Wednesday, October 9, 2013

यार मेरी जिंदगी... आनंद एल राय-हिमांशु शर्मा

तनु वेड्स मनु के बाद रांझणा के रूप में दूसरी खूबसूरत फिल्म देने के बाद यह जोड़ी चर्चा में है. फिल्मकार आनंद एल राय और लेखक हिमांशु शर्मा की दोस्ती के बारे में बता रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह
वो बड़े भाग्यशाली होते हैं, जिनके हिस्से सच्ची दोस्ती आती है. और बात जब फिल्म इंडस्ट्री जैसी एक अति व्यावहारिक और घोर व्यावसायिक जगह की हो, तो फिर इसका महत्व शिव की जटा से निकली गंगा सा हो जाता है. हिमांशु शर्मा 2004 में मुंबई पहुंचे, लखनऊ से वाया दिल्ली होते हुए. दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद वह एनडीटीवी में आठ महीने नौकरी कर चुके थे. चैनल में वह बतौर लेखक कार्यरत थे. सच्चाई उनकी जुबान पर रहती थी. हकीकत को वह बेलाग-लपेट मुंह पर ही बोल देते थे. उसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ता था. ''मुझे कई प्रोड्यूसर्स ने यह कहकर निकाल दिया गया कि मैं बदतमीज और डिस्ट्रैक्टिव हूं. हिमांशु बताते हैं. लेकिन उनकी यही खूबी आनंद एल राय को भा गई. ''इससे पहली मुलाकात में ही मुझे समझ में आ गया था कि इसके दिल में जो है, वही जुबान पर है." आनंद बताते हैं. 
आनंद और हिमांशु की पहली भेंट एक कॉमन दोस्त के जरिए हुई थी. सिनेमा और खाने में दोनों की समान रुचि है. दोनों की पसंदीदा रोमांटिक फिल्म गाइड है. हिमांशु हंसते हुए कहते हैं, ''हमारी जोड़ी की स्ट्रेंथ खाना है. हामी भरते हुए आनंद कहते हैं, ''हां, हम खाते बहुत हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हम इस वजह से साथ चल रहे हैं, क्योंकि यह राइटर जैसा राइटर नहीं है और मैं डायरेक्टर जैसा डायरेक्टर नहीं हूं."
हिमांशु को आज तक नहीं पता कि वह फिल्म लेखन में क्यों आए. शायद इसीलिए उन्हें यह भी नहीं पता कि वह जिंदगियों को पन्ने पर उतारते कैसे हैं. ''मुझे जो अच्छा लगता है, मैं लिख देता हूं और फिर उम्मीद करता हूं कि दस में से पांच या छह लोग उसे पसंद करेंगे. क्योंकि मैं भी उन्हीं के बीच से आया हूं. मैं गोविंदा की फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं. मैं प्रशिक्षित लेखक नहीं हूं. हिमांशु साफगोई से कहते हैं. लेकिन आनंद राय को पता है कि आज वह फिल्ममेकिंग में क्यों हैं. औरंगाबाद (महाराष्ट्र) की बीएएम यूनिवर्सिटी में वह कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने यह सोचकर गए थे कि नित कुछ नया करने को मिलेगा. 1986 का एक किस्सा आनंद बताते हैं, ''कंप्यूटर इंडिया में आया ही था. मैं सोचता था कि कंप्यूटर इंजीनियर बनूंगा, तो जिंदगी में हमेशा नयापन रहेगा. पर पढ़ाई के दौरान मुझे एहसास हो गया कि इसमें मुझे क्रिएटिव स्पेस नहीं मिल रहा है."
आनंद अपनी बात खत्म करते कि हिमांशु ने उन पर यह मीठा सा इल्जाम लगा दिया, ''एक लडक़ा, जो इंजीनियरिंग करके देश की सेवा करता, आपने उसकी सीट खा ली सर. जवाब में आनंद ने कहा, ''मैं भी तो देश की सेवा कर रहा हूं. इंजीनियरिंग का इस्तेमाल मैं फिल्ममेकिंग में कर तो रहा हूं. तू कहता है नहीं है कि यार, आप टाइम डिवीजन कमाल का करते हो." मुंबई आने के बाद आनंद अपने बड़े भाई रवि राय के साथ काम करने लगे, जो टीवी में सक्रिय थे. आनंद ने पहला टीवी सीरियल सोनी के लिए थोड़ा है थोड़े की जरूरत है डायरेक्ट किया. फिर बाद में, भाई के साथ मिलकर उन्होंने पंद्रह से अधिक टीवी शोज का निर्माण किया.
2006 में आनंद और हिमांशु ने मिलकर अपना पहला कदम बढ़ाया. स्ट्रेंजर के रूप में इस जोड़ी का पहला काम सामने आया, लेकिन दर्शकों ने इसे अपनाने से इंकार कर दिया. नाकामयाबी हाथ लगी. इसकी जिम्मेदारी आनंद खुद पर लेते हैं. ''मैं दर्शकों को कहानी सुनाना भूल गया. मैं उन्हें यह दिखाने लगा कि देखो, मैं क्या-क्या दिखा सकता हूं. मैं खुद को कहानी सुनाने लगा था." स्ट्रेंजर को वे सबक के तौर पर लेते हैं, ''उस फिल्म ने मुझे सिखाया कि फिल्म का दर्शकों से कम्युनिकेशन होना चाहिए." 
इस फिल्म के बाद हिमांशु और आनंद बेरोजगार हो गए. हिमांशु ने अपना रास्ता अख्तियार कर लिया. वह टशन फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर जुड़ गए. बकौल आनंद, ''यह मुझे छोडक़र चला गया था." हिमांशु जवाब देते हैं, ''छोडक़र मतलब? रोटी खाएं या ना खाएं?" आनंद हंसते हुए कहते हैं, ''जब ये टशन कर रहा था, तब भी हमने बहुत आइसक्रीमें साथ खाईं बैठकर." फिर वह दार्शनिक अंदाज में कहते हैं, ''सफलता-असफलता, दोनों आने के बाद नॉर्मल होने में वक्त लेती हैं. मुझे भी संभलने के लिए टाइम चाहिए था. मेरे पास पैसों की कमी आ गई थी. उस वक्त मैंने जी कैफे के लिए बॉम्बे टॉकिंग नाम की अंग्रेजी सीरीज बनाई. उसके लिए अच्छा-खासा पैसा मिला. फिर मुझे लगा कि अब एक-डेढ़ साल टेंशन नहीं है."
हिमांशु तनु वेड्स मनु की स्क्रिप्ट के साथ 2008 में आनंद के पास लौटे. ''इसने जब मुझे कहानी सुनाई, तो मुझे लग गया कि यह कहानी वर्क करेगी." आनंद बताते हैं. तनु वेड्स मनु ने न केवल इन्हें सफल लेखक-निर्देशक के तौर पर स्थापित किया, बल्कि इसमें केंद्रीय भूमिका निभाने वाली कंगना रनौत के करियर के लिए टर्निंग पॉइंट फिल्म साबित हुई. ऐसा ही कुछ आलम रहा इस जोड़ी की हालिया आई फिल्म रांझणा का. इसने बॉक्स-ऑफिस पर सौ करोड़ रुपए की आमदनी तो की ही, सोनम कपूर को दमदार अभिनेत्री और तमिल सिनेमा के सुपरस्टार धनुष को हिंदी क्षेत्र में लोकप्रिय बना दिया. और तनु वेड्स मनु एवं रांझणा की एक विशेषता, जिसने सबका ध्यान खींचा, वह इसके कथानक की उत्तर भारतीय पृष्ठभूमि रही. पहले कानपुर और फिर बनारस को इस जोड़ी ने जस का जस पर्दे पर उतार दिया. आनंद कहते हैं, ''हम इन शहरों में टूरिस्ट बनकर नहीं जाना चाहते. हमने स्थानीय लोगों की नजर से इन शहरों को दिखाया." दोबारा अपनी फिल्म का कथानक यूपी चुनने के बाबत आनंद कहते हैं, ''जो आपके हिस्से का है, पहले उसे दिखा लें. फिर हम भी शायद फ्लाइट पकडक़र यूरोप चले जाएंगे." हिमांशु अपना मत रखते हैं, ''हम जियोग्राफी के हिसाब से कहानी नहीं लिखते हैं. मुझे लगता है कि कहानी खुद ब खुद बता देती है कि उसे क्या जियोग्राफी चाहिए."
हिमांशु इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि हिंदी फिल्मों ने गांव-कस्बों का सही चित्रण पर्दे पर नहीं किया है. उनके अनुसार, ''हमने रोमांटिसाइज बहुत किया है. हरिया खेत में काम कर रहा है, ट्यूबेल चल रहा है, बीवी खाना लेकर आती है. वह मुक्के से प्याज तोड़ता है, चटनी के साथ रोटी खाता है. सर, पॉइंट ये है कि हरिया बहुत दुखी है. वो खेत में काम करके बर्बाद हो गया है. असली हालत बहुत खराब है. सही चित्रण नहीं हुआ है फिल्मों में." और आनंद अपनी फिल्मों की एक सच्चाई बयां करते हैं, ''हमारे किरदार असली बातें करते हैं. आप जैसे हो, वैसे ही पेश आ जाओ. जिंदगी आसान हो जाएगी. जिसे प्यार करना होगा, वह कर लेगा. जिसे दुत्कारना होगा, वह दुत्कार देगा. एनर्जी मत वेस्ट करो कि आओ, मुझे प्यार करो."
रांझणा में कुंदन और जोया की प्रेम कहानी जिस तरीके से आकार लेती है, उस पर कुछ लोगों ने सवाल उठाए. कुंदन के जोया की राह में बार-बार आने को लोगों ने छेडख़ानी का नाम दिया. यह बात हिमांशु और आनंद दोनों को समझ से परे लग रही है. हिमांशु कहते हैं, ''स्टॉकिंग बहुत हार्श शब्द है. किस पल बचपन वाली जोया डरी हुई नजर आती है? उल्टा वह पलटकर बोलती है कि थप्पड़ मार देंगे. सारी  रंगबाजी निकल जाएगी दो मिनट में. पर वह कहीं डरी नहीं है." आनंद सवाल उठाते हैं, ''ऐसा आरोप लगाने वालों से मैं पूछना चहता हूं कि डर में क्या था? क्या शाहरुख करें, तो आपको मंजूर है वो? तब आपको अच्छा लगता है?" हिमांशु अपनी बात को विस्तार देते हैं, ''कम कपड़े पहनाकर आइटम नंबर करवाने से बेहतर है कि एक निगेटिव कैरेक्टर बना दो. ये ज्यादा इज्जत वाला काम है. कम कपड़े पहनकर आइटम नंबर करवाना बेहतर लगता है आपको? वहां पर उंगली नहीं उठाते आप?"
आनंद राय के करीबियों से आप बात करें, तो सब उन पर यह आरोप लगाते हैं कि वह सब पर भावनात्मक अत्याचार करते हैं. हिमांशु हंसते हुए कहते हैं, ''मैं जीता-जागता उदाहरण हूं. पिछले पांच साल से यह इंसान मुझे कहीं जाने नहीं दे रहा है." आनंद अपनी हंसी रोकते हुए कहते हैं, ''मैं प्यार से दुनिया चलाता हूं. और यह लोगों की चॉइस होती है. प्यार में एक्सप्लॉएट होना लोगों को अच्छा लगता है. मुझे ऐसा करके बुरा नहीं लगता है." आनंद-हिमांशु एक-दूसरे की टांग खिंचाई एवं मजा लेने का मौका गंवाते नहीं हैं, लेकिन जरूरत पडऩे पर एक-दूसरे के लिए निस्वार्थ भाव से खड़े भी रहते हैं. इनकी दोस्ती को समझना है, तो आप रांझणा के कुंदन और मुरारी की दोस्ती को देख लें.
क्या हिमांशु किसी दूसरे फिल्मकार के लिए लिखेंगे या आनंद किसी दूसरे लेखक की कहानी पर फिल्म बनाएंगे? यह बड़ा मुश्किल सवाल है, लेकिन आनंद जवाब देते हैं, ''मैं करना चाहूंगा, लेकिन नहीं कर पा रहा हूं. एक कंफर्ट लेवल बन गया है. मुझे इसके कैरेक्टर्स की आदत पड़ गई है." हिमांशु जवाब में कहते हैं, ''इनके बाद मैं किसी दूसरे डायरेक्टर की बजाए खुद के लिए लिखना चाहूंगा. मैं ऐसे काम नहीं कर सकता कि ये कॉन्सेप्ट है, इसे डेवेलप कर दो. ये कहानी में होना चाहिए और ये हटा दो." हिमांशु आगे कहते हैं, ''मैं अपने लिए लिखता हूं. ये अलग बात है कि आनंद जी को मेरा लेखन अच्छा लगता है." प्रतिक्रिया में आनंद कहते हैं, ''हिमांशु की यह बात मुझे पसंद है कि यह बेधडक़ लिखता है. इसकी कहानी में एक टेक होता है. इसकी राइटिंग ओरिजिनल है, जो आज के समय में बहुत कम देखने को मिलती है." और वे आगे कहते हैं, ''मुझे खुद के अंदर कभी राइटर नहीं दिखा. मेरी कमजोरी यह रही है कि मुझे अपने कैरेक्टर्स से प्यार हो जाता है. उसी को मैंने अपना प्लस बनाने की कोशिश की है."
रांझणा के बाद हिमांशु क्या लिख रहे हैं? इसका जवाब हिमांशु देते कि आनंद ने कहा, ''मैंने कुछ दिन पहले इसके घर पर जैपेनीज फिल्मों की डीवीडी देखी." और फिर दोनों ठहाका मारकर हंसने लगे.
साभार- फिल्मफेयर

Friday, September 20, 2013

अमिताभ एक सम्पूर्ण अदाकार हैं: दिलीप कुमार

दिलीप कुमार अपने म्युचुअल एडमिरेशन क्लब के बारे में रघुवेन्द्र सिंह को बता रहे हैं, जो वह अमिताभ बच्चन के साथ शेयर करते हैं
मुझे शक्ति फिल्म का जुहू में लिया गया वह शॉट अच्छी तरह याद है - बैकग्राउंड में हेलीकॉप्टर का शोर है, मैं हेलीकॉप्टर से जुहू बीच की रेत पर उतरा हूं, जहां अमित मेरा इंतज़ार कर रहे हैं. वो धीरे-धीरे मेरी और आते हैं. ये मुर्हूत शॉट था और कैमरे के सामने पहली बार हम एक साथ आ रहे थे. ना उनकी कोई लाइन थी बोलने के लिए और ना मेरी. बिना डायलॉग्स के, सिर्फ गहरे जज़्बात का खेल था उस शॉट में. वहां काफी दर्शक मौजूद थे, और पूरी यूनिट फिल्म शुरू करने के लिए बड़े जोश में थी. मुझे साफ़ दिख रहा था कि मेरे सामने एक ऐसा अदाकार खड़ा है जो अपने काम के लिए पूरा समर्पित है और जिसकी अदाकारी में एक ठहराव है जो उनके सधे हुए क़दमों से और उनके चेहरे के भावों की अभिव्यक्ति से साफ़ नजऱ आ रहा था.
बाद में जब हम अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे, तब उन्होंने मुझे बताया कि वो बेहद नर्वस थे, क्योंकि उनका यह मेरे साथ पहला सीन था. ये कहना उनका खुलूस और सादगी थी, क्योंकि वो मुझे काफी कॉन्फिडेंट अदाकार लगे जिनकी स्क्रीन प्रजेंस से ही एक खास किस्म की शिद्दत और मजबूती झलक रही थी. जब किसी सीन में आपके साथ का अदाकार भी आप की ही तरह सीन को एक खास लेवल तक लाना या फिर स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले के मुताबिक सही लेवल पर करना चाहता है, तो वह बड़ा स्फूर्तिदायक अनुभव होता है. शक्ति की पूरी शूटिंग के दौरान अमित के साथ काम करना बहुत सुखद रहा. मुझे लगता है कि वो एक सम्पूर्ण अदाकार हैं. 
शक्ति की शूटिंग के दौरान की अमित के बारे में मुझे यह बात भी याद है कि वो अपने किरदार के पूरे डिटेल्स पर और स्क्रिप्ट के लिए जिस जबरदस्त अदाकारी की जरूरत थी, उस पर भी पूरा ध्यान देते थे. यही वजह थी कि डायरेक्टर रमेश सिप्पी हमारे सीन बड़े आराम और सफाई से फिल्माने में कामयाब रहे.
इतने सालों में अनजाने में ही हम दोनों एक-दूसरे को बेहद पसंद करने लगे हैं, हमने अपना खास म्युचुअल एडमिरेशन क्लब बना लिया है! हम एक-दूसरे के टच में रहते हैं. और इंडस्ट्री की पार्टी वगैरह में उनसे मिलना और बात करना हमेशा बड़ा अच्छा लगता है. वो हमेशा बड़े अदब से पेश आते हैं, सलीके से बात करते हैं, इंडस्ट्री के सीनियर्स को इज्ज़त देते हैं, अपनी उपलब्धियों के बारे में बड़े विनम्र रहते हैं, काम के प्रति पूरी दृढृता के साथ समर्पित और अनुशासित हैं. जो लोग एक्टर बनना चाहते हैं या जो उभरते कलाकार हैं, उनके लिए अमित एक उदाहरण हैं. मुझे जया भी उतनी ही अच्छी लगती हैं. वो भी बड़ी इज्जत और प्यार से मिलती हैं और अपने काम में भी बहुत ऊंचे दर्जे की हैं. उनके लिए भी मेरे दिल में बहुत प्यार है.  
(अक्टूबर 2012, अमिताभ बच्चन के जन्मदिन के अवसर पर फिल्मफेयर में प्रकाशित)
 

Friday, August 30, 2013

मैं शातिर बिजनेसमैन नहीं हूं: इरफान

इरफान जितने गंभीर दिखते हैं, उतने हैं नहीं. एक मुलाकात में रघुवेन्द्र सिंह ने उनके व्यक्तित्व, जीवन एवं सफर के रोचक पहलुओं को जाना
बीता साल इरफान के नाम रहा. पान सिंह तोमर (हिंदी) और लाइफ ऑफ पाय (अंग्रेजी) फिल्मों के जरिए उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहना बटोरी. पान सिंह तोमर के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड हासिल किया. अभिनय के मामले में उन्होंने ऐसा स्तर कायम कर लिया है, जिसकी अब मिसाल दी जाती है. यह बात अब स्वयं इस धुरंधर कलाकार के लिए चुनौती बन चुकी है. इसीलिए उनके अंदर के अभिनेता की भूख और बढ़ गई है. वह नित कुछ नया तलाश रहे हैं.
पंद्रह साल के अभिनय करियर में इरफान निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं. जयपुर के खजुरिया गांव (टोंक जिला) के इस शख्स की यात्रा तिरस्कार, संघर्ष और पुरस्कार से भरी रही है. लेकिन उनमें कड़वाहट नहीं आई है. बल्कि ïअवसर और स्थान देने के लिए वह इंडस्ट्री के आभारी हैं. लेकिन उन्हें एक बात का अफसोस है. ''मैंने बचपन में ऊपर वाले से एक गलत दुआ मांग ली थी. मैंने कहा कि मुझे एक अच्छा अभिनेता बना दे, लेकिन मैंने पैसा नहीं मांगा. अब एक्टिंग तो मुझे आ गई, लेकिन पैसा नहीं मिल रहा है. कहकर इरफान जोर का ठहाका लगाते हैं. पढि़ए इरफान से यह रोचक बातचीत...

हमने सुना है कि आजकल आप काफी कुछ नया कर रहे हैं. सिंगिंग सीख रहे हैं. अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू कर रहे हैं.
मैं सिंगिंग पर काफी अरसे से काम कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि म्यूजिक के ऊपर कोई कहानी बनाए और मेरे पास लाए. बीच में विशाल भारद्वाज एक फिल्म बना रहे थे. माहौल बन रहा है म्यूजिक पर आधारित कुछ फिल्मों का. कुछ कहानियां होती हैं, जिन्हें आपको लगता है कि कन्वेंशल प्रोड्यूसर पहचान पाएगा, लेकिन आपको पता है कि ये फिल्में वर्क करेंगी, तो आप उस फिल्म को सपोर्ट करते हो. लंचबॉक्स में मैं पार्ट प्रोड्यूसर हूं. मैं निशिकांत कामथ के साथ एक फिल्म बनाने जा रहा हूं. मैं कुछ नया करने की कोशिश कर रहा हूं.

आप जैसे एक स्थापित कलाकार को अपने स्तर को ध्यान में रखते हुए कुछ नया तलाशना एक चुनौती होगी?
यार, नया नहीं लाऊंगा, तो मेरा खुद को इंट्रेस्ट उसमें कैसे रहेगा? यह चैलेंज तो है. इस जॉब का नेचर ही ऐसा है. यह रेगुलर जॉब तो नहीं हो सकती कि पांच फिल्म कर ली और फिर फुरसत ले ली. मैंने उस तरह की लाइफ नहीं चुनी. इस जॉब की मांग है नया होना. इसका लेना-देना लोगों के दिलो-दिमाग को इंगेज करने से है.

आजकल क्षेत्रीय सिनेमा में काफी नई कहानियां निकल कर आ रही हैं. आप क्षेत्रीय फिल्मों में काम नहीं करना चाहते?
मैं खुद उस तरफ कुछ नहीं ढूंढ रहा हूं. अगर कुछ इंट्रेस्टिंग आएगा, तो जरूर करूंगा. मैंने अब लोगों को अप्रोच करना बंद कर दिया. अब मैं समझ गया हूं कि जो मेरे पास है, मैं उसके साथ इंसाफ करुंगा. यह टाइम बहुत अच्छा है. केवल मैं ही नया नहीं कर रहा हूं, बल्कि पूरी इंडस्ट्री नया कर रही है. नए डायरेक्टर आ रहे हैं, नई कहानियां आ रही हैं, नए प्रोड्यूसर आ रहे हैं. यह ट्रान्जिशन का टाइम है.

आपने लोगों को अप्रोच करना क्यों बंद कर दिया?
अप्रोच करने से मेरी जिंदगी में कुछ हुआ नहीं. जब मैं इंडस्ट्री में नया-नया आया था, तो खूब घूमता था. फोटोग्राफ्स लेकर दफ्तरों में जाता था. लेकिन उल्टा हो जाता था. जिन लोगों ने मेरा काम देखा होता था, वो मुझे देखते थे, तो पता नहीं क्यों उल्टा हो जाता था. मैं बात करने में ईजी नहीं हूं. आप किसी इंसान से पहली बार मिलें और चुप रहें, तो माहौल अनकंर्फटेबल हो जाता है. यह मेरी कमजोरी है. जो पॉइंट है, मैं उसी पर बात कर सकता हूं. मुझे महसूस हुआ कि मुझे ये करने की जरूरत नहीं है. शायद मुझे थोड़ा सब्र रखना पड़े.

उस समय कभी आपको ह्यूमिलिएशन से गुजरना पड़ा?
बहुत बार. मैं उस सीरियल का नाम नहीं लेना चाहता. उसमें हम कभी-कभी रोल करते थे. फिल्मसिटी में शूटिंग होती थी. जो लोग खाना देते थे, वो बहुत प्यार से खाना नहीं खिलाते थे. कई बार शॉट के समय तकनीशियन, कैमरामैन कुछ भी बोल देते थे. और किसी भी क्रिएशन के समय आदमी थोड़ा सा वूनरेबल हो जाता है. तो उसे लग रहा होता है कि वह नंगा हो रहा होता है सबके सामने. उस समय अपने तरह का एक कमेंट आपको बहुत चुभ सकता है. 

आप उन बातों को दिल पर लेते थे?
हां, सीधे दिल पर लगती थीं वो बातें. किसी ने पैसे नहीं दिए, यह कहकर कि आपका काम इस लायक है ही नहीं. शुरू-शुरू में मैं एक सीरियल कर रहा था. मैं एनएसडी में सेकेंड ईयर में था. छुट्टियों में हम काम कर लेते थे. उस समय हमारे लिए 350 रूपए बहुत होते थे. मेरा एक एंट्री सीन था. पता नहीं क्या हुआ. दो-तीन बार एक्टर के साथ हमारा को-ऑर्डिनेशन गड़बड़ हो गया. तो उस एक्टर ने चिल्लाया कि पता नहीं कहां से लोगों को पकड़ लाते हो.

पहले लोग यह कहकर आपका पैसा काट लेते थे कि काम उतना अच्छा नहीं है. आज आपको पता है कि आपका काम किस स्तर का है, तो क्या आप उस हिसाब से पैसा चार्ज करते हैं?
मैंने कभी अपने आपको ओवरकोट नहीं किया. मैंने हमेशा कम या फिर वाजिब पैसा मांगा. क्योंकि मुझे पता है कि मेरी फिल्मों का क्या रिएक्शन है या क्या आमदनी मिल सकती है. मैं शातिर बिजनेसमैन नहीं हूं. मुझे पता नहीं है कि अपने आपको कैसे ओवर प्राइस करना है. मैं वह जरूर सीखना चाहूंगा.

आजकल अनेक सेलिब्रिटी मैनेजमेंट कंपनियां हैं, जो एक्टर को ब्रांड बनाकर बाजार में बेहतर तरीके से बेच रही हैं. आप उनसे क्यों नहीं जुड़ते?
वो कंपनियां ब्रांड वैल्यू बढ़ाकर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं. मेरी जानकारी में ऐसी कोई कंपनी नहीं है, जो किसी कलाकार के पास काम लेकर आई है. मुझे नहीं लगता है कि आपकी जो वैल्यू है, उससे बड़ा आपको कोई बना सकता है. अगर कोई ऐसा कर सकता है, तो मैं जरूर उससे जुडऩा चाहूंगा. मैं अपने आप में एक ब्रांड हूं. अगर कोई कंपनी आकर कहती है कि वह मुझे बेहतर ब्रांड बना सकती है, तो मैं जरूर उससे जुडऩा चाहूंगा.

कमर्शियल सिनेमा में खुद को कहां पाते हैं?
मैं कमर्शियल सिनेमा की परिभाषा को थोड़ा-सा हिचकोले देने के लिए आया हूं. हमारे यहां कमर्शियल सिनेमा की परिभाषा सीमित है. यह थोड़ी सी विस्तृत होनी चाहिए. मैं जो फिल्में करूंगा, मेरी कोशिश होगी कि वह ढर्रे की भी न हों और कमर्शियल भी हों. हमें ऐसा सिनेमा गढऩे की जरूरत नहीं है, जो कमर्शियल के खिलाफ खड़ा हो जाए. कमर्शियल सिनेमा में वेरायटी लाने की जररूत है. यह बात मैंने दस साल पहले भी सोची थी, लेकिन तब यह मुमकिन नहीं था. जब मैं लोगों से बोलता था, तो लोगों को ये बात अजीब लगती थी. एरोगेंस लगता था.

आपने गुनाह, फुटपाथ, चरस, चेहरा आदि फिल्में कीं. क्या ये फिल्में आपने कमर्शियल कारणों से की थीं?
हां, मैंने कमर्शियल वायबिलिटी ढूंढऩे के लिए की थीं. मैं तलाश रहा था कि मैं इनमें कहां फिट होता हूं. इन फिल्मों की वजह से क्या मेरा प्राइस बढ़ता है? क्या मैं प्रोड्यूसर के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण होता हूं? उससे अच्छी बात यह हुई कि वो फिल्में बंपर हिट नहीं हुईं. अगर हो जातीं (हंसते हैं), तो लगता तो नहीं है, लेकिन शायद मैं फंस गया होता. मुझे कभी-कभी लगता है कि जो सुप्रीम पावर है, उसके पास आपके लिए ऑलरेडी एक डिजाइन है. वो हमेशा आपको धक्का देकर सही रास्ते पर डालता रहता है. उन फिल्मों के कुछ अनुभव हैं, जिनसे मुझे एक एक्टर के तौर पर ग्रो होने में मदद मिली. उनमें से बहुत-सी फिल्में ऐसी थीं, जिनकी कहानी से मैं कंवेंस नहीं था. उस वक्त मैं अपनी प्रजेंस दिखा या जता रहा था, तो मैं उन फिल्मों में कोशिश करता था कि कहानी पर ध्यान न जाए, मैं अपनी बाजीगरी दिखाऊं. 

क्या आपने तय कर लिया है कि उस गली में दोबारा नहीं जाएंगे?
ऐसी फिल्मों को करने की मेरी जरूरत नहीं है और न ही मेरी मजबूरी है. अब मेरे लिए उसमें कुछ नया नहीं है. आपको ढूंढना पड़ता है कि क्या चीज आपको मजा देती है. कहते हैं कि आपके विश सोच-समझकर मांगनी चाहिए, कहीं गलत दुआ कबूल हो गई, तो गड़बड़ हो जाती है.

आपने कभी गलत दुआ मांगी और वह कबूल हो गई?
हां यार, मांगी थी. मैं बचपन में दुआ मांगता था कि बहुत खतरनाक एक्टर बन जाऊं और पैसा मैं नहीं मांगता था. मुझे लगता था कि ऊपर वाले से अब पैसा क्या मांगना. मैंने सोचा कि एक्टर तो वही बना सकता है, पैसा तो मैं कमा ही लूंगा. पता चला कि एक्टिंग तो आ गई, लेकिन पैसा नहीं मिल रहा है (हंसते हैं). अब लगता है कि उस समय पैसा भी मांग लेना चाहिए था.

माना जाता है कि आपका किरदार की तैयारी करने का अंदाज अलग है. उस बारे में बता सकते हैं?
मैंने जब एक्टिंग शुरू की थी, तब मेरे मन में यही था कि लोग मुझे नोटिस करें कि मैं जैसा दिखता हूं, वैसा नहीं हूं, मेरे अंदर भी बहुत कुछ है. मुझे नहीं पता था कि एक्टिंग फेम, पैसे का माध्यम है. मुझे ये नहीं पता था कि एक्टिंग मेरे लिए ऐसी चीज बन जाएगी, जिसके जरिए मैं अपने जीवन को एक्सप्लोर करूंगा. ये एक प्रॉसेस हुआ है. लाल घास पर नीले घोड़े जब मैं कर रहा था, तब मुझे पता नहीं था कि मैं कैसे कैरेक्टर को अप्रोच करूंगा. पान सिंह तोमर कर रहा था, तब मैं एक्टर के तौर पर तैयार हो चुका था. अगर मेरे पास कोई स्क्रिप्ट आई है, तो मेरे पास क्राफ्ट है. तब क्राफ्ट नहीं था. धीरे-धीरे मुझे रियलाइज हुआ कि यह मेरी जिंदगी से अलग नहीं है, यह मेरी जिंदगी ही है. जिंदगी और मेरा धंधा एक ही है. मेरे कैरेक्टर मेरी खुराक हैं. अगर मैंने डी-डे की, तो उसका कारण यह था कि मैंने कभी इंटेलीजेंस ऑफिसर का रोल नहीं किया था. अप्रोच वही है कि जिंदगी से कनेक्ट होना चाहिए. वही आपका पर्सनल अफर्ट है.

निखिल आडवाणी की पिछली फिल्में (सलाम-ए-इश्क, चांदनी चौक टू चाइना, पटियाला हाउस ) नहीं चली थीं, तो जब वो आपको पास डी-डे लेकर आए, तो मन में कोई सुबहा था?
हां, जरूर था कि ये फिल्म वैसी ही कुछ होगी. लेकिन जब उसने कहानी सुनाई तो मैं चौंक गया. उसने बताया कि उसका ओरिएंटेशन ऐसी ही फिल्मों का है. हालांकि मुझे इस बात का विश्वास नहीं हुआ. धीरे-धीरे डिस्कशन में मुझे विश्वास होने लगा. हर क्रिएटिव आदमी को अपने आप को चैलेंज करना जरूरी होता है.

तिग्मांशु धूलिया के साथ आपने कमाल की फिल्में दी हैं. उनका आपके करियर में काफी योगदान है.
मेरा उसके और उसका मेरे करियर में खास योगदान रहा है. मैं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में अपने आपको जिस ओर बढ़ा रहा था, वो भी उसी तरह से किसी दूसरे शहर से आया था. हमारी और उसकी सेंसिबिलिटी मिलने लगी. वैसे तो हम दोस्त के तौर पर बातें करते थे, लेकिन जब उसने मेरे प्ले देखे और जिस तरीके से रिएक्ट किया, तब मुझे लगा कि जो मेरे अंदर महसूस हो रहा था, वो उस तक पहुंचा. वहां से एक अजीब सी बॉन्डिंग हुई. आप कोई क्रिएशन करते हैं और वह सीधे किसी इंसान तक पहुंचती है, तो आपके लिए वह शख्स खास बन जाता है.

लेकिन अभी आप दोनों अलग-अलग रास्ते पर चल रहे हैं?
अभी उसका टाइम आ गया है. वह जैसा सिनेमा बनाने का इच्छुक है, अब लाइफ उसे मौका दे रही है. हासिल और पान सिंह तोमर उसी का सिनेमा था, लेकिन वह बहुत लिमिटेशन में बना रहा था. आज उसको पूरे साधन मिलेंगे. अगर वो सारी फिल्में मेरे साथ बनाएगा, तो वो भी बोर हो जाएगा, मैं भी. मैं जिस दिन उतने करोड़ का एक्टर हो जाऊंगा, तो फिर उसके सिनेमा में आ जाऊंगा. अपनी एक दुनिया है यार, जिसमें बहुत-सी चीजें काम करती हैं. 

तिग्मांशु कभी स्टार के पीछे नहीं भागे, लेकिन अब वह स्टार के साथ चल रहे हैं.
क्योंकि स्टार पहले जानते नहीं थे कि तिग्मांशु धूलिया क्या थे. आज उसको मौका मिल रहा है, तो वह स्टार के साथ फिल्म क्यों न बनाए? वो स्टार के पीछे नहीं जा रहा है, स्टार उसके पीछे आ रहे हैं. स्टार पैसा लेकर आ रहा है. आपको जो फीस मिलती है, उसकी पांच गुना ज्यादा अब मिलेगी.

आप भारतीय और विदेशी फिल्मकारों के साथ काम करने का जो अनुभव बटोर रहे हैं, उसका इस्तेमाल कभी करेंगे?
अगर मुझे एक राइटर मिल जाए, तो मैं एक्टिंग छोडक़र डायरेक्शन में लग जाऊं. यह डायरेक्टर्स का टाइम है. लोग अच्छा सिनेमा देखने के लिए आतुर हैं. लेकिन मैं राइटर नहीं हूं. मेरे अंदर लिखने की क्षमता नहीं है. अगर मुझे राइटर मिलेगा, तो मैं जरूर डायरेक्टर बनूंगा.

आपकी पत्नी सुतपा एक अच्छी राइटर हैं.
क्या है कि या तो तुम अपना घर चला सकते हो या काम कर सकते हो. दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकतीं. फिर या तो घर रहेगा या कहानी. हम दोनों दोस्त अच्छे हैं. शायद थोड़ा अच्छे पति-पत्नी भी हो सकते हैं. एक सहकर्मी के तौर पर अच्छे नहीं है. वो मेरे लिए बहुत अधीर हैं और मैं उनके लिए बहुत हार्ड होऊंगा. मैं जल्दी संतुष्ट नहीं होता. हम सहकर्मी के तौर पर एक नहीं हो सकते.

आप दो बच्चों बाबिल (12 वर्ष) और अयान (8 साल) के पिता हैं. आप उनके संग सख्ती से पेश आते हैं या एक दोस्त की तरह?
मैं चाहूंगा कि मेरे जैसा पिता सबको मिले. मैंने अपने बच्चों के साथ कभी जबरदस्ती नहीं की. हां, मैंने उनको आगाह किया है. कभी कोई चीज थोपता नहीं. खाने को लेकर कभी-कभी इंपोज किया है. जैसे मैं फास्ट फूड खाने से टोकता हूं. कोल्ड ड्रिंक पीने से रोकता हूं. मैं उनका दोस्त ज्यादा हूं. मेरे लिए लाइफ का सबसे प्योर एक्सपिरिएंस पिता बनना है. दुनिया में बहुत कम अनुभव हैं जो इतने प्योर हैं. पिता बनने के बाद आपको देने की आदत हो जाती है.

कभी आपने कोई फिल्म आपने ठुकराई और बाद में उसे ना कहने का पछतावा हुआ?

दबंग और स्पेशल 26 मेरे पास आई थीं, लेकिन जब इन फिल्मों में मैं था, तब ये मेरे हिसाब से अडॉप्ट करने के लिए तैयार नहीं थीं. लेकिन जब वो वहां गईं, तो फ्लेक्सिबल हो गईं. तो मैं ये नहीं कह सकता कि दबंग में मैं होता, तो वो ऐसी होती.

क्या सच है कि खान के संग तुलना होने की वजह से आपने अपना सरनेम खान हटा दिया?
मैं तुलना से तंग आ चुका था. मैं तुलना नहीं करता. मैं जो करता हूं, वह रीयल और दूसरे लोग जो करते हैं, वह भी सही हैं. वो किसी फ्लूक पर सरवाइव नहीं कर रहे हैं. वो कड़ी मेहनत कर रहे हैं. उनका अपना चार्म है, जो लोगों पर काम करता है. हां, कुछ एक्टर्स जरूर हैं, जो जबरदस्ती थोपे हुए हैं दर्शकों के ऊपर और वो सरवाइव कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास सपोर्ट है. वह अलग बात है.

आपको लगता है कि इंडस्ट्री ने आपको ड्यू नहीं दिया?
मैं कभी ऐसा नहीं सोचता. मैं इस मामले में बहुत पॉजिटिव हूं. इस इंडस्ट्री ने मुझे बहुत कुछ दिया. हासिल के बाद मेरे पास रोज दो स्क्रिप्ट आती थीं. लेकिन मैंने फिल्में नहीं कीं, क्योंकि मैं खुद अपनी अलग जगह बनाना चाहता था. इंडस्ट्री तो खुले हाथों मेरा स्वागत करने के लिए तैयार थी. मैं बोल रहा था कि मैं नहीं करना चाहता. वह मेरी प्रॉब्लम थी.

आपको थिंकिंग वूमन सेक्स आइकॉन कहा जाता है. आप इसे पसंद करते हैं?
मुझे औरतों से जो भी अटेंशन मिलती है, मैं उसे एंजॉय करता हूं. उनके बिना जिंदगी कुछ भी नहीं है. एक्टर बनने का एक बहुत बड़ा कारण यह रहा है कि औरतें आपको अपनी ड्रीम में देखती हैं. मोस्ट रिवाइडिंग थींग एक्टर होने की यह है. उनके बिना आपकी लाइफ में रंग नहीं आते.

 साभार: फिल्मफेयर

Tuesday, August 20, 2013

मैं रिस्क लेने से नहीं डरती: सोनाक्षी सिन्हा

कामयाबी को बरकरार रखने के लिए सुरक्षित रास्ते पर चलने वालों में से नहीं हैं सोनाक्षी सिन्हा. शॉटगन जूनियर से इस भेंट में यह जाना रघुवेन्द्र सिंह ने
आप उन पर एकरूप होने का ठप्पा लगा सकते हैं, लेकिन उनसे उनकी शानदार सफलता को अलग नहीं कर सकते. तीन साल के भीतर उनकी चार फिल्मों (दबंग, राउड़ी राठौड़, सन ऑफ सरदार और दबंग 2) ने बॉक्स-ऑफिस पर सौ करोड़ रुपए के आंकड़े को पार किया है. आलोचनाओं की वह खिल्ली उड़ाती हैं और फिर बेपरवाह अंदाज में अपनी कामयाबी का सफर तय करने में जुट जाती हैं. सोनाक्षी सिन्हा कमाल की लडक़ी हैं. वह हर पल खुश रहती हैं. शायद यह कारण है कि सफलता को उनके पीछे-पीछे चलने में मजा आता है. उनकी प्रतिस्पर्धा किसी अभिनेत्री से नहीं है. उन्हें खुद को ललकारना पसंद है. विक्रमादित्य मोटवाने (उड़ान फेम) की पीरियड लव स्टोरी लूटेरा में उन्होंने एक नई चुनौती को गले लगाया है. कारण वह बताती हैं, ''ताकि मुझे एक ज्यादा सीरियस एक्टर के तौर पर लोग पहचानें.
फिल्मफेयर हिंदी अपनी इस पहली कवर गर्ल (मई 2010) के स्टारडम के हर कदम का साक्षी रहा है. यह मैगजीन और वो परस्पर सफलता के मार्ग पर चलते रहे हैं. शायद यह कारण है कि सोनाक्षी हमेशा हमसे आत्मीयता से मिलती हैं और निसंकोच अपने जीवन के बारे में बातें करती हैं. विक्रमादित्य की लूटेरा, मिलन लुथरिया की वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा, तिगमांशु धूलिया की बुलेट राजा, प्रभुदेवा की रैंबो राजकुमार और आर मुर्गदोस की थुपक्की की रिमेक के साथ सोनाक्षी इस साल भी बॉक्स-ऑफिस पर भूकंप लाने के लिए तैयार हैं. जानें, इस खूबसूरत अभिनेत्री की बेशुमार शोहरत और कामयाबी का राज...


लूटेरा साइन करने के पीछे कहीं यह साबित करने की मंशा थी कि मैं रियलिस्टिक फिल्म भी कर सकती हूं?
नहीं, अगर मैं यह सोचकर कोई काम करूं कि मुझे किसी दूसरे को साबित करना है, तो मैं ऐसी जिंदगी नहीं जी सकती. आज मैं जो काम कर रही हूं, वह मुझे पसंद है और अच्छा काम कर रही हूं, इसलिए खुश हूं. ये मेरे लिए काफी है. मैंने खुद के लिए साबित कर लिया है. मुझे किसी दूसरे को साबित करने की जरूरत नहीं है. लेकिन जब विक्रम ने लुटेरा का नैरेशन दिया था, तो मुझे स्क्रिप्ट बहुत अच्छी लगी थी. नैरेशन के दौरान मुझे रोना आ गया था, हंसी आ गई थी, रोमांस का सेंस आ गया था, तो मैंने सोचा कि स्क्रीन पर क्या होगा. ये मुझे देखना था. अमूमन कोई फिल्म आती है, तो मैं सोचती हूं कि इस रोल को ये एक्ट्रेस कर सकती है या वो कर सकती है, लेिकन जब लूटेरा आई तो मुझे लगा कि यह रोल सिर्फ मैं ही कर सकती हूं.

लोगों की बातें आपके फैसलों को प्रभावित नहीं कर पातीं?
बिल्कुल नहीं. मेरी एक फैमिली है, जिसकी मैं सलाह लेती हूं. उसके बाद कोई और है ही नहीं, जिसकी मुझे परवाह करनी चाहिए. वही आपके शुभचिंतक हैं और आलोचक भी. जो अच्छा या बुरा है, वो साफ-साफ बोल देंगे. बाकी के लोग आपको बहलाने के लिए बातें करेंगे. कुछ लोग जेनुइन होते हैं, लेकिन उनको परखना पड़ता है.

आप फिल्म आलोचकों की भी परवाह नहीं करतीं?
मैंने आज तक अपनी किसी फिल्म का रिव्यू नहीं पढ़ा. मेरी फिल्म के बॉक्स-ऑफिस फीगर्स मुझे बहुत खुश कर देते हैं. लेकिन मैं मानती हूं कि हर किसी का अपना ओपिनियन होता है. मगर मैं उनकी सुनती हूं, जो मेरे लिए महत्वपूर्ण होते हैं.

लूटेरा ओ हेनरी की लघु कथा द लास्ट लीफ पर आधारित फिल्म थी. क्या आपने वह कहानी पढ़ी है?
स्कूल में पढ़ी थी द लास्ट लीफ. मुझे अच्छी लगी थी. वो चार पेज वाली स्टोरीज आती थीं न, ये वैसी वाली कहानी थी. लुटेरा दो घंटे की फीचर फिल्म है. इसका मूल भाव वही है, लेकिन विक्रम (विक्रमादित्य मोटवाने, निर्देशक) ने अपने हिसाब से बहुत-सी चीजें जोडक़र फिल्म बनाई है.

यह आपके करियर का पहला सीरियस रोल था?
मेरा हर रोल सीरियस होता है, क्योंकि काम को सीरियसली लेना अच्छा होता है. मुझे स्क्रिप्ट अच्छी लगती है, फिल्म का माहौल अच्छा लगता है, इसलिए मैं फिल्में करती हूं. अपने किसी भी रोल को नॉन-सीरियस कहना गलत होगा, पर हां लूटेरा में मुझे बहुत कुछ अलग करने को मिला है. इसमें एक्टर के तौर पर मुझे अपनी क्षमताओं और एक अलग पहलू को दिखाने का मौका मिला है. इस हिसाब से पाखी का रोल मेरे लिए बहुत बड़ा है. इसमें बहुत इमोशंस हैं. यह मेरे लिए डिफिकल्ट और चैलेंजिंग रोल रहा.

किस प्रकार की मुश्किलों और चैलेंज की आप बात कर रही हैं? 
लुक के मामले में, क्योंकि यह पीरियड फिल्म है. 1950 का इसमें परिवेश है, पूरा लुक उस दौर का है. हमने इसमें बहुत कम मेकअप यूज किया है. पाखी का कैरेक्टर बहुत डिफिकल्ट था, क्योंकि मुझे पता नहीं था कि उस जमाने में लड़कियां कैसी होती थीं. यह मॉडर्न लडक़ी तो है नहीं. बहुत सहमी-सहमी और इमोशनल है. एक रिश्ता उसका अपने पिता के साथ और दूसरा अपने प्यार के साथ है. दो अलग तरीके के रिश्ते दिखाए गए हैं इसमें. लोकेशन काफी मुश्किल थे. हमने कोलकाता में शूट किया, लेकिन लोकेशन शहर से दो-तीन घंटे दूर होती थी. फिर हम पुरौलिया गए थे, जो कोलकाता से आठ घंटे दूर है. कठिन जगहों पर हमने शूट किया है. डलहौजी में एक बार सेट गिर गया था, रणवीर की पीठ में कुछ प्रॉब्लम आ गई थी. लेकिन उन मुश्किलों से हम एक खूबसूरत फिल्म लेकर उभरे हैं.

अगर हम गलत नहीं हैं, तो यह पहला किरदार है, जिसके लिए आपको रिहर्सल करना पड़ा?
मैं ऐसी एक्टर नहीं हूं कि रिहर्सल या तैयारी करूं. जब तक कैमरा ऑन नहीं होता, आप चाहे जो कर लो मेरे साथ, मैं एक्टिंग नहीं करुंगी (हंसती हैं). हां, मैं अपने डायरेक्टर से खूब बातें करती हूं. उनसे समझती हूं कि मेरे किरदार को लेकर उनके मन में क्या चल रहा है. विक्रम ने इसे लिखा भी है, तो वह पाखी को बेहतर जानते हैं.

लेकिन कुछ लोग अपने किरदार के लिए क्या-क्या तैयारी नहीं करते. आपको वह जरूरी नहीं लगता?
सबका अपना-अपना तरीका होता है. जिसको जो क्लिक करे, वह करता है. मैं तो नहीं कर सकती बाबा. जिसको तैयारी करनी है, वह करे. 

आपने इतने सारे निर्देशकों के साथ काम किया है. विक्रमादित्य मोटवाने उनसे किस प्रकार अलग हैं?
विक्रम के साथ काम करके ऐसा लगा कि हम वापस स्कूल चले गए. इतना अनुशासित सेट मैंने आज तक नहीं देखा था. सिंक साउंड था, तो बातचीत बिल्कुल नहीं होती थी. लंच ब्रेक एक बजे होगा, तो बस होगा. नाश्ता के लिए ब्रेक छह बजे तय है, तो छह बजे ही होता था. अगर उन्होंने बीस मिनट बोला, तो बीस मिनट में रेडी होना चाहिए. मुझे बहुत अच्छा लगा ऐसे सेट पर काम करके. मैं तो कहूंगी कि हर सेट ऐसा ही होना चाहिए. मुझे अनुशासन बहुत पसंद है.

लेकिन रणवीर सिंह को अनुशासन में रखना मुश्किल हुआ होगा?
जब हम फिल्म शूट कर रहे थे, तो रणवीर ने कॉफी पीनी छोड़ दी थी, तो वो थोड़े कम हाइपर हो गए थे (हंसती हैं). अगर पूरा माहौल ही अनुशासित हो जाए, तो आपके पास कोई विकल्प नहीं बचता.

रणवीर बहुत एनर्जेटिक हैं. कभी आपको उनकी इस बात से प्रॉब्लम हुई?
जितने हाइपर और एक्साइटमेंट से भरे रणवीर हैं, उनके जस्ट अपोजिट मैं हूं. यह देखने वाली चीज थी कि हम सेट पर कैसे रहते थे. लेकिन जो स्क्रीन पर उभरकर आया है, वह कमाल की चीज है. ऑफ स्क्रीन आप कैसे भी हों, फर्क नहीं पड़ता, लेकिन ऑन स्क्रीन रिजल्ट अच्छा आए, तो बस और कुछ नहीं चाहिए. लुटेरा की पूरी यूनिट यंग थी. मुझे नहीं लगता कि 35 वर्ष से ऊपर की उम्र का कोई सेट पर था. हम सबने बहुत मस्ती की. दीपा मोटवाने, विक्रम की मां, जो हमारी फिल्म की ईपी (एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर) थीं, वो सेट पर एक मदर फीगर थीं और देखती रहती थीं कि सब बच्चे पागलों की तरह इधर-उधर भाग रहे थे.

अब आप रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, इमरान खान के साथ काम कर रही हैं, जो हम उम्र हैं. तो यह कांशियस मूव है?
बिल्कुल नहीं. मेरे पास जो फिल्में आईं और उनमें से मुझे जो पसंद आईं, मैंने उन्हें साइन किया, ना कि ये देखकर कि को-स्टार कौन है. जब मेरा डेब्यू सलमान खान के साथ हुआ था, तो उसके बाद एक फिल्म अक्षय कुमार के साथ मिली, तो एक अजय देवगन के साथ. कोई भी न्यूकमर उस ऑफर को झटक लेगा ना! उसके बाद मेरे पास शाहिद, इमरान और रणवीर के साथ फिल्में आईं और मैंने उन्हें किया, क्योंकि स्टोरी बहुत अच्छी थीं.

आपको लगता है कि लूटेरा के बाद बतौर एक्टर आपको एक नई पहचान मिलेगी?
इस फिल्म में मैंने बहुत मेहनत की है. होप कि लोग इसे देखें और पसंद करें और मुझे एक ज्यादा सीरियस एक्टर के तौर पर रिक्गनाइज करें.
कमर्शियल सफलता के बावजूद क्या एक एक्टर की चाह होती है कि लोग उसे एक सीरियस एक्टर के तौर पर अंडरलाइन करें?
होती होगी, लेकिन मैं अपने मौजूदा दौर को एंजॉय कर रही हूं. मेरे पास वो सब है, जिसकी किसी को भी चाह हो सकती है. मैं खुश हूं.

लेकिन कंप्लीट एक्टर तो तभी माना जाता है न, जब एक एक्टर का इस तरह का प्रोफाइल होता है?
वो बॉडी ऑफ वर्क होता है, लेकिन मैं वैसी फिल्में कर रही हूं, जो मुझे देखना पसंद है. अच्छी फिल्में, बड़ी फिल्में. एक इंसान जो एक्टर बनना ही नहीं चाहता था, वो एक्टर बना और उसने इतने कम समय में इतना कुछ हासिल कर लिया, उससे मैं खुश हूं. मैं और क्या चाहूंगी? मुझे वह ठप्पा नहीं चाहिए. मुझे उसकी जरूरत नहीं है.

आपकी सभी फिल्में बॉक्स-ऑफिस के लिहाज से सेफ मानी गईं. क्या आप मानती हैं कि आपने सुरक्षित रास्ता अख्तियार किया?
अगर मुझे ऑफर मिल रहा है सलमान, अक्षय, अजय जैसे सुपरस्टार के साथ काम करने का, तो मैं क्यों नहीं लूंगी? कोई भी समझदार इंसान वही करेगा, जो मैंने किया. मगर अभी मुझे बहुत सारी चीजें करनी हैं. एक्सपेरिमेंट तो नहीं कहूंगी, लेकिन काफी अलग-अलग टाइप के रोल करने हैं.

आपने जीवन में अब तक कोई रिस्क नहीं लिया है?
मैं रिस्क लेने से डरती नहीं हूं. मैं फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करके एक्टर बन गई, इससे बड़ा रिस्क मैं और क्या लूं? मुझे एक्ट्रेस बनना ही नहीं था. मैंने कॉलेज में तीन साल पढ़ाई की और टॉप करती थी. मैं स्टूडेंट ऑफ द ईयर बन चुकी थी. उसके बाद सब छोडक़र मैं एक्टर बन गई. पता नहीं था कि आगे क्या होगा. क्या फिल्म क्लिक करेगी या क्या मैं क्लिक करूंगी, कुछ पता नहीं था.

क्या आप आमिर खान और शाहरुख खान के साथ काम करने की इच्छुक हैं? चर्चा थी कि आप हैप्पी न्यू ईयर में शाहरुख के साथ काम करने जा रही हैं.
अगर किसी अच्छी फिल्म का ऑफर आया, तो मैं जरूर उनके साथ काम करूंगी. यह सवाल आपको उनसे भी पूछना चाहिए ना! चर्चा होती रहती है, अफवाह उड़ती रहती है. अब कोई हर फिल्म में मेरा नाम डाल दे, तो मेरी गलती तो है नहीं. हो सकता है कि फिल्म गरम करने के लिए लोग ऐसा करते हैं. लेकिन जब तक मैं फिल्म साइन नहीं कर लेती हूं, तब तक उसके बारे में बात नहीं करती हूं.

क्या आप मानती हैं कि इंडियन लुक होने की वजह से आप एक दायरे में सिमट कर रह गई हैं?
दायरे में सिमटना तब बुरा होता है, जब अवसर मिलने कम हो जाते हैं. कौन-सी दूसरी एक्ट्रेस की चार फिल्में एक साल में रिलीज होती हैं? लॉजिक वाली बात है ना! मेरी एक फिल्म खत्म नहीं होती कि मैं दूसरी साइन कर लेती हूं.

दीपिका पदुकोण, अनुष्का शर्मा, परिनीती चोपड़ा एक तरफ हैं और आप एक ओर. आप लोगों में कोई कॉम्पिटिशन ही नहीं है.
मैं कॉम्पिटिशन के तौर पर देखती ही नहीं हूं. मैं अपने काम में इतनी गुम हूं कि मुझे आजू-बाजू का कुछ दिखाई नहीं देता. मैं मानती हूं कि चुपचाप अपना काम करो, अच्छा काम करो और आगे बढ़ो. अगल-बगल का मत देखो.

रणवीर सिंह के साथ आपके अफेयर की बात उठी थी, लेकिन आप दोनों ने खंडन कर दिया. क्या रणवीर बॉयफ्रेंड मैटेरियल नहीं हैं?
मैं तो रणवीर के मुंह पर कहती हूं कि तुम बॉयफ्रेंड मैटेरियल हो ही नहीं (हंसती हैं). हम दोनों जस्ट अपोजिट हैं. वो जितना हाइपर है और मैं उतनी ही शांत मिजाज हूं. मतलब इट वोंट वर्क ओनली (हंसती हैं). मुझे तो वो बॉयफ्रेंड मैटेरियल नहीं लगते. आप किसी के साथ क्लिक करते हैं और कुछ लोगों के साथ क्लिक नहीं करते. हां, वो को-स्टार बहुत अच्छे हैं. काम के लिए उनका उत्साह बहुत अच्छा है. लेकिन उसके आगे, अगर आप किसी के साथ रोमांटिकली क्लिक नहीं करते, तो बस नहीं करते.

किस तरह के लडक़े आपको आकर्षित करते हैं?
शांत, इंटेलीजेंट, हार्डवर्किंग और मेरे से लंबे (हंसती हैं).

कैसे लडक़ों से आप दूर भागती हैं?
जो दिखावा बहुत करते हैं. मुझे ऐसे लडक़े बिल्कुल नहीं पसंद हैं. ऐसे लडक़े मुझसे टकराते हैं, तो मैं उन्हें भाव नहीं देती. फिर वो आगे बढ़ जाते हैं (हंसती हैं).

जोकर को छोडक़र आपकी सभी फिल्में चली हैं. क्या आप उस फिल्म से जुडऩा एक गलत फैसला मानती हैं?
बिल्कुल नहीं. वह मेरा सबसे अच्छा फैसला था, क्योंकि सलमान खान के बाद दूसरी फिल्म मुझे यह मिली थी और यह अक्षय के साथ थी. यह अपने आप में बड़ी बात थी. उसकी शूटिंग के दौरान मुझे राउड़ी राठौड़ और सन ऑफ सरदार ऑफर की गईं, जो आगे चलकर बड़ी हिट साबित हुर्इं. जोकर मुझे बहुत कुछ देकर गई. मुझे उससे बहुत कुछ सीखने को मिला.

जब एक फिल्म नहीं चलती है, तो क्या उससे निर्देशक, निर्माता और स्टार्स के रिश्ते में खटास आ जाती है?
मेरे रिश्ते में तो खटास नहीं आई है. मेरे दिल में उनके लिए सम्मान है. फिल्म चलने या न चलने से रिश्ते पर असर नहीं पड़ता, क्योंकि फिल्म का चलना या न चलना, आपके हाथ में नहीं है. वह तो दर्शक तय करते हैं.

आपने अभी तक मल्टीस्टारर फिल्म नहीं की है. क्या आपने ऐसी फिल्मों को हां नहीं कहा या ऐसी फिल्मों के ऑफर आपके पास आते ही नहीं हैं?
जब तक मुझे सोलो लीड हीरोइन का ऑफर मिल रहा है, तब तक मैं मल्टीस्टारर फिल्म क्यों करूं? अभी मुझे मल्टीस्टारर फिल्म करने की जरूरत नहीं है. हां, अगर मल्टीस्टारर फिल्म का सेटअप बहुत अच्छा है, तो मैं कर सकती हूं.

आपके घर में सब लोग एक साथ रहते हैं. कभी लगता है कि आपको अपना स्पेस नहीं मिल रहा है?
मुझे बिल्कुल नहीं लगता कि स्पेस नहीं मिल रहा है. मेरा एक कमरा है, मुझे स्पेस चाहिए होता है, तो अपने कमरे में चली जाती हूं. मेरी पूरी फैमिली एक फ्लोर पर रहती है और मुझे यह माहौल पसंद है.

जब आप घर में होती हैं, तो क्या किचन में जाती हैं?
नहीं, मुझे कुकिंग का शौक नहीं है. हमारे घर में खाना कुक बनाता है. मम्मी जब कभी कुक करती हैं, तो खा लेते हैं, लेकिन आम तौर पर कुक ही खाना बनाता है.

कौन-सी लव स्टोरी आपकी फेवरेट है हिंदी सिनेमा की?
हम दिल दे चुके सनम, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है.

रीयल लाइफ में आपने ऐसी कोई लव स्टोरी सुनी है, जो आपको बहुत पसंद आई?
हां, अपने मां-बाप की. दोनों ट्रेन में मिले थे. दोनों पटना जा रहे थे, किसी की शादी में. ट्रेन में मेरी मम्मी की मम्मी उन्हें डांट रही थीं और वो रो रही थीं. मेरे पापा ने देख लिया. जब वो ट्रेन से उतर गए, तो खिडक़ी से जाकर मम्मी से बोला कि आप मत रोइए, आप रोते हुए अच्छी नहीं लगतीं.

वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा भी पीरियड फिल्म थी. ऐसी फिल्मों की क्या बात आपको अच्छी लगती है?
यही कि एक चैलेंज-सा हो जाता है. जिस एरा के बारे में कुछ नहीं जानते आप, उसे जीना एक चैलेंज होता है. आपको एक अलग दुनिया में जाने का मौका मिलता है. मजा आता है. वंस अपॉन... में लव ट्रैंगल है. यास्मीन के लिए चैलेंज था कि वह जो रिलेशनशिप अक्षय के किरदार के साथ शेयर करती है और इमरान के साथ जो रिलेशनशिप शेयर करती है, काफी टाइम तक पता नहीं चलता कि वह किसकी ओर झुक रही है. मेरे लिए दो तरह की केमिस्ट्री को मेंटेन करना चुनौती थी.

अपने अपने अतीत के किन दिनों को याद करना पसंद करती हैं?
अपने स्कूल के दिनों को. मैं बहुत स्पोर्ट्स खेलती थी- वालीबॉल, फुटबॉल, बास्केटबॉल, टेनिस, स्विमिंग.

आप अभी भी सिंगल हैं या कोई मिला?
मैं सिंगल ही हूं. चॉइस नहीं है. मैं काम बहुत ज्यादा कर रही हूं. फ्रेंड्स और फैमिली के साथ शेष समय बिताती हूं. मैं बारह घंटे शूट करती हूं और उसके बाद के टाइम में से किसी और को निकाल कर दे दूंगी, तो फिर मेरे लिए टाइम बचेगा ही नहीं. हर चीज का टाइम होता है. जब प्यार होना होगा, तो हो जाएगा. ऐसा नहीं है कि मैं प्यार को ढूंढ रही हूं या उसके पीछे भाग रही हूं.

साभार: फिल्मफेयर 


मैं स्टार नहीं बनना चाहता: सुशांत सिंह राजपूत

सुशांत सिंह राजपूत ने पहली फिल्म काय पो चे से साबित कर दिया कि वह स्टारडम की ऊंचाई पर पहुंचने का माद्दा रखते हैं. इस सहज, सरल, सुलझे और होनहार अभिनेता से रघुवेन्द्र सिंह ने की विशेष बातचीत
सुशांत सिंह राजपूत अपने दिल की बात सुनते हैं और अपने दिल की बात बिना लाग-लपेट के सरल शब्दों में कह जाते हैं. उनमें बनावटीपन नहीं है और न ही स्टारडम का अहम. सफलता हमेशा उनके सामने नतमस्तक होकर खड़ी रही है. उन्होंने पवित्र रिश्ता शो में मानव का किरदार किया, तो टीवी के सबसे चहेते स्टार बन गए. जब पिछले साल उन्होंने फिल्मों में कदम रखा, तो पहली फिल्म काय पो चे की रिलीज से पहले ही राजकुमार हिरानी जैसे प्रतिष्ठित फिल्मकार ने उन्हें अपनी अगली फिल्म पीके का हिस्सा बना लिया. तुरंत बाद यशराज फिल्म्स में उन्हें मनीष शर्मा की फिल्म बतौर सोलो हीरो मिल गई. अब अभिषेक कपूर ने काय पो चे के बाद अपनी अगली फिल्म में उन्हें सोलो हीरो के रूप में साइन कर लिया है. उनकी किस्मत से कई लोग रस्क खा सकते हैं, लेकिन अगर आपमें लगन, मेहनत, काबिलियत और सही चुनाव करने का हुनर है, तो कामयाबी आपके कदमों में भी बैठ सकती है. जानिए, स्टारडम की सीढिय़ां चढ़ रहे सुशांत सिंह राजपूत को करीब से...

पटना से मुंबई तक की अपनी जर्नी के बारे में बताएं?
मैंने उतार तो नहीं देखे. चढ़ाव ही देखे हैं. जो चीजें मैं करना चाहता था, वो सारी चीजें मैं कर रहा हूं. जब पटना में स्कूल (सेंट करेन्स हाई स्कूल) में था, तो ये सोचते थे कि दिल्ली में पढ़ाई करें. मेरी चार बहनें (नीतू, मीतू, प्रिंयका, श्वेता) हैं. सभी बहुत पढ़ी-लिखी हैं. कोई डॉक्टर है, कोई क्रिकेटर है, कोई सुप्रीम कोर्ट में वकील है. तो मुझे भी ऐसा कुछ करना था. तो मैंने इंजीनियरिंग का एक्जाम दिया. मैंने इंजीनियरिंग के जितने भी एक्जाम दिए, सब क्लीयर किए. उसके बाद मैंने दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया.

उसके बाद...
उसके बाद जब शौकिया तौर पर मैंने श्यामक डावर के ग्रुप में डांस करना शुरू किया, श्यामक ने बोला कि मैं एक्टिंग भी कर सकता हूं. तो मैंने बैरी जॉन का थिएटर जॉइन किया. मेरे फादर ने भी सपोर्ट किया. ऑल इंडिया एक्जाम क्लीयर करने के बाद इंजीनियर बनने में चार साल लगते हैं. तो मुझे लगा कि ऑडिशन देते हैं, लेकिन उससे पहले थिएटर में काम करके खुद को मजबूत बना लेते हैं. मुंबई आने के बाद मैं नादिरा बब्बर जी के थिएटर ग्रुप एकजुट में काम करने लगा. वहां मुझे एक टीवी शो का ऑफर मिला. मुझे कुछ नया सीखने का मौका मिल रहा था, क्योंकि मैंने कैमरे के सामने कभी एक्टिंग नहीं की थी. तो मैंने टीवी किया. पवित्र रिश्ता को लोगों ने बहुत पसंद किया. लेकिन एक समय के बाद मुझे मजा नहीं आ रहा था. सीखने के लिए कुछ बचा नहीं था. एक ही स्टोरी, एक ही डायरेक्टर, तो मैंने शो छोड़ दिया. उसी दौरान मैंने झलक दिखला जा भी किया. मुझे लगा कि फिल्ममेकिंग का कोर्स कर लेते हैं. वो मैं करने जा ही रहा था कि तभी काय पो चे के ऑडिशन के लिए मुझे बुलाया गया. उनको ऑडिशन पसंद आया और स्क्रिप्ट मुझे पसंद आई.

आपने पवित्र रिश्ता सीरियल छोड़ा, तो एकता कपूर नाराज नहीं हुईं?
नहीं, क्योंकि मैंने उनको बताया कि मैं क्यों छोडऩा चाहता हूं. वो काफी सपोर्टिव थीं. उन्होंने कहा कि तुम जो करना चाहते हो, वो करो.

वो पल या घटना कौन-सी थी, जब आपको लगा कि एक्टिंग को प्रोफेशन बनाना चाहिए?
जब आपके मेंटर बोलें कि आप अच्छे एक्टर हो, तब आपको लगता है कि हां, मैं अच्छा काम कर सकता हूं. एक बार जब बैरी जॉन ने कहा कि यू आर ए गुड एक्टर, तो मुझे लगा कि मैं जो अपने बारे में जो सोच रहा हूं, वह गलत नहीं सोच रहा हूं.

आपके घर में सिनेमा को लेकर कैसा माहौल था? फिल्में देखने की छूट होती थी या चोरी-चुपके देखने जाते थे?
बहुत ज्यादा फिल्में नहीं देखते थे. सुनाई देता था कि कोई पिक्चर अच्छी है, तो सब जाकर उसे देख आते थे. मेरी बहनों को ऋतिक रोशन बहुत पसंद है और शाहरुख खान खास तौर से. जब मैं पार्टीज में डांस किया करता था, तो मेरी बहनें बोलती थीं कि तुम ऋतिक की तरह डांस करते हो (मुस्कुराते हैं).

आपकी पहली फिल्म काय पो चे की रिलीज से पहले ही आपको राजकुमार हिरानी की पीके और यशराज फिल्म्स की एक फिल्म मिल गई. आप खुश हैं कि इंडस्ट्री ने दोनों बाहें खोलकर आपको गले लगाया है?
हां, खुश तो होते हैं कि आप सही फिल्ममेकर्स के साथ काम कर रहे हैं, जिनके साथ आप काम करना चाहते थे. ये ऐसे लोग हैं, जो इंडस्ट्री के सबसे अच्छे एक्टर्स के साथ काम कर चुके हैं और फिर वो ऑडिशन देखकर आपको अपनी फिल्म में लेते हैं. इससे आपका आत्मविश्वास भी बढ़ता है कि आप जो कर रहे थे, वह सही कर रहे थे. साथ ही, आप जिम्मेदारी भी महसूस करते हैं, क्योंकि इन्होंने आप पर भरोसा किया है, तो आप अपनी मेहनत और प्रोफेशनलिज्म से इन्हें निराश न करे.

फिल्मों में आने के बाद आपके दोस्तों का सर्कल बदल गया होगा. फिल्म इंडस्ट्री में किसे अपना दोस्त बनाया है आपने?
ऐसा नहीं है कि मैंने जान-बूझकर अपना फ्रेंड सर्कल चेंज किया है. मेरी फ्रेंड हैं माही, कुछ दिन पहले उनका बर्थडे था, तो मैं वहां गया था. किसी की फिल्म का प्रीमियर होता है या पार्टी होती है, जिन्हें मैंने अभी जाना है, तो मैं वहां भी जाता हूं. लेकिन मेरे बहुत कम फ्रेंड हैं, जो इस इंडस्ट्री के नहीं हैं. वो मेरे दोस्त हैं और हमेशा रहेंगे.

फिल्म इंडस्ट्री कैसी लग रही है? टीवी इंडस्ट्री से यहां का माहौल अलग है.
मैं यह नहीं कहूंगा कि यहां लोग अलग हैं, लेकिन क्योंकि यहां एक प्रोजेक्ट पर ज्यादा पैसे दांव पर लगे होते हैं और टाइम कम होता है, तो लोग फोकस्ड होते हैं. यहां लोग प्लानिंग अच्छे से करते हैं. एक एक्टर के तौर पर मैं नुक्कड़ नाटक में वही काम करता था, थिएटर और टीवी में भी वही किया और अब फिल्म में भी वही काम कर रहा हूं.

काय पो चे की रिलीज के बाद आपको इंडस्ट्री का अगला बड़ा सितारा माना जा रहा है. यह सोच विकसित करने में आपको लगता है कि आपकी पीआर मशीनरी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है?
जब मैं पहली पिक्चर काय पो चे की शूटिंग कर रहा था, तो मैं दूसरी पिक्चर के ऑडिशन पर गया था और पीके साइन हो गई थी. जिसे राजकुमार हिरानी डायरेक्ट कर रहे थे. पहली पिक्चर रिलीज होने से पहले ही यशराज में मुझे मनीष शर्मा की फिल्म मिल गई. वो भी ऑडिशन से हुआ. तो एक ऐसा लडक़ा, जो टीवी से निकला और उसकी पहली फिल्म आने से पहले हिरानी और यशराज उसे अपनी फिल्म में काम देते हैं, और यशराज की फिल्म में वह सोलो हीरो प्ले कर ता है, जिसका बड़ा हौव्वा है यहां पर. तो मुझे लगता है कि ऐसा बहुत कम होता है. और टीवी को लेकर तो एक अलग ही प्रीजुडीयस है कि अच्छा, ये टीवी एक्टर है. यहां पर कभी लोग ऐसा नहीं देखते कि वो एक्टर है, उसने टीवी में काम किया है. हमेशा टीवी एक्टर की तरह स्लॉट करते हैं. तो उसकी वजह से मुझे लगता है कि एक बड़ा हाइप क्रिएट हो गया था. उसके बाद पिक्चर में क्रिटिकल अक्लेम मिला और मेरा काम भी लोगों को अच्छा लगा, तो लोगों को लगा कि लडक़ा काबिल है. हम उसके बारे में सही सोच रहे थे. उसके बाद पेप्सी आपको अपना फेस बना लेता है, तो फिर लगता है कि यार या तो यह बहुत लकी है या फिर पता नहीं क्या है (हंसते हैं).

अनुराग कश्यप ने आपके बारे में कहा था कि अगर इस लडक़े ने अपने आपको संभाल लिया तो यह अगला शाहरुख खान है. इस स्टेटमेंट पर आपकी क्या राय है?
अनुराग कश्यप एक ऐसे डायरेक्टर हैं, जिनके साथ कोई भी एक्टर, कैसे भी रोल में काम करना चाहेगा. ऐसा डायेरक्टर अगर आपके बारे में यह बोलता है तो आपके दो रिएक्शन ही हो सकते हैं- एक, अगर आप भी अपने बारे में वैसा सोचते हैं, तो आपको लगता है कि आप सही सोचते हैं और फिर ज्यादा कॉन्फिडेंस के साथ आप काम करते हैं. दूसरा, अगर आप अपने बारे में ऐसा नहीं सोचते हैं, तो आप खुद को दो थप्पड़ मारेंगे कि मैं क्यों अपने बारे में ऐसा नहीं सोचता और अब मैं ऐसा सोचूंगा.

आप अपने बारे में क्या सोचते हैं?
मैंने एक इंटरव्यू में इरफान खान, जिनका मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, ने कहा था कि ये चार्म और टैलेंट का असामान्य मिक्स है. मैं इतना दूर तक नहीं सोचता और कभी-कभी मैं इतना ही मॉडेस्ट होकर सोच पाता हूं कि मैं बहुत मेहनत से काम करूंगा, ताकि मुझे अच्छी-अच्छी फिल्में मिलें. कभी नहीं सोचता कि एक दिन मैं एसआरके बनूंगा. 

क्या वरुण धवन या सिद्धार्थ मल्होत्रा को आप अपना प्रतिद्ंद्दी मानते हैं?
जब आप स्टार बनना चाहते हैं, तब आप किसी दूसरे से कॉम्पिट कर सकते हैं. आप कैसी पिक्चरें कर रहे हो, किस प्रोडक्शन हाउस के साथ काम कर रहे हो, क्या इंडोर्समेंट कर रहे हो, एक पिक्चर के लिए आपको कितने पैसे मिल रहे हैं या अखबार और मैगजीन के फ्रंट पेज पर आप कितनी बार आते हैं, ये चीजें आपके लिए तब मायने रखती हैं, जब आप सुपरस्टार बनने का सपना देखते हैं. लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि मुझे बहुत अच्छा एक्टर बनना है. मैं जितने भी अलग-अलग किरदार करूं, वो कंविंसिंग लगने चाहिए. तो दो कलाकारों की कभी आप तुलना नहीं कर सकते. मैं किसी को कॉम्पिटिशन के तौर पर देख ही नहीं रहा हूं. मेरे अंदर एक एक्टर के तौर पर इतनी खामियां हैं कि मुझे उन्हें दूर करना है. मुझे बहुत कुछ सीखना है. स्टार बनना चाहते हैं, तो आप जरूर तुलना कर सकते हैं. मैं नहीं बनना चाहता हूं स्टार.

क्यों? लोग तो स्टार बनने ही यहां आते हैं?
बिल्कुल लोग स्टार बनने के लिए आते हैं, इसीलिए बहुत से लोगों के लिए यह बहुत फुलफीलिंग करियर नहीं होता है. क्योंकि बहुत कम जगह है सुपरस्टार बनने के लिए, बहुत जगह है स्टार बनने के लिए और बहुत ज्यादा जगह है एक नॉन स्टार बनने के लिए. ये बनने के लिए सिर्फ आपकी काबिलियत नहीं देखी जाती. बहुत से ऐसे पैरामीटर हैं, जो आपके हाथ में नहीं होते. वो किसी और के हाथ में होते हैं और तुक्के से लग जाते हैं. और आप अचानक कुछ बन जाते हैं. फिर आपको समझ में नहीं आता कि आप बने क्यों? आप यही ढूंढते रहते हैं कि ऐसा मैंने क्या किया कि मैं स्टार बन गया. मुझे ऐसी चीज करनी ही नहीं या ड्रीम ही नहीं करनी, जो मेरे हाथ में न हो. एक चीज मेरे हाथ में है कि मुझे पता है मैं किस तरह के किरदार अच्छी तरह से कर सकता हूं. मुझे अपनी समस्याएं पता हैं. मैं उन पर काम कर सकता हूं.

क्या बाजार आप पर एक साल में तीन पिक्चरें करने का दबाव बना रहा है?
मैं इस प्रेशर में बिल्कुल नहीं हूं कि मुझे तीन पिक्चरें करनी हैं या चार पिक्चरें करनी हैं. मुझे अच्छी फिल्में ऑफर हो रही हैं. शायद कोई पिक्चर न चले, तो बिल्कुल न ऑफर हों. मैं कोशिश कर रहा हूं कि मैं सही स्क्रिप्ट चुनूं. मेरी एक पिक्चर बनकर तैयार है. एक की मैं शूटिंग कर रहा हूं और दो की घोषणा हो चुकी है. अगले साल शायद मुझे एक भी पिक्चर ऑफर न हो. तो संभव है कि मैं अपनी शॉर्ट फिल्म बना रहा होऊं या यूसीएलए में मैं फिल्ममेकिंग का कोर्स कर रहा होऊं. ऐसा भी हो सकता हूं. मैं इतना ही खुश और पैशीनेट तब भी रहूंगा.

आप फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने जाएंगे ?
पढ़ाई तो कभी भी किसी भी इंस्टीट्यूट से की जा सकती है. अभी भी मैं किताबें पढ़ता हूं. मैं पिक्चरें देखता हूं, तो सोचता हूं कि यह सीन या शॉट डायरेक्टर ने क्या सोचकर बनाया होगा. मैं शूट कर रहा होता हूं, तो अपने डायरेक्टर से सिर्फ अपने काम के बारे में नहीं, बल्कि यह भी पूछता हूं कि उन्होंने यह सीन क्यों रखा? मैं बहुत लकी हूं कि मैं अभिषेक कपूर या मनीष शर्मा से पूछ सकता हूं. मैं परसों राजकुमार हिरानी के साथ बैठा था. मैंने उनसे पूछा कि आप स्क्रिप्ट लिखते समय क्या नजरिया रखते हैं, एक सीन को या स्क्रिप्ट को बनाने के लिए आप क्या फंडामेंटल चीजें रखते हैं. मैंने दो-तीन किताबें पढ़ी हैं, लेकिन मुझे ज्यादा कुछ समझ में नहीं आया. तो उन्होंने मुझे एक मेल भेजा और उसमें उन्होंने लिखा है कि वो क्या सोचते हैं या जब वो एफटीआईआई से एडिटिंग की पढ़ाई करके निकले थे, तो उन्होंने अपना एक नोट बनाया था कि स्क्रिप्ट में क्या फंडामेंटल चीजें होनी चाहिए. ये चीजें आप कितने भी पैसे से खरीद नहीं सकते. आपमें भूख होगी, तभी मिलेंगी.

राजकुमार हिरानी को आपकी जिज्ञासा अच्छी लगी, लेकिन किसी निर्देशक को आपका यह एट्टिट्यूड बुरा भी लग सकता है.
ऐसा तब होता है, जब आप अपना काम ढंग से नहीं कर रहे हो. जब आप अपना काम ढंग से कर रहे हो और आप ये नहीं बता रहे हो कि आपको क्या पता है. आप ये पूछ रहे होते हैं कि आप इस काम को बेहतर कैसे कर सकते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी इंसान होगा जो अपना नॉलेज शेयर नहीं करना चाहेगा.

आपने पीके में अनुष्का शर्मा के रोल को छोटा कह दिया था, जिससे काफी हंगामा मच गया था.
मैंने अनुष्का के बारे में नहीं बोला था. मैंने वह स्टेटमेंट एक्टर्स के बारे में बोला था. जब हम एक्टिंग का कोर्स स्टार्ट करते हैं तो हमें एनसीआरटी की किताब दी जाती है. उसमें एक फंडामेंटल बात लिखी हुई है कि एक्टर को हमेशा याद रखना चाहिए और जिसे मैं हमेशा याद रखता हूं, वो ये है कि कोई भी एक्टर छोटा नहीं होता, कभी कोई रोल छोटा नहीं होता, एक्टर छोटा हो जाता है, अगर वह ऐसा सोचता है. आप देख लो, दुनिया में जितने भी ग्रेट एक्टर्स हैं, उन्होंने एक मिनट का रोल किया है. अमिताभ बच्चन ने ग्रेट गैट्सबाय में एक मिनट का काम किया है. उन्हें कुछ प्रूव नहीं करना है और न ही उन्हें पैसे की जरूरत है. उनका वह पैशन है, नए अनुभव को पाने का. मुझे राजकुमार हिरानी के साथ काम करने का अनुभव चाहिए. वह बता रहे थे कि कितना महत्वपूर्ण रोल है मेरा. मैंने बोला कि अच्छी बात है, लेकिन मैं आपको एक चीज बताना चाहता हूं कि सेट पर आपके साथ एक्सपिरिएंस लेने के लिए मैं आपके क्राउड में खड़ा हो जाऊंगा. अगर उस चीज से फ्रेम ज्यादा अच्छा बनता है तो. मुझे लोगों ने बोला कि मत करो उनकी पिक्चर में काम. तुम्हें सोलो हीरो फिल्में नहीं मिलेंगी. मैंने कहा कि मैं तो करूंगा और मुझे सोलो हीरो की फिल्म भी मिली. तो लोगों की यहां सोच है. टीवी एक्टर की सोच, बड़े हीरो की सोच, दो घंटे में एक घंटा पचास मिनट स्क्रीन पर रहें, वो सोच, कितने पैसे मिले, कितने इंडोर्समेंट मिले, वो सोच, ये सारी सोचें हैं.
अंकिता लोखंडे से आप पहली बार कब मिले?
मैं उनसे पवित्र रिश्ता के ऑडिशन पर मिला था. मैंने उनसे ज्यादा बात नहीं की थी. सिर्फ हाय बोला था. मैं काफी टाइम लगाता हूं ओपन अप होने के लिए. जब हम पवित्र रिश्ता शूट कर रहे थे, तब मैंने देखा कि वो कैमरे के सामने काफी सहज थीं. मुझे लगा कि यार मैं तो काफी दिनों से एक्टिंग कर रहा हूं, थिएटर कर रहा हूं, पर ये काफी नहीं है. शूटिंग के दौरान हम काफी समय साथ बिताते थे. तब हमने एक दूसरे को अच्छे से समझा. हमें साथ रहना अच्छा लगता था. उन चार सालों में हमने एक-दूसरे को अच्छे से जाना.

उनकी किन खूबियों ने आपको आकर्षित किया?
वो हिपोक्रेट नहीं हैं. वो साफ दिल और ट्रांसपैरेंट हैं. वो काफी टैलेंटेड हैं, काफी खूबसूरत भी हैं. वो डिप्लोमैटिक नहीं हैं. वो बातें बनाती नहीं हैं. वो अनकंडिशनली मेरा खयाल रखती हैं. मैं बहुत लकी हूं कि वो मेरी लाइफ में हैं.

आपको नहीं लगता कि अंकिता की तारीफ करके आप खामख्वाह उन्हें दूसरी लड़कियों का दुश्मन बना रहे हैं?
(हंसते हैं) मुझको नहीं लगता, क्योंकि आपकी एक निजी लाइफ होती है. एक दौर था, जब लोग ऐसा सोचते थे. हीरो की बॉडी अच्छी दिखती है, वह विलेन को बहुत मारता है, वह घोड़ा भी दौड़ाता है, तो वैसा लडक़ा सबको अपनी जिंदगी में चाहिए था. तब लोग बोलते थे कि यार, मैं सिंगल हूं. लेकिन आज आप निजी जिंदगी में शादीशुदा हैं या सिंगल है, कोई फर्क नहीं पड़ता. आप रिलेशनशिप में रहें या ना रहें, आपमें इतना आत्मविश्वास होना चाहिए कि आप उसके बारे में लोगों को बता सकें. अगर कोई रिलेशनशिप के बारे में पूछे और आप छुपाते हैं, तो उससे अच्छा है कि आप रिलेशनशिप बनाइए ही मत. 

अंकिता भी फिल्मों में आना चाहती हैं?
फिलहाल नहीं. शायद आ भी जाएं, लेकिन अभी वो लाइफ में बहुत खुश हैं. बहुत दिनों के बाद उन्होंने काम से ब्रेक लिया है. वो लाइफ को एंजॉय कर रही हैं. जब उन्हें लगेगा कि कुछ नया करना है, तो वो इतनी काबिल और सक्षम हैं कि उन्हें कहीं भी काम मिल जाएगा.

आपकी सफलता पर उनका क्या कहना है?
वो ज्यादा समय से मेरे साथ हैं. वो देखती हैं कि मैं कैसे सोचता हूं, किस तरीके से मैनेज करता हूं. वो कभी इनसिक्योर नहीं थीं. उन्हें लगता था कि ये इतनी मेहनत कर रहा है, तो इसको अच्छा काम जरूर मिलेगा. इसे जल्दबाजी नहीं है. वो बहुत खुश हैं, मुझे जो सफलता मिली है.

आप दोनों शादी कब कर रहे हैं?
जैसे ही मुझे एक महीने का अच्छा गैप मिलेगा, मैं शादी कर लूंगा. मिया-बीवी राजी हैं, तो फिर कौन रोक सकता है. अगले साल शादी होने का चांस ज्यादा है.

साभार: फिल्मफेयर 




लोग कहते हैं कि मैं बिक गया हूं: विक्रमादित्य मोटवाने

उड़ान से गंभीर फिल्मकार के तौर पर स्थापित विक्रमादित्य मोटवाने अब रोमांस की चाशनी में घुली लूटेरा  लेकर आ रहे हैं. रघुवेन्द्र सिंह उनके रोमांटिक पहलू को उजागर कर रहे हैं
आम तौर पर फिल्मकार अपनी फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान खुद को दुनिया से काट लेता है. उसका दिन-रात स्टूडियो के स्याह अंधेरे में अपनी फिल्म को सही आकार देने में गुजरता है. लेकिन विक्रमादित्य मोटवाने अपवाद हैं. आजकल आराम नगर 2 का बंगला नंबर 121, जो फैंटम का ऑफिस है, उनका दूसरा घर बना हुआ है. यहां वे दिन-रात लुटेरा को आखिरी शेप देने में जुटे हैं, मगर ताज्जुब की बात यह है कि इस एकांतवास को तोड़ते हुए वह हर वीकेंड सिनेमाहॉल में दिख जाते हैं. जाहिर है इससे उनका ध्यान टूटता होगा. इस मंतव्य का खंडन करते हुए विक्रम कहते हैं, ''पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान ब्रेक लेना जरूरी होता है. कई बार एडिट के दौरान आप कहीं अटक जाते हैं. उस समय आपको दूसरे की पिक्चर जाकर देखनी चाहिए. उससे बहुत-सी चीजें आपके दिमाग में क्लीयर हो जाती हैं. क्रिएटिव ड्रिंकिंग जरूरी होती है. मेरा मानना है कि फिल्म की राइटिंग और एडिटिंग के दौरान पिक्चरें देखनी चाहिए या बुक पढऩी चाहिए. प्रेरणा भी तो इन्हीं जगहों से आती है. 
विक्रम ने हाल में आयरन मैन, स्टार ट्रेक, बॉम्बे टॉकीज, गिप्पी, गो गोवा गॉन और औरंगजेब फिल्में देखीं. अपनी पसंद की फिल्म के बारे में वह कहते हैं, ''बॉम्बे टॉकीज में दिबाकर बनर्जी की कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी. यह इस साल की बेहतरीन कहानी है. मुझे इस कहानी का हर शॉट याद है. नवाजुद्दीन ने कमाल का काम किया है. गो गोवा गॉन मुझे बहुत अच्छी लगी. मैंने जॉम्बी कॉमेडीज देखी हैं. भारतीय दर्शकों के लिए यह एक नया अनुभव था. अन्य फिल्मों से मनोरंजन के साथ-साथ विक्रम सबक भी लेते रहते हैं. वह कहते हैं, ''पिक्चर देखने से पता चलता है कि उसमें क्या अच्छा और क्या बुरा था. क्या गलती उन्होंने की और मैं क्या गलती कर रहा हूं, तो मैं उसे सुधार सकता हूं. अंत में, कंविक्शन बहुत जरूरी है. इंडस्ट्री में लोग कहते हैं कि हमें यह चीज अच्छी नहीं लग रही, लेकिन दर्शकों को अच्छी लगेगी. मुझे फिल्ममेकिंग का यह गलत तरीका लगता है. 
                                                                          लूटेरा 
अपनी पहली फिल्म उड़ान में विक्रम ने मोहब्बत का जिक्र तक नहीं किया था और उनकी दूसरी पिक्चर लूटेरा प्यार में सराबोर है और यह प्यार 1950 के जमाने का है. पीरियड लव स्टोरी बनाने की वजह विक्रम बताते हैं, ''लूटेरा ओ हेनरी की एक शॉर्ट स्टोरी द लास्ट लीफ पर आधारित है. मुझे इस कहानी की मासूमियत ने आकर्षित किया. यह एक ट्रैजिक लव स्टोरी है, जो अंत में आपके चेहरे पर स्माइल छोड़ जाती है. मैंने अपनी सह-लेखक भवानी अय्यर के साथ मिलकर इसका मॉडर्न अडॉप्टेशन करने की कोशिश की थी, लेकिन मैंने महसूस किया कि मोबाइल व फेसबुक होने की वजह से कहानी में जो रोमांस और मासूमियत है, वह खो रही है. आज आप ब्रेकअप कर लो, तो फेसबुक के जरिए पता चलता रहता है कि सामने वाले की जिंदगी में क्या चल रहा है? फिर पीरियड में एक डायरेक्टर के तौर पर मुझे चैलेंज लगा. उस जमाने को लेकर काफी सालों से पिक्चर नहीं बनी है. द लास्ट लीफ चार पन्ने की कहानी है. उसे एक फिल्म के रूप में ढालने में आई मुश्किलों के बारे में विक्रम ने बताया, ''चार पन्ने की स्टोरी को डेढ़ सौ या एक सौ आठ पन्ने की स्क्रिप्ट बनाने में चैलेंज तो है. लेकिन उसमें एक आजादी भी है कि चार पन्ने को छोडक़र बाकी सब आप क्रिएट कर सकते हैं. जब आप किसी किताब को अडॉप्ट करते हैं, तब आप अटक जाते हैं कि नॉवेल से फलां सीन को कैसे निकालूं. वह बहुत मुश्किल होता है.
द लास्ट लीफ के बारे में विक्रम को उनके एक दोस्त ने 2002 में बताया था. उस वक्त विक्रम बॉम्बे टॉकीज नाम की एक फिल्म बनाने की कोशिश कर रहे थे. वह नहीं बनी, तो इस कहानी पर उन्होंने फिल्म बनाने का फैसला किया. 2005 में उन्होंने स्क्रिप्ट का काम भी समाप्त कर लिया. फिर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि लूटेरा की बजाए उन्होंने उड़ान को अपनी पहली फिल्म के तौर पर क्यों चुना? जवाब विक्रम देते हैं, ''क्योंकि उड़ान कम बजट में बन सकती थी. उस पर प्रेशर नहीं था. स्टार्स आम तौर पर फस्र्ट टाइम डायरेक्टर के साथ काम नहीं करते हैं. हालांकि उनको करना चाहिए, क्योंकि नया डायरेक्टर अपना पूरा पैशन फिल्म में डाल देता है. एक समय आया, जब उड़ान नहीं बन रही थी, तो मैं लुटेरा बनाने में जुट गया. और एक राज को वह उजागर करते हैं, ''2007 में लूटेरा मैं निखिल आडवाणी के साथ बना रहा था. रेकी भी हो चुकी थी. विद्या बालन और जॉन अब्राहम तब लीड में थे. सलाम-ए-इश्क के बाद हम इसे बनाने वाले थे. विद्या को स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई थी. लेकिन कुछ कारण वश फिल्म नहीं बन सकी और उड़ान बन गई. विद्या और जॉन को अब फिल्म में कास्ट न करने के बारे में विक्रम कहते हैं, ''वो जमाना निकल गया. हमें यंगर कपल की जरूरत थी.
लूटेरा में रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा की कास्टिंग का किस्सा दिलचस्प है. रणवीर से अपनी पहली भेंट का श्रेय विक्रम फिल्मफेयर को देते हैं. ''मैं रणवीर से फिल्मफेयर अवॉर्ड की प्री-पार्टी में मिला था. मैंने बैंड बाजा बारात देखी थी और रणवीर ने उड़ान. हम एक-दूसरे की तारीफ करते हुए गले मिले कि क्या पिक्चर बनाई है! रणवीर ने पूछा कि तेरे पास कोई स्क्रिप्ट है? मैंने कहा कि हां है. बातों-बातों में पता चला कि वो भी खार का लडक़ा है, सिंधी है और मैं भी सिंधी हूं, तो एक कनेक्शन बन गया. फिर हमने प्लान बनाया कि किसी दिन सिंधी कढ़ी खाएंगे. सिंधी कढ़ी से आरंभ हुआ वह सिलसिला लूटेरा पर आकर ठहरा. विक्रम ने जब रणवीर को लूटेरा की स्क्रिप्ट दी, तो उन्होंने हैरानी से पूछा, 'यार तू सच्ची में चाहता है कि मैं ये पिक्चर करूं? और फिर रणवीर गायब हो गए. विक्रम बताते हैं, ''पिछले साल सितंबर के अंत में अचानक एक दिन उसका फोन आया कि तुम वो पिक्चर बना रहे हो? मैंने कहा कि बनानी तो है. फिर एक हफ्ते बाद उसका फोन आया कि चलो, करते हैं. लूटेरा की कहानी में सर्दी का मौसम है. सितंबर में रणवीर के हां कहने के बाद विक्रम को दिसंबर तक शूटिंग आरंभ करनी थी. वरना एक साल उन्हें और इंतजार करना पड़ता. अब उनके समक्ष हीरोइन की समस्या थी. ''मेरी पहली और आखिरी पसंद सोनाक्षी थी. मैंने कहीं से उसका नंबर निकाला और मैसेज कर दिया. नैरेशन सुनने के तुरंत बाद उसने हां कह दी. हंसते हुए विक्रम बताते हैं.
                                                              बीवी इशिका के साथ 
उड़ान में विक्रम ने निजी जिंदगी के कई हिस्से-किस्से डाले थे. इस पर सहमति के साथ वह कहते हैं, ''उड़ान में मेरी काफी जिंदगी आ गई थी. मैं नासिक में बड़ा हुआ था. मुझे पता था कि इंडस्ट्रियल एरिया में लोग कैसे रहते हैं. मेरे फादर और उनके फादर के बीच के सीन थे उसमें. बाप बेटे को सिगरेट पीने को बोलता है, वह मेरे साथ हुआ था. लेकिन लूटेरा में मैंने दो-तीन चीजें अपनी जिंदगी से ली हैं. उन चीजों के बारे में विक्रम बताते हैं, ''पाखी का कैरेक्टर अस्थमैटिक है. मेरी बीवी इशिका को यह समस्या है, तो मुझे पता था कि अगर अस्थमा का अटैक आता है, तो इंजेक्शन देना पड़ता है. ट्रेलर से पता चलता है कि लूटेरा में गहरा रोमांस है. आंखों से आंखों का मिलना और पहली बार हाथ से हाथ से टकराना जैसे अनेक एहसास इसमें हैं. अनुमान लगाया जा सकता है कि विक्रम कितने रोमांटिक हैं. उन्होंने स्वयं लव मैरिज की है. इशिका से अपनी मोहब्बत की दास्तान का वह मुस्कुराते हुए खुलासा करते हैं, ''इशिका और मैं बारह साल की उम्र से एक-दूसरे को जानते हैं. हम दोनों जमनाबाई स्कूल में साथ पढ़ते थे. हमारे डिवीजन अलग थे, लेकिन हम क्लास में ऐसी जगह बैठते थे कि एक-दूसरे को देख सकते थे. सबसे खूबसूरत पल वही थे, जब हमने एक-दूसरे को पहली बार देखा था. पहली बार जब थिएटर में हाथ में हाथ पकडक़र पिक्चर देखी थी. मुझे नहीं लगता कि पुराने जमाने के प्यार और आज के प्यार में कोई चेंज आया है. रोमांस का अंदाज बिल्कुल नहीं बदला है. विक्रम हंसते हुए आगे कहते हैं, ''मैं बहुत रोमांटिक हूं. इशिका और मैं तेइस सालों से साथ हैं, लेकिन आज भी एक-दूसरे का हाथ नहीं छोड़ते. हमारे दोस्त कहते भी हैं कि यार अब तो छोड़ दिया करो एक-दूसरे को. हमारी शादी के दौरान एकदम फिल्मी प्रॉब्लम आई थी. इशिका के घर वालों का कहना था कि लडक़ा सिगरेट और दारु पीता है, पंजाबी फैमिली है.
उड़ान के बाद विक्रम से लोगों की उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं. फिल्मफेयर की अब तक की सौ बेहतरीन फिल्मों की सूची में भी यह स्थान बनाने में कामयाब हुई है. यह बातें उन पर दबाव बनाती हैं या नहीं? जवाब में विक्रम कहते हैं, ''मैं अपने आप पर प्रेशर डालता रहता हूं. लोग कहते हैं कि लूटेरा क्यों? मैं कहता हूं कि अगर एक फिल्मकार के तौर पर विकास करना है, तो कुछ अलग करना पड़ेगा. मैं पूरी जिंदगी चार-पांच करोड़ की फिल्म नहीं बनाना चाहता. किसी कहानी को बनाने के लिए चालीस करोड़ रुपए चाहिए होते हैं. अगर आप कोशिश नहीं करेंगे, तो लोग आगे चलकर आपको फिल्म बनाने के लिए पैसे नहीं देंगे. लोगों का कहना है कि ये बिक गया है. ये इंडीपेंडेंट था, अब स्टार्स के साथ काम कर रहा है. मेरा मानना है कि लव स्टोरी स्टार्स के साथ देखने में ही मजा आता है.
विक्रम ने अनुराग कश्यप, विकास बहल और मधु मंटेना के साथ मिलकर फैंटम फिल्म निर्माण कंपनी की शुरूआत की है. लूटेरा इस बैनर की पहली फिल्म है. निर्माता बनने के फैसले के बाबत वह कहते हैं, ''हम नहीं चाहते थे कि स्टूडियो हमें बताए कि हमें क्या करना है, बल्कि हम स्टूडियो को बताएं कि हमें क्या करना है. अनुराग, विकास, मधु और मैं दोस्त हैं. हम साथ मिलकर कुछ करना चाहते थे. विकास का यूटीवी में काफी अनुभव हो गया था. उसे क्रेडिट मिलता नहीं है, लेकिन बर्फी! और पान सिंह तोमर उसी की अप्रूव की फिल्में हैं. अनुराग तो अनुराग है. मैं 1994 से संजय लीला भंसाली के साथ काम कर रहा था. हम सब अपने अनुभव का इस्तेमाल मिलकर करना चाहते थे, इसलिए फैंटम की शुरूआत की. और हम बालाजी (लूटेरा), दार (अगली), वायकॉम (क्वीन), धर्मा (हंसी तो फंसी) और फॉक्स (बॉम्बे वेलवेट) के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
विक्रम का मानना है कि सिनेमा में रिस्क लेने का यह सही समय है. आज स्टार्स एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार हैं. रणबीर कपूर बर्फी!, तो रणवीर सिंह लूटेरा और इमरान खान वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई अगेन जैसी फिल्मेें कर रहे हैं. ''आज जिंदगी मिलेगी ना दोबारा, कहानी और बर्फी! सौ करोड़ का बिजनेस कर सकती हैं. स्टार अब हर तरह की पिक्चर कर रहे हैं. टाइम बहुत अच्छा चल रहा है. आप रिस्क लो तब भी एक फिल्म के हिट या फ्लॉप होने का चांस है और आप न लो रिस्क, तब भी उतना ही चांस है. कोई गारंटी नहीं है. इसलिए रिस्क लो. अगर पिक्चर नहीं चली तो कम से कम यह तो रहेगा कि हमने रिस्क लिया था. आजकल प्रोजेक्ट बनाते हैं लोग, मुझे बहुत गुस्सा आता है. फैंटम में हम लोग पिक्चर बना रहे हैं. गर्व के साथ विक्रम कहते हैं.

साभार: फिल्मफेयर 


Friday, July 26, 2013

अमिताभ बच्चन का शॉल कलेक्शन

शॉल अमिताभ बच्चन का एक प्रिय आवरण है. निजी जीवन में वह आम तौर पर शॉल का इस्तेमाल करते हैं. कहीं यात्रा करनी हो या कोई मीटिंग हो या फिर मीडिया के साथ भेंटवार्ता हो, वह अक्सर शॉल ओढ़े नजर आते हैं. और पायजामा-कुर्ता के ऊपर जब वह शॉल ओढ़ते हैं, तो उनकी आभा और बढ़ जाती है. यह उनके ऊपर फबती है. आपको बता दें कि वह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की एकमात्र शख्सियत हैं, जो इस परिधान का इस्तेमाल करते हैं. पायजामा-कुर्ता और शॉल उनका अपना एक फैशन स्टेटमेंट है. यह उन्हें हमसे, आपसे और हिंदुस्तान से सीधे जोड़ता है. विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इस पहनावे के पीछे अमिताभ बच्चन की पे्ररणा उनके बाबूजी हरिवंशराय बच्चन होंगे. आइए, एक नजर डालते हैं अमिताभ बच्चन के शॉल कलेक्शन पर...












प्रकाश झा की फिल्म सत्याग्रह में अमिताभ बच्चन के लुक का अटूट हिस्सा है शॉल. एक नजर...










रघुवेन्द्र सिंह

Tuesday, July 23, 2013

गुलजार का श्लोक

जिस बच्चे का नामकरण प्रख्यात गीतकार-फिल्मकार गुलजार ने किया हो, अगर किशोरवय में उस पर फिल्म बनाने का जुनून सवार हो जाए, तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए. श्लोक शर्मा की जर्नी एक फिल्म की रोचक कहानी-सी लगती है. आगे क्या हुआ? यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है. श्लोक का नामकरण गुलजार ने किया, इसका अर्थ आप यह ना निकालें कि वह फिल्म इंडस्ट्री के किसी घराने से आते हैं. उनका तो फिल्मों से भी बड़े दूर का रिश्ता था. बचपन में सिनेमाहॉल में फिल्म देखने का अवसर उन्हें यदा-कदा ही मिला था. अपने होश में उन्होंने पहली पिक्चर जो थिएटर में देखी थी, वह अजय देवगन और तब्बू की विजयपथ थी.
श्लोक के पापा नेवी में कार्यरत थे. वह योगा के प्रशिक्षक भी थे. गुलजार और विशाल भारद्वाज को वह योगा का अभ्यास करवाते थे. श्लोक का फिल्म इंडस्ट्री से बस यही रिश्ता था. गुलजार साहब ने सोच रखा था कि अगर उनको बेटा हुआ, तो वह उसका नाम श्लोक रखेंगे. मगर किस्मत तो किसी और की बुलंद थी. गुलजार के उस आशीर्वाद के बाद जैसे श्लोक का फिल्मों में आना तय हो गया. ग्यारहवीं की पढ़ाई के दौरान श्लोक ने फिल्मों से जुडऩे का फैसला किया. उन्होंने पापा को किसी तरह राजी कर लिया. उन्होंने विशाल भारद्वाज से बात की, लेकिन इस फिल्मकार ने श्लोक की कच्ची उम्र के इस सपने को महज एक आकर्षण समझा. उन्होंने श्लोक को गंभीरता से नहीं लिया. मगर श्लोक दृढ़ प्रतिज्ञ थे. वह उनके ऑफिस में डंटे रहे. फिर एक घटना घटी.
विक्रमादित्य मोटवाने की मां दीपा मोटवाने विशाल भारद्वाज की फिल्म ब्लू अंब्रेला का प्रोडक्शन कार्य संभाल रही थीं. उन्हें आउटडोर के लिए यूनिट वालों की ट्रेन की टिकट बुक करवाने में काफी परेशानी हो रही थी. श्लोक उत्साह के साथ उनकी मदद के लिए आगे आए. उन्होंने कहा कि टिकट बुक करवाना कौन-सा मुश्किल काम है! उन्हें लगा कि तीन-चार टिकट बुक करवानी होगी. फिर अगले दो महीने तक श्लोक की सुबह-शाम रेलवे स्टेशन पर गुजरने लगी. कभी कोई टिकट कैंसिल करवाना होता, तो कभी किसी का टिकट बुक करवाना पड़ता. एक समय तो ऐसा आया कि रेलवे के एजेंट्स उन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगे. अपना बिजनेस टूटने का खतरा मंडराते देख वह श्लोक को परेशान करने लगे. इस किशोर पर टिकट बुक करने वाले अधिकारियों की नजर पड़ी और वह उसे परेशान होता देख पिघल गए. अपने टिकट बुक करने के हुनर की बदौलत श्लोक विशाल की प्रोडक्शन टीम का हिस्सा बनने में कामयाब हो गए.
विशाल भारद्वाज के सानिध्य में श्लोक की सिनेमाई परवरिश होने लगी. ओमकारा तक वह उनके साथ रहे, लेकिन उन्हें खिलने और खुलने का माहौल दिया अनुराग कश्यप ने. प्रतिभाओं के पारखी अनुराग की नजर श्लोक पर पड़ी और उन्होंने नो स्मोकिंग में श्लोक को अपनी संगत में ले लिया. अब श्लोक सिनेमा की दुनिया में पूरी तरह डूब चुके थे. अनुराग के पास उन्होंने जाना कि सिनेमा का दायरा कितना वृहद है. उनका सोना, जागना, खाना-पीना सब फिल्मों की चर्चा करते बीतने लगा. उन्होंने अनुराग के साथ नो स्मोकिंग से लेकर बॉम्बे टॉकीज तक उनके सहायक के रूप में काम किया.
श्लोक पर अनुराग कश्यप की सोच और व्यक्तित्व का प्रभाव है. वह उनकी तरह लीक से हटकर और साहसी कहानी चुनने के गुणी हैं. वह अपनी अधपकी फिल्म किसी को दिखाने से झिझकते नहीं हैं. वह बेधडक़ और सहर्ष अपनी फिल्म की आलोचना सुनते हैं. वह दूसरों के काम की इज्जत करते हैं और उसकी सराहना करते अघाते नहीं. श्लोक ने अपने जीवन और आस-पास के माहौल से सीखा है. उनकी कहानियों में आपको आपको अपने आस-पास का जन-जीवन जस का तस नजर आएगा. 
श्लोक शर्मा को अनुराग कश्यप अपना दाहिना हाथ मानते हैं. इस नौजवान में अनुराग का विश्वास यूं ही नहीं है. अगर आप श्लोक की लघु फिल्में सुजाता, हिडेन क्रिकेट, द जॉय ऑफ गिविंग, ट्यूबलाइट का चांद देखें, तो आपको भी उनमें भविष्य के एक दमदार और प्रभावशाली फिल्मकार की झलक दिखेगी. आजकल श्लोक अपनी पहली फीचर फिल्म हरामखोर के संपादन में जुटे हुए हैं. इसका इंतजार करें. यह न केवल अपने बोल्ड विषय, नवाजुद्दीन सिद्दिकी और श्वेता त्रिपाठी के अद्वितीय अभिनय, बल्कि श्लोक की अपनी अनूठी फिल्ममेकिंग के लिए चर्चा बटोरेगी. आइए, गुलजार के श्लोक का स्वागत करते हैं.

Tuesday, July 16, 2013

मुझे प्रिसेंज ऑफ कत्थक कहा जाता था- नीलिमा अज़ीम

नीलिमा अज़ीम की जिंदगी एक नजर में आपको कमर्शियल हिंदी फिल्म की कहानी जैसी लग सकती है. मुकम्मल प्यार और सच्चे हमसफर की आस में उन्होंने तीन मर्तबा तीन पुरुषों से शादी की, लेकिन हर बार उन्हें मायूसी मिली. वे हिंदी सिनेमा के चर्चित स्टार शाहिद कपूर की मां हैं, लेकिन बेटे का प्यार उन्हें अपने पूर्व पति की दूसरी पत्नी से बांटना पड़ रहा है. रिश्तों के मामले में नीलिमा की मुफलिसी पर आपको तरस आ सकता है, आप उन्हें दया दृष्टि से देख सकते हैं, लेकिन नीलिमा को अपनी जिंदगी पर नाज है. बकौल नीलिमा अज़ीम, ''मैं गर्व के साथ कहती हूं कि मैं आज जो कुछ हूं, अपने बलबूते हूं. मैंने बेदाग जिंदगी गुजारी है. मैं बीस साल पहले अपनी कमाई के चार हजार रुपए लेकर मुंबई आई थी. मैंने संघर्ष किया, अपने लिए मुंबई में जगह बनाई, फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई.  छोटा सा विराम लेकर नीलिमा आगे कहती हैं, ''बहुत से लोग मुझे नहीं समझ पाते हैं. उन्हें लगता है कि कैसी औरत है ये, तीन शादियां कीं, तीनों टूट गईं, बेटे से अलग रही है, लेकिन मैं जानती हूं कि मैंने बहुत साफ और मॉरलिस्टिक जिंदगी जी है. मेरी जिंदगी कलरफुल रही है. फिल्म इंडस्ट्री और म्यूजिक इंडस्ट्री में कोई उंगली उठा कर नहीं कह सकता कि हे, वी हैड फन और सीन विद नीलिमा अजीम.
नीलिमा अजीम का ताल्लुक बिहार के एक आला खानदान से है. उनके ग्रेट ग्रैंड फादर ख्वाजा अहमद अब्बास उर्दू के जाने-माने लेखक और फिल्मकार थे. नीलिमा के पिता अनवर अजीम बहुत बड़े फोटोग्राफर थे. शॉर्ट स्टोरी राइटिंग में उनका नाम था. नीलिमा बताती हैं, ''मेरे पिता बेहतरीन फनकार थे. मेरा बैकग्राउंड रिच था. बाइसकिल थीफ जैसी फिल्म मैंने बचपन में देख ली थी. कला की ओर मेरा रूझान स्वाभाविक था. मैंने चौदह साल की उम्र में कत्थक की दुनिया में बहुत नाम कमा लिया था. नीलिमा आगे कहती हैं, ''चौदह साल की उम्र में मैं स्टैंप पर आ चुकी थी. गर्वमेंट ने हेरिटेज स्टैंप निकाले थे, जिसमें हर क्लासिकल डांस दिवा की तस्वीर थी. मैंने कत्थक को रिप्रजेंट किया था. बीस साल की उम्र में मुझे इंदिरा गांधी अवॉर्ड मिला था. इसी साल अमजद अली साब को भी यह अवॉर्ड मिला था. मैं अपने जेनरेशन में ही नहीं नाची हूं. गंगूबाई हंगल गाती थीं और मैं नाचती थी, अली अकबर खां साब बजाते थे और मैं नाचती थी, मैंने यामिनी कृष्णामूर्ति के साथ स्टेज पर नाचा है. मुझे उस वक्त अखबारों में प्रिसेंज ऑफ कत्थक जैसे शीर्षक दिए जाते थे.
नीलिमा पंडित बिरजू महाराज की शिष्या रही हैं. नीलिमा ने बेहद कम समय में कत्थक की दुनिया में लोकप्रियता अर्जित कर ली थी. उनके नृत्य से अब्राहिम अल्काजी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके लिए खास तौर से तुगलक नाटक तैयार किया. नीलिमा अतीत के पन्नों को पलटती हैं, ''कत्थक केंद्र में पंडित बिरजू महाराज थे और एनएसडी में अब्राहिम अल्काजी साब. उन दिनों दिल्ली का आर्ट वल्र्ड शीर्ष पर था. मेरा नृत्य देखने के बाद काजी साब ने तुगलक के बारे में सोचा. उस जमाने में कत्थक केंद्र और एनएसडी के स्टूडेंट का साथ बैठना होता था. उन्हीं दिनों ही मेरी मुलाकात पंकज कपूर से हुई. सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में नीलिमा दिल्ली के थिएटर वल्र्ड में बहुत सक्रिय रहीं. उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर और राज बब्बर के साथ कई चर्चित नाटकों में बतौर लीड एक्ट्रेस काम किया. नीलिमा उन दिनों को याद करती हैं, ''मेरी और राज की जोड़ी हिट थी. हमारा एक नाटक नादिर शाह बहुत चर्चित हुआ था. नसीर के साथ मैंने माटी मटाल नाटक में अभिनय किया था. उसके लिए मुझे बेहतरीन एक्ट्रेस का ज्ञानपीठ अवॉर्ड मिला था. मैं नसीर को सिखाती भी थी. पंकज साब के साथ मैंने ब्रह्मा और सलीम-अनारकली नाटकों में काम किया. पंकज सलीम बनते थे और मैं अनारकली. नाटकों के रिहर्सल और मंचन के दौरान पंकज कपूर और नीलिमा अजीम एक-दूसरे के करीब आए. नीलिमा कहती हैं, ''एक प्ले के दौरान हमारी मुलाकात हुई और फिर हम धीरे-धीरे करीब आ गए.
नृत्य और थिएटर जगत में नीलिमा की बढ़ती लोकप्रियता ने उन्हें हिंदी फिल्मकारों की नजर में ला खड़ा किया. पंद्रह वर्ष की छोटी उम्र में नीलिमा के पास शीर्ष फिल्म निर्देशकों की फिल्मों के प्रस्ताव आने लगे. नीलिमा गर्व के साथ बताती हैं, ''मेरे पास सबसे पहली फिल्म आई थी जहर-ए-इश्क. गर्म हवा फिल्म के बाद एम सथ्यू मेरे साथ यह फिल्म बनाना चाहते थे. उसके बाद सत्यजीत रे की फिल्म का ऑफर मेरे पास आया. माणिक दा मुझे अपनी फिल्म में लीड रोल देना चाहते थे. सावन कुमार टक दो फिल्मों का ऑफर लेकर मेरे पास आए थे- सौतन की बेटी और प्यार की जीत. फिर श्याम बेनेगल की मंडी का ऑफर मेरे पास आया. यश चोपड़ा मुझे मशाल में कास्ट करना चाहते थे. उस रोल को बाद में रति अगिनहोत्री ने निभाया. उत्सव और उमराव जान फिल्में पहले मेरे साथ सोची गई थीं. लोग कहेंगे कि मैं पागल हूं, जो मैंने इन फिल्मों का ऑफर ठुकरा दिया, लेकिन महाराज जी (पंडित बिरजू महाराज)के साथ मेरी डांस की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई थी. मैं डांस की ट्रेनिंग अधूरा नहीं छोडऩा चाहती थी.
नीलिमा जिन दिनों अपने नृत्य करियर पर फोकस कर रही थीं, उन्हीं दिनों पंकज कपूर ने उनकी जिंदगी में अपने प्यार की खूशबू इस कदर बिखेरी कि वे उनके बिना अपने वजूद की कल्पना नहीं कर पा रही थीं. दोनों ने शीघ्र ही प्यार को सामाजिक स्वीकृति देने का फैसला कर लिया. पंकज और नीलिमा ने दिल्ली में शादी कर ली. शाहिद कपूर की पैदाइश ने उनके प्यार को और मजबूती दी, लेकिन अफसोस कि यह प्यार ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रह पाया. पंकज कपूर से शादी के टूटने का कारण नीलिमा बताती हैं, ''वह शादी परिस्थितियों और दूरियों की वजह से खत्म हुई. मैं दिल्ली में थी और पंकज साब मुंबई में थे. हम साथ रहे ही नहीं. हमारा घर बसा ही नहीं. शादी के फौरन बाद पंकज मुंबई आ गए थे. ये भी नहीं था कि चार-पांच साल का हमारा साथ रहा. शादी का मतलब है कि आप साथ रहें. गृहस्थी पति-पत्नी के साथ रहने से बनती है. पंकज और मेरी फैमिली बनी ही नहीं. 
१९९१ में नीलिमा अपने बेटे शाहिद को लेकर दिल्ली से मुंबई आ गईं. तब तक उनका पहला सीरियल फिर वही तलाश बहुत पॉपुलर हो चुका था. फिल्म इंडस्ट्री ने उनका स्वागत दोनों बांहें फैलाकर किया. बकौल नीलिमा, ''जब मैं मुंबई आई तो अस्सी प्रतिशत फिल्म इंडस्ट्री मेरी दीवानी थी. लोग मुझे अपनी फिल्मों में कास्ट करना चाहते थे, लेकिन मैंने सीरियल में काम करने का फैसला किया, क्योंकि मुझे अपने बच्चे को पालना था. टीवी में रेगयुलर पैसा आता है. मैंने टीवी की अपनी कमाई से शाहिद को पढ़ाया-लिखाया. गौैरतलब है कि नीलिमा ने तलाश, जुनून, कश्मीर, सांस जैसे कई धारावाहिकों में काम किया. उन्होंने सलीम लंगड़े पे मत रो और सडक़ फिल्मों में भी काम किया.
मुंबई आने के पश्चात नीलिमा अजीम अपनी घरेलू जिंदगी को संभालने-संवारने में जुटी थीं, लेकिन उन्हें एक साथी की कमी खल रही थी. तभी टीवी अभिनेता राजेश खट्टर उनकी जिंदगी में आए. नीलिमा को एक बार फिर प्यार हुआ और उन्होंने राजेश से शादी कर ली. छोटे बेटे ईशान नीलिमा-राजेश के प्यार की पहचान हैं. लेकिन दुख की बात यह है कि नीलिमा की यह शादी भी अधिक समय तक नहीं टिकी. नीलिमा कहती हैं, ''मैंने हमेशा रिश्तों को प्राथमिकता दी. मैंने रिश्तों में बहुत इंवेस्ट किया, लेकिन मुझे कभी इस मामले में सपोर्ट नहीं मिला. ईमानदारी से बता रही हूं कि कभी किसी ने बच्चों की परवरिश और पढ़ाई के लिए पैसे नहीं भेजे. मैंने दोनों बच्चों की परवरिश अकेले अपने बलबूते पर की है.
                                                             छोटे बेटे ईशान के साथ
राजेश खट्टर से अलगाव के बाद नीलिमा टूट सी गईं. वे अकेली हो गईं. अफसोस की बात यह है कि इसी दौरान शाहिद कपूर भी उनसे अलग हो गए. मगर नीलिमा उस शख्सियत का नाम है, जिसकी जिंदगी में गम को ठहरने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलता. नीलिमा ने उस्ताद रजा अली खान के साथ जिंदगी की नई शुरूआत करने का फैसला किया. मगर नीलिमा की खुशियों को एक बार फिर किसी की नजर लग गई.  उनका यह रिश्ता भी जल्द ही खत्म हो गया. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि नीलिमा का एक भी रिश्ता स्थायी रुप से क्यों टिका नहीं? नीलिमा इसका जवाब देने की कोशिश करती हैं, ''कई कारण हो सकते हैं. अलग-अलग सपने हो सकते हैं, प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं या संभव है कि परिस्थितियां आपको जुदा कर दें. मैंने पहली शादी बहुत छोटी उम्र में की थी. वह उम्र फॉर्मेटिव ईयर की होती है. आप वक्त के साथ बदलते हैं. हो सकता है कि बड़े होने के बाद आप एक अलग इंसान बन जाएं. नहीं साथ रह पाए तो क्या हुआ?
नीलिमा की इस बात के लिए इज्जत करनी होगी कि उन्होंने अपने हर प्यार को खुले तौर पर स्वीकार किया. उन्हें सामाजिक मान्यता दी. नीलिमा कहती हैं, ''वो मेरी मोरैलिटी है. मैं बिना शादी के रिश्ते रख सकती थी, लेकिन मेरी परवरिश ने मुझे मंजूरी नहीं दी. मैंने जिससे भी प्यार किया, उससे शादी की. पुराने संबंधों को याद करते हुए नीलिमा दिल के किसी कोने में छुपे गम को बयां करने से खुद को नहीं रोक सकीं. ''बहुत तकलीफ होती है जब रिश्ता टूटता है. मेरे लिए बहुत पेनफुल रहा है क्योंकि तीन बार मेरी शादी टूटी है, लेकिन मैं एक वॉरियर हूं. मैंने हर बार नई शुरुआत की है. बहरहाल, वो मेरी जिंदगी के रंग हैं, और कलाकार को तो रंगीन होना ही चाहिए.
नीलिमा को इस बात की संतुष्टि है कि उनके जीवन में एक रिश्ता अब तक स्थायी है. उनके और बेटे शाहिद के बीच कुछ वर्ष पहले मतभेद हो गए थे, दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई थी, लेकिन अब शाहिद अपनी मां के पास लौट आए हैं. शाहिद ने अंधेरी वेस्ट में यारी रोड पर अपनी मां को टूबीएचके फ्लैट और एक गाड़ी भेंट की है. बेटे का जिक्र आने पर नीलिमा अचानक बेहद खुश हो जाती हैं. वे बड़े उत्साही अंदाज में कहती हैं, ''आप जिस घर में बैठे हैं, यह शाहिद का दिया हुआ तो है. हमारे बीच तकरार नहीं हुई थी, तनाव हो गया था. हमारे खयालात अलग-अलग हो गए थे. शाहिद अचानक इंटीपेंडेंट हो गए. वो एक इंडीविजुअल बन गए. वह बुरा दौर अब खत्म हो चुका है. हम बीबीएम के जरिए चौबीस घंटे संपर्क में रहते हैं. शाहिद के साथ सार्वजनिक स्थलों पर न नजर आने के बाबत नीलिमा कहती हैं कि मुझे हर जगह पर कूद-कूदकर जाना पसंद नहीं हैं. जहां शाहिद बुलाते हैं, मैं वहां जरुर जाती हूं.
नीलिमा के छोटे बेटे ईशान अपने बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए अभिनेता बनना चाहते हैं. नीलिमा बताती हैं, ''ईशान अपने भाई से बहुत मोहब्बत करता है. शाहिद को वह आइडियलाइज करता है. शाहिद की तरह वह मिमिक्री अच्छी करता है. वह पैदाइशी कलाकार है. वह साढ़े पंद्रह साल का है, लेकिन इंडीविजुअल है. अपने तरीके से जिंदगी जीता है. वह गयारहवीं में पढ़ रहा है. उसने साइकॉलोजी, इंगिलश और बिजनेस सब्जेक्ट लिया है. कहता है कि मम्मी अगर मुझे एक्टर बनना है तो साइकॉलोजी से मुझे बहुत मदद मिलेगी. बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मास मीडिया की पढ़ाई करना चाहता है. उसके बाद एक्टिंग की ट्रेनिंग शुरू करना चाहता है. 
                                                                   शाहिद के साथ
नीलिमा लंबे अंतराल के बाद न सिर्फ फिल्मों में बल्कि स्टेज पर भी वापस लौट आई हैं. उन्होंने हाल में कुछ लोग नाम की एक फिल्म की शूटिंग पूरी की है. दोबारा अपनी सक्रियता के बारे में नीलिमा कहती हैं, ''मुझे अपना योगदान देना है. मिलिंद उके, जिन्होंने पाठशाला बनाई थी, उनकी फिल्म में मैंने सेंट्रल रोल किया. बहुत अच्छी तरह मेरी वापसी हुई है. मैं कोरियोग्राफी में अपना योगदान देना चाहती हूं. नीलिमा ने पिछले वर्ष निर्देशन में आने की घोषणा की थी. उन्होंने नवाब नौटंकी फिल्म की घोषणा की थी. उस बारे में वे कहती हैं, ''मेेरे छोटे शाहबजादे ईशान के बोर्ड एक्जाम आ गए थे, जिसके कारण फिल्म रुक गई थी. मैंने पिछले महीने उस पर दोबारा काम शुरू किया. सिनेमा समय के साथ बदलता रहता है. इसलिए हमें स्क्रिप्ट पर फिर से काम करना पड़ रहा है. नवाब नौटंकी आज के यंगस्टर की कहानी है. उनके मसलों की कहानी है. इसमें पुराने और नए जमाने की खूबसूरती है.
नीलिमा ने पहला ड्राफ्ट गोविंदा को ध्यान में रखकर लिखा था, लेकिन उनका बाजार भाव कमजोर होने के कारण उन्होंने उन्हें फिल्म में कास्ट करने का विचार छोड़ दिया. नीलिमा ने अब चुन्नू नवाब के किरदार को मॉडर्न यंगस्टर का लुक दे दिया है. नवाब नौटंकी की स्क्रिप्ट पर अब वे नए सिरे से काम कर रही हैं. शाहिद के साथ संबंध सुधरने के बाद ऐसा तो नहीं है कि वे उनके लिए स्क्रिप्ट लिख रही हैं. नीलिमा कहती हैं, ''मैं सबसे पहले अपनी स्क्रिप्ट शाहिद को भेजूंगी. अगर उसे पसंद आती है और वह मेरी फिल्म में काम करने के लिए तैयार हो जाता है तो इसमें मेरी ग्रोथ है. वह मेरा फेवरेट एक्टर है. वैसे भी, मैं बेटे से स्क्रिप्ट के बारे में फीडबैक तो जरुर लूंगी.
नीलिमा इस संभावना से इंकार नहीं करती हैं कि नवाब नौटंकी में अगर शाहिद काम करते हैं तो वे उनके साथ अभिनय कर सकती हैं. नीलिमा कहती हैं, ''फिल्म में हीरो की मां कायसरा का किरदार है. लोग कह रहे हैं कि मैं इस रोल को अच्छी तरह निभा सकती हूं. काबिले जिक्र है कि नीलिमा ने इश्क विश्क फिल्म में बेटे शाहिद के साथ पहली बार काम किया था. नीलिमा कहती हैं कि वो बहुत छोटा रोल था. पता नहीं क्यों शाहिद का नाम आते ही लोग पंकज जी के बारे में ज्यादा सोचते हैं. नीलिमा ने बताया कि अगले साल फरवरी तक नवाब नौटंकी की शूटिंग आरंभ होगी. अपने बेटे की लोकप्रियता और उनके स्टारडम का लाभ उठाने के विषय में पूछने पर नीलिमा कहती हैं, ''ऐसी वैल्यूज नहीं हैं मुझमें. वरना मैं पांच साल से अपनी फिल्म को लेकर स्ट्रगल नहीं कर रही होती.