Friday, July 17, 2020

"जिस दिन आप काम करना बंद कर देंगे, उस दिन आपके सारे रिश्ते टूट जायेंगे"
शहर पराया था, लोग पराये थे मगर जो अपना था, वह था सपना। अपने आप पर भरोसा था। हौसले बुलंद थे। आज अभिनय में करियर बनाने वाले हर शख़्स की जुबां पर इनका नाम रहता है। हिंदी सिनेमा की किताब में कास्टिंग का एक नया अध्याय जोड़ने के बाद, अब यह फिल्म निर्देशन में उतर चुके हैं. पहली फिल्म है- दिल बेचारा। इस बार #रघुवार्ता में बातचीत फिल्म इंडस्ट्री की लोकप्रिय शख्सियत मुकेश छाबड़ा से।


बतौर निर्देशक आपकी पहली फिल्म दिल बेचारा रिलीज़ के लिए तैयार है. किस तरह की भावनाएं मन में उमड़-घुमड़ रही हैं?
ज़िन्दगी में हर पहला कदम मुश्किल होता है, इसलिए घबराहट तो होती है. दिल बेचारा बतौर निर्देशक मेरी पहली फिल्म है, इसलिए नर्वस हूँ कि कैसी प्रतिक्रियाएं मिलेंगी. लेकिन दिल से फिल्म बनायी है तो कॉन्फिडेंट भी हूँ.

मुंबई में पहला कदम रखने के बाद हम सब खुद से कुछ वादे करते हैं. आपको इस शहर में अपना पहला दिन और वो वादे याद हैं?
मुझे शहर में नाम कमाना था. मुझे फिल्मों से जुड़ना था. लेकिन उस वक़्त कुछ पता नहीं था कि क्या और कैसे करना है. कोई कुछ बताने वाला नहीं था मुझे. दिल में जज़्बा था, रास्ते अपने आप बनते चले गए.

आप वर्ष 2006 में मुंबई पहुंचे थे. उस समय कास्टिंग डायरेक्टर बनने का सपना तो कोई नहीं देखा करता था. आप किन सपनों के साथ आये थे?
मैं दिल्ली में NSD TIE में नौकरी करता था. मुंबई से निर्देशक अपनी फिल्मों की कास्टिंग के लिए दिल्ली आते थे तो हमारी मदद लेते थे. उस तरह मैं फिल्मों से जुड़ा। थियेटर से जुड़े होने के कारण मैं बहुत से एक्टर्स को जानता था. मैं हमेशा से फिल्मों में नाम बनाना चाहता था.

आपने एक्टर बनने की ट्रेनिंग ली थी, फिर आप कास्टिंग डाइरेक्टर क्यों बने और अब निर्देशन में आए आप?
एनएसडी TIE में जब मैंने नौकरी के लिए अप्लाई किया तो उसकी योग्यता ग्रेजुएशन थी. और रंगमंच की ट्रेनिंग इसलिए मैंने दिल्ली में श्रीराम सेंटर से एक्टिंग का कोर्स भी किया. एक्टर बनने का मेरा सपना नहीं था. 

अगर आप इस इंडस्ट्री से नहीं हैं तो आपको शुरू में किस तरह की चुनौतियों से पार पड़ना होता है?
अगर आप थियेटर कल्चर से आ रहे हैं तो आपको फिल्म कल्चर में खुद को ढालना पड़ता है. आपको नए लोगों को जानना पड़ता है. इस शहर में आपका काम ही आपको पहचान दिलाता है. आपके काम के साथ-साथ आपकी पहचान लोगों से बढ़ती चली जाती है. अपने आरंभिक दिनों में जब मैं म्हाडा में रहता था तो मेरी सुबह की शुरुआत इससे होती थी कि आज किससे और कैसे मिला जा सकता है.

कैसी तैयारियों की सलाह देंगे नयी प्रतिभाओं को?
जो भी इस शहर में उन्हें खुद पर भरोसा रखने की ज़रूरत है. पॉज़िटिव बने रहने की ज़रूरत है. संयम न खोएं. इस इंडस्ट्री में काम सबके लिए है. टैलेंटेड लोगों को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है. 

कहते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री रिश्तों पर चलती है. आपके रिश्ते सबके साथ अच्छे हों तो आप लम्बी पारी खेल सकते हैं. चौदह साल पहले आप इस इंडस्ट्री में किसी को नहीं जानते थे. आप इतनी लम्बी पारी कैसे खेल रहे हैं?
इस इंडस्ट्री में रिश्ते आपके काम से बनते हैं. जिस दिन आप काम करना बंद कर देंगे, उस दिन आपके सारे रिश्ते टूट जायेंगे. अपने काम से ईमानदारी रखिये, सब आपकी इज़्ज़त करेंगे.

क्या असीम सफलताओं और स्पॉटलाइट के बावजूद इस इंडस्ट्री में संभव है कि एक इंसान अकेला महसूस करे? आप ऐसे पलों में खुद को कैसे सँभालते हैं?
काम के दौरान आप भीड़ में रहते हैं लेकिन अंत में आप अकेले ही होते हैं. मुंबई में अकेला महसूस करना एक आम बात है. मैं खुशनसीब हूँ कि अपने माँ-बाप के साथ रहता हूँ. घर में इंटर होने के बाद उनकी डांट खाता हूँ और मैं इंडस्ट्री को भूल जाता हूँ. 


क्या निर्देशक बनना हमेशा से आपका सपना था? या कास्टिंग में शीर्ष पर पहुँचने के पश्चात आपने इस दिशा में आगे बढ़ने का मन बनाया?
मैंने निर्देशक बनने का सपना नहीं देखा था. यह एक प्रोसेज रहा. फिल्मों के लिए कास्टिंग करते-करते मुझे यह इंट्रेस्ट डेवेलप हुआ. फिर मैंने इसकी तैयारी की.

दिल बेचारा फिल्म ने आपको चुना या आपने इसे अपनी पहली फिल्म के लिए चुना? इसकी योजना कैसे बनी? 
दिल बेचारा ने मुझे चुना. इस फिल्म को पहले भी कई लोग बनाने वाले थे लेकिन सफल नहीं हुए. फॉक्स स्टार स्टुडिओज़ की ऋचा पाठक ने मुझे यह स्क्रिप्ट भेजी. इसे पढ़ने के बाद मैंने इससे एक लगाव महसूस किया। फिर मैंने इसे बनाने के लिए हाँ कहा.

सुशांत सिंह राजपूत इस फिल्म से कैसे जुड़े?
सुशांत ने 2017 में मुझसे वादा किया था कि आप जब भी अपनी पहली फिल्म बनाओगे तो मैं ही उसमें काम करूँगा. शायद काय पो छे का प्यार था मेरे लिए. जब मैंने उसे दी फाल्ट इन आवर स्टार्स के बारे में बताया तो वह तुरंत करने के लिए तैयार हो गया. बिना स्क्रिप्ट पढ़े.

इस पर हॉलीवुड में एक बेहद सफल फिल्म दी फाल्ट इन आवर स्टार्स बन चुकी है. उस फिल्म का कितना दबाव महसूस करते हैं?
मैंने दी फाल्ट इन आवर स्टार्स पहले नहीं देखी थी. यह फिल्म जिस किताब पर बेस्ड है, वह किताब भी मैंने बाद में पढ़ी. मैं हॉलीवुड की फिल्में बहुत कम देखता हूँ. मैं कोई दबाव महसूस नहीं रहा. मैंने बाद में वह फिल्म फ़ास्ट-फारवर्ड करके देखी. 

आपकी योजना अंसल एलगोर्ट और सुशांत को एक मंच पर लाने की थी. इसे लेकर आप दोनों बहुत एक्साइटेड थे. इस ख्वाहिश के पूरा न होने का दुःख हमेशा रहेगा आपको... 
यार वह मेरा सपना था लेकिन कहते हैं न कि हर सपना पूरा नहीं होता. मैं दिल बेचारा के ट्रेलर लांच पर अंसल और सुशांत को एक मंच पर लाना चाहता था. यह मेरा सुशांत से वादा था. मैं बहुत खुश हुआ था जब डेढ़ साल पहले सुशांत और अंसल ने फिल्म के बारे में ट्वीट भी किया था.

सुशांत सिंह राजपूत से आपको पहली मुलाकात याद है? कब और कैसे मिलना हुआ था?
शोभा संत ने मुझे सुशांत के बारे में पहली बार बताया और फिर बाद में उससे मिलवाया था. मैं टीवी ज़्यादा नहीं देखता. और काय पो छे के ऑडिशन के सिलसिले में हमारी पहली भेंट हुई थी. मैं वर्सोवा में उससे एक कैफे में मिला था. फिर हम दोस्त और फिर भाई बन गए. 


सुशांत सिंह राजपूत की किन खूबियों से आपको यह विश्वास मिला कि वह फिल्मों में लम्बा सफर तय करेंगे? 
एक हीरो बनने के लिए जो चार्म, डेडिकेशन, परफॉर्मेंस, ईमानदारी, सिंसियरिटी... वो सबकुछ उसमें था... उसका चार्म ही था जो इतने कम समय में इतना अच्छा काम वह कर गया. अभी होता तो वो और करता. 

सुशांत सिंह राजपूत से अपनी आखिरी बातचीत और मुलाकात के बारे में अगर बताना चाहें तो...  
मेरा बर्थडे था 27 मई को. उस दिन लम्बी बातचीत हुई थी हमारी. वो बहुत खुश था. उसके बाद दिल बेचारा को लेकर अक्सर हमारी बातचीत होती रहती थी. 

क्या सुशांत दिल बेचारा फिल्म देख चुके थे? या दिल में अफ़सोस है कि वह अपनी आखिरी फिल्म नहीं देख पाए? 
डबिंग के दौरान उसने पूरी फिल्म देखी थी. दुःख इस बात का है कि वह फ़ाइनल फिल्म नहीं देख पाया. मेरी पहली फिल्म है लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि खुश होऊं या दुखी. अपनी फिलिंग समझ में नहीं आ रही है.
Pensive face
Pensive face

सुशांत का फेवरेट सांग कौन सा फिल्म का? 
तारे गिन और दिल बेचारा टाइटल ट्रैक। सिंगल शॉट के लिए बहुत एक्साइटेड था. उसने बहुत मेहनत की थी. फ़ाइनल सांग  देख कर बहुत ख़ुश हुआ था. 

आज अपने दोस्त-भाई सुशांत सिंह राजपूत को कोई एक गीत डेडिकेट करना हो तो वो कौन-सा गीत करेंगे? 
मेरी जीत, तेरी जीत, तेरी हार, मेरी हार, सुन ले मेरे यार... ये दोस्ती... 

अपनी किन फिल्मों की कास्टिंग पर आपको बहुत गर्व है? 
बहुत हैं लेकिन फिलहाल जो मुझे याद आ रही हैं, वो हैं- काय पो छे, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, सुपर 30, चिल्लर पार्टी, बजरंगी भाईजान, दंगल, शाहिद। अभी मैं 83, ब्रह्मास्त्र और लाल सिंह चड्ढा को लेकर बहुत एक्साइटेड हूँ. 

Sunday, July 5, 2020

"ग्लैमर छलावा है, सब काम और उसके नतीजे को पहचानते हैं, पूजते हैं"

हिंदी फिल्में सपने देखना सिखाती हैं तो उन सपनों का मोल भी मांगती हैं. बिहार के छोटे से गांव बेलवा में नौ साल के एक अबोध बच्चे ने फिल्मों की अविश्वसनीय दुनिया में खुद को देखने का साहस दिखाया। दिल्ली में थिएटर की ट्रेनिंग ली और ढेर सारे नाटक किए. वहीँ शेखर कपूर की 'बैंडिट क्वीन' मिली. फिर मुबई आने के बाद फिल्मों की दौड़ शुरू हुई. 'सत्या' से ऊंची छलांग मिली. आज वह अभिनय का पर्याय हैं. त्याग, तपस्या और सफलता का प्रत्यक्ष नाम हैं- मनोज बाजपेयी#रघुवार्ता में इस बार बातें इस प्रतिष्ठित अभिनेता से! 


आपकी प्रत्येक फिल्म देखकर प्रतीत होता है कि यह आपका सर्वश्रेष्ठ काम है. लेकिन फिर अगली फिल्म में आप चौंका देते हैं. जैसे कि अब #भोंसले को ले लीजिये. खुद को ही हमेशा पछाड़ देने की कला में कैसे पारंगत हुआ जा सकता है?

मैं ख़ुद को पछाड़ने के बजाय नए किरदारों की चुनौतियों और उनके चरित्र चित्रण पर काम करता हूँ. पछाड़ना-हराना कुश्ती में होता है. अभिनय बहुत ही बारीकियों की समझ की अपेक्षा रखता है और उसी को न्याय देने में खोया रहता हूँ. पर इस प्रशंसा के लिए धन्यवाद !!

कोरोना काल में हमने कई हृदय विदारक तस्वीरें देखीं, लोग हमदर्द बनकर सहायता के लिए सड़कों से लेकर झुग्गी-झोपड़ियों में उतरे, ऐसी सुखद तस्वीरें भी दिखीं. क्या हम उचित तरीके से इस कठिन समय का सामना करने की दिशा में अग्रसर हैं? 
ये बहुत ही कठिन समय रहा है देश, समाज और ख़ासकर ग़रीब मज़दूरों के लिए। कई लोगों ने आगे आकर मदद की है, दिशा दी है. कुछ लोग बिना बताए मदद के काम में लगे हुए हैं. मेरा सर उनकी प्रशंसा झुक जाता है जब भी सुनता हूँ या देखता हूँ उनके काम को। अभी यह कई दिनों तक चलेगा। बस ठीक हो जाए.

एक कलाकार का जीवन अनिश्चितताओं से भरा रहता है. ऐसे में, आर्थिक रूप से खुद को सुरक्षित करना बहुत ज़रूरी हो जाता है. आप इस मामले में कितने सतर्क और सुरक्षित हैं?
कलाकार को ग्लैमर के मोह जाल से हटकर बचत और निवेश पर भी ध्यान देना होगा ताकि वो हमेशा सुरक्षित महसूस कर सके और मन मुताबिक़ काम कर सके और दबाव में ना आए। मैं अब थोड़ा सतर्क रहता हूँ!

इस बात में कितना सत्य है कि करियर के आरंभिक दिनों में आपने धन को कम महत्त्व दिया लेकिन अब आप धन के मामले में अडिग रहते हैं. जिसके कारण बहुत से निर्माता-निर्देशक आपसे नाराज़ हो जाते हैं.
जी आरम्भिक काल में अपने आपको स्थापित करना, अपने सपने के मुताबिक़ काम करके लोगों और निर्देशकों के दिल में जगह बनाने के लिए पैसा नहीं देखा क्योंकि जो फ़िल्में मैंने की उन फ़िल्मों में पैसा नहीं होता था. जिनमें पैसा था, वो फ़िल्में और चरित्र मुझे करना नहीं था। अब 26 साल के बाद अच्छा पैसा, अपनी मेहनत के अनुसार पैसा माँगना मेरा अधिकार है. ये सवाल दूसरों से क्यों नहीं पूछे जाते? एक ही फ़िल्म के दूसरे स्टार्स का मेहनताना बढ़ जाता है पर मुझसे सवाल? ये न्याय नहीं है। पैसा मैं फ़िल्म के बजट के हिसाब से ही लेता हूँ या माँगता हूँ।


आप हिंदी सिनेमा में 'हिंदी' की वकालत करने वाले चंद कलाकारों में से एक हैं. आप हिंदी में स्क्रिप्ट की मांग करते हैं. मंच पर हिंदी में बातें करते हैं. एक हिंदी भाषी होने के क्या साइडइफेक्ट्स हैं इस व्यवसाय में?
हिंदी माध्यम में पढ़ा हूँ, उसमें अपने आपको व्यक्त करना मुझे अच्छा लगता है, गर्व है उस पर और हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करता हूँ तो वो मेरी शक्ति बन जाती है। मेरे ख़याल से सबको हिंदी थोड़ी बहुत सीखनी ही चाहिए। इससे काम करने में उन्हें आसानी होगी लेकिन मैं उनको दोष नहीं देता क्योंकि उनका पालन पोषण ही अंग्रेज़ी माहौल में किया गया है तो उनको मुश्किल होती है. पर कोशिश करनी चाहिए। वैसे मैं भाषा की जंग नहीं चाहता। भाषा का कोई साइड इफ़ेक्ट्स नहीं होता अगर उस पर आपको गर्व हो तो। आशुतोष ( राणा), नवाज़ (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) पंकज (त्रिपाठी) इसके अच्छे उदाहरण बनकर सामने आए हैं।

आपकी तरह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार जैसे हिंदी भाषी प्रदेशों से लड़के-लड़कियां फिल्मों में चमकने का सपना लेकर आते हैं. किस तरह की मानसिक तैयारियों के साथ उन्हें मुंबई का रुख करना चाहिए?
बस अपने ऊपर, अपनी तकनीक, भाषा और उन सब विधाओं को सीखें पहले। रंगमंच अवश्य कीजिए 3 साल तक। उसके बाद ही मुंबई का रख कीजिए। कठिन शिखर है, कठिन राह है. पारंगत हो कर आइए.

आपके जीवन की एक सबसे महत्वपूर्ण फिल्म है- सत्या। इसकी रिलीज़ के बाइस वर्ष पूरे हो गए. वर्तमान के मनोज बाजपेयी को अगर सत्या की सफलता के पश्चात के मनोज को कोई नसीहत देनी हो तो क्या देंगे?
मैं अपने आपको नसीहत तब देता हूँ जब मैं बिना सोचे-समझे गलती करता हूँ. सत्या के बाद मुझे कई स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ी। वो कोई नहीं जानता, सब क़यास लगाते हैं। मैंने कई स्तर पर अपने ऊपर लगातार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हमले झेले। Blind items उस समय भी होते थे. सारी राजनीति और बुरे इरादों को झेलते, सहते उन पर विजय पाते हुए यहाँ तक आया हूँ. लड़ाकू था इसलिए आ पाया, कोई दूसरा टूट जाता। नसीहत नहीं बल्कि अपने तेवर पर और साथ देने वालों पर दर्शकों के विश्वास पर गर्व है। धन्यवाद सबको।


अहम् एक इंसान का सबसे बड़ा शत्रु कहलाता है. आप भी कभी न कभी इसके शिकार हुए होंगे. क्या ऐसा कोई पल याद आता है? आपने इस शक्तिशाली भावना पर नियंत्रण कैसे पाया?
इस लड़ाई में कब आत्मसम्मान अहम् में परिवर्तित हो जाता है, पता नहीं चलता। बहुत पतली रेखा होती है आत्मसम्मान और अहम् के बीच. पर समय रहते सम्भालता भी जाता था. देखिए और कोई तो था नहीं, सब कुछ अकेले ही करना था. वो समय मेरे जैसे अभिनेता के लिए कठिन था, जो शक्ति के सामने उनकी शर्तों पर काम करने के लिए तैयार नहीं था.

सफलता पाने की अमूमन सब तैयारी करते हैं लेकिन उसे सँभालने में अक्सर लोग चूक जाते हैं. आपके हिसाब से ग्लैमर की दुनिया की कामयाबी को कैसे संभालना चाहिए? 
देखिए आप सम्भालने की कोशिश कभी विवेक, कभी चतुराई, कभी धैर्य और भाग्य सबका इस्तेमाल करते हैं. बहुत छोटी और शायद इसीलिए कठिन इंडस्ट्री है. इसमें अपनी पिछली फ़िल्म की सफलता और असफलता पर समय ना गँवाकर अगले को पाने और उस पर काम करना जल्दी शुरू करना चाहिए। ग्लैमर छलावा है, सब काम और उसके नतीजे को पहचानते हैं, पूजते हैं। अनुशासन और काम बस बाक़ी सब भ्रम है।

अपने लम्बे सफर में आपने कई उतार-चढ़ाव देखे. ख़ुशी के पलों में अक्सर आप लोगों से घिरे होते हैं, मगर निराशा के क्षण बेहद मुश्किल होते हैं. उन क्षणों में आपने खुद को कैसे संभाला?
पहली बात ये कि जो आपकी प्रतिभा है वो कभी भी आपको निराश नहीं करेगी। अगर आप ख़ुशी और निराशा के समय सिर्फ़ उस पर काम करें, अवार्डस मिलना, फ़िल्मों का चलना ये एक दिन में भुला दिया जाता है, पर आपके काम, आपकी प्रतिभा को भुला पाना लोगों के लिए कठिन होगा। बस हर पल उस पर ध्यान देना होगा।

हिन्दी फ़िल्मों के विस्तार की दिशा क्या होगी और इसमें हिंदी प्रदेशों की प्रतिभाओं की क्या भूमिका हो सकती है? 
हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री चिल्ला-चिल्ला के कह रही है कि मुझे और प्रोफेशनल और पारदर्शी बनाओ (हँसते हैं). हर प्रतिभा और फ़िल्म के लिए समान अवसर हो। मूवी हॉल्स की संख्या जनसंख्या के हिसाब से कम हैं, थियेटर में छोटी फ़िल्म को भी समान अवसर मिले, सिनेमा समाज सबको सुरक्षा और इंडस्ट्री सबको सुरक्षा और प्रतिष्ठा दे, तभी इसका एक स्वस्थ विस्तार सम्भव है। हिंदी प्रदेश से आने वाले प्रतिभाओं का योगदान अविस्मरणीय है. उन्होंने हमेशा अपनी कहानी, कविता, संगीत, तकनीक, अभिनय से सिनेमा बदला है. बिना उनके योगदान के हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का इतिहास नहीं है।


सत्या और ज़ुबैदा के संदर्भ में अपनी परवरिश और परिवेश से बाहर के किरदार निभाने में मुख्य कारक क्या होता है?
सत्या या ज़ुबैदा दोनों बिलकुल एक-दूसरे से अलग, उनको निभाने में बहुत मेहनत और दिमाग़ का इस्तेमाल करना पड़ा। रामूजी (रामगोपाल वर्मा) हों श्याम बाबू (श्याम बेनेगल) दोनों को लगातार सुनना, दोनों के माहौल परवरिश पीछे के इतिहास पर काम करना, एक पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। अच्छा लगता है जब इस तरह के सवाल आते हैं जो सवाल कम प्रशंसा के शब्द ज़्यादा होते हैं, धन्यवाद!

फिल्म इंडस्ट्री को लेकर कौन-कौन से मिथक या भ्रम आपके दिल-दिमाग में थे, जो इंडस्ट्री की गहराई में जाने के पश्चात टूटे? 
मुझे लगा था ये एक बड़ा परिवार है, पर पता चला यहाँ भी छोटे-छोटे कुछ बड़े दल हैं. रिश्तेदारों की तरह जो आपस में एक-दूसरे को अच्छा करते हुए नहीं देखना चाहते। मुझे हंसी आती है, क्योंकि ये सब हम अपने समाज में देखते आए हैं. जो बलवान और धनी होगा, खूँटा उसका होगा। और ग्लैमर नाम की कोई चीज़ नहीं है, मेहनत, प्रतिभा और भाग्य यही काम आता है.

कुछ लोग ओटीटी प्लैटफॉर्म पर सेंसरशिप की वकालत कर रहे हैं. आप इस मत के पक्ष में हैं या विपक्ष में? 
जो लोग सेंसरशिप की डिमांड कर रहें हैं OTT पर नहीं चाहते कि समाज अपने चुनाव स्वयं करे कि उसे क्या देखना है, क्या नहीं, वो हर चीज़ पर अपना कंट्रोल चाहतें है. पर इस प्लैटफॉर्म पर सेन्सर कर पाना मुश्किल है।

नयी पीढ़ी के कलाकारों में आपका प्रिय कौन है?
बहुत सारे अच्छा काम कर रहे हैं- गुलशन देवैया, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना, कार्तिक आर्यन, जयदीप अहलावत, सयानी गुप्ता, तापसी पन्नू, भूमि पेडनेकर, विकी कौशल, स्वरा भास्कर, संयमी खेर बहुत हैं. कुछ नाम तो मैं भूल रहा हूँ, क्षमा करें! मुझे पवैल गुलाटी और गीतिका थप्पड़ में मुझे बहुत अच्छे लगे!

Friday, July 3, 2020

मंगल कुंडली वालों के लिए अमंगलकारी होगा यह चंद्र ग्रहण!
बता रहे हैं प्रख्यात ज्योतिषि और वास्तुविद पंडित सचिन्द्रनाथ 

इस वर्ष का चौथा और एक माह (30 दिन) के भीतर तीसरा ग्रहण 5 जुलाई को सुनिश्चित है. 11 जनवरी को आंशिक चंद्र ग्रहण, 5 जून को चंद्र ग्रहण, 21 जून को सूर्य ग्रहण और अब पुनश्च 5 जुलाई को चन्द्र ग्रहण. यह इस साल का तीसरा चंद्र ग्रहण होगा. खगोल शास्त्र के अनुसार यह ग्रहण भारत मे दिखाई नहीं देगा, लेकिन ज्योतिषिय गणना में इसके प्रभाव से देश और देशवासी अछूते नहीं रहेंगे. मुख्य बात यह है कि पांच जुलाई को गुरु पूर्णिमा भी है. चन्द्र ग्रहण का समय सुबह 8:37 मिनट पर शुरू होगा और सुबह 11:22 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. 9:59 मिनट पर यह अपने सबसे अधिक प्रभाव में होगा.  

प्रख्यात ज्योतिषि और वास्तुविद पंडित सचिन्द्रनाथ बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन का चन्द्र ग्रहण प्रतिकूल प्रभावकारी है. मंगल प्रधान लोगों जैसे- राजनेता, फ़ौजी, पुलिसकर्मी आदि के लिए यह ग्रहण तनावजन्य होगा. मंगल प्रधान लोगों से जुड़ी अप्रिय सूचनाएं विचलित करने वाली हो सकती हैं. संत योग के लोगों के साथ भी प्रतिकूल स्थितियां आ सकती हैं. सत्ता से संबंधित किसी प्रमुख व्यक्ति के साथ अनहोनी या अपमानजनक परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है. यह ग्रहण मानसिक तनाव और चिंता को बढ़ाने वाला है. यह ग्रहण भारत की कुंडली के विश्लेषण से देश को और सावधान रहने का संकेत भी दे रहा है. देश को ज्ञात-अज्ञात सात शत्रुओं की कुटिलताओं से दो-चार होना पड़ सकता है. किसी विख्यात व्यक्तित्व के साथ अनहोनी, आपदा जैसी स्थिति भी बनी रह सकती है.

Sunday, June 28, 2020

"प्यार में एक्सप्लॉएट होना लोगों को अच्छा लगता है"- आनंद एल राय, फिल्मकार  
"सफलता-असफलता, दोनों आने के बाद नॉर्मल होने में वक्त लेती हैं"- हिमांशु शर्मा, लेखक 
स्ट्रेंजर्स, तनु वेड्स मनु, रांझणा, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, जीरो और अब अतरंगी रे! हिंदी सिनेमा में आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा की जोड़ी नए दौर की एक सफलतम निर्देशक-लेखक की जोड़ी है. इनकी बेमिसाल दोस्ती के सफर के बारे में बता रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह 


वो बड़े भाग्यशाली होते हैं, जिनके हिस्से सच्ची दोस्ती आती है. और बात जब फिल्म इंडस्ट्री जैसी एक अति व्यावहारिक और घोर व्यावसायिक जगह की हो, तो फिर इसका महत्व शिव की जटा से निकली गंगा सा हो जाता है. हिमांशु शर्मा 2004 में मुंबई पहुंचे, लखनऊ से वाया दिल्ली होते हुए. दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद वह एनडीटीवी में आठ महीने नौकरी कर चुके थे. चैनल में वह बतौर लेखक कार्यरत थे. सच्चाई उनकी जुबान पर रहती थी. हकीकत को वह बेलाग-लपेट मुंह पर ही बोल देते थे. उसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ता था. ''मुझे कई प्रोड्यूसर्स ने यह कहकर निकाल दिया गया कि मैं बदतमीज और डिस्ट्रैक्टिव हूं. हिमांशु बताते हैं. लेकिन उनकी यही खूबी आनंद एल राय को भा गई. ''इससे पहली मुलाकात में ही मुझे समझ में आ गया था कि इसके दिल में जो है, वही जुबान पर है." आनंद बताते हैं.  

आनंद और हिमांशु की पहली भेंट एक कॉमन दोस्त के जरिए हुई थी. सिनेमा और खाने में दोनों की समान रुचि है. दोनों की पसंदीदा रोमांटिक फिल्म गाइड है. हिमांशु हंसते हुए कहते हैं, ''हमारी जोड़ी की स्ट्रेंथ खाना है. हामी भरते हुए आनंद कहते हैं, ''हां, हम खाते बहुत हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हम इस वजह से साथ चल रहे हैं, क्योंकि यह राइटर जैसा राइटर नहीं है और मैं डायरेक्टर जैसा डायरेक्टर नहीं हूं." 

हिमांशु को आज तक नहीं पता कि वह फिल्म लेखन में क्यों आए. शायद इसीलिए उन्हें यह भी नहीं पता कि वह जिंदगियों को पन्ने पर उतारते कैसे हैं. ''मुझे जो अच्छा लगता है, मैं लिख देता हूं और फिर उम्मीद करता हूं कि दस में से पांच या छह लोग उसे पसंद करेंगे. क्योंकि मैं भी उन्हीं के बीच से आया हूं. मैं गोविंदा की फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं. मैं प्रशिक्षित लेखक नहीं हूं. हिमांशु साफगोई से कहते हैं. लेकिन आनंद राय को पता है कि आज वह फिल्ममेकिंग में क्यों हैं. औरंगाबाद (महाराष्ट्र) की बीएएम यूनिवर्सिटी में वह कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने यह सोचकर गए थे कि नित कुछ नया करने को मिलेगा. 1986 का एक किस्सा आनंद बताते हैं, ''कंप्यूटर इंडिया में आया ही था. मैं सोचता था कि कंप्यूटर इंजीनियर बनूंगा, तो जिंदगी में हमेशा नयापन रहेगा. पर पढ़ाई के दौरान मुझे एहसास हो गया कि इसमें मुझे क्रिएटिव स्पेस नहीं मिल रहा है."

आनंद अपनी बात खत्म करते कि हिमांशु ने उन पर यह मीठा सा इल्जाम लगा दिया, ''एक लडक़ा, जो इंजीनियरिंग करके देश की सेवा करता, आपने उसकी सीट खा ली सर. जवाब में आनंद ने कहा, ''मैं भी तो देश की सेवा कर रहा हूं. इंजीनियरिंग का इस्तेमाल मैं फिल्ममेकिंग में कर तो रहा हूं. तू कहता है नहीं है कि यार, आप टाइम डिवीजन कमाल का करते हो." मुंबई आने के बाद आनंद अपने बड़े भाई रवि राय के साथ काम करने लगे, जो टीवी में सक्रिय थे. आनंद ने पहला टीवी सीरियल सोनी के लिए थोड़ा है थोड़े की जरूरत है डायरेक्ट किया. फिर बाद में, भाई के साथ मिलकर उन्होंने पंद्रह से अधिक टीवी शोज का निर्माण किया.

2006 में आनंद और हिमांशु ने मिलकर अपना पहला कदम बढ़ाया. स्ट्रेंजर के रूप में इस जोड़ी का पहला काम सामने आया, लेकिन दर्शकों ने इसे अपनाने से इंकार कर दिया. नाकामयाबी हाथ लगी. इसकी जिम्मेदारी आनंद खुद पर लेते हैं. ''मैं दर्शकों को कहानी सुनाना भूल गया. मैं उन्हें यह दिखाने लगा कि देखो, मैं क्या-क्या दिखा सकता हूं. मैं खुद को कहानी सुनाने लगा था." स्ट्रेंजर को वे सबक के तौर पर लेते हैं, ''उस फिल्म ने मुझे सिखाया कि फिल्म का दर्शकों से कम्युनिकेशन होना चाहिए."  

इस फिल्म के बाद हिमांशु और आनंद बेरोजगार हो गए. हिमांशु ने अपना रास्ता अख्तियार कर लिया. वह टशन फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर जुड़ गए. बकौल आनंद, ''यह मुझे छोडक़र चला गया था." हिमांशु जवाब देते हैं, ''छोडक़र मतलब? रोटी खाएं या ना खाएं?" आनंद हंसते हुए कहते हैं, ''जब ये टशन कर रहा था, तब भी हमने बहुत आइसक्रीमें साथ खाईं बैठकर." फिर वह दार्शनिक अंदाज में कहते हैं, ''सफलता-असफलता, दोनों आने के बाद नॉर्मल होने में वक्त लेती हैं. मुझे भी संभलने के लिए टाइम चाहिए था. मेरे पास पैसों की कमी आ गई थी. उस वक्त मैंने जी कैफे के लिए बॉम्बे टॉकिंग नाम की अंग्रेजी सीरीज बनाई. उसके लिए अच्छा-खासा पैसा मिला. फिर मुझे लगा कि अब एक-डेढ़ साल टेंशन नहीं है." 


हिमांशु तनु वेड्स मनु की स्क्रिप्ट के साथ 2008 में आनंद के पास लौटे. ''इसने जब मुझे कहानी सुनाई, तो मुझे लग गया कि यह कहानी वर्क करेगी." आनंद बताते हैं. तनु वेड्स मनु ने न केवल इन्हें सफल लेखक-निर्देशक के तौर पर स्थापित किया, बल्कि इसमें केंद्रीय भूमिका निभाने वाली कंगना रनौत के करियर के लिए टर्निंग पॉइंट फिल्म साबित हुई. ऐसा ही कुछ आलम रहा इस जोड़ी की हालिया आई फिल्म रांझणा का. इसने बॉक्स-ऑफिस पर सौ करोड़ रुपए की आमदनी तो की ही, सोनम कपूर को दमदार अभिनेत्री और तमिल सिनेमा के सुपरस्टार धनुष को हिंदी क्षेत्र में लोकप्रिय बना दिया. और तनु वेड्स मनु एवं रांझणा की एक विशेषता, जिसने सबका ध्यान खींचा, वह इसके कथानक की उत्तर भारतीय पृष्ठभूमि रही. पहले कानपुर और फिर बनारस को इस जोड़ी ने जस का जस पर्दे पर उतार दिया. आनंद कहते हैं, ''हम इन शहरों में टूरिस्ट बनकर नहीं जाना चाहते. हमने स्थानीय लोगों की नजर से इन शहरों को दिखाया." दोबारा अपनी फिल्म का कथानक यूपी चुनने के बाबत आनंद कहते हैं, ''जो आपके हिस्से का है, पहले उसे दिखा लें. फिर हम भी शायद फ्लाइट पकडक़र यूरोप चले जाएंगे." हिमांशु अपना मत रखते हैं, ''हम जियोग्राफी के हिसाब से कहानी नहीं लिखते हैं. मुझे लगता है कि कहानी खुद ब खुद बता देती है कि उसे क्या जियोग्राफी चाहिए." 

हिमांशु इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि हिंदी फिल्मों ने गांव-कस्बों का सही चित्रण पर्दे पर नहीं किया है. उनके अनुसार, ''हमने रोमांटिसाइज बहुत किया है. हरिया खेत में काम कर रहा है, ट्यूबेल चल रहा है, बीवी खाना लेकर आती है. वह मुक्के से प्याज तोड़ता है, चटनी के साथ रोटी खाता है. सर, पॉइंट ये है कि हरिया बहुत दुखी है. वो खेत में काम करके बर्बाद हो गया है. असली हालत बहुत खराब है. सही चित्रण नहीं हुआ है फिल्मों में." और आनंद अपनी फिल्मों की एक सच्चाई बयां करते हैं, ''हमारे किरदार असली बातें करते हैं. आप जैसे हो, वैसे ही पेश आ जाओ. जिंदगी आसान हो जाएगी. जिसे प्यार करना होगा, वह कर लेगा. जिसे दुत्कारना होगा, वह दुत्कार देगा. एनर्जी मत वेस्ट करो कि आओ, मुझे प्यार करो."

रांझणा में कुंदन और जोया की प्रेम कहानी जिस तरीके से आकार लेती है, उस पर कुछ लोगों ने सवाल उठाए. कुंदन के जोया की राह में बार-बार आने को लोगों ने छेडख़ानी का नाम दिया. यह बात हिमांशु और आनंद दोनों को समझ से परे लग रही है. हिमांशु कहते हैं, ''स्टॉकिंग बहुत हार्श शब्द है. किस पल बचपन वाली जोया डरी हुई नजर आती है? उल्टा वह पलटकर बोलती है कि थप्पड़ मार देंगे. सारी  रंगबाजी निकल जाएगी दो मिनट में. पर वह कहीं डरी नहीं है." आनंद सवाल उठाते हैं, ''ऐसा आरोप लगाने वालों से मैं पूछना चहता हूं कि डर में क्या था? क्या शाहरुख करें, तो आपको मंजूर है वो? तब आपको अच्छा लगता है?" हिमांशु अपनी बात को विस्तार देते हैं, ''कम कपड़े पहनाकर आइटम नंबर करवाने से बेहतर है कि एक निगेटिव कैरेक्टर बना दो. ये ज्यादा इज्जत वाला काम है. कम कपड़े पहनकर आइटम नंबर करवाना बेहतर लगता है आपको? वहां पर उंगली नहीं उठाते आप?"

आनंद राय के करीबियों से आप बात करें, तो सब उन पर यह आरोप लगाते हैं कि वह सब पर भावनात्मक अत्याचार करते हैं. हिमांशु हंसते हुए कहते हैं, ''मैं जीता-जागता उदाहरण हूं. पिछले पांच साल से यह इंसान मुझे कहीं जाने नहीं दे रहा है." आनंद अपनी हंसी रोकते हुए कहते हैं, ''मैं प्यार से दुनिया चलाता हूं. और यह लोगों की चॉइस होती है. प्यार में एक्सप्लॉएट होना लोगों को अच्छा लगता है. मुझे ऐसा करके बुरा नहीं लगता है." आनंद-हिमांशु एक-दूसरे की टांग खिंचाई एवं मजा लेने का मौका गंवाते नहीं हैं, लेकिन जरूरत पडऩे पर एक-दूसरे के लिए निस्वार्थ भाव से खड़े भी रहते हैं. इनकी दोस्ती को समझना है, तो आप रांझणा के कुंदन और मुरारी की दोस्ती को देख लें. 

क्या हिमांशु किसी दूसरे फिल्मकार के लिए लिखेंगे या आनंद किसी दूसरे लेखक की कहानी पर फिल्म बनाएंगे? यह बड़ा मुश्किल सवाल है, लेकिन आनंद जवाब देते हैं, ''मैं करना चाहूंगा, लेकिन नहीं कर पा रहा हूं. एक कंफर्ट लेवल बन गया है. मुझे इसके कैरेक्टर्स की आदत पड़ गई है." हिमांशु जवाब में कहते हैं, ''इनके बाद मैं किसी दूसरे डायरेक्टर की बजाए खुद के लिए लिखना चाहूंगा. मैं ऐसे काम नहीं कर सकता कि ये कॉन्सेप्ट है, इसे डेवेलप कर दो. ये कहानी में होना चाहिए और ये हटा दो." हिमांशु आगे कहते हैं, ''मैं अपने लिए लिखता हूं. ये अलग बात है कि आनंद जी को मेरा लेखन अच्छा लगता है." प्रतिक्रिया में आनंद कहते हैं, ''हिमांशु की यह बात मुझे पसंद है कि यह बेधडक़ लिखता है. इसकी कहानी में एक टेक होता है. इसकी राइटिंग ओरिजिनल है, जो आज के समय में बहुत कम देखने को मिलती है." और वे आगे कहते हैं, ''मुझे खुद के अंदर कभी राइटर नहीं दिखा. मेरी कमजोरी यह रही है कि मुझे अपने कैरेक्टर्स से प्यार हो जाता है. उसी को मैंने अपना प्लस बनाने की कोशिश की है."

रांझणा के बाद आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा की जोड़ी ने तनु वेड्स मनु रिटर्न्स और जीरो फिल्में दी. इनकी अगली प्रस्तुति अतरंगी रे है, जिसमें अक्षय कुमार, धनुष और सारा अली खान मुख्य भूमिका में हैं. हिमांशु लेखक के साथ-साथ अब एक निर्माता भी बन चुके हैं. अपने परम मित्र आनंद एल राय के साथ मिलकर वह कलर येलो प्रोडक्शंस में फिल्मों का निर्माण कार्य कर रहे हैं. यह जोड़ी और इस जोड़ी का जादू सलामत रहे!

Saturday, June 20, 2020

जानें सदी के दूसरे सबसे बड़े सूर्यग्रहण के गर्भ में छिपे रहस्य!

कल यानी रविवार, 21 जून, को सदी का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है. इस ग्रहण के दौरान हम सभी को कुछ आवश्यक बातों का विशेष ध्यान रखना होगा. इस सिलसिले में हमने प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित सचिन्द्रनाथ से विशेष बातचीत की. जानिए क्या कुछ लेकर आ रहा है यह सूर्यग्रहण 



रविवार को सूर्य ग्रहण सुबह करीब 10.20 बजे शुरू होगा और दोपहर 2.59 बजे खत्म होगा। इसका सूतक 12 घंटे पहले यानी 20 जून को रात 10.20 पर शुरू हो जाएगा। जो कि ग्रहण के साथ ही खत्म होगा। प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित सचिंद्रनाथ के अनुसार, "इस बार के सूर्य ग्रहण में छह ग्रहों की उल्टी चाल ज्योतिष शास्त्र की नजर में और बेहाल करने वाली है। ज्योतिष के नज़रिये से 21 जून, रविवार को होने वाले सूर्य ग्रहण पर ग्रहों की विशेष स्थिति बन रही है। इस सूर्यग्रहण के समय 6 ग्रह वक्रीय रहेंगे। यह स्थिति देश और दुनिया के लिए ठीक नहीं है। इस दिन बुध, गुरु, शुक्र और शनि वक्रीय रहेंगे। राहु और केतु सदैव वक्रीय ही रहते हैं, लेकिन बुध, गुरु, शुक्र और शनि का इनके साथ ही उल्टी दिशा में चलना अशुभ संकेतकारी है." 

सूर्यग्रहण के अनुसार यह जानना अतिआवश्यक है कि क्या करने से बचें. आप ग्रहण के समय घर से बाहर नहीं निकलें। सूर्य ग्रहण के दौरान इन बातों की विशेष मनाही है। जैसे- सोना, यात्रा करना, पत्ते का छेदना, तिनका तोडऩा, लकड़ी काटना, फूल तोडऩा, बाल और नाखून काटना, कपड़े धोना और सिलना, दांत साफ करना, भोजन करना, शारीरिक संबंध बनाना, घुड़सवारी, हाथी की सवारी करना और गाय-भैंस का दूध निकालना। पंडित सचिंद्रनाथ के अनुसार अशुभ फल से बचने के लिए ईश्वर की मौन उपासना बहुत जरूरी है। कुछ सावधानियां बरत कर हम अशुभ प्रभावों को कम कर सकते हैं। ग्रहण से पहले स्नान करें। तीर्थों पर न जा सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं। ग्रहण के दौरान महादेव भोलेनाथ के मंत्रों का जाप करें। 


एक माह के भीतर यह दूसरा ग्रहण है। 5 जून को चंद्रग्रहण के बाद अब 21 जून को सूर्यग्रहण है। एक माह के भीतर दो ग्रहण दुर्लभ संयोग वाले और प्राय: अहितकारी ही होते हैं। पंडित सचिंद्रनाथ बताते हैं कि यह ग्रहण राहुग्रस्त है। मृगशिरा नक्षत्र व मिथुन राशि में राहु सूर्य-चंद्रमा को पीड़ित कर रहा है। मंगल जल तत्व की राशि मीन में है और मिथुन राशि के ग्रहों पर दृष्टि डाल रहा है। सूर्य, बुध, चंद्रमा और राहु के एक साथ होने से प्रतिकूल संत योग भी इस ग्रहण पर बन रहा है और इसका असर सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश करने के एक दिन पूर्व से ही प्रभावी है। ऐसे में संत योग की श्रेणी वाले लोगों यथा साधु, सन्यासी और एकाकी जीवन वाले व्यक्ति भी, इसके प्रतिकूल प्रभाव की चपेट में आ सकते हैं। इस ग्रहण के संत योग में अनहोनी के साथ ही यश की हानि भी परिलक्षित हो रही है। साथ ही ग्रहण पर मंगल की दृष्टि पड़ने से ज्योतिष गणना के अनुसार इसके प्रभाव से आंधी, तूफान, भूकंप, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका है। देशों के बीच युद्ध की भी स्थिति बन सकती है। सूर्यग्रहण के प्रभाव स्वरूप देश व दुनिया में पड़ोसी राष्ट्रों के बीच आपसी तनाव, अप्रत्यक्ष युद्ध, महामारी, किसी बड़े व्यक्तित्व के साथ अनहोनी, राजनीतिक परिवर्तन, हिंसक घटनाओं में इजाफा, आर्थिक मंदी आदि पनपने के संकेत हैं। नदी के किनारे बसे शहरों पर इसका खासा प्रभाव पड़ेगा। ग्रहण के प्रभाव से समाज के हर वर्ग के लोगों में आलस्य बढ़ेगा। लोग बैठे-बैठे काम करने पर अधिक जोर देंगे। इस प्रवृत्ति से बचना होगा अन्यथा नकारात्मता बढ़ने लगेगी।

Friday, June 19, 2020

"सच्चा प्यार और पूरे ईमान से किया हुआ इश्क़ कभी नापाक़ नहीं होता"

बॉलीवुड से लेकर बॉर्डर तक देश में हलचल है. आक्रोश का माहौल है. इन सबके बीच वादे के मुताबिक हम हाज़िर हैं #रघुवार्ता के साथ. इस बार हमने बातें की तेज़-तर्रार अभिनेत्री स्वरा भास्कर से... तनु वेड्स मनु, रांझणा, निल बट्टे सन्नाटा, अनारकली ऑफ़ आरा और वीरे दी वेडिंग में उनकी दमदार अदाकारी आप सबने देखी है.  जितना खरा उनका अभिनय, उतनी ही खरी उनकी बातें.  इस बातचीत में उनके सीधे और सटीक जवाब काबिलेतारीफ हैं. पढ़ें और शेयर करें!


देश और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इस समय अशांति और व्याकुलता का माहौल है. इन परिस्थितियों ने आपको मानसिक रूप से कितना विचलित किया है? #रघुवार्ता
मैं भी उतनी ही दुखी और परेशान हूँ पिछले हफ़्ते की घटनाओं को लेकर जितने सब हैं- सुशांत सिंह राजपूत की दुःखद आत्महत्या ने मुझे हिला दिया है, और गलवान में हमारे जवानों की मौत और शहादत ने दिल को पसीच दिया है। जवानों को श्रद्धांजलि, सुशांत को सलाम & इनके परिवारों को मेरी प्रार्थनाएँ।

फिल्म सितारों की ग्लैमरस ज़िन्दगी में क्या वाकई अकेलेपन का अंधेरापन होता है? आप इस प्रतिस्पर्धा भरी इंडस्ट्री में खुद को कैसे संयमित रखती हैं? #रघुवार्ता
किसी की भी ज़िंदगी में अकेलापन और अंधकार आ सकते हैं- जैसे किसी को भी डिप्रेशन की बीमारी हो सकती है। दुःख और बीमारी हैसियत और स्टारडम नहीं देखते। मुझे मेरे माँ बाप, भाई, क़रीबी दोस्त संयमित रखते हैं- इन्ही से मेरी ज़िंदगी के मायने हैं!

सोशल मीडिया पर आयी अभद्र टिप्पणियों और अपमान जनक शब्दों से खुद को कैसे अप्रभावित रखती हैं? #रघुवार्ता 
ढीट बनकर। ये समझकर की जो इंसान गाली देकर या अभद्र भाषा इस्तेमाल करके बात कर रहा है- उसके पास तर्क नहीं है। और बेतुके लोगों की बातों का क्या तवज्जो देना? उनकी बातें उनकी असलियत बताती हैं, मेरी नहीं।

आपसे तनु वेड्स मनु (2011) के दिनों जब भेंट हुई थी, तब आपका लक्ष्य अभिनय में प्रसिद्धि हासिल करना था. बीच में ऐसा क्या घटित हुआ कि अचानक आपकी प्राथमिकता जनचिंतन या कहें कि राजनीति बन गई? #रघुवार्ता 
जनचिंतन, आस पास की दुनिया और हमारे देश के हालात, समाज और सामाजिक संदर्भ में हमेशा से मेरी रुचि रही है। समाजशास्त्र में MA किया है मैंने। तब प्रसिद्ध नहीं थी, लोग मुझे नहीं जानते थे तो मेरे विचारों को नहीं जानते थे। अब जानते हैं :) बस इतना घटित हुआ- nobody से somebody :)

इस समय अगर आपको कोई एक राजनीतिक पार्टी ज्वाइन करनी हो तो वो पार्टी कौन-सी होगी और क्यों? #रघुवार्ता 
मुझे इस समय बिलकुल राजनीति ज्वाइन नहीं करनी। काम करना है। एक्टिंग करनी है अनुराग कश्यप, अनुभव सिन्हा और तमाम डाइरेक्टर्स के साथ जिनके आर्ट की मैं इज़्ज़त करती हूँ।

एक इंसान की राजनितिक विचारधारा का उसके जीवन और रोज़गार पर असर पड़ता है. क्या आपको किसी फिल्म या कार्यक्रम से बाहर किया गया है आपकी विचारधारा के कारण? #रघुवार्ता 
हाँ पड़ा है। ख़ासकर 2019 के लोक सभा कैम्पेनिंग के बाद. पर ठीक है. जो विचारधारा कुछ बुरे असर से डगमगा जाए वो विचारधारा नहीं भेड़ चाल है। :)


आपने अनेक प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुँचाया। कोरोना महामारी के इस विषमकाल में आप ज़रूरतमंदों को खान-पान से लेकर चप्पलें तक उपलब्ध करवायीं. आपकी समाज सेवा की प्रशंसा होनी चाहिए. #रघुवार्ता 
नहीं। मैंने ऐसा कुछ महान नहीं किया। मुश्किल समय में एक दूसरे की मदद करना इंसानियत का मूल उसूल है- हम इंसान पैदा हुए हैं- अपना मानव धर्म निभाने में क्या प्रशंसा पाना? इतना तो बेसिक ह्यूमैनिटी है- इस वक्त में सबने की है- बस फिल्म स्टार्स लोगों की नज़रों में जल्दी आते हैं.

अपनी अगली फिल्म शीर कोरमा में आप एक मुस्लिम महिला का किरदार निभा रही हैं, जो एक दूसरी महिला से प्रेम करती है. क्या इस नापाक रिश्ते, जैसाकि फिल्म के संवाद में कहा गया है, को समाज मंज़ूरी देगा? #रघुवार्ता 
सच्चा प्यार, और पूरे ईमान से किया हुआ इश्क़ कभी नापाक़ नहीं होता। शीर खुरमा फ़िल्म में यही बात निर्देशक फ़राज़ अंसारी ने इतनी सादगी और सच्चाई से बयान की है कि किसी को दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए। बाक़ी ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना..’

ओटीटी प्लैटफॉर्म्स अब फिल्मों और शोज का नया अड्डा बन रहे हैं. आपकी नयी सीरीज़ रसभरी आने वाली है. क्या टीवी और थियेटर को ओटीटी प्लैटफॉर्म्स से डरने की ज़रूरत है? #रघुवार्ता  
थियटर में फ़िल्म देखने का जो मज़ा है, वो एक सामाजिक अनुभव है- वो बरकरार रहेगा चाहे, टेक्नॉलोजी बदले और नए प्लैटफॉर्म्स आ जायें। केबल टीवी, वीसीआर, डीवीडी, होम थियटर ने तो थियटर को नहीं ख़त्म किया। पर कलाकार होने के नाते, जितने प्लैटफॉर्म्स उतना ज़्यादा काम

क्या वीरे दी वेडिंग के सीक्वल पर काम शुरू हो चुका है? करीना, सोनम, शिखा और आप सब होंगे न? सीक्वल में विषय क्या होगा? #रघुवार्ता
इस सवाल का सही जवाब तो निर्माता रिया कपूर और एकता कपूर ही दे पाएँगे। बाक़ी मुझे भी उतना ही पता है जितना आपको :) पर कभी कभी सोचती हूँ इस बार साक्षी सोनी के रूप में स्वरा भास्कर क्या बवाल मचाएगी?।? सोच कर डर लगता है!!

India is a land of goddesses but it takes us second to abuse women. Why? #रघुवार्ता
Because human beings and human society have a huge tendency towards hypocrisy.

Can you recount one special moment from last year or any favourite on-set memory? #रघुवार्ता
Sharing screen space with the iconic & amazing #ShabanaAzmi while shooting #SheerQorma, watching her rehearse, lift the whole scene with her presence & performance and to have her listen to & correct my pronunciation! Uff death hi ho gayi! Thank uuuu Faraz Ansari.

Wednesday, June 17, 2020



वो दिल का दर्द दिल में दबाए चले गए
हम मौत पर उनकी महफ़िल सजाए बैठे हैं!

वो बेरुखी के ज़ख्म छुपाए चले गए
हम इश्क़ में उनकी मजलिस लगाए बैठे हैं!

वो सुकून की चाह में बिन बताए चले गए
हम फिक्र में उनकी शोरगुल मचाए बैठे हैं!

वो जहान के प्रपंच से पीछा छुड़ाए चले गए
हम मौत पर उनकी अपनी बिसात बिछाए बैठे हैं!
                                                              -रघुवेन्द्र सिंह