Monday, September 10, 2012

मैं रानी को तलाक नहीं देना चाहता था- मनोज तिवारी

संगीत उनकी साधना है, क्रिकेट उनका पैशन, अभिनय शौक था, जो अब उनका जीवन है. भोजपुरी लोकगीत, संगीत और सिनेमा के पयार्य बन चुके मनोज तिवारी मृदुल से रघुवेन्द्र सिंह ने की खास बातचीत   

हिंदी सिनेमा अपना 100वां वर्ष सेलीब्रेट करने की तैयारी कर रहा है, तो भोजपुरी सिनेमा अपनी 50वीं सालगिरह मनाने के लिए तैयार है. 1963 में बिश्वनाथ प्रसाद शाहबादी निर्मित पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो का प्रदर्शन हुआ था. इस उपलक्ष्य में फिल्मफेयर हिंदी ने एक बड़ा ऐतिहासिक कदम उठाया है. अब हम भोजपुरी सिनेमा के आपके प्रिय सितारों को सम्मानित तरीके से आपके बीच लेकर आएंगे. इस सफर का आगाज हम भोजपुरी के सर्वप्रिय लोक गायक एवं अभिनेता मनोज तिवारी से कर रहे हैं, जिन्हें भोजपुरी सिनेमा को पुर्नजीवित करने का श्रेय दिया जाता है. 
मनोज तिवारी का बंगला अंधेरी वेस्ट के म्हाडा में है. यह मुंबई एक पॉश एरिया है. यहां हिंदी फिल्म जगत की तमाम बड़ी शख्सियतों का दफ्तर है. मनोज तिवारी का नाम पूछते-पूछते आप उनके बंगले तक आसानी से पहुंच सकते हैं. वे सस्नेह, मृदुल और अपनत्व भरे भाव के साथ आपसे मिलेंगे. ऐसा लगेगा जैसे वे आपको वर्षों से जानते हैं. शायद इसीलिए उनके नाम में मृदुल जुड़ा हुआ है. मनोज तिवारी भले ही मुंबई जैसे अत्याधुनिक मेट्रो शहर में रहते हैं, लेकिन उनके बंगले में दाखिल होने के बाद आपको यूपी-बिहार के किसी घर में होने का एहसास होगा. हॉल की दीवारें फिल्मों के मंढे हुए फोटोग्राफ्स से सजी हैं. मेज देश-विदेश के पुरस्कारों से पटे पड़े हैं. अगर आप शाम को उनके घर में हैं तो सत्तू आपको नाश्ते में मिलेगा और यदि देर शाम यहां उपस्थित हैं तो चाय के साथ मटर और चूड़े का स्वादिष्ट नाश्ता परोसा जाएगा.
मनोज तिवारी भोजपुरी फिल्मों की वर्तमान स्थिति को लेकर चिंता जाहिर करते हैं. भोजपुरी गीत और फिल्मों का नाम लेते ही लोगों की नाक-भौं सिकोडऩे वाली स्थिति उन्हें अखरती है. अश्लीलता के दीमक ने भोजपुरी फिल्मों को खोखला बना दिया है. यही वजह है कि भोजपुरी फिल्में अपनों के बीच भी उपेक्षित बन गई हैं. मनोज तिवारी इस स्थिति से निराश जरूर हैं, लेकिन हताश नहीं हुए हैं. ‘‘दुख की बात यह है कि भोजपुरी फिल्मों में भोजपुरिया समाज नहीं नजर आता है. जिस तरह की फिल्में आजकल बन रही हैं, वो हमारा आईना नहीं हैं.’’  आशा के साथ मनोज उपाय भी बताते हैं, ‘‘यह स्थिति बदल सकती है, अगर अच्छी सोच के निर्माता, निर्देशक, कहानीकार और संगीतकार भोजपुरी फिल्मों में आएं. हमारे राज्य में फिल्म सेंसर बोर्ड का गठन जरूरी है ताकि हमारी संस्कृति और औरतों को गलत ढंग से प्रस्तुत किया जा सके. जरूरी नहीं है कि मुंबई में स्थित सेंसर बोर्ड के लोग समझें कि हमारी फिल्म में क्या बोला जा रहा है और उसका मतलब क्या है. उन्हें हर फिल्म को हर उम्र के दर्शकों को देखने का सर्टिफिकेट नहीं देना चाहिए. अफसोस की बात है कि भोजपुरी फिल्में अपने प्रदेश की सरकारों द्वारा ही उपेक्षित हैं.’’  
भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में प्रतिवर्ष गिरावट हो रही है. कुछ वर्ष पहले तक यदि हर साल 80 फिल्में बनती थीं, तो अब वह संख्या घट कर 30 रह गई है. खराब कंटेंट की वजह से दर्शक उनसे कटते जा रहे हैं. भोजपुरी फिल्में अब श्रमिक और मजदूर वर्ग के मनोरंजन का साधन बनकर रह गई हैं. मनोज तिवारी चौंकाने वाला एक तथ्य सामने रखते हैं. ‘‘आप यकीन करेंगे कि मैंने 70 से अधिक फिल्में कर ली हैं, लेकिन आज तक मुझे एक भी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं मिली. अगर किसी ने दबाव में आकर दी भी, तो वह 80 पन्ने का बंडल था. पूछने पर लेखक-निर्देशक ने कहा कि भैया, अपनी ओर से कुछ भी बोल दीजिएगा.’’ मनोज तिवारी ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि उन्हें उन फिल्मों में काम नहीं करना चाहिए था, लेकिन पैसों के लिए वे आंख मूंदकर सब ऑफर स्वीकार करते रहे. ‘‘स्थिति जब बदतर हो गई, तब मन में असंतोष बहुत बढ़ गया तो मैंने भोजपुरी फिल्में साइन करनी कम कर दीं और 2007 में मैंने टीवी का रुख कर लिया. मैंने चक दे बच्चे, सुर-संग्राम, बिग बॉस जैसे चर्चित रियलिटी कार्यक्रम किए, जहां मुझे अमिताभ बच्चन, सलमान खान और अक्षय कुमार के साथ मंच शेयर करने का संतोष मिला.’’ 
बिहार के वर्तमान कैमूर जिले के छोटे से गांव अतरवलिया में जन्मे मनोज तिवारी के लिए यह सब किसी उपलब्धि से कम नहीं है. मनोज तिवारी के पिता चंद्रदेव तिवारी शास्त्रीय गायक थे, लेकिन ही गायक बनना उनका लक्ष्य था और तो उन्होंने अभिनेता बनने का सपना देखा था. बड़े भैया साधु सरण तिवारी की ख्वाहिश थी कि उनका भाई गायक बने. मनोज तिवारी बताते हैं, ‘‘भैया ने एक बार मुझे रामलीला में गाते हुए सुना था, तभी उन्हें विश्वास हो गया था कि मैं अच्छा सिंगर बन सकता हूं. उन्होंने ही 1992 में मेरा पहला एलबम राम भजन निकलवाया था और पहला स्टेज शो भी करवाया था.’’ मनोज तिवारी बचपन में स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय थे. वे गांव की रामलीला में हिस्सा लेते थे. वे दुर्गा पूजा के दौरान खुद ड्रामा लिखते थे और उनमें अभिनय भी किया करते थे. उनका मन क्रिकेट खेलने में भी खूब लगता था. मगर इनमें से किसी भी क्षेत्र में उन्होंने करियर बनाने के बारे में कभी नहीं सोचा था. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (वाराणसी) से ग्रेजुएशन के पश्चात वे नौकरी की तलाश में जुट गए थे. ‘‘भैया ओएनजीसी में नौकरी करते थे. मैंने कोशिश की कि उसी कंपनी में स्पोर्ट कोटे में मेरी नौकरी भी लग जाए. ग्रेजुएशन के बाद मैंने बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजीकल एजुकेशन) किया. उसके बाद मैं टीचर की नौकरी खोजने लगा. लेकिन मुझे कहीं नौकरी नहीं मिली.’’ मनोज तिवारी ने बताया.
भैया के प्रयास से बने मनोज तिवारी के शुरूआती 2-3 म्यूजिक एलबम बिके नहीं. उसे मनोज ने चुनौती के रूप में लिया और 1995 में उन्होंने भैया के साथ मिलकर खुद एक म्यूजिक एलबम बनाया, जिसके गीत, संगीत और गायन की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं संभाली. 1996 में टी-सीरीज ने उनके एलबम मैया के महिमा रिलीज किया. वह एलबम खूब चला और मनोज तिवारी उस वक्त के स्थापित गायकों भरत शर्मा और मुन्ना शर्मा के लिए चुनौती बनकर उभरे.
2003 में मनोज तिवारी के पास ससुरा बड़ा पइसावाला फिल्म में अभिनय करने का प्रस्ताव आया. उसे उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि भोजपुरी फिल्मों का बाजार ना के बराबर था. दूसरा कारण यह था कि वे भोजपुरी फिल्म को अपने स्तर का नहीं समझ रहे थे. निर्माता-निर्देशक की बारंबार विनती के बाद उन्होंने अनमने ढंग से वह फिल्म साइन की. उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि एक शानदार करियर उनका इंतजार कर रहा है. ‘‘वह फिल्म एक साल तक थिएटर से नहीं निकली.’’ मनोज याद करते हैं. वे मुंबई की अपनी पहली यात्रा को भूले नहीं हैं. ‘‘बीएचयू की ओर से हम कोल्हापुर क्रिकेट खेलने जा रहे थे. वीटी स्टेशन पर उतरे थे. दूसरी गाड़ी बारह घंटे बाद थी. हम स्टेशन से बाहर निकले और मरीन ड्राइव के पास एक कॉलेज में इंसानियत फिल्म की शूटिंग देखने चले गए. पहली बार अमिताभ बच्चन और सनी देओल को शूटिंग करते हुए देखा था. उसी दौरान किसी ने हम लोगों का सूटकेस चोरी कर लिया. इस घटना को बाद में हमने अपनी फिल्म देहाती बाबू में डाला.’’ 

मनोज तिवारी की सफलता का एक बड़ा कारण उनकी गायकी, उनकी मधुर आवाज को माना जाता है. उनके स्टारडम को भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में केवल रवि किशन और दिनेश लाल यादव निरहुआ चुनौती दे सके. इस संदर्भ में मनोज मजाकिया अंदाज कहते हैं, ‘‘पब्लिक एक स्टार की फिल्म अधिक समय तक नहीं देख सकती ! ’’ अपने प्रतिद्वंद्वी रवि किशन के बारे में मनोज दावे के साथ कहते हैं, ‘‘रवि किशन जोड़-तोड़ करके भले ही फिल्में पा लें, लेकिन आज तक उनकी कोई फिल्म नहीं चली. जिस फिल्म पंडित जी बताई बियाह कब होई को वे अपनी सफल फिल्म बताते हैं, उसके प्रोड्यूसर मोहनजी प्रसाद बर्बाद हो गए.’’ मनोज इस ओर हमारा ध्यान खींचते हैं कि भोजपुरी फिल्मों में अब तक केवल गायकों का सिक्का चला है. चाहे वे स्वयं हों या दिनेश लाल यादव निरहुआ या पवन सिंह और फिर खेसारीलाल.
रात के दो बज चुके हैं, लेकिन मनोज अभी तक व्यस्त हैं. उनका फोन बार-बार बज रहा है. वे कभी अपने आई-पैड तो कभी आई-फोन और एन्ड्रायड पर नजर डालते हैं. वे बताते हैं कि उन्होंने दिल्ली में अपनी एक टीम गठित की है, जो उनकी फिल्मों, मीडिया और बिजनेस को सलीके और प्रोफेशनल तरीके से संभाल रही है. ऐसा करने वाले वे भोजपुरी के पहले स्टार हैं. वे मुझे आई-पैड पर दिल्ली में हाल में संपन्न हुए एक सम्मान समारोह की कतरनें दिखाते हैं, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार उन्हें सम्मानित कर रहे हैं. मनोज तिवारी की पकड़ सियासी महकमे में तगड़ी है. 2009 में वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर गोरखपुर (उप्र) से लोकसभा चुनाव भी लड़े थे, लेकिन दुर्भागयवश वे चुनाव हार गए. मनोज तिवारी उसे हड़बड़ी और दबाव में लिया गया फैसला बताते हैं. ‘‘मैं राजनीति में सक्रिय रूप से नहीं जानना चाहता था, लेकिन अमर सिंह, मुलायम सिंह यादव और अनिल अंबानी के दबाव में मैं चुनाव में खड़ा हो गया. इनका औरा इतना बड़ा था कि मैं ना नहीं कह सका. वो मेरा गलत फैसला था. मैंने जीवन में कभी पराजय नहीं देखी थी. वह मेरी पहली पराजय थी. मेरे विरोधियों ने उसे मेरी व्यक्तिगत पराजय के रूप में देखा गया, जबकि वह सपा की पराजय थी.’’ मनोज तिवारी इस बात से इंकार नहीं करते कि अब वे राजनीति में नहीं जाएंगे.
मनोज तिवारी निजी जीवन में इन दिनों मुश्किल परिस्थितियों से गुजर रहे हैं. पत्नी रानी से उनका अभी तलाक हुआ है. उनकी 11 साल की बेटी हैं रीति, जो मां के साथ रहती हैं. अभी-अभी वे लोखंडवाला में अपनी बेटी से मिलकर लौटे हैं. ‘‘यह मेरे जीवन का बहुत बड़ा झटका है. मैं तलाक नहीं देना चाहता था, लेकिन मजबूरन मुझे तलाक देना पड़ा.’’ 1998 में मनोज तिवारी की रानी से अरेंज मैरिज हुई थी. तलाक की वजह के बारे में वे कहते हैं, ‘‘मेरी पत्नी शंकालु प्रवृत्ति की थीं. मुझे किसी हीरोइन के साथ देखकर उन्हें अजीब लगता था. श्वेता तिवारी से मेरी दोस्ती को लेकर वे नाराज थीं. हालांकि श्वेता सिर्फ मेरी दोस्त थीं. उनकी सभी शंकाओं का मैंने निदान किया, लेकिन बाद में उनकी खुशी के लिए मैंने तलाक दे दिया. 7 फरवरी को कोर्ट ने हमारे तलाक को मंजूरी दे दी.’’ 

मनोज तिवारी चार हजार से अधिक गीत गा चुके हैं. हाल में उनकी हमार भइया दयावान फिल्म प्रदर्शित हुई, जिसे दर्शकों ने पसंद किया. जल्द ही उनकी अंधा कानून और गंगा जमुना सरस्वती फिल्में आएंगी. भोजपुरी सिनेमा की वर्तमान दशा को सुधारने के लिए मनोज तिवारी कटिबद्ध हैं. मनोज बताते हैं कि उनकी योजना कुंवर सिंह, वीर अब्दुल हमीद और शेरशाह सूरी के जीवन पर फिल्म बनाने की है. मनोज तिवारी की राय में भोजपुरी फिल्मों के स्टार्स को आपसी प्रतिद्वंद्विता को भूलकर एकजुट होकर उसकी बेहतरी के लिए काम करना चाहिए. ‘‘अगर हम मानते हैं कि भोजपुरी हमारी मां है, तो हमें भोजपुरी सिनेमा को ऊपर उठाने के लिए एक साथ सामने आना होगा और स्वीकार करना होगा कि अतीत में हमने कुछ कुछ गलतियां कीं. मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, साउथ अफ्रीका, त्रिनिदाद आदि देशों में भी भोजपुरी बोली जाती है. यह सत्रह करोड़ से ज्यादा लोगों की भाषा है. हमें उन सबके देखने योगय फिल्म का निर्माण करना चाहिए.’’



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