक मीडिलक्लास फैमिली से हूं. मुझे याद है कि मैं पांच-छह साल की थी. तब श्रीदेवी का दूरदर्शन पर सीमा ट्यूब का एक एड आता था, तो मैं मम्मी से कहती थी कि मम्मी जब ये अगली बार आएगी, तो हम टीवी तोड़ देंगे और श्रीदेवी को बाहर निकाल लेंगे (ठहाका मारकर हंसती हैं). मेरी मम्मी यह बात आज भी सबको बताती हैं. हमारे परिवार में यह एक जोक बन गया था कि ऐसा बोलती है. फिर जब बड़े हुए, तो ऑबवियसली हम टीवी तो नहीं तोडऩा चाहते थे, लेकिन ऐसा लगता था कि चमकीले लोग हैं, सब अच्छे दिखते हैं, अच्छे कपड़े पहनते हैं. ये लोग कौन हैं, कहां से आते हैं और क्या करते हैं, इसकी तो किसी को पड़ी नहीं रहती थी, क्योंकि एक आम इंसान अपनी जिंदगी में बहुत बिजी रहता है. हम लोगों पर पढ़ाई का बहुत प्रेशर रहता था, क्योंकि मेरी मम्मी टीचर हैं, डैड कन्सट्रक्शन बिजनेस से आते हैं, मेरे दादा जी आईएएस अफसर थे, परदादा पंद्रह साल तक हिमांचल प्रदेश के मिनिस्टर रह चुके हैं. जब देखो तो पढ़ाई नहीं कर रही है. हमें टाइम ही नहीं मिलता था कि फिल्मों के बारे में सोचें. तब इंटरनेट और मोबाइल फोन नहीं थे, ना फेसबुक और ट्विटर था. मैं तो हूं नहीं ट्विटर पर, लेकिन देखती हूं कि लोग सलमान खान से ट्विटर पर बात करते हैं. मेरे छोटे-छोटे कजिन्स स्टार्स को फॉलो करते हैं. उनको सारा दिन यही लगा रहता है कि उसको कमेंट कर दिया. हमारे लिए फिल्मी दुनिया एक अलग दुनिया होती थी. अब फिल्मी दुनिया पूरे देश के लिए आम हो गई. हर कोई ट्विटर और फेसबुक पर है. 

इसे आप अच्छी बात मानती हैं कि अब स्टार्स को लेकर कोई मिस्ट्री नहीं रह गई है?
अच्छा है, इसके अपने-अपने नुकसान भी हैं. लेकिन मुझे अंजान लोगों से बातें करना अच्छा नहीं लगता है. मैं मूवी स्टार नहीं थी, तब भी मुझे अंजान लोगों से बात करना अच्छा नहीं लगता था. मुझे नहीं लगता है कि जिन लोगों को मैंने देखा नहीं है, आवाज नहीं सुनी है, उनसे बातें कर सकती हूं. इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे लिए दोस्त बनाना मुश्किल है. जो लोग मिलते हैं, मुझसे बात करते हैं, उनसे मेरी दोस्ती हो जाती है. अब जिससे मिल नहीं सकते, उससे कैसी दोस्ती! यही वजह है कि मैं ट्विटर और फेसबुक पर नहीं जा रही हूं.

उस वक्त कौन-सा स्टार आपकी फैंटेसी का हिस्सा हुआ करता था?
हर किसी का अपना एक फेवरेट स्टार होता है, लेकिन मैं किसी की फैन नहीं रही हूं. मेरे एक भैया (शम्मी ठाकुर) हैं, बड़े मामा के बेटे हैं, अब वह होटल मैनेजमेंट में हैं. वो फिल्मों के बहुत बड़े दीवाने थे. वो गर्मियों की छुट्टी में घर आए थे. उस टाइम मोहरा आई थी. अक्षय कुमार का हल्ला था. उनसे हमें इस बारे में सुनने को मिलता था, क्योंकि उनको फिल्मी दुनिया के बारे में ज्यादा पता होता था. वो स्टार्स की फोटो काटकर दीवार पर लगाते थे. घर में उनको सबसे ज्यादा डांट पड़ती थी कि खुद गलत काम करता है और दूसरे बच्चों को भी गंदा करता है और सारा दिन गाना गाता रहता है- तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त (हंसती हैं). उनके अलावा किसी को फिल्मों में इतना इंट्रेस्ट नहीं था.

अब आप खुद एक बड़ी स्टार हैं, तो परिवार के लोग क्या कहते हैं?
वो लोग आज भी बदले नहीं हैं. वो लोग फिल्म को एक आर्ट फॉर्म के रूप में एंजॉय नहीं कर सकते. वो यह नहीं सोचते कि कैसे फिल्में बनती हैं, एक्टिंग क्या कला है, क्या टैलेंट है? उनके लिए है कि हां, फिल्म देख ली.

अगर क्वीन जैसी परिस्थिति आपके निजी जीवन में आ जाए, तो क्या आप अकेले हनीमून पर जाएंगी?
हां, क्यों नहीं जाऊंगी. जरूर जाना चाहिए? अगर जिंदगी में दुख का कोई पल आ जाता है, तो कम से कम रोते-बिलखते गुजारना चाहिए. और दुनिया में जाना चाहिए. बहुत कुछ है एक्सप्लोर करने के लिए. हमने क्वीन में यही बताने की कोशिश की है.

रानी की तरह क्या आपने असल जीवन में कभी बॉयफ्रैंड से रिजेक्शन पाया है? अगर हां, तो आपने उसके साथ कैसे डील किया?
हां, बिल्कुल मुझको रिजेक्शन मिला है. लेकिन उसके बाद मैं यह नहीं सोचती कि क्या मैं अच्छी नहीं हूं? पता नहीं लोग क्यों ऐसा सोचने लगते हैं. अगर आपका इक्वेशन एक इंसान के साथ वर्क नहीं किया तो इसका मतलब यह थोड़े ही ना है कि आपमें कोई कमी है या आप किसी के लायक नहीं है. मेरी वो कभी चिंता नहीं रही, लेकिन ज्यादातर लोगों की यह क्राइसिस हो जाती है. बल्कि मैं बहुत अच्छे से रिजेक्शन या जिसे डंपिंग बोलते हैं, से डील करती हूं. एक इंसान होने के नाते मैं दूसरे की चॉइस की रिस्पेक्ट करती हूं. मुझे लगता है कि एक इंसान का पूरा हक है कि वह चाहे तो किसी के साथ रिलेशनशिप में रहना चाहता है या नहीं. आप उनको रिस्पेक्ट देते हैं, तो रिटर्न में आपको भी रिस्पेक्ट मिलती है. इन सब चीजों में गरिमा बनाए रखना मायने रखता है. मैंने आज तक न तो किसी को रिक्वेस्ट किया है, न ही किसी के सामने गिडगिड़ाई हूं. ज्यादातर लोग शॉक में चले जाते हैं और भीख मांगने लग जाते हैं कि मुझे मत छोड़ो. इन चीजों की समझ होने के नाते मैं इन सबसे हमेशा दूर रहती हूं. मैं सामने वाले के डिसीजन का रिस्पेक्ट करके अपने आपको इमोशनली और अफेक्शनली स्ट्रॉन्ग करके फिर उसका विश्लेषण करती हूं कि क्या उस पर वर्क करना चाहिए या दर्द खत्म कर देना चाहिए. आएम वेरी गुड विद ब्रेकअप्स (हंसती हैं). मैंने भी बहुत लोगों को रिजेक्ट किया है. ये सब तो चलता ही रहता है. फिलहाल, मैं सिंगल हूं.

क्वीन के लिए किसी प्रकार की तैयारी की जरूरत पड़ी?
हां, मुझे बहुत तैयारी की जरूरत पड़ी थी, क्योंकि क्वीन मुझसे बहुत अलग है. उसमें कॉन्फिडेंस नहीं है, आत्म सम्मान नहीं है, वह खुद के लिए खड़ी नहीं हो सकती, वह किसी की आंखों में देखकर बात नहीं कर सकती. वह डर-डर के सवाल पूछती है कि कहीं उससे गलती न हो जाए. उसकी बॉडी लैंगवेज पकडऩे के लिए मुझे मेहनत करनी पड़ी.

क्वीन में अन्विता दत्त के साथ डायलॉग राइटर के तौर पर आपका नाम है. बतौर लेखक इस फिल्म से जुडऩे का संयोग कैसे बना?
यह कॉन्शियस डिसीजन नहीं था. शुरू में मैं अपने डायलॉग बनाती रहती थी, तो विकास बहल ने कहा कि आप रानी के किरदार में खुद को जैसे एक्सप्रेस करना चाहती हैं, कीजिए. उन्होंने मुझे पूरी फ्रीडम दी. बाद में, उन्होंने कहा कि आपने अपने अधिकतर डायलॉग खुद ही लिखे हैं, तो मुझे आपको डायलॉग राइटर का क्रेडिट देना चाहिए. किसी कलाकार के काम का सम्मान करना और उसे क्रेडिट देना, अपने आप में बहुत बड़ी बात है. मुझे उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी.

छोटे शहर की लडक़ी होने का आज आपको क्या फायदा महसूस होता है?
मैं जिंदगी को नजदीक से देख चुकी है और जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को जीना जानती हूं. जब आप पहाड़ों से आते हैं, एक सादगी भरे बैकग्राउंड से आते हैं, तो आपको पता होता है कि एक्चुअली जीने के लिए कुछ नहीं चाहिए. वहां हम सर्दियों में धूप में चटाइयां बिछाकर पड़े रहते थे. हमें ऐसा लगता था कि मानो जन्नत में हों. जिंदगी की जो ये छोटी-छोटी खुशियां हैं, उनको हमने करीब से देखा है. वह हमारे लिए रियलिटी चेक की तरह है. लेकिन छोटे शहर से होना जरूरी नहीं है. इसका क्रेडिट मैं अपनी फैमिली को देना चाहूंगी कि उन्होंने जिस तरीके से हमारी परवरिश की है, जिस तरह से बचपन से हमारी फीलिंगस को लेकर सेंसिटिव रहे हैं, तो एक आर्टिस्ट के तौर पर मैं भी बहुत सेंसिटिव हूं, जिसकी वजह से मैं कैरेक्टर्स को समझ पाती हूं. रानी को मैं अपनी मां में, अपनी बहन में देखती हूं.

अब कभी अपने होम टाउन मंडी (हिमाचल प्रदेश) लौटती हैं, तो क्या आउट ऑफ प्लेस फील करती हैं?
हां, क्योंकि जब हफ्तों तक कुछ करने को नहीं होता है, तब बोरियत ज्यादा हो जाती है. फिर किस तरह से अपनी क्रिएटिव एनर्जी को यूज किया जाए, किस तरह से और ज्यादा अपने आपको सक्षम बनाया जाए, उसकी फिक्र रहती है. अब कर्मा में बहुत ज्यादा चले गए हैं, तो जब घर में बैठ जाते हैं, तो बेकार सा महसूस होता है.

विकास बहल आपके दूसरे निर्देशकों से कैसे अलग हैं?
जो कंटेपररी फिल्ममेकर्स हैं, उनका वह एक बहुत अच्छा उदाहरण हैं. वह ओपन रहते हैं. वह बहुत सहयोग करते हैं, वह आपके सुझावों को सुनते हैं, वह डीओपी को भी सुनते हैं, वह डिस्कस करते हैं और फिर उनको लगता है कि सही है, तो वह करते हैं. उनमें ईगो नहीं है. फिल्म की बेहतरी के लिए वह हमेशा तैयार रहते हैं.  

वह फिल्म, पल या अभिनेता-अभिनेत्री कौन थी, जिसने आपको एक्टर बनने के लिए प्रेरित किया?
मुझे गुरूदत्त ने काफी इन्सपायर किया है. आमिर खान हैं. ये लोग बेहतरीन काम करते हैं. इन्होंने देश का बहुत नाम किया है.

आप यंग स्टार्स का जो ग्रुप है- वरुण, अर्जुन, रणवीर, रणबीर आदि, उनके साथ पार्टी करती नहीं नजर आतीं. आपकी उनके साथ दोस्ती नहीं है या आप उनसे दोस्ती नहीं करना चाहतीं?
आप मानेंगे नहीं कि मैं अपनी उम्र के लोगों से तो बात ही नहीं कर सकती. मैं इतना ज्यादा शायद मेच्योर हो गई हूं. मेरी मम्मी मुझे कई बार डांट देती हैं कि कैसे बात करती है, जैसे पचास साल की कोई औरत बात कर रही हो. तुम छब्बीस साल की हो, तो बच्ची बन कर रहो. ऐसे बात करती है, जैसे जिंदगी देख ली है, सब खत्म हो गया है, अब रिटायरमेंट तक पहुंच गई है. मुझे लगता है कि मम्मी सही बोल रही हैं. मैं अपनी उम्र से बहुत ज्यादा मेच्योर हो गई हूं, तो प्ले स्टेशन तो खेल ही नहीं सकती. ये मेरे लिए बहुत ही इमबैरेसिंग बात है. वरुण मेरी उम्र का है, 26 साल का. मैं वरुण से मिलती हूं, लेकिन क्या करें अभी? क्या बात करें, कुछ समझ में नहीं आता है.

तो कौन लोग हैं, जिनके साथ आप बातें कर पाती हैं?

आमिर खान, सलमान खान... ये लोग मुझे लगता है कि मेरे मेंटल लेवल के हैं. जबकि सलमान मुझसे बाइस साल बड़े हैं. तो क्या करें, कई लोग ऐसे हो जाते हैं. मेच्योरिटी बहुत ज्यादा हो जाती है. इसका कुछ नहीं कर सकते.

आमिर खान ने कॉफी विद करण में कहा कि कंगना रनौट सबसे सेक्सी हैं?
हां, तो उसमें क्या गलत कहा उन्होंने? वह हमेशा से मुझे प्रोत्साहित करते रहे हैं. चाहे वह वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई के लिए हो या तनु वेड्स मनु के लिए, उन्होंने और किरण राव ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया है. यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है.

रैपिड फायर
मान लीजिए आप किसी लडक़े को डेट कर रही हैं और आपको पता चलता है कि वह बाइसेक्सुअल है, तो क्या आप उसे डंप कर देंगी?
अगर वह मुझे चीट कर रहा है, चाहे वह लडक़ी के साथ करे या लडक़े के साथ करे, बात तो एक ही है. मैं उसे डंप कर दूंगी.
अगर किसी इंडियन क्रिकेटर को डेट करना हो, तो आप किसे डेट करना चाहेंगी?
मुझे किसी क्रिकेटर को डेट ही नहीं करना है.
आपको तो शादी ही नहीं करनी है ना?
हां, मुझे शादी नहीं करनी है, लेकिन मुझे डेट करना है. 
क्या कंगना रनौट अपनी फिल्मों की हीरो हो सकती हैं?
मुझे लडक़ा नहीं बनना. मैं हीरोइन ही अच्छी हूं. लेकिन मैं अच्छी, मीनिंगफुल फिल्म करना चाहूंगी.
अगर आप फिल्म बनाती हैं, तो किसे साइन करना चाहेंगी?
अगर आमिर खान लायक स्क्रिप्ट हुई, तो उन्हें जरूर साइन करना चाहूंगी.