Tuesday, July 23, 2013

गुलजार का श्लोक

जिस बच्चे का नामकरण प्रख्यात गीतकार-फिल्मकार गुलजार ने किया हो, अगर किशोरवय में उस पर फिल्म बनाने का जुनून सवार हो जाए, तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए. श्लोक शर्मा की जर्नी एक फिल्म की रोचक कहानी-सी लगती है. आगे क्या हुआ? यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है. श्लोक का नामकरण गुलजार ने किया, इसका अर्थ आप यह ना निकालें कि वह फिल्म इंडस्ट्री के किसी घराने से आते हैं. उनका तो फिल्मों से भी बड़े दूर का रिश्ता था. बचपन में सिनेमाहॉल में फिल्म देखने का अवसर उन्हें यदा-कदा ही मिला था. अपने होश में उन्होंने पहली पिक्चर जो थिएटर में देखी थी, वह अजय देवगन और तब्बू की विजयपथ थी.
श्लोक के पापा नेवी में कार्यरत थे. वह योगा के प्रशिक्षक भी थे. गुलजार और विशाल भारद्वाज को वह योगा का अभ्यास करवाते थे. श्लोक का फिल्म इंडस्ट्री से बस यही रिश्ता था. गुलजार साहब ने सोच रखा था कि अगर उनको बेटा हुआ, तो वह उसका नाम श्लोक रखेंगे. मगर किस्मत तो किसी और की बुलंद थी. गुलजार के उस आशीर्वाद के बाद जैसे श्लोक का फिल्मों में आना तय हो गया. ग्यारहवीं की पढ़ाई के दौरान श्लोक ने फिल्मों से जुडऩे का फैसला किया. उन्होंने पापा को किसी तरह राजी कर लिया. उन्होंने विशाल भारद्वाज से बात की, लेकिन इस फिल्मकार ने श्लोक की कच्ची उम्र के इस सपने को महज एक आकर्षण समझा. उन्होंने श्लोक को गंभीरता से नहीं लिया. मगर श्लोक दृढ़ प्रतिज्ञ थे. वह उनके ऑफिस में डंटे रहे. फिर एक घटना घटी.
विक्रमादित्य मोटवाने की मां दीपा मोटवाने विशाल भारद्वाज की फिल्म ब्लू अंब्रेला का प्रोडक्शन कार्य संभाल रही थीं. उन्हें आउटडोर के लिए यूनिट वालों की ट्रेन की टिकट बुक करवाने में काफी परेशानी हो रही थी. श्लोक उत्साह के साथ उनकी मदद के लिए आगे आए. उन्होंने कहा कि टिकट बुक करवाना कौन-सा मुश्किल काम है! उन्हें लगा कि तीन-चार टिकट बुक करवानी होगी. फिर अगले दो महीने तक श्लोक की सुबह-शाम रेलवे स्टेशन पर गुजरने लगी. कभी कोई टिकट कैंसिल करवाना होता, तो कभी किसी का टिकट बुक करवाना पड़ता. एक समय तो ऐसा आया कि रेलवे के एजेंट्स उन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगे. अपना बिजनेस टूटने का खतरा मंडराते देख वह श्लोक को परेशान करने लगे. इस किशोर पर टिकट बुक करने वाले अधिकारियों की नजर पड़ी और वह उसे परेशान होता देख पिघल गए. अपने टिकट बुक करने के हुनर की बदौलत श्लोक विशाल की प्रोडक्शन टीम का हिस्सा बनने में कामयाब हो गए.
विशाल भारद्वाज के सानिध्य में श्लोक की सिनेमाई परवरिश होने लगी. ओमकारा तक वह उनके साथ रहे, लेकिन उन्हें खिलने और खुलने का माहौल दिया अनुराग कश्यप ने. प्रतिभाओं के पारखी अनुराग की नजर श्लोक पर पड़ी और उन्होंने नो स्मोकिंग में श्लोक को अपनी संगत में ले लिया. अब श्लोक सिनेमा की दुनिया में पूरी तरह डूब चुके थे. अनुराग के पास उन्होंने जाना कि सिनेमा का दायरा कितना वृहद है. उनका सोना, जागना, खाना-पीना सब फिल्मों की चर्चा करते बीतने लगा. उन्होंने अनुराग के साथ नो स्मोकिंग से लेकर बॉम्बे टॉकीज तक उनके सहायक के रूप में काम किया.
श्लोक पर अनुराग कश्यप की सोच और व्यक्तित्व का प्रभाव है. वह उनकी तरह लीक से हटकर और साहसी कहानी चुनने के गुणी हैं. वह अपनी अधपकी फिल्म किसी को दिखाने से झिझकते नहीं हैं. वह बेधडक़ और सहर्ष अपनी फिल्म की आलोचना सुनते हैं. वह दूसरों के काम की इज्जत करते हैं और उसकी सराहना करते अघाते नहीं. श्लोक ने अपने जीवन और आस-पास के माहौल से सीखा है. उनकी कहानियों में आपको आपको अपने आस-पास का जन-जीवन जस का तस नजर आएगा. 
श्लोक शर्मा को अनुराग कश्यप अपना दाहिना हाथ मानते हैं. इस नौजवान में अनुराग का विश्वास यूं ही नहीं है. अगर आप श्लोक की लघु फिल्में सुजाता, हिडेन क्रिकेट, द जॉय ऑफ गिविंग, ट्यूबलाइट का चांद देखें, तो आपको भी उनमें भविष्य के एक दमदार और प्रभावशाली फिल्मकार की झलक दिखेगी. आजकल श्लोक अपनी पहली फीचर फिल्म हरामखोर के संपादन में जुटे हुए हैं. इसका इंतजार करें. यह न केवल अपने बोल्ड विषय, नवाजुद्दीन सिद्दिकी और श्वेता त्रिपाठी के अद्वितीय अभिनय, बल्कि श्लोक की अपनी अनूठी फिल्ममेकिंग के लिए चर्चा बटोरेगी. आइए, गुलजार के श्लोक का स्वागत करते हैं.