Saturday, June 22, 2013

मुझे लोग कोलावरी वाला बुलाते हैं: धनुष

तमिल सिनेमा के प्रिंस धनुष हिंदी फिल्मों में रांझणा से एक नई पारी का आगाज कर रहे हैं. रघुवेन्द्र सिंह इस सुपस्टार की विनम्रता से प्रभावित हैं

आजकल तमिल सिनेमा के इंटरनेशनल सुपस्टार धनुष का नाम मुंबई में सबकी जुबान पर है. आनंद एल राय की फिल्म रांझणा में इस तीस वर्षीय युवक ने स्कूल बॉय की भूमिका जीवंत करके सबको चौंका दिया है. सोनम कपूर के साथ उनकी जोड़ी को अपरंपरागत माना जा रहा है, लेकिन यही इस अभिनेता की विशेषता है. उनका चेहरा भी हिंदी फिल्मों के आदर्श हीरो जैसा नहीं है, लेकिन उनके व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण है, जो सबको उनका दिवाना बना देता है. अपने अतुलनीय अभिनय के लिए उन्होंने सबसे कम उम्र (29 वर्ष) में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल करने का कीर्तिमान अपने नाम किया है. अडुकलम (2011) के लिए ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी उन्होंने जीता था. तमिल सिनेमा में 12 वर्षों से राज कर रहे धनुष ने दो वर्ष पहले कोलावरी डी गीत से विश्वस्तरीय लोकप्रियता हासिल करके सबको अचंभित कर दिया था.
वह दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में वह पले-बढ़े और खेले हैं. उनके पिता कस्तुरी राजा और बड़े भाई सिल्वाराघवन तमिल के स्थापित फिल्मकार हैं. वह इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उनके लिए सिनेमा का सितारा बनना तय कर रखा था. सुपस्टार रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या से शादी करने के बाद, लोगों के मन में संशय था कि वह सातवें आसमान पर पहुंच जाएंगे, लेकिन उनकी विनम्रता और मृदुभाषिता की जितनी प्रशंसा की जाए, कम होगी. वक्त के साथ उनके प्रति लोगों का प्यार और सम्मान और बढ़ गया है.
फिल्मफेयर से एक खास मुलाकात में धनुष ने अपने जीवन की किताब खोलकर रख दी.
   

आप 2002 से तमिल फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं. हिंदी फिल्मों में आने में इतनी देर क्यों हुई?
यह मौका मुझे अब मिला है. मेरा मानना है कि हर चीज का एक सही समय होता है. रांझणा जैसी स्क्रिप्ट मेरे पास अब आई और मुझे लगा कि यह रोल मेरे लिए ही लिखा गया है. 

आपके पास अनेक हिंदी फिल्मों के ऑफर आए होंगे, लेकिन आपने रांझणा को ही क्यों चुना?
रांझणा मेरे लिए एकदम परफेक्ट है. यह किरदार आइकॉनिक है. यह बहुत अच्छा किरदार है. मैं कुंदन के किरदार के आसानी से कनेक्ट कर सका. मैं इतना जानता हूं कि यह किरदार मेरे लिए ही लिखा गया है.

दक्षिण भारतीय होते हुए एक बनारसी लडक़े का किरदार निभाना आपके लिए चुनौती रही होगी?
मेरे लिए केवल एक चुनौती थी कि मैं हिंदी नहीं जानता था. यह मेरे लिए एक मुश्किल पक्ष था. लेकिन मुझे इस फिल्म की शूटिंग में बहुत मजा आया, क्योंकि इसके लेखक हिमांशु शर्मा ने हिंदी के मामले में मेरी मदद की. उन्होंने लाइंस को समझने में मेरी सहायता की. वो सब लोग बहुत अच्छे इंसान हैं, इसलिए इसकी शूटिंग को मैंने एंजॉय किया. हम नई जगहों पर गए और नए लोगों से मिले. इस वजह से हिंदी की कठिनाई थोड़ी कम हो गई. मैं कहना चाहूंगा कि मेरे लिए इसमें कोई चैलेंज नहीं था. 

हमने पर्दे पर अनेक प्रेम कहानियां देखी हैं. रांझणा की लव स्टोरी किस प्रकार अलग है?

रांझणा का साधारण प्यार ही इसका असाधारण पहलू है. जब आप इसे देखेंगे तो भूल जाएंगे कि यह एक फिल्म है. यह इतनी रियलिस्टिक है. इस फिल्म के 45 मिनट देखने के बाद मुझे तो ऐसा ही महसूस हुआ. इस फिल्म की विशेषता इसकी सरलता और सहजता है.

आप किस तरह के प्रेमी हैं?
मैं प्यार का इजहार करने में विश्वास करता हूं. मैं बहुत पॉजिटिव हूं. मुझे प्यार किया जाना अच्छा लगता है.

क्या आप बचपन के प्यार में यकीन करते हैं?
मैं हर तरह के प्यार में विश्वास करता हूं. प्यार केवल दूसरे के प्रति एक भावना नहीं है. यह एक अलग तरह का अहसास है. यह जरूरी नहीं है कि आपको अपने पहले प्यार से जुड़ाव होना चाहिए. यह एक अहसास है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए.

आपने प्यार में सबसे क्रेजी चीज क्या की है?
मैंने जो भी किया, वह सब क्रेजी था (हंसते हैं). मैं अपने पहले प्यार पर एक फिल्म बना सकता हूं. मुझे नहीं पता कि मुझे अपने किस प्यार का चुनाव करना चाहिए, लेकिन मैं उसके बारे में बात करना चाहूंगा, जिसके साथ मैं हूं. मैं झूठ बोलकर किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहता.

कोलावरी डी की कामयाबी के बाद आपकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई. क्या आपकी पत्नी ऐश्वर्या (रजनीकांत की बड़ी बेटी) असुरक्षित महसूस करती हैं?
उन्हें असुरक्षित क्यों होना चाहिए? बल्कि वह बहुत खुश हैं. असुरक्षित महसूस करने का उनके पास कोई कारण नहीं है.

ऐश्वर्या से आपकी पहली मुलाकात कब हुई? अपनी लव स्टोरी के बारे में बताएं.
वह मेरी फिल्म का फस्र्ट डे फस्र्ट शो देखने थिएटर में गई थीं और मैं पब्लिक का रिएक्शन देखने के लिए वहां मौजूद था. यह मेरी दूसरी फिल्म (कढ़ाल कोंडें) थी. उन्हें फिल्म बहुत अच्छी लगी. बाद में, उन्होंने मुझे एक गुलदस्ते के साथ मैसेज भेजा, ''गुड जॉब एंड कीप इन टचÓÓ. और मैंने उस मैसेज को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया और आज देखिए हम दोनों कहां हैं (हंसते हैं).

सोनम कपूर के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? क्या उन्होंने मुंबई को समझने या हिंदी के मामले में आपकी कोई मदद की?
सोनम कपूर के साथ काम करने का अनुभव शानदार रहा. वे मेरे साथ बहुत प्यार और धैर्य से पेश आईं. धैर्य इसलिए कह रहा हूं क्योंकि हिंदी पर मेरी पकड़ अच्छी नहीं थी, लेकिन वे इस बात को लेकर घबराई नहीं. उन्होंने मेरा पूरा सहयोग किया. उन्होंने कभी अपना स्टारडम दिखाने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कभी ऐसे बर्ताव नहीं किया कि वे सुपरस्टार हैं. वे डाउन टू अर्थ हैं. वे रोज अपने घर से हम लोगों के लिए खाना लाती थीं. वे स्वीटहार्ट हैं. जहां तक हिंदी की बात है, तो आनंद सर और हिमांशु अधिकतर समय मेरी मदद करते थे. अगर जरूरत होती थी, तो सोनम स्पॉट पर मेरी मदद करती थीं. सोनम ने क्या किया कि मुझे सहज करवाया. वह मेरे लिए बड़ी मदद थी.

आपको साउथ में राजकुमार माना जाता है. आप रजनीकांत के दामाद हैं. रांझणा साइन करते समय किसी प्रकार का प्रेशर था? 
बिल्कुल नहीं. कर्नाटक में लोग मुझे रजनीकांत का दामाद मान कर सम्मान देते हैं, लेकिन जब मैं उत्तर भारत में आता हूं, तो लोग मुझे कोलावरी वाला कहकर बुलाते हैं (हंसते हैं). जब भी मैं बाहर निकलता हूं, तो लोग कहते हैं, वो देखो कोलावरी वाला, कोलावरी वाला. तो रांझणा साइन करते समय मैं कोलावरी वाला था.

क्या आप रजनीकांत से किसी प्रकार का सुझाव लेते हैं?
नहीं, बिल्कुल नहीं. मैं अपने फैसले खुद लेता हूं.

रजनीकांत से किस तरह का रिश्ता आप शेयर करते हैं? एक दोस्त का या फिर ससुर-दामाद का औपचारिक रिश्ता?
हमारा रिश्ता बहुत स्पेशल और अलग है. मैं शब्दों में इसे बयां नहीं कर सकता. यह शब्दों से परे है. यह मेरे लिए बहुत कीमती है. हम दोनों एक-दूसरे के प्रति ईमानदार हैं. यह रिश्ता अपने आप में अनूठा है.

वो घर में कैसे रहते हैं? ऐसा कहा जाता है कि वह अपनी स्क्रीन इमेज को पर्सनल लाइफ में नहीं लाते?
मुझे उनके बारे में बात नहीं करनी चाहिए. यह उचित नहीं होगा. मैं अपने जीवन के बारे में बात कर सकता हूं, लेकिन उनके नहीं.

अमिताभ बच्चन ने कोलावरी डी की प्रशंसा की थी. उनके साथ अपने संबंध के बारे में कुछ बता सकते हैं?
ईमानदारी से कहूं तो मैंने बच्चन साहब को दूर से देखा है. आठ साल पहले मेरी शादी में वो आए थे. उसके बाद उनसे मेरी मुलाकात नहीं हुई. फिर जब कोलावरी डी आया, तो उन्होंने उसके बारे में ट्विट किया. कोलावरी डी की शानदार सफलता के कारणों में से एक वो हैं. उनके एक ट्विट ने इसे चर्चित कर दिया. बाद में, एक अवॉर्ड फंक्शन में मैंने कोलावरी डी को उन्हें समर्पित किया. मैंने इसके बोल बदल दिए और इस धुन पर उनके बारे में गाया. इसके बदले में उन्होंने मुझे अपने गले लगाया, वह अहसास मेरे दिल के हमेशा करीब रहेगा. ऐसा नहीं है कि मैं उनके बहुत नजदीक हूं, उनके लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान है. वह मुझे प्रेरित करते हैं. उनके साथ मुझे कुछ ऐसे पल मिले हैं, जिन्हें मैं जिंदगी भर याद करता रहूंगा.

कोलावरी डी ने किस प्रकार आपकी जिंदगी को परिवर्तित किया?
सबकी जिंदगी में एक हाई पॉइंट आता है. कुछ लोगों के जीवन में यह नौकरी हो सकती है, कुछ के लिए कार हो सकती है. मेरे लिए कोलावरी डी मेरे जीवन का हाई पॉइंट था.

जावेद अख्तर ने इसके लिरिक्स की आलोचना की. आपको इस बात से ठेस पहुंची?
बिल्कुल नहीं. मुझे इस इंडस्ट्री में आए काफी साल हो गए. पहले मैं इस तरह की टिप्पणियों से विचलित हो जाता था, लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ कि हर व्यक्ति को अपने विचार रखने का अधिकार है. कुछ लोगों को वह अच्छा लग सकता है और कुछ को बुरा. मुझे इस बात की खुशी है कि मेरा गाना जावेद साहब जैसे लीजेंड तक पहुंचा. हम सबको इस बात की खुशी थी कि यह गाना इस लेवल के लोगों तक पहुंच सका. मैं उनकी इस टिप्पणी को सकारात्मक रूप से लेता हूं. यह उनके विचार हैं और मैं उनके विचारों का सम्मान करता हूं.

आनंद एल राय के साथ कैसा अनुभव रहा?
आनंद जी मेरे सीक्रेट सैंटा हैं. मैं उनके जैसा बनना चाहूंगा. अनेक कारणों में से एक वो हैं, जिनकी वजह से मैं हिंदी फिल्मों में यकीन करता हूं. वह हमेशा दूसरों के हित के बारे में सोचते हैं. वह बहुत सुलझे इंसान हैं. उन्होंने सेट पर मुझे बहुत अच्छे से रखा. मुझे नहीं पता कि रांझणा से मुझे प्रोफेशनल लाइफ में क्या मिलेगा, लेकिन मुझे इसका यकीन है कि मुझे एक बहुत अच्छा इंसान भाई के रूप में मिल चुका है.

क्या यह सच है कि आप आनंद राय के साथ एक हिंदी फिल्म बनाने जा रहे हैं?
हां, हमारी ऐसी योजना है. लेकिन हम अभी उसके बारे में बात कर रहे हैं. हिंदी फिल्मों में मैं आगे क्या करूंगा, यह रांझणा की रिलीज के बाद पता चलेगा.

क्या आप हिंदी फिल्मों में गाने के लिए तैयार हैं?
बिल्कुल, और क्यों नहीं? अगर मुझे मौका मिलता है, तो मैं जरूर हिंदी फिल्म में गाना गाना चाहूंगा.

हिंदी और तमिल फिल्म इंडस्ट्री में आपने क्या फर्क महसूस किया?
कोई फर्क नहीं है. केवल भाषा अलग है. कल्चर के मामले में भी थोड़ा विभिन्नता है. भावनाएं एक ही हैं. फिल्मों के लिए लोगों को प्यार भी एक समान ही है. मुझे कोई बड़ा अंतर नहीं दिखा.

क्या दक्षिण भारतीय फिल्मों के हिंदी रिमेक के आप पक्षधर हैं?
आजकल हिंदी फिल्मों का रिमेक तमिल में हो रहा है, तो तमिल फिल्मों का हिंदी में रिमेक होना चाहिए. तमिल फिल्मों का तेलुगू और कन्नड़ में रिमेक होता है. ऐसा हर इंडस्ट्री में हो रहा है. इसमें गलत बात नहीं है. यह एक अच्छी चीज है.

अपनी कौन-सी फिल्म का आप चाहेंगे कि हिंदी में रिमेक हो?
मैं चाहता था कि पोल्लाधवन (२००७) हिंदी में बने. लेकिन मैंने सुना है कि किसी ने उसके अधिकार खरीद लिए हैं और इसे हिंदी में बना रहा है.

क्या आपको इस बात का डर है कि आपको हिंदी फिल्म दर्शकों के बीच स्वीकृति मिलेगी या नहीं?
नहीं, मेरे अंदर ऐसी कोई फीलिंग नहीं है. मैं नर्वस भी नहीं हूं. बल्कि मैं तो खुश हूं कि मैं रांझणा जैसी फिल्म कर सका. और मैं ऐसे लोगों के बीच हूं, जो वाकई अच्छे इंसान हैं. मैंने जितनी चाह की थी, उससे कहीं ज्यादा ईश्वर ने मुझे दिया है. इसलिए जिंदगी से मेरी कोई अपेक्षा नहीं है. इसलिए मुझे कभी निराशा नहीं होती और मैं सरप्राइजेज के लिए हमेशा तैयार रहता हूं.

कोलावरी डी के बाद कोई क्रेजी फैन मोमेंट, जो आप शेयर कर सकें.
मुझे लगता है कि कोलावरी डी अपने आप में सबसे क्रेजी चीज थी. मेरे हिसाब से कोलावरी डी का हर वर्जन, सोनू निगम के बेटे के वर्जन के अलावा, जो इंटरनेट पर आया, मेरे लिए क्रेजी था.

हमने आपको रांझणा के सेट पर देखा. आपमें कोई स्टार वाला एट्टियूड नहीं है. क्या आप ऐसे ही हैं?
आपने मुझे वैसे ही देखा, जैसा मैं हूं. मुझे ऑफ कैमरा एक्टिंग करनी नहीं आती (हंसते हैं). यह हमेशा से मेरी समस्या रही है.

आप एक्टिंग में कैसे आए?
मैंने एक्टिंग में आने का फैसला नहीं किया था. मैं हमेशा एक इंजीनियर बनना चाहता था, लेकिन इस करियर ने मुझे चूज किया. मेरे पिता (कस्तूरी राजा) एक निर्माता-निर्देशक हैं. मुझे याद है कि एक इमर्जेन्सी आ गई थी और उन्हें एक सप्ताह में अपनी फिल्म की शूटिंग शुरू करनी थी और उस रोल के लिए उन्हें एक स्कूल बॉय की जरूरत थी और उस समय मैं स्कूल में था. बस, मैं आ गया फिल्मों में.

ऐसा कहा जाता है कि शादी के बाद स्टार्स की फैन फॉलोइंग कम हो जाती है. क्या आप मानते हैं?
मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है.

क्या आप मानते हैं कि एक स्टार को कम उम्र में शादी नहीं करनी चाहिए?
बिल्कुल नहीं. लोगों को उस समय शादी कर लेनी चाहिए, जब उन्हें लगे कि यह सही समय है.

आप दो बच्चों (यात्रा और लिंगा) के पिता हैं, जिस बात पर आपको देखने के बाद कोई यकीन नहीं करेगा. क्या आप सख्त पिता हैं?
मैं किसी भी दूसरे पिता की तरह हूं. एक पिता के तौर पर मेरे अंदर कोई स्पेशल बात नहीं है. मैं अपने बच्चों के लिए एक नॉर्मल डैड हूं. हर पिता अपने बच्चों के लिए बेस्ट करना चाहता है और मैं भी ऐसा ही करता हूं. हर पिता चाहता है कि उसके बच्चे हर चीज में सबसे आगे हों, ऐसा ही मैं भी चाहता हूं.

आपके बच्चे एक सेलीब्रिटी परिवार में बड़े हो रहे हैं, आप उन्हें ग्राउंडेड कैसे रखते हैं?
मुझे इस तरह का कोई प्रयास नहीं करना पड़ा है क्योंकि मेरा बड़ा बेटा छह साल का है और छोटा तीन साल का है. हां, मैं उन्हें मीडिया से दूर रखने की हर संभव कोशिश करता हूं. मैं उन्हें एक सामान्य बचपन देने की कोशिश करता हूं.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में किन निर्देशकों के साथ आप काम करना चाहते हैं?
मैं राजकुमार हिरानी, अनुराग बासु, अनुराग कश्यप और अभिषेक कपूर के साथ  काम करना पसंद करूंगा.

आप इनके बारे में कैसे जानते हैं? क्या आपने इनकी फिल्में देखी हैं?
नहीं, ऐसा नहीं है. मेरे पास फिल्में देखने के लिए समय नहीं मिल पाता, लेकिन ये निर्देशक हैं, जिनका नाम मेरे दिमाग में घूमता रहता है, इसलिए मैंने इनका नाम लिया.

आप किन एक्ट्रेसेस के साथ रोमांस करना चाहते हैं?
यह मेरे निर्देशकों पर निर्भर करेगा (हंसते हैं).

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आपके दोस्त कौन हैं?
फिलहाल, आनंद सर, हिमांशु, सोनम कपूर, स्वरा भास्कर, जिशान और मेरे सिनेमैटोग्राफर विशाल सर.





Tuesday, June 18, 2013

Meet the Kolaveriwala

Raghuvendra Singh grabs the one-in-a-million opportunity to meet superstar Dhanush

If you thought what the Prince of South was doing in Raanjhanaa, a film based in Uttar Pradesh, you’re wasting time. With Dhanush there are no accidents. Kolaveri di was the internet phenomenon that laid foundations for success stories like Gangnam style and Harlem shake. Even back then people asked who this short and frail-looking guy was. And why he was so popular? The man’s Rajnikanth’s son in law. In some circles that’s the equivalent of being Superman. But that’s not even his feat. Dhanush is that man who commands a tsunami of fans in Chennai. People hang perilously off stadium railings to catch a glimpse of the guy. A photo with Dhanush is worth more than Jayalalitha’s entire closet. He’s the great leveller. He’s the hero we all can be. If you go by his disposition and humility you’d think he was your introvert classmate from college. Instead, the reality is that he’s a National Award winning actor. He’s conquered the Filmfare Awards too. But most importantly he’s one of India’s biggest international icons.
And yet, in Raanjhanaa he’s playing a school boy hopelessly in love. And just like that he turns into a charming young man. If its surprises you’re looking for, Dhanush is your man. He’ll shock you, pleasantly of course, on every level – professional, personal and emotional. He’s eager to kick start an innings in Hindi cinema. And if his track record down South or in cyber space is any indication, Mumbai movie buffs better clear some space on their poster walls. Here’s a superstar like never before...      

You’ve been acting since 2002, why did it take you so much time to debut in Hindi films?
The opportunity came now. Everything happens to you at a specific time and this happened to me now. I came across a script like Raanjhanaa only now and I felt that this role was tailor-made for me, so it’s happening now.

You must’ve got many offers after the success of Kolaveri di. What made you sign Raanjhanaa?
Raanjhanaa is the ideal film for me. The character is iconic which is good. I can connect with the character of Kundan. All I know is that it is made for me.

Was it challenging playing a Banarasi guy given that you hail from Chennai?
The only challenge was that I don’t know Hindi so getting a hang of the language was a little tough. But I had a great time because the writer Himanshu Sharma helped me with the dialogue; my lines and all. And they’re all beautiful human beings so we had a lot of fun shooting because we were exploring new places, new people. Thanks to these experiences the tough parts felt a lot easier. I wouldn’t say making Raanjhanaa was a challenge.

What makes Raanjhanaa different from all the other love stories?
Ordinary love is the extraordinary part of Raanjhanaa. You’ll forget you’re watching a film. You’ll feel you’re watching life. That’s what I felt on seeing 45 minutes of the movie. The speciality of the film will be its simplicity.

What kind of a lover are you?
A very expressive one. (Laughs) I’m not obsessive types; I like to maintain a positive attitude in any relationship which I believe is a healthy thing to do. I’m also the kind of lover who loves to be loved.

Do you believe in childhood love?
I believe in all sorts of love (Laughs). Love is not just one’s emotions directed towards another person. Love is a different and complex emotion all together. It’s not necessary that you have to always relate to your first love. Love is common and it can happen to anybody at any given point of time. It’s a feeling and it should be respected just the way it is. I follow all sorts of love.

What is the craziest thing you’ve done for your lady love?
Everything I did was crazy. (Laughs).  I can make a film out of my first love.

Can you elaborate a little?
I can’t just pick one instance. I’d certainly love to talk about the woman of my life. I don’t want to offend anyone by lying.

Your fan following has increased many fold after the success of Kolaveri di. Does that make your wife, Aishwarya insecure at times?
Why would she be insecure? She is very happy. There is no reason for her to feel insecure about anything.

When did you fall in love with Aishwarya? And how did your love story kick start?
She happened to watch the first day first show of my film in the theatre and I was there to gauge the crowd response. It was my second film’s screening. She liked the film and after the screening she sent me a bouquet with a message, “Good job and keep in touch”. I think I just took that message way too seriously. (Laughs)

How was it working with Sonam Kapoor?
Sonam Kapoor is a darling to work with. She was lovely and very patient. Patient because I wasn’t well-versed with the language but she was calm about it and was also very cooperative. She never behaved like she’s a big superstar. She was down to earth. She was a helpful co-star. She brought food to the sets everyday and she’d also send me food without me asking for it.

How did Sonam help you? Did she guide you on the language?
As far as the language is concerned, Aanand Sir and Himanshu were there to help me most of the time. Sonam also helped me quite a bit on the spot if I needed help. What Sonam did the most was make me feel comfortable.


You’re known as the Prince of South. And you’re the son-in-law of the legendary Rajnikanth. Was there any sort of pressure while signing Raanjhanaa?
No, not exactly. Even in states like Andhra Pradesh and Karnataka, they refer to me as Rajnikanth’s son in law. But when I come to the North, they call me Kolaveriwala. (Laughs). So wherever I go people point at me saying, “See see, Kolaveri wala... Kolaveri wala!” When I signed Raanjhanaa, I was the kolaveriwala.

Did you take any sort of advice from Rajni sir?
No, not at all. I take my own decisions.

What sort of a rapport do you share with Rajnikanth? Are ya‘ll good friends or like normal father and son in law?
We share a different and special bond. I’m telling you the truth. I cannot explain it, it’s something beyond words. It is very precious to me. We’re very honest to each other and that’s how it works most of the time.

Amitabh Bachchan was all praise for Kolaveri di. What sort of a bond do you share with him?
To be honest, I’ve only seen Bachchan saab from a distance. He’d attended my marriage 8 years back and I haven’t met him since. And then Kolaveri di happened, he also tweeted about the song, which helped it get recognition. He was one of the main reasons why Kolaveri di was such a tremendous success. Then I went on to doing a small jig of Kolaveri di at an awards function for him. I changed the lyrics and sang the song about him. For that, he gave me a hug which will always be close to my heart. It’s not that I’m really close to him or something, I have immense respect for him, great admiration and I look up to him. He is one of the greatest actors in our country. I don’t know him on a personal level, I’ve had acquaintances with him and I will cherish all those moments for a lifetime.

In what way has Kolaveri di changed your life?
In everyone’s life, there comes a high point. For some people, it may be a job opportunity, or even a purchase of a car for that matter. For me, that high point in my life is Kolaveri di. Let’s just say my life has changed.

Did it hurt you when Javed Akhtar criticised the lyrics of Kolaveri di?
Not at all. I’ve been in the industry long enough. Initially I used to get offended but then later I realised that every human being has the right to express his/her own opinions. Some people may like something whereas some might not. I’m glad that the song reached a legend like Javed saab. We’re all happy that it at least got there in the first place. I’ll go ahead and take his comment positively. It’s his opinion and I totally respect it.

How was it working with director Aanand L Rai?
Aanandji is my Secret Santa. I dream to be like Aanandji.  He is one of the few reasons why I believe in Hindi films. He always thinks well about others.  He is a very intense person. He treated me so nicely on the sets. I do not know what Raanjhanaa will get me after its release but working on it has given me a brother who’s a pure human being.

So does this association go beyond Raanjhanaa? We hear that you both are planning to produce a movie together?
We’re planning to. We’re still discussing about it. It’s in the initial stages as of now. Nothing much can be said about it right now.

Will you now sing in Hindi movies too?
Of course, why not? I would love to.

General opinions suggest that the South industry is more professional than its North counterpart. What was your experience like?
I don’t see any difference at all. It’s all the same. Only, the language is different. There is a slight difference in the culture. But that’s it. The emotions are the same; the love for movies is also pretty much the same. Cinema is cinema and a script is a script and acting is acting. I didn’t find any prominent differences.  

Do you think its okay to remake South movies into Hindi?
Why not? There are times when Hindi movies are remade into Tamil, so there’s nothing wrong if the reverse happens. Subsequently, Tamil movies are being remade into Telugu and Kannada films. This trend is happening everywhere. It’s not that just Tamil films being made in Hindi. I feel it’s a good thing. It’s a safe bet.

Which of your films would you want to be remade in Hindi?
The movie that I’d have wanted to bring to Hindi cinema is already being made. There’s a film called Polladhavan (2007), which I would have definitely wanted to be made in Hindi. I would have loved to remake it but I hear that someone has already bought the rights to do so.

Do ever feel insecure of being in Hindi cinema? Are you concerned if the audience here will accept you?
No, I don’t have any such feelings. I am not nervous at all. In fact, I am very happy that I’m doing Raanjhanaa. And I’m working with some very good people who have been really kind to me. God has given me a lot more than I ever wished for. I don’t have any expectations from life, so I am never disappointed. I’m always open to surprises.

Can you share any memory of a crazy fan moment after Kolaveri di?
I think Kolaveri di itself is a crazy song. I feel every version of Kolaveri di except for the one by Sonu Niigaam’s son was totally crazy.

On the sets of Raanjhanaa you didn’t have an iota of starry attitude. You were like any other man. Are you like that in reality as well?
You have seen me just the way I am. I do not know how to act off the camera (Laughs). That has always been my biggest problem.

How did you get into acting?
I did not choose to get into acting. I always wanted to be a Marine Engineer, but then this career chose me.

How did it happen?
My father Kasthuri Raja was a director / producer. I remember that once there was an emergency and he had to start his movie within a week. He needed a school boy to play the role and I was in school at the time. It just happened back then.

It is said that marriage reduces a star’s fan following. Would you agree?
That’s something that hasn’t happened to me.

So is it okay if a star ties the knot at a young age or even before his/her career’s been launched?
Yes. People should get married whenever they feel is the right time to do so. I firmly believe in that.

What kind of a father are you?
I’m like any other father. There is nothing special about me; I am a normal father to my kids Yatra and Linga. Every father would want the best for their kids and so do I. Every father wants their child to be good at everything and even I wish the same for my kids.

They’re growing up in a celebrity family. How do you keep them grounded?
I haven’t taken any special effort to do that. The older one Yatra is 6 and the younger one Linga is 3. They don’t give me any trouble as yet. Even at their age they’re pretty sorted.

You’ve kept them away from the media?
I try to. As much as possible. Like any concerned father would.

What kind of work are you looking forward to in Mumbai?
The success of Raanjhanaa will be a telling factor in that area. Everything depends on this movie from here on. We’re all hoping for the best. We all have high hopes. I’ll come to know if people have liked me or not after they’ve seen the film. Until then there’s no way to know the way forward.

Which directors are you looking forward to work with?
I would love to work with Rajkumar Hirani, Anurag Basu, Anurag Kashyap and Abhishek Kapoor.

So you’ve kept a keen eye on Hindi movies off late?
No, not exactly. I’ve not really got the time to do that but these are the directors whose names are always on top of my mind. They’re the ones I’d love to work with.

Who are the actresses you’d love to romance on screen?
It depends on the director. (Laughs)

You have any friends in the Hindi film industry?
As of now, Aanand Sir, Himanshu, Sonam Kapoor, Swara Bhaskar, Mohammed Zeeshan and Hemal Kothari are my friends. 

Filmfare

Monday, June 17, 2013

परिनीती चोपड़ा का पत्र

परिनीती चोपड़ा के बारे में जानकारी बटोरने के लिए जवां दिल परेशान हैं. वे इस बात से वाकिफ हैं. तभी तो रघुवेन्द्र सिंह को उन्होंने एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी ए-टू जेड जानकारी लिख डाली
एक्टिंग से मुझे सख्त नफरत थी. मेरी नजर में एक्टर्स के लिए कोई इज्जत नहीं थी. मुझे एक्टर्स सबसे बेकार लगते थे. मुझे समझ में नहीं आता था कि लोग क्यों इनके पीछे भागते हैं? ये इतने लोकप्रिय क्यों होते हैं? मैं अपनी दीदी (प्रियंका चोपड़ा) से यही कहती थी. वो मुझे हमेशा डांटतीं और कहती थीं कि तुम्हे एक्टिंग के बारे में कुछ नहीं पता, इसलिए बेहतर है कि तुम अपनी राय मत दो. अगर किसी दिन तुम एक्टर बन गई तो तुम्हे हमारी मेहनत समझ में आएगी. मैं उनसे हंसकर कहती कि मैं कौन सी एक्टर बनने वाली हूं!
लेकिन मुझे नहीं पता था कि किस्मत मुझे इसी प्रोफेशन में लेकर आएगी. मैं बचपन से बैंकर बनना चाहती थी. मेरी पैदाइश अंबाला में एक बिजनेस घराने में हुई. मेरे पापा आर्मी के साथ बिजनेस करते हैं. हमारे घर में सिनेमा देखने का कल्चर नहीं था. मैंने बचपन में कुल मिलाकर पन्द्रह फिल्में देखी होंगी. मेरे दो छोटे भाई हैं सहज और शिवांग. हम लोग बहुत पढ़ाकू थे. अनुशासित जीवन जीते थे. मैंने फिल्में देखनी तब शुरू की, जब मैं पढ़ाई के लिए मैनचेस्टर गई. उस वक्त मुझे पता भी नहीं था कि फिल्में कैसे बनती हैं? प्रोडक्शन हाउस कैसे होते हैं? लेकिन हां, मुझे इतना तो पता ही था कि यश चोपड़ा कौन हैं? आज मेरा नसीब देखिए कि मैं उन्हीं की कंपनी में एक्ट्रेस हूं.
अरे हां, मैं आप लोगों को यह बता रही थी कि मैं बैंकर बनना चाहती थी. तो बैंकर की पढ़ाई के लिए मैं इंगलैंड गई. वहां पर मैंने इकॉनॉमिक्स, फाइनेंस और बिजनेस में ट्रिपल ऑनर्स किया. उसके बाद मैं नौकरी के लिए लंदन शिफ्ट हो गई. बचपन के कुछ सपनों में से मेरा एक सपना यह भी था कि मैं लंदन या अमेरिका में नौकरी करूंगी. लेकिन जरूरी नहीं है कि हमारे सभी सपने पूरे हों. 2009 में मैं लंदन गई और उसी साल वहां रिसेशन आ गया. मुझे नौकरी नहीं मिली. हालांकि मैं ब्रिलिएंट स्टूडेंट थी. मैंने सोचा कि चलो, छह महीने के लिए इंडिया जाती हूं. इंटर्नशिप करूंगी और फिर लंदन लौट आऊंगी. मैं 2009 में मुंबई आ गई और अपनी बहन प्रियंका के साथ रहने लगी.
लोग सोचते हैं कि मैं और प्रियंका दूर के रिश्तेदार हैं. मैं उनके साथ अपना नाम जोड़ रही हूं, लेकिन यह सच नहीं है. मेरे और प्रियंका के पापा सगे भाई हैं. मैं बहुत लकी हूं कि वो मेरी बहन हैं. और मैं इस बात का अब पूरा फायदा भी उठाती हूं. अगर मुझे किसी प्रकार की दिक्कत या संशय होता है, तो मैं फौरन उन्हें फोन करती हूं. मैं तो उनकी अलमारी में से कपड़े भी निकालकर पहन लेती हूं. उसको मेरी लाइफ के बारे में सब पता है और मुझे उसकी लाइफ के बारे में सब कुछ पता है. कोई बॉयफ्रेंड प्रॉब्लम हो, तो सबसे पहले उसे ही पता चलता है. हालांकि मेरा कोई वैसा बॉयफ्रेंड नहीं है(हा-हा-हा).
सच कहूं तो आज तक किसी लडक़े की हिम्मत नहीं हुई कि वो मुझे प्रपोज करे. लडक़े मुझसे डरते हैं कि मैं चमाट-वमाट न मार दूं. कोई मुझे अप्रोच ही नहीं करता. और हां, मैं गालियां-वालियां भी बहुत देती हूं. कमीना, हरामी, एमसी, बीसी तो हम बड़े आराम से बोल देते हैं. आप सुनकर हंसेंगे कि ये गालियां पापा ने मुझे सिखाई हैं. मेरे पापा गाली में ही बात करते हैं. लेकिन हम पंजाबी लोग गाली देने के लिए नहीं देते. हम लोग प्यार से पूछते हैं कि अरे यार कमीने, कहां था तू? शायद इसीलिए मेरा कोई बॉयफ्रेंड भी नहीं है. ओह, मैं भी कहां से कहां बात लेकर चली गई. मैं यह बता रही थी कि जब मैं मुंबई आई तो उन्हीं के पास रहती थी. उनके अलावा मुंबई में मेरा कोई दूसरा था भी तो नहीं.
प्यार इंपॉसिबल की शूटिंग के लिए दीदी एक दिन यशराज स्टूडियो गईं. मैंने उनके साथ ऐसे ही हो लिया. मैंने जब यशराज स्टूडियो देखा, तो दीदी से कहा कि यार, ये तो बड़ा कमाल का स्टूडियो है. इनका फाइनेंस या एकाउंट जैसा कोई डिपार्टमेंट है कि नहीं? दीदी ने कहा कि ऑफ कोर्स है. मैंने कहा कि मुझे यहां इंटर्नशिप करना है. मैं यशराज में रफीक से मिली, जो यशराज के मार्केटिंग हेड हैं. उन्होंने मुझे इंटर्नशिप पर रख लिया. एक महीने बाद मुझे यशराज के ऑफिस से प्यार हो गया. फिर मैंने जॉब के लिए अप्लाय कर दिया. रफीक ने कहा कि क्योंकि तुम प्रियंका की बहन हो, इसलिए मैं तुम्हे जॉब नहीं देना चाहता. मैंने छह महीने ऐसे ही काम किया. फिर एक दिन मैंने उनसे कहा कि भैया, मुझे अपना घर भी चलाना है, कितने दिन इंटर्नशिप करूंगी? तब उन्होंने मुझे जॉब पर रख लिया.
मैं मार्केटिंग डिपार्टमेंट में थी. यहां मेरा एक्टर्स से मिलना-जुलना होने लगा. मैंने दिल बोले हडि़प्पा, रॉकेट सिंह-सेल्समैन ऑफ द ईयर, प्यार इंपॉसिबल, बदमाश कंपनी, लफंगे परिन्दे, बैंड बाजा बारात फिल्मों पर काम किया. अगर आप फिल्म के अंत में देखेंगे, तो मेरा नाम आता है. एक्टर्स से लगातार मिलने-जुलने के बाद मुझे लगने लगा कि यार, ये काम तो मैं भी कर सकती हूं. मैंने नौकरी छोडऩे का मन बना लिया. उन्हीं दिनों बैंड बाजा बारात का प्रमोशन शुरू हो गया था. मनीष शर्मा (बैंड बाजा बारात के डायरेक्टर) मेरा दोस्त बन गया था. एक दिन शाम को मैंने मनीष से कहा कि तू जानता है, मैं सोच रही हूं कि थोड़ी एक्टिंग-वैक्टिंग करूं. वो जो-जोर से हंसने लगा. मुझे कुछ समझ में नहीं आया. फिर उसने कहा कि तू एक काम कर, तू शानू से मिल आ. शानू शर्मा यशराज की फिल्मों की कास्टिंग डायरेक्टर हैं.
मैं शानू के घर गई. उसने मुझसे ऐसे ही कुछ करवाना शुरू किया. मैंने सोचा कि चलो, इसी बहाने मेरी यशराज की कास्टिंग डायरेक्टर के साथ अच्छी-भली प्रैक्टिस चल रही है. ये तो एक्टिंग स्कूल से भी बढिय़ां हैं. उसने मुझे कैमरे पर शूट कर लिया. मैं उस बात को भूल गई. मैं रोज ऑफिस आ रही हूं. कुछ दिन बाद मैंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया. यहीं बात खत्म हो गई. फिर अचानक एक दिन मनीष का फोन आया कि तुम क्या कर रही हो? तू ऑफिस आ जा. मैं आ गई ऑफिस. उसने कहा कि बधाई हो, तुम यशराज के साथ तीन फिल्मों का कांट्रैक्ट साइन कर रही हो. मैंने कहा कि क्या? मैं हैरान थी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. उसने कहा कि उस दिन तू शानू के इर्द-गिर्द जो कर रही थी, वो तेरा ऑडिशन था. मनीष ने बताया कि मैं छह महीने से आदि (आदित्य चोपड़ा) को बोल रहा हूं कि आपके मार्केटिंग डिपार्टमेंट में एक लडक़ी काम करती है परिनीती. उसे जॉब छुड़वाओ, वो एक्ट्रेस है. वो लेडीज वर्सेस रिकी बहल की डिंपल चड्ढा बन सकती है.
अब मुश्किल यह थी कि मैं पापा को इस बारे में कैसे बताऊं. मैं अंबाला गई. मैंने पापा से कहा कि मैं एक्टिंग करने के बारे में सोच रही हूं. उन्होंने आश्चर्य से पूछा कि ये एक्टिंग कहां से बीच में आ गई? तुम वापस लंदन जाने वाली हो न? मैंने कहा, एक्चुअली पापा, मेरे पास यशराज की तीन फिल्मों का ऑफर आया है और पहली फिल्म लेडीज वर्सेस रिकी बहल है. यशराज का नाम सुनकर उन्हें बहुत खुशी हुई. मम्मी तो खुशी के मारे रोने लगीं. मुझे वो पल याद आ गया, जब दीदी मिस वल्र्ड बनी थीं. हम दस-पन्द्रह लोग रात को जागकर टीवी पर प्रोग्राम देख रहे थे. जब घोषणा हुई कि वो मिस वल्र्ड बन गई हैं, तो हम लोग पागल हो गए थे.
मैं खास तौर पर एक बात का आप लोगों से शेयर करना चाहती हूं कि मैं कितनी भी बड़ी एक्ट्रेस क्यों न बन जाऊं (जो शायद मैं एक दिन बनूंगी), लेकिन मैं कभी ट्रेन्ट्रम नहीं करूंगी. नकली नहीं बनूंगी. मैं कभी स्पॉइल्ड एक्ट्रेस नहीं बनूंगी. उसकी वजह यह है कि मेरी शुरूआत हबीब फैजल जैसे निर्देशक के साथ हुई है, जिन्होंने इशकजादे फिल्म के दौरान मुझे ट्रेन किया. मैं उन्हें प्यार से हिटलर बुलाती हूं, लेकिन वाकई मैं नसीब की बहुत धनी हूं. वे परफेक्शनिस्ट हैं. अगर वो नहीं होते, तो मैं इशकजादे की जोया नहीं बन सकती थी. मैं हट्टी-कट्टी थी. उन्होंने मुझे पतला बनाया.
आपसे यह बताना तो मैं भूल ही रही थी कि मैं एक ट्रेन्ड सिंगर हूं. मुझे बचपन से गाने का शौक है. 2003 में मैंने हिंदुस्तानी क्लासिकल सीखना शुरू किया. मैंने इसमें ग्रेजुएशन किया है. कभी-कभी मैं सोचती हूं कि अगर एक्टिंग में मेरा कुछ नहीं हुआ, तो मैं सिंगर बन जाऊंगी. सिर्फ गाने के लिए ही मैं स्कूल में इंगिलश म्यूजिकल्स प्लेज करती थी. उसमें मुझे एक्टिंग के साथ गाने का मौका मिल जाता था.
आपको एक बात सच-सच बताती हूं. अब मैं जितना सम्मान एक्टिंग के प्रोफेशन का करती हूं, उतना किसी दूसरे प्रोफेशन का नहीं. अब मुझे समझ में आ गया है कि एक्टर्स क्यों इतने लोकप्रिय होते हैं और वे क्यों इतना पैसा कमाते हैं? दो सौ लोगों की यूनिट के बीच कैमरे के सामने रोना या हंसना बहुत मुश्किल काम है. सिर्फ मेकअप लगाकर कैमरे के सामने खड़ा होना एक्टिंग नहीं होती. यह आसान काम नहीं है. जैसे इशकजादे की शूटिंग हमने कडक़ती ठंड में की. इतनी ठंड थी कि आप पानी रख दो, तो वह जम जाए. एक शॉट में मुझे जीप चलानी थी, मेरे सामने अस्सी किलो का कैमरा रखा था. सडक़ पर सामने से गाय-भैंस भी आ रही हैं. फिर मुझे जीप से कूदना है, गोली भी चलानी है. बाप रे बाप, इतना सारा काम और एक्रागता के साथ करना है. लेकिन मैं इन चीजों को एंजॉय कर रही हूं. अब मैं सोचती हूं कि मैं बैंकर बनना ही क्यों चाहती थी? मुझे तो एक्टर बनना चाहिए था. जब लोग मुझसे कहते थे कि तुम प्रियंका की बहन हो, तुम्हे एक्टर बन जाना चाहिए, तो मुझे उनकी बात सुन लेनी चाहिए थी.
साभार: फिल्मफेयर

ऑन द सेट्स: रांझणा

सोनम कपूर और धनुष के साथ आनंद एल राय फिल्म रांझणा के कुछ गंभीर दृश्यों की शूटिंग फिल्मसिटी में कर रहे थे. उनके सेट से कुछ खूबसूरत यादें लेकर लौटे हैं रघुवेन्द्र सिंह
कहानी
कुंदन (धनुष) और जोया (सोनम कपूर) की प्रेम कहानी है रांझणा. यह बनारस की गलियों में रची-बसी है. कुंदन का बचपन का प्यार है जोया, लेकिन वह उससे अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. जोया पढ़ाई के लिए दिल्ली चली जाती है. जेएनयू में उसकी मुलाकात अकरम (अभय देओल) से होती है और फिर वह राजनीति में उतर जाती है. इस त्रिकोणीय प्रेम कहानी में दोस्ती और राजनीति का हल्का रंग भी है. 
फिल्मसिटी में बसी दिल्ली
रांझणा यूं तो बनारस के शुद्ध वातावरण में बसी एक प्रेम कहानी है, लेकिन इस प्रेम कहानी का एक बहुत गंभीर पहलू भी है. जिसके तार दिल्ली की राजनीति से जुड़ते हैं. इस राजनीति में उतरकर जोया कुछ खोती है, तो कुछ पाती है. उसने क्या खोया है और क्या पाया है, यह तो आपको यह फिल्म देखने के बाद पता चलेगा, लेकिन मुंबई की फिल्मसिटी में आनंद एल राय कुछ ऐसे दृश्यों की शूटिंग कर रहे हैं, जिनमें सोनम कपूर और धनुष को अभिनय के अपने हुनर का प्रदर्शन करने का अवसर मिला है.
आम तौर पर सोनम कपूर पर्दे पर डिजाइनर लिबास में नजर आती हैं, लेकिन इसमें उन्होंने सादगी का चोला पहन रखा है. काले जूतों, ब्लू जींस और काली कमीज के ऊपर उन्होंने गले में एक शॉल लपेट रखा है. चेहरे पर गंभीरता है. वह अस्पताल से जैसे ही बाहर निकलती हैं, मीडिया उन पर टूट पड़ता है. लेकिन वह किसी सवाल का जवाब दिए बिना मीडिया को चीर कर निकल जाती हैं. महज दो टेक में आनंद एल राय इस सीन को ओके कर देते हैं. निर्माता-निर्देशक सुभाष घई के व्हिस्लिंगवुड्स इंटरनेशनल स्कूल के एक हिस्से को दिल्ली के अस्पताल में तब्दील कर दिया गया है. कट होते ही आनंद राय हमसे सोनम कपूर की परफॉर्मेन्स के बारे में पूछते हैं और फिर अपने इस कलाकार की तारीफ में कहते हैं, ''सोनम कमाल की एक्ट्रेस हैं. वह जिस संजीदगी और समर्पण से काम करती हैं, वह प्रशंसनीय है. आनंद जानकारी देते हैं कि फिल्म की शूटिंग लगभग पूरी हो चुकी है और यहां वे फिल्म का प्री-क्लाइमेक्स सीन शूट कर रहे हैं. 
मैं फिर बनारस लौटना चाहूंगा
हम मॉनीटर के एक ओर बैठकर बातें करने में व्यस्त हैं, तो दूसरी ओर धनुष तल्लीनता से एक अंग्रेजी नॉवेल पढ़ रहे हैं. सेट के शोर-शराबे का उन पर कोई असर नहीं है. हम उनका ध्यान तोड़ते हैं. धनुष पहली बार साउथ का अपना साम्राज्य छोडक़र मुंबई आए हैं. रांझणा उनकी पहली हिंदी फिल्म है. बनारस में उन्होंने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक महीने से ज्यादा वक्त बिताया. ''मुझे बनारस बहुत अच्छा लगा. अगर मौका मिले, तो मैं फिर उस शहर में लौटना चाहूंगा. उत्तर भारत के अपने प्रवास का अनुभव इन शब्दों में वे बयां करते हैं. अगला शॉट रेडी होते ही धनुष को बुलाया जाता है. इस शॉट में धनुष गलियारे में कुर्सी पर बैठे हैं और अकरम के परिजन आकर उनका शुक्रिया अदा करते हैं. शॉट खत्म हो जाता है, लेकिन धनुष के आस-पास न मेकअप आर्टिस्ट और न ही हेयर स्टाइलिस्ट नजर आता है. फिल्मकार आनंद बताते हैं, ''धनुष को मेकअप-हेयर आर्टिस्ट की जरूरत ही नहीं पड़ती. वे अपने आप सब कर लेते हैं.
लंच ब्रेक की घोषणा होती है. सोनम अपनी वैनिटी वैन में चली जाती हैं. आनंद हमें धनुष की वैनिटी वैन में लेकर पहुंचते हैं. धनुष की मांग पर आनंद घर से अपनी पत्नी के हाथ की बनी भिंडी की सब्जी लाए हैं. धनुष भिंडी की सब्जी की तारीफ करते नहीं थकते. ''मैंने भिंडी की ऐसी सब्जी कभी नहीं खाई थी. मैं भाभी जी (आनंद राय की पत्नी) का फैन बन गया हूं. जब हम उनकी टिफिन से भिंडी की सब्जी निकालते हैं, तो वे यह कहकर हमें फौरन रोक देते हैं. ''मुझे रात को भी सब्जी खानी है. धनुष बताते हैं कि बिना कोक के वह कभी खाना नहीं खाते थे, लेकिन मुंबई आने के बाद उनकी यह आदत छूट गई है और वह इस बात से बहुत खुश हैं.
सोनम ने जीत लिया दिल
अगला सीन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का फिल्माया जा रहा है. चीफ मिनिस्टर और कुछ अन्य नेताओं के साथ जोया डायस पर है. चीफ मिनिस्टर प्रेस को संबोधित करती हैं, ''एआईसीपी और हमारी पार्टी प्री-इलेक्शन इलेक्ट्रोरियल अलायंस में जा रहे हैं. वक्त आ गया है कि नया खून राजनीति में आए. राइट्स चाहिए तो ड्यूटी भी निभाओ. आओ जोया... और जोया उठकर डायस की ओर बढ़ती है. आनंद कट बोलते हैं. यह बेहद इमोशनल सीन है. सोनम को नम आंखों से एक लंबा डायलॉग बोलना है, लेकिन वह गिलसरीन नहीं लगातीं. वह डायस पर खड़ी होती हैं और डायलॉग बोलते-बोलते उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. चार रिटेक्स में आनंद सीन ओके कर देते हैं. सोनम तेज कदमों से आती हैं और आनंद के गले लग जाती हैं. सभी मॉनीटर पर शॉट चेक करते हैं. आनंद राय हमारा परिचय मशहूर थिएटरकर्मी अरविंद गौड़ से करवाते हैं और कहते हैं, ''अगर हमारी फिल्म में दोस्ती, कॉलेज और राजनीति असली दिखेगी, तो उसका श्रेय इन्हें जाएगा. अरविंद गौड़ पहली बार कैमरे के लिए एक्टिंग करके बेहद रोमांचित हैं.
मैं इस दुनिया से बिलॉन्ग नहीं करती
सोनम कपूर के लिए यह फिल्म एक चुनौती रही. इसकी शूटिंग आरंभ करने से पहले उन्होंने अरविंद गौड़ के साथ काफी दिनों तक वर्कशॉप की थी. उनके लगन की तारीफ करते हुए अरविंद ने कहा, ''सोनम ने जोया के किरदार के लिए बहुत मेहनत की. मुझे उनका सर्मपण देखकर बहुत खुशी हुई. सोनम फिल्म के सेट पर मस्त मिजाज नजर आईं. वह कभी पपी के साथ खेलती, उसके साथ तस्वीर निकालती, तो कभी अपने डायरेक्टर पर डायट करने का दबाव डालती दिखीं. ''सर के लिए ककड़ी और गाजर लाओ. आप डायट का खयाल रखो सर! कुछ इस तरीके से आनंद पर सोनम धौंस जमाती हैं. सोनम बीच-बीच में लेखक हिमांशु शर्मा के साथ अपने डायलॉग का रिहर्सल करती रहीं, जिनके अनुसार रांझणा आशिकों के लिए इन्सपिरेशनल फिल्म होगी. ब्रेक के दौरान उन्होंने अपने मोबाइल पर पुराने गाने प्ले कर दिए. सोनम ने दार्शनिक अंदाज में कहा, ''मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं इस दुनिया से बिलॉन्ग ही नहीं करती हूं. मुझे पुराने जमाने में पैदा होना चाहिए था. मुझे पुराने जमाने के गीत वगैरह बहुत अच्छे लगते हैं. अब सोनम-धनुष के साथ आनंद राय रांझणा का क्लाइमेक्स सीन फिल्माने जा रहे थे. हमने उनसे विदा लेना बेहतर समझा, क्योंकि न तो हम अपना और न ही आपका इस फिल्म का मजा किरकिरा करना चाहते थे.
साभार: फिल्मफेयर

  


Thursday, June 13, 2013

चलिए मोहल्ला अस्सी के सेट पर (विशेष)

प्रख्यात फिल्मकार डॉ चन्द्र प्रकाश द्विवेदी की नी देओल और साक्षी तंवर अभिनीत नई फ़िल्म  मोहल्ला अस्सी फिल्म के सेट की कुछ दिलचस्प बातें बाँट रहे  हैं रघुवेन्द्र सिंह
धोती-कुर्ता और कंधे पर अंगोछा, ललाट पर सूर्याकार चंदन का तिलक, काले फ्रेम का मोटा सा चश्मा, काली मोटी मूंछ, उल्टी मांग में सजे केश और पीठ की ओर लटकती केश की छोटी सी चुटिया... सनी देओल ने लार्जर देन लाइफ महानायक का अपना चोला उतारकर फेंक दिया है, और अब वे सिद्धांतवादी पंडा बनकर बनारस की एक पाठशाला में संस्कृत की कक्षा लगा रहे हैं. 

डॉ चन्द्र प्रकाश द्विवेदी की नई फिल्म है मोहल्ला अस्सी और इस फिल्म में सनी देओल ऐसे ही दिलचस्प अंदाज में नजर आएंगे. जाने-माने साहित्यकार काशीनाथ सिंह की चर्चित रचना काशी का अस्सी पर यह फिल्म आधारित है.
पिछले दिनों मोहल्ला अस्सी की शूटिंग की खातिर ऐसा लग रहा था कि बनारस कुछ दिनों के लिए मुंबई की फिल्मसिटी में शिफ्ट हो गया है. सेट डिजायनर भूपेन्द्र सिंह ने अपनी टीम के साथ मिलकर बनारस की गलियों और मोहल्ले का इतना सजीव सेट तैयार किया था कि लोगों को ऐसा ही भ्रम उत्पन्न हो रहा था. मोहल्ला अस्सी में पंडा बने सनी की पड़ाइन बनी हैं साक्षी तंवर. डॉ द्विवेदी ने बाइस दिन फिल्मसिटी में सनी, साक्षी और रवि किशन सहित दर्जनों कलाकारों की टीम के संग शूटिंग करने के पश्चात वाराणसी रवाना हो गए. 
वे काशी का अस्सी रचना में वर्णित मोहल्ला अस्सी और बनारस के अन्य घाटों को कैमरे में कैद करने के लिए धर्मनगरी वाराणसी पहुंचे. लगभग पच्चीस दिन के शेट्यूल में उन्होंने सनी देओल के साथ वाराणसी के मोहल्ला अस्सी, दशाश्वमेध, मणिकर्णिका और भोसले घाट आदि स्थानों पर शूटिंग की.
सनी देओल ने महज बयालीस दिन में मोहल्ला अस्सी फिल्म की शूटिंग पूरी कर दी. फिल्म के सेट पर उनका फोटोग्राफी का शौक भी सबको देखने का असवर मिला. गंगा नदी में नौका विहार के दौरान सनी ने फोटोग्राफी का लुत्फ उठाया. उन्होंने उत्साह के साथ बनारस को अपने कैमरे में कैद किया.                                         
नी देओल और साक्षी तंवर अभिनीत मोहल्ला अस्सी अगस्त माह में प्रदर्शित हो सकती है

-फिल्मफेयर (अक्टूबर 2011) में प्रकाशित




Monday, June 10, 2013

बाजार मेरे पीछे पड़ चुका है- उमेश शुक्ला

ओह माय गॉड! की कामयाबी के बाद अपने जीवन में आए बदलावों के बारे में रघुवेन्द्र सिंह को बता रहे हैं उमेश शुक्ला
                                             ओह माय गॉड! के सेट पर अक्षय कुमार के साथ
उगता सूरज फिल्म इंडस्ट्री को बहुत पसंद है और ओह माय गॉड! फिल्म की शानदार सफलता के बाद उमेश शुक्ला नाम के एक नए सूरज का उदय हो चुका है. बाजार मेरे पीछे पड़ा है और सबका मेरे प्रति नजरिया बदल गया है. हंसते हुए उमेश शुक्ला कहते हैं, साथ ही वह आत्मविश्वास के साथ जोड़ते हैं, लेकिन मैं सबसे कहता हूं कि जब तक मुझे अच्छी कहानी नहीं मिलेगी, मैं किसी के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं करूंगा. ओह माय गाड! 2012 की एक उल्लेखनीय फिल्म थी. इसने अंध आस्था पर प्रश्न उठाए और फिर सटीक और तार्किक जवाब देकर सबका दिल जीत लिया. अब उमेश की अगली फिल्म मेरे अपने पर नजरें टिकी हैं, जिसकी घोषणा उन्होंने हाल में की. इसमें नायक अभिषेक बच्चन होंगे और इसका निर्माण भूषण कुमार (टी-सीरीज) कर रहे हैं. मेरे अपने टेंटिटिव टाइटल है. इसका विषय यूनिवर्सल है. मां-बाप का अपने बच्चों और बच्चों का अपने मां-बाप के प्रति आज क्या नजरिया है, यह इसका विषय है. यह पारिवारिक फिल्म है. गौरतलब है कि मेरे अपने शीर्षक से गुलजार ने 1971 में एक सफल फिल्म बनाई थी. हां, लेकिन गुलजार साहब की फिल्म कम्युनल हारमनी पर आधारित थी. मेरी फिल्म अपनेपन की बात करती है. समानता का खंडन करते हुए उमेश कहते हैं.
उमेश शुक्ला पच्चीस वर्ष से थिएटर में सक्रिय हैं. इसकी शुरूआत मीठीबाई कॉलेज में ग्रेजुएशन के दौरान नाटकों में अभिनय से हुई. फिर अनुभव बढऩे के साथ-साथ वे नाटकों का लेखन और निर्देशन करने लगे. तिकड़मबाज, कांजी विरूद्ध कांजी, बचू बची गयो, कोई केतन पारेख ने बचाओ, नटू आईलवयू जैसे पच्चीस से अधिक लोकप्रिय नाटकों का लेखन-निर्देशन किया. थिएटर के बाद वह टीवी से जुड़े. तारक मेहता का उल्टा चश्मा, हम सब एक हैं, ये दुनिया है रंगीन और लक्स क्या सीन है उनके लिखित सफल कार्यक्रम हैं. 2008 में जब उन्होंने अपनी पहली फिल्म ढूंढ़ते रह जाओगे शुरू की तो, टीवी से अलग हो गए. उन्होंने पहली फिल्म अनुराग बासु के लिए कुछ तो है (2003) लिखी थी. बाद में, उन्होंने जोड़ी क्या बनाई वाह-वाह रामजी, किस किस की किस्मत, बचके रहना रे बाबा और फूल एन फाइनल फिल्मों का लेखन भी किया, लेकिन ये उन्हें पहचान दिलाने में असफल रहीं. मैं तब अनुभवी नहीं था. ये एक प्रोसेस है. आप धीरे-धीरे सीखते हैं. उमेश अपनी बात रखते हैं.
शायद आप जानते नहीं हैं कि उमेश फिल्मों में अभिनय भी कर चुके हैं. उमेश मेहरा के निर्देशन में बनी यार गद्दार (1994) में उन्होंने सैफ अली खान और मिथुन चक्रवर्ती के अपोजित विलेन की भूमिका निभाई थी. तीन-चार फिल्मों में हीरो के दोस्त के नायक की भूमिका निभाने के बाद उन्होंने अभिनय से तौबा कर ली. अगर यार गद्दार चल गई होती, तो मैं विलेन बनकर रह जाता. शुक्र है कि वह नहीं चली. मैं हमेशा से केवल लिखना और निर्देशित करना चाहता हूं. पता नहीं फिल्मों में अभिनय करने का फैसला मैंने क्यों लिया था. हंसते हुए उमेश कहते हैं.
उमेश मुंबई में पले-बढ़े हैं. उनके पुरखे, दादा और पिताजी कर्मकांडी ब्राह्मण हैं. उमेश स्वयं कॉलेज के दिनों तक लोगों के घरों में पूजा-पाठ और विवाह कराने जाया करते थे, लेकिन बाद में उनके मन में कुछ सवाल उठे, जिनका जवाब न पाकर उन्होंने परिवार से बगावत कर दी. उमेश बताते हैं, पूजा के दौरान एक विधि होती है, जिसमें हम जजमान को कान और आंख से पानी लगाने को कहते हैं. एक बार मैंने ऐसे ही कहा कि नाक से पानी छूआइए, जजमान ने कर दिया. मुझे लगा कि जब इन्हें नहीं पता है, तो ये जिस ईश्वर के लिए कर रहे हैं, उस तक ये बात कैसे पहुंचेगी. मैंने कई बार श्लोक का अर्थ बताकर समझाने की कोशिश की, तो लोग चुटकी बजाकर बोलते थे कि महाराज, जरा जल्दी खत्म कीजिए ना. मुझे इन सबमें आडंबर लगा और मैं इन सबसे अलग हो गया.
अब आप समझ सकते हैं कि उमेश शुक्ला ने ओह माय गाड! जैसी फिल्म का लेखन एवं निर्देशन क्यों किया. इसका श्रेय मेरे सह-लेखक भावेश मांडलिया को भी जाता है. उन्होंने एक ऑस्ट्रेलियन फिल्म देखी थी- द मैन हू सूड गॉड. उसमें एक आदमी भगवान पर केस कर देता है. हमें वह आइडिया अच्छा लगा. हमने उसे भारतीय परिवेश एवं समस्याओं के अनुरूप ढाला और कांजी विरूद्ध कांजी नाटक लिखा. बाद में परेश भाई (रावल) और अक्षय कुमार के आने पर यह ओह माय गॉड! फिल्म के रूप में देश के सामने आई. ईमानदारी से उमेश बताते हैं.
ओह माय गॉड! की कामयाबी के बाद उमेश के निजी जीवन में एक और बदलाव आया है. अब वे सांताक्रुज ईस्ट से जुहू में शिफ्ट हो गए हैं. उनके घर की बालकनी से पृथ्वी थिएटर का प्रांगण नजर आता है.  मुझे मंदिर के दर्शन न हों, तो चलेगा, लेकिन थिएटर सुबह-सुबह नजर आ जाए, तो मेरा दिन सफल है. मैं थिएटर से दूर नहीं हो सकता. हल्की मुस्कान के साथ उमेश ने कहा.

साभार: फिल्मफेयर



मुंबई में टैलेंट की कद्र होती है-राजकुमार यादव

काय पो चे देखने के बाद राजकुमार यादव का नाम हर किसी की जुबान पर है. रघुवेन्द्र सिंह ने इस दिलचस्प युवा अभिनेता से की खास मुलाकात
राजकुमार यादव ने हिंदी सिनेमा में अपना स्थान बना लिया है. काय पो चे का उनका सधा, सटीक, गंभीर और प्रभावी अभिनय सिनेमा के अध्येता हमेशा रेखांकित करते रहेंगे. छाप तो उन्होंने अपनी पहली फिल्म लव सेक्स और धोखा (2010) से छोड़ दी थी. रागिनी एमएमएस, शैतान, गैंगस ऑफ वासेपुर, चिट्टगॉन्ग और तलाश से उन्होंने इसे और मजबूत बनाया. राजकुमार अपने साथ अभिनय का एक ऐसा क्राफ्ट लेकर आए हैं, जो पर्दे पर एक नया रंग भर रहा है. ''अभिनय न करना ही मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रहती है. एक्टिंग के अलावा मैं वह सब करता हूं, जिससे मेरा किरदार विश्वसनीय लगे. राजकुमार अपनी मासूम व निश्छल मुस्कान के साथ कहते हैं. मगर कोई भी यह कथन उस व्यक्ति से सुनकर बेशक हैरान होगा, जिसकी सिनेमाई परवरिश अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और आमिर खान का फिल्में देखकर हुई है. ''मैं इन सबका सम्मान करता हूं. इनकी फिल्में देखकर मैं बड़ा हुआ हूं. इन्होंने मुझे फिल्मों में आने के लिए प्रेरित किया है. लेकिन हमारी फिल्मों में बहुत कैरिकेचर दिखाते हैं, ओवर द टॉप कर देते हैं. सजगता के साथ राजकुमार अपनी बात रखते हैं.
राजकुमार के जीवन और सोच में परिवर्तन का केंद्र बना एफटीआईआई (पुणे). नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, शबाना आजमी और जया बच्चन जैसे कलाकार देने वाले इस संस्थान में एक नए राज का जन्म हुआ. डेनियल डे लुइस और रॉबर्ट डी निरो जैसे हॉलीवुड अभिनेताओं से उनका परिचय हुआ. स्वयं राजकुमार कहते हैं, ''एफटीआईआई के दो-ढ़ाई सालों ने मेरे जीवन में बड़ा बदलाव लाया. वहां एक्टिंग की मेरी समझ का विस्तार हुआ. इससे पूर्व राज दिल्ली में थिएटर से जुड़े थे. ब्लू बेल्स से बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दो वर्ष तक श्रीराम सेंटर में अभिनय का प्रशिक्षण लिया. फिर एक वर्ष क्षितिज रैपेटरी के साथ काम किया. आपको जानकर हैरानी होगी कि किसी समय राजकुमार बड़े फिल्मी हुआ करते थे. सोलह साल की उम्र में वे अपने भाई के साथ भागकर मुंबई आ गए थे और कई घंटे तक शाहरुख खान के घर के सामने उनकी एक झलक पाने के लिए खड़े थे. गुलाम फिल्म देखने के बाद उन्होंने अपने दो दोस्तों के साथ रेल की पटरी पर ट्रेन के आगे दौड़ लगाई थी. ''वह बेवकूफी थी. मुझे वैसा नहीं करना चाहिए थे. क्या मिल गया वह करके? हमारी जान बच गई. राज पछतावे के लहजे में कहते हैं. 
                                                                    शाहिद
2008 में राजकुमार मुंबई आए. संघर्ष के दिनों में उन्होंने आय के लिए तीन-चार विज्ञापनों में गौण भूमिकाएं निभाईं. ''मकान का किराया तो देना ही था. एक्चुअली, मुंबई से आधे लोग इसलिए लौट जाते हैं, क्योंकि वो इस शहर की महंगाई को अफोर्ड नहीं कर पाते. ऐसा तो था नहीं कि मेरे पिताजी बहुत अमीर हैं और उन्होंने मुझे करोड़ो रुपए देकर भेजे थे. मैं मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार था और उसके बाद मिलने वाली सफलता का मजा उठाने के लिए भी तैयार था. आत्मविश्वास के साथ राजकुमार कहते हैं. दिबाकर बनर्जी की फिल्म लव सेक्स और धोखा से उनके लिए फिल्मों का दरवाजा खुला. मैंने अखबार में पढ़ा कि दिबाकर लव सेक्स और धोखा बना रहे हैं. मैंने कास्टिंग डायरेक्टर अतुल मोंगिया का किसी तरह नंबर निकाला और उन्हें परेशान कर-करके ऑडिशन देने पहुंच गया. मैंने ऑडिशन दिया. अगले दिन फोन आया कि दिबाकर को आपका ऑडिशन अच्छा लगा, मगर उन दिनों मैं जिम-विम करता था. उन्होंने कहा कि आपको नॉर्मल बनना पड़ेगा. उस दिन से मैंने भागना शुरु किया और आज तक भाग रहा हूं. हंसते हुए राज कहते हैं. राजकुमार काफी आगे निकल गए हैं. 2010 से 2013 तक उन्होंने सात फिल्में अपने नाम कर लीं. विकास बहल की कंगना राणावत के साथ क्वीन और फ्रिडा पिंटो के साथ एक अनाम फिल्में आने वाली हैं. हंसल मेहता निर्देशित शाहिद से उन्होंने पिछले वर्ष टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में काफी धूम मचाई. यह वकील शाहिद आजमी के जीवन पर आधारित फिल्म है, जिनकी 2010 में हत्या कर दी गई थी. उत्साहित राजकुमार कहते हैं. शाहिद मेरे दिल के करीब है. जब आप एक बायोपिक करते हैं, तो आप पर जिम्मेदारी होती है. शाहिद का परिवार आज भी है. वो चाहेंगे कि हम उसे अच्छे से पेश करें क्योंकि लोग फिल्म में जिस शाहिद को देखेंगे, वही छवि उनके मन में बैठ जाएगी. यह बहुत अच्छी फिल्म बनी है.
                                                            चिट्टगॉन्ग
 राजकुमार गुडग़ांव (हरियाणा) के एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से हैं. उनके पिता सत्यप्रकाश यादव हरियाणा सरकार में रेवेन्यू डिपार्टमेंट में कार्यरत थे. उनके बड़े भाई अमित और बड़ी बहन मोनिका हैं, जिनके साथ मिलकर उन्होंने बचपन में बहुत शैतानियां कीं. स्थानीय सिद्धेश्वर स्कूल से उन्होंने प्रारंभिक पढ़ाई की. स्कूल में राजकुमार डांस किया करते थे. बाद में उन्होंने डांस का प्रशिक्षण भी दिया. मार्शल आर्ट में वे कई बार नेशनल चैंपियन रह चुके हैं. हालांकि उनकी ये प्रतिभाएं हमें अब तक पर्दे पर दिखी नहीं है. आप धीरे-धीरे इन प्रतिभाओं को देखेंगे. वैसे, मेरी एक इच्छा है कि मैं अपनी फिल्म में गाना गाऊं. राज मुस्कुराते हुए कहते हैं.
अपनी तरह छोटे शहर और गैर फिल्मी पृष्ठभूमि से हिंदी सिनेमा में करियर बनाने के इच्छुक लडक़े-लड़कियों का राज उत्साहवद्र्धन करते हैं. वे उनकी राह आसान करने का प्रयास करते हैं, सबसे पहले आप अपने क्राफ्ट पर काम करें. हर किसी को लगता है कि मैं मोहल्ले में सबसे अच्छा दिखता हूं, तो मैं एक्टर हूं. वो अच्छी बात है, लेकिन उसके अलावा आपके पास क्या है? मुंबई में टैलेंट की कद्र होती है. अपने क्राफ्ट को निखार लीजिए, ताकि जब आप ऑडिशन देने जाएं तो कास्टिंग डायरेक्टर को लगे कि यार, इस बंदे में कुछ बात है.
राजकुमार स्टारडम की ऊंचाई छूना चाहते हैं, मगर निजी जीवन की सादगी और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना चाहते हैं. मैं चाहता हूं कि दुनिया जाने कि यह कमाल का एक्टर है. लेकिन मैं अपनी निजी लाइफ को नहीं खोना चाहता. मैं टपरी पर बैठकर अपने दोस्तों के साथ चाय पीने की आजादी नहीं खोना चाहता.

बॉक्स सामग्री
पहला प्यार- मधुबाला. मैं मुगल-ए-आजम देखता हूं, तो सोचता हूं कि इतना खूबसूरत कोई कैसे हो सकता है!
पहली सैलरी- मैं एक बच्ची को डांस ट्यूशन देने जाता था. तीन सौ रुपए मिले थे. उससे मैंने घर का सामान खरीदा था.
पहली तारीफ- मैं 11वीं में था. मैंने पहला नाटक किया था. एक लेडी ने मेरे पास आकर कहा था कि मेरा बेटा हो तो ऐसा ही हो.
पहला काम- 2008 में एचडीएफसी का एक एड किया था. मैं उसमें पीछे कहीं खड़ा था. मुझे पांच हजार रुपए मिले थे.

साभार: फिल्मफेयर 

On the set: बुलेट राजा- प्रतिशोध की दास्तान

फिल्म- बुलेट राजा
लोकेशन- सोफिटेल हॉटेल, मुंबई
निर्देशक- तिगमांशु धूलिया
निर्माता- राहुल मित्रा, नितिन तेज आहूजा, तिगमांशु धूलिया
कलाकार- सैफ अली खान, इरफान, जिमी शेरगिल, सोनाक्षी सिन्हा

लखनऊ और कोलकाता के बाद तिगमांशु धूलिया अपनी फिल्म बुलेट राजा की टीम के साथ मुंबई में शूटिंग करने पहुंचे. फिल्म के सेट से लौटकर अपना अनुभव बांट रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह

कहानी- बुलेट राजा एक रिवेंज ड्रामा है. इसकी पृष्ठभूमि लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के आस-पास का इलाका है. यह तीन गहरे दोस्तों राजा मिश्रा (सैफ अली खान), रूद्र त्रिपाठी (जिमी शेरगिल) और मुन्ना सिंह (इरफान) की कहानी है. बकौल निर्देशक, ''इसमें प्रतिशोध है, मार-धाड़ है, दोस्ती है, बुराई की हार और अच्छाई की जीत है, लेकिन इन सबको कमर्शियल फिल्म में नए ढंग से पेश किया जा रहा है.
स्कोर क्या हुआ है? मॉनीटर से नजर घुमाकर तिगमांशु धूलिया उत्सुकता से यूनिट के सदस्यों से भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच जारी मैच का हाल पूछते हैं. दूसरे कमरे में सैफ अली खान, जिमी शेरगिल और सोनाक्षी सिन्हा अपने सीन का रिहर्सल करने में व्यस्त हैं. सेटअप तैयार होने के बाद तिगमांशु शॉट लेते हैं. इस दृश्य में हॉटेल स्टाफ की एक महिला सैफ और सोनाक्षी को कमरे की सुविधाओं के बारे में जानकारी देती है. दूसरी ओर से जिमी कमरे में दाखिल होकर पूछते हैं कि मेरे लिए अलग कमरा है ना? और कैमरा उनका अनुसरण करता है. सैफ-सोनाक्षी फ्रेम से बाहर निकल आते हैं. तीनों कलाकार भाग कर मॉनीटर पर अपना शॉट देखते हैं. निर्देशक इस शॉट से असंतुष्ट हैं. वह दोबारा शॉट लेते हैं. शॉट ओके होने के बाद सैफ टीवी की ओर बढ़ते हैं. वे पूछते हैं कि किसने टीवी बंद किया? और वे टीवी ऑन करते हैं और सोफे पर लेटकर मैच का आनंद लेने लगते हैं.
बुलेट राजा के सेट का माहौल तनावरहित है. सोनाक्षी उत्साहपूर्वक हिम्मतवाला का अपना गाना थैंक गॉड इट्स फ्राइडे सैफ को दिखाती हैं. वे उनके डांस की तारीफ करते हैं. सोनाक्षी पूछती हैं कि क्या मैंने यह गाना देखा है? मैं इस गीत को करने के उनके फैसले की प्रशंसा करता हूं. तिगमांशु सैफ की ओर बढ़ते हैं और उन्हें अगला डायलॉग बताते हैं, कुछ खाना-वाना मंगवाएं क्या? जो उन्हें सोनाक्षी से कहना है. यह सुनते ही सोनाक्षी को भूख लग जाती है. वे दबी आवाज में मुस्कुराते हुए अपने बॉय से कुछ खाने के लिए लाने को कहती हैं. तभी तिगमांशु की कॉफी आ जाती है. वह मुझे फिल्माए जा रहे दृश्य के बारे में बताते हैं, ''सैफ, सोनाक्षी और जिमी ने अभी-अभी हॉटेल में चेक इन किया है. सैफ-सोनाक्षी किसी प्रेशर के कारण लखनऊ से भागकर मुंबई आए हैं.
आम तौर पर सितारों से दूर रहने वाले तिगमांशु पहली बार सैफ और सोनाक्षी जैसे स्टार्स के साथ काम कर रहे हैं.  ''अभी तक तो अनुभव बहुत अच्छा रहा है. सैफ एक स्टार होने के साथ-साथ बढिय़ां एक्टर हैं और सोनाक्षी अच्छे संस्कारों वाली लडक़ी हैं. हंसते हुए तिगमांशु कहते हैं. बुलेट राजा उनकी अब तक की सबसे महंगी फिल्म है. ''कुछ कहानियों का कैनवास बहुत बड़ा होता है. उसके लिए बड़े बजट की आवश्यकता होती है और उसे जस्टिफाय करने के लिए आपको स्टार चाहिए ही चाहिए. वे बताते हैं. इस रोचक शीषर्क के संबंध में वे कहते हैं, राजा इसमें सैफ का नाम है और वो खूब गोलियां चलाते हैं और बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार रहते हैं.
अगला सीन तैयार है. इसमें सैफ और जिमी हॉटेल के कमरे में एक शख्स से रिवॉल्वर की खरीदारी कर रहे हैं. पृष्ठभूमि में सोनाक्षी बेमन से टहल रही हैं. इस सीन के तिगमांशु कई टेक लेते हैं. कभी रिवॉल्वर की जांच करते जिमी फ्रेम से बाहर चले जाते हैं, तो कभी उन्हें अपना हेयर स्टाइल परफेक्ट नहीं मिलता. मॉनीटर पर शॉट की जांच करते समय वे अपनी हेयर स्टाइलिस्ट पर चिल्ला भी पड़ते हैं, अब क्या तेरे सैलून चलूं, तब मेरे बाल सही करोगे. स्टाइलिस्ट घबरा जाता है. बुलेट्स के क्लोज अप शॉट के लिए असली बुलेट्स मंगाई जाती हैं. सैफ उन्हें रिवॉल्वर में लोड करते हैं और असिस्टेंट्स के साथ मस्ती करने लगते हैं. बेचारे असिस्टेंट्स इधर-उधर भागते हैं और सेट ठहाकों से गूंज उठता है.
राजा मिश्रा के किरदार को चुनौती मानते हैं सैफ. वे कहते हैं. इस किरदार की दुनिया मजेदार और वॉयलेंट है. इसके बात करने का ढंग यूपी का है. मेरे बात करने और खड़े रहने का ढंग कॉकटेल और लव आज कल के लिए सही था. वो रोल्स मेरे लिए आसान हैं और थोड़े बोरिंग भी. यह एंटरटेनिंग कैरेक्टर है. उधर, एक्शन डायरेक्टर परवेज खान जूनियर कलाकारों के साथ एक्शन सीन का अभ्यास कर रहे हैं. सैफ उन्हें जॉइन करते हैं. जब तक सीन सेट किया जाता है, सैफ निर्देशक के साथ सोफे पर बैठ जाते हैं. वे उनसे अपनी मम्मी (शर्मिला टैगोर) की फिल्मों के बारे में बातें करते हैं. वे उन्हें बताते हैं कि एक बार वे प्रख्यात फिल्मकार मार्टिन स्कार्सी से अपनी मम्मी के साथ मिले थे. जब मार्टिन स्कार्सी ने कहा कि वे उनकी मम्मी के बहुत बड़े फैन हैं, तो वे हैरान रह गए थे. वे सोचते थे कि उनके डैड ग्रेट हैं, क्योंकि वे क्रिकेटर थे और पटौदी के नवाब थे. फिर दोनों एक्शन सीन के फिल्मांकन के लिए खड़े हो जाते हैं. बेडरुम में तीन लोग सैफ पर गोलियां चला रहे हैं और वह अकेले ही उनका सामना करते हैं. सोनाक्षी टेबल के नीचे छुप जाती हैं.
कट होते ही सोनाक्षी के चेहरे से भय के भाव छू मंतर हो जाते हैं. वे बताती हैं, ''निताली सरकार मॉर्डन डे बंगाली लडक़ी है, जिसे एक गैंगस्टर से प्यार हो जाता है. वह उसे घर लेकर जाती है और मम्मी-पापा से मिलवाती है. बुलेट राजा को लेकर उत्साहित सोनाक्षी बताती हैं, ''मैंने अब तक लार्जर देन लाइफ किरदार किए हैं, उसकी तुलना में यह किरदार रियलिस्टिक है. न मैं बंगाली हूं और न स्ट्रगलिंग एक्टर रही हूं. इसे निभाने के लिए मुझे तिशु सर से काफी बात करनी पड़ी. 
अब रात के गयारह बज चुके हैं. सोनाक्षी और सैफ अपने हिस्से का काम खत्म कर चुके हैं. दोनों घर के लिए निकल पड़ते हैं और तिगमांशु अपने फेवरेट जिमी के साथ शूट जारी रखते है.




साभार: फिल्मफेयर