Saturday, October 31, 2009

मैं अपनी इमेज तोड़ना चाहता हूं: शरद केलकर

शरद केलकर काफी समय से ऐसे काम की तलाश में थे, जो दर्शकों में बनी उनकी आदर्श बेटे और आदर्श पति की इमेज तोड़ सके। यही वजह है कि बालाजी टेलीफिल्म्स की ओर से जब उन्हें सीरियल बैरी पिया का ऑफर आया, तब उन्होंने फौरन हां कह दिया। शरद कहते हैं, ऐसा नहीं है कि मुझे गुड ब्वॉय, गुड हसबैंड और गुड सन का रोल करने में मजा नहीं आता। मुझे बहुत मजा आता है, लेकिन मैं ग्रे शेड वाले रोल का मजा लेना चाहता था। सच कहूं, तो मैं अपनी लोकप्रिय इमेज को तोड़ना चाहता था। मेरे मन में अलग और फ्रेश किरदार निभाने की इच्छा थी। मेरा लक अच्छा था कि मेरे पास बैरी पिया का प्रस्ताव आ गया। मैंने सीरियल के बारे में और अपने किरदार के बारे में सुना, तो हां करने में एक पल भी नहीं गंवाया। मैं नहीं चाहता था कि सीरियल मेरे हाथ से जाए।
कलर्स पर प्रसारित सीरियल बैरी पिया शरद के लिए कई वजहों से खास है। वे पहली बार ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित किसी सीरियल में अभिनय कर रहे हैं और पहली बार ठाकुर दिग्विजय सिंह जैसी भूमिका निभा रहे हैं। शरद कहते हैं, इन कारणों से तो यह सीरियल मेरे लिए खास है ही, लेकिन सबसे प्रमुख कारण इसका विषय है। यह हमारे देश के किसानों की विभिन्न समस्याओं को उजागर करने वाला सीरियल है। इसकी कहानी महाराष्ट्र की है, लेकिन यही हाल पूरे देश के किसानों का है। कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या गंभीर मुद्दा है। यदि सीरियल के माध्यम से हम सरकार का ध्यान किसानों की समस्या के प्रति खींच सके, तो हमारी मेहनत सफल हो जाएगी।
शरद के लिए इस सीरियल में काम करने का अनुभव यादगार है। वे कहते हैं, ठाकुर दिग्विजय सिंह जैसी भूमिका मैंने पहले कभी नहीं निभाई थी। मैं सीरियल को एंज्वॉय कर रहा हूं। मुझे लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया भी मिल रही है। मैं खुश हूं। यकीन है कि लोग इसमें ठाकुर दिग्विजय सिंह की मेरी भूमिका को भूल नहीं पाएंगे। खास बात है कि इस सीरियल में मेरे निजी जीवन के अनुभव काम आ रहे हैं। दरअसल, मैं मध्य प्रदेश में रहा हूं। वहां ठाकुरवाद बहुत चलता है। एमपी में मुरैना, दतिया जैसे कई ऐसे इलाके हैं, जहां जमींदार और किसानों के बीच बड़ा भेद है। गौरतलब है कि शरद आजकल एनडीटीवी इमेजिन के रिअलिटी शो पति पत्नी और वो में होस्ट की भूमिका निभा रहे हैं। शो के अनुभव के बारे में वे कहते हैं, मुझे शो को होस्ट करने में मजा आ रहा है। उसका अनुभव भी मेरे लिए एकदम अलग है। खुश हूं कि मुझे अलग-अलग जॉनर का काम करने को मिल रहा है। उम्मीद करता हूं कि ऐसे मौके भविष्य में भी मिलते रहेंगे।
सिंदूर तेरे नाम का और सात फेरे जैसे लोकप्रिय सीरियल का हिस्सा रहे शरद अपने करियर से खुश हैं। उनकी योजना जल्द ही प्रोडक्शन के क्षेत्र में आने की है। वे कहते हैं, मैंने अब तक वही किया, जो मुझे अच्छा लगा। यही कारण है कि मैं अपने करियर से खुश हूं। हालांकि इंडस्ट्री में मुझे शुरुआत में ही बहुत झटके लगे। मेरे कुछ शो बंद हुए, मैं रिप्लेस भी किया गया, लेकिन उम्मीद है, आगे का सफर कष्टदायक नहीं होगा। मैं प्रोडक्शन में आने की योजना बना चुका हूं। मेरे पास कहानियां तैयार हैं।
-raghuvendra singh

अजमेर शरीफ पहुंची कट्रीना | खबर

अपनी नई फिल्म अजब प्रेम की गजब कहानी की सफलता की दुआ मांगने कट्रीना कैफ शुक्रवार को अजमेर शरीफ की दरगाह पहुंची। कट्रीना इस वक्त जयपुर में अपनी इस फिल्म के प्रचार के लिए गई हैं। उनके साथ रणबीर कपूर भी हैं। देर शाम कट्रीना अकेले ही अजमेर शरीफ की दरगाह में मत्था टेकने गई थीं। गौरतलब है कि लोकप्रिय अभिनेत्री कट्रीना कैफ अपनी प्रत्येक फिल्म की रिलीज से पहले अजमेर शरीफ की दरगाह में मत्था टेकने जाती हैं। राजकुमार संतोषी निर्देशित अजब प्रेम की गजब कहानी छह नवंबर को प्रदर्शित हो रही है। इसमें कट्रीना कैफ और रणबीर कपूर की जोड़ी पहली बार साथ नजर आएगी।
-रघुवेन्द्र सिंह

Thursday, October 29, 2009

अलादीन से कई ख्वाहिशें पूरी हो गई- सुजॉय घोष | मुलाकात

सुजॉय घोष अपनी नई फिल्म अलादीन की प्रेरणा मनमोहन देसाई को मानते हैं। पहली दोनों फिल्मों झंकार बीट्स और होम डिलीवरी से दर्शकों से वाहवाही लूटने में असफल रहे सुजॉय को उम्मीद है कि अलादीन से वे इस उद्देश्य में सफल होंगे। प्रस्तुत है सुजॉय घोष से बातचीत..
अलादीन किस प्रकार मनमोहन देसाई से प्रेरित है?
इसमें मनमोहन देसाई की फिल्मों की तरह मनोरंजन के सभी तत्व हैं। इसका अंत भी उन्हीं की फिल्मों की तरह है। हीरो, हीरोइन, विलेन सब अंत में एक स्थान पर मिलते हैं और नाच-गाना होता है और फिर मार-धाड़ होती है। बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। मैं मनमोहन देसाई की फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं। मैं बचपन से उनकी तरह कॉमर्शिअल फिल्म बनाना चाहता था। इस फिल्म से मेरी वह ख्वाहिश पूरी हो गई।
अलादीन के निर्माण की योजना कब बनी?
होम डिलीवरी की रिलीज के बाद मेरे मन में इस फिल्म का विचार आया। मेरी पहली फिल्म झंकार बीट्स सफल हुई थी, लेकिन होम डिलीवरी बुरी तरह फ्लॉप हो गई। उन फिल्मों से मेरा दर्शकों से व्यापक स्तर पर संपर्क नहीं बना। मैं नई फिल्म ऐसी बनाना चाहता था, जिससे मुझे विस्तृत पहचान मिले। अलादीन की कहानी फाइनल करने और इसके प्री-प्रोडक्शन में मुझे दो साल लग गए।
अलादीन की कहानी और इसके कलाकारों के चयन के बारे में बताएंगे?
मेरी फिल्म के हीरो का नाम अलादीन है, लेकिन वह लैंप वाला अलादीन नहीं है। अलादीन को उसके कॉलेज के लड़के हमेशा चिढ़ाते हैं और उससे लैंप घिसवाते हैं। अलादीन के कॉलेज में एक लड़की जैसमीन आती है और उसे उससे प्यार हो जाता है, लेकिन जैसमीन को उसके दूसरे दोस्त अपने ग्रुप में शामिल कर लेते हैं। एक दिन जैसमीन के सामने अलादीन से लड़के लैंप घिसवाते हैं और तभी पीछे से अचानक एक आदमी आ जाता है। वह जिन्न है। जिन्न अलादीन से कहता है कि मैं दो महीने में रिटायर होने वाला हूं। जल्दी से मुझसे तीन विश ले लो। यहीं से कहानी में मोड़ आता है। अलादीन नई बोतल में पुरानी शराब की तरह है। अमिताभ बच्चन, संजय दत्त और रितेश देशमुख के बिना मैं इस फिल्म की कल्पना ही नहीं कर सकता था।
अमिताभ बच्चन को फिल्म के लिए राजी करने में आपको दिक्कत नहीं हुई?
बिल्कुल नहीं। मैं बच्चन जी के साथ काम करने की इच्छा लेकर इस फील्ड में आया था। मैं उनके पास कई फिल्मों की स्क्रिप्ट लेकर गया। उनमें से अलादीन उन्हें पसंद आई। उन्होंने जब मुझसे कहा कि वे इसमें काम करेंगे, तो मैं तो खुशी से पागल हो गया। मैं किसी फिल्म स्कूल नहीं गया, लेकिन इस फिल्म में सत्तर दिन उनके साथ काम करने के बाद मुझे लगा कि मैं किसी फिल्म के स्कूल से हो आया।
इस फिल्म का अनुभव आपके लिए सुखद रहा?
हां। अलादीन से मेरी कई ख्वाहिशें पूरी हो गई। मनमोहन देसाई जैसी पिक्चर बना ली और अमिताभ बच्चन के साथ काम भी कर लिया। भगवान मुझ पर मेहरबान थे, इसीलिए यह सब इतनी जल्दी हो गया। अब यही चाहता हूं कि फिल्म दर्शकों को पसंद आ जाए। इसमें मैंने आधुनिक तकनीकों का खूब इस्तेमाल किया है।
आपने किसी नई फिल्म पर काम शुरू किया है?
हां, मेरी अगली फिल्म थ्रिलर होगी। उसका हीरो एक हीरोइन है। उसके लिए विद्या बालन से संपर्ककिया है। जब फाइनल होगा, मैं सभी को बताऊंगा। मैं तय करके आया हूं कि हमेशा अलग जॉनर की फिल्म बनाऊंगा। खुद को एक तरह के सिनेमा तक सीमित नहीं रखूंगा। इस पर अलादीन की रिलीज के बाद काम शुरू करूंगा।
-raghuvendra singh

Wednesday, October 28, 2009

बेटे को लेकर फिल्म बनाएंगे अनुपम खेर | खबर

मुंबई। छह साल के बाद प्रसिद्ध अभिनेता अनुपम खेर फिर निर्देशक की जिम्मेदारी उठाने जा रहे हैं। उनके बेटे सिंकदर खेर फिल्म में नायक की भूमिका निभाएंगे। फिल्म का निर्माण अनुपम खेर स्वयं करेंगे। इकलौते बेटे सिंकदर खेर के करियर को नया जीवन देने के उद्देश्य से अनुपम खेर फिल्म निर्देशित करने जा रहे हैं।
गौरतलब है कि सिंकदर खेर ने पिछले साल हंसल मेहता की फिल्म वुडस्टॉक विला से अभिनय करियर की शुरूआत की। उनकी दूसरी फिल्म समर 2007 थी। दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल हो गईं। सिकंदर खेर को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। अब अनुपम खेर ने फैसला किया है कि वे अपने बेटे को रीलांच करेंगे। फिल्म का प्री प्रोडक्शन काम पूरा हो चुका है। नए साल के आरंभ फिल्म की शूटिंग में शुरू होगी।
उल्लेखनीय है कि अनुपम खेर निर्देशित पहली फिल्म ओम जय जगदीश 2003 में प्रदर्शित हुई थी।
-रघुवेन्द्र सिंह

ड्रीम-गर्ल की तलाश: रितेश | मुलाकात

रितेश देशमुख को कॉमेडी किंग का टैग पसंद नहीं। इसीलिए उन्होंने अब इस टैग से छुटकारा पाने के लिए गंभीर फिल्मों की ओर रुख किया है। और क्या इरादे हैं उनके एक नजर..
कॉमेडी किंग का टैग क्यों नहीं पसंद है?
मैं इसके योग्य नहीं हूं। अभी मुझे बहुत कुछ करना बाकी है। लोगों का बड़प्पन है कि वे मुझे कॉमेडी किंग कहते हैं। मुझे तो खुशी होती है, लेकिन मैं किसी खास टैग से जुड़ना नहीं चाहता।
अलादीन किस विधा की फिल्म है? इससे कैसे जुड़े?
अलादीन में फन, मैजिक, फैंटेसी, रोमांस, एक्शन सब कुछ है। एक फैमिली एंटरटेनर फिल्म है। इसके निर्देशक सुजॉय घोष हैं। मस्ती के प्रीमियर पर उन्होंने मुझसे कहा था कि वे मेरे साथ काम करना चाहते हैं। मैंने हामी भर दी, लेकिन मुश्किल यह थी कि कैसी फिल्म बनाएं? सुजॉय और मैं एक दिन इसी पर चर्चा कर रहे थे कि सामने अलादीन की बुक और डीवीडी दिख गई। उन्होंने कहा कि अलादीन पर फिल्म बनाते हैं, मुझे अच्छा लगा।
अलादीन में नया क्या है?
अलादीन को नए तरह से बनाने की चुनौती हम सबके सामने थी। सुजॉय एक साल तक इसी पर काम करते रहे। पहले इसकी कहानी बहुत मॉडर्न थी। वह न्यूयॉर्क बेस्ड रोबोटिक फिल्म थी। उसका नाम सुजॉय ने अलादीन और चालीस चोर रखा था। इसे अलादीन और चालीस चोर की कहानी से जोड़ रहे थे।
अलादीन की कहानी के बारे में बताएं?
अलादीन की कहानी 2009 में बेस्ड है। मैं अलादीन की भूमिका निभा रहा हूं, जिसके माता-पिता मर चुके हैं। वे अलादीन के लैंप की खोज में थे इसलिए उन्होंने अपने बेटे का नाम अलादीन रखा। अलादीन को लैंप से सख्त नफरत है, क्योंकि स्कूल में बच्चे उसे छेड़ते हैं कि तू ही लैंप वाला अलादीन है क्या? वे उसे परेशान करते हैं और उससे लैंप रगड़वाते हैं। अलादीन की लाइफ में जीनियस के आने के बाद सब कुछ बदल जाता है। अलादीन को उसके प्यार जैसमीन से मिलाने में जीनियस मदद करता है। मूल कहानी के साथ संजय दत्त का पैरलर ट्रैक चलता है। वह भी लैंप की खोज में हैं।
अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अनुभव बताएं?
वे लीजेंड हैं। यहां जीनियस की भूमिका में हैं। वे आपको अपने अनुसार सीन करने का मौका देते हैं। उन्होंने कभी अहसास नहीं होने देते कि वे अमिताभ बच्चन हैं।
जैकलीन फर्नाडीज की यह पहली फिल्म है। हिंदी फिल्मों में उनका भविष्य कैसा देखते हैं?
जैकलीन में काम करने का जज्बा है। वे समय की पाबंद और मेहनती हैं। उन्हें हिंदी नहीं आती, लेकिन उन्होंने शूटिंग आरंभ होने से दो महीने पहले अलादीन के अपने सारे डायलॉग रट लिए थे। मैं उनके साथ एक और फिल्म जाने कहां से आई है कर रहा हूं। हिंदी फिल्मों में वे अच्छा मुकाम बनाएंगी।
फिल्म करते हुए कलाकार के रूप में क्या कुछ सीखे?
अलादीन से मुझे बहुत कुछ मिला। यह मेरे करियर की बड़ी फिल्म है। इसमें मुझे अमिताभ बच्चन और संजय दत्त सरीखे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। मैंने पिछली फिल्मों से इसमें अच्छा काम करने की कोशिश की है।
आपकी ड्रीम गर्ल कैसी होगी?
मैंने इस बारे में सोचा नहीं है। मैं लड़कियों को कैटेगराइज करके नहीं देखता। हर लड़का सोचता है कि उसकी ड्रीम गर्ल में फलां खूबियां होंगी, लेकिन दिल उसके जस्ट अपोजिट लड़की पर आ जाता है। जिसके साथ जोड़ी बननी होगी, बन जाएगी।
अलादीन के बाद कौन सी फिल्म आएगी?
अगले वर्ष राम गोपाल वर्मा की रण और मिलाप झावेरी की जाने कहां से आई है फिल्में प्रदर्शित होंगी।
-raghuvendra singh

रहा खट्टा-मीठा अनुभव: गुरमीत-देबिना

गुरमीत चौधरी और देबिना बनर्जी छोटे पर्दे के लोकप्रिय प्रेमी युगल हैं। पहली बार दोनों धारावाहिक रामायण में राम और सीता की भूमिका में साथ दिखे। और अब वे एक बार फिर एनडीटीवी इमैजिन के रियलिटी शो पति पत्नी और वो में साथ-साथ नजर आ रहे हैं। गुरमीत कहते हैं, हम दोनों सचमुच भाग्यशाली हैं। हम चाहेंगे कि भविष्य में भी हमें साथ काम करने का मौका मिलता रहे। संभव है कि दर्शक नच बलिये के नए सीजन में हमें तीसरी बार साथ-साथ देखें।
देबिना और गुरमीत मुंबई में साथ रहते हैं। हालांकि दोनों ने अभी शादी नहीं की है। देबिना कहती हैं, शादी के बारे में हमने अभी तक सोचा नहीं है। इस वक्त हम दोनों का फोकस अपने-अपने करियर पर है। गुरमीत कहते हैं, क्या पता? हम शो से निकलने के तुरंत बाद शादी कर लें। ईश्वर ने हमें मिलाया है, उसने शादी का समय भी तय किया होगा। हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। एक-दूसरे का साथ हमें अच्छा लगता है। अगर हमने शादी कर भी ली, तो अगले दस साल तक बच्चा पैदा नहीं करेंगे। यह हमने इस शो पति पत्नी और वो में आने के बाद फैसला किया है।
पति पत्नी और वो गुरमीत और देबिना का पहला रियलिटी शो है। क्या उन्होंने राम और सीता की छवि से बाहर निकलने के लिए यह शो साइन किया? गुरमीत का जवाब होता है, राम और सीता की भूमिका में दर्शकों ने हमें पसंद किया। हमें किसी छवि में बंधने का डर नहीं है। हम दोनों एक्टर हैं और हमें जो काम मिलेगा, उसे ईमानदारी और मेहनत से करेंगे। देबिना कहती हैं, इस शो का कांसेप्ट हमें मजेदार लगा। खास बात यह थी कि इसमें गाली-गलौज, एलिमिनेशन और विनर आदि का टेंशन नहीं था। हमने सोचा कि आज नहीं तो कल शादी करेंगे और बच्चे पैदा होंगे, तो क्यों न उससे पहले बच्चे पालने का अनुभव ले लें।
गुरमीत शो का अनुभव बांटते हुए बताते हैं, खट्टा-मीठा अनुभव है। दरअसल, हम दोनों सोचकर आए थे कि इसमें मस्ती करेंगे, एक-दूसरे के साथ वक्त बिताएंगे, लेकिन यहां आने के बाद हमारी नींद हराम हो गई है। हम रात को चैन से सो नहीं पाते। हर समय बच्चे की टेंशन रहती है। शो में आने के बाद हम दोनों का वजन भी कम हो गया। देबिना कहती हैं, शो में आकर मुझे अहसास हुआ है कि गुरमीत अच्छे पति और पिता साबित होंगे। मैं गुरमीत को पिछले साढ़े चार साल से जानती हूं, लेकिन इस शो में मुझे हर दिन उनका नया रूप देखने को मिलता है। मेरे लिए शो का अनुभव मजेदार है।
भावी योजनाओं के संदर्भ में पूछने पर गुरमीत कहते हैं, मैंने धारावाहिक रामायण से करियर की शुरुआत की और अब पति पत्नी और वो कर रहा हूं। मैंने दोनों अलग तरह के शो किए। भविष्य में भी मेरी कोशिश कुछ नया करने की रहेगी। देबिना कहती हैं, मैं भी गुरमीत की तरह कुछ नए तरह के शो करना चाहूंगी।
-raghuvendra singh

Tuesday, October 27, 2009

http://chavannichap.blogspot.com/

kripya, dilwale dulhaniya le jayenge par likha mera lekh padhein aur apni raai dein.

dhanyawaad

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मैं गंभीर फिल्में भी बनाना जानता हूं: प्रियदर्शन | मुलाकात

कई लोकप्रिय और सफल फिल्में बना चुके निर्देशक प्रियदर्शन अपने करियर की रजत जयंती मना रहे हैं। यह वर्ष उनके लिए इसलिए भी खास है, क्योंकि भारत सरकार ने उनकी तमिल फिल्म कांचीवरम् को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया है। यह उनके करियर का पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार है। प्रियदर्शन से बातचीत के खास अंश पेश हैं।
आपके लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार क्या महत्व रखता है?
-मैं पिछले पच्चीस सालों से अनवरत फिल्में बना रहा हूं, दर्शकों को मेरी फिल्में पसंद भी आईं मगर मुझे पुरस्कार नहीं मिला। पच्चीस वर्ष के करियर में पहली बार मेरी फिल्म कांचीवरम् को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है। हमारे यहां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का स्थान हर पुरस्कार से ऊपर है। मैं बहुत खुश हूं। अब तक मैंने जो भी फिल्में बनाईं हैं, उनमें से किसी पर भी मुझे गर्व नहीं हुआ, लेकिन कांचीवरम् से मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।
कांचीवरम् जैसी फिल्म बनाकर आप साबित करना चाहते थे कि आप गंभीर और अर्थपूर्ण फिल्में भी बना सकते हैं?
-जी हां। मेरी पहचान कॉमेडी फिल्म मेकर की है। समीक्षक मेरी फिल्मों को कभी एक तो कभी डेढ़ स्टार देते थे। यह बात मुझे अच्छी नहींलगती थी। कांचीवरम् में मैंने साबित कर दिया कि मैं गंभीर और अर्थपूर्ण फिल्में भी बनाना जानता हूं। मुझे ऑफबीट फिल्मों की समझ है। मैं खुश हूं कि मैं खुद को साबित करने में सफल हुआ।
पिछली फिल्मों की तुलना में कांचीवरम् को कॉमर्शियल सफलता नहीं मिली। इस बात से खुश हैं?
-मुझे अफसोस है कि कांचीवरम् को दर्शक नहीं मिले। हमारे देश में फिल्मकार इसीलिए अर्थपूर्ण फिल्में बनाने से हिचकते हैं, क्योंकि ऐसी फिल्मों को दर्शन नहींमिलते। मुझे इस बात का अहसास पहले से था। मैंने निर्माता शैलेंद्र सिंह से कहा भी था कि कांचीवरम् से आपको पैसा नहीं मिलेगा, मगर मैं जानता था, कि यह फिल्म हमें सम्मान जरूर दिलाएगी
अपने पच्चीस वर्ष के सफर पर क्या कहेंगे?
-मैं खुश हूं। जिस चीज की कमी थी, वह कांचीवरम् से पूरी हो गई। मैंने पच्चीस वर्षों में अलग-अलग भाषाओं में 78 फिल्में बनाईं हैं। उनमें से अधिकांश फिल्में सफल रहीं। मेरी ख्वाहिश है कि मैं ताउम्र फिल्में बनाता रहूं।
निकट भविष्य में आपकी कौन सी फिल्में प्रदर्शित होंगी?
-मेरी फिल्म दे दना दन बनकर तैयार है। यह फुल एंटरटेनिंग कॉमर्शियल फिल्म है। इसमें अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, परेश रावल, कैटरीना कैफ, नेहा धूपिया और समीरा रेड्डी हैं।
क्या आप कांचीवरम् को हिंदी में बनाएंगे?
-नहीं। सभी मुझसे यही सवाल पूछ रहे हैं। कांचीवरम् की कहानी, किरदार, लोकेशन सब दक्षिण भारतीय हैं। इस फिल्म का हिंदी रीमेक नहीं बन सकता। अलबत्ता इसी माह 30 अक्टूबर को यह फिल्म हिंदी सबटाइटल के साथ पूरे देश में प्रदर्शित होगी।
-raghuvendra singh

Saturday, October 24, 2009

संघर्ष बिना जिंदगी कुछ नहीं: प्रियंका कोठारी

प्रियंका कोठारी संघर्षशील स्वभाव की हैं। वे मुसीबतों से डरकर भागती नहीं, उनका सामना करती हैं। कुछ वर्ष पहले जब प्रियंका ने फिल्मों में करियर बनाने के लिए दिल्ली से मुंबई अकेले आने का फैसला परिजनों को सुनाया, तो किसी को यकीन नहीं हुआ। गैर फिल्मी पृष्ठभूमि की प्रियंका ने अपने दम पर हिंदी एवं दक्षिण भारतीय फिल्मों में पहचान बनाई है। यहां प्रियंका जिंदगी के प्रति अपने नजरिए से अवगत करा रही हैं।
आपकी नजर में जिंदगी क्या है?
संघर्ष..। संघर्ष के बिना जिंदगी कुछ नहीं।
जिंदगी में अहम क्या है?
प्यार, सम्मान और शांति।
जिंदगी में पतझड़ आ जाए, तो क्या करना चाहिए?
उसका मुकाबला करते हुए आगे बढ़ जाना चाहिए।
जिंदगी कब बदरंग लगने लगती है?
जब आप अपने मन की शांति खो देते हैं।
आपकी जिंदगी में पुरुष ज्यादा अहमियत रखते हैं या स्त्री?
मेरे लिए इंसान महत्व रखता है। पुरुष या स्त्री नहीं।
आपकी जिंदगी का लक्ष्य क्या है?
भगवान ने मेरे लिए जो रास्ता चुना है, उस पर चलती रहूं।
अब तक की जिंदगी का सबसे सुहाना पल कौन सा था?
जब मुझे पहली फिल्म जेम्स मिली थी, उस दिन मैं बहुत खुश थी। मुझे सारी दुनिया बदली नजर आ रही थी।
जिंदगी में मिला अब तक का सबसे कीमती तोहफा क्या है?
जब पापा ने कहा कि तुम अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जी सकती हो। उससे बड़ा तोहफा आज तक मुझे नहीं मिला।
जिंदगी की गाड़ी सरपट दौड़ती रहे, इसके लिए क्या जरूरी है?
आप खुद दौड़ते रहें। जिस दिन आप रुक गए, उस दिन जिंदगी भी रुक जाएगी।
जिंदगी में संघर्ष क्यों जरूरी है?
खुशी की कीमत जानने के लिए। संघर्ष के बिना आप खुशियों का मोल नहीं समझ सकते।

-raghuvendra singh

Friday, October 23, 2009

नन्हें दर्शकों को भाएगी बाल गणेश-2 | फिल्म समीक्षा

निर्देशक : : पंकज शर्मा
तकनीकी टीम : निर्माता- स्मिता शेमारू, पंकज शर्मा, संगीतकार- शमीर टंडन
भारत में अभी तक सभी एनीमेशन फिल्में बाल दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं। बाल गणेश-2 भी उसी श्रेणी की फिल्म है। यह पंकज शर्मा की पहली एनीमेशन फिल्म बाल गणेश का सीक्वल है बाल गणेश-2। निर्देशक ने इसमें भगवान गणेश के बचपन के दिनों की तीन प्रेरणात्मक कहानियां दर्शाई हैं। पहली कहानी बाल गणेश द्वारा बिल्ली को सताने की है, जो बेचारे और असहाय जीवों को न सताने की सीख देती है। दूसरी कहानी उनकी प्रिय सवारी मुषकराज से जुड़ी है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है। और तीसरी कहानी नन्हें गणेश द्वारा महाभारत लिखने से जुड़ी है, जो त्याग और समर्पण दर्शाती है।
बाल गणेश-2 का एनीमेशन पक्ष उत्तम है। खास कर बाल गणेश का मोहक रूप एवं मुषकराज का चुलबुला अंदाज। गणेश और मुषकराज के बीच के कई दृश्य हास्य उत्पन्न करते हैं। फिल्म की शुरुआत मुंबई के कुछ स्टाइलिश चूहों से होती है। यह उनकी बोल चाल की मुंबईया भाषा से पता चलता है, लेकिन वे दृश्य मनोरंजक न होकर इरीटेट करते हैं। फिल्म में एक सुंदर गीत है, पर अचानक फिल्म में आने के कारण वह अवांछित प्रतीत होता है। बाल गणेश-2 नन्हें दर्शकों को पसंद आ सकती है। निर्देशक ने फिल्म के अंत में संकेत दिया है कि बाल गणेश का एक और सीक्वल आ सकता है।
-रघुवेंद्र सिंह
रेटिंग- दो स्टार

Thursday, October 22, 2009

बिग बॉस से बाहर किए गए कमाल

मुंबई। लगातार अपने मुंह से जीत का दावा करने वाले कमाल खान को बिग बॉस के घर से निकाल बाहर किया गया है। ऐसा उनके गलत व्यवहार के चलते किया गया है। घर में कमाल खान के हिंसक एवं अमानवीय व्यवहार की वजह से रियलिटी शो बिग बॉस-3 के निर्माताओं को मजबूरन उन्हें निकालना पड़ा। यह शो दिखाने वाले चैनल कलर्स की प्रोग्रामिंग हेड अश्विनी यार्डी ने बताया कि बिग बॉस के घर में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। कमाल खान ने इस नियम का उल्लंघन किया। नतीजतन उन्हें घर से निकालना पड़ा। कमाल ने गुस्से में शो के प्रतियोगी रोहित वर्मा को बोतल फेंक कर मारा था। बोतल शमिता शेट्टी को लगी थी। इसके तुरंत बाद कमाल ने राजू श्रीवास्तव पर भी हाथ उठा दिया। उनके इस बर्ताव का सभी घर वालों ने एकजुट होकर विरोध किया और उन्हें घर से बाहर निकालने की मांग की थी।

-रघुवेंद्र सिंह

Wednesday, October 21, 2009

किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं है-रणबीर कपूर

रणबीर कपूर की पिछली फिल्मों में उनके चाकलेटी अंदाज के बाद आने वाले दिनों में दर्शकों को कैटरीना कैफ के साथ अजब प्रेम की गजब कहानी में नया रूप देखने को मिलेगा।
क्या अपनी तरक्की और कॅरियर से खुश हैं?
मैंने सांवरिया, बचना ऐ हसीनों और वेक अप सिड जैसी तीन अलग जॉनर की फिल्में की हैं। सभी फिल्मों में मेरा काम दर्शकों को अच्छा लगा। मैं खुश हूं, लेकिन अब नर्वस महसूस कर रहा हूं। दिन-प्रतिदिन लोगों की अपेक्षाएं मुझसे बढ़ती जा रही हैं। हर फिल्म से उस अपेक्षा पर खरा उतरने की चुनौती बढ़ती जा रही है। मेरे ऊपर कपूर खानदान की छवि को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है।
वेक अप सिड फिल्म की सफलता से आप लोकप्रियता की नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं?
वेक अप सिड मेरे कॅरियर की सबसे मुश्किल फिल्म थी। यह मेरी पहली रियलिस्टिक फिल्म थी। मैं इस फिल्म को लेकर उत्साहित था, क्योंकि मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की थी, लेकिन सफलता को लेकर आश्वस्त नहीं था। कोई नहीं बता सकता कि कौन सी फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी।
आप अभी तक किसी विशेष छवि में नहीं बंधे। क्या फिल्में साइन करते वक्त आप इस बात का खयाल रखते हैं?
बिल्कुल नहीं। मैं कलाकार हूं। मैं हर तरह का किरदार निभाना चाहता हूं। मैं फिल्म साइन करते समय स्क्रिप्ट, किरदार, निर्देशक और प्रोडक्शन कंपनी देखता हूं। मेरे दिल को जो स्क्रिप्ट और किरदार भा जाता है, उसे मैं जरूर करता हूं। मुझे किसी इमेज की फिक्र नहीं है।
नई पीढ़ी के अभिनेताओं में किससे चुनौती और प्रतियोगिता महसूस करते हैं?
मेरी प्रतियोगिता किसी कलाकार से नहीं है। नई पीढ़ी के नील नितिन मुकेश, इमरान खान, हरमन बावेजा मेरे मित्र हैं। हम सब एक-दूसरे की तरक्की चाहते हैं। मैं खुश हूं कि मेरे सब मित्र अच्छा काम कर रहे हैं। जहां तक चुनौती की बात है, तो मैं हर कलाकार से महसूस करता हूं। चाहे वह अमिताभ बच्चन हों या दर्शील सफारी। जब मैं किसी कलाकार को अच्छा परफॉर्म करते देखता हूं तो डर जाता हूं।
स्टार रणबीर कपूर बनने के बाद निजी जीवन में किसी चीज को मिस करते हैं?

अपने परिवार और दोस्तों के साथ अब मैं पहले जितना समय नहीं व्यतीत कर पाता। पिछले कुछ महीने से तो मैं दो या तीन घंटे ही सो रहा हूं। लगातार फिल्मों की शूटिंग चलती रहती है, लेकिन सच्चाई यह है कि मैं एक्टर हूं।
नई फिल्मों के बारे में बताएं?
नवंबर में अजब प्रेम की गजब कहानी फिल्म प्रदर्शित होगी। राजकुमार संतोषी और कैटरीना कैफ के साथ वह मेरी पहली फिल्म है। दिसंबर में शिमीत अमीन निर्देशित रॉकेट सिंह सेल्समैन ऑफ द ईयर फिल्म आएगी। अगले साल मेरी प्रकाश झा की फिल्म राजनीति प्रदर्शित होगी। मैं साजिद नाडियाडवाला की फिल्म अंजाना अंजानी भी कर रहा हूं।
सोनम कपूर के बारे में क्या कहेंगे?
वह अच्छा काम कर रही हैं। वह बहुत मेहनती लड़की है और उसे मालूम है कि वह क्या चाहती है। हमारा मिलना नहीं हो पाता, लेकिन अगर कोई फिल्म उसके साथ मिले तो अवश्य खुशी होगी।
-रघुवेन्द्र सिंह

हल्का-फुल्का काम नहीं करूंगी-सुप्रिया कुमारी

रांची में पली-बढ़ी सुप्रिया कुमारी नन्हीं उम्र से अपनी बड़ी-बड़ी आंखों में मॉडल बनने का सपना संजोये थीं, लेकिन बड़े होने पर छोटे कद की वजह से उन्हें उस सपने को अलविदा कहना पड़ा। सुप्रिया कुमारी को आजकल एकता कपूर निर्मित कलर्स पर प्रसारित सीरियल बैरी पिया में अमोली की केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं। इसके पहले सुप्रिया अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो सीरियल में शनीचरी की भूमिका में दिखी थीं।
ज्यादातर माता-पिता बेटियों को अभिनय में कॅरियर बनाने की सलाह नहीं देते। आप अभिनय में कैसे आईं?
यह सच है। हमारे यहां फिल्म इंडस्ट्री में आने की बात पर लोगों की सोच का दायरा सिमट जाता है, लेकिन जो माता-पिता अपने बच्चों को स्क्रीन पर देखना चाहते हैं, वे अपने बच्चों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मैं भाग्यशाली हूं। मैं अपने घर में सबसे छोटी हूं, इसीलिए सबकी लाडली भी हूं। मेरे मम्मी-पापा, भैया और दीदी ने मुझे अभिनय में आने के लिए हमेशा प्रेरित किया। यही वजह है कि आज मैं मुंबई में हूं।
आप मुंबई कब आईं? क्या अभिनय का प्रशिक्षण लिया है?
मैं ग्यारह महीने पहले मुंबई आई। मेरी किस्मत बहुत अच्छी है। मुझे आते ही अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो सीरियल में काम करने का मौका मिल गया। उस सीरियल में मेरा काम खत्म ही हुआ था कि बालाजी का सीरियल बैरी पिया मुझे मिल गया। मैंने इस सीरियल के लिए ऑडिशन दिया था। मुझे ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। मैंने अभिनय नहीं सीखा है। निर्देशक इतने अच्छे मिले हैं कि मुझे किरदार को निभाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। मैं इस मामले में भी भाग्यशाली हूं।
बैरी पिया की अमोली से आप कितना सरोकार रखती हैं?
मुझे ग्रामीण परिवेश का अनुभव नहीं है। मैं रांची में रही हूं, लेकिन बैरी पिया की कहानी और अमोली जैसी कई लड़कियों के बारे में मैंने सुना है। अमोली और मुझमें कोई समानता नहीं है। मैं खुश हूं कि बैरी पिया में मुझे एक नया जीवन जीने को मिल रहा है। मुझे इस बात की भी खुशी है कि मैं बैरी पिया जैसा अर्थपूर्ण और आम लोगों की समस्याओं से जुड़े सीरियल का हिस्सा हूं। उम्मीद है कि यह सीरियल मेरे कॅरियर को नई ऊंचाई देगा।
संयोग है कि आपके दोनों सीरियल ग्रामीण परिवेश पर आधारित हैं या आप ऐसे सीरियल का हिस्सा बनना चाहती हैं?
इसे संयोग कह सकते हैं। मैं कोई रणनीति बनाकर नहीं आई हूं। ऐसे सीरियल के निर्माताओं को शायद मेरा लुक फिट लगता है।
बैरी पिया की कहानी में लड़कियों की जो दशा दिखाई जा रही है,उससे कितना सहमत है?
आज कल इस तरह की घटनाएं नहीं होती है। पहले गांवों में जमींदार अपने शौक के लिये कुछ भी कर लेते थे। ग्रामीण क्षेत्रों की इसी बुराई को एक लड़की द्वारा अपने हौसले से जिस तरह खत्म किया जाएगा, उसी को दर्शाया गया है।
अब तक का अनुभव कैसा रहा? परिजनों की क्या प्रतिक्रिया है?
मुझे मजा आ रहा है। मेरे मम्मी-पापा, दोस्त और रिश्तेदार सभी बेहद खुश हैं। रांची में बालाजी प्रोडक्शन का बहुत नाम है। मेरे जानने वाले इस बात से खुश हैं कि मैं बालाजी के सीरियल में काम कर रही हूं। वे मुझ पर गर्व करते हैं।
आपका लक्ष्य क्या है? भविष्य में किस तरह का काम करेंगी?
मैं आर्ट फिल्में करना चाहती हूं। मैं स्मिता पाटिल की तरह आर्ट फिल्मों में सम्मानित स्थान बनाना चाहती हूं। इस जीवन में यह मौका मिले तो बहुत खुशी होगी। दरअसल, मैं निजी जीवन में बहुत गंभीर हूं और गहराई से सोचती हूं। मैं हल्का-फुल्का काम कभी नहीं करूंगी।
-रघुवेन्द्र सिंह

पहली बार लारा सेक्सी लगीं: जाएद खान | मुलाकात

ब्लू को जाएद खान अपने करियर की सबसे मुश्किल एवं रोमांचक फिल्म मानते हैं। फिल्म में वे अधिकांश समय समुद्र के भीतर शार्क मछलियों के साथ अठखेलियां करते नजर आएंगे। चर्चा है कि जाएद खान ने फिल्म में जान पर खेलकर एक्शन और स्टंट दृश्य किए। अब वे दर्शकों की प्रतिक्रिया का उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं। प्रस्तुत है, जाएद खान से फिल्म ब्लू के संदर्भ में बातचीत।
ब्लू की खासियत एवं अपनी भूमिका के बारे में बताएं?
यह भारत की पहली अंडर वॉटर एक्शन-एडवेंचर फिल्म है। इसका मतलब यह नहीं कि पूरी फिल्म पानी के अंदर फिल्माई गई है। हां, फिल्म के अधिकांश दृश्य पानी के अंदर शूट किए गए हैं। मैं इसमें संजय दत्त के छोटे भाई सैम की भूमिका निभा रहा हूं, जो तेज दिमाग का है।
ब्लू का यूएसपी एक्शन है, लेकिन इसमें इमोशनल दृश्य भी हैं। ब्लू के लिए आपको विशेष तैयारी करनी पड़ी?
हां, यह फिल्म फिजिकली बहुत डिमांडिंग थी। फिल्म के लिए मुझे अपनी बॉडी को खास लुक देना था। मैंने तीन महीने कड़ी मेहनत की। अपना खाना कम किया और एक्सरसाइज बढ़ाई। यदि आप फिट नहीं हैं, तो ब्लू जैसी फिल्म नहीं कर सकते। स्कूबा डाइवर तो मैं पहले से ही था, इसलिए मुझे ट्रेनिंग की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन शार्क मछलियों के साथ पानी के अंदर स्टंट और पानी में रहने वाले जानवरों की बॉडी लैंग्वेज समझने की ट्रेनिंग ली। मेरे अलावा संजय दत्त, अक्षय कुमार और लारा दत्ता को भी इस ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा।
आप लोगों ने शार्क के साथ कैसे शूटिंग की?
अंडर वॉटर दृश्यों की शूटिंग हमने बहामा के स्टुअर्ट कोव में की। यह दुनिया का फेमस डाइव स्पॉट है। बहामा में शार्क की पूजा होती है। वहां शार्क मित्रवत व्यवहार करती हैं, हांलाकि हमारे मन में हमेशा डर बना रहता था। शार्क को कैमरे के फ्रेम में लाने के लिए मछली बांधी जाती थी। वे उन्हें खाने के लिए आती थीं, तभी हमें पानी के अंदर उतारा जाता था। हम जब अपने ड्रेस पहनकर उतरते थे, तो हमारी लंबाई सात-आठ फीट की हो जाती थी। वे हमें खाने के बारे में सोचती ही नहीं थीं, बावजूद इसके हमारे मन में भय बना रहता था। प्रशिक्षकों का कहना था कि शार्क को खून की गंध नहीं मिलनी चाहिए। मगर एक दिन किसी वजह से अक्षय को अंडर वॉटर शूटिंग के दरम्यान चोट लग गई, तो हम सब बुरी तरह घबरा गए थे। मगर ईश्वर का शुक्र था कि कुछ हुआ नहीं।
लारा दत्ता और कैटरीना कैफ ने भी अंडर वाटर शूटिंग की?
कैटरीना कैफ फिल्म में मेहमान भूमिका में हैं। उन्होंने अंडर वाटर शूटिंग नहीं की। अलबत्ता लारा ने हम सबको जरूर चौंकाया था। शूटिंग शुरू होने के छह महीने पहले तक लारा को तैरना नहीं आता था। शूटिंग से पहले उन्होंने प्रशिक्षक की मदद से तैरना सीखा था। अपनी बॉडी को चुस्त-दुरुस्त बनाया। पहली बार मुझे लारा सेक्सी लगीं। लारा ने पुरुष कलाकारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पानी के अंदर शूटिंग में हिस्सा लिया। मुझे वे कभी डरी हुई नहीं लगीं।
ब्लू की शूटिंग का अनुभव काफी रोमांचक रहा?
यह मेरे करियर की सबसे अच्छी एक्शन फिल्म है। हर एक्टर का सपना होता है कि वह ऐसी फिल्म में काम करे। मैं लकी हूं। ब्लू के निर्देशक एंथोनी डिसूजा ने जब मुझे पहली बार स्क्रिप्ट सुनाई, तो मैंने फौरन हां कह दिया। फिल्म की शूटिंग में बिताए एक सौ बीस दिन मैं कभी नहीं भूलूंगा।
क्या नया करना चाहते हैं?
मैं रोमांटिक कॉमेडी फिल्म करना चाहता हूं। मैंने ऐसी ही एक फिल्म शराफत गई तेल लेने साइन की है। उसके निर्देशक गुरमीत सिंह हैं। मैं नए प्रयोग कर रहा हूं। और एक्शन से आगे बढ़ना चाहता हूं।

-raghuvendra singh

Friday, October 16, 2009

कैसे ज्योतिर्मय हो जग? सितारों की राय

प्रकाश पर्व दीपावली की रात दीप प्रज्जवलित कर सांकेतिक रूप से दुनिया को रोशन करने की कामना की जाती है। इस प्रथा में सुनहरे भविष्य की आहट छुपी है। दीपावली की रोशनी ऐसे नए युग की ओर संकेत करती है, जहां नई उम्मीद और सकारात्मक ऊर्जा होती है। अंधकार पर प्रकाश की विजय के इस प्रतीकात्मक पर्व पर हम ने रुपहले पर्दे के सितारों से पूछा कि ऐसा क्या करें, जिससे हमारा समाज भी जगमग हो जाए?
रितेश देशमुख-प्यार बांटें..
दीपावली के दिन मैं चाहूंगा हम सब मिलकर प्यार बांटे। बड़ी से बड़ी समस्या का हल प्यार से निकल सकता है। इस तरह से दुश्मन को भी दोस्त बनाया जा सकता है। हम सभी को प्यार बांटना चाहिए और खुशी का माहौल बनाना चाहिए। खुद की खुशी के लिए पटाखे नहीं जलाने चाहिए। पटाखों में फिजूलखर्ची होती है साथ ही वातावरण भी प्रदूषित होता है। जोखिम तो रहता ही है। दीपावली के दिन दीये जलाएं, पटाखे नहीं। प्यार से लोगों से मिलें। आपका यह छोटा सा योगदान समाज के लिए काफी होगा।
हरमन बावेजा- शिक्षा का प्रकाश फैलाएं..
हमें अपने करीब काम करने वालों जैसे ड्राइवर, वॉचमैन, सब्जी वाले, स्पॉट ब्वॉयज् आदि को शिक्षा का महत्व बताना चाहिए। उन्हें प्रेरित करना चाहिए कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें। दीपावली के दिन हमें शिक्षा का प्रकाश फैलाना चाहिए। यदि समाज में सभी शिक्षित होंगे, तो अनेक समस्याएं खुद ब खुद दूर हो जाएंगी। हमें यहां शिक्षितों का प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए दीपावली से बेहतर कोई और दिन नहीं हो सकता।
मिनीषा लांबा- भेदभाव खत्म करें..
समाज से भेदभाव की भावना खत्म करने की जरूरत है। ईश्वर ने हम सभी को इंसान बनाया है। फिर हम जाति-धर्म, अमीरी-गरीबी के आधार पर इंसान को क्यों बांटा है? इस बंटवारे से हमारा खुद का कहीं न कहीं नुकसान होता है। हमें प्यार बांटना होगा। हर इंसान में मुहब्बत की भावना जगानी होगी। आज हमारे समाज के लिए यह जरूरी है। दीपावली के दिन दीये जरूर जलाएं, लेकिन किसी से भेदभाव न करें। सबसे प्यार से मिलें।

दीयों से रोशन है संसार

इस साल कुछ अलग किया जाए-प्राची देसाई

मैंने चार साल पहले अपने करीबी सहेलियों व दोस्तों के साथ पंचगनी में दीपावली मनायी थी। वह मेरे जीवन की यादगार दीपावली है। तब मैं 11वीं कक्षा में पढ़ती थी। प्रत्येक साल मैं यह त्योहार परिवार के साथ पुणे में मनाती थी। मैंने सोचा कि इस साल कुछ अलग किया जाए। मैंने अपनी सहेलियों प्रियंका, एकता, मंपी और नेहा के साथ मिलकर पंचगनी जाने की योजना बनायी। पंचगनी में भी मेरा एक घर है। हमने बाजार से मोमबत्तिायां खरीदीं। शाम ढलते ही हमने घर की सीढि़यों, खिड़कियों और छत पर लाइन से मोमबत्तिायों को सजा दिया। जब तक वे मोमबत्तिायां बुझ नहीं गयीं, हम बैठकर उन्हें निहारते रहे। हमने कुछ नहीं किया, सिर्फ चुपचाप बैठे रहे। जब मोमबत्तिायां बुझ गयीं, तो हम सब टहलने निकल गए। पंचगनी बहुत खूबसूरत जगह है। दीपावली की रात तो वहां की सुंदरता देखते ही बन रही थी। वैसी दीपावली मैं दोबारा कभी नहीं मना सकी।
नहीं भूलता 2003 का पर्व-सोनिका कालीरमण
मेरे जीवन की सबसे यादगार दीपावली 2003 की है। उस वर्ष दीपावली के दिन भारत सरकार की तरफ से मुझे और मेरे बड़े भाई जगदीश कालीरमण को 'भारत केसरी सम्मान' से सम्मानित किया गया था। भारत के इतिहास में पहली बार यह सम्मान एक साथ भाई-बहन को मिला था। वह दिन मैं जीवन में कभी नहीं भूल सकूंगी। हरियाणा स्थित गृहनगर में लोगों ने मेरा और बड़े भाई साहब का शानदार तरीके से स्वागत किया। उस दीपावली की खुशी का अहसास अलग था। इस साल ससुराल में मैं पहली दीपावली मनाऊंगी। मैं बहुत उत्साहित हूं और उम्मीद कर रही हूं कि यह दीपावली भी यादगार होगी।
-रघुवेन्द्र सिंह

Thursday, October 15, 2009

नकल करने से बचें: सेलिना | मुलाकात

सेलिना जेटली एक्टिंग से अधिक अपने ग्लैमरस और खूबसूरत परिधानों के लिए जानी जाती हैं। वे ऑन और ऑफ स्क्रीन हमेशा सजी-धजी रहती हैं। फिल्म इंडस्ट्री में फैशन को लेकर उनकी समझ की सराहना अक्सर की जाती है। वे हमेशा मौसम और अवसर के हिसाब से ड्रेसेज पहनती हैं। सेलिना खुद मानती हैं कि फैशन के मामले में उन्हें कोई पीछे नहीं छोड़ सकता। पिछले दिनों उन्होंने फैशन के प्रति अपने नजरिए से तरंग को अवगत कराया..
फैशन और स्टाइल के मामले में आप दूसरों से प्रेरित होती हैं?
कभी-कभी। मैं डिजाइनर ट्रेंड पर नजर रखती हूं और हमेशा सीजन के हिसाब से ड्रेसेज पहनती हूं।
किस परिधान में सहज महसूस करती हैं?
जींस और सिंपल टी-शर्ट में। मैं घर पर अधिकतर इसे ही पहनती हूं। यदि प्रीमियर या कोई खास अवसर नहीं होता है, तो भी जींस और टी-शर्ट ही पहनती हूं।
फैशन आपके लिए क्या है?
ऐसी ड्रेसेज, जिसमें सहज महसूस कर सकूं। चेहरे की खूबसूरती के लिए क्या करती हैं? मैं अच्छा खाती हूं, अच्छा सोचती हूं और हमेशा खुश रहती हूं। यही मेरे चेहरे की खूबसूरती का राज है।
किस रंग की ड्रेसेज आपको अधिक पसंद हैं?
मेरा फेवरेट रंग ब्लू और ग्रीन है। इन रंग के कपड़ों की खरीदारी मैं अधिक करती हूं।
आप पश्चिमी और भारतीय ड्रेसेज में किसे ज्यादा पसंद करती हैं?
मुझे भारतीय ड्रेसेज बहुत पसंद हैं। मैं साड़ी अधिक पहनती हूं। मैं साड़ी की कलेक्शन के लिए फेमस हूं। सच तो यही है कि विदेश में हमें हमारे पारंपरिक परिधानों से ही पहचाना जाता है।
आप अपने व्यक्तित्व का सबसे खूबसूरत गहना किसे मानती हैं?
मेरी हंसी। मैं खुद पर हंसती रहती हूं।
क्या यह सच है कि मन की खूबसूरती में ही तन की खूबसूरती छिपी है?
समय बदल चुका है। मौजूदा समय में मन के साथ तन को भी खूबसूरत रखना बहुत जरूरी है। यदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं होंगे, तो तमाम बीमारियां आपके मन को दुखी करेंगी।
अपनी महिला प्रशंसकों को फैशन के मामले में क्या सलाह देंगी?
हमेशा अपने व्यक्तित्व, सुविधा, अवसर और मौसम के हिसाब से ड्रेसेज पहनें। दूसरों की नकल करने से बचें।
-रघुवेन्द्र

डांस में कुशल हूं मैं: अदा शर्मा | मुलाकात

अदा शर्मा की पहली फिल्म 1920 भले ही बहुत अच्छी नहीं गई, लेकिन वे अपने अभिनय से सिने प्रेमियों के दिल में जगह बनाने में कामयाब जरूर हो गई। उनकी खूबसूरती और अभिनय की हर किसी ने सराहना की। अब अदा की विक्रम भट्ट निर्मित और गिरीश धमीजा निर्देशित दूसरी फिल्म फिर प्रदर्शित होने जा रही है। इसमें वे अपनी पहली फिल्म के हीरो रजनीश दुग्गल के साथ हैं। बातचीत अदा शर्मा से..
1920 की रिलीज के बाद निजी और प्रोफेशनल लाइफ में क्या बदलाव आए?
मेरी निजी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया। हां, प्रोफेशनल जिंदगी में कुछ सुखद बदलाव हुए हैं। पहले मैं किसी निर्देशक से मिलने जाती थी, तो वे समझते थे कि मैं सिर्फ दिखने में खूबसूरत हूं। मैं एक्टिंग नहीं कर सकती। मैंने एक्टिंग का प्रशिक्षण नहीं लिया है, लेकिन मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे पहली फिल्मके रूप में 1920 मिली, जिसमें मुझे परफॉर्म करने का अच्छा अवसर मिला। अब मुझसे कोई एक्टिंग के बारे में नहीं पूछता।
फिल्म फिर विक्रम भट्ट की तरफ से क्या 1920 के बाद का तोहफा है?
यह तो विक्रम सर ही बताएंगे। मैंने उनके साथ तीन फिल्मों का अनुबंध साइन किया है। उस अनुबंध के हिसाब से यह उनके साथ मेरी दूसरी फिल्म है। रजनीश और मेरी जोड़ी दोहराने के पीछे बात चाहे जो हो, लेकिन मैं इसमें रजनीश के अपोजिट नहीं हूं।
फिर कैसी फिल्म है और इसमें आपकी भूमिका क्या है?
यह एक ड्रामा है। फिर कर्म के ऊपर बेस्ड है। यदि लोग कर्म में विश्वास करते हैं, तो इस फिल्म को एंज्वॉय करेंगे। रजनीश और रेशमी चोपड़ा इस फिल्म में पति-पत्नी बने हैं। मैं इसमें दिशा का किरदार निभा रही हूं। वह हमेशा दुखी रहती है। वह बोलती कम है। उसका अपना कोई नहीं है। उसमें कॉन्फिडेंस नहीं है, लेकिन उसके पास एक खास बात है। बीते कल में क्या हुआ है और आने वाले कल में क्या होने वाला है? इसका आभास उसे हो जाता है। यह किरदार मेरे लिए मुश्किल था, क्योंकि रिअल लाइफ में मैं बहुत लाउड हूं।
अब तक की दोनों फिल्मों में आपको क्या नहीं करने को मिला?
डांस। मैं सात साल से डांस सीख रही हूं। मैं डांस की हर विधा में कुशल हूं, लेकिन दुख की बात है कि मुझे अब तक की दोनों फिल्मों में डांस करने का मौका नहीं मिला। मैं खुद को कॉमर्शिअल ऐक्ट्रेस मानती हूं। मैंने 1920 की शूटिंग के दौरान विक्रम सर से कहा था कि मुझे एक डांस वाला गाना दे दीजिए, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं भूत से डांस नहीं करवा सकता। मैं डांस ओरिएंटेड किरदार की तलाश में हूं।
निर्देशक गिरीश धमीजा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
गिरीश पिछले कई वर्षो से फिल्म लेखन में सक्रिय हैं। वे फिल्म मेकिंग से परिचित थे। वे कॉन्फिडेंट थे। वे मुझे हर सीन पहले मेरे हिसाब से करने की छूट देते थे और बाद में उसमें सुधार करते थे।
फिल्म फिर से कितना आगे बढ़ने की उम्मीद है?
पता नहीं। मैं फिल्में साइन करते वक्त इस बात का खयाल नहीं रखती। मेरी पहली प्राथमिकता मेरी खुशी होती है। जो स्क्रिप्ट मेरे दिल को भा जाती है, मैं हां कह देती हूं। मैं दूसरों के लिए फिल्में करती हूं। हां कहते समय मैं इस बात का भी ध्यान रखती हूं कि वह फिल्म दर्शकों को पसंद आनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि फिर दर्शकों को अच्छी लगेगी।
फिर के बाद लोग आपको किस फिल्म में देखेंगे?
मैंने एक कॉमेडी फिल्म और दूसरी रोमांटिक कॉमेडी फिल्म साइन की है, लेकिन अभी उनके बारे में बात नहीं करूंगी। जब उन फिल्मों की शूटिंग शुरू होगी, मैं उसके बारे में तब करूंगी। फिलहाल, मैं खुश हूं कि फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों ने मुझे स्वीकार कर लिया है। इंडस्ट्री के बाहर की होने के बावजूद लोग मुझे अपनी फिल्मों में काम दे रहे हैं।
-रघुवेन्द्र

मैं अपनी पहचान बनाना चाहता हूं: तोषी साबरी | मुलाकात

जयपुर के चौबीस वर्षीय तोषी साबरी फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ गायक बनने आए थे, लेकिन महेश भट्ट ने उन्हें संगीतकार भी बना दिया। राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज फिल्म के गीत माही.. की लोकप्रियता के बाद भट्ट ने तोषी को जश्न फिल्म के संगीत की जिम्मेदारी सौंपी। हालिया रिलीज फिल्म थ्री में भी उनका संगीत था। गौरतलब है कि स्टार प्लस के रिअॅलिटी शो वॉयस ऑफ इंडिया से वे लाइम लाइट में आए। आजकल वे अपने छोटे भाई शाबिर के साथ मिलकर मधुर भंडारकर की जेल और विक्रम भट्ट के होम प्रोडक्शन की फिल्में रुतबा और भाग जॉनी का संगीत भी तैयार कर रहे हैं। प्रस्तुत है तोषी से बातचीत के अंश..
आपने संगीत का प्रशिक्षण किससे लिया? क्या आपका लक्ष्य गायक बनना ही था?
मैं म्यूजिकल फैमिली से हूं। मेरे वालिद उस्ताद अकरम अली साहब क्लासिकल सिंगर हैं। मैंने और मेरे छोटे भाई शाबिर ने उनसे ही क्लासिकल संगीत सीखा है। मैं सात साल की उम्र से संगीत की दुनिया में हूं। मैंने ग्यारह साल की उम्र में स्टेज पर परफॉर्म करना शुरू कर दिया था। बचपन से सिंगर बनना चाहता था, लेकिन भट्ट साहब ने मुझे सिंगर के साथ-साथ संगीतकार भी बना दिया।
फिल्ममेकर महेश भट्ट से आपकी मुलाकात कैसे हुई?
वे वॉयस ऑफ इंडिया में स्पेशल जज बनकर आए थे। वहां उनसे मेरी पहली बार मुलाकात हुई। उन्होंने मुझसे संपर्क में रहने के लिए कहा। उस शो के समाप्त होने के बाद एक दिन मैं भट्ट साहब के पास काम मांगने के गया। मैंने उनको माही.. गाना सुनाया। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आप म्यूजिक कंपोज भी करते हैं? मैं जयपुर में राजस्थानी फिल्मों में संगीत देता था। मैंने उनसे हां कह दिया। इस तरह मेरे सुखद सफर की शुरुआत हुई। महेश भट्ट और मुकेश भट्ट मेरे गॉडफादर हैं। मैं आज जो कुछ हूं, उन्हीं की देन है। मैं उनका अहसान कभी नहीं भूलूंगा।
आप मुंबई कब आए? वॉयस ऑफ इंडिया को आपकी जिंदगी का टर्निग प्वॉइंट कहा जा सकता है?
मैं सत्रह साल की उम्र में मुंबई आया था। तब मेरा यहां कोई नहीं था। न तो मेरे सोने का ठिकाना था और न ही खाने का। मैंने कई रातें भूखे पेट प्लेटफार्म पर गुजारी हैं। उस वक्त मैं संगीतकारों के दफ्तर जाता था, तो कोई मुझसे मिलता नहीं था। कई बार मेरा धैर्य टूटा, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं कम उम्र में संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाने का फैसला करके आया था। रिअॅलिटी शो वॉयस ऑफ इंडिया मेरी जिंदगी का टर्निग प्वॉइंट साबित हुआ। उस शो में लोगों ने मेरी प्रतिभा देखी और वहीं भट्ट साहब से मेरी मुलाकात हुई।
छोटे भाई शाबिर के साथ आप फिल्मों का संगीत कंपोज कर रहे हैं?
जी हां। तोषी-शाबिर हमारी जोड़ी का नाम है। शाबिर अभी इक्कीस साल का है। हमारी जोड़ी फिल्म इंडस्ट्री की सबसे कम उम्र की संगीतकार जोड़ी है। शाबिर भी बचपन से संगीत से जुड़े हैं। पहले हम दोनों के बीच सिर्फ भाई और दोस्त का रिश्ता था, लेकिन अब हम प्रोफेशनल पार्टनर भी बन गए हैं। इस वर्ष हमारी कई फिल्में प्रदर्शित होंगी।
आप किन गायकों के प्रशंसक हैं?
मैं नुसरत फतेह अली खान से प्रेरित होता हूं। मैं उन्हें बहुत सुनता हूं। सोनू निगम भी मेरे फेवरेट हैं। मैं अपने सीनियर कलाकारों की इज्जत करता हूं।
क्या आप आज भी संगीतकारों के पास काम मांगने जाते हैं?
हां, मैं विशाल-शेखर, सलीम-सुलेमान, आदेश श्रीवास्तव से जब भी मिलता हूं, तो कहता हूं कि सर, मुझे गाने के लिए बुलाइए। यदि कोरस के लिए बुलाएंगे, तो भी मुझे खुशी होगी। मैं इंडस्ट्री में अभी बच्चा हूं। मुझे काम मांगने में शर्म नहीं आती। मेरे गाए गीत वादा रहा और किसान में थे। वीर में भी गीत हैं। मैंने इल्या राजा के निर्देशन में तेलुगू फिल्म के लिए भी गाया है।
आपका लक्ष्य और आपकी भावी योजनाएं क्या हैं?
मेरा लक्ष्य दूसरों से हटकर काम करना है। मैं अपनी पहचान बनाना चाहता हूं। ईद के बाद मैं मलाड में अपना रिकार्डिग स्टूडियो बनाने जा रहा हूं। मैं राजस्थानी फिल्मों के लिए कुछ करना चाहता हूं।
-raghuvendra singh